बड़े घर की बहू (कामया बहू से कामयानी देवी) complete

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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

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क्या कहती कामया चुप ही रही उसके शरीर में घूमते हुए भीमा के हाथ अब उसे अच्छे लग रहे थे कामेश भी उसे सेक्स के बाद कपड़े नहीं पहनने देता था पूरी रात वैसे ही सोते थे वो कितना मजा आता था तब पर यह तो भीमा है पर इससे क्या यही वो इंसान है जिसने इसे शांत किया है यही वो इंसान है जिसके पास वो खुद आज गई थी और कितना इन्सल्ट तक किया था किचेन में उसके कहने पर भीमा ने आज शराब तक पिया था और उसके शरीर के हर हिस्से से सेक्स की भूख को मिटाया था नहीं वो इस इंसान को कम से कम आज तो और इन्सल्ट नहीं करेगी रहने दो यही क्या होगा घर पर कोई नहीं है
और सोचते हुए कामया भीमा से और सट कर सो गई थी भीमा जो कि अभी तक नशे में था कुछ कह रहा था कामया के सटने से उसने उसे और भी भींच लिया था आज अगर कामेश होता तो क्या वो भी उसे इसी तरह से पकड़कर सोता और रात भर उसे आहिस्ता आहिस्ता इसी तरह से सहलाता


भीमा- कुछ देर बाद चला जाऊँगा बहू बस थोड़ी देर रहने दे कितनी कोमल और नाजुक है तू मन नहीं भरा अभी
कामया चुपचाप उसकी बाहों में बँधी हुई धीरे-धीरे गहरी नींद के आगोस में जाने लगी थी बालों से भरा हुआ वो आदमी उसे बड़ा अपना सा लग रहा था सेक्स का जुनून उतरने के बाद भी वो इंसान उसे कितने अच्छे से पूछ रहा था और कितनी मिन्नत कर रहा था उसे यहां रहने देने के लिए सबकुछ भूलकर कामया शांति से उसे सख्स की बाहों में सो गई थी

कामया जब उठी तो उसे नहीं मालूम था कि कितने बजे है या कहाँ है पर एक मजबूत हाथों की गिरफ़्त में ही उठी थी बड़ा ही अपना पन लिए हुए और बहुत ही प्यार से उसके शरीर के हर अंग को छूते हुए दो मर्दाना हाथ उसके शरीर पर घूम घूमकर उसे उत्तेजित करते हुए शायद उत्तेजना के चलते ही वो उठी थी उसका कोमल शरीर जाग गया था पर आखें अब भी बंद थी उन हाथों के साथ-साथ होंठों को भी अपने शरीर पर चूमते हुए और कही कही गीलाकरते हुए वो महसूस कर रही थी वो नहीं जानती थी कि भीमा रात भर यही था या चला गया था पर हाँ इतना जानती थी कि यह भीमा ही था


शायद कल रात को जो उसने इसके साथ किया था वो अब तक अधूरा था और भीमा को और भी कुछ चाहिए था कामया जो की नींद में ही थी अपनी आखें खोलकर नहीं देखना चाहती थी बस उन हाथों और होंठों के मजे लेना चाहती थी और खूब लेना चाहती थी कल जो कुछ भी हुआ था उसने कामया के अंदर फिर से उस आग को हवा देदि थी जिसमें की वो पहले भी जल चुकी थी भीमा जो की सुबह सुबह अपने आपको ना रोक पाया था वो अपने सपनो की रानी अपनी काम रति को अपने ढंग से और अपने तरीके से एक बार उसके जाने से पहले भोग लेना चाहता था इसलिए सुबह सुबह अपने कमरे में जाने से पहले वो कामया पर टूट पड़ा था

उसके अंदर एक ज्वाला थी जिसे वो शांत कर लेना चाहता था अपने आपको ना रोक पाकर वो कामया के शरीर से खेलने लगा था जो की आराम से बेड पर साइड की और होकर सोई हुई थी गोरी गोरी जाँघो के साथ पतली सी कमर और फिर कंधे से नीचे की ओर जाते हुए बालों का समूह और उसपर से थोड़ा सा हिस्सा उसके शानदार और उठे हुए सीने का दृश्य उसे ना रोक पाया था और वो कामया के शरीर को थोड़ा सा सीधा करते हुए अपने होंठों को और हाथों को जोड़ कर कामया के शरीर का जाएजा लेने लगता और उधर कामया अभी थोड़ा सा छेड़ छाड़ के बाद उठ चुकी थी पर आखें अब भी बंद किए एक परम सुख का एहसास को संजोने में लगी हुई थी कामया कोई ना नुकर नहीं कर रही थी बल्कि अपने हाथों से भीमा की बाहों को पकड़कर और फिर धीरे से अपनी बाँहे उसके गले में पहना कर अपने तरीके से उसे एक मूक
आमंत्रण दे डाला था भीमा जो की ना तो जल्दी में था और नहीं कोई चिंता थी उसे तो बस इस देवी के शरीर की भूख थी जो वो अपने तरीके से बुझाना चाहता था वो अब तक उसके अंदर सामने की कोशिश करता जा रहा था और कामया भी अपनी जाँघो को खोलकर हल्की हल्की सिसकारी भरती हुई अपने अंदर उसके लिए जगाह बनाने में लगी हुई थी थोड़ा सा अपने आपको उसे अड्जस्ट करना पड़ा था पर कोई बात नहीं उसे आपत्ति नहीं थी भीमा भी जल्दी ही उसके अंदर तक समाता हुआ अपने काम में लगा हुआ था नहीं ही कोई प्रश्ना चिन्ह और नहीं ही कोई आपत्ति नहीं कोई बात और नहीं ही मनाही बस सेक्स पूरा सेक्स वो भी प्यार भरा ना कोई जल्दी ना कोई हार्षनेस ना कोई तकलीफ ना कोई अनिक्षा दोनों अपने आखें बंद किए हुए लगातार एक दूसरे को अपने अंदर समा लेने की कोशिश में लगे हुए थे चाल धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी सांसों का रेला अपने बाँध को लगने वाला था
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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

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पर कोई बात नहीं बस हमम्म्मम सस्स्स्स्शह के अलावा कमरे में कोई और आहट नहीं थी शायद सांसों की आवाज ने सबको शांत कर दिया था सेक्स का यह खेल देखने को शायद सबकुछ शांत बैठे थे कमरे की हर अपनी जगह पर था और कामया भीमा के इस अंतरंग संबंध का गवाह बनती जा रही थी कामया की बाँहे धीरे-धीरे भीमा के गले के चारो ओर कस्ति जा रही थी वो इस खेल में इतना डूब गई थी और भीमा इस खेल का पूरा नियंत्रण अपने हाथों में लिए कामया की गिरफ़्त का हर संभव जवाब देता जा रहा था उसकी कमर जो की अब तक धीरे-धीरे चल रही थी अब तेज चलने लगी थी सूनामी का रेला उस कमरे में एक तुफ्फान के आने का संकेत कर चुका था और वो दोनों ही सुबह सुबह का यह खेल जल्दी से निपटा लेने के मूड में थे


कामया तो यह भी नहीं जानती थी कि कितने बजे है पर शायद भीमा जानता था इसलिए अपने आपको जल्दी से खेल के समापन की ओर बढ़ा ले चला था कामया के अंदर का रक्त उसके योनि की ओर बढ़ने लगा था लगता था कि हर अंग का खून उसके योनि की ओर ही जा रहा था और वो दाँत भिंचे भीमा को और जोर से जकड़ रखा था भीमा भी पूरी रफ़्तार से कामया को भोगते हुए अपने अंतिम चरण की ओर भागते हुए उसके ऊपर छा गया था और जोर से सांसें फेकने लगा था कामया जो कि उसकी दोनों जाँघो ने अब तक भीमा की कमर को चारो ओर से जकड़ रखा था धीरे-धीरे कस्ति हुई आख़िरी बार अपनी ओर से भी प्रयास करती हुई चढ़कर शांत हो गई थी



उसके बाद तो सिर्फ़ मम्मी जी से इजाज़त लेकर कामया वापस उसी गाड़ी में आश्राम की ओर रवाना हो गई थी पर एक संतुष्टि और तन का बहुत बड़ा सुख भोग लगा कर चली थी वो फिर से वो उस अश्राम में जाने के बाद, उन महिलाओं के हाथों का खिलोना बनने को तैयार थी पर मन से नहीं तन से उसे अब वो सब अच्छा लगने लगा था इतने सारे हाथ तरह तरह से उसे छूते थे तो उसे अच्छा लगता था उसका मन अब वो सबकुछ सहने और मजे लेने का आदि हो चुका था हर तरफ उसकी खिदमत करने वाले लोग और आदर करने वाले लोगों से घिरे रहने की आदत सी हो गई थी वो नहीं जानती थी कि आगे क्या और कैसे होगा पर हाँ एक उत्तेजना उसके अंदर थी जो बार-बार उसे उन लोगों के बीच में ले जाने को उकसाती रहती थी

गाड़ी बड़े ही तरीके से चलती हुई और धीरे-धीरे अश्राम के अंदर तक पहुँच चुकी थी उसे लेने को मनसा तैयार खड़ी थी वही अपने होंठों पर एक मधुर सी मुश्कान लिए कामया के उतर-ते ही मनसा ने उसे प्रणाम किया और उसे अंदर ले चली थी कामया एकदम सीधी चलती हुई मनसा के पीछे पीछे चल दी और उसकी कमरे में पहुँच गई थी जहां वो सोती थी मनसा ने हँसते हुए उसे कहा

मनसा- रानी साहिबा अब तैयार है अभी स्नान बाकी है आपका हाँ… आज गुरु जी आपसे मिलेंगे स्नान के बाद बस आने ही वाले है इस बार वो यहां 5 दिन रुकेंगे चलिए जल्दी कर लीजिए

कामया-, … …
कुछ समझी और कुछ नहीं भी पर मनसा के साथ अपने अगले सुख और अनुभूति की ओर बढ़ चली थी वो वही तरीका नहाने का फिर उबटान और तेल की मालिश और फिर स्नान उत्तेजित और कामुक कामया एक बार फिर से तैयार थी सजने को शरीर का हर अंग पुलकित और सुडोल हो उठा था उसका पर एक इच्छा और तड़प उसके मन के अंदर अब भी थी उसके सेक्षुयल पार्ट्स एकदम जीवित थे और अंदर की एक चाहत उसे बार-बार किसी मर्द के साथ होने की सिफारिश कर रहे थे

मनसा जब उसे सजा रही थी तो आज उसे कुछ अलग तरह के कपड़े पहनाए गये थे पहले तो उसे एक ही कपड़ा ऊपर से गले में डाल दिया जाता था पर आज दो कपड़ों को कंधों से लेकर घुटनों तक छुपाता था वैसा ड्रेस पहनाया जा रहा था वाइट कलर का वो कपड़ा सिल्क का था और बहुत ही महीन था कंधो पर पड़े हुए कपड़े को आपस में गोल्ड चैन से एक दूसरे से जोड़ा जा रहा था ताकि उसके आगे का पीछे का और साइड का भाग छुप सके चैन के दोनों सिरे पर डायमंड का गुमाओ दार ब्रॉक्फ था और बहुत ही सुंदर लग रहा था बैठी हुई कामया जब सज कर तैयार हुई तो जूडे के साथ-साथ उसके बालों का एक गुच्छा उसके कंधों पर भी लटका हुआ था चूचियां का बहुत सा भाग सामने की ओर खुला हुआ था और क्लीवेज़ साफ उभरकर दिख रहा था कमर पर गोल्ड की एक मोटी सी कमर बंद थी और देखने में बहुत ही सुंदर लग रहा था कामया जब खड़ी हुई तो उसका ड्रेस उसके घुटनों तक आता था और उसकी पिंडलियाँ साफ और चमकदार थी गोरे रंग में सुडोल टांगों के साथ-साथ जब वो वाइट कलर का ड्रेस उसके शरीर पर चिपका हुआ सा था उसका हर अंग कपड़े के अंदर से साफ-साफ उभारों को प्रदर्शित कर रहा था कामया की आखों में एक चमक थी और होंठों में एक मादक सी मुश्कान

मनसा- गुरु जी आपका इंतजार कर रहे है रानी साहिबा

कामया-
कुछ महिलाए वही चेयर नुमा पालकी को उठाकर कामया के सामने खड़ी हो गई थी कामया उसपर बैठकर अगले मुकाम की और बढ़ चली थी कामया नहीं जानती थी कि आगे उसके लिए क्या सँजो रखा था गुरु जी ने पर एक भारी उत्तेजना और उत्सुकता से घिरी कामया हर वो काम कर लेना चाहती थी जो उसके लिए गुरु जी ने सोच रखा था बहुत से गलियारे से गुजरते हुए कामया को वो महिलाए एक बड़े से डोर के सामने ले आई थी मनसा ने आगे बढ़ कर डोर को खोला था अंदर पर्दो से ढका हुआ एक बड़ा सा कमरा सिर्फ़ कामया को बाहर से दिखा था पर जैसे ही वो अंदर जाती गई आँखे फटी की फटी रह गई थी बड़ी-बड़ी पैंटिंग से सजा वो कमरा कोई राज महल सा लगता था दूर एक बड़े से आसान में गुरु जी बैठे हुए थे ड्यू के बिच और खुशबू से भरा हुआ वो कमरा किसी के भी मन को जीत सकता था थोड़ा आगे बढ़ते ही कामया को पालकी से उतार दिया गया था और वो पालकी और महिलाए वापस कमरे से बाहर की ओर चली गई थी कामया उस कमरे में अकेली गुरु जी के साथ रह गई थी खड़ी हुई मंत्रमुग्ध सी कामया उस कमरे की वैभवता को देख रही थी कि उसे गुरु जी की आवाज सुनाई दी थी

गुरु जी- आओ सखी क्या देख रही हो

कामया- जी

गुरु जी- आओ बैठो यहां

कामया थोड़ा सा सकुचाती हुई आगे बढ़ी थी पहली बार वो गुरु जी से अकेले में मिल रही थी थोड़ा सा डर और घबराहट थी उसके अंदर पर गुरु जी की आवाज में इतनी मधुरता थी और अपना पन था कि वो धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ने लगी थी फर्श की चिकने पन को देखती हुई कामया बहुत ही संतुलित कदमो से गुरु जी के पास पहुँच गई थी गुरु जी जिस आसान पर बैठे थे उसके सामने ठीक वैसा ही आसान रखा था गुरु जी के इशारे पर कामया वहाँ बैठ गई थी

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Kamini
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Re: बड़े घर की बहू

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Guru ji ab kamya ko gyan denge aisa lagta hai
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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

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बैठ ते ही उसका ड्रेस सरक कर उसकी जांघों तक आ गया था शरम और हया के मारे कामया की नजर झुक गई थी वापस खड़े होकर उसने अपने ड्रेस को खींचकर नीचे किया था और फिर बैठी थी वो पर कहाँ वो ड्रेस था ही उतना और बैठते ही वो सरक कर जाँघो तक वापस पहुँच गया था हाथों से खींचती हुई कामया अपनी जाँघो को जोड़ कर नजर झुकाए हुए बैठी रही कि गुरु जी की आवाज उसके कानों से टकराई

गुरु जी- कैसी हो सखी

कामया- जी

गुरु जी - हाँ… कैसा लग रहा है तुम्हें यहां कोई दिक्कत

कामया (अब भी उसका ध्यान अपने ड्रेस को नीचे करने में ही था )- जी अच्छा (और ना में अपना सिर हिला दिया था)

गुरु जी- कामेश और ईश्वर ने तो अपना पूरा समये अश्राम के काम में झोक दिया है बहुत मेहनत कर रहे है घर पर कामेश नहीं मिला होगा तुम्हें

कामया- जी

गुरु जी- हाँ… में चाहता था कि यहां रहे जब तुम घर जाओ तो पर वो पहले काम फिर आराम वाला लड़का है चलो ठीक है

कामया- …

गुरु जी - विद्या कैसी है

कामया- जी अच्छी

गुरु जी - और तुम

कामया- जी

गुरु जी- यहां का महाल ठीक है तुम्हारे लिए कि कुछ चेंज करना है

कामया- जी ठीक है

गुरु जी- हाँ… अच्छा काया कल्प तो चलता रहेगा तुम्हारा पर अब से दीक्षा भी शुरू करनी है तुम्हारी बोलो तैयार हो ना

कामया- जी

गुरु जी - इस दीक्षा में मैं तुम्हें बहुत सी बातें बताउन्गा और चाहूँगा कि तुम पूरी तरह से और बहुत ही अच्छे ढंग से इस दीक्षा को लो अभी से कुछ पाठ शुरू करता हूँ

एक बात मेरी हमेशा याद रखना सखी इस जीवन में अपने तन, मन और धन के पीछे कभी नहीं भागना जब भी तुम इनके पीछे भगोगी वो तुमसे दूर जाते जाएँगे और जितना तुम इन्हें इज़्ज़त कम दोगि वो उतना ही तुम्हारे पीछे भागेंगे

इस देश में जिस चीज का तुम तिरस्कार करोगी वो तुम्हारी उतना ही इज़्ज़त करेगी मेरी बात ध्यान से सुनना तुम एक नारी हो इस जगत की रचना नारी से ही हुई है पुरुष एक जानवर है चाहो तो उसे पाल पॉश कर अपने हाथों का खिलोना बना लो या डर के मारे उसके पीछे पीछे घूमती रहो


ईश्वर की यह दो रचना बहूत अद्भुत है एक दूसरे के पूरक है और समझ के बनाए हुए मर्यादा में रहने को मजबूर है पर इस जिंदगी के सिवा भी बहुत कुछ है जो तुम्हें जानना है इस संसार को तुम्हें एक नया रास्ता भी दिखाना है बहुत देर तक गुरु जी कामया को जीवन के बहुत से ज्ञान देते रहे और कामया अपने आपको संभालती हुई अपने कपड़ों को खींचती हुई चुपचाप बैठी उन बातों को सुनती रही वो थोड़ा सा सचेत थी कि अब गुरु जी क्या कहते है या क्या आदेश देते है पर ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि थोड़ी देर बाद ही उन्होंने उसे जाने को भी कह दिया


गुरु जी ने अपनी टांगों को नीचे किया और उन महिलाओं की ओर कुछ इशारा किया उन महिलाओं ने आगे बढ़ कर गुरु जी की धोती को खोलनी शुरू कर दी कामया सन्न रह गई थी उनके तरीके भी अजीब थे बड़े ही जतन से और ध्यान से गुरु जी के पेट और सीने को चूमते हुए वो दोनों अपने काम में लगी हुई थी और गुरु जी भी अपने हाथों से बड़े ही आराम से उनके सिर पर हाथ फेरते हुए कभी एक ओर देखते थे तो कभी दूसरी ओर जब उनका वस्त्र खुला तो कामया की नजर उनके लिंग पर अटक गई थी अच्छा कसा मोटा ताजा लग रहा था पर बालों के गुच्छे से ढँका हुआ था इसलिए दूर से उसके आकार का पता नहीं चला था पर था मस्त सा अपने अंदर की हवस की आग को दबाते हुए कामया ने अपनी साँसों को नियंत्रण में रखते हुए एक नजर गुरु जी की ओर देखा तो पाया की गुरु जी उसकी ओर ही देख रहे थे


अचानक ही उसकी आखें शरम से झुक गई थी पर गुरु जी की एक मनमोहने वाली मुश्कान उसकी आखों से उसके दिल में समा गई थी थोड़ा सा झिझक हटी थी उसके अंदर से एक डर जो कि उसके अंदर था वो हटा था पर फिर भी हिम्मत नहीं हुई थी उनसे आखें मिलाने की पर हाँ… नजर उन दोनों महिलाओं की ओर ही थी उसकी दोनों बड़े ही आराम से प्यार से गुरु जी के लिंग को अपने हाथों में लिए हुए धीरे-धीरे मसल रही थी अपने गालों में रगड़ रही थी और बीच बीच में अपनी जीब से थोड़ा सा चाट कर गुरु जी की ओर देखती भी जा रही थी पर उनका लिंग वैसा ही सिथिल सा उसके हाथों का खिलोना बना हुआ था थोड़ी देर बाद कामया को गुरु जी की आवाज फिर से सुनाई दी

गुरु जी- इधर आओ सखी घबराओ नहीं

कामया डरती हुई शरमाई हुई और थोड़ा सा झिझकति हुई धीरे-धीरे कदमो से चलती हुई गुरु जी पास जाकर खड़ी हो गई थी एकटक जमीन की ओर देखती हुई कामया जैसे ही गुरु जी के सामने खड़ी हुई उन दोनों महिलाओं ने और गुरु जी ने उसका हाथ पकड़कर ठीक अपने सामने और करीब खड़ा कर लिया था उन दोनों महिलाओं के हाथ कामया की जाँघो को सहलाने लगे थे उसके कपड़ों के अंदर से धीरे-धीरे उसकी योनि तक कामया की सांसें तो पहले से ही फूल चुकी थी गुरु जी के पास आने से और उन महिलाओं के हाथ लगाने से उसका शरीर उसके आपे से बाहर होता चला गया था सांसों की गति भी बढ़ गई थी और उत्तेजना अपने परम शिखर तक पहुँच चुकी थी गुरु जी का देखने का ढंग इतना उत्तेजग था कि कामया और आगे होकर उनसे सट कर खड़ी हो गई थी वो चाहती थी कि गुरु जी उसे हाथ लगाए और उसे छेड़े पर गुरु जी तो बस एकटक उसकी ओर देखते जा रहे थे उनका हाथ अब धीरे से उठकर कामया के सीने पर आके टिक गया था

कामया- आआआआआह्ह सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्शह करती हुई थोड़ा सा और आगे की ओर हो गई थी कामया की हालत देखकर नीचे बैठी महिलाए थोड़ा सा मुस्कुराइ थी उनके हाथों में अब भी गुरु जी का लिंग था और अपने होंठों से वो लगातार उसे चाट रही थी पर गुरु जी का लिंग वैसे ही ढीला ढाला सा पड़ा हुआ था गुरु जी के हाथ धीरे-धीरे कामया की चुचियों को दबाते हुए ऊपर की ओर उठ रहे थे और जब वो उसके कंधे के पास जाकर रुक गये तो कामया ने एक नजर गुरुजी पर डाली जैसे कह रही हो कि हाँ… उतार दो अब यह कपड़ा मेरे शरीर पर चुभ रहा है गुरु जी की उंगलियां धीरे से कामया के कंधे पर से उस कपड़े को नीचे की ओर सरका कर धीरे से अपने हाथों के सहारे नीचे की ओर कर दिया था उनका हाथ कामया की नंगी चुचियों को छूते हुए उसकी कमर तक आ गई थी कामया की तेज सांसें पूरे कमरे में गूँज रही थी नियंत्रण नहीं था उसका उसके ऊपर ना चाहते हुए भी सिसकारी के साथ-साथ एक तड़पती हुई सी आह भी उसके होंठों से निकल ही गई थी उन महिलाओं की उंगलियां धीरे-धीरे उसकी योनि को सहला रही थी कामया की जांघे अपने आप ही खुल गई थी ताकि उन महिलाओं को अपनी योनि तक पहुँचा सके वो आखें बंद किए माथे को ऊपर किए हुए जोर-जोर से सांसें ले रही थी और अपने शरीर पर हो रहे एक के बाद एक आक्रमण को किसी तरह से झेल रही थी कामया अपने में ही गुम थी कि उसकी कमर से वो गोल्डन कमरबंध खुलकर नीचे गिर गया था और गुरु जी के हाथों के साथ-साथ उसके शरीर का वो कपड़ा भी अलग हो गया था किसी मूरत की भाँति खड़ी हुई कामया साँसों को नियंत्रण करने में लगी थी पर गुरु जी के कोमल हाथों को नजर अंदाज नहीं कर पा रही थी गुरु जी की उंगलियां धीरे-धीरे उसके तन को सहलाती हुई उसकी योनि तक पहुँच चुकी थी और उन महिलाओं की उंगलियों के साथ ही उसकी योनि को छेड़-ते जा रहे थे कामया अपनी तेज सांसों को संभालती हुई किसी तरह से खड़ी थी कि गुरु जी आवाज उसके कानों में टकराई थी

गुरु जी- देखो सखी क्या हालत है तुम्हारी अपने तन पर जरा भी नियंत्रण नहीं है तुम्हारा मुझे देखो कुछ हुआ मुझे इतनी सुंदर और बेदाग स्त्रियों के होते हुए भी में कितना नार्मल हूँ पता है क्यों क्योंकी मेरा मन नहीं है और जब तक मन नहीं होता तब तक सब बेकार है अपने तन को अपने मन से जोड़ो सखी और फिर देखो क्या होता है तुम्हारा मन तो नहीं है यह सब करने का पर तुम्हारा तन तुम्हारा साथ नहीं दे रहा है तुम अपने तन से हार गई हो जब तक तुम अपने तन को अपने मन से नहीं जोड़ोगी तब तक तुम ऐश्वर्य की प्राप्ति नहीं कर पाओगी आओ तुम देखो अगर मेरा मन नहीं है तो तुम मेरा क्या कर सकती हो

और कहते हुए गुरु जी ने कामया की कमर को पकड़कर नीचे बिताने लगे थे कामया भी तड़पती हुई सी उनके घुटनों के बीच में बैठ गई थी दोनों महिलाए खड़ी होकर कामया को लगा तार सहलाती जा रही थी

गुरु जी ने अपने हाथों से अपने लिंग को उठाकर कामया के चहरे के सामने एक बार हिलाकर दिखाया जैसे कह रहे हो कर लो जो करना है कामया की नजर गुरु जी के लिंग पर रुक गई थी होंठ खुले थे पर जल्दी ही बंद हो गये थे हाथों ने आगे बढ़ने की कोशिश की और नहीं बढ़े
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