वक्त का तमाशा

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jay
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Re: वक्त का तमाशा

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स्नेहा के मोबाइल को स्वाइप करके शीना की नज़रें उसकी स्क्रीन पर ही टिकी रही.. स्क्रीन पे देख के वो पलक झपकाना तक भूल गयी थी.. रात के 1 बज रहे थे, कमरे मे एसी चल रहा था और शीना की चूत किसी भट्टी की तरह तप रही थी.. एक तो स्नेहा की बातों ने उसे गरम कर रखा था उपर से स्नेहा के जिस्म के दर्शन हुए, इस बात से उसकी चूत में चीटियाँ रेंगने लगी..शीना लेज़्बीयन नहीं थी, लेकिन मॉडर्न ख़यालात की एक लड़की थी जो अगर लेज़्बीयन ट्राइ करे तो उसे कोई अफ़सोस नहीं होगा.. उपर से स्नेहा के मोबाइल पे राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम परइन्सेस्ट स्टोरी का पेज खुला हुआ था.. वेब पेज देख के शीना को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन स्टोरी का टाइटल "कैसे मैने अपनी बहेन को चोदा" पढ़ के शीना की आँखें बाहर आ गयी... शीना को समझ नहीं आया वो क्या करे.. जब शीना को होश आया तब उसने सब से पहले जाके अपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और दौड़ के अपने बेड पे कूद के बैठ गयी.. एक कशमकश में शीना फँस गयी थी के वो स्नेहा का फोन उठा के देखे या नहीं... शीना को लगा कुछ न्यू पढ़ने के ट्राइ में क्या जाएगा, यह सोच के शीना ने स्नेहा का फोन उठाया और स्टोरी के खुले हुए पेज को पढ़ने लगी... जैसे जैसे शीना पेज पे लिखे शब्दों को पढ़ने लगी, वैसे वैसे उसकी तपती हुई चूत में से आग निकलने लगी.. एक पेज पढ़ के जब शीना की एग्ज़ाइट्मेंट बढ़ी, तभी शीना ने पीछे मूड के नहीं देखा और एक एक करके उस स्टोरी के सब पेजस पढ़ने लगी... अब आलम यह था कि शीना ने पढ़ते पढ़ते अपना वन पीस उतार फेंका था और अपनी ही चुत की गरमाइश में तपती हुई अपने कंबल को भी उतार दिया, बेड के बीच में शीना पूरी नंगी लेटी हुई एक हाथ से मोबाइल पकड़े हुई थी और एक हाथ से अपनी चूत सहला रही थी... जैसे जैसे शीना कहानी पढ़ती जाती, वैसे वैसे उसकी चूत रगड़ने की गति भी बढ़ जाती... शीना काफ़ी गरम हो चुकी थी.. जब उससे गर्मी बर्दाश्त नहीं हुई तब उसने मोबाइल को एक ओर फेंका और अपनी चूत को दोनो हाथों से सहलाने लगी, मसल्ने लगी अपनी उंगली अंदर बाहर करने लगी...




"अहहहहा एस अहहहहह उफ़फ्फ़ उम्म्म्मम अहहहहा....अहहा यॅ अहहहहाहा" शीना सिसकने लगी , उसकी आवाज़ धीमी नहीं थी, कमरे में खुल के वो अपनी मुनिया को रगड़ रही थी.... शीना के कमरे के कीहोल से बाहर स्नेहा खड़ी अंदर के नज़ारे को देख रही थी और मंद मंद मुस्कुराने लगी के उसकी चाल कामयाब होने वाली है, लेकिन अगले ही पल शीना के मूह से कुछ सुनके स्नेहा को एक पल के लिए मानो झटका लगा पर फिर वापस उसके मूह पे मुस्कुराहट बढ़ गयी



" अहहहहहः रिकी अहहाहा यस भैया अहहहहा फक मी ना अहहहहहाहा... ओह बेबी अहहहहहाः...... यस आइ म कमिंग भैया आआहह.. आआहहा ओह..." चीखते हुए शीना के पर अकड़ गयी और वो झड़ने लगी... आज शीना को खुद भी यकीन नहीं हुआ कि उसके दिल की बात उसके ज़बान पे आ गयी... रिकी के नाम से झड़ने के बाद शीना नंगी ही बेड पर लेट गयी और न्यू ईयर की रात के बारे में सोचने लगी जब उसने अंधेरे में रिकी के होंठों को चूमा था.. वो पहली बार था कि शीना ने रिकी के हाथों का स्पर्श अपने जिस्म पे पाया था.. रिकी के होंठों से अपने होंठों का मिलना, जैसे ही उसे याद आया, उसकी चूत फिर से कसमसाने लगी और एक बार फिर वो अपनी चूत को सहलाने लगी....




"उम्म्म्म भैया.... आइ लव यू आ लॉट.... आहह... यूआर सो सेक्सी अहहहः.... प्लीज़ मॅरी मी ना भैया आ अहहहाहा... यॅ भैया अहहहाहा. ऐसे ही मेरी चूत रागडो ना अहहहाहा... दिन रात मुझे उूउउइ अहहहहा आपके नीचे रखना आहहहा.. मेक लव टू मी अहहहा... उम्म्म्मफ़ अहहहहहा ओह्ह्ह ईससस्स अहाहाआ मैं आ रही हूँ भैया अहहहः अहहहः..." शीना की चीख फिर निकली और वो फिर एक बार झाड़ गयी.... झड़ने के बाद शीना ने स्नेहा के फोन को लॉक करके फिर अपने ड्रॉयर में रखा और अपना फोन निकाल के उसमे रिकी के फोटो को देखने लगी... स्नेहा अभी तक बाहर खड़े की होल से झाँक रही थी कि शायद उसे कुछ और भी सुनने मिल जाए...




रिकी के फोटो को देखते देखते शीना जाने कहाँ खो गयी....बस एक टक रिकी के फोटो को निहारने लगी.. ज़ूम कर के कभी उसके होंठ देखती तो कभी उसकी आँखें तो कभी उसके बाइसेप्स... शीना ने फोन को अपने होंठों के पास किया और रिकी के फोटो को चूमने लगी...




"अब कुछ दिन में फिर तुम दूर चले जाओगे मुझसे... मैं क्या करूँगी तुम्हारे बिना इधर... मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ रिकी, मैं यह भी जानती हूँ कि ज़माने की नज़रों में यह रिश्ता सॉफ नहीं है, पर मैं क्या करूँ... मैं जब भी तुमको देखती हूँ बस मेरा दिल तुम्हारे साथ ही रहने के लिए आवाज़ देता है, मेरी साँसें अब तुम्हारी ही हैं.... लव यू आ लॉट रिकी भाई...." शीना ने एक बार फिर रिकी के फोटो को चूमा और बत्ती बुझा के सोने लगी... बाहर खड़ी स्नेहा ने यह सब देखा और कुछ कुछ बातें ही सुन पाई.. लेकिन उसको यह पता चल गया था कि शीना को रिकी से प्यार है..




"अब तो हमारा काम और भी आसान हो जाएगा... " स्नेहा ने खुद से धीरे से कहा और वहाँ से अपने कमरे की तरफ प्रस्थान कर ही रही थी, कि अचानक उसके दिमाग़ में कुछ आया और वो वापस पलटी, लेकिन इस बार शीना के कमरे की तरफ नहीं बल्कि रिकी के कमरे की तरफ.. धीरे धीरे कर स्नेहा रिकी के कमरे की तरफ बढ़ी और बाहर जाके खड़ी हो गयी कुछ देर तक... जैसे ही स्नेहा कीहोल के पास झुकने वाली थी, कि तभी ही कमरे का दरवाज़ा खुला और रिकी आँख मल्ता बाहर आया.. रिकी के ऐसे अचानक आने से स्नेहा थोड़ी डर गयी और दो कदम पीछे हो गयी.. रिकी ने जब आँखें अच्छी तरह खोली तो स्नेहा उसके सामने खड़ी थी जिसको देख वो भी चौंका




"भाभी.. आप यहाँ, इतनी रात को.. सब ठीक है ना..." रिकी ने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा




"नहीं रिकी, सब ठीक है... आउह्ह त्त तुउत तुउंम्म तुम.. कैसे उठे" स्नेहा ने अटक अटक के कहा




"भाभी मेरी तो नींद खुल गयी थी कि तभी मेरी नज़र दरवाज़े पे पड़ रही परछाई की तरफ गयी, तो मैं खुद उठके आ गया" रिकी ने जवाब में कहा




"ओह... हान्ं.. कुछ नहीं, गुड नाइट.." कहके स्नेहा बिना दूसरा कुछ कहे वहीं से भाग गयी.. स्नेहा ने अपने कमरे की तरफ जल्दी जल्दी कदम बढ़ाए और एक ही पल में रिकी की नज़रों के सामने से गायब हो गयी.... रिकी इतनी रात गये कुछ सोचने के मूड में नहीं था, दिन का अगर कोई और वक़्त होता तो वो ज़रूर इस अजीब बात के बारे में सोचता, लेकिन रात के ऑलमोस्ट 2 बजे वो कुछ भी नहीं सोचना चाहता था... लेकिन अभी नींद भी तो खुल गयी, अब क्या करें... रिकी ने खुद से कहा और फ्लोर की कामन बाल्कनी के पास जाके खड़ा हुआ और पहाड़ों की ठंडी बहती हवा को महसूस करके खुश होने लगा... ऐसा मौसम अक्सर रिकी को भाता था, रिकी को गर्मियों से सख़्त नफ़रत थी, तभी तो वो इंडिया हमेशा नवेंबर दिसंबर आता जब मौसम खुश नुमा हो.. और बाकिके महीने लंडन की बारिश और सर्द हवाओं में गुज़ारता...




"अब क्या करें...." रिकी ने खुद से कहा और अपने आस पास देखने लगा के कोई आस पास खड़ा तो नहीं... इधर उधर नज़र घुमा के जब उसे इतमीनान हो गया के वहाँ उसके अलावा कोई नहीं, तो रिकी धीरे से अपने कमरे में गया और अपनी फेवोवरिट ब्रांड "बेनसन आंड हेड्जस" की सिगरेट का पॅकेट लेके आया और सुलघाने लगा... रिकी सिगरेट तो लेता था, लेकिन घर वालों के आगे उसकी इमेज अच्छी थी इसलिए उनके सामने स्मोकिंग, ड्रिंकिंग जैसी कोई बात नई... वैसे रिकी भी इन मामलों में विक्रम या अमर से कम नहीं था, लेकिन उसकी यह बात अच्छी थी कि वो अपनी हद जानता था और उसे अपने यह काम छुपाने भी आते थे... इसलिए सिगरेट जलाने से पहले उसने फिर इधर उधर नज़र घुमाई और आराम से स्मोकिंग करने लगा... इतनी सर्द हवा में उसको सिगरेट सुलगाने का मज़ा आ रहा था... रिकी बाल्कनी ग्रिल के सहारे खड़ा बाहर के नज़ारे में इतना खो गया था कि उसे ध्यान ही नहीं रहा कि पिछले 5 मिनट से कोई उसके पीछे खड़ा है... रिकी की तरफ से कोई रियेक्शन ना देख के दो हाथ उसके कंधों की तरफ बढ़ने लगे जैसे कि उसे धक्का देने की कोशिश हो.. वो हाथ जब रिकी के कंधों पे पड़े रिकी डर के मूड गया और उसका चेहरा पूरा पसीने से भीग गया...




"भैया... क्या हुआ इतना पसीना क्यूँ.." पीछे खड़ी शीना ने अपने रुमाल से रिकी के माथे का पसीना पोछते हुए कहा, लेकिन रिकी की साँसें अभी भी काफ़ी तेज़ चल रही थी, वो अब तक डरा हुआ था.. ऐसा रिकी के साथ अक्सर होता, जब भी वो किसी चीज़ के बारे में सोचते हुए खो जाता और कोई उसे पीछे से आके हाथ लगाता, तब रिकी डर जाता... उसके सभी दोस्त यह जानते थे इसलिए कभी रिकी को डिस्टर्ब नहीं करते जब वो कहीं या किसी सोच में खोया हुआ होता...


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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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"ओह.. तो सिगरेट..." शीना ने रिकी के हाथ से सिगरेट छीनते हुए कहा



"माँ को नही बताना प्लीज़..." रिकी ने धीरे से कहा



"ऑफ कोर्स नही भैया... मुझे भी दो ना एक, काफ़ी दिन से नहीं ली है.." शीने ने रिकी के सामने खड़े होके कहा.. रिकी ग्रिल के भरोसे सामने बाहर की तरफ देख रहा था और शीना ठीक उल्टे होके पेर ग्रिल पे किए रिकी के चेहरे पे देख रही थी... रिकी ने कुछ रिएक्ट नहीं किया और शीना को भी उसकी सिगरेट दे दी... दोनो भाई बहेन जानते थे कि कौनसी चीज़ कब और कितनी लिमिट में करनी चाहिए. इसलिए दोनो आराम से बातें कर रहे थे और सिगरेट के कश पे कश लगाए जा रहे थे... सर्द हवा में रिकी के साथ सिगरेट पीके शीना बहुत रोमांचित हो रही थी.. ठंडी ठंडी हवा, सिगरेट का धुआँ और सामने खड़े महबूब के जिस्म से आती उसकी महक.. शीना ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा भी टाइम वो रिकी के साथ बिता पाएगी....




"क्या हुआ.... कुछ तो बोलो, कब से मैं बोले जा रहा हूँ.." रिकी ने शीना के ध्यान में भंग डालते हुए कहा




"भैया, आप लंडन नही जाओ ना.. मैं यहाँ बहुत अकेली हो जाती हूँ प्लीज़..." शीना ने अचानक भावुक होके कहा और रिकी से गले लग गयी



"अरे.. क्या हुआ अचानक स्वीटहार्ट... आज इतना प्यार क्यूँ भाई पे... कुछ चाहिए क्या लंडन से...." कहके रिकी ने शीना को अलग किया लेकिन उससे दूर नहीं हुआ, बल्कि उसे सट के खड़ा हो गया और दोनो भाई बहेन अब बाल्कनी के बाहर ही देख रहे थे... शीना कुछ देर तक खामोश रही, लेकिन फिर सिगरेट का कश खीचते हुए बोली




"नोट दट भाई.. बट आप होते हो तो लगता है कोई है जिसके साथ मैं सब कुछ शेअर कर सकती हूँ, लेकिन आप के जाने के बाद फिर अकेली.. पापा और भैया पूरा दिन काम में होते हैं, मम्मी और भाभी के अलग तेवर देखो.. यह सब देख के मैं अब थक गयी हूँ..पूरा दिन खुद को बिज़ी रखने के लिए फ्रेंड्स के साथ घूमती रहूं, इसके अलावा कुछ करती ही नहीं हूँ.. अब आप बताओ, ऐसे में मैं क्या करूँ..." कहके शीना ने फिर रिकी की तरफ हाथ बढ़ाया और अपने लिए दूसरी सिगरेट सुलघा ली




"शीना, तुम आगे क्यूँ नहीं पढ़ाई करती, मतलब बॅच्लर्स तो तुमने किया है, तो मास्टर्स भी कर लो.. वैसे भी शादी वादी का प्रेशर तो कुछ है नहीं तुम्हारे उपर, और अगर वो कभी आया भी तो मैं डॅड से बात कर लूँगा..." रिकी ने भी अपने लिए दूसरी सिगरेट सुलघा ली...





रिकी की बात में दम तो था और शीना के लिए इससे अच्छा मौका नहीं हो सकता था कि वो रिकी के साथ टाइम स्पेंड करे सबसे दूर और बिना किसी डिस्टर्बेन्स के.. लेकिन फिर भी शीना को पता नहीं कौनसी बात डिस्टर्ब कर रही थी के वो इस प्लान के लिए भी नहीं मानी...




"नही भैया, मैं नहीं आउन्गि वहाँ.. आप ही रहो ना इधर, आप यहाँ कंटिन्यू करो अपनी स्टडीस... नतिंग लाइक आमची मुंबई.. राइट" कहके शीना ने रिकी को हाई फाइ का इशारा किया




दोनो भाई बहेन दो घंटे तक एक दूसरे को कन्विन्स करते रहे लेकिन दोनो अपनी बातों पे अड़े रहे और देखते देखते सिगरेट के पॅकेट के साथ 4 कप कॉफी भी ख़तम कर चुके थे.. दोनो ने ढेर सारी बातें की और दोनो में से किसी को वक़्त का होश नहीं रहा.. यह पहली बार था कि जब दोनो ने घंटों एक दूसरे के दिल की बातें जानी हो.. ऐसा नहीं था कि यह दोनो पहली बार बात कर रहे थे, जब कभी भी शीना को किसी अड्वाइज़ की ज़रूरत पड़ती तो वो अपने माँ बाप के बदले रिकी की सलाह लेती.. शीना के लिए रिकी एक शांत ठहरे पानी जैसा था, जो स्थिर था और उसके पास जाने से किसी को ख़तरा नहीं था, लेकिन वो यह भी जानती थी कि पानी जितना शांत होता है उतना ही गहरा भी होता है.. इसलिए जब भी रिकी लंडन से शीना को दो दिन तक कॉल नहीं करता तब वो सामने से कॉल करती और उससे कुरेद कुरेद के बातें पूछती.. अभी भी दो घंटे में जब भी दोनो के बीच कुछ खामोशी रहती तो रिकी किसी सोच में डूब जाता..




"भाई, एक बात बताओ, पर सच बताना प्लीज़ हाँ..." शीना ने दोनो के लिए एक एक सिगरेट सुलगाई और उसके हाथ में पकड़ा दी




"शीना, तुमसे मैं झूठ कब बोलता हूँ.. पूछो, क्या बात है.." रिकी ने घड़ी में समय देखते हुए कहा जिसमे अब सुबह के 4.30 होने वाले थे




"भाई, आप हमेशा किस सोच में खोए रहते हैं.. इतनी देर से देख रही हूँ आपका दिमाग़ रुकने का नाम ही नहीं ले रहा, देखते देखते आप ने 7 सिगरेट ख़तम की और साथ में मुझे भी दी.. ऐसे तो कभी नहीं हुआ, ना ही आप ने मुझे रोका.. अब सीधे सीधे बताओ क्या बात है, झूठ नही कहना.." शीना ने सिगरेट का एक कश लिया और उसके धुएँ का छल्ला बना के हवा मे उड़ाते हुए कहा... शीना की बात सुनकर रिकी फिर यह सोचने लगा कि अब इसे क्या कहे, ना तो वो शीना से झूठ बोल सकता था, और ना ही वो उसे सच बता सकता था.. कुछ देर खामोश रहने के बाद जैसे ही उसने कुछ कहना चाहा के तभी फिर शीना बोल पड़ी




"अब बोलो भी, मार्केट में भी आज खोए हुए थे , और जैसे ही मैने पीछे से आपको टच किया, आप डर गये...." शीना ने बीती शाम की बात रिकी से कही...



"शीना.. आज एक अजीब हादसा हुआ मेरे साथ मार्केट में..." रिकी ने शीना की आँखों में देखते हुए उसे कहा और उसने फ़ैसला कर लिया कि शीना को वो अपना हमराज बनाएगा.. रिकी ने शीना को मार्केट में हुई बात के बारे में बताया. रिकी की बात सुन शीना डरने लगी, क्यूँ कि रिकी को मुंबई में कम लोग जानते थे, तो महाबालेश्वर में भला कोई कैसे जान सकता है... शीना भी रिकी की बात सुन पसीना पसीना होने लगी... उसने जल्दी से अपने और रिकी के लिए सिगरेट जलाई और रिकी की बाहों में समा गयी जैसे एक प्रेमिका अपने प्रेमी की बाहों में जाती है... बिना कुछ कहे, शीना धीरे धीरे रिकी के साथ आगे बढ़ने लगी और नीचे की सीढ़ियों की तरफ चलने लगी.. अभी सुबह के 5 बजे थे, लेकिन ठंड की वजह से अंधेरा काफ़ी था और स्नेहा और सुहासनी भी अपने कमरे से निकले नहीं थे... शीना और रिकी जैसे ही नीचे पहुँचे, शीना ने रिकी को सोफे पे बिठाया और खुद किचन की तरफ बढ़ गयी... करीब 15 मिनट बाद शीना अपने दोनो हाथों में कॉफी के कप और अपनी सिगर्रेट को मूह में दबाए रिकी की तरफ बढ़ी... सोफे पे बैठ के शीना ने अपनी सिगरेट ख़तम की और कॉफी पीने लगी... रिकी ने भी कुछ नहीं कहा, वो भी बस सिगरेट और कॉफी में खोया हुआ था...



"भाई... कोई ऐसा मज़ाक नहीं कर सकता, आइ मीन आपको यहाँ कोई जानता नहीं,यहाँ क्या, मुंबई में भी नहीं जानते काफ़ी लोग तो.. तो फिर यह कैसे हो सकता है..." शीना ने फाइनली सिगरेट का पॅकेट रिकी के हाथ से छीना और उसे अपने हाथ में ले लिया... " अब नो मोरे सिगरेट फॉर आ मंथ.." कहके शीना ने फिर रिकी की आँखों में जवाब पाने की उम्मीद से देखा

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जैसे जैसे वक़्त बढ़ रहा था, वैसे वैसे वातावरण और खुशनुमा होता जाता.. पहाड़ों के बीच से सूरज निकलता हुआ काफ़ी रोचक कर देता है देखने वाले को, लेकिन इस वक़्त रिकी बाल्कनी में खड़े अपनी सोच में ही डूबा हुआ था.. शीना तीसरा कॉफी का कप लाई और रिकी के साथ खड़ी होके बाहर के नज़ारे को देखने लगी.. सुबह के 7 बजे थे लेकिन हवा अब तक सर्द थी और सुहासनी और स्नेहा अब तक कमरे से बाहर नहीं आए थे... शीना आज के दिन के लिए काफ़ी खुश थी, वो हमेशा से रिकी के ज़्यादा करीब जाना चाहती थी, लेकिन बीती रात की बातें जो रिकी ने उसके साथ की, उससे शीना को यकीन हो गया कि रिकी के करीब वो पहले से ही है, तभी तो रिकी ने उसके साथ सब बातें शेअर की..



"अच्छा भाई.. एक बात तो आपने बताई नहीं मुझे.." शीना ने कॉफी का सीप लेते हुए कहा



"सब तो बता दिया, अब बाकी क्या रहा.. चलो पूछो देखें क्या है.." रिकी ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा



"भाई, आप की कोई गर्लफ्रेंड नहीं है लंडन में..." शीना ने काफ़ी ज़ोर दिया था गर्लफ्रेंड शब्द पे



"गर्लफ्रेंड नहीं.. लेकिन फ्रेंड्स हैं... इनफॅक्ट हमारा ग्रूप है और उसमे लड़कियाँ ज़्यादा हैं... काफ़ी मस्ती करते हैं, काफ़ी अच्छा वक़्त निकलता है उनके साथ... अब बस दो दिन और , फिर मैं वापस उन लोगों के पास पहुँच जाउन्गा..." रिकी ने कहके शीना की तरफ देखा जो खामोशी से उसके जवाब को सुन रही थी..



"नही, गर्लफ्रेंड है कि नहीं...." शीना ने फिर अपना सर झटक के कहा



"कहा तो फ्रेंड्स हैं, और लड़कियाँ हैं.. तो गर्लफ्रेंड्स हुई ना.." रिकी ने फिर हँस के कहा... रिकी जानता था कि शीना हमेशा से उसके बारे में पस्सेसिव रही है, रिकी जब भी घर आता, शीना की कोई ना कोई फरन्ड रिकी से मिलने को बोलती.. शीना हमेशा एक कवच की तरह थी, कम से कम लड़कियों के मामले में तो यह बात सही थी...



"भाई, मेरा मतलब है कि लवर है या नहीं.." लवर वर्ड पे शीना ने फिर से ज़ोर डालके कहा



"ओह... ऐसा बोल ना, नही.. आइ आम नोट डेटिंग एनिवन... वैसे क्यूँ पूछ रही है तू.." रिकी ने शीना के सर पे हाथ फिरा के कहा



"नहीं भाई.. ऐसे ही, आंड दूर ही रहना लड़कियों से समझे... फिर मुझे नहीं कहना कि मैने वॉर्न नहीं किया.." शीना ने रिकी को उंगली दिखा के कहा




"अरे तुम दोनो उठ गये..." सुहसनी ने पीछे से आवाज़ देते हुए कहा,




"हां माँ, बस अभी 20 मिनट हुए... कॉफी पी रहे थे.." शीना ने झूठ कहा और फिर कुछ देर तक इधर उधर की बातें करके सुहासनी फ्रेश होने चली गयी... सुहासनी के जाते ही




"चलो, हम भी फ्रेश होते हैं.. नही तो भाभी आ जाएगी यार...." रिकी ने शीना से कहा




"भाभी आ जाएगी तो..." शीना ने रिकी से खड़े रहने का इशारा करके कहा




"कुछ नहीं, बट आइ डोंट फील कॉन्फोर्टब्ले टॉकिंग विद हेर यार... मतलब, कुछ समझ नहीं आता, शी ईज़ वेरी.... वेरी....." रिकी को आगे का शब्द नहीं मिल रहा था




"स्ट्रेंज.. आइ नो...." शीना ने उसकी अधूरी लाइन को पूरा किया और अपने कमरे में जाने लगी... रिकी कुछ देर उधर ही खड़े रहके फिर उस काग़ज़ के बारे में सोचने लगा, फिर जब उसके दिमाग़ में कुछ क्लिक नही हुआ तो वहाँ से निकल के अपने रूम की ओर बढ़ गया....




उधर चेन्नई पहुँचते ही विक्रम ने इरीटा ग्रांड चोला में चेक इन करके अपने नेटवर्क के सभी बुक्कीस का वेट करने लगा... जैसे जैसे दिन ढलता गया वैसे वैसे उसके साथी बुक्की उससे मिलने पहुँचे.. सब के आ जाने बाद खाने का और दारू का दौर चालू हुआ और साथ ही आइपीएल के शेड्यूल की बातें..




"हां तो इस बार कौन जीतेगा,.." विक्रम ने काम की बात चालू की




"यह आप पूछ क्यूँ रहे हैं, आप कहते हैं वो जीत जाएगा, वैसे भी बीसीसीआइ का बाप है अपने साथ" एक बुक्की ने उसको जवाब दिया




"इस बार काम थोड़ा लो रहके करना है, काफ़ी बदलाव आने वाले हैं वर्किंग कमेटी और बीसीसीआइ में... और हां, यह रहे तुम सब लोगों के लिए फ़ोन.. हर एक फोन पे सब का नाम लिखा हुआ है, वो ले लो.. सब के नंबर्स रोमिंग पे हैं, मतलब मुंबई वाला पुणे का नंबर इस्तेमाल करेगा.. इससे थोड़ी सेफ्टी रहेगी हमारे लिए..." विक्रम ने सब को फोन्स पकड़ाते हुए कहा.. फोन्स लेके सब लोग देख ही रहे थे कि तभी विक्रम के रूम का दरवाज़ा नॉक हुआ.. इस तरह अचानक दरवाज़ा खटकने की आवाज़ से सब लोग एक बार सकपका गये, लेकिन फिर जब उन्होने अपनी घड़ी देखी तब उन्हे अंदाज़ा हो गया कि यह कौन हो सकता है
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Re: वक्त का तमाशा

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"मेरा कट इस बार दुगना चाहिए मुझे.." विक्रम के ठीक सामने बैठे शाकस ने उसकी आँखों में देख के कहा और साथ ही अपनी शराब की चुस्की लेने लगा.. बीसीसीआइ का बाप उसके सामने बैठा था, पिन स्ट्रिपेस सूट, बाल चप्पट बने हुए, आँखों पे चश्मा.. शकल से एक दम सीधा दिखने वाला आदमी, आज इंडियन क्रिकेट चला रहा था.. चला रहा था या उसका सौदा कर रहा था भी कह सकते हैं.. आज इंडियन क्रिकेट की हर चीज़ कमर्षियल थी, टेलएकास्ट राइट्स, प्लेयर आड्स, मर्चेनडाइज़.. जितने पॉपुलर खिलाड़ी, उतने ही पैसे मिलते बीसीसीआइ को.. लेकिन बीसीसीआइ के बाप को इतना पैसा भी बहुत कम लगने लगा.. आइपीएल एक मन की उपज आज महज़ एक सौदा बन गया था, टीम ओनर्स जितना बाप के करीब उतना ही उन्हे पैसा मिलता... षेडूल से लेके रिज़ल्ट तक, सब तय होता रहता.. खिलाड़ी महेज़ आक्टिंग करने आते फील्ड पे.. सभी इंटरनॅशनल खिलाड़ी जानते थे यह ड्रामा, लेकिन पैसों ने सब का मूह बाँध रखा था.. बीसीसीआइ की लॉबी आइसीसी में भी मज़बूत थी फिलहाल, जिस टीम के साथ इंडिया खेलती उसको भी पैसों का एक हिस्सा मिलता तो कोई कैसे मना करेगा...



"दुगना बहुत ज़्यादा है.. पिछले साल की फाइनल में हुआ नुकसान अब तक हम रिकवर नही कर पाए.. आपके बेटे ने तो हमे हरा ही दिया, अगर दुगना चाहिए तो वो नुकसान की भरपाई आप करेंगे या आपका बेटा ?" विक्रम का इशारा उसी की टीम के कॅप्टन की तरफ था.. दुनिया जानती थी कॅप्टन और बीसीसीआइ के बाप साथ में थे..



"आखरी वक़्त के बदलाव के ज़िम्मेदार हम नहीं हैं.. अगर डील डन है तो हां बोलो, अगर नहीं तो मुझे यहाँ वक़्त बर्बाद करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.." बीसीसीआइ के बाप ने अपना ग्लास ख़तम किया और फिर विक्रम के जवाब का इंतेज़ार करने लगा



"सब वेन्यूस, हर मॅच के प्लेयिंग 11, पिच कैसी बनेगी, कौन किस नंबर की टीशर्ट पहनेगा.. यह सब फ़ैसले मैं करूँगा, और मॅच के एक दिन पहले बता दिया जाएगा कि टॉस जीत के बॅटिंग करनी है या बोलिंग.. प्लेयिंग 11 में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए बिना मेरे कहे, और अगर कोई घायल है वो फिर भी खेलेगा फिर चाहे उसको बीच मॅच से निकाल दो.. इसके अलावा टीम ओनर्स से मेरी मुलाक़ात सीरीस के पहले.. सिर्फ़ उनके और मेरे बीच में.." अगर यह सब मंज़ूर है तो दुगना डन है, नहीं तो मेरा वक़्त भी ज़ाया ना करें आप..




"विक्रम, तुम शायद भूल रहे हो मैं कौन हूँ... मेरे सामने इतनी शर्त रखना ठीक बात नहीं.. अगर मैं ना कर दूं तो.." बीसीसीआइ के बाप ने फिर एक दूसरा जाम उठा लिया




हाः..विक्रम ने एक हरामी मुस्कान के साथ कहा " मुझे कोई फरक नहीं पड़ेगा, शायद आप भूल रहे हैं कुछ दिनो में बीसीसीआइ के एलेक्षन्स हैं, अगर हमारी मुलाक़ात के बारे में मीडीया या आपके विरोधी को पता लग गया तो ?"




"इससे तो तुम्हारा नुकसान भी होगा विक्रम, खोखली धमकी किसी और को देना.." सामने से जवाब आया




"खोखली धमकी नहीं, अपना मोबाइल चेक कीजिए आपको पता चल जाएगा.." विक्रम ने अपने मोबाइल से उसके मोबाइल पे एक MMएस भेजा... कुछ ही देर में जब वो म्मएस प्ले हुआ तो बीसीसीआइ का बाप हक्का बक्का रह गया.. उसके माथे पे शिकन बन गयी, पसीना बहने लगा... वीडियो में वो और विक्रम पिछले सेमी फाइनल की बातें कर रहे थे जिसमे उसकी आवाज़ और शकल क्लियर थी.. "तुम बोलो वो स्कोर होगा" यह लाइन उसके मूह से निकली हुई वीडियो में थी उसकी चिंता का कारण




"मैने पहले ही कहा था मैं खोखली धमकी नहीं देता.. अब मंज़ूर है या नहीं.." विक्रम ने जिस नंबर से म्ममस भेजा था उसका सिम कार्ड निकाल के तोड़ दिया और दूसरा सिम कार्ड लगा लिया.. उसके लिए यह आम बात थी, सिर्फ़ परिवार वाले ही जानते थे उसके पर्मनेंट नंबर.. उनके अलावा किसी को भी विक्रम से बात करनी होती तो या तो वो अमर के थ्रू करते या घर आके मिलते....




"इसमे तुम भी पकड़े जाओगे विक्रम..." फिर उसने धमकी दी, लेकिन आवाज़ इस बार दबी हुई थी




"इस देश में भेल से जल्दी बैल मिलती है , रही बात मेरी, मैं तो बुक्की हूँ छूट जाउन्गा बदनामी से कोई फ़र्क नही पड़ेगा.. लेकिन आपका क्या होगा, बीसीसीआइ के साथ साथ आइसीसी की चेर्मनशिप जो मिलने वाली है वो भी नहीं लगेगी.. इंटरनॅशनल लॉबी भी गँवा देंगे एक डोमेस्टिक लालच के चक्कर में.." विक्रम ने उसके सामने प्रस्ताव के काग़ज़ फेंकते हुए कहा... जैसे ही बीसीसीआइ के बाप ने काग़ज़ उठाए धीरे धीरे उसका डर एक गुस्से में बदलने लगा




"यह क्या है, दुगना देने के लिए तैयार थे, और अब यह. पिछले टाइम से आधा, " उसने काग़ज़ फेंकते हुए कहा




"गुस्सा नही करो, पहले मान जाते तो दुगना देता, अब मुझे वीडियो भेजने की मेहनत करवाई उसका पेनाल्टी है यह.. जो सब इन्फर्मेशन माँगी है वो चाहिए मुझे पिछले साल के आधे रेट पे.." विक्रम ने उसे अपना फोन दिखाते हुआ कहा...




बीसीसीआइ का बाप पहली बार दीवार के कोने पे आ गया था, ऐसा नहीं है के इससे पहले विक्रम और उसकी कभी पैसों पे लड़ाई नहीं हुई, लेकिन इस बार पता नहीं क्यूँ विक्रम ने उसे बिल्कुल बोलने का मौका नहीं दिया.. जब पेपर साइन हुए तब विक्रम फिर बोला




"आज की मुलाक़ात के वीडियोस भी हैं.. इसलिए ध्यान रखना.. पहली मॅच के पाँच दिन पहले सब डीटेल्स चाहिए, और शेड्यूल बनते ही पहली कॉपी मेरे पास आएगी.. अब आप जा सकते हैं.." विक्रम बीसीसीआइ के बाप को प्यार से गेट आउट बोलने लगा




"मुझे अच्छी तरह याद है, फाइनल में तो हमने बहुत जीता था, फिर कौन्से नुकसान की बात कर रहे थे आप.. " विक्रम के एक बुक्की ने उसे पूछा




"अगर तू यह समझता तो आज मेरी जगह पे होता, चलो निकलो काम करते हैं.." विक्रम ने कहा और एक एक कर सब लोग धीरे धीरे रूम से निकलने लगे.. सब के निकलते ही विक्रम ने भी अपना बॅग निकाला, कपड़े बदल के चेक आउट मारा और पुणे के लिए रवाना हो गया....





उधर रिकी अपनी माँ और बाकी लोगों के साथ मुंबई के लिए निकल ही रहा था के तभी स्नेहा का फोन आया.. नंबर देख के उसके चेहरे पे मुस्कान आ गयी...




"हेलो, हां जी कैसे हैं.." स्नेहा ने मुस्कुरा के कहा



"ओह... एक मिनिट आप मम्मी को बोल दीजिए तो ज़्यादा सही रहेगा...." कहके स्नेहा ने फोन सुहासनी को देने के लिए आगे किया



"कौन है... क्या हुआ" सुहासनी ने फोन को बिना हाथ लगाए पूछा




"यह हैं, कह रहे हैं कि पुणे उन्हे कुछ काम है और अकेले हैं तो बोर हो रहे हैं, इसलिए मुझे भी बुला रहे हैं.. मैने कहा आप मम्मी को बोल दीजिए" स्नेहा ने फिर फोन आगे करके कहा




"इसमे मैं क्या बात करूँ, तुम कर लो.. हम तुम्हे पुणे ड्रॉप कर देते हैं" सुहासनी ने गाड़ी में बैठ के कहा और स्नेहा भी अंदर बैठ गयी.. सब लोग पुणे की तरफ बढ़ने लगे.. गाड़ी चलाते वक़्त फिर से रिकी किन्ही ख़यालों में खो गया, सुहासनी आगे बैठे बैठे हल्की नींद में खोने लगी.. शीना और स्नेहा भी अपनी अपनी खिड़कियों से बाहर देख रहे थे. कहते हैं कि जब सफ़र शुरू होता है तो सब के मन बहुत खुश होते हैं और लोग उतने ही उत्साही होते हैं.. और सफ़र ख़तम होने लगे तो सब लोगों की उत्तेजना ठीक उसी स्पीड से नीचे भी आ जाती है.. अभी यहाँ भी यही हो रहा था, रिकी यह सोच रहा था वो लंडन जाए या नहीं.. क्यूँ कि महाबालेश्वर में हुई घटना ने उसके अंदर एक अजीब सी झिझक पैदा कर रखी थी.. क्यूँ की वो यह घटना किसी को बता भी नहीं सकता था और ना ही उसके बारे में आगे कुछ कर सकता था.. उपर से शीना ने भी उसको दुविधा में डाल रखा था... इसी कशमकश में गाड़ी पुणे के नज़दीक आ गयी... उधर स्नेहा के दिमाग़ में भी कुछ चल रहा था, लेकिन क्या.. शीना रिकी के बारे में सोच रही थी, उसके साथ बिताए हुए कुछ घंटे उसकी ज़िंदगी के सबसे यादगार लम्हे थे.. उसने कभी नहीं सोचा था कि वो रिकी के साथ इतना खुल के बात कर पाएगी कभी.. पर दिल ही दिल में वो सोच रही थी के काश रिकी लंडन ना जाए..

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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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jay
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Re: वक्त का तमाशा

Post by jay »



"चलिए भाभी, आपकी मंज़िल आ गयी... लेकिन भैया तो दिख नहीं रहे.." रिकी ने होटेल इस्टा के बाहर गाड़ी रोक के कहा, जो की पुणे कि विमान नगर एरिया में बना हुआ था..




"अभी ही उनका मसेज आया, थोड़ा टाइम लग जाएगा उनको, बट यहाँ रूम ऑलरेडी है तो मैं उपर जाती हूँ" स्नेहा ने गाड़ी से उतरते हुए कहा




"ओके भाभी, आप कहो तो हम वेट करें भैया के आने तक" शीना ने खिड़की का काँच नीचे उतार के कहा




"अरे नहीं, मैं उपर ही जा रही हूँ... यह भी आ जाएँगे.. " स्नेहा ने फिर कहा और फिर होटेल के अंदर बढ़ गयी और साथ ही रिकी भी मुंबई की तरफ निकल गया




स्नेहा ने होटेल जाके चेक इन किया और रूम की ओर बढ़ने लगी.. स्नेहा काफ़ी खुश लग रही थी... तीसरे फ्लोर पे जाके रूम नंबर 3324 के आगे स्नेहा खड़ी हुई और बेल बजा दी.. एक ही बेल में दरवाज़ा खुल गया



"उम्म्म.... कैसी है मेरी रानी.." अंदर से निकले शक्स ने स्नेहा को दरवाज़े पे खड़ा देख कहा

"तुम यहाँ तक आई कैसे, आइ मीन तुम्हारी सास ने पूछा नही कुछ" स्नेहा के प्रेमी ने उसे स्कॉच का ग्लास देते हुए कहा



"वो सब तुम मुझ पे छोड़ दो.. यह सोचना मेरा काम है.." स्नेहा ने उसके हाथ से ग्लास लेके कहा और अपने लिए एक सिगरेट भी जला दी...



"हम ठीक जा रहे हैं ना प्लॅनिंग में.. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं होगी.." प्रेम ने उसके पास बैठ के कहा



स्नेहा ने एक लंबा कश अंदर लिया और धुआँ उसके मूह पे छोड़ दिया.. अंधेरे कमरे में बस एक हल्की रोशनी थी जो टेबल लॅंप की थी, उपर से स्नेहा ने चेंज करके एक पतला डार्क ब्लू ईव्निंग गाउन पहना था जो उसके घुटनो तक भी नहीं आ रहा था, स्नेहा के सफेद शरीर पे डार्क कलर उफ्फान मचा रहा था, साँस लेती तो उसके गदराए चुचे उपर नीचे हिलते देख किसी की भी हलक सुख जाती.. स्नेहा को ऐसे देख प्रेम के लंड के अंदर जान आने लगी और वो उसे धीरे धीरे मसल्ने लगा जीन्स के उपर से ही... तकरीबन अगले 5 मिनिट तक स्नेहा धीरे धीरे शराब के घूँट लेती रही, सिगरेट के कश लेती रही और प्रेम उसके नंगे पेर सहलाता रहा... धीरे धीरे जब स्नेहा का नशा बढ़ने लगा, तब स्नेहा ने भी अपने पैर प्रेम की टाँगो पे लंबे कर दिए जिससे अब प्रेम का लंड ठीक स्नेहा की जाँघ के नीचे था... प्रेम भी उपर बढ़ गया और अब स्नेहा की जांघें सहलाने लगा.. सहलाते सहलाते प्रेम अब उसकी जांघों को दबाने लगा जिससे उसका ज़ोर प्रेम अपने लंड पर भी महसूस कर रहा था... ज़मीन पे स्नेहा अब लंबी होके लेट गयी जिसकी वजह से उसके चुचे अब बाहर निकल आए थे.. जैसे जैसे प्रेम का ज़ोर बढ़ता वैसे वैसे स्नेहा भी तेज़ साँसें लेती और छोड़ती....



"उम्म्म..अहहहहहा" स्नेहा ने सिसकारी ली... स्नेहा की सिसकारी सुनके प्रेम अपने घुटनो पे आ गया और स्नेहा के पेर की उंगलियाँ चूसने लगा और उसकी एडी अपने लंड पे रगड़ने लगा.. स्नेहा को यह बहुत अच्छा लग रहा था.. धीरे धीरे चल रही साँसें अब तेज़ होने लगी



"अहहहहा अहहा यस उम्म्म्मम सक माइ फीट बेबी उफ़फ्फ़ अहाहहा... उम्म्म्म" स्नेहा धीरे धीरे चिल्लाने लगी और साथ ही अपने पेर की एडी प्रेम के लंड पे तेज़ी से रगड़ने लगी...



"अहहहहा एस अहहहहा... उम्म्म्म ओह्ह्ह्ह अहहः फास्टर बेबी अहहहाहा" स्नेहा अब अपना आपा खोने लगी थी.... "अहहहहहह.. उम्म्म हाहहहह उई अहहाहा कीप सकिंग एसस्शाहहः..." स्नेहा की चूत से पानी बहने लगा था .. प्रेम इस काम में माहिर था, स्नेहा की चूत को बिना छुए ही उसकी चूत पनियाने लगती...




"अहहाहा उम्म्म्म...." जैसे एक राहत की सिसकारी ली स्नेहा ने जब उसकी चूत कुछ शांत हुई... स्नेहा की साँसें अभी भी तेज़ चल रही थी.. स्नेहा झट से ज़मीन पर से उठी और प्रेम के बाल पकड़ के उसके होंठों को चूमने लगी.. स्नेहा प्रेम को दर्द भी देती थी सेक्स के साथ.. दोनो में से स्नेहा हमेशा डॉमिनेंट सी रहती चुदाई के मामले में...



स्नेहा बेरेहमी से प्रेम के होंठों को चूसने लगी और प्रेम भी अपने हाथ स्नेहा के चुतड़ों पे ले जाके उन्हे मसल्ने लगा.. करीब 5 मिनट तक दोनो एक दूसरे के होंठों को चूस्ते रहे और एक एक करके अपने बदन से कपड़े उतार कर फेंकने लगे.. स्नेहा ने अंदर से कुछ भी नहीं पहना था, हल्की रोशनी में उसके सफेद चुचे देख प्रेम से रहा नहीं गया और उसने स्नेहा के होंठों को छोड़ उसका दूध पीने लगा और दोनो हाथों से स्नेहा की कमर कसने लगा... प्रेम की जीभ अपने निपल्स पे महसूस करते ही स्नेहा ने फिर एक बार सिसकारी भरी


"अहहहाहा माअमामा"



प्रेम ने अब अपनी मज़बूत बाहों में स्नेहा को गोद में ले लिया और अब उसके चुचे ठीक प्रेम के मूह के सामने थे, प्रेम ने एक नज़र भर उन्हे देखा और फिर अचानक स्नेहा ने जल्दी से उसके मूह को अपने चुचों में गढ़ा दिया जैसे कि वो रुकना ही नहीं चाहती थी... जब प्रेम उसके चुचों को अपने मूह में लेके चूस्ता स्नेहा एका एक अपने बदन को ढीला छोड़ पीछे की तरफ हवा में लटक आई और उसकी काली लंबी ज़ूलफें एक अलग ही मदहोशी लाती प्रेम के ज़हन में



"अहाहा कीप शक्किंग बेबी अहहहाहा यस अहहाहाः..." स्नेहा अब फिर आगे हुई और प्रेम के बालों को फिर नोच के उसके होंठों को चुचों से हटाया और उन्हे चूसने लगी.. प्रेम अब उसको गोदी में उठते हुए उसके होंठों को चूस्ता रहा और थोड़ा आगे बढ़ के उसको बेड पे फेंक दिया.. बेड पे गिरते ही स्नेहा फिर अपनी भूख में चिल्लाई



"अहहः लिक्क माइ पुसी बस्टर्ड आहहा.." कहके स्नेहा ने अपनी टाँगें चौड़ी की और अपनी सॉफ गुलाबी चूत को प्रेम के सामने पेश किया.. प्रेम बेड पे आके उसकी जांघों को चाटने लगा और एक हाथ से उसकी दूसरी जाँघ सहलाता और दूसरे हाथ से उसकी चूत के दाने को रगड़ता.. स्नेहा की मुलायम जाँघ को चाट के प्रेम बेकाबू होता जा रहा था, लेकिन वो जानता था के स्नेहा को इतनी जल्दी चुदाई पसंद नहीं इसलिए वो धीरे धीरे मज़े लेके उसकी जांघों को चूसे जा रहा था..



"अहहहाहा चूत चूस ना अहाहहाहा.. यआःाहहहा" स्नेहा की प्यास अब नहीं थम रही थी.. प्रेम ने हल्के से उसकी जांघों को खोला और उसकी चूत पे अपनी जीभ रखी ही थी के स्नेहा ने एक ज़ोरदार चीख से अपना पानी छोड़ दिया




"अहहहहहहाहा उईइ अहहाहा पी ले अहहहहहः...." स्नेहा चिल्लाई और अपने हाथ से प्रेम को अपनी चूत में धंसा दिया. प्रेम मज़े से उसकी चूत का नमकीन पानी पीने लगा..



"उम्म्म पी लो प्रेम आहहहाहाहा ओह्ह्ह एस्स अहहह......" कहके स्नेहा झटके खाने लगी और प्रेम मज़े की उसकी चूत चाटने में लगा रहा.... 15 मिनिट में स्नेहा दूसरी बार झड़ी थी... जैसे ही स्नेहा की चूत खाली हुई, उसने प्रेम को अपनी चूत से दूर किया और उसे बेड पे खड़े होने का इशारा किया.. प्रेम बेड पे खड़ा हुआ और स्नेहा की नशीली आँखों के सामने प्रेम का उफ्फान मचाता हुआ लंड था... प्रेम का लंड देख के स्नेहा और बहकने लगी और जल्दी से उसे हाथ में भरा और एक ही झटके में अपने मूह के अंदर घुसा लिया... स्नेहा बहुत ही धीरे धीरे शुरू करके प्रेम के लंड को चूसने लगी, लेकिन जैसे जैसे उसके दिमाग़ का जंगलीपन बढ़ा, वैसे वैसे तेज़ी बढ़ने लगी, और लंड चूस्ते चूस्ते स्नेहा अपने नखुनो से प्रेम के टट्टों को नखुनो से कुरेदने लगी... मज़े के साथ अब प्रेम को दर्द भी होने लगा था, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं थी स्नेहा को रोकने की




"अहाहहा उम्म्म औचहहहहहहा धीरीई स्नहााहह अहहहाहा....." प्रेम बस यह कहके कराहता रहा पर स्नेहा ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं... चूस्ते चूस्ते स्नेहा अब उसके लंड को दातों से हल्के हल्के चबाने लगी और टट्टों को मुट्ठी में भर के उन्हे दबाने लगी और साथ ही अपनी आँखों से प्रेम के भाव देखने लगी जहाँ मज़ा कम और दर्द ज़्यादा था... यही तो चाहिए था स्नेहा को, चुदाई उसकी होने वाली थी लेकिन दर्द सामने वाले को मिलता था....




"आहहहा स्नेहा, मैं आ रहा हूँ.... अहाहा" जैसे ही प्रेम ने यह कहा, स्नेहा ने तुरंत उसके टट्टों को छोड़ दिया और लंड को मूह से निकाल दिया और प्रेम को बेड पे सोने का इशारा दिया.. प्रेम बेड पे आके पीठ के बल सोया और स्नेहा ने एक नज़र उसके सलामी देते हुए लंड पे डाली और हँसते हुए उसपे बैठने लगी... स्नेहा ने अपने पेर चौड़े किए और अपनी चूत के मूह पे प्रेम के लंड के टोपे को रखा और एक नज़र प्रेम पे डाली.... प्रेम ने एक ही झटके में अपने पैरों को उपर उठाया जिससे उसका लंड सीधा जाके स्नेहा की चूत में घुस गया और स्नेहा को एक मीठे दर्द का अनुभव दिया...



"आहहः धीरे बेन्चोद कहीं के..." स्नेहा ने प्रेम की आँखो में देख के कहा



"तूने ही तो बेन्चोद बनाया है मेरी प्यारी दीदी अहहाहा.. दर्द देने का हक सिर्फ़ तेरा थोड़ी है.." प्रेम ने धीरे से लंड को अंदर बाहर करना चालू किया... धीमी गति के झटकों में प्रेम को काफ़ी मज़ा आता.. लंड एक शॉट में अंदर घुसा देता और फिर धीरे धीरे पूरा बाहर निकालता, फिर टोपे को वापस स्नेहा की चूत पे रगड़ता और वापस अंदर डालता.. स्नेहा मज़े में आँखें बंद करके उसके लंड पे बैठी रही और अपना चेहरे को मदहोशी में जाके पीछे कर दिया और एक हाथ से प्रेम के पैरो को पकड़े रखा और दूसरे से अपने चुचे मसल्ने लगी...



"अहाहहा प्रेम उफफफ्फ़ अहाहाआ..उम्म्म्मम सस्सिईईईईईयाहहः.." स्नेहा की मस्ती फिर से अपनी चरण सीमा पे पहुँचने लगी थी.. प्रेम ने अपने झटकों की स्पीड उतनी ही धीमे रखी और अब अपने दोनो हाथ आगे बढ़ा दिए, एक से स्नेहा के चुचे को मसल्ने लगा और दूसरा उसकी चूत के दाने पे रख के उसे रगड़ने लगा... इससे स्नेहा और भी पागल हो गयी और उसने जल्द ही अपनी दोनो हाथ आगे बढ़ा के प्रेम की छाती पे रख दिए और उसे नाखुनो से कुरेदने लगी.. जैसे जैसे स्नेहा की मदहोशी बढ़ने लगी, वैसे वैसे प्रेम के झटके बंद हुए और अब स्नेहा उसके लंड पे उछलने लगी... स्नेहा ज़ोर ज़ोर से उछलने लगी और उछलते वक्त उसके चुचे और उसके लंबे बाल हवा में लहराने लगे.... प्रेम को यह सीन तो पागल करने लगा था..उपर से स्नेहा उछलती और नीचे से प्रेम भी अपने झटके लगाने लगा..




"अहहहः प्रेम मैं आ रही हूँ अहहाहा.. यआःहहहा अहाहा... कम वित मी बेबी अहाहहा...." कहके स्नेहा का उछलना और तेज़ हो गया, उसके साँसें और तेज़ हो गयी और कुछ ही सेकेंड्स में वो निढाल प्रेम की छाती पे गिर गयी.. स्नेहा की चूत अपने और प्रेम के पानी के साथ रिसने लगी.. और दोनो भाई बहेन बहुत तेज़ी से साँसें ले रहे थे... कुछ देर के बाद दोनो की साँसें वापस आने लगी और एक दूसरे से अलग होके अपने अपने कपड़े पहनने लगे...



"दीदी, अभी कहाँ जाओगी.." प्रेम ने अपनी जीन्स पहेन के कहा



"ज़ाउन्गी अपने पति के पास, वो भी यहीं है.. खैर तुम चिंता नहीं करो..हम जल्द ही अपने प्लान में कामयाब होंगे.. डीटेल मैं तुम्हे फोन पे दूँगी.." स्नेहा ने अपने कपड़े ठीक किए, मेक अप थोड़ा ठीक किया और प्रेम के रूम से निकल गयी..
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