रिश्तों की गर्मी complete

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007
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Re: रिश्तों की गर्मी

Post by 007 »

komaalrani wrote:गजब ,ये पुष्पा भी। :( :o :o


क्या होगा अब , ....सांस रोके इन्तजार रहेगा अगले पोस्ट का।
sunita123 wrote:kya mod lete ho kahani me sach me aisa lagta hai jasie koi mast sexy suspence kahani padh rahe hai
komaalrani wrote:
sunita123 wrote:kya mod lete ho kahani me sach me aisa lagta hai jasie koi mast sexy suspence kahani padh rahe hai


एकदम सही कहा आपने
komaalrani wrote:कौन बचाएगा देव को :shock:



थॅंक यू सो मच ऑल ऑफ यू


कहते हैं ना दोस्तो जाको राखे साईयाँ मार सके ना कोय
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Re: रिश्तों की गर्मी

Post by 007 »


हाँ देव तुम्हारा बाप कोई साधुसंत नही था बल्कि एक नंबर का ऐय्याश था ना जाने गाँव की कितनी औरतो को उसने अपने नशे और गुरूर के नीचे कुचल दिया था . देव आज तुम्हारे खून से नहा कर मैं शुद्ध हो जाउन्गी इस बार चाकू कुछ ज़्यादा अंदर तक घुस गया था तो मैं दर्द से दोहरा हो गया था लक्ष्मी अपनी धुन मे थी वो एक और नया जख्म बनाते हुए बोली

देव , जानते हो इस बदले की आग मे मैं कितना जली हू, मैने तुम्हारे बाप का कतल करते हुए कसम खाई थी , कि मैं उसके वंश को ही मिटा दूँगी, और फिर जब मुझे पता चला कि तुम्हारे दादा ने वसीयत बना दी है तो फिर उनको भी रास्ते से हटा कर तुम्हे इधर बुलवा लिया गया और अब देखो आज बरसो की मेरी प्यास शांत होगी लक्ष्मी पागलो की तरह हँसने लगी


उसने कहा चिंता मत करो सब कुछ जाने बिना तुम्हारी जान नही निकलने दूँगी , तो देव बात उन दिनो की है जब मैं ब्याह कर बस आई ही थी कुछ रस्मों के बाद, मेरी पति बड़े ठाकुर का आशीर्वाद दिलाने मुझे इसी मनहूस हवेली मे लेकर आए थे, यहीं पर उस शैतान जो तुम्हारा बाप था उसकी हवस की गंदी निगाह मुझ पर पड़ गयी अब उसका रुतबा था गाँव मे , उसके आगे कोई आवाज़ नही उठा ता था

नशे मे चूर उस शैतान ने इसी हवेली मे मेरी अस्मत का शिकार किया पूरी हवेली मे मेरी चीख गूँजती रही पर किसी ने भी मेरी मदद नही की मैं रोती बिलखती रही पर मेरी चीखे इधर ही दब गयी कहाँ तो मैं एक नयी नवेली दुल्हन थी और कहाँ अब मैं क्या से क्या हो गयी थी उस हवस के पुजारी ने मुझे बर्बाद कर दिया था उसी दिन मैने ठाकूरो का समूल नाश करने की सौगंध उठा ली थी और तकदीर देखो देव बाजी मेरे हाथ मे आती चली गई .


मैं अपने दर्द से जूझता हुवा ज़मीन पर पड़ा उनकी बाते सुनरहा था और वो लोग भी किसी तरह से जल्दी मे नही लग रहे थे बल्कि उनका मकसद तो देव को तडपा तडपा कर मरना था कुछ देर के लिए उस कमरे मे चुप्पी सी छा गयी पर क्या ये खामोशी किसी आने वाले तूफान की तरफ इशारा कर रही थी, फिर ठाकुर राजेंदर ने उस सन्नाटे को तोड़ते हुवे कहा कि

चलो अब बहुत हुआ लक्ष्मी तुमने इसे बता ही दिया कि आख़िर क्यों हम लोग इसे मारने वाले है रही सही कसर मैं पूरी कर देता हू, देव बबुआ, तुम्हारे आय्याश बाप ने हमारी भोली भाली बहन को अपने जाल मे फँसा लिया था तुम्हारा बाप था ही एक नंबर का कमीना लोग अक्सर कहते है कि हमने अपनी बहन को मार दिया पर सच्चाई ये है कि उसने आत्महत्या की थी

देव के लिए ये एक और शॉक था , उसने दर्द भरी आवाज़ मे कहा नहीं आप झूठ कह रहे हो उनको तो नानी ने जहर दिया था तो ठाकुर राजेंदर हँसते हुवे बोले ना ना मुन्ना , तुम्हारी माँ को भी तुम्हारे पिता के गुलच्छर्रों के बारे मे पता चल गया था तो इसी लिए उनकी बेवफ़ाई से आहत होकर उसने जहर खा लिया जिसका इल्ज़ाम मेरी माँ पर लगा और उन्हे जेल जाना पड़ा पर आज तुम्हारे खून से इस हवेली को पवित्र किया जाएगा ठाकूरो का सूरज अब कभी नही उगेगा ,

देव भली-भाँति ये समझ गया था कि ठाकुर राजेंदर सही कह रहे थे उसकी हालत खराब थी और अब बच पाना मुश्किल था उसने देखा कि लक्ष्मी ने वो छुरी मेज पर रख दी है और शराब के गिलास को उठा कर चुस्कियाँ ले रही थी तो उसकी आँखे उस छुरी पर जैसे जम गयी थी उसने सोचा कि वो ऐसे ही नही मरेगा किसी मज़लूम की तरह उसकी रगों मे वीरों का खून दौड़ रहा है

अगर वो मरेगा तो अपने साथ इन सब को लेकर ही मरेगा पर कैसे, कैसे, आख़िर कर उसने अपना निर्णय ले लिया कि तभी धनंजय उठा और बोला पिताजी इसने मेले मे बहुत मारा था मुझे तो ज़रा मुझे भी मोका दीजिए हाथ सॉफ करने का तो राजेंदर हँसता हुआ बोला हाँ मेरे बेटे हम क्यो नही तो धनंजय उठा और देव के पेट मे एक लात मारी , लात पड़ते ही उसके मूह से खून निकल गया

पर तभी शायद किस्मत को भी उसपर तरस आ गया था , शायद तकदीर भी नही चाहती थी कि अर्जुनगढ़ का आख़िरी चिराग इस कदर बुझे धनंजय ने उसे उठा कर पटका तो वो मेज के पास जा गिरा पल भर मे ही वो तेज धार छुरी देव के हाथ मे आ गयी थी कोई कुछ समझ पाता उस से पहले ही देव ने अपना काम कर दिया था मुलायम मक्खन की तरह धनंजय की गर्दन को वो छुरी चीरती चली गयी

गले की नस कट ते ही खून की गढ़ी धारा लबा लब बहने लगी थी किसी के कुछ समझ पाने से पहले ही धनंजय की लाश ज़मीन पर गिरी पड़ी थी अचानक से ही देव को अटॅक करते देख सभी हैरान रह गये थे पुष्पा ने पिस्टल से तुरंत ही देव पर फाइयर किया पर वो सोफे की आड़ मे बच गया और फिर अगले ही पल वो छुरी पुष्पा के पेट मे धसती चली गयी थी वो बस आहह करती ही रह गयी थी

पुष्पा की आत्मा परमात्मा मे विलीन हो गयी थी पर अभी भी तीन लोग बचे हुए थे देव को मुनीम का ध्यान नही रहा था और यही पर मुसीबत और बढ़ गयी थी मुनीम की बंदूक से निकली गोली उसके पैर मे धँस गयी देव के गले से चीख उबल पड़ी जो सारी हवेली मे पसरे सन्नाटे को चीर गयी थी गोली लगते ही वो ज़मीन पर गिर पड़ा और ठाकुर राजेंदर ने उसे दबोच लिया और पागलों की तरह उस पर लात-घुसे बरसाने लगे थे देव का चेहरा बुरी तरह से लहू लुहान हो गया था

देव को मदद की बहुत ज़रूरत थी पर मदद का तो कोई सवाल ही नही था आज की रात बहुत लंबी होने वाली थी राजेंदर पागलो की तरह उसे पीटे जा रहा था तो लक्ष्मी ने उसे देव से दूर किया और बोली क्या कर रहे हो ठाकुर साहब अभी हमे कुछ देर इसको जिंदा रखना है , उसने मुनीम को इशारा किया तो वो कुछ पेपर्स ले आया लक्ष्मी देव के पास आई और बोली कि साइन कर इनपर तो देव ने उसके मूह पर थूक दिया पर लक्ष्मी पर कुछ असर नही हुई वो बोली वाह रे तेरा घमंड अभी तक नही टूटा

उसने अपने बालो से क्लिप खोली और देव की कलाई मे घोप दी उसकी चीख एक बार फिर से गूँज गयी वो हँसते हुवे बोली देख उस दिन ऐसे ही मेरी चीखे इस हवेली की छत से टकराते हुए दम तोड़ रही थी आज मुझे बहुत सुकून मिलेगा आज मेरे जीवन का बहुत महत्वपूर्ण दिन है तुझे मैं ऐसे नही मारूँगी तुझे मारने से पहले मैं तेरे साथ रास रचाउन्गी तू भी क्या याद करेगा
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