रिश्तों की गर्मी complete

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रिश्तों की गर्मी complete

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रिश्तों की गर्मी

लेखक-अभय

गर्मी की उस दोपहर मे सर पर तप्ता सूरज मेरी परीक्षा ले रहा था मंज़िल अभी भी दूर थी प्यास से गला सूख रहा था पर पानी भी नही था मेरे पास पिछले चार दिनो से सफ़र जारी था मेरा अंजाना सफ़र और अंजानी मंज़िल थी रास्ता पूरी तरह से सुनसान पड़ा था बस गरम लू ही थी जो साय साय करते हुवे कहर ढा रही थी मैं आस लगा रहा था कि कुछ साधन मिल जाए तो सफ़र आसान हो जाए पर आज इस राह का मैं एक्लोता मुसाफिर ही था



अपने धीमे कदमो से मैं उस कच्चे रास्ते पर चलता ही जा रहा था पर अब मेरे पैर जवाब देने लगे थे मैने सोचा कि कही मैने ग़लत रास्ता तो नही पकड़ लिया कोई नक्शा भी नही था मेरे पास उपर से थकान से बुरा हाल था तो सोचा कि कुछ देर आराम ही करलू तो एक खेत के पास नीम की छाँव मे बैठ गया छाँव मिली तो शरीर भी कुछ सुस्त हुआ और ना जाने कब मेरी आँख लग गयी पता नही कितनी देर मैं पेड़ के नीचे सोता रहा



आँख तब खुली जब किसी ने मुझे आवाज़ दी ओ शहरी बाबू कॉन हो तुम और मेरे खेत मे क्या कर रहे हो अपनी आखे मलते हुए मैने देखा कि कोई गाँव की औरत है सांवला सा रंग तीखे नैन-नक्श उमर कोई 33-34 होगी पर बेहद ही कसा हुवा जिस्म था उसका मैं उसको देखते ही रह गया पलके झपकाना भूल गया तो वो बोली बाबू जी कहाँ खो गये मैने सकपकाते हुवे अपना थूक गटका और काँपते हुवे लहजे मे कहा कि जी मुसाफिर हूँ थोड़ा सा थक गया था तो सोचा कि पेड़ के नीचे बैठ जाउ पता नही चला कि कब आँख लग गयी माफी चाहता हूँ

वो बोली कोई बात नही बाबू

मैने कहा कि जी मुझे अर्जुनगढ़ जाना है आप बता सकती है कि वो गाँव कितना दूर है तो वो बोली बाबू तुम गाँव के किनारे पर ही हो बस कोई 1 कोस और रह गया है मैं भी अर्जुनगढ़ की ही हू और ये मेरे खेत है यहाँ पर मैने अपना सामान उठाया और उसको कहा कि जी बड़ी प्यास लगी है



यहाँ पानी मिलेगा क्या तो वो बोली कि थोड़ी दूर कुआँ है आओ पानी पिलाती हू तो मैं उसके पीछे पीछे चल पड़ा उसने बाल्टी कुवे मे डाली और मुझे पानी पिलाने लगी ऐसा ठंडा पानी था उस कुवे का मैं तो फ्रिड्ज के पानी को भूल गया कुछ पलो के लिए मैं जैसे अपने आप को भूल ही गया तो उस औरत ने फिर से मुझे वर्तमान मे लाते हुवे कहा कि बाबू पानी पियो ध्यान कहाँ है तुम्हारा तो मैं पानी पीने लगा जी भर कर पिया मैने



मैने उसको धन्यवाद किया और अपने सामान को संभालते हुवे चलने लगा तो उसने कहा बाबू मैं भी गाँव मे ही जा रही हू आओ तुमको छोड़ देती हू तो मैं उसके पीछे पीछे चल पड़ा कुछ दूर आगे आने पर उसने पूछा कि बाबू गाँव मे किसके घर जाओगे तो मैने कहा कि जी मुझे ठाकुर यूधवीर सिंग की हवेली पे जाना है तो ये सुनते ही उस औरत ने अपने सर पर जो घास का गट्ठर उठाया हुवा था वो उसके सर से नीचे गिर गया



कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: रिश्तों की गर्मी

Post by 007 »

उसने जहर भरी नज़रो से मेरी ओर देखा और कहा कि मुझे नही बताना कोई रास्ता-वास्ता तुमको अपने आप चले जाना और अपने गट्ठर को उठा कर बड़बड़ाती हुई आगे की ओर चली गयी मेरी तो समझ मे ही नही आया कि इसको क्या हुआ तो मैं भी आहिस्ता आहिस्ता उसी औरत की दिशा मे चल पड़ा जब मैने उस गाँव मे कदम रखा तो शाम ढल रही थी गाँव मे हर कोई मेरे भेस को ही देखे क्योंकि मैं बाहर से आया था तो लोग थोड़ी अजीब नज़रो से मुझे देख रहे थे



चोपाल पर कुछ बुजुर्ग बैठे थे मैने उनको राम राम किया और उनके पास बैठ गया उन्होने कहा मुसाफिर कहाँ से आए हो और किसके घर जाओगे तो मैने कहा बाबा मैं बड़ी दूर से आया हू और मुझे ठाकुर यूधवीर सिंग की हवेली जाना है हवेली का नाम सुनते ही उनके चेहरो का रंग जैसे उड़ सा गया तभी एक बुड्ढे ने पूछा कि बेटे तुम अजनबी आदमी तुम्हारा वहाँ क्या काम तो मैने कहा कि बाबा मुझे वहाँ से बुलावा आया है



उस बुजुर्ग की बूढ़ी आँखो मे कई सवाल दिखे मुझे उन्होने कहा बेटा हवेली तो वो किसी जमाने मे हुआ करती थी पर आज तो बस एक इमारत ही रह गयी है मैने कहा बाबा मुझे तो वही बुलाया गया है कुछ सवाल मेरे मन मे भी है इसी लिए तो मैं इतने दूर से यहाँ आया हू तो उन्होने कहा कि बेटा गाँव के दूसरी ओर पहाड़ो के पास है ठाकुर की हवेली पर बेटा अब रात घिरने को आई है तुम आज यही गाँव मे रुक जाओ



सुबह मैं किसी को तुम्हारे साथ भेज दूँगा वो तुम्हे वहाँ तक छोड़ आएगा तो मैने कहा बाबा आप मुझे मुनीम राइचंद के घर पहुचा दीजिए तो उन्होने कहा कि बेटा राइचंद जी को कैसे जानते हो तो मैने कहा कि उन्होने ही मुझे इस गाँव मे बुलवाया है तो वो बोले बेटा तुम कॉन हो तो मैने कहा बाबा बताया तो था कि मैं मुसाफिर हू फिर उन्होने एक लड़के को मेरे साथ भेज दिया मैने राइचंद के घर का दरवाजा खटखटाया



तो जिस औरत ने मुझे कुँए पर पानी पिलाया था उसी ने दरवाजा खोला और मुझे देखते ही मुझ पर बरस पड़ी और बोली कि अरे तुम ,तुम मेरे घर तक कैसे आए हम हवेली के बारे मे कुछ नही जानते जाओ चले जाओ यहाँ से और गुस्सा करने लगी मैने कहा जी आप मेरी बात तो सुनिए मुझे मुनीम राइचंद जी से मिलना है उसने अपनी कजरारी आँखॉको फैलाते हुवे कहा कि तुम मुनीम जी को कैसे जानते हो



मैने कहा मैं उन्हे नही जानता वो मुझे जानते है उन्होने ही मुझे यहाँ बुलाया है तभी अंदर से आवाज़ आई लक्ष्मी कॉन है किस से बात कर रही है तो उसने मुझे अंदर आने को कहा और अपने बैठक मे ले गयी वहाँ पर एक 45-50 साल का आदमी बैठा था रोबीला इंसान था मैने हाथ जोड़कर उनको नमस्ते किया तो वो बोले मैने आपको पहचाना नही तो मैने कहा जी मेरा नाम देव है ये सुनते ही जो पान के बीड़े की पेटी उनके हाथ मे थी वो उनके हाथ से नीचे गिर गयी



उनकी आँखे हैरत से फैल गयी उन्होने अपने चश्मे के शीशे को बनियान से पोन्छा और कहा ज़रा फिर से बताना तो मैने कहा जी मैं देव हूँ उन्होने मुझे अपने सीने से लगा लिया उनकी आँखे पानी से भर आई वो बोले मुझे पता था कि आप ज़रूर आएँगे उन्होने कहा लक्ष्मी देख क्या रही है इनका स्वागत कर आज हमारे द्वार पर देख कॉन आए है
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Re: रिश्तों की गर्मी

Post by 007 »

मेरी खुद समझ नही आ रहा था कि ये क्या बात कर रहे है आख़िर ये कैसा राज है राइचंद जी ने मुझे बिठाया और लक्ष्मी से कहा की तुम खड़ी खड़ी क्या देख रही हो जाओ और देव जी के लिए कुछ भोजन का प्रबंध करो सफ़र करके आए है फिर उन्होने मेरी ओर मुखातिब होते हुवे कहा की मालिक आप ने आने से पहले मुझे अगर इत्तिला कर दी होती


तो मै स्टेशन पर खुद आपको लेने आता आपने इतनी तकलीफ़ उठाई मैने कहा जी आपका शुक्रिया पर ये मेरा पहला मोका था अकेले यात्रा करने का और फिर मै हिन्दुस्तान भी तो पहली बार आया हू तो सोचा की थोड़ा सा माहोले भी देख लूँगा फिर मैने उनसे कहा की सबसे पहले आप मुझे ये बताए की आपने मुझे लंडन संदेशा क्यो भिजवाया


और ये हवेली और ठाकुर यूधवीर कोन है और मेरा इन सब से क्या लेना देना है मै तो इंडिया का निवासी भी नही हू तो वो बोले देव बाबू पहले आप कुछ भोजन कर ले थोड़ा सा आराम कर ले फिर मै आपको सब बाते बताता हू भूख तो मुझी भी लगी थी और थकान भी काफ़ी थी तो मुझे उनकी बाते सही लगी कुछ ही देर मे भोजन लग गया तो मै खाने पर ऐसे टूट पड़ा जैसे की कई जन्मो का भूखा हू



खाने के बाद राइचंद जी ने कहा की मालिक आप थोड़ा आराम करे सुबहा आप एक नयी दुनिया देखेंगे उन्होने मेरे प्रति जिग्यासा जगा दी थी मैने कहा नही जो भी बात है अभी बताइए पर उन्होने कहा की सुबह हम हवेली चलेंगे फिर आप खुद ही समझ जाओगे उन्होने मेरा बिस्तर लगा दिया पर आँखो मे नींद ही नही आई अच्छा भला जी रहा था अपनी जिंदगी मे




अनाथ था बचपन से ही शंघर्षो से भरी ज़िंदगी जीया था पर फिर भी खुश था कॉलेज का लास्ट यियर चल रहा था पर एक शाम आए खत ने ज़िंदगी को उथल पुथल करके रख दिया था ये लेटर इंडिया से किसी राइचंद ने भेजा था और साथ मे जहाज़ की टिकेट भी थी मुझे अर्जेंट्ली इंडिया बुलाया गया था पर कुछ भी सॉफ सॉफ नही बताया गया



मुझे भी थोड़ी सी उत्सुकता हो गयी थी इसके कई कारण थे पहला तो की मै बेशक लंडन मे रहता था पर मेरा रंग रूप इंडियन्स जैसा ही था दूसरा जिन लोगो ने मुझे पाला था वो भी इंडियन्स ही थे और फिर इतने दिनो तक कभी किसी ने मुझे खत नही लिखा था पर ठीक मेरे 20वे जनमदिन पर आए उस खत मे कुछ तो राज़ था तो मैने भी फ़ैसला कर लिया की चलो चलते है


और फिर एक मुश्किल सफ़र के बाद आख़िर मै अर्जुन गढ़ आ ही गया था अपने दिल मे कई सवाल लिए जिसका जवाब बस मुनीम जी के पास थे सोचते सोचते आँख लग गयी सुबह मैं उठा तो सूरज सर पर चढ़ आया था मैने अंगड़ाई ली और बाहर आया ये गाँव मे मेरी पहली सुबहा थी मैने अपने कपड़े लिए और बाथरूम मे घुस गया पर साला ये तो ज़ुल्म ही हो गया


दरवाजे की कुण्डी नही लगी थी तो मैने सोचा की कोई नही है पर अंदर लक्ष्मी नहा रही थी उसके मस्ताने बदन को पानी की बूँदो मे लिपटे हुए देख कर मेरा दिमाग़ तो एक दम से झंझणा गया इस से पहले मैने कभी किसी औरत या लड़की को नंगा नही देखा था तो मेरे लिए ये एक दम से अलग सा अनुभव था


एक दम से हुई इस घटना से लक्ष्मी भी हक्का-बक्का रह गयी थी मेरा तो दिमाग़ ही सुन्न सा हो गया था की क्या करू लक्ष्मी बस इतना ही बोली कि जाआ ज़ाआा जाओ यहा से मै बाथरूम से बाहर निकलने ही वाला था कि बाहर से आवाज़ आई माँ कहाँ हो तुम मुझे खाना दो मै स्कूल जा रही हू ये सुनते ही लक्ष्मी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वापिस बाथरूम मे खीच लिया



और खुद चिल्लाते हुवे बोली कि मै नहा रही हू तुम खुद ही ले लो और चली जाओ फिर लक्ष्मी मेरी ओर देखते हुवे फुसफुसा के बोली मेरी बेटी स्कूल ना चली जाए तब तक यही रहो कही उसने तुम्हे यहा से निकलते हुवे देख लिया तो मेरे बारे मे पता नही क्या सोचेगी पर बाथरूम के अंदर भी रुकना कोन सा आसान था ख़ासकर जब आप किसी नंगी औरत के साथ हो





मेरी नज़र बार बार उसके जिस्म पर जाने लगी तो वो बोली अपना मूह दूसरी तरफ करके खड़े हो जाओ पर मुझे तो जैसे उसकी बात सुनी ही नही सांवला रंग था पर उसका शरीर भरा हुवा था मोटी मोटी बोबे मास से भरी हुवी ठोस जंघे और काले काले बालो से धकि हुवी योनि जिसे मै बालो की वजह से देख नही पाया मेरी साँसे लड़खड़ाने लगी थी धड़कन बढ़ गयी थी



लक्ष्मी भी परेशन हो गयी थी क्योंकि ये कुछ पल बड़े ही मुश्किल थे वो एक अंजान के साथ बाथरूम मे नंगी खड़ी थी मेरी नज़र नीचे गयी तो मैने देखा कि मेरा लंड निक्कर मे टेंटहाउस बनाए खड़ा है लक्ष्मी भी चोर नज़रो से मेरे लंड की तरफ ही देख रही थी तभी उसकी बेटी ने कहा की माँ मै जा रही हू तो कुछ देर बाद मै भी बाहर निकल आया


करीब एक घंटे बाद मै नहा धोकर तैयार हो गया था लक्ष्मी ने मुझे नाश्ता करवाया और मैने उस से बाथरूम वाली घटना के लिए माफी माँगी पर उसने बात नही की मै नाश्ता कर ही रहा था की राइचंद जी अपने साथ एक वकील को ले आए उन्होने कहा आप नश्ता कर ली जिए फिर हम हवेली चलते है तो मैने फटाफट से काम निपटा दिया और अपना सामान उठा लिया


बाहर एक कार खड़ी थी हम बैठे और वो धूल उड़ाती हुवी चल पड़ी हवेली की ओर कोई 15-20 मिनिट बाद मै एक बेहद ही विशाल इमारत के सामने खड़ा था किसी जमाने मे ये बड़ी आलीशान रही होगी पर आज इसकी हालत कुछ ख़ास नही थी गेट पर एक बड़ा सा ताला लटका पड़ा था वकील ने एक पुरानी जंग लगी चाबी निकाली और ताला खोलने की कोशिश करने लगा पर वो नही खुला

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Jemsbond
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Re: रिश्तों की गर्मी

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Congratulations mitr for a new stori :b: :b: :b: :b: :b: :b: :b: :b: :b: :b: :b: :b: :b: :b:
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: रिश्तों की गर्मी

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मुनीम जी ने बाहर से कुछ आदमी बुलवाए और ताले को तुडवा दिया जंग खाया हुवा गेट चर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर करते हुवे खुल गया और मै अंदर दाखिल हो गया हर तरफ बस धूल-मिट्टी और जाले ही लगे थे ऐसा लग रहा था जैसे की सदियो से किसी ने झाँक कर भी नही देखा था इस तरफ फिर अंदर के कुछ खास कमरो का ताला भी तोड़ा गया और सफाई करवाई जाने लगी



हवेली के बीचोबीच एक विशाल पेड़ था उसके चारो और चबूतरा बना हुवा था तो वही पर हमारे लिए कुर्सिया और मेज लगवा दी गयी तो अब बारी थी मेरे सारे सवालो के जवाब जानने की तो मैने कहा मुनीमजी अब मुझे आप बताए सारी बात तो राइचंद जी बोले मालिक बताना क्या है ये हवेली घर है आपका आप यहाँ के मालिक है मैने कहा सर आपको कोई ग़लत फहमी हुवी है



तो वो बोले देव साहब कोई ग़लत फहमी नही है आप ही इस हवेली के मालिक है मैने कहा पर मै तो अनाथ हू और इंडिया से मेरा क्या लेना देना तो वो बोले आपको कुछ भी याद नही है मैने कहा क्या याद नही है मेरी धड़कन बढ़ गयी थी मै बुरी तरह से उतावला हो रहा था मैने कहा आप लोग प्लीज़ साफ साफ बताए कि ये सब क्या हो रहा है क्या मामला है



तो राइचंद जी ने राज़ की पहली परत को खोलते हुवे कहा की आप ठाकुर खानदान के आख़िरी चिराग है आप ठाकुर यूधवीर सिंग जी के पोते है ये सुनकर मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन खिसक गयी मैने कहा पर मै तो ब्रिटिश हू तो वो बोले नही आप यहा के ही हो यहा के हालत कुछ ठीक नही थे उस टाइम तो आपको उस टाइम सलामत रखने के लिए आपके पिता के दोस्त के घर भिजवा दिया गया था तो मैने कहा अगर ऐसा था तो मुझे ये बात क्यो नही बताई गयी और फिर मै हमेशा ग़रीबी मे ही क्यो जिया तो राइचंद जी बोले की हमें हमेशा आपका ख़याल था हमारे लोग हर पल आपकी हिफ़ाज़त को आपके आस पास ही मोजूद थे ये 18 साल का समय कैसे निकाला है ये हम ही जानते है



उन्होने कहा सोचिए अगर आप इस खानदान के वारिस नही है तो कैसे आप लंडन के रॉयल स्कूल मे पढ़े तो मैने कहा की वो तो कोई हमेशा मेरी फीस भर देता था ……… एक मिनिट!!!!!!!!!!!!!!!! तो वो आप थे जो मेरी फीस भरा करते थे उन्होने कहा वो आपका ही धन था मै तो बस उसका रखवाला हू मालिक मैने कहा जब आपने मेरी वहाँ इतनी मदद करी है तो फिर मुझे उसी टाइम क्यो नही बताया तो वो बोले कि आपके दादाजी की ये हसरत थी की आप एक आम इंसान की तरह जिए




ताकि आपको आम आदमी के दुखो का पता रहे और आप ठाकुर होते हुवे भी आपका दिल ग़रीबो की मदद करे मैने कहा मुझे तो विश्वास नही हो रहा है पर अब आप कह रहे है तो मान लेता हू उन्होने कहा की यही सच है छोटे ठाकुर मैने कहा अगर ऐसा है तो फिर मेरा परिवार कहाँ है और ये हवेली बंद क्यो पड़ी है तो उन्होने कहा ये एक लंबी कहानी है......................



समय के साथ आप सब कुछ जान जाओगे पर पहले आप वकील साहिब के साथ कुछ कार्यवाही को निपटा ले मैने कहा पर मुझे तो कुछ नही चाहिए मेरा भी एक परिवार था यही बहुत है मेरे लिए तो वो कहने लगे कि नही अब आप आ गये है अब आप अपनी विरासत को संभाले और मुझे मेरी ज़िम्मेदारी से मुक्त करे वैसे ही गाँव मे लोग ताने देते है कि ठाकूरो का सब कुछ खा गया



इतनी सालो से इसी कलंक के साथ मै और मेरा परिवार जी रहे है गाँव मे हर कोई समझता है कि मुनीम ने ठाकूरो का धन दबा लिया है कोई सामने तो कोई पीठ पीछे बस यही चर्चा करता है देव बाबू आज तक मै इसी ज़िल्लत के साथ जीता आया हू पर आप मेरा विश्वास करे आपकी दोलत की पाई पाई का हिसाब है मेरे पास आप जब चाहे हिसाब ले लेना पर अब आप मुझे इस कर्ज़ से मुक्त करे और अपने पुरखो की विरासत को संभाले



मैं उनके आगे हाथ जोड़ता हुवा बोला की ये आप कैसी बाते कर रहे है ये जो कुछ भी है आपका ही तो है मै तो पहले ही कह चुका हू की मुझे इन सबका कोई लालच नही है वकील बाबू बोले सर फिर भी हमें तो अपनी तरफ से फॉरमॅलिटी करनी ही पड़ेगी ना और वैसे भी आपके दादाजी की अंतिम इच्छा यही थी की जब आप बीस साल के हो जाए तो सब कुछ आपको सुपुर्द कर दिया जाए



किस्मत ने मुझे एक ऐसा सर्प्राइज़ दिया था कि मुझसे सम्भल ही नही रहा था वकील ने कई फाइल्स पर मेरे साइन लिए काफ़ी बोर काम मुझे लग रहा था डॉक्युमेंटेशन मे काफ़ी टाइम लग गया पर फिर भी काम पूरा नही हुवा था शाम होने लगी थी तो मैने कहा बस जी अब बाकी का काम कल करेंगे तो राइचंद जी ने कहा कि देव साहब मै कल ही शहर चला जाता हू और हवेली मे बिजली लगवाने का काम करवाता हू



मैने कहा हाँ वो तो है और अगर अब मुझे यही रहना है तो थोड़ा ठीक से सफाई वग़ैरहा करवा दीजिए और पानी का इंतज़ाम भी तो वो बोले आप चिंता ना करे दो-चार दिन मे सारा काम हो जाएगा वो बोले जब तक यहा रहने लायक नही होता आप मेरे ही घर रहेंगे तो मैने कहा नही अब मै यही रहूँगा फिर गाँव मे आप ही तो अपने हो आपके घर तो आता ही रहूँगा



वो बोले जैसी आपकी इच्छा पर आपकी सुरक्षा के लिए मै कुछ आदमी तैनात कर देता हू मैने कहा इसकी कोई ज़रूरत नही है और होगी तो बाद मे देख लेंगे वो बोले आप भी अपने पुरखो की तरह ही ज़िद्दी हो राइचंद जी बोले पर आज तो आपको मेरे घर ही ठहरना होगा क्योंकि यहा तो सबकुछ चूहो ने कुतर डाले होंगे फिर उनका आग्रह मै टाल ना सका और उनके घर आगया
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