वक्त का तमाशा

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mini

Re: वक्त का तमाशा

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thak gye honge
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jay
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Re: वक्त का तमाशा

Post by jay »

rajaarkey wrote:बहुत ही अच्छी शुरुआत है जय पाजी

thanks bhai
rangila wrote:जय भाई जी कई दी हो गये बिना अपडेट के


इंतजार.....................

bhai update bas abhi aa raha hai
mini wrote:thak gye honge
he he he he he he he mini kya comment use kiya hai
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


Read my fev stories
(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: वक्त का तमाशा

Post by jay »

ठीक है रिकी... तुम्हारा यह बिज़्नेस आइडिया है तो बड़ा यूनीक, आइ मीन वॉटर रिज़ॉर्ट महाबालेश्वर में किसी ने सोचा नहीं होगा.. पर उसके लिए पहले एक पूरा कॉन्सेप्ट बनाना पड़ेगा , फिर उसका अच्छे से प्रेज़ेंटेशन बनाना पड़ेगा, रिसोर्सस की अवेलबिलिटी.. इन सब में काफ़ी वक़्त लगेगा.. तुम एक काम करो, यह तुम्हारा ही आइडिया है, तुम लंडन से पढ़ाई पूरी करके आके इस काम में लग जाओ... " अमर ने रिकी की पीठ थपथपा के कहा... रिकी ने सोचा भी नहीं था, कि अमर इतनी जल्दी मान जाएगा, और उसे खुद इतनी फ्रीडम देगा कि अपने प्रॉजेक्ट पे वो काम खुद कर सके... रिकी को काफ़ी अच्छा लगा सुनके...



"ओके डॅड.. फिलहाल अभी तो महाबालेश्वर के लिए निकलते हैं, नहीं तो शीना नाराज़ हो जाएगी... और हां डॅड, मैं आपकी लॅंड क्रूज़र ले जाउ प्लीज़.." रिकी ने हँस के कहा



"रिकी... इस घर की हर चीज़ तुम्हारी है, बेटे हो तुम हमारे... इतनी फ़ॉर्मलटी से मुझसे बात करोगे तो फिर मुझे अच्छा नहीं लगेगा..."



"सॉरी डॅड... चलिए, बाइ भैया, बाइ पापा.." रिकी वहाँ से निकल गया



"पापा, रिज़ॉर्ट के लिए कम से कम इनवेस्टमेंट तो 50 करोड़ चाहिए... इतना बड़ा रिस्क लेना सही रहेगा.." विक्रम ने धीरे से अमर से पूछा



"सोच तो मैं भी वही रहा हूँ बेटे, लेकिन रिकी की आँखों में आज जो चीज़ दिखी मुझे, वो कभी पहले नहीं दिखी... मैं यह रिस्क उठाने के लिए तैयार हूँ.." अमर ने अपना फ़ैसला सुनाया और वो भी वहाँ से निकल गया.. पीछे अकेला खड़ा विक्रम, अपने दाँत पीसते रह गया..



उधर रिकी के साथ सुहासनी देवी और स्नेहा घर के कॉंपाउंड में खड़े शीना का वेट कर रहे थे.. शीना को सामने आते देख वहाँ खड़े तीनो के तीनो हक्के बक्के रह गये.. शीना ने बाल खुले रखे थे, एक मिड साइज़ टॉप पहना था जो उसके चुचों से काफ़ी टाइट था, लेकिन कमर से उतना ही लूस., और उसमे से उसकी पतली कमर पे बँधी चैन भी सॉफ दिख रही थी... जितना सेक्सी ब्लॅक और रेड कलर का टॉप था, उसके नीचे उतना ही सेक्सी उसका लेदर का फिश कट स्कर्ट था, जो उसकी लेफ्ट जांघों को एक दम सही कोणों से दिखा रहा था, लाल लिपस्टिक वाले होंठ देख किसी के मूह में भी पानी आ जाए.. रिकी उसे देख हक्का बक्का रह गया, और स्नेहा के तो मानो जैसे खुशी के पर निकल आए हो...



"यह क्या पहना है... फॅमिली के साथ घर के नौकर भी हैं, यह ख़याल तो रखो कम से कम.." सुहासनी देवी ने दबे स्वर में शीना से कहा



"चिल मोम... चलिए, आप आगे बैठिए, मैं और भाभी पीछे बैठते हैं... और नौकर तो दूसरी गाड़ी में हैं ना, फिर कैसी चिंता... चलिए अब देर नही करें.." शीना ने पीछे बैठते कहा, और चारो वहाँ से महाबालेश्वर चल दिए... रास्ते में सुहासनी और रिकी की काफ़ी बातें हुई और स्नेहा ने भी शीना की काफ़ी तारीफ़ की..



"कातिल लग रही हो आज तो, महाबालेश्वर के टूरिस्ट्स कहीं जान ही ना दे दे तुम्हारे लिए" स्नेहा ने चुप के से शीना को मसेज किया, क्यूँ कि यह बात वो सुहासनी देवी के आगे नहीं बोल सकती थी..



"हहहहहा.. क्या भाभी, यह 1 महीना पहले का स्कर्ट है.. नॉर्मल ही है अब..." शीना ने जवाब दिया



"हाए मेरी ननद, भोली मत बनो, मैं तो तुम्हारे कबूतरों की बात कर रही हूँ.." स्नेहा ने फिर मसेज किया... स्नेहा अक्सर ऐसी बातें करती शीना के साथ, लेकिन शीना अपने मूड के हिसाब से उसे जवाब देती... आज शीना भी फुल मूड में थी , उसने फिर जवाब दिया



"अरे नहीं भाभी, मेरे पंछी तो बस हमेशा की तरह ही हैं... आम तो आपके रसीले हो रहे हैं, भैया ठीक से निचोड़ नहीं रहे लगता है..."



"अरे नहीं मेरी ननद, तुम्हारे भैया तो आम को अच्छी तरह चूस ही लेते हैं... लेकिन अब यह आम भी गदराए पपाया होने लगे हैं.. लगता है अब इनका ख़याल ज़्यादा ही रखवाना पड़ेगा.." स्नेहा ने भी आज बेशर्मी की हद पार करने की ठान ली थी..



"ओह हो... कितने लोगों ने मेहनत की है भाभी इस आम को पपाइया बनाने में... आप की गुफा का दरवाज़ा भी काफ़ी खुल चुका होगा अब तो शायद..." शीना आज फुल मूड में थी..



"असली मर्द बहुत कम रह गये हैं इस दुनिया में अब मेरी ननद.... किसी में मेरी प्यास भुजाने की हिम्मत ही नहीं रही... लगता है अब तो बस कोई और ही देखनी पड़ेगी.." स्नेहा ने जान बुझ के देखनी पड़ेगी लिखा.. यह देख शीना भी चौंक गयी, कुछ देर तक उसने भी जवाब नहीं दिया...



"लगता है आज महाबालेश्वर में आप ही आग लगाओगी... इतना जल जो रही हो नीचे से..." शीना ने हिम्मत करके जवाब दिया



"इतनी चिंता है महाबालेश्वर की, तो मेरी ननद होने के नाते भुजा दो मेरी यह आग.. कुछ प्रबंध कर लो अब तुम ही.. हमे तो कोई मिलने से रहा...." स्नेहा खुल के आज अपनी बेशर्मी का प्रदर्शन कर रही थी...



"कम ऑन भाभी.. इट्स एनुफ्फ ओके..." कहके शीना ने फाइनली कॉन्वर्सेशन को बंद किया और अपना फोन क्लच में रख दिया...
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Re: वक्त का तमाशा

Post by jay »


फोन रखते ही शीना और स्नेहा के बीच की वार्तालाप भी कम हो गयी.... जहाँ स्नेहा ने सोचा था कि आज वो शीना को अपनी असली रूप दिखा के ही रहेगी , वहीं शीना दुविधा में पड़ गयी थी.. शीना के मन में एक अजीब सी जिग्यासा जागने लगी... भाभी ऐसी बात क्यूँ कर रही थी, क्या वो लेज़्बीयन भी है.. क्या वो सही में बाहर के मर्दों के साथ सोती है, क्या वो सही में एक बाज़ारू औरत जैसी है... शीना के मन में ऐसे सवालों की भीड़ सी लग गयी, इसलिए बाकी के पूरे रास्ते वो खामोश रही... रिकी भी कहीं और ही खोया हुआ था, वो ड्राइव तो कर रहा था, लेकिन उसका ध्यान कहीं और ही था.. शायद आज सुबह हुए स्नेहा के उस किस्से की वजह से वो भी काफ़ी अनकंफर्टबल था... सुहासनी देवी मन ही मन स्नेहा को गालियाँ दे रही थी जो उसका रोज़ का काम था.... एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी उस वक़्त गाड़ी में... देखते देखते रास्ता कैसे कट गया पता ही नहीं चला, जब टाइयर स्क्रीच होने की आवाज़ हुई, तभी सब को होश आया कि वो लोग अपनी मंज़िल पहुँच गये... दोपहर के 12 बजे शुरू किया गया सफ़र, दोपहर के 3 बजे जाके ख़तम हुआ.. चारो लोग गाड़ी से उतरते, उससे पहले उनके नौकर बाहर आ गये उनका समान उठाने के लिए



"हाए बेटा, तू तो कहीं खो ही गया था. रास्ते पे कहीं रुका ही नहीं खाने के लिए... " सुहासनी ने उतर के रिकी से कहा



"कहीं नहीं माँ, मंज़िल पे आ गये हैं, अब दो दिन तो आराम ही है... चलिए अंदर... " कहके दोनो माँ बेटे बातें करते हुए अंदर गये और पीछे शीना और स्नेहा धीमे धीमे कदमों से आगे बढ़ रहे थे... शीना अभी तक खोई हुई थी अपने विचारों में, और स्नेहा उसे देख के समझ गयी थी कि उसका तीर ठीक निशाने पे लगा है.. यह देख स्नेहा ने अपने कदमों की रफ़्तार बढ़ाई और जल्दी से घर के अंदर जाने लगी.. अमर राइचंद के हर घर की तरह, यहाँ के मेन गेट पे भी एक सोने के अक्षरों से सजी नेम प्लाट लगी थी 'राइचंदस....'... घर के अंदर हर एक लग्षूरीयस चीज़ पड़ी थी, चाहे हो बेडरूम के अंदर छोटा सा पूल है या हर बेडरूम में प्राइवेट जक्यूज़ी..... जहाँ तीनो औरतों ने अपने अपने रूम में जाके आराम करना ठीक समझा, वहीं रिकी घर के पीछे की बाल्कनी में जाके खड़ा हो गया.. बाल्कनी से खूबसूरत व्यू देख वो अचंभित हो गया, पहाड़ों से घिरा हुआ चारों तरफ का माहॉल, अमर का वीकेंड होम वहाँ की आलीशान प्रॉपर्टी थी... बाल्कनी में रखी एक लंबी रेक्लीनेर पे बैठ के रिकी वहाँ के मौसम में कहीं खो गया.. सर्दी ऐसी थी, के दोपहर के 3 बजे भी रिकी को अपने जॅकेट पहनना सही लगा.. हल्का सा धुन्ध छाया हुआ था घर के चारो ओर... बैठे बैठे वहीं रिकी की आँख लग गयी और एक लंबी नींद में चला गया...

शीना जैसे ही अपने कमरे में गयी, बेड पे जाके बस लंबी होके सो ही गयी.... उसको सोता हुआ देख किसी का भी लंड जागने लगे.. शीना जैसे ही बिस्तर पे गिरी, उसके चुचे उसके लो कट टॉप से बाहर आने के लिए कूदने लगे, उसका फिश कट स्कर्ट था, उसकी कट उसकी नंगी जांघों को एक्सपोज़ करने लगी, और साइड से उसकी पैंटी लाइन दिखने लगी... बिस्तर पे सर रखते ही शीना कार में हुई स्नेहा की बातों के ख़याल में खो गयी... उसको समझ नहीं आ रहा था, कि स्नेहा आज अचानक ऐसी बातें क्यूँ कर रही थी.. स्नेहा और शीना करीब तो शुरू से ही थे, लेकिन इससे पहले कभी ऐसी बात नहीं हुई थी उन दोनो के बीच.. स्नेहा की बातों के बारे में सोच सोच के शीना की साँसें भारी होने लगी, इतनी ठंड में भी उसके बदन में गर्मी आने लगी थी.. शीना ने जब यह देखा तो उसे खुद यकीन नहीं हो रहा था कि वो स्नेहा की ऐसी बातों से गरम हो सकती है.. शीना ने जल्दी से अपने कपड़े उतार फेंके…स्कर्ट और टॉप को अपने शीशे से भी सॉफ शरीर से अलग कर दिया, अब वो सिर्फ़ ब्रा पैंटी में थी जो ट्रॅन्स्परेंट थे, शीना के निपल्स सॉफ उसकी ब्रा से देखे जा सकते थे. शीना रूम में अटॅच्ड जक्यूज़ी में जल्दी से कूद गयी और अपनी चूत में लगी आग को ठंडा करने लगी… यह पहली बार था जब शीना किसी औरत से इतनी गरम हुई थी… उधर रिकी की बाल्कनी से पहाड़ी नज़ारे देखते देखते आँख लगी ही थी, कि अचानक एक तेज़ हवा का झोंका चला जिससे उसकी आँखें खुल गयी, उस एक पल उसको ऐसा लगा कि उस हवा में शायद किसी की आवाज़ थी जो रिकी से कुछ कह के निकली…. रिकी ने अपने ख़यालों को झटका और अंदर चला गया… वक़्त देख के रिकी ने सोचा के रात का खाना ही होगा अब तो डाइरेक्ट, तो क्यूँ ना पहले कुछ सैर की जाए लोकल मार्केट की… रिकी ने एक एक कर घर के सब मेंबर्ज़ को देखा लेकिन शीना और सुहासनी के कमरे अंदर से ही लॉक थे, सफ़र से थक के सो गये होंगे यह सोच के रिकी ने दरवाज़ा नॉक तक नहीं किया…स्नेहा के कमरे में जाते जाते रिकी रुक सा गया, स्नेहा के साथ अकेले जाना रिकी को सही नहीं लग रहा था, इसलिए वो दबे पावं सीडीया उतर के घर से बाहर पैदल ही निकल गया…शाम के 5 बजे थे और मौसम बहुत ठंडा था, धीरे धीरे सूरज पहाड़ों के बीच डूबने को था, लोकल मार्केट देखते देखते रिकी को 2 घंटे हो गये थे…वक़्त देख के उसने जैसे ही घर जाने का रास्ता पकड़ा तभी अचानक रिकी की जॅकेट पे पीछे से एक बड़ा पत्थर आके लगा…. जैसे ही रिकी को हल्के दर्द का एहसास हुआ, वो पीछे मुड़ा तो उसके पैर पे वो पत्थर एक काग़ज़ में लपेटा हुआ पड़ा था.. पत्थर उठा के रिकी अपनी नज़रें फिराने लगा कि किसने यह हरकत की…भीड़ में थोड़ा दूर उसे एक इंसान दिखा जिसने अपने पूरे बदन को एक ब्लॅक शॉल में लपेटा हुआ था और बड़ी तेज़ी से भाग रहा था, रिकी ने पत्थर उठाया और उसके पीछे दौड़ पड़ा..


“हे यू… रुक जाओ”…. चिल्लाता हुआ रिकी उसके पीछे भागने लगा... कुछ ही सेकेंड्स में रिकी जब भीड़ को चीरता हुआ मार्केट के एक छोर पे आया तो वहाँ कोई नही था, और अचंभे की बात यह थी कि एक छोर से लेके दूसरे छोर तक मार्केट की सड़क सीधी ही थी, बीच में कोई गलियारा या खोपचा नहीं था…. रिकी ने हर जगह अपनी नज़रें घुमाई लेकिन उसे कोई नहीं दिखा…तक के रिकी ने पत्थर फेंका और उस काग़ज़ को देखा…काग़ज़ में जो लिखा था उसे देख उसकी आँखें बड़ी हो गयी और दिल में एक अंजान डर लगा… उस काग़ज़ पे लिखा था



“मुंबई छोड़ के कहीं मत जाना…. यहीं रहके तुम अपने जीवन के मकसद को पूरा करो…”



यह पढ़ के रिकी कुछ देर जैसे वहीं बरफ समान जम गया था…. रात के 7 बजे पहाड़ी की ठंडी हवायें चल रही थी, उसमे भी रिकी पसीना पसीना हो गया था…अचानक किसी ने पीछे से आके रिकी के कंधों पे हाथ रखा तो वो और घबरा गया.. धीरे धीरे जब उसने पीछे मूड के देखा तो शीना को उसके सामने पाकर उसकी साँस में साँस आई..



“भाई… यहाँ क्या कर रहे हो.. और इतनी ठंड में भी पसीना.. “ शीना ने घबरा के पूछा,




शीना को देख के रिकी ने तुरंत अपने दोनो हाथ जीन के पॉकेट में डाले ताकि शीना की नज़र उस काग़ज़ पे ना पड़े…




“नतिंग…भीड़ की वजह से शायद पसीना आया है... यह सब छोड़ो, तुम बताओ.. मुझे लगा तुम आराम कर रही हो तभी मैने तुम्हे नहीं उठाया नींद से.." रिकी आगे बढ़ने लगा और शीना भी उसके साथ चलने लगी



"नींद खुल गई भाई, थकावट काफ़ी थी लेकिन ज़्यादा नींद नहीं आई.. चलो ना भाई, कुछ शॉपिंग करते हैं.. आपकी तरफ से गिफ्ट मेरे लिए.." शीना ने खिलखिला के कहा और दोनो दुकान की तरफ बढ़ने लगे...




"हां हां .... वोही करने की कर रही हूँ, पता नही कौनसी मिट्टी का बना हुआ है यह, जाल में आ ही नहीं रहा..." उधर स्नेहा किसी के साथ फोन पे बात कर रही थी... इतना बोलके फिर स्नेहा खामोश हो गयी और ध्यान से दूसरी तरफ की बातें सुनने लगी...




"हां वो सब ठीक है, पर आज ही बात कर रहा था कि महाबालेश्वर में कुछ रिज़ॉर्ट बनाएगा, पर उसकी पढ़ाई के बाद... लंडन चला जाएगा दो तीन दिन में.." स्नेहा ने फिर धीरे से कहा, और यह सब कहते वक़्त वो बार बार रूम के दरवाज़े तक पहुँचती अंदाज़ा लगाने के लिए के कहीं कोई उसकी बातें सुन तो नहीं रहा... फिर कुछ देर खामोशी से सामने की बातें सुनके उसने जवाब में कहा




"हां ठीक है...मैं कुछ करती हूँ.. अब एका एक नंगी तो नहीं हो सकती ना इसके सामने...ठीक है, "कहके स्नेहा ने फोन रख दिया... फोन रख के स्नेहा अपने रूम में धीरे धीरे टहलने लगी.. कुछ सोच रही थी पर उसे रास्ता मिल नहीं रहा था.. कुछ देर सोच के उसने धीरे से खुद से कहा... "ह्म्म्मग.. ननद जी...आपकी भाभी की आग से बच के रहना आज.."





मार्केट से जब रिकी और शीना शॉपिंग करके लौटे, तब तक सुहासनी देवी भी उठ चुकी थी और गार्डेन में बैठ के चाइ पी रही थी.. रिकी और शीना भी उसके साथ बैठ गये और गुपशुप करने लगे..कुछ ही देर में स्नेहा ने भी उन्हे जाय्न किया और चारों अपनी बातों में मशगूल हो गये...




"भाई, कल क्या करेंगे इधर..व्हाट्स दा प्लान..." शीना ने बीच में पूछा..





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Re: वक्त का तमाशा

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"यार यहाँ कुछ ख़ास नहीं लगा मुझे, आइ मीन स्ट्रॉबेरी फार्मिंग है, सम बी हाइव्स आंड दो तीन पायंट्स हैं ऑन हिल्स.. तो आइ थिंक तुम माँ और भाभी के साथ कल यह आस पास की तीन चार जगह देख लो, तब तक मैं भी एक दो लोकेशन्स देख के आता हूँ नये प्रॉजेक्ट के लिए.." रिकी ने शीना से कहा





"तुम भी चलो ना बेटा, हम तीन अकेले जाके क्या करेंगे..." सुहासनी ने रिकी को ज़ोर दिया





"माँ.. तीन लोग अकेले कैसे हुए.. और कोई बात नहीं है, स्टाफ तो होगा ना.. आंड मैं जल्दी से कामनिपटा के आप लोगों को जाय्न करूँगा.." रिकी ने सुहासनी देवी से कहा और तीनो फिर बातें करते करते डिन्नर करने चले गये... खाना ख़ाके और फिर कुछ देर इधर उधर की बातें करके, सब लोग अपने अपने कमरे में चले गये.. तीनो औरतों ने शाम को नींद की थी, इसलिए अभी तीनो अपने अपने कमरे में जाग रही थी.. सुहासनी देवी टीवी देखने में मशगूल थी, लेकिन शीना और स्नेहा के दिमाग़ किसी और तरफ ही थे.. फोन पे हुई बात के बाद स्नेहा आने वाले वक़्त में रिकी को अपने जाल में कैसे फसाए उस सोच में डूबी हुई थी, और शीना के खाली दिमाग़ में बार बार स्नेहा की बातें दौड़ रही थी.. स्नेहा की बातों ने शीना को थोड़ा अनीज़ी कर दिया था.. वो बार बार इग्नोर करती और हर बार यही बातें उसके दिमाग़ में आती.. जैसे जैसे रात निकलती गयी वैसे वैसे घर में एक दम शांति पसर गयी.. मालिक और नौकर दोनो अपनी नींद में डूब चुके थे, सर्द माहॉल में घर पे एक दम अंधेरा और उस पर यह सन्नाटा.. रिकी नींद में तो था लेकिन उसके दिमाग़ में अभी भी मार्केट वाली बात घूम रही थी, आख़िर कौन था वो जिसने पत्थर फेंका और उसपे लपेटा हुआ काग़ज़...यह सब किन चीज़ों की ओर इशारा कर रहा था.. यह सोच सोच के रिकी का दिमाग़ थक सा गया और वो नींद में जाने ही वाला था कि अचानक किसी के कदमों की आहट उसके कान में पड़ी जिसे सुनके रिकी अचानक से उठ के अपने बेड पे बैठ गया.. अपने बेड के पास रखा लॅंप ऑन करके रिकी धीरे धीरे अपने कमरे के दरवाज़े की ओर बढ़ा और दरवाज़ा खोलके देखा तो स्नेहा शीना के रूम की ओर बढ़ रही थी.. स्नेहा को नींद नहीं आ रही होगी तभी शायद वो शीना से गप्पे लड़ाने जा रही है, यह सोच के रिकी ने दरवाज़ा बंद किया और सोने चला गया...





शीना बेड पे आँखें बंद करके बैठी थी, शायद कुछ सोचते सोचते नींद आने लगी थी कि तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ से उसकी सोच में खलल पड़ा.. सामने देखा तो स्नेहा खड़ी थी, स्नेहा को देख के फिर से उसके दिमाग़ में स्नेहा की बातें आ गयी क्यूँ कि स्नेहा खड़ी ही ऐसे रूप में थी..ब्लॅक सिल्क के बाथरोब को स्नेहा ने अपने शरीर पे कस्के बाँधा हुआ था और उसके बाल खुले थे और चेहरे पे एक दम लाइट मेक अप...वो धीरे धीरे शीना की ओर बढ़ रही थी




"भाभी.. आप यहाँ, इस वक़्त.." शीना ने अपनी नज़रें उसके चेहरे से हटा के कहा




"क्या करूँ मेरी ननद रानी, नींद ही नहीं आ रही, सोचा तुमसे थोड़ी गप शप कर लूँ.. अच्छा है तुम भी नहीं सोई अब तक.." स्नेहा ने बेड के पास अपना मोबाइल फोन रखा और बाथरोब खोल दिया.. बाथरोब खोलते ही स्नेहा शीना के सामने सिर्फ़ ब्रा पैंटी में आ गई.. स्नेहा के सफेद बेदाग बदन पे डार्क ब्लू कलर की लाइनाये देख शीना की हलक सूखने लगी...




"ऐसे मत देखो मेरी ननद रानी, बाथरोब गीला है, खमखाँ बेड गीला करूँ उससे अच्छा है ऐसे ही बैठ जाउ.." स्नेहा ने शीना के पास बैठ के कहा




"और बताओ, क्या चल रहा है लाइफ में.. ऐश करती हो कि नहीं" स्नेहा ने अपने उपर ब्लंकेट ओढ़ दिया और उसके अंदर शीना को भी ले लिया.. शीना ने भी एक छोटा वन पीस ही पहना था जिसकी वजह से उसकी जांघें नंगी थी...




"लीव इट भाभी.. फिर वोही बात नहीं करनी मुझे..." शीना ने एक दम धीमी आवाज़ में कहा... शीना दुविधा में थी कि इस बात में वो स्नेहा के साथ आगे बढ़े या नहीं इसलिए यह कहते वक़्त भी वो खुद पक्का नहीं थी, जिसे स्नेहा ने पकड़ लिया




"अरे मेरी ननद रानी, तुम्हारा दिल और दिमाग़ साथ तो नहीं दे रहा. फिर क्यूँ इतनी मेहनत कर रही हो.." स्नेहा ने जवाब दिया.. इससे पहले शीना खुद इस बात का कुछ जवाब देती, फिर स्नेहा ने कहा




"ऐश करना कोई बुरी बात नहीं है.. और नाहीं उसके बारे में बात करना..." स्नेहा ने कंबल के अंदर ही शीना की जांघों पे उंगली फेरते हुए कहा... स्नेहा की उंगली का स्पर्श पाते ही शीना के रोंगटे खड़े हो गये और वो एक दम बहुत सी बनी रह गयी.. यह देख स्नेहा ने अपना काम जारी रखा और धीरे धीरे अपनी उंगलियाँ उपर लाती गयी..




"ऐसी कुछ बात नहीं है भाभी..." शीना ने फाइनली जवाब दिया और अपना गला सॉफ किया, साथ ही उसने अपनी जाँघ से स्नेहा की उंगलियों को भी धीरे से हटा दिया




"ओफफो... लगता है मेरी ननद रानी को इन सब की ट्रैनिंग मुझे ही देनी पड़ेगी अब...." कहके स्नेहा बेड से उठ खड़ी हुई... स्नेहा को खड़ा होते देख शीना की दिल की धड़कने तेज़ होने लगी और उसके मन में हज़ार ख़याल दौड़ने लगे... स्नेहा धीरे से शीना की तरफ झुकी और अपने होंठ शीना के होंठों की तरफ ले गयी.... डर के मारे शीना ने आँखें बंद कर ली....वो आने वाले पल के बारे में सोच के एग्ज़ाइट्मेंट के साथ साथ डरने भी लगी थी... उसकी बंद आँखें देख स्नेहा की हल्की सी हँसी छूट गयी




"ह्म्म्म ... मेरी ननद रानी, सब होगा, पर धीरे धीरे.. फिलहाल सो जाओ.. गुड नाइट.." स्नेहा ने हल्के से उसे कहा और वो अपना बाथरोब पहेन के बाहर निकलने लगी




शीना ने आँखें खोल के चैन की साँस ली, पर उसे अपनी इस हरकत पे काफ़ी घिन होने लगी...जाते जाते स्नेहा के शब्द एक बार फिर उसके कानो में गूंजने लगे.."सब होगा, पर धीरे धीरे....." यह सोच के शीना फिर ख़यालों में खोने लगी के तभी उसकी नज़र बेड के पास वाली टेबल पे पड़े मोबाइल पे गयी...




"यह तो भाभी का फोन है.." शीना ने खुद से कहा और स्नेहा का फोन उठा लिया.. फोन लॉक तो था पर स्वाइप करने से अनलॉक हो गया.. जैसे ही फोन अनलॉक हुआ और शीना की नज़रें स्क्रीन पे पड़ी, उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी...
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