incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें complete

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Sexi Rebel
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Re: incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें

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शुरू-शुरू मे हमे वहाँ बहुत अजीब सा महसूस होता. उस मोहल्ले में सब लोग अलग अलग दिशाओं से आए थे. वहाँ की हवा में कुछ परायापन महसूस होता था. हम अपने गाँव की उस अपनेपन की गर्माहट के लिए तरसते. हालांके मैं और बहन एक दूसरे में और अपने कामो में इतने व्यसत थे कि हमारा इस ओर ध्यान उतना नही जाता. मगर माँ? माँ के लिए यक़ीनन वो बहुत मुश्किल रहा होगा. लेकिन माँ भी माँ थी, वो कभी किसी परेशानी या व्यथा का जिकर ना करती बल्कि जब भी हम उससे पूछते कि उसे वहाँ किसी बात की तकलीफ़ तो नही है तो वो हंस कर टाल देती और कहती कि उसकी खुशी इसी बात में है कि उसके बच्चे खुश हैं.


जब मैं माँ और बहन को लेकर अपने नये घर पहुँचा तो घर देखकर दोनो को बहुत खुशी हुई. दो मंज़िला घर इतना बड़ा और सुंदर था कि बहन की हुशी का ठिकाना ही ना रहा. मगर उसकी असली खुशी तो अभी बाकी थी जो मैं उसे हमारी शादी के उपहार में देने वाला था, जब मैं उसकी आँखो पर हाथ रखे उसे सड़क पर हमारे घर के दूसरे कोने की तरफ लेकर गया और उसकी आँखो से हाथ हटाया तो सामने एक दुकान थी जिस पर एक नया और बड़ा सा बोर्ड था जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में उसका नाम लिखा था और साथ में लिखा था 'ब्यूटी पार्लर'. मैं जानता था कि उसका शुरू से यही सपना था कि उसका अपना ब्यूटी पार्लर हो. बोर्ड को पढ़ उसकी आँखे भर आई, उसने मेरा हाथ ज़ोर से दबाया. अगर हम सड़क पर ना खड़े होते तो शायद वो मुझसे लिपट कर रो पड़ती. मगर जब मैने दुकान का शटर उठाया और उसने दुकान देखी तो उसने दाँतों तले उंगलियाँ दबा लीं. मैने इसीलिए एक रकम अलग निकालकर रखी थी यही सोचकर कि उसे एक अच्छा ब्यूटी पार्लर बनाकर दूँगा. दुकान में लगे शीशे और वुड पलाई वर्क से दुकान चमचमा रही थी. बहन के चेहरे पर वो खुशी थी जिसे देखने को मेरा दिल तरसा करता था,. वो उस तोहफे के लिए दिनो बल्कि महीनो तक मेरा शुक्रिया करती रही.


सहर में जाकर मैने और बहन ने पहले घर को अच्छे से व्यवस्थित किया. जिस सेठ से मैने उसे खरीदा था उसने वहाँ की तमाम चीज़ें वैसे ही छोड़ दी थी सिवाय कुछ एक चीज़ों के. क्योंकि वो उस समान को परदेश नही ले जा सकता था चाहे वो कीमती ही था. घर का फर्निचर बहुत सुंदर था. मैने और बहन ने वहाँ पहुँचने के अगले दिन जब पूरे घर को खंगाला कि हमे क्या क्या खरीदना पड़ेगा तो यह देखकर हमारी खुशी का ठिकाना ना रहा कि हमारे इस्तेमाल की लगभग हर चीज़ मौजूद थी, बिल्कुल एक छोटी सी लिस्ट बनी थी जिन चीज़ों को हमे खरीदन पड़ता. उस लिस्ट में एक चीज़ थी जो घर में नही थी शायद सेठ ने बेच दी थी मगर जिसका बहन को बहुत शौक था वो था एक रंगीन टीवी जो उस ज़माने में गाँवो से नदारद ही थे.


बॉम्बे पहुँचने के तीन दिनो बाद एक पंडित को रिश्वत देकर मैने अपनी शादी का इंतज़ाम किया. बहन और मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना नही था मगर माँ थोड़ी खामोश थी. उसने बेटा बेटी की शादी के लिए नज़ाने कितने सपने संजोए होंगे जो हमारी उस गुपचुप शादी की वजह से टूट गये थे. लेकिन उस शाम तक शायद हमे इतना खुश देख माँ के चेहरे पर भी रौनक आ गयी थी.

पहली रात हम लगभग पूरी रात बातें करते रहे. बहन ने अपने तीन साल के बनवास के बारे मे खूब बातें की. शुरू मे वो हंस रही थी. वो अपने काम की, हॉस्टिल की और दुकान की मज़ेदार बातें सुनाती खूब हँसी. मगर फिर धीरे धीरे वो खुलने लगी, फिर वो बताने लगी कि उसने किस तरह एक एक पल सीने पर पत्थर रखकर काटा था. मेरे सीने पर सर रखे वो बता रही थी कि मेरी तरह वो भी कभी कभी कितना निराश और उदास हो जाया करती थी., कि कभी कभी उसे लगता कि वो सुनहरा सपना जो वो देख रही है शायद कभी पूरा नही होगा, कि कभी कभी अकेलेपन और तन्हाई से वो किस तरह सभी से चिप चिप कर रोया करती थी. मैं उसकी पीठ सहलाता उसकी बातें सुनता रहा. मुझे अपनी कमीज़ पर गीलेपन का अहसास हो रहा था, वो रो रही थी, उसकी बातों से नमी मेरी आँखो में भी आ गयी थी. रात लगभग आधे से ज़्यादा गुज़र चुकी थी और वो बोलते बोलते रुक गयी थी तब उसने सर उठाकर मेरी आँखो में देखा. कुछ देर वैसे ही देखने के बाद वो उपर को हुई और मेरी गर्दन में बाहें डाल मेरे आँखो में देखते उसने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए. वो चुंबन अंतहीन था. वो चुंबन वाकई अंतहीन था. वो मेरे होंठो को चूमती, मेरे चेहरे को चूमती जा रही थी. धीरे धीरे हमारी उत्तेजना और प्यार का मिलाप होता गया, हमारे बदन से कपड़े उतरते गये और हम आखिकार एकाकार हो गये. वो रात वाकई में कभी ना भूलने वाली रात थी. मेरे जिस्म के नीचे उसका मछली की भाँति तड़फता जिस्म, उसकी आहें, उसकी कराहें, उसकी सिसकियाँ सब कुछ नया था. कुछ भी पहले जैसा नही था. सिर्फ़ वो जिस्मानी सुख नही था, एक ऐसा सुख था जो हम अपनी रूहों में महसूस कर रहे थे. पहले हमेशा ऐसा लगता था कि हमारी प्यास बढ़ती जाती थी, जितना हम उस प्यास को बुझाने की कोशिश करते वो उतनी ही बढ़ती जाती. मगर इस बार ऐसा नही था. जब उस रात में बहन के अंदिर स्खलित हुआ तो मन में कोई प्यास बाकी नही थी. मैं पूरी तरह से तृप्त था. बहन की अधमुंदी आँखे, उसके अधखुले होंठ और स्खलन के बाद उसका मेरे सीने पर बेजान होकर ढेर हो जाना भी बता रहा था कि आज उसकी प्यास भी मिट गयी थी. उससे पहले हमारा मिलन सिर्फ़ जिस्मानी सुख के ये होता था मगर उस रात मैने महसूस किया कि हमारे प्यार की कितनी गहराई है. हमारे प्यार ने उस कांक्रीड़ा को हमारी रूहों के मिलाप में बदल दिया था कि हम अब दो नही रहे थे, हम आज एक हो गये

हम अपने नये आशियाने में दिन गुज़रने लगे. एक महीने तक तो मैं और बहन अपनी सफलता, अपने मिलन, अपनी शादी का जशन मनाते रहे. दिन रात हम अपने कमरे में घुसे रहते, एक दूसरे से दूर होने का मन ही नही होता था. माँ ने पहले पहले सबर किया मगर अंत में एक दिन जब उससे रहा ना गया तो उसने हमे खूब डांटा. वो ही थी जो हमारे पड़ोसियों से रिश्ते बनाने में लगी थी, घर का काम करती थी, खाना बनाती थी, हमारे पास इतनी फ़ुर्सत कहाँ थी कि हम किसी बात पर ध्यान देते.


खैर एक महीना गुज़र गया. मैं और बहन आने वाली जिंदगी की प्लॅनिंग करने लगे. सबसे पहले मैने और बहन ने उसके ब्यूटी पार्लर के लिए सामान करिदा और फिर उसको उसकी दुकान में व्यवस्थित किया. वो अपनी कमाई के पैसे खरच करना चाहती थी मगर मैने उसे मना कर दिया. वो रकम मैं संभाल कर रखना चाहता था ताकि कभी आपदा के समय इस्तेमाल कर सकूँ. एक बार जब बहन का ब्यूटी पार्लर सेट हो गया और उसने छोटी सी पूजा करके उसे सुरू कर दिया तो अब मुझे अपने काम के बारे में सोचना था. मैने मुर्गिफार्म की अच्छे से सफाई करवाई और उसके बाद चूज़ों की नयी खेप डालने लगा. पूरी शेड भरकर सारा काम निपटाकर देखा तो मेरे पास लगभग आधी रकम बच गई थी जो मैने हमारे गाँव के घर, दुकान और ज़मीन को बेच कर कमाई थी.


बहन का काम अच्छा चल निकला. उस एरिया मे उसकी दुकान के अलावा एक और दुकान थी जो काफ़ी दूर थी. जल्द ही उसकी दुकान में रश रहने लगा. वो अपने हुनर की पूरी माहिर थी, सूरत में तीन साल की उसकी मेहनत रंग दिखा रही थी. वो पूरा दिन व्यस्त रहने लगी. उसका काम काफ़ी बढ़ गया. उसकी सफलता से प्रभावित होकर और लड़कियाँ भी उसके पास आने लगी. साल गुज़रते गुज़रते उसकी दुकान में तीन लड़कियाँ काम करने लगी थी.


मेरे लिए अकेले इतने बड़े मुर्गिफार्म को संभालना नामुमकिन था. पहले मैने दो मज़दूर रखे. फिर एक दिन एक आदमी आया, उसने बताया कि वो उस मुर्गिफार्म पर काम करता था और उसने मुझसे काम माँगा. मैने बिना जीझक उसे काम पर रख लिया. एक दूसरे मज़दूर के बारे में बताया कि वो बिहार का था और सेठ के मुर्गिफार्म बंद करने के बाद वो वापस अपने गाँव लौट गया था. मेरे लिए उस मज़दूर का मिलना बहुत फ़ायदेमंद रहा. उसने कयि सालों से मुर्गिफार्म को संभाला था इसलिए उसे उन सब आधुनिक तौर तरीकों की मालूमात थी जिनसे मैं अंजान था. मुझे मालूम था मुझे अब पूरी होशियारी से समझ बुझ कर काम करना होगा अगर मुझे उस सहर में सफल होना था. खैर मैने उस नौकर से और आस पास से हर बारीकी सीखनी चालू करदी जो मुझे मेरे धंधे में मदद करती.


मेरा और बहन दोनो का काम अच्छा चल निकला. लेकिन जब मैने खर्च और आमदनी के अनुपात से हिसाब लगाया तो देखा कि बहन मुझसे काफ़ी आगे थी. मैने उससे कई गुना पैसे कमाए थे मगर जितना वो उस छोटी सी दुकान से घर बैठे कमा लेती थी उस हिसाब से मेरी आमदनी कुछ भी नही थी. खैर हमे किसी प्रकार का लालच नही था. हम अपनी रफ़्तार से बिल्कुल खुश थे. माँ घर का कामकाज देखती जिसमे बहन भी उसकी थोड़ी बहुत मदद करती. मैं दिन भर काम के बाद घर लौटता तो बहन मेरा इंतजार कर रही होती. हम सभी मिलकर एकसाथ खाना खाते, बातें करते, टीवी देखते. मगर एक बार जब मैं और बहन अपने कमरे में घुस जाते तो दुनिया, दुकान धंधा हमे सब भूल जाता. हमे रात बहुत छोटी जान पड़ती. दिन भर काम पर थकने के बाद भी हम आधी रात तक एक दूसरे को प्यार करते. एक दूसरे के बदन को चूमते, चाटते, चूस्ते, सहलाते, दुलारते पूरी रात गुज़ार देते. सुबह में हम दोनो अक्सर बहुत देर से उठते.


हालाँकि हमारी ज़िंदगी का हर दिन हर पल सुख से आनंद से भरा होता था मगर एक डर मुझे हर पल सताता रहता था. जाने क्यों एक अंजाना भय दिल में बैठ गया था कि कहीं कुछ हो ना जाए. हमने ज़िंदगी में इतने दुख देखे थे कि अब सुख से भी डर लगता था. लगता था जैसे यह एक सपना है कि अभी हमारी आँखे खुलेंगी और हम आने गाँव में वोही ज़िंदगी जी रहे होंगे. वो डर मेरा पीछा नही छोड़ता था. ऊपर से हमारा भाई बहन होने का राज़ उस मोहल्ले में खुलने का डर अलग से सताता था. मैं हमेशा अपना भय अपने अंदर छपाए रखता माँ और बहन को इसकी खबर ना होने देता. जब हम गाँव में थे, हम ग़रीब थे मगर हम निश्चिंत थे. कम से कम मैने तो कभी भविष्य को लेकर किसी प्रकार की कोई चिंता नही की थी. मगर अब सहर में मुझे यही ख़ौफ़ रहता कि अगर कल को कुछ होगया तो मैं किससे मदद माँगूंगा, किसके पास जाउन्गा, गाँव में अब हमारा कुछ नही था. वो डर दिल से निकलते निकलते काफ़ी समय लग गया, एक साल से भी उपर. जब मैने और बहन ने मेहनत से अच्छी ख़ासी रकम जोड़ ली तब जाकर मेरे दिल को थोड़ा सकुन रहने लगा कि अब हमारा भविष्य सुरक्षित है.


जब हमने गाँव छोड़ा था तो मैने यही सोचा था कि अब दोबारा हम गाँव नही आ पाएँगे. लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था. हमे दो साल बाद एक बार गाँव जाना पड़ा. हम तीनो हर रोज मंदिर जाते थे. वहीं मंदिर के पंडित ने बताया था कि मुझे अपने पिता का श्राद्ध करना चाहिए. मैने वहीं पंडित को पैसा देकर सब करने के लिए बोला तो उसने कहा क्योंकि हमने पहले कभी भी श्राद्ध नही किया है इसलिए पहले श्राद्ध के लिए हमे गाँव ही जाना पड़ेगा, बाद में अगर हम चाहे तो हम सहर में पूजा कर सकते थे. मैं अब दूबिधा में पड़ गया. एक तो बहन की गोद में उस समय हमारा चार महीनो का बेटा था दूसरा हम बहुत समय बाद गाँव की यादों को भुला पाए थे, अब वहाँ जाकर मैं फिर से उन यादों को ताज़ा नही करना चाहता था. मगर बहन और माँ ने दोनो ने भी वहाँ जाने की बात का समर्थन किया. अंत मैं मैने श्राद्ध के लिए हमारे गाँव वापस जाने का फ़ैसला किया.


असल में खुद मेरे मन में गाँव को एक बार फिर से देखने की ललक थी. अपने घर, अपनी भूमि को एक वार फिर से देखने की इच्छा उस पंडित की सलाह के बाद और भी ज़ोर पकड़ गयी थी. हालाँकि मेरी दूसरी बड़ी बहन डेविका जो हम से मिलने आती रहती थी हमे गाँव के बारे में बताती रहती थी मगर अपनी आँखो से वो सब कुछ देखना जो कभी हमारा था, यह एक ऐसी जिग्यासा थी जिसे मैं मिटा नही पाया था.


दो साल बाद जब हम गाँव के सामने पहुँचे तो हमारे दिलों की धड़कने बहुत तेज़ थी. मैं, माँ और बहन तीनो बहुत खुश थे. गाँव के बीचो बीच हमारी गाड़ी होती हुई जब हमारे पुराने घर के सामने रुकी तो एक बार तो हमारी आँखे ही भर आई.

माँ ने हमारी योजना अनुसार बहन की पिछले साल शादी का बहाना बनाया और लोगों को बताया कि उसका पति विदेश में काम करता है. घर वैसे का वैसा ही था. शोभा के बेटे ने उसे खरीदा था मगर उसमे अभी तक रहने नही गया था. मैने और बहन ने हर कमरे में घूम घूम कर देखा. बचपन से लेकर जवानी तक उस घर मे बिताए कुछ खास लम्हे कुछ खास घटनाएँ आँखो के सामने घूमने लगी. सुख दुख के वो दिन याद आने लगे. आज भी हमे वो घर अपना जान पड़ता था, जैसे वो हमारा इंतजार कर रहा था कि कब हम वहाँ आए और उसे फिर से आबाद का दें. जब हम उस कमरे में गये जहाँ मैने और बहन ने पहली बार सेक्स क्या था जब वो अपने बाल बना रही थी तो हम दोनो एक दूसरे को देख कर मुस्कराने लगे, ऐसा लगता था जैसे कल की ही बात है माँ और सोभा मिलकर बहुत रोई. उन दोनो की दोस्ती शायद गाँव में सबसे ज़्यादा मजबूत थी. वो भी बेचारी अकेली रहती थी.
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Re: incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें

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हमने गाँव के पंडित से पूजा सुरू करवाई. पूजा के ख़तम होने पर पंडित को दान दक्षिणा देकर और मंदिर में लोगों को भोजन करा कर जब हम फ्री हुए तो मैं बहन को लेकर खेतों को निकल गया. मेरा दिल उस सुबह से खेतों को देखने के लिए तरस रहा था. मैने ज़मीन चाहे बेच दी थी मगर दिल में वो अब भी मेरी ज़मीन थी. ज़मीन के जितना मैं नज़दीक जाता गया उतनी ही मेरी उत्सुकता बढ़ती गयी. मगर जल्द ही उस उत्सुकता ने दुख का रूप ले लिया. ज़मीन पर हर तरफ पेड़ बीजे हुए थे. जो काफ़ी जगह से पानी की कमी के कारण सुख गये थे. मैने जो मुर्गियों की एक अतिरिकत शेड बनाए थे और हमारे पशुओं का जो बाडा था वो पूरी तरह से टूट गये थे. शेड की हालत दो सालों में ख़स्ता हो गयी थी. जो खेती के आज़ार मैने वहाँ छोड़े थे, वो शेड के आस पास विखरे पड़े थे. बोरेवेल्ल बंद थे, ज़मीन पर जगह जगह घास और झाड़ियाँ उग आई थी. शेड को अंदर से देखा तो सब कुछ विखरा पड़ा था. कभी मेरे आराम करने की चारपाई एक कोने मे तोड़ कर रखी हुई थी. सभ कुछ उजड़ चुका था.मेरा दिल भारी हो गया. ना चाहते हुए भी आँखो में आँसू आ गये. बहन मेरी हालत समझ गयी और मुझे वहाँ से घसीटते हुए लेजाने लगी. मैने रुखसती से पहले अपना सर झुककर उस भूमि से अपने गुनाह के लिए क्षमा माँगी. और फिर बिना रुके बिना पीछे मुड़े मैं वहाँ से आ गया. ना जाने हमारी कितनी पीढ़ियाँ उस ज़मीन पर निर्भर रही थी और आगे कितनी उस ज़मीन के बलबूते रह सकती थी! मुझे शायद ज़मीन को नही बेचना चाहिए था, यह एक वाकाई बहुत बड़ी भूल थी, मगर उसे बेचे बिना मैं सहर में कोई काम धंधा भी तो नही शुरू कर सकता था. गाड़ी में बैठे हुए मेरी आँखो से पानी बहने लगा. मैने कभी सपने में भी उम्मीद नही की थी कि मेरी ज़मीन की यह हालत होगी.


गाँव लौटने पर मैने माँ और बहन को चलने के लिए कहा. माँ इतनी जल्दी जाने के लिए तैयार नही थी मगर जब बहन ने उसको समझाया कि खतों की हालत देखकर मुझ पर क्या गुज़री थी तो वो चलने के लिए उठ खड़ी हुई. सोभा ने हमे रात रुकने के लिए बहुत ज़ोर लगाया मगर हम ना रुके. अब वहाँ मेरा एक पल भी रुकने का मन नही था, मैं जल्द से जल्द वहाँ से दूर चला जाना चाहता था.


गाँव से लौटने के बाद कयि दिन लग गये उस घाव को भाने के लिए जो मुझे मेरी भूमि की बेसहारा हालत को देखकर लगा था. बहन ने उस समय बहुत समझदारी दिखाई और मुझे अपने प्यार से उस दुख को भूलने में मदद की.


डेविका हम से सदैव मिलने आती रही. वो लोग बोम्बे आते जाते रहते थे और जब भी वो बॉम्बे आते डेविका हम से मिलने आती. अगर बात सिर्फ़ बहन की होती तो शायद उसका साथ हमारा गाँव छोड़ने के साथ ही ख़तम हो जाता. मगर वो अब मुझसे अपने भाई से मिलने आती थी. जैसा मैं पहले ही कह चुका हूँ कि शायद मैं उसके भाई की जगह कभी ना ले सकूँ मगर मैं उसका दर्द भूलने में उसका सहारा ज़रूर बन सकता था. मैने उसे अपनी बहन की तरह माना और हमारे रिश्ते की पवित्रता को हमेशा बरकरार रखा. उसका पति भी हमारे रिश्ते की इज़्ज़त करता है. वो जब भी हमारे घर आती है तो घर का महॉल बहुत खुशनुमा हो जाता है. हम दोनो उससे चिपक जाते और उसकी बातें सुनते रहते. उसका भी हमे छोड़कर जाने का मन ना होता. वो हमे अपने बच्चों से भी बढ़कर मानती. वो हर वार यही कहती कि उसका मन अपने बंगले में नही बल्कि हमारे साथ रहने को होता है.


माँ और मेरे बीच सेक्स संबंध सहर आने के बाद कुछ समय बने, इतने कि उनकी गिनती उंगलियों पर की जा सकती थी. और वो भी क्योंकि बहन मुझे मजबूर करती थी, उसे हमेशा माँ के अकेलेपन का दुख होता. मगर हमे लगता जैसे हम वो जबरन कर रहे हैं. माँ को भी हमारे संबंध से वो आनंद नही मिलता जो उसे कभी मिलता था. साल बीतते बीतते माँ और मेरे बीच संबंध बिल्कुल बंद हो गया. उसने सॉफ सॉफ लफ़्ज़ों मे मुझे बता दिया कि वो अब हमारे इस अनैतिक संबंध को और आगे नही बढ़ाना चाहती.


माँ हर दिन घर का काम करती और बाकी थोड़ा बहुत समय वो पड़ोसियों से अच्छे संबंध रखने में बिताती, पड़ोस की औरतों को मिलती और बाकी का उसका थोड़ा बहुत समय पूजा पाठ में गुज़रने लगा. धीरे धीरे वो घर का काम निपटा मोहल्ले की औरतों के साथ मंदिर चली जाती और वहाँ वो सब काफ़ी समय पूजा पाठ मे बिताते. मैं भी बहन और माँ के साथ हर सुबह मंदिर जाता था ताकि हमारी खुशियाँ बनी रहे.


माँ शायद अब हमारे पापों का पश्चाताप कर रही थी. शायद वो हमारी आगे की ज़िंदगी के लिए हमारे गुनाहों को बख्शवाना चाहती थी. शायद उसे अहसास होने लगा था कि हमने कितना बड़ा पाप किया था. सुरू सुरू में वो कुछ अशांत सी दिखती मगर अब जब भी मैं या बहन उसे देखते हैं तो हम उसके चेहरे पर एक अलग सकून पाते हैं. जब वो हमारे बच्चे के साथ खेलती है जा फिर पूजा पाठ से लौट कर आती है तो उसके चेहरे पर पुर्सकून के भाव होते हैं. यक़ीनन वो अब खुश रहने लगी है खास कर हमारे बेटे के जनम के बाद से और हम उसकी इस खुशी में खुश हैं.


हो सकता है माँ का सोचना सही हो कि मेरा और उसका रिश्ता अनैतिक था. हमने बड़ा घोर पाप किया था. मगर बहन के साथ मैने कोई पाप किया है, मैं यह कभी स्वीकार नही करूँगा. मेरे और उसके रिश्ते की पवित्रता को वोही समझ सकता है जिसने दिल मे कभी किसी के लिए सच्चे प्यार का अहसास पाला हो. मेरे लिए उसकी खुशी से बढ़ कर कोई नही था. जब वो घर छोड़ कर गयी थी तब मैने एक निश्चय किया था कि अगर वो हमारे रिश्ते को ख़तम करना चाहती है तो मैं उसके रास्ते से हमेशा हमेशा के लिए हट जाउन्गा. हमारा प्यार समय के साथ साथ बढ़ता जाता है. मैं जब भी काम से थका मान्दा घर लौटता हूँ तो वो सज संवर कर मेरे स्वागत के लिए तैयार खड़ी मिलती है. उसकी वो चंचलता वो शरारातें आज भी वैसे ही बरकरार हैं. वो हमारे रात्रि मिलन के समय जितना मुझे सुख देने की कोशिश करती है, जितना मुझे प्यार करने की कोशिश करती है उतनी ही उसकी चंचलता हमारे मिलन में सजीवता बनाए रखती हैं.


आज हमारे पास गाड़ी है, अच्छा घर है, और भगवान ने हमे एक सुंदर सा बेटा दिया है. मेरा काम खूब फल फूल रहा है और बहन की दुकान भी अच्छी चल रही है. मैं जल्द ही अपनी शेड के जितनी ही बड़ी एक और शेड वहाँ बनाने वाला हूँ. ज़िंदगी में सुख है, खुशियाँ हैं. फिलहाल इस पल जो ज़िंदगी हम जी रहे हैं हम उससे संतुष्ट है.


हम तीनो हमारे बेटे को लेकर हर सुबह मंदिर जाते हैं. पूजा करते हैं, भगवान से ग़लतिओं की माफी माँगते हैं और अपने सुखद भविष्य की कामना करते हैं.

वो दोनो क्या मांगती हैं, मुझे नही मालूम. मगर मैने सिर्फ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ यही माँगा है और यही माँगूंगा कि मेरा और बहन का साथ हमेशा बना रहे. अगर इस ज़िंदगी के बाद मुझे और जनम मिले तो वो फिर से मुझे मेरी बड़ी बहन और प्रेयसी के रूप में मिले.


हमारे प्यार का आधार एक प्रेमी प्रेयसी से बढ़कर एक भाई बहन के प्यार का है. वो दुनिया के सामने मेरी पत्नी है मगर अकेले में वो सदैव मेरी बहन है. और मुझे मेरी बड़ी बहन से प्यारा इस दुनिया में और कुछ भी नही है.


हमारे घर में मेरा भी एक गुप्त स्थान हैं. लेकिन वहाँ मेरे पिताजी की तरह मैने अपना कोई राज़ नही छिपाया है. वहाँ मैने वो चीज़ें रखी हैं जो मेरे लिए अनमोल हैं. उसका वो खत जो उसने घर छोड़ कर जाने से पहले मुझे लिखा था और पिताजी के गुप्त स्थान पर छिपाया था, उसकी वो आसमानी रंग की पोशाक जो उसने उस दिन पहनी थी जब हमने पहली बार प्यार किया था और वो कंघी जिससे मैने उस दिन उसके बाल संवारे थे. वो मेरा गुप्त स्थान है.


बंधुओ मेरी ये कहानी यहाँ आकर पूर्ण होती है अगर वक्त ने साथ दिया और आप सभी बंधुओं का सहयोग मिला तो हमारी मुलाकात संभव है सभी बंधुओ का सहयोग मिला उसका में तहेदिल से आभारी हूँ

इति ( समाप्त )
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Smoothdad
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Re: incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें

Post by Smoothdad »

Thanks for completing this stori
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