हवस की प्यासी दो कलियाँ complete

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हवस की प्यासी दो कलियाँ complete

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हवस की प्यासी दो कलियाँ

दोस्तो तुषार की लिखी हुई एक और कहानी लेकर हाजिर हूँ . और उम्मीद करता हूँ आपको ये कहानी भी पसंद आएगी


मैं बदहवास सी बेड पर लेटी हुई उन दोनो की तरफ देख रही थी…..मेरे सामने मेरी भाभी अपनी टाँगे को राज की कमर पर लपेटे हुए अपनी गान्ड को ऊपेर की ओर उछाल रही थी….और राज का लंड भाभी की चूत के पानी से भीगा हुआ चूत के अंदर बाहर हो रहा था….और जैसे ही राज का लंड भाभी की चूत मे जाता. तो भाभी अपनी गान्ड को ऊपेर की ओर उठा लेती….ये देखते हुए मेरा हाथ कब मेरी चूत पर जा पहुँचा मुझे पता ही नही चली…और मैं अपनी चूत को धीरे-2 मसलने लगी…

भाभी ने अपनी बाहों को राज की पीठ पर कस रखा था…और राज भाभी की नेक को मदहोशी के आलम मे चूस रहा था….तभी भाभी ने मेरी ओर अपनी अध खुली मस्ती से भरी आँखों से मेरी ओर देखा और काँपती हुई आवाज़ मे बोली….”ओह्ह डॉली तुम्हारा स्टूडेंट तो सब आह सीईईई अब एक्सपर्ट हो गया है…..”

राज ने भाभी की बात सुन कर मेरी तरफ देखा और फिर भाभी की एक टाँग को ऊपेर उठा लिया…जिससे मुझे भाभी की चूत और राज का लंड और सॉफ दिखाई देने लगा….और उसने अपने लंड को बाहर निकाल-2 कर भाभी की चूत मे घस्से लगाने शुरू कर दिए….

वो भाभी की चूत मे घस्से मारते हुए लगतार मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखे जा रहा था…और फिर एक दम से भाभी की चूत मे अपना लंड पूरा उतार कर रुक गया. उसकी साँसे उखड चुकी थी….सॉफ था कि, राज ने भाभी की चूत को अपने लंड के रस से सरोबार कर दया था...लंबे चौड़े बदन वाली भाभी की टाँगो के बीच मे लेटा हुआ राज बहुत छोटा सा लग रहा था…छोटा होता भी क्यों ना…अभी उसकी उम्र ही क्या था…वो 11थ क्लास मे था…..और महज ***5 साल का था….

फ्रेंड्स वो क्या वजह थी…..जिसकी वजह से ना चाहते हुए भी मैं अपने ही स्टूडेंट के लंड की दीवानी हो गयी थी….मैं ही नही…मेरी भाभी भी….मैं दो बार प्रेगएनेट हुई, और दोनो बार मुझे ऑपरेशन करवाना पड़ा…पर वो था कि, वो मुझे हर बार कॉंडम के बिना ही चोदता…अपनी मरज़ी से ज़बरदस्ती ये मेरी चूत की मजबूरी थी…जो अब उसके लंड को देखते ही पिघल जाती थी….

सो फ्रेंड्स इस राज़ से परदा उठेगा आगे आने वाले अपडेट्स मे….इसमे कुछ वो पल भी शामिल है…जो मेरे साथ नही घटे…और ना ही मेने देखा…पर बाद मे जो कुछ भी मुझे पता चला वो सब मैं आपको यहा बताउन्गी…..सो फ्रेंड्स आगे आने वाले अपडेट्स का इंतजार कीजिए….पर अभी आपको इस स्टोरी के कुछ ख़ास करेक्टर के बारे मे बता देती हूँ…..

1. राज- एज:*** साल… हॅंडसम डॅशिंग रिच (उसके मोम & डॅड अब्रॉड मे है. पिछले 4 सालो से…और वो अपने अंकल हेमंत शर्मा के पास रहता है. जो कि हमारे इलाक़े के सबसे बड़े स्कूल के ओनर है…उनका सारा परिवार कार आक्सिडेंट मे मारा गया था….अब वो अकेले है….इसीलिए उन्होने ने राज को अपने पास रख लिया था…क्योंकि राज के डॅड हेमंत के बहुत अच्छे दोस्त है….)

2. पायल: मेरी भाभी एज 29 साल….हाइट 5 फीट 10 इंच….भरे हुए बदन की मालकिन….बूब्स साइज़ 34फ एक दम कसे हुए बूब्स हमेशा तने हुए रहते है. वेस्ट 28 और गान्ड 38 पीछे की तरफ बाहर निकली हुई…पेट पर हल्की से चर्बी की परत है….पर हाइट की वजह से एक सेक्स बॉम्ब लगती है….अभी कोई बच्चा नही है….इसीलिए अभी भी एक दम फिट रहती है….रंग एक दम गोरा है…मंसूरी मे पली बढ़ी है…पर है पंजाबी…हम सब पंजाब से ही बिलॉंग करते है.

3. डॉली: ये मेरा घर का नाम है….घर मे मम्मी पापा मुझे इसी नाम से बुलाते थे…जब वो जिंदा थे…मेरी एज 27 साल है…और मेरी 21 साल की उम्र मे शादी हुई थी….जो यूएस मे सेट्ल था…..और शादी के 10 दिन बाद ही डाइवोर्स हो गया था…क्योंकि जिससे मेरी शादी हुई, तो अब्रॉड मे रह कर जॉब कर रहा था….और मुझे पहले ही हफ्ते मे ये पता चल गया था कि, उस सख्स ने पहले से ही यूएसए मे शादी की हुई है…और उसकी एक बेटी भी है…मेरी हाइट 5 फीट 8 इंच है…आम भारतीय औरतों के आवरेज हाइट से ज़्यादा है..फिगर बल्कुल भाभी की कॉपी ही लगती है…पर भाभी से हाइट मे दो इंच कम हूँ…वैसे रंग तो मेरा भी गोरा है….पर भाभी से थोड़ा कम है….

4. चेतन: मेरे भैया….उम्र 34 साल….नशे के आदि हो चुके है…काम काज कुछ नही करते…घर की हालत उन दिनो बहुत ख़राबा चल रही थी….भाभी के मयके से हर महीने उनके माता पिता कुछ पैसे भेज देते थे….जिससे घर चल रहा था. और मैं बच्चों को घर पर ट्यूशन पढ़ाती थी….भैया का काम सारा दिन अपने नशेड़ी दोस्तो के साथ घूमना और नशे बाजी करना था…कई बार तो 2-3 दिन तक घर ही नही आते थे….

5. ललिता: एज राज की हमउमर है…..उसी की क्लास मे है…और क्लास की ही नही स्कूल की सबसे होशयार और ब्राइट स्टूडेंट है…पूरे स्कूल के टीचर और स्टूडेंट्स उस पर नाज़ करते है….और स्कूल की सबसे खूबसूरत स्टूडेंट एक दम क्यूट सी स्माइल और उतना ही क्यूट उसका फेस…

6. कुछ और कॅरक्टर भी है…जो टाइम ब टाइम आते रहेंगे और जाते भी रहँगे…


तो जैसे कि मेने बताया कि, हमारे घर की आर्थिक दशा बहुत खराब चल रही थी….मेरी ट्यूशन की कमाई और भाभी के घर वालों से मिल हुए पैसे से हमारा घर कर खरच बड़ी मुस्किल से चलता था…और उस पर भी भैया के नशों का बोझ था…दिन भर यही सोचते निकल जाता था कि, आज घर मे खाना पकेगा भी नही….मेरी भाभी से ज़्यादा नही बनती थी…क्योंकि वो मुझे भी अपने ऊपेर बोझ समझती थी…पर मेने समाज की सभी मुसबीतों का सामना करने की ठान ली थी…

अपने पति से धोखा खाने और भैया की करतूतों को देखने के बाद मुझे मर्द जात से चिढ़ सी हो गयी थी….कई बार रिश्तेदारों ने मेरे लिए रिस्ते देखे बात की, पर मेने हर बार मना कर दिया..अब मैं अपनी जिंदगी को किसी और भरोसे पर नही छोड़ना चाहती थी. डाइवोर्स के बाद ही, मम्मी पापा की मौत हो गयी….और उसके बाद मेने फिर से कॉलेज जाय्न कर लिया…तब मेरी एज 21 साल की थी…इंग्लीश मे बीए करने के बाद मेने बी.एड की…और फिर उसके बाद नोकरि तलाश करने लगी..बहुत जगह ट्राइ किया…पर बात नही बनी…हर कॉलेज और स्कूल का गेट नॉक करके देख लिया…पर सब व्यर्थ था.

मैं घर पर बच्चों को पढ़ा कर कुछ पैसे कमाने लगी….फिर मुझे अपने मोहल्ले मे ही एक घर मे ट्यूशन मिल गयी…उनके जुड़वा बच्चे थे..एक लड़का और लड़की. मैं उनको ट्यूशन देने के लिए उनके घर जाने लगी….वो दोनो ***** स्कूल मे पढ़ते थे. जो हमारे इलाक़े का सबसे बड़ा मशहूर और महँगा स्कूल था…मेने उन दोनो खूब लगन से पढ़ाया…जब उनके बच्चों का रिज़ल्ट आया तो, वो मुझसे बहुत खुश हुए, और उन्होने ने ही मेरी सिफारिश जिसस स्कूल मे उनके बच्चे पढ़ते थे, उसके प्रिन्सिपल जय सर से की, और फिर मेरा इंटरव्यू करवाया….

मुझे उस स्कूल मे इंग्लीश टीचर की जॉब मिल गये…..सल्लेरी पॅकेज इतना अच्छा था कि, मेने सोचा भी नही था….मेरी सॅलरी स्टार्टिंग मे ही 14000 पर मंत फिक्स हो गयी थी…मैं बेहद खुस थी…अब मैं अपने पैरो पर खड़ी हो चुकी थी…अप्रेल का मंत था…रिज़ल्ट्स के बाद अभी क्लासस शुरू हुए ही थे…और मैं पहले दिन पढ़ा कर स्कूल से बाहर निकली थी…कि बाहर गरम हवा के झोंको ने मेरा स्वागत किया.

गरम हवा के थपेडे मुझे अपने चेहरे पर बर्दास्त नही हो रहे थे...मेने अपने दुपट्टे से अपने चेहरे को ढक लिया, और बस स्टॉप की तरफ बढ़ने लगी....रोड सुनसान सा हो गया था....आस पास की सभी दुकाने भी बंद थी......मैं नीचे सड़क की ओर देखते हुए आगे बढ़ रही थी, कि तभी मुझे मेरे पीछे से आवाज़ आई...."मेडम क्यों धूप मे परेशान हो रही हो...कहो तो घर छोड़ दूं"




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ये तो आम बात है.....पर अक्सर मेरे साथ ऐसा नही होता...मेने उस तरफ ध्यान ना देकर आगे बढ़ना जारी रखा....उसने मुझे फिर से आवाज़ दी...पर मैं ना रुकी........इसकी इतनी हिम्मत कि वो मेरे सामने आकर मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया....

"अर्रे मेडम इस ग़रीब पर भी तो ध्यान दो....कब से एक गुज़ारिश कर रहा हूँ" दिल कर रहा था कि, अभी उसका मूह तोड़ दूं..पर फिलहाल इसकी ज़रूरत नही पड़ेगी....मेने नज़र उठा कर उसकी तरफ देखा, वो लड़का स्कूल यूनिफॉर्म मे खड़ा था…मेने उसकी तरफ देखा और अपने चेहरे से अपना दुपट्टा हटा दिया......मुझे देखते ही उसकी आँखें फेल गये....और वो अपने पैर सर पर रख कर भागा....

चाहते हुए भी मैं अपनी हँसी ना रोक पे..चलो उस उल्लू की वजह से आज मैं कई दिनो बाद हँसी तो.....वरना मुझे कई बार लगता, कि मैं हंस भी सकती हूँ या नही....मेने अपने चेहरे को फिर से दुपट्टे से ढाका....और बस स्टॉप की ओर चल पड़ी.... जैसे ही बस स्टॉप के पास पहुँची, तो देखा कि बस आ गयी है.....मैं तेज कदमों से चलते हुए बस मे चढ़ गयी.....और सीट पर बैठ गयी...घर पहुँचने मे भी 30 मिनिट तो लग ही जाते है....मेने अपने बॅग से अपना मोबाइल फोन निकाला, और एअर फोन लगा कर सॉंग सुनने लगी...

विंडो से आ रही गरम हवा से बस मे बैठे हुए सब लोगो का बुरा हाल था...क्या मुसीबत है.....इतनी अच्छी नौकरी मिल गयी है कुछ महीनो बाद मैं अपने लिए स्कूटी खरीद लूँगी….स्कूटी क्यों मज़ाक कर रही है डॉली अपने आप से...घर का गुज़ारा और निकम्मे भाई के नशे के बाद कुछ बचेगा तो उसे संभाल लेना.. मैं अपने मन मे यही सब सपने लिए सोच रही थी…..

क्यों नही ले सकती मैं स्कूटी मेने क्या ठेका ले रखा है, जो उस नाकमजाब इंसान का बोझ सारी उम्र मैं ही उठाती रहूं...ये सोचते-2 कब मेरी आँखें भीग गयी...उसका अहसास मुझे तब हुआ, जब बस मे खड़ी एक औरत को मेने अपनी तरफ देखते हुए पाया....मेने जल्दी से अपनी आँखें पोन्छि....और दूसरी तरफ फेस घुमा लिया.

और खुद को कोसने लगी....."हां अब तुझे ही ये सब बोझ उठाना होगा..क्योंकि तूने अपने लिए खुद ये रास्ता चुना है" और तू चाह कर भी अपने भाई को इग्नोर तो नही कर सकती....आख़िर है तो वो भाई ना" सोचते-2 कब रास्ता बीत गया पता नही चला....मेरा स्टॉप आ गया था.. मैं अपने स्टॉप पर उतरी, और उस रोड पर चलते हुए, अपने घर की तरफ चल पड़ी....10 मिनिट और चिलचिलाती धूप मे झुलसने के बाद मैं घर के बाहर पहुँची, और डोर बेल बजाई.....

"उफ्फ क्या मुसबीत है" ये भाभी भी ना सो गयी होगी....." मेने फिर से डोर बेल बजाई, तो थोड़ी देर बाद भाभी ने डोर खोला....और डोर से पीछे हट गयी...जैसे ही मैं घर के अंदर आई तो, उसने डोर बंद कर दिया…

भाभी : खाना लगाउ क्या दीदी .....और आपके स्कूल का पहला दिन कैसा रहा….

मैं: बहुत बढ़िया भाभी…….

भाभी: तो सॅलरी कितनी फिक्स हुई तुम्हारी…..

मैं: पता नही भाभी अभी दो दिन बाद पता चलेगा…..(मेने भाभी से अपनी सॅलरी की बात छुपा ली….)

"हां भाभी खाना लगा दो…मैं ज़रा फ्रेश होकर आती हूँ…" और मैं अपने रूम की तरफ बढ़ने लगी..... तो अचानक से भैया के रूम में मुझे हलचल महसूस हुई.....मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया....मेने भाभी से पूछा...."भैया आज काम पर नही गये थे क्या"

भाभी: ओ गये थे पर शायद उनके ऑफीस मे स्ट्राइक हो गयी आज..

ये बंदा कब सुधरेगा....रोज नये बहाने होते है इसके पास ....मुझे तो शक है कि वो काम पर जाते है या नही....अब इनसे बहस करना रोज मेरे बस की बात नही है....वो कहते है ना भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फ़ायदा.. मैं मन मे बुदबुदाते हुए अपने रूम मे चली गयी....

हमारे घर मे सिर्फ़ तीन ही रूम थे….एक किचिन और बाहर गेट के पास बाथरूम और टाय्लेट था….मैं मम्मी पापा के दहनत के बाद से ही उनके रूम मे रहने लगी थी….अब मेरे रूम मे सिर्फ़ एक चारपाई थी…एक छोटा सा स्टडी टेबल और एक परुआना टीवी रूम भी छोटा सा था….मैने रूम मे पहुँचने के बाद, अपना पर्स रखा और घर पर पहनने वाले पुराने से सलवार कमीज़ लेकर बाथरूम की तरफ चली गयी…ताजे ठंडे पानी से नहाने के बाद मेरे जिस्म मे थोड़ी सी जान आई….और अपने रूम मे आए, तो देखा भाभी ने खाना डाल कर मेरी स्टडी टेबल पर रखा हुआ था….

इस सारी खिदमत का राज़ मे जानती थी, क्योंकि अब मुझे नोकारी जो मिल गयी थी…मेने बैठ कर खाना शुरू कर दिया….भाभी जाकर चारपाई पर बैठ गयी….” डॉली मैं क्या बोल रही थी, कि तू ना अच्छे से उस स्कूल में सेट हो जा…सुना है बहुत अच्छा स्कूल है….वहाँ टीचर्स को काफ़ी अच्छी सॅलरी मिल जाती है….”

मैं: (खाना खाते हुए) हां भाभी सही सुना है आप ने…

भाभी: तो फिर बस तू अपनी जगह पक्की कर ले वहाँ पर…एक बार जब तू सेट हो जाए तो, मेरे लिए भी वहाँ के प्रिन्सिपल से जॉब की बात कर लेना….

मैं: जॉब और आप…..आप पढ़ा लेंगी बच्चों को….?

भाभी: हां क्यों नही मैं कॉन सा पढ़ी लिखी नही हूँ….माना कि तुमसे थोडा कम पढ़ी लिखी हूँ….

मैं: भाभी वहाँ जॉब पाना इतना आसान काम नही है…मुझे लगता कि वो आपको वहाँ पर जॉब पर रखेंगे….

भाभी: क्यों नही रखेंगे….अच्छा एक बात बता तुम कॉन सी क्लास को पढ़ाती हो…

मैं: कॉन मैं….मैं तो 8थ से लेकर 12थ तक….पर आप क्यों पूछ रही हो….?

भाभी: देख भले ही मैं बड़ी क्लासस के बच्चों को ना पढ़ा सकूँ…पर छोटी क्लासस के बच्चों को तो आराम से पढ़ा सकती हूँ…वहाँ छोटी क्लासस है ना…?

मैं: हां है…वैसे भाभी कह तो तुम ठीक रही हो…छोटी क्लासस को पढ़ाना मुश्किल तो नही होगा आपके लिए….

भाभी: देख डॉली तुझे तेरे भैया को तो पता है…कुछ काम धंधा तो करते है नही…और मेरे बेचारे माँ बाप पता नही कब तक इस दुनिया मे है…देख मुझे ज़्यादा लालच नही है….अगर 5000-6000 भी मिल जाए तो क्या बुराई है…कम से कम कुछ तो घर के हालात सुधरेंगे…तुम अपने लिए और मैं अपने लिए कुछ तो पैसे जोड़ सकेंगे.

मैं सोचने लगी की, भाभी कह तो सही रही है….इंसान पैदा होते ही बुरा नही हो जाता…उसे बुरा बनाता है समाज और बुरा वक़्त…शायद भैया की वजह से ही भाभी का रवईया अभी तक मेरे साथ ठीक नही था…एक वजह और भी थी कि, भाभी ने मेरी दोबारा शादी करवाने के लिए बहुत कॉसिश की थी….पर मेरे अपने मन मे जो मर्दो के प्रति नफ़रत थी…उसके चलते शादी से मना कर दिया था….फिर शायद भाभी की ये सोच थी कि, मैं उन पर ज़बरदस्ती बोझ बन रही हूँ…

भाभी: क्या हुआ डॉली किस सोच मे डूबी हुई हो….?

मैं: कुछ नही भाभी…..मैं कॉसिश करूँगी कि आपको भी वहाँ जॉब मिल जाए….

भाभी: अर्रे इतनी भी जल्दी नही है…तुम्हारी भाभी इतनी भी लालची नही.. पहले तू खुद आपने आप को वहाँ पर बेस्ट टीचर साबित कर दे….ताकि वहाँ का प्रिन्सिपल तुम्हे मना ही ना कर सके….तब तक मैं भी कुछ प्रॅक्टीस कर लूँगी…

मैं: ठीक है भाभी….तो आज से आप शाम को जो छोटी क्लासस के बच्चे आते है. उनको ट्यूशन देना शुरू कर दो….आपको थोड़ा एक्सपीरियेन्स भी हो जाएगा…

भाभी: तूने ये बात ठीक कही डॉली…अच्छा अब तू खाना खा और आराम कर 5 बजे बच्चे भी आजाएँगे….
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Re: हवस की प्यासी दो कलियाँ

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खाना खाने के बाद मैं अपने रूम मे आकर बेड पर लेट गयी...और लेटते ही, उस लड़के की वो हरकत याद आ गयी....वो लड़का मेरी 11थ क्लास का स्टूडेंट था...जिसने मुझे रास्ते मे रोका था...जब मेने अपने फेस को बेपरदा किया तो, अपनी टीचर को सामने देख कर यानि के मुझे देख कर डर गया था......

उसके चेहरे के हावभाव उस वक़्त जो थे...उन्हे सोचते ही, मेरे होंटो पर एक बार फिर मुस्कान फेल गये.....यूँ इधर उधर की बातें सोचते हुए, कब नींद आ गयी....पता नही चला..... 5 बजे प्यास लगने के कारण फिर से मेरी नींद खुली, और मैं पानी पीने के लिए रूम से निकल कर नीचे आ गयी.....

अभी मैं किचिन की तरफ जा ही रही थी, कि मुझे चेतन भैया के रूम से हल्की सी सिसकने की आवाज़ आई....उस आवाज़ को मैं झट से पहचान गयी...आवाज़ पायल भाभी की थी. पर वो इस समय भैया के साथ क्या कर रही थी....उत्सकता वश मेरे कदम खुद-ब खुद भैया के रूम की तरफ मूड गये....

डोर अंदर से बंद था....पर रूम के डोर के पास पहुँचते ही, भाभी की आवाज़ और सॉफ सुनाई देने लगी......ये इस समय भैया के रूम मे क्या हो रहा है...भाभी दबी हुई आवाज़ मे भैया को कुछ कह रही थी…मेने डोर पर कान लगा कर सुनने की कॉसिश की तो मुझे कुछ सॉफ सुनाई देने लगा…”देखो चेतन मैं तुम्हे कह रही हूँ…मेरे ऊपेर से हट जाओ….तुम्हे नशे ने इतना खोखला कर दिया है कि तुम दो मिनिट भी नही टिक पाते…और मुझे सुलगती हुई छोड़ कर बाहर अपने नशेड़ी दोस्तो के पास चले जाते हो….”

एक बार तो दिल किया अभी चीख कर दोनो को बाहर आने को कहूँ... पर नज़ाने क्यों मेरी हिम्मत जवाब दे गयी....मैं अपने कानो को डोर से सटा कर अंदर की बातें सुनने की कॉसिश करने लगी...

"आह क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे ....दीदी घर पर है....

"तो क्या हुआ...वो अभी शाम तक नही उठने वाली....एक बार अपनी चुनमुनियाँ चोदने दे ना"
कहानी जारी रहेगी..................................
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Re: हवस की प्यासी दो कलियाँ

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भैया की आवाज़ और ये लफ़्ज सुनते ही मेरे हाथ पैर काँपने लगे.....नज़ाने क्यों अंदर क्या हो रहा देखने की टीस मन मे उठने लगी....पर अंदर झाँकना ना मुमकिन था....मैं हड़बड़ा कर पीछे हटी, और वापिस जाने के लिए मूडी...तो फिर से एक बार भाभी की आवाज़ ने मेरे कदमो को रोक दिया...

मैं मूड कर फिर से डोर के साथ कान लगा कर खड़ी हो गयी..."आह चेतन नही प्लीज़ हट जाओ….देखो तुम्हारा ये औजार तो सच मैं किसी काम का नही रहा..” शायद भाभी भैया के चंगुल से छूटने की कॉसिश कर रही थी…”अभी दीदी घर पर है मुझे जाने दो ना...कहीं वो उठ गयी तो,

भैया : अच्छा ठीक है लेकन कल मुझे तू अपनी चुनमुनियाँ देगी ना"

भाभी: हां अब तो पीछा छोड़ो मेरा…."


और फिर मुझे दोनो के खिलखिलाने की आवाज़ आई....मैं जल्दी से किचिन मे गयी....और पानी की बॉटल लेकर ऊपेर अपने रूम मे आ गयी....मुझे भैया से अब नफ़रत सी होने लगी थी...वो इंसान जो काम धंधा तो कुछ करता नही.....हमारे पैसो से अयाशी कर रहा है.....और मैं हूँ कि, खुद दिन रात मरती हूँ...



मैं गुस्से से भरी हुई अपने रूम मे आ गयी..........मेरा दिल कर रहा था कि मैं अभी जाकर भाई को धक्के देकर घर से बाहर निकल दूं. पर दुनिया और मरियादाओ के डर से कुछ नही कर सकती थी....मैं अपने रूम मे तो आ गयी थी....पर मेरे अंदर हलचल मची हुई थी....उम्र के 27 साल मे थी. और अभी तक सिर्फ़ सेक्स के बारे मे सुना ही था....और ना ही कभी दिल मे कभी कोई ऐसी हसरत ने जनम लिया था....मुझे तो अपने भाई की करतूतों ने मर्दो से नफ़रत करना सिखा दिया था.....और ना ही मैं चाहती थी...

जब कभी भी कोई रिस्तेदार मेरे लिए, कोई रिस्ता लेकर आता, तो एक अंजान सा डर मेरे दिमाग़ मे छा जाता....मैं नही चाहती थी कि, जो मेरी भाभी के साथ गुज़रा, वो मेरे साथ भी हो...जिसका पूरा ज़िमेदार मेरा भाई था.....उसने ना तो कभी अपनी पत्नी के सुख की परवाह की, और ना ही उसकी ज़रूरतों की, आख़िर वो भी कितने दिनो तक अपने माँ बाप के आगे हाथ जोड़ती रहे…और उनकी कमाई के पैसे खाती रहे. शाम को 5 बजे ट्यूशन के लिए बच्चे आ गये थे…भैया का पता नही कहाँ गये थे…उनको ट्यूशन देने के बाद मेने और भाभी ने रात का खाना तैयार किया….

जैसे तैसे रात हुई......रात का खाना खा कर ऊपेर अपने कमरे मे आई, तो एक बार फिर से मुझे मेरे इस कमरे की तन्हाई ने घेर लिया.....ना कोई दोस्त ना कोई साथी.....जिसके साथ कोई बात करती....तो सोचा कल के लेक्चर के लिए तैयारी कर लेती हूँ....और बुक उठा कर पढ़ने लगी......फिर भी रह-2 कर मन मे ख़याल आता कि, कहीं मैं अपने साथ ही तो बेइंसाफी तो नही कर रही....मैं क्यों अपनी हर ज़रूरत को ख़तम कर के जी रही हूँ.....जब कभी भी बाहर किसी प्रेमी जोड़े या बिहाए जोड़े को देखती.....तो मन मैं एक टीस सी उठती......

पर हार बार मन मार कर रह जाती...शायद ये सुख मेरे नसीब मे नही है....घड़ी की तरफ अचानक नज़र पड़ी, तो रात के 12 बज रहे थी....सुबह स्कूल भी जाना है...चल सो जा.....डॉली...."मेने अपने आप से कहा. और बिस्तर पर लेट गयी..."

अगली सुबह मैं जब उठी, तो लेट हो रही थी.....तैयार होकर नीचे आई तो, भाभी नीचे खड़ी थी...मुझे देखते ही बोली.....

भाभी : दीदी नाश्ता तैयार है.....लगा दूं ?

मैं: नही आज मैं लेट हो रही हूँ....स्कूल मैं ही कुछ खा लूँगी....

मैं तेज कदमो के साथ चलती हुई, मेन रोड की तरफ जाने लगी...डर था कि, कहीं बस ना निकल जाए......आज तो मानो जैसे बदल ज़मीन को छूने के लिए नीचे उतर आए हों...चारो तरफ काले बदल छाए हुए थे...आज हवा में ठंडक थी...जो बयान कर रही थी कि, कहीं बारिस हो रही है.और यहाँ भी होने वाली है....ये सोचते ही, मैं और तेज़ी से चलने लगी......पर मेरे तेज चलने का भी कोई फ़ायदा नही हुआ....एक दम से मानो जैसे बदल फॅट पड़े हो...

और तेज गड्गडाहट के साथ बारिश शुरू हो गयी... मैं जितना तेज चल सकती थी...उतनी तेज़ी से चलते हुए मेन रोड तक पहुँची....पर सर छुपाने के नाम पर वहाँ पर सिर्फ़ पेड़ ही था.....बस अभी तक नही अयेए थी....मैं पैड के नीचे खड़ी होकर बस का वेट करने लगी.....बारिश से से मेरा लाइट पिंक कलर का सूट एक दम भीग चुका था.......और मेरे बदन से इस कदर चिपक गया था...कि मेरेए ब्लॅक ब्रा और पैंटी उसमे से सॉफ झलकने लगी.......रोड पर से आते जाते मोहल्ले और आस पास के इलाक़े के लोग एक बार मेरी तरफ देखते और फिर अपनी नज़रें झुका कर आगे निकल जाते....

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