चूतो का समुंदर
- shubhs
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Re: चूतो का समुंदर
अब क्या खास है
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
- Ankit
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- Ankit
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Re: चूतो का समुंदर
मैं- डरो मत ...गेट खोलो....सब समझा दूँगा...जाओ...
रिचा ने जैसे ही गेट खोला तो सामने रॉनी खड़ा हुआ था....
मैं- आओ रॉनी....अंदर आ जाओ...
रॉनी- कहिए बॉस...क्या हुकुम है...
मैं- मैने बताया तो था फ़ोन पर....
रॉनी- अरे हाँ सर, पता है...मैं तो बस ऐसे ही...हाहाहा...
मैं- अच्छा ये बताओ....ये काम कर पाओगे...आइ मीन...मुझे तुम पर भरोशा है...पर कोई गड़बड़ तो नही होगी...
रॉनी- डोंट वरी सर....रॉनी पर भरोशा रखो...और वैसे भी ये काम मैने पहले भी किया था....आप बस भरोसा रखिए...
मैं- ओके...तो फिर काम पर लग जाओ...
रिचा- कोई मुझे भी बतायगा कि ये सब क्या हो रहा है...
मैं(रिचा के पास जा कर)- हाँ मेरी जान...तू ही तो मैं आइटम है आज की पार्टी मे....चल बैठ...बताता हूँ कि तुझे क्या करना है....आजा...
करीब 30-40 मिनट बाद वसीम रिचा के घर पहुँचा और जाते ही उसने अपनी गन को लोड किया और फिर डोरबेल बजाई.....
गेट खुलते ही उसकी नज़र सामने खड़ी रिचा पर पड़ी जो वसीम को देख कर मुस्कुरा रही थी....
वसीम(हैरानी से)- तू मुस्कुरा क्यो रही है...हाँ...और...वो कहाँ है....
रिचा- अरे...इतना गुस्सा किसलिए....वो यही पर है...रिलॅक्स...
वसीम- रिलॅक्स गया भाड़ मे ..तू ये बता कि उसने क्या बोला तुझे...और मुझे ये समझा कि तू मुस्कुरा क्यो रही है...
रिचा- हहहे....हैरान रह गये ना...
वसीम(गुस्से से गन निकाल लेता है)- अब बोलेगी या तुझे उसके पहले ही उपर पहुँचा दूं...हाँ....
जैसे ही वसीम ने गन की नोक रिचा की गर्दन पर चुभाई तो रिचा की मुस्कुराहट छु हो गई और चेहरे पर डर के भाव छा गये.....
रिचा- मेरी...मेरी बात तो सुनो...
वसीम- अब आई ना औकात पर...बोल कहाँ है वो...और ये पहले बोलना कि तू हंस क्यो रही थी...कही तू उसके साथ तो...
रिचा(बीच मे)- नही...मैं तुम्हारे साथ हूँ...वो तो मैं इसलिए हँस रही थी क्योकि...क्योकि मैने पहले ही उस पर काबू पा लिया....
वसीम- क्या..तूने...हाहाहा...तू साली रंडी..तूने अंकित को काबू मे कर लिया...हॅट...मैं नही मानता....
रिचा(गुस्से से)- तूने मुझे समझा ही कहाँ....मैं वो कर सकती हूँ जो तुझ जैसे 10 लोग ना कर पाए...समझा...
वसीम(चिल्ला कर)- चुप साली....अब सॉफ-सॉफ बोल कि तूने क्या किया ...और वो है कहाँ....
रिचा- ये गन हटाओ पहले...चुभ रही है...
वसीम(गन हटा कर)- हाँ बोल..
रिचा- वो सब बेसमेंट मे है...उन्हे बाँध कर रखा है...
वसीम(हैरानी से)- सब...सब का मतलब...और कौन है उसके साथ...
रिचा- सोनू और सोनम ...
वसीम- ओह्ह...तो वो भी आ गये उसके झाँसे मे...सालो ने अपने माँ-बाप को खो दिया फिर भी....चलो...उनका दिमाग़ भी ठिकाने पर लाते है....
रिचा- ह्म..जो करना है करो...बस याद रखना कि मेरी बेटी पर आँच नही आनी चाहिए....
वसीम- ठीक है..चल अब...मैं बहुत बेसब्री से इस वक़्त का इंतज़ार कर रहा था....चल ...
फिर वसीम रिचा के साथ बेसमेंट की तरफ चल पड़ा....
बेसमेंट एक ख़ुफ़िया कमरे की तरह था....उसका एंट्रेन्स हॉल के बीच मे कार्पेट के नीचे छिपा था......
रिचा ने कार्पेट हटाया और वहाँ लगा गेट ओपन किया....और गेट ओपन होते ही सीडीयाँ सामने आ गई...जो नीचे जा रही थी....और साथ मे गेट ओपन होते ही बेसमेंट लाइट की रोशनी से जगमगा उठा...
वसीम(रिचा को देख कर)- तेरा दिमाग़ भी बहुत चलता है ...हाँ...
रिचा(मुस्कुरा कर)- वो तो है...अब चलो अंदर...
वसीम(गन दिखा कर)- पहले तू चल...हुह..
रिचा वसीम को घूरते हुए सीडीयों से उतरने लगी और वसीम भी रिचा को गन पॉइंट पर लिए हुए उसके पीछे जाने लगा....
जैसे ही दोनो नीचे पहुँचे तो सामने का नज़ारा देख कर वसीम हैरान रह गया...जबकि रिचा वसीम को देख कर इतराने लगी....
वसीम- ये सब...तुमने...आख़िर कैसे....
रिचा- बस...अपनी अदाएँ ही ऐसी है....हहहे.....
वसीम- हसना बंद कर...सॉफ-सॉफ बोल कि क्या किया इन्हे....मुझे अब भी यकीन नही हो रहा कि तूने इनकी ऐसी हालत की....
वसीम ने जब देखा कि मैं, सोनू और सोनम चेयरे से बँधे बैठे हुए है तो उसे बहुत हैरानी हुई....उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि रिचा ये सब कर सकती है..वो भी अकेले....
वसीम- बोल ना...कैसे किया तूने....
रिचा- अरे...बस नसीली कॉफी पीला दी...और फिर अपनी बेटी की हेल्प से इन सबको बाँध दिया....खैर अब तो ये होश मे है...देखो...
वसीम- गुड....सही टाइम पर होश मे आ गया साला....मैं भी यही चाहता था कि जब मैं इसे मारु तो इसकी आँखो मे मौत का डर देखु...वो तड़प देखु...जो मरने वालो को होती है....हह...
वसीम ये सब बोलते-बोलते जोश मे आ गया...उसका चेहरा गुस्से से लाल होने लगा....
और दूसरी तरफ मैं भी चेयर से बँधा हुआ वसीम को देख कर झटपटाने लगा......
मेरी झटपटाहत देख कर वसीम और रिचा के चेहरे पर कमीनी मुस्कान नाचने लगी....
रिचा ने जैसे ही गेट खोला तो सामने रॉनी खड़ा हुआ था....
मैं- आओ रॉनी....अंदर आ जाओ...
रॉनी- कहिए बॉस...क्या हुकुम है...
मैं- मैने बताया तो था फ़ोन पर....
रॉनी- अरे हाँ सर, पता है...मैं तो बस ऐसे ही...हाहाहा...
मैं- अच्छा ये बताओ....ये काम कर पाओगे...आइ मीन...मुझे तुम पर भरोशा है...पर कोई गड़बड़ तो नही होगी...
रॉनी- डोंट वरी सर....रॉनी पर भरोशा रखो...और वैसे भी ये काम मैने पहले भी किया था....आप बस भरोसा रखिए...
मैं- ओके...तो फिर काम पर लग जाओ...
रिचा- कोई मुझे भी बतायगा कि ये सब क्या हो रहा है...
मैं(रिचा के पास जा कर)- हाँ मेरी जान...तू ही तो मैं आइटम है आज की पार्टी मे....चल बैठ...बताता हूँ कि तुझे क्या करना है....आजा...
करीब 30-40 मिनट बाद वसीम रिचा के घर पहुँचा और जाते ही उसने अपनी गन को लोड किया और फिर डोरबेल बजाई.....
गेट खुलते ही उसकी नज़र सामने खड़ी रिचा पर पड़ी जो वसीम को देख कर मुस्कुरा रही थी....
वसीम(हैरानी से)- तू मुस्कुरा क्यो रही है...हाँ...और...वो कहाँ है....
रिचा- अरे...इतना गुस्सा किसलिए....वो यही पर है...रिलॅक्स...
वसीम- रिलॅक्स गया भाड़ मे ..तू ये बता कि उसने क्या बोला तुझे...और मुझे ये समझा कि तू मुस्कुरा क्यो रही है...
रिचा- हहहे....हैरान रह गये ना...
वसीम(गुस्से से गन निकाल लेता है)- अब बोलेगी या तुझे उसके पहले ही उपर पहुँचा दूं...हाँ....
जैसे ही वसीम ने गन की नोक रिचा की गर्दन पर चुभाई तो रिचा की मुस्कुराहट छु हो गई और चेहरे पर डर के भाव छा गये.....
रिचा- मेरी...मेरी बात तो सुनो...
वसीम- अब आई ना औकात पर...बोल कहाँ है वो...और ये पहले बोलना कि तू हंस क्यो रही थी...कही तू उसके साथ तो...
रिचा(बीच मे)- नही...मैं तुम्हारे साथ हूँ...वो तो मैं इसलिए हँस रही थी क्योकि...क्योकि मैने पहले ही उस पर काबू पा लिया....
वसीम- क्या..तूने...हाहाहा...तू साली रंडी..तूने अंकित को काबू मे कर लिया...हॅट...मैं नही मानता....
रिचा(गुस्से से)- तूने मुझे समझा ही कहाँ....मैं वो कर सकती हूँ जो तुझ जैसे 10 लोग ना कर पाए...समझा...
वसीम(चिल्ला कर)- चुप साली....अब सॉफ-सॉफ बोल कि तूने क्या किया ...और वो है कहाँ....
रिचा- ये गन हटाओ पहले...चुभ रही है...
वसीम(गन हटा कर)- हाँ बोल..
रिचा- वो सब बेसमेंट मे है...उन्हे बाँध कर रखा है...
वसीम(हैरानी से)- सब...सब का मतलब...और कौन है उसके साथ...
रिचा- सोनू और सोनम ...
वसीम- ओह्ह...तो वो भी आ गये उसके झाँसे मे...सालो ने अपने माँ-बाप को खो दिया फिर भी....चलो...उनका दिमाग़ भी ठिकाने पर लाते है....
रिचा- ह्म..जो करना है करो...बस याद रखना कि मेरी बेटी पर आँच नही आनी चाहिए....
वसीम- ठीक है..चल अब...मैं बहुत बेसब्री से इस वक़्त का इंतज़ार कर रहा था....चल ...
फिर वसीम रिचा के साथ बेसमेंट की तरफ चल पड़ा....
बेसमेंट एक ख़ुफ़िया कमरे की तरह था....उसका एंट्रेन्स हॉल के बीच मे कार्पेट के नीचे छिपा था......
रिचा ने कार्पेट हटाया और वहाँ लगा गेट ओपन किया....और गेट ओपन होते ही सीडीयाँ सामने आ गई...जो नीचे जा रही थी....और साथ मे गेट ओपन होते ही बेसमेंट लाइट की रोशनी से जगमगा उठा...
वसीम(रिचा को देख कर)- तेरा दिमाग़ भी बहुत चलता है ...हाँ...
रिचा(मुस्कुरा कर)- वो तो है...अब चलो अंदर...
वसीम(गन दिखा कर)- पहले तू चल...हुह..
रिचा वसीम को घूरते हुए सीडीयों से उतरने लगी और वसीम भी रिचा को गन पॉइंट पर लिए हुए उसके पीछे जाने लगा....
जैसे ही दोनो नीचे पहुँचे तो सामने का नज़ारा देख कर वसीम हैरान रह गया...जबकि रिचा वसीम को देख कर इतराने लगी....
वसीम- ये सब...तुमने...आख़िर कैसे....
रिचा- बस...अपनी अदाएँ ही ऐसी है....हहहे.....
वसीम- हसना बंद कर...सॉफ-सॉफ बोल कि क्या किया इन्हे....मुझे अब भी यकीन नही हो रहा कि तूने इनकी ऐसी हालत की....
वसीम ने जब देखा कि मैं, सोनू और सोनम चेयरे से बँधे बैठे हुए है तो उसे बहुत हैरानी हुई....उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि रिचा ये सब कर सकती है..वो भी अकेले....
वसीम- बोल ना...कैसे किया तूने....
रिचा- अरे...बस नसीली कॉफी पीला दी...और फिर अपनी बेटी की हेल्प से इन सबको बाँध दिया....खैर अब तो ये होश मे है...देखो...
वसीम- गुड....सही टाइम पर होश मे आ गया साला....मैं भी यही चाहता था कि जब मैं इसे मारु तो इसकी आँखो मे मौत का डर देखु...वो तड़प देखु...जो मरने वालो को होती है....हह...
वसीम ये सब बोलते-बोलते जोश मे आ गया...उसका चेहरा गुस्से से लाल होने लगा....
और दूसरी तरफ मैं भी चेयर से बँधा हुआ वसीम को देख कर झटपटाने लगा......
मेरी झटपटाहत देख कर वसीम और रिचा के चेहरे पर कमीनी मुस्कान नाचने लगी....
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Re: चूतो का समुंदर
मैं- तो ये है वो...जिसके लिए तूने मुझे धोखा दिया....क्यो...ये ही है ना सरफ़राज़ ख़ान...हाँ...
वसीम- वाह...तो मेरा शक़ सही था...तू मेरे बारे मे सब कुछ जान गया....सब कुछ...
मैं- हाँ....सब कुछ...वो भी जो तूने किसी को नही बताया...
वसीम(घूर कर)- अच्छा....इतना कुछ जानता है....तब तो तुझे मारना होगा...छे..छे...च..च..च...बेचारा....
मैं- नही सरफ़राज़...तुम मुझे नही मार सकते ....मैं जानता हूँ....
वसीम- ओह्ह...तू मेरे बारे मे इतना कुछ जानता है ...तब भी बोल रहा है कि मैं तुझे मार नही सकता.....
मैं- हाँ ..क्योकि मैं जानता हूँ कि सरफ़राज़ ख़ान अब वसीम ख़ान बन चुका है...और वसीम ख़ान किसी को मार नही सकता....
वसीम(ठहाका मार कर)- हाहाहा....बच्चे....नाम बदलने से इंसान की सख्सियत नही बदलती...समझा....
मैं- सही कहा....और तुम्हारी सख्सियत तुम्हारे बाप की देन है...अली ख़ान की...और मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि अली ख़ान क्या सख्सियत रखते थे....
वसीम- सही कहा...पर शायद तू ये नही जानता कि जब किसी सरीफ़ इंसान की मौत होती है तो उसका नतीजा बहुत भयानक होता है....
मैं- जानता हूँ...वो नतीजा मेरे सामने है....
वसीम- अच्छा हुआ तुझे सब समझ आ गया....अब तुझे मरते वक़्त कोई मलाल नही रह जायगा.....
मैं- नही...तुम मुझे नही मार सकते....
वसीम- हाहाहा....एक..एक वजह तो बता की तुझे छोड़ दूं....हाँ...
मैं- मेरी छोड़...तुम एक वजह बता सकते हो मुझे मारने की....
वसीम(सीरीयस हो कर)- ह्म्म ..तू एक वजह की बात कर रहा है...मेरे पास तीन वजह है ...तीन.....समझा....
मैं- वही तो मैं जानना चाहता हूँ...कम से कम मुझे पता तो रहेगा कि मैं मर क्यो रहा हूँ...
वसीम- ह्म...तेरी बात मे दम है...पर उससे पहले तू मुझे बतायगा....
मैं- क्या...मैं...मैं क्या बताउन्गा....
वसीम- तू ये बतायगा कि तू मेरे बारे मे क्या-क्या जानता है...और ये भी बता कि तू कब्से और कैसे जानता है कि मैं ही सरफ़राज़ हूँ....हाँ....
मैं- अच्छा....इतनी सी बात....कोई नही....मुझे बताने मे क्या प्राब्लम....सुनो...सब बताता हूँ.....
फिर मैने वसीम को शुरू से बताना चालू किया...कि कैसे मुझे दामिनी से सरफ़राज़ का नाम पता चला और फिर उसके साथियों का...
फिर कैसे मैने रिचा के मुँह से सरफ़राज़ की असलियत जानी और तब मुझे पता चला कि वसीम ख़ान ही सरफ़राज़ ख़ान है....
मेरी बात सुन कर वसीम अपने दाँत पीसते हुए रिचा को देखने लगा....तब मैं फिर से बोला...
मैं- उसे मत घूरो...मैने ही उसे मजबूर कर दिया था ....आख़िर उसकी बेटी का सवाल था...तो बेचारी चुप कैसे रहती...हैं...
वैसे मुझे ये भी पता है कि तुम सिर्फ़ कमीने नही...एक नंबर के ठर्की हो....तूने अपने दोस्त सरद की बीवी और बेटी के साथ नाजायज़ संबंध बनाए....और हाँ...वो तेरी साली....उसे भी नही छोड़ा.....उसकी तो गोद ही भर दी....हाहाहा...
और तेरे हवसिपन की हद तो तब हो गई...जब मुझे पता चला कि तू साला अपनी बेटी को ही ठोकता है...हैं ना....
वैसे वो है ही हॉट...उउउंम्म....एक दम कड़क....
वसीम(गन टानकर मेरी तरफ बड़ा)- चुप कर....मेरी बेटी के बारे मे एक शब्द भी कहा तो....
मैं(बीच मे)- बेटी...हाहाहा....वो तेरी बेटी कहाँ से हो गई...असल मे तेरी एक ही बेटी है...गुल...सही कहा ना....
वसीम- वाह बच्चे...मान गये...काफ़ी तेज है तू...
मैं(मुस्कुरा कर)- थॅंक यू...पर पिक्चर अभी बाकी है....मैं एक बात तो भूल ही गया...तेरी एक नही दो बेटी है...है ना....ह्म...(मुस्कुराने लगा)
वसीम(शॉक्ड)- त्त्त...तुझे कैसे पता...
मैं- बोला था ना...मुझे वो भी पता है जो किसी और को पता नही....
वसीम- मान गये बच्चे ...सच मे...तूने तो अपने बाप को भी पीछे छोड़ दिया....ग्रेट...पर क्या फ़ायदा....इतना तेज दिमाग़ बस कुछ ही देर का मेहमान है....
मैं- वसीम ख़ान...मैं अब भी यही कहता हूँ कि तुम मुझे मार नही सकते....
वसीम(रिचा को देख कर)- लगता है बच्चा शॉक मे है.....
मैं- उससे क्या पूछ रहे हो...मुझसे बात करो....शॉक तो अभी तुम्हे मिलेगा...मेरी बात अब तक ख़त्म नही हुई....
वसीम(मुझे घूरते हुए)- अच्छा...और क्या जानता है तू....
मैं- आहह...मैं वो जानता हूँ जो कोई नही जानता....मैने कहा था...याद है ना...
वसीम(दाँत पीसते हुए)- तो बोल ना...मैं भी तो सुनू....
मैं- अनवर, सकील, परवेज़, गुलनार, जावेद, परवीन.....हाँ ..कुछ समझा...या डीटेल बताऊ....
वसीम(हैरानी से)- तो तूने सब पढ़ लिया....गुड...पर तू मुझे इनके नाम क्यो बता रहा है...मैं सबको जानता हूँ....
मैं- हाँ ..मैं जानता हूँ कि तू सब जानता है...असल मे मैं इनकी मौत की बात कर रहा था...जिंदगी की नही....
वसीम(शॉक्ड)- क्क़..क्या मतलब...तू कहना क्या चाहता है...
वसीम- वाह...तो मेरा शक़ सही था...तू मेरे बारे मे सब कुछ जान गया....सब कुछ...
मैं- हाँ....सब कुछ...वो भी जो तूने किसी को नही बताया...
वसीम(घूर कर)- अच्छा....इतना कुछ जानता है....तब तो तुझे मारना होगा...छे..छे...च..च..च...बेचारा....
मैं- नही सरफ़राज़...तुम मुझे नही मार सकते ....मैं जानता हूँ....
वसीम- ओह्ह...तू मेरे बारे मे इतना कुछ जानता है ...तब भी बोल रहा है कि मैं तुझे मार नही सकता.....
मैं- हाँ ..क्योकि मैं जानता हूँ कि सरफ़राज़ ख़ान अब वसीम ख़ान बन चुका है...और वसीम ख़ान किसी को मार नही सकता....
वसीम(ठहाका मार कर)- हाहाहा....बच्चे....नाम बदलने से इंसान की सख्सियत नही बदलती...समझा....
मैं- सही कहा....और तुम्हारी सख्सियत तुम्हारे बाप की देन है...अली ख़ान की...और मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि अली ख़ान क्या सख्सियत रखते थे....
वसीम- सही कहा...पर शायद तू ये नही जानता कि जब किसी सरीफ़ इंसान की मौत होती है तो उसका नतीजा बहुत भयानक होता है....
मैं- जानता हूँ...वो नतीजा मेरे सामने है....
वसीम- अच्छा हुआ तुझे सब समझ आ गया....अब तुझे मरते वक़्त कोई मलाल नही रह जायगा.....
मैं- नही...तुम मुझे नही मार सकते....
वसीम- हाहाहा....एक..एक वजह तो बता की तुझे छोड़ दूं....हाँ...
मैं- मेरी छोड़...तुम एक वजह बता सकते हो मुझे मारने की....
वसीम(सीरीयस हो कर)- ह्म्म ..तू एक वजह की बात कर रहा है...मेरे पास तीन वजह है ...तीन.....समझा....
मैं- वही तो मैं जानना चाहता हूँ...कम से कम मुझे पता तो रहेगा कि मैं मर क्यो रहा हूँ...
वसीम- ह्म...तेरी बात मे दम है...पर उससे पहले तू मुझे बतायगा....
मैं- क्या...मैं...मैं क्या बताउन्गा....
वसीम- तू ये बतायगा कि तू मेरे बारे मे क्या-क्या जानता है...और ये भी बता कि तू कब्से और कैसे जानता है कि मैं ही सरफ़राज़ हूँ....हाँ....
मैं- अच्छा....इतनी सी बात....कोई नही....मुझे बताने मे क्या प्राब्लम....सुनो...सब बताता हूँ.....
फिर मैने वसीम को शुरू से बताना चालू किया...कि कैसे मुझे दामिनी से सरफ़राज़ का नाम पता चला और फिर उसके साथियों का...
फिर कैसे मैने रिचा के मुँह से सरफ़राज़ की असलियत जानी और तब मुझे पता चला कि वसीम ख़ान ही सरफ़राज़ ख़ान है....
मेरी बात सुन कर वसीम अपने दाँत पीसते हुए रिचा को देखने लगा....तब मैं फिर से बोला...
मैं- उसे मत घूरो...मैने ही उसे मजबूर कर दिया था ....आख़िर उसकी बेटी का सवाल था...तो बेचारी चुप कैसे रहती...हैं...
वैसे मुझे ये भी पता है कि तुम सिर्फ़ कमीने नही...एक नंबर के ठर्की हो....तूने अपने दोस्त सरद की बीवी और बेटी के साथ नाजायज़ संबंध बनाए....और हाँ...वो तेरी साली....उसे भी नही छोड़ा.....उसकी तो गोद ही भर दी....हाहाहा...
और तेरे हवसिपन की हद तो तब हो गई...जब मुझे पता चला कि तू साला अपनी बेटी को ही ठोकता है...हैं ना....
वैसे वो है ही हॉट...उउउंम्म....एक दम कड़क....
वसीम(गन टानकर मेरी तरफ बड़ा)- चुप कर....मेरी बेटी के बारे मे एक शब्द भी कहा तो....
मैं(बीच मे)- बेटी...हाहाहा....वो तेरी बेटी कहाँ से हो गई...असल मे तेरी एक ही बेटी है...गुल...सही कहा ना....
वसीम- वाह बच्चे...मान गये...काफ़ी तेज है तू...
मैं(मुस्कुरा कर)- थॅंक यू...पर पिक्चर अभी बाकी है....मैं एक बात तो भूल ही गया...तेरी एक नही दो बेटी है...है ना....ह्म...(मुस्कुराने लगा)
वसीम(शॉक्ड)- त्त्त...तुझे कैसे पता...
मैं- बोला था ना...मुझे वो भी पता है जो किसी और को पता नही....
वसीम- मान गये बच्चे ...सच मे...तूने तो अपने बाप को भी पीछे छोड़ दिया....ग्रेट...पर क्या फ़ायदा....इतना तेज दिमाग़ बस कुछ ही देर का मेहमान है....
मैं- वसीम ख़ान...मैं अब भी यही कहता हूँ कि तुम मुझे मार नही सकते....
वसीम(रिचा को देख कर)- लगता है बच्चा शॉक मे है.....
मैं- उससे क्या पूछ रहे हो...मुझसे बात करो....शॉक तो अभी तुम्हे मिलेगा...मेरी बात अब तक ख़त्म नही हुई....
वसीम(मुझे घूरते हुए)- अच्छा...और क्या जानता है तू....
मैं- आहह...मैं वो जानता हूँ जो कोई नही जानता....मैने कहा था...याद है ना...
वसीम(दाँत पीसते हुए)- तो बोल ना...मैं भी तो सुनू....
मैं- अनवर, सकील, परवेज़, गुलनार, जावेद, परवीन.....हाँ ..कुछ समझा...या डीटेल बताऊ....
वसीम(हैरानी से)- तो तूने सब पढ़ लिया....गुड...पर तू मुझे इनके नाम क्यो बता रहा है...मैं सबको जानता हूँ....
मैं- हाँ ..मैं जानता हूँ कि तू सब जानता है...असल मे मैं इनकी मौत की बात कर रहा था...जिंदगी की नही....
वसीम(शॉक्ड)- क्क़..क्या मतलब...तू कहना क्या चाहता है...
- shubhs
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कोई राज
सबका साथ सबका विकास।
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हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।