अनाड़ी खिलाड़ी

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Jemsbond
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अनाड़ी खिलाड़ी

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अनाड़ी खिलाड़ी

Written by HotChilly

कहानी के मुख्य पात्र

- मन्मथसिंह चौहान (कहानी का मुख्य पात्र)
- आशका चौहान (मन्मथ की बहन)
- अभिमन्युसिंह चौहान (मन्मथ के पिताजी)
- संयुक्तादेवी चौहान (मन्मथ की माताजी)
- रति (मन्मथ की पड़ोसन)
- मनीषा (मन्मथ की क्लासमेट)

इस के अलावा बहुत से पात्र है जो कहानी के दौरान आएंगे तब उनका परिचय होगा

चैप्टर – 1 : आरंभ

अभिमन्युसिंह चौहान एक 45 साल के लंबे चौड़े और हट्टे कट्टे इंसान हैं| उनका एक छोटा सा कारोबार है जिसके लिए वो काफी समय बाहर ही रहेते हैं। गाँव में उनकी काफी सारी ज़मीन भी है जिसकी देखभाल उनके पिताजी बलराम सिंह करते हैं। राजपूत हैं तो फॅमिली वैल्यूस, सही गलत की पहेचान और किसी के साथ कुछ गलत न हो उसका खयाल उन्हे हमेशा रहेता है।

उनकी धर्म पत्नी संयुक्तादेवी एक आदर्श भारतीय नारी है। जिस के लिए पति भगवान और अपना परिवार ही सब कुछ है। जब वो गर्भवती हुई तो अभिमन्युसिंह ने उन्हे अपने गाँव भिजवा दिया ताकि उनके होने वाले बच्चे और पत्नी का खयाल उनके माता पिता रख सके। क्यों के वो खुद तो ज्यादा समय बाहर बिताते थे काम के सिलसिले में। अब तो वो और ज्यादा काम करने लगे थे उनका सपना था की उनकी औलाद चाहे लड़का हो या लड़की उसे कोई तकलीफ न हो।

आखिरकार वो घड़ी आ ही गयी जिसका सबको बेसबरी से इंतज़ार था। और भगवान की दया से उनको जुड़वा बच्चे हुए। एक लड़का और एक लड़की। उन लोगों की खुशी दुगनी हो गयी लड़के का नाम उन्हों ने मन्मथ और लड़की का नाम आशका रखा।

दिन बीतने लगे और धीरे धीरे दोनों बच्चे बड़े होने लगे। मन्मथ और आशका दोनों बड़े आज्ञाकारी बच्चे थे। वो अपने माता पिता और दादाजी से बहुत प्रेम करते थे। मन्मथ पढ़ाई में बहुत अच्छा था। बस समझ लो की बिग बेंग थेओरी का शेल्डन कूपर था। आशका भी अच्छी थी पढ़ाई में पर वो जीनियस नहीं थी मन्मथ की तरह। हाँ वो क्रिएटिव काफी थी डिज़ाइन, ड्रौइंग वगैरा उसके होब्बीस थी।

मन्मथ हर जीनियस की तरह बहुत शर्मिला था। वो अपने घर पे भी खुल के बात नहीं कर पाता था। अपना कमरा बांध कर के वो हमेशा पढ़ाई करता रहता था। उसकी दुनिया सिर्फ और सिर्फ किताबें ही थी। उसकी उम्र के बच्चे खेल कूद में मस्त रहेते तब वो स्कूल कीकिताबों के अलावा रिफ्रेन्स बुक्स पढ़ता रहेता। उसका असर बोर्ड्स में दिखा। मन्मथ ने बोर्ड में टॉप किया और आशका के 70% आए। सब लोग खुश थे। मन्मथ के पापा ने अच्छा रिज़ल्ट आने की खुशी में एक पार्टी अरैंज की। वो अब शहर के एक बहुत बड़े बिज़नस मेन बन चुके थे। हर तरफ से पैसा बरस रहा था। दोनों बच्चे उनके लिए लकी साबित हुए इसी लिए वो दोनों से बेहिसाब प्यार करते थे।

पार्टी में उन्होने शहर के प्रसिद्ध लोगो को भी आमंत्रित किया था। उनके लिए यह पार्टी अपने होनहार बेटे को दुनिया के सामने लाने का एक मौका थी। आशका भी खुश थी अपने भाई की उपलब्धि पर। उसे वैसे तो मार्क्स और पर्सेंटेज ज्यादा हो या कम कोई फर्क नहीं पड़ता था। वो तो अपनी मस्ती में जी रही थी। पार्टी की सारी तैयारी आशका और उसके पिताजी दोनों मिल कर कर रहे थे। खाने पीने का सारा इंतज़ाम पिताजी ने अपने सर लिया था। और घर की साज सजावट आशका करवा रही थी।

समय : सुबह 6:00 बजे

ट्रिन!!ट्रिन!!ट्रिन!!ट्रिन!! कर के अलार्म बज सउठता ही और आशका चमक के उठ जाती है। वो टाइम देखती है और अलार्म बंद कर के फिर से सो जाती है।

धड़.... धड़... धड़.… उसके रूम का दरवाजा खतखटाने की आवाज से वो फिर चौंक के उठ जाती है।

मोम: आशकु, ओ आशकु। अरे उठजा महारानी। कब तक सोएगी। 8 बज गए है। तुम्हें तो आज पापा के साथ पार्टी के खाने का मेनू सिलैक्ट करने जाना था ना।

आशका (मन में सोचते हुए) : ओह गोड देर हो गयी। आज जल्दी जाना था और अब मोम मेरी हालत खराब कर देगी।

आशका : मोम उठ रही हूँ। मैंने अलार्म लगाया था पर फिर सो गयी।

और बनावटी गुस्से से बोलती है "और आपको कितनी बार माना किया है मुझे आशकु मत बुलाओ। पापा ने इतना प्यारा नाम रखा है आप उसे बिगाड़ देते हो। "

मोम (हस्ते हुए) : चल अब ज्यादा नाटक मत कर। उठ जा। और पापा ने नहीं यह नाम मैंने सुझाया था तेरे पापा को। उन्हे तो पुजा नाम पसंद था। और जा के देख तेरा भैया उठा के नहीं।

आशका : वो मेरा भैया नहीं है। हम दोनों में सिर्फ 5 मिनट का फर्क है।

मोम : अरे हाँ मेरी माँ, अब दरवाजा खोल और तैयार होजा वरना तेरे पापा गुस्सा करेंगे।

आशका: ओके मोम।

उसने एक पिंक कलर की साटिन की नाइटी पहनी होती है। जिसमे वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। वो उठ के बैठ जाती है और अपने बाल बांधने लगती है। वो एक अंगड़ाई लेती है और अपने आस पास देखती है। उसका कमरा किसी राजकुमारी की तरह सजा हुआ था। वो एक डबल बेड पर होती है। उसके आस पास कई सारे बड़े बड़े टेडी और उसकी तरह के खिलौने होते है। जो की उसके प्यारे पापा ने अपनी ट्रिप्स पर से वापस आते हुए दिये होते हैं।

उठ कर वो बाथरूम में जाती है दरवाजा लोक करती है बाथरूम में एक बड़ा सा मिरर होता है जिसमे वो अपने आप को देखती है और सेक्सी स्माइल देती है और बोलती है "गुड मॉर्निंग गोरजीयस"। अगर मिरर इंसान होता तो वहीं पर अपना दिल खो देता उसकी यह अदा पर।

अपनी नाइटी उतार कर वो अपने आप को मिरर में देखती है। अपने छोटे छोटे चुचे जो की अब नींबू से अमरूद बन रहे थे उन्हे अपने दोनों हाथो से तौलती है और सोचती है जाने किस की किस्मत खुलने वाली है जिसे मेरे जैसी हसीन बीवी मिलेगी और फिर शर्मा जाती है। शर्म से उसके गाल गुलाबी हो जाते हैं जो उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देते हैं। अपने दोनों हाथ ऊपर कर के वो अपने बाल सँवरती है और ब्रश करना स्टार्ट करती है। ब्रश करते करते उसे याद आता है उसने भाई से तो उसकी चॉइस पुछी ही नहीं। वो फटा फट सुबह का रूटीन खत्म कर के अपने भाई के कमरे में जाती है और दरवाजे पर नोक करती है।

*knock* *knock*
आशका: मिस्टर आइन्स्टाइन,
*knock* *knock*
आशका: मिस्टर आइन्स्टाइन,

दो तीन बार नोक करने पर भी कोई जवाब नहीं आता तो वो थोड़ा सा धक्का देती है और दरवाजा खुल जाता है।

वहाँ पर उसका प्यारा भाई, अपने बेड पर सो रहा होता है और एक मोटी किताब उसके सीने पे पड़ी होती है। मन्मथ पढ़ते पढ़ते ही सो गया था। उसे देख कर वो हस पड़ती है,

आशका: अरे उठो कुंभकरण जी दोपहर हो गयी है।

मन्मथ दोपहर सुन के चौंक के उठ जाता है। और सीने पे पड़ी किताब उसके गोद्द में गिर जाती है।

आशका खिलखिला के हंस देती है उसे ऐसे देख के। और बोलती है

आशका: बड़ा आया पढ़ंतरा। कितना पढ़ोगे मिस्टर आइन्स्टाइन।
मन्मथ: अरे क्या है इतनी सुबह सुबह। अभी तो सोया हूँ जाओ सोने दो।

आशका: मैं आज पापा के साथ पार्टी का मेनू डिसाइड करने जा रही हूँ। अपनी फेवरिट चीज़ बोलो जो की मेनू में रख सके

मन्मथ: जो तुम लोगो को अच्छा लगे। मेरी कोई स्पेशल चॉइस नहीं है। (मुसकुराते हुए) पार्टी सिर्फ मेरे लिए नहीं है। तुम भी तो अच्छे नंबरो से पास हुई हो। सो, जो तुम्हारी पसंद वही मेरी पसंद।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Jemsbond
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मन्मथ सारी दुनिया में सिर्फ अपनी बहन के करीब था। उसके साथ वो आराम से बात कर लेता था। कुछ भी शेर कर सकता था उसके साथ। शायद दोनों जुड़वा थे इसलिए।

आशका: ठीक है। पर फिर बोलना मत की पूछा नहीं था।

यह बोल कर वो अपने कमरे में तैयार होने चली जाती है। कुछ देर बाद सब लोग नाश्ते की लिए डाइनिंग टेबल पर होते हैं। नाश्ता खत्म कर के आशका और उसके पापा चले जाते हैं।

मन्मथ : मोम मैं लाइब्ररी जा रहा हूँ बुक्स लाने।
मोम : अब 9 बजे ऐसी कौनसी लाइब्ररी है जो खुल गयी है। मुझे भी थोड़ा काम है। 10:30 बजे निकालना और मुझे ड्रॉप कर देना| मैं आ वापस ऑटो में आ जाऊँगी।
मन्मथ : (झिझकते हुए) मोम पर आप गाड़ी ले कर जाओ न मैं तो बाइक पर जा रहा हूँ।
मोम : ठीक है।

मन्मथ बाइक की चाबी निकाल के गैरेज में से बाइक निकालता है और गेट के पास लाके सोचता है। चलो पहेले इसे साफ कर देता हूँ फिर जाता हूँ।

बाइक साफ करते वक्त उसे दो आंखे घूर रही थी। और वो थी उसकी पड़ोस में रहेने वाले राजपुत अंकल की बेटी रति। रति मन्मथ और आशका से 2 साल छोटी थी। वो आशका की बेस्ट फ्रेंड थी और मन ही मन मन्मथ से प्यार करती थी। और मन्मथ था की उसके किताबों के अलावा कुछ और दिखाई ही नहीं देता था। हालांकि उसने यह बात आशका को भी नहीं बताई थी की वो मन्मथ से प्यार करती है।

मन्मथ बाइक साफ करने के बाद बाइक स्टार्ट कर के चला जाता है और रति उदास होकर वो जिस रास्ते पर जा रहा था उसे देखती रहेती है। आज फिर से मन्मथ ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया।

मन्मथ की एक आदत थी वो लोगों के साथ मेल जोल से ज्यादा अकेला रहना पसंद करता था। इसी लिए जब भी वो फ्री होता तब वो लाइब्ररी का बहाना कर के शहर के बाहर एक मंदिर था वहाँ पर आ जाता। यह मंदिर नदी किनारे था और काफी हरियाली भी थी आसपास। इसलिए मन्मथ को यहाँ पर सुकून मिलता था यहाँ आ कर। थोड़ा वक़्त अकेले गुजारने के बाद मन्मथ घर की और वापस चल देता है। घर आ कर देखता है की वहाँ पर ताला लगा हुआ है।

वो सोचता है "अरे यार यह लोग अभी तक नहीं आए। अब मैं कहाँ जाऊ"

वो सोच ही रहा था की किसी ने कहा "अकेले क्या कर रहे हो बेटा" उसने आसपास देखा कोई नहीं था। तभी आवाज़ ने कहा "अरे इधर ऊपर देखो" उसने देखा तो पड़ोस के घर की बालकनी से उनकी पड़ोसन आंटी बोल रही थी।

मन्मथ: क क कुछ नहीं आंटीजी। लगता है घर पर कोई नहीं है।
आंटी : हाँ तुम्हारी माँ चाबी दे कर गयी है और बोल कर गयी हैं उन्हे देर हो जाएगी आते आते।
मन्मथ: ठीक है।
आंटी: तुम आओ मैं चाबी लेकर आती हूँ।

मन्मथ अपने घर के गलियारे से निकल कर पड़ोस के घर में दाखिल होता है। यह घर उसके पापा के दोस्त और दूर के रिश्तेदार प्रद्युम्नसिंह राजपूत की थी। वे दोनों एक ही गाँव के थे और उनका सब कुछ मन्मथ के पापा की ही बदौलत था। प्रद्युम्नसिंह ने लव मैरेज की थी जिसमे मन्मथ के पापा ने ही उनका साथ दिया था। गाँव में उनका रसूख होने की वजह से किसी ने उन्हे कुछ नाही बोला वर्ना प्रद्युम्नसिंह की मौत नीश्चित थी।
मन्मथ ड्राविंग रूम में आ कर देख रहा था चारो और।

आंटी: बेटा क्या देख रहे हो। बैठ जाओ आराम से।
मन्मथ: ज जी आंटी।
आंटी (ज़ोर से): बेटा रति, पानी लाना तो।
रति: जी माँ अभी लायी।
रति अपने रूम से किचन की और जाती है और एक ट्रे में पानी के दो ग्लास भर कर ड्राविंगरूम में आ ही रही होती है की मन्मथ को देख कर उसका दिल एकदम धक से जैसे रूक जाता है। उसका दिमाग काम करना जैसे रुक जाता है। वो वही पागलो की तरह खड़ी खड़ी मन्मथ को देख रही होती है। तभी उसकी माँ बोलती है, “अरे रूक क्यों गयी। जल्दी ला"
मन्मथ की और मूड के "और क्या लोगे बेटा। ठंडा या गरम?”
मन्मथ: ज जी कुछ नहीं आंटी बस आप सिर्फ चाबी दे दीजिये। मैं चला जाऊंगा।
रति (मन में): बड़ा आया चला जाऊंगा वाला। और यह माँ भी न बहुत खराब है। बोल नहीं सकती थी मैं ऐसे ही चली आई। पता होता तो ढंग के कपड़े पहन के आती।

रति ने घर पे पहनने वाले छोटे छोटे कपड़े पहेने थे। शॉर्ट स्कर्ट, ढीली ढाली टीशर्ट आज तो उसने ब्रा भी नहीं डाली थी। वैसे भी दिन में घर पर उसकी माँ और वो अकेले रहते थे तो कोई प्रोब्लेम नहीं थी ऐसी ड्रेस पहनने में। उसने ग्रे टीशर्ट और व्हाइट मिनी स्कर्ट पहेनि थी। गरमियो का मौसम था और घर में कोई रोक टॉक भी नहीं थी किसी चीज़ की तो वो ज़्यादातर ऐसे ही कपड़े पहेनती थी।

रति मन्मथ को पानी देकर उसके खतम करने के इंतज़ार में ट्रे लेकर ज़मीन के तरफ देख रही थी और पाँव से ज़मीन कुरेद रही थी। उसके सपनों का राजकुमार उसके सामने था लेकिन उसको पता नहीं था की क्या क्यीआ जाये, उसकी माँ भी तो उसके सामने खड़ी थी।

आंटी: रति बेटा, जाओ और एक बढ़िया सी चाय बना देना तो मन्मथ के लिए।
रति: जी माँ.
आंटी: और सुनाओ बेटा। आगे क्या करने का इरादा है? तुम तो दिखते ही नहीं कभी।
मन्मथ: जी आंटी पढ़ाई में से फुर्सत ही नहीं मिलती।
आंटी: एक तुम हो जिसे पढ़ाई में से फुर्सत नहीं मिलती और एक हमारी बेटी है जो पढ़ाई ही नहीं करती। पता नहीं क्या होगा इस लड़की का।
तभी किचन से आवाज़ आती है "माँ शक्कर खतम हो गयी है।"
आंटी: अरे वो ऊपर वाले बड़े डिब्बे में है। निकाल लो।
रति: मेरा हाथ नहीं आ रहा। आप आ कर निकाल दो।
आंटी: बेटा मन्मथ, एक काम कर दो गे? शक्कर का डिब्बा उतारना है ऊपर से। मेरा भी हाथ नहीं आता वहाँ पर।
मन्मथ: जी आंटी कोई बात नहीं।
मन्मथ कीचेन की और बढ़ता है और वहाँ का सीन देखकर उसका दिल धक्क से रुक जाता है। साँसे रुक जाती है। उसे समझ नहीं आता क्या करे।

रति स्टैंडिंग कीचेन पे चढ़ गयी थी और ऊपर के छज्जे पे से डिब्बा उतारने की कोशिश कर रही थी। पीछे से उसकी स्कर्ट ऊपर हो गयी थी जीसमें से उसकी पिंक फ्लोरल पेंटि दिखाई दे रही थी जो की एक साइड से उसकी पीछे की दरार में घुस गई थी। उसकी चिकनी टोंड और दूध की तरह सफ़ेद तांगे थोड़ी-थोड़ी थरथरा रही थी क्योंकि वो अपने पूरी कोशिश कर रही थी ऊपर से डिब्बा उतारने की।

मन्मथ को कुछ अजीब महसूस हो रहा था ऐसा उसे कभी नहीं महसूस हुआ था।

(इधर आशका और उसके पापा)
वे दोनों अभी तक तीन से चार बड़े रेस्तौरंट्स के चक्कर काट चुके थे और एक रैस्टौरेंट को फ़ाइनल कर दिया था। सारा ऑर्डर देने के बाद वे लोग पार्किंग की तरफ बढ़ रहे थे।

आशका : पापा इस्स से तो इन लोगो को घर बुला लिया होता तो अच्छा होता। मैं तो थक गयी हूँ।
पापा: अरे बेटा यहाँ आने से हमे पता तो चला की यह लोग क्या है और कितनी साफ सफाई रखते हैं। स्टाफ कैसा है। यह पार्टी हमारी इज्जत का सवाल है। में किसी भी चीज़ में कमी नहीं होने देना चाहता। तुम दोनों अब तो पढ़ाई के लिए हमसे दूर चले जाओगे फिर पता नहीं कब वापस आओ।
बोल कर वे उदास हो जाते है।
आशका: जी पापा। यू आर द बेस्ट।
बोल कर उनके गले लग जाती है। अभिमन्युसिंह भी उसके गले लगा कर उसका माथा चूम लेते हैं। और बोलते हैं "मेरी सब से प्यारी बिटिया"

जैसे ही वो अलग होते हैं और आशका मुड़ती है उसके सामने एक आदमी खड़ा था। बढ़े हुए बाल जैसे बरसो से न काटे हो, बढ़े हुए नाखून, काले-पीले दाँत, भद्दा सा चहेरा और खड़ा हुआ मोटा सा ल्ंड। हाँ वो आदमी पूरा नंगा था और उसका नागराज आशका के सामने हिचकोले खा रहा था।
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आशका ने कभी ऐसा नहीं देखा था। वो उसे सिर्फ देखती ही रहेती ही उसे भी कुछ अजीब फीलिंग हो रही थी। उसके कान में जैसे सीटियाँ बज रही थी, और नीचे कही मीठी मीठी खुजली जैसा अहेसास हो रहा था। उसका चेहरा लाल हो गया

तभी एक जोरदार आवाज़ से वो वापस नॉर्मल हो गयी। उसने देखा उसके पापा ने उस इंसान को खींच के दो-चार थप्पड़ जड़ दिये। काफी भीड़ इकट्ठा हो गयी लोगो ने समझाया की यह पागल है और ऐसी उल जलूल हरकते करता रहेता है।

दोनों घर वापस आने के लिए निकल लेते है। सारे रास्ते कोई कुछ नहीं बोलता। आशका के सामने वही सीन चल रहा होता है। उसको वही ल्ंड दिखाई दे रहा था। और उसको 'वहाँ' पर गीला गीला लग रहा था। वो अपने दोनों पाँव ज़ोर से जोड़ लेती है। उसका दबाव उसकी योनि पर आता है उसे एक एक जादुई एहसास होता है। उसकी योनि अंदर से जैसे फड़क रही थी और अचानक बांध टूट जाता है...

(इधर मन्मथ और रति किचन में)


मन्मथ रति को निहारे जा रहा था जो की पीछे से पूरी तरह अनावृत थी और अपनी दौलत मन्मथ को दिखा रही थी। मन्मथ का सर भारी होने लगा और उसने खून का प्रवाह कहीं और बहेते हुए महसूस किया। और उसके कोई अंग में सरसराहट होने लगी। और वो अजगर की तरह बढ्ने लगा। वो अपने अजगर को एडजस्ट करने लगा पेंट में और उसका हाथ दरवाजे से टकरा गया जिसकी आवाज़ से रति डर गयी और उसका पाँव स्टैंडिंग कीचेन पर से फिसल गया और वो गिरने लगी तभी मन्मथ ने उसे थाम लिया। अब वो मन्मथ की गोद में थी। और वो मन्मथ को देखे जा रही थी। आज तो भगवान ने जैसे उसकी सारी बाते मान ली थी। यहाँ मन्मथ की हालत खराब थी। एक तो उसका ल्ंड फटने को तैयार था और उस पर रति के रेशमी बदन का एहसास कहर बरपा रहा था। मन्मथ का एक हाथ रति की बगल में से हो कर उसकी गर्दन को थामे हुए था और दूसरा हाथ उसकी नाजुक गांड पर था। रति ने मन्मथ के हाथो को अपने मुलायम पिछवाड़े पर महसूस किया और वो शर्मा गयी। उसने नजरे झुका ली। उसके गालो पर शरम की लाली फ़ेल गयी। जिसे देखते ही मन्मथ अपना दिल हार गया और उसके सब्र का बांध भी टूट गया।


यह पहली बार था जब की आशका और मन्मथ दोनों को ओर्गसम की अनुभूति हुई थी।

मन्मथ और रति दोनों ऐसे ही एक दूसरे को देखते रहे तभी बाहर से आवाज़ आई "मिला की नहीं डिब्बा" जिसे सुनके मन्मथ ने हदबड़ाहट में रति को नीचे उतरा दिया और रति भी होश में आई। उसने कहा वो वाला डिब्बा चाहिए। मन्मथ ने वो डिब्बा उतार के दिया और वापस द्रोविंग रूम में आ गया। रति तो जैसे सातवे आसमान पे थी। आज पहेली बार उसके प्रियतम ने उसको देखा था। जल्दी से वो चाय और बिस्कुट ले कर गयी जहां पर उसकी मोम और मन्मथ बैठे थे। चाय दे कर वो भी अपनी माँ के पास बैठ गयी।

आंटी: बेटा तुम अब इसको समझाओ। कुछ पढ़ाई लिखाई में भी ध्यान दे। हमेशा टीवी और फोन पर ही रहेती है।
मन्मथ: ज जी आंटी।

वो रति से नजरे नहीं मिला पा रहा था। और चुपचाप चाय पी रहा था। रति भी नजरे झुकाये कनखियो से अपने प्रियतम को देख रही थी। और अभी तक कीचेन में हुई बात को याद कर रही थी। और एक छोटी सी मुस्कुराहट आ गयी उसके होठों पे। मन्मथ ने जैसे ही नज़र उठा के उसे हसते हुए देखा तो फिर से अपने चाय पे ध्यान देने लगा।

मन्मथ: अच्छा आंटी मैं चलता हूँ।
आंटी: हाँ ये लो चाबी। और पार्टी ऑर्गनाइज़ करने में कोई काम की जरूरत हो तो बोल देना। वैसे रति हेल्प कर ही रही है।
मन्मथ: जी आंटी।
तभी कार के हॉर्न की आवाज़ आती है और मन्मथ देखता है तो उसके पापा और आशका आ चुके होते हैं। मन्मथ जाके घर खोलता है। जैसे ही दरवाजा खोलता है आशका दौड़ के अंदर चली जाती है। मन्मथ हैरान हो जाता है की इससे क्या हुआ। उसकी नज़र ऊपर जाती है तो उसे रति बालकनी में दिखाई देती है। उसे देख कर रति स्माइल कर थी है तो मन्मथ भी छोटी सी स्माइल देता है और अंदर चला जाता है।
पार्टी की सारी तैयारियां खत्म हो चुकी थी और आज रात को पार्टी थी। आशका ने रति को फोन कर के अपने साथ ही बुला लिया था पार्टी के लिए तैयार होने। दोनों आशका के कमरे में पार्टी के लिए रैडि हो रही थी। रति अपने साथ 5-6 ड्रेस ले कर आई थी। आज तो उसने ठान ली थी की मन्मथ को अपना जलवा दिखा कर चारो खाने चित कर देगी। वो आशका के साथ बात कर के मन्मथ की पसंद नापसंद का पता कर लेना चाह रही थी। और आशका उस से बात करती करती कहीं खो जा रही थी। उसे बार बार 2 दिन पहेले पार्किंग के हादसे की याद आ जाती थी और उसके बदन में एक सरसराहट होने लगती थी।
रति: दी इतनी सारी ड्रेस ले कर आई हूँ। पता नहीं चल रहा कौनसी ड्रेस पहनु।
आशका: उसमे क्या है। ट्राय कर के देख ले। तू ड्रेस बदल के आ मैं बताती हूँ कौनसी ड्रेस अच्छी लग रही है।
रति: ठीक है दी। आप भी चेंज कर लो।
वो एक ड्रेस उठाती है और बाथरूम में चली जाती है। आशका भी रैडि एक ड्रेस लेती है और अपनी टी शर्ट उतारती है। ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर वो खड़ी हो जाती है और अपने आप को निहारने लगती है।


उसने व्हाइट कलर की ब्रा पहेनि थी जिसमे से उसके टैनिस बोल नुमा स्तन बाहर आने को मचल रहे थे। उसकी रेशमी बांहे, उसके पतली कमर और जिसे इंग्लिश में अवर ग्लास फिगर खहेते है वो कहर बरपा रहा था। उसने एक छोटी सी शॉर्ट पहेनि थी जीसके बटन उसने खोले हल्के हल्के बाल उसे दिखाई दिये। वो देखते ही उसने दोनों हाथ ऊपर किए अपनी बगल में भी हल्के बाल नज़र आए। उसने सोचा यार यह काम बाकी रह गया है। वो सोचती है जैसे ही रति ड्रेस बदल कर आएगी वो बाथरूम में जा कर इन्हे साफ कर लेगी। तभी उसे एक सीटी की आवाज़ आती है। वो चौंक के मुड़ती है तो उसे रति जो की एक पतली सी स्लिप पहेने होती है अपने हाथ में ड्रेस ले कर खड़ी दिखाई देती है।

वो कुछ इस तरह लग रही थी।



रति: दी क्या लग रही हो। कसम से अगर कोई आप को ऐसे देख ले तो उसकी नियत खराब हो जाये।
आशका: क्या बकवास कर रही हो।
रति: सही में दीदी आप लग ही ऐसे रहे हो की किसी का भी ईमान डॉल जाये।
आशका(शर्माते हुए): चुपकर कुछ भी बोलती है। मैं तो तुझे बच्ची समझती थी। और तू तो बड़ी तेज़ हो गयी है।

तभी दरवाजा खुलता है और मन्मथ अंदर आता है। वो कुछ बोलने जा ही रहा था पर यह सीन देख कर उसका मूंह खुला का खुला ही रहे जाता है।

उसके सामने दो कमसिन लड़कियां अधनंगी खड़ी होती है। उसकी नज़र उसकी बहन पर पड़ती है जो की एक सेक्सी पोज दे कर रति की और देख रही थी। उसे आया देख कर रति अपने दोनों हाथ ऊपर कर लेती है उसके हाथो में ड्रेस होने की वजह से उसका बदन ढक जाता है। वो शरम से अपनी नजरे झुका लेती है। आशका अपने आप को ढकने की कोई कोशिश नहीं करती। गुस्से से वो मन्मथ को पूछती है "क्या बदतमीजी है। नौक नहीं कर सकते क्या?”

मन्मथ: व व वो में मैं... सॉरी मुझे नौक करना चाहिए था।
बोल कर वो नजरे झुका लेता है। और सोचता है पता नहीं ये दोनों उसके बारे में क्या सोचेगी। उसे अपनी इज्जत तार तार होती हुई नज़र आई॰
आशका: क्या काम था। कुछ ज़रूरी ही होगा। वरना तुम अपने रूम में से बाहर ही कहाँ निकलते हो।

बोल कर वो खिलखिला कर हास देती है। उसे ऐसे हँसते देख कर मन्मथ की जान में जान आई। जो माहौल भारी था वो अब नॉर्मल हो गया। मन्मथ बाथरूम की और देखता है तो रति अभी भी अपने आप को ड्रेस के पीछे छुपाए हुई थी और ज़मीन की तरफ ही देख रही थी।

आशका: उसे घुरना बंद करो और बताओ क्या काम है मिस्टर आइन्स्टाइन
मन्मथ: अरे वो मेरा मोबाइल चार्जर नहीं काम कर रहा। तुम्हारा चार्जर चाहिए था।
आशका: वहाँ बेड पर पड़ा है ले लो।
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Re: अनाड़ी खिलाड़ी

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मन्मथ चार्जर लेता है और वापस चला जाता है। उसके जाते ही आशका रूम का दरवाजा अंदर से बंद कर देती है। मन्मथ अपने रूम मे जाकर मोबाइल चार्जिंग में रख के बेड पर लेट जाता है। वो आँख बंद करता है तो उसके सामने आशका के रूम का द्र्श्य आता है। उसे आशका दिखाई देती है, छोटे से कपड़ो में। जिसमे से उसका हुस्न दिखाई दे रहा था। उसने पहेले कभी ऐसा महसूस नहीं किया था। लेकिन आज उसे अपनी ही बहन एक जवान लड़की के रूप में दिखाई दे रही थी। जैसे जैसे वो आशका और उसके मखमली बदन के बारे में सोच रहा था वैसे धीरे धीरे उसके पैंट में हरकत होना शुरू हो गयी। उसके लंड ने गियर बदलना शुरू कर दिया। उसके खुले खुले रेशमी बाल, गोरी गोरी बाहें, उसके दो सख्त स्तन, उसकी एकदम सपाट और मदमस्त करने वाली नेवल, उसकी खुली और केले के पेड़ के तने जैसे टांगे यह सब सोचते सोचते उसका लंड टॉप गियर में आ गया था उसे अपने पैंट में तकलीफ होने लगी थी। उसने अपनी पैंट खोल दी और सिर्फ अंडरवियर में आ गया। उसने देखा उसकी अंडरवियर में लंड बिलकुल अकड़ गया था। उसने अंडरवियर भी निकाल दी जैसे ही उसने अंडरवियर खोली उसका 8’ का लंड किसी नाग की तरह झूलने लगा। उसका लिंगमुंड कपड़ो में होने की वजह से दर्द कर रहा था। मन्मथ धीरे धीरे अपने लंड को सहलाने लगा वो पहेली बार ऐसा कर रहा था। उसे बहुत अच्छा लगा और उसकी आंखे इस कामसुख को महेसूस करते हुए बंद हो गयी। जैसे जैसे वो सहेला रहा था उसके और भी अच्छा लगा उसने अपनी स्पीड बढ़ा दी। लेकिन ये उसका पहेली बार का था तो तुरंत ही उसको लिंग में दर्द होने लगा। उसने अपने आसपास देखा तो अपने टेबल पर उसने बॉडी लोशन की बोतल देखि। वो थोड़ा सा बॉडी लोशन अपने हाथ में लेता है और अपने लिंग पर मलता है और फिर से सहेलने लगता है। आशका को याद कर के हाथ की स्पीड बढ़ा देता है। 5 मिनट तक ऐसे ही करने के बाद उसे अपने अंदर के कुछ अजीब सी फीलिंग आती है। उसे लगता है जैसे उसके अंदर के कुछ निकाल जाएगा.... और बोल पड़ता है…
“आहह आशका आ आ आ आ" उसके लिंग में से पहेली पिचकारी निकलती है जो की दूर जाके दरवाजे पद गिरती है और फिर कई सारी पिचकारियाँ निकलती है। और उसके हाथ और बेड पर गिर पड़ती है। वो थक कर अपने बेड पर आंखे बंद कर के एलईटी जाता है। उसकी साँसे तेज़ चल रही होती है। यह उसने पहेली बार हस्तमैथुन किया था। वो भी अपनी बहन के नाम। उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है। और वो सिर्फ इस अद्भुत अहेसास को महसूस करता है। उसका दिल अभी तक ज़ोरों से धडक रहा था।
10 मिनट तक इसी पोसिशन में रहेने के बाद उसने सोचा अब पार्टी के लिए तैयार होना चाहिए। और वो बाथरूम में जाता है और नहा के आता है और कपड़े बदल कर तैयार हो जाता है।

(इधर आशका के रूम में)
रति: तुम्हारे भैया तो कैसे बेशरम है। कैसे घूर रहे थे मुझे। (बोल कर शर्मा जाती है)
आशका को पता था की मन्मथ ने रति से ज़्यादा उसे ही देखा था और उस से वो असहज महसूस कर रही थी अपने आप को।
आशका: नहीं रे। वो ऐसा नहीं है। वो वैसे तो किसी के कमरे मे नहीं जाता। नोक करना भूल गया। और वैसे भी वो मेरा बड़ा भाई है। उसे मेरे कमरे में कभी भी आने की इजाज़त लेने क जरूर नहीं।
उसे पता नहीं क्यों वो अपने भाई को डिफ़ेंड कर रही है। पर शायद यह उनके जुड़वा होने का असर था जो कि उसे अपने भाई की किसी भी गलती को डिफ़ेंड करना सीखा रहा था।
आशका: तू वैसे बाहर क्यों आई थी? ड्रेस भी नहीं पहेनि तूने।
रति: दीदी वो यह ड्रेस पहेनने में मुश्किल हो रही थी। आप मेरी हेल्प कर दो न प्लीज।
आशका: एक काम कर तू दूसरी ड्रेस ट्राय मत कर येही सही लग रही है। वैसे भी पार्टी का टाइम हो गया है। मुझे भी तैयार होना है।
बोल कर वो एक काफी रिविलिंग ड्रेस पसंद करती है और रति के साथ बाथ रूम में घुस जाती है। बाथ रूम में जाते ही वो अपनी ब्रा और शॉर्ट निकाल देती है और सम्पूर्ण रूप से नंगी हो जाती है। जिसे देख कर रति की आँखें चौड़ी हो जाती है।
रति: दीदी आप ऐसे ही किसी की जान ले लोगे किसी दिन।
आशका: हत्त पगली। वो तो मुझे हैयर रिमूव करना है इसी लिए।

वो हैयर रिमोविंग क्रीम लेती है और अपनी दोनों बगलो में लगती है, फिर हाथ, पाँव और योनि के ऊपर आके बालो पर भी क्रीम लगती है। रति उसे ऐसे ही देखती रहेती है। उसे ऐसे देखता हुआ देख कर आशका थोड़ी झेंप जाती है। उसे से पुछती है। "तुझे भी लगानी है क्या?”
रति: नहीं दीदी में तो यह काम घर से ही कर के आई थी।
बोल कर मुस्कुरा देती है।
आशका: ठीक है।
रति उसे देखती ही रहेती है। उसकी योनि जो की छोटी सी थी और पिंक कलर की बंद डिब्बी जैसी थी। रति के अंदर कुछ कुछ होने लगता है, उसकी योनि में धीरे धीरे गीलापैन आने लगता है और उसके स्तनाग्र कडक होने लगते है और उसकी सिल्की स्लिप फाड़ के बाहर आने को बेताब हो रहे थे। उसका हाथ अपनी पैंटी पर चला जाता है जो की थोड़ी सी भीगी हुई लगती है उसको। जैसे ही उसके हाथ अपनी योनि को छूते है एक धीमी सी आह निकाल जाती है रति के मुंह से।

रति: दीदी आप बहुत सुंदर हो। अगर में लड़का होती तो आप से ही शादी करती।
आशका: चुप। कुछ भी बकवास करती है।
लेकिन उसको दिल में अच्छा लगता है। ऐसी कौनसी लड़की होगी जिसे अपने हुस्न की तारीफ नहीं पसंद होगी और वो भी दूसरी हॉट लड़की के मुंह से।

अपना काम खत्म करने के बाद आशका रति से बोलती है ला अब तेरी ड्रेस दे दे और अपने भी कपड़े उतार।

रति उसे अपनी ड्रेस देती है और अपनी स्लिप उतार देती है। अब वो सिर्फ पेंटी में थी। आशका की नज़र सबसे पहेले उसकी पतली कमर पर पड़ती है फिर धीरे धीरे ऊपर होती हुई उसकी बाहें और फिर उसके छोटे छोटे नींबू जैसे स्तनो पर पड़ती है। उसे ऐसा लगता है की वो उसे चूम ले चूस ले निचोड़ ले। रति पूछती है क्या हुआ दी। आशका धरातल पर वापस आ जाती है। और सोचती है हे भगवान यह क्या हो गया है मुझे। मैं कहीं लेसबियन तो नहीं होती जा रही। फिर बोलती है "कुछ नहीं, तू भी कुछ कम नहीं है। अभी इस उम्र में यह हाल है तो सोच बड़ी हो कर तो तू कितने लड़को को घायल करेगी"

रति: दी मुझे वैसे बहुत सारे लड़को में इंटरेस्ट नहीं है। सिर्फ एक में है। (बोल कर शर्मा जाती है)
आशका: अरे वाह कौन है वो खुश नसीब।
रति: वक़्त आने पर बताऊँगी।
आशका: ठीक है।
आशका उसे देखती है और सोचती है की कितनी खूबसूरत है रति। उसके काले बाल कंधे पर खेल रहे थे। उसकी ब्राउन आँखें जिन में उसने हल्का सा काजल डाला था जो शरम से झुकी हुई थी। उसकी हल्की गुदाज कूल्हे। आशका की साँसे तेज़ हो जाती है। रति पूछती है।
रति: दीदी क्या देख रही हो?
आशका: तुम्हें और तुम्हारी इस कातिल रूप को।
रति फिर से शर्मा जाती है। बोलती है दीदी ड्रेस पहेनाओ न। आशका उसे घूमने को कहेती है। जैसे ही रति घूमती है आशका अपनी उंगलिया रति की नंगी पीठ पर रख कर धीरे धीरे नीचे की और ले जाती है और उसकी गरदन पर अपने होंठ रख देती है। रति आशका की इस हरकत से चौंक जाती है। औद आशका की तरफ घूम जाती है।
आशका: आई एम सॉरी। पता नहीं मुझे क्या हो गया। मैं अपने आप पर काबू नहीं रख पायी।
रति: इस में सॉरी वाली कोई बात नहीं है।
और आगे बढ़ कर आशका के होंटो पर अपने होंठ रख देती है। और अपनी जीभ से आशका का मूह खोल कर उसकी जीभ को चूसने लगती है। दोनों एक दूसरे को ऐसे चूम रहे थे की जैसे खा जाएँगे एक दूसरे को। थोड़ी देर बाद दोनों अलग होते है और हाँफते हाँफते एक दूसरे को देख कर मुसकुराते है।आशका: मैंने पहेले तो नोटिस नहीं किया पर आज जब तुम्हें ऐसे देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पायी। मुझे बस तुम्हारे यह बूब्स चूसने है और तुम्हारी सेक्सी एस और पुस्सी चटनी है।
रति आशका की आंखो में देख कर बोलती है आप से खेल साली रंडी।

आशका उसे ऐसा बोलते देख कर चौंक जाती है। पर देखती है रति ने गुस्से से नहीं किसी और ही अंदाज़ में यह बात काही थी। वो नीचे बैठ जाती है अपने पैर चौड़े करती है और अपनी नंगी चुत के दर्शन रति को करवाती है। एक उंगली को मूह में डाल कर गीली करती है और धीरे धीरी अपनी चुत के ऊपर रगड़ ने लगती है। उसे बहुत अच्छा लगता है अपनी चुत रगड़ कर। एक आह निकाल जाती है आशका के मूह से। उसकी इस हरकत से रति भी होर्नी होने लगती है। और अपने स्तनो को पकड़ कर मसलने लगती है। वो नीचे झुकती है और अपना सर आशका की चुत के पास ले जाती है और एक ज़ोर की सांस लेती है। "म्म आ आहह आप की पुस्सी की स्मेल बहुत अच्छी है दीदी। फिर वो अपने हाथों से आशका की छोटी सी कुँवारी अनछुई चुत को छूती है। यह पहेली बार किसी ने छुआ था आशका की चुत को। आशका कए मूह से आह निकाल जाती है। रति अपनी उंगली उसकी चुत पर गोल गोल घुमाने लगती है। थोड़ी सी अंदर डाल कर देखती है तो आशका की आंखे बाहर आ जाती है। वो माना करती है ऐसा करने को। तो रति अपना मूह चुत के आगे लेजा कर उसे चूम लेती है।

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Re: अनाड़ी खिलाड़ी

Post by Jemsbond »

आशका: साली रांड तुझे मेरी चुत का टेस्ट पसंद है न? जब मैं अपनी चुत से तेरा मूह चोदूँगी तब कैसा लगेगा तूझे?

आशका को खुद को शोक लगा की वो कैसे बाजारू औरत के जैसे बात कर रही है। लेकिन वो अभी अपने आप में नहीं थी। जैसे कोई और उस पर कंट्रोल कर रहा है और उसे ऐसे बोलने पर मजबूर कर रहा हो ऐसा महसूस कर रही थी।

रति उसकी चुत को ऊपर ही ऊपर से चूसे जा रही थी। उसने चूसते चूसते ही ऊपर की और देख कर आशका को एक सेक्सी स्माइल दी। उसे ऐसे देखता देख कर आशका से रहा नहीं गया और बोली और ज़ोर से चूस कुतिया। रति ने चूसते चूसते अपनी एक उंगली ली और आशका की गुदा के छेद को कुरेदने लगी। आशका तो जैसे जन्नत में थी। उसकी आंखे बंद हो गयी थी और वो इस स्वर्गीय आनंद को अपने अंदर समेत रही थी। रति ने अचानक अपनी उंगली उसकी गांड में डाल दी। आशका को इसकी उम्मीद नहीं थी और नाही उसका शरीर इस के लिए तैयार था। वो ज़ोर से चिल्लाई और उसकी चुत ने रस छोडना शुरू कर दिया। रति उसका सारा रस चाटने लगी और बोली दीदी कैसा लगा आप को?

आशका : देट वास अमेजिंग तुमको यह सब कैसे आता है? तुम तो किसी लड़के को पसंद करती हो फिर यह क्या था?
रति: दीदी यह सब मेरी एक फ्रेंड की देन है। उसके घर पे ब्लू फिल्म देख देख कर सीखा है यह सब। चलिये अब तैयार होते हैं वरना देरी हो जाएगी पार्टी में।
आशका : हाँ पर पहेले नहाना पड़ेगा। और कुछ और निपटाना है बोल कर अपनी चुत और बगल के बाल दिखाती है।
रति: ठीक है। मैं भी नहा लेती हूँ।
दोनों नहा के रैडि हो जाती है और अपने कमरे को लोक कर के बाहर आती है तो मन्मथ को अपने कमरे के बाहर आता देखती है।

मन्मथ दोनों को देख कर अपनी नजरे झुका लेता है। लेकिन आशका बोलती है "ओए आइन्स्टाइन शर्मा ने की ज़रूरत नहीं है। हो जाता है ऐसा कभी कभी।"

मन्मथ नॉर्मल हो जाता है उसकी यह बात सुन कर। और तीनों बाहर आते हैं। देखते हैं तो मेहमान आने शुरू हो गए थे।

मन्मथ को आते देख कर सब लोगो ने उस का अभिवादन किया. मन्मथ ने उन सब का शुक्रिया अदा कर के एक कोने मे जा के खडा हो गया एक कोल्डद्रिंक के साथ. रति और आशका भी अपनी दूसरी सहेलियों के साथ मसरूफ़ हो गयी। सब लोग अपनी अपनी मस्ती में मस्त थे। पार्टी में बहुत बड़े बड़े लोग आए थे। मन्मथ के पापा ने उसको बुलाया और सब के साथ उसका परिचय करवाने लगे।

अभिमन्युसिंह : मन्मथ यह है मिस्टर शाह। यह हमारे नए कन्स्ट्रकशन बिज़नस के पार्टनर है। और यह है उनकी बेटी मनीषा।
मन्मथ: हैलो अंकल
शाह: हैलो बेटा। कोंगरेट्स इतना बढ़िया रिज़ल्ट लाने पर।
मन्मथ: शुक्रया।
शाह: आगे क्या सोचा है?
मन्मथ: इंजीन्यरिंग करने के बाद एमबीए करने की सोच रहा हूँ ताकि आगे पापा के बिज़नस में हेल्पफूल हो पाऊँ।
शाह: वेरी गुड। अभी तुम्हारा बेटा तो बहुत समझदार है। अभी से पापा को हेल्प करने की सोच रहा है।
अभिमन्युसिंह: आखिर बेटा किसका है।
मन्मथ अपनी तारीफ सुन कर थोड़ा शर्मा जाता है। उसे ऐसे शरमाता देख कर मनीषा मुस्कुराने लगती है। उन सब को ऐसे मुसकुराता देख कर मन्मथ बहाना कर के वापस एक कोने में जा के खड़ा हो जाता है। मनीषा भी मन्मथ की हम उम्र थी। वो भी इसी साल कॉलेज जॉइन करने वाली थी। उसने देखा मन्मथ अकेला खड़ा है तो वो उसकी तरफ बढ्ने लगी। मन्मथ ने उसको अपने तरफ आते हुए देखा तो वो फ़ीर से असहज होने लगा। मनीषा ने एक छोटी सी ब्लू कलर की सन ड्रेस पहेनि हुई थी जो की मुश्किल से उसके घुटने तक पहुँच रही थी। यह ड्रेस एक पतली सी डोरी से उसके रेशमी कंधे पर लटक रही थी। उसने हाइ हील्स पहेने हुए थी जिस में वो पूरी सिड़क्टिव लग रही थी।

मनीषा: हाई मन्मथ।
मन्मथ: हैलो।
मनीषा: क्यों अकेले खड़े हो? कोई फ्रेंड नहीं है क्या तुम्हारा?
मन्मथ: न न नहीं।
मनीषा: मुझ से फ्रेंड्शिप करोगे? (बोल कर फिर से मुस्कुरा देती है और अपना हाथ आगे बढ़ा देती है)
मन्मथ अपनी नजरे उठाता है और उसके मुसकुराता देख कर वो भी थोड़ी नर्वस मुस्कुराहट के साथ शेक हेंड करता है और कहता है "क्यों नहीं।"
मनीषा : यह हुई ना बात। (बोल कर उसके पास आ कर गालों पर एक छोटा सा कीस कर देती है।)
मन्मथ चौंक जाता है ऐसी हरकत से और सवालिया नजरों से उसकी तरफ देखता है।
मनीषा: फ्रेंडशिप की गिफ्ट। अब मेरा गिफ्ट दो।
मन्मथ भी उसके पास जाकर गालों पर किस करने जा ही रहा होता है की पीछे से आवाज़ आती है। "हाई आइन्स्टाइन यह क्या हो रहा हाई?”
मन्मथ और मनीषा दोनों देखते हैं तो आशका और रति दिखाई देते हैं। रति का चेहरा गुस्से से बिलकुल लाल था। और आशका भी थोड़ी नाराज़ लग रही थी।
मन्मथ: क क कुछ नहीं मैं तो बस...बोल कर चुप हो जाता हाई।
आशका: हमारा इंटरों नहीं करवाओगे?
मन्मथ: यह हैं मनीषा पापा के कन्स्ट्रकशन बिज़नस पार्टनर की बेटी। और मनी यह है मेरी बहन आशका और उसकी फ्रेंड रति।
मनीषा: हाई गल्स
दोनों उसको हाई किया। रति मनीषा को ऐसे घूर रही थी की जैसे उसे खा ही जाएगी।
रति (गुस्से में): वैसे यहाँ हो क्या रहा था?
मनीषा: मन्मथ मुझे फ्रेंडशिप गिफ्ट रिटर्न कर रहा था। (उसने मन्मथ का गाल दिखाया जिस पर उसकी लिपस्टिक का मार्क हो गया था।)
रति (मन्मथ की और घूम कर): कभी हम से भी फ्रेंडशिप कर लो ऐसी।
आशका रति की और देखती है और उसका गुस्सा देख कर सब समझ जाती है। लेकिन वो कन्फ़र्म करना चाहती है।
आशका: ओके गायज एंजॉय यौरसेल्फ। (बोल कर रति को खींच कर ले जाती है)
रति बे मन से उसके साथ जाती है।
आशका: ओएहोए बहुत जलन हो रही है। कितना धुआँ उठ रहा है तेरी गांद से देखो तो सही।
रति: मुझे गुस्सा मत दिलाओ। मैं वैसे भी अभी किसी मूड में नहीं हूँ।
आशका: तो तुम मेरे भाई से प्यार करती हो है न?
रति: हाँ। पर वो तो उस छिपकली से चिपक कर बैठा है। (उसकी आंखो से पानी निकलने लगता है)
आशका उसको बाहों में लेती है और कहेती है "अरे चील् मार। पार्टी में ऐसा होता है। वैसे भी मन्मथ है ही इतना हैंडसम की कोई भी लड़की उसके नजदीक जाना चाहेगी। उसने तो फ्रेंडशीप की है तुमउन्ध जल्द ही अपने प्यार का इज़हार कर लो कहीं देर न हो जाए। "
रति को भी यह बात ठीक लगती है। और वो मूड कर देखती है तो मन्मथ और मनीषा दोनों ही नहीं दिखाई दे रहे थे। उसकी आंखे मन्मथ को ढूंढ रही थी। उसे ना देख कर वो फिर से उदास हो गयी।
उन दोनों के जाते ही मनीषा मन्मथ को पार्टी से बाहर गार्डेन में ले आई थी। गार्डेन के बीचोबीच एक गजेबों बना हुआ था जिस में एक आराम दायक सोफा सेट और ट्पोय पड़ी हुई थी। दोनों जा कर सोफा पर बैठ जाते है
मनीषा: तुम बैठो, मैं कुछ खाने पीने का ले कर आती हूँ। (वो कुछ लेने चली जाती है)
थोड़ी देर बाद वो एक वेटर के साथ कुछ प्लेट में खाना और कुछ ड्रिंक्स ले कर आती है। एक ग्लास वो मन्मथ को देती है और एक खुद लेती है। ग्लास लेने के बाद मन्मथ पूछता है ये क्या है?
मनीषा: वाइन। ट्राय कर के देखो। (ग्लास उठा कर ) हमारी नयी दोस्ती के नाम चीयर्स
मन्मथ: मैंने कभी ट्राय नहीं किया... पर लेट्स चीयर्स
मनीषा: नर्वस लग रहे हो। पहेले कभी लड़की से बात नहीं की क्या? (बोल कर खिलखिला कर हास देती है)
मन्मथ थोड़ा झेंप जाता है। और बोलता है "ऐसी कोई बात नहीं। यह ड्रिंक में पहेली बार कर रहा हूँ इसलिए लिए। यह सब कैसे करते हैं मुझे नहीं पता।"
मनीषा: हा हा नौसिखिया। पहेले छोटा सा सिप लो और बातें करते रहो। कुछ खा भी सकते हो ताकि नशा जल्दी ना हो।
मन्मथ: अभी तक तो मुझे नशा नहीं हो रहा।
मनीषा: थोड़ी देर बाद वो भी हो जाएगा
ग्लास टेबल पर रख कर मन्मथ के नजदीक जाती है) और उसके होंठो के करीब अपने गुलाबी होंठ ले जाती है और धीरे से बोलती है॥ "मेरा रिटर्न गिफ्ट?”
मन्मथ उसको करीब आते देख कर होश खोने लगता है उसके हाथ काँपने लगते है और ग्लास में से थोड़ी वाइन गिर जाती है। मनीषा उसके हाथ पकड़ लेती है और अपने होंठ मन्मथ के होंठो पर रख देती है। मन्मथ इस हरकत से थोड़ा घबरा जाता है। और अपना सर दूर कर लेता है। मनीषा उसको देख कर एक कामुक स्माइल देती है। और फिर से उसको किस करती है। मन्मथ इस बार उसको नहीं रोकता और किस एंजॉय करने की कोशिश करता है। कुछ देर तक किस करने के बाद दोनों और करीब आ जाते है। मनीषा मन्मथ के हाथ से ग्लास लेकर टेबल पर रख देती है और उस से चिपक कर बैठ जाती है। फिर से मन्मथ को किस करना स्टार्ट कर देती है पर इस्स बार का जुनून कुछ और ही था। उस कीस में एक वहशीपन था। किसी जंगली बिल्ली की तरह वो मन्मथ के होंठ चूस रही थी। मन्मथ किसी अनाड़ी की तरह उसे सब कुछ करने दे रहा था। मनीषा ने मन्मथ के निचले होंठ को अपने दोनों होंठो के बीच ले कर चूसना शरु किया और मन्मथ की आंखे बंद हो गयी। मन्मथ को अब इस किसिंग में मज़ा आ रहा था और उसके लंड ने हरकत करना शुरू कर दिया था। थोड़ी ही देर में वो अपने पूरे उफान पर था और उसकी पेंट फाड़ कर बाहर आने को बेकरार था। मनीषा भी जोश में थी और उसकी चुत में गीली होने लगी थी। मनीषा अपना हाथा धीरे से मन्मथ के लंड पर रख देती है जो की पत्थर की तरह सख्त हो गया था। उसके लंड को देख कर बोलती है "तुम्हारे छोटे भाई को पसंद आ रहा है यह सब" मन्मथ मुस्कुरा देता है और अपना हाथ मनीषा के स्तनो पर रख देता है। जो की उत्तेजना से सख्त हो गए थे और उसके निपप्ले किसी तीर की तरह ड्रेस में से बाहर झांक रहे थे।
मन्मथ ने मनीषा को लिटा दिया और उसके स्तन धीरे धीरे दबाने लगा। मनीषा ने कहा "यह जगह सही नहीं है। कोई भी देख लेगा" मन्मथ कुछ नहीं कहेता और खड़ा हो कर कोने में जा कर स्विच बोर्ड पर एक बटन दबा देता है। गजेबों के चारो और एक पर्दा गिर जाता है। "लो अब कोई बाहर से नहीं देख पाएगा" मनीषा खुश हो जाती है। वो वैसे भी मन्मथ को देखते ही उसे पसंद करने लगी थी।

मन्मथ के साथ कीस करने से ही उसकी चुत गीली हो गयी थी और मन्मथ का सख़्त लंड पेंट पर से महसूस करने के बाद से ही उसे अपने अंदर लेने की चाहत और बुलंद हो गयी थी। उसने मन्मथ को मुसुरते हुए अपनी दोनों बाहें फैला कर अपनी और आने का इशारा किया। मन्मथ उसकी रेशमी बाहें देखता रहेता है, उसकी सिल्की आर्मपिट्स गजब लग रही थी। वो धीरे धीरे मनीषा के पास जाता है और उसे काउच पर पूरी तरह लिटा देता है। दोनों एक दूसरे को देखने लगते हैं। आस पास की दुनिया से बेखबर। मन्मथ अपने हाथ मनीषा की जांघों पर रख देता है जो की उसकी ड्रेस ऊपर होने से धीमी धीमी रोशनी में चमक रही थी। दूसरा हाथ वो एक स्तन पर रख कर धीरे से दबा देता है। मनीषा की हल्की सी आह निकाल जाती है। वो अपना निचला होंट दाँतो तले दबा लेती है। मन्मथ अपना हाथ धीरे से नीचे ले जाता है और घुटनो के पीछे वाले भाग पर अपनी उँगलियाँ फिरने लगता है। और अपना होंट उसकी खुली जांघ पर रख देता है। मनीषा इस दोहरे प्रहार से उत्तेजित हो जाती है और अपने हाथ पीछे ले जाकर काउच के हैंडल पकड़ लेती है। और मस्ती में बलखाने लगती है। मन्मथ अपने होंठो से धीरे धीरे उसकी जांघ चूसम रहा था वहाँ से धीरे धीरे उसके पाँव की और बढ्ने लगा। मनीषा जोरों से सिसकरिया ले रही थी। जिस की आवाज़ सून कर मन्मथ ऊपर देखता है तो वहाँ का नज़ारा देखता ही रहेता है। मनीषा के दोनों हाथ ऊपर थे और वो मस्ती में आँख बांध कर के सिसकारीयआ ले रही थी। मन्मथ की नज़र उसकी बिना बालो वाली बगल पर पड़ती है। उसने जब से अपनी बहन की हल्के बालो वाली आर्म पीट देखि थी तब से उसे लड़कियों की बगल देखना अच्छा लग रहा था। वो अपना ध्यान नीचे से छोड़ कर ऊपर की और आता है और उसकी आर्म पीट को सूँघता है। उसमे से उसे पर्फ्यूम और देव की मदमस्त करने वाली खुशबू आती है। वो उसकी आर्म पीट पर किस करता है और उसे अपनी जुबान से चाटने लगता है। उसे ऐसा करते देखा कर मनीषा और ज़ोर से चिल्लाती है। "आ आ आ आह ऐसे हो चाटो मेरे राजा"

तभी एक जोरदार धमाका होता है और लाइट चली जाती है।
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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