incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें complete

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Sexi Rebel
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Re: incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें

Post by Sexi Rebel »

मैने अपनी नज़र नीचे की तो पेंट में तना मेरा लंड और भी तन गया. सामने माँ के गोल मटोल मम्मे पूरे तन कर मोर्चा संभाले खड़े थे. मेरे मसलने से उनकी दूधिया रंगत बदलकर सुर्ख लाल हो गयी थी और उस पर उसके लाइट ब्राउन निपल जो देखने भर से मालूम चल रहा था कितने सख़्त थे. माँ तो पूरी गरमा गयी थी. मैने नज़र उठाई तो वो मेरी ओर ही देख रही थी. मैने उसकी आँखो में झाँकते हुए अपना चेहरा नीचे किया और उसके एक निपल पर अपने सूखे होंठ रगडे फिर दूसरे पर. माँ ने खुले होंठो से एक गहरी साँस ली. मैने वैसे ही नज़र टिकाए अपनी जीभ बाहर निकाली और उसके एक निपल को उससे छेड़ा. इस बार माँ बर्दाशत ना कर पाई और वो कराह उठी. मैने उसके निपल को अपने होंठो में दबोचा और अपनी जीभ से उसे चाटने लगा. माँ ने मेरा सर अपने हाथों में थाम लिया. मैं अपने हाथ नीचे ले जाकर अपनी पेंट खोलने लगा. पेंट खुलते ही मैने माँ का हाथ अपने सर से हटाया और उसे नीचे ले जाकर अपने अंडरवेर के उपर रख दिया. माँ ने बिना एक पल गँवाए मेरे लंड को पेंट के उपर से थाम लिया और उसे दबाने लगी. मेरी जीभ कभी उसके एक निपल को कुरेदती तो कभी दूसरे को. एक पर मेरा मुख होता तो दूसरे पर मेरा हाथ अपना अधिकार जमाए होता. जब जब मेरे दाँत उसके निपल को भींचते तो उसके हाथों में मेरा लंड भी भिन्च जाता. जब जब मेरा हाथ उसके मम्मे को कस कर मसलता वैसे ही खुद व खुद उसका हाथ भी मेरे लंड को कस कर निचोड़ने लगता. मैने अब उसके मॅमन को जितना मुँह में आ सकते थे भर कर चूसना सुरू कर दिया. बीच बीच में उसके निप्प्लो को चूस्ता. माँ अब पूरी तरह बेबस हो चुकी थी. उसकी हर साँस एक कराह के रूप में निकल रही थी, उसने अपना हाथ मेरी अंडरवेर के अंदर घुसा दिया और मेरे नग्न लंड को पकड़ लिया. माँ के हाथ का स्पर्श पाते ही मेरी उत्तेजना अपनी हदें पार करने लगी. मेरे होंठो, मेरी जिव्हा और मेरे दाँतों ने मिलकर जो हालत माँ की की थी वोही हालत अब वो मेरी कर रही थी. लंड के सुपाडे को खींचती वो आ.उन्न्न्न्ह्ह्ह्ह्ह कर रही थी. उसके मम्मे चूस्ते चूस्ते मेरे गले से गुणन्ञननणनगुणन्ञणन् करके सिसकिया निकल रही थी. आग बुरी तरह भड़क उठी थी, मुझे अब जलद ही कुछ करना था. मैने माँ के मम्मों से अपना मुँह हटाया और उससे दूर हटकर अपनी पेंट और अंडरवेर उतार फेंकी, उसके बाद अपनी कमीज़ भी. माँ के सामने पूरा नंगा खड़ा था मैं. लंड मेरी नाभि को छू रहा था, इतना सख़्त हो गया था कि हिल भी नही रहा था. वाकाई मे खुद मैं भी अपने लंड का भयंकर रूप देखकर थोड़ा चकित हो गया. उधर मुझे कपड़े उतार नंगा होते देख माँ भी अपने पेटिकोट को खोलने लगी तो मैने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया.

"नही माँ आज तुम्हे मैं नग्न करूँगा, अपने इन हाथों से. तुम अपने बेटे के हाथों नंगी होगी. आज तुम जानोगी मर्द अपनी औरतों का कैसे भोग करते हैं"

माँ के पेटिकोट की हुक खोलकर मैने उसे नीचे सरका दिया और वो नीचे उसके पाँवो में जा गिरा. अब माँ के पूरे बदन पर एक काली कच्छि बची थी. मैं दो कदम पीछे हटा और माँ को निहारते हुए अपना कुर्ता और पेंट निकालने लगा. या तो मुझे सेक्स किए हुए बहुत टाइम हो गया था या मैं माँ को बहुत समय बाद नंगी देख रहा था या फिर मेरी उत्तेजना मेरे सर चढ़ कर बोल रही थी या फिर माँ सच में ही बदल गयी थी. यक़ीनन मैं बहुत ज़यादा उत्तेजित था, मेरा लंड लोहे की रोड तरह आकड़ा खड़ा था मगर माँ के जिस्म में भी कुछ बदलाव ज़रूर हो गया था. पिछले पंद्रह महीनो की सख़्त मेहनत ने और खेतों से घर और दुकान के बीच की भागदौड़ ने उसकी कमर को एकदम सपाट कर दिया था. हालाँकि वो मोटी तो कभी नही थी मगर उस कठोर परिश्रम से उसकी कमर बहुत पतली हो गयी थी. कमर पतली होने से उसके जिस्म का अग्रभाग कुछ ज़्यादा ही कामुक लग रहा था. उस पतली कमर के उपर वो मोटे मोटे मम्मे और नीचे उसकी पुष्ट जाँघो के काली कच्छि से गीली होकर चिपकी झाँकती उसकी चूत देखकर किसी तपस्वी का भी मन डोल जाता तो मैं तो एक अदना सा इंसान मात्र था. वाकाई में उस कमर के उपर उसके वो ठोस मम्मे इतना दिलकश नज़ारा पेश कर रहे थे कि उत्तेजना से मेरा बदन काँपने लगा. माँ मुझे कपड़े उतारे देख रही थे. उसकी आँखो की लाली, उसके काँपते होंठ, उसके मम्मों के आकड़े भूरे निपल' उसकी काली कच्छि से गीली होकर चिपकी चूत बता रहे थे कि वो भी चुदने को कितनी बेकरार है.

मकई के खेत के बीचों बीच उस भरी दोपेहर में हम माँ बेटे नंगे खड़े थे और चुदाई के लिए बेकरार हमारे जिस्म इस बात की गवाही भर रहे थे कि कामबान कितना शक्तिशाली होता है. जब काम किसी के सर चढ़ता है तो सब रिश्ते नाते भूल जाते हैं बस फिर तो इंसान खुद को काम की अग्नि में जलाकर खाक कर देने को आतुर हो उठता है.

मैं माँ के करीब गया, उसके मम्मों को सहलाता बोला "माँ मेरा तो कभी ध्यान ही नही गया, तू तो सच में बहुत सुंदर हो गयी है. माँ ने जबाब में एक ज़ोरदार सिसकी ली. "ज़रा घूम कर अपनी गान्ड तो दिखा" मैं माँ को पीछे की ओर घुमाता बोला. माँ के घूमते ही मेरी नज़र उसके चुतड़ों पर पड़ी. उसकी बड़े बड़े चुतड़ों ने उसकी कच्छि को फटने की हद तक फैला रखा था. चुतड़ों की गहराई में धसि उसकी कच्छि उसकी गोल मटोल गान्ड को बड़े अच्छे से दर्शा रही थी. मैने अपने हाथ उसके चुतड़ों पर रख उन्हे मसलने लगा, कभी कभी उन्हे अपनी मुट्ठी में भींच लेता. कठोर मेहनत का नतीजा उसके चुतड़ों पर भी दिख रहा था, उसके चूतड़ पहले से ज़्यादा सख़्त हो गये थे, गान्ड एकदम कसी कसी महसूस हो रही थी जैसे किसी कुवारि लड़की की हो. मेरे हाथ उसकी गान्ड पर कुछ ज़यादा ही ज़ोर आज़माइश कर रहे थे.माँ आह, उन्ह, हाए हाए करती तुनकने लगी. उन्हे खूब मसल कर, सहला कर मैं माँ के पीछे उसके चुतड़ों की खाई में अपना लंड दबाता उससे चिपक गया. अपने हाथ उसकी बगलों से आगे कर मैने उसके मम्मे मसल्ने सुरू कर दिए.

"सच कहता हूँ माँ अगर मैने तुझे पहले नंगी देख लिया होता तो तेरी तो अब तक नज़ाने कितनी बार ले चुका होता" मैने माँ के कानो मैं फुसफुसा कर कहा, वो सिसक उठी. अब तो खुल कर उँची उँची सिसकिया भर रही थी. "तेरे तो अंग अंग से मादकता बह रही है" मैं उसके निप्लो को अपनी उंगलिओ के बीच लेकर मसलता हुआ बोला. माँ अपने हाथ मेरे हाथो पर रख हाए हाए कर रही थी और अपनी गान्ड गोल गोल घुमा कर मेरे लंड पर दबा दबा कर रगड़ रही थी. बेचारी बुरी तरह से कामोत्तेजित थी, बर्दाशत नही कर पा रही थी. मैने उसे फिर से अपनी ओर घुमाया. और उसके सामने घुटने टेक कर बैठ गया. उसकी चूत और मेरे मुँह में एक फुट का फासला था मगर फिर भी उसकी उत्तेजना के रस से महकती चूत की गंध मेरे नथुनो को महका रही थी. उसकी कच्छि गीली होकर उसकी चूत के होंठो से चिपकी हुई थी. मैं चूत की लकीर को भी आसानी से देख सकता था. मैने अपना मुँह आगे लेजा कर कच्छि के उपर से एकबार उसकी चूत को हल्के से चूमा.

"आअंह...ऊवन्न्न्नह" वो कराह उठी. मैं मन ही मन इस बात पर गर्व महसूस कर रहा था कि मैने उसे बिना चोदे बिना पूरी नंगी किए इस हालत में पहुँचा दिया था. मेरी लपलपाति जिव्हा बाहर निकली और मैने कच्छि में से झाँकती उसकी चूत के होंटो की लकीर पर उसे उपर से नीचे तक फेरा. "हाए.....हाए....उउफगफफ्फ" माँ इस बार ज़ोर से कराही थी. अब देर करना मुनासिब नही था. खुद मेरी हालत बहुत बुरी हो चुकी थी. माँ के नंगे बदन की मादकता और उसकी सिसकिओं और आओं कराहों ने मेरी उत्तेजना सातवे आसमान तक पहुँचा दी थी. मैने कच्छि की एलास्टिक में अपनी उंगलियाँ फँसाई और उसे नीचे की ओर बिल्कुल धीरे धीरे खींचने लगा. उसकी कच्छि नीचे जाने लगी तो सबसे पहले मेरा ध्यान उसकी चूत के उपर छोटे छोटे बालों की ओर गया. लगता था माँ ने दो चार दिन पहले ही सफाई की थी. फिर उसकी गीली चूत से चिपकी कच्छि धीरे धीरे अलग होती नीचे जाने लगी और उसकी चूत मेरी नज़र के सामने नुमाया होने लगी. मैने नज़र उपर उठाई तो माँ मुझे ही देख रही थी, मुझे देखते ही उसकी आँखे बंद हो गयी, उसके चेहरे से मादकता और उत्तेजना बरस रही थी, वो चुदवाने को आतुर नही थी बल्कि तड़प रही थी. मैने कच्छि खींच उसके पैरों में करदी जहाँ उसका पेटिकोट पहले ही पड़ा हुआ था. माँ ने एक एक कर अपने पैर पेटिकोट और कच्छि से बाहर निकाल लिए. अब माँ मेरे सामने पूरी नंगी थी और कामरस से चमकती उसकी चूत मेरी नज़र के सामने. हल्के हल्के बालों के बीच से उसकी गीली चूत लंड के लिए दुहाई दे रही थी. मैने अपने होंठ आगे कर उसकी चूत को तीन चार बार चूमा और अपनी जीभ उसके होंठो में घुसा दी. माँ के हाथों ने मेरे बाल भींच लिए. वो कांप रही थी. हाए, उफफफफ्फ़,आआअहह करती वो सिसक रही थी, कराह रही थी जैसे लंड के लिए भीख माँग रही हो. मैने अपना मुख उसकी चूत पर दबाया तो उसकी टाँगे खुद व खुद चौड़ी हो गयी और मैने उसकी मुलायम चूत को अपनी खुरदरी जीभ से रगड़ा तो माँ चीखने लगी. वो मेरे बाल खींच रही थी. मैं उठ खड़ा हुआ, लोहा पूरा गरम हो चुका था अब चोट मारने का वक़्त आ गया था.

"चल माँ चुदने के लिए तैयार हो जा" मैं खड़ा होता माँ से बोला


माँ तो ना जाने कब से चूत में लंड डलवाने के लिए तड़प रही थी. खड़े होते ही मैने उसके होंठो पर एक ज़ोरदार चुंबन लिया. माँ ने भी जीभ से जीभ, होंठो से होंठ भिड़ा कर खूब साथ दिया. मैने एक हाथ नीचे लेजा कर माँ की जाँघ को अंदर से पकड़ उपर उठाया और उसे अपनी कमर पर दबाया. फिर मैने आगे बढ़कर अपना लंड माँ की चिपचिपाती चूत से भिड़ा दिया. माँ 'हाए' कर उठी. मैने फिर से अपने होंठ उसके होंठो पर रख एक गीला चुंबन लिया और उसका हाथ पकड़ नीचे अपने पत्थर की तरह कठोर लंड पर रख दिया.

"माँ ज़रा अपने बेटे के लंड को अपनी चूत का रास्ता तो दिखलाओ" मैने चुंबन तोड़ते हुए कहा. माँ मदहोश सी थोड़ा सा उपर होकर एडिओं के बल उसने मेरे लंड को थोड़ा हिलाडुलाकर अपनी चूत के मुँह पर फिट कर दिया. लंड की हल्की सी घिसाई से ही उसकी सिसकियाँ निकल रही थी, वो होंठ भींच रही थी. एक बार लंड निशाने पर लगते ही उसने मेरे कुछ करने से पहले खुद अपने हाथ मेरी कमर पर ज़माकर लंड पर अपनी चूत को ज़ोर से दबाया. चूत इतनी गीली थी कि लंड बिना किसी रुकावट के सर्र्र्र्र्र्र्ररर करता आधा अंदर घुस गया. 'हाए' हम दोनो माँ बेटे सीत्कार कर उठे. माँ ने मेर कमर पर अपनी पकड़ और भी मज़बूत कर फिर से ज़ोर लगाया और इस बार लंड चूत की तंग दीवारों को खोलता पूरा जड़ तक अंदर घुस गया. 'आआहह' माँ ज़ोर से सिसकी. लंड चूत में घुसते ही मुझे माँ की हालत का अंदाज़ा हुआ. चूत तो अंदर भट्टी की तरह दहक रही थी.

मैने माँ की टाँग को कस कर पकड़ा और दूसरा हाथ उसके मम्मे पर टिका कर अपनी टाँगे थोड़ी सी चौड़ी कर अपनी स्थिति सही की. लंड टोपे तक बाहर खींच एक ज़ोरदार घस्सा मारा लंड वापस चूत की जड़ तक पेल दिया. फिर से बाहर निकाला और वापस अंदर डाल दिया. ऐसे ही लंड अंदर बाहर करते मैं माँ को चोदने लगा. माँ भी अपनी कमर मेरे लंड पर मार मार कर मेरा पूरा साथ दे रही थी. हम दोनो के मुखो से आहें कराहें फूट रही थीं. जैसे ही मैं लंड बाहर निकाल उसकी चूत मे घुसाने के लिए ज़ोर लगाता मेरे मुख से कराह निकल जाती उधर माँ की चूत की दीवारों को रगड़ता जब मेरा लंड उसके अंदर चोट मारता तो वो 'हीईीईईईईईईईईईई' कर उठती.

"माँ तेरी चूत तो जल रही है, उफ्फ लगता है मेरे लंड को जलाकर खाक कर देगी" मैं माँ के मम्मे को मसलता लंड अंदर ठोकता बोला. मगर माँ जबाब ना दे सकी. मुझे उसकी चूत कुछ सिकुड़ाती हुई महसूस हो रही थी, उसकी चूत मे कुछ कंपन सा महसूस हो रहा था. इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता माँ एकदम से मुझसे कस कर लिपट गयी, ज़ोरों से चीखने लगी. वो अपनी चूत मेरे लंड पर घिस रही थी, मुझे घस्से मारने में दिक्कत होने लगी. माँ ने अपने हाथ मेरे चुतड़ों पर रख अपनी चूत पूरे ज़ोर से मेरे लंड पर दबाई और फिर एक ज़ोरदार चीख से वो सखलित होने लगी. उफफफफ्फ़ मात्र पंद्रह बीस धक्कों से ही वो सखलित हो गयी थी. उसकी चूत से निकलता रस मेरे लंड को भिगोता हमारी जाँघो पर बहने लगा. माँ की पकड़ मेरे चूतड़ो पर ढीली होने लगी. मैने बिना कुछ किए कुछ पल इंतजार किया. उसकी आँखे मुंदी हुई थी, होंठ खुले हुए थी और वो होंठो से ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी. उसका उपर नीचे होता सीना उसकी हालत बयान कर रहा था. उसकी सिसकियों की आवाज़ अब कम होने लगी थी. उसकी चूत से पानी बहना भी बंद हो गया था और चूत का संकुचन भी काफ़ी कम हो गया था. मैने माँ की टाँग नीचे रखी कुछ पल और इंतेज़ार किया. वो अब बिल्कुल ढीली पड़ गयी थी. मैने अपने हाथ उसकी कमर पर रख उसे खड़े रहने में मदद की. मेरा लंड उसकी चूत में झटके मार रहा था जैसे अपना गुस्सा जाहिर कर रहा था कि उसे चूत रगड़ने को नही मिल रही लेकिन अब उसका गुस्सा मैं शांत करने वाला था. माँ अब शांत पड़ गयी थी हालाँकि उसकी आँखे अभी भी बंद थी मगर सांसो की रफ़्तार धीमी पड़ गयी थी. मैने माँ के होंठो पर एक कस कर चुंबन लिया. और अपने लंड को बाहर निकाल एक हल्का सा झटका दिया. माँ बंद आँखो से ही धीरे से सिसकी. मैने हल्के हल्के झटके लगाने चालू रखे. रफ़्तार भी अभी धीमी ही थी. मेरे हाथ धीरे धीरे नीचे सरकने लगे और उसके चूतड़ो को थाम मैने धक्कों की रफ़्तार धीरे धीरे बढ़ानी चालू कर दी. बीच बीच में माँ के होंठो को चूम लेता. बीच बीच में वो आँखे खोल मेरी ओर देखती और फिर हमारे बीच जहाँ मेरा लंड उसकी चूतरस से भीगा अंदर बाहर हो रहा था. जल्द ही मेरे धक्कों की रफ़्तार तेज़ होने लगी. मैं उसके चूतड़ो को अपनी मुठियों में भींच उन्हे ज़ोरों से मसल रहा था.

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Re: incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें

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"माँ मज़ा आ रहा है ना बेटे से चुदवाने का" मैने माँ की चूत मे एक ज़ोरदार घस्सा लगाकर पूछा. माँ ने अपनी आँखे खोलीं. वो मदमस्त थी. उसके मुख से निकल रही सिसकियाँ उसका जबाब थी. मगर मुझे इस जवाब से संतुष्टि नही थी. मैने उसके चूतड़ो को ज़ोर से मसल कर फिर से पूछा, "माँ मज़ा आ रहा है अपने बेटे से चूत मरवाने का" माँ ने फिर से आँखे खोलीं और मेरी ओर देखकर हल्का सा सर हिलाया. मैने एक पल के लिए घस्से मारना रोक उसके चुतड पर कस कर थप्पड़ मारा. माँ 'हीईीईईईईईईई' कर चिल्ला उठी मगर मैने रुकने की वजाय दो तीन थप्पड़ दोनो चुतड़ों पर जमा दिए.

"मैने तुझसे कुछ पूछा है, जवाब देगी या?" माँ ने आँखे खोल मेरी ओर देखा और इस व्यवहार पर थोड़ा सा चकित नज़र आई मगर फिर तेज़ी से बोली "आ रहा है, बहुत मज़ा आ रहा है"

"किसमे बहुत मज़ा आ रहा है? क्या करवाने में मज़ा आ रहा है? पूरा बोल नही तो चुदाई ख़तम समझ!" मैं खुद अपने पर चकित था, वो लफ़्ज जैसे मैं नही बोल रहा था बल्कि मेरे अंदर बैठा कोई और सख्स बोल रहा था.

"तुमसे चुदवाने में, तुमसे चुदवाने मैं बहुत मज़ा आ रहा है" माँ एकदम से बोल उठी. लगता था जैसे वो मेरे चुदाई रोक देने की बात से ख़ौफज़ादा हो गयी थी.

"अपने बेटे के लंड से चुदवाने मैं मज़ा आ रहा है तुझको? अपने बेटे से अपनी चूत मरवाने में मज़ा आ रहा है" मैने लंड को वापस हरकत में लाते कहा. जाने क्यों उन लफ़्ज़ों के इस्तेमाल से मुझे एक अलग ही आनंद मिल रहा था.

"हां! हां! अपने बेटे से अपनी चूत मरवाने में बहुत मज़ा आ रहा है मुझे. हइईई.....मारो मेरी चूत....अपनी माँ की चूत मारो....चोदो अपनी माँ को.....आआअहज....चोदो....कस कस कर चोदो"


माँ के इन अल्फाज़ों को सुन मेरी नसों में बहने वाला लहू दुगनी रफ़्तार से दौड़ने लगा. मैं उसे कस कस कर पूरा ज़ोर लगाकर चोदने लगा. हर धक्के के साथ मेरे मुख से 'हुंग' , 'हुंग' करके आवाज़ निकलती. ज़ोरदार धक्के लगने से माँ फिर से अपने पुराने रूप में आ गयी थी. उसकी सिल्क जैसी मुलायम चूत की दीवारों को रगड़ता, घिसता मेरा लंड उसे कितना मज़ा दे रहा था उसके मुख से निकलने वाली सिसकियाँ बता रही थी. मगर ऐसे खड़े खड़े चुदाई करने से मैं पूरा लंड उसकी चूत में नही घुसेड पा रहा था मतलब जो चुदाई होनी चाहिए थी वो नही हो पा एही थी. मैने आसन बदलने का फ़ैसला किया.

"माँ अपनी बाहें मेरी गर्दन में डाल लो और अपनी टाँगे मेरी कमर पर लपेट लो. माँ को पहले शायद समझ नही लगी तो मैने उसके चुतड़ों के नीचे हाथ जमा उसे उपर को उछाला और उसका वज़न अपने हाथों पर ले लिया, वो अब मेरी गोदी मे थी. उसको समझ में आ गया और उसने तुरंत अपनी टाँगे मेरी कमर पर कस दी.' अब वो मेरी गर्दन में बाहें डाले मेरे लंड पर झूल रही थी.

मैने माँ के कुल्हों पर ज़ोर लगाकर उपर उठाया और फिर नीचे आने दिया. पुक्क्कक कर लंड जड़ तक उसकी चूत में जा टकराया. माँ 'उफफफफफफफफ्फ़' कर उठी.

"वैसे मेरा पूरा लंड तुम्हारी चूत में नही जा पा रहा था, अब यह पूरा अंदर जाएगा और देखना तुम्हे बेटे से चूत मरवाने में कितना मज़ा आएगा" माँ के कानो में बोलते हुए मैने उसे अपने लंड पर उछालना सुरू कर दिया. मज़ा माँ को ही नही,'मुझे भी पूरा आ रहा था. उसकी चूत में जब पूरा लंड अंदर बाहर होने लगा तो एक अलग ही मज़ा आने लगा और उपर से मेरी छाती पर रगड़ खाते उसके मम्मे मेरे मज़े को दुगना कर रहे थे. माँ की क्या कहूँ, उसको तो इतना मज़ा आ रहा था कि कुछ धक्कों के बाद मुझे ज़ोर लगाने की ज़रूरत ही नही रही, वो खुद ही मेरी गर्दन में बाहें डाले झूलती हुई मेरे लंड पर उछालने लगी. खूब उछल उछल कर मरवा रही थी माँ अपनी चूत. मैं तो बस अब उसके चूतड़ो को थामे वहाँ खड़ा था. माँ जब भी उपर होकर लंड बाहर करती और फिर एकदम से नीचे आती तो लंड सटाक से पूरा चूत में घुस जाता. मेरी उत्तेजना चरम पर पहुँचने लगी थी. चुदाई की आवाज़ों के साथ हमारे होंठो से निकलती सिसकियाँ हमारी मस्ती में और भी बढ़ोतरी कर रही थी.

"माँ कैसा लग रहा है अपने बेटे के लंड पर उछल उछल कर चुदवाने में? मज़ा आ रहा है ना मेरी माँ को?" मैं माँ के होंठो को चूमना चाहता था, उसके मम्मो को मसलना चाहता था मगर मेरे दोनो हाथ व्यस्त थे. माम ने मेरी बात सुनकर एक हुंकार सी भरी. वो और भी ज़ोरों से उछलने लगी. मेरे लफ़्ज़ों ने आग में घी का काम किया था.

"हाए बेटा ....बड़ा मज़ा...... आआ....रहा है....उफफफफफफ्फ़....ऐसे......ही मुझे........चोदता......रह........हाए.....मेरी चूत...........मारता.....रह"

"चुदवा ले माँ जितना चुदवाना है, जी भर कर चुदवा. ठुकवा ले अपनी चूत अपने बेटे से" मैं भी माँ को उछलने में मदद करते बोला.

"हाए...ठोक....ठोक....मुझे........ठोक मेरी चूत...........हाए.....हाए........मार अपनी माँ....की चूत "

माँ के साथ उस जबरदस्त चुदाई और उस गर्मागर्म बातचीत से मुझे अहसास होने लगा कि मैं अब जल्द ही छूटने वाला हूँ. अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछेक मिंटो मे मैं स्खलित हो जाने वाला था. मगर उस समय जो असीम मज़ा मुझे प्राप्त हो रहा था उसके कारण मैं उस समय छूटना नही चाहता था. माँ की हालत एसी थी कि वो अब मेरे कहने से रुकने वाली नही थी. तभी मेरे मन में एक विचार आया. माँ को अपनी गोदी में उठाकर चोदते हुए में मकयि के खेत से बाहर की ओर जाने लगा. इससे धक्कों की रफ़्तार थोड़ी कम पड़ गयी. "उफफफ्फ़...क्या कर रहा है? कहाँ जा रहा है?" माँ ने वैसे ही लंड पर उछलते हुए कहा

मगर मैं कोई जवाब दिए बिना धीरे धीरे कदम उठाता चलता रहा. मकई से बाहर निकल धान के खेत के पास हमारा बोरेवेल्ल था. कदम दर कदम बढ़ाता मैं बोरेवेल्ल के पास पहुँच गया. मैं माँ को उठाए बोरेवेल्ल की धार के पास चला गया और वहाँ जाकर मैने धीरे से माँ को उतारा. माँ ने विरोध जताया मगर मैने उसे ज़ोर लगाकर उतार दिया और फिर वहीं पानी में लिटा दिया. माँ को कुछ समझ नही आ रहा था, वो मेरी ओर सवालिया नज़र से देख रही थी. पानी में लिटाकर मैने माँ को थोड़ा उपर को खींचा. अब उसका सर मिट्टी की उस बाढ़ पर था जो पानी को बाँध रही थी और बाकी पूरा जिस्म पानी के अंदर. मैने माँ को थोड़ा सा घुमाया, अब बोरेवेल्ल से पानी की धार सीधे उसके उपर पड़ रही थी. माँ को सही जगह करके मैं उसके उपर चढ़ गया और बिना किसी देरी के उसकी चूत में लंड पेल दिया. माँ हाए कर उठी. मैने बिना एक पल भी गवाए माँ की ताबड़तोड़ चुदाई सुरू करदी. लंड के साथ साथ उसकी चूत में पानी भी अंदर बाहर हो रहा था. दूसरे धक्के के साथ ही उसने अपनी कमर उछालनी सुरू करदी. मैने भी खींच खींच कर धक्के लगने सुरू कर दिए.

बोरेवेल्ल की धार के नीचे चुदाई करने से सबसे बड़ा फ़ायदा यह था कि मेरी कमर पर गिरती पानी की सीधी धार मुझे ठंडक प्रदान कर रही थी. अब मैं जल्द ही स्खलन नही होने वाला था. मैने माँ के मम्मे हाथो में थाम अपना ज़ोर लगाना चालू रखा. उधर माँ भी अब अपना रौद्र रूप दिखा रही थी. कमर उछाल उछाल कर चुदवाते हुए वो अपना सर इधर उधर पटक रही थी. उसके बालों और गालों पर इससे कीचड़ लग रहा था. वो उस समय शिकार पर निकली भूखी शेरनी के समान थी. पानी में छप छप करते हम दोनो जैसे एक दूसरे से ज़ोर आज़माइश कर रहे थे.

"माँ मज़ा आ रहा है ना" मैने घस्से लगाते पूछा.

"पूछ मत, बस चोदता जा...हाए ऐसे....मज़े के बारे मैं तो.......कभी सोचा भी नही था.......उफफफ़फगफ्फ ऐसे ही घस्से मारता रह.........हाए ऐसे ही, ऐसे ही...मार मेरी चूत......मैं अब छूटने ही वाली हुउऊन्न्नम"

"हाए माँ मेरा भी जल्द ही निकलने वाला है......,बड़ी कसी चूत है तेरी माँ........चोद चोद कर भोसड़ा बना दूँगा इसे मैं"

"बना दे....बना दे.......मेरी चूत को भोसड़ा....ठोक अपनी माँ को....उफफफफफफ्फ़ हाए...बेटा....मेरे...लाल.....ऐसे ही चोदते जा...आअहझहह...हाए....मेरी चूत...उउफफफ़फ़गगगगफ्फ"

माँ के अल्फाज़ों ने, उसकी सिसकियों ने और उसे काम वासना में इधर उधर सर पटकते देख मेरे टट्टों मे मेरा वीर्य उबलने लगा. अब मैं चाह कर भी चुदाई रोक नही सकता था. मैं माँ के निप्प्लो को चुटकियों में मसलते अपनी कमर पूरी स्पीड से चलाने लगा. माँ ने अपनी टाँगे हवा में उठा दी. मेरे लंड पर उसकी चूत कुछ संकुचित सी होती महसूस हो रही थी. माँ की सांसो की रफ़्तार बढ़ गयी थी, उसने कमर उछालनी बंद कर दी, वो अपने हाथ पाँव पाटने लगी, मछली की भाँति तड़फ़ड़ने लगी और इससे पहले कि मैं छूटता वो छूटने लगी. मैने चुदाई उसी तरह चालू रखी. माँ बहुत ज़ोरों से चीख रही थी. उसकी आवाज़ काफ़ी दूर तक जा रही होगी मगर हम दोनो में से किसी को भी इसकी परवाह नही थी. उधर माँ अपने सखलन की तीव्रता में मेरी गर्दन को अपनी बाहों में कस्ति मेरे कंधो को अपने नखुनो से कुरेद रही थी, उधर मेरे लंड से पिचकारियाँ निकलनी सुरू हो गयीं. मैने वीर्य निकलते निकलते उसकी चूत में कुछ धक्के लगाए फिर उसके उपर गिर गया. लंड से अब भी पिचकारियाँ निकल रही थीं. मुझे ऐसे महसूस हो रहा था जैसे मेरे सरीर से पूरी उर्जा निकल रही है. मेरा जिस्म बेजान होता जा रहा था. मैं माँ की छाती पर सर रखे गहरी साँसे ले रहा था और माँ जिसका सखलन अब धीमा पड़ चुका था, मेरे गाल को चूमती मेरी पीठ सहला रही थी

हम दोनो कुछ देर बिना हीले डुले वहीं पड़े रहे. मुझे बहुत थकान महसूस हो रही थी. बदन का अंग अंग टूट रहा था, हालाँकि बदन में एक हलकापन सा भी महसूस हो रहा था, मन में एक संतोस सा अनुभव हो रहा था, जैसे जिस्म में घर किए एक बैचैनि ने मेरा पीछा छोड़ दिया हो. एक तरफ अच्छा लग रहा था तो दूसरी तरफ मैं पूरा निढाल हो गया था जैसे बरसों का थका मांदा हूँ. कुछ देर बाद बदन में हल्की सी जान आई तो मैं माँ के उपर से हट गया. मेरा छोटा पड़ चुका लंड फिसल कर माँ की चूत से बाहर आ गया. माँ की ओर मैने हाथ बढ़ाया तो उसने मेरा हाथ थामा और उठ खड़ी हुई. हम दोनो बोरेवेल्ल की धार के नीचे खड़े होकर नहाने लगे. माँ अपने सर और गालों से कीचड़ धो रही थी. अच्छी तरह मल मल कर बदन धोने और नहाने के बाद हम पानी से बाहर निकले. माँ ने मेरी तरफ देखा तो मैने उससे कहा "तुम शेड में चलो, मैं कपड़े लेकर आता हूँ" माँ ने इधर उधर देखा जैसे किसी के वहाँ होने का शक हो.

"ओह माँ क्यों बेकार मैं इतनी चिंता करती हो. यहाँ कभी कोई नही आता. तुम्हे खुद भी तो पता है. तुम चलो मैं अभी कपड़े लेकर आया" माँ ठंडी साँस लेकर शेड की ओर चल पड़ी और मैं वापस मकयि के खेतों की ओर.

वापस उसी स्थान पर से मैने अपने कपड़े उठाए, जब माँ के कपड़े उठाए तो उसके पेटिकोट में से उसकी कच्छि नीचे गिर पड़ी. मैने उसे उठाया और ध्यान से देखा. वो अब सुख चुकी थी मगर चूत के रस का धब्बा सा वहाँ रह गया था. मैने जिग्यासा वश उसे धब्बे को अपनी उँगुलियों से मसला, फिर कच्छि उठाकर अपने नाक के पास ले जाकर उसे सूँघा. उसकी वो तीखी गंध मेरे नथुनो से टकराई तो जिस्म मे एक बिजली की लहर सी दौड़ गयी. मैने नाक पर कच्छि लगाकर एक ज़ोर से साँस खींची तो मेरा अंदर सनसनाहट से भर गया. माँ की चूत की महक पुरानी शराब के नशे जैसी थी. मैने अपनी जाँघो के बीच झूलते अपने लंड में एक सुरसुरी सी महसूस की. अपना सर झटकते मैं वहाँ से निकल शेड की ओर चल पड़ा.
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Re: incest -ना भूलने वाली सेक्सी यादें

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माँ शेड के कमरे में नंगी बैठी स्टोव पर खाना गरम कर रही थी. वो एक लकड़ी के गुटके पर बैठी थी जो हमारे लिए स्टूल का काम देता था. उसके घुटनो पर उसके भारी मम्मे दबे हुए थे, और टाँगे थोड़ी खुली होने से चूत के होंठ थोड़ा सा खुल गये थे. अंदर से लाली झलक रही थी. मेरे लंड मैं कुछ तनाव आना सुरू हो गया था. माँ ने खाना गरम कर लिया था और स्टोव पर चाय रख वो खाना लेकर चारपाई पर आ गयी. खाना रख वो मेरे पास आई और अपने कपड़े लेने लगी तो मैने उसका हाथ झटक दिया.

"माँ इतनी भी क्या जल्दी है कपड़े पहनने की, देखो कितनी गर्मी है. चलो पहले खाना खाते हैं फिर कपड़े पहन लेना"

"अगर कोई आ गया तो हमे देखकर क्या समझेगा" माँ ने पूछा तो मैं हंसकर उसके मम्मे को प्यार से सहला कर कहा "क्या कहेगा? यही कहेगा कि माँ बेटा आपस में प्यार कर रहे हैं. बेटा माँ की ले रहा है. और क्या कहेगा?"

"कुछ शरम करो.........देखो बेटा सच में खेतों के बीच कोई और बात थी मगर यहाँ ऐसे नंगे अच्छा नही है. कोई भी आ सकता है"

"ओह माँ तुम भी कितना डरती हो" मैं उसके दोनो मम्मे दबाता बोला. "इधर कोई नही आएगा. ना कभी कोई आया है, ना कभी कोई आएगा. देखो आसमान में बदल घिर रहे हैं, लगता है बारिश होगी. ऐसे में कॉन आएगा" मैने माँ को समझाने का प्रयत्न किया मगर उसके चेहरे पर चिंता दिखाई दे रही थी.

"माँ क्यों परेशान होती हो, चलो हम खिड़की खोल लेते हैं. इधर कोई आएगा तो हमे दूर से दिखाई पड़ेगा. चलो अब खाना खाते हैं. बहुत भूख लग रही है, बहुत मेहनत करवाई है तुमने आज" माँ मेरी बात सुनकर कुछ शरमा सी गयी. मगर इतना शुक्र था वो मेरी बात मानकर चारपाई पर मेरे साथ बैठकर खाना खाने लगी. माँ मेरे सामने पालती मारकर बैठी थी. उसकी चूत पूरी खुलकर मेरी आँखो के सामने थी. मैं खाना ख़ाता ख़ाता बस माँ की चूत को घुरे जा रहा था. उस गुलाबी चूत को देखकर ही मेरे अंदर नशा सा छाने लगता था.

"खाने पर ध्यान दो. क्या ऐसे नज़र जमाए देखे जा रहे हो?" माँ ने थोड़ा सा गुस्सा दिखाते कहा.

"हाए माँ क्या कहूँ. तेरी इस गुलाबी चूत के बलिहारी जाऊ,'इससे नज़र हटती ही नही. देख तेरी चूत को देखने से मेरा लंड फिर से हार्ड हो गया है" मैने माँ को अपने खड़े हुए लंड की ओर इशारा करके कहा तो माँ के गाल लाल हो उठे. चेहरे पर शरम की लाली सी दौड़ गयी. उसने अपनी टाँगे खोल कर मोड़ कर अपनी चूत को छुपाना चाहा मगर असफल रही. मैं हंस पड़ा तो माँ खीज उठी.

"कुछ शरम कर. अब ऐसे बात करेगा अपनी माँ से"

"अरे क्यों गुस्सा करती हो माँ. अभी तो हमारे मज़ा करने का समय है. थोड़ा खुलेंगे तभी तो असली मज़ा आएगा ना?"

"क्यों अभी तक पेट नही भरा. इतना टाइम तक तो लगे रहे अभी और कॉन सा मज़ा करना बाकी है?"

"अरे माँ वो तो थोड़ी गर्मी निकली थी बदन से. असली मज़ा तो अभी करेंगे" मैने अपनी उंगली माँ की चूत की ओर बढ़ाई,'माँ ने मेरा हाथ झटका मगर मैं माना नही और फिर से उंगली चूत की ओर बढ़ा दी, उसने फिर से मेरा हाथ झटक दिया. ऐसे कुछ पलों तक चलता रहा, अंत मैं माँ ने हार मानते हुए मेरा हाथ नही झटका. मैने अपनी उंगली माँ की चूत के होंठो की लकीर पर फेरी और फिर धीरे से उसे अंदर घुसेड दिया. "हाए" माँ सिसक उठी. मेरी उंगली को गीलेपन का अहसास हुआ. मैने दो तीन बार उगली आगे पीछे कर जब बाहर निकाली तो वो पूरी भीगी हुई थी.

"माँ तुम्हारी तो पूरी चू रही है. लगता है फिर से बेटे के लंड से मरवाना चाहती है" माँ कुछ नही बोली. मगर कब्से से उसके कड़े हो चुके निपल उसकी कहानी बयान कर रहे थे.खाना लगभग ख़तम हो चुका था. माँ ने उठकर खाना ख़तम किया और बर्तन उठाकर चाय ग्लासों में डालने लगी. जब वो चाय डालने के लिए झुकी तो पीछे से उसकी गान्ड का टाइट छेद और उसकी गीली चूत चमक उठे. मेरे लंड ने एक तेज़ झटका खाया. उसने मुझे गिलास पकड़ाया और अपना ग्लास लेकर खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गयी. बादल घिरने लगे थे और रोशनी कम होने लगी थी. लगता था बारिश कभी भी हो सकती है. मैं माँ के पीछे जाकर खड़ा हो गया. मुझे वो दिन याद आ गया जब कोई डेढ़ साल पहले मैं और माँ वहाँ खड़े थे और बाहर ज़ोरदार बारिश हो रही थी. उस दिन हमारे बीच पहली बार संबंध बना था और दूसरी बार आज, लगभग डेढ़ साल बाद. माँ के पीछे खड़ा चाय की चुस्कियाँ लेता मैं उस दिन को याद कर रहा था जो अब भी मेरे मन में पूरी तरह जीवंत था.

"तुम्हे याद है वो दिन........उस दिन भी बारिश हो रही थी जब हम दोनो ने........कितना समय बीत गया है....कितना कुछ बदल गया है इन चन्द महीनो में" माँ के पीछे खड़ा होने के कारण मुझे नही मालूम वो खुश थी या उदास थी.

"माँ जो भी बदला है अच्छे के लिए ही बदला है...तुम खुश तो हो ना माँ" मैने पूछा तो माँ थोड़ा पीछे हुई और उसने अपनी पीठ मेरे बदन से चिपका दी.

"मैं बहुत खुश हूँ......तुम दोनो इतनी मेहनत कर रहे हो.......इतना कुछ हासिल करके दिखाया है तुमने.....बॅस मुझे इस बात का दुख है जो काम जो मेहनत हमे करनी चाहिए थी वो तुम कर रहे हो. मुझे इसी बात का दुख है कि मैं और तुम्हारे पिता तुम्हारे लिए कुछ कर नही पाए.......तुम्हारे पिता ने तो कभी कोशिस भी नही की और मुझमे इतनी हिम्मत ही नही थी कि......" माँ का उदास स्वर सुनकर मुझे थोड़ा दुख हुआ. वो हमारी पुरानी प्रस्थितियों के लिए खुद को कसूरवार मानती थी

"मेरी प्यारी माँ तुमने आज तक कभी हमे किसी भी चीज़ की कमी नही होने दी. हमने काम तो अब सुरू किया है, इतने सालों से हम तुम पर ही तो निर्भर थे. फिर तुम अकेली हम दोनो का बोझ उठाए क्या करती. इसलिए अपना दिल छोटा मत करो माँ. बुरा समय गुज़रा समझो, अब हमारे अच्छे दिन आ गये हैं, तुम खुश रहो. हमारी माँ जैसी अच्छी माँ किसी के पास नही होगी......और सेक्सी भी...है ना माँ" मैने अंतिम लफाज़ माँ का मूड हल्का करने के लिए कहे तो उसने अपनी कोहनी पीछे मेरे पेट पर मारी. "बेशरम" उसके मुख से फूटा. मेरी हँसी छूट गयी. शुक्र था चाय ख़तम हो चुकी थी, मैने गिलास दूर फेंक दिया. अपने हाथ आगे कर मैने माँ के मम्मे पकड़ लिए.

"सच ही तो है...तुम जैसी कामुक और नशीले बदन वाली माँ किसके पास होगी" मैने माँ का गाल चूमते हुए कहा.
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माँ ने कोई जबाव नही दिया, मेरी बातों से उसका मन ज़रूर हल्का हो गया था, इतना मैं ज़रूर जानता था लेकिन शायद वो अभी उत्तेजित नही हुई थी. और मैं उसे खूब उत्तेजित करना चाहता था. मैने अपने हाथ नीचे लेजा कर माँ के दोनो चुतड़ों को थोड़ा सा फैलाया और आगे बढ़कर अपना लंड उसकी गान्ड के छेद पर धीरे धीरे रगड़ा. आधे मिंट में ही मुझे माँ के बदन में बदलाव नज़र आने लगा. उसका बदन हल्का हल्का कांप रहा था. सांसो की आवाज़ बढ़ गयी थी. मैने लंड को थोड़ा सा आगे बढ़ा कर उसकी चूत के मुँह पर रगड़ा और उसके चुतड़ों को मुत्ठियों में भरकर मसलने लगा.

"माँ एक बात कहूँ" मैं माँ के कान की लौ को अपने दाँतों से काटते हुए बोला.

"हुंग?" माँ ने धीरे से कहा.

"माँ तुम्हारी गान्ड बहुत प्यारी है, हाए तुम्हारे चुतड कितने टाइट हैं. एसी टाइट गान्ड तो कुँवरियों मे भी देखने को नही मिलती"

"कितने बेशरम बन गये हो, ज़रा तो लाज करो" माँ ने धीरे से सिसकते कहा.

"अब काहे की लाज माँ. हाए माँ असली मज़ा तो बेशहमी में ही है. तुम्हे मज़ा नही आता इस बेशर्मी में माँ?" मैने हाथ आगे लेजा कर उसके मम्मे अपने हाथों में समेट लिए.

"हाए बेटा मगर कोई हद तो होती है ना" माँ की साँसे अब बहुत गहरी हो चली थीं. बस कुछ ही मिंटो की बात थी जब वो फिर से उसी आवेश में आ जाएगी जिसमे वो तब थी जब मैं उसे मकयि के खेत में चोद रहा था और वो मेरे लंड पर उछल उछल कर चुदवा रही थी.

"माँ हदें तोड़ डालो. हदों के पार जाकर ही असली आनंद है. वैसे भी हम रिश्तों की सभी हदें तोड़ ही चुकें हैं. क्या कहती हो माँ?" माँ की चूत पर घिसता मेरा लंड गीला होना सुरू हो गया था. उसकी चूत से पानी रिस रिस कर बाहर आना सुरू हो गया था.

"तुम्हे सच में मेरी इतनी प्यारी लगती है या झूठ बोल रहे हो" माँ कुछ पलों तक चुप रहने के बाद बोली. लगता था लोहा पूरा गरम हो चुका था. चूत रिस रही थी, मेरे गंदे अल्फ़ाज़ उसकी आग में घी डाल रहे थे, बस अब कोई बढ़ा नही थी अगर थी तो वो जल्द ही गिरने वाली थी. माँ की बात सुन मैने हाथ फिर से नीचे लेजा कर उसके चुतड़ों को सहलाया और अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ा तो उसने भी कमर पीछे को मेरे लंड पर दबाकर अपनी बेकरारी का सबूत दिया.

"झूठ में क्यूँ बोलूँगा माँ, सच में तुम्हाई गान्ड बहुत प्यारी है. हाए बिल्कुल दिल के आकार की है. सिरफ़ गान्ड ही क्या, तुम्हारे ये भारी मम्मो की क्या बात करूँ, हाए साला देखते ही मेरा पत्थर की तरह खड़ा हो जाता है" मैने माँ को अपनी और घूमाते हुए कहा. उसके मम्मो को अपने हाथों में तोलने लगा. खिड़की से आती ठंडी हवा से और उत्तेजना से उसके निपल इतने अकड़ गये थे. "हाए माँ देखो तुम्हारे निपल कितने अकड़ गये हैं, कितने नुकीले हो गये हैं" मैं उन्हे ध्यान से देखता बोला. "माँ चुसू तुम्हारे मम्मे?"

जबाब मे माँ ने एक हाथ से अपना मम्मा पकड़ मेरे मुँह में डाल दिया और मेरे सर को अपने मम्मे पर दबाया. "चूस ना, मैं कब मना करती हूँ. जितना चाहे चूस ले. माँ के मम्मों पर बेटे का ही अधिकार होता है" माँ अब मेरे वश में थी, जिस हालत में मैं उसे देखना चाहता था वो उस हालत में पहुँच चुकी थी.

ना जाने क्यो आज मेरा दिल कर रहा था कि माँ की काम वासना इतनी भड़का दूं, इतनी भड़का दूं कि वो सब कुछ भूलकर पूरी बेशर्मी से मुझसे चुदवाये. और जिस तरह माँ की हालत थी, मुझे लगा माँ अब जैसा मैं चाहूँगा वो वैसा ही करेगी, जैसा मैं कहूँगा वो वैसा ही बोलेगी.

उसके मम्मों को बदल बदल कर खूब चूसा. माँ बुरी तरह सिसक रही थी. मेरा सर अपने मम्मों पर दबवा रही थी. काली घटायें, ठंडी हवाएँ हमारे आनंद में और इज़ाफा कर रही थीं. उसके बदन से नहाने के बाद बहुत प्यारी सी गंध आ रही थी. मैने खूब दबा कर मम्मे चूसे उसके. अंत मैं अपना मुख उसके मम्मो से हटाया तो पूरे लाल सुर्ख हो चुके थे.

"अब बोल, पहले चुदवायेगी या चटवाएगी,......... बोल माँ" मेरी बात से माँ का सुर्ख चेहरा और भी सुर्ख हो गया.

"और कितना करेगा, पहले ही तूने घंटा भर मकयि के खेत में किया, फिर बोरेवेल में भी. अभी बस करते हैं ना" माँ चुदवाने के लिए तरस रही थी लेकिन अपने मुख से नही कहना चाहती थी. नारी का स्वभाव ही ऐसा होता है और सच पूछिए मर्द को नारी की इस लज्जा मे ही ज़्यादा मज़ा आता है. मगर कहते हैं ना कभी कभी स्वाद बदल लेना चाहिए, एक सा खा खा कर मन उब जाता है, मेरी भी वोही हालत थी. मैं चाहता था माँ आज अपनी लाज छोड़ कर मुझसे चुदवाये. जितनी बेशर्मी से मैं उससे पेश आ रहा था वो भी मुझसे उसी बेशर्मी से पेश आए. माँ को अब मेरी बेशरमी पर कोई एतराज़ नही था, वो उतनी उत्तेजित तो हो ही चुकी थी, मगर वो खुद उस बेशर्मी पर नही उतरी थी, अभी उसमे कुछ लज्जा बाकी थी और वो दूर करनी थी. हालाँकि अगर मैं चाहता तो अपना लंड उसकी चूत में घुसेड कर उसे उस अवस्था मैं कुछ एक पलों में पहुँचा सकता था मगर मैं उसे चुदाई से पहले उस हालत में देखना चाहता था.

"अरे माँ वो तो ज़रा बदन से गर्मी निकली थी, असली चुदाई तो अब होगी तेरी. आज तो खुल कर तुम्हे चोदुन्गा. बहुत सी हसरतें पूरी करनी हैं मुझे. तू बता तेरा दिल नही करता, तुझे मज़ा नही आया था चुदवाने में?"

"नही, मुझे नही आया" माँ के होंठो पर मुस्कान भी थी, लज्जा भी थी. मैने आगे बढ़ कर उसकी चूत से लंड भिड़ा दिया और उसके चूतड़ो को अपने लंड पर दबाने लगा. हमारे चेहरे आमने सामने थे, एक दो इंच का फासला था, सांसो से साँसे टकरा रही थीं.

"मज़ा नही आया! मज़ा नही आया तो मेरे लंड को उछल उछल कर अपनी चूत मे क्यों ले रही थी, हुंग? याद है कैसे तुझे बोरेवेल्ल में पानी के अंदर ठोका था? तब तो ज़ोर से ज़ोर से पेलने के लिए कह रही थी!" मेरा लंड चूत के होंठो को खोल कर उसके भंगूर को रगड़ रहा था. अगर मैं चाहता तो हल्के से धक्के से लंड अंदर कर देता, मगर जो मज़ा माँ को उतावला करने में था फिर वो नही मिलता. मा सिसकते सिसकते कभी मेरी ओर देखती, कभी नज़र नीची कर लेती. जैसे ही मेरा लंड चूत के दाने को रगड़ता तो उसके होंठ खुल आते और वो बड़ी ही मादक सी सिसकी भरती.

"तो कर ना जो तेरा दिल करता है, जैसे तेरा दिल करता है करले. तुझे मालूम है मुझे कितना मज़ा आया था" माँ ने मेरी आँखो में आँखे डाल कर कहा.

"जैसे चाहूं कर लूँ?" मैने वैसे ही अपना लंड उसकी चूत पर घिसते हुए पूछा.

"अब क्या लिख कर दूं?" वो थोड़ा सा खीच कर बोली. लगता था वो चूत में लंड लेने के लिए तड़प रही है.

" तो फिर मेरा साथ क्यों नही देती?" मैने लंड को हिलाना बंद कर दिया. बिल्कुल स्थिर होकर उसकी आँखो में आँखे डाले उससे पूछा. हमारे होंठ लगभग सट गये थे.

"पूरी नंगी होकर तुम्हारे सामने खड़ी हूँ! तुम्हे जैसा तुम्हारा दिल चाहे वैसा करने की खुली चूत भी दे दी, अब और क्या करूँ?" मैने अपने होंठ माँ के होंठो पर दबा एक चुंबन लिया.

"तू जानती है मैं क्या चाहता हूँ! नही जानती?" मैने फिर से उसकी आँखो में झाँका. वो कुछ पलों तक चुप रही, जैसे कुछ निस्चय कर रही थी. फिर उसने मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए और हम एक गहरे चुंबन में डूब गये.

जब हमारे होंठ अलग हुए तो माँ ने अपनी साँस संभाली फिर मेरे गाल को चूमती मेरे कान मे फिसफ्साई "बेटा! मेरी चूत तो चाट" माँ के होंठो से वो अल्फ़ाज़ सुनते ही मेरे होंठो से सिसकी निकल गयी, मेरे लंड ने एक जबरजस्त झटका मारा. ना सिर्फ़ वो लफ़्ज इतने अश्लील और भड़काऊ थे मगर जिस तरीके से माँ ने उन्हे कहा था उसने उन लफ़्ज़ों की मादकता और भी बढ़ा दी थी. अब माँ बिल्कुल उस हालत में थी जिसमे मैं उसे चाहता था.

"क्या करूँ माँ? फिर से बोल ना" मैने उसे उकसाते हुए कहा.

"मेरी....मेरी चूत....चाट ना बेटा........हाए मेरा बड़ा दिल कर रहा है ......चूत चटवाने को" माँ मेरे कान में वैसे ही सरगोशी करते हुए बोली. मैने माँ की आँखो में झाँकते हुए कहा "यह हुई ना बात. यही तो मैं सुनना चाहता था" मैने माँ के होंठो पर एक चुंबन अंकित किया और बोला "अगर चूत चटवानी है तो ज़रा अपनी टाँगे चौड़ी कर ले" मैं घुटनो के बल नीचे बैठता बोला. माँ ने तुरंत मेरा हुकम माना. अब वो पूरी तरह मेरी मुट्ठी मैं थी.

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मैने बिना कोई देरी किए उसकी कामरस से बरसाती और महकती चूत पर अपनी जीभ लगा दी. जीभ की नोंक को जैसे ही मैने माँ की चूत की लकीर पर उपर से नीचे तक फेरा तो माँ "हाए" करके बहुत ज़ोर से करही. मैने अपने हाथ पीछे माँ के चूतड़ो पर ज़मा दिए.

"माँ ज़रा अपनी चूत तो खोल अपने हाथों से" माँ ने तुरंत अपने हाथों से अपनी चूत को फैला दिया. अंदर से गुलबीपन लिए उसकी चूत रस से लबालब भरी दिखाई दे रही थी. मैने अपने होंठ चूत पर लगाकर उसका रस पीने लगा. रस चूस कर मैं अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटते हुए उसका बाकी का रस भी समेटने लगा. एक बार जब उसको पूरा सॉफ कर दिया फिर मैने अपने होंठो से उसके भग्नासे को दबा लिया और उस पर अपनी खुरदरी जीभ घिसने लगा. माँ तो जैसे पागल होने लगी. आआहह.....हइईई............,उूुुुउउफफफफफफफफफ्फ़......करके चीखने चिल्लाने लगी. उधर मेरी भी बुरी हालत थी. लॉडा इतना अकड़ चुका था कि दर्द कर रहा था. मैने किसी प्रकार सबर रखा और उसकी चूत के दाने को अपनी जीभ से घिसना चालू रखा. कभी कभी उसे मैं दाँतों से काटता तो माँ का जिस्म काँपने लगता. उसने चूत से हाथ हटाकर मेरे सर पर रखकर मेरे बालों को मुत्ठियों में भीच लिया. वो मेरा मुँह अपनी चूत पर रगड़ रही थी. चीख रही थी, चिल्ला रही थी, आहें भर रही थी. उसके बदन मे ज़ोर की कंपकंपी होने लगी, मैं समझ गया कि क्या होने वाला है. मैने पूरा ज़ोर लगाकर भन्कुर को चूसने लगा और उसकी चूत में एक उंगली घुसा कर आगे पीछे करने लगा.

आआआहझज...............हहिईीईईईईईईईईईईईईईईईई...........मैं गयी.........मैं गयी...............आआआआहज्ज.........वो झाड़ रही थी. मेरे बालों को इतने ज़ोरों से खींच रही थी कि मुझे बहुत दर्द होने लगा. मगर मैने अपने होंठ उसकी चूत पर दबाए रखे और उसकी रस बरसाती चूत से बहते रस को तब तक चूस्ता रहा जब तक उसका सखलन होना बंद ना हो गया. एक बार झड कर जब वो थोड़ी निढाल सी होने लगी और मेरे बालों पर उसकी पकड़ ढीली पड़ गयी तो मैं झटके से उठ खड़ा हुआ. मेरा पूरा मुँह उसकी चूत के रस से भीगा हुआ था. मैने माँ को अपनी बाहों में उठाया और चारपाई पर लिटा दिया. जैसे ही मैं चारपाई पर चढ़ने लगा, माँ ने अपनी टाँगे फैला दीं ताकि मैं उनमे समा सकूँ, उसने अपनी बाहें मेरी ओर फैला दीं. "आजा.....आजा....जल्दी कर....जल्दी कर.....हाए..,,उफफफफफ्फ़.....,"



माँ की टाँगो के बीच पोज़िशन सेट करके मैने अपना लंड माँ की चूत से भिड़ा दिया. माँ कुहनीओ के बल होकर हमारे मध्य में देखने लगी."डाल.....जल्दी........जल्दी डाल........उफफफफफ्फ़......" मैने लंड को निशाने पर लगाकर माँ की कमर को थाम लिया.

"डाल दे ....घुसा दे पूरा.......हाए.......जल्दी से घुसा....." मैने कमर पर हाथ ज़माए एक करारा झटका मारा और लंड माँ की मक्खन सी चूत को भाले की तरह छेदता हुआ पूरा अंदर जा धंसा.

"हहिईीईईईईईईईईईईई........हाए....हाए .....मेरी चूत......उफफफफ्फ़....चोद....चोद मुझे.....चोद बेटा........चोद अपनी माँ को......,उफफफफफफफफ्फ़...,,चोद मुझीईई......" माँ ने आनी टाँगे मेरी कमर पर कस दीं थी. मैने भी कमर खींच कर लंड पेलना सुरू कर दिया. पहले धक्के से ही माँ अपनी कमर उछालने लगी. जितना ज़ोर मैं उपर से लगाता, उतना ही ज़ोर वो मेरे कंधे थामे नीचे से लगती. हमारी ताल से ताल मिल रही थी. लंड और चूत खटक खटक एक दूसरे पर वार पे वार कर रहे थे. उस ठंडे मौसम में भी हमारे बदन पसीने से भीगने लगे थे.

"हाए चोद....ऐसे ही चोद........मार मेरी चूत.........उउउफफफफ्फ़.......कस कस कर मार मेरी चूत............चोद दे अपनी माँ को.......चोद दे अपनी माँ को मेरे लाल......" माँ पूरी बेशहमी पर उतर आई थी जा मैने उसे मजबूर कर दिया था जो भी हो मगर उस घमसान चुदाई का एक अलग ही मज़ा था.

"ले......ले मेरा लंड माँ.......,,,चुदवा ले अपने बेटे से.......ऐसा चोदुन्गा जैसे आज तक ना चुदि होगी तू.........." मैं ताबड़तोड़ धक्के मारता अपना पूरा ज़ोर लगा रहा था.

"आजा मेरे लाल....चोद ले अपनी माँ को.........चोद ले हाए.............हाए मेरे मम्मे मसल........मसल मेरे मम्मों को..........ऐसे ही पूरा लंड जड़ तक पेल मेरी चूत में ........हाए....हाए......" मैं हर धक्के पर और भी गहराई तक लंड घुसेड़ने की कोशिश करता. मेरे हाथ पूरी बेरेहमी से माँ के मॅमन को मसल रहे थे. इतनी बेरहमी से शायद वो आम हालातों मे बर्दाशत ना कर पाती मगर इस समय जितना मैं उससे ज़ोर आज़माइश करता उतना ही उसे मज़ा आता.

"ऐसे ही चुदवा बेशर्म बनके माँ......ऐसे ही.....हाए बड़ा मज़ा आता है मुझे.....जब...तू...हाए......उफफफ़फ़गगग......"

"बस तू अपना लॉडा पेलता रह मेरे बेटे ..........अपनी माँ को ठोकता रह.........हाए....जितना तू चाहेगा........ उससे ज़्यादा ...........तेरी माँ बेशर्म बनके तुझसे चुदवायेगी..........मेरे लाल.....मेरे बच्चे.......अपनी माँ की ले ले .....ले ले अपनी माँ की......"

"तू देखती जा कैसे चोदता हूँ तुझे .........साली कुतिया बनाकर चोदुन्गा तुझे........कुतिया बनाकर" कामोउन्माद मे कोई हद नही होती, कोई हद नही होती.

"कुतिया बनाएगा मुझे.... अपनी माँ को कुतिया बनाएगा......." माँ ने अपनी कमर एक पल के लिए रोक दी, शायद मुझे वो नही कहना चाहिए था उस समय मेरी हालत एसी थी कि मुझे कोई परवाह नही थी.

"हां बनाउन्गा कुतिया..........कुतिया बनाकर चोदुन्गा तुझे" मैने भी धक्के रोककर उससे कहा.

"तो बना ना कुतिया....बना मुझे कुतिया और चोद मुझे...." माँ का ये रूप मेरे लिए बिल्कुल अलग था मगर उस समय मेरे पास बिस्मित होने के लिए भी समय नही था. मैं फॉरन झटके से माँ के उपर से हटा और चारपाई से उतरा. माँ भी तुरंत मेरे पीछे उठ खड़ी हुई और मेरी तरफ पीठ करने लगी. मगर मैने उसे पकड़ कर नीचे को झुकाया, उसने सवालिया नज़रों से मेरी ओर देखा मगर वो नीचे बैठ गयी.

"अपना मुँह खोल कुतिया...." मैने अपना लंड माँ के मुँह के आगे कर दिया. माँ को समझ आ गया और उसने अपना मुँह खोल दिया. मैने लंड उसके मुँह में ठोक दिया और उसके बाल पकड़ उसका मुँह चोदने लगा.

"चूस मेरा लंड....चूस इसे...,तेरी चूत का रस भी लगा है इस्पे.....चूस" हालाँकि मैं माँ के गले तक लंड ठेल देता था मगर उसने कमाल का साहस दिखाया और एक बार भी मुझे नही रोका बल्कि अपने होंठ मेरे लंड पर कस वो सुपाडे पर खूब जीभ घिस रही थी. मैने ज़्यादा देर माँ को लंड ना चुस्वाया. उसे उठाकर खड़ा किया और फिर दूसरी और घुमाया. माँ थोड़ी घूम गयी और खुद ही चारपाई पर हाथ रख अपनी गान्ड पीछे को उभार कर चौपाया बन गयी. मैने बिना एक पल गँवाए माँ की चूत पर लंड रखा और अपने हाथों से उसकी पतली कमर को थाम लिया. दाँत भींच मैने ज़ोर लगाया तो लंड पूरी चूत को चीरता अंदर जा घुसा. फिर से वोही वहशी चुदाई चालू हो गयी.

"ले साली कुतिया....ले मेरा लंड..........ले ले मेरा लंड.........तेरी चूत का भोसड़ा बना दूँगा आज" मैं दाँत भींचते चिल्लाया. ऐसे पीछे से खड़े होकर धक्के मारने में बहुत आसानी थी, इस अवस्था में मर्द वाकई अपनी पूरी ताक़त इस्तेमाल कर सकता है और मेरे उन ताक़तबर धक्कों का प्रभाव माँ पर दिखाई दे रहा था. माँ अब बोलना बंद कर बस अब सिसक रही थी.

"आआअहह बेटा मैं झड़ने वाली हूँ.......हाए उफफफफफफफफफफ्फ़...........मैं हाए.....आआहह....हे भगवान....चोद.....चोद....उफफफफ्फ़..बेटा....बेटा......मेरे लाल...."

"मेरा भी निकलने वाला है माँ.....हाए ...बस थोड़ी देर माँ ........." मैं उन पलों को कुछ देर और बढ़ाना चाहता था मगर जिस ज़ोर से मैने चुदाई की थी अब ज़्यादा देर मैं टिकने वाला नही था. उन आख़िरी धक्कों के बीच मेरा ध्यान माँ की गान्ड के उस बेहद संकरे छेद पर गया और अगले ही पल मेरे मन में एक नया विचार आया.

"माँ हाए मेरा तो....अभी...उफ़फ्फ़ ध्यान ही नही गया.......तुम्हारी...,गान्ड कितनी .........टाइट है.......उफफफफफ्फ़...बड़ा मज़ा आएगा...,तेरी गान्ड मारने में........" मैने एक हाथ उठाकर दोनो चुतड़ों के बीच की खाई में डाल उसकी गान्ड का छेद रगड़ने लगा. मैने अपनी एक उंगली माँ की गान्ड में घुसा दी.

"आआआआआआहह..." माँ चिहुनक पड़ी. मैने चूत में लंड पेलते हुए उसकी गान्ड में जब उंगली आगे पीछे की. बस अगले ही पल माँ का पूरा जिस्म काँपने लगा, चूत संकुचित होने लगी वो चीखती, चिल्लाती मेरे लंड पर अपनी चूत रगड़ती छूटने लगी. उसके छूटते ही मेरा भी बाँध ढह गया और मेरे लंड से भी विराज की गरमागरम पिककारियाँ छूटने लगीं. माँ सिसक रही थी, कराह रही थी, मैं हुंकारे भर रहा था.

आह्ह्ह्ह 'बेटा....बेटा' कह रही थी और मेरे मुख से 'माँ...माँ......ओह माँ' फुट रहा था. ऐसे स्खलन के बारे में कभी सोचा तक नही था.

हम दोनो बुरी तरह थक कर पस्त हो चुके थे. किसी में भी हिकने का दम नही था. आधे से भी ज़्यादा घंटे तक माँ और मैं बिना हीले डुले पड़े रहे. अंत मैं माँ ने ही हिम्मत दिखाई. उसने कपड़े पहने और मेरे कपड़े मेरे पास रख वो बाल्टी लेकर दूध निकालने चली गयी. मैं कुछ देर पड़ा रहा. हिम्मत ही नही थी, मगर उतना तो आख़िर था ही. उठकर मैं शेड से बाहर आया तो शाम को ही रात जैसा अंधेरा हो गया था. हल्की हल्की बूंदे धरती पर गिर रही थी. माँ दूध निकल कर आ रही थी. मैं पशुओं को पानी पिला उनको चारा डालने लगा. चारा डाल जब मैं वापस शेड में गया तो माँ मेरा ही इंतजार कर रही थी. उसने दूध की बाल्टी उठाई हुई थी. वो सब्जियाँ तोड़ लाई थी. मैने साइकल निकली. समान को साइकल पर अच्छे से रख हम घर की ओर चल पड़े.

घर पहुँचते पहुँचते बारिश काफ़ी तेज़ हो गयी थी. हम दोनो भीग गये थे. घर के अंदर घुसते ही माँ बाथरूम मे नहाने चली गई और मैं सामान अंदर रखने लगा. सामान रखकर मैने सब्ज़ी काटनी चालू की ताकि माँ के आने तक उसकी कुछ मदद कर सकूँ. माँ ने आते ही मुझसे छुरी छीन ली और मुझे रसोई से भगा दिया. मैं भी नहाने चला गया. नाहकार कपड़े पहने मैने रेडियो लगाया. तब तक खाना तैयार था. खाना खाने के बाद माँ किचेन में बर्तन सॉफ करने चली गयी. खाना खाने के पूरे समय हम लगभग चुप रहे थे. बारिश के सिवा और कोई बात नही हुई थी. हम दोनो उस चुदाई के बाद से एक दूसरे से कुछ सकुचा से रहे थे. हालाँकि मुझे किसी किस्म का पछतावा नही था कि हमने आज ऐसे निर्लज्ज होकर चुदाई की थी ही मुझे लगता था माँ को भी कोई शिकवा है. फिर भी हम एक दूसरे से कतरा रहे थे.
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