Raj sharma stories चूतो का मेला compleet

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Re: Raj sharma stories चूतो का मेला

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thanks dosto
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: Raj sharma stories चूतो का मेला

Post by 007 »

मैं- तो बात घूम फिर के जहा से चली है वहा पर आ जाती है देखो घूमफिर कर हम लोग हर बार इसी पॉइंट पर आ जाते है मतलब की हम लोग गलत तरीके से सोच रहे है कई बार ऐसा भी होता है की कोई और फायदा ले जाता है जबकि शक किसी और पर होता है

नेनू- पर तुम्हारे मामले में ये थ्योरी गलत है क्योंकि गाँव में तुम्हारे परिवार की किसी से दुश्मनी थी नहीं ये सब जब हुआ जब तुमने चुनाव में बिमला से धोखा किया ये जो भी पंगा है ये फॅमिली का है अब दुश्मनी वाला एंगल ले भी तो कैसे जब किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी और वैसे भी अपने ही सबसे बड़े दुश्मन होते है अगर वो ठान ले तो

मैं- तो क्या करू

पिस्ता- हमे मामी को उठना चाहिए जब मैं सेवा करुँगी उसकी तो बताएगी वो

मैं- नहीं रे पगली, सीधा सीधा उठा लेंगे तो कही काम बिगड़ ना जायेगा

नीनू- क्यों न हम उस पूरी जमीन की खुदाई करवाए

मैं- पागल हुई हो क्या कितनी जमीन है वो और सीधी बात है अगर पिताजी ने भी वहा से सोना निकाल लिया था तो वो उसे वही जमीन में बिलकुल नहीं छुपायेंगे

माधुरी –भाई आप इन सब चीज़ के बीच ये क्यों भूल रहे है की कंवर को किसने मारा अगर उस एंगल से सोचेंगे तो शायद कोई बात बने

वाह रे छुटकी, क्या बात पकड़ी थी जबसे इस खजाने की बात आई थी ये बात सूझी ही नहीं थी अब उस रात गाँव में किसी ने तो कंवर को देखा होगा अब जुगाड़ करके किसी न किसी से तो कुछ उगलवाना था पर मेरे दिमाग में उसके आलावा हरिया काका की भी मौत का कारण था हो ना हो दोनों की मौत तकरीबन उसी टाइम पीरियड में हुई थी मतलब साफ़ था की कुछ तो गड़बड़ है मतलब ऐसा भी हो सकता था की कंवर को भी सोने वाली बात पता चल गयी हो ,


ये फिर चाचा ने उसका पत्ता काट दिया ताकि वो उसके और बिमला के बीच ना सके या फिर इसलिए की कोई नहीं चाहता था की घर का वारिस आये आज मेरा दिमाग पूरी तरह से घुमा हुआ था तो मैंने ठेके पे जाने का सोचा हल्का हल्का अँधेरा हो रहा था करीब आधे घंटे में मैं वहा पर पंहुचा अपना ऑर्डर लिया और वही बैठ गया गाँव के कई लोग वहा पर बैठे थे एक बुद्धे को मैं पहचान गया उसे राम राम की तो वो मेरे पास आ गया


मैं- ताऊ, लोगे

वो- नहीं बेटा, मेरा कोटा हो गया है

मैं- कोई ना ताऊ एक तो ले लो मैंने आवाज मारके ताऊ के लिए गिलास मंगाया वो बैठ गया

मैं- ताऊ, और बताओ गाँव के क्या हाल चाल है

वो- बस बेटा जी रहे है ज्यादा गुजर गयी अब तो थोड़ी बची

मैं- वो तो है ताऊ

मैंने पेग बना के उसको दिया

हमारी बाते होने लगी

मैं- ताऊ क्या करते हो

वो- बेटा शहर में pwd में माली हु तुम्हारे चाचा की मेहर है उन्होंने ही जुगाड़ करवा दिया

मैं- ताऊ उधर तो वो हरिया काका भी लगा हुआ था न

वो- अरे बेटा , उसको मरे कई साल हुए पर आदमी बढ़िया था

मैंने एक पेग और सरकाया

मैं- ताऊ वो आपका दोस्त था ना

वो- दोस्त ही कह लो उम्र में तो काफी छोटा था पर दोनों साथ काम करते थे तो दोस्ती सी ही थी

मैं- दारू का रसिया था वो भी

वो- ना रे बेटा, उसने छोड़ दी थी बस अपने काम में ही मस्त, कहता था बहुत पी ली अब खोयी इज्जत कमानी है अब एक ही लड़की थी ब्याह दी थी उसकी औरत भी बहुत ही नेक थी कई बार मैं जाता था उसके घर दारू छोड़ने से फिर से रोनक हो गयी थी उसके घर

मैं- पर वो मारा कैसे ताऊ

वो- बेटा बुरा मत मानना सब समझते है की उसको तुम्हारी भाभी ने मरवाया है पर मुझे ऐसा नहीं लगता

मैं- क्यों ताऊ , ये बोलके मैंने उसे एक पेग और दिया

वो- बेटा, उसकी मौत से कुछ दिन पहले वो बहुत बुझा बुझा सा था तो मैंने पूछ लिया उसने बताया की उसे वो बानिया है ना रतिया

मैं- हां

वो- वो उसे परेशान कर रहा था अब बात क्या थी ये तो उसने नहीं बताई पर वो बहुत मुसीबत में लगता था उसके बाद वो दो तीन दिन काम पे भी नहीं आया फिर उसकी लाश ही मिली थी

मैं- ताऊ, कहा मिली लाश

वो- बेटा वो जो परली पार खेत है ना तुम्हारे चाचा के उधर ही मरा मिला था वो

ओह! तो उसके बाद ही चाचा ने खेतो की तरफ जाना छोड़ दिया था अब सबूत तो कुछ मिलना था नहीं वहा पर पर एक नजर देखना तो बनता था

मैं- ताऊ, घनी हो गई चले अब

वो- हा, बेटा

मैं- बैठ ले गाडी में

उसके बाद रस्ते भर मैंने ताऊ से बात की पर कुछ खास ना पता चला बात घूम फिर कर वही आ गयी थी अब ये पता करना था की रतिया काका से उसका क्या पंगा हुआ था जहाँ मैं रतिया काका को बेहद शरीफ समझता था वहा उसका नया चेहरा ही समझ आ रहा था झोल पे झोल हुए जा रहा था हर तरफ बस शक ही शक कोई राह नहीं बस भटकते रहो अँधेरे में


अब इन हत्याओ को हो भी तो बहुत समय गया था सबूत कहा से ढूंढ कर लाऊ चारो तरफ भुस सवाल थे और जवाब दने वाला कोई नहीं था कौन करे मेरी मदद खैर, घर आया बैठक में सब घर वालो की तस्वीर लगी थी आखिर ये लोग मुझे क्यों छोड़ कर चले गए मैं बहुत देर वहा बडबडाता रहा फिर मैं पिताजी के कमरे में चला गया मैं समझ रहा था की पिताजी ने जरुर कोई सुराग छोड़ा होगा सब कुछ किस्मत के हवाले तो नहीं कर सकता था मैं मैंने पिताजी की हर चीज़ की बारीकी से तलाशी ली पर कुछ नहीं मिला फिर नींद कब आई कुछ पता नहीं

अगले दिन मैं और नीनू निकल गए घूमने मंदिर की तरफ चले गए दर्शन किये बाबा के नए मंदिर का काम चल रहा थोडा देखा कुछ बाते पुजारी जी से हुई हम चलने को ही थे की बिमला आ गयी अब सरपंच होने के नाते वो मंदिर का निर्माण देखने आती रहती थी तो हमसे भी बात हो गयी हम लोग एक पेड़ के निचे बैठ गए ऐसे भी नार्मल बात हो रही थी मेरे मन में एक दो बात थी पर मैंने टाल दी फिर बिमला चली गयी हम बैठे रहे
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Re: Raj sharma stories चूतो का मेला

Post by 007 »



नीनू-क्या लगता है



मैं- किस बारे में



वो – हम अभी तक सोने के बारे में ही सोच रहे है इतना कैश निकला है उसका क्या वो कैश ही है सोनी को बेच कर नहीं कमाया गया है वैसे भी करोडो के सोने को बेचना कोई आसान तो है नहीं



मैं- क्या कहना चाहती हो



वो –यही की नगद रकम का मामला अलग है



मैं- भाड़ में जाए , सोना हो या रकम मुझे कोई वास्ता नहीं मुझे मेरा चैन सुकून वापिस मिल जाये और कुछ नहीं चाहिए मुझे दो पल जिंदगी आराम से जी लू वही बहुत है



वो- उसी जिंदगी के लिए तो हम सब कर रहे है ना



मैं- वो दिन भी क्या दिन थे ना कोई चिंता थी ना कोई फ़िक्र



वो- तुम तब भी आवारा थे आज भी हो , याद है मैं तुम्हरे ही गाँव में तो पढने आती थी वो साइकिल चलाना कई बार रस्ते में गीत गुनगुना अब तो मोबाइल हो गए वो इशारो वाले ज़माने गए



मैं- सही कहती हो अपने टाइम की बात ही अलग थी



कई बार मैं जा रहा होता था तुम साइड से घंटी बजा के निकल जाया करती थी अब वो बात कहा काश कोई लौटा दे मेरे बीते दिन , वो जब तुम टिफिन में मेरे लिए आधा खाना छोड़ दिया करती थी आचार कितना अच्छा बनाती थी तुम



वो- हां, माँ आचार सबसे बढ़िया बनाती थी मैं उंगलिया चाटने लग जाती थी पर अब कहा वो स्वाद, अब तो बात ही गयी



मैं- बात कैसे गयी और हाँ वैसे भी इन सब टेंशन के बीच हम तुम्हरे घर जाना तो भूल ही गए एक काम करो हम भी तुम्हारे गाँव चल रहे है



नीनू- नहीं देव, अब जो पीछे छूट गया उसका क्या फायदा उस घर के दरवाजे बरसो पहले मेरे लिए बंद हो चुके है वहाँ जाके कुछ हासिल नहीं होना सिवाय दर्द के



मैं- नीनू, दर्द पर मरहम भी लगता है हम बस चल रहे है अभी इसी वक़्त



वैसे भी कौन सा दूर था मेरे गाँव से अगला गाँव तो था ही करीब पन्द्रह मिनट बाद हम लोग नीनू के घर के लिए जो मोड़ जाता तह वहा थे तर्रक्की को गयी थी पक्की सड़के बन गयी थी पहले इधर बस नीनू का ही घर था पर अब तो अच्छा खासा मोहल्ला बन गया था



नीनू- देव, गाडी वापिस मोड़ लो वहा काफी रोना पीटना होगा शायद तुम्हे भी कुछ बोल दे और वो बेइज्जती मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी



मैं- रे पगली, तेरे घरवाले मेरे भी घरवाले है कुछ बोल देंगे तो क्या आफत आ जानी है हम किसी गैर के घर नहीं आये है हम अपनों के घर आये है



मैंने गाडी आगे बढाई नीनू थोड़ी नर्वस होने लगी थी पर अब जाना तो जाना ही था पांच मिनट बाद मैंने गाड़ी नीनू के आँगन में रोक दी उसके पिता वही बैठे थे हुक्का पी रहे थे हम गाड़ी से उतरे नीनू को देख कर एक पल उनकी चेहरे के भाव बदले पर वो उठे नहीं बस बैठे ही रहे हम लोग वहा गए मैंने उनके चरण स्पर्श किये तो वो कुछ नहीं बोले
तभी नीनू की माँ भी आ गयी वो हमारी तरफ आने लगी पर फिर देहलीज पर ही रुक गयी



मैं- नीनू बात करो



नीनू- पापा बोली वो भराए गले से



पापा- जब तुम चली ही गयी थी तो क्या लेने आई हो अब



मैं- पापा, हमारी बात सुनो एक पल



वो- तुम कौन हो



मैं- इसका पति



वो- अच्छा तो तू है जिसने मेरी बेटी की जिन्दगी बर्बाद कर दी



मैं- आप हमारी बात सुनिए बेटी बरसो बाद घर आई है कम से कम झूठा ही सही मुस्कुरा तो दीजिये



मैंने मांजी की तरफ देखा और बोला- ये तो आना नही चाहती थी पर वो क्या है ना मैंने सुना की मांजी आचार बहुत अच्छा बनाती है तो मैं खुद को रोक ना सका और दौड़ा आया



मांजी ये सुनते ही मुस्कुरा पड़ी मैं समझ गया काम बन जायेगा





पापा- बात तो बहुत मीठी करता है तभी मेरी बेटी को फांस लिया



मैं- पापा आपके मन में जी इतने दिनों से नीनू की प्रति गलतफहमी है वो दूर करने आया हु ये ना तब गलत थी ना अब गलत है पर पहले थोडा पानी वानी तो पिला दो



पापा उठे और हमे अन्दर आने का कहा नीनू की धडकनों को महसूस कर लिया मैंने , बरसो बाद वो अपने कदम रखने जा रही थी अपने घर में पानी पिया उसके बाद मैंने सारी बात बता दी उनको और साथ ही ये भी की मैं किस गाँव का हु और किस परिवार का हु



पिताजी का नाम सुनते ही नीनू के पिताजी की आँखे चमक उठी बोले- बस बेटे और कुछ कहने की जरुरत नहीं तुम्हारे परिवार से तो बरसो से उठना बैठना था हमारा अरे तुम्हारे ताऊ और मैं फौज में साथ ही नौकरी करते थे वो थोडा पहले रिटायर हो गया था मैं थोडा बाद में पर फिर पता लगा की पूरा परिवार ही ख़तम हो गया तो बड़ा दुःख हुआ



और ये भी पगली, इसने अगर साफ़ साफ़ बता दिया होता तो मैं खुद आगे चल कर तुम दोनों का ब्याह करवा देता इसको बता देना चाहिए था इतने दिन से चिंता थी की बेटी कैसी है किस हाल में होगी पर अब चिंता दूर , शायद इसे ही कहते है विधि का विधान अब मैं लोगो को गर्व से बताऊंगा की मेरी बेटी भाग के नहीं गयी थी बल्कि किस खानदान की बहु है



पापा की आँखों से आंसू निकलने लगी नीनू अपने पिता के गले लग गयी फिर मा के थोडा भावुक सा माहौल हो गया था उसके घरवाले सज्जन लोग थे पल में ही सब गिले शिकवे ख़तम हो गए थे अपने को और क्या चाहिए था घरवाली खुश हो गयी थी तो अपन भी खुश थे बातो बातो में शाम हो गयी थी अब चलने का समय हो गया था पर नीनू के पापा की जिद थी की रात का खाना खाकर ही जाए तो फिर और देर हो गयी उसकी मा चाहती थी की नीनू कुछ दिन और रहे तो मैंने कहा जल्दी ही वो आ जाएगी



उसके बाद हम अपने घर के लिए चले गाँव से बाहर आते ही नीनु ने मेरे हाथ को कस के पकड लिया मैंने गाड़ी रोक दी साइड में उसकी आँखों में आंसू थे दो पल उसने मेरी तरफ देखा और फिर अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए
बहुत देर तक वो मुझे चूमती रहे दीवानों की तरह जब तक की सांसे जिस्म से बगावत ना करने लगी बस उसने बिना कहे ही सब कुछ कह दिया था उसने मेरे कंधे पर सर रख दिया मैं गाडी धीरे धीरे चलाने लगा बस जीना चाहता था उन लम्हों को दिल दिल से बाते कर रहा था हवा अचानक से खुशगवार लगने लगी थी घर कब आ गया पता ही नहीं चला बेशक उसने लफ्जों में कुछ नहीं कहा था पर फिर भी मैंने समझ लिया था की उसके दिल में क्या है घर आने के बाद वो अपने कमरे में चली गयी



मैं बाहर ही चारपाई पर लेट गया मैं सोच रहा था अपने बारे में नीनू के बारे में हम सब के बारे में पहले सब कितना सही था पर अब हर पल पल पल जिंदगी में बस दुःख ही था अजीब सी लाइफ हो गयी थी सोने का पता दो लोगो को था फिर लोग जुड़ते गए आधा निकाला गया बाकि कोई और ले गया अब रतिया काका का चरित्र जिस तरह से निकला था उस से ये भी अंदेसा था की वो मुझसे झूठ बोल रहे हो ऐसा भी हो सकता था की उन्होंने पिताजी से पहले ही वो खजाना वहा से साफ़ कर दिया हो



और फिर अपना वो ही शराफत का नकाब ओढ़ लिया हो ऐसा हो भी सकता था पर उनका वो एक्सीडेंट बहुत ही मुस्किल से बचे थे वो तो फिर वो ऐसा जानलेवा रिस्क नहीं लेंगे, बात यहाँ पर आके अटक गयी थी और फिर कंवर को किसने मारा वो भी तो बात उलझी हुई थी अब उसके बारे में दो बात थी या तो उसको बिमला या चाचा ने मार दिया या फिर उसकी जान भी खजाने के चक्कर में गयी दूसरी बात की सम्भावना ज्यादा थी क्यंकि उसकी लाश भी तो उसी जमीन में मिली थी दूसरी तरफ हरिया काका उसकी मौत भी शायद इसलिए हुई थी की उसको भी कुछ मालूम था पर क्या ?


बस इसी सवाल का जवाब नहीं था मेरे पास माधुरी ने सही कहा था एक बार कंवर की मौत कैसे हुई इस कड़ी को भी देखना चाहिय था पर पंगा ये था की टाइम बहुत बीत गया था तो हर कड़ी जैसे खो सी गयी थी उसकी मौत के बारे में हमे या फिर कातिल को ही पता था बिमला चाहे लाख नीच थी पर मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी की उसको बता सकू की वो जो सिन्दूर अपनी मांग में लगाती है पोंछ दे उसे तोड़ दे उन चूडियो को जो उसकी कलाई में सजी है



पर जो भी था इनसब के पीछे वो बहुत ही शातिर खेल खेल रहा था बिलकुल चुप था मैंने मंजू के रस्ते खजाने वाला दांव खेला तो था पर क्या होना था ये देखने वाली बात थी पैसे में बहुत शक्ति होती है और तभी मुझे याद आया की उन नकद रुपयों का क्या लेना देना है काका के अनुसार बस सोना ही था पर पिताजी के पास नकदी थी तो वो कहा से आई इस छोटे शहर में करोडो का सोना बेचना मुमकिन ही नहीं था शायद ये ऐसी ही बात थी की पिताजी ही जानते थे पर कैसे कोई तो सुराग कोई को बात होगी जिस से मुझे कुछ तो पता चले



कंवर बिमला की कोठी से निकला पर यहाँ नहीं पंहुचा उसकी लाश मिलती है अलग जगह पर , ओह तभी मुझे ध्यान आया वो रास्ता ममता जिस से भागी थी उस चोराहे से दो रस्ते जाते थे एक बिमला की तरफ और एक रतिया काका की फर्म पर तो शायद हुआ ऐसा होगा की बिमला से झगडे के बाद कंवर घर से निकला और रास्ते में उसके साथ कुछ हुआ पर वो सीधा गाँव के रस्ते को छोड़ कर उस रस्ते क्यों गया शायद वो कातिल को जानता था पर ऐसा क्या हुआ होगा की इंसान अपना सीधा रास्ता छोड़ कर उजाड़ का रास्ता लेगा सोचने वाली बात थी
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Re: Raj sharma stories चूतो का मेला

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बात ये भी थी की कातिल ने उसकी लाश को वही पर क्यों गाड़ा वो पूरा इलाका ही सुनसान है कही भी ये काम कर सकता था इसका मतलब ये था कंवर की मौत उसी जमीन पर हुई थी , और अगर ऐसा था तो इस बात की भी पूरी सम्भावना थी की उसको खजाने की जानकारी थी पर ये सिर्फ अनुमान भी हो सकता था पर तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया आया जिस से की बात बन सकती थी दांव तो मैं खेल ही चूका था बस एक चाल और चलने थी बस अब इंतजार था तो कल का ही अगले दिन मैं हमेशा की तरह लेट ही उठा था नीनू किसी काम से शहर गयी थी माधुरी भी उसके साथ ही थी मैं और पिस्ता ही थे



मैंने उसे पूरी बात बता दी ही थी बस देखना था की खजाने की बात से रतिया काका का रिएक्शन क्या होता है दिन गुजरने लगा पर ना मंजू आई ना रतिया काका का फ़ोन या फिर वो खुद जबकि इस बात से फरक तो पडता था उनको शाम होने को आई इधर मुझे चैन पड़े ना खजाना मिलना कोई छोटी बात तो थी नहीं हालाँकि झूठ था पर सामने वाले को थोड़ी ना पता था अब हुई रात , करीब नो बजे रतिया काका आये मैंने सोचा चलो आया तो सही



काका- बेटा तुमसे कुछ बात करनी थी



मैं- कहो काका



वो- थोडा अकेले में



हम चलते हुए थोडा आगे को आ गए



काका- वो मंजू कह रही थी की तुमने वो बाकि का खोया हुआ सोना ढूंढ लिया है





मैं- हाँ काका किस्मत थी मिल गया



काका की आँखे चमक उठी बोले- बेटा मैं उसी सिलसिले में बात करने आया हु देखो इतना सोना घर में रखना सेफ नहीं है तुम ऐसा करो उसे मेरे पास रख दो जब जरुरत हो ले लेना ,



मैं- काका वो सेफ है आप चिंता ना करे


वो- देव, तुम समझ नहीं रहे हो बेटे उसकी हिफाजत जरुरी है मैं नहीं चाहता की जिसके लिए इतना इंतजार किया वो चीज़ फिर से चोरी हो जाये और फिर उसमे



मैं- उसमे क्या ,,



वो- कुछ ,,,,,कुछ नहीं बेटे



मैं- आप शायद ये कहना चाहते थे की उसमे आपका भी हिस्सा है



काका चुप रहे



मै- काका मैंने कंवर भाई सा से बात करी थी वो तो कह रहे थे की काका अपना हिस्सा पहले ही ले चुके थे अब जो बचा है उसपे बस मेरा और भाई साहब का हक़ है काका



काका- कंवर से बात हुई तुम्हारी कब



मैं- कल रात को



वो- पर ऐसा कैसे ह.........
.



मैं- क्या काका



पर वो बात टाल गया था शतिर जो था फिर बोला- अच्छा बेटा कंवर ने ऐसा कहा तो ठीक ही है पर मैं तो इसलिए बोल रहा था की हिफाजत रहेगी सोने की बाकि तुम समझदार हो



मैं- काका आप बेफिक्र रहे मैं अपने सामान को खूब संभाल सकता हु



काका- बेटा मैं तो कह ही सकता था बाकि तुम्हारी मर्ज़ी है चलो चलता हु



काका कंवर की बात सुनकर चौंका तो था पर फिर संभल गया था कुछ शो नहीं किया था बल्कि फिर उसने अपने आधे हिस्से की बात भी नहीं दोहराई थी
पर मैं इतना अवश्य जानता था की कुछ तो खुराफात जरुर करेगा ये और मैं ये भी जानता था की कंवर की मौत का इसका भी पता है जरुर और अब ये ही हमे बताएगा लालच इन्सान से सब करवा देता है मैंने उसी टाइम एक प्लान बनाया और घर में जितना भी कैश और सोना था इकठ्ठा किया बस जरुरत का ही रखा अब हमारी बारी थी खेल खेलने की मैंने नीनू को वो सारा पैसा और सोना उसके घर रखने को कहा क्योंकि वो सेफ जगह थी अगले दिन मैं काका के घर गया और बोला की – घर का थोडा ध्यान रखना काका माल पड़ा है हमे एक काम से जरुरी जाना है आने में थोडा समय लग जायेगा


प्लान बहुत ही चुतिया टाइप का था पर लालच हमे बस ये देखना था की काका की असली औकात क्या है हालाँकि इसमें कोई भी समझदारी नहीं थी कोई भी समझ सकता था की ये एक ट्रैप है पर लालच खजाने का लालच और जब लालच की पट्टी इंसान की आँखों में पड़ी हो तो कुछ भी होसकता है अब अगर उसको लालच है तो घर खाली पड़ा है कोई तो आएगा ही आएगा बस इंतजार था सही मौके का जब हम उसको रंगे हाथ पकड सके


आज अमावस की रात ही दूर दूर तक अगर कुछ था तो बस फैला हुआ अँधेरा घर पूरी तरह से अँधेरे में डूबा हुआ था एक बल्ब भी नहीं जल रहा था इंतजार करते करते बारह से ऊपर को हो गया पर कोई नहीं आया था मैं नीनू और पिस्ता पूरी तरह से मुस्तैद थे पर अब निराशा होने लगी थी और तभी जैसी की मैंने पायल की झंकार सूनी कोई तेज कदमो से घर की तरफ आ रहा था हम चोकन्ने हुए जल्दी ही पता चल गया वो कोई औरत थी दबे पाँव वो घर में दाखिल हुई


मैं उसे पूरा मौका देना चाहता था तलाशी का पर ख्याल जब बदला जब मैंने एक् साये को और अन्दर घुसते देखा एक औरत एक मर्द अब मामला रोचक हुआ रतिया काका के साथ औरत कौन मामला पेचीदा और कमाल की बात की बत्ती नहीं जलाई उन्होंने ना कोई टोर्च ही हम भी दबे पाँव ख़ामोशी से अंदर हुए , पर वो आदमी था वो ऐसा लग रहा था की घर के चप्पे चप्पे से वाकिफ था अब अँधेरा इतना गहरा था की कुछ समझ नहीं आ रहा था और फिर हमारे कानो में कुछ आवाज आई

औरत- तुम ना सब्र नहीं होता तुमसे कभी मरवाओगे मुझे बोली वो फुसफुसाते हुए

आदमी- चल अब ज्यादा बात मत कर और आजा बहुत दिन हुए तेरा दीदार नहीं किया

अब ये साले कौन है अबे अफवाह उड़ाई थी खजाने की यहाँ तो चोदम चोदी का कार्यकर्म हो रहा था पिस्ता ने धीरे से पुछा की लाइट जला दू मैंने मना किया दरअसल मैं जानना चाहता था की इस कार्यवाही के बाद ये लोग कुछ बात चित भी करे है या नहीं

करीब आधे घंटे के इंतज़ार के बाद वो औरत बोली- देखो इस तरह से मत बुलाया करो जब हम बिना रोकटोक के मिल सकते है तो ऐसे चोरी क्यों

आदमी- बस ऐसे ही कभी कभी चोरी भी करनी चाहिए चलो इसी बहाने घर भी आना हुआ

घर मतलब , मतलब ये चाचा था पर ये औरत कौन थी पहले इनकी बाते सुनना जरुरी थी

औरत- देखो, देव को वो बाकि का सोना मिल गया है पिताजी चाहते थे की वो आधा हिस्सा उनको दे दे पर देव ने मना कर दिया
ओह! पिताजी, मतलब ये मंजू थी पर इसका चाचा के साथ क्या लेना देना

चाचा- क्या बात कर रही हो , देव ने कैसे पता लगा लिया , पर चलो अच्छा ही है उसके काम आ जायेगा वैसे भी बहुत दुःख झेला है उसने अब वो भी आराम से जिए

औरत- तुम्हे नहीं लगता की उस सोने में अपना भी हिस्सा होना चाहिए देव थोडा कम ले लेगा तो कोई आफत नहीं आ जानी

चाचा- और हम ना ले तो भी कोई आफत नहीं आनी देखो देव हमारा वारिस है खून है हमारा पहले ही सब बिखर चूका है मैं इस बारे में कुछ नहीं कहूँगा बल्कि जो उसका फैसला है वो ही मेरा है मुझे बस मेरे बच्चे की सलामती की फ़िक्र है और तुमसे भी कहता हु की ऐसा कुछ मत करना जिससे उसको तकलीफ हो बेशक वो मुझे अपना नहीं मानता पर शायद इसी बहाने मेरे गुनाहों का प्रयाश्चित भी हो जाए अपने बच्चे की हिफाजत के लिए मैं हथियार उठाने से भी नहीं चुकूँगा

वो- मैं तो बस ऐसे ही कह रही थी आखिर कब तक मैं उस घर में घुटन भरी जिन्दगी जिउंगी

चाचा- मौज में तो हो तुम फिर या लालच क्यों करती हो

वो- तुम्हे क्या लगता है देव न कैसे ढूँढा होगा उस खजाने को बल्कि मैं तो ये मानती हु की आपके बड़े भाई ने ही उसको वहा से निकाल के कही छुपाया होगा मतलब आपने पिताजी को चुतिया बना दिया

चाचा- देखो, मुझे सच में कुछ नहीं पता और तुम्हे क्या लगता है रतिया ने उस जगह की खूब तलाशी नहीं ली होगी वो घाग है पूरा मेरी चिंता यही है की कही सोने के लिए देव और उसके बीच कोई टेंशन ना हो जाये

और तभी मैंने लाइट जला दी पर जो मैंने देखा मेरे होश ही उड़ गए वो मंजू नहीं ममता थी दोनों नंगे सकपका गए जल्दी से कपडे लपेटे अपने बदन पर

मैं- ममता तुम चाचा के साथ और चाचा बेटी की उम्र की है तुम्हारी खैर आपसे तो उम्मीद करनी ही बेकार है पर ये चल क्या रहा है बताओ जरा

चाचा- देव, बस ये एक घिनोना दलदल है जिसमे हम धंसे हुए है इसके आलावा कुछ नहीं जहा रिश्ते नाते कुछ नहीं बचे बस कुछ है तो भूख जिस्मो के भूख जोकुछ तुमने देखा वो बस उसी भूख की कहानी है

मैं- तो ममता रानी , देखो मेरा ना दिमाग घुमा हुआ है इस से पहले की मैं शुरू करू तोते की तरह शुरू हो जाओ और सो भी चल रहा है जो भी प्लानिंग फटाफट बता दो सालो चुतिया समझ के रखा है

ममता-जेठ जी मुझे कुछ नहीं पता मैं तो वो ही कर रही थी जो पिताजी ने कहा था

मैं- पिताजी की तो गांड तोड़ दूंगा मैं पर तेरी पहले टूटेगी

इस से पहले की मेरी बात ख़तम होती नीनू ने उसको बालो से पकड़ा और पटक मारा फर्श पर ममता दर्द से कराही और नीनु ने दो चार लात जमा दी

नीनू- देख, अब बकना शुरू कर वरना मैं तो फिर भी दया कर दूंगी पर पिस्ता को तो जानती होगी उसना होगा उसके बारे में वो फिर नहीं रुकेगी

ममता-जेठानी जी, मुझे पिताजी ने कहा था जेठ जी को अपने जाल में फंसाने के लिए ताकि सही समय पर वो खजाने का बाकि हिस्सा हडप सके कायदे से तो पिताजी का आधा हिस्सा था पर जेठ जी ने मना कर दिया तो हमारा यही प्लान था पर चाचा से भी सम्बन्ध है इसने यहाँ बुलाया था और हम पकडे गए

पिस्ता- चुतिया मत बना साली कुतिया सब बोल शुरू से आखिरी तक ये तो हमे भी पता है की काका सोना लेना चाहता है और क्या कह रही थी तू की देव का कुछ करना होगा साली ये खड़ा तेरे सामने दिखा क्या करके दिखाएगी
ममता- मुझे तो पिताजी ने बस इतना ही कहा था की तू किसी तरह से देव को फंसा ले और उससे खजाने की बात उगलवा ले बस मेरा इतना ही है बाकि चाचा और पिताजी एक नंबर के रंडी बाज़ है पिताजी ने मुझे चाचा के आगे परोसा और इसने मामी को पिताजी के आगे बस तब से ऐसा ही चला रहा है



नीनू- देव्, मैं तो तुम्हे ही समझती थी बाकि पूरा कुनबा ही रंगीला है



ममता रही थी झीख रही थी पर पिसता उसका अच्छे से इलाज कर रही थी



मैं- चाचा कंवर की मौत के बारे में आप क्या जानते है




वो- मौत, कंवर की पर वो तो दुबई है ना



मैं- मेरा दिमाग और ख़राब मत करो किसी को भी नहीं पता चलेगा दो लोग कहा गायब हो गए आपको नहीं पता कंवर को मरे करीब तीन साढ़े तीन साल हुए



वो- मेरे बच्चे मुझे तुम्हारी कसम मुझ को कुछ नहीं पता इस मामले में



मैं- तो हरिया काका का तो पता होगा या उसका भी नहीं है



चाचा अब चुप


मैं- मुझे सच जानना है हर कीमत पर की कैसे क्या हुआ और टाइम नहीं है मेरे पास



चाचा- उसको रतिया ने मारा ,
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: Raj sharma stories चूतो का मेला

Post by 007 »




एक पल के लिए कमरे में ख़ामोशी छा गयी थी चाचा ने अपना गला खंखारा और बताना शुरू किया तुम्हे याद तो होगा की रतिया का एक्सीडेंट हुआ था जिसमे वो बुरी तरह से घायल था बस बच गया था किस्मत से , उसको ठीक होते होते थोडा टाइम लग गया इधर हरिया को मैंने माली लगवा ही दिया था उसका काम सही चल रहा था वोटो में भी उसने अपने लिए खूब मेहनत की थी पर रतिया ने ठीक होने पर जासूसी करवाई तो पता चला की जिस ट्रक से उसका एक्सीडेंट हुआ था उस पर हरिया काम करता था तो रतिया के दिमाग में ये बात बैठ गयी थी की जरुर हरिया ने ही उसको मारना चाहा था



इस बाबत मैंने भी हरिया से पुछा था तो उसने साफ़ बता दिया था की वो ट्रक चलाता था जरुर पर जब ड्राईवर छुट्टी पे होता था बाकि समय तो उस सेठ की चोकिदारी ही करता था और वैसे भी हादसे से कुछ दिन पहले उसने वहा से काम छोड़ दिया था हरिया की बात एक दम सही थी सोलह आने खरी मैंने खुद पड़ताल की थी उस सेठ का ट्रक चोरी हो गया था कुछ दिन पहले ही एक्सीडेंट के जिसकी पुलिस में भी शिकायत दर्ज हुई थी पर रतिया के दिमाग में हरिया खटक रहा था किसी नासूर की तरह वो उसेही दोषी मान रहा था



हरिया ने मुझसे कई बार बात भी की थी की रतिया उसे बेवजह तंग कर रहा था मैंने रतिया को खूब समझाया भी था पर फिर कुछ ऐसा हुआ की जिसकी वजह से बात हद से ज्यादा बिगड़ गयी



मैं- क्या हुआ था



चाचा- बताता हु, एक दिन हरिया सुनार के पास गया कुछ बेचने पर सुनार को हरिया की औकात का अच्छे पता था की उसके पास सोने का बिस्कुट कहा से आया होगा तो उसने उस से ओने पोने दाम में वो खरीद लिया अब हुआ यु की सुनार का लें दें था रतिया से तो उसने बातो बातो में जिक्र कर दिया की हरिया सोने का बिस्कुट बेच कर गया है अब सोना का तो पंगा था ही हरिया के पास सोना , रतिया को लगा की जरुर हरिया ने वो सोना पार कर दिया वहा से बस उसी दिन से उनकी दुश्मनी सी हो गयी थी



मैं- तो आपने बीच बचाव नहीं किया



वो- मैंने हरिया से बात की थी तो उसने बताया की तुम्हारे पिताजी ने उसको दो बिस्कुट दिए थे की बुरे समय में इनको बेच देना धन का जुगाड़ हो जायेगा उसने एक बेचा और दूसरा मुझे वापिस कर दिया था तो वो सच्चा था मैंने रतिया को खूब समझाया पर शायद उसको तो लगन लग गयी थी सोने की और एक दिन ऐसे ही खेतो में दोनों का तगड़ा पंगा हुआ अब हरिया क पास सोना था ही नहीं तो वो कहा से देता थोड़ी पिलमा-झिलमी हो गयी और उसी बीच रतिया के हाथ से गोली चल गयी



अब घबरा तो रतिया भी गया था उसने मुझे बुलाया जैसे तैसे करके बात को दबाई



मैं- बात को दबा दिया वाह बहुत बढ़िया शाबाशी मिली अरे सोचा नहीं ताई पर क्या गुजरी होगी वो अकेली जी रही है क्या उसको साथी की जरुरत नहीं क्या उसको ताऊ की याद नहीं आती होगी वाह रे कलियुगी इंसानों कल को तो रतिया काका इस सोने के लिए मुझे भी मार सकते है ऐसा भी क्या लालच वो तो शुक्र है मेहर हो गयी इनपर जो सोना मिल गया मुझे तो शक होने लगा है की कही परिवार को भी तो रतिया काका ने नहीं ख़त्म करवा दिया हो



चाचा- ऐसा नही है देव


मैं- तो कैसा है किस पर विश्वास करू मैं मेरी भाभी जो सारे आम मुझे बरबा करने की धमकी देती है, मेरी मामी को मेरे सीने को छलनी कर देती है मेरा चाचा जिसे अयाशी से फुर्सत नहीं जो भागीदार है एक निर्दोष इंसान के कतल का एक तरफ मुझे मेरे भाई की लाश मिलती है जिसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं वाह रे कलियुग के रिश्तेदारों जब अपने तुम्हारे जैसे है तो दुश्मनों की क्या जरुरत कंवर के कातिल का तो मैं पता लगा ही लूँगा और याद रखना की अगर उसमे तुम्हारा या बिमला का हाथ हुआ तो फैसला कानून नहीं मैं करूँगा



मैं-नीनू अभी पुलिस बुलाओ और काका को गिरफ्तार करवाओ



नीनू- पंद्रह बीस मिनट में आ रहे है



मैं- बढ़िया ,ममता तू घर जा और आगे से चाचा से कोई वास्ता नहीं अपनी जिंदगी अपने पती के साथ जी अब तुझे इस दलदल में कोई नहीं धकेलेगा और इस काबिल बनना की कोई तुमपे विश्वास कर सके



चाचा, वैसे तो तुम भी गुनेहगार हो पर मामी जुडी है तुमसे तो ये मत समझना की तुम बच गए काका के खिलाफ गवाही देनी होगी तुम्हे और ताई की मदद भी ताकि उसकी आनेवाली जिंदगी थोडा सुख से गुजरे



मेरी बात ख़तम ही हुई थी की तभी मुझे एक फ़ोन आया , फ़ोन वो भी रात के तीन बजे मैंने अपने कान से लगया और जो मैंने सुना मेरे पैरो तले जमीन खिसक गयी

कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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