बड़े घर की बहू (कामया बहू से कामयानी देवी) complete

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Smoothdad
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Re: बड़े घर की बहू

Post by Smoothdad »

kahani mazedar hai mitr
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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

Post by sexi munda »

करीब 9 00 बजे के आस-पास घर के बाहर शंख और ढोल की आवाज से यह पता चल गया था कि गुरु जी आ गये है और सभी पापाजी मम्मीजी और बहुत से मेहमान जल्दी से दरवाजे की ओर दौड़े

कामया भी मम्मीजी के साथ थी एक हाथ में फूल भरी थाली थी और मम्मीजी के पास आरती करने वाली थाली थी और मिसेज़ धरमपाल भी थी उसकी शायद कोई लड़की भी और ना जाने कौन कौन था

घर के दरवाजे पर जैसे ही गाड़ी रुकी थी पहले कामेश निकला था और फिर कुछ बहुत ही सुंदर दिखने वाले एक दो लोग और फिर पीछे का दरवाजा खोलकर गुरु जी बाहर आए थे वहाँ क्या गुरूर था उनके चहरे पर बिल्कुल चमक रहा था उनका चेहरा सफेद सिल्क का धोती और कुर्ता था रेड कार्पेट स्वागत था उनका फूलो से और खुशबू से पटा पड़ा था उनका घर कामया खड़ी-खड़ी गुरु जी को सिर्फ़ देख रही थी कुछ करने को नहीं था उसके पास मम्मीजी और मिसेज़ धरमपाल ही पूरा स्वागत का काम कर रही थी कामेश आके कामया के पास खड़ा हो गया था
कामेश- देखा
कामया-
कामेश- गुरु जी रबाब क्या दिखते है ना बहुत रस था यार सड़क पर बाहर भी लोग खड़े है पोलीस भी लगी है बड़ी मुश्किल से पहुँचा हूँ

कामया-
क्या बोलती वो चुपचाप खड़ी हुई गुरु जी के रुतबे को देख रही थी कैसे लोग झुक झुक कर उनका आशीष लेने को बेताब है और कैसे वो मुस्कुरा कर हर किसी के अभिनंदन का जबाब दे रहे थे कामया को यह देखकर बड़ा अलग सा ख्याल उसके दिमाग में घर करने लगा था इतना सम्मान और रुतबा तो सिर्फ़ मिनिस्टर्स का ही होता है और किसी का नहीं पर गुरुजी का तो जबाब ही नहीं वो और कामेश सभी के साथ चलते हुए अंदर आ गये थे अंदर आते ही भीड़ थोड़ी कम हुई और सांसें लेने की जगह बनी

मंदिर के सामने एक दीवान पर उनका आसान बनाया गया था गुरु जी पहले मंदिर में प्रणाम करते हुए उस आसान में बैठ गये थे पापाजी मम्मीजी और सभी उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने लगे थे एक-एक कर सभी कामेश के साथ जब कामया उनके सामने आई तो

मम्मीजी- यह कामेश है और यह हमारी बहू कामया

गुरुजी की एक नजर कामया पर पड़ी कामया का पूरा शरीर एक बार ठंडा सा पड़ गया था कितनी गहरी नजर है उनकी तब तक कामेश उनके पैर छूकर उठ चुका था और जैसे ही कामया उनके पैरों पर झुकी गुरु जी ने अपने पैर खींच लिए थे
सभी आचंभित थे और एकदम सन्नाटा छा गया था घर में

गुरु जी- नहीं आप नहीं आप तो इस घर की लक्ष्मी है और इस घर की लक्ष्मी को किसी बाहरवाले के पैरों पर झुकना नहीं है
पापाजी- पर गुरु जी आपका आशीर्वाद तो चाहिए ना हमारी बहू को

कामया हाथ बाँधे और सिर झुकाए हुए खड़ी थी बड़ी ही असमंजस में थी क्या करे

गुरु जी- हमारे आशीर्वाद की कोई जरूरत ही नहीं है ईश्वर (कामेश के पिता का नाम) यह तो खुद लक्ष्मी है और सिर्फ़ राज करने के लिए है

पापाजी और पूरा घर शांत हो गया था कोई कुछ नहीं कह सका था सभी चुपचाप् कभी कामया की ओर तो कभी गुरु जी की ओर देख रहे थे कामया एक काटन साड़ी पहने हुए अपने आपको पूरा ढँक कर वही बीच में कामेश के साथ खड़ी थी नज़रें झुका कर

गुरु जी- विद्या (कामेश की मा) और ईश्वर हमारा यहां आना कोई ऐसे ही नहीं है बहुत बड़ा काम और दायत्व से भरा हुआ है हमारा आगमन थोड़ा सा समय के बाद बताऊँगा पहले बैठो

सभी बैठने लगे थे वही नीचे गद्दी में पर

गुरु जी- नहीं नहीं आप नहीं आप नीचे नहीं बैठेंगी और किसी के पैरों के पास तो बिल्कुल भी नहीं यहां हमारे पास एक कुर्सी रखिए और यहां हमारी बराबरी में बैठिए

उनका आदेश कामया के लिए था सभी फिर से चुप कुछ खुसुर फुसर भी हुई सभी कामया की ओर बड़े ही इज़्ज़त से देख रहे थे गुरु जी के पास और उनके बराबरी वाह बड़ी किश्मत वाली है कामया इतना मान तो आज तक गुरु जी ने किसी को नहीं दिया होगा जितना कामया को मिल रहा था

कामया अपने आप में ही सिकुड़ रही थी उसे अभी-अभी जो इज़्ज़त मिल रही थी वो एक अजीब सा एहसास उसके दिल और पूरे शरीर में उथल पुथल मचा दे रहा था अभी-अभी जो इज़्ज़त गुरु जी से मिल रही थी उसे देखकर वो कितना विचलित थी पर जब उसे थोड़ा सा इज़्ज़त मिली तो वो कितना सहम गई थी कामया के लिए वही डाइनिंग चेयर को खींचकर गुरु जी के आसान के पास रख दिया गया था थोड़ा सा दूर थी वो कामया को बैठ-ते हुए शरम आ रही थी क्योंकी सभी नीचे बैठे थे और वो और गुरु जी बस ऊपर थे पापाजी मम्मीजी, कामेश और सभी सभी की नजर एक बार ना एक बार कामया की ओर जरूर उठ-ती थी पर गुरु जी की आवाज से उनका ध्यान उनकी तरफ हो जाता था

बहुतो की समस्या और कुछ की निजी जिंदगी से जुड़े कुछ सवालों के बीच कब कितना टाइम निकल गया था कामया नहीं जान पाई थी सिमटी सी बैठी हुई कामया का ध्यान अचानक ही तब जागा जब कुछ लोग खड़े होने लगे थे और गुरु जी की आवाज उसके कानों में टकराई थी

गुरु जी- अब बाद में हम आश्रम में मिलेंगे अभी हमें बहुत काम है और ईश्वर से और उसके परिवार से कुछ बातें करनी है तो हमें आगया दीजिए

सभी उठकर धीरे-धीरे बाहर की ओर चल दिए कामया भी खड़ी हो गई थी जो बुजुर्ग थे अपना हाथ कामया के सिर पर रखते हुए बाहर चले गये थे रह गये थे धरम जी उनकी पत्नी और कामेश का परिवार हाल में सन्नाटा था

गुरु जी- बहुत थक गया हूँ थोड़ा भी आराम नहीं मिलता

पापाजी- हम पैर दबा दे गुरु जी

गुरु जी- अरे नहीं ईश्वर पैर दबाने से क्या होगा हम तो दाइत्व से थक गये है चलो तुम थोड़ी मदद कर देना

पापाजी- अरे गुरु जी में कहाँ

गुरु जी- कहो ईश्वर कैसा चल रहा है तुम्हारा काम

पापाजी- जी गुरु जी अच्छा चल रहा है

गुरु जी कुछ उन्नती हुई कि नहीं

पापाजी- हाँ… गुरु जी उन्नती तो हुई है

गुरु जी- हमने कहा था ना हमारी पसंद की बहू लाओगे तो उन्नती ही करोगे हाँ तुम्हारे घर में लक्ष्मी आई है
कामया एक बार फिर से गुरु जी की ओर तो कभी नीचे बैठे अपने परिवार की ओर देखने लगी थी

मम्मीजी- जी गुरु जी उन्नती तो बहुत हुई है और अब तो बहू भी काम सभालने लगी है

गुरु जी- अरे काम तो अब संभालना है तुम्हारी बहू को हम जो सोचकर आए है वो करना है बस तुम लोगों की सहमति बने तब

पापाजी और मम्मीजी- अरे गुरु जी आप कैसी बातें करते है सब कुछ आपका ही दिया हुआ है

गुरु जी- नहीं नहीं फिर भी

कामेश- जो आप कहेंगे गुरु जी हमें मंजूर है

गुरु जी---अरे यह बोलता भी है हाँ… बहुत बड़ा हो गया है पहले तो सिर्फ़ मुन्डी हिलाता था

कामेश झेप गया था और

मम्मीजी- आप तो हुकुम कीजिए गुरु जी

गुरु जी- धरम पाल कैसा है

धरम पल- जी गुरु जी ठीक हूँ सब आपका असिर्वाद है

गुरु जी- एक काम कर तू ईश्वर की दुकान और उसका काम संभाल ले और उसका हिस्सा उसके पास पहुँचा देना ठीक है

धरम पाल और कामेश और सभी एक बार चौंक गये थे यह क्या कह रहे है गुरु जी दुकान कॉंप्लेक्स और सभी कुछ धरम पाल जी के हाथों में फिर वो क्या करेंगे पर बोला कुछ नहीं

गुरु जी- ईश्वर और विद्या तुम लोग आराम करो है ना बहुत काम कर लिया क्या कहते हो

ईश्वर- जी जैसा आप कहे गुरु जी
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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

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करीब 9 00 बजे के आस-पास घर के बाहर शंख और ढोल की आवाज से यह पता चल गया था कि गुरु जी आ गये है और सभी पापाजी मम्मीजी और बहुत से मेहमान जल्दी से दरवाजे की ओर दौड़े

कामया भी मम्मीजी के साथ थी एक हाथ में फूल भरी थाली थी और मम्मीजी के पास आरती करने वाली थाली थी और मिसेज़ धरमपाल भी थी उसकी शायद कोई लड़की भी और ना जाने कौन कौन था

घर के दरवाजे पर जैसे ही गाड़ी रुकी थी पहले कामेश निकला था और फिर कुछ बहुत ही सुंदर दिखने वाले एक दो लोग और फिर पीछे का दरवाजा खोलकर गुरु जी बाहर आए थे वहाँ क्या गुरूर था उनके चहरे पर बिल्कुल चमक रहा था उनका चेहरा सफेद सिल्क का धोती और कुर्ता था रेड कार्पेट स्वागत था उनका फूलो से और खुशबू से पटा पड़ा था उनका घर कामया खड़ी-खड़ी गुरु जी को सिर्फ़ देख रही थी कुछ करने को नहीं था उसके पास मम्मीजी और मिसेज़ धरमपाल ही पूरा स्वागत का काम कर रही थी कामेश आके कामया के पास खड़ा हो गया था
कामेश- देखा
कामया-
कामेश- गुरु जी रबाब क्या दिखते है ना बहुत रस था यार सड़क पर बाहर भी लोग खड़े है पोलीस भी लगी है बड़ी मुश्किल से पहुँचा हूँ

कामया-
क्या बोलती वो चुपचाप खड़ी हुई गुरु जी के रुतबे को देख रही थी कैसे लोग झुक झुक कर उनका आशीष लेने को बेताब है और कैसे वो मुस्कुरा कर हर किसी के अभिनंदन का जबाब दे रहे थे कामया को यह देखकर बड़ा अलग सा ख्याल उसके दिमाग में घर करने लगा था इतना सम्मान और रुतबा तो सिर्फ़ मिनिस्टर्स का ही होता है और किसी का नहीं पर गुरुजी का तो जबाब ही नहीं वो और कामेश सभी के साथ चलते हुए अंदर आ गये थे अंदर आते ही भीड़ थोड़ी कम हुई और सांसें लेने की जगह बनी

मंदिर के सामने एक दीवान पर उनका आसान बनाया गया था गुरु जी पहले मंदिर में प्रणाम करते हुए उस आसान में बैठ गये थे पापाजी मम्मीजी और सभी उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने लगे थे एक-एक कर सभी कामेश के साथ जब कामया उनके सामने आई तो

मम्मीजी- यह कामेश है और यह हमारी बहू कामया

गुरुजी की एक नजर कामया पर पड़ी कामया का पूरा शरीर एक बार ठंडा सा पड़ गया था कितनी गहरी नजर है उनकी तब तक कामेश उनके पैर छूकर उठ चुका था और जैसे ही कामया उनके पैरों पर झुकी गुरु जी ने अपने पैर खींच लिए थे
सभी आचंभित थे और एकदम सन्नाटा छा गया था घर में

गुरु जी- नहीं आप नहीं आप तो इस घर की लक्ष्मी है और इस घर की लक्ष्मी को किसी बाहरवाले के पैरों पर झुकना नहीं है
पापाजी- पर गुरु जी आपका आशीर्वाद तो चाहिए ना हमारी बहू को

कामया हाथ बाँधे और सिर झुकाए हुए खड़ी थी बड़ी ही असमंजस में थी क्या करे

गुरु जी- हमारे आशीर्वाद की कोई जरूरत ही नहीं है ईश्वर (कामेश के पिता का नाम) यह तो खुद लक्ष्मी है और सिर्फ़ राज करने के लिए है

पापाजी और पूरा घर शांत हो गया था कोई कुछ नहीं कह सका था सभी चुपचाप् कभी कामया की ओर तो कभी गुरु जी की ओर देख रहे थे कामया एक काटन साड़ी पहने हुए अपने आपको पूरा ढँक कर वही बीच में कामेश के साथ खड़ी थी नज़रें झुका कर

गुरु जी- विद्या (कामेश की मा) और ईश्वर हमारा यहां आना कोई ऐसे ही नहीं है बहुत बड़ा काम और दायत्व से भरा हुआ है हमारा आगमन थोड़ा सा समय के बाद बताऊँगा पहले बैठो

सभी बैठने लगे थे वही नीचे गद्दी में पर

गुरु जी- नहीं नहीं आप नहीं आप नीचे नहीं बैठेंगी और किसी के पैरों के पास तो बिल्कुल भी नहीं यहां हमारे पास एक कुर्सी रखिए और यहां हमारी बराबरी में बैठिए

उनका आदेश कामया के लिए था सभी फिर से चुप कुछ खुसुर फुसर भी हुई सभी कामया की ओर बड़े ही इज़्ज़त से देख रहे थे गुरु जी के पास और उनके बराबरी वाह बड़ी किश्मत वाली है कामया इतना मान तो आज तक गुरु जी ने किसी को नहीं दिया होगा जितना कामया को मिल रहा था

कामया अपने आप में ही सिकुड़ रही थी उसे अभी-अभी जो इज़्ज़त मिल रही थी वो एक अजीब सा एहसास उसके दिल और पूरे शरीर में उथल पुथल मचा दे रहा था अभी-अभी जो इज़्ज़त गुरु जी से मिल रही थी उसे देखकर वो कितना विचलित थी पर जब उसे थोड़ा सा इज़्ज़त मिली तो वो कितना सहम गई थी कामया के लिए वही डाइनिंग चेयर को खींचकर गुरु जी के आसान के पास रख दिया गया था थोड़ा सा दूर थी वो कामया को बैठ-ते हुए शरम आ रही थी क्योंकी सभी नीचे बैठे थे और वो और गुरु जी बस ऊपर थे पापाजी मम्मीजी, कामेश और सभी सभी की नजर एक बार ना एक बार कामया की ओर जरूर उठ-ती थी पर गुरु जी की आवाज से उनका ध्यान उनकी तरफ हो जाता था

बहुतो की समस्या और कुछ की निजी जिंदगी से जुड़े कुछ सवालों के बीच कब कितना टाइम निकल गया था कामया नहीं जान पाई थी सिमटी सी बैठी हुई कामया का ध्यान अचानक ही तब जागा जब कुछ लोग खड़े होने लगे थे और गुरु जी की आवाज उसके कानों में टकराई थी

गुरु जी- अब बाद में हम आश्रम में मिलेंगे अभी हमें बहुत काम है और ईश्वर से और उसके परिवार से कुछ बातें करनी है तो हमें आगया दीजिए

सभी उठकर धीरे-धीरे बाहर की ओर चल दिए कामया भी खड़ी हो गई थी जो बुजुर्ग थे अपना हाथ कामया के सिर पर रखते हुए बाहर चले गये थे रह गये थे धरम जी उनकी पत्नी और कामेश का परिवार हाल में सन्नाटा था

गुरु जी- बहुत थक गया हूँ थोड़ा भी आराम नहीं मिलता

पापाजी- हम पैर दबा दे गुरु जी

गुरु जी- अरे नहीं ईश्वर पैर दबाने से क्या होगा हम तो दाइत्व से थक गये है चलो तुम थोड़ी मदद कर देना

पापाजी- अरे गुरु जी में कहाँ

गुरु जी- कहो ईश्वर कैसा चल रहा है तुम्हारा काम

पापाजी- जी गुरु जी अच्छा चल रहा है

गुरु जी कुछ उन्नती हुई कि नहीं

पापाजी- हाँ… गुरु जी उन्नती तो हुई है

गुरु जी- हमने कहा था ना हमारी पसंद की बहू लाओगे तो उन्नती ही करोगे हाँ तुम्हारे घर में लक्ष्मी आई है
कामया एक बार फिर से गुरु जी की ओर तो कभी नीचे बैठे अपने परिवार की ओर देखने लगी थी

मम्मीजी- जी गुरु जी उन्नती तो बहुत हुई है और अब तो बहू भी काम सभालने लगी है

गुरु जी- अरे काम तो अब संभालना है तुम्हारी बहू को हम जो सोचकर आए है वो करना है बस तुम लोगों की सहमति बने तब

पापाजी और मम्मीजी- अरे गुरु जी आप कैसी बातें करते है सब कुछ आपका ही दिया हुआ है

गुरु जी- नहीं नहीं फिर भी

कामेश- जो आप कहेंगे गुरु जी हमें मंजूर है

गुरु जी---अरे यह बोलता भी है हाँ… बहुत बड़ा हो गया है पहले तो सिर्फ़ मुन्डी हिलाता था

कामेश झेप गया था और

मम्मीजी- आप तो हुकुम कीजिए गुरु जी

गुरु जी- धरम पाल कैसा है

धरम पाल- जी गुरु जी ठीक हूँ सब आपका असिर्वाद है

गुरु जी- एक काम कर तू ईश्वर की दुकान और उसका काम संभाल ले और उसका हिस्सा उसके पास पहुँचा देना ठीक है

धरम पाल और कामेश और सभी एक बार चौंक गये थे यह क्या कह रहे है गुरु जी दुकान कॉंप्लेक्स और सभी कुछ धरम पाल जी के हाथों में फिर वो क्या करेंगे पर बोला कुछ नहीं

गुरु जी- ईश्वर और विद्या तुम लोग आराम करो है ना बहुत काम कर लिया क्या कहते हो

ईश्वर- जी जैसा आप कहे गुरु जी
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Re: बड़े घर की बहू

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पापाजी और मम्मीजी दोनों अपने हाथ जोड़ कर बस यही कह पाए थे पर कामया की चिंता वैसे ही थी इतना बड़ा काम सिर्फ़ गुरु जी के कहने पर किसी को देकर अलग हो जाना कहा की बुद्धिमानी है

गुरु जी- एक काम करो ईश्वर तुम मेरे आश्रम का पूरा काम देखो पूरे भारत का उसका हिसाब किताब और डोनेशन सबका काम तुम ही सम्भालो अब में और नहीं कर सकता पवर आफ आट्रनी मैंने बना ली है आज से तुम ही मेरे सारे आश्रम और खेत खलिहान के मालिक हो जैसा चाहो करो क्यों करसकते हो ना इतना तो मेरे लिए

पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया था पूरे भरत में कम से कम 1000 करोड़ की प्रॉपर्टी और बैंक बलेन्स है उनका विदेशो से आने वाला फंड और यहां का फंड मिलाकर हर महीने कुछ नहीं तो 1000 करोड़ बनते हैं वो सब पापाजी के नाम
वाह

गुरु जी- और विद्या तुम एक काम करो यह मंदिर थोड़ा छोटा है आश्रम के मंदिर में तुम पूजा किया करो ठीक है

मम्मीजी- जी ठीक है

गुरु जी फिर रहना भी वही कर लो तुम लोग क्यों कामेश

कामेश- जी

गुरु जी- एक काम करो तुम्हारा परिवार वही आश्रम में नीचे का हिस्सा ले लो एक तरफ का और वही रहो तुम्हारे नाम कर देता हूँ कामेश तू पापाजी की मदद करदेना तेरा दिमाग अच्छा है तू संभाल लेगा ठीक है क्यों कोई आपत्ति तो नहीं


सब क्या कहते यह सब तो उन्होंने तो कभी जीवन में नहीं सोचा था इतना बड़ा दायित्व और सबकुछ कुछ ही मिंटो में एकटक आँखे बिछाये वो सबके सब गुरु जी की ओर देखने लगे थे धरम पाल के चहरे पर खुशी टिक नहीं पा रही थी और पापाजी के और कामेश के और मम्मीजी के भी सभी बहुत खुश थे

कामया चेयर पर बैठी हुई बैचन हो रही थी पर गुरु जी की आवाज से उसका ध्यान फिर से एक बार उनकी तरफ चला गया था गुरु जी- हाँ तो ठीक है बहुत बड़ा दायित्व निभा लिया है मैंने मुझे पूरा विस्वास था कि ईस्वर तू मना नहीं करेगा हमेशा से ही तू और तेरे परिवार ने मेरी बात मानी है कल से तुम लोग या चाहो तो कुछ दिनों बाद से आश्रम में दाखिल हो जाना ठीक है

पापाजी- जी गुरु जी आपका ध्यनवाद हमें इसकाबिल समझा आपने

गुरु जी- अरे पगले मेरा धन्यवाद क्यों करता है तेरे घर की लक्ष्मी है ना उसे धन्यवाद कर एक काम उसके लिए भी है क्यों करोगी

कामया हड़बड़ा गई थी गुरु जी की आवाज से

कामया- (बस सिर हिला दिया था )

मम्मीजी- हाँ… हाँ… गुरु जी क्यों नहीं हम सब तैयार है आप हुकुम कीजिए

गुरु जी- नहीं नहीं हम तुम्हारी बहू को हुकुम नहीं दे सकते बस एक आग्रह कर सकते है और अगर वो मान जाए तो और तुम सबकी हामी भी जरूरी है

पूरा परिवार एक साथ तैयार था कोई हामी की जरूरत भी नहीं थी

पापाजी- आप तो कहिए गुरु जी बहू को क्या करना है

गुरु जी- देख ईश्वर हमने बहुत कुछ सोचकर तुम्हारे घर इस लड़की को लाए थे सोचा था हमारा उद्धार करेगी यही सोचकर हम यहां भारत में भी आए है अगले हफ्ते हम बाहर चले जाएँगे हमेशा के लिए बूढ़ा हो गया है हमारा शरीर शायद ज्यादा दिन नहीं है हम इसलिए हमारा कुछ भार तो तुम लोगों ने कम कर दिया है पर एक भार और है वो हम तेरी बहू को देना चाहते है

पापाजी- अरे गुरु जी ऐसा मत कहिए आप जो कहेंगे वो होगा

गुरु जी- तुम्हारा क्या कहना है

वो कामया की ओर देखकर कह रहे थे अभी तक उन्होंने उसे संबोधन नहीं किया था बस घर वालों की ओर इशारा करते हुए ही कुछ कहा था पर इस बार डाइरेक्ट था

कामया ने एक बार कामेश की ओर देखा था वो खुश था घर के सभी लोग खुश थे इतना बड़ा काम और इतना सारा पैसा और दौलत और ना जाने क्या-क्या

वो शायद कुछ कहना चाहती तो भी नहीं कह सकती थी

गुरु जी- सुनो थोड़ा समय चाहिए तो लेलो पर हमें जल्दी बता दो नहीं तो यह शरीर छोड़ नहीं पाएँगे हम

पापाजी- गुरु जी ऐसा नहीं कहिए प्लीज बहू को जो काम देंगे वो करेगी हम सब है ना

गुरु जी- ठीक है चलो हम बताते है हम बहू को आज से सखी कहेंगे संगिनी ठीक है आज से बहू हमारी उतराधिकारी है हमारे आश्रम की हमारी पूरी प्रॉपर्टी की और पूरे भरत में फेले हमारे साम्राज्या की जिसका कि ध्यान आप लोगों को रखना है
सभी लोग एकदम शांत हो गये थे कामया के पैरों के नीचे से जैसे जमीन हट गई थी अवाक सी कभी कामेश को और अपने परिवार को तो कभी गुरु जी को देख रही थी

कमरे में बैठे सभी की नजर कभी गुरु जी पर तो कभी कामया पर

गुरु जी- बोलो कामेश तुम्हें कोई आपत्ति है

कामेश- जी में क्या

गुरु जी- अरे तेरी बीवी है तेरी बीवी ही रहेगी पर हमारी उत्तराधिकारी है यह हमारी प्रॉपर्टी और हमारे, पूरे भारत में हर एक हिस्सा का अश्राम से इन्हे कामयानी देवी के नाम से लोग जाँएंगे बोलो क्या कहते हो

मम्मीजी- पर इसकी उम्र अभी कहाँ है गुरु जी

गुरु जी हाँ… हमें पता है लेकिन यही हमारे संस्था की उतराधिकारी है जहां तक उमर की बात है वो चलेगा यह हमेशा कामेश की पत्नी रहेगी हमारे आश्रम में ऐसा कोई नियम नहीं है कि बचलर ही होना होगा या बाल ब्रह्म चारी बोलो क्या कहते हो और तुम सब लोग भी तो हो सभी कुछ तुम लोगों के सामने है ईश्वार और कामेश है ही
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