Incest -प्रीत का रंग गुलाबी complete

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »

मोहन- जी मेरे किसी अपने को इसकी जरुरत है

पुरोहित- तुम्हारे अपनी को क्या सच में

मोहन- हां सच में

अब पुरोहित के माथे पर बल पड़े चेहरा निस्तेज हो गया जैसे बरसो से बीमार हुए हो उन्होंने मोहन से कल मिलने को कहा और अपने पुस्तकालय में चले गए किताबे छान मारी और

फिर एक किताब को पढने लगे पूरी रात पढ़ते रहे और जैसे जैसे वो पढ़ते जा रहे थे उनकी आँखों में आश्चर्य बढ़ता जा रहा था किवंदिती सच कैसे हो सकती थी पर किताब को झूठ मान भी ले तो मोहन क्यों झूठ बोलेगा

खैर मोहन का महल में बहुत रुतबा था तो उसने सोचा की मदद करनी चाहिए सुबह हुई उसने मोहन को बताया की मोहन पूरी धरती पर एक ही तीन सर वाला शेर है

मतलब की है या बस बात है तुम्हे ज्वाला जी के जाना होगा हर नवमी को वो शेर माता के दर्शन करता है तो तभी तुम उसे देख पाओगे ज्वाला जी तो बहुत दूर होंगी मोहन ने नाम भी नहीं सुना था पर फिर भी पुरोहित से नक्शा लेकर वो चल पड़ा

पुरोहित ने उसे साफ हिदायत दे दी थी की अगर वो शेरनी अपनी मर्ज़ी से दूध देगी तो ही वो दवा असर करेगी वर्ना सब बेकार मोहन का र्ध निश्च्य था उसे हर हाल में मोहिनी के प्राण बचाने थे तो मोहन चल पड़ा

अपनी मंजिल की और किसी की नहीं सुनी ना किसी को बताया इधर मोहन चल पड़ा था अपने सफ़र पर पीछे से अब ना संयुक्ता का दिल लगे ना दिव्या का भूख लगे ना प्यास


सबके दिल में मोहन और मोहन के दिल में मोहिनी आँखों में उसका ही चेहरा लिए मोहन जैसे तैसे करके पंहुचा ज्वाला जी के दर्शन किये और अपना काम सफल होने की प्राथना की तिथि जोड़ी तो आज सप्तमी थी मतलब दो दिन मोहन के लिए पल पल कीमती था अब दो दिन बीस साल की तरह लगे उसे जैसे तैसे करके उसने दिन काटे


और आई नवमी आधी रात का समय बस अकेला मोहन और कोई नहीं उअर फिर जैसे की भूकंप ही आ गया हो ऐसी आवाज आई और फिर आया वो निराला माता के दर्शन को मोहन ने जिंदगी में शेर देखा था वो भी तीन सर वाला उसने दर्शन किए और वापिस मुड़ा पर फिर रुक गया

ऐसा दिव्य शेर मोहन ने कभी नही देखा था मोहन लेट गया उसके पैरो के पास शेर ने अपना पंजा उसके सर पे रखा और एक हुंकार भरी

मोहन उठा और हाथ जोड़ते हुए अपनी सारी बात बता दी शेर खड़ा था चुप चाप फिर बोला – मनुष्य तुम्हारी राह इतनी आसान नहीं परन्तु आज तुमने माता के दरबार में अरदास लगायी है तो मैं तुम्हे अपनी माँ के पास ले चलता हु


मोहन उस शेर के साथ गुफा में पंहुचा और शेर ने बात शेरनी को बताई और जैसे ही उसको पता चला वो हुंकारी गुस्से में गर्जना ऐसी की जैसे पहाड़ गिर जायेगा उसने मोहन की और देखा और फिर बोली- मनुष्य मैं साल में दो बार अपने पुत्र को दूध पिलाती हु अगर मैंने तुझे दूध दे दिया तो मेरा पुत्र भूखा रहेगा

मोहन- हे माता, मेहर करे मुझ पर किसी के प्राण संकट में है

वो-जानती हु पर क्या तू जनता है किसके प्राण संकट में है

मोहन-जी मोहिनी के

शेर माता ने फिर से एक हुंकार भरी एक गर्जना की और बोली- अच्छा मोहिनी के क्या लगती है वो तेरी

मोहन- जी मैं प्रेम करता हु उस से

माता को बड़ा आश्चर्य हुआ ये सुनके प्रेम ,,,,,,,,,,,,, प्रेम करता है ये मनुष्य

वो बोली- क्या वो भी तुझसे प्रेम करती है

मोहन- जी

माता- असंभव क्या उसने कहा की कभी वो तुझसे प्रेम करती है

मोहन- जी कभी कहा नहीं

माता को उसके भोलेपन पर हसी आ गयी पर वो कैसे दूध दे दे अगर वो मोहन को दूध दे दे तो उसका पुत्र 6 महीने भूखा रहे एक माँ फसी अधर में

एक तरफ उसका फरियादी जिसे ये भी नहीं पता की वो किसके लिए इतनी दूर आया है और एक तरफ उसका पुत्र जिसे भूखा रहना पड़े

मोहन- हे माँ मैं भी आपका ही पुत्र हु मेहर करे

माता- ठीक है मैं दूध तुम्हे दे दूंगी पर मेरे पुत्र की भूख के लिए तुम क्या करोगे

मोहन- जो आपकी आज्ञा हो

शेरनी- ठीक है तो तुम्हे अपने शारीर का आधा मांस मेरे पुत्र को भोजन स्वरूप देना होगा बोलो है मंजूर

एक बार टी मोःन का कलेजा ही निकल गया पर मोहिनी को वचन दिया उसने और अगर उसके जीवन देने से मोहिनी को प्राण वापिस मिलते है तो ये ही सही

“ मैं तैयार हु हे नरसिघ जी आप मेरा आधा मांस उपयोग करे अभी ”

शेर माता को यकीन नहीं हुआ की एक मनुष्य अपना आधा मांस दे रहा है वो भी बिना ये जाने की वो किसके लिए ये सब कष्ट उठा रहा हा वो तो एक माता थी उसका भी कलेजा था पर परीक्षा अभी बाकी थी

शेर ने मोहन का मांस खाना शुरू किया पर क्या मजाल थी मोहन ने उफ्फ्फ भी की हो उसका मजबूत देख कर शेर माता का कलेजा पसीज गया

“बस मनुष्य बस तुमने साबित कर दिया की तुम्हारा इरादा नेक है तुम्हारी मुराद अवश्य ही पूरी होगी ”

शेर माता ने मोहन को अपना दूध दिया और उनके आशीर्वाद से मोहन का शरीर भी भर गया मोहन ने उनका आभार किया तो शेर माता बोली – मानुष पर मात्र मेरे दूध से ही तुम्हारी मोहिनी का रोंग नहीं कटेगा तुम्हे बाबा बर्फानी के यहाँ से सफ़ेद कबूतर की आँख का आंसू मेरे दूध में मिलाना होगा और

उसके बाद उसमे सुनहरी चन्दन मिलाने पर जो दवाई बनेगी उस से ही ये रोग कटेगा

मोहन ने कहा वो ये भी लाएगा तो शेर माता ने कहा की सुनहरी चंदन बस कैलाश पर्वत पर ही मिलेगी समय कम है तो मेरा पुत्र तुम्हारी सवारी बनेगा और एक रात में तुम्हे बाबा बर्फानी तक पंहुचा देगा

अब माता का आदेश था पालन होना ही था तीन सर वाले शेर की सवारी करते हुए मोहन पंहुचा बाबा बर्फानी तक और अपनी आस लगाई उसे वहा पर एक सफ़ेद कबूतर का जोड़ा मिला मोहन ने अपनी व्यथा बताई और एक आंसू ले लिया

अब पंहुचा कैलाश पर मोसम अलग बर्फ ही बर्फ अब कहा ढूंढें पर साथ नरसिंह तो काम बन गया इस तरह मोहन एक रात में हुआ वापिस
शेर माता ने कहा मानुष तेरा भला हो तेरा काम अवश्य सिद्ध होगा अब मोहन हुआ वापिस और सीधा पंहुचा उसी कीकर के पेड़ के निचे व्ही दोपहर का समय

मोहन ने पुकारा मोहिनी मोहिनी पर कोई जवाब नहीं उसने फिर से पुकार की और थोड़ी देर बाद मोहिनी आई उसकी तरफ चांदी जैसा रंग काला पड़ चूका था

मांस जैसे हड्डियों से उतर चूका था धीमे धीमे चलते हुए वो उसके पास आई बड़ी मुस्किल से उसने मोहन का नाम पुकारा मोहन का कलेजा ही फट गया उसको ऐसे देख कर

आँखों से आंसू बह चले मोहिनी भी रोये और मोहन भी

“बस मोहिनी बस तेरा दुःख ख़तम हुआ देख मैं सब ले आया हु शेरनी का दूध , सफ़ेद कबूतर की आँख का आंसू और सुनहरी केसर”
अब मोहिनी चौंकी,

मोहन को कैसे पता चला की आँख का आंसू और सुनहरी केसर उसकी आँखों से आंसू और तेजी से बह चले उसने तो मोहन को बताया ही नहीं था की दो और चीजों की आवश्यकता पड़ेगी

उसने तो ऐसे ही मोहन की कसम का मान रखने के इए उसे तीन सर के शेर की माँ का दूध कहा था क्योंकि वो जानती थी की असंभव ही था ये दूध मिलना

“मोहिनी बस अब मैं तुझे मुस्कुराते हुए देखना चाहता हु ले ये दवाई ले और जल्दी से ठीक होजा ”
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »



मोहन ने उसको दवाई पिलाई और कुछ देर बाद ही असर होना शुरू हुआ वो काला पड गया रंग छंटने लगा मांस फिर से भरने लगा और जल्दी ही मोहन के सामने वो ही दमकती मोहिनी थी

उसकी चांदी जैसी चमक वापिस लौट आई थी एक साधारण मनुष्य ने उसके प्राणों को वापिस मांग लिया था यम के दरबार से
पहले से भी ज्यादा सुंदर मोहिनी उसकी आँखों के सामने खड़ी थी

जैसे उस समय नूर बरस पड़ा था वहा पर मोहन ने अपनी बाहे फैलाई और दौडती हुई मोहिनी उसके सीने से आ लगी जैसे हारती और आसमान का मिलन हो गया हो जैसे बहार ही आगई हो मोहन को करार आ गया बहुत देर तक वो उसके सीने से लगी रही ना वो कुछ बोली ना वो कुछ बोला


मोहन- देखा मैंने कहा था न तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा कुछ नहीं

मोहिनी उसके सीने से लगी रही

मोहन- एक बात पूछु

“हाँ ”

“क्या तुम मुझसे प्रेम करती हो ”

मोहिनी की धड़कने बढ़ गयी अब क्या कहे वो उस मोहन से जो यम को जीत लाया था उसके लिए क्या वो मना कर दे नहीं क्या गुजरेगी मोहन पर

वो टूट जायेगा तो क्या सत्य बता दे उसको नहीं नहीं तो क्या करे वो क्या उसका निवेदन स्वीकार कर ले की वो भी उसे प्रेम करती है
क्या कहा वो भी उसे प्रेम करती है ,

नहीं या नहीं हाँ नहीं हाँ हाँ वो भी प्रेम ही तो करती है मोहन से पर ये संभव नहीं , असंभव भी तो नहीं तो क्या करे क्या स्वीकार कर ले इस प्रेम के मार्ग को , मार्ग प्रेम का पर कितनी दूर तक क्या सीमा थी उसके इस प्रेम की दरअसल वो खुद नहीं जानती थी की कब वो मोहन से प्रेम करने लगी थी


वो तो बस गुजर रही थी उधर से बंसी की धुन सुनी तो रुक गयी थी और रुकी भी तो ऐसे की अब सब उलझ गया था और उलझा भी तो ऐसे की कोई डोर

नहीं जो सुलझा सके प्रेम ही तो था जो इन दोनों को इस हद तक एक दुसरे से जोड़ गया था प्रेम ही तो था जो मोहन उसके लिए इतना कुछ कर गया था पर इस प्रेम का क्या भविष्य क्या शुरआत और क्या अंत


मोहोनी के मन में द्वंद चालू हुआ इधर मोहन की आवाज से वो वापिस धरातल पे लौटी

“मोहिनी क्या तुम्हे मेरा प्रेम स्वीकार नहीं ”

वो चुप रही थोड़ी देर और बीती

“कोई बात नहीं मोहिनी अगर तुम्हे स्वीकार नहीं तो तुम्हारी इच्छा का मान रखना मेरे लिए सर्वोपरी है वैसे भी तुम कहा और मैं कहा कोई तुलना ही नहीं ये तो मन बावरा है जो बहक गया

जिसने ऐसा समझ लिया तुम्हे नाराज होने की आवशयकता नहीं मोहिनी मैं अपने मन को समझा लूँगा पर हां एस ही कभी कभी मिलने आ जाना वो क्या है ना जब तुमसे नहीं मिलता तो मन नहीं लगता मेरा कही भी ”

उफ़ ये सादगी मोहन ने उसके मन के वन्द को समझ लिया था इसी सादगी पर ही तो मर मिति थी मोहिनी पर वो भी करे तो क्या करे बस उसकी आँखों से आंसू बह चले

आंसू विवशता के आंसू बेबसी के आंसू की वो चाह कर भी मोहन को नहीं बता सकती की वो किस हद तक उसके प्रेम में डूब चुकी है

“रोती क्यों है पगली, क्या हुआ जो प्रेम नहीं मित्रता तो है ही और हां वैसे भी मैं तुम्हे ऐसे दुखी नहीं देख सकता देखो अब अगर तुम रोई तो मैं बात नहीं करूँगा फिर तुमसे ”

वाह रे मानुस तू भी खूब है

“अच्छा तो अब चलता हु , थोड़ी देर होगी फिर आने में पर आऊंगा जरुर तुमसे मिलने ” मोहन वापिस मुड़ा बड़ी मुश्किल से संभाला था उसने खुद को रोने से कुछ कदम चला फिर बोला- जाने से पहले थोडा पानी तो पिलादे मोहिनी

मोहिनी का जैसे कलेजा ही फट गया अब वो अपने दुःख को किसके आगे रोये दर्द भी अपना और आंसू भी अपने कांपते हाथो से उसने मोहन को पानी पिलाया

“आज मेरा जी नहीं धापा मोहिनी ” ये कहकर मोहन वापिस चल पड़ा एक पल भी ना रुका ना ही पीछे मुद के देखा हमेशा वो मोहिनी को जाते हुए देखा करता था

आज वो देख रही थी अपनी मोहब्बत को अपने से दूर जाते हुए दिल रोये बार बार दुहाई दे रोक ले मोहन को वर्ना मोहबत रुसवा हो जाएगी पर वो भी अपनी जगह मजबूर कैसे रोक ले उसको

दो दिन रहा मोहन डेरे में बस गम सुम सा ना कुछ खाया पिया ना किसी से बात की बी घरवालो की परेशानी वो अलग महल आया पर कुछ अच्छा ना लगे बस पूरा दिन गुमसुम रहता

हर रात संयुक्ता का खिलौना बनता वो पर ना कोई शिकवा ना कोई शिकायत दिन गुजरते गए अब कहे भी तो क्या कहे दिल तो बहुत करता उसका की दौड़ कर मोहिनी के पास पहुच जाये

पर नहीं जाता रोक लेता अपने कदमो को

इधर मोहिनी हर दोपहर उसी कीकर के पेड़ के निचे इंतजार करती वो बार बार अपनी पानी की मश्क को देखती ऐसा लगता की अभी मोहन आएगा और पानी मांगेगा दोनों तदप रहे थे झुलस रहे थे अपनी आग में पर किसलिए किसलिए अगर यही प्रेम था तो फिर ये जुदाई क्यों
जिस रात महारनी बख्स देती उसको पूरी पूरी रात बस बंसी बजाता वो ये बंसी ही तो साथी थी उसकी उसके सुख की उसके दुख की आज भी ऐसी ही रात थी पूनम का चाँद अपने शबाब पे था

चांदनी किसी प्रेमीका की तरह उस से लिपटी हुई थी चाँद और चांदनी आखेट कर रहे थे पर मोहन तड़प रहा था और साथ ही तड़प रही थी राजकुमारी दिव्या भी वो अपनी खिड़की से मोहन को देख रही थी

ना जाने कब दिव्या मन ही मन मोहन को चाहने लगी थी इतनी तड़प थी मोहन की धुन में आखिर क्या गम है इसको वो आज पूछ कर ही रहेगी

वो सीढिया उतरते हुए सीधा मोहन के पास आई मोहन चुप हो गया

“राजकुमारी जी आप सोये नहीं अभी तक ”

“हम कैसे सोये तुम्हारी इस बंसी से हमे नींद नहीं आती ”

“माफ़ी चाहूँगा मेरी वजह से आपको परेशानी हुई आज से रात को कभी बंसी नहीं बजाऊंगा ”

“वो बात नहीं है मोहन , पर क्या हम यहाँ बैठ जाये ”

“एक पल रुकिए मैं अभी आपके लिए व्यवस्था करवाता हु ”

“उसकी आवश्यकता नहीं ”

दिव्या उसके पास ही बैठ गयी फिर बोली- मोहन क्या कोई परेशानी है तुमको

“नहीं तो राजकुमारी जी , आप सब ने इतना सम्मान दिया तो मुझे भला क्या परेशानी होगी ”

“तो फिर ये कैसा दर्द है जो हर पल तुम्हारे दिल को छलनी कर रहा है ”

“ऐसी तो कोई बात नहीं ”

“घर की कोई परेशानी है ”

“जी नहीं ”

“तो फिर बताते नहीं की क्या बात है एक राजकुमारी को नहीं बता सकते तो एक मित्र को तो बता सकते हो ना ” दिव्या ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा

“मैंने कहा ना कोई परेशानी नहीं है वैसे भी आपके राज में भला मुझे क्या दिक्कत होगी ”

“तो फिर बताते क्यों नहीं अपना दर्द क्यों नहीं बांटते मुझसे ”

अब मोहन उसे क्या बताता की उसका मर्ज़ क्या है इश्क क्या है बस इतना समझ लीजे एक आग का दरिया है और डूब के जाना है दिव्या काफी देर तक उस से बाते करती रही उसने मन ही मन ठान लिया था

की वो जानकार रहेगी की आखिर मोहन की क्या परेशानी है क्योकि वो जानती थी की अगर मोहन दुःख में है तो वो भी उसके साथ ही है क्योंकि कारन व्ही थी प्रेम पर जहा प्रेम हो वहा ये दुःख क्यों ये बिछडन क्यों

चाँद एक ही था आसमान में पर दो लोग अपने अपने नजरिये से उसको देख रहे थे दोनों के मन में एक ही बात थी एक ही पीड़ा थी जुदाई की मोहिनी की आँखों में आंसू थे उसके बाल हवा में लहरा रहे थे

हलके हलके से पर उसकी निगाहे उसी चाँद पर थी जिसे मोहन देख रहा था दोनों के दिल दर्द से भरे थे पर कहे भी तो किस से की क्या बीत रही है दिल पर

रात थी तो कट ही जानी थी किसी तरह से अब तो दीवानो के लिए क्या दिन और क्या रात खैर दिन हुआ, आज दिव्या को मंदिर जाना था तो उसने माँ से मोहन को साथ ले जाने का कहा

अब बेटी को संयुक्ता कैसे मना करती तो वो दोनों चले मंदिर के लिए जैसे ही अंदर गए मोहन के कदम थम से गए
अंदर मोहिनी थी जो शायद पूजा करने ही आई थी ,

“राजकुमारी जी आप पूजा कीजिये मैं बाहर रुकता हु ”

मोहन बाहर आया उसके पीछे ही मोहिनी भी आ गयी मोहन ने अपने कदम बढ़ा दिए बिना उसकी तरफ देखे मोहिनी का दिल रो पीडीए अब कैसे बताये वो मोहन को की क्या बीत रही है उस पर

इर्कुच सोच कर वो बोली- मुसाफिर पानी पियोगे

मोहन के कदम एक दम से रुक गए दिल कहे चल वो बुला रही है पर मोहन ना जाए उफ्फ्फ ये कैसी नारजगी ये कैसी विवशता

“पनी मित्र को ईतना अधिकार भी नहीं दोगे अब ”

अब क्या कहता वो , मित्रता तो थी ही वो आया उसके पास मोहिनी ने मटका उठाया और पिलाने लगी उसे वो पानी पर आज वो बिलकुल सादा था मोहन ने सोचा की पानी भी बेवफाई कर गया

पर उसने अपनी ओख नहीं हटाई बस पीता रहा इधर दिव्या ने जब देखा की एक लड़की मोहन को यु पानी पिला रही है पता नहीं क्यों उसे बहुत जलन हुई क्रोध आया

वो सीधा आई और छीन लिया मटका मोहिनी के हाथ से और चिल्लाई- गुस्ताख लड़की तेरी हिम्मत कैसे हुई तू मोहन को पानी पिलाएगी

पलभर के लिए मोहिनी की हरी आँखे क्रोध से चमक उठी पर उसने संभाल लिया खुद को बोली- पानी ही तो पिलाया है कोई चोरी तो नहीं की है

मोहिनी ने दिव्या की दुखती रग पर हाथ रख दिया था दिव्या गुस्से से तमतमाई पर मोहन बीच में बोला- आपने एक प्यासे को पानी पिलाया कभी मौका लगा तो आपका अहसान जरुर उतारूंगा

मोहन ने दिव्या का हाथ पकड़ा और उसे ले आया , मोहिनी ठगी से रह गयी अहसान ये क्या बोल गया मोहन अहसान कैसा था उनके बीच वो दोनों तो दो जिस्म एक जान थे क्या रे इंसान बस

तेरी ऐसी ही फितरत तू कभी समझा नहीं नहीं की मोल क्या होता है मोहिनी एक फीकी हंसी हसी और वापिस मंदिर की तरफ बढ़ गयी

“क्यों मेरी इतनी परीक्षा ले रहे हो महादेव , अब नहीं सहा जाता मुझे ये कष्ट बहुत पीड़ा होती है मुझे भी और उसे भी पर मुझ को आप पे भरोसा है अगर आपने ये लिखा है तो ये ही सही ”

“मोहन, तुमने क्यों रोका मैं उस लड़की का मुह नोच लेती ”

“आपको कोई जरुरत नहीं किसी के मुह लगने की वैसे भी छोटी सी बात तो थी किसी को पानी पिलाना कोई अपराध नहीं ”
बात तो सही थी मोहन की अब दिव्या को क्या दिक्कत हुई थी

ये तो बस दिव्या ही जानती थी उसने मोहन की नीली आँखों में देखा और बोली- तुम्हारी आँखे बहुत प्यारी है

मोहन मुस्कुरा दिया इस बात से अनजान की उसकी मुस्कराहट का तीर किसी के दिल पे जा लगा है , इधर मोहन से चुद के संयुक्ता किसी ताज़े गुलाब की तरह खिल गयी थी

पुरे बदन में निखर आ गया था और और कामुक और सुंदर हो गयी थी जिस से राजा की और दोनों रानिया संगीता और रत्ना जल भुन गयी थी वैसे ही उसकी वजह से महाराज उन दोनों पर इतना ध्यान् नहीं देते थे ऊपर से आजकल वो और जवान हुई जा रही थी
आखिर कार दोनों रानियों ने तोड़ निकाला की किसी तरह से पता लगाया जाए की माजरा क्या है
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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इधर राजपुरोहित अपनी किताबे लेके गहन अध्ययन में डूबे हुए थे जब से मोहन ने उनसे मदद मांगी थी उन्होंने बहुत कम समय के लिए पुस्तकालय छोड़ा था बस पढ़ते ही रहते थे और फिर उस रात उन्होंने मोहन को बुलाया

“तो मोहन तुम्हारा वो काम हुआ की नहीं ”

“हो गया, श्रीमान ”

पुरोहित के दिल में झटका सा लगा जैसे

“तो तुमने सच ने उस तीन सर वाले शेर को देखा ”

“क्या आपको विश्वास नहीं है ”

“है, मोहन बस मैं इतना जानना चाहता हु की वो दूध तुम किसके लिए लाये थे ”

“ये मेरा निजी मामला है श्रीमान, माफ़ी चाहूँगा मैं ये आपको नहीं बता एकता आप बू इतना समझ लीजिये की मैं अपने लिए ही लाया था ”

पुरोहित भी जान गया था की मोहन उतना सीधा भी नहीं है जितना दीखता है पर कुछ भी करके वो पता लगा के रहेगा की क्या वो सच में है अगर तीन सर का शेर किवंदिती नहीं है तो वो भी असली में है
आज मोहिनी के पिता बस्ती लौट आये थे और जब उन्हें पता चला की बेटी ने कितनी बड़ी गलती की थी तो उन्होंने खूब गुस्सा किया उस पर मोहिनी चुप चाप सुनती रही

“क्या तुमने एक पल भी विचार नहीं किया की ऐसा करने के बाद तुमहरा क्या होगा कैसे कर सकती हो तुम ऐसा मोहिनी जानती हो ना की नियमो के विरुद्ध जाना कितना खतरनाक हो सकता है तुम्हारे दोनों कृत्य ही माफ़ी के काबिल नहीं है तुम्हे इसकी सजा मिलेगी ”

“जी पिताजी मैं सजा के लिए तैयार हु ”

“हाँ पर उस से पहले हम ये जानना चाहेंगे की ऐसी गलती करने के बाद भी तुम ऐसी भली चंगी कैसे हो आखिर तुम्हारा बचाव हुआ कैसे ”

“पिताजी, मुझे औषधि मिल गयी थी ”

“असंभव ,ऐसा कदापि नहीं हो सकता ”

“प्रमाण आपके समक्ष ही है ”

मोहिनी की बात बिलकुल सही थी पर कैसे हुआ ये उसके पिता केवट को हुई जिगयासा

“हम जानना चाहते है की तुम्हे औषधि कैसे प्राप्त हुई ”


“क्षमा कीजिये पिताजी ये हम आपको नहीं बता सकते बस इतना कह सकती हु की था कोई फ़रिश्ता जिसने मेरे प्राण लौटा दिए ”
“पर ये तो असंभव है स्वयं महादेव भी नरसिंह की माता को दूध के लिए बाध्य नहीं कर सकते और

वो अपनी मर्ज़ी से कभी अपने दूध का दान करेगी नहीं और बाबाबर्फानी के कबूतर की आँख का आंसू जबकि हमे ज्ञात है सदियों से वो रोया नहीं फिर कैसे विश्वास करे हम आपका पुत्री ”

“मेरा स्वस्थ होना ही प्रमाण है पिताश्री”

केवट का ध्यान और बातो से हट कर इस बात पर आ गया की आखिर ऐसा हो कैसे सकता है नरसिंह की माँ हमारी घोर शत्रु फिर वो कैसे राजी हुई अपना दूध देने को सब कुछ जानते हुए भी की उसके दूध का नरसिंह के आलावा एक मात्र उपयोग क्या है परन्तु यहाँ पर केवट ये भूल गया था की


व् ओभी एक माँ थी और माँ हमेशा अपने बच्चो की पीड़ा को जान लेती है उनका निवारण करती है
केवट बहुत परेशान हो गया था इस बात को लेकर बड़े बड़े वीर जिसके दूध के एक बूँद ना ला पाए

ऐसा कौन महारथी हो गया जिसने शेर माता को मना लिया था जो स्वय महादेव को बाध्य नहीं उसे किसने मना लिया पुत्री ने तो बताने से मना ही कर दिया

अब केवट को हुई हुडक उस से मिलने की जिसने उसकी पुत्री की मृतु को टाल दिया था

परन्तु उसको ये भी भान था की दोनों का ही तरीका गलत था और दोनों को ही इसका प्रयाश्चित करना होगा

अब एक पिता को अपनी पुत्री हेतु चिंता करना स्वाभाविक था पर उनकी भी दिलचस्पी हो गयी थी की ऐसे ही किसने उनकी बेटी की ये असंभव सी मदद कर दी खैर अब किया भी क्या जा सकता था

अगले दिन फिर दिव्या और मोहन मंदिर गए मोहिनी व्ही पर थी पौधो को पानी दे रही थी जैसे ही मोहन को देखा दौड़ी चली आई
पानी का मटका लिए वो आ खड़ी हुई मोहन के सामने इधर दिव्य का दिल जला

ये कमबख्त लड़की भी ना क्या है इसको रोज मोहन को पानी पिलाने आ जाती है , उसेगुस्स्सा आया पर तभी छोटी रानी संगीता भी आ गयी तो दिव्या को चुप्पी लेनी पड़ी वो दिव्या को अपन साथ अंदर ले गयी बचे मोहन और मोहिनी

“प्यास लगी है ”

“दिल में कोई आस नहीं और मेरे होंठो पर कोई प्यास नहीं ”

मोहिनी का कलेजा जैसे छलनी ही हो गया था पर क्यों सुनती थी वो जली कटी बाते मोहन की आखिर वो लगता ही क्या थौसका, उसका और मोहन का भला क्या मेल था कुछ नहीं

पर फिर भी वो अपने होंठो पर मुस्कान लायी बोली- चलो माना की प्यास नहीं पर मेरी आस तो है बहुत दिन हुए तुम्हारी बंसी नहीं सुनी तो मुझ पर इतना एहसान करो, दो पल ही सही मेरे लिए एक बार बंसी अपने होंठो पर लगा लो

माना की मैं पराई ही सही पर इतना तो हक़ होगा ही तुम पर

ये क्या कहा मोहिनी ने , परायी वो कब से परायी हो गयी थी मोहन एक अस्तित्व का एक हिस्सा थी मोहन था तो मोहिनी थी फिर परायी कैसे हो गयी थी वो , कैसे

मोहिनी ने अपनी हरी आँखों से देखा मोहन को और मोहन डूबा अपने दर्द में पर अगले पल उसने बंसी निकाली और छेड़ दी एक मधुर तान पल भर में ही जैसे पूरा प्रांगन जिवंत हो उठा वहा पर

जैसे जैसे मोहन की तान बढ़ी मोहिनी पर चढ़ा नशा उसका सर झोमने लगा पैरो की थिरकन आई ,

इधर मधुर ध्वनी सुनकर दिव्या पूजा करनी भूली अब पूजा से उठ जाये तो महादेव को क्रोध आये और ना जाये तो दिल परेशान करे तो क्या करे मोहिनी को मद चढ़ा मोहन की बांसुरी का

ये कैसा प्रेम संगीत छेड़ दिया था मोहन ने आज वो खुद को नहीं रोक पाएगी बांधे घुंघरू उसने पांवो पर और दिखाई अपनी थाप
अपनी आँखों को मटकाते हुए उसने मोहन को इशारा किया

मोहन भला उसका निवेदन कैसे ना स्वीकारता उठ खड़ा हुआ वो और किसी बीन की तरह बजाने लगा बांसुरी को इधर मोहिनी ने अपने बाल खोल दिए लगी झुमने मंदिर में उपस्तिथ सभी लोग देखे मुकाबला एक नर्तकी और एक बंसी वाले का

मोरो ने पिहू पिहू के ध्वनी से सारे वातावरण को अपने सर पर उठा लिया कोयल कूके किसी डाल पर उअर मोहिनी अब बेखबर इस इस दीन दुनिया से कभी मोहन के आगे कभी मोहन के पीछे कभी आँखों से आँख मिलाये कभी मुस्काए कैसा था ये मुकाबला कैसी थी होड़ ये ,नहीं नहीं ये तो प्रयतन था रिझाने का , मनाने का

घुंगरू की झंकार ने मिला ली थी बंसी से तान जैसी कोई बिजली गिर रही हो इधर उधर सब मन्त्र मुग्द्य से हो गए थे उन दोनों को देख पर पर दिव्या के दिल पर छुरिया चल रही थी आखिर दिल का कहा सुन के उसने भागी पूजा में से उठ के वो उअर जो देखा दर्श सर्प लोट गया राजकुमारी के दिल पे आँखों में अग्नि का वास


जी तो चाह की फूंक दे इस लड़की को अभी या चुनवा दे दिवार में हमारे मोहन पर डोरे डाल रही है हिम्मत तो देखो उसकी पर तभी मोहिनी और दिव्या की नजरे मिली आपस में और दिव्या का खून खौल गया इधर मोहन की बंसी पर क्या खूब ठुमक रही थी मोहिनी अब दिव्या कितना बर्दाश्त करती नारी ही नारी की शत्रु परम शत्रु

आग लगी दिव्या के, बांधे घुंघरू और आ गयी मैदान में दी थपकी दर्शाया की मैं भी कम नहीं और कम रहे भी तो कैसे दिव्या स्वयं एक कुशल नर्तकी थी जो एक सांस चोबीस घंटे नाच सकती थी 52 परकार के न्रत्य में पारंगत और ऊपर से जब चाह किसी को अपना बना लेने की , हद से ज्यादा जूनून तो अब क्या हो
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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कहाँ तो ये बस प्रयास था मोहिनी का मोहन को मानाने का और कहा दिव्या बीच में कूद पड़ी थी अब मोहन ने और लगाई धुन दिव्या ने दिया आमंत्रण मोहिनी को तो भला वो कैसे स्वीकार न करती बात अब अभिमान पर जो आ गयी थी पर ये दंभ किसलिए , गुरूर एक की नजरो में तो दूसरी की नजरो में मनुहार अपने मोहन को मनाने की

ये कैसी जिद कैसी मनुहार और खुद मोहन उसने तो आग्रह स्वीकार किया था अपनी प्रेयसी का अब जब तक मोहिनी खुद ना रुके मोहन की सांस टूटे ना यही तो परीक्षा लेता है प्रेम जो डूब गया समझो पार और जो झिझक गया वो रह गया खाली हाथ मेहंदी भी अपना रंग तब तक नहीं दिखाती जब तक उसको खूब पीसा न जाये

और ये तो प्रेम का गुलाबी रंग था देखो आज कौन रंग जाए कौन पा जाये अपने प्रीतम को छोटी रानी संगीता की पूजा हुई खत्मआई वो बहर और जो देखा पल भर में ही जान गयी सब वो पर उनको दिव्या से ज्यादा उस दूसरी लड़की की फ़िक्र थी भला 52 न्रत्य में पारंगत राजकुमारी को कौन मात दे सके वाह रे इन्सान तेरा दम्ब्भ, खोखला अहंकार

सुबह से शाम होने को आई सब लोग साक्षी थे उस मुकाबले के खुद संगीता हैरान थी की दिव्या को इतनी टक्कर घुंगरू कब के टूट चुके थे पर मोहन के सांस नहीं ये प्रमाण था की मोहिनी का कहा कितना मायने रखा करता था उसके लिए तन बदन पसीने से तर पर आँखों में अपनी अपनी प्यास नो घंटे होने को आये दिन छुप गया रात आई अब संगीता भी थोड़ी परेशां होने लगी थी

भेजा फ़ौरन संदेसा महल खुद चंद्रभान भी चकित ये कैसा मुकाबला कैसी होड़ और किसलिए कहा एक राजकुमारी और कहा एक साधारण लड़की बताया रानी को और दौड़े महादेव स्थान हेतु और जो देखा आँखों ने जैसे मानने से ही मना कर दिया था वो लडकिया नहीं जैसे साक्षात आकाशीय बिजलिया उतर आई थी पलक झपकने से पहले वो कभी यहाँ कभी वहा

“वाह अद्भुत अतुलनीय ” संयुक्ता के मुह से निकला मोहिनी के न्रत्य ने मन मोह लिया था उनका

इधर दोनों लडकियों के पाँव घायल कट गए जगह जगह से पर चेहरे पर एक शिकन तक नहीं पैरो से रक्त की धार बहे पर होंठो पर मुस्कान और क्या अर्थ था इस मुस्कान का पूरी रात वो बीत गयी आस पास के लोग थक गए पर वो तीन ना जाने कैसा खेल खेल रहे थे वो उन्हें तो जैसे मालुम ही नहीं था की आस पास कौन था कौन नहीं बस था तो दिल में प्रेम अपना अपना

36 घंटे बीत गए थे दिव्या का शरीर अब जवाब देने लगा था इधर मोहन की साँस अब दगा करने लगी थी पर मोहिनी जबतक नाचे वो ना रुके पल पल दिव्या की सांस फूले और फिर कुछ देर बाद वो बेहोश होकर गिर पड़ी ,

अनर्थ सब घबराये मोहन ने छोड़ी बंसी और भागा उसकी और बाहों में उठाया उसको एक बेफिक्री सी उसके शारीर में मोहिनी तुरंत एक गिलास ले आई थोडा सा पानी दिव्या को पिलाया और वो झट से उठी किसी ताजे खिले गुलाब की तरह

“वाह वाह क्या बात क्या बात दिल प्रस्सन हो गया ” ये पुत्री तुम कौन हो

मोहिनी ने अपना परिचय दिया राजा बहुत प्रस्सन

“पुत्री मांगो क्या मांगती हो ”

“महाराज आपने अपने राज्य में हमे संरक्षण दिया आपका उपकार है बाकी किसी और चीज़ की कोई चाह नहीं ”

चंद्रभान और प्रसन्न, वाह पर उनका मन प्रस्सन था थो उन्होंने घोषणा की की मोहिनी पर दिव्या को एक एक बचन देते है की वो उन दोनों की एक मांग पूरी करने हेतु प्रतिबद्ध रहेंगे अब ये क्या कह दिया महाराज ने दोनों को एक सामान वचन ये कैसा वचन था और क्या भविष्य में महराज अपना वचन निभा पाएंगे

इधर दिव्या जल रही थी अन्दर ही अंदर हार गयी वो एक साधारण लड़की से उसके अहंकार को बहुत चोट पहुची थी पर महाराज के आगे अब क्या कहे सब लोग चले वापिस महल के लिए मोहन भी

“पानी नहीं पियोगे मुसाफिर ”

मोहिनी उसके पास आ गयी मोहन ने अपने होठो से लगाया मटके को वो ही ठंडा पानी शरबत से मीठा पूरा पी गया पर पेट नहीं भरा

“जी नहीं भरा मेरा ”

मोहिनी मुस्कुराई एक गिलास में लायी पानी एक घूँट पिया और फिर वो गिलास मोहन को दिया और उस एक गिलास पानी की कुछ घूंटो में ही वो धाप गया चलने लगा

“फिर कब आओगे ”

“”क्या पता “ आगे बढ़ गया वो

जी तो चाहा मोहिनी का भी की अभी इसी पल लिपट जाए अपने मोहन से पर उसके पैरो में बेडिया बंधी थी वो करे भी तो क्या बस अपना कलेजा ही फूंक सकती थी अब मोहिनी के मन की व्यथा को कौन सुने , खैर, इधर दिव्या महल में आई उसको खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था एक साधरण लड़की से हार गयी थी वो कभी सामान तोड़े कभी बांदियो को गलिया दे बाल नोचे खुद के अब कौन समझाए उसको

कुछ दिन गुजर गए इधर छोटी रानी संगीता को पता चल गया था की मोहन और संयुक्ता के बीच क्या रिश्ता पनप रहा था पर वो इस मामले में दिमाग से काम लेना चाहती थी वो हद से ज्यादा जलील करना चाहती थी संयुक्ता को पर उसके लिए उसे सही अवसर की तलाश थी और फिर अवसर आया भी

संगीता को घुड़सवारी का शौक था तो उसके लिए एक नया घोडा आया था वो देखने ही जा रही थी की उसकी नजर राजकुमार पृथ्वी पर पड़ी मात्र एक धोती पहने वो अपना अभ्यास कर रहा था चौड़ा सीना बलिष्ठ भुजाये चेहरे पर सूर्य सा तेज संगीता एक 30 बरस की तेज औरत थी और उसकी भी वो ही समस्या थी की महाराज की कमजोरी ऊपर से संयुक्ता के कारन उसे लंड की खुराक बहुत कम मिलती थी और उसको कोई बच्चा भी नहीं था


जैसे जैसे वो आगे बढ़ रही थी नजरे पृथ्वी के शरीर पर ही जमी थी अपने पुत्र समान पृथ्वी का ख्याल करके उसकी चूत गीली होने लगी अब कहा घुड़सवारी करनी थी वो वापिस अपने स्थान में आ गए उसके मन में ख्याल आने लगे की काश पृथ्वी उसे चोदे तो क्या मजा आएगा काम चढ़ने लगा उसको पर तभी उसके दिमाग में एक बात और आई जिससे उसके होठो पर एक मुस्कान आ गई

मोहन कुछ दिनों के लिए अपने डेरे में गया हुआ था महाराज और महारनी किसी दुसरे राज्य में मित्रः के यहाँ किसी विवाह में गए थे अब संगीता ने अपना खेल खेलने का विचार किया

उसने पृथ्वी को संदेसा भेजा की छोटी माँ उससे अभी मिलना चाहती है पृथ्वी तुरंत आया संगीता ने आज इस तरह से श्रृंगार किया हुआ था की उसका आधे से ज्यादा बदन दिख रहा था

पृथ्वी ने उसको ऐसे देखा तो वो एक पल ठिटक गया फिर बोला- आपने याद किया छोटी माँ

“हां, बेटे आजकल तो तुम्हे अपनी छोटी माँ की बिलकुल याद नहीं आती कितने दिन हुए तुम हमसे एक बार भी मिलने नहीं आए ”

“ऐसा नहीं है माँ, बस आजकल थोड़ी जिमेदारिया बढ़ गयी है तो समय कम मिलता है ”

संगीता पृथ्वी के पास बैठ गयी दोनों की टाँगे आपस में टकरा रही थी और जैसे ही वो हल्का सा झुकी उसको उसके पूरी चूचियो के दर्शन होने लगे

“ओह मेरे बच्चे ”

संगीता ने उसके माथे को चूमा पर इस तरह पृथ्वी का मुह उसकी चूचियो से दब गया अपनी छोटी माँ के बदन से आती मदहोश कर देने वाली खुशु से वो उत्तजित होने लगा संगीता ने थोड़ी देर ऐसे ही उसको मजा दिया फिर हट गयी

“बेटे हम भी आजकल बहुत अकेले महसूस करते है अगर थोडा समय तुम हामरे साथ गुजरो तो हमे अच्छा लगेगा ”

“जी, मैं शाम को मिलता हु आपसे ”

पृथ्वी उठा तो वो भी उठ गयी और तभी पता नहीं कैसे उसके वस्त्रो का निचला हिस्सा खुल गया वो शरमाई इधर पृथ्वी ने अपनी छोटी माँ के उस खजाने के दर्शन कर लिए थे

जिसकी सबको चाह होती ही संगीता की चिकनी जांघे हलकी सी फूली हुई चूत बेहद छोटे छोटे बालो से ढकी हुई

पर जब उसे अहसास हुआ की गलत है ऐसे देखना वो तुरंत कमरे से बाहर निकल गया संगीता मुस्काई, उसका दांव सही लग गया था बस जरुरत थी पृथ्वी को शीशे में उतारने की ,

मोहिनी बिस्तर पर करवटे बदल रही थी आजकल वो बहुत गुमसुम सी रहने लगी थी ना कुछ खाना पीना न कुछ और ख्याल बस डूबी रहती अपनी सोच में

सखिया पूछती तो टाल देती अब बताये भी तो क्या बताये की क्या हाल है उसका पर छुपाये भी तो किस से मोहिनी की माँ जान गयी कुछ तो है बेटी के मन में पर क्या कैसे पता रहे आजकल बात भी तो नहीं करती

वो किसी से वैसे भी वो जबसे परेशान थी जबसे मोहिनी ठीक हुई थी कुछ सोच कर आखिर उसने फैसला किया की वो बात करेगी उससे

माँ- मोहिनी मुझे तुमसे कुछ बात करनी है

वो-हां, माँ

माँ- बेटी क्या तुझे कोई परेशानी है मैं देख रही हु तू कुछ दिनों से गुमसुम सी है

वो-नहीं माँ ऐसी तो कोई बात नहीं थोड़ी कमजोरी है उसी की वजह से पर जल्दी ही मैं ठीक हो जाउंगी तू फ़िक्र मत कर

माँ ने बहुत पुछा पर वो टाल गयी तो अब उसके पिता ही करे कुछ उपाय अब बेटी दुखी तो वो भी दुखी मोहन महल में नहीं था तो दिव्या का भी जी नहीं लग रहा था

पर वो खुल के मोहन से बात भी तो नहीं कर पाती थी और जब तक मोहन को अपने दिल की बात ना बताये तब तक उसे चैन आये नहीं तो करे तो क्या ये इश्क की दुश्वारिया ना जीने देती है ना चैन लेने देती है

जबसे उसे पता चला था की मोहन ने उसकी खातिर जहर ले लिया था तो वो उसी पल्स इ उस से प्रेम करने लगी थी पर वो नादाँ मोहन के मन को टटोलने की कोशिश भी तो नहीं कर रही थी ना उसका हाल पूछे ना अपना बताये तो कैसे कोई बात बने बस अपने दुःख में आप ही तड़पे


तड़प तो मोहन भी रहा था अपनी मोहिनी के लिए कितना प्रेम करता था वो उस से और वो थी की जानी ही नहीं यहा अगर कुछ जरुरी था तो बस इतना की एक दुसरे से बात की जाये पर इसी बात से सब बच रहे थे और दुखी थे , इधर संगीता इंतजार कर रही थी पृथ्वी का रात आधी बीत गयी थी पर राजकुमार ना आये

खैर, अगला दिन हुआ मोहन निकला डेरे से और बैठ गया उसी कीकर के पेड़ के निचे बस बैठा रहा ना पुकारा उसने किसी को भी पर उसे तो आना ही था हर रोज इंतजार जो करती थी अपने मोहन प्यारे का देखते ही उसे वो मुस्कुराई और तेजी से बढ़ी उसकी और जाके सामने खड़ी हो गयी पर वो ना बोला बस नजरो को झुका लिया

“मोहन, कब तक मुझसे नाराज रहोगे एक बार मेरी बात तो सुनो इतना हठ ठीक नहीं ”

“क्यों सुनु तुम्हारी बात आखिर क्या लगती हो तुम मेरी ”

“क्या तुम नहीं जानते मैं क्या लगती हु तुम्हारी ”

“नहीं जानता कितनी बार बताऊ तुम्हे नहीं जानता ”

“तो मत जानो , तुम्हारे लिए कुछ लायी थी मैंने अपने हाथो से बनाया है तुम खालो ”

“भूख नहीं है मुझे ”

“भूख नहीं है या मेरे हाथ से नहीं खाना चाहते ’

“तुम जानती हो ना की मैं तुम्हे कभी मना नहीं करता लाओ खिला दो ’


कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »

मोहिनी खुश हो गयी अपने हाथो से चूरमा खिलाने लगी वो मोहन को उसकी उंगलिया मोहन के होंठो से जैसे ही टकराई मोहिनी झनझना गयी मन में प्रेम के पंछी ने उड़ान भरी आँखों में प्रेम के आंसू अपने हाथो से मोहन को भोजन जो करवा रही थी मोहन सोच रहा था की वो कैसे जान गयी थी की उसे चूरमा बहुत भाता था

चूरमे के साथ साथ मोहन मोहिनी की उंगलियों को भी चाट लेता मोहिनी को ऐसा सुकून आज स पहले कभी नहीं मिला था भोजन के बाद मोहन उसकी गोद में सर रख के लेट गया बोला- तुम इतना क्यों सताती हो मुझे मोहिनी क्यों स्वीकार नहीं करती मेरे प्रेम को

“मोहन, मैं तो बहुत पहले ही तुम्हारे प्रेम को स्वीकार कर लिया था बस एक ही नहीं पाई उलझी जो हु ”

“क्या सच मोहिनी, तुम्हे स्वीकार है एक बार फिर से कहो ”

“मुझे स्वीकार है मोहन महादेव की सौगंध मैं भी तुम्हे बहुत चाहती हु तुम्हारे प्रेम को स्वीकार करती हु मैं ”

मोहन उठ बैठा भर लिया मोहिनी को अपनी बाहों में , वो लिपट गयी अपने मोहन से ऐसे जैसे कोई सर्प लिपटे चंदन के पेड़ से बहुत देर तक वो लिपटे रहे एक दुसरे से अब मोहीनी शरमाई मोहन ने चूम लिया उसके होंठो पर मोहिनी पर जैसे कोई नशा सा हुआ ये क्या किया मोहन तुमने मोहिनी का ये पहला चुम्बन


मोहन दीवानो की तरह उसको चूमता रहा वो उसके आगोश में सिमटती रही बहुत देर बाद वो अलग हुए

“मोहिनी तुम अपने पिताजी का नाम बताओ मैं बापू से बात करता हु अपनी शादी की ”

“मैं बता दूंगी मोहन ”

“हां, मोहिनी अब मैं ज्यादा देर तुमसे जुदा नहीं रह सकता बस अब दुल्हन बनके मेरे पास आजाओ ”

वो मुस्कुराई पर दिल में दर्द था उसके दुल्हन बनकर, दुल्हन पर क्या ये मुमकिन था पर वो करे भी तो क्या करे प्रेम में हार गयी थी वो खुद को दूर भी तो नहीं जा सकती थी मोहन से और पास भी नहीं आ सकती थी ये मोहबत जी का जंजाल ही बन गयी थी

“जाने दो ना मोहन देर हो रही है देखो अंधेरा भी होने लगा है ”


“ना, अभी तो ठीक से देखा भी नहीं थारे को ”



“मैं कुण सा भागी जा री सु मोहन, काल फेर आउंगी पण तू एक वादा कर म्हां सु की आज रे बाद फेर कबे नाराज ना होगो ”


“”थारा, सर की सौंगंध पण तन्ने भी महारा प्यार रो वास्ता, जे म्हारा दिल नु दुखाया तो “


“मैं कल मिलूंगी पर अब जाने दे ”


तो कल मिलने का हुआ करार और वो दोनों ने बदला अपना अपना रास्ता आज मोहन बहुत ही ज्यादा खुश था बहुत ही ज्यादा खुश झूमता गाता वो डेरे पर आया बस अपने आप में मगन मुसकाय कभी शर्माए,

हाय रे इशक बस अब वो किसी तरह से घरवालो को मोहिनी के बारे में बताना चाहता था अब वो बकरार था उसे अपनी दुल्हन बना लेने को



दूसरी तरफ अभी अभी पृथ्वी महल में आया था आते ही उसने छोटी माँ के बारे में पूछा थो पता चला की वो अभी उद्यान में है तो वो उधर ही चल पड़ा ,

संगीता ने पृथ्वी को देखा और मन ही मन मुस्कुरा पड़ी उसने सब बांदियो को जाने का आदेश किया और कुछ ही पलो में राजकुमार अपनी छोटी माँ के सामने था


“माफ़ी चाहते है माँ, कल मैं आ नहीं पाया बस अभी लौटा हु ”


संगीता ने एक मादक अंगड़ाई ली फिर बोली- कोई नहीं पुत्र हमे ख़ुशी है की आते ही तुम अपनी छोटी माँ से मिलने आये हो



वो उठ कर चली और फिर एकाएक जैसे फिसली परन्तु पृथ्वी ने अपनी बलिष्ठ बाँहों में थाम लिया और वो जा लगी उसके सीने से पृथ्वी का एक हाथ उसकी पीठ पर था


और दूसरा उसके कुलहो पर वो कुछ कसमसाई और उसके होंठो पृथ्वी के गालो से जा टकराए पृथ्वी के अन्दर का पुरुष नारी के इस स्पर्श को महसूस करते ही अंगड़ाई लेने लगा



एक पल के लिए संगीता को उसने अपनी बहो में कस लिया संगीता को परम अनुभूति हुई पर जल्दी ही पृथ्वी ने उसे छोड़ दिया



“माँ, आप ठीक तो है ना ”


“शायद पैर में मोच आ गयी है पुत्र””


लाइए मैं आपको आपके विश्राम स्थल तक ले चलता हु “


पर थोडा सा चलते ही संगीता दर्द से लड़खड़ाई उसने पृथ्वी का कंधे पकड़ लिया



“आह मेरा पैर,”


पृथ्वी समझ गया की चलने में तक्ल्लीफ़ है तो उसने संगीता को अपनी गोद में उठा लिया और ले चला महल में पुत्र की बाँहों में संगीता एक अलग से सुख को महसूस कर रही थी


उसके मचलते उभार जैसे पृथ्वी के सीने में समा जाना चाहते थे अपने नितम्बो पर पृथ्वी के कठोर हाथो का स्पर्श पाकर संगीता के मन में एक हलचल मची पड़ी थी



उसके सरक गए आँचल ने राजकुमार के मन में भी एक आग जला दी थी आधे से ज्यादा उभार उन झीने से वस्त्रो से बाहर को उछल रहे थे नए नए जवान हुए पृथ्वी के लिए ये बड़ा ही हाहाकारी नजारा था



अपनी छोटी माँ के बदन की खुशबु को महसूस करते हुए वो संगीता को ले आया उसके कमरे में उसने उसे बिस्तर पर लिटाया और खुद उसके पास ही बैठ गया



कुछ देर दोनों में चुप्पी रही फिर वो बोला- माँ क्या मैं वैद्य जी को बुला लाऊ



संगीता- नहीं पुत्र, उसकी आवश्यकता नहीं



पृथ्वी- तो क्या माँ मैं आपके पैर दबा दू



संगीता के होंठो पर एक जहरीली मुस्कराहट फैल गयी उसने एक गहरी सांस ली और बोली- हां, इस से मुझे आराम मिलेगा



पृथ्वी को और क्या चाहिए था वो एक बार पहले ही ऐसे संगीता की चूत देख चूका था और अब फिर से उसका यही प्रयास था इसी लिए उसने पैर दबाने को कहा था



उसन संगीता के घागरे को घुटनों तक सरका दिया उसकी गोरी पिंडलिया चमक उठी जैस ही संगीता को वहा पर पृथ्वी का स्पर्श महसूस हुआ वो कांपने लगी उसे लग रहा था की जल्दी ही वो अपने इरादों में कामयाब हो जाएगी



आखिर उसका उद्देश्य तो यही था की पृथ्वी को अपने जिस्म का नशा लगाना ताकि वो उसकी हर बात माने, पृथ्वी संगीता की पैर दबा रहा था पुरे कमरे में सन्नाटा था बस दोनों की सांसे ही आवाज कर रही थी



तभी संगीता ने अपना दांव खेला और बोली- बेटे, क्या तुम थोडा सा और ऊपर दबा सकते हो वहा पर भी दर्द हो रहा है
पृथ्वी ने अब अपने हाथ घुटनों तक चलाने शुरू किये तो वो फिर बोली- यहाँ नहीं थोडा और ऊपर



इ ससे पहले की पृथ्वी कुछ कहता उसने उसका हाथ अपनी चिकनी मांसल जांघो पर रख दिया जैसे ही पृथ्वी ने हल्का सा दबाया संगीता ने आह भरी पृथ्वी उसकी जांघो से खेलने लगा



इधर संगीता की चूत में इतना कामरस भर गया था की उसकी जांघो तक चिपचिपाहट होने लगी थी और ऐसे ही पृथ्वी की उंगलिया जैसे ही जांघो के अंदरूनी हिस्से में गयी वो चूत के पानी से सन गयी



उफ्फ्फ्फ़ एक पुत्र के हाथ अपनी ही छोटी माँ के चूत के रस से सने हुए थे शर्म के मारे संगीता के गोर गाल और भी गुलाबी हो गए पर वो पृथ्वी को उअर तडपाना चाहती थी तो बोली- बस पुत्र अब आराम है



अब वो बेचारा क्या करता तो हुआ वापिस कमरे से और बाहर आते ही उसने अपनी उंगलियों को सुंघा संगीता की चूत के पानी की खुसबू से वो मस्त होने लगा उसका लंड फुफकारने लगा



इन सब बातो से बेखबर दिव्या बैठी थी महादेव मंदिर की सीढियों पर खोयी हुई थी अपने ख्यालो में सोच रही थी मोहन के बारे में की कैसे वो उस से कहे की


वो कितना प्यार करती है उस से जी नहीं सकती उसके बिना एक पल भी



और तभी उसे मोहिनी आती हुई दिखी पता नहीं क्यों मोहिनी को देखते ही उसे क्रोध आ जाता था और जबसे वो उस से हारी थी नफरत ही तो करने लगी थी वो उससे



अपने आप में मगन मोहिनी ने एक नजर भर भी नहीं देखा दिव्या को बस बढ़ गयी आगे को , इस राज्य की राजकुमारी का ऐसा अपमान ये कैसा दंभ था


मोहिनी का या खुमार था अपनी जीत का दिव्या को ये अच्छा नहीं लगा



उसने रोका मोहिनी को, “कहा जा रही हो ”


“कही भी तुमसे मतलब ”


“तुम आज के बाद उस मंदिर में नहीं आओगी ”


“क्यों भला , अब क्या भगवान् पर भी बस राजमहल वालो का अधिकार है ”


“हमने कहा ना की आज के बाद तुम इस मंदिर में नहीं आओगी ”


“मैं तो आउंगी , ”


“बड़ी घमंडी हो तुम, हमारे एक इशारे पर तुम कहा गायब हो जाओगी सोच भी ना पाओगी तुम ’”


अब हंसी मोहिनी फिर बोली- राजकुमारी , माना की हम आपकी प्रजा है पर यहाँ आने का अधिकार तो महाराज भी हमसे नहीं छीन सकते तो आपकी बिसात ही क्या है “


अब फुफकारी दिव्या- गुस्ताख लड़की, हम चाहे तो एक पल में तुम्हारे टुकड़े करवा दे हमने कह दिया सो कह दिया तुम नहीं आओगी मतलब नहीं आओगी



मोहिनि-मैं तो आउंगी क्या पता तुम्हारे जैसी चोर राजकुमारी फिर यहाँ से कुछ चुरा ले



दिव्या को ऐसे लगा की जैसे मोहिनी ने उसको थप्पड़ मार दिया हो वो उसे मारने को आगे बढ़ी पर मोहिनी ने उसको पकड़ा और उसका हाथ मरोड़ते हुए बोली- सुन दिव्या, अपने काम से काम रख तुम्हारा अपमान करना मेरा धर्म नहीं पर मर्यादा लांघने की कोशिश ना करना



मोहिनी चली मंदिर के अन्दर पर तभी दिव्या ने कुछ कहा की उसके पैर रुक गये वो वापिस मुड़ी
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