Incest -प्रीत का रंग गुलाबी complete

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Incest -प्रीत का रंग गुलाबी complete

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प्रीत का रंग गुलाबी

दोस्तो एक और कहानी शुरू करने जा रहा हूँ आशा है सब लोग साथ देंगे

दूर दूर तक कुछ नही था सिवाय गर्म लू के जिसका बस आज एक ही इरादा था की कोई अगर चपेट में आ गया तो उसका काम तमाम कर डाले मोहन ने अपने माथे पर छलक आये पसीने को पोंन्छा और छाया की तलाश में थोडा और आगे बढ़ गया वैसे तो वो रोज ही बकरिया चराने आया करता था पर आज वो कुछ ज्यादा ही दूर आ गया था प्यास से गला सूख रहा था उसने अपने डब्बे को देखा जो की कब का खाली हो चूका था हताश नजरो से उसने नदी की तरफ देखा जिसमे अब कंकड़ और मिटटी के सिवा कुछ नहीं था कई सालो से बारिश जो नहीं हुई थी उस स्त्र की जो नदी को पुनर्जीवन दे सके


उसने बकरियों को हांका और छाया की तलाश में आगे को बढ़ गया थोड़ी दूर उसे एक देसी कीकर का पेड़ दिखा पेड़ बड़ा तो था पर छाया इतनि नहीं थी पर जेठ की इस गर्म दोपहर में इतनी छाया भी किस्मत वालो को ही मिलती है मोहन ने अपनी कमर टेकी पेड़ से और बैठ गया उसके पशु भी उसके आस पास बैठ गए मोहन ने अपनी बांसुरी निकाली और बजाने लगा जैसे ही उसके होंठो ने बांसुरी को छुआ जैसे वो वीराना महकता चला गया उस बांसुरी की तान पे


अपनी आँखे बंद किये मोहन संगीत में खोया हुआ था अब उसे गर्मी भी नहीं लग रही थी जैसे उसकी सारी थकन को मोह लिया था संगीत ने और तभी उसे ऐसा लगा की एक बेहद ठंडी हवा का झोंका उसे छू कर गया हो उसने झट से अपनी आँखे खोली हाथो पर तो पसीना था फिर कैसे उसको बर्फीला अहसास हुआ था ठण्ड से उसकी रीढ़ की हड्डी तक कांप गयी थी उसने अपना थूक गटका और अस पास देखा पर सिवाय गर्मी की झुलसन के उधर कुछ भी नहीं था कुछ भी नहीं


तभी कुछ दूर उसे लगा की कोई खड़ा है मोहन उधर गया तो उसने देखा की एक लड़की उसकी तरफ ही देख रही है मोहन ने जैसे ही उसे देखा एक पल को तो वो उसके रूप में खो सा ही गया इतनी सुंदर लड़की उसने अपने जीवन में आज से पहले कभी नहीं देखि थी चांदी सा रूप उसका एक अलग ही आभा दे रहा था


लड़की- बंसी तुम ही बजा रहे थे


मोहन-हां


वो- अच्छी बजाते हो


मोहन- तुम कौन हो इस बियाबान में क्या कर रही हो


वो- बकरिया चराने आई थी


मोहन- ओह! अच्छा


वो- पानी पियोगे


मोहन-हाँ


उस लड़की ने अपनी मश्क मोहन की तरफ बढाई मोहन ने उसे खोला और एक भीनी भीनी सी खुसबू उसकी सांसो में समाने लगी उसने कुछ घूँट पानी पिया ऐसा लगा की वो पानी ना होकर कोई शरबत हो इतना मीठा पानी मोहन ने कभी नहीं पिया था एक बार जो उसने वो स्वाद चखा खुद को रोक नहीं पाया पूरी मश्क खाली कर दी उसने


मोहन- माफ़ करना मैं सारा पानी पि गया


वो-कोइ बात नहीं प्यास बुझी ना


मोहन- हाँ


वो- थोड़ी आगे एक पानी का धौरा है अपने पशुओ को वहा पानी पिला लेना


ये बोलके वो चलने लगी


मोहन- जी अच्छा


मोहन ने अपने पशुओ को उस लड़की की बताई दिशा में हांका और वहा सच में एक पानी का धौरा था अब मोहन थोडा चकित हुआ इधर से तो वो कई बार गुजरा था पर उसे कभी ये नहीं दिखा था और वो भी जब नदी सुखी पड़ी थी तो ये धौरा कहा से आया फिर उसने अनुमान लगाया की शायद उसकी नजर में कभी आया नहीं होगा पशुओ ने खूब छिक के पानी पिया उसने भी थोडा और पानी पिया अब हुई उसे हैरत पानी बिलकुल वैसा ही जसा उस लड़की ने उसने पिलाया था


पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया वो वापिस उसी कीकर के पेड़ के नीछे आया और फिर से छेड़ दी बंसी की तान एक बार जो वो बंसी बजाने लगा तो फिर वो ऐसा खोया की उसे समय का कोई ध्यान रहा ही नहीं सांझ ढलने में थोड़ी देर थी की उसकी तन्द्रा एक आवाज से टूटी


“ओ चरवाहे, ये बंसी तू ही बजा रहा था क्या ”

मोहन उठ खड़ा हुआ बोला- जी हुकुम कोई गुस्ताखी हुई क्या


आदमी- चल इधर आ


कपड़ो से वो आदमी शाही सैनिक लग रहा था अब मोहन घबराया पर फिर उस आदमी के पीछे चल पड़ा थोड़ी दूर जाने पर उसने देखा की ये तो शाही काफिला था मोहन ने सभी लोगो को परनाम किया और फिर एक गाड़ी से एक महिला उतरी , जैसे ही मोहन ने उसकी तरफ देखा उसकी आँखे सौन्दर्य की पर्कास्त्ठा से चोंध गयी आज दिन में ये दूसरी बार था जब मोहन ने ऐसी सुन्दरता देखि थी ,ये इस रियासत की सबसे बड़ी महारानी संयुक्ता थी


“महारानी की तरफ नजर करता है गुस्ताख ”एक सैनिक ने कोड़ा फटकारा मोहन को वो दर्द से चीखा


“रुको सैनिक ”


महारानी मोहन के पास आई और बोली- तो तुम वो संगीत बजा रहे थे


मोहन- गुस्ताखी माफ़ रानी साहिबा गलती हो गयी


रानी- गलती कैसी कितनी मिठास है तुम्हारी बंसी की आवाज में हम यहाँ से गुजर रहे थे पर इस मधुर तान ने हम विवश कर दिया रुकने को क्या नाम है तुम्हारा और कहा के रहने वाले हो


“जी, मेरा नाम मोहन है और मैं सपेरो के डेरे में रहता हु, वहा के मुखिया चंदर का बेटा हु ”

रानी- सपेरा होकर बंसी की ऐसी मधुर तान कमाल है


वो- जी पिताजी तो बहुत गुस्सा करते है पर मेरे हाथो को बीन की जगह बंसी ही भाति है


रानी संयुक्ता को मोहन की भोली बाते बहुत अच्छी लगी वो थोडा मोहन के और पास आई और उसके बलिष्ठ शरीर को गहरी नजर से देखते हुए बोली – हम कुछ दिन के लिए जंगल के परली तरफ वाले हिस्से में रुके है आज से ठीक तीन दिन बाद तुम वहा आना हमे तुम्हारी बंसी सुनने की इच्छा है


अब मोहन की क्या औकात थी जो वो महारानी को मना कर सके संयुक्ता ने मोहन को आदेश दिया और फिर काफिला अपनी मंजिल की और बढ़ने लगा मोहन ने अपने पशुओ को इकठ्ठा किया और डेरे की तरफ चल पड़ा रस्ते भर ये सोचते हुए की अगर उसका संगीत सुनकर रानी खुश हो गयी तो उसका तो जीवन ही संवर जायेगा , वो डेरे पंहुचा , डेरा था बंजारे सपेरो का गाँव था छोटा सा पच्चीस तीस से ज्यादा घर नहीं थे मोहन ने हाथ मुह धोये और तभी उसकी बड़ी बहन उसके गले आ लगी
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »

“भाई आज आने में बड़ी देर हुई तुम्हे ” चकोर भाई के सीने से लगे हुए बोली

चकोर के मोटे मोटे चुचे मोहन के सीने में घुसने लगे वो बहन की छातियो को महसूस करने लगा तभी चकोर उस से दूर हो गयी और बोली- भाई जल्दी आओ तुम्हे कुछ दिखाती हु

मोहन उसके पीछे चल पड़ा अपनी मस्ती में मस्त चकोर अपने भाई के आगे आगे इठलाते हुए चल रही थी और मोहन चाहकर भी अपनी नजर उसके मदमस्त नितम्बो से हटा नहीं पा रहा था इस ग्लानी के साथ की वो उसकी बहन है पर ये योवन की खुमारी उसके सोचने समझने की योग्यता को कम रही थी चकोर एक 21 साल की यौवन से भरी हुई लड़की थी रंग सांवला कटीले नैन नक्श बड़ी बड़ी आँखे बड़ी बड़ी छातिया पतली कमर और थोड़े से चौड़े नितम्ब

जल्दी ही वो चलते चलते रुक गयी ये एक छोटी सी बागवानी थी जिसे चकोर ने लगाया था

“भाई देखो फूल आने शुरू हो गए है ”

“हाँ, जीजी ”

ऐसा नहीं था की मोहन क अपनी बहन से स्नेह नहीं था पर उसके दिमाग में इस समय बस रानी साहिबा की कही बाते चल रही थी तीन दिन बाद उसे वहा जाना था चकोर पूरी बगीची में घूम घूम कर मोहन को बाते बता रही थी और तभी उसका पाँव गीली मिटटी में फिसला पर मोहन ने उसको अपनी मजबूत बाँहों में थाम लिया उसकी छातिया फिर से मोहन के कठोर सीने से टकराई और मोहन के हाथ चकोर के नितम्बो पर कस गए चकोर के होंठो से एक आह निकली और आज पहली बार उसे अपने भाई की जगह किसी पर पुरुष का स्पर्श महसूस हुआ


शरमाते हुए वो मोहन की बाहों से निकली फिर दोनों भाई बहनों में कोई बात नहीं हुई वैसे भी आज मोहन मोहन नहीं था उसके दिमाग में बस रानी संयुक्ता का सुंदर चेहरा घूम रहा था ऐसी सुंदर स्त्री उसने कभी नहीं देखि थी पर आईएनएस अब बातो में वो उस लड़की को भूल गया था जिसने उसे पानी पिलाया था रात हो गयी थी वो पेड़ न निचे आराम कर रहा था तभी चकोर आई

“भाई मेरे साथ जरा कुवे पर चल मुझे नहाना है ”

“पर जीजी मैं आपके साथ क्या करूँगा ”

“पानी खीच देना और फिर वैसे भी अँधेरा ज्यादा है तू चल ”

मोहन और चकोर कुवे पर पहुचे जो डेरे से थोड़ी दूर था , मोहन ने चकोर के लिए पानी खीचा और पास में ही बैठ गया ठंडी हवा चल रही थी रात को अक्सर मोसम ठंडा हो जाता था चारो तरफ चाँद की रौशनी छिटकी पड़ी थी चकोर ने नहाना शुरू किया उसने अपनी चोली उतारी और घागरे को ऊपर खीच लिया वो अपनी मस्ती में नहा रही थी काफी देर हुई मोहन बोला- और कितनी देर जीजी

“बस हो गया ”

ये सुनते ही मोहन चकोर की तरफ पलता और तभी चकोर के हाथ से घागरे की डोर छुट गयी घागरा उसके पैरो में आ गिरा और साथ ही मोहन ने अपने जीवन में पहली बार किसी को नंगी देख दिया उसकी आँखे जैसे चकोर के बदन पर ही जम गयी उसके उन्नत जिस्म का पूरा अवलोकन कर लिया लाज के मारे चकोर शरमाई और जल्दी से घागरे को ऊपर किया मोहन ने अपना मुह फेर लिया फिर पुरे रस्ते दोनों ने कोई बात नहीं की

रात को दोनों भाई बहन की आँखों में नींद नहीं थी चकोर उस स्पर्श के बारे में सोच रही थी जब उसके भाई ने उसके नितम्ब को कस के दबाया था और फिर उसको कुवे पर निर्वस्त्र देख लिया था जबकि मोहन खोया था संयुक्ता की सुन्दरता में वो सोचने लगा की रानी साहिबा जैसे कोई गुलाब का टुकड़ा हो कितनी गुलाबी गोरी रंगत थी उनकी और सबसे बड़ी बात उन्होंने उसकी कला को पसंद किया था जिस बंसी के पीछे उसके पिता ने खूब मारा था उसको एक रानी ने उसी कला को पहचाना था उसी कला के पर्दशन हेतु उसे बुलाया था

इधर चकोर अपने भाई के बारे में सोचते हुए धीरे धीरे अपने उभारो से खेलने लगी थी उनमे एक कडापन आने लगा था उसकी टांगो के बीच गीलापन बढ़ने लगा था क्या वो उत्तेजित हो रही थी वो भी अपने ही भाई के बारे में सोच कर चकोर को थोडा गुस्सा भी आने लगा था पर उसके जिस्म में जो अहसास हो रहा था वो उसको अच्छा भी लग रहा था एक अजीब सा सुख मिल रहा था उसे जब वो अपने भाई के बारे में सोच रही थी रात आँखों आँखों में कट गयी दोनों की


इधर सुबह मोहन के पिता किसी काम से डेरे से बाहर चले गए तो मोहन को यहाँ ही रह जाना पड़ा अब उसका मन लगे ना डेरे में क्योंकि यहाँ वो बस खुद को कैदी ही समझता था उसका पिता चाहता था को वो उनकी तरह एक काबिल सपेरा बने पर उसका मन तो बस अपनी बंसी की तान में लगता था अब कैसे वो ये बात घरवालो को समझाए खैर खाना खाने के बाद मोहन ने पानी पिया तो उसे उस लड़की की याद आई नजरे बचा कर वो डेरे से बहार निकला और ठीक उसी जगह पहुच गया वो ही समय था उसने इधर उधर तलाश की पर वो लड़की ना दिखी


दिखती भी कैसे अब चरवाहों का तो यही काम कभी इधर चले गए कभी उधर चले गए पता नहीं क्यों मोहन को लग रहा था की वो उसे जरुर मिलेगी पर हाथ निराशा ही लगी तो थक कर वो उसी कीकर के निचे बैठ गया और बंसी बजाने लगा यही बंसी तो उसका एक मात्र खिलौना थी , करीब घंटा भर हुआ अब मोहन चला वापिस पर तभी उसने सोचा एक नजर फिर से देख लू और तभी उसे वही लड़की उधर ही दिखी
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by NISHANT »

VERY NICE
UPDATE PLEASE
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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मोहन उसकी तरफ बढ़ा , वो उसे देख कर मुस्कुराई

वो-प्यास लगी है

मोहन- हां

उसने फिर अपनी मश्क मोहन की तरफ की मोहन ने पानी पिया इस उजाड़ बियाबान में एक बार फिर से वो ठंडा शरबत से मीठा पानी उसके कलेजे को तर गया बर्फीला सा वो पानी वो भी राजस्थान की धरती पर पर एक बार जो मोहन के होंठो से वो पानी लगा फिर मश्क ही खाली हुई

वो लड़की मोहन को देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी मोहन भी मुस्कुरा दिया

लड़की- आज बकरिया नहीं लाये

वो- नहीं सच कहू तो बस तुमको ही देखने की आस थी तो

लड़की- मुझे देखने को वो क्यों भला

मोहन- पता नहीं बस ऐसे ही पर एक बात पूछनी है

लड़की- हां पूछो

मोहन- ये इतना ठंडा पानी तुम कहा से लाती हो और इतना मीठा

लड़की ने दूर पहाड़ो की तरफ इशारा किया

मोहन- अच्छा तो तुम वहा रहती हो

लड़की- हां

मोहन- पर वो जगह तो यहाँ से बहुत दूर है तुम अकेली कैसे आ जाती हो

वो- बस आ जाती हु

मोहन – नाम जान सकता हु

वो- मोहिनी

पता क्यों वो दोनों ही मुस्कुरा पड़े जब मोहिनी हंसी तो ऐसा लगा की जैसे सारी कायनात मुस्कुरा पड़ी हो कहने को तो भरी दोपहर थी पर अब आस पास छाया हो चली थी जिसका आभास मोहन को कतई नहीं था मोहिनी बहुत सुंदर थी उसकी हरी आंखे उसका रंग किसी चांदी की तरह चमकता था

मोहिनी- क्या तुम मुझे बंसी बजा के सुनाओगे

मोहन- ये भी कोई कहने की बात है

मोहन वही जमीन पर बैठ गया और उसने एक तान छेड़ थी एक बहुत ही मीठी सी तान मोहिनी पर जैसे जादू सा होने लगा धड़कने बधी वो खोने लगी मोहन के संगीत में पर तभी उसकी तन्द्रा टूटी वो बोली- मोहन अभी मुझे जाना होगा मैं फिर कभी मिलूंगी तुमसे
अब मोहन क्या कहता बस अपना सर हिला दिया उसने मोहिनी अपने रस्ते बढ़ गयी वो भी डेरे की और चल दिया

दूर कही,

“ओह राजाजी आहा आः और जोर से और जोर से आह मैं मरी मरी रे ”

संयुक्ता महाराज चंद्रभान के साथ सम्भोग में लिप्त थी उसकी दोनों टाँगे महाराज के कंधे पर थी और महाराज पूरा जोर लगाते हुए उस काम सुन्दरी को जन्नत की सैर करवा रहे थे रानी जोर जोर से चिल्ल्ला रही थी मस्ती के मारे महाराज का लंड उसकी चूत की धज्जिया उड़ाते हुए उसे ले चला था एक जाने पहचाने असीम आनंद की तरफ

“ओह रानी आप बेहद ही कामुक हो ”

“”और जोर से महाराज और जोर से “

संयुक्ता के उन्नत उभार हर धक्के के साथ बुरी तरह से झूल रहे थे महारज की बाँहों में वो बुरी तरह से पिस रही थी मस्ती के मारे उसका रोम रोम झूम रहा था आँखे बंद थी चंद्रभान उसकी चूचियो को बेरहमी से मसल रहे थे उनकी वजह से रानी की दोनों छातिया सुर्ख लाल हो गयी थी रानी भी निचे से बार बार अपनी गांड को उठा उठा कर महाराज का पूरा साथ दे रही थी संयुक्ता बिस्तर पर इस कदर कामुक हो गयी थी की जैसे महाराज के जोश की बूँद बूँद ही निचोड़ डालेगी


महाराज धक्के पे धक्के लगते हुए रानी को आनंदित कर रहे थे पर हर धक्के के साथ जैसे रानी की प्यास और बढती जा रही थी और इस से पहले की वो अपने चरम पर पहुच पाती महाराज चंद्रभान गहरी सांस लेते हुए ढेर हो गए और बगल में लेट गए
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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संयुक्ता ने चंद्रभान की तरफ देखा अपनी जलती निगाहों से एक बार फिर से उन्होंने अपनी रानी को बीच राह में ही छोड़ दिया था पर हर बार की तरह आज वो अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाई और बोली- क्या हुआ महाराज आजकल आपमें पहले जैसा दम नहीं रहा हमारी प्यास नहीं बुझा पाते है आप

महाराज को ये बाते तीर की तरह चुभी पर वो शांत स्वर में बोले – संयुक्ता कोई आम औरत हो तो वो हमारे आगे पानी मांगती है पर आप हद से ज्यादा कामुक है

आपको शांत करना इस धरती के किसी इन्सान के बस की नहीं और बढती हुई उम्र के बावजूद आपकी कामुकता बढती जा रही है अब आपको देख कर कौन कह सकता है की आप दो बच्चो की माँ है आपके लिए उम्र तो जैसे थम ही गयी है

संयुक्त- अब आप बातो की जल्लेबी ना उतरिये यु रोज रोज हमे प्यासा छोड़ना ठीक नही है गुस्से से तम्ताते हुए उसने कहा और फिर वो शिविर से बाहर निकल गयी

मन ही मन महाराज को हजारो गलिया बकते हुए संयुक्ता तालाब के पानी में उतर गयी पर जिस्म की इस प्यास को चैन नहीं मिला मिले भी तो जैसे बल्कि ये ठंडा पानी उस अगन को और भड़का रहा था जिसको महाराज ने अधुरा छोड़ दिया था उस शांत तालाब में खड़ी संयुक्ता जल रही थी उस अगन में जिसे वो पानी बुझा नहीं सकता था हार कर उसने अपनी उंगलियों से अपनी योनी को सहलाना शुरू किया हर बार की तरह

धीरे धीरे वो उन्माद संयुक्ता पे हावी होने लगा उसके आँखे बंद होने लगी और बदन कांपने लगा एक, दो फिर तीन उंगलिया उसने अपनी योनी में घुसेड ली थी उसका हाथ बहुत तेजी से चल रहा था अपनी आहों को मुह में ही दबाते हुए महारानी अपने आप को शांत करने की भरपूर कोशिश कर रही थी पर इस समय उन्हें उंगलियों की नहीं बल्कि एक लंड की आवश्यकता थी

एक ऐसे मर्द की आवश्यकता थी जो उनको अपनी मजबूत बाँहों में पीस डाले रौंद डाले उनके सम्पूर्ण अस्तित्व को कोई ऐसा जो उनकी इस अधूरी प्यास को बादल बन कर बरसा दे

अपने ख्यालो में गुम महारानी अपने हाथ को तेजी से चलाते हुए झड़ने लगी और फिर निढाल होकर तालाब के किनारे पड़ गयी बहुत देर तक वो आँखे बंद किये नंगी ही गीली मिटटी में लेटी रही तन कुछ देर के लिए शांत अवश्य हो गया था पर मन की प्यास अभी बाकी थी

रात अपने अपने हिस्से में कट रही थी इधर संयुक्ता अपनी अगन में जल रही थी उधर मोहन के दिलो दिमाग पे मोहिनी छाई हुई थी कैसे उसने बड़ी ही शालीनता से मोहन से बात की थी कैसे वो मीठा पानी उसके लिए वो इतनी दूर से लाती थी आँखों आँखों में रात कट रही थी पर नींद थी की जैसे किसी प्रेमिका की तरह रूठ ही गयी थी मोहन का जी तो कर रहा था की दौड़ कर मोहिनी की पास चला जाए उसे ऐसे लग रहा था की जैसे वो अभी भी वही होगी दिमाग में हज़ार ख्याल आये उसे हार कर वो बिस्तर से उठा और जाके शिव मंदिर की सीढियों पर जा बैठा

अब मन को समझाए भी तो कैसे मन बावला मन चंचल हुआ बार बार भटके जितना उसको काबू करे उतना ही वो भटके मनमानी करे अपनी खैर रात थी कट ही गयी सुबह सूरज ने दस्तक दी

“भाई , माँ ने कहा है की जंगल से कुछ जड़ी बूटिया लानी है अब ढूँढने में पता नहीं कितना समय लगे तो तू मेरे साथ चल ”आँखे मटकाते हुए चकोर ने मोहन से कहा

मोहन का जरा भी मन नहीं था माँ के कहे को टाल भी तो नहीं सकता था वो दोनों भाई बहन चल पड़े जंगल की और दरअसल आजकल मोहन अपनी बहन से थोडा दूर रहने की पूरी कोशिश करता था शायद ये एक झिझक थी जवानी थी या फिर शर्म थी की वो अपनी बहन के प्रति आकर्षित होता जा रहा था चकोर अपने स्वाभाव अनुसार चुहलबाजी करते हुए जा रही थी कुछ जड़ी बूटिया मिल गयी थी कुछ नहीं तो खोजते खोजते वो जंगल में काफी अन्दर तक आ गए थे


और तभी एक कन्दरा के पास चकोर को एक पानी का झरना दिखा जिसे देखते ही उसका मस्तमौला स्वभाव जाग उठा वो चहकते हुए बोली- भाई देख झरना मैं तो जा रही हु नहाने इस से पहले मोहन कुछ कहता चकोर भागी झरने की और मोहन वही रह गया अब नहाना भी था और कपडे भीगने का भी डर था तो चकोर ने अपने सारे कपडे पास में रखे और नंगी ही पहुच गयी झरने के निचे

उसका यौवन और खिल गया जैसे हु उसने अपने बदन को रगडा उसका हाथ उसकी छातियो पर आया उसे मोहन का वो मजबूत स्पर्श याद आ गया मारे लाज के वो खुद से ही शर्मा गयी

उसने कुछ सोचा और फिर आवाज दी – मोहन आजा तू भी नहा ले

मोहन – जीजी आपके सामने मैं कैसे नहा सकता हु

चकोर- मेरे सामने क्यों नहीं नहा सकता मैं क्या कोई पराई हु क्या मैंने कभी तुझे नहाते हुए नहीं देखा चल आजा तेरी थकान भी उतर जाएगी देख मैं बड़ी हु तुझे मेरा कहना मानना ही पड़ेगा तू आजा

मोहन- पर जीजी , आप समझो जरा मैं आपके आगे कैसे निर्वास्त्र होके

चकोर- मैं यहाँ हु तू थोडा सा दूर नहाले ऐसा है तो

मोहन को चकोर की ये बात जंच गयी थोड़ी दूरी पर ही झरने का पानी इकठ्ठा हो रहा था उधर मोहन नहाने लगा इधर चकोर पूरी मस्ती से ठन्डे पानी का मजा ले रही थी अठखेलिया कर रही थी पर यही उसे भारी पड़ गया उसका पाँव एक चिकने पत्थर पर पड़ा

और वो कुलहो के बल चट्टान से टकराई और उसकी चीख गूंजी बहन की चीख सुन कर मोहन घबराया और नंगा ही चकोर की और भागा देखा तो चकोर पड़ी थी दर्द में कहारती हुई पर उसका ध्यान दर्द से हाथ कर अपनी बहन के गुदाज जिस्म पर था

“आह, भाई उठाओ मुझे ”

“मैं कैसे इस निर्वस्त्र अवस्था में ”

चकोर- इधर मेरी टांग टूट गयी है तुझे शर्म लिहाज की पड़ी है उठाना मुझे

मोहन जैसे ही आगे को हुआ चकोर की नजर उसके लंड पर पड़ी जो उसकी दोनों टांगो के बीच झूल रहा था किसी केले की तरह उसकी निगाह वही जम गयी उफ्फ्फ भाई कितना बड़ा हथियार है तुम्हारा थो मोहन ने चकोर की बगल में हाथ डाला और उसे उठाने लगा तभी उसकी कोहनी चकोर की छाती से टकराई चकोर ने एक गहरी आह भरी

मोहन ने उसको गोद में उठाया तो उसका लंड बहन के नितम्बो से रगड़ खा गया दोनों के बदन में सुरसुराहट हो गयी मोहन उसे साफ जमीन पर ले आया चकोर को उसे पेड़ के सहारे बिठा दिया पर दर्द बहुत था उसको

मोहन- कहा चोट लगी

वो- कुल्हे पर लगी है तुम देखो जरा

अब मरता क्या ना करता मोहन चकोर पेड़ का सहारा लेकर उसकी तरफ पीठ करके हो गयी उसके भारी भरकम तरबूज जैसे कुल्हे मोहन की आँखों के सामने थे

चकोर- हाथ लगा कर देखो जरा कही कुल्हे की हड्डी तो नहीं टूट गयी जोड़ से

मोहन ने बहन के चूतडो को छुआ तो उसे भी एक अलग एहसास हुआ रुई से भी ज्यादा मुलायम चकोर के नितम्ब और बीच में वो दरार उसने दोनों हाथो से कुलहो को फैलाया तो उसे गांड का छेद और चूत दोनों नजर आने लगे मोहन के माथे से पसीना बह चला उसके लंड ने एक झटका खाया और उसका लंड तन गया

इधर चकोर को एक सुक्कून सा मिला जब मोहन उसके चूतडो को दबाने लगा उसकी चूत बहने लगी जिस से आपस में चिपकी दोनों टाँगे गीली होने लगी वो थोडा सा आगे को हुआ और उसका लंड चकोर की गांड की दरार से टकरा गया चकोर के जिस्म में जैसे बिजलिया से दौड़ पड़ी

और तभी शायद चकोर के पैर में किसी चींटी ने काटा तो वो थोडा सा पीछे को हुई और ऐसा करते हु मोहन का लंड उसकी गांड की दरार में अच्छी तरह से फिर हो गया चकोर के बदन में एक रोमांच सा दौड़ गया

“जीजी ”

“श्हश्श्स चुप रहो “
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