बड़े घर की बहू (कामया बहू से कामयानी देवी) complete

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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

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कामया लेटी हुई अपने अतीत और वर्तमान की घटनाओं में डूब गई थी कहाँ से कहाँ आ गई थी वो उस घर से बाहर निकलते ही वो एक सेक्स की देवी बन गई थी लाखा, भीमा और भोला हाँ और ऋषि भी और अब गुरुजी और पता नहीं क्या-क्या चुना हुआ है उसकी किस्मत में पर कामेश कहाँ है उसे उसकी चिंता नहीं है एक बार भी उसने कॉंटक्ट नहीं किया और नहीं उसकी कोई खबर ही है कामेश भी पैसा कमाने की जुगत में लगा है और पापा जी भी ना कोई उसकी चिंता और ना ही कोई खबर पर कामया की चिंता वो लोग क्यों करे भला वो तो गुरुजी की संपत्ति की मालकिन हो गई है और उसे संभालने के लिए कामेश और पापा जी को तो मेहनत करनी ही पड़ेगी नहीं तो कामया क्या संभाल पाएगी कामया को तो अपनी जगह
पक्की करना है बस और गुरुजी के सिखाए हुए तरीके से चलना है और क्या बस इतना सा तो काम है पूरे मजे और वैभव भरी जिंदगी है उसकी उसे तो कोई काम करने की जरूरत ही नहीं है बस हुकुम देना है और और हाँ… उसे गुरुजी जैसा भी बनना है अपने आप पर काबू रखना है अपने मन और तन को काबू में रखना है बस पर यह होगा कैसे वो तो खुद पर काबू नहीं रख पाती उसे तो सेक्स की भूख अब तो और ज्यादा लगने लगी है इस वैभव भरी जिंदगी की उसे आदत लग गई है और हर कहीं उसे सेक्स की इच्छा होती थी हर कहीं तो वो महिलाए उसे नहलाते हुए तेल की मालिश करते हुए उबटान लगाते हुए और कपड़े तक पहनते हुए उसे उत्तेजित ही करती ही रहती थी अभी खना खाकर जब वो कमरे में आई थी तो उन में से दो महिलाओं ने उसे इत्र से और पाउड़र से अच्छे से मालिश किया था फिर वो पेय पीलाकर चली गई थी पर उसे नींद नहीं आ रही थी उसे तो रूपसा और मंदिरा की हरकत के बारे में याद आ रही थी उस महिला के बारे में सोचकर ही वो उत्तेजित सी हो उठी थी उसे क्या करना चाहिए पता नहीं पर उत्तेजना बदती जा रही थी ना चाहते हुए भी वो अपनी हाथों को अपनी जाँघो के बीच में ले गई थी और धीरे-धीरे अपनी योनि को छेड़ने लगी थी होंठों से एक आह निकल गई थी इतने में कमरे का दरवाजा खुला और एक दासी जल्दी से उसके पास आ गई थी
दासी- क्या हुआ रानी साहिबा कुछ चाहिए

कामया- नहीं बस ऐसे ही क्यों … …

दासी- जी वो आवाज आई थी ना इसलिए

कामया एक बार सोचने लगी जरा सी आवाज कमरे के बाहर कैसे चली गई थी क्या उसने बहुत जोर से चिल्ला दिया था नहीं नहीं अपने हाथों को जल्दी से निकाल कर वो सोने लगी थी दासी थोड़ी देर खड़ी रही और मूड कर जाने लगी थी की कामया ने उसे आवाज दी
कामया- सुनो
दासी- जी
कामया- वो रूपसा और मंदिरा कहाँ है

दासी- जी वो नीचे कमरे में होंगी बुलाऊ … …

कामया नहीं- सब सो गये है क्या …

दासी- नहीं गुरुजी जाग रहे है बाकी सोने वाले होंगे पता नहीं इस माल में आप और गुरुजी ही है नीचे का पता नहीं

कामया- गुरुजी क्या कर रहे है …

दासी जी पता नहीं रानी जी हमें जाने की अग्या नहीं है कहे तो आपको उनके पास ले चले …

कामया- नहीं नहीं तुम जाओ

कुछ सोचती हुई कामया एक बार उठी और दासी की ओर देखते हुए बोली

कामया- गुरुजी कहाँ है मुझे कुछ काम है

कहती हुई वो जल्दी से बेड से उतरगई थी और ढीले ढाले कपड़े को किसी तरह से व्यवस्थित करते हुए दासी के पीछे चलने लगी थी दासी भी कामया की ओर एक बार देखकर चुप हो गई थी वो कपड़ा उसके अंगो को छुपा कम रहा था बल्कि दिखा ज्यादा रहा था सिर के ऊपर से एक बड़ा सा गोलाकार काट कर बस ऊपर से ढाल दिया था ना कमर में कुछ बँधा था और नहीं कुछ सृंगार था

साइड से उसके हर अंग का उतार चढ़ाव भी दिख रहा था सामने से और पीछे से थोड़ा बहुत ढँका हुआ था कमरे से बाहर आते ही सन्नाटे ने उसे घेर लिया था बस कुछ दूरी पर एक दासी और खड़ी थी दीवाल से चिपक कर शायद वही कमरा था गुरुजी का और पूरा फ्लोर खाली था बिना झिज़्के कामया ने अपने कदम गुरुजी के कमरे की ओर बढ़ा लिए थे दासी कुछ दूरी पर रुक गई थी और दूसरी दासी ने भी उसे झुक कर सलाम किया था और डोर के सामने से हट गई थी कामया जब डोर के सामने पहुँचि थी तो पलटकर एक बार उन दोनों दासी की ओर देखा था वो दूर जाती हुई देख रही थी यानी की पूरे फ्लोर में सिर्फ़ यह दो दासिया ही है हिम्मत करके उसने बड़े से डोर को धक्का दिया और खुलते ही वो अंदर दाखिल हो गई थी

गुरु जी डोर से दूर पर्दो के बीचो बीच में एक बड़े से पलंग पर अधलेटे से दिखाई दिए डोर खुलते ही उनकी नजर भी डोर की ओर उठी थी और जैसे ही कामया को अंदर दाखिल होते देखा तो एक मधुर सी मुश्कान उनके होंठों पर दौड़ गई थी

कामया ने घुसते ही डोर को धीरे से बंद कर दिया था और अंदर से लॉक भी लगा दिया था गुरुजी उसकी हरकतों को बड़े ध्यान से देख रहे थे दरवाजा बंद करने के बाद कामया ने एक नजर गुरु जी की ओर देखा जो की अब उठकर बेड पर बैठ गये थे और जो कुछ पढ़ रहे थे वो भी हटा दिया था

कामया थोड़ा सा झिझकी थी पर अपने आपको ववस्थित करते हुए अपने कदम आगे गुरु जी के बेड की ओर बढ़ा दिए थे कामया थोड़ा सा डरी हुई थी थोड़ा सा घबराई हुई भी पर अपने तन के हाथों मजबूर कामया अपने शरीर की आग को ठंडा करने गुरुजी के पास आई थी

गुरुजी- क्या बात है सखी … …

कामया- जी वो नींद नहीं आ रही थी इसलिए

गुरुजी- कोई बात नहीं सखी आओ मैं सुला दूं
कहते हुए गुरुजी ने अपने हाथ कामया की ओर बढ़ा दिए थे कामया तब तक उनके बेड के पास पहुँच गई थी और जैसे ही गुरुजी की हाथों को अपनी ओर देखा झट से उसने अपने हाथ उसपर रख दिए थे अब उसे कोई डर नहीं था
गुरुजी- आओ बैठो
और अपने पास उसे बैठने का इशारा किया गुरुजी ऊपर से नंगे थे और नीचे सिर्फ़ एक लूँगी टाइप का छोटा सा कपड़ा बँधा था पूरा शरीर साफ दिख रहा था कामया उन्हें देखते ही उत्तेजना से भर गई थी पर एक झिझक थी जो उसे रोके हुए थी शायद वो झीजक ही खतम करने आई थी वो
गुरुजी के पास बैठते ही
गुरुजी- ठीक से बैठो सखी यह सब तुम्हारा ही है यहां इस आश्रम का हर चीज तुम्हारा है मैं भी तुम्हारा हूँ तुम इस अश्राम की मालकिन हो जिससे तुम जो कहोगी वो उसे करना है इतना जान लो इसलिए झीजक और शरम इस अश्राम के अंदर मत करना वो सब बाहरी दुनियां के लिए है

कामया ठीक से बैठ गई थी उसके शरीर में जो कपड़ा था वो बैठते ही सरक कर उसकी जाँघो के बहुत ऊपर सरक गया था और साइड से बिल्कुल खुलकर सामने की ओर लटक गया था साइड से देखने में कामया का शरीर एक अद्भुत नजारा दे रहा था कमर से उठ-ते हुए उसके शरीर का और सुंदर और सुडौल जाँघो के नीचे उसकी टांगों का उउफ्फ… क्या लग रही थी नज़रें झुकाए बैठी कामया गुरुजी के आगे बढ़ने का इंतजार करती रही पर गुरुजी कुछ नहीं किए सिर्फ़ उसे नजर भरकर देखते रहे कामया ने एक नजर उठाकर उसे देखा था गुरुजी से आखें टकराई थी और गुरुजी के होंठों पर फिर से वही मुश्कान दौड़ गई थी
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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

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गुरुजी- कहो सखी कुछ कहना है

कामया ने सिर्फ़ सिर हिला दिया था क्या कहती वो जो कुछ चाहिए था वो दे दो बस और क्या कामया थोड़ा सा सरक कर गुरुजी की और हो गई थी गुरुजी ने अपने हाथों के सहारे उसे अपने से सटा लिया था उसका शरीर कपड़े से बाहर झक रहा था लेफ्ट चूचियां तो पूरा ही बाहर था और सिर्फ़ निपल्स पर कपड़ा अटका था वो भी गुरु जी ने उतर कर अलग कर दिया

गुरुजी के हाथों के सहारे कामया अपने शरीर को उनके सुपुर्द करते हुए उनके सहारे लेट गई थी उनके बहुत पास पर गुरुजी ने उसे और अपने पास खींचा और

गुरुजी- आओ में तुम्हें सुला दूं इतना उत्तेजित क्यों हो क्या कमी है तुम्हें

कामया- (अपने सांसों को कंट्रोल करते हुए ) बहुत मन करता है गुरुजी इसलिए रोक नहीं पाई

गुरुजी- कोई बात नहीं सखी हमसे कैसी शरम

कामया- इसलिए तो आ गई गुरुजी प्लीज मुझे शांत करो

गुरु जी- हाँ… शांत में करूँगा पर ऐसे नहीं आज तुम्हें भी दिखाना होगा की तुम क्या हो और कितना चाहती हो सेक्स को ताकि हम दोनों इस खेल का आनंद ले सके

कामया ने अपनी बाँहे गुरुजी के गले में पहना दी थी और उनके गालों को सहलती हुई धीरे-धीरे अपने होंठों को उनके पास ले गई थी
कामया- जी गुरुजी जो आप कहेंगे में वही करूँगी

गुरुजी ने अपने होंठ कामया के होंठो से जोड़ कर धीरे-धीरे उसके होंठों का रस्स पान करते रहे किसी को कोई जल्दी नहीं थी ना कामया और ना ही गुरुजी को पता था कि कोई रुकावट नहीं है कामया एक उत्तेजित और कामुक स्त्री थी और गुरुजी को भी उसके शरीर को चाह थी और अश्रांम का हर आदमी औरत उनके गुलाम थे

बड़े ही अपने पन से दोनों ने यह खेल शुरू किया था कामया तो उत्तेजित थी ही अपना पूरा ध्यान गुरुजी को उत्तेजित करने में लगा रही थी कामया लेटी हुई अपने होंठों को गुरुजी से जोड़े हुए अपने हाथों को उनकी पीठ और उनके सीने पर घुमाती हुई नीचे की ओर ले जा रही थी उसके हाथों में जब गुरुजी की कमर पर बँधा कपड़ा अटका तो थोड़ी सी नजर खोलकर गुरुजी की ओर देखा था उसने गुरुजी की नजर भी खुली थी और एक मूक समर्थन दिया था उन्होंने कामया के हाथों ने उस कपड़े को खोलने में कोई देरी नहीं की और गुरुजी भी उसकी तरह से पूर्णता नग्न थे अब दोनों के शरीर एक दूसरे से जुड़े थे और एक दूसरे के शरीर का एहसास कर रहे थे कामया मूड कर गुरुजी की बाहों में समाती चली गई थी और गुरुजी भी उसे अपनी बाहों में कसते चले गये थे

गुरुजी के साथ-साथ कामया की सांसें बहुत तेज चल रही थी और दोनों एक दूसरे के होंठों को अच्छे से और पूरे जी जान से चूमने में और चाटने में लगे थे ऐसा लग रहा था कि कोई भी एक दूसरे को छोड़ने को तैयार नहीं था गुरुजी के हाथ अब धीरे से कामया की चूचियां पर आके टिक गये थे कामया भी अपने हाथों को जोड़ कर उन्हें उत्साहित करने लगी थी कामया अपने सीने को और आग बढ़ा कर उन्हें अपनी चुचियों पर पूरा जोर लगाने को कह रही थी और गुरुजी भी अपनी ताकत दिखाने में लग गये थे गुरुजी का रूप अभी थोड़ा सा अलग था जैसा पहले कामया ने देखा था उससे अलग थोड़ी सी उत्सुकता थी उनमें और उत्तेजना भी क्योंकी जिस तरह से वो कामया को प्यार कर रहे थे वो एक मर्द की तरह ही था नकी कोई महात्मा या फिर वो गुरुजी जो उसने देखा था

कामया खुश थी की उसने गुरुजी को उत्तेजित करना सीख लिया था और गुरुजी को उसके तन की इच्छा भी है जिस तरह से अपना जोर लगाकर उसे चूम रहे थे या फिर उसकी चूचियां मसल रहे थे वो अलग था

कामया का शरीर तो जल ही रहा था अब गुरुजी भी अपने आपसे बाहर होती जा रहे थे उनकी उत्तेजना भी नजर आने लगी थी वो भी लगातारर कामया की चूचियां दबाते हुए धीरे से उसके गले तक पहुँच गये थे कामया तो आधी टेडी लेटी हुई गुरुजी के मुँह में अपनी चूचियां लाने की जद्दो जहद में थी ही और गुरुजी भी आतुर थे झट से कामया की चुचि को अपने होंठों के अंदर ले लिया था उन्होंने

कामया- आआआह्ह और जोर से गुरुजी बहुत अच्छा लग रहा है बस चूस्ते जाओ और जोर-जोर से

गुरुजी अपने आपकामया के इशारे पर चले ने लगे थे निपल्स मुँह में आते ही उनकी जिब और होंठों ने अपना काम शुरू कर दिया था और कस कर कामया के निपल्स को चूसते जा रहे थे कामया निरंतर गुरुजी को उकसाने में लगी थी और बहुत जोर से गुरुजी को अपनी बाहों में लेकर कस्ती जा रही थी उसके हाथों में गुरुजी का सिर था जिसे वो अपनी चुचियों के अंदर घुसाने की कोशिश में लगी थी वो कामया की उत्तेजना को देखकर लगता था की अब उसे किसी बात की चिंता नहीं थी और नहीं ही कोई शरम बिंदास गुरुजी को उत्साहित करती वो इस खेल का पूरा मजा लेने में जुटी थी कामया की आवाज उस कमरे में गूंजने लगी थी

कामया- उूुउउफफफ्फ़ गुरुजी बहुत अच्छा लग रहा है और जोर से दबयो और जोर से चुसू प्लीज गुरुजी प्लीज ईईईईई
गुरुजी अपने मन से उसे पूरा संतुष्ट करने की कोशिश में लगे थे पर कामया इस तरह से मचल रही थी कि उसे संभालना गुरुजी के लिए थोड़ा सा मुश्किल पड़ रहा था गुरुजी ने अपने हाथों को कसते हुए उसे अच्छे से जकड़ लिया और अपने होंठों को कस्स कर उसकी चुचियों पर टिकाए रखा था अपनी हथेलियों को उसके नितंबों पर घुमाकर उसकी गोलाई का नाप भी लेते जा रहे थे और उसकी जाँघो की कोमलता को भी अपने अंदर समेट-ते जा रहे थे कामया गुरुजी के हाथों के साथ-साथ अपने शरीर को मोड़कर और खोलकर उनका पूरा सहयोग कर रही थी कोई भी जगह उनसे बच ना जाए यह सोचकर गुरुजी के हाथ उसके जाँघो से होकर एक बार फिर से उसकी चुचियों पर आके रुक गये थे और कामया को धीरे से अलग करते हुए उन्होने उसकी आँखों में झाँका था कामया इस तरह से गुरुजी के अलग होने से थोड़ा सा मचल गई थी पर एकटक गुरु जी को अपनी ओर देखते हुए पाया तो पूछ बैठी

कामया-क्या हुआ गुरुजी-

गुरुजी- कुछ नहीं तुम्हें देख रहा हूँ बहुत उत्साहित हो उत्तेजित हो तुम कुछ नहीं करोगी अपने गुरुजी के लिए

कामया- जी गुरुजी बहुत कुछ करूँगी अब मेरी बारी है आप लेटो

गुरुजी- ( मुस्कुराते हुए) हाँ… दिखाओ तुम कितना प्यार करती हो हम से


कामया एकदम से उठकर बैठ गई थी एकटक गुरुजी की ओर देखते हुए अपनी आखों को बड़ा बड़ा करके गुरुजी की ओर एकटक देखती रही उसकी आखों में एक नशा था एक चाहत थी एक खुमारी थी जो कि गुरुजी को साफ नजर आ रहा था उसकी आखों में बहूत बातें थी जो की गुरुजी पहली बार इतना पास से देख रहे थे कामया देखते ही देखते अपने शरीर को एक अंगड़ाई दी और उठकर घुटनों के बल थोड़ा सा आगे बढ़ी और गुरुजी के सामने अपनी चुचियों को लेजाकर थोड़ा सा हिलाया और उनके चहरे पर घिसते हुए

कामया- देखो गुरुजी इन्हें देखो और खूब जोर-जोर से चुसू इन्हें आपने होंठों की जरूरत है प्लीज ईई

गुरुजी अपने होंठों को खोलकर उसके आमंत्रण को ग्रहण किया और उसके चूचियां को चूसने लगे थे फिर से उनके अंदर एक अजीब तरीके का उत्साह देखने को मिला था कामया जिस तरह से वो उसकी चूचियां चूस रहे थे उनके दाँत भी उसके निपल्स को लग रहे थे

कामया जानती थी कि गुरुजी की उत्तेजेना बढ़ रही है एक के बाद दूसरी चूंची को उसने गुरुजी के मुख में ठूंस दिया था और उनके सिर को कसकर जकड़कर पकड़ रखा था अपने हथेलियों को धीरे-धीरे उनके पीठ पर भी घुमाने लगी थी झुकी हुई कामया अपने शरीर का हर हिस्सा गुरुजी से छुआने में लगी थी अपने घुटनों को खोलकर उसने गुरुजी के दोनों ओर कर लिया था उसकी योनि में ज्वार आया हुआ था और गुरुजी के लिंग का ही सिर्फ़ इंतजार था एक झटके में गुरुजी को बेड पर धकेल कर कामया उसके पेट से लेकर उनके लिंग तक एक बार में ही पहुँच गई थी उसके लिंग का आकार थोड़ा सा बड़ा था औरो के लिंग की तरह नहीं था पर था अभी भी टेन्शन मुक्त वो झुकी और गुरुजी के लिंग को अपने जीब से चाट्ती हुई अपने मुख के अंदर तक उसे ले गई थी और धीरे से गीलाकरते हुए बाहर की ओर ले आई थी एक नजर गुरुजी के ऊपर ढलती हुई फिर से अपने काम में लग गई थी उनके लिंग को कभी अपने मुख के अंदर तो कभी बाहर करते हुए कामया उसे
अपने हाथों से भी कसकर पकड़ती थी और अपने होंठों के सुपुर्द कर देती थी बहुत देर तक करते रहने के बाद उसे लगा था कि गुरुजी अब तैयार हो गये है वो गुरुजी के लेटे में ही उनके ऊपर चढ़ गई थी और खुद ही उनके लिंग को अड्जस्ट करते हुए अपनी योनि के अंदर ले गई थी उसके बैठ-ते ही गुरुजी की कमर भी एक बार हिली और उन्होंने भी एक हल्का सा धक्का लगाकर अपने लिंग को कामया के अंदर पहुँचने में मदद की

कामया- आआआआअह्ह उूुुुउउम्म्म्मममममम

झूम गई थी कामया जिसका इंतजार था वो उसके पास और इतना पास था कि वो झूम उठी थी अपने शरीर को उठाकर एक बार फिर से और नीचे कर लिया था ताकि गुरुजी का लिंग पूरी तरह से अंदर समा जाए

कामया- उूुुउउफफफ्फ़ आआह्ह उूउउम्म्म्म
करती हुई खुशी से निढाल हो गई थी और थोड़ी थोड़ी देर में ही अपनी कमर को थोड़ा सा ऊपर करके धम्म से उनके लिंग में बैठ जाती गुरुजी भी एकटक उसे देखते हुए अपने लिंग को हर बार उसके अंदर तक उतार चुके थे अब वो भी थोड़ा बहुत उत्तेजित से नजर आते थे और नीचे से अपनी कमर को थोड़ा सा ऊपर करते थे कामया के अंदर लिंग के प्रवेश करते ही वो गुरुजी के ऊपर गिर गई थी और उसके साथ-साथ हिलते हुए अपनी योनि के ज्वार को शांत करने में जुट गई थी गुरुजी की बाँहे भी अब कामया को सहारा देने के लिए उठ गई थी और उसे कस्स कर पकड़ते हुए

गुरुजी- अपना रस पान कराओ सखी
कामया ने झट से सिर घुमाकर अपने होंठ गुरुजी की और कर दिए और वो भी गुरुजी का रस पान करने लगे थी दोनों की जीब एक दूसरे से लड़ते हुए योनि और लिंग का खेल खेलते रहे और उस कमरे में आए हुए तूफान को देखते रहे

कामया- उउउम्म्म्म और जोर-जोर से गुरुजी निचोड़ दो मुझे मार डालो प्लीज

गुरुजी- नहीं सखी मारूँगा क्यों तुम तो मेरी आत्मा हो मेरी सखी हो तुम्हारे जिश्म की खुशबू तो सारे संसार के लिए है में तो पहला हूँ और हमेश ही रहूँगा तुम तो मेरी हो

जाने क्या-क्या उत्तेजना में कहते जा रहे थे गुरुजी

कामया अपने आप में खुश थी उसने गुरुजी को जीत लिया था गुरुजी अब उसके साथ में थे वो और जोर से अपनी कमर को हिलाकर उसके लिंग को अपनी जाँघो को को जोड़ कर निचोड़ने लगी थी गुरुजी भी आवेश में आ गई थे एक झटके में कामया को नीचे करते हुए वो खुद अब उसके ऊपर आ गये थे और उसके योनि को लगातार कई झटके देने के बाद रुक गये थे एक नजर उसकी और डालते हुए जोर से उसके होंठों को चूम लिया और धक्के पर धक्के मारते रहे उनकी गति इतनी तेज थी की हर धक्का उसकी योनि के आखिरी द्वार पर लगता था और पकड़ भी इतनी मजबूत थी कि कामया से और नहीं रहा गया कस्स कर गुरुजी को पकड़कर वो उनसे लिपट गई थी

कामया- हाँ… गुरुजी बस करते रहिए रुकिये नई आआअह्ह उ उ उूुुुुुुुउउम्म्म्मममममम करते हुए वो शांत हो गई थी पर गुरुजी अब भी शांत नहीं हुए थे कमी आपने आपको रोक नहीं पाई थी शायद उत्तेजना उनसे ज्यादा थी

गुरुजी- बस हो गया सखी इतना ही प्यार है हमसे अभी तो हम बहुत बाकी है
हान्फते हुए गुरुजी के मुँह से निकला था

कामया- नहीं गुरुजी में साथ हूँ अब रोको नहीं करते रहे में पूरा साथ दे रही हूँ

और कहते हुए कामया ने गुरुजी को कस कर पकड़ते हुए उन्हें चूमने लगी थी अपने आपको उनका साथ देते हुए वो यह दिखाना चाहती थी कि वो अब भी उत्तेजित है पर गुरुजी तो जान गये थे वो सिर्फ़ उनको दिखने के लिए ही उनका साथ दे रही थी ‘कामया अपनी कमर को बहुत तेजी से उचका कर गुरुजी से रिदम मिलाने की कोशिश में थी कि गुरुजी ने अपने लिंग को उसके योनि से निकाल लिया और कामया को घुमा लिया था अब कामया उनके नीचे थी और सोच रही थी की अब क्या

गुरुजी ने अपने हाथों को जोड़ कर कामया की कमर को खींचकर ऊपर उठाया और अपने लिंग को उसके गुदा द्वार पर रख दिया था कामया एक बार तो सिहर उठी थी उसने अभी-अभी देखा था और सिर्फ़ एक बार भीमा के साथ वहां किया था पर, गुरुजी की उत्तेजना के सामने वो कुछ नहीं बोल सकी बस वैसे ही कमर उठाए हुए गुरुजी को अपना काम करने देने की छूट दे दी थी और गुरुजी तो आवेश में थे ही एक धक्के में ही उनका लिंग आधा फस गया था कामया की गुदा में

कामया--------- आआआआआआआआयययययययययीीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई हमम्म्ममममममममममममममममममम द्द्द्द्द्द्दद्धीईईरर्र्र्रररीईईईईईईई
कामया की चीख उस कमरे में गूँज गई थी, , पर गुरुजी कहाँ रुकने वाले थे थोड़ा सा रुक कर एक जोर दार धक्का फिर लगा दिया था

कामया- आआआआआआईयईईईईईईईईईईईईईईईईई उूुुउउमम्मूँमुमूमूमूंम्म्मममममम

करते हुए रोने लगी थी दर्द के मारे वो नहीं रुक सकती थी बहुत दर्द होने लगा था उसे गुरुजी थोड़ा सा रुके और अपने लिंग को बाहर खींच लिया कामया थोड़ा सा बहाल हुई थी पर फिर से झटके से जैसे चाकू किसी मक्कन की स्लाइस पर घुसता था वैसे उसके गुदा द्वार पर घुसता चला गया था गुरुजी की हैवानियत अब उसके सामने थी बिना रुके कामया के अंदर तक उतर कर ही दम लिया गुरुजी ने

कामया रोते हुए उनसे रुकने की मिन्नत करती रही पर गुरुजी नहीं रुके लगातार धक्के के साथ ही अपने लिंग को पूरा का पूरा उसके अंदर उतारने के बाद ही रुके वो रुक कर एक बार कामया को जी भर कर चूमा था उन्होंने कामया अटकी हुई और दर्द से बहाल गिर पड़ी थी बेड पर और रुक रुक कर उसके कहराने की आवाज उसके गले से निकल रही थी

गुरुजी- क्या हुआ सखी थक गई

कामया- प्लीज गुरुजी मर जाऊँगी प्लेआस्ीई उूउउम्म्म्मममम
रोते हुए कामया के मुख से निकाला

गुरुजी- क्यों अभी तो कह रही थी कि मार डालो अब क्या हुआ बस थोड़ा सा और फिर देखना कितना मज आता है
और ये कहते हुए गुरुजी ने कामया को एक बार उठाकर फिर से अपने लिंग को उसके गुदा द्वार से थोड़ा सा बाहर र्निकाला और फिर धक्के के साथ अंदर पिरो दिया था

कामया- (दाँत भिचते हुए ) उउउम्म्म्ममाआ आह्ह करती रही और गुरुजी के हाथों का खिलोना बनी हुई अपने आपको दर्द के सहारे छोड़ कर निढाल होकर घुटनों के बल और कोहनी के बल बैठी रही गुरुजी का लिंग जो कि अभी तक फँस कर जा रहा था अब आराम से उसके गुदा के अंदर तक जा रहा था अब उसे थोड़ा कम तकलीफ हो रही थी पर हर धक्का इतना तेज और आक्रामक होता था कि वो हर बार गिर जाती थी
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Re: बड़े घर की बहू

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पसीने से लतपथ दोनों इस खेल में मगन थे और कामया अभी अब हर तरीके से गुरुजी के साथ थी गुरुजी का हर धक्का उसके मुँह तक आता था कामया भी कमर को और उचका करती जा रही थी उसे अच्छा लगने लगा था उसे अब कोई तकलीफ नहीं हो रही थी उसे गुरुजी के लिंग की गर्मी भी अच्छी लग रही थी घर पर भीमा के साथ जो कुछ हुआ था यह उससे अलग था कैसे नहीं मालूम पर मज़ा आ रहा था और शांति भी गुरुजी के झटके मारने की गति बढ़ने लगी थी और उनकी बाँहे उसके चारो और कसने लगी थी उसकी चूचियां मसलते हुए गुरु जी उससे चिपक गये थे और निचोड़ते हुए
गुरुजी- ऊऊओह्ह… सखी बहुत मजा है इसमे तुम तो लाजबाब हो मजा आ गया

कामया बस गुरुजी थक गई हूँ जल्दी करे

गुरुजी- बस कामया थोड़ा सा और ऊपर कर अपनी कमर को अंदर तक पहुँचना है जाने वाला हूँ में भी
हाँफटे हुए गुरुजी ने कामया को अपनी बाहों से आजाद कर दिया था और अपने लिंग को जोर से उसके अंदर जितना हो सके सारी शक्ति लगा कर अंदर करते जा रहे थे
और झटके से अपने लिंग का ढेर सारा पानी कामया के अंदर छोड़कर कामया के ऊपर ढेर हो गये थे

कामया को पीछे से पकड़े हुए गुरुजी अपनी साँसे छोड़ रहे थे और अपने सांसों को नियंत्रण में लाने की कोशिश कर रहे थे कामया पसीने से तर बतर हो चुकी थी दर्द तो नहीं था पर एक अजीब सा एहसास उसके अंदर था नितंबों के बीच में गुरुजी का लिंग अब भी फँसा हुआ था और
कामया को याद दिलाता जा रहा था कि अभी-अभी जो कुछ हुआ था वो अब उसके साथ होगा बहुत खुश तो नहीं थी पर हाँ… एक अजीब सी गुदगुदी जरूर हो रही थी उसे . उसके शरीर का हर हिस्सा कैसे सेक्स के लालायित था और कैसे उसने अपनी भूख को शांत किया था वो सच में एक अजीब सा लग रहा था

अभी तक तो ठीक था जब वो भीमा और लाखा के पास गई थी या भोला ने उसके साथ किया था पर आज तो अलग था वो गुरुजी को मजबूर कर दिया था और गुरुजी का मर्दाना रूप भी उसने देख लिया था हाँ वो सुंदर थी और उसके शरीर में वो बात थी जो हर किसी में नहीं होती पर एक बात उसे परेशान कर रही थी वो थी गुरुजी अपने आप पर इतना नियंत्रण कैसे रख लेते है और चाहते है कि वो भी करे पर यह कैसे संभव है इतने में गुरुजी के हाथ उसके चुचों पर थोड़ा सा हरकत करते नजर आए और हल्की आवाज में गुरुजी ने कहा
गुरुजी- सो गई क्या सखी … …

कामया- नहीं गुरुजी

गुरुजी कुछ सोच रही हो …

कामया- एक बात पुच्छू आपसे …

गुरुजी- हाँ… क्यों नहीं तुम्हें सब जानने का हक है सखी पूछो …

कामया- जी वो अपने कहा था कि अपने शरीर पर काबू रखो नियंत्रण वाली बात पर मुझसे तो नहीं होता …

गुरुजी ने कामया को अपनी ओर घुमा लिया था और अपने आलिंगान में बाँधते हुए अपने बहुत करीब खींच लिया था और एकटक उसकी आखों में देखते हुए

गुरुजी- हाँ अब पूछो

कामया थोड़ा सा सकुचाती हुई

कामया- जी वो आपने कहा था कि नियंत्रण रखो वो तो मुझसे नहीं होता क्या करू …

गुरुजी- हाँ मुझे पता है सखी नहीं होता मुझसे भी नहीं होता था जब में तुम्हारी उमर का था पर अब होता है पता है क्यों …
कामया- जी नही …

गुरुजी- में तुम्हें अपने बारे में कुछ बताता हूँ में एक अस्ट्रॉलजर था पर उससे मेरा जीवन नहीं चलता था बस 100 50 रुपीज रोज का कमाता था फिर एक दिन अचानक ही मुझे एक बार एक बहुत बड़े धर्मात्मा को देखकर यह आइडिया आया क्यों ना में भी यह काम शुरू कर दूं और में इसकाम को अंजाम देने लगा था मेरे जीवन में बहुत सी औरते आई और गई में एक से दूसरे का भला करता रहा एक को दूसरे के लिए इस्तेमाल करता रहा और में यहां पहुँच गया

इस अश्राम में आने वाला हर इंसान यही सोचता है कि गुरुजी के आशीर्वाद से मेरा यह काम हुआ पर बात यह नहीं है वो कुछ लोगों से कहने से हो जाता था मेरे यहां नौकरी माँगने वाले भी आते है और नौकरी देने वाले भी बस एक दूसरे से जोड़ते ही काम हो जाता है और में गुरुजी बन गया

कामया एकटक उनकी बातें सुन रही थी गुरुजी की नजर एक बार उसके ऊपर गई और सीधे लेट गये

गुरुजी- और तुम सोच रही थी कि में ऐसा कैसे बना यह है कहानी

कामया- पर गुरुजी आपने वो नहीं बताया …

गुरुजी- (हल्का सा हँसे थे ) सखी मेरी उम्र क्या है 70 साल अभी भी में क्या उतना जवान हूँ जड़ी बूटी और उनका सेवेन करके में अभी तक जिंदा हूँ और जो अभी भी मन के अंदर है उसे जीवित करने की कोशिश करता हूँ तुम क्या सोच रही हो बूढ़ा इंसान तो यहां तक पहुँच ही नहीं सकता में तो फिर भी दिन में एक बार या दो बार किसी औरत के साथ अंभोग कर भी लेता हूँ पर बूढ़ा शरीर कब तक साथ देगा एक उम्र भी तो होती है इन सब चीज़ों की

कामया- पर आपने तो मुझे कहा था

गुरुजी- हाँ कहा था पर यह संभव नहीं है है तो सिर्फ़ उन लोगों के लिए जो वाकई साधु है या नर्वना को प्राप्त कर चुके है में तो एक ढोंगी हूँ मुझे नहीं मालूम यह सब क्या होता है हाँ जहां तक कहने की बात है वो तो लोगों को जो अच्छा लगे वो कहना पड़ता है इसलिए तुम्हें भी कहा

कामया एक बार तो भौचक्की रह गई थी पर कुछ सोचकर बोली

कामया- तो गुरुजी में क्या करू …

गुरुजी- वही जो तुम्हारा मन करे इस जीवन को जिओ और खूब जिओ जैसा चाहो वैसा करो यह अश्राम तुम्हारा है जिसे जैसा भोगना है भोगो और अपनी इच्छा को शांत करो में भी जब तुम्हारे उमर का था तो यही सब करता था पर हाँ… अपने मतलब के लिए ही नहीं तो सिर्फ़ अपने सेक्स की भूख के लिए इश्तेमाल करने से बहुत कुछ नहीं मिलता हाँ… उसके पीछे धन का लालच हो या, मतलब हो तो बहुत कुछ जोड़ सकती हो

और गुरुजी ने एक बार वही मदमस्त मुश्कान लिए कामया की ओर देखा कामया समझ चुकी थी कि गुरुजी का ढोंग और उनका मतलब उसे क्या करना है वो भी उसे पता था और कैसे वो तो आता ही था अपने शरीर को कहाँ और कैसे इश्तेमाल करना है बस वो देखना है थकि हुई कामया अपनी एक हथेली से गुरुजी के सीने को स्पर्श करती रही और गुरुजी कब सो गये थे उसे पता नहीं चला था वो भी धीरे से उठी थी और अपने कपड़े उठाकर अपने हाथों में लिए वैसे ही डोर की ओर बढ़ चली थी
एक मदमस्त चाल लिए अपने आपको नये रूप में और नये सबेरे की ओर
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