Incest -माँ से बढ़कर प्यारा कौन complete
- rajaarkey
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Re: Incest -माँ से बढ़कर प्यारा कौन
Dost kahani bahut hi hot hai
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Re: Incest -माँ से बढ़कर प्यारा कौन
mini wrote:oho kya lika h,,,,,,,,,,,,bahtereen mast mast
rajaarkey wrote:Dost kahani bahut hi hot hai
धन्यवाद मित्रो
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Re: Incest -माँ से बढ़कर प्यारा कौन
दिव्या समान को रसोई के काउंटर पर रख देती है. उसके जिस्म में कंपकंपी हो रही होती है. वो सीढ़ियाँ चढ़ कर उपर जाती है और दिमाग़ में कल्पना करती है कैसे उसके बेटे का मोटा लंड किसी जवान रंडी चूत ठोक रहा होगा.
जैसे जैसे वो सीढ़ियाँ चढ़ती हैं सिसकियों की आवाज़ उँची होने लगती है. उसके बेटे के शयनकक्ष का दरवाजा पूरा खुला था. दिव्या खुद को अंदर झाँकने से मना करती है, कि अगर उसने अंदर झाँक लिया तो उसके बेटे और उस लड़की की चुदाई का दृश्य उसे फिर कामुकता के शिखर पर पहुँचा देगा यहाँ पर उसको खुद पर कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा. मगर दिव्या खुद पर काबू नही रख पाती. वो दरवाजे के सामने खड़ी होकर अंदर झाँकति है.
लड़की वाकई में बेहद जवान थी. वो बॉब्बी के उपर चढ़ि हुई थी जो कि उस समय अपने हाथ सर के पीछे बाँधे हुए उस लड़की की ओर देख कर मुस्करा रहा था. लड़की की छोटी सी गोल गान्ड थी जिसे वो आगे पीछे घूमते हुए अपनी गीली चूत से बॉब्बी का लंड चोद रही थी.
"हाई! बॉब्बी में छूटने वाली हूँ" लड़की कराहती है. वो बॉब्बी के कंधो को कस कर पकड़ लेती है और अपनी चूत पूरे ज़ोर से बॉब्बी के लौडे पर पटकती है. "चोद बॉब्बी, चोद मुझे. हाई तुम्हारा लौडा कितना मोटा है. ज़ोर से मार मेरी चूत, फाड दे आज इसको!"
"अभी इसी वक़्त मेरे घर से निकल जाओ, फॉरन!" दिव्या फुफ्कार्ती है.
"ओह, शिट!" लड़की का घबराया हुआ स्वर सुनाई देता है जब वो दिव्या को वहाँ पर खड़ा देखती है.
लड़की बेड से कूद कर नीचे उतर जाती है. लंड के चूत से एक झटके में बाहर आने के कारण 'फ़च्छ' की एक जोरदार आवाज़ सुनाई पड़ती है. दिव्या उसकी और कहर भारी निगाहों से देखती है. तीस सेकेंड के वर्ल्ड रेकॉर्ड में वो लड़की कपड़े पहन कर घर से बाहर भाग जाती है.
दिव्या अब अपने बेटे के साथ उस घर में फिर से अकेली थी. वो बेड के किनारे खड़ी होकर गहरी साँसे लेते हुए उसके लंड को घुरती है.
"इस सब का क्या मतलब है"
"मेरा लंड कल रात से खड़ा था, और में बहुत ज़यादा उत्तेजित था. मुझसे नियंत्रण नही हुआ" बॉब्बी दाँत निकालते हुए कंधे उचकाता है. "मेने तुम्हे बताया था में किसी लड़की को घर ला सकता हूँ चोदने के लिए. अब जब तुमने चुदवाने से मना कर दिया है तो में किसी ना किसी को तो चोदुन्गा ही"
"तुम बेहद बेशर्म और घटिया हो!" दिव्या फुफ्कार्ती है. "वो इतनी कम उमर की लड़की और तुम उसे इस तरह अपने रूम का दरवाजा खुला छोड़ कर चोद रहे थे. तुममे ज़रा भी शरम नही बची. तुम अपने इस मोटे लंड के सिवाय और कुछ भी नही सोच सकते"
"नही! और असलियत में अभी इसी वक़्त अपने लंड के बारे में ही सोच रहा हूँ. मम्मी तुम मुझे फिर से अपनी कसी चूत क्यों नही मरवाती. उस लड़की की बजाय मुझे तुम्हारी चूत मारने में ज़यादा मज़ा आता है."
"तुम बेहद घटिया हो"
"अर्रे मम्मी अब छोड़ो भी ना."
वो बेड से उठता है और अपनी माँ की ओर बढ़ता है जो मन ही मन में चुदवाने के लिए बेहद उतावली थी. उसका लंड पूरी बेशर्मी से झटके खा रहा होता है. दिव्या बिना हीले डुले चुपचाप वहीं खड़ी रहती है. वो चाहती तो वहाँ से जा सकती थी और या उस पर चिल्ला सकती थी. मगर बॉब्बी के उस तगडे लौडे को उस लड़की की चूत ठोकते हुए देखकर उसकी चूत बुरी तरह से फडफडा रही थी. वो आती उत्तेजना की अवस्था में थी और उसकी चूत से रस निकाल कर उसकी कच्छि को भिगो रहा था. दिव्या को वाकई में एक जबरदस्त चुदाई की आवश्यकता थी.
'अपने हाथ हटाओ" वो धीरे से फुसफुसाती है
जैसे जैसे वो सीढ़ियाँ चढ़ती हैं सिसकियों की आवाज़ उँची होने लगती है. उसके बेटे के शयनकक्ष का दरवाजा पूरा खुला था. दिव्या खुद को अंदर झाँकने से मना करती है, कि अगर उसने अंदर झाँक लिया तो उसके बेटे और उस लड़की की चुदाई का दृश्य उसे फिर कामुकता के शिखर पर पहुँचा देगा यहाँ पर उसको खुद पर कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा. मगर दिव्या खुद पर काबू नही रख पाती. वो दरवाजे के सामने खड़ी होकर अंदर झाँकति है.
लड़की वाकई में बेहद जवान थी. वो बॉब्बी के उपर चढ़ि हुई थी जो कि उस समय अपने हाथ सर के पीछे बाँधे हुए उस लड़की की ओर देख कर मुस्करा रहा था. लड़की की छोटी सी गोल गान्ड थी जिसे वो आगे पीछे घूमते हुए अपनी गीली चूत से बॉब्बी का लंड चोद रही थी.
"हाई! बॉब्बी में छूटने वाली हूँ" लड़की कराहती है. वो बॉब्बी के कंधो को कस कर पकड़ लेती है और अपनी चूत पूरे ज़ोर से बॉब्बी के लौडे पर पटकती है. "चोद बॉब्बी, चोद मुझे. हाई तुम्हारा लौडा कितना मोटा है. ज़ोर से मार मेरी चूत, फाड दे आज इसको!"
"अभी इसी वक़्त मेरे घर से निकल जाओ, फॉरन!" दिव्या फुफ्कार्ती है.
"ओह, शिट!" लड़की का घबराया हुआ स्वर सुनाई देता है जब वो दिव्या को वहाँ पर खड़ा देखती है.
लड़की बेड से कूद कर नीचे उतर जाती है. लंड के चूत से एक झटके में बाहर आने के कारण 'फ़च्छ' की एक जोरदार आवाज़ सुनाई पड़ती है. दिव्या उसकी और कहर भारी निगाहों से देखती है. तीस सेकेंड के वर्ल्ड रेकॉर्ड में वो लड़की कपड़े पहन कर घर से बाहर भाग जाती है.
दिव्या अब अपने बेटे के साथ उस घर में फिर से अकेली थी. वो बेड के किनारे खड़ी होकर गहरी साँसे लेते हुए उसके लंड को घुरती है.
"इस सब का क्या मतलब है"
"मेरा लंड कल रात से खड़ा था, और में बहुत ज़यादा उत्तेजित था. मुझसे नियंत्रण नही हुआ" बॉब्बी दाँत निकालते हुए कंधे उचकाता है. "मेने तुम्हे बताया था में किसी लड़की को घर ला सकता हूँ चोदने के लिए. अब जब तुमने चुदवाने से मना कर दिया है तो में किसी ना किसी को तो चोदुन्गा ही"
"तुम बेहद बेशर्म और घटिया हो!" दिव्या फुफ्कार्ती है. "वो इतनी कम उमर की लड़की और तुम उसे इस तरह अपने रूम का दरवाजा खुला छोड़ कर चोद रहे थे. तुममे ज़रा भी शरम नही बची. तुम अपने इस मोटे लंड के सिवाय और कुछ भी नही सोच सकते"
"नही! और असलियत में अभी इसी वक़्त अपने लंड के बारे में ही सोच रहा हूँ. मम्मी तुम मुझे फिर से अपनी कसी चूत क्यों नही मरवाती. उस लड़की की बजाय मुझे तुम्हारी चूत मारने में ज़यादा मज़ा आता है."
"तुम बेहद घटिया हो"
"अर्रे मम्मी अब छोड़ो भी ना."
वो बेड से उठता है और अपनी माँ की ओर बढ़ता है जो मन ही मन में चुदवाने के लिए बेहद उतावली थी. उसका लंड पूरी बेशर्मी से झटके खा रहा होता है. दिव्या बिना हीले डुले चुपचाप वहीं खड़ी रहती है. वो चाहती तो वहाँ से जा सकती थी और या उस पर चिल्ला सकती थी. मगर बॉब्बी के उस तगडे लौडे को उस लड़की की चूत ठोकते हुए देखकर उसकी चूत बुरी तरह से फडफडा रही थी. वो आती उत्तेजना की अवस्था में थी और उसकी चूत से रस निकाल कर उसकी कच्छि को भिगो रहा था. दिव्या को वाकई में एक जबरदस्त चुदाई की आवश्यकता थी.
'अपने हाथ हटाओ" वो धीरे से फुसफुसाती है
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Re: Incest -माँ से बढ़कर प्यारा कौन
मगर वो चाहती नही थी कि बॉब्बी वाकई में अपने हाथ उसके जिस्म से हटा ले और ये बात दोनो समझते थे. बॉब्बी उसे बेड पर ले आता है और उसे पीठ के बल लिटा देता है. अपनी माँ को लिटाकर वो उसके कपड़े उतारना चालू कर देता है. जब वो अपनी माँ की अंगिया खींच कर निकालता है तो दिव्या के मोटे मम्मे उछल कर सामने आ जाते हैं. उसके निपल उत्तेजना के कारण कड़े हो गये थे , नज़ारा वाकई में ललचा देने वाला था.बॉब्बी अपना मुँह नीचे कर मम्मी के उन गुलाबी निपल्स को मुँह में भर लेता है और उन पर अपनी खुरदरी जीभ रगड़ते हुए उन्हे ज़ोर से चूस्ता है.
उसके बाद वो अपनी माँ की सॅंडल निकाल देता है और उसके बाद पेटिकोट और फिर अंत उसकी काम रस से भीगी हुई कच्छि. अब कामोत्तेजित माँ अपने बेटे के सामने पूरी नंगी पड़ी थी. बॉब्बी अपनी मम्मी की टाँगो के बीच आ जाता है.
मम्मी अपनी टाँगे उपर उठाओ"
"नही बेटा! तुम जानते हो यह पाप है. मैं तुमसे नही चुदवा सकती"
"मेने कहा अपनी टाँगे उपर उठाओ"
"ओह ...बॉब्बी.."
उसके बाद काम वासना में जल रही वो माँ वैसा ही करती गई जैसा उसके बेटे ने उसे बोला था. वो अपने घुटनो को पकड़ कर अपने कंधो से उँचा उठा देती है और फिर उन्हे विपरीत दिशाओं में फैलाते हुए अपनी गीली चूत अपने बेटे के हमले के लिए पूरी तरह खोल देती है. बॉब्बी मुस्कराता हुआ अपनी मम्मी के उपर चढ़ जाता है. वो अपने लंड का सुपाडा माँ की चूत के होंटो में लगा देता है
`"मेरे टटटे वीर्य से भरे पड़े हैं. मेरा बस छूटने ही वाला था जब तुमने आकर चुदाई रोक दी.हाए मम्मी आज तो तुम्हारी चूत में पूरी तरह से भर दूँगा"
दिव्या कोई जवाब नही देती है. वो तो अपना सिर उठाए नीचे देखने में व्यस्त थी कि कैसे उसके बेटे का विकराल लंड उसकी चूत में धंसता जा रहा था. अति कठोर लंड उसकी चूत को बुरी तरह से फैला रहा था और चूत की भीतरी दीवारें लंड के चारों और कस्ति जा रही थीं.
"हाई में मरी! कितना मोटा है तेरा! लगता है मेरी चूत चीर ही देगा"
वो पूरे दिन इसी की कल्पना में खोई रही थी, केसे उसके बेटे का लंड उसकी चूत, उसकी अपनी सग़ी माँ की चूत में ठुकाई करेगा, वो चूत जिसने उसे जनम दिया था. और अब वो फिर से पूरी तरह उसकी चूत की गहराई में उतार चुका था. पूरी बेशर्मी से वो मादरजात नंगी माँ अपने कूल्हे उछालते हुए अपनी गीली चूत अपने बेटे के लौडे पर पटकती है.
"हाई मेरे लाल घुसेड दे पूरा!" वो सिसकारी लेते हुए बोलती है "हाई बहुत अच्छा लग रहा है. हां बेटा मम्मी को फिर से चोदने का समय आ गया है. उंगूंघ! चोद मुझे मेरे लाल! चोद दे अपनी मम्मी को."
दिव्या अपनी टांगे और उपर उठाते हुए अपने टखने उसके कंधो पर लपेट देती है जिस कारण उसकी चूत और भी खुल कर अपने बेटे के लंड की उस असीमित लंबाई को लीलने लग जाती है. बॉब्बी अपने घुटने बेड पर टिकाता है और अपनी माँ के उपर झूलते हुए अपना पूरा वजन अपनी बाहों पर डाल देता है. उसके बाद वो पूरे ज़ोर से अपना लंड माँ की कसी हुई चूत के अंदर बाहर करते हुए उसकी ठुकाई चालू कर देता है.
चोद मुझे! मार मेरी चूत!" दिव्या कराहती है. वो अपने बेटे की ताल से ताल मिलाते हुए अपनी गान्ड उछालती है. उसके हर धक्के के साथ दिव्या के मोटे स्तन उछलने लग जाते हैं. "उंगूंघ! हाई भगवान.... बस ऐसे ही... ऐसे ही चोद मुझे. हाई बेटा तेरा लंड वाकई में बहुत बड़ा है. कितना मज़ा है तेरे मोटे लंड से चुदवाने में. तेरी मम्मी को जबरदस्त चुदाई की ज़रूरत है. और ज़ोर लगा...और ज़ोर से धक्का मार मेरे लाल! मम्मी की चूत मार मार कर मेरी एसी हालत कर दे कि चलने के काबिल भी ना रहूं"
बॉब्बी अति उत्तेजना मे बस कराहता है. एक तो उसकी माँ पूरी बेशर्मी से अश्लील भाषा का उपयोग करते हुए उसे उकसा रही थी और उपर से उसकी सिल्क जैसी मुलायम चूत उसके लौडे को बुरी तरह से कस कर निचोड़ रही थी. ऐसा नामुमकिन जान पड़ता था कि उसने कभी किसी बच्चे को जनम भी दिया होगा. उसकी माँ की चूत उस लड़की की चूत से कहीं अधिक संकरी थी जिसे वो अभी कुछ देर पहले चोद रहा था.
अब उसका लंड माँ की मलाईदार चूत की जड तक घुस रहा था. दिव्या भी अपने बेटे के लंड की लंबाई, मोटाई से अभिभूत थी जो उसकी चूत की परतें खोलते हुए बच्चेदानि की जड तक पहुँच रहा था. अपनी गान्ड हवा में उछालते हुए वो पूरा बल प्रयोग करते हुए अपने भाले नुमा लंड से अपनी मम्मी की चूत भेद रहा था.
"मम्मी तुम्हे मज़ा आ रहा है जैसे मैं तुम्हे चोद रहा हूँ? जैसे मेरा लौडा तेरी टाइट फुद्दि को फाड़ रहा है. बोलो माँ? तुम चाहती हो मैं और बलपूर्वक तुम्हे चोदु?"
"हां, बेटा हन्न!" दिव्या चिल्लाती है! वो वासना के उन्माद में अपने कूल्हे व्यग्रता से उच्छालती है ताकि अपने बेटे के उस विकराल लंड को पूरी गहराई तक अंदर ले सके. "चोद अपनी माँ को बेटा! और ज़ोर लगा... आयार ज़ोर लगा! पूरे ज़ोर से मार अपनी मम्मी की रसीली चूत. हाए मैं जल्द ही स्खलित होने वाली हूँ"
बॉब्बी अपनी मम्मी के उपर लेट जाता है जिस से उसके मोटे स्तन उसकी छाती के नीचे दब जाते हैं. फिर वो उसके कंधे थाम कर पूरी तेज़ी से उसे चोदता है. वो विशालकाय लंड अंदर बाहर होते हुए चूत की खुदाई करता है. दिव्या अपने हाथों को बेटे की गर्दन पर लपेट कर उसे ज़ोर से भींचती है और नीचे से अपनी गान्ड घुमा घुमा कर लंड को चूत में घोंटति है. उसके होंठ खुले हुए थे और चेहरा पैशाचनिक वासना के कारण चमक रहा था, वो अपना सिर एक तरफ से दूरी तरफ पटकती है.. अपनी कोख से जन्मे बेटे का लंड अपनी चूत मे डलवाकर उसे ऐसा आनंद मिल रहा था कि वो उन्माद में पागल हुए जा रही थी.
"मैं छूटने वाली हूँ!" वो सिसकरती है और फिर लगभग चिल्ला पड़ती है "ज़ोर से, बॉब्बी! उंगूंघ! और ज़ोर से चोद अपनी माँ को. मार मेरी चूत मेरे लाल! हाई मैं गयी! अहह!"
उसकी चूत तेज़ी से ऐंठने लग जाती है, संकुचित होते हुए लंड को चुस्ती है, भींचती है और उसका काम रस बॉब्बी के लंड को भिगोनो लग जाता है. बॉब्बी पूरे ज़ोर से धक्के लगाना चालू रखता है पूरी निर्दयता से अपने लंड को मम्मी की चूत में ठोकता है.
आख़िरकार एक मिनिट तक चलने वाले उस जबरदस्त स्खलन के बाद दिव्या शांत हो जाती है. मगर बॉब्बी अभी भी उसकी चूत में अपना लौडा पूरे ज़ोर से ठोक रहा था. वो अभी स्खलित नही हुआ था, उसने खुद पर नियंत्रण करते हुए अभी तक खुद को माँ की चूत को अपने वीर्य से भरने से रोका हुआ था. फिर चार पाँच धक्को के बाद बॉब्बी भी अपना वीर्य अपनी माँ की चूत में छोड़ देता है . बंधुओ इस तरह दोनो माँ बेटे कामवासना के सागर में गोते लगाते हुए अपने हाथ पैर चलाते हुए कामरूपी सागर में डूबते चले जाते है और अब उनका ये संबंध नियमित और दैनिक रूप से चल रहा है तो बंधुओ इस रचना को यहीं विराम देता हूँ . अगर समय मिला तो आपके लिए और एक रचना लेकर उपस्थित हो जाउन्गा तब तक के लिए अलविदा
समाप्त
उसके बाद वो अपनी माँ की सॅंडल निकाल देता है और उसके बाद पेटिकोट और फिर अंत उसकी काम रस से भीगी हुई कच्छि. अब कामोत्तेजित माँ अपने बेटे के सामने पूरी नंगी पड़ी थी. बॉब्बी अपनी मम्मी की टाँगो के बीच आ जाता है.
मम्मी अपनी टाँगे उपर उठाओ"
"नही बेटा! तुम जानते हो यह पाप है. मैं तुमसे नही चुदवा सकती"
"मेने कहा अपनी टाँगे उपर उठाओ"
"ओह ...बॉब्बी.."
उसके बाद काम वासना में जल रही वो माँ वैसा ही करती गई जैसा उसके बेटे ने उसे बोला था. वो अपने घुटनो को पकड़ कर अपने कंधो से उँचा उठा देती है और फिर उन्हे विपरीत दिशाओं में फैलाते हुए अपनी गीली चूत अपने बेटे के हमले के लिए पूरी तरह खोल देती है. बॉब्बी मुस्कराता हुआ अपनी मम्मी के उपर चढ़ जाता है. वो अपने लंड का सुपाडा माँ की चूत के होंटो में लगा देता है
`"मेरे टटटे वीर्य से भरे पड़े हैं. मेरा बस छूटने ही वाला था जब तुमने आकर चुदाई रोक दी.हाए मम्मी आज तो तुम्हारी चूत में पूरी तरह से भर दूँगा"
दिव्या कोई जवाब नही देती है. वो तो अपना सिर उठाए नीचे देखने में व्यस्त थी कि कैसे उसके बेटे का विकराल लंड उसकी चूत में धंसता जा रहा था. अति कठोर लंड उसकी चूत को बुरी तरह से फैला रहा था और चूत की भीतरी दीवारें लंड के चारों और कस्ति जा रही थीं.
"हाई में मरी! कितना मोटा है तेरा! लगता है मेरी चूत चीर ही देगा"
वो पूरे दिन इसी की कल्पना में खोई रही थी, केसे उसके बेटे का लंड उसकी चूत, उसकी अपनी सग़ी माँ की चूत में ठुकाई करेगा, वो चूत जिसने उसे जनम दिया था. और अब वो फिर से पूरी तरह उसकी चूत की गहराई में उतार चुका था. पूरी बेशर्मी से वो मादरजात नंगी माँ अपने कूल्हे उछालते हुए अपनी गीली चूत अपने बेटे के लौडे पर पटकती है.
"हाई मेरे लाल घुसेड दे पूरा!" वो सिसकारी लेते हुए बोलती है "हाई बहुत अच्छा लग रहा है. हां बेटा मम्मी को फिर से चोदने का समय आ गया है. उंगूंघ! चोद मुझे मेरे लाल! चोद दे अपनी मम्मी को."
दिव्या अपनी टांगे और उपर उठाते हुए अपने टखने उसके कंधो पर लपेट देती है जिस कारण उसकी चूत और भी खुल कर अपने बेटे के लंड की उस असीमित लंबाई को लीलने लग जाती है. बॉब्बी अपने घुटने बेड पर टिकाता है और अपनी माँ के उपर झूलते हुए अपना पूरा वजन अपनी बाहों पर डाल देता है. उसके बाद वो पूरे ज़ोर से अपना लंड माँ की कसी हुई चूत के अंदर बाहर करते हुए उसकी ठुकाई चालू कर देता है.
चोद मुझे! मार मेरी चूत!" दिव्या कराहती है. वो अपने बेटे की ताल से ताल मिलाते हुए अपनी गान्ड उछालती है. उसके हर धक्के के साथ दिव्या के मोटे स्तन उछलने लग जाते हैं. "उंगूंघ! हाई भगवान.... बस ऐसे ही... ऐसे ही चोद मुझे. हाई बेटा तेरा लंड वाकई में बहुत बड़ा है. कितना मज़ा है तेरे मोटे लंड से चुदवाने में. तेरी मम्मी को जबरदस्त चुदाई की ज़रूरत है. और ज़ोर लगा...और ज़ोर से धक्का मार मेरे लाल! मम्मी की चूत मार मार कर मेरी एसी हालत कर दे कि चलने के काबिल भी ना रहूं"
बॉब्बी अति उत्तेजना मे बस कराहता है. एक तो उसकी माँ पूरी बेशर्मी से अश्लील भाषा का उपयोग करते हुए उसे उकसा रही थी और उपर से उसकी सिल्क जैसी मुलायम चूत उसके लौडे को बुरी तरह से कस कर निचोड़ रही थी. ऐसा नामुमकिन जान पड़ता था कि उसने कभी किसी बच्चे को जनम भी दिया होगा. उसकी माँ की चूत उस लड़की की चूत से कहीं अधिक संकरी थी जिसे वो अभी कुछ देर पहले चोद रहा था.
अब उसका लंड माँ की मलाईदार चूत की जड तक घुस रहा था. दिव्या भी अपने बेटे के लंड की लंबाई, मोटाई से अभिभूत थी जो उसकी चूत की परतें खोलते हुए बच्चेदानि की जड तक पहुँच रहा था. अपनी गान्ड हवा में उछालते हुए वो पूरा बल प्रयोग करते हुए अपने भाले नुमा लंड से अपनी मम्मी की चूत भेद रहा था.
"मम्मी तुम्हे मज़ा आ रहा है जैसे मैं तुम्हे चोद रहा हूँ? जैसे मेरा लौडा तेरी टाइट फुद्दि को फाड़ रहा है. बोलो माँ? तुम चाहती हो मैं और बलपूर्वक तुम्हे चोदु?"
"हां, बेटा हन्न!" दिव्या चिल्लाती है! वो वासना के उन्माद में अपने कूल्हे व्यग्रता से उच्छालती है ताकि अपने बेटे के उस विकराल लंड को पूरी गहराई तक अंदर ले सके. "चोद अपनी माँ को बेटा! और ज़ोर लगा... आयार ज़ोर लगा! पूरे ज़ोर से मार अपनी मम्मी की रसीली चूत. हाए मैं जल्द ही स्खलित होने वाली हूँ"
बॉब्बी अपनी मम्मी के उपर लेट जाता है जिस से उसके मोटे स्तन उसकी छाती के नीचे दब जाते हैं. फिर वो उसके कंधे थाम कर पूरी तेज़ी से उसे चोदता है. वो विशालकाय लंड अंदर बाहर होते हुए चूत की खुदाई करता है. दिव्या अपने हाथों को बेटे की गर्दन पर लपेट कर उसे ज़ोर से भींचती है और नीचे से अपनी गान्ड घुमा घुमा कर लंड को चूत में घोंटति है. उसके होंठ खुले हुए थे और चेहरा पैशाचनिक वासना के कारण चमक रहा था, वो अपना सिर एक तरफ से दूरी तरफ पटकती है.. अपनी कोख से जन्मे बेटे का लंड अपनी चूत मे डलवाकर उसे ऐसा आनंद मिल रहा था कि वो उन्माद में पागल हुए जा रही थी.
"मैं छूटने वाली हूँ!" वो सिसकरती है और फिर लगभग चिल्ला पड़ती है "ज़ोर से, बॉब्बी! उंगूंघ! और ज़ोर से चोद अपनी माँ को. मार मेरी चूत मेरे लाल! हाई मैं गयी! अहह!"
उसकी चूत तेज़ी से ऐंठने लग जाती है, संकुचित होते हुए लंड को चुस्ती है, भींचती है और उसका काम रस बॉब्बी के लंड को भिगोनो लग जाता है. बॉब्बी पूरे ज़ोर से धक्के लगाना चालू रखता है पूरी निर्दयता से अपने लंड को मम्मी की चूत में ठोकता है.
आख़िरकार एक मिनिट तक चलने वाले उस जबरदस्त स्खलन के बाद दिव्या शांत हो जाती है. मगर बॉब्बी अभी भी उसकी चूत में अपना लौडा पूरे ज़ोर से ठोक रहा था. वो अभी स्खलित नही हुआ था, उसने खुद पर नियंत्रण करते हुए अभी तक खुद को माँ की चूत को अपने वीर्य से भरने से रोका हुआ था. फिर चार पाँच धक्को के बाद बॉब्बी भी अपना वीर्य अपनी माँ की चूत में छोड़ देता है . बंधुओ इस तरह दोनो माँ बेटे कामवासना के सागर में गोते लगाते हुए अपने हाथ पैर चलाते हुए कामरूपी सागर में डूबते चले जाते है और अब उनका ये संबंध नियमित और दैनिक रूप से चल रहा है तो बंधुओ इस रचना को यहीं विराम देता हूँ . अगर समय मिला तो आपके लिए और एक रचना लेकर उपस्थित हो जाउन्गा तब तक के लिए अलविदा
समाप्त