अहसान complete

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sexi munda
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अहसान complete

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अहसान


दोस्तो काफ़ी दिनों से मैं यहाँ कहानिया पढ़ता आ रहा हूँ . मैने राजशर्मास्टॉरीज पर एक से बढ़ कर एक कहानियाँ पढ़ी है
तो मैने सोचा मैं भी एक कहानी पोस्ट कर ही दूं क्या पता मेरी ये कोशिस आप सब को पसंद आए

दोस्तो सबसे पहले मैं इस कहानी के मेन कॅरक्टर्स का थोड़ा सा इंट्रोडक्षन देना चाहूँगा ताकि सब लोगो को कहानी ऑर उनके कॅरक्टर्स अच्छे से समझ मे आ जाए....

नीर (शेरा) :- एज- 26 साल, हाइट - 6.1" (मेन हीरो)
हैदर अली (बाबा) :- एज 65 साल, दुबला ओर पतला (बूढ़ा साइड रोल मे ही रहेगा)
नाज़ (नाज़ी) :- एज- 22 साल, हाइट- 5.6" फिगर- 34-28-36 (बाबा की बेटी)
क़ासिम :- एज- 31 साल, हाइट- 5.8" (बाबा का बेटा एक शराबी ऑर लोंड़िया बाज़ जो अब उनके साथ नही रहता )
फ़िज़ा :- एज-29 साल, हाइट- 5.2" फिगर- 36-30-38 (बाबा की बहू)


(बाकी ऑर भी कॅरक्टर्स इस कहानी मे आएँगे उनका इंट्रो मैं उनके रोल के साथ-साथ देता रहूँगा. मेरी पहली कोशिश आपकी खिदमत मे हाजिर है.)

बात आज से कुछ साल पुरानी है. रात का वक़्त था ओर पहाड़ी रास्ता था वारिस बोहोत तेज़ हो रही थी. सुनसान सड़क पर मैं तेज़ रफ़्तार से अपनी कार भगा रहा था. पोलीस मेरा पीछा कर रही थी ऑर मेरी गाड़ी पर गोलियो की बोछार हो रही थी मेरी पीठ पर ऑर कंधे पर भी 2 गोली लगी हुई थी लेकिन मैं फिर भी बोहोत तेज़ रफ़्तार से कार चला रहा था कि अचानक किसी पोलीस वाले की गोली मेरी कार के टाइयर पर लगी ऑर मेरी गाड़ी जो कि तेज़ रफ़्तार मे थी जाके एक पहाड़ी से ढलान की तरफ नीचे बढ़ने लगी ऑर एक पेड़ के सहारे मेरी कार हवा मे लटक गई अब मैं ऑर मेरी कार एक गहरी खाई की ओर एक कमज़ोर से पेड़ पर लटक रहे थे मैने बोहोत कोशिश करके कार को पिछे की तरफ रिवर्स किया ऑर गाड़ी को खाई मे जाने से बचा लिया लेकिन इससे पहले कि मैं कार से बाहर निकलता पोलीस की जीप खाई के पास आके रुक गई ऑर तभी मेरी आँखो के सामने भी अंधेरा छाने लगा उसके कुछ पल बाद जब मुझे होश आया तो मुझे अपने सीने मे तेज़ दर्द हो रहा था ऑर मेरी पूरी कमीज़ खून से भीग गई थी शायद उन पोलीस वालों ने मुझे कार से उतारकर गोली मार दी थी ऑर फिर मुझे वापिस कार मे बिठा कर ढलान की तरफ कार को धक्का दे रहे थे.

मैं उस वक़्त आधा बेहोश था और आधा होश मे था फिर भी खुद को बचाने की पूरी कोशिश कर रहा था. मैने कार को संभालने की बोहोत कोशिश की लेकिन संभाल नही पा रहा था ब्रेक पर अपने पाओ का पूरा दबाव देने के बावजूद भी गाड़ी घिसट कर पहाड़ी से नीचे जा गिरी ऑर धदाम की आवाज़ के साथ पानी मे गिर गई ऑर कार का स्टारिंग मेरे सिर मे लगा ऑर बेहोशी ने मुझे अपनी आगोश मे पूरी तरह ले लिया उसके बाद क्या हुआ क्या नही मुझे कुछ नही याद. मैं नही जानता मैं कब तक उस पानी मे रहा ऑर पानी का तेज़ बहाव मुझे ऑर मेरी गाड़ी को कहाँ तक बहा कर ले गया. जब आँख खुली तो खुद को एक छोटे से कमरे मे पाया लेकिन जब मैने चारपाई से उठने की कोशिश की तो मेरे हाथ-पैर मेरा साथ नही दे रहे थे ऑर ज़ोर लगाने पर पूरे शरीर मे दर्द की एक लहर दौड़ गई. इतने मे अचानक एक बूढ़ा आदमी मेरे पास जल्दी से आया ऑर मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझे लेटने का इशारा किया.

बाबा: बेटा तुम कौन हो क्या नाम है तुम्हारा?
मैं: (मुझे कुछ भी याद नही था कि मैं कौन हूँ बोहोत याद करने पर भी कुछ याद नही आ रहा था कि मेरी पिच्छली जिंदगी क्या थी ऑर मैं कौन हूँ.इसलिए बस उस बूढ़े आदमी को ऑर इस जगह को देख रहा था कि अचानक एक आवाज़ मेरे कानो से टकराई)
बाबा: क्या हुआ बेटा बताओ ना कौन हो तुम कहाँ से आए हो?
मैं: मुझे कुछ याद नही है कि मैं कौन हूँ.....(अपने सिर पर हाथ रखकर) यह जगह कोन्सि है
बाबा: बेटा हम ने तुम्हे पानी से निकाला है मेरी बेटी अक्सर नदी किनारे जाती है वहाँ उसको किनारे पर पड़े तुम मिले. जब तुम उनको मिले तो बोहोत बुरी तरह ज़ख़्मी ओर बेहोश थे वो ऑर मेरी बहू तुम्हे यहाँ ले आई.
मैं: अच्छा!!!!!! बाबा मैं यहाँ कितने दिन से हूँ?
बाबा: बेटा तुमको यहाँ 3 महीने से ज़्यादा होने वाले हैं तुम इतने दिन यहाँ बेहोश पड़े थे. जितना हो सका मेरी बेटी ऑर बहू ने तुम्हारा इलाज किया हम ग़रीबो से जितना हो सका हम ने तुम्हारी खिदमत की.
मैं: ऐसा मत कहिए बाबा आपने जो मेरे लिए किया आप सबका बोहोत-बोहोत शुक्रिया. लेकिन मुझे कुछ भी याद क्यो नही है.
बाबा: बेटा तुम्हारे सिर मे बोहोत गहरी चोट थी जिसको भरने मे बोहोत वक़्त लग गया मुमकिन है उस घाव की वजह से तुम्हारी याददाश्त चली गई हो.


इतने मे एक लड़की की आवाज़ सुनाई दी....बाबा अकेले-अकेले किससे बात कर रहे हो....सठिया गये हो क्या ऑर कमरे मे आ गई. (मेरी नज़र उस पर पड़ी तो मैने सिर से पैर तक उसको देखा ऑर उसका पूरा जायेज़ा लिया) दिखने मे पतली सी लेकिन लंबी, काले बाल, बड़ी-बड़ी आँखें, गोरा रंग, काले रंग का सलवार कमीज़ जिसपर छोटे-छोटे फूल बने थे ऑर कंधे से कमर पर बँधा हुआ दुपट्टा चाल मे अज़ीब सा बे-ढांगापन.

बाबा :- देख बेटी इनको होश आ गया (खुश होते हुए)
नाज़ी :- अर्रे!!! आपको होश आ गया अब कैसे हो...क्या नाम है आपका....कहाँ से आए हो आप (एक साथ कई सवाल)
बाबा : बेटी ज़रा साँस तो ले इतने सारे सवाल एक साथ पुछ लिए पहले पूरी बात तो सुना कर.
नाज़ी :- (मूह बनाकर) अच्छा बोलो क्या है?
बाबा :- बेटी इनको होश तो आ गया है लेकिन इनको याद कुछ भी नही है यह सब अपना पिच्छला भूल चुके हैं.
नाज़ी :- (अपने मूह पर हाथ रखते हुए) हाए! अब इनके घरवालो को कैसे ढूंढ़ेंगे?

इतने मे बाबा मेरी तरफ देखते हुए.

बाबा:- बेटा तुम अभी ठीक नही हो ऑर बोहोत कमजोर हो इसलिए आराम करो यह मेरी बेटी है नाज़ी यह तुम्हारी अच्छे से देख-भाल करेगी ऑर तुम फिकर ना करो सब ठीक हो जाएगा. हम सब तुम्हारे लिए दुआ करेंगे.(ऑर दोनो बाप बेटी कमरे से बाहर चले गये)

यह बात मेरे लिए किसी झटके से कम नही थी कि ना तो मुझे यह पता था कि मैं कौन हूँ ऑर नही कुछ मुझे मेरा पिच्छला कुछ याद था उपर से मैं 3 महीने से यहाँ पड़ा हुआ था. एक ही सवाल मेरे दिमाग़ मे बार-बार आ रहा था कि मैं कौन हूँ....आख़िर कौन हूँ मैं अचानक मेरे सिर मे दर्द होने लगा इसलिए मैने अपनी पुरानी ज़िंदगी के बारे मे ज़्यादा नही सोचा ऑर अपने ज़ख़्मो को देखने लगा मेरी बॉडी की काफ़ी जगह पर पट्टी बँधी हुई थी. मैं इस परिवार के बारे मे सोच रहा था कि कितने नेक़ लोग है जिन्होने यह जानते हुए कि मैं एक अजनबी हूँ ना सिर्फ़ मुझे बचाया बल्कि इतने महीने तक मुझे संभाला भी ऑर मेरी देख-भाल भी की.मैं अपनी सोचो मे ही गुम्म था कि अचानक मुझे किसी के क़दमो की आवाज़ सुनाई दी. मैने सिर उठाके देखा तो एक लड़की कमरे मे आती हुई नज़र आई यह कोई दूसरी लड़की थी बाबा के साथ जो आई थी वो नही थी वो शायद भागकर आई थी इसलिए उसका साँस चढ़ा हुआ था...यह फ़िज़ा थी जो यह सुनकर भागती हुई आई थी कि मुझे होश आ गया है.

मैने नज़र भरके उसे देखा....दिखने मे ना ज़्यादा लंबी ना ज़्यादा छोटी, रंग गोरा, नशीली सी आँखें, पीले रंग का सलवार कमीज़ ऑर सिर पर सलीके से दुपट्टा ओढ़े हुए लेकिन वो दुपट्टा भी उसकी छातियों की बनावट को छुपाने मे नाकाम था) मैं अभी उसके रूप रंग ही गोर से देख रहा था की अचानक एक आवाज़ ने मुझे चोंका दिया.
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sexi munda
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Re: अहसान

Post by sexi munda »

फ़िज़ा: अब कैसे हो?
मैं: ठीक हूँ....आपने जो मेरे लिए किया उसका बोहोत-बोहोत शुक्रिया.
फ़िज़ा: कैसी बात कर रहे हो...यह तो मेरा फ़र्ज़ था...लेकिन मुझे बाबा ने बताया कि आपको कुछ भी याद नही?
मैं: (नही मे गर्दन हिलाते हुए)जी नही.
फ़िज़ा: कोई बात नही आप फिकर ना करो आप जल्द ही अच्छे हो जाओगे
मैं: आपका नाम क्या है?
फ़िज़ा: (अपना दुपट्टा सर पर ठीक करते हुए)मेरा नाम फ़िज़ा है मैं बाबा की बहू हूँ
मैं: अच्छा.....आपके पति कहाँ है?
फ़िज़ा : वो तो शहर मे एक मिल मे काम करते हैं इसलिए साल मे 1-2 बार ही आ पाते हैं.(फ़िज़ा ने मुझसे झूठ बोला)
मैं: क्या मैं बाहर जा सकता हूँ?
फ़िज़ा: हिला तो जा नही रहा बाहर जाओगे कोई ज़रूरत नही चुप करके यही पड़े रहो ओर फिर जाओगे भी कहाँ अभी तो आपने कहा कि कुछ भी याद नही है कुछ दिन आराम करो इस बीच क्या पता आपको कुछ याद ही आ जाए तो हम आपके घरवालो को आपकी खबर पहुँचा सके.
मैं : ठीक है.
फ़िज़ा: भूख लगी हो तो कुछ खाने को लाउ?
मैं : नही मैं ठीक हूँ.
फ़िज़ा: ठीक है फिर आप आराम करो कुछ चाहिए हो तो मुझे आवाज़ लगा लेना.

इस तरह वो कमरे से बाहर चली गई ऑर मैं पीछे से उसको देखता रहा. मैं हालाकी चल नही सकता था लेकिन फिर भी मैने हिम्मत करके उठने की कोशिश की ऑर बेड पर बैठ गया ऑर खिड़की से बाहर देखने लगा ऑर ठंडी हवा का मज़ा लेने लगा. बाहर की हसीन वादियाँ उँचे पहाड़ ऑर उन पर सफेद चादर की तरह फैली हुई बर्फ ऑर उन पहाड़ो के बीच डूबता हुआ सूरज किसी का भी दिल मोह लेने के लिए काफ़ी थे मेरी आँखें बस इसी हसीन मंज़र को मन ही मन निहार रही थी. मैं काफ़ी देर बाहर क़ुदरत की सुंदरता को देखता रहा ऑर फिर धीरे-धीरे सूरज को पहाड़ो ने अपनी आगोश मे ले लिया ऑर नीले सॉफ आसमान मे छोटे-छोटे मोतियो जैसे तारे टिम-तिमाने लगे. मैं यह तो नही जानता कि मैं कौन हूँ ऑर कहाँ से आया हूँ लेकिन दिल मे अभी भी यही आस थी कि कैसे भी मुझे मेरी जिंदगी का कुछ तो याद आए ताकि मैं भी मेरे परिवार मेरे अपनो के पास जा सकूँ. जाने उनका मेरा बिना क्या हाल हो रहा होगा. मैं अपनी इन्ही सोचो मे गुम था कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे चोंका दिया.

फ़िज़ा: खाना तैयार है अगर भूख लगी हो तो खाना लेकर आउ

मैं: नही मुझे भूख नही है

फ़िज़ा: हाए अल्लाह!!!! आपने इतने दिन से कुछ नही खाया है खुद को देखो ज़रा कितने ज़ख़्मी ऑर कमज़ोर हो अगर खाना नही खाओगे तो ठीक कैसे होगे बोलो...

मैं: लेकिन मुझे भूख नही है आप लोग खा लो...

फ़िज़ा: ऐसे कैसे नही खाएँगे अगर आप खाना नही खाओगे तो हम भी नही खाएँगे हमारे यहाँ मेहमान भूखा नही सो सकता

मैं: अच्छा ऐसा है क्या.... ठीक है फिर आप मेरा खाना डालकर रख दो मुझे जब भूख होगी मैं खा लूँगा

फ़िज़ा: (अपनी कमर पर हाथ रखकर) जी नही!!!! मैं अभी खाना डाल कर ला रही हूँ आप अभी मेरे सामने खाना खाएँगे उसके बाद आपको लेप भी लगाना है.

मैं: ठीक है जी जैसे आपकी मर्ज़ी.(कुछ सोचते हुए) सुनिए ज़रा!!!!

फ़िज़ा : हंजी(पलटकर मुझे देखते हुए) अब क्या हुआ?

मैं: कुछ नही यह लेप कॉन्सा लगाएँगी आप मेरे

फ़िज़ा : (मुस्कुराते हुए) आपके जो यह ज़ख़्म है इन पर दवा लगाने की बात कर रही थी मैं.
मैं: अच्छा (ऑर मेरी नज़रे फ़िज़ा को कमरे से बाहर जाते हुए देखती रही)

कुछ ही देर मे फ़िज़ा खाना ले आई ओर मैने आज जाने कितने दिन बाद पेट भर खाना खाया था. कुछ देर बाद नाज़ी खाने की थाली ले गई ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी दोनो कमरे मे आ गई एक कटोरा हाथ मे लिए.

फ़िज़ा: अर्रे आप अभी तक लेटे नही...खाना खा लिया ना

मैं : (हाँ मे सिर हिलाते हुए) हंजी खाना खा लिया बोहोत अच्छा बनाया था खाना

फ़िज़ा :शुक्रिया!!! अब चलिए लेट जाइए ताकि हम दोनो आपके लेप लगा सकें (ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने मुझे मिलकर लिटा दिया)

मैं : जब मैं बेहोश था तब भी आप दोनो ही मुझे दवाई लगाती थी?

नाज़ी: जी हाँ ओर कौन है यहाँ

मैं : मेरा मतलब है कोई आदमी नही लगाता था मुझे

नाज़ी: जी नही बाबा तो अब खुद ही बड़ी मुश्किल से चल-फिर पाते हैं ऑर भाई जान बाहर ही रहते हैं घर कम ही आते हैं ज़्यादातर इसलिए हम दोनो ही आपको दवाई लगाती थी ऑर.....

मैं: ऑर क्या?

नाज़ी: कपड़े भी हम ही आपके बदलती थी(नज़रें झुकाते हुए)

मैं: अच्छा

फ़िज़ा : अच्छा छोड़ो यह सब वो वाली बात तो करो ना इनसे

मैं: कोन्सि बात?

फ़िज़ा: वो हमें आपका असल नाम तो पता नही है इसलिए हम दोनो ने आपका एक नाम सोचा है अगर आपको अच्छा लगे तो....

मैं: क्या नाम बताइए?

फ़िज़ा: "नीर" नाम कैसा लगा आपको?

मैं: जो आपको अच्छा लगे रख लीजिए मुझे तो कोई भी नाम याद नही वैसे यह नाम रखने कोई खास वजह?

फ़िज़ा : आप मौत को मात देकर फिर से इस दुनिया मे लौटे हो ओर हमें पानी मे बहते हुए मिले थे इसलिए हम ने सोचा कि आपका नाम भी हम "नीर" ही रख दे.

मैं: मौत को मात से क्या मतलब है आपका?

नाज़ी : अर्रे कुछ नही भाभी तो बस कही भी शुरू हो जाती है आप बताइए आपको नाम कैसा लगा?

मैं: अगर आप लोगो पसंद है तो मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता है

फ़िज़ा: तो फिर ठीक है.... आज से जब तक आपको अपना असल नाम याद नही आ जाता हम सब के लिए आप "नीर" हो.

मैं: जैसी आपकी मर्ज़ी (हल्की सी मुस्कुराहट के साथ)

फ़िज़ा: नाज़ी कल याद करवाना मुझे इनकी दाढ़ी ऑर बाल भी काटेंगे इतने महीनो से यह बेहोश थे तो देखो इनकी दाढ़ी ऑर बाल कितने बड़े हो गये हैं बुरा मत मानना लेकिन अभी आप किसी जोगी-बाबा से कम नही लग रहे हो कोई अजनबी देखे तो डर ही जाए (दोनो आपस मे ही हँसने लगी)

नाज़ी: कोई बात नही भाभी यह काम मैं कर दूँगी बाबा की दाढ़ी बनाते ऑर बाल काट ते हुए मैं अब माहिर हो गई हूँ इस काम मे

मैं : ( मैने दोनो का चेहरा देख कर सिर्फ़ हाँ मे सिर हिलाते हुए) ठीक है

नाज़ी: चलो "नीर" जी कपड़े उतारो

मैं: (चोन्क्ते हुए) क्यो कपड़े क्यो उतारू?

नाज़ी: दवाई नही लगवानी आपने?

मैं: अर्रे हाँ मैं तो भूल ही गया (ऑर अपनी कमीज़ के बटन खोलने की कोशिश करने लगा)

फ़िज़ा: आप रहने दीजिए रोज़ हम खुद ही यह सब काम कर लेती थी आज भी कर लेंगी आप अपने हाथ-पैर ज़्यादा हिलाइए मत नही तो दर्द होगा.

मैं: (खामोशी से सिर्फ़ हाँ में सिर हिलाते हुए)

नाज़ी: फिकर मत कीजिए हम रोज़ आप चद्दर डाल देते थे दवाई लगाने से पहले (उसके चेहरे पर यह बात कहते हुए मुस्कुराहट ऑर शरम दोनो थी)

दोनो ने मेरी कमीज़ उतारी ऑर पाजामा भी उतार दिया जो मेरे पैर से थोड़ा उँचा था शायद फ़िज़ा के पति का होगा या फिर बाबा का होगा ओर मेरी टाँगो पर एक चद्दर डाल दी. मैं दवाई लगवाते हुए भी अपनी पिच्छली जिंदगी के बारे मे सोच रहा था लेकिन मुझे कोशिश करने पर भी कुछ याद नही आ रहा था......मैं बस अपनी ही सोचो मे गुम था कि अचानक मुझे एक कोमल हाथ अपने सिर पर ऑर आँखो पर घूमता महसूस हुआ साथ ही (एक आवाज़ आई कि अब आँखें मत खोलना) फिर दूसरा हाथ अपनी बाजू पर ऑर 2 हाथ एक साथ चद्दर के अंदर आते हुए मेरी टाँगो से रेंगते हुए जाँघो पर महसूस हुए मेरी आँखें बंद थी फिर भी मैं सॉफ महसूस कर रहा था कि जब 2 हाथ मेरी जाँघो पर चल रहे थे तो मेरे लंड मे कुछ हरकत हुई जो कि अकड़ रहा था ऑर इस हरकत के बाद जो हाथ मेरी जाँघो पर दवाई लगा रहे थे उनमे एक अजीब सी कंपन मैने महसूस की.....मुझे उस वक़्त नही पता था कि यह अहसास क्या है लेकिन मुझे उससे सुकून भी मिल रहा था ऑर एक अजीब सी बेचैनी भी हो रही थी...इस मिले-जुले अहसास को शायद मैं समझ नही पा रहा था कि यह मेरे साथ क्या अजीब सी बात हुई ऑर चन्द सेकेंड्स मे मेरा लंड पूरी तरफ खड़ा होके छत को सलामी दे रहा था ऑर लंड महाराज ने चद्दर मे एक तंबू बना दिया था. अचानक एक हाथ मेरे लंड से टकराया कुछ पल के लिए उसने मेरे लंड को पकड़ा ऑर फिर एक दम से छोड़ दिया साथ ही एक मीठी सी आवाज़ मेरे कानो से टकराई. भाभी बाकी लेप आप ही लगा दो मैने नीचे तो लगा दिया है अब मैं सोने जा रही हूँ. शायद यह आवाज़ नाज़ी की थी. उसके बाद मुझे नीचे वो अजीब से मज़े वाला अहसास नही महसूस हुआ मैं वैसे ही आज बिना किसी कपड़े के सिर्फ़ चादर मे लिपटा हुआ सो रहा था

फ़िज़ा जाते हुए 2 कंबल भी मेरे उपेर डाल गई यह कहकर कि यहाँ रात मे अक्सर ठंड हो जाती है. फ़िज़ा ने भी मुझे कपड़े नही पहनाए ऑर ऐसे ही खिड़की बंद करके चली गई शायद उसकी नज़र भी मेरे खड़े हुए लंड पर पड़ गई थी मेरी उस वक़्त आँखें तो बंद थी लेकिन पैरो की दूर होती हुई आवाज़ से मैने अंदाज़ा लगा लिया था कि शायद अब कमरे मे कोई नही सिवाए मेरे ऑर मेरी तन्हाई के.रात को मुझे नींद ने कब अपनी आगोश मे ले लिया मैं नही जानता.सुबह मुझे नाश्ता करवाने के बाद फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने मेरी शेव भी की ऑर बाल भी काट दिए. शीशे मे अपना यह नया रूप देखकर मुझे खुशी भी हो रही थी ऑर बेचैनी भी हुई. लेकिन दिल मे अब यही सवाल बार-बार आके मुझे बेचैन कर देता था कि मैं कौन हूँ....आख़िर कौन हूँ मैं.


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sexi munda
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Re: अहसान

Post by sexi munda »

ऐसे ही दिन गुज़रने लगे अब मेरे जखम भी काफ़ी भर गये थे ऑर अब मैं चलने-फिरने के क़ाबिल हो गया था. लेकिन 1 बात मुझे हमेशा परेशान करती वो थे मेरे सीने पर गोली के निशान... ज़ख़्म भर गया था लेकिन निशान अभी भी बाक़ी था मैं जब भी नाज़ी या फ़िज़ा से उस निशान के बारे मे पुछ्ता तो वो बात गोल कर जाती ऑर मुझे उस निशान के बारे मे कुछ भी नही बतती मैं बाबा से यह बात नही पूछ सकता था क्योकि उमर के साथ उनकी नज़र बोहोत कमजोर हो चुकी थी इसलिए उन्हे दिखाई भी कम देता था. मैं सारा दिन या तो खिड़की के सामने खड़ा बाहर के नज़ारे देखता या फिर घर मे दोनो लड़कियो को घर का काम करते देखता रहता लेकिन फिर भी फ़िज़ा मुझे घर से बाहर नही जाने देती थी. मुझे पुराना कुछ भी याद नही था मेरी पुरानी जिंदगी अब भी मेरे लिए एक क़ोरा काग़ज़ ही थी. नाज़ी अब मुझे दवाई नही लगाती थी लेकिन फ़िज़ा रोज़ मुझे दवाई लगाने आती थी ऑर ऐसे ही बिना कपड़ो के उपेर कंबल डाल कर सुला जाती. आज दवाई लगाते हुए फ़िज़ा बोहोत खुश थी ऑर बार-बार मुस्कुरा रही थी उसकी इस खुशी का राज़ पुच्छे बिना मैं खुद को रोक नही पाया.

मैं: क्या बात है आज बोहोत खुश लग रही हो आप

फ़िज़ा: जी आज मेरे शोहार आ रहे है 5 महीने बाद

मैं: अर्रे वाह यह तो बोहोत खुशी की बात है.

फ़िज़ा: हंजी (नज़रें झुका कर मुस्कुराते हुए) आप से एक बात कहूँ तो आप बुरा तो नही मानेंगे?

मैं: नही बिल्कुल नही बोलिए क्या कर सकता हूँ मैं आपके लिए?

फ़िज़ा: वो आज मेरे शोहार क़ासिम आ रहे हैं तो अगर आप बुरा ना माने तो आप कुछ दिन उपेर वाली कोठारी मे रह लेंगे...ऑर हो सके तो उनके सामने ना आना.

मैं: (बात मेरी समझ मे नही आई) क्यो उनके सामने आ जाउन्गा तो क्या हो जाएगा?

फ़िज़ा: बस उनके सामने मत आना नही तो वो मुझे ऑर नाज़ी को ग़लत समझेंगे ऑर शक़ करेंगे असल मे वैसे तो वो बोहोत नेक़-दिल है लेकिन ऐसे उनकी गैर-हाजरी मे हम ने एक मर्द को रखा है घर मे तो वो आपके बारे मे ग़लत भी सोच सकते हैं ना इसलिए.

मैं: क्या आपने उनको मेरे बारे मे नही बताया हुआ?

फ़िज़ा: नही मैने आपके बारे मे उनको कुछ भी नही बताया कभी. मुझे ग़लत मत समझना लेकिन मेरी भी मजबूरी थी

मैं: कोई बात नही!!! ठीक है जैसा आप ठीक समझे

फ़िज़ा: मैं अभी आपका बिस्तर कोठारी मे लगा देती हूँ वहाँ मैं आपको खाना भी वही दे जाउन्गी कुछ चाहिए हो तो रोशनदान मे से आवाज़ लगा देना रसोई मे ऑर किसी कमरे मे नही याद रखना भूलना मत ठीक है.

मैं: (मैं सिर हाँ मे हिलाते हुए) फ़िज़ा जी आपके मुझ पर इतने अहसान है अगर आप ना होती तो आज शायद मैं ज़िंदा भी नही होता अगर मैं आपके कुछ काम आ सकूँ तो यह मेरी खुश किस्मती होगी. आप मेरी तरफ से बे-फिकर रहे मेरी वजह से आपको कोई परेशानी नही होगी.

फ़िज़ा: आपका बोहोत-बोहोत शुक्रिया आपने तो एक पल मे मेरी इतनी बड़ी परेशानी ही आसान करदी.

फिर वो बाहर चली गई ऑर मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा. मैं वापिस अपने बेड पर लेट गया थोड़ी देर मे मेरा बिस्तर भी कोठरी मे लग गया ऑर मैं उपेर कोठरी मे जाके लेट गया. कोठरी ज़्यादा बड़ी नही थी फिर भी मेरे लिए काफ़ी थी मैं उसमे आराम से लेट सकता था ऑर घूम फिर भी सकता था. वहाँ मेरा बिस्तर भी बड़े स्लीके से लगा हुआ था अब मैं ऐसी जगह पर था जहाँ से मुझे कोई नही देख सकता था लेकिन मैं सारे घर मे देख सकता था क्योकि यह कोठरी घर के एक दम बीच मे थी ऑर घर के हर कमरे मे हवा के लिए खुले हुए रोशनदान से मैं किसी भी कमरे मे झाँक कर देख सकता था. आप यह समझ सकते हैं कि वो सारे घर की एक बंद छत थी. फ़िज़ा के जाने के कुछ देर बाद मैने बारी-बारी हर रोशनदान को खोलकर देखा ऑर हर कमरे का जायज़ा लेने लगा. पहले रोशनदान से झाँका तो वहाँ बाबा अपनी चारपाई पर बैठे हुए हूक्का पी रहे थे. दूसरे रोशनदान से मैं रसोई मे देख सकता था. तीसरा कमरा शायद नाज़ी का था जहाँ वो बेड पर बैठी शायद काग़ज़ पर किसी की तस्वीर बना रही थी पेन्सिल से. चोथा कमरा मेरा था जहाँ पहले मैं लेटा हुआ था जो अब फ़िज़ा सॉफ कर रही थी शायद यह फ़िज़ा ऑर क़ासिम का था इसलिए. कोठरी के पिछे वाला रोशनदान खोलकर देखा तो वहाँ से मुझे घर के बाहर का सब नज़र आया यहाँ से मैं कौन घर मे आया है कौन बाहर गया है सब कुछ देख सकता था.

मैं अभी बिस्तेर पर आके लेटा ही था ऑर अपनी ही सोचो मे गुम था कि अचानक एक तांगा घर के बाहर आके रुका ऑर उसमे से एक आदमी हाथ मे लाल अतेची लिए उतरा. शायद यह क़ासिम था जिसके बारे मे फ़िज़ा ने मुझे बताया था. देखने मे क़ासिम कोई खास नही था छोटे से क़द का एक दुबला पतला सा आदमी था फ़िज़ा उसके मुक़ाबले कहीं ज़्यादा सुन्दर थी. वो तांगे से उतरकर घर मे दाखिल हो गया मैं भी वापिस अपनी जगह पर आके वापिस लेट गया ऑर मेरी कब आँख लगी मुझे पता नही चला. शाम को अचानक किसी के चिल्लाने से मेरी नींद खुल गई मैने उठकर देखा तो क़ासिम बोहोत गंदी-गंदी गलियाँ दे रहा था ऑर फ़िज़ा से पैसे माँग रहा था. फ़िज़ा लगातार रोए जा रही थी ऑर उसको कहीं जाने के लिए मना कर रही थी. लेकिन वो बार-बार कहीं जाने की बात कर रहा था ऑर फ़िज़ा से पैसे माँग रहा था अचानक उसने फ़िज़ा को थप्पड़ मारा ऑर गालियाँ देने लगा ऑर कहा कि अपनी औकात मे रहा कर रंडी मेरे मामलो मे टाँग अड़ाई तो उठाके घर से बाहर फेंक दूँगा 5 महीने मे साली की बोहोत ज़ुबान चलने लगी है. तुझे तो आके ठीक करूँगा. ऑर क़ासिम तेज़ क़दमों के साथ घर के बाहर निकल गया. फ़िज़ा वही बेड पर बैठी रो रही थी. यह देखकर मुझे बोहोत बुरा ल्गा लेकिन मैं मजबूर था फ़िज़ा ने ही मुझे घर के नीचे आने से मना किया था इसलिए मैं बस उसको रोते हुए देखता रहा ऑर क़ासिम के बारे मे सोचने लगा. फ़िज़ा हमेशा मेरे सामने क़ासिम की तारीफ करती थी ऑर उसने मुझे क़ासिम एक नेक़-दिल इंसान बताया था उसके इस तरह के बर्ताव ने यह सॉफ कर दिया कि फ़िज़ा ने मुझे क़ासिम के बारे मे झूठ बोला था. काफ़ी देर तक फ़िज़ा कमरे मे रोती रही ऑर मैं उसको देखता रहा.

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Re: अहसान

Post by sexi munda »

रात को फ़िज़ा मेरे लिए खाना लेके आई ऑर चेहरे पर अपनी सदाबहार मुस्कान के साथ. लेकिन मैं इस मुस्कान के पिछे का दर्द जान गया था इसलिए शायद फ़िज़ा की हालत पर उदास था फिर भी मैं नही चाहता था कि उसको मेरी वजह से किसी क़िस्म का दुख हो इसलिए उसको कुछ नही कहा. लेकिन ना चाहते हुए भी मेरे मूह से यह सवाल निकल गया.

मैं: आपके शोहर आ गये?

फ़िज़ा: हंजी आ गये तभी तो आज मैं बोहोत खुश हूँ.(बनावटी मुस्कुराहट के साथ)

मैं:अच्छी बात है मैं तो चाहता हूँ आप सब लोग हमेशा ही खुश रहें.

फ़िज़ा: मैं आपके लिए खाना लाई हूँ जल्दी से खाना खा लो नही तो ठंडा हो जाएगा

मैं: आपने खा लिया

फ़िज़ा: हंजी मैने क़ासिम के साथ ही खा लिया था

मैं: मेरा तो आपको देखकर ही पेट भर गया अब इस खाने की ज़रूरत मुझे भी नही

फ़िज़ा: (चोन्कते हुए) क्या मतलब?

मैं: आपने मुझसे झूठ क्यो बोला था क़ासिम के बारे मे... माफ़ करना लेकिन मैने आपके कमरे मे झाँक लिया था.

फ़िज़ा यह सुनकर खामोश हो गई ऑर मूह नीचे करके अचानक रो पड़ी. मेरी समझ मे नही आया कि उसको चुप कैसे करवाऊ इसलिए पास पड़ा पानी का ग्लास उसके आगे कर दिया. कुछ देर रोने के बाद फ़िज़ा चुप हो गई ऑर पानी का ग्लास हाथ मे पकड़ लिया.

मैं: जब आपको पता था कि क़ासिम ऐसा घटिया इंसान है तो आपने उससे शादी ही क्यो की?

फ़िज़ा: हर चीज़ पर हमारा ज़ोर नही होता मुझे जो मिला है वो मेरा नसीब है

मैं: आप चाहे तो मुझसे अपनी दिल की बात कर सकती है आपके दिल का बोझ हल्का हो जाएगा

फ़िज़ा: (नज़रे झुका कर कुछ सोचते हुए) इस दिल का बोझ शायद कभी हल्का नही होगा. शादी के शुरू मे क़ासिम ठीक था फिर उसकी दोस्ती गाव के सरपंच के खेतो मे काम करने वाले लोगो से हुई उनके साथ रहकर यह रोज़ शराब पीने लगा जुआ खेलने लगा इसके घटिया दोस्तो ने क़ासिम को कोठे पर भी ले जाना शुरू कर दिया. क़ासिम रात-रात भर घर नही आता था. लेकिन मैं सब कुछ चुप-चाप सहती रही कहती भी तो किसको मुझ अनाथ का था भी कौन जो मेरी मदद करता. वक़्त के साथ-साथ क़ासिम ऑर बुरा होता गया ऑर वो रोज़ शराब पीकर घर आता ऑर कोठे पर जाने के लिए मुझसे पैसे माँगता. हम जो खेती करके थोडा बोहोट पैसा कमाते हैं वो भी छीन कर ले जाता. एक दिन क़ासिम ने मुझसे कहा कि मैं उसके दोस्तो के साथ रात गुजारू जब मैने मना किया तो क़ासिम ने मुझे बोहोत मारा ऑर घर छोड़ कर चला गया. कुछ दिन बाद क़ासिम ने चौधरी के गोदाम से अपने दोस्तो के साथ मिलकर अनाज की कुछ बोरिया चुराई ऑर बेच दी अपने रंडीबाजी के शॉंक के लिए. सुबह पोलीस इसको ऑर इसके दोस्तो को पकड़ कर ले गई ऑर इसको 5 महीने की सज़ा हो गई. अब यह बाहर आया है जैल से तो अब भी वैसा है मैने सोचा था शायद जैल मे यह सुधर जाएगा लेकिन नही मेरी तो किस्मत ही खराब है (ऑर फ़िज़ा फिर से रोने लग गई)

मैं: (फ़िज़ा के कंधे पर हाथ रखकर) फिकर मत करो सब ठीक हो जाएगा. अगर मैं आपके किसी भी काम आ सकूँ तो मेरी खुश-किस्मती समझूंगा.

फ़िज़ा: (मेरे कंधे पर अपने गाल सहला कर) आपने कह दिया मेरे लिए इतना ही काफ़ी है

मैं: पहले जो हो गया वो हो गया लेकिन अब खुद को अकेला मत समझना मैं आपके साथ हूँ

फ़िज़ा: कब तक साथ हो आप.... तब तक ही ना जब तक आपकी याददाश्त नही आती उसके बाद?

मैं: (कुछ सोचते हुए) अगर यहाँ से जाना भी पड़ा तो भी जब भी आप लोगो को मेरी ज़रूरत होगी मैं आउन्गा यह मेरा वादा है

फ़िज़ा: (हैरानी से मुझे देखते हुए) चलो इस दुनिया मे कोई तो है जो मेरा भी सोचता है...(मुस्कुराते हुए)शुक्रिया!!!

उसके बाद कोठरी मे खामोशी छा गई ऑर जब तक मैं खाना ख़ाता रहा फ़िज़ा मुझे देखती रही. फिर वो भी मुझे दवाई लगा कर नीचे चली गई. आज भी मैं सिर्फ़ एक कंबल मे पड़ा था अंदर जिस्म नंगा था मेरा. मैं अब नीचे फ़िज़ा को बिस्तर पर अकेले लेटा हुआ देख रहा था. शायद क़ासिम आज भी घर नही आया था इस बार जो फ़िज़ा ने क़ासिम के बारे मे बताया था वो सही था. फ़िज़ा अभी भी जाग रही थी ऑर बार-बार रोशनदान की तरफ देख रही थी शायद वो कुछ सोच रही थी लेकिन उसे नही पता था कि मैं भी उसको देख रहा हूँ. ऐसे ही काफ़ी देर तक मैं उसे देखता रहा फिर मुझे नींद आने लग गई ऑर मैं सोने के लिए वापिस अपने बिस्तर पर लेट गया कुछ ही देर मे मुझे नींद आ गई.

आधी रात को जब मैं गहरी नींद मे सो रहा था कि अचानक किसी के धीरे से कोठरी का दरवाज़ा खोलने से मेरी नींद खुल गई. लालटेन बंद थी इसलिए मैं अंधेरा होने के कारण यह देख नही सकता था कि यह कॉन है इससे पहले कि मैं पूछ पाता उस इंसान ने मेरे पैर को धीरे से हिलाया. मुझे कुछ समझ नही आया कि ये कौन है ऑर इस वक़्त यहाँ क्या कर रहा है. मैं यह जानना चाहता था कि ये इस वक़्त यहाँ क्या करने आया है इसलिए खामोश होके लेटा रहा. फिर मुझे मेरी टाँगो पर उस इंसान के लंबे बाल महसूस हुए. इससे मुझे इतना तो पता चल ही गया था कि यह कोई लड़की है. यह या तो फ़िज़ा थी या फिर नाज़ी क्योकि इस वक़्त घर मे यही 2 लड़किया मोजूद थी. मगर मेरे दिल मे अभी यह सवाल था कि यह यहाँ इस वक़्त क्या करने आई है.


मैं अभी अपनी ही सोचो मे गुम था कि अचानक वो लड़की मेरे साथ आके लेट गई ऑर मेरे गालो को सहलाने लगी. अंधेरा होने की वजह से मुझे कुछ नज़र नही आ रहा था. फिर अचनाक वो हाथ मेरी गालो से रेंगता हुआ मेरी छाती पर आ गया ऑर मेरी छाती के बालो को सहलाने ल्गा ऑर हाथ नीचे की तरफ जाने लगा मैने हाथ को पकड़ लिया तो शायद उस लड़की को यह अहसास हो गया कि मैं जाग रहा हूँ इसलिए कुछ देर के लिए वो रुक गई ऑर अपना हाथ पिछे खींच लिया. मैने धीरे से पूछा कि कौन हो तुम ऑर इस वक़्त क्या कर रही हो. तो हाथ फिर से मेरे सीने से होता हुआ मेरे होंठो पर आया ऑर एक उंगली मेरे होंठो पर आके रुक गई जैसे वो मुझे चुप रहने का इशारा कर रही हो. मेरी अभी भी कुछ समझ मे नही आ रहा था कि वो लड़की जो अभी मेरे साथ बैठी हुई थी धीरे से उसने कंबल एक तरफ से उठाया ऑर खिसक कर कंबल मे मेरे साथ आ गई उसके इस तरह मुझसे चिपकने से ऑर उसके गरम शरीर के अहसास से मेरे शरीर मे भी हरकत होने लगी ऑर मेरे सोए हुए लंड मे जान आने लगी यह एक अजीब सा मज़ा था जो मैं ना तो समझ पा रहा था ना ही कुछ बोल पा रहा था. फिर उसकी एक टाँग मेरी टाँगो को सहलाने लगी ऑर उस लड़की का हाथ मेरे गले से होता हुआ छाती ऑर पेट पर घूमने लगा ऑर अचानक वो लड़की मेरे उपेर आ गई ऑर मेरे गालो को धीरे-धीरे चूमना शुरू कर दिया. मज़े से मेरी आँखे बंद हो रही थी उस लड़की के होंठो का गरम अहसास मेरे लिए बेहद मज़ेदार था उसके होठ मेरी गर्दन ऑर गालो को चूस ऑर चूम रहे थे. साथ मे नीचे मेरे लंड पर वो लड़की अपनी चूत रगड़ रही थी जिससे मेरा लंड लोहे जैसा कड़क हो गया था. मैं मज़े की वादियो मे खो रहा था कि अचानक एक मीठी सी लेकिन बेहद धीमी आवाज़ मेरे कानो से टकराई. तुम मुझे पहले क्यो नही मिले नीर मैं जाने कब से प्यासी हूँ मेरी प्यास बुझा दो. आज मुझे खुद पर काबू नही है मैं एक आग जल रही हूँ मुझे सुकून चाहिए मुझे आज प्यार चाहिए.

मैं बस इतना ही कह पाया कि क्या करू मैं. तो उस लड़की ने मेरा चेहरा अपने हाथो मे थाम लिया ऑर धीरे से अपने निचले होठ से मेरे दोनो होंठो को छू लिया ऑर कहा प्यार करो मुझे तुमने कहा था ना कि जब भी मुझे तुम्हारी ज़रूरत होगी मेरी मदद करोगे तो आज मुझे तुम्हारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है मैं जल रही हूँ मेरे अंदर की आग को बुझा दो. यह बात मेरे लिए किसी झटके से कम नही थी क्योकि यह बात मैने फ़िज़ा को कही थी. इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाता फ़िज़ा ने अपने गरम होठ मेरे होंठो पर रख कर उन्हे चूम लिया ऑर मेरे सूखे हुए होंठो पर अपनी रसीली जीभ से उन्हे गीला करना शुरू कर दिया. मैने भी अपने दोनो हाथ उसकी कमर के इर्द-गिर्द बाँध लिए ऑर अपनी आँखे बंद कर ली ऑर अपने तपते होठ उसके होंठो से मिला दिए जिसे फ़िज़ा ने चूमते हुए धीरे-धीरे चूसना शुरू कर दिया.
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Re: अहसान

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new kahani ke liye badhai mitr
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
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