Raj sharma stories चूतो का मेला compleet

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casanova0025
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Re: Raj sharma stories चूतो का मेला

Post by casanova0025 »

Big update pls.
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007
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Re: Raj sharma stories चूतो का मेला

Post by 007 »

पिस्ता- क्या हुआ देव
मैं- रतिया काका की लाश मिली है खेतो में राहुल का फ़ोन था


सबने अपना माथा पीट लिया था अब काका को किसने पेल दिया जो एक कड़ी थी वो भी हाथ से गयी सारा खेल ही उल्टा हो गया था पर अब जो भी था जाना था तो सब लोग हम थोड़ी देर में वहा पहुचे लोहे के तार से गले को घोंटा गया था ऐसा लगता था की थोडा बहुत संघर्ष किया होगा जान बचाने को आँखे जैसे बाहर को आ गयी थी मैंने बॉडी चेक की कुछ नहीं था सिवाय कुछ कागजों के हां पर शायद उन्होंने शराब पि राखी थी खैर, जिसको पकड़ना था वो तो निकल लिया था घर में रोना पीटना मच गया था अब मौत हुई थी तो ये सब होना ही था पर मेरे को दुःख नहीं था खैर बॉडी को पोस्त्मर्तम के लिए भेजा गया कुछ कर्यवाही करनी थी तो हम हॉस्पिटल चले गए अब गए तो इर बॉडी वापिस लेकर ही आनी थी चिता को अग्नि मिलते मिलते शाम हो चली थी


अब मर्डर था तो नीनू को ऑफिसियल भी देखना था मेटर को पर बात बनी नहीं कोई सुराग नहीं मिला खेत में पैरो के निशान भी बस थोड़ी ही दूर तक थे कुत्ते की मदद भी ली पर एक सिमित दूरी के बाद वो भी कुछ नहीं कर पाया मतलब किसी को ये तो अंदाजा था की रतिया काका को हम पकड़ने वाले है या फिर किसी ने पर्सनल रंजिश में पेल दिया था उनको पर किसने अब ये कौन बताये


कुछ दिन ऐसे ही गुजर गये थे हरिया काका की तो गुत्थी सुलझ गयी थी उनको रतिया काका ने मारा था पर कंवर को किसने मारा हो ना हो जिसने पुरे परिवार को ख़तम किया उसने ही कंवर को भी मारा , कंवर यहाँ रहता तो बिमला और चाचा के लिए पंगा था पर वो तो अलग हो गए तो फिर क्या बात हो सकती थी ऐसे ही मैं सोच रहा था अब दिन चल रहे थे तो रतिया काका के घर भी जाना होता था उस दिन अवंतिका आई हुई थी तो मैंने पूछ लिया की बड़ी बिजी रेहती हो कितने दिन हुए ऐसी भी क्या नाराजगी


वो- तुम्हे तो पता ही है की मेरे पति का इलाज चल रहा है तो बस यहाँ से जयपुर वहा से यहाँ इसमें ही बिजी हु वर्ना कब का आती तुमसे मिलने


मैं- अब कब तक हो


वो- दो तीन दिन इधर ही हु

मैं- तो आज मिले ,


वो- शाम को



मैं- रात को


वो- मुश्किल होगा


मैं- कहती क्यों नही की अब तुम बस बच रही हो


वो- बचकर कहा जाना कर्जदार हु तुम्हारी


मैं- सो तो है , पर बात को बदलो मत


वो- ठीक है रात दस बजे मेरे घर के बाहर इंतजार करुँगी


मैं- पक्का फिर मिलते है रात को



उसने एक गहरी मुस्कान से मेरी तरफ देखा और आगे बढ़ गयी मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा मैं सीढियों पे बैठा था मंजू मेरे पास आई एक कप चाय का मुझे दिया और खुद मेरे बाजु में बैठ गयी , मैंने एक दो घूँट भरे फिर वो बोली- क्या लगता है किसने मारा होगा बापू को



मैं- अभी कह नहीं सकते पर इतना वादा है कातिल बच नहीं पायेगा



वो- पर बापू को क्यों मारा



मै- अभी टाइम सही नहीं है इन बातो का घरवालो को संभाल पहले



वो- देव, कही तूने तो ........ देख तुझे खजाना भी मिल गया था तो क्या



मैं- तुझे क्या लगता है



वो- मेरा दिल तो ना कह रहा है पर



मैं- मंजू कुछ चीजों को राज़ ही रहने देना चाहिए पर तू मानने वाली तो है नहीं तो ऊपर आ मैं तुझे सच बता देता हु कई बार सच वैसा नहीं होता जैसा हम लोग सोचते है मैं नहीं जानता की सच सुनने पर तुझपे क्या बीतेगी पर अगर तू सोचती है की तुझे जानना जरुरी है तो ठीक है थोड़ी देर में मुझे छत पर मिलना मैं बता देता हु



हालाँकि ये समय इन सब बातो के लिए नहीं था पर मंजू मुझ पर शक कर रही थी तो मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था मंजू छत पर आई और मैंने उसे रतिया काका का वो अंजाना सच बता दिया की उसका बापू कैसे कर्जे के सूद के रूप में जिस्मो से खेलता था कैसे उसने सिर्फ शक के आधार हरिया ताऊ को मार दिया था उसका बाप लालच की किस हद तक गिरा हुआ था और साथ ही ये भी बता दिया की अगर वो जिन्दा होता तो आज हवालात में होता



मंजू तो उसकी बेटी थी जो अपनी बेटी को चोद सकता है उस से इंसानियत की उम्मीद भी क्या लगाई जा सकती है अपने बापू की असलियत सुन कर मंजू फफक फफक कर रो पड़ी पर मैंने उसको चुप करवाने की कोशिश भी नहीं की वो रोती रही मैं निचे आ गया और कुछ देर बाद मैं अपने घर आ गया , तो मैंने देखा की पिस्ता बाहर चबूतरे पर ही बैठी थी किसी गहरी सोच में खोयी हुई



मैं- क्या हुआ मेमसाब बड़ी गुमसुम सी है



वो- देव, तुम्हे क्या लगता है पिताजी ने वो सोना कहा छुपाया होगा और ऐसा भी तो हो सकता है की किसी और ने ही हाथ साफ कर दिया हो



मैं- होने को तो कुछ भी हो सकता है अगर पिताजी ने कही छपा भी है तो मुझे नहीं चाहिए गुजारे लायक तो है अपने पास और वैसे भी अगर अपनी कमाई में पार न पड़ी तो फिर कभी नहीं पड़ेगी



वो- बात सही है पर सोचो इतना खजाना ना जाने कहा है



मैं- देखो, वो जिसको भी मिला वो उसके हक़दार नहीं थे जबसे वो सोना आया सब ख़त्म हो गया कुछ नहीं बचा तो छोड़ो उसको और अपनी बात करो



वो- अपनी बात से याद आया आज मेरा मूड हो रहा है



मै- आज नहीं कल डार्लिंग आज मुझे कुछ जरुरी काम निपटाना है



वो- क्या



मैं- दरअसल आज किसी से मिलना है कुछ काम के सिलसिले में , अब जबकि मैं यहाँ नहीं रहूँगा तो सबकी हिफाज़त की जिम्मेदारी तुम्हारी है थोडा सतर्क रहना रात को



वो- तुम सच में बहुत चिंता करते हो



मै- सबको तो खो ही चूका हु अब कही तुम लोगो के साथ कुछ हो गया तो थोडा डर लगा रहता है



वो- तुम आराम से अपना काम करो सब ठीक रहेगा

पर आज चुक जाना था , लोग कहते थे की हमारी और उनमे दुश्मनी सी है पर मुझे ऐसा कभी नहीं लगा आज से पहले मैं बस एक बार उसके घर गया था और आज जा रहा था मेरे मन में अजीब सी फीलिंग आ रही थी , काश की मेरे पास शब्द होते तो मैं उस फीलिंग को यहाँ लिख पाता पर जाने दो ठीक दस बजे मैं उसके घर के सामने था हल्का सा अँधेरा था गली में मैंने उसे फ़ोन किया और तुरंत ही वो बाहर आई हम अन्दर पहुचे
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: Raj sharma stories चूतो का मेला

Post by 007 »




काली साडी में क्या गजब लग रही थी वो हल्का सा मेकअप किया हुआ था टाइट कसे ब्लाउज में उसके उभार जैसे की उस कैद को तोड़कर बाहर खुली हवा में साँस लेने को पूरी तरह से आतुर थे उसके बदन से उडती वो खुसबू जैसे मेरे रोम रोम में बस गयी थी वो थोडा सा मेरे आगे थी तो मेरी नजर उसकी बड़ी से गांड पर पड़ी उफ्फ्फ अवंतिका बीते समय में तुम और भी खूबसूरत हो गयी थी



वो- ऐसे क्या देख रहे हो


मैं- आज से पहले तुम्हे इस नजर से देखा भी तो नहीं


वो- देव,


मै- कोई नहीं है


वो- तभी तो तुम्हे बुलाया है बस तुम हो मैं हु और ये रात है देखो देव ये तुम्हारी मांगी रात है


मैंने उसका हाथ पकड लिया और बोला- अवंतिका


उसने अपनी नजरे झुका ली कसम से नजरो से ही मार डालने का इरादा था उसका तो धीरे से वो मेरे आगोश में आ गयी उसकी छातिया मेरे सीने से जा टकराई मेरे हाथ उसकी कोमल पीठ पर रेंगने लगी ना वो कुछ बोल रही थी ना मैं बस साँसे ही उलझी पड़ी थी साँसों से धड़कने बढ़ सी गयी थी कुछ पसीना सा बह चला था गर्दन के पीछे से जैसे जैसे वो मेरी बाहों में कसती जा रही थी एक रुमानियत सी छाने लगी थी

उसकी गर्म सांसो को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था मैं,फिर वो आहिस्ता से अलग हुई थी की मैंने फिर से उसको खींच लिया अपनी और इस बार मेरे हाथ उसके नितंबो से जा टकराये थे, उसके रुई से गद्देदार कूल्हों को मेरे कठोर हाथो ने कस कर दबाया तो अवंतिका के गले से एक आह निकली उसकी नशीली आँखे जैसे ही मेरी नजरो से मिली मैंने अपने प्यासे होंठ उसके सुर्ख होंठो से जोड़ दिए उफ्फ इस उम्र में भी इतने मीठे होंठ ऐसा लगा की जैसे चाशनी में डूबे हुए हो, इतने मुलायम की मक्खन भी शर्मा जाये ,उसके होंठ जरा सा खुले और मेरी जीभ् को अंदर जाने का रास्ता मिल गया मैं साडी के ऊपर से ही उसके मदमस्त कर देने वाले नितंबो को मसल रहा था अवंतिका की आँखे बंद थी


हमारी जीभ एक दूसरे से टक्कर ले रही थी आपस में रगड़ खा रही थी इसी बीच उसकी साडी का पल्लू आगे से सरक गया काले ब्लाउज़ में कैद वो खरबूजे से मोटे उभार मेरी आँखों के सामने थे मैंने हलके हलके उनको दबाना शुरू किया बस सहला भर ही देने जैसा, किसी गर्म चॉकलेट की तरह अवंतिका पिघल रही थी आहिस्ता आहिस्ता से मैंने उसके जुड़े में लगी पिन को खोला उसके रेशमी लंबे बाल कमर तक फैल गए अब मैंने उसकी साडी का एक छोर पकड़ा और वो गोल गोल घूमने लगी साडी उतरने लगी और कुछ पलों बाद वो बस पेटीकोट और ब्लाउज़ में मेरी आँखों के सामने थी

उफ्फ्फ खूबसुरती की हद अगर थी तो बस अवंतिका वो ख्वाब जो कभी मैंने देखा था आज उस ख्वाब को हकीकत होना था ,एक बार फिर से हमारे होंठ आपस में टकराने लगे थे उसके रूप का नशा होंठो से होते हुए मेरे दिल में उतरने लगा था मैंने उसके पेटीकोट के नाड़े में उंगलिया फंसाई और उसको खोल दिया संगमरमर सी जांघो को चूमते हुए पेटीकोट फिसल कर नीचे जा गिरा उसके गोरे बदन पर वो जालीदार काली कच्छी उफ्फ्फ आग ही लगा दी थी उसने मैंने बिना देर किये अपने कपडे उतारने शुरू किया उसने अपना ब्लाउज़ खुद उतार दिया


जल्दी ही मैं भी बस कच्छे में ही था अपने आप में इठलाती वो बस ब्रा-पेंटी में मुझ पर अपने हुस्न की बिजलिया गिरा रही थी उसकी नजर मेरे कच्छे में बने उभार पर पड़ी तो वो बोली- ऊपर बेडरूम में चलते है


मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और सीढिया चढ़ने लगा अवंतिका ने अपनी गोरी बाहे मेरे गले में डाल दी ऊपर आये उने मुझे बताया किस तरफ और फिर हम उसके बेडरूम में थे , जैसे ही अन्दर गए उफ़ क्या जबरदस्त नजारा था कमरे में चारो तरफ मोमबत्तियो की रौशनी फैली थी पुरे कमरे में गुलाब की पंखुड़िया फैली हुई थी अवंतिका मेरी गोद से उतरी पर मैंने फिर से उसको अपने से चिपका लिया मेरा लंड उसकी गांड की दरार में घुसने को बेताब था मैं ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियो से खेलने लगा वो अपने कुलहो को धीरे धीरे हिलाने लगी


धीरे से मैंने उसकी ब्रा को खोल दिया और उसकी पीठ को चूमने लगा जगह जगह से काटने लगा अवंतिका के अन्दर आग भड़कने लगी उसने मेरे कच्छे में हाथ डाल दिया और मेरे औज़ार को सहलाने लगी , मचलने लगी मेरी बाहों में उसने खुद ही अपने अंतिम वस्त्र को भी त्याग दिया मेरा लंड उसने अपनी जांघो के बीच दबा दिया और बस अपने बोबो को दबवाती रही जब तक की उसकी गोरी छातिया लाल ना होगई उसके काले निप्पल बाहर को निकल आये
“ओह!देव, बस भी करो ना ”

“अभी तो शुरू भी नहीं हुआ और तुम बस बस करने लगी हो ”

मैंने अवंतिका को बिस्तर पर पटक दिया और उसकी नाभि पर जीभ फेरने लगा उसको गुदगुदी सी होने लगी थी धीरे धीरे मैं उसकी जांघो के अंदरूनी हिस्से को चाटते हुए उसकी योनी की तरफ बढ़ रहा था उफ्फ्फ बिना बालो की किसी ब्रेड की तरह फूली हुई हलकी गुलाबी रंगत लिए हुए कसम से जी किया की झट से इसके अंदर घुस जाऊ

वो भी जान गयी थी की मैं क्या चाहता हु उसने अपने पैरो को फैला लिया और अपने कुल्हे थोडा सा ऊपर को उठाये अवंतिका की गुलाबी योनी मुझे चूमने का निमंत्रण दे रही थी तो भला मैं कैसे पीछे रहने वाला था मैंने अपनी गीली, लिजलिजी जीभ से उसके भाग्नासे को छुआ और अवंतिका के बदन में जैसे बिजलिया ही गिरने लगी थी
“आः ओफफ्फ्फ्फ़ हम्म्म्म ”
मुझे किसी बाद को कोई जल्दी नहीं थी बस वो थी मैं था और हमारी ये मांगी हुई रात थी उसकी चूत का पानी थोडा खारा सा था पर जल्दी ही मुह को लग गया बड़ी ही हसरत से मैं अपनी जीभ को उसकी योनी द्वार पर घुमा रहा था अवंतिका लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी कभी बिस्तर की चादर को मुट्ठी में कस्ती तो कभी अपने कुलहो को ऊपर उठाती उसकी बेकरारी बढती पल पल और जब मैंने उसकी भाग्नासे को अपने दांतों में दबा कर चुसना शुरू किया तो अवंतिका बिलकुल होश में नहीं रही उसका बदन ढीला पड़ने लगा आँखे बंद होने लगी मस्ती के सागर में डूबने लगी वो ,
और तभी मैंने उसकी मस्ती में खलल डाल दिया मैं नहीं चाहता था की वो इस तरह से झड़े , मैं उसके ऊपर से हट गया और तभी वो मेरे ऊपर चढ़ गयी और पागलो की तरह मुझे चूमने लगी हमारी सांसे सांसो में घुलने लगी थी उसका थूक मेरे पुरे चेहरे पर फैला हुआ था और फिर वो मेरी टांगो की तरफ आई मेरे सुपाडे की खाल को निचे सरकाया और बड़े प्यार से उस से खेलने लगी उसकी आँखों में गुलाबी डोरे तैर रहे थे और मैं जानता था की आज की रत वो कोई कसर नहीं छोड़ेगी उसके इरादों को भांप लिया था मैंने
उसने अपने सर को मेरे लंड पर झुकाया और हौले हौले से उसकी पप्पिया लेने लगी कुछ देर वो बस ऐसे ही करती रही फिर उसने गप्प से मेरे सुपाडे को अपने मुह में ले लिया और उसको किसी कुल्फी की तरह चूसने लगी मेरे होंठो से बहुत देर से दबी आह बाहर निकली वो बस सुपाडे को ही चूस रही थी जब जब उसकी जीभ रगड खाती मेरे बदन में एक झनझनाहट होती एक आग बढती पर उसे क्या परवाह थी उसे तो बस खेलना था अपने मनपसंद खिलोने से अपनी उंगलियों से वो मेरी गोलियों से खेलते हुए मुझे मुखमैथुन का सुख प्रदान कर रही थी
जब उसका मुह थकने लगा तो उसने लंड को बाहर निकाला और फिर मेरी गोली को मुह में ले लिया उसकी गर्म सांसो ने जैसे जादू सा कर दिया था मेरा लंड झटके पे झटके खाने लगा वो इतना ऐंठ रहा था की मुझे दर्द होने लगा आग इतनी लग चुकी थी की दिल बेक़रार था उस आग में पिघल जाने को हां मैं देव इस आग में अपने जिस्म को अपने वजूद को झुलसा देना चाहता था अवंतिका रुपी इस आग में क़यामत तक जल जाना चाहता था मैं और शायद वो भी मुझमे समा कर पूरा हो जाना चाहती थी
जैसे ही वो लेटी उसने अपने पैरो को फैला कर मुझे जन्नत के रस्ते की और बढ़ने का निमन्त्रण दिया जिसे मैं अस्वीकार करने की अवस्था में बिलकुल नहीं था जैसे ही मेरे लंड ने उसके अंग को छुआ अवंतिका ने एक आह ली और अगले ही पल चूत की मुलायम फांको को फैलाते हुए मेरा लंड उस चूत में जा रहा था जिसकी हसरत थी मुझे कभी पर मुराद आज पूरी हुई थी थोडा थोडा दवाब देते हुए मैं उसकी गर्म चूत म अपने लंड को डालता जा रहा था अवंतिका ने मुझे अपनी बाहों में भरना शुरू किया और फिर मेरा लंड जहा तक जा सकता था पहुच गया
“चीर ही दिया दर्द कर दिया अन्दर तक अड़ गया है “
“तभी तो तुमको वो सुख मिलेगा अवंतिका ”
मैंने अपने लंड को बाहर की तरफ खींचा और फिर झटके से वापिस डाला ऐसे मैंने कई बार किया
“तडपाना कोई तुमसे सीखे अब मैं जानी क्यों औरते तुम्हारी दीवानी थी ”
“मेरा साथ दो, तुम पर भी रंग ना चढ़ जाए तो कहना ”
“मुझ पर तो बहुत पहले रंग लगा था आज तक नहीं उतरा देव मैं तो बहुत पहले तुम्हरी हो गयी थी बस आज पूरी हो जाउंगी इस मिलन के बाद मुझ प्यासी जमीन पर अम्बर बन कर बरस जाओ देव , आज मुझ पर यु बरसो की मैं महकती रहू दमकती रहू पल पल मुझे अगर कुछ याद रहे तो बस तुम और ये रात ”
मैंने धीरे धीरे लंड को आगे पीछे करना शुर किया अवंतिका भी मेरी ताल से ताल मिलाने लगी थी कभी मुझे अपनी बाहों में कस्ती तो कभी अपनी टांगो को मेरी कमर पे लपेटती कभी खुद निचे से धक्के लगाती हम दोनों हर गुजरते लम्हे के साथ पागल हुए जा रहे थे अवन्तिका के नाख़ून मेरी पीठ को रगड रहे थे जल्दी ही मैं उस पर पूरी तरह से छा गया था ठप्प थोप्प इ आवाज ही थी जो उस कमरे में गूँज रही थी
उसकी चूत की बढती चिकनाई में सना मेरा लंड हर झटके के साथ अवंतिका को सुख की और आगे ले जा रहा था उसके गालो पर मेरे दांतों के निशान अपनी छाप छोड़ गए थे , एक मस्ती फैली थी उस कमरे में हम दोनों इस तरह से समाये हुए थे की साँस भी जैसे उलझ गयी थी मरे धक्को की रफ़्तार तेज होती जा रही थी उसकी चूत के छल्ले ने मेरे लंड को कस लिया था बुरी तरह से अवंतिका की टाँगे अब M शेप में थी वो कभी अपने हाथ मेरे सीने पर रखती तो कभी अपने बोबो को संभालती जो की बुरी तरह से हिल रहे थे अवंतिका की चूत से रिश्ता पानी मेरे अन्डकोशो तक को गीला कर चूका था

अवंतिका और मैं दोनों काफी देर से लगे हुए थे जिस्म तो हरकत कर रहा था वो अपनी आँखे बंद किये मुझसे चिपकी पड़ी थी उसके झटके कहते बदन से मैं समझ गया था की बस गिरने वाली है तो मैंने पूरा जोर लाते हुए धक्के लगाने शुरू किये अवंतिका बस जोर जोर से बडबडा रही थी उसने मेरे होंठ अपने होंठो में दबा लिया और अपने बदन को मेरे हवाले कर दिया अवंतिका की चूत में गर्मी बहुत बढ़ गयी थी वो झड़ने लगी थी और उसकी चूत की गर्मी ने मेरे को भी पिघला दिया मैंने अपना पानी उसकी गर्म चूत में उड़ेल दिया और उसके ऊपर ही ढह गया
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: Raj sharma stories चूतो का मेला

Post by 007 »



“अब हटो भी किती देर से ऊपर पड़े हो ”

मैं साइड में लेट गया वो उठी और नंगी ही कमरे से बाहर चली गयी करीब पन्द्रह मिनट बाद आई शायद फ्रेश होने गयी थी वापिस मेरी बगल में लेट गयी मैंने अपना हाथ उसके थोड़े फुले हुए पेट पर रख दिया वो मुझसे चिपक गयी खेलने लगी मेरे लंड से , उसके हाथो का कामुक स्पर्श पाकर मैं फिर से मचलने लगा


“जानते हो देव, करीब दो साल बाद आज मैंने सेक्स किया है ”

मैं- अच्छा लगा


वो- बहुत


मैं- जानती हो जब पहली बार तुम्हे देखा था तभी मर मिटा था तुम पर


वो- गीता ने बताया था मुझे की कितना पेला है तुमने उसको पिस्ता तो हमेशा मेरे साथ रहती थी पर मजे अकले ले गयी वो


मैं- उसकी बात सबसे अलग है पता नहीं कब मैं उस से इतना जुड़ गया


अवंतिका ने एक बार फिर से खिलोने को मुह में ले लिया था और चूसने लगी थी उसकी हरकतों की वजह से मैं फिर से उत्तेजित हो रहा था जल्दी ही हम दोनों 69 में आके एक दुसरे के अंगो का रसपान कर रहे थे उसकी गांड को सहलाते हुए मैं उसकी चूत का पानी पी रहा था बार बार उसके चुतड हिलते धीरे धीरे मैं उसकी गांड के छेद से खेल रहा था जल्दी ही उसके थूक में सना मेरा लंड एक बार इर से तैयार था उसकी भोसड़ी से टक्कर लेने को


मैंने उसको घोड़ी बनने को कहा और उसके पीछे आ गया वास्तव में ही उसकी गांड गीता की 44 इंची गांड के बराबर ही थी कम बिलकुल ही नही थी शायद ताई की फिटनेस जबर्दस्त थी इसलिए उनका बदन ज्यादा सुडौल था मैंने अपने लंड को चूत पे टिकाया और फिर शुरू हो गए हम दोनों अवंतिका जब मैं रुक जाता तो अपनी गांड को आगे पीछे करती मैं उसके कुलहो को थामे इत्मिनान से उसको चोद रहा था कभी कभी मैं ब्द्र्दी से तेज तेज झटके लगा तो कभी बिलकुल आराम से


पूरी मजबूती से उसकी कमर को थामे मैं उसको पूरा मजा दे रहा था उसकी सांस फूल आई थी पर वो लगी हुई थी उसने अपने धड को नीच कर लिया और चूतडो को खूब ऊपर कर लिया जिस इ मैं अब आसानी से उसकी चूत मार रहा था चूत के आस पास वाला पूरा हिस्स लाल हुआ पड़ा था बड़ा सुंदर लग रहा था करीब दस मिनट बाद मैं वहा से हट गया अब मैं निचे था वो मेरे लंड पर बैठी थी और अपनी गांड हिला रही थी उसके दोनों हाथ मेरे सीने पर थे ऐसा लग रहा था अब वो मुझे चोद रही थी


मैंने उसकी चूची पीना शुरू किया तो अवंतिका और मस्त गयी और जोर जोर से अपनी गांड को पटकने लगी जैसे जैसे मैं उसकी चूची पी रहा था वो और मस्त रही थी और उसकी रफ्तार भी बढ़ रही थी करीब पांच मिनट बाद उसने मुझे ऊपर आने को कहा और फिर से वो चुदने लगी उसकी पकड़ टाइट होते जा रही थी मेर जिस्म पर अवंतिका की सांस काफी फूल गयी थी और फिर लगभग चीखते हुए ही वो झड़ने लगी इस बार थोडा ज्यादा झड़ी थी वो रुक रुक कर वो झड़ रही थी और मैं तेज धक्के मारते हुए उसके इस सुख को कई गुना बढ़ा रहा था


झड़ने के साथ ही उसने मुझे इस तरह अपनी बाहों में कस लिया की मैं ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पाया एक बार फिर से मेरे गर्म वीर्य ने उसकी योंनि को भर दिया मिलन का एक दुआर और संपन्न हुआ बुरी तरह से थके हुए हम लोग एक दुसरे की बाहों में पड़े रहे गला सुख गया था मैंने उस से कुछ पीने को कहा तो वो बोली अभी लाती हु
मैंने तकिये को एडजस्ट किया और बेड के सिराहने से अपना सर टिका दिया अवंतिका को भी पा लिया था मैंने सची ही तो कहती थी नीनू साला सारा कुनबा ही थर्कियो का है घर में दो दो लुगाई थी तब भी बाहर मुह मार रहा था था पर मेरे ये रिश्ते भी अजीब थी हर कोई मेरा अपना ही था कम से कम मैं तो ऐसा ही मानता था कुछ देर बाद अवंतिका आई मैंने थोडा पानी पिया


“कुछ खाओगे ”

मैं- तुम्हे


वो- हाँ वो तो खा लेना इतनी मेहनत की है थोड़े थक गए हो


मैं- कहा ना अभी बस तुम्हे ही खाना है


मैंने उसको इशारा किया तो वो मेरी गोद में आके बैठ गयी मेरा लंड उसकी गांड की दरार पर सेट हुआ पड़ा था मैं उसके बॉब को फिर से मसलने लगा


वो- तुम कभी थकते नहीं हो ना


मै- अपना ऐसा ही है और वैसे भी तुम जब साथ हो बस एक रात के लिए तो फिर तुम्ही बताओ मैं कैसे रुकू
मैंने उसकी गर्दन को चूमना शुरू किया वो मचलने लगी जल्दी ही उसकी चूचियो के निप्पल फिर से कडक होने लगे थे पर इस बार मेरा इरादा कुछ और था मेरा दिल आ गया था उसकी गांड पर जैसे ही मेरा लंड तना वो मेरी गोद से उठ गयी मैंने उसे उल्टा लिटा दिया बिस्तर पर और उसकी गांड के भूरे छेद से खेलने लगा


“तुम मर्दों, को ये इतना क्यों भाति है ”

मैं- बस अच्छी लगती है तुम्हारे इतने मोटे चुतड देख कर मैं खोद को रोक नहीं पा रहा हु


वो- ड्रावर म वसेलीन पड़ी है निकाल लो वर्ना कल चालला भी नहीं जायेगा मुझसे


मैंने वेसलीन ली और खूब सारी उसके छेद पर लगाई इर अपनी ऊँगली को गांड ममे डाल के अंदर बाहर करने आगा अवंतिका अपने चुत्डो को कसने लगी


“इतना जोर से मत घुमाओ ऊँगली को देव दर्द होता है मैं तुम्हे करने को मना नहीं कर रही पर प्यार से ”

मैं कुछ देर तक ऐसे ही ऊँगली से उसकी गांड स्से खेलता रहा फिर मैंने कुछ जेल अपने लंड पर भी लगाई और उसको अवंतिका की गांड पर रख दिया उसने अपने हाथो से अपने कुलहो को फैलाया और मैंने दवाब डालना शुरू किया


“तुम्हारा बहुत मोटा है आराम से डालो आःह्ह्ह्ह धीरे ”

“बस हो गया हो गया ”

जैसे ही मेरा सुपाडा गांड को फैलाते हुए अंदर घुसा अवंतिका दर्द के मरे ज्यादा परेशान हो गयी पर उसको भी पता था दो मिनट की बाद है धीरे धीरे बड़े प्यार से मैंने पूरा अन्दर डाल दिया और बस उसके ऊपर लेट गया और उस से बाते करने लगा उसके गालो को चूमने लगा करीब पांच मिनत बाद मैंने अपनी कमर उच्कानी शुरू की और उसने दर्द भरी सिस्कारिया लेना चालू किया


जल्दी ही अवंतिका भी मजे लेने लगी और मैं अब तेज तेज धक्के लगते हुए उसके पिछवाड़े का मजा ले रहा था बस अगर कुछ था तो हवस जो हमारे जिस्मो को नचा रही थी अपनी ताल पे मेरी गोलिया हर धक्के पे उसके मुलायम कुलहो पर टकराती अवंतिका की गांड बहुत ही टाइट थी मुझे लगा की कही मेरा लंड छिल ना जाए पर ऐसी गांड पर ही तो लंड की मजबूती नाप जा सकती थी करीब बीस बाईस मिनट तक उसकी गांड जम के मारी और फिर मैंने अपना पानी वही छोड़ दिया

उस पूरी रात हम दोनों ने एक पल के लिए भी आँखे नहीं मीची बस चुदाई ही चुदाई चलती रही जब मैं जाने लगा तो उसने कहा की नाश्ता करके जाओ वो भी अकेली है थोडा अच्छा लगेगा और जल्दी ही हम नाश्ता कर रहे थे तभी मेरी नजर वहा लगी एक पेंटिंग पर पड़ी शायद कोई राजस्थानी पेंटिंग थी जिसमे तीन राजा लग रहे थे



मैं- अवन्तिका, ये पेंटिंग किस की है



वो- ये त्रिदेव है ससुर जी लाये थे इस पेंटिंग को तीन भाइयो की तस्वीर है बस इतना ही पता है मुझे वैसे अच्छी है ना
मैं- हाँ ऐसा लग था है की अभी बोल पड़ेंगे पुराने ज़माने की शान ही और होती थी त्रिदेव वाह क्या बात है



फिर ऐसे ही हलकी फुलकी बाते करते हुए हम नाश्ता करते रहे और तभी चाय का कप मेरे हाथो से छुट गया ओह तेरी त्रिदेव तो ये बात थी मैं भी कितना बुद्धू था मुझे ये बात पहले ही समझ जानी चाहिए थे ओह मेरे रब्बा हद है यार, अगर वहा वो सब हुआ तो मान ग

या पिताजी ने बहुत सोचकर वहा पर छुपाया होगा मैं जैसे ख़ुशी से नाच ही था था मैंने अवंतिका के होंठ चूम लिए
“क्या हुआ देव ऐसा क्या मिल गया बताओ तो सही ”


मैं- अवंतिका तुम नहीं जानती तुमने अनजाने में मेरी मदद कर दी है अगर सचमुच वैसा हुआ जैसा मैं सोच रहा हु तो गजब हो जायेगा ओह मेरी जान अवंतिका तुम सस्च में गजब हो यार कल मेरा यहाँ आना और इस तस्वीर को देखना त्रिदेव, कसम से जान अभी जाना होगा शाम को इंतज़ार करना मेरे फ़ोन का भी मुझे जाना होगा मिलते है
उसको वहा छोड़कर मैं सीधा घर आया और सबको मेरे साथ आने को कहा साथ ही कहा की खुदाई का सामान भी ले ले



पिस्ता- कुछ बताओ तो सही कहा जाना है



मैं- चुप रहो बस चलो मेरे साथ



मैंने सबको गाडी में बिठाया और गाड़ी को भगा दी करीब आधे घंटे बाद हम लोग उसी जमीन पर थे जहा ये सब खेल शुरू हुआ था गाडी तो आगे जा सकती नहीं थी उसको वही खड़ी किया और अब करीब दो कोस पैदल चलते हुए जा रहे थे



नीनू- देव, हम वापिस इस जगह क्यों



मैं- खुद ही देख लेना अगर मेरा अंदाजा सही है तो मैंने अपना हिस्सा ढूंढ लिया है



“क्या ”वो तीनो एक साथ चिल्लाई



मैं- क्या हुआ चुप नहीं रह सकती क्या अभी मेरा अंदाजा ही है बस पर तीर लग गया तो पार ही है



नेनू- पर कैसे



मैं- चलो तो सही पहले



सबलोग एकदम से रोमांचित हो गए थे थे जोश जोश में हम वहा पहुचे पूरा बदन पसीने से भीगा पड़ा था पर अब किसे गर्मी लगनी थी और फिर हम वहा आये जहा पर वो तीन पेड़ थे , त्रिदेव ही तो थे वो तीन बरगद के पेड़ एक जड से निकले हुए जैसे तीन भाई एक माँ की कोख से पैदा होते है



मैं- देखो मैंने कहा था ना की इन पेड़ो में कुछ तो अजीब बात है और वो अजीब बात ये है की ये त्रिदेव है



पिस्ता- पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हो साफ साफ क्यों नहीं बताते



मैं – खजाने का आधा हिस्सा इनमे इ किसी एक पेड़ के निचे या अस पास है



नीनू- देव, हम चबूतरे के पास खोद चुके है और जानते हो ना हमे क्या मिला था



मैं- एक चीज़ होती है किस्मत नीनू पर ये सारी बाते खोखली हो जाएँगी अगर वो चीज़ हमे नहीं मिली जिसकी हमे तलाश है तो इस चबूतरे को बिलकुल मत छेड़ना और बाकी जगहों पर खोदना शुरू करो अब थोड़ी मेहनत तो कर ही सकते है तो चलो शुरू हो जाओ

कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: Raj sharma stories चूतो का मेला

Post by 007 »




अगले घंटे भर तक हम खोदते रहे पर कुछ नहीं मिला दो घंटे हुए पर खाली हाथ सब तरफ से करीब तीन तीन फीट खुदाई हो चुकी थी पिस्ता ने तो अपनी कुदाल फेक ही दी थी



वो- देव, तुम्हारे फ़ालतू के ख्याल ने मेहनत जाया करवा दी है



मैं- पिस्ता हार मत मानो हम 6 फीट तक देखेंगे मेरे हिसाब से इतने में काम बन जाना चाहिए वर्ना बाकि अपना नसीब पर मेरा दिल कहता है हम उस चीज़ के बेहद करीब है जिसके बारे में लोगो ने बस सुना ही होता है



तो एक बार फिर जोश के साथ हम जुट गए पर जैसे जैसे खुदाई होते जा रही थी उम्मीद कम हो रही थी और फिर नीनू की गैंती किसी धातु से टकराई जैसे उलझी हो उसमे औ जी ही नीनू ने गैंती को बाहर खीचा उसके साथ लिपटा हुआ आया कुछ ये एक हार था मिटटी में सना हुआ पर बात बन गयी थी सभी के चेहरे दमक उठे थे अब हम सारे उस जगह को लगे खोदने और फिर दो बड़े से संदूक जिनमे वो सारा माल भरा था जो रह गया था मतलब संदूक में ना समा पाया था उसे साथ ही दफना दिया गया था




अथक मेहनत के बाद सारे माल को धरातल तक खीचा हमने वाह री किस्मत तेरे अजब खेल कितना पास होकर भी वो खजाना सबके इतना नजदीक था त्रिदेव, आखिर क्यों कोई इस बात को पहल्ले नहीं समझ पाया था



पिस्ता- देव, खजाना , तुम्हारा हिस्सा



मैं- कह सकती हो पर ये मेरा हिस्सा नहीं है शायद हुआ यु होगा की शायद पिताजी ने वहा से यहाँ इसको हिफाजत के लिए छपाया होगा की बाद में ले लेंगे पर वो बाद कभी आ ही नहीं पाया



नीनू- पर जब उन्होंने वहा से यहाँ तक लाया तो घर भी तो ल जा सकते थे



मैं- शायद उस समय हालात ऐसे नहीं था चुनाव थे घर में कलेश था ऊपर से रतिया काका का एक्सीडेंट यहाँ सिर्फ इसलिए रखा गया होगा की उस उवे का पता किसी को चल भी गया हो तो और कोई चुरा ना सके


पिस्ता- एक वजह और हो सकती है देव



मैं- क्या



वो- लालच की क्यों बंटवारा किया जाये देखो देव बुरा मत मानना पर ऐसा भी तो हो सकता है की लालच हो की रतिया तो बचे ना बचे तो सारा माल अपना अब उसके बारे में बस दो लोग तो जानते थे की है कहा और ये भी तो हो सकता है की हिस्सेदार को रस्ते से हटाने के लिए अब इन्सान की फितरत कब बदल जाए और यहाँ तो मामला खजाने का है अभी भी इन संदूको में और बाहर का मिला कर 50-60 किलो तो है ही



मैं- देखो पिस्ता मैं तुम्हरी बात को समर्थन देता पर जिनको खजाना मिला वो दोनों ही लोग इस दुनिया में नहीं है और मैं इस बात की पुष्टि करता हु की दोनों की मौत का कारण लालच तो हो सकता है पर खजाना हरगिज़ नहीं है



पर तुम्हारी इस बात ने मेरे मन में कुछ ऐसी बात ला दी है जो शायद मुझे नहीं करनी चाहिए पर तर्क जरुरी है देखो दो लंगोटिया यार जिनमे भाइयो जैसा प्यार , एक महा ठरकी, तो ऐसा होनाही सकता की दुसरे को उसके बारे में पता ना हो माना की मेरे पिता थे उनमे से एक और ऐसी बात करना उचित भी नहीं पर देखो हम दोस्तों के कई गुण-अवगुण अनजाने में ही ले लेते है तो ऐसा भी हो सकता है की पिताजी पता नही मैं आगे की बात क्यों नहीं कह पाया



“पिताजी भी रतिया काका के हर पाप में भागीदार रहे हो ”नीनू ने मेरी बात पूरी की



नहीं पिताजी की जो छवि मेरे मन म थी वो तद्कने लगी थी अगर ऐया हुआ तो पर इनकार भी तो नहीं किया जा सकता था सम्भावना से जिंदगी ये कैसे मोड़ पर ले आई थी मेरे मन में नीनू की वो बात आने लगी की सारा कुनबा ही ठरकी है

नीनू- देखो जब तक हमे कोई ठोस सबूत नहीं मिल जाता आकलन करने से क्या फायदा अब सवाल ये है की गाड़ी दूर है इतने वजन को कौन ढोयेगा और सबसे महत्वपूर्ण बात की ये पता कैसे चला की ये सोना यहाँ है


मैं- किस्मत नीनू किस्मत बस हमारी अच्छी थी और उसकी ख़राब जिसने कवर की लाश को यहाँ गाडा देखो दोनों में बस थोड़ी ही दूरी है उसने भी कम से कम पांच फीट खुदाई की थी लाश को छुपाने की पर यही तो खेल है कीमत का अगर वो बीच की जगह यहाँ खोदता तो आज इस सोने का मालिक वो होता

देखो इस पूरी जमीन में ये पेड़ सबसे अलग दीखते है क्योंकि ये बरगद के तीन पेड़ एक जद से निकले है और एक साथ है ये निशानी है तीन भाइयो की ये तीन त्रिदेव हा जबकि हमने उस दिन इन्हें त्रिवेणी समझ लिया था पर पिताजी ने इन्हें त्रिदेव समझा ये पेड़ तीन भाई है और पिताजी हर भी तीन भाई थे वो इस दुनिया में सबसे ज्यादा किसी को चाहते थे तो बस अपने परिवार को अपने भाइयो को ये बात सबको पता है इन तीन पेड़ो में उन्होंने खुद को अपने भाइयो को देखा और शायद इसलिए ही उन्होंने खजाना यहाँ छुपाया


मतलब हम इंसानों की फितरत अजीब होती है, कई बार छोटी छोटी चीज़े हमे टच कर जाती है जैसे मैं आज भी रडियो सुनता हु , केसेट सुनता हु जबकि अरसा हुआ केसेट आणि बंद हुए तो शायद ऐसे ही इमोशनल टच कह सकते है और शायद ये ही कारण हो क उनके वारिस को आज वो सब मिला है जो कभी उन्हें मिला था किसी ने मुझे तीन भाइयो त्रिदेव के बारे में बताया था बातो बातो में बताया था और तभी मुझे ये ख्याल आया


तो चलो , अब हमे यहाँ से निकलना चाहिए हम इस वक़्त सेफ नहीं है अगर दुश्मन की नजर में है तो अब गाडी तो आ नहीं सकती जैसे तैसे करके गाड़ी तक सामान को घसीटना ही होगा


पिस्ता- अगर हम गाड़ी को उस तरफ से ले आये जिस तरफ से ममता भागी थी तो घसीटना ना पड़े


मैं- पिस्ता गाड़ी उस तरफ लाने के लिए बहुत दूर का चक्कर लगाना पड़ेगा और जितनी देर लगेगी उस से आधी में तो हम लोग पैदल गाड़ी तक पहुच जायेंगे


बोलने को आसन था पर करना बहुत मुस्किल दम निकल आया सबका बुरा हाल हुआ पड़ा था पर गाड़ी तक जाना ही था करीब करीब डेढ़ घंटा तो लगा ही होगा बल्कि ज्यादा है खैर उसको लादा गाडी में और फिर चले हम घर के लिए सूरज ढलने लगा था पूरा दिन ही बीत गया था मैंने सुबह से बस थोडा बहुत अवंतिका के साथ ही खाया था तो भूख लगी पड़ी थी पर सब थके हुए पड़े थी इधर उधर आखिर नीनू ने ही हिम्मत की और कुछ बनाने रसोई में चली गयी
मैंने अंदर पुराना सामान देखा तो कुछ बट्टे और पुराना तराजू मिल गया तो मैंने सारे सोने को तोलना शुरू किया तो करीब वो 62 किलो के आस पास था मैंने कहा देखो सब इस को अपने अपने हिसाब से बाँट लो


पिस्ता- देव तुम ये बात कह कर हमे शर्मिंदा करते हो


मैं- तो जैसे रखना है तुम जानो मुझे बड़ी भूख लगी है बस खाने को कुछ दो यार


फिर खाना वाना खाके थोड़ी जान आई फिर कोई नहाने चला गया कोई आराम करने आज मजदुर लोग पैसा मांग रहे थे तो मैं उनका हिसाब करने लग गया तो उसमे बहुत देर लग गयी मैंने फ्फिर अवंतिका को फोन किया तो पता चला की वो फार्म हाउस पर है तो मैंने कहा मैं वही आ रहा हु घंटे भर में अब अवंतिका ने ही तो वो क्लू दिया था तो मैंने सोचा की उसको भी हिस्सा देना चाहिए तो मैंने एक बैग में सोना भरा और फिर बहाना बना के गाड़ी को मोड़ दी फार्म हाउस की तरफ


पर रस्ते भर मैं यही सोचता रहा की आखिर वो कौन दुश्मन हो सकता है हमारा जो मेरे पास होकर भी इतना दूर है रतिया काका तो रहे नहीं थे बचे चाचा, बिमला और मामी स्लै सब ढोंग कर रहे थे अपना होने का पर कालान्तर में इन्होने ही मारी थी मेरी साला दर्द भी अपना और दर्द देने वाले भी अपने मेरे तन पे मेरे मन पे मेरे अपनों के ही तो ज़ख्म थे कहने को तो परिवार ख़तम होने के बाद ये मेरे अपने थे पर सालो ने एक दिन भी नहीं संभाला चाचा और बिमला को तो कभी अपनी प्यास से फुर्सत ही नहीं आई


और नाना मामा सब साले चोर किसी को ये परवाह नहीं की मेरे मन में क्या है सब को बस लालच सबके मन में हवस किसी न य्नाही सोचा की देव भी कोई है माना की मुझसे गलति हुई अपने लालच की वजह से मैं माँ सामान भाभी के रिश्ते को कलंकित किया वो सही कहती थी उसको ये राह मैंने ही दिखाही थी वो मैं ही था जिसने खून को गन्दा किया था अगर कोई सबसे बड़ा दोषी था वो मैं ही था ये अजीब खेल जिंदगी के आंसू भी अपना नमक दर्द भी अपना और दिलदार भी अपना


जहाँ देखो बस गम ही गम है सोचते क्सोहते मैं अवंतिका के फार्महाउस पर पंहुचा वो अकेली ही थी हम अन्दर आये मैंने उसको बैग दिया


वो- क्या है इसमें


मैं- तुम्हारे लिए मेरी तरफ से कुछ


उसने जैसे ही बैग खोला उसकी आँखे फटी रह गयी


वो- ये,,,,,,,,,,,,,,,,,, ये सब क्या है देव


मैं- तोहफा है तुम्हारे लिए मेरी तरफ से


वो- पर मैं इतना सोना कैसे


मैं- अवंतिका तुम्हे मेरी कसम ये लेना ही होगा


उसने बैग साइड में रख दिया और मेरे पास आके बैठ गयी


बोली- तुमने कभी मोहब्बत की है देव


मैं- पता नहीं कभी आवारापन से फुर्सत ही नहीं आई तुम्हे तो सब पता ही है ना


वो- देखो, जिंदगी वैसी भी नहीं होती जैसा हम सोचते है अक्सर हम लोगो के बस एक टैग दे देते है की वो ऐसा है वो वैसा है जब मैंने पहली बार तुम्हारे बारे में सुना था की बस तुम ही हो जो चुनावो में मेरी नैया को पार लगा सकता है मैने सुना तुम्हरे बारे में गाँव के छैल छबीले नोजवान पर मैं सोचती थी की क्या ये लड़का मेरे लिए अपने परिवार को हरवा देगा क्योंकि हमारे लिए तो परिवार ही सबकुछ होता है और वो भी जब तुम्हरे और मेरे परिवार में सम्बन्ध ठीक नहीं थे


जब तुमने वो एक रात वाली शर्त रखी तो मैंने तुम्हे तोलने का सोचा और हाँ कर दी मेरे मन में ये था की शायद तुम अपने परिवार से धोका नहीं करोगे पर तुमने अपना वादा निभाया और उसके बाद भी तुमने उस रात वाली बात का जिक्र नहीं किया मैं सोचने लगी तुम्हारे बारे में हर पल पल पल मैं सोचती की क्या कहूँगी जब तुम अपना वचन निभाने को कहोगे क्योंकि आसन कहा होता है किसी भी औरत के लिए वो सब , जबकि मेरी दो खास पिस्ता और गीता तुम्हरी बड़ाई करते नहीं थकती थी ये कैसा जादू सा था जो उनके साथ साथ मुझ पर भी अपना रंग चढाने लगा था

और फिर ना जाने कब मैं तुमसे जुड़ने लगी हर पल सोचती थी की कब तुम पहल करोगे पर फिर वो हादसा हो गया जिसने सब बदल कर रख दिया इस से पहले की मैं तुम से मिल पाती तुम गाँव छोड़ गए , और फिर मुलाकात हुई भी तो किस हाल में तुम घायल थे तदप रहे थे वो बस किस्मत की ही बात थी खैर, तुम बिना बताये गायब हो गए वक़्त बड़ा गया यादे धुंधला गयी अपने अजनबी हो गए

मैं- अवन्त्का कुछ बाते बस याद ही रहनी चाहिए मेरी जिंदगी का एक मात्र उद्देश्य उस इन्सान की तलाश है जिसने मेरे परिवार को मार डाला मुझे अनाथ बना दिया जानती हो हर पल उस आग में जलता हु मैं जब उस दिन मैं हॉस्पिटल पंहुचा तो पिताजी की सांस चल रही थी खून से लथपथ जब मैंने देखा उनको तो जानती हो क्या गुजरेगी उस बेटे पर जिका बाप पल पल मौत की तरफ बढ़ रहा हो , जब उनकी सांसो की डोर टूटी उनका हाथ मेरे हाथ में था


कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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