मैं- वही जो तू सोच रहा है....उनकी मौत की वजह....और हम दोनो ही जानते है कि वो सब कैसे मारे गये....
वसीम- क्या...क्या बकता है...
मैं(चिल्ला कर)- बकता नही....सच बोल रहा हूँ....उन सब की मौत की वजह भी तू है...समझा....
वसीम- हाहाहा....तू..तू समझता क्या है...तू जो बोलेगा वो सच हो जायगा...हाँ...
मैं- नही...बिल्कुल नही...असल मे, मैं सच ही बोल रहा हूँ....
वसीम(गन तां कर)- चुप कर...वरना अभी तेरा भेजा बाहर कर दूँगा....
मैं- अच्छा...तुझे अब भी लगता है कि तू मुझे मार सकता है...हाँ...
वसीम- नही...लगता नही...मैं तुझे आज मार कर ही जाउन्गा....
मैं- ह्म..चलो ठीक है..मैं तुम्हारी बात मान लेता हूँ....तो तुम्हारे हिसाब से आज मैं मरने वाला हूँ...
वसीम- हाँ बिल्कुल...
मैं- ओके...मान लिया...तो क्या तुम मरने वाले की आख़िरी ख्वाहिश पूरी नही करोगे....
वसीम- हाहाहा...मुझे क्या वो वकील समझ रखा है जो फासी के वक़्त आख़िरी ख्वाहिस पूछता है....
मैं- नही...पर मैं चाहता हूँ कि मैं अपने सवालों के जवाब लेकर मरूगा तो शांति से मर पाउन्गा....बस और कुछ नही....
वसीम(एक चेयर ले कर बैठ गया)- ह्म..रिचा...तू भी बैठ जा...और तेरी बेटी को भी बैठा ले....क्योकि मैं इसके सारे सवालो के जवाब देने वाला हूँ...तो थोड़ा टाइम लगेगा....ह्म्म...तो बोल बच्चे...क्या सवाल है तेरा...
मैं- थॅंक्स...तो मेरा पहला सवाल ये है कि वो क्या वजह है जिस वजह से तुम मुझे मरने वाले हो...और मेरी फॅमिली के पीछे क्यो पड़े हो....क्यो तुम सरफ़राज़ से वसीम बने...हाँ....
वसीम मेरी बात सुनकर अपने अतीत मे खो गया और देखते ही देखते उसका चेहरा गुस्से से लाल होने लगा....
मैं- अब चुप क्यो हो गया...बोल ना...
वसीम(चिल्ला कर)- क्या जानना है तुझे....मेरे परिवार की बर्बादी...हाँ...तो सुन....
मेरे पिता अली ख़ान तेरे दादाजी आज़ाद को भाई से बढ़ कर मानते थे....और आज़ाद ने...उस आज़ाद ने मेरे माँ-बाप को जिंदा जला दिया....जला दिया....
मैं- पर क्यो....क्या इसलिए कि तुम्हारी माँ का मेरे दादाजी के साथ नाजायज़ रिश्ता था....
वसीम(गुस्से से तमतमाया हुआ)- हराम्जादे....मैं तुझे....
वसीम उठकर मुझे मारने बढ़ा पर रिया ने उसे रोक लिया....
वसीम- ये लड़की..मेरा हाथ छोड़ वरना...
मैं(बीच मे)- वसीम ख़ान...मैने ये बात इसलिए बोली क्योकि मुझे यही वजह बताई गई थी...
वसीम(चिल्ला कर)- किसने बोला...
मैं- तेरे बाजू मे देख...वही है...रिचा...
वसीम ने रिया से हाथ झटका और रिचा को एक जोरदार थप्पड़ खीच दिया....रिचा अपनी चेयर के साथ ज़मीन पर लूड़क गई....
वसीम(रिचा पर गन तान कर)- साली रंडी...तेरी ये हिम्मत की मेरी माँ के बारे मे....अब सबसे पहले तू मरेगी....
रिया(वसीम के सामने आकर)- नही अंकल...प्ल्ज़ मेरी माँ को मत मारिए...प्ल्ज़ अंकल....
रिचा- म्म..मैं क्या कहती...इसने मेरी बेटी की आड़ मे मुझसे पूछ लिया...और..तुमने असलियत बताने को मना किया था...तो मैने...
वसीम(रिचा को लात मार कर)- तो तू मेरी माँ को बदनाम करेगी....रुक जा रंडी...इसका हिसाब तो तुझे देना होगा....पहले ज़रा इस लड़के से निपट लूँ...
वसीम फिर से चेयर पर बैठ गया और गुस्से से सासे लेने लगा....
वसीम- सुन लिया ना...ऐसा कुछ नही था....आज़ाद अयाश था...पर उसकी नज़रों मे दोस्ती की वॅल्यू थी...
मैं- वाह...तुम फिर भी ये मानते हो कि मेरे दादाजी ने तुम्हारे घरवालो को जला दिया....
वसीम- हाँ...ये सच है...बिल्कुल सच....उसी ने जलाया...मेरे अब्बू...अम्मी...आमिर...(और वसीम ख़ान रोने लगा....)
मैं- नही...मैं नही मानता....मेरे दादाजी बिना किसी वजह के....
वसीम(चिल्ला कर)- वजह थी...और वो वजह थी तेरे दादाजी की झूठी शान...और उनकी वो कमीनी बेटी...आरती.....
मैं- क्या....ये क्या बोल रहे हो...आरती बुआ ने क्या किया....
वसीम- बताता हूँ...आज सब बताता हूँ....
मेरे और तुम्हारे परिवार मे बहुत अच्छा संबंध था.....और ये आज़ाद और अली की दोस्ती का नतीजा था....
आज़ाद और अली की तरह ही उन दोनो की बीवियों और बच्चो मे भी बहुत प्यार था....
मेरे भाई आमिर और आज़ाद की बेटी आरती के बीच भी बहुत अच्छी दोस्ती थी...दोनो साथ मे खेलते...साथ मे पढ़ते और साथ मे ही स्कूल जाते थे....
पर उमर बढ़ने के साथ-साथ उन दोनो की दोस्ती भी एक नया रूप लेने लगी....
मेरे भाई आमिर के दिल मे आरती के लिए मुहब्बत जाग उठी....
आमिर तो आरती से बेइंतहा मोहब्बत करने लगा...पर आरती को बोल नही पाया...असल मे उसे डर लगता था कि कही वो आरती को खो ना दे....
दूसरी तरफ आरती एक सरारती लड़की थी...वो आमिर के साथ भी शरारातें करती रहती थी...पर आमिर कभी नही समझ पाया कि आरती के दिल मे उसके लिए कुछ है भी या नही....
नतीज़ा ये हुआ कि वक़्त के साथ आमिर का प्यार बढ़ता गया...पर वो डर की वजह से आरती से कुछ नही कह पाया...इस वजह से वो अंदर ही अंदर घुटने सा लगा था....पर उसने ये बात किसी को नही कही ....
असल मे आमिर बहुत इमोशनल भी था....उसे ज़रा सी बात का इतना दुख हो जाता था कि क्या कहे...हद से ज़यादा....यू कहे तो उसके लिए हर छोटी से छोटी बात दिल को छु जाने वाली बात होती थी....
फिर एक दिन ऐसा आया जब आमिर की इस हालत का अंदाज़ा रिचा को हो गया...असल मे रिचा इन दोनो के साथ ही पढ़ती थी....
फिर रिचा की जबर्जस्ति से आमिर को सच कबूलना पड़ा...और रिचा ने आमिर को एक आइडिया दिया....
उसने बोला कि एक गुलाब का फूल स्कूल के बगीचे मे रख दो...अगर आरती ने उठा लिया तो हा समझो और नही तो ना ...
चूतो का समुंदर
- Ankit
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- shubhs
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Re: चूतो का समुंदर
आगे
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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- Ankit
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Re: चूतो का समुंदर
दूसरी तरफ रिचा ने ये बात आरती को भी बता दी...और फिर उसी दिन स्कूल के लंच टाइम मे आमिर ने एक गुलाब का फूल आरती के थोड़े पास रखा और वहाँ से निकल गया.....
थोड़ी देर बाद आरती उठी और मुस्कुरा कर वो फूल उठा लिया....इसका मतलब था हां....
आमिर बहुत खुश हो गया और उसने रिचा के कहने पर अपने घरवालो से आरती के घर रिश्ते की बात करने को कहा....क्योकि आरती ने रिचा से कह दिया था कि हाँ बोलते ही रिश्ते की बात करनी होगी....
आमिर की बात सुन कर मेरे माँ-बाप भी खुश थे...कि चलो दोस्ती अब रिस्तेदारि मे बदलेगी....और इसी लिए वो रिश्ता ले कर आज़ाद के घर पहुँचे....
पर वहाँ जा कर पता चला कि आरती ने धर्मेश से शादी करने का तय किया है....और धर्मेश के घरवाले भी रिश्ता ले कर आए हुए थे....
ये सब देख कर मेरे घरवाले शर्मिंदा हुए ...पर आमिर टूट गया....और उपर से आरती ने भी आमिर को बहुत कुछ सुना डाला...जिसे सुन कर आमिर बिखर सा गया....
फिर बच्ची की इस बहस मे मेरे अब्बू ने आरती को समझाना चाहा तो आज़ाद को ये बात बुरी लग गई और उसने मेरे अब्बू को बेइज्जत कर के वहाँ से जाने को कहा.....
मेरे घरवाले वापिस आ गये...और जो हुआ उसे भूलने की कोसिस करने लगे....पर आमिर...वो तो जीते जी मर गया था....और वो अपने रूम मे क़ैद हो गया....
आमिर से आरती की बेवफ़ाई सही नही गई और उसने अपने आप को फासी पर लटका लिया....
शाम तक जब उसका गेट नही खुला तो मेरे अब्बू ने गेट तोड़ दिया और सामने आमिर की लाश देख कर मेरे माँ-बाप होश खो बैठे....
अब्बू-अम्मी आमिर को नीचे उतार कर उसकी लाश पर रो ही रहे थे कि तभी आज़ाद वहाँ आ गया....
आज़ाद को देख कर अब्बू आपा खो बैठे और उनको थप्पड़ मारने लगे और आमिर की मौत का ज़िम्मेदार उन्हे ठहरा दिया...और घर से निकाल दिया...
बस...आज़ाद से अपना अपमान बर्दास्त नही हुआ...उपर से उसे डर भी गया कि कही आमिर की मौत के लिए उसकी लाडली बेटी पर आँच ना आ जाए....
और फिर आज़ाद ने मेरे घर को जला डाला ....और सब ख़त्म हो गया....
जब आग से लाश निकली गई तो मेरे अब्बू-अम्मी आमिर को सीने से चिपकाए उसके दोनो तरफ लेटे थे....बस तभी मैने उसको आख़िरी बार देखा.....
और तभी से तय कर लिया था कि जिसने मेरी फॅमिली को तवाह किया है....मैं उसकी पूरी फॅमिली का नाम-ओ-निसान मिटा दूँगा......
अब जान गया....क्या वजह है मेरे बदले की...जान गया ना....
और इतना बोलकर वसीम ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा......
मैं- वाउ...क्या मस्त स्टोरी है...गुड...
वसीम(गुस्से से)- ये कोई स्टोरी नही...सच्चाई है...
मैं- हाहाहा....सच्चाई...ये शब्द तुझ जैसे कमीने के मुँह से अच्छा नही लगता...
वसीम- चुप कर....नही तो...
मैं- क्यो...सच कड़वा लगा...हाँ...
वसीम- मैं कमीना...हाँ हूँ कमीना...और मुझे कमीना बनाया तेरे दादा ने...आज़ाद ने...
मैं- ह्म्म..तू क्या सोचता है...तू कुछ भी कहेगा और मैं मान लुगा....
वसीम- मैने हर एक लब्ज सच कहाँ है लड़के...
मैं- तू और सच...हाहाहा...जिस इंसान ने आज तक हर काम ग़लत किया...वो अब सच बोलेगा....
वसीम(दाँत पीस कर)- कहना क्या चाहता है तू...
मैं- अरे..कहना क्या...जो इंसान अपनी दो-दो बीवियों को आज तक झूट बोलता आया ...उस पर मैं भरोसा करूँ..नही...बात कुछ और ही है...
वसीम- न्न्ंहिी....ये सब सच है....
मैं- जिसने अपनी साली से नाजायद औलाद पैदा की...वो सच बोलेगा क्या....हाँ...
वसीम- बच्चे....बहुत बोल लिया...अब चुप हो जा...
मैं- नही होउंगा....साला तू तो इतना बड़ा कमीना है कि खुद की बीवी को दूसरे के साथ सुलाता है....
वसीम(गुस्से से)- चुप कर...
मैं- और तो और..खुद की बेटी को अपनी रखेल बना लिया...
वसीम(आगे बढ़ कर)- बस...चुप हो जा...
मैं- अरे तू तो वो दरिन्दा है जो अपनी सग़ी बेटी तक को अपनी रखेल बना ले....फिर जूही तो....
वसीम(गुस्से से तमतमाता हुआ)- चुप हो जा वरना....
मैं- वरना क्या....अरे जूही को छोड़...तू तो रूबी और गुल को भी अपनी रखेल...
वसीम(चिल्ला कर)- चुप कर...
और फिर रूम मे सिर्फ़ गोली चलने की और चीखने की आवाज़े गूंजने लगी....
""ढ़हाईए...द्ड़हायईए....द्ड़हआइई......""
"आआआआअहह""
""आआंन्नकक्कीित्त्त्टतत्त....न्न्नहिईीईईईईईईईईई""
गोली की आवाज़ और लोगो की चीख के बाद पूरे बेसमेंट मे खामोशी छा गई.....
और रूम मे फैली इस खामोसी के बीच 4 आँखे फटी की फटी रह गई....2 आँखे रिचा की थी और 2 वसीम की....
थोड़ी देर बाद आरती उठी और मुस्कुरा कर वो फूल उठा लिया....इसका मतलब था हां....
आमिर बहुत खुश हो गया और उसने रिचा के कहने पर अपने घरवालो से आरती के घर रिश्ते की बात करने को कहा....क्योकि आरती ने रिचा से कह दिया था कि हाँ बोलते ही रिश्ते की बात करनी होगी....
आमिर की बात सुन कर मेरे माँ-बाप भी खुश थे...कि चलो दोस्ती अब रिस्तेदारि मे बदलेगी....और इसी लिए वो रिश्ता ले कर आज़ाद के घर पहुँचे....
पर वहाँ जा कर पता चला कि आरती ने धर्मेश से शादी करने का तय किया है....और धर्मेश के घरवाले भी रिश्ता ले कर आए हुए थे....
ये सब देख कर मेरे घरवाले शर्मिंदा हुए ...पर आमिर टूट गया....और उपर से आरती ने भी आमिर को बहुत कुछ सुना डाला...जिसे सुन कर आमिर बिखर सा गया....
फिर बच्ची की इस बहस मे मेरे अब्बू ने आरती को समझाना चाहा तो आज़ाद को ये बात बुरी लग गई और उसने मेरे अब्बू को बेइज्जत कर के वहाँ से जाने को कहा.....
मेरे घरवाले वापिस आ गये...और जो हुआ उसे भूलने की कोसिस करने लगे....पर आमिर...वो तो जीते जी मर गया था....और वो अपने रूम मे क़ैद हो गया....
आमिर से आरती की बेवफ़ाई सही नही गई और उसने अपने आप को फासी पर लटका लिया....
शाम तक जब उसका गेट नही खुला तो मेरे अब्बू ने गेट तोड़ दिया और सामने आमिर की लाश देख कर मेरे माँ-बाप होश खो बैठे....
अब्बू-अम्मी आमिर को नीचे उतार कर उसकी लाश पर रो ही रहे थे कि तभी आज़ाद वहाँ आ गया....
आज़ाद को देख कर अब्बू आपा खो बैठे और उनको थप्पड़ मारने लगे और आमिर की मौत का ज़िम्मेदार उन्हे ठहरा दिया...और घर से निकाल दिया...
बस...आज़ाद से अपना अपमान बर्दास्त नही हुआ...उपर से उसे डर भी गया कि कही आमिर की मौत के लिए उसकी लाडली बेटी पर आँच ना आ जाए....
और फिर आज़ाद ने मेरे घर को जला डाला ....और सब ख़त्म हो गया....
जब आग से लाश निकली गई तो मेरे अब्बू-अम्मी आमिर को सीने से चिपकाए उसके दोनो तरफ लेटे थे....बस तभी मैने उसको आख़िरी बार देखा.....
और तभी से तय कर लिया था कि जिसने मेरी फॅमिली को तवाह किया है....मैं उसकी पूरी फॅमिली का नाम-ओ-निसान मिटा दूँगा......
अब जान गया....क्या वजह है मेरे बदले की...जान गया ना....
और इतना बोलकर वसीम ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा......
मैं- वाउ...क्या मस्त स्टोरी है...गुड...
वसीम(गुस्से से)- ये कोई स्टोरी नही...सच्चाई है...
मैं- हाहाहा....सच्चाई...ये शब्द तुझ जैसे कमीने के मुँह से अच्छा नही लगता...
वसीम- चुप कर....नही तो...
मैं- क्यो...सच कड़वा लगा...हाँ...
वसीम- मैं कमीना...हाँ हूँ कमीना...और मुझे कमीना बनाया तेरे दादा ने...आज़ाद ने...
मैं- ह्म्म..तू क्या सोचता है...तू कुछ भी कहेगा और मैं मान लुगा....
वसीम- मैने हर एक लब्ज सच कहाँ है लड़के...
मैं- तू और सच...हाहाहा...जिस इंसान ने आज तक हर काम ग़लत किया...वो अब सच बोलेगा....
वसीम(दाँत पीस कर)- कहना क्या चाहता है तू...
मैं- अरे..कहना क्या...जो इंसान अपनी दो-दो बीवियों को आज तक झूट बोलता आया ...उस पर मैं भरोसा करूँ..नही...बात कुछ और ही है...
वसीम- न्न्ंहिी....ये सब सच है....
मैं- जिसने अपनी साली से नाजायद औलाद पैदा की...वो सच बोलेगा क्या....हाँ...
वसीम- बच्चे....बहुत बोल लिया...अब चुप हो जा...
मैं- नही होउंगा....साला तू तो इतना बड़ा कमीना है कि खुद की बीवी को दूसरे के साथ सुलाता है....
वसीम(गुस्से से)- चुप कर...
मैं- और तो और..खुद की बेटी को अपनी रखेल बना लिया...
वसीम(आगे बढ़ कर)- बस...चुप हो जा...
मैं- अरे तू तो वो दरिन्दा है जो अपनी सग़ी बेटी तक को अपनी रखेल बना ले....फिर जूही तो....
वसीम(गुस्से से तमतमाता हुआ)- चुप हो जा वरना....
मैं- वरना क्या....अरे जूही को छोड़...तू तो रूबी और गुल को भी अपनी रखेल...
वसीम(चिल्ला कर)- चुप कर...
और फिर रूम मे सिर्फ़ गोली चलने की और चीखने की आवाज़े गूंजने लगी....
""ढ़हाईए...द्ड़हायईए....द्ड़हआइई......""
"आआआआअहह""
""आआंन्नकक्कीित्त्त्टतत्त....न्न्नहिईीईईईईईईईईई""
गोली की आवाज़ और लोगो की चीख के बाद पूरे बेसमेंट मे खामोशी छा गई.....
और रूम मे फैली इस खामोसी के बीच 4 आँखे फटी की फटी रह गई....2 आँखे रिचा की थी और 2 वसीम की....
- Ankit
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Re: चूतो का समुंदर
वसीम और रिचा दोनो ही सामने देखे जा रहे थे...और इस तरह परेशान थे जैसे कि उन्होने भूत देख लिया हो....
अब तक उनके सामने जिस चेयर पर मैं बँधा हुआ बैठा था....वो गोली चलते ही खाली हो गई थी....
ये नज़ारा देख कर वसीम और रिचा के दिमाग़ सुन्न पड़ गये ...वो समझ ही नही पा रहे थे कि आख़िर अंकित अचानक से गायब कैसे हो गया.....
तभी रूम मे पसरे सन्नाटे को चीरती हुई हसी के ठहाके की आवाज़ गूज़ उठी.......
मैं- हाहहहाहा...आहजाहहाहा.....
वसीम मेरे ठहाके सुन कर चारो तरफ घूम-घूम कर देखने लगा....और साथ मे रिचा भी....दोनो ही उस रूम मे मुझे तलाश रहे थे...पर उनके हाथ कुछ भी ना लगा.....
वसीम(सहमा हुआ)- सीसी..कहाँ हो तुम...कहाँ हो...सामने आओ....
मैं- वसीम ख़ान...आँखे फाड़ कर इधर-उधर क्या देख रहे हो....मैं वही हूँ जहाँ मुझे होना चाहिए....सामने देख....मैं वही हूँ....जहाँ तूने मुझ पर गोली चलाई...देख....
मेरी आवाज़ सुनकर वसीम और रिचा ने वापिस चेयर की तरफ देखा तो पाया कि मैं अभी भी उसी चेयर पर बँधा बैठा हूँ....
रिचा- याइ...ये तो यही है....पर ये तो...जिंदा है....
मैं- हाँ मेरी जान....मैं जिंदा भी हूँ और बिल्कुल ठीक भी....
रिचा- ये कैसे हो सकता है...तुम्हे तो गोली....और तुम गायब कैसे हो गये थे....
मैं- हाहाहा....अपने दिमाग़ को इतनी टेन्षन मत दे....दिमाग़ की नसें फट जाएगी....
वसीम(गुस्से से)- अबे चुप....सॉफ-सॉफ बोल ये सब...आख़िर चक्कर क्या है...
मैं(दाँत पीसते हुए)- मैने कहा था ना....तू मुझे मार नही सकता....कहा था ना....
वसीम(गुस्से मे भरा हुआ आगे बढ़ा)- और मैने भी कहा था कि आज तू मरेगा....
और वसीम ने मेरे पास आकर जैसे ही मेरे सिर पर गन रखनी चाही तो वह दंग रह गया....
वसीम(चीख कर)- आआआअ.....कमीने.....हाआटतत्त.....
वसीम चीखते हुए फिर से रूम मे चारो तरफ देखने लगा....और ये सब देख कर रिचा की आँखे और ज़्यादा बड़ी हो गई....
रिचा- तो ये...ये अंकित नही था....बल्कि...
वसीम(बीच मे)- हाँ...वो उसकी इमेज थी....पर वो है तो यही कही....हन....यही हमारे पास....ढूढ़ उसे....
रिचा(डरी हुई)- म्म..मैं...मैं कहाँ ढूढ़ुँ...
रिचा की बात सुन कर वसीम गुस्से से रिचा की तरफ लपका और एक हाथ से उसका गला पकड़ा और दूसरे हाथ से उसके माथे पर गन लगा दी.....
वसीम- तू ही बताएगी कि वो साला कहाँ है.....बता....
वसीम को रिचा के पास देख कर रिया की चीख निकल गई और रिचा तो बेचारी गन देख कर पीली ही पड़ने लगी.....
रिचा(डरते हुए)- वसीम...मैं ..मैं नही जानती....सच मे...
वसीम(चिल्ला कर)- हटत्त...मुझे तेरी बकवास नही सुननी....जल्दी से बोल वरना तुझे तो....बोल साली...
रिचा(ज़ोर से)- मैं नही जानती....
वसीम(हँसता हुआ)- तू नही जानती...हां...तो अब उससे पूछता हूँ जो सब जानता है...
और वसीम ने एक झटके मे रिचा को धक्का देकर नीचे गिरा दिया और लपक कर रिया को अपनी गिरफ़्त मे ले लिया..और उस पर गन तान दी...
रिया- आआअहह..मोममम..
रिचा- वसीम...मेरी बेटी को छोड़...
वसीम(चीखते हुए)- चुउउउप्प्प्प....अब ना कोई बेटी...ना कोई माँ...सब मरेगे....बोल साली....तुझे तो पता होगा ना....कहाँ है वो....बोल...हां...
रिचा ने उठकर वसीम के पैर पकड़ लिए और अपनी बेटी को छोड़ने की मिन्नतें करने लगी...जबकि वसीम रिया के बालो को खीचते हुए अपना मुँह उसके कान के पास घुमा रहा था और गन को रिया के सीने पर फिरा रहा था....
वसीम(रिया को सूघ कर)- आहह...कच्ची कली....उउंम...क्यो मरना चाहती है...ये तेरे मरने की उमर नही....उउंम...बता दे...हाँ...बता दे...कहाँ है वो...उउंम...बोल ना...
रिचा(रोते हुए)- वसीम...मेरी बच्ची...मेरी बच्ची को छोड़ दे...वसीम ...छोड़ से उसे प्ल्ज़्ज़....
वसीम-चुप कर...और तू...आअहह...बोल भी दे...वरना जवानी का मज़ा लेने से पहले ही तू...हाहाहा..बोल ना(चिल्ला कर)
मैं- वसीम....छोड़ दो उसे....
वसीम मेरी आवाज़ सुन कर फिर से चारो तरफ देखने लगा.....
वसीम- छोड़ दूं..हाँ...अगर तू चाहता है कि मैं इसे छोड़ू तो पहले तू सामने आ...वरना...
मैं- देख...तेरी दुश्मनी मुझसे है...रिया को बीच मे मत ला...मुझसे बात कर...
वसीम(रिया के बाल खीच कर)- तो फिर आ और बचा ले इसे...दिखा अपनी मर्दानगी....साला...नमर्दो की तरह छिप बैठा है...आ ना...
मैं- हाहाहा....नमर्द वो होते है वसीम ख़ान जो औरत पर ज़ोर चलाते है....समझे...
वसीम- अबे चुप....सीधे से सामने आता है या फिर मैं इसे उपेर भेजू...हाँ...
वसीम ने रिया के बाल खीचे और गन को उसके माथे पर अड़ा दिया...
वसीम- बोल अंकित....आता है या टपका दूं इसे....हाँ...
मैं- वसीम...उसे कुछ किया तो...
वादिम(बीच मे)- भाड़ मे गया तू...अब ये गई...
मैं- सोनम...अभी...
और इससे पहले की वसीम कुछ समझ पाता ...रूम मे फिर से गोली चली और सीधा वसीम के हाथ पर टकराई....
हाथ पर गोली लगते ही वसीम के हाथ से गन छूट गई और दूर जा गिरी....
अब तक उनके सामने जिस चेयर पर मैं बँधा हुआ बैठा था....वो गोली चलते ही खाली हो गई थी....
ये नज़ारा देख कर वसीम और रिचा के दिमाग़ सुन्न पड़ गये ...वो समझ ही नही पा रहे थे कि आख़िर अंकित अचानक से गायब कैसे हो गया.....
तभी रूम मे पसरे सन्नाटे को चीरती हुई हसी के ठहाके की आवाज़ गूज़ उठी.......
मैं- हाहहहाहा...आहजाहहाहा.....
वसीम मेरे ठहाके सुन कर चारो तरफ घूम-घूम कर देखने लगा....और साथ मे रिचा भी....दोनो ही उस रूम मे मुझे तलाश रहे थे...पर उनके हाथ कुछ भी ना लगा.....
वसीम(सहमा हुआ)- सीसी..कहाँ हो तुम...कहाँ हो...सामने आओ....
मैं- वसीम ख़ान...आँखे फाड़ कर इधर-उधर क्या देख रहे हो....मैं वही हूँ जहाँ मुझे होना चाहिए....सामने देख....मैं वही हूँ....जहाँ तूने मुझ पर गोली चलाई...देख....
मेरी आवाज़ सुनकर वसीम और रिचा ने वापिस चेयर की तरफ देखा तो पाया कि मैं अभी भी उसी चेयर पर बँधा बैठा हूँ....
रिचा- याइ...ये तो यही है....पर ये तो...जिंदा है....
मैं- हाँ मेरी जान....मैं जिंदा भी हूँ और बिल्कुल ठीक भी....
रिचा- ये कैसे हो सकता है...तुम्हे तो गोली....और तुम गायब कैसे हो गये थे....
मैं- हाहाहा....अपने दिमाग़ को इतनी टेन्षन मत दे....दिमाग़ की नसें फट जाएगी....
वसीम(गुस्से से)- अबे चुप....सॉफ-सॉफ बोल ये सब...आख़िर चक्कर क्या है...
मैं(दाँत पीसते हुए)- मैने कहा था ना....तू मुझे मार नही सकता....कहा था ना....
वसीम(गुस्से मे भरा हुआ आगे बढ़ा)- और मैने भी कहा था कि आज तू मरेगा....
और वसीम ने मेरे पास आकर जैसे ही मेरे सिर पर गन रखनी चाही तो वह दंग रह गया....
वसीम(चीख कर)- आआआअ.....कमीने.....हाआटतत्त.....
वसीम चीखते हुए फिर से रूम मे चारो तरफ देखने लगा....और ये सब देख कर रिचा की आँखे और ज़्यादा बड़ी हो गई....
रिचा- तो ये...ये अंकित नही था....बल्कि...
वसीम(बीच मे)- हाँ...वो उसकी इमेज थी....पर वो है तो यही कही....हन....यही हमारे पास....ढूढ़ उसे....
रिचा(डरी हुई)- म्म..मैं...मैं कहाँ ढूढ़ुँ...
रिचा की बात सुन कर वसीम गुस्से से रिचा की तरफ लपका और एक हाथ से उसका गला पकड़ा और दूसरे हाथ से उसके माथे पर गन लगा दी.....
वसीम- तू ही बताएगी कि वो साला कहाँ है.....बता....
वसीम को रिचा के पास देख कर रिया की चीख निकल गई और रिचा तो बेचारी गन देख कर पीली ही पड़ने लगी.....
रिचा(डरते हुए)- वसीम...मैं ..मैं नही जानती....सच मे...
वसीम(चिल्ला कर)- हटत्त...मुझे तेरी बकवास नही सुननी....जल्दी से बोल वरना तुझे तो....बोल साली...
रिचा(ज़ोर से)- मैं नही जानती....
वसीम(हँसता हुआ)- तू नही जानती...हां...तो अब उससे पूछता हूँ जो सब जानता है...
और वसीम ने एक झटके मे रिचा को धक्का देकर नीचे गिरा दिया और लपक कर रिया को अपनी गिरफ़्त मे ले लिया..और उस पर गन तान दी...
रिया- आआअहह..मोममम..
रिचा- वसीम...मेरी बेटी को छोड़...
वसीम(चीखते हुए)- चुउउउप्प्प्प....अब ना कोई बेटी...ना कोई माँ...सब मरेगे....बोल साली....तुझे तो पता होगा ना....कहाँ है वो....बोल...हां...
रिचा ने उठकर वसीम के पैर पकड़ लिए और अपनी बेटी को छोड़ने की मिन्नतें करने लगी...जबकि वसीम रिया के बालो को खीचते हुए अपना मुँह उसके कान के पास घुमा रहा था और गन को रिया के सीने पर फिरा रहा था....
वसीम(रिया को सूघ कर)- आहह...कच्ची कली....उउंम...क्यो मरना चाहती है...ये तेरे मरने की उमर नही....उउंम...बता दे...हाँ...बता दे...कहाँ है वो...उउंम...बोल ना...
रिचा(रोते हुए)- वसीम...मेरी बच्ची...मेरी बच्ची को छोड़ दे...वसीम ...छोड़ से उसे प्ल्ज़्ज़....
वसीम-चुप कर...और तू...आअहह...बोल भी दे...वरना जवानी का मज़ा लेने से पहले ही तू...हाहाहा..बोल ना(चिल्ला कर)
मैं- वसीम....छोड़ दो उसे....
वसीम मेरी आवाज़ सुन कर फिर से चारो तरफ देखने लगा.....
वसीम- छोड़ दूं..हाँ...अगर तू चाहता है कि मैं इसे छोड़ू तो पहले तू सामने आ...वरना...
मैं- देख...तेरी दुश्मनी मुझसे है...रिया को बीच मे मत ला...मुझसे बात कर...
वसीम(रिया के बाल खीच कर)- तो फिर आ और बचा ले इसे...दिखा अपनी मर्दानगी....साला...नमर्दो की तरह छिप बैठा है...आ ना...
मैं- हाहाहा....नमर्द वो होते है वसीम ख़ान जो औरत पर ज़ोर चलाते है....समझे...
वसीम- अबे चुप....सीधे से सामने आता है या फिर मैं इसे उपेर भेजू...हाँ...
वसीम ने रिया के बाल खीचे और गन को उसके माथे पर अड़ा दिया...
वसीम- बोल अंकित....आता है या टपका दूं इसे....हाँ...
मैं- वसीम...उसे कुछ किया तो...
वादिम(बीच मे)- भाड़ मे गया तू...अब ये गई...
मैं- सोनम...अभी...
और इससे पहले की वसीम कुछ समझ पाता ...रूम मे फिर से गोली चली और सीधा वसीम के हाथ पर टकराई....
हाथ पर गोली लगते ही वसीम के हाथ से गन छूट गई और दूर जा गिरी....
- shubhs
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Re: चूतो का समुंदर
बिंदास
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हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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