बड़े घर की बहू (कामया बहू से कामयानी देवी) complete

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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

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गुरु जी- डरो नहीं सखी यह तुम्हारा इम्तिहान है देखो तुम क्या कर सख्ती हो बहुत नाज है ना तुम्हें अपने ऊपर
और कहते हुए उन्होंने कामया की एक हथेली को उठाकर अपने लिंग पर रख दिया था और धीरे-धीरे उसे सहलाने भी लगे थे कामया उनकी जाँघो के सहारे थोड़ा आगे बढ़ी थी जैसे उसके जीवन का वो इम्तिहान उसे पास करना ही था वो जो चाहती थी वो उसके सामने था पर तैयार नहीं था वो तैयार थी उसे अपने लिए तैयार करने को अपने हाथों को धीरे से उसने गुरु जी के लिंग पर कस लिया था और धीरे-धीरे सहलाते हुए अपने गालों पर घिसने लगी थी कामया के होंठों से फिर से सिसकारी निकलने लगी थी और वो बहुत उत्तेजित होकर अपने काम में जुट गई थी अपने शरीर पर उसे अब भी उन महिलाओं के हाथों का एहसास हो रहा था और कभी-कभी उनके होंठों का भी वो एक भट्टी बन चुकी थी अब उसे कोई भी नहीं बुझा सकता था जो हथियार उसके हाथों में था वो भी कोई काम का नहीं था पर वो जी जान लगाकर उसे तैयार करने में जुटी थी अपने होंठों को और जीब को मिलाकर वो लगातार गुरु जी के लिंग को चुबलने में लगी थी अपने हाथों को लगातार गुरु जी की जाँघो पर घिस रही थी अपनी चुचियों को भी वो गुरु जी की टांगों पर घिसती हुई कभी थोड़ा सा ऊपर उठकर उनके पेट को भी चूम लेती थी पर सब बेकार कुछ नहीं हुआ था गुरु जी अब भी वैसे ही थे ना ही कोई टेन्शन में और नहीं कोई उत्तेजना थी उनके शरीर में कमी नही लगी थी सांसों के साथ साथ अब तो उसका मुँह भी दुखने लगा था वो नहीं जानती थी कि अब आगे क्या करे पर अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पा रही थी अपनी नजर उठाकर एक बार गुरु जी की ओर देखा था उसने गुरु जी के होंठों पर वही मन मोहने वाली मुश्कान थी और कुछ नहीं


गुरु जी देखा सखी तुम भी हार गई है ना आओ खड़ी हो जाओ

और कहते हुए बड़े प्यार से अपने हाथों के सहारे कामया को खड़ा किया और धीरे-धीरे अपनी उंगलियों को फिर से उसकी योनि में प्रवेश करा दिया था उन महिलाओ ने भी उसके नितंबो को सहलाते हुए पीछे से अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे उसकी योनि में घुसाने की कोशिश करती जा रही थी एक साथ तीन तीन उंगलियों उसके अंदर घुसने को तैयार थी कामया जितना अपनी जाँघो को खोल सकती थी उतना खोलकर आने वाले पल का इंतजार करने लगी थी वो जानती थी कि वो इतना उत्तेजित हो चुकी थी कि थोड़ी सी हलचल उसकी योनि में होने से ही वो झड़ जाएगी पर इंतजार था अपने शरीर के सुख का कि वो कैसा होगा खड़ी हुई कामया अपने अंदर उंगलियों को धीरे धीरे घुसते हुए एहसास करती रही और मुख से लगातार सिसकारी भरती हुई आगे की ओर होती गई थी वो लगभग गुरु जी के ऊपर गिर ही जाती पर उन दोनों महिलाओं ने उसे रुक लिया था खड़ी खड़ी कामया हिलने लगी थी उत्तजना की शिखर पर पहुँचने को तैयार कामया अपने अंदर तीन चार या पता नहीं कितनी उंगलिओ को लेकर लगातार सिसकारी भरती हुई गुरु जी से टिक गई थी अचानक ही उसकी दोनों चूचियां को उन महिलाओं ने कस कस्स कर दबाना शुरू कर दिया था एक मुँह उसके सीने पर टच होने लगा था होंठों के बीच में उसका एक निप्पल आ गया था गुरु जी उसकी चूचियां को चुस्स रहे थे वो पागलो की तरह अपने हाथों को कस कर गुरु जी के सिर को खींच कर अपने सीने पर चिपका लिया जाँघो के बीच की हलचल लगातार बढ़ गई थी और गुरु जी के होंठों का अटेक भी जोर-जोर से उसके निपल्स को चूस्ते हुए अपने सिर को थोड़ा सा जोर लगाकर उन्होंने छुड़ाया था और दूसरे चुचे पर रख दिया था

सिसकारी अब धीरे धीरे चीत्कार का रूप लेने लगी थी कामया की चीत्कार अब उस कमरे में गूंजने लगी थी बहुत तेज और बहुत मदहोशी भरी योनि के अंदर एक तूफान सा भर गया था और लगता था कि अब नहीं रुकेगा पर गुरु जी के साथ-साथ वो महिलाए अपने काम को बखूबी निभा रही थी उन महिलाओं की उंगलियां तो बहुत तेजी से चल रही थी पर गुरु आई की उंगलियां बहुत ही धीमे और अजीब तरह का मजा दे रही थी कामया का सारा शरीर पसीने पसीने में हो गया था और ज्यादा देर तक वो सह नहीं पाई थी उन लोगों के आक्रमण को झड़ झडा कर अपनी योनि का पानी उसने झोड़ दिया खड़ी खड़ी वो हाँफने लगी थी पर उन लोगों का आक्रमाण अब भी नहीं रुका था योनि के अंदर तक वो महिलाए अपनी उंगलियों को पहुँचाने में लगी थी और गुरु जी अब भी उसकी चूचियां को चूस रहे थे कभी एक तो कभी दूसरी को उनके चूमने का और चूसने का तरीका भी गजब का था कोई जल्दी बाजी नहीं थी और नहीं कोई जानवर पन था


कामया सिर्फ़ अब उन उंगलियों के सहारे ही खड़ी थी नहीं तो कब की गिर जाती पर उसकी योनि से अब भी लगातार पानी झड़ रहा था जैसे रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था कमर और पेट झटके से अंदर जाते और भी बाहर आते थे सीना कभी अंदर जाता और फिर बाहर आता था थकि हुई कामया धम्म से नीचे बैठ गई थी गुरु जी के लिंग के पास उसका मुख था और दोनों जाँघो के बीच में वो थी गुर जी अपने हाथों से एक बार फिर से उसे सहलाते हुए कुछ कह रहे थे

गुरु जी- देखो सखी तुम्हें अपने तन पर नियंत्राण रखना सीखना होगा आज से तुम मेरे साथ तीन दिन रहोगी में तुम्हें सिखाउन्गा कि कैसे यह होता है अपने मन के अंदर भी वो इच्छा जगायो जो तुम्हारे तन में है में तुम्हें इस कला में माहिर बना दूँगा फिर देखना कि कैसे यह संसार तुम्हारे कदमो में गिरता है तन की शक्ति मन से आती है नंगा शरीर किसी काम का नहीं जब तक मन उसने जुड़ा नहीं हो ठीक है यही दीक्षा में तुम्हें आने वाले कल में दूँगा अब जाओ तुम्हें रूपसा और मंदिरा ले जाएँगी आज से तुम्हारा कमरा ऊपर है खाना खाओ और आराम करो शाम को मिलूँगा

कामया ने किसी तरह से अपने कपड़े पहने साथ में मंदिरा ने और रूपसा ने भी हेल्प किया था एक कटु मुश्कान थी उन लोगों के चहरे पर कामया नजर नहीं मिला पाई थी उन लोगों से खड़े होने पर भी उसकी योनि से रस अब तक टपक रहा था
चिपचिप करता हुआ उसकी जाँघो तक बह कर घुटनों तक आने लगा था गुरु जी से नजर बचा कर उन्हें थोड़ा सा झुक कर प्रणाम किया और जल्दी से कमरे के बाहर की ओर मूड गई थी

पीछे-पीछे मंदिरा भी चली पर रूपसा वही रुक गई थी गुरु जी के पास कामया के बाहर जाते ही रूपसा एक कँटीली हँसी हँसते हुए गुरु जी की जाँघो पर अपनी हाथ रखकर बैठ गई थी और धीरे-धीरे उनके लिंग को सहलाते हुए

रूपसा- गुरु जी बहुत दिनों बाद आपने बुलाया है हम पर थोड़ा सा कृपाकर दीजिए बहुत मन कर रहा है

गुरु जी धीरे से अपने हाथों से रूपसा के सिर को सहलाते हुए एकटक उसकी ओर देख रहे थे मंद मंद सी मुश्कान लिए वो एक और तो कुछ कहना चाहते थे पर कहते हुए भी उनका चेहरा लगता था कि खुशी से झूम रहा था रूपसा के सिर को सहलाते हुए धीरे से बोले
गुरु जी- हाँ… क्यों रोज तो खूब मजे कर रही हो फिर मेरी जरूरत क्यों पड़ी

रूपसा- जो बात आपके साथ है वो कहाँ औरो के साथ गुरु जी वो तो बस काम है इसलिए नहीं तो आपके सिवा आज तक इस तन से खेलने वाला और मजे देने वाला कोई है ही नहीं कृपा करे गुरु जी

गुरु जी- तो चलो अपने हथौड़े को तैयार करो फिर देखते है
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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

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रूपसा - पर गुरु जी आप तो बस कुछ करने ही नहीं दे रहे थोड़ा सा अपने अंदर हमारे लिए भी प्यार जगाइए तब तो
गुरु जी हँसते हुए अपनी हथेलियों को धीरे उसके सिर पर फेरते रहे और उसकी ओर देखते रहे उनके चहरे पर अब भाव चेंज होने लगे थे रूपसा खुश थी और अपने हाथों के साथ-साथ अब अपने होंठों को भी गुरु जी के लिंग पर घुमाने लगी थी उसकी आखें एकटक गुरु जी की ओर थी

उसके देखने का तरीका ही इतना कामुक था कि गुरु जी का रोम रोम खिल उठा था रूपसा अपने मादक अंदाज में अपने गुरु जी को खुश करने में लगी हुई थी और अपने भाग्य का प्रसाद पाने को बैचेन थी वो रह रहकर गुरु जी के लिंग पर जिस तरह से अपने होंठों को चला रही थी उसे देखकर ऐसा लगता था कि गुरु जी से ज्यादा रूपसा को उनकी जरूरत है रूपसा
गुरु जी के लिंग को अपने होंठों के अंदर लेजाकर अपने जीब से लपलपाति थी उसे चाट-ती थी और अंदर तक उतरने की कोशिश करती थी रूपसा की एक बात माननी पड़ेगी एक बार भी उसने अपनी निगाहे नहीं फेरी थी चाट-ते हुए और चुबलते हुए वो जिस तरीके से गुरु जी की ओर देख रही थी वो एक जान लेवा दृश्य था अगर गुरु जी के अलावा कोई होता तो शायद कब का झड़ गया होता पर गुरु जी का लिंग तो सिर्फ़ टाइट भर हुआ था


और उसे टाइट देखकर रूपसा ने नीचे बैठे हुए ही गुरु जी की कमर को कस्स कर पकड़ लिया था और धड़ा धड़ उनके पेट को चूमने लगी थी जैसे कि उसने कोई मैदान मार लिया था आगे बढ़ते हुए उसने अपने होंठों को गुरु जी के निपल्स पर रख दिया था और उन्हें चूमने के साथ-साथ चूसने भी लगी थी गुरु जी भी अब आवेश में आने लगे थे और अपनी हथेलियों को उसके सिर से लेकर उसके कंधे पर घुमाने लगे थे उनके होंठों पर वही हँसी अब भी थी पर इस बार कुछ बदला हुआ था वो एक सेक्स की भूख और अपने साथ होने वाले इस तरह का स्पर्श को देखकर खुश होने की कहानी कहता था गुरुजी जी अब धीरे-धीरे अपने हाथों को रूपसा के सीने तक ले आए थे और उसकी चुचियों को पकड़कर हल्के-हल्के दबाते जा रहे थे रूपसा अपने काम में लगी गुरु जी के हर इशारे को समझती हुई आगे बढ़ती जा रही थी कि उसके कानों में गुरु जी के बुदबुदाने की आवाज आई थी

गुरु जी- इस तरह अगर सखी कर पाती तो रूपसा तुम नहीं अगर सखी होती तो उसे बहुत कुछ सीखना है रूपसा तुम और मंदिरा सखी को तैयार करो उसे भी आना चाहिए उसे नहीं पता कि शरीर के साथ साथ उससे आदाए भी सीखना पड़ेंगी सिर्फ़ शरीर से कुछ नहीं होता सेक्स एक ऐसी भासा है जो कि आखों से होंठों से और शरीर के हर अंग से बोला जाता है शरीर तो बाद में आता है लोग तो पहले आखें और चेहरा देख लेंगे तब तो आगे बढ़ेंगे उसे सिख़ाओ तुम दोनों ताकि कोई भी उसे देखे तो सिर्फ़ सखी आखों से ही उसे घायल कर दे उसे छू भी ना पाए उसे इतना तैयार करो कि लोग पागल हो जाए उसे देखने के लिए उसे इतना तैयार करो कि जब वो चले तो लोग मरने मारने को तैयार होजाये तब तो मजा आएगा तब तो वो हमारी सखी और इस अश्राम की हकदार कहलाएगी
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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

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रूपसा अपने काम में लगी गुरु जी के लिंग को छेड़ती हुई गुरु जी के आदेश को अपने अंदर समेट-ती जा रही थी
रूपसा ----जैसी आपकी मर्ज़ी गुरु जी आप चिंता मत कीजिए ऐसा ही होगा आप देखना आज से ही में और मंदिरा अपने काम में लग जाएँगे आपको कोई शिकयात का मौका नहीं मिलेगा पर गुरु जी हमें तो जिस चीज की आवश्यकता है वो तो दीजिए और हँसती हुई फिर से गुरु जी के लिंग को अपने होंठों पर दबाए हुए उनकी ओर देखती रही

उसे अपनी इच्छा पूरी होती नजर आ रही थी वो लगातार गुरु जी के लिंग को जितना हो सके उतना जीब से और होंठों से चुबलते हुए अपने गले के अंदर तक ले जा रही थी तभी गुरु जी का हाथ उसके सिर पर थोड़ा कस गया था रूपसा जान गई थी की बस अब कुछ ही देर की बात है

गुरु जी के अंदर एक इंसान जाग उठा था जो कि एक नारी शरीर से हार मन गया था रूपसा का अंदाज इतना मोहक और मादक था कि गुरु जी और नहीं रुक पाए एक झटके से उसे खींचकर अपने ऊपर लिटा लिया था

गुरु जी- बस अब अपने अंदर जाने दो बहुत मेहनत कर ली तुमने चलो तुम्हें आज खुश करते है

कहते हुए गुरु जी अपने ऊपर बैठी हुई रूपसा की योनि के अंदर धीरे-धीरे अपने लिंग को सामने लगे थे वो क्या सामने लगे थे वो तो रूपसा ही उतावली हो गई थी और गुरु जी को बिना मेहनत अपने अंदर तक उतारती चली गई थी रूपसा का अंदाज बहुत निराला था बैठने का अंदाज़ा से लेकर देखने का अंदाज़ा एक दम जान लेवा कहते है कि सेक्स के समय औरत जितना शरीर से मर्द का साथ देती है अगर उतना ही वो अपने होंठों और आखों से भी साथ दे तो मर्द के अंदर के शैतान को कोई नहीं रोक सकता और मर्द को बिना मेहनत के ही वो सब मिल जाता है जिसकी की चाह उसे होती है वोही हाल था रूपसा का बिना बोले वो गुरु जी के ऊपर उछलती जा रही थी और उसकी कमर का भाव इस तरह का था कि समुंदर की लहरे भी जबाब दे उठी थी

गुरु जी नीचे लेटे हुए अपने आपको एक असीम आनंद के सागर में गोते लगाते हुए पा रहे थे और रूपसा अपने पूरे तन मन से गुरु जी के साथ संभोग का पूरा आनंद ले रही थी गुरु जी आज उसे बहुत दिनों बाद मिले थे और वो यह पल खोना नहीं चाहती थी हर पल वो जीना चाहती थी वही वो कर रही थी रूपसा अपनी कमर को हिलाते हुए धीरे-धीरे कभी ऊपर भी हो जाती थी गुरु जी के चहरे पर आनंद की लहरे देखकर जान गई थी कि गुरु जी परम आनंद को प्राप्त करने वाले है उसकी कमर की लहर अब धीरे बढ़ने लगी थी और गुरु जी का हाथ उसकी कमर के चारो ओर कसने लगी थी गुरु जी अपने आप में नहीं थे आखें बंद किए हुए अपनी कमर को भी धीरे से ऊपर उठाकर रूपसा के बहाव में बहने लगे थे रूपसा ने झुक कर गुरु जी के होंठों पर फिर से आक्रमण कर दिया था लगता था कि वो भी अपने शिखर की ओर बढ़ने लगी थी गुरु जी का कसाव उसकी पीठ पर अब कस गया था

और उनके होंठों भी अब रूपसा के होंठों से लड़ने लगे थे जीब और होंठो का मिलन वो वो पल और योनि की और लिंग का समर्पण का वो खेल अब धीरे-धीरे अपने मुकाम को हासिल करने ही वाला था और धीरे-धीरे रूपसा और गुरु जी की मिली जुली आवाज उस कमरे में गूंजने लगी थी

रूपसा और जोर से कसो गुरु जी मज़ा आ रहा है

गुरु जी- हाँ… रूपसा बहुत आनंद आया आज उूउउफफफफफफफफ्फ़ की आकाला है तुममे

रूसा- आपका आसिर्वाद है गुरु जी बस अपना आशीर्वाद बनाए रखे हम पर

गुरु जी क्यों नहीं रूपसा तुम और मंदिरा ही हमें समझ पाती हो बस करती रहो रूको मत हमम्म्मममममम आआआआआआह्ह

रूपसा- आआआआआआह्ह म्म्म्मममममममममममममममममममममम और जोर से गुरु जी
गुरु जी ने एक बार उसे कसते हुए अपने नीचे लिटा लिया था और अपने आपको अड्जस्ट करते हुए रूपसा की जाँघो के बीच में बैठ गये थे अब वो एक साधारण इंसान जैसे बर्ताव कर रहे थे उसके अंदर के उफ्फान को खुद ही शिखर पर पहुँचाने की कोशिश गुरु जी ने शुरू करदी थी

रूपसा की दोनों चुचियों को कसकर पकड़कर वो लगातार धक्के देने लगे थे रुपसा नीचे लेटी हुई अपनी कमर को उठा कर हर चोट का जबाब देती जा रही थी

रूपसा - और तेजी से गुरु जी और तेज हमम्म्म उूुउउफफफ्फ़

गुरु जी की रफ़्तार लगातार बढ़ती जा रही थी और लगातार रूपसा की चुचियों को आटे की तरह मसलते जा रहे थे लगता था की वो अपना गुस्सा उसकी चुचियों पर ही उतारना चाहते थे निचोड़ते समय उन्हें रूपसा की चीख का भी कोई ध्यान नहीं था बस मसलते हुए अपने आपको शांत करके कोशिश करते जा रहे थे

रूपसा ऽ उूउउम्म्म्म धीरे गुरु जी आआआआआआअह्ह, म्म्म्ममममममममममममममममममममममम

और जोर से गुरु जी को अपनी बाहों में भरती हुई गुरु जी के झटको के साथ ऊपर-नीचे होने लगी थी रूपसा किसी बेल की भाँति गुरु जी चिपकी हुई थी और गुरु जी अपनी हथेलियों को अब उसके पीठ पर कसते हुए लगातार धक्के देते रहे जब तक अपनी शिखर पर नहीं पहुँच गये थे धीरे धीरे उस कमरे में आया तूफान थम गया था और दो शरीर पसीने से भीगे हुए उस आसन पर पड़े हुए थे
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Re: बड़े घर की बहू

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थोड़ी देर में ही सबकुछ नार्मल होता चला गया था पर वो कमरा एक गवाह था एक उत्तेजना के शांत होने का और, गुरु जी के इंसान बनने का रूपसा तो थी ही औरत पर गुरु जी का रूप कुछ वैसा ही था वो एक फुर्टूने टेललरर थे और अपने भाग्य से लड़ते हुए इस मुकाम तक पहुँचे थे

पहले पहले वो सिर्फ़ कुंडली देखते थे और लोगों के भाग्य बताते थे पर उनका जीवन यापन सही से नहीं होता था पर जैसे ही वो कुछ ऐसे लोगों से मिले जो इस समझ में एक पोजीशन रखते थे तो वो अपने रास्ते से भटक गये और एक पैसे कमाने वाले इंसान बन गये थे उनके लिए पैसा और पोजीशन सबसे पहले था लोग जुड़ते गये

और वो अपना काम करते गये फिर इसकाम में सबसे आगे और पहले आने वाली होती है महिलाए गुरु जी ने पहले एक फिर दो और ना जाने कितनी महिलाओं के साथ अपना समय बिताया होगा वो तो शायद आज उन्हें याद नहीं पर नारी के शरीर का इश्तेमाल उन्होंने खूब किया अपने लिए और अपनी पोजीशन बनवाने के लिए भी गुरु जी असल में एक भूखे और मतलबी इंसान थे हर कही उन्हें अपने रुपये पैसे की ही चिंता रहती थी हर काम जो भी वो करते थे उसमें उनका क्या फायेदा है वो जरूर देखते थे इसके लिए उन्हें किसे और कहाँ इश्तेमाल करना है वो करते थे चाहे वो औरत हो या आदमी लड़की हो या लड़का .

बस उनका मतलब साल्व होना चाहिए वही खेल खेलते खेलते आज वो इस पोजीशन में पहुँचे थे (खेर वो कभी बाद में लिखूंगा आज नहीं बस यह तो सिर्फ़ इसलिए लिखा था कि आपको यह अंदाज हो जाए कि गुरु जी आखिर है क्या )


रूपसा अपने कपड़े संभालती हुई गुरु जी के कपड़े भी ठीक करने लगी थी और बड़ी ही आत्मीयता से गुरु जी के पास खड़ी होकर उनको सहलाती हुई बोली
रूपसा- गुरु जी क्या आदेश है

गुरु जी - बस अपना काम करती रहो और मंदिरा के साथ मिलकर आज से सखी को तैयार करो जो बात उसमें नहीं है वो करो हर तरीका उसे समझाओ अदाएँ भंगिमा और शरीर का हर अंग उसका इतना निखार दो कि इंसान पागल हो जाए उसके नाम की मालाएँ जपने को एक झलक पाने को चाहे वो कोई भी हो बस तैयार करो

रूपसा- जैसी आपकी मर्ज़ी गुरुजी आप देखना कोई कसर नहीं छोड़ेंगे हम आज से हम अपने काम में लग जाएँगे पर इस्केलिए आपको थोड़ा इंतजार करना होगा

गुरु जी- नहीं नहीं हमारे पास इतना वक़्त नहीं है बस जल्दी करना है और फिर हम यह देश छोड़कर चले जाएँगे यहां का काम सखी ही संभालेंगी बस उनका आना जाना लगा रहेगा हमारे पास बस तुम अपना काम याद रखो इतना तैयार करो कि हमें भी लगे कि हमने कुछ किया है इतना मालिश करो कि उसके रोम-रोम खिल उठे संगमरमर की मूर्ति जैसी निखर जाए इतना नहालाओ कि उसके रोम-रोम में खुशबू भर जाए इतना पेय पिलाओ कि सेक्स उसकी आखों से लेकर उसके रोमो में बस जाए बस इतना हो गया तो काम बन गया समझो फिर तो यह दुनियां उसके कदमो में होगी और हम उसपर राज करेंगे यह जान लो कि सखी ही हमें इस दुनियां में राज करने के लाएक बना सख्ती है और कोई नहीं बस तुम अपना काम ठीक से करो

रूपसा अपने हाथों से गुरु जी को अब भी सहला रही थी और बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रही थी एक ईर्ष्या उसके मन में उठी थी पर बोली कुछ नहीं हाँ… वो जरूर सखी को तैयार कर देगी और वो भी इतना कि सखी मर्द के लिए तरस जाए एक के बाद एक मर्द भी उसे खुश नहीं कर सके वो जानती थी कि उसे क्या करना है वो तैयार थी मंदिरा भी उसके साथ थी वो एक ऐसी आग उसके तन में जगा देंगे कि वो खुद को नहीं रोक पाएँगी फिर देखते है कि सखी क्या गुल खिलाएँगी


तभी गुरु जी ने उसकी कमर पर एक थपकी दी और जाने का इशारा किया रूपसा अपनी हथेलियों को बड़े ही तरीके से उनके शरीर पर से खींचते हुए बड़े ही नाटकीय अंदाज में उनको देखते हुए कमरे से बाहर की ओर चल दी उसे पता था कि अब उसका काम क्या था वो जल्दी में थी बाहर आते ही उसकी नजर सीढ़ियो की ओर उठ गई थी जहां सखी का कमरा था

(रूपसा और मंदिरा ने उसे क्या कहा और कैसे तैयार किया वो रहने देते है वो सब आगे स्टोरी में आ जाएगा लेट अस नोट काउंट दा ट्रीस लेट अस ईट दा फ्रूट्स )

शाम को कामया नहा धोकर तैयार थी उसे गुरु जी के पास जाना था मंदिरा और रूपसा उसके पास थी बहुत कुछ बताया था उसे बस एक झिझक थी उसके अंदर और एक डर था गुरु जी का सबके साथ और अकेले में गुरु जी का रूप वो देख चुकी थी पर उसे तो मजा ही आया था वो तो चाहती ही थी कि उसका शरीर को सुख मिले पर इस सुख की कल्पना उसने नहीं की थी हाँ और गुरु जी से तो बिल्कुल नहीं की थी कैसे गुरु जी ने उसे नीचा दिखाया था जैसे उसके पास कुछ है ही नहीं कितने लोग उसके दीवाने थे क्या उसका शरीर गुरु जी को उत्तेजित नहीं करता होगा क्या वो दिखने में इतनी बुरी है उसे तो बड़ा घमंड था अपने ऊपर कितनी सुंदर दिखती थी वो हर कुछ तो ठीक था उसका फिगर से लेकर रंग तक क्या कमी है उसमें जो कुछ मंदिरा ने और रूपसा ने उसे बताया था क्या वो जरूरी है एक औरत के लिए उसका शरीर काफी नहीं है, , किसी को उत्तेजित करने को


शायद नहीं वो यह काम तो गुरु जी के साथ नहीं कर पाई थी बल्कि गुरु जी ने तो एक बार भी ऐसा कुछ नहीं किया था कि उसे लगे कि वो उत्तेजित थे बस उनके छोटे ही वो खुद पागल हो उठी थी रूपसा और मंदिरा ने कितनी कोशिश की थी उनका लिंग को खेलते हुए उत्तेजित करने का पर हुआ तो कुछ नहीं तो क्या है इस लीला का अंत और क्या चाहते है गुरु जी उससे कामया खुद सोचते हुए और मंदिरा और रूपसा के साथ गुरु के रूम की ओर बढ़ रही थी उसी फ्लोर में ही वो कही बैठे थे यह मंदिरा और रूपसा को ही मालूम था आज का ड्रेस उसका वैसा ही था कुछ अलग नहीं था वही महीन सा कपड़ा दोनों कंधे से नीचे घुटनों तक आता था कमर में गोल्डन करधनी थी और कपड़े को गोलडेन चैन से साइड और आगे पीछे की और आपस में जोड़ा गया था कामया को आज अपने कपड़ों से कोई दिक्कत नहीं था हर कोई ऐसा ही कपड़ा आश्राम में पहेंटा त और इससे भी खुला हुआ था रूपसा और मंदिरा तो साइड में पिन अप भी नहीं करती थी बस सामने से ही थोड़ा सा अटका रखा था उनका तो पूरा शरीर ही कपड़े से बाहर झाँक रहा था गोरा रंग और उसपर कयामत को भी मात देने वाला शरीर था दोनों का शायद ही कोई मर्द इन दोनों महिलाओं को देखकर अपने आपको रोक पाए कामया के दिल में भी एक ईर्ष्या ने जनम ले लिया था गुरु जी को भी यह दोनों पसंद थी और हो भी क्यों ना गजब का शरीर था उनका एकदम साँचे में ढला हुआ हर अंग कुछ कहता था हर एक अंग खिला हुआ था एक आमंत्रण देता हुआ चलने का ढंग इतना मादक था कि देखते ही बनता था कामया तो डरी हुई सी चल रही थी पर उन दोनों का हर स्टेप इतना सटीक था की शायद जमीन भी उनको अपने ऊपर चलने से रोक ना पाती जाँघो की झलक से कामया भी मंत्रमुग्ध हो उठी थी चलते में भी वो दोनों कामया को कुछ ना कुछ समझाती हुई ही आगे बढ़ रही थी


मंदिरा - ध्यान रखना रानी साहिबा आज गुरु जी को चित कर देना जैसा वो चाहते है और जैसा हमने आपको सिखाया है करना कोई शरम वरम मत करना फिर देखना गुरु जी आपके अलावा कुछ नहीं सोचेंगे बस एक बार उनका मन भर जाए फिर देखना क्या-क्या सिखाते है आपको वैसे भी आप बहुत खूबसूरत है

रूपसा- हाँ वो तो है तभी तो गुरु जी का दिल आया है आप पर नहीं तो कौन अपनी पूरी संपत्ति किसी को दे देता है और तो और आपको तो उनका पूरा ध्यान रखना भी चाहिए नहीं तो उनको कैसा लगेगा,

मंदिरा बिल्कुल बस जैसा हमने आपको बताया है वो करती जाना बिल्कुल नहीं सोचना कि गुरु जी को क्या लगेगा

रूपसा- ठीक है ना कि कुछ और करेंगी ना
और दोनों हाथों से कामया के चहरे को अपने पास खींचकर एक हल्का सा चुंबन उसके गालों पर कर दिया था

कामया ने देखा था कि वो लोग एक बंद दरवाजे के सामने खड़े थे और फिर मंदिरा ने भी वही किया उसे एक हल्का सा चुंबन दिया और दरवाजा खोलने लगी थी

कामया का पूरा शरीर सनसना रहा था एक अजीब सी खुशी और एक घबराहट ने उसके पूरे शरीर को जकड़ रखा था अंदर घुसते समय उसे एक बार अपने पुराने दिनों की बात याद आ गई थी जब उसे इसी तरह से कामेश के कमरे में सजाकर रखा गया था उसके लिए आज भी कुछ वैसा ही रोमचित सा था कामया का मन और शरीर में एक अजीब सी उत्तेजना ने घर कर लिया था पर शरम के मारे कुछ ना कह पाई थी वो दरवाजा खुलते ही वो लोग एक बहुत बड़े कमरे में दाखिल हुए दूर एक कोने में गुरु जी एक बड़े से पलंग पर बैठे हुए थे वही सफेद रंग की धोती और अंगरखा डाल रखा था उन्होंने कामया और दोनों महिलाओं को देखकर गुरु जी कुछ सम्भल कर बैठ गये थे और एकटक कामया की ओर देखते रहे कामया पहले तो थोड़ा सा घबराई हुई थी पर जैसे ही रूपसा ने उसके कमर पर एक चिकोटी काटी वो अकड़कर चलने लगी थी जैसे कोई मॉडल चलती है अपनी टाँगो को बहुत ही तरीके से रखते हुए गर्दन एकदम सीधी किए हुए आखों में एक नशा सा लिए हुए एक मंद सी मुश्कान बिखेरती हुई कामया एक-एक पग रखती हुई गुरु जी की ओर एकटक देखती हुई आगे बढ़ती रही चाल ऐसी थी कि हिरनी भी घायल हो जाए अदा ऐसी थी कि कोई भी वेश्या भी मात खा जाए शरीर के घूमने की अदा ऐसी थी कि सपा भी मात खा जाए


गुरु जी एकटक कामया को देखते रहे और एक मंद सी मन को मोहने वाली मुश्कान को बिखेरते हुए कामया के साथ-साथ चलती हुई रूपसा और मंदिरा की ओर देखते रहे पास आते ही रूपसा और मंदिरा ने आगे बढ़ कर गुरु जी को प्रणाम किया पर कामया अपनी जगह पर ही खड़ी रही अपनी एक टाँग को थोड़ा सा आगे करते हुए ताकि उसकी जाँघो का आकार गुरु जी को साफ-साफ दिखाई दे

गुरु जी ने हँसते हुए
गुरु जी- आओ सखी कैसी हो बहुत चेंज आ गया है तुममे हाँ…

कामया- जी

गुरुजी- गजब कर दिया भाई रूपसा और मंदिरा तुमने तुम्हें तो इनाम मिलना चाहिए आओ इधर आओ

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