चूत देखी वहीं मार ली compleet

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Jemsbond
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चूत देखी वहीं मार ली compleet

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चूत देखी वहीं मार ली

लेखक- तुषार
हिदी फ़ॉन्ट बाइ मी

**** साल का मासूम सा विनय अपनी मासी के साथ हॉस्पिटल के आइसीयू के बाहर बैठा हुआ था. उसके पापा अंदर आइसीयू मे अपनी जिंदगी के लिए लड़ रहे थे….एक अंजान सा खोफ़ उसकी मौसी मामा और मामी के चेहरे पर छाया हुआ था….जब कभी कोई नर्स या वॉर्ड बॉय आइक्यू से बाहर आता, तो उसके मामा (अजय) अपने जीजा के बारे मे उनसे पूछते…..पर कोई भी कुछ जवाब नही दे रहा था….विनय खोफ़जदा अपनी मौसी से चिपका हुआ था…..उसने अपनी मौसी के चेहरे की तरफ नज़ारे उठाते हुए सहमे हुए लहजे से कहा…”मौसी जी मम्मी कहाँ गयी है…..वो अभी तक आई क्यों नही…..”

शीतल: आज जाएगी बेटा….वो तुम्हारे पापा का ऑपरेशन होना है ना…उसके लिए पैसे लेने गयी है.

शीतल ने अपने भाई यानि कि विनय के मामा की ओर लाचारगी से देखते हुए कहा….अंदर विनय के पापा की हालत बेहद खराब थी…..ज़्यादा दारू पीने की वजह से उनकी दोनो किड्नी खराब हो चुकी थी. और डॉक्टर्स के पास सिर्फ़ एक ही आख़िरी रास्ता बचा था….किड्नी ट्रॅन्सप्लॅंट का….पर इतना महँगा ऑपरेशन करवाना कोई आसान काम नही था….प्राइवेट हॉस्पिटल मे जब तक आप फीस जमा नही करवा देते तो वो ऑपरेशन कहाँ करते है….उसकी मामी (किरण) उसके पास आती है…..और विनय के सर को सहलाते हुए शीतल से कहती है…”दीदी कभी सोचा नही था…आज ये दिन भी देखना पड़ेगा…..हम तो बड़ी दीदी की कोई मदद नही कर पा रहे…..”

शीतल: हां भाभी अब और कर भी क्या सकते है…..जीजा जी पिछले एक साल से बीमार है….जो हमारे पास भी था….वो भी हम ने सब जीजा जी के इलाज के लिए लगा दिया है……अब तो भगवान का ही भोरसा है…..तभी आइक्यू से एक डॉक्टर बाहर आता है….तो अजय तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लेता है. “डॉक्टर साहब अब वो कैसे है……” डॉक्टर एक बार उनकी तरफ गंभीरता से देखता है….वो धीमी से आवाज़ मे कहता है…..”आइ आम सॉरी सर, पर हम उन्हे बचा नही पाए…..मेने तो आपको पहले ही कहा था कि, आप इन्हे किसी अच्छे हॉस्पिटल मे अड्मिट करवा दीजिए…..”

तभी पीछे से कुछ गिरने के आवाज़ आती है…..सब चोंक कर उस तरफ देखते है……वहाँ नीलम विनय की मम्मी खड़ी थी……जैसे वो बुत बन गये हो……उसने डॉक्टर को कहते सुन लिया था कि, अब उसका पति इस दुनिया मे नही रहा……उसके बाल बुरी तरह से बिखरे हुए थे….उसका दुपट्टा एक कंधे पर लटका हुआ नीचे फर्श पर धूल चाट रहा था….उसके सामने एक पॅकेट गिरा हुआ था….हॉस्पिटल की उस गॅलरी मे मातम सा छा जाता है…..किरण और शीतल दोनो उसी वक़्त नीलम की तरफ भागती है. रोते हुए बिलखते हुए, अजय भी अपने बेहन को उन बेहद दर्द नाक पॅलो मे सहारा देने के लिए आगे बढ़ता है……सब रो रहे थे…..और विनय बेंच पर बैठा हुआ उन सब को रोता देख अपना दिल छोटा कर लेता है…..

पर नीलम की आँखो मे आँसू नही थे……वो विनय की तरफ देखती है…..और अपनी बेहन शीतल से कहती है…..”शीतल तुम विनय को बाहर ले जाओ…..देखो मेरा बच्चा कैसे कुम्लाह गया है……” शीतल पलट कर विनय की ओर देखती है…..और फिर उसे बाहर ले जाती है….नीलम गुम्सुम सी बेंच पर बैठ जाती है…..अजय और किरण नीलम के पास बैठ कर हॉंसला देते है….पर वो खुद उस घटना से बहुत दुखी थी….उनके आँसू रोके नही रुक पा रहे थे…..”भैया आप उनकी बॉडी को घर ले जाए…और अंतिम संस्कार की तैयारी कीजिए……” ये कह कर नीलम उठ कर रिसेप्षन पर आती है…और वहाँ खड़े एक लड़के से एक पेपर और पेन मांगती है…..और उसमे कुछ लिखना शुरू कर देती है….

थोड़ी देर बाद शीतल विनय को लेकर वापिस आ गयी….और नीलम ने उसे वो पेपर फोल्ड करके अपनी बेहन शीतल को दिया…..”ये क्या है दीदी……”

उसने सुबक्ते हुए कहा…..”इसे अभी मत खोलना….जब तुम्हारे जीजा जी का अंतिम संस्कार हो जाए….उसके बाद इसे पढ़ लेना…

.शीतल आगे से कुछ नही कहती और उस पेपर को चुप चाप अपने पास रख लेती है….पोस्टमॉर्टम के बाद विनय के पापा की बॉडी उन्हे सोन्प दी जाती है…..शीतल का घर भी उसी सहर मे था…..यहाँ पर नीलम अपने पति और बेटे विनय के साथ रहती थी……अगले दिन जब संस्कार का वक़्त हुआ तो, शीतल कुछ समान लाने के लिए स्टोर रूम मे गयी…..पर जैसे ही वो स्टोर रूम मे पहुची तो सामने का नज़ारा देख वो एक दम से चीख उठी….

उसकी बड़ी बेहन पंखे के साथ लटकी हुई थी…..गले में रस्सी थी….पता नही कब उसने फँदा लगा कर आत्म हत्या कर ली……नीलम के घर मे मातम का माहॉल और दुखमय हो गया…..थोड़ी देर में आए हुए सभी रिस्तेदार वहाँ इकट्ठा हो गया……विनय अब अनाथ हो चुका था…..सभी के मन में यही सवाल था कि, आख़िर नीलम ने ऐसा क्यों किया….उसने एक बार भी क्यों अपने बेटे के बारे में नही सोचा….क्यों उस मासूम को वो अकेला छोड़ कर चली गयी….बाप का साया तो पहले ही उसके सर से उठ गया था…..और क्यों अब उसने विनय को अपनी ममता से भी वंचित कर दिया था……


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सवाल अनेक थे…..पर जवाब किसी के पास नही था…..कहते है ना जाने वाले तो चले जाते है…..पर जिंदगी कभी नही रुकती….दोनो का अंतिम संस्कार हो चुका था….विनय को उसके मामा मामी अपने साथ अपने घर ले गये…..अब उस बेचारे का था भी कॉन….विजय के मामा भी उसी सिटी में रहते थे…..नीलम के घर के पास ही उनका भी घर था….उस रात संस्कार के बाद शीतल ने अपनी बेहन का दिया हुआ लेटर खोल कर जब देखा, तो उसके रोंगटे खड़े हो गये……उसके सारे सवालो का जवाब उस लेटर के चन्द शब्दों में संहित था…..इस बार जो शीतल की आँखो से आँसू निकले….वो सिर्फ़ पानी के नही थी….बल्की खून के आँसू थे….

पर जो उस लेटर में लिखा था…..उसे वो सब अपने तक सीमित रखना था….शीतल के दो बेटियाँ थी. एक विनय से दो साल छोटी थी…..और एक विनय की हम उम्र……जो शीतल ने अपने भाई को गोद दी हुई थी…..क्योंकि विनय के मामा की अपनी कोई संतान नही थी….क्यों नही थी…..ये मैं भी नही जानता. हां उन्हो ने अपनी संतान के लिए हर संभव जगह ठोकर ज़रूर खाई थी….पर उनके घर बच्चे की किल्कारी नही गूँजी थी……उसके बाद शीतल ने उसे अपनी बेटी दे दी थी….शीतल का एक बेटा भी था…जो सबसे छोटा था…..

उधर मामी के घर में विनय की हम उम्र उसकी बेहन वैशाली थी…..जो उसी की क्लास में थी….हां वो उस गाओं के स्कूल में पढ़ती थी…..मामा मामी और वैशाली के इलावा उनके घर में उसकी मामी की छोटी बेहन भी रहती थी…..जो वहाँ हाइयर स्टडी के लिए आई हुए थी….उसका नाम ममता था….उसकी शादी अभी 6-7 महीने पहले ही हुई थी…..शादी के बाद उसका हज़्बेंड वापिस यूके चला गया था..वो वही पर जॉब करता था…..इसीलिए शादी के बाद भी उसने अपनी स्टडी जारी रखी थी…. धीरे-2 वक़्त बीतता गया….शीतल ने विनय की ज़िम्मेदारी उसके मामा को सॉन्प दी थी…….

विनय के रूप मे उन्हे अपना बेटा मिल गया था……उसके मामा कपड़ों की दुकान चलाते थे… ज़्यादा बड़ा बिज़्नेस तो नही था…..पर दुकान अच्छी चलती थी…..विनय का अड्मिशन भी वशाली के स्कूल मे करवा दिया था…..वैशाली के साथ के कारण विनय जल्द ही अपने मम्मी पापा के गुजरने के गम से बाहर आ गया था….दोनो इकट्ठे स्कूल जाते इकट्ठे घर वापिस आते. साथ में खेलते और साथ में खाना खाते….आम भाई बहनो की तरह ही आपस में झगड़ते भी…..उनके झगडो को देख कर जब विनय की मामी गुस्सा होती तो, उसके मामा मामी को टोक देते….और कहते कि, मत डांटा करो इन्हे….यही बालपन देखने के लिए ही तो हमने पता नही कहाँ-2 धक्के खाए है…..

वैशाली तो किरण को अपनी माँ ही समझती थी…..और उसे माँ ही कहती थी…..उसे तो पता भी नही था कि, उसके मामा ने उससे गोद लिया है…पर विनय अभी भी उन्हे मामा मामी ही कहता था…..उसकी मौसी शीतल रोज दोपहर को उनके घर आती थी….उसके बच्चे भी साथ मे आ जाते थे….बच्चे आपस में मिल कर खूब धमा चोकड़ी मचाते थे….शीतल ने अपने खरचे पर एक दाई को रख लिया था….वो रोज दोपहर को अजय के घर आती, और विनय की मालिश करती….पर बंद कमरे मे…..दाई की एज कोई 65-70 साल के करीब थी….

पर फिर भी किरण को उस दाई का विनय को बंद कमरे में लेजा कर मालिश करना कुछ अटपटा सा लगता था…..पर शीतल ने कह दया था….कि वो ये सब उसके कहने पर कर रही है…..विनय धीरे -2 8थ क्लास में पहुँच गया था…दोस्तो आप तो जानते ही है ये उमेर कैसी होती है…. दुनिया भर की तमाम जानकारी हासिल करने की हसरत इस उम्र में ज़ोर लगाने लगती है…. इस उम्र का हर लड़का या लड़की हर उस चीज़ को जानने की कॉसिश करता है…..जिसे बड़े उनसे छुपा कर रखते है…..यही हाल वशाली और विनय का भी था……..
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दोपहर के 1 बजे का वक़्त था…..10थ के उस स्कूल में स्कूल बंद होने की घंटी बजाते ही बच्चों का हजूम बाहर के गेट की तरफ दौड़ा…..विनय भी अपना स्कूल बॅग कंधे पर लटकाए हुए बाहर की तरफ बढ़ रहा था….तभी पीछे से आकर वशाली ने उसका हाथ पकड़ लाया….”ओये कबूतर कहाँ उधर जा रहा है….मुझे अकेला छोड़ कर…..” वशाली ने ताव में आते हुए कहा……

विनय: घर जा रहा हूँ…..दिखाई नही देता क्या…..?

वशाली: देता है, तभी तो पूछ रही हूँ…मम्मी ने कहा है ना….स्कूल से साथ घर आया करो……

विनय: तो चलो रोका किसने है तुम्हे…..

वशाली: चलते है रूको रिंकी को भी आने दो……उसने भी तो साथ चलना है….

विनय: अर्रे मैं नही जाता उसके साथ…..बहुत दिमाग़ खराब करती है…..हर वक़्त बॅड-2 करती रहती है…..तुम्ही आना उसके साथ….

इतने में रिंकी भी आ जाती है….रिंकी का घर उनके घर के ठीक सामने था….और तीनो घर की तरफ चल पड़ते है…..रिंकी उन दोनो से दो क्लास ऊपेर यानी कि 10थ मे थी…..अभी अभी **5 की हुई थी…..जवानी की तरफ उसने पहला कदम बढ़ाया था….उनका एरिया सिटी से थोड़ा बाहर था….इसीलिए वो एरिया सिटी कम और गाओं ज़यादा लगता था….रिंकी की उम्र के साथ-2 उसमे चंचलता भी बढ़ गयी थी…..अपने से बड़ी उम्र की लड़कियों से बात करना….उनके बॉयफ्रेंड के किस्से सुनना उसे अच्छा लगता था….और वो सब सुने हुए किस्से, आगे वैशाली को सुनाती.

पर विनय अब भी इन बातों से अंज़ान था….उसे नही पता था कि, औरत मारद में क्या फरक होता है….जो बाहरी फ़र्क उसे दिखाई देता था…उसे उसी की जानकारी थी….विनय और वशाली 9थ क्लास में पहुँच गये थे….और रिंकी अब 11थ में हो गयी थी….वो स्कूल 10थ तक ही था. इसीलिए अब उसकी अड्मिशन सिटी के एक बड़े गर्ल्स कॉलेज में करवा दी गयी थी….उसके पापा उस पर बहुत कड़ी नज़र रखते थे…..सुबह स्कूल छोड़ कर आना और दोपहर को भी लेकर आना. वो लड़को से बात नही कर सकती थी….पर विनय और विशाली के साथ उनके परिवार का अच्छा मैल मिलाप था…उनके लिए तो समझो घर वाली बात थी…..

एप्रिल का मंथ था….गर्मियाँ अभी शुरू हुई थी…..स्कूल मे हाफ टाइम चल रहा था…और विनय अपने बाकी क्लास मेट्स के साथ स्कूल के ग्राउड में खेल रहा था….तभी उसे बहुत तेज पेशाब लगी….बाथरूम सेकेंड फ्लोर पर था…जब तक ऊपेर जाता तो, बीच में ही निकल जाने के संभावना थी…..इसीलिए वो भाग कर स्कूल की बिल्डिंग के पीछे गया….उस बिल्डिंग के पीछे स्कूल की पुरानी इमारत हुआ करती थी…..जो अब लगभग खंडहर बन चुकी थी….

वो भाग कर उस खंडहर बन चुकी बिल्डिंग के पास गया……अपनी पेंट खोली और अपने लंड ओह्ह सॉरी “नूनी” उस वक़्त तक तो वो अपने लंड को नूनी ही बुलाता था…बाहर निकाली और पेशाब करने लगा…..तभी उसके कानो में किसी के कराहने जैसी आवाज़ सुनाई दी….बेचारे का डर के मारे मूत भी बंद हो गया…..उसने अपने लंड को वापिस डाला और ज़िप बंद करके, एक टूटी हुई खिड़की की तरफ बढ़ा….जिस तरफ से वो आवाज़ आ रही थी…..जैसे ही वो उस खिड़की के पास पहुचा और उसने अंदर झाँक कर देखा, वो एक दम से हैरान रह गया……

अंदर जो भी थे….वो भी उसको अंदर झाँकते हुए देख कर खोफ़जदा हो गये…..अंदर स्कूल का पीयान और 10 थ का एक लकड़ा था….जो उस पीयान की गान्ड की बॅंड बजा रहा था…वही पीयान जिसको वो स्कूल से अंदर आ हुए गेट पर खड़ा देखता था…दोनो विनय को देख कर एक दम से घबरा गये….और उनसे ज़्यादा तो विनय घबरा गया….वो जल्दी से वापिस स्कूल के आगे की तरफ भागा….

पर अभी वो कुछ कदम आगे ही बढ़ा था कि, उस लड़के ने आकर उसे पीछे से पकड़ लाया… विनय ने उसकी तरफ घबराते हुए देखा…..और ठीक वैसे ही भाव उस लड़के के चेहरे पर भी थे….”दोस्त तूने अंदर जो भी देखा किसी को बताना नही…..अगर तूने किसी को बता दया तो यार मुझे स्कूल से निकाल देंगे….” विनय हैरानी से उस लड़के को गिड़गिडाता हुआ देख रहा था….उसे समझ में नही आ रहा था कि, वो क्या करे और क्या बोले….”देख दोस्त अगर तू ये बात किसी को नही बताएगा…..तो हम तुम्हे भी इस खेल मे शामिल कर लेंगे….बहुत मज़ा आता है कसम से….”

विनय ने उस चपरासी की तरफ देखा जो सहमा हुआ सा उनकी तरफ बढ़ रहा था…..”यार शाम को 6 बजे मुझे यहाँ मिलना….ये पीयान इसी स्कूल मे ही रहता है…..प्लीज़ किसी को बताना नही… ऐसा मज़ा आएगा कि तुम भी याद करोगे…..पर प्लीज़ किसी को बताना नही…..”

विनय: ओके मेरा हाथ छोड़ो नही बताता मैं किसी को…..

उस लड़के ने जैसे ही विनय का हाथ छोड़ा…..विनय भाग कर अपनी क्लास में आ गया….वो दोनो क्या कर रहे थे…..क्यों कर रहे थे….इसमे क्या मज़ा आता है…..ये तो गंदा काम है.. क्या सच में उनको मज़ा आता है….आता ही होगा तभी तो करते है….विनय के दिमाग़ में ऐसे लाखों सवाल घूम रहे थे….क्लास में पढ़ाई की तरफ उसका ध्यान उस दिन बिकुल भी नही था….जैसे ही स्कूल ऑफ हुआ, विनय अपना बॅग उठा कर स्कूल से बाहर निकला और तेज कदमो से चलता हुआ, स्कूल से घर जाने लगा…..वशाली पीछे से भागती हुई उसे आवाज़े देते रही. पर वो ना रुका……5 मिनिट की दूरी पर तो उनका घर था….

वो घर में घुसा और सीधा अपने रूम मे चला गया…..बॅग नीचे पटका और बेड पर लेट कर गहरी साँसे लेने लगा….उसका ध्यान अभी भी वही था….लेटे-2 वो सोचते-2 कब नींद के आगोश में समा गया पता ही नही चला….उसकी मामी किरण रूम में आकर देखती है कि, विनय बेड पर लेटा सो रहा था….उसने अपने शूस भी नही उतारे थे…मामी ने उसके शूस उतारे और उसे ठीक से बेड पर लिटाया और सोचा जब उठेगा तब खाना खिला दूँगी….फिर उसकी मामी रूम से बाहर चली गयी….

जब शाम को विनय उठा तो, 5 बज चुके थे…..उसने देखा कि, वो आज स्कूल यूनिफॉर्म मे ही सो गया था….कपड़े चेंज करते हुए, उसे एक दम से याद आया कि, उस लड़के ने शाम को 6 बजे स्कूल मे बुलाया था….उसने कपड़े चेंज किए…और बाहर आया तो, उसे मामी ने आवाज़ देकर रोक लिया…..”विनय कहाँ जा रहा है…..”

विनय: वो मामी दोस्तो के साथ खेलने जा रहा हूँ…..

किरण: बेटा खाना खा ले पहले सुबह से नाश्ता किया हुआ है…..

विनय: ठीक है मामी जल्दी दो……

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Re: चूत देखी वहीं मार ली

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किरण ने उसे जल्दी से खाना डाल कर दिया, और विनय ने 5-6 मिनिट में खाना खाया और बाहर निकल आया…..स्कूल की तरफ कदम बढ़ाते हुए उसे अजीब सा डर लग रहा था….अजीब -2 तरह के ख़याल मन में आ रहे थे…..जैसे तैसे वो स्कूल के बाहर पहुचा तो मेन गेट के साथ छोटे वाले गेट पर वो पीयान खड़ा था….विनय को देख कर वो मुस्कुराया…और उसे अंदर आने का इशारा काया….

विनय अंदर चला गया….उसने गेट बंद किया….और विनय को लेकर अपने रूम में चला गया. जहाँ पर वो लड़का पहले से बैठा हुआ था……”देखा मेने कहा था ना ये ज़रूर आएगा…. चल अच्छा किया जो तू आ गया….भाई हम यहाँ मस्ती करने के लिए इकट्‌ठे हुए है….” तीनो नीचे बिछाए बिस्तर पर बैठ जाते है….”दोस्त अपना नाम तो बताओ हमें…..”

विनय: विनय…..

लड़का: मेरा नाम मनीष है…..और इसका (पीयान का) रामू……

मनीष: अच्छा तो विनय. पहले ये बताओ कभी पहले किसी के साथ ऐसा कुछ किया है…..?

विनय: नही…..

मनीष: (रामू की ओर मुस्करा कर देखते हुए) इसका मतलब तू अभी बिकुल कोरा है….चलो देखते है कि तुम रामू के काबिल भी हो या नही…..

रामू: चल पहले अपनी पेंट से अपना लंड बाहर निकाल….

विनय: क्यों….

मनीष: यार वो दोपहर वाला खेल खेलना है ना….ये देख हम सब भी अपने लंड बाहर निकाल रहे है……

ये कहते हुए मनीष ने अपनी पेंट खोल कर नीचे सरका दी….उसका 5 इंच का लंड एक दम तना हुआ था….रामू ने भी अपनी लूँगी हटा कर निकाल दी…उसका काले रंग का लंड महज 4 साढ़े 4 इंच का था….जो नॉर्मल खड़ा था…..दोनो ने अपने लंड को हाथ में धीरे-2 लेकर हिलाना शुरू कर दिया….”ये कर रहे हो तुम दोनो……”

मनीष: अबे तू भी अपना लंड निकाल कर हिला जैसे हम हिला रहे है….इसे मूठ मारना कहते है…..बहुत मज़ा आता है ऐसा करने में….

विनय ने अपने शॉर्ट्स को सरका कर घुटनो से नीचे तक कर दया…..उसका लंड बिकुल सिकुडा हुआ था….और उसके बॉल्स पर चिपका हुआ था….उसने अपने लंड को हाथ मे धीरे-2 उनकी नकल करते हुए हिलाने के कोशिस की, पर उसे कुछ अहसास ना हुआ….विनय का गोरा लंड देख कर उस पीयान की आँखो मे अजीब सी चमक आ गयी…..”ला मैं कर देता हूँ…..तू अभी नया है ना….” उस पीयान ने विनय के लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया, और धीरे-2 उसे सहलाने लगा….

एक अजीब सी सरसराहट उसके बदन में दौड़ गयी…..धीरे-2 उसके लंड ने भी अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया….करीब 2 मिनिट बाद ही उसके लंड में पूरा तनाव आ चुका था….जिसे देख कर उन दोनो की आँखे फटी की फटी रह गयी….”अबे ये इंसान का लंड है या गधे का…..इतनी सी उम्र में इतना बड़ा लंड साले क्या ख़ाता है…..” विनय कुछ बोलने ही वाला था कि, वो कुछ सोच कर चुप हो गया…क्या बताता कि एक 70 साल की दाई उसके लंड की रोज मालिश करती है……

रामू: यार सच में तेरा लंड तो इस उम्र में इतना लंबा और मोटा है, तो एक दो साल बाद तो ये और लंबा और मोटा हो जाएगा…..

मनीष: क्यों साले गान्ड में खुजली होने लग गयी तेरे लगता यार का लंड देख कर……

रामू: कह तो तू सही रहा है…..पर अभी इसके बारे में मैं कुछ और ही सोच रहा हूँ….

मनीष: क्या सोच रहा है बे…..मुझे भी तो बता…..

रामू: वो बाद मे बताउन्गा…..अभी तो तू जल्दी से मेरी गान्ड मार के मेरी गान्ड के कीड़ों को सुला दे…..

ये कहते हुए रामू उल्टा हो गया….और फिर क्या था….मनीष ने उसकी गान्ड मारनी शुरू कर दी….अपनी आँखो के सामने ये सब होता देख विनय का दिल बैचेन से हो गया…”आह साले तेरी गान्ड मारने मे इतना मज़ा आता है तो, लड़की की चूत मारने में कितना मज़ा आएगा…हाए रामू यार किसी की चूत दिलवा दे ना……साले इतने दिनो से झूठा दिलासा दे कर मुझसे अपनी गान्ड मरवा रहा है……”

रामू: हां मनीष बाबू दिलवा दूँगा….अभी तो आ मेरी बजा ….

लड़कियों औरतों लंड चूत गान्ड ये शब्द सुन सुन कर विनय का बुरा हाल था….शाम 7 बजे वो स्कूल से निकल कर घर की तरफ चल पड़ा…..गर्मियों के दिन थे….इसीलिए अभी अंधेरा नही हुआ था…जब घर पंहुचा तो, मामी ने हल्की सी डाँट लगाई…
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घर पहुच कर, उसने अपने स्कूल का होम वर्क किया…..होम वर्क करते-2 उसे 9 बज चुके थे….ममता रूम में आई, और उसने विनय को कहा कि, खाना लग गया है….आकर खाले…. “जी दीदी अभी आता हूँ…..” विनय ममता को दीदी कह कर पुकारता था….विनय खाना खाने चला गया. आज भी उसका मामा अभी तक घर नही आया था…..जब उसके मामा घर आते, तो तब तक विनय सो चुका होता….अजय का विनय से बेहद लगाव था…..उसकी बहन और जीजा की आख़िरी निशानी जो थी….

विनय: मामी जी मामा जी नही आए अभी तक……

किरण: बेटा दुकान के ऊपर नया गारमेंट्स का काम शुरू किया है ना…..इसलिए वो लेट आते है.

(दरअसल पिछले एक साल से उसके मामा ने खुद के गारमेंट सिलाने के लिए नयी मशीन्स लगवाई थी…अपनी ही दुकान के ऊपेर वाली मंज़िल पर….इस लिए उसके मामा रात के करीब 11 बजे आते थे…..और सुबह जल्दी ही चले जाते थे….कई-2 बार तो वो फोन करके मामी को कह देते कि वो आज वही पर रुकने वाले है…..)

उसके बाद सब ने खाना खाना खाया और सब अपने अपने रूम में सोने के लिए चले गये. वशाली तो किरण के साथ ही सोती थी…..चाहे अजय घर हो या ना हो…..दोस्तो दिन इसी तरह गुजर रहे थे….अब विनय अक्सर अपने दोस्तो के ग्रूप में होने वाले लड़कियों के जिकर को ध्यान से सुनने लगा था…..धीरे-2 उसका झुकाव अब सेक्स के लिए होने लगा था….

जून शुरू हो चुका था…..सम्मर वकेशन स्टार्ट हो गये थे…..मामा का घर बहुत बड़ा था….नीचे चार रूम्स थी…..और ऊपेर तीन…ऊपेर वाले तीनो रूम्स खाली थी…कुछ पूर्ण समान ऊपेर इन तीनो रूम्स में इधर उधर बिखरा रहता था……विनय वशाली मौसी की बेटी पिंकी और उनका बेटा अभी और साथ में वशाली की सहेली जो अब 11थ में हो गयी थी… सब लोग दोपहर को ऊपेर वाली मंज़िल पर इकट्‍ठा हो जाते…….

और खूब मस्ती करते….दिन तो स्कूल का होम वर्क करते और खेल-2 में निकल जाता….पर रात को विनय के दिमाग़ में अपने दोस्तो के साथ की हुई लड़कियों और औरतों की बातें घूमती रहती. आदमी और औरत सेक्स कैसे करते है….कितना मज़ा आता है…..ये सब उसके दिमाग़ में चलता रहता….जून में गर्मियाँ कहर ढा रही थी….उस रात को खाना खाते हुए….

ममता: दीदी मैं क्या बोल रही थी…..कि नीचे आब ठीक सोया नही जाता…..बहुत गरमी है…. आज ऊपेर छत पर सोते है……

किरण: ममता तुझे तो पता है ही ये कब आएँगे कोई पता नही….तू दोनो बच्चों को लेकर ऊपेर चली जा…..

ममता: ठीक है दीदी…..

उसके बाद जैसे ही सब ने खाना खाया, तो ममता विनय और वशाली से कहने लगी…. “चलो बच्चा पार्टी मेरे साथ आओ……और बिस्तरे ऊपेर लेकर चलो….आज हम सब ऊपेर सोएंगे….”फिर तीनो ने बिस्तरों को ऊपेर लेजाना शुरू कर दिया…फिर ममता ने एक टेबल फॅन भी उठाया और ऊपेर ले गयी….ऊपेर छत पर जाकर नीचे तरपाल बिछाई गयी, और फिर उसके ऊपेर बिस्तर बिछा दिए गये. वशाली और विनय के बिस्तर दोनो तरफ़ साइड में थे….

और ममता का बिस्तर उन दोनो के बीच में था……नीचे के तुलना ऊपेर मौसम कुछ ठंडा था….वशाली तो बिस्तर पर लेटने के 5 मिनिट में ही सो गयी….पर विनय की आँखो से नींद कोसो दूर थी….अब रात को हमेशा उसके सोच पर औरतें लड़कियों की बातें हावी रहने लगी थी…..वो आँखे बंद किए हुए लेटा हुआ ऐसे ही कुछ सोच रहा था. कि अचानक से ममता के मोबाइल की रिंग बजने लगी……

हलाकी उस समय मोबाइल आम बात नही थी……बहुत कम लोगो के पास मोबाइल हुआ करता था. मोबाइल का दौर उस समय शुरू ही हुआ था….पर ममता का हज़्बेंड यूके में रहता था. इसलिए उसने ममता को यूके वापिस जाने से पहले एक मोबाइल दिलवा दिया था…..ताकि वो बिना किसी परेशानी के ममता से बात कर सके…..ममता सोच रही थी कि, शायद विनय और वशाली दोनो सो चुके है……अब इतने दिनो बाद ममता को उसके पति का फोन आया था……तो कुछ पुरानी यादें ताज़ा होना तो लाज़मी थी….और ऊपेर से अभी नयी-2 शादी हुई थी….तो आप सोच ही सकतें है कि, उन दोनो के बीच में कैसी बातें चल रही होंगी….

ममता फोन पर बात करते हुए,लगतार अपनी कमीज़ के पल्ले के अंदर हाथ डाल कर अपनी चूत को सहला रही थी……ये देख विनय एक दम हैरान रह गया….ममता बीच-2 में सिसक पड़ती तो, विनय का दिल भी धड़क उठता….कुछ देर बात करने के बाद, उसने कॉल कट की, मोबाइल को अपने तकिये के पास रखा….और फिर दोनो बच्चों की तरफ देखा…..अंधेरे की वजह से ये अंदाज़ा लगा पाना मुस्किल था कि, किसी की आँखे तो खुली नही है….

फिर ममता ने अपनी कमीज़ के पल्ले को उठा कर अपने पेट पर रखा और अपनी सलवार का नाडा पकड़ कर खेंचते हुए, खोल दिया और फिर अपना एक हाथ अंदर लेजा कर अपनी चूत को मसलने लगी….”शियीयीयीयियी अहह” ममता अपनी चूत को मसलते हुए सिसकने लगी….ये देख विनय के लंड में अजीब सी सरसाहट होने लगी…..उसका हाथ पता नही कब अपने आप उसके शॉर्ट्स पर उसके लंड के ऊपेर आ गया…..और वो भी ममता को देखते हुए, धीरे-2 अपने लंड को शॉर्ट्स के ऊपेर से मसलने लगा….

चूत की आग कहाँ उंगलियों से ठंडी होती है….खस्स्तोर पर उनकी जो एक बार लंड का स्वाद चख चुकी हो.....ममता बदहवास सी हो गयी…..जब उंगलियों से चूत की आग ना ठंडी हुई तो, उसने अपना हाथ सलवार से बाहर निकाला, और नाडा बाँधा और सोने की कॉसिश करने लगी….विनय का ध्यान ममता की ऊपेर नीचे हो रही चुचियों पर था….जो उसके साँस लेने के साथ ऊपेर नीचे हो रही थी….विनय का हाथ अब उसके लंड पर शॉर्ट्स के ऊपेर तेज़ी से चलने लगा… ममता जो अभी आँखे बंद किए हुए सोने के कोशिस कर रही थी…..हल्की सी कपड़ो की सरसराहट ने उसका ध्यान अपनी तरफ खेंचा……

उसने लेटे-2 अपनी आँख खोल कर देखा , उसकी आँखे हैरानी से फेल गयी….विनय अपने लंड को शॉर्ट्स के ऊपेर से पकड़े हुए धीरे-2 सहला रहा था…..आज से पहले विनय को वो भोला भाला बच्चा ही समझती थी…..पर आज उसे समझ आ रहा था कि, ये बच्चा अब किशोरा अवस्था की तरफ अग्रसर है….ये देख नज़ाने क्यों ममता के होंटो पर मुस्कान फेल गयी….. उस पल तक ममता के मुँह मे विनय के लिए ऐसा कुछ नही था…..उसने अपना ध्यान दूसरी तरफ करने के लिए करवट बदल ली और विनय की तरफ पीठ कर ली…..

ममता को पता नही चला कब उसे नींद आ गयी…..सुबह के करीब 5 बजे ममता की नींद एक दम से टूट गयी….उसे अपने कुर्ते के ऊपेर कुछ दबाव सा फील हो रहा था…जैसे कोई उसकी चुचियों को धीरे-2 सहला रहा हो…..और अगले ही पल चोन्कते हुए उसकी आँखे खुल गयी…. आसमान मे हल्की-2 रोशनी हो गयी थी….उसने देखा कि, विनय का लेफ्ट हॅंड उसकी चुचि पर है. पर अब उसमे कोई हरक़त नही हो रही थी…..उसने धीरे-2 विनय का हाथ हटा कर साइड मे रखा और उठ कर नीचे चली गयी……नीचे जाते हुए ममता सोच रही थी कि, क्या विनय सच मे उसकी चुचियों को सहला रहा था…..या ये सिर्फ़ मेरा वेहम है…..हो सकता है शायद उसने सोते हुए, हाथ मेरे ऊपेर रख दिया हो…….

ममता अपने रूम मे आकर फिर से सो गयी…..सुबह हुई, तो वशाली और विनय भी उठ कर नीचे आ गये……नहा धो कर फ्रेश हुए, नाश्ता किया तो तब तक शीतल भी अपने बच्चों को लेकर किरण के घर आ गयी……गर्मियों में हमेशा लाइट का कट लग जाया करता था…..और विनय के मामा का घर इतना बड़ा और खुला था, कि नीचे ग्राउंड फ्लोर पर गरमी कम होती थी. दूसरा ये भी कारण था कि, नाश्ते के बाद किरण सभी बच्चों को हाल में होम वर्क करने के लिए बैठा देती थी……जिसमे ममता उन सब की हेल्प करती थी….उन सब को पढ़ाती थी….

ममता सब बच्चों को 12 बजे तक बाँध कर रखती थी……उस दिन भी ममता जब सब को पढ़ा रही थी, तो उसके दिमाग़ में सुबह वाली घटना घूम रही थी…..वो देखना चाहती थी कि, विनय किस कदर तक इन सब बातों के बारे में जानता है…..क्या उसने जान बुझ कर उसकी चुचियों पर हाथ रखा था…..इसीलिए वो जब विजय को कुछ समझा रही थी….तो कुछ ज़्यादा ही झुक कर उसके कॉपी में कुछ लिख रही थी……आज सुबह नहाने के बाद ही एक खुली सी सलवार कमीज़ पहन ली थी…..कमीज़ के नीचे ब्रा भी नही पहनी थी….कमीज़ का गला इतना डीप था कि, जब वो झुकती तो उसकी चुचियाँ बाहर आने को उतावली होने लगती….और लगभग आधे से ज़्यादा बाहर ही आ जाती……ये सब करते हुए, वो लगातार विनय की नज़रो पर आँखे जमाए हुए थी…..

विनय ने भी एक दो बार उसके कमीज़ के गले से बाहर झाँक रही चुचियों को देखा, उसके मन में भी हलचल हुई, पर विनय उस समय नादान था…..इस कंडीशन को कैसे हॅंडेल करते है……उसे बिल्कुल भी मालूम नही था….इसलिए फिर उसने अपना सारा ध्यान पढ़ने में लगा दिया…..खैर ममता को यकीन होने लगा कि, शायद विनय सो ही रहा था…..और सोते हुए बच्चों का हाथ पैर इधर उधर हो जाना बड़ी बात नही है….
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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