incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें complete

Post Reply
dil1857
Novice User
Posts: 224
Joined: 19 Jul 2015 13:51

Re: incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें

Post by dil1857 »

हेलो दोस्तो
मेरे को पता चला है की जोनपुर भाई को RSS पर बॅन किया गया है
बिना किसी कारण से हम अडमिनिस्ट्रेसन से रिक्वेस्ट करते है की जोनपुर भाई पर से ब्लॉक हटाया जाए
dil1857
[/size]
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें

Post by Sexi Rebel »

ज़िंदगी वापस उसी तरह चलने लगी. इस बार मैने फसल बीजकर मुर्गियों की ओर ध्यान देना सुरू किया. जिस हिसाब से गोश्त का रेट चल रहा था मेरे लिए वो मुनाफ़े का बड़ा सौदा था. मैने भगवान से किसी अनहोनी से बचाने की प्रार्थना की. फसलों में अभी कम काम होता था. दोपहर तक मैं फसलों को देखता और दोपेहर बाद मुर्गिफार्म को. पशुओं का काम बहुत कम था. बेहन से मिलने के बाद अब मुझे मंज़िल पर पहुँचने की और भी जल्दबाज़ी हो गयी थी. मैं अब पूरा हिसाब रखने लगा कि मुझे किस काम से कितना मुनाफ़ा मिल रहा है, किसमे कितनी मेहनत लग रही है. हर बात का ख़याल रख रहा था. बस एक ही डर रहता था वो था मौसम के मिज़ाज का. बारिश का समय पर होना और सही अनुपात में होना बहुत ज़रूरी था. बोरबेल से फसलें बीजी जा सकती थी मगर पाली नही जा सकती थी. इतनी ज़मीन पर दो बोरबेल नाकाफ़ी थे, मैं बहुत हद तक अभी भी बारिश पर निर्भर था.

सब्जियों और दूध के अलावा दुकान की कमाई से काफ़ी बचत होने लगी थी. इस बार की फसल के बाद मुझे उम्मीद थी कि तस्वीर सॉफ हो जाएगी कि मुझे अभी बेहन से कितना समय और दूर रहना था.

इस सीज़न में मेरी किस्मत ने मेरा साथ भी दिया और नही भी दिया. जहाँ मुर्गियों से मुझे मेरी उम्मीद से भी कहीं ज़यादा मुनाफ़ा हुआ था वहीं मकयि की तैयार फसल पर भारी बारिश होने से बहुत नुकसान हुआ. हालाँकि पूरी फसल बर्बाद नही हुई थी मगर फिर भी मकयि की लगभग एक तिहाई फसल बेकार हो गयी थी. दाने काले पड़ गये थे और उन्हे कोई फ्री में भी खरीदने वाला नही था मगर एक अच्छी बात यह थी उस बारिश से धान की फसल की पैदावार अच्छी हो गयी थी क्यॉंके धन को अंत तक खूब पानी की ज़रूरत होती है. मकाई की खराब फसल मैने मुर्गियों को डालने के लिए रख छोड़ी मगर वो फसल बहुत ज़यादा थी. जब भी मेरी नज़र उस पर पड़ती तो मन उदास हो जाता. मैं भगवान से रार्थना करने लगता एसा नुकसान दोबारा ना हो.

उस दिन मैं पूरी ज़मीन पर फसल विजने का काम निपटा कर खाली हुआ ही था जब माँ दोपेहर का खाना लेकर आई. मैने ट्रॅक्टर वाले का हिसाब चुकता किया और फिर माँ के साथ खाना खाने लगा. हम मुनाफ़े को लेकर बाते कर रहे थे और मैने माँ को बताया कि सबसे ज़्यादा फ़ायदा मुर्गियों से हुआ है, तब माँ ने मुझे एक ऐसा सुझाव दिया जो खुद मेरे दिमाग़ मे नही आया था.

"क्यों ना तुम कुछ पेड़ों की लकड़ी से एक और शेड तैयार कर लो. हम और मुर्गियाँ डाल लेते हैं. दुकान बंद करके मैं भी तुम्हारे साथ आ जाती हूँ. क्यॉंके अब मुझे भी लगने लगा है कि दुकान में मेहनत ज़यादा है और कमाई कॅम. माँ की बात सही थी. हम अपने टीले पर कुछ पेड़ गिरा कर एक शेड डाल सकते थी और मकयि की बेकार फसल भी काम आ सकती थी. सहसा इस सुझाव से मेरा दिल हिल उठा. बड़े दिनो बाद मेने अपने अंदर खुशी और आतमविश्वास की नयी लहर दौड़ती महसूस की. हालाँकि मुर्गियों में रिस्क बहुत ज़यादा होता है मगर कमाई देखकर मैं यह रिस्क उठाने को तैयार था. इस बार फसल बेचने के बाद जब मैं बेहन से मिलने गया तो उसने भी मेरा खुल कर अनुमोदन किया. मैं सहर से लौटा तो अगले ही दिन से एक आस्थाई मुर्गिफार्म की तैयारी सुरू कर दी. टीले से कुछ पेड़ मैने उखाड़ दिए और कुछ को मैने ज़मीन से नहीं बल्कि शेड की उँचाई से काटा. अब उनकी जड़ सही सलामत होने से शेड को अच्छी ख़ासी मज़बूती मिल गयी थी. ढाँचा तैयार कर मैने मकई के सूखे पोधो, झाड़ झांकड़, और बड़े पोलिथीन की तीन परतें लगा कर अपनी शेड तैयार कर ली. एक महीने की उस कमर तोड़ मेहनत का फल मेरे सामने था.

जैसा हम ने पहले सोचा था उसके विपरीत माँ ने सिर्फ़ सुबह को दुकान खोलने का फ़ैसला किया. हालाँकि गाँव वाले बेहद नाराज़ थे मगर हम उनके लिए उससे ज़्यादा कुछ नही कर सकते थे. ताज़ी सब्ज़ियों और दूध के कारण वो और सामान भी हमारी दुकान से ही खरीदते थे. माँ हर सुबह चार घंटे दुकान खोलती और फिर खाना लेकर खेतों को आ जाती. दुकान सिरफ़ चार घंटे के लिए खोलने के कारण वहाँ बहुत रश होता था. मगर माँ कभी शिकायत नही करती थी. वो भी पूरा दमखम लगा कर काम में मेरी मदद करती.

शेड में मुर्गियाँ पल रही थीं और मेरी मकयि की बेकार फसल भी काम आ गयी थी. और इस बार बारिश के सही आसार लग रहे थे. उम्मीद थी इस बार अगर सब सही रहा तो मैं अपने लक्ष्य के बेहद करीब पहुँच जाने वाला था.

ऐसे ही टीले पर दोपेहर को खड़ा मैं माँ के आने का इंतज़ार कर रहा था. सामने लहलहाती फसल थी. मुझे बेहन की बहुत याद आ रही थी, काश वो उस समय वहाँ होती और देखती किस तरह हमारी ज़मीन का कोना कोना सोना उगल रहा था. मैं फसलों के बीच से घूमता हुआ इधर उधर खेतों में ऐसे ही भटकने लगा. तभी माँ की आवाज़ कानो में पड़ी. मैने देखा वो टीले पर खड़ी मुझे खाने के लिए पुकार रही थी. मगर मेरा दिल नही कर रहा था वहाँ से जाने का; सफलता का भी एक अलग ही मद होता है जो इंसान को बहुत आनंद देता है. मैं वैसे ही वहाँ कुछ समय खड़ा रहा और और सर जितनी उँची फसल के पोधो को छू छू कर देखता रहा. माँ भी वहीं आ गयी. वो मेरे चेहरे को देखकर ही भाँप गयी कि मैं आज अपनी मेहनत के फल को देखकर खुश हो रहा था. वो मेरे बराबर आ गयी. मैं एक पोधे के हरे पत्तों को अपने हाथों से सहला रहा था, आज मुझे महसूस हो रहा था कि मंज़िल अब वाकई करीब ही है. माँ ने मेरी पीठ पर हाथ रखा और धीरे से बोली "तुम असली मर्द हो, तुमने जितनी मेहनत की है और हमारी तकदीर बदली है वैसा इस गाँव में कोई नही कर सका, कोई भी नही"

"क्या तुम सच में मुझे असली मर्द मानती हो?" मैने माँ की आँखो में आँखे डालते पूछा.

"मैं क्या पूरा गाँव मानता है, तुमने साबित कर के दिखाया है!" माँ के लहज़े में अपने बेटे के लिए अभिमान था, गर्व था.

"मर्द सिरफ़ काम करने और पैसा कमाने से नही बनते!" मैने माँ की आँखो में झाँकते हुए कहा.

"क्या मतलब?" माँ थोड़ा हैरत से बोली.

"मतलब यह कि मर्द का एक और काम भी होता है अपनी औरतों को खुश रखने का" कहकर मैने अपना हाथ माँ के कंधे पर रखा और उसका आँचल पकड़ उसकी छाती से हटाने लगा. माँ इस अचानक हमले से थोड़ा घबरा सी उठी.

"ये तुम क्या कर रहे हो! आज अचानक ये तुम्हारे दिमाग़ में......."

माँ ने मुझे रोकना चाहा मगर मैने माँ का हाथ हटा दिया और उसका आँचल को पकड़ नीचे गिरकर चोली में कसे उसके भारी मम्मों को नुमाया कर दिया. "एकदम से नही माँ...मेरा बस चले तो मैं तुम्हे हर दिन प्यार करूँ...पर तुम जानती हो मैने पिछले दो सालों से कैसी जिंदगी जी है. मैं बस अपने लक्ष्य से भटकना नही चाहता था नही तो मैं तो रात रात भर तुमसे प्यार करता" माँ मेरी बात से ज़्यादा संतुष्ट नज़र नही आ रही थी, उसे कुछ संदेह था मगर मैने कोई ध्यान ना दिया और उसकी चोली के उपर से उसके मम्मों को अपने हाथों मे तोलने लगा.

"मैं तो भूल ही गया था ये कितने बड़े बड़े और कितने सख़्त हैं"
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें

Post by Sexi Rebel »

साड़ी के मोटे आँचल के उपर से मालूम नही चलता था मगर जैसे ही मैने आँचल हटाया तो देखा कि उसके मोटे मोटे सख़्त मम्मे उसकी चोली को फाड़ने को आतुर थे. मैने उन पर प्यार से हाथ फेरा. माँ अभी भी मुझे बड़ी अजीब सी नज़रों से देख रही थी. शायद इस अचानक हमले से सकते मे आ गयी थी. मैने चेहरा नीचे कर चोली के उपर से उसके मम्मों को अपने होंठो से सहलाया. बड़े प्यार से धीरे धीरे मैं उसके मम्मों पर हल्के हल्के चुंबनो की बरसात करने लगा. कुछ देर बाद जब मैने चेहरा उपर उठाया तो देखा माँ अपने होंठ भींच रही थी, उसके चेहरे का रंग थोड़ा थोड़ा लाल होने लगा था और उसकी चोली पर से दोनो मम्मों के निपल अपनी मोजूदगी का एहसास करवाने लगे थे. दिल तो मेरा बहुत था कि अभी उन्हे ऐसे ही प्यार से दुलारू, सहलाऊ मगर एक साल से उपर हो गया था मुझे चुदाई किए हुए. जब तक मन में चुदाई को लेकर कोई विचार नही आया था तब तक मुझे सेक्स की कोई इच्छा महसूस नही हुई थी मगर आज माँ का आँचल हटते जैसे ही मेरी नज़र उसके मॅमन पर गयी तो मेरा लंड पेंट में दुहाई देने लगा. एक साल की दबी हुई भावनाएँ जैसे समुंदर में तूफान बनकर सामने आ गयी. आज माँ की खैर नही थी.

मैने माँ के कंधे पर हाथ रख उसे पीछे की ओर घुमाया तो वो बिना किसी हील हुज्जत के घूम गयी. वैसे भी उसकी तेज़ तेज़ साँसे मुझे बता रही थी वो इस समय किस हालत में है. मैने चोली के पीछे लगी हुक खोल दी और साथ ही उसकी ब्रा की हुक भी. पीछे से माँ से चिपटता हुआ मैं उसकी चोली और ब्रा उतारने लगा तो माँ ने बाहें सीधी कर मेरी मदद की. माँ अब कमर के ऊपर से नंगी खड़ी थी. मैं माँ से पूरी तरह चिपक गया और अपने हाथ उसके फूल से नरम मगर पत्थर की तरह सख़्त मम्मों पर रख दिए. इधर मेरे हाथ उनपर कसे उधर माँ के मुँह से सिसकी निकल गयी. मेरी उत्तेजना अपनी हद की ओर अग्रसर होने लगी और शायद माँ की भी. मेरे हाथ उसके मम्मों को आटे की तरह गुंधने लगे, कभी मैं पीछे से उसके निपलों को अपनी अंगुलियों के बीच लेकर मसलता. माँ अपने हाथ मेरे हाथों पर रखकर कभी मेरे हाथों को दबाती तो कभी उनको रोकने की कोशिश करती. माँ अब उँची उँची सिसक रही थी, उसका बदन भी हल्का हल्का कांप रहा था. खुद मेरा बहुत बुरा हाल था. मैने फिर से माँ को अपनी ओर घुमाया. इस बार जब वो घूमी तो मेरी पहली नज़र उसके चेहरे पर पड़ी जो वासना और उत्तेजना से लाल हो गया था. उसके होंठ खुले हुए थे. आँखो से मदहोशी झलक रही थी. साँस धोन्कनि की तरह चल रही थी. प्यासी वो भी बहुत थी. आग दोनो तरफ बराबर लगी हुई थी.
Post Reply