भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete

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Dolly sharma
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Re: भैया का ख़याल मैं रखूँगी

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जब तक वीरेंदर जी आइक्यू से कॅबिन में शिफ्ट होते हैं, आइए चलते हैं 12 साल पहले.
आशना तब *****साल की छोटी सी बच्ची थी. अपने माँ-बाप की इक्लोति संतान होने के कारण वो काफ़ी ज़िद्दी थी. ज़िंदगी की हर खुशी उसके कदमों में थी. उसके पिता यूँ तो एक मामूली वकील थे पर अपनी बेटी की हर ज़िद पूरी करना उनका धरम जैसा बन गया था. पत्नी की मौत के बाद वो दोनो एक दूसरे का सहारा थे. आशना की माँ उसे 2 साल पहले ही छोड़ कर चली गई थी. हाइ BP की शिकार थी. जब आशना 8 साल की हुई तो उसके पिता ने उसे डलहोजी मैं एक बोरडिंग स्कूल में दाखिल करवा दिया. आशना की ज़िद के आगे उन्हे झुकना पड़ा और यहाँ से शुरू हुआ आशना की ज़िंदगी का एक नया सफ़र. वो अपने पापा से दूर क्या गई कि उसके पापा हमेशा के लिए उससे दूर हो गई.

हुआ यूँ कि आशना के पिता जी और वीरेंदर के पिता जी सगे भाई थे. वीरेंदर उस वक्त 25 साल का नवयुवक था. मज़बूत बदन और तेज़ दिमाग़ शायद भगवान किसी किसी को ही नसीब मे देता है. वीरेंदर एक ऐसी शक्शियत का मालिक था. मार्केटिंग मे एमबीए करने के बाद उसने पापा के बिज़्नेस को जाय्न कर लिया था. वीरेंदर की माता जी एक ग्रहिणी थी और उसकी छोटी बेहन सीए की तैयारी कर रही थी. पूरा परिवार हसी खुशी ज़िंदगी गुज़ार रहा था पर ऋतु (आशना की माँ) की मौत के बाद उन्होने काफ़ी ज़ोर दिया कि राजन (आशना के पापा) दूसरी शादी कर लें या उनके साथ सेट्ल हो जाए. राजेश दूसरी शादी करना नहीं चाहता था और अपनी वकालत का जो सिक्का उसने अपने शहर मे जमाया था वो दूसरे शहर मे जाके फिर से जमाने का वक्त नहीं था. इसी सिलसिले मे एक बार वीरेंदर के माता-पिता और छोटी बेहन एक बार राजेश के शहर गये ताकि वो किसी तरह उसे मना कर अपने साथ ले आए पर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था. उन्होने राजेश को मना तो लिया और अपने साथ लाए भी पर रास्ते मैं एक सड़क दुर्घटना में सब कुछ ख़तम हो गया.

वीरेंदर को जब यह पता चल तो वो अपने आप को संभाल नहीं पाया और एक दम से खामोशी के अंधेरे मे डूब गया. आशना और वीरेंदर ने मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया पर वीरेंदर किसी होश-ओ-हवास मे नहीं था. आशना की उम्र छोटी होने के कारण वीरेंदर की कंपनी के पीए ने समझदारी दिखाते हुए उसे जल्दी हुए बोरडिंग भेज दिया ताकि वो इस दुख को भूल सके पर वीरेंदर को तो जैसे होश ही नहीं था कि वो कॉन हैं और उसे उस बच्ची को संभालना है. आशना के दिल-ओ-दिमाग़ पर वीरेंदर की शक्शियत का काफ़ी गहरा असर पड़ा. वो उससे नफ़रत करने लगी और इस नफ़रत का ही असर था कि दोनो भाई बेहन 12 सालो तक एक दूसरे से नहीं मिले या यूँ कहे कि आशना ने कभी मिलने का मोका ही नहीं दिया. धीरे-धीरे वीरेंदर की ज़िंदगी मे ठहराव आता चला गया. वो सब से कटने लगा पर अपने बिज़्नेस को बखूबी अंजाम देता और आशना की फी और बाकी की ज़रूरतों का भी ध्यान रखता पर आशना को इसकी भनक भी नहीं लगने दी.

वो जानता था कि आशना उसे पसंद नहीं करती और उसने भी उसे मनाने की कोशिश नहीं की. ज़िंदगी से कट सा गया था वो उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कोई उसके बारे मैं क्या सोचता है. दिन भर काम और शाम को घर मे जिम यही उसकी रुटीन रह गई थी.

लेकिन उसकी ज़िंदगी मे कोई था जिसे वो अपना हर हाल सुनाता, मेरा मतलब लिख के बताता. जी हां सही समझा आपने वीरेंदर को तन्हाईयो मे डाइयरी लिखने की आदत थी. वो घंटो बैठ कर लिखता रहता. उस डाइयरी मे वो क्या लिखता किसी को भी पता नहीं था. किसी को कुछ पता भी कैसे लगता इतने आलीशान बंग्लॉ मे उसके अलावा उनका पुराना नौकर बिहारी ही रहता था जो कि अनपढ़ था. पहले वो भी बाहर सर्वेंट क्वार्टेर मे रहता था पर अब वो ग्राउंड फ्लोर मे बने एक स्टोर मे सो जाता था ताकि वीरेंदर को रात को भी किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो वो फॉरन उसे पूरा कर दे. अक्सर वो रात को उठकर वीरेंदर के कमरे तक जाता और अगर वीरेंदर डाइयरी लिखते लिखते सो गया होता तो उसे अच्छे से चादर से धक कर रूम की लाइट बंद कर देता. ऐसा अक्सर होता कि वीरेंदर जिम करने के बाद कुछ देर आराम करता, फोन पर बिज़्नेस की कुछ डील्स करता और फिर डिन्नर के बाद अपने रूम में डाइयरी लिखने बैठ जाता. लोगों की नज़र मे उसकी इतनी ही ज़िंदगी थी पर उसकी ज़िंदगी मे और भी काफ़ी तूफान थे जिनकी सर्द हवा से वीरेंदर ही वाकिफ़ था.

मिस आशना डॉक्टर. आपसे मिलना चाहते हैं....... इस आवाज़ ने आशना की तंद्रा को तोडा.
आशना: भैया को शिफ्ट कर दिया आप ने
वॉर्ड बॉय: हां, वो डॉक्टर. साहब आपसे मिलना चाहते हैं.
आशना: तुम चलो मैं अभी आती हूँ. वॉर्डबॉय के जाने के बाद आशना ने अपनी जॅकेट की ज़िप बंद की, आज काफ़ी ठंड थी. सर्द हवाए शरीर को झिकज़ोर रही थी. आशना डॉक्टर. रूम की तरफ मूडी ही थी कि उसके कदम रुक गये. वो फिर से मूडी और कॅबिन के ग्लास से उसने वीरेंदर को देखा फिर तेज़ी से मुड़कर डॉक्टर. रूम की तरफ चल दी.
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Dolly sharma
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Re: भैया का ख़याल मैं रखूँगी

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डॉक्टर के कॅबिन से बाहर निकलते ही आशना ने कुछ डिसिशन्स ले लिए थे, वैसे यह उसकी आदत समझ लीजिए या उसकी नेचर कि वो हर डिसिशन खुद ही लेती थी. बचपन मे माँ के गुज़र जाने के बाद और उसके बाद हॉस्टिल की ज़िंदगी ने उसे एक इनडिपेंडेंट लड़की बना दिया था जो कि अपने डिसिशन खुद ले सके और उनपे अमल कर सके.

सबसे पहला डिसिशन तो उसने अपनी छुट्टी बढ़ाने का सोच लिया था, उसने सोच लिया था कि वो कल ही एरलाइन्स मे फोन करके अपनी लीव एक्सटेंड करवा देगी और अगर लीव एक्सटेंड ना हुई तो वो एयिर्हसटेस्स की नोकरी छोड़ने को तैयार भी थी. आख़िर कितना ग़लत समझा उसने उस इंसान को जिसने उसकी हर खुशी की कीमत चुकाई वो भी बिना उसे किसी भनक लगने के. यह तो डॉक्टर. मिसेज़. & मिस्टर. गुप्ता वीरेंदर की फॅमिली के फॅमिली डॉक्टर. थे तो उन्होने आशना को इस सब की जानकारी दे दी वरना वो तो ज़िंदगी भर इस सच से अंजान रहती. डॉक्टर दंपति से आशना को कुछ ऐसी बातों के बारे मे पता लगा जो शायद उसे कभी मालूम ना पड़ती और वो वीरेंदर को हमेशा ग़लत ही समझती. हॉस्टिल की टफ ज़िंदगी जीने के बाद भी आज आशना की आँखों मे ज़रा सी नमी देखी जा सकती थी. इससे पहले कि वो टूट जाती वो डॉक्टर के. कॅबिन से बाहर निकल आई और सीधा उस कॅबिन वॉर्ड की ओर चल पड़ी जहाँ वीरेंदर अपनी साँसे समेट रहा था. वो अभी भी सोया हुआ था. उसके आस पास की मशीनो की बीप आशना को वहाँ ज़्यादा देर तक ठहरने नहीं देती है और वो कॅबिन से बाहर आ जाती है. बाहर आते ही उसे बिहारी काका दिखे जो कि एक टिफिन में आशना के लिए खाना लेकर आए थे. बिहारी काका ने रोज़ की तरह टिफिन उसके पास रखा और जाने के लिए मुड़े ही थे कि आशना ने उन्हे पुकारा.

आशना: आप कॉन है जो पिछले तीन दिन से मेरे लिए खाना ला रहे हैं.
बिहारी कुछ देर के लिए थीट्का और फिर आशना की तरफ मुड़ा और बोला, बिटिया मैं छोटे मालिक के घर का नौकर हूँ. जिस दिन आप आई तो डॉक्टर. बाबू ने बताया कि कोई लड़की वीरेंदर बाबू के लिए हॉस्पिटल आई है. मुझे लगा कि उनके क्लाइंट्स में से कोई होगी पर यहाँ आके जब आपका हाल देखा तो लगा कि आप उनकी कोई रिश्तेदार होंगी. आप उस दिन सारा दिन आइक्यू के बाहर खड़ी रहीं, डॉक्टर. ने बताया पर आप ने किसी से कोई बात नहीं की. मैने भी आपको बुलाने की कोशिश की पर आप किसी की आवाज़ सुन ही नहीं रही थी.

आशना: वो मैं परेशान थी पर अब वीरेंदर ठीक है, डॉक्टर. कहते हैं कि अब वो ठीक हैं.
बिहारी: वीरेंदर बाबू तो पिछले 8 साल से ऐसे ही हैं. किसी से कुछ बोलते नहीं, ना कोई बात करते हैं. सिर्फ़ काम और फिर हवेली आके अपने रूम मे डाइयरी लिखने बैठ जाते हैं और कई बार तो बिना खाना ख़ाके ही सो जाते हैं. अच्छा बिटिया अब मैं चलता हूँ, घर पर कोई नहीं है. किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझे बुला लेना.

आशना: जी काका.
बिहारी: बिटिया तुम्हारा वीरेंदर बाबू के साथ क्या रिश्ता है ?
आशना: हड़बड़ाते हुए, जी वो काका मैं आपको फोन करके दूँगी जब कोई काम होगा. पता नहीं क्यूँ पर आशना उसको बताना नहीं चाहती थी कि वो वीरेंदर की छोटी बेहन है.

बिहारी काका जाने के लिए मुड़े ही थे कि आशना ने पूछा: काका, हवेली यहाँ से कितनी दूर है.

बिहारी: बेटा गाड़ी से कोई 15-20 मिनट. लगते हैं और बिटिया तुम हवेली का लॅंडलाइन नंबर. लेलो ताकि कोई भी काम पड़ने पर तुम मुझे बोल सको.

आशना ने नो. नोट किया और बिहारी वहाँ से चला गया. आशना ने टिफिन की तरफ देखा और उसे उठा कर वेटिंग हॉल मे जाकर लंच करने लगी. आज कितने दिनों बाद उसने मन से खाया था. खाना ख़ाके वो वीरेंदर के कॅबिन मे गई तो पाया वीरेंदर अभी भी सोया हुआ था. आशना ने मोबाइल मे टाइम देखा, 3:30 बजने को आए थे. आशना डॉक्टर. रूम की तरफ चल पड़ी. नॉक करने पर डॉक्टर. मिसेज़. गुप्ता ने उसे अंदर आने के लिए कहा.

आशना: वीरेंदर को अभी तक होश नहीं आया है डॉक्टर. ?
मिसेज़. गुप्ता: मुस्कुराते हुए, डॉन'ट वरी माइ डियर. ही ईज़ आब्सोल्यूट्ली ओके नाउ. दवाइयों का असर है 15 से 20 घंटो मे वीरेंदर पूरी तरह नॉर्मल हो जाएगा. हां पूरी तरह से नॉर्मल लाइफ जीने के लिए उसे कुछ 8-10 दिन लग जाएँगे. इतने दिन उसका काफ़ी ध्यान रखना होगा. आइ थिंक उसे इतने दिन हॉस्पिटल मे ही रख लेते हैं यहाँ नर्सस उसका ध्यान अच्छे से रख सकेंगी.

आशना: नहीं डॉक्टर. आप जितनी जल्दी हो सके भैया को डिसचार्ज कर दें. मुझे लगता है कि भैया घर पर जल्दी ठीक हो जाएँगे.
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मिसेज़. गुप्ता: ओके तो फिर हम कल सुबह ही वीरेंदर को डिसचार्ज कर देते हैं और उनके साथ एक नर्स अपायंट कर देते हैं जो घर पर उनका ख़याल रखेगी.
आशना: डॉन'ट वरी डॉक्टर. "भैया का ख़याल मैं रखूँगी".

डॉक्टर.: आर यू श्योर?

आशना: आब्सोल्यूट्ली
डॉक्टर., आप भूल रहे हैं कि मैं एक एयिर्हसटेस्स हूँ आंड आइ कॅन मॅनेज दट.
डॉक्टर. ओके देन फाइन, वी विल डिसचार्ज हिम टुमॉरो मॉर्निंग.
आशना: थॅंक्स डॉक्टर.
मिसेज़. गुप्ता: आशना, अगर तुम शाम को फ्री हो तो हम दोनो कहीं बाहर कॉफी पीने चलते हैं, तुमसे कुछ बातें भी डिसकस करनी हैं.
आशना: नो प्राब्लम. डॉक्टर.
मिसेज़ गुप्ता: ओके देन, ठीक 5:30 मुझे मेरे कॅबिन मे आकर मिलो. आशना बाहर आते हुए सोच रही थी कि मिसेज़. गुप्ता उन्हे क्या बताना चाह रही है. अभी उसे डॉक्टर. कि पिछली मीटिंग मैं खड़े सवालो के जवाब भी ढूँढने थे. यही सोचते सोचते वो वीरेंदर के कॅबिन से बाहर रखे सोफे पे बैठ गई और काफ़ी हल्का महसूस करने पर कुछ ही पलो मे उसकी आँख लग गई.
आशना सपनो की दुनिया से बाहर आई मिसेज़. गुप्ता (डॉक्टर. बीना) की आवाज़ से.
डॉक्टर. बीना: आशना उठो शाम होने को है. आशना हड़बड़ा के उठ गई और थोड़ा सा जेंप गई.

डॉक्टर. बीना: अरे सोना था तो गेस्ट रूम यूज़ कर लेती, यहाँ सोफे पर बैठ कर थोड़े ही सोया जाता है.
आशना: नहीं डॉक्टर. वो मैं भैया को देखने आई थी तो सोचा यहीं बैठ कर इंतज़ार कर लूँ, पता नहीं कैसे आँख लग गई. डॉक्टर.: इतने दिन से तुम सोई कहाँ हो. मेरी मानो आज रात को तुम हवेली चली जाओ. सुबह अच्छी तरह से फ्रेश होके वीरेंदर को अपने साथ ले जाना.

आशना: सोचूँगी डॉक्टर. पहले आप कहीं चलने की बात कर रही थी, क्या 5:30 हो गये है आशना ने उड़ती हुई नज़र अपनी मोबाइल की स्क्रीन पे देखते हुए पूछा. ओह माइ गॉड, 6:00 बज गये. सॉरी डॉक्टर. वो मैं नींद में थी तो पता नहीं चला टाइम का.

डॉक्टर: मुस्कुराते हुए, इट्स ओके आशना. मैं भी अभी फ्री हुई हूँ. रूम मे जाकर देखा तो तुम वहाँ नहीं मिली, इसीलिए तुम्हे ढूँढती यहाँ आ गई. चलो अब चलते हैं.

दोनो हॉस्पिटल से बाहर आके पार्किंग की तरफ चल देते हैं. डॉक्टर. ने गाड़ी का लॉक खोला और आशना बीना की बगल वाली सीट पेर बैठ गई. बीना ने एंजिन स्टार्ट किया और गियर डाल कर गाड़ी को हॉस्पिटल कॉंपाउंड से बाहर ले गई. लगभग 15 मिनट का रास्ता दोनो ने खामोशी से काटा. आशना के मन मे ढेर सारे सवाल थे. डॉक्टर. ने उसे जो बताया था अभी वो उससे नहीं उभर पाई थी कि डॉक्टर. ने उसे कॉफी शॉप पे चलने के लिए बोल के उसे और परेशान कर दिया था. पता नहीं डॉक्टर. मुझसे क्या डिसकस करना चाहती हैं. वहीं ड्राइवर सीट पर बैठी बीना सोच रही थी कि कैसे मैं आशना को सब कुछ समझाऊ. आख़िर है तो वो वीरेंदर की बेहन ही ना. इसी उधेरबुन मे रास्ता कट गया और आशना अपने ख़यालो की दुनिया से बाहर आई जब कार का एंजिन ऑफ हो गया. गाड़ी बंद होते ही दोनो ने एक दूसरे को देखा, दोनो ने एक दूसरे को हल्की सी स्माइल दी और गाड़ी से उतर गई. आशना डॉक्टर. के चेहरे पे परेशानी सॉफ पढ़ सकती थी वहीं डॉक्टर. भी आशना की आँखो मे उठे सवालो से अंजान नहीं थी. दोनो नेस्केफे कॉफी शॉप पर एंटर करती है. इस ठंडे माहौल मे भी अंदर के गरम वातावरण मे दोनो को सुकून मिला और बीना एक कॉर्नर टेबल की तरफ बढ़ गई. आशना भी उसके पीछे चल पड़ी. दोनो ने अपनी अपनी चेर्स खींची और बैठ गई.
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कुछ मिनट्स तक दोनो एक दूसरे की आँखो मे देखती रही फिर जैसे ही आशना कुछ बोलना चाहती थी कि वेटर ने आकर उनका ऑर्डर नोट किया और चला गया.

आशना: डॉक्टर. आप यहाँ अक्सर आती रहती हैं.
डॉक्टर.: हां मैं अक्सर अभय (डॉक्टर. अभय गुप्ता, बीना के हज़्बेंड) के साथ यहाँ आती हूँ. यहाँ कुछ देर बैठ कर हम हॉस्पिटल के वातावरण से दूर आने की कोशिश करते हैं और दिन भर के केसस की डिस्कशन करते हैं.

आशना: यहाँ पर भी हॉस्पिटल की ही बातें करते हो आप लोग?.
डॉक्टर.: रोज़ नहीं पर कुछ ज़रूरी केसस जो उलझे हुए हों जैसे कि वीरेंदर का. आशना के चेहरे का रंग एकदम उड़ गया. आशना: क्या मतलब डॉक्टर. भैया ठीक तो हो जाएँगे ना?

डॉक्टर.: डॉन'ट वरी , ही ईज़ आब्सलूट्ली नॉर्मल नाउ बट उसकी कंडीशन्स फिर से ऐसी हो सकती है, अगर ............

.आशना: डॉक्टर. की तरफ देखते हुए, अगर ?.

डॉक्टर.: बताती हूँ. यह कहकर डॉक्टर. कुछ देर के लिए खामोश हो जाती है और आशना के चेहरे को ध्यान से देखती है. उसके चेहरे से उड़ा हुआ रंग सॉफ बता रहा था कि आशना काफ़ी परेशान है वीरेंदर को लेकर.

आशना: डॉक्टर. बताइए ना, मेरी जान निकलती जा रही है, आख़िर ऐसा क्या हुआ है भैया को.
डॉक्टर: आशना, यहाँ तक हम (बीना & अभय) जानते हैं कि तुमने वीरेंदर को 12 साल बाद देखा है. इससे पहले तुम कब और कहाँ मिले हमे नहीं पता. क्या तुमने कभी कहीं से यह सुना कि वीरेंदर की ज़िंदगी मे कोई लड़की आई थी? इतना सुनते ही आशना का चेहरा एकदम सफेद पड़ गया. इसका मतलब भैया की यह हालत किसी लड़की के पीछे है. पर आशना को इस सब के बारे मे कुछ भी पता नहीं था. होता भी कैसे, पिछले 12 सालो से तो वो एक बार भी वीरेंदर से नहीं मिली, हालाँकि वीरेंदर ने कई बार कोशिश की पर आशना ने हर बार पढ़ाई का बहाना बना दिया. अभी दो साल पहले ही जब आशना ने 12थ के एग्ज़ॅम्स क्लियर किए तो वीरेंदर ने काफ़ी ज़ोर दिया कि उसका अड्मिषिन मेडिकल कॉलेज मे कर दे पर आशना अपना रास्ता खुद चुनना चाहती थी. उसने फ्रांकफिंन इन्स्टिट्यूट से एयिर्हसटेस्स की ट्रैनिंग ली और पिछले साल ही उसे एक एरलाइन्स का ऑफर मिला तो उसने झट से जाय्न कर लिया.
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