चूतो का समुंदर

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Ankit
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Re: चूतो का समुंदर

Post by Ankit »

वसीम ने एक नज़र सोनम पर मारी और फिर रिया को एक तरफ फेक कर गन की तरफ बड़ा ही था कि दुबारा से गोली चलने की आवाज़ रूम मे गूँज उठी...

और ये आवाज़ होते ही वसीम अपनी जगह पर खड़ा रह गया.....और सोनम को घूर्ने लगा....

यहाँ रिया के गिरते ही रिचा ने उसे संभाला और अपने सीने से चिपका कर रोने लगी....

मैं- वसीम....इतनी हैरानी से मत देखो...गोली सोनम ने नही चलाई...बल्कि सोनू ने चलाई है...

मेरी बात सुनकर वसीम ने सोनू की तरफ देखा तो उसके हाथ मे गन थी और चेहरे पर मुस्कुराहट...जिसे देख कर वसीम गुस्से से बौखला गया....

वसीम(सोनू से)- तो तू बँधा नही था...ये सब एक नाटक था...हाँ...सब कुछ...एक नाटक....

मैं- बहुत अच्छे...(तालियाँ बजा कर)- तुम तो बड़े होसियार हो....जो इतनी जल्दी समझ गये...हाहहाहा....वसीम....आज तूने साबित कर दिया कि तो अकरम का बाप नही हो सकता...क्योकि ना ही तेरे पास मर्दानगी है और ना ही दिमाग़....

वसीम(चिल्ला कर)- अंकित...मैं क्या हूँ वो छोड़...अगर तू मर्द है तो सामने आ...ऐसे नमर्दो की तरह छिप कर बार क्यो करता है...हाँ..बोल...मर्द है कि नही...

मैं- बार...अबे मैं बार करता तो तू उपर पहुँच चुका होता...फिर भी ...चल आता हूँ....ये ले आ गया...

और फिर बेसमेंट की सीडीयों पर किसी के जूतों की छाप सुनकर वसीम और बाकी सब वहाँ देखने लगे और कुछ ही देर मे उनके सामने मैं आ गया....

मैं- देख ले वसीम...आ गया तेरे सामने....

वसीम मुझे देख कर सिर्फ़ घूरते हुए दाँत पीसता रहा क्योकि वो जानता था कि वो इस वक़्त सोनू के गन पॉइंट पर है....ज़रा भी हिला तो गोली उसको चियर देगी...

मैने वसीम को घूर्ने के बाद रिचा और रिया को देखा...जो इस समय सहमी हुई थी....फिर मैने रिया को आँखो से कुछ इशारा किया और सामने जा कर उसी जगह खड़ा हो गया ..जहा मैं बँधा हुआ दिख रहा था....

मैं- लो वसीम...मैं वही आ गया..जहाँ तू चाहता था...उसी जगह...जहा तूने मेरे उपर गोलियाँ चलाई...ठीक है ना...

वसीम(गुस्से से)- लड़के...टेक्नालजी की वजह से मैं मिस हो गया...वरना तू अब तक उपर पहुँच चुका होता...

मैं(मुस्कुरा कर)- ह्म्म..सही कहा...पर क्या करे...तुझे उपर भेजे बिना मैं जा नही सकता ना....मुझे..तेरे पापो का हिसाब भी लेना है अभी...तभी तो तू भी जिंदा है अब तक...समझा...

वसीम(आगे बढ़ कर)- तेरी तो...

मैं- ना..ना..ये ग़लती मत करना...वरना दर्द सहते हुए पाप सुनने पड़ेंगे...समझा ना...एक कदम भी मेरे इजाज़त के बिना बदाया तो...ये देख रहो हो..सोनू..जानते हो ना इसे...इसका निशाना कैसा है...तुझे तो पता ही है...है ना...

वसीम(दाँत पीसते हुए)- पछताएगा लड़के..बहुत पछताएगा...

मैं- देखते है वसीम ख़ान...कौन पछताने वाला है...अब आओ और उस चेयर पर बैठ जाओ...अब आमने-सांबे बैठ कर सब क्लियर कर लेते है...फिर देख लेगे कि उपर किसे जाना है...बैठो...
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shubhs
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Re: चूतो का समुंदर

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अब ठीक हुआ
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Ankit
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Re: चूतो का समुंदर

Post by Ankit »

फिर वसीम और मैं आमने सामने चेयर पर बैठ गये....रिचा और रिया वसीम से कुछ दूरी पर खड़ी थी...सोनू वसीम पर निशाना लगाए बैठा था और सोनम चुप चाप बैठी हुई ये सब नज़ारा देख रही थी....

मैं- हाँ तो वसीम...नही...अब जब हम सॉफ-सॉफ बात करने वाले है तो फिर नाम भी सॉफ ही होने चाहिए....है ना...तो क्या कहूँ...हाँ...सरफ़राज़....तो बोलो सरफ़राज़....वो क्या वजह है....मतलब हमारी दुश्मनी की वजह....

वसीम(मुझे घूर कर)- मैं बोल चुका हूँ....वही वजह है...

मैं- ओह हो...(सिर खुज़ला कर) - सॉरी मैं भूल गया...ज़रा फिर से बताओगे...

वसीम(गुस्से से)- ये लड़के...ये कोई कहानी नही जो फिर से सुनाऊ...ये हक़ीक़त है...एक दर्दनाक हक़ीक़त....

मैं- हाँ...हो सकता है....और शायद सच भी हो...पर अगर ये सच है...तो एक बार फिर से बता दो....

वसीम(गुस्से से बौखला गया)- क्या फिर से...ये कोई मज़ाक है क्या....

मैं(कड़क आवाज़ मे)- सरफ़राज़...तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि बोलना शुरू करो...नही तो सोनू की गन बोलेगी...और गन का बोलना ज़्यादा दर्दनाक हो सकता है...है ना....

वसीम ने गुस्से से अपने हाथो को कुर्सी के हॅंडल पर पटका और फिर से मुझे घूर्ने लगा.....

मैं- सरफ़राज़ मियाँ...मुझे घूर्ने से काम नही चलेगा....अपने मुँह को कष्ट दो...और बोलना शुरू करो...जल्दी...

फिर वसीम कुछ देर तक खामोश रहा और फिर उसने बोलना शुरू कर दिया.....वसीम ने फिर से वही बातें दोहराई और मैं हर बात को गौर से सुनता रहा....

वसीम बात ख़त्म कर के फिर से रो पड़ा और अपने हाथो मे अपना चेहरा छिपा कर बैठ गया.....

मैं- हुह...रिचा...क्या तुम यहाँ आओगी....

जैसे ही मैने रिचा को आवाज़ दी तो वो सकपका गई...और सहमी हुई सी मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई......

मैं- रिचा ..अब तुम कहो...जो तुमने बताया था...वो सच है ये जो आज सुना वो....बोलो...

रिचा सहमी सी मेरे और वसीम के बीचो बीच खड़ी हुई थी...मेरा सवाल सुनकर उसने मूड कर वसीम को देखा...जो पहले से ही अपनी आँखे रिचा पर लगाए हुए था....उसकी आँखो को देख कर रिचा घबरा गई और तुरंत पलट कर मुझे देखने लगी....

मैं(आँखे घुमा कर)- अब सब हो गया ही तो बोल भी दो..ह्म्म..

रिचा- वो...वो असल मे...

मैं(ज़ोर से)- बोल ना....

रिचा- मैने झूठ कहा था...

रिचा ने स्पीड से बोला और फिर सहमी हुई आँखो से मुझे देखने लगी...

मैं(दाँत पीस कर)- तू नही सुधरने वाली...चल जा यहाँ से...

मेरे कहते ही रिचा लगभग भागते हुए वापिस अपनी जगह पर खड़ी हो गई....और फिर वसीम मुझे घूर्ने लगा...

वसीम- सच जान गये ना...

मैं- हाँ..जान गया...पर अभी बहुत कुछ बाकी है...

वसीम- बाकी...(हँसते हुए)- बाकी तो सच मे बहुत है...तेरा दादा...तेरा बाप और तू...अरे हाँ..तेरा चाचा भी तो है....सब बाकी है ...हाहाहा...

मैं- ह्म्म...सो तो है...और वो बाकी ही रहेगे...पर...पर..पर...आहह..यहा मैं तेरी बात कर रहा था...अपनी नही...

वसीम- मेरी बात...अब क्या बाकी रह गया....सब तो सुन लिया...

मैं(खड़ा हो कर)- असल मे...मैने एक नया फ़ोन लिया है...और इस फ़ोन की ख़ासियत ये है कि इसमे तुम्हारे मतलब का कुछ है...देखना चाहोगे...एक मिनट...

और फिर मैं वसीम की तरफ बड़ा और वीडियो ओपन करके फ़ोन उसे पकड़ा दिया....


वसीम(वीडियो देख कर)- तुम तो जान ही गये हो कि ये वीडियो किस का है...बचा क्या फिर...

मैं(चेयर के दोनो हॅंडल पर हाथ टिका कर)- दूसरा भी देख लो...फिर बात करेंगे.....

फिर मैं वापिस खड़ा हो गया और वसीम के बोलने का वेट करने लगा....

दूसरा वीडियो देखते हुए वसीम बार-बार नज़रे उठा कर मुझे देख रहा था...और उसकी आँखो मे मुझे बैचेनी सॉफ नज़र आ रही थी....

वसीम(वीडियो ख़त्म होते ही)- आख़िर तुम कहना क्या चाहते हो...मैं इसे नही जानता....

मैं- ओह हो...नही जानते...अच्छा एक बात बताओ...क्या तुम्हे मेरे माथे पर चूतिया लिखा नज़र आ रहा है...चूतिया....

मेरी बात सुनकर सोनू, सोनम और रिया हँस पड़े...जबकि रिचा और वसीम के होंठ सिले रहे...

वसीम- मैं..मैं सच मे...

मैं(बीच मे ताली मार कर)- सच मे...आहह...ये सच ही तो सुनना है सरफ़राज़ मियाँ...सच...अब..हम्म..देखो..भोले बनने का नाटक छोड़ो और ये बताओ कि सरिता को तुम कैसे जानते हो...

सरिता का नाम आते ही वसीम चौंक गया और रिचा की तरफ देखने लगा...
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Ankit
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Re: चूतो का समुंदर

Post by Ankit »

मैं- अरे...तुम उसे मत घूरो...उसने कुछ नही बताया...असल मे सरिता के बारे मे मुझे बहुत पहले से जानकारी है....तब तो मुझे रिचा के बारे मे कुछ पता भी नही था...हाँ..तो अब सवाल पर आते है...फिर से...सरिता को कैसे जानते हो....

वसीम(झल्ला कर)- ठीक है...मैं सरिता को जानता हूँ...असल मे इस वीडियो मे सरिता के साथ मैं ही बैठा हूँ....और ये तो तुम समझ ही गये होगे की हम दोनो ही तुम्हारी फॅमिली के दुश्मन थे...

मैं(ताली बजा कर)- बहुत अच्छे...सबाश अंकित...मैने जो सोचा था...वो सही निकला....तो अब आते है उस सवाल पर...जिसने मेरी लाइफ मे सबसे ज़्यादा खलबली मचा रखी है. ..

वसीम(मुझे देखता रहा और मेरे बोलने का वेट करता रहा)

मैं(वसीम की आँखो मे झाँक कर)- उस दिन...जब मेरी आरती बुआ, धर्मेश और सुभाष...दोनो फूफा जी..ये तीनो मारे गये....हाँ..साथ मे सरिता भी...उस दिन तुम वही थे...उसी घर मे...है ना....

मैं सवाल कर के वसीम की आँखो मे देखता रहा क्योकि मैने अंधेरे मे तीर छोड़ा था और वसीम की आँखे ही मेरे सवाल का सही जवाब बता सकती थी...

वसीम मेरा सवाल सुन कर झेप सा गया...उसकी आँखो मे झेप देख कर मैं समझ गया कि मेरा तीर निशाने पर लगा है....

मैं- आअंन्न ..तुम वही थे...वही ...उसी घर मे...बोलो...थे ना...थे ना...

मैने दोनो हाथ वसीम की चेयर के हॅंडल पर पटके और उसे घूर्ने लगा...

वसीम- ह..हाँ..मैं था...हाँ...

मैं(गुस्से से)- तो तूने मारा मेरे दोनो फुफाओ को ...और तेरी वजह से मेरी बुआ नही रही..मेरे डॅड को गाओं ने निकाल फेका और मेरी बुआ की मासूम बेटी...उसे भी नही छोड़ा तूने...ले गया उसे......हाँ..

वसीम(चिल्ला कर)- नही...मैने नही मारा...ना ही किसी बच्ची को उठाया...मैं तो वहाँ से भाग गया था ...

मैं(वसीम की कलर पकड़ कर)- झूट मत बोलो मुझसे....सच बता...

वसीम(मेरी आँखो मे देख कर)- मैं सच बोल रहा हूँ...मैने सिर्फ़ सरिता पर फाइयर किया था...सिर्फ़ उसी को मारने मैं गया था...बाकी किसी को नही...

मैं(वसीम की गर्दन पर दवाब बढ़ा कर)- फिर से झूट...मुझे बेवकूफ़ समझता है....सरिता तेरे साथ थी तो तू उसे क्यो मारने लगा..हाँ....

वसीम- क्योकि मैं चाहता था कि सरिता की मौत का ज़िम्मेदार आकाश को बना दूं...जिससे सरिता के पति मदन और आज़ाद के बीच बचा-खुचा प्यार भी ख़त्म हो जाए...मदन भी आज़ाद का दुश्मन बन जाए..बस...इसी लिए मैने सरिता पर गोली चलाई और वहाँ से भाग निकला...

मैं(चिल्ला कर)- झूट...झूट...झूट...उस दिन वहाँ 3 लोग मारे गये थे...क्या वो अपने आप मर गये...हाँ...तूने ही मारा होगा ..तूने...

वसीम(बीच मे चिल्ला कर)- नही...वहाँ कोई और भी था...जो सरिता के साथ था....

मैं(हैरानी से)- कोई और....कौन...कौन था...

वसीम(सिर हिला कर)- नही जानता..बस ये पता है कि वो सरिता के कहने पर आया था....


मैं- सरिता के...कैसा था...कौन..मतलब ..तुमने देखा होगा ना...कौन था...

वसीम- नही जानता...वो नकाब पहन कर आया था...

मैं- झूठ...साले जब सरिता तेरे साथ थी तो तुझे तो पता होगा ना...

वसीम- सच मे..नही जानता...वैसे भी सरिता बहुत शातिर थी...वो अपने सारे राज किसी को नही बताती थी...किसी को भी नही...

मैं- अच्छा...पर तूने पूछा तो होगा...जब वो वहाँ आया था...

वसीम- नही...मतलब..मैं छिपा हुआ था...और वो सरिता के साथ खड़ा था...मैने इसरे से पूछा...पर उसने बोला ही नही..बस रुकने को बोल दिया...

मैं- तो तू रुका क्यो नही...

वसीम- क्योकि मैं वहाँ एक मक़सद के साथ गया था..सरिता को मारने...इसलिए मैने सरिता पर गोली दागी और वहाँ से निकल गया...बस...

मैं(वसीम का गला छोड़ कर)- हाआत्ट...साला ....आअहह...

वसीम- अंकित...मैने वहाँ किसी को नही मारा...सच मे...

मैं- अगर ये सच है तो ठीक...लेकिन झूठ निकला तो ऐसी मौत दूँगा कि मौत भी काँप जाएगी...सोच ले...
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shubhs
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Re: चूतो का समुंदर

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सोच लिया
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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