ha ha hashubhs wrote:और हम भी
चूतो का समुंदर
- Ankit
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Re: चूतो का समुंदर
- Ankit
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Re: चूतो का समुंदर
फिर रूबी कपड़े पहन कर लाइब्ररी से निकल गई और मैने लाइब्ररी मे ही थोड़ा रेस्ट किया और फिर फ्रेश हो कर कॅंटीन मे आ गया...जहा संजू और अकरम मेरी ही राह देख रहे थे...
अकरम- कहाँ था भाई...
संजू(मुस्कुरा कर)- किसी को चोद रहा था क्या...??
मैं- चुप साले....ये स्कूल है...यहाँ तो देख कर बोला कर...
संजू- अबे यहाँ क्या प्राब्लम है...आधे से ज़्यादा यही करते है...
मैं- ह्म्म..चल छोड़...ये बता...अब क्या प्लान है...
अकरम- यार...मेरा तो मन है कि मस्त बियर पीते हुए ड्राइव पर चलते है...बहुत दिन हो गये ऐसे घूमे हुए...
मैं- ओह...आइडिया अच्छा है...
संजू- हाँ...और खाने को चिकन ले लेते है...
मैं- ह्म्म..तो चलो...सब ले कर मेरे फार्महाउस तक चलते है...घूमना भी हो जायगा और मैं फार्म के काम को भी देख लूँगा...क्या कहते हो...
अकरम- कहना क्या है...चल फिर...
और हमने सब सामान लिया और बियर पीते हुए फार्महाउस निकल गये.....
अकरम- ऊहह बेबी....व्हट आ डे ...
मैं- क्या हुआ साले...कुछ ज़्यादा ही खुश हो गया....
अकरम- यस ब्रो...आज पुरानी यादे ताज़ा ही गई....
संजू- हाँ यार...कितने दिनो बाद....बियर,कार न्ड फ्रेंड....
मैं- सही कहा....एंजोइई....
हम तीनो कार मे बैठे बियर उड़ाते हुए फुल स्पीड से जा रहे थे...ड्राइवर अकरम बना था...
अकरम- हे दोस्तो...एक और खास बात है ....
मैं- अब क्या...
अकरम- कल रात मैने...
मैं- रुक क्यो गया...बोल ना...
अकरम- कल रात मैने रूही की ले ली....फिनाल्लयययी...
संजू- वाह रे शेर...चीररसस्स...
मैं- डाट्स लाइक माइ फ्रेंड....च्षरर्र्स...
अकरम- हहूउर्रीई...
और तभी अचानक एक कार हमे कट मारते हुए निकल गई...
उस कार का पिछला हिस्सा थोड़ा सा हमारी कार के आगे टकराया और हमारी कार कंट्रोल से बाहर हो कर रोड के नीचे चली गई...
अकरम- हीय्य...ब्बीन्चोद....
संजू- मादर्चोद...रुक...
मैं- ओये...संभाल साले...सामने पेड़ है...
अकरम , मैं और संजू- मर गये....
और धडाम की आवाज़ के साथ कार रुक गई...पर किस्मत अच्छी थी...पेड़ से टकराने के जस्ट पहले मैने हॅंड ब्रेक पुल कर दिया...जिससे कार स्किट हो गई...
तब भी कार पेड़ से टकराई...पर सामने से नही...साइड से...क्योकि कार घूम गई थी....
फिर भी टक्कर इतनी तेज थी कि हम तीनो हिल गये ...और संजू तो बेहोश ही हो गया .....
आज पहली बार पता चला कि शीटबेल्ट बाँधने का कितना फ़ायदा है....
मैं और अकरम तो आगे बैठे शीटबेल्ट बाँधे थे...तो हमे कोई दिक्कत नही हुई...
बट संजू पीछे बैठा था...और टक्कर लगने से उसका सिर टकरा गया और वो बेहोश हो गया....
थोड़ी देर तक हम मे से किसी की आवाज़ नही निकली...फिर अकरम बोला...
अकरम- भाइयो...सब ठीक है ना...
मैं- एयेए...शायद...बच गये...उऊहह...
अकरम- हाँ...बच ही गये...
फिर हम दोनो ने बेल्ट खोले और बाहर निकलने के लिए कदम उठाए तो हमारी आह निकल गई....
असल मे हम दोनो के पैरो मे चोट आ गई थी...
मैं- आअहह...मर गया...
अकरम- साला पैरो का तो बुरा हाल है...छोड़ूँगा नही साले को...
मैं- चल निकल तो पहले...और संजू तू भी ...
और मैने संजू को देखा तो वो बेहोश पड़ा था...
मैं- ओह माइ गॉड...इसे क्या हो गया...पानी दे अकरम.....
अकरम- पानी...पानी नही है..ये ले...
और अकरम ने बियर संजू के मुँह पर डाल दी...और संजू झटपटा कर उठ गया....
संजू- मर गया...मर गया....बचाओ...
मैं- अबे साले..जिंदा है तू...चल बाहर निकल...
फिर हम बाहर निकले और सभी उस कार वाले को गालियाँ बकने लगे....
अकरम- आख़िर था कौन मदर्चोद...और हमसे क्या दुश्मनी थी ...
संजू- साला मारना ही चाहता था क्या...बेन्चोद...
मैं- रिलॅक्स यार...शायद कोई दारू पी कर ड्राइव कर रहा था...ज़्यादा मत सोचो...ऐसा हो जाता है...
अकरम- हां...हो तो सकता है ..
मैं- फिलहाल हमे यहाँ से निकल कर हॉस्पिटल जाना चाहिए...हमारे पैर तो चेक करा ले...और इस संजू का सिर भी...साला बेहोश हो गया था...
अकरम- हाहाहा...सही कहा...चल फिर...ऊहह...दर्द हो रहा है...
संजू- पर हम जाएँगे कैसे...यहाँ तो कोई दिख भी नही रहा...वेट करो और क्या...
मैं- ह्म..वेट ही करते है...मैं आता हूँ ...धार मार लूँ...
फिर मैने उन दोनो से दूर आया और अपने आदमी को कॉल किया...
( कॉल पर )
स- हाँ अंकित...
मैं- मेरी बात सुनो....
स- तुम्हारी बोलने की टोन....सब ठीक है ना..
मैं- सुनो..बताता हूँ...
और फिर मैने सब कुछ बता दिया...
स- क्या...ये तुम्हारे लिए था...पर किसने किया...और हो कहाँ तुम...ठीक तो हो...
मैं- हाँ..मैं ठीक हू..और मेरे दोस्त भी...बस थोड़ा पैर मे चोट है बस...
स- मैं आता हूँ...कहा हो तुम...
मैं- आपको नही आना...बस किसी और को भेज दो...और मैं...ह्म्म..अपने फार्महाउस के पास ही हूँ...रोड पर ही दिख जाउन्गा...बस कार भेज दो...पर आप नही आना...ओके..
स- ओके...अभी भेजता हूँ...और तुम ये बताओ कि तुमने कार देखी थी...कौन चला रहा था...या नंबरप्लेट...कुछ देखा था....
मैं- बस इतना याद है कि ब्लू कलर की होंडासिटी थी...और कुछ नही देखा...वो आपको पता करना है.
स- ओके...मैं 2 दिन मे ढूँढ निकालूँगा...तुम अभी घर जाओ...बाकी मैं देख लूँगा...
मैं- ओके..बाइ...
फिर कॉल कट करने के बाद लगभग 20-25 मिनट मे कार आ गई और हम हॉस्पिटल पहुच गये...और चेक-अप करा कर हम अपने घर निकल गये....
- Ankit
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Re: चूतो का समुंदर
मैने संजू और अकरम को बोल दिया था कि इस बात का किसी को पता ना चले...पर मैं गहरी सोच पड़ गया था ..कि आख़िर ये किया किसने है...साला मारना ही है तो मार दे...इस सब से क्या फ़ायदा...
एक बार पता चल जाए...तो इस बंदे को छोड़ूँगा नही...मेरे दोस्तो को भी नही छोड़ा...इसकी कीमत तो चुकानी ही होगी...
वेल...मैं नॉर्माली घर आया और किसी को शक भी नही होने दिया कि मुझे चोट लगी है...
पर मैने गौर किया कि रश्मि मुझे बार-बार देख रही थी...
मैं(मन मे)- अगर इस सब मे इसका हाथ भी निकला...तो ये गई...अब इसे टाइम नही दूँगा...सीधा ठोक दूँगा...
फिर मैने थोड़ा रेस्ट किया और फिर कामिनी के घर चला गया...दामिनी का हाल जानने....
वहाँ जा कर देखा कि दामिनी के पास रिचा बैठी हुई है....और दामिन पेन और पेपर थामे बैठी थी...
मैं- अरे..दामिनी जी...क्या हो रहा है...
रिचा- अरे अंकित...आओ..वो मैने ये पेन-पेपर दिया है इसे....
मैं- अच्छा...किस लिए...
रिचा- वो ..मैने कहा कि जो मान मे आए...वो लिखो...या फिगर ही बना दो...इससे पता तो चलेगा कि इसके मन मे चल क्या रहा है..
मैं- गुड...वैसे आप अब तक यहाँ...आइ मीन रात हो गई..और आपकी बेटी अकेली होगी...
रिचा- नही...वो तो फ्रेंड के घर पर है...और मैं जा ही रही थी...वैसे तुम ठीक हो....
मैं- हाँ...क्यो..मुझे क्या होना है...
रिचा- नही..वो बस ऐसे ही पूछ लिया...
मैं- कोई नही...मैं ठीक हूँ...और ठीक ही रहुगा...मरेगे तो मेरे दुश्मन..
मैने रिचा की आँखो मे आँखे डाल कर ये बात बोली...जिससे वो सकपका गई....
रिचा- हूँ...क्यो नही...वो तो है...
और रिचा ने फिर से अपनी नज़रे दामिनी पर घुमा ली...
मैं(मन मे)- मैं जानता हूँ कि मुझ पर हुए हमले मे तेरा भी हाथ हो सकता है....बस एक बार मेरा आदमी मुझे कन्फर्म बता दे...और तू निकली ना तो ढंग से तेरी बजाउन्गा.....
तभी एक नौकरानी रिचा से कुछ बात करने लगी और अचानक से दामिनी उठी और मेरा गला पकड़ के मुझे नीचे गिरा दिया....
दामिनी- मैं तुझे छोड़ुगी नही...मार दूगी....आआहह...
मैं नीचे गिरा तो मेरा सिर घूम गया...पर दामिनी मेरे सीने पर आ गई और मेरी कलर पकड़ कर चिल्लाती रही...
रिचा ने ये देखा तो सबको आवाज़ दी...नर्स भी आ गई और नौरानी भी...सुषमा और काजल भी आ गई...
सबने दामिनी को उठाया तो दामिनी अचानक बेहोश हो गई...तो उसे लिटा दिया..
मैं भी उठ गया था...पर मेरे सिर मे दर्द था...
नर्स ने दामिनी को नीद का इंजेक्षन दिया और डॉक्टर को बुला लिया...
थोड़ी देर बाद डॉक्टर आया और उसने बताया कि ये सब साइडिफक्ट है...होता है कभी-कभी...डरने की बात नही...इसे रेस्ट करने दो बस...
फिर हम सब उसे छोड़ कर निकल गये...और मैं घर आ गया...
घर आ कर मुझे गुस्सा आ रहा था...पहले मेरी कार ठोक दी किसी ने और अब ये दामिनी...साला क्या दिन था आज...
मैने डिन्नर रूम मे लाने का बोल दिया था...और रूम मे आते ही एक पेग लगा लिया...फिर दूसरा पेग बनाया और अपनी शर्ट निकाल के फेक दी...
और जब दूसरा पेग ख़त्म किया तो मेरी नज़र मेरी शर्ट पर पड़ी...
मैने देखा कि शर्ट के पास एक पेपर का छोटा टुकड़ा पड़ा है...पर ये है क्या...
मैने पेपर का टुकड़ा उठाया तो उस पर एक नाम लिखा था...
""सरफ़राज़ ""
मैं- सरफ़राज़...कौन है ये...और आया कहाँ से....???????????
हाथ मे लिए कागज के टुकड़े को देखते हुए मेरे मन मे कई ख्याल आ तहे थे....
ये टुकड़ा आया कहाँ से...??
इस पर लिखा नाम है किसका ...???
और सबसे ज़रूरी बात...ये लिखा किसने और यहाँ कैसे आया.....
कुछ देर तक मैं आज हुई घटनाओ को सोचता रहा और एंड मे इसी नतीजे पर पहुचा कि हो ना हो ...ये टुकड़ा दामिनी के रूम से ही आया है...
क्या ये टुकड़ा दामिनी ने ही शर्ट मे डाला....अगर हाँ तो इसका मतलब वो ठीक है....उसकी याददस्त नही गई...
पर अगर वो ठीक है तो ये ड्रामा किस लिए....क्या वो किसी से डर रही है...???
हां...यही बात होगी...शायद वो अपने साथियो से डरी हुई है...शायद वो ये सोच रही है कि अगर उसके साथियों को ये पता चला कि उसने मुझे कुछ बोला...तो वो मारी जाएगी...या फिर कोई और बात...
पर पता कैसे चलेगा....एक ही रास्ता है...दामिनी से बात करनी होगी...
पर अगर दामिनी अपने घर मे ही डरी हुई है...तो बात क्या खाक करेगी...
पर उसे घर मे डर किसका...रिचा का...??
पर वो तो पूरे टाइम नही रहती...तो किसका ...क्या उस पर कोई नज़र रखे हुए है...या फिर....कही ऐसा तो नही कि उसके रूम मे कोई कॅमरा छिपा हो...पर कौन कर सकता है ये...???
- Ankit
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Re: चूतो का समुंदर
थोड़ी सी देर मे मेरे माइंड मे कई सवालो ने जन्म ले लिया...और उन सब के जवाब मुझे दामिनी के घर से ही मिलेगे....
मन तो किया की अभी जा कर सब क्लियर कर लूँ...पर फिर सोचा कि कही मेरी एक भूल से दामिनी की फॅमिली ख़तरे मे ना आ जाए ...
अगर दामिनी जैसी औरत डर के मारे इतना नाटक कर रही है तो बात ज़रूर बड़ी ही होगी...
कुछ तो है..जो मेरी नज़रों से दूर है...कोई चीज़...कोई सक्श...क्या हो सकता है...
मैं ड्रिंक करते हुए काफ़ी देर जवाब ढूंढता रहा पर हाथ कुछ नही लगा...
और ड्रिंक के सुरूर मे ...मैने सोच को साइड रखा और सो गया....
अगली सुबह फिर से मेघा नही आई थी...शायद तवियत ठीक नही हुई...
मैं रेडी हुआ और स्कूल निकल गया...बट आज अकरम नही आया था ...संजू ने बताया कि वो चल नही पा रहा...
मैने संजू को स्कूल मे छोड़ा और अकरम को देखने उसके घर निकल गया ....
अकरम के घर हाल मे एंटर होते ही सबनम और सादिया दिखाई दी...दोनो कहीं जाने की तैयारी मे थी शायद ..
सबनम- अरे अंकित...आओ बेटा...आओ...
मैं- हेलो आंटी....कहाँ की तैयारी है...
सबनम- बस...थोड़ा मार्केट जा रहे थे...तुम बैठो...मैं कॉफी बनाती हूँ...
सबनम तो कॉफी बनाने निकल गई...पर सादिया मुझे देख कर स्माइल देने लगी...
मैं- क्या बात है..बड़ा मुस्कुरा रही हो...
सादिया- ह्म्म...वैसे हमारी याद भी नही आई तुम्हे...मिलने भी नही आए..हाँ..
मैं- आपने याद किया होता तो कब के आ जाते...
सादिया- अच्छा...तब तो देखना पड़ेगा...कि आते हो या नही...
मैं- ज़रूर...
ऐसे ही बातों के बीच मेरी कॉफी आ गई और ख़त्म भी हो गई...फिर मैं अकरम के रूम मे जाने लगा...
सबनम- बेटा जा ही रहे हो तो वहाँ जूही और ज़िया को आवाज़ दे देना...बोलना कि हम वेट कर रहे है...
मैं खुश हो गया और सबसे पहले ज़िया के रूम मे चला गया....
जहाँ ज़िया सज-सवर के निकल ही रही थी...मस्त पटाखा दिख रही थी साली...
ज़िया(मुस्कुरा कर)- ओह...तो आप है...बोलो क्या चाहिए...
मैं- माग लूँ तो मिल जायगा...
ज़िया- अब भी शक है क्या...सब तो दे चुकी हू...
मैं(मन मे)- साली...देने के लिए तो तू अपने बाप को भी दे चुकी...साली रंडी...
ज़िया(मेरे करीब आ कर)- तो बोलो...क्या पेश करूँ...
मैं- कुछ नही...आंटी वेट कर रही है...जाओ...मैं बाद मे ले लूँगा...
- Ankit
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Re: चूतो का समुंदर
फिर मैं पहुँचा जूही के रूम मे...जो आईने के सामने बैठी अपने चेहरे को फाइनल टच दे रही थी...
मैं- सुभान-अल्लाह...ये होंठो की लाली तो दिल मे उतर गई...
क्या खूब बनाया तुझे उस खुदा ने की , जर्रा-जर्रा तुझे पाने की ख्वाहिश रखता है....
मेरी लाइन्स सुन कर जूही बुरी तरह से शर्मा गई और नज़रे झुका ली....
मैं- यू नज़रे चुरा कर हम पर ज़ुल्म ना कर ज़ालिम...
तेरी नज़रे-इनायत को तो सूली भी चढ़ जाएँगे...
इस बार जूही शरमाई तो ...पर उठ कर मेरी तरफ घूम गई...
जूही- आप तो आज शायर हो रहे है...क्या बात है...
मैं- तेरा हुश्न ही है कम्बख़्त जो शायर बना गया...
वरना हम तो एक शब्द भी लिखने के काबिल ना थे...
इस बार तो जूही की खुशी का ठिकाना ना रहा...वा मुस्कुराइ और मेरे पास आकर मेरे होंठो पर उंगली रख दी...
जूही- अब बस भी कीजिए...कही आपकी ही नज़र ना लग जाए...
मैने जूही का हाथ पकड़ा और उंगली को चूम लिया...
मैं- सच्चे आशिकों की नज़र लगने लगी तो मोहब्बत दुनिया से फन्ना हो जाएगी...
जूही- बस कीजिए ना...मुझे शर्म आ रही है और आप शायरी पे शायरी...
मैं- ये शायरी नही मेरा हाल-ए-दिल है मेरी जान...
शायरी तो महफ़िलो मे हुआ करती है...महबूब की बाहों मे नही...
जूही- आप तो आज अलग ही मूड मे हो...इरादा क्या है...
मैं- बस तेरे इश्क़ के मोहताज है मेरी जान...
इरादा करते तो पत्थर से पानी निकाल देते...
जूही- आपको ऐसे चुप नही कर सकती...तो अब ऐसे ही सही...
और जूही ने अपने रसीले होंठ मेरे होंठो पर रख दिए...
और एक जोरदार चुंबन कर के हम अलग हो गये...
मैं- ह्म्म..अब सुकून मिला...
जूही- आप भी ना...लिपस्टिक खा गये...
मैं- लिपस्टिक छोड़ो...हम तो तुम्हे ही खा जाएँगे...
जूही- अच्छा...हमे खाएँगे आप...पर हम आसानी से नही पच पायगे...
मैं- ह्म्म..जानता हूँ...तभी तो इंतज़ार कर रहा हूँ...जल्दी ही खाउन्गा...
जूही- और हमने मना किया तो...क्या जबर्जस्ति करेंगे...
मैं- ऐसा ही करना होता तो अब तक तुम्हारे पेट मे अम्मी कहने वाला डाल देते...
इस बात पर जूही बुरी तरह शर्मा गई और मेरे सीने लग कर घूसे मारने लगी..
जूही- बस कीजिए ना...मुझे शर्म आ रही है...
तभी सबनम की आवाज़ आई...जुहििइ
मैं- अरे..ये तो भूल ही गया...आंटी वेट कर रही है जाओ...और मैं चला अकरम के पास...
जूही- आप भी..लेट करा दिया..अब लिपस्टिक लगा लूँ...फिर जाती हूँ...और हाँ...याद है ना..एक दिन मुझसे मिलने आना है...सिर्फ़ मुझसे...
मैं- हाँ ...जल्दी आउगा..पूरा दिन तेरे साथ..अभी बाइ...
और मैं अकरम के गेट पर आ गया...गेट खुला था और सामने अकरम लेटा हुआ था और बाजू मे रूही बैठी हुई थी...
मैं- उऊहहुउऊ...क्या मैं आ सकता हूँ...
अकरम- साले...तू कब्से पूछने लगा...
मैं- क्या करू..प्रेमियों के बीच पूछ कर आना होता है...
रूही- अच्छा...तो अब प्रेमिका जा रही है...दोस्त जो आ गया...
और हम सब हँसने लगे...
अकरम- रूही..तू कुछ खाने बना ले...भूख लग आई ...
रूही- ओके..तुम लोग बात करो ..मैं आई..
फिर रूही बाहर आई..और मेरे बाजू से निकली तो मैने बोला..
मैं- तो ..फाइनली...हो गया ना...
रूही ने मुझे कोहनी मारी और मुस्कुरा कर निकल गई...
अकरम- क्या हुआ...क्यो मार गई तुझे...
मैं- कुछ नही...बस पूछ लिया कि भाभी को मज़ा आया पहली बार कि नही..
अकरम- साले...मरवाएगा तू...आजा बैठ...
मैं- चल ये बता कि पैर कैसा है...
अकरम- क्या बोलू...रात तक ठीक था...फिर दर्द बढ़ गया..और सूजन भी आ गई थी...अब ठीक है..और कल तक पर्फेक्ट हो जायगा...
मैं- ह्म..तू देख...मैं उस कार वाले को छोड़ूँगा नही..बस मिल जाए साला...
अकरम- ह्म..पर मुझे एक बात बता...सच-सच..
मैं- हाँ बोल ना..
अकरम- सच बताना...ये सब चक्कर क्या है...और ये मत बोलना कि कुछ नही...मैं जानता हूँ कि ये आक्सिडेंट नही..अटॅक था...तो अब तू बता कि सच क्या है...
मैं- अरे..वो..ऐसा कुछ नही यार..
अकरम(मेरा हाथ पकड़ कर)- भरोशा रख ...ये बात मेरी रूह मे क़ैद रहेगी...दोस्ती निभाना हम भी जानते है...
पता नही अकरम की बातों और उसकी आँखो मे क्या जादू था उस वक़्त की मैं उसे सच बताने के लिए मान गया...
मैं- सुभान-अल्लाह...ये होंठो की लाली तो दिल मे उतर गई...
क्या खूब बनाया तुझे उस खुदा ने की , जर्रा-जर्रा तुझे पाने की ख्वाहिश रखता है....
मेरी लाइन्स सुन कर जूही बुरी तरह से शर्मा गई और नज़रे झुका ली....
मैं- यू नज़रे चुरा कर हम पर ज़ुल्म ना कर ज़ालिम...
तेरी नज़रे-इनायत को तो सूली भी चढ़ जाएँगे...
इस बार जूही शरमाई तो ...पर उठ कर मेरी तरफ घूम गई...
जूही- आप तो आज शायर हो रहे है...क्या बात है...
मैं- तेरा हुश्न ही है कम्बख़्त जो शायर बना गया...
वरना हम तो एक शब्द भी लिखने के काबिल ना थे...
इस बार तो जूही की खुशी का ठिकाना ना रहा...वा मुस्कुराइ और मेरे पास आकर मेरे होंठो पर उंगली रख दी...
जूही- अब बस भी कीजिए...कही आपकी ही नज़र ना लग जाए...
मैने जूही का हाथ पकड़ा और उंगली को चूम लिया...
मैं- सच्चे आशिकों की नज़र लगने लगी तो मोहब्बत दुनिया से फन्ना हो जाएगी...
जूही- बस कीजिए ना...मुझे शर्म आ रही है और आप शायरी पे शायरी...
मैं- ये शायरी नही मेरा हाल-ए-दिल है मेरी जान...
शायरी तो महफ़िलो मे हुआ करती है...महबूब की बाहों मे नही...
जूही- आप तो आज अलग ही मूड मे हो...इरादा क्या है...
मैं- बस तेरे इश्क़ के मोहताज है मेरी जान...
इरादा करते तो पत्थर से पानी निकाल देते...
जूही- आपको ऐसे चुप नही कर सकती...तो अब ऐसे ही सही...
और जूही ने अपने रसीले होंठ मेरे होंठो पर रख दिए...
और एक जोरदार चुंबन कर के हम अलग हो गये...
मैं- ह्म्म..अब सुकून मिला...
जूही- आप भी ना...लिपस्टिक खा गये...
मैं- लिपस्टिक छोड़ो...हम तो तुम्हे ही खा जाएँगे...
जूही- अच्छा...हमे खाएँगे आप...पर हम आसानी से नही पच पायगे...
मैं- ह्म्म..जानता हूँ...तभी तो इंतज़ार कर रहा हूँ...जल्दी ही खाउन्गा...
जूही- और हमने मना किया तो...क्या जबर्जस्ति करेंगे...
मैं- ऐसा ही करना होता तो अब तक तुम्हारे पेट मे अम्मी कहने वाला डाल देते...
इस बात पर जूही बुरी तरह शर्मा गई और मेरे सीने लग कर घूसे मारने लगी..
जूही- बस कीजिए ना...मुझे शर्म आ रही है...
तभी सबनम की आवाज़ आई...जुहििइ
मैं- अरे..ये तो भूल ही गया...आंटी वेट कर रही है जाओ...और मैं चला अकरम के पास...
जूही- आप भी..लेट करा दिया..अब लिपस्टिक लगा लूँ...फिर जाती हूँ...और हाँ...याद है ना..एक दिन मुझसे मिलने आना है...सिर्फ़ मुझसे...
मैं- हाँ ...जल्दी आउगा..पूरा दिन तेरे साथ..अभी बाइ...
और मैं अकरम के गेट पर आ गया...गेट खुला था और सामने अकरम लेटा हुआ था और बाजू मे रूही बैठी हुई थी...
मैं- उऊहहुउऊ...क्या मैं आ सकता हूँ...
अकरम- साले...तू कब्से पूछने लगा...
मैं- क्या करू..प्रेमियों के बीच पूछ कर आना होता है...
रूही- अच्छा...तो अब प्रेमिका जा रही है...दोस्त जो आ गया...
और हम सब हँसने लगे...
अकरम- रूही..तू कुछ खाने बना ले...भूख लग आई ...
रूही- ओके..तुम लोग बात करो ..मैं आई..
फिर रूही बाहर आई..और मेरे बाजू से निकली तो मैने बोला..
मैं- तो ..फाइनली...हो गया ना...
रूही ने मुझे कोहनी मारी और मुस्कुरा कर निकल गई...
अकरम- क्या हुआ...क्यो मार गई तुझे...
मैं- कुछ नही...बस पूछ लिया कि भाभी को मज़ा आया पहली बार कि नही..
अकरम- साले...मरवाएगा तू...आजा बैठ...
मैं- चल ये बता कि पैर कैसा है...
अकरम- क्या बोलू...रात तक ठीक था...फिर दर्द बढ़ गया..और सूजन भी आ गई थी...अब ठीक है..और कल तक पर्फेक्ट हो जायगा...
मैं- ह्म..तू देख...मैं उस कार वाले को छोड़ूँगा नही..बस मिल जाए साला...
अकरम- ह्म..पर मुझे एक बात बता...सच-सच..
मैं- हाँ बोल ना..
अकरम- सच बताना...ये सब चक्कर क्या है...और ये मत बोलना कि कुछ नही...मैं जानता हूँ कि ये आक्सिडेंट नही..अटॅक था...तो अब तू बता कि सच क्या है...
मैं- अरे..वो..ऐसा कुछ नही यार..
अकरम(मेरा हाथ पकड़ कर)- भरोशा रख ...ये बात मेरी रूह मे क़ैद रहेगी...दोस्ती निभाना हम भी जानते है...
पता नही अकरम की बातों और उसकी आँखो मे क्या जादू था उस वक़्त की मैं उसे सच बताने के लिए मान गया...