चूतो का समुंदर

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pongapandit
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Re: चूतो का समुंदर

Post by pongapandit »

पप्पू ने एक लड़की को प्रपोज़
किया तो लड़की ने पप्पू को खूब पीटा।
चप्पल से पीटा;
लाठी से पीटा;
और बहुत घसीट-घसीट के पीटा।
.
. .
. . .
पप्पू उठा और कपड़े झाड़ते हुए बोला, “तो फिर
मैं इंकार समझूं”।😜😜😠😃
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Ankit
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Re: चूतो का समुंदर

Post by Ankit »

Kamini wrote: 15 Aug 2017 11:32 स्वतंत्रता दिवस और श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएं.....🙏🏻🙏🏻
Rohit Kapoor wrote: 15 Aug 2017 12:02 आप को और आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी व स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाए...
ap sab ko bhi
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Ankit
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Re: चूतो का समुंदर

Post by Ankit »

मैं हर तरफ से नाकामयाब हो रही थी....मुझे किसी तरह आज़ाद को बेइज़्ज़त करना था...पर कैसे....??

टाइम गुज़रता रहा और आज़ाद हम माँ-बेटी के बराबर मज़ा लेता रहा...और मेरे अंदर सेक्स की भूख बढ़ती रही.....

फिर वो वक़्त आया..जिसका मुझे इंतज़ार था....आकृति की शादी का वक़्त.....

आकृति की शादी के दौरान धर्मेश और आरती का प्यार परवान चढ़ने लगा...बस इज़हार बाकी था....ये बात मुझे आरती ने बताई...और मेरी हेल्प मागी....

बस तभी मेरे दिमाग़ मे एक मस्त प्लान आया...जिससे आरती और आज़ाद की बदनामी भी होगी और आज़ाद का उसके दोस्त अली से साथ भी टूट जायगा....

तभी आरती ने बोला कि अगर धर्मेश हाँ करता है तो उसे कल ही मेरे घर रिश्ता ले कर आना होगा.....

मैने आरती से बोला कि तू ग्राउंड मे गढ़े पोल के पास रुमाल रख दे...और अगर धर्मेश ने उठाया तो समझ लेना कि उसकी हाँ है....और नही उठाया तो ना....

आरती ने इसके लिए हाँ बोल दिया....और रुमाल रख कर निकल गई.....वहाँ मैने आमिर को बोल दिया कि मैने आरती को तुम्हारे प्यार के बारे मे बता दिया है....पर वो शर्मा रही है....पर, अब अगर आरती अपना रुमाल पोल के पास रख कर जाती है तो समझ लेना कि उसकी हाँ है...और फिर तू कल उसके घर रिश्ता ले कर चला जाना.....

सब कुछ प्लान के हिसाब से हुआ....आरती रुमाल रख कर चली गई...और उसके रुमाल को देख कर आमिर खुशी से अपने घर भाग गया....और फिर धर्मेश आया और उसने रुमाल उठा लिया...जिसे देख कर आरती खुश हो गई और घर आ गई...और धर्मेश भी ख़ुसी-ख़ुसी घर निकल गया....

सब खुश थे...पर मैं सबसे ज़्यादा खुश थी...क्योकि मैं जानती थी कि कल आरती , आमिर को दुतकारेगी और इसी वजह से अली और आज़ाद का रिश्ता टूट जायगा....

अगले दिन ठीक वैसा ही हुआ...जैसा मैने सोचा था...आरती ने आमिर को दुतकार के भगा दिया...और इसी वजह से आज़ाद ने भी अली को खरी-खोटी सुना दी....

दोनो बाप-बेटे रोते हुए वहाँ से निकल गये....पर आगे जो कुछ हुआ...वो मैने सपने मे भी नही सोचा था ...

आमिर इस दर्द और आरती के दुतकार को बर्दास्त नही कर पाया और घर जा कर फासी लगा ली.....जब अली और उसकी बीवी को ये पता चला तो दोनो अपने बेटे के गम मे पागल से हो गये और जिंदा लाश की तरह बेटे की लाश से लिपटे पड़े रहे....

मैं आमिर के घर का हाल जानने के लिए उसके घर पहुँची तो मैने देखा कि एक आदमी ने उसके घर को आग लगा थी...जिसमे आमिर के साथ-साथ उसके माँ-बाप भी जलने लगे....

वो आग लगाने वाला था सम्राट सिंग.....जो इसका इल्ज़ाम आज़ाद पर लगाना चाहता था...क्योकि कुछ देर पहले ही आज़ाद ने अली को जला डालने की धमकी दी थी....

मैं उस मंज़र को देख कर दहल उठी..और आज़ाद को बताने के लिए मूडी...पर सम्राट ने मुझे पकड़ लिया...और मेरे सामने दो रास्ते खोल दिए....या तो मरो...या उसका साथ दो....

तभी कहीं से सम्राट का बेटा आ गया...जिसने सम्राट को मेरे और आज़ाद के बारे मे बता दिया....मुझे नही पता था कि उसने मुझे कैसे देखा...पर उसके पास इस बात का सबूत भी था...एक वीडियो....

फिर मैने भी मुँह खोल दिया...और सम्राट को बता दिया कि मैं सिर्फ़ आज़ाद के परिवार को बर्बाद करना चाहती हूँ....कुछ भी करो...मुझे कोई मतलब नही...बस आज़ाद के परिवार को मिटा दो....

और इस तरह मैं सम्राट और उसके बेटे के साथ हो ली....

फिर सम्राट ने अपने प्लान के हिसाब से अली के बड़े बेटे सरफ़राज़ को आज़ाद का दुश्मन बना दिया....सम्राट ने सरफ़राज़ को ये यकीन दिला दिया कि उसके परिवार को आज़ाद ने जला दिया ......

मैं भी यही चाहती थी कि कुछ भी हो...बस आज़ाद का परिवार मिट जाए....और फिर मैं सम्राट के साथ-साथ उसके बेटे के साथ भी अपने जिस्म की आग बुझाने लगी......

तो इस तरह हम ने सरफ़राज़ को तुम्हारे परिवार का दुश्मन बना दिया......


ये बात सुनते ही मैने रिचा को एक जोरदार थप्पड़ मार दिया......जिससे रिचा एक तरफ लूड़क गई.....

मैं- साली रंडी...तू औरत है या वेश्या है....तुझे पता है..तेरी वजह से कितनी जाने गई है...कुछ पता भी है तुझे...हाँ....

रिचा(संभाल कर)- हाँ...मैं जानती हूँ...सब जानती हूँ....कि कितनी जाने गई मेरी वजह से.....पर इसके लिए मैं अकेली ज़िम्मेदार नही...समझे....

मैं(खड़ा हो कर)- बकवास बंद कर....तू ही ज़िम्मेदार है सबकी मौत की....मैं तुझे....ओह गॉड....तू आख़िर है क्या...साली रंडी...

रिचा(तुनक कर)- अभी से भगवान याद आ गया.....अभी तो बहुत कुछ जानना बाकी है....या फिर अब कुछ जानना नही चाहते....

मैं(गुस्से से रिचा को घूर कर)- हाँ..जानना है...अभी तो बहुत कुछ जानना है.....आख़िर पता तो चले कि तुझ जैसी रंडी ने क्या-क्या कारनामे किए....

रिचा- दिल थाम लो अंकित...कही धड़कने ना बंद जाए...अभी तो सिर्फ़ मेरा रंडीपन देखा है....मेरा शातिर और खूखार रूप देखना तो बाकी है अभी....

रिचा की बात सुनकर मैं गुस्से से दाँत पीसने लगा....पर तभी मेरा फ़ोन बजने लगा....

मैं(स्क्रीन देख कर)- डॅड....इस समय कॉल क्यो किया....

मैं(कॉल ले कर)- हाई डॅड....क्या हुआ....

और सामने से बात सुनकर मैने माथा पीट लिया.....

मैं- आररीए...ये क्या किया आपने....सब गड़बड़ कर दी....अच्छा एक काम करो....आप मेरे आने तक रूको...फिर कुछ सोचते है...ओके....

और कॉल कट कर के मैं फिर से रिचा के सामने बैठ गया.....

रिचा- क्या हुआ आकाश को....

मैं(मुस्कुरा कर)- मेरे रहते उनका बुरा तो हो नही सकता....खैर...अभी उनकी छोड़...और अपनी सुना....देखे तो तुम्हारा शातिर और ख़ूँख़ार रूप...हाँ...चल...शुरू हो जा....कहानी अभी बाकी है.........

रिचा - ह्म...वो तो है...पर ये कहानी नही हक़ीक़त है...हर एक लब्ज मेरी जिंदगी की कड़वी हक़ीक़त बयान करेगा.....

मैं- तेरी जिंदगी कैसे कड़वी हो गई...हाँ...अरे कडवाहेंट तो तूने घोल दी है....पता नही कितनो की जिंदगी मे....

रिचा(मुझे घूर कर)- ऐसा तुम सोचते हो....मैं नही....

मैं(गुस्से से)- ओह अच्छा....तो तू क्या सोचती है....क्या तुझे अपने किए पर कोई अफ़सोस नही....हाँ...

रिचा(उपर देख कर)- नही...बिल्कुल नही....

मैं(गुस्से से )- तू तो...चल छोड़....तुझसे बहस करने से कोई फ़ायदा नही....तू सिर्फ़ ये बता कि उसके बाद क्या हुआ....मतलब अली की फॅमिली को मिटाने के बाद तूने क्या किया...

रिचा(मुस्कुरा कर)- उसके बाद...उसके बाद ही तो असली काम शुरू हुआ था....
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Ankit
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Re: चूतो का समुंदर

Post by Ankit »

मैं- कितनी बड़ी कमीनी है तू...एक परिवार को मिटाने की बात पर तू मुस्कुरा रही है....सच मे...तुझसे बड़ी कमीनी मैने कभी नही देखी....

रिचा(हँसते हुए)- अच्छा....चलो मुझे कुछ तो माना....रंडी के अलावा...

मैं(गुस्से से)- बस...अब हसना बंद कर....चल एक बात बता....तेरी दुश्मनी तो मेरे दादाजी से थी...तो तूने अली के साथ इतना बुरा क्यो किया....हाँ...

रिचा- ओह्ह...लगता है तुझे सब डीटेल मे बताना होगा....तो सुन...कि आख़िर मैने अली को अपना टारगेट क्यो बनाया....सुनोगे तो समझ जाओगे....

मैं(कुछ सोच कर)- मतलब अली के साथ भी तेरी कुछ कहानी है...ह्म्म...चलो...पहले यही बता दो....चलो...पता तो चले कि सच क्या है....

और मैं सोफे पर फिर से पसर गया...और हाथ मे फ़ोन घूमाते हुए आगे की कहानी सुनने लगा....

रिचा की जुवानी...............

असल मे मेरी अली से दुश्मनी उस दिन से शुरू हुई थी....जिस दिन मैं उससे पहली बार मिली......

एक दिन जब आज़ाद मेरी माँ के साथ उसकी फॅक्टरी के कॅबिन मे मज़े मार रहा था.....तभी मैं माँ से मिलने वहाँ पहुँची ....

पर आज़ाद के दोस्त अली ने मुझे कॅबिन मे नही जाने दिया...बल्कि बाहर ही बैठा लिया.....

तब मेरे मन मे एक ख्याल आया...कि क्यो ना मैं अली को अपने दिल की बात बता दूं...आकाश को प्यार करने की बात....

मैने सोचा कि अली , आज़ाद का सबसे खास दोस्त है....अगर अली समझाएगा तो आज़ाद भी राज़ी हो जायगा....

फिर मैने उस बात को घुमा-फिरा कर अली को सब बता दिया...और अली भी इतना समझदार था कि मेरी बात का सही मतलब समझ गया...

पर अली ने फिर वो जवाब दिया...जिसे सुन कर मेरे दिल मे अली के खिलाफ नफ़रत का बीज डाल गया....

अली ने कहा....""देखो बेटा....इंसान भले ही तकनीक का सहारा लेकर आसमान तक पहुँच गया हो...पर उसे पन्छियो से अपनी बराबरी नही करना चाहिए.....इंसान ज़मीन पर ही अच्छा लगता है....आसमान मे नही उड़ सकता....ठीक है...""

अली के जवाब ने मुझे मेरी औकात बताई थी...और ये मुझे एक तीर की तरह अंदर तक चुभ गई थी.....


तभी मैने सोच लिया था कि अगर मौका मिला तो इस इंसान को इसकी औकात ज़रूर दिखाउन्गी....

और वो मौका मुझे आमिर के रूप मे मिला....उस दिन आमिर को आरती ने उसकी औकात दिखा दी...और साथ मे आज़ाद ने अली को भी......

पर बात यही ख़त्म नही होती...ये तो अली की सिर्फ़ एक ही ग़लती थी.....अभी तो और भी है....

अली के खिलाफ मेरी नफ़रत उस दिन और बढ़ गई...जिस दिन आज़ाद ने अली को मेरे साथ मज़े मारने का बोला....पर अली ने ये कह कर मुझे ठुकरा दिया....कि वो रंडियों को बाहों मे लेने का शौक नही रखता.....

उस दिन अली ने मेरे बजूद पर हमला किया था...और उसी दिन मैने सोच लिया था कि इस अली का मैं बजूद मिटा कर रख दूगी....

हालाकी अली की मौत मेरे हाथो नही हुई...पर मैं ही उसके परिवार के ख़ात्मे की ज़िम्मेदार थी....यही सोच कर मैं खुश हूँ....

और हाँ...इससे भी बड़ी ग़लती की थी अली ने...शायद सबसे बड़ी ग़लती....

और वो ग़लती थी आकाश की शादी करवाना.....

आज़ाद ने तो आकाश को घर से दूर कर ही दिया था....पर उस साले अली ने एक पिता की तरह आकाश का ख़याल रखा था....और उसकी शादी अलका से करवा दी....

आकाश की शादी की बात सुनकर मैं टूट गई थी....मेरे बचे-खुचे अरमान भी ख़त्म हो गये थे.....

मैने सोचा था कि किसी तरह से आज़ाद को मजबूर करके अपनी शादी आलाश से करवा लूगी...पर उस अली की वजह से सब ख़त्म हो गया था...

बस...इस दिन से अली की मैं अली की मौत चाहने लगी थी....पर मैने तब ये नही सोचा था कि उसका अंत इस तरह से होगा...और अली के साथ उसकी बीवी और बेटा भी ख़त्म हो जायगा.......

खैर...मेरा इंतकाम तो पूरा हुआ...भले ही कैसे भी हुआ हो....

और फिर मेरा एक ही मक़सद बाकी रह गया था....वो था आज़ाद की बर्बादी....और उसके परिवार की भी....

और इस काम के लिए मुझे सम्राट का साथ मिला...और सम्राट के शातिर दिमाग़ की बदोलत मैने सरफ़राज़ को भी आज़ाद का दुश्मन बना दिया.....

पर ये मत सोचना कि ये काम सम्राट ने किया....असल मे सरफ़राज़ को वसीम बनाने का पूरा दारोमदार मेरा ही है.....

जब अली अपने बीवी और बेटे के साथ जल कर मर गया...तब मैं सम्राट से मिली....

सम्राट ने मुझे बताया कि उसने ये सब आज़ाद से बदला लेने को किया है...और मैं भी आज़ाद की दुश्मन थी...बस...हम दोनो दोस्त बन गये.....

फिर मैने सरफ़राज़ से मिली...और मैने उसे बॉटल मे उतारना शुरू कर दिया....और शुरुआत की अपने जिस्म से....

मैने सरफ़राज़ से 1 हफ्ते तक अपने जिस्म की प्यास बुझाई...और इसी दौरान उसके दिल मे आज़ाद के लिए ज़हर भर दिया....

मेरा तीर निशाने पर लगा....सरफ़राज़ ने आज़ाद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया...और उससे सीधा जा कर भिड़ गया....

पर आज़ाद का रूतवा और पैसा उसके आड़े आ गया और सरफ़राज़ को मायूषी हाथ लगी....

मुझे लगा कि कही सरफताज़ हथ्यार ना डाल दे...इसलिए मैने ही उसे पैसा और पॉवर हासिल करने का रास्ता दिखाया....

मैने ही उसे समझाया कि वो जावेद (जिसने सरफ़राज़ को गोद लिया था) की दौलत हथिया ले....जिससे वो दौलतमंद हो जायगा...और फिर आसानी से आज़ाद से टक्कर ले सकेगा....

पहले तो सरफ़राज़ ने आना-कानि की....पर मेरे जिस्म की गर्मी के आगे पिघल गया और तैयार हो गया.....

फिर उसने ना सिर्फ़ जावेद को रास्ते से हटाया...बल्कि हर एक इंसान को हटाता चला गया...जो उसके और दौलत के बीच आ सकता था.....


और फिर सारी दौलत अपने साथ ले कर सरफ़राज़ उसी सहर मे आ गया जहाँ आकाश रहता था.....एक नये नाम के साथ....वसीम ख़ान....

असले सरफ़राज़ आज़ाद को उसके बेटे की मौत का दर्द देना चाहता था....पर उसी दौरान आज़ाद गाओं से गायब हो गया....और यहाँ सहर मे आकाश ने अपनी बीवी अलका को खो दिया.....

तो इसीलिए सरफ़राज़ ने सहर मे आना ही ठीक समझा...ताकि आकाश पर नज़र रख सके...और आज़ाद के मिलते ही आकाश को मौत दे सके.....

पर इस बीच भी काफ़ी कुछ हुआ....जैसे की सरफताज़ को आकाश और सरिता का रिश्ता पता चलना.....

हाँ...सरिता...शायद तुम उसे ना जानते हो....पर सरिता भी हम मे से एक थी...जो आज़ाद और आकाश के खिलाफ थी....
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shubhs
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Re: चूतो का समुंदर

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आगे
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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