वक्त का तमाशा

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jay
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Re: वक्त का तमाशा

Post by jay »


फोन रखते ही शीना और स्नेहा के बीच की वार्तालाप भी कम हो गयी.... जहाँ स्नेहा ने सोचा था कि आज वो शीना को अपनी असली रूप दिखा के ही रहेगी , वहीं शीना दुविधा में पड़ गयी थी.. शीना के मन में एक अजीब सी जिग्यासा जागने लगी... भाभी ऐसी बात क्यूँ कर रही थी, क्या वो लेज़्बीयन भी है.. क्या वो सही में बाहर के मर्दों के साथ सोती है, क्या वो सही में एक बाज़ारू औरत जैसी है... शीना के मन में ऐसे सवालों की भीड़ सी लग गयी, इसलिए बाकी के पूरे रास्ते वो खामोश रही... रिकी भी कहीं और ही खोया हुआ था, वो ड्राइव तो कर रहा था, लेकिन उसका ध्यान कहीं और ही था.. शायद आज सुबह हुए स्नेहा के उस किस्से की वजह से वो भी काफ़ी अनकंफर्टबल था... सुहासनी देवी मन ही मन स्नेहा को गालियाँ दे रही थी जो उसका रोज़ का काम था.... एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी उस वक़्त गाड़ी में... देखते देखते रास्ता कैसे कट गया पता ही नहीं चला, जब टाइयर स्क्रीच होने की आवाज़ हुई, तभी सब को होश आया कि वो लोग अपनी मंज़िल पहुँच गये... दोपहर के 12 बजे शुरू किया गया सफ़र, दोपहर के 3 बजे जाके ख़तम हुआ.. चारो लोग गाड़ी से उतरते, उससे पहले उनके नौकर बाहर आ गये उनका समान उठाने के लिए



"हाए बेटा, तू तो कहीं खो ही गया था. रास्ते पे कहीं रुका ही नहीं खाने के लिए... " सुहासनी ने उतर के रिकी से कहा



"कहीं नहीं माँ, मंज़िल पे आ गये हैं, अब दो दिन तो आराम ही है... चलिए अंदर... " कहके दोनो माँ बेटे बातें करते हुए अंदर गये और पीछे शीना और स्नेहा धीमे धीमे कदमों से आगे बढ़ रहे थे... शीना अभी तक खोई हुई थी अपने विचारों में, और स्नेहा उसे देख के समझ गयी थी कि उसका तीर ठीक निशाने पे लगा है.. यह देख स्नेहा ने अपने कदमों की रफ़्तार बढ़ाई और जल्दी से घर के अंदर जाने लगी.. अमर राइचंद के हर घर की तरह, यहाँ के मेन गेट पे भी एक सोने के अक्षरों से सजी नेम प्लाट लगी थी 'राइचंदस....'... घर के अंदर हर एक लग्षूरीयस चीज़ पड़ी थी, चाहे हो बेडरूम के अंदर छोटा सा पूल है या हर बेडरूम में प्राइवेट जक्यूज़ी..... जहाँ तीनो औरतों ने अपने अपने रूम में जाके आराम करना ठीक समझा, वहीं रिकी घर के पीछे की बाल्कनी में जाके खड़ा हो गया.. बाल्कनी से खूबसूरत व्यू देख वो अचंभित हो गया, पहाड़ों से घिरा हुआ चारों तरफ का माहॉल, अमर का वीकेंड होम वहाँ की आलीशान प्रॉपर्टी थी... बाल्कनी में रखी एक लंबी रेक्लीनेर पे बैठ के रिकी वहाँ के मौसम में कहीं खो गया.. सर्दी ऐसी थी, के दोपहर के 3 बजे भी रिकी को अपने जॅकेट पहनना सही लगा.. हल्का सा धुन्ध छाया हुआ था घर के चारो ओर... बैठे बैठे वहीं रिकी की आँख लग गयी और एक लंबी नींद में चला गया...

शीना जैसे ही अपने कमरे में गयी, बेड पे जाके बस लंबी होके सो ही गयी.... उसको सोता हुआ देख किसी का भी लंड जागने लगे.. शीना जैसे ही बिस्तर पे गिरी, उसके चुचे उसके लो कट टॉप से बाहर आने के लिए कूदने लगे, उसका फिश कट स्कर्ट था, उसकी कट उसकी नंगी जांघों को एक्सपोज़ करने लगी, और साइड से उसकी पैंटी लाइन दिखने लगी... बिस्तर पे सर रखते ही शीना कार में हुई स्नेहा की बातों के ख़याल में खो गयी... उसको समझ नहीं आ रहा था, कि स्नेहा आज अचानक ऐसी बातें क्यूँ कर रही थी.. स्नेहा और शीना करीब तो शुरू से ही थे, लेकिन इससे पहले कभी ऐसी बात नहीं हुई थी उन दोनो के बीच.. स्नेहा की बातों के बारे में सोच सोच के शीना की साँसें भारी होने लगी, इतनी ठंड में भी उसके बदन में गर्मी आने लगी थी.. शीना ने जब यह देखा तो उसे खुद यकीन नहीं हो रहा था कि वो स्नेहा की ऐसी बातों से गरम हो सकती है.. शीना ने जल्दी से अपने कपड़े उतार फेंके…स्कर्ट और टॉप को अपने शीशे से भी सॉफ शरीर से अलग कर दिया, अब वो सिर्फ़ ब्रा पैंटी में थी जो ट्रॅन्स्परेंट थे, शीना के निपल्स सॉफ उसकी ब्रा से देखे जा सकते थे. शीना रूम में अटॅच्ड जक्यूज़ी में जल्दी से कूद गयी और अपनी चूत में लगी आग को ठंडा करने लगी… यह पहली बार था जब शीना किसी औरत से इतनी गरम हुई थी… उधर रिकी की बाल्कनी से पहाड़ी नज़ारे देखते देखते आँख लगी ही थी, कि अचानक एक तेज़ हवा का झोंका चला जिससे उसकी आँखें खुल गयी, उस एक पल उसको ऐसा लगा कि उस हवा में शायद किसी की आवाज़ थी जो रिकी से कुछ कह के निकली…. रिकी ने अपने ख़यालों को झटका और अंदर चला गया… वक़्त देख के रिकी ने सोचा के रात का खाना ही होगा अब तो डाइरेक्ट, तो क्यूँ ना पहले कुछ सैर की जाए लोकल मार्केट की… रिकी ने एक एक कर घर के सब मेंबर्ज़ को देखा लेकिन शीना और सुहासनी के कमरे अंदर से ही लॉक थे, सफ़र से थक के सो गये होंगे यह सोच के रिकी ने दरवाज़ा नॉक तक नहीं किया…स्नेहा के कमरे में जाते जाते रिकी रुक सा गया, स्नेहा के साथ अकेले जाना रिकी को सही नहीं लग रहा था, इसलिए वो दबे पावं सीडीया उतर के घर से बाहर पैदल ही निकल गया…शाम के 5 बजे थे और मौसम बहुत ठंडा था, धीरे धीरे सूरज पहाड़ों के बीच डूबने को था, लोकल मार्केट देखते देखते रिकी को 2 घंटे हो गये थे…वक़्त देख के उसने जैसे ही घर जाने का रास्ता पकड़ा तभी अचानक रिकी की जॅकेट पे पीछे से एक बड़ा पत्थर आके लगा…. जैसे ही रिकी को हल्के दर्द का एहसास हुआ, वो पीछे मुड़ा तो उसके पैर पे वो पत्थर एक काग़ज़ में लपेटा हुआ पड़ा था.. पत्थर उठा के रिकी अपनी नज़रें फिराने लगा कि किसने यह हरकत की…भीड़ में थोड़ा दूर उसे एक इंसान दिखा जिसने अपने पूरे बदन को एक ब्लॅक शॉल में लपेटा हुआ था और बड़ी तेज़ी से भाग रहा था, रिकी ने पत्थर उठाया और उसके पीछे दौड़ पड़ा..


“हे यू… रुक जाओ”…. चिल्लाता हुआ रिकी उसके पीछे भागने लगा... कुछ ही सेकेंड्स में रिकी जब भीड़ को चीरता हुआ मार्केट के एक छोर पे आया तो वहाँ कोई नही था, और अचंभे की बात यह थी कि एक छोर से लेके दूसरे छोर तक मार्केट की सड़क सीधी ही थी, बीच में कोई गलियारा या खोपचा नहीं था…. रिकी ने हर जगह अपनी नज़रें घुमाई लेकिन उसे कोई नहीं दिखा…तक के रिकी ने पत्थर फेंका और उस काग़ज़ को देखा…काग़ज़ में जो लिखा था उसे देख उसकी आँखें बड़ी हो गयी और दिल में एक अंजान डर लगा… उस काग़ज़ पे लिखा था



“मुंबई छोड़ के कहीं मत जाना…. यहीं रहके तुम अपने जीवन के मकसद को पूरा करो…”



यह पढ़ के रिकी कुछ देर जैसे वहीं बरफ समान जम गया था…. रात के 7 बजे पहाड़ी की ठंडी हवायें चल रही थी, उसमे भी रिकी पसीना पसीना हो गया था…अचानक किसी ने पीछे से आके रिकी के कंधों पे हाथ रखा तो वो और घबरा गया.. धीरे धीरे जब उसने पीछे मूड के देखा तो शीना को उसके सामने पाकर उसकी साँस में साँस आई..



“भाई… यहाँ क्या कर रहे हो.. और इतनी ठंड में भी पसीना.. “ शीना ने घबरा के पूछा,




शीना को देख के रिकी ने तुरंत अपने दोनो हाथ जीन के पॉकेट में डाले ताकि शीना की नज़र उस काग़ज़ पे ना पड़े…




“नतिंग…भीड़ की वजह से शायद पसीना आया है... यह सब छोड़ो, तुम बताओ.. मुझे लगा तुम आराम कर रही हो तभी मैने तुम्हे नहीं उठाया नींद से.." रिकी आगे बढ़ने लगा और शीना भी उसके साथ चलने लगी



"नींद खुल गई भाई, थकावट काफ़ी थी लेकिन ज़्यादा नींद नहीं आई.. चलो ना भाई, कुछ शॉपिंग करते हैं.. आपकी तरफ से गिफ्ट मेरे लिए.." शीना ने खिलखिला के कहा और दोनो दुकान की तरफ बढ़ने लगे...




"हां हां .... वोही करने की कर रही हूँ, पता नही कौनसी मिट्टी का बना हुआ है यह, जाल में आ ही नहीं रहा..." उधर स्नेहा किसी के साथ फोन पे बात कर रही थी... इतना बोलके फिर स्नेहा खामोश हो गयी और ध्यान से दूसरी तरफ की बातें सुनने लगी...




"हां वो सब ठीक है, पर आज ही बात कर रहा था कि महाबालेश्वर में कुछ रिज़ॉर्ट बनाएगा, पर उसकी पढ़ाई के बाद... लंडन चला जाएगा दो तीन दिन में.." स्नेहा ने फिर धीरे से कहा, और यह सब कहते वक़्त वो बार बार रूम के दरवाज़े तक पहुँचती अंदाज़ा लगाने के लिए के कहीं कोई उसकी बातें सुन तो नहीं रहा... फिर कुछ देर खामोशी से सामने की बातें सुनके उसने जवाब में कहा




"हां ठीक है...मैं कुछ करती हूँ.. अब एका एक नंगी तो नहीं हो सकती ना इसके सामने...ठीक है, "कहके स्नेहा ने फोन रख दिया... फोन रख के स्नेहा अपने रूम में धीरे धीरे टहलने लगी.. कुछ सोच रही थी पर उसे रास्ता मिल नहीं रहा था.. कुछ देर सोच के उसने धीरे से खुद से कहा... "ह्म्म्मग.. ननद जी...आपकी भाभी की आग से बच के रहना आज.."





मार्केट से जब रिकी और शीना शॉपिंग करके लौटे, तब तक सुहासनी देवी भी उठ चुकी थी और गार्डेन में बैठ के चाइ पी रही थी.. रिकी और शीना भी उसके साथ बैठ गये और गुपशुप करने लगे..कुछ ही देर में स्नेहा ने भी उन्हे जाय्न किया और चारों अपनी बातों में मशगूल हो गये...




"भाई, कल क्या करेंगे इधर..व्हाट्स दा प्लान..." शीना ने बीच में पूछा..





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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: वक्त का तमाशा

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"यार यहाँ कुछ ख़ास नहीं लगा मुझे, आइ मीन स्ट्रॉबेरी फार्मिंग है, सम बी हाइव्स आंड दो तीन पायंट्स हैं ऑन हिल्स.. तो आइ थिंक तुम माँ और भाभी के साथ कल यह आस पास की तीन चार जगह देख लो, तब तक मैं भी एक दो लोकेशन्स देख के आता हूँ नये प्रॉजेक्ट के लिए.." रिकी ने शीना से कहा





"तुम भी चलो ना बेटा, हम तीन अकेले जाके क्या करेंगे..." सुहासनी ने रिकी को ज़ोर दिया





"माँ.. तीन लोग अकेले कैसे हुए.. और कोई बात नहीं है, स्टाफ तो होगा ना.. आंड मैं जल्दी से कामनिपटा के आप लोगों को जाय्न करूँगा.." रिकी ने सुहासनी देवी से कहा और तीनो फिर बातें करते करते डिन्नर करने चले गये... खाना ख़ाके और फिर कुछ देर इधर उधर की बातें करके, सब लोग अपने अपने कमरे में चले गये.. तीनो औरतों ने शाम को नींद की थी, इसलिए अभी तीनो अपने अपने कमरे में जाग रही थी.. सुहासनी देवी टीवी देखने में मशगूल थी, लेकिन शीना और स्नेहा के दिमाग़ किसी और तरफ ही थे.. फोन पे हुई बात के बाद स्नेहा आने वाले वक़्त में रिकी को अपने जाल में कैसे फसाए उस सोच में डूबी हुई थी, और शीना के खाली दिमाग़ में बार बार स्नेहा की बातें दौड़ रही थी.. स्नेहा की बातों ने शीना को थोड़ा अनीज़ी कर दिया था.. वो बार बार इग्नोर करती और हर बार यही बातें उसके दिमाग़ में आती.. जैसे जैसे रात निकलती गयी वैसे वैसे घर में एक दम शांति पसर गयी.. मालिक और नौकर दोनो अपनी नींद में डूब चुके थे, सर्द माहॉल में घर पे एक दम अंधेरा और उस पर यह सन्नाटा.. रिकी नींद में तो था लेकिन उसके दिमाग़ में अभी भी मार्केट वाली बात घूम रही थी, आख़िर कौन था वो जिसने पत्थर फेंका और उसपे लपेटा हुआ काग़ज़...यह सब किन चीज़ों की ओर इशारा कर रहा था.. यह सोच सोच के रिकी का दिमाग़ थक सा गया और वो नींद में जाने ही वाला था कि अचानक किसी के कदमों की आहट उसके कान में पड़ी जिसे सुनके रिकी अचानक से उठ के अपने बेड पे बैठ गया.. अपने बेड के पास रखा लॅंप ऑन करके रिकी धीरे धीरे अपने कमरे के दरवाज़े की ओर बढ़ा और दरवाज़ा खोलके देखा तो स्नेहा शीना के रूम की ओर बढ़ रही थी.. स्नेहा को नींद नहीं आ रही होगी तभी शायद वो शीना से गप्पे लड़ाने जा रही है, यह सोच के रिकी ने दरवाज़ा बंद किया और सोने चला गया...





शीना बेड पे आँखें बंद करके बैठी थी, शायद कुछ सोचते सोचते नींद आने लगी थी कि तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ से उसकी सोच में खलल पड़ा.. सामने देखा तो स्नेहा खड़ी थी, स्नेहा को देख के फिर से उसके दिमाग़ में स्नेहा की बातें आ गयी क्यूँ कि स्नेहा खड़ी ही ऐसे रूप में थी..ब्लॅक सिल्क के बाथरोब को स्नेहा ने अपने शरीर पे कस्के बाँधा हुआ था और उसके बाल खुले थे और चेहरे पे एक दम लाइट मेक अप...वो धीरे धीरे शीना की ओर बढ़ रही थी




"भाभी.. आप यहाँ, इस वक़्त.." शीना ने अपनी नज़रें उसके चेहरे से हटा के कहा




"क्या करूँ मेरी ननद रानी, नींद ही नहीं आ रही, सोचा तुमसे थोड़ी गप शप कर लूँ.. अच्छा है तुम भी नहीं सोई अब तक.." स्नेहा ने बेड के पास अपना मोबाइल फोन रखा और बाथरोब खोल दिया.. बाथरोब खोलते ही स्नेहा शीना के सामने सिर्फ़ ब्रा पैंटी में आ गई.. स्नेहा के सफेद बेदाग बदन पे डार्क ब्लू कलर की लाइनाये देख शीना की हलक सूखने लगी...




"ऐसे मत देखो मेरी ननद रानी, बाथरोब गीला है, खमखाँ बेड गीला करूँ उससे अच्छा है ऐसे ही बैठ जाउ.." स्नेहा ने शीना के पास बैठ के कहा




"और बताओ, क्या चल रहा है लाइफ में.. ऐश करती हो कि नहीं" स्नेहा ने अपने उपर ब्लंकेट ओढ़ दिया और उसके अंदर शीना को भी ले लिया.. शीना ने भी एक छोटा वन पीस ही पहना था जिसकी वजह से उसकी जांघें नंगी थी...




"लीव इट भाभी.. फिर वोही बात नहीं करनी मुझे..." शीना ने एक दम धीमी आवाज़ में कहा... शीना दुविधा में थी कि इस बात में वो स्नेहा के साथ आगे बढ़े या नहीं इसलिए यह कहते वक़्त भी वो खुद पक्का नहीं थी, जिसे स्नेहा ने पकड़ लिया




"अरे मेरी ननद रानी, तुम्हारा दिल और दिमाग़ साथ तो नहीं दे रहा. फिर क्यूँ इतनी मेहनत कर रही हो.." स्नेहा ने जवाब दिया.. इससे पहले शीना खुद इस बात का कुछ जवाब देती, फिर स्नेहा ने कहा




"ऐश करना कोई बुरी बात नहीं है.. और नाहीं उसके बारे में बात करना..." स्नेहा ने कंबल के अंदर ही शीना की जांघों पे उंगली फेरते हुए कहा... स्नेहा की उंगली का स्पर्श पाते ही शीना के रोंगटे खड़े हो गये और वो एक दम बहुत सी बनी रह गयी.. यह देख स्नेहा ने अपना काम जारी रखा और धीरे धीरे अपनी उंगलियाँ उपर लाती गयी..




"ऐसी कुछ बात नहीं है भाभी..." शीना ने फाइनली जवाब दिया और अपना गला सॉफ किया, साथ ही उसने अपनी जाँघ से स्नेहा की उंगलियों को भी धीरे से हटा दिया




"ओफफो... लगता है मेरी ननद रानी को इन सब की ट्रैनिंग मुझे ही देनी पड़ेगी अब...." कहके स्नेहा बेड से उठ खड़ी हुई... स्नेहा को खड़ा होते देख शीना की दिल की धड़कने तेज़ होने लगी और उसके मन में हज़ार ख़याल दौड़ने लगे... स्नेहा धीरे से शीना की तरफ झुकी और अपने होंठ शीना के होंठों की तरफ ले गयी.... डर के मारे शीना ने आँखें बंद कर ली....वो आने वाले पल के बारे में सोच के एग्ज़ाइट्मेंट के साथ साथ डरने भी लगी थी... उसकी बंद आँखें देख स्नेहा की हल्की सी हँसी छूट गयी




"ह्म्म्म ... मेरी ननद रानी, सब होगा, पर धीरे धीरे.. फिलहाल सो जाओ.. गुड नाइट.." स्नेहा ने हल्के से उसे कहा और वो अपना बाथरोब पहेन के बाहर निकलने लगी




शीना ने आँखें खोल के चैन की साँस ली, पर उसे अपनी इस हरकत पे काफ़ी घिन होने लगी...जाते जाते स्नेहा के शब्द एक बार फिर उसके कानो में गूंजने लगे.."सब होगा, पर धीरे धीरे....." यह सोच के शीना फिर ख़यालों में खोने लगी के तभी उसकी नज़र बेड के पास वाली टेबल पे पड़े मोबाइल पे गयी...




"यह तो भाभी का फोन है.." शीना ने खुद से कहा और स्नेहा का फोन उठा लिया.. फोन लॉक तो था पर स्वाइप करने से अनलॉक हो गया.. जैसे ही फोन अनलॉक हुआ और शीना की नज़रें स्क्रीन पे पड़ी, उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी...
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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स्नेहा के मोबाइल को स्वाइप करके शीना की नज़रें उसकी स्क्रीन पर ही टिकी रही.. स्क्रीन पे देख के वो पलक झपकाना तक भूल गयी थी.. रात के 1 बज रहे थे, कमरे मे एसी चल रहा था और शीना की चूत किसी भट्टी की तरह तप रही थी.. एक तो स्नेहा की बातों ने उसे गरम कर रखा था उपर से स्नेहा के जिस्म के दर्शन हुए, इस बात से उसकी चूत में चीटियाँ रेंगने लगी..शीना लेज़्बीयन नहीं थी, लेकिन मॉडर्न ख़यालात की एक लड़की थी जो अगर लेज़्बीयन ट्राइ करे तो उसे कोई अफ़सोस नहीं होगा.. उपर से स्नेहा के मोबाइल पे राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम परइन्सेस्ट स्टोरी का पेज खुला हुआ था.. वेब पेज देख के शीना को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन स्टोरी का टाइटल "कैसे मैने अपनी बहेन को चोदा" पढ़ के शीना की आँखें बाहर आ गयी... शीना को समझ नहीं आया वो क्या करे.. जब शीना को होश आया तब उसने सब से पहले जाके अपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और दौड़ के अपने बेड पे कूद के बैठ गयी.. एक कशमकश में शीना फँस गयी थी के वो स्नेहा का फोन उठा के देखे या नहीं... शीना को लगा कुछ न्यू पढ़ने के ट्राइ में क्या जाएगा, यह सोच के शीना ने स्नेहा का फोन उठाया और स्टोरी के खुले हुए पेज को पढ़ने लगी... जैसे जैसे शीना पेज पे लिखे शब्दों को पढ़ने लगी, वैसे वैसे उसकी तपती हुई चूत में से आग निकलने लगी.. एक पेज पढ़ के जब शीना की एग्ज़ाइट्मेंट बढ़ी, तभी शीना ने पीछे मूड के नहीं देखा और एक एक करके उस स्टोरी के सब पेजस पढ़ने लगी... अब आलम यह था कि शीना ने पढ़ते पढ़ते अपना वन पीस उतार फेंका था और अपनी ही चुत की गरमाइश में तपती हुई अपने कंबल को भी उतार दिया, बेड के बीच में शीना पूरी नंगी लेटी हुई एक हाथ से मोबाइल पकड़े हुई थी और एक हाथ से अपनी चूत सहला रही थी... जैसे जैसे शीना कहानी पढ़ती जाती, वैसे वैसे उसकी चूत रगड़ने की गति भी बढ़ जाती... शीना काफ़ी गरम हो चुकी थी.. जब उससे गर्मी बर्दाश्त नहीं हुई तब उसने मोबाइल को एक ओर फेंका और अपनी चूत को दोनो हाथों से सहलाने लगी, मसल्ने लगी अपनी उंगली अंदर बाहर करने लगी...




"अहहहहा एस अहहहहह उफ़फ्फ़ उम्म्म्मम अहहहहा....अहहा यॅ अहहहहाहा" शीना सिसकने लगी , उसकी आवाज़ धीमी नहीं थी, कमरे में खुल के वो अपनी मुनिया को रगड़ रही थी.... शीना के कमरे के कीहोल से बाहर स्नेहा खड़ी अंदर के नज़ारे को देख रही थी और मंद मंद मुस्कुराने लगी के उसकी चाल कामयाब होने वाली है, लेकिन अगले ही पल शीना के मूह से कुछ सुनके स्नेहा को एक पल के लिए मानो झटका लगा पर फिर वापस उसके मूह पे मुस्कुराहट बढ़ गयी



" अहहहहहः रिकी अहहाहा यस भैया अहहहहा फक मी ना अहहहहहाहा... ओह बेबी अहहहहहाः...... यस आइ म कमिंग भैया आआहह.. आआहहा ओह..." चीखते हुए शीना के पर अकड़ गयी और वो झड़ने लगी... आज शीना को खुद भी यकीन नहीं हुआ कि उसके दिल की बात उसके ज़बान पे आ गयी... रिकी के नाम से झड़ने के बाद शीना नंगी ही बेड पर लेट गयी और न्यू ईयर की रात के बारे में सोचने लगी जब उसने अंधेरे में रिकी के होंठों को चूमा था.. वो पहली बार था कि शीना ने रिकी के हाथों का स्पर्श अपने जिस्म पे पाया था.. रिकी के होंठों से अपने होंठों का मिलना, जैसे ही उसे याद आया, उसकी चूत फिर से कसमसाने लगी और एक बार फिर वो अपनी चूत को सहलाने लगी....




"उम्म्म्म भैया.... आइ लव यू आ लॉट.... आहह... यूआर सो सेक्सी अहहहः.... प्लीज़ मॅरी मी ना भैया आ अहहहाहा... यॅ भैया अहहहाहा. ऐसे ही मेरी चूत रागडो ना अहहहाहा... दिन रात मुझे उूउउइ अहहहहा आपके नीचे रखना आहहहा.. मेक लव टू मी अहहहा... उम्म्म्मफ़ अहहहहहा ओह्ह्ह ईससस्स अहाहाआ मैं आ रही हूँ भैया अहहहः अहहहः..." शीना की चीख फिर निकली और वो फिर एक बार झाड़ गयी.... झड़ने के बाद शीना ने स्नेहा के फोन को लॉक करके फिर अपने ड्रॉयर में रखा और अपना फोन निकाल के उसमे रिकी के फोटो को देखने लगी... स्नेहा अभी तक बाहर खड़े की होल से झाँक रही थी कि शायद उसे कुछ और भी सुनने मिल जाए...




रिकी के फोटो को देखते देखते शीना जाने कहाँ खो गयी....बस एक टक रिकी के फोटो को निहारने लगी.. ज़ूम कर के कभी उसके होंठ देखती तो कभी उसकी आँखें तो कभी उसके बाइसेप्स... शीना ने फोन को अपने होंठों के पास किया और रिकी के फोटो को चूमने लगी...




"अब कुछ दिन में फिर तुम दूर चले जाओगे मुझसे... मैं क्या करूँगी तुम्हारे बिना इधर... मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ रिकी, मैं यह भी जानती हूँ कि ज़माने की नज़रों में यह रिश्ता सॉफ नहीं है, पर मैं क्या करूँ... मैं जब भी तुमको देखती हूँ बस मेरा दिल तुम्हारे साथ ही रहने के लिए आवाज़ देता है, मेरी साँसें अब तुम्हारी ही हैं.... लव यू आ लॉट रिकी भाई...." शीना ने एक बार फिर रिकी के फोटो को चूमा और बत्ती बुझा के सोने लगी... बाहर खड़ी स्नेहा ने यह सब देखा और कुछ कुछ बातें ही सुन पाई.. लेकिन उसको यह पता चल गया था कि शीना को रिकी से प्यार है..




"अब तो हमारा काम और भी आसान हो जाएगा... " स्नेहा ने खुद से धीरे से कहा और वहाँ से अपने कमरे की तरफ प्रस्थान कर ही रही थी, कि अचानक उसके दिमाग़ में कुछ आया और वो वापस पलटी, लेकिन इस बार शीना के कमरे की तरफ नहीं बल्कि रिकी के कमरे की तरफ.. धीरे धीरे कर स्नेहा रिकी के कमरे की तरफ बढ़ी और बाहर जाके खड़ी हो गयी कुछ देर तक... जैसे ही स्नेहा कीहोल के पास झुकने वाली थी, कि तभी ही कमरे का दरवाज़ा खुला और रिकी आँख मल्ता बाहर आया.. रिकी के ऐसे अचानक आने से स्नेहा थोड़ी डर गयी और दो कदम पीछे हो गयी.. रिकी ने जब आँखें अच्छी तरह खोली तो स्नेहा उसके सामने खड़ी थी जिसको देख वो भी चौंका




"भाभी.. आप यहाँ, इतनी रात को.. सब ठीक है ना..." रिकी ने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा




"नहीं रिकी, सब ठीक है... आउह्ह त्त तुउत तुउंम्म तुम.. कैसे उठे" स्नेहा ने अटक अटक के कहा




"भाभी मेरी तो नींद खुल गयी थी कि तभी मेरी नज़र दरवाज़े पे पड़ रही परछाई की तरफ गयी, तो मैं खुद उठके आ गया" रिकी ने जवाब में कहा




"ओह... हान्ं.. कुछ नहीं, गुड नाइट.." कहके स्नेहा बिना दूसरा कुछ कहे वहीं से भाग गयी.. स्नेहा ने अपने कमरे की तरफ जल्दी जल्दी कदम बढ़ाए और एक ही पल में रिकी की नज़रों के सामने से गायब हो गयी.... रिकी इतनी रात गये कुछ सोचने के मूड में नहीं था, दिन का अगर कोई और वक़्त होता तो वो ज़रूर इस अजीब बात के बारे में सोचता, लेकिन रात के ऑलमोस्ट 2 बजे वो कुछ भी नहीं सोचना चाहता था... लेकिन अभी नींद भी तो खुल गयी, अब क्या करें... रिकी ने खुद से कहा और फ्लोर की कामन बाल्कनी के पास जाके खड़ा हुआ और पहाड़ों की ठंडी बहती हवा को महसूस करके खुश होने लगा... ऐसा मौसम अक्सर रिकी को भाता था, रिकी को गर्मियों से सख़्त नफ़रत थी, तभी तो वो इंडिया हमेशा नवेंबर दिसंबर आता जब मौसम खुश नुमा हो.. और बाकिके महीने लंडन की बारिश और सर्द हवाओं में गुज़ारता...




"अब क्या करें...." रिकी ने खुद से कहा और अपने आस पास देखने लगा के कोई आस पास खड़ा तो नहीं... इधर उधर नज़र घुमा के जब उसे इतमीनान हो गया के वहाँ उसके अलावा कोई नहीं, तो रिकी धीरे से अपने कमरे में गया और अपनी फेवोवरिट ब्रांड "बेनसन आंड हेड्जस" की सिगरेट का पॅकेट लेके आया और सुलघाने लगा... रिकी सिगरेट तो लेता था, लेकिन घर वालों के आगे उसकी इमेज अच्छी थी इसलिए उनके सामने स्मोकिंग, ड्रिंकिंग जैसी कोई बात नई... वैसे रिकी भी इन मामलों में विक्रम या अमर से कम नहीं था, लेकिन उसकी यह बात अच्छी थी कि वो अपनी हद जानता था और उसे अपने यह काम छुपाने भी आते थे... इसलिए सिगरेट जलाने से पहले उसने फिर इधर उधर नज़र घुमाई और आराम से स्मोकिंग करने लगा... इतनी सर्द हवा में उसको सिगरेट सुलगाने का मज़ा आ रहा था... रिकी बाल्कनी ग्रिल के सहारे खड़ा बाहर के नज़ारे में इतना खो गया था कि उसे ध्यान ही नहीं रहा कि पिछले 5 मिनट से कोई उसके पीछे खड़ा है... रिकी की तरफ से कोई रियेक्शन ना देख के दो हाथ उसके कंधों की तरफ बढ़ने लगे जैसे कि उसे धक्का देने की कोशिश हो.. वो हाथ जब रिकी के कंधों पे पड़े रिकी डर के मूड गया और उसका चेहरा पूरा पसीने से भीग गया...




"भैया... क्या हुआ इतना पसीना क्यूँ.." पीछे खड़ी शीना ने अपने रुमाल से रिकी के माथे का पसीना पोछते हुए कहा, लेकिन रिकी की साँसें अभी भी काफ़ी तेज़ चल रही थी, वो अब तक डरा हुआ था.. ऐसा रिकी के साथ अक्सर होता, जब भी वो किसी चीज़ के बारे में सोचते हुए खो जाता और कोई उसे पीछे से आके हाथ लगाता, तब रिकी डर जाता... उसके सभी दोस्त यह जानते थे इसलिए कभी रिकी को डिस्टर्ब नहीं करते जब वो कहीं या किसी सोच में खोया हुआ होता...


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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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"ओह.. तो सिगरेट..." शीना ने रिकी के हाथ से सिगरेट छीनते हुए कहा



"माँ को नही बताना प्लीज़..." रिकी ने धीरे से कहा



"ऑफ कोर्स नही भैया... मुझे भी दो ना एक, काफ़ी दिन से नहीं ली है.." शीने ने रिकी के सामने खड़े होके कहा.. रिकी ग्रिल के भरोसे सामने बाहर की तरफ देख रहा था और शीना ठीक उल्टे होके पेर ग्रिल पे किए रिकी के चेहरे पे देख रही थी... रिकी ने कुछ रिएक्ट नहीं किया और शीना को भी उसकी सिगरेट दे दी... दोनो भाई बहेन जानते थे कि कौनसी चीज़ कब और कितनी लिमिट में करनी चाहिए. इसलिए दोनो आराम से बातें कर रहे थे और सिगरेट के कश पे कश लगाए जा रहे थे... सर्द हवा में रिकी के साथ सिगरेट पीके शीना बहुत रोमांचित हो रही थी.. ठंडी ठंडी हवा, सिगरेट का धुआँ और सामने खड़े महबूब के जिस्म से आती उसकी महक.. शीना ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा भी टाइम वो रिकी के साथ बिता पाएगी....




"क्या हुआ.... कुछ तो बोलो, कब से मैं बोले जा रहा हूँ.." रिकी ने शीना के ध्यान में भंग डालते हुए कहा




"भैया, आप लंडन नही जाओ ना.. मैं यहाँ बहुत अकेली हो जाती हूँ प्लीज़..." शीना ने अचानक भावुक होके कहा और रिकी से गले लग गयी



"अरे.. क्या हुआ अचानक स्वीटहार्ट... आज इतना प्यार क्यूँ भाई पे... कुछ चाहिए क्या लंडन से...." कहके रिकी ने शीना को अलग किया लेकिन उससे दूर नहीं हुआ, बल्कि उसे सट के खड़ा हो गया और दोनो भाई बहेन अब बाल्कनी के बाहर ही देख रहे थे... शीना कुछ देर तक खामोश रही, लेकिन फिर सिगरेट का कश खीचते हुए बोली




"नोट दट भाई.. बट आप होते हो तो लगता है कोई है जिसके साथ मैं सब कुछ शेअर कर सकती हूँ, लेकिन आप के जाने के बाद फिर अकेली.. पापा और भैया पूरा दिन काम में होते हैं, मम्मी और भाभी के अलग तेवर देखो.. यह सब देख के मैं अब थक गयी हूँ..पूरा दिन खुद को बिज़ी रखने के लिए फ्रेंड्स के साथ घूमती रहूं, इसके अलावा कुछ करती ही नहीं हूँ.. अब आप बताओ, ऐसे में मैं क्या करूँ..." कहके शीना ने फिर रिकी की तरफ हाथ बढ़ाया और अपने लिए दूसरी सिगरेट सुलघा ली




"शीना, तुम आगे क्यूँ नहीं पढ़ाई करती, मतलब बॅच्लर्स तो तुमने किया है, तो मास्टर्स भी कर लो.. वैसे भी शादी वादी का प्रेशर तो कुछ है नहीं तुम्हारे उपर, और अगर वो कभी आया भी तो मैं डॅड से बात कर लूँगा..." रिकी ने भी अपने लिए दूसरी सिगरेट सुलघा ली...





रिकी की बात में दम तो था और शीना के लिए इससे अच्छा मौका नहीं हो सकता था कि वो रिकी के साथ टाइम स्पेंड करे सबसे दूर और बिना किसी डिस्टर्बेन्स के.. लेकिन फिर भी शीना को पता नहीं कौनसी बात डिस्टर्ब कर रही थी के वो इस प्लान के लिए भी नहीं मानी...




"नही भैया, मैं नहीं आउन्गि वहाँ.. आप ही रहो ना इधर, आप यहाँ कंटिन्यू करो अपनी स्टडीस... नतिंग लाइक आमची मुंबई.. राइट" कहके शीना ने रिकी को हाई फाइ का इशारा किया




दोनो भाई बहेन दो घंटे तक एक दूसरे को कन्विन्स करते रहे लेकिन दोनो अपनी बातों पे अड़े रहे और देखते देखते सिगरेट के पॅकेट के साथ 4 कप कॉफी भी ख़तम कर चुके थे.. दोनो ने ढेर सारी बातें की और दोनो में से किसी को वक़्त का होश नहीं रहा.. यह पहली बार था कि जब दोनो ने घंटों एक दूसरे के दिल की बातें जानी हो.. ऐसा नहीं था कि यह दोनो पहली बार बात कर रहे थे, जब कभी भी शीना को किसी अड्वाइज़ की ज़रूरत पड़ती तो वो अपने माँ बाप के बदले रिकी की सलाह लेती.. शीना के लिए रिकी एक शांत ठहरे पानी जैसा था, जो स्थिर था और उसके पास जाने से किसी को ख़तरा नहीं था, लेकिन वो यह भी जानती थी कि पानी जितना शांत होता है उतना ही गहरा भी होता है.. इसलिए जब भी रिकी लंडन से शीना को दो दिन तक कॉल नहीं करता तब वो सामने से कॉल करती और उससे कुरेद कुरेद के बातें पूछती.. अभी भी दो घंटे में जब भी दोनो के बीच कुछ खामोशी रहती तो रिकी किसी सोच में डूब जाता..




"भाई, एक बात बताओ, पर सच बताना प्लीज़ हाँ..." शीना ने दोनो के लिए एक एक सिगरेट सुलगाई और उसके हाथ में पकड़ा दी




"शीना, तुमसे मैं झूठ कब बोलता हूँ.. पूछो, क्या बात है.." रिकी ने घड़ी में समय देखते हुए कहा जिसमे अब सुबह के 4.30 होने वाले थे




"भाई, आप हमेशा किस सोच में खोए रहते हैं.. इतनी देर से देख रही हूँ आपका दिमाग़ रुकने का नाम ही नहीं ले रहा, देखते देखते आप ने 7 सिगरेट ख़तम की और साथ में मुझे भी दी.. ऐसे तो कभी नहीं हुआ, ना ही आप ने मुझे रोका.. अब सीधे सीधे बताओ क्या बात है, झूठ नही कहना.." शीना ने सिगरेट का एक कश लिया और उसके धुएँ का छल्ला बना के हवा मे उड़ाते हुए कहा... शीना की बात सुनकर रिकी फिर यह सोचने लगा कि अब इसे क्या कहे, ना तो वो शीना से झूठ बोल सकता था, और ना ही वो उसे सच बता सकता था.. कुछ देर खामोश रहने के बाद जैसे ही उसने कुछ कहना चाहा के तभी फिर शीना बोल पड़ी




"अब बोलो भी, मार्केट में भी आज खोए हुए थे , और जैसे ही मैने पीछे से आपको टच किया, आप डर गये...." शीना ने बीती शाम की बात रिकी से कही...



"शीना.. आज एक अजीब हादसा हुआ मेरे साथ मार्केट में..." रिकी ने शीना की आँखों में देखते हुए उसे कहा और उसने फ़ैसला कर लिया कि शीना को वो अपना हमराज बनाएगा.. रिकी ने शीना को मार्केट में हुई बात के बारे में बताया. रिकी की बात सुन शीना डरने लगी, क्यूँ कि रिकी को मुंबई में कम लोग जानते थे, तो महाबालेश्वर में भला कोई कैसे जान सकता है... शीना भी रिकी की बात सुन पसीना पसीना होने लगी... उसने जल्दी से अपने और रिकी के लिए सिगरेट जलाई और रिकी की बाहों में समा गयी जैसे एक प्रेमिका अपने प्रेमी की बाहों में जाती है... बिना कुछ कहे, शीना धीरे धीरे रिकी के साथ आगे बढ़ने लगी और नीचे की सीढ़ियों की तरफ चलने लगी.. अभी सुबह के 5 बजे थे, लेकिन ठंड की वजह से अंधेरा काफ़ी था और स्नेहा और सुहासनी भी अपने कमरे से निकले नहीं थे... शीना और रिकी जैसे ही नीचे पहुँचे, शीना ने रिकी को सोफे पे बिठाया और खुद किचन की तरफ बढ़ गयी... करीब 15 मिनट बाद शीना अपने दोनो हाथों में कॉफी के कप और अपनी सिगर्रेट को मूह में दबाए रिकी की तरफ बढ़ी... सोफे पे बैठ के शीना ने अपनी सिगरेट ख़तम की और कॉफी पीने लगी... रिकी ने भी कुछ नहीं कहा, वो भी बस सिगरेट और कॉफी में खोया हुआ था...



"भाई... कोई ऐसा मज़ाक नहीं कर सकता, आइ मीन आपको यहाँ कोई जानता नहीं,यहाँ क्या, मुंबई में भी नहीं जानते काफ़ी लोग तो.. तो फिर यह कैसे हो सकता है..." शीना ने फाइनली सिगरेट का पॅकेट रिकी के हाथ से छीना और उसे अपने हाथ में ले लिया... " अब नो मोरे सिगरेट फॉर आ मंथ.." कहके शीना ने फिर रिकी की आँखों में जवाब पाने की उम्मीद से देखा

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जैसे जैसे वक़्त बढ़ रहा था, वैसे वैसे वातावरण और खुशनुमा होता जाता.. पहाड़ों के बीच से सूरज निकलता हुआ काफ़ी रोचक कर देता है देखने वाले को, लेकिन इस वक़्त रिकी बाल्कनी में खड़े अपनी सोच में ही डूबा हुआ था.. शीना तीसरा कॉफी का कप लाई और रिकी के साथ खड़ी होके बाहर के नज़ारे को देखने लगी.. सुबह के 7 बजे थे लेकिन हवा अब तक सर्द थी और सुहासनी और स्नेहा अब तक कमरे से बाहर नहीं आए थे... शीना आज के दिन के लिए काफ़ी खुश थी, वो हमेशा से रिकी के ज़्यादा करीब जाना चाहती थी, लेकिन बीती रात की बातें जो रिकी ने उसके साथ की, उससे शीना को यकीन हो गया कि रिकी के करीब वो पहले से ही है, तभी तो रिकी ने उसके साथ सब बातें शेअर की..



"अच्छा भाई.. एक बात तो आपने बताई नहीं मुझे.." शीना ने कॉफी का सीप लेते हुए कहा



"सब तो बता दिया, अब बाकी क्या रहा.. चलो पूछो देखें क्या है.." रिकी ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा



"भाई, आप की कोई गर्लफ्रेंड नहीं है लंडन में..." शीना ने काफ़ी ज़ोर दिया था गर्लफ्रेंड शब्द पे



"गर्लफ्रेंड नहीं.. लेकिन फ्रेंड्स हैं... इनफॅक्ट हमारा ग्रूप है और उसमे लड़कियाँ ज़्यादा हैं... काफ़ी मस्ती करते हैं, काफ़ी अच्छा वक़्त निकलता है उनके साथ... अब बस दो दिन और , फिर मैं वापस उन लोगों के पास पहुँच जाउन्गा..." रिकी ने कहके शीना की तरफ देखा जो खामोशी से उसके जवाब को सुन रही थी..



"नही, गर्लफ्रेंड है कि नहीं...." शीना ने फिर अपना सर झटक के कहा



"कहा तो फ्रेंड्स हैं, और लड़कियाँ हैं.. तो गर्लफ्रेंड्स हुई ना.." रिकी ने फिर हँस के कहा... रिकी जानता था कि शीना हमेशा से उसके बारे में पस्सेसिव रही है, रिकी जब भी घर आता, शीना की कोई ना कोई फरन्ड रिकी से मिलने को बोलती.. शीना हमेशा एक कवच की तरह थी, कम से कम लड़कियों के मामले में तो यह बात सही थी...



"भाई, मेरा मतलब है कि लवर है या नहीं.." लवर वर्ड पे शीना ने फिर से ज़ोर डालके कहा



"ओह... ऐसा बोल ना, नही.. आइ आम नोट डेटिंग एनिवन... वैसे क्यूँ पूछ रही है तू.." रिकी ने शीना के सर पे हाथ फिरा के कहा



"नहीं भाई.. ऐसे ही, आंड दूर ही रहना लड़कियों से समझे... फिर मुझे नहीं कहना कि मैने वॉर्न नहीं किया.." शीना ने रिकी को उंगली दिखा के कहा




"अरे तुम दोनो उठ गये..." सुहसनी ने पीछे से आवाज़ देते हुए कहा,




"हां माँ, बस अभी 20 मिनट हुए... कॉफी पी रहे थे.." शीना ने झूठ कहा और फिर कुछ देर तक इधर उधर की बातें करके सुहासनी फ्रेश होने चली गयी... सुहासनी के जाते ही




"चलो, हम भी फ्रेश होते हैं.. नही तो भाभी आ जाएगी यार...." रिकी ने शीना से कहा




"भाभी आ जाएगी तो..." शीना ने रिकी से खड़े रहने का इशारा करके कहा




"कुछ नहीं, बट आइ डोंट फील कॉन्फोर्टब्ले टॉकिंग विद हेर यार... मतलब, कुछ समझ नहीं आता, शी ईज़ वेरी.... वेरी....." रिकी को आगे का शब्द नहीं मिल रहा था




"स्ट्रेंज.. आइ नो...." शीना ने उसकी अधूरी लाइन को पूरा किया और अपने कमरे में जाने लगी... रिकी कुछ देर उधर ही खड़े रहके फिर उस काग़ज़ के बारे में सोचने लगा, फिर जब उसके दिमाग़ में कुछ क्लिक नही हुआ तो वहाँ से निकल के अपने रूम की ओर बढ़ गया....




उधर चेन्नई पहुँचते ही विक्रम ने इरीटा ग्रांड चोला में चेक इन करके अपने नेटवर्क के सभी बुक्कीस का वेट करने लगा... जैसे जैसे दिन ढलता गया वैसे वैसे उसके साथी बुक्की उससे मिलने पहुँचे.. सब के आ जाने बाद खाने का और दारू का दौर चालू हुआ और साथ ही आइपीएल के शेड्यूल की बातें..




"हां तो इस बार कौन जीतेगा,.." विक्रम ने काम की बात चालू की




"यह आप पूछ क्यूँ रहे हैं, आप कहते हैं वो जीत जाएगा, वैसे भी बीसीसीआइ का बाप है अपने साथ" एक बुक्की ने उसको जवाब दिया




"इस बार काम थोड़ा लो रहके करना है, काफ़ी बदलाव आने वाले हैं वर्किंग कमेटी और बीसीसीआइ में... और हां, यह रहे तुम सब लोगों के लिए फ़ोन.. हर एक फोन पे सब का नाम लिखा हुआ है, वो ले लो.. सब के नंबर्स रोमिंग पे हैं, मतलब मुंबई वाला पुणे का नंबर इस्तेमाल करेगा.. इससे थोड़ी सेफ्टी रहेगी हमारे लिए..." विक्रम ने सब को फोन्स पकड़ाते हुए कहा.. फोन्स लेके सब लोग देख ही रहे थे कि तभी विक्रम के रूम का दरवाज़ा नॉक हुआ.. इस तरह अचानक दरवाज़ा खटकने की आवाज़ से सब लोग एक बार सकपका गये, लेकिन फिर जब उन्होने अपनी घड़ी देखी तब उन्हे अंदाज़ा हो गया कि यह कौन हो सकता है
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