Incest -प्रीत का रंग गुलाबी complete

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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Akki wrote:mazedar story

update

thanks bro update in next post
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »

बस एक झटका और चकोर की चूत खिल जानी थी पर तभी किसी की आवाज को मोहन के कानो ने सुना और पल भर में वो समझ गया उसने अपनी धोती पहनी और भागा बाहर की और , राजमहल से सैनिक आये थे उसे बुलाने राजकुमारी दिव्या ने तुरंत उसे बुलवाया था चकोर की आँखों में आग देखि उसने पर उसका जाना जरुरी था तो वो निकल गया महल के लिए



इधर राजकुमार पृथ्वी डूबा था संगीता के ख्यालो में अपनी छोटी माँ के रूप का दीवाना होता जा रहा था वो बस एक बार संगीता के गुलाब की पंखुडियो से होंठो को छू लेना चाहता था वो एक बार उसकी उस प्यारी सी चूत को निहारना चाहता था पर कैसे कैसे कहे वो संगीता से अपने मन की बात आखिर मर्यादा का मान भी तो रखना था उसको



पर ये जिस्म की आग रिश्तो की मर्यादा को झुलसा देने वाली थी, दिव्या बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी मोहन का और जैसे ही मोहन उसके कमरे में गया जब लोक लाज भूल कर वो मोहन से लिपट गयी अब मोहन क्या बोले चुप ही रहा



दिव्या- ओह मोहन तुम कहा चले गए थे तुम्हारे बिना मेरा मन एक पल भी नहीं लगता



मोहन- घर जाना भी तो जरुरी है राजकुमारी



दिव्या- कितनी बार कहा है हमे सिर्फ दिव्या कहा करो



मोहन- जी



दिव्या- मोहन हमे तुमसे कुछ कहना है



मोहन- जी आदेश



वो- आदेश नहीं निवेदन



मोहन- कैसा निवेदन



वो- हम प्रेम करने लगे है तुमसे मोहन



प्रेम एक राजकुमारी का एक बंजारे के साथ क्या कहेगी दुनिया और क्या सोचेंगे राजाजी , मोहन तो खुद किसी और का हो चूका था अब दिव्या ने इजहारे मोहब्बत कर दिया था अब मोहन क्या जवाब दे बस चुपचाप खड़ा रहा



दिव्या- चुप क्यों हो मोहन, क्या तुम भी हमसे प्यार नहीं करते



मोहन- राजकुमारी जी, ये ठीक नहीं है



वो- क्या ठीक नहीं है मोहन , तुम एक बार हां, तो कहो तमाम सुख तुम्हारे कदमो में होंगे


मोहन- राजकुमारी जी, बात वो नहीं है दरअसल मैं स्वयम किसी और को अपना दिल दे चूका हु अब उसको ना कैसे कहू



दिव्या- हम तुम्हारा संदेसा उसको भिजवा देंगे



मोहन- आप मेरे प्राण मांग लीजिये एक पल में न्योछावर कर दूंगा पर आपसे प्रेम मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता



दिव्या- मोहन क्या कमी है मुझमे, क्या मैं सुंदर नहीं अगर तुम्हे कोई कमी लगती अहि तो मुझे बताओ पर मेरे प्रेम को ना ठुकराओ



मोहन- आपके प्रेम का मैं सम्मान करता हु पर मैं किसी और का हो चूका हु



अब दिव्या को गुस्सा आया बोली- तो अभी वो मोहिनी इतना इतराती ही



तो क्या दिव्या को पता था मोहिनी के बारे में , हां पता होगा तभी तो कह रही है सोचा मोहन ने



मोहन- आपको जब सब पता है तो फिर आप समझिये जरा



दिव्या- तुम समझो मोहन



मोहन- मैं क्षमा चाहूँगा



मोहन पलटा और दिव्या चीखी- मोहन तुम बस मेरे हो बस मेरे किसी और का नहीं होने दूंगी मैं



अब वो क्या जाने वो तो हो चूका किसी और का प्रीत का गुलाबी रंग चढ़ चूका था मोहन पर पहले ही अब तो बस फाग खेलना था उसे पर फाग में रंग प्रीत का बिखरना था या जुदाई का ये देखना बाकी थी ये प्रेम की कैसी परीक्षा होनी थी जिसमे झुलसना सबको था



पृथ्वी आधी रात को जा पंहुचा संगीता के पास



“पुत्र, तुम इस समय”


“माँ, एक परेशानी ने घेरा है समझ नहीं आ रहा की क्या करू तो आपके पास आ गया ”


अब संगीता तो जानती ही थी की पृथ्वी को क्या परेशानी है वो बस मुस्कुराई बोली- कोई बात नहीं हमारे पास सो जाओ



“आपके पास कैसे ”


“एक माँ के साथ सोने में पुत्र को कैसी शर्म ”


“पुत्र को तो कोई दिक्कत नहीं माँ, पर मेरे अंदर एक नीच इंसान है जो अपनी माँ से ही प्रेम कर बैठा है उसका क्या ”
संगीता- मैं जानती हु पुत्र की तुम्हारे मन में क्या द्वन्द चल रहा है और मैं उसे गलत भी नहीं मानती बेशक हम रिश्तो की बेडियो से जकड़े हुए है पर हमारे सीने में एक दिल धडकता है और फिर प्रेम कहा किसी में भेद भाव करता है हम जानते है की तुम हमे चाहने लगे हो

और अब हमे भी तुम्हारा ये प्रेम स्वीकार है पर पृथ्वी ये प्रेम का अंकुर बस हम दोनों के मन में ही रहना चाहिए
संगीता तो चाहती ही थी और अब वो इसमें और देर नहीं करना चाहती थी कितनी आसानी से उसने पृथ्वी की तमाम मुश्किलों को सुलझा दिया था वो बिस्तर से उतर कर पृथिवी के पास आई और अपने रसीले होंठो को उसके होंठो से जोड़ दिया माँ बेटे का रिश्ता अब पति-पत्नी का होने वाला था



संगीता पृथ्वी के होंठो का पूरा मजा ले रही थी पल पल दोनों के जिस्मो से वस्त्र कम होते जा रहे थे और कुछ पलो बाद दोनों नंगे थे पृथ्वी ने संगीता को अपनी गोद में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया संगीता भी किसी से कम नहीं थी पृथ्वी का लंड संगीता की चूत से टकरा रहा था संगीता ने उसे अपने हाथो ने ले लिया



इधर पृथ्वी संगीता की चूचियो पर टूट पड़ा था और उनके गुलाबी निप्पल को चूसने लगा था संगीता के तन बदन में बिजलिया दौड़ने लगी थी चूत का गीला पण बढ़ गया था , इधर पृथ्वी पहली बार किसी औरत के सम्पर्क में आया था पर ये खेल किसी को आता नहीं सब अपने आप ही सीख जाते है




दोनों छातियो कठोरता से भर चुकी थी अब पृथ्वी संगीता के चिकने पेट को चाट रहा था और धीरे धीरे उसकी चूत की तरफ बढ़ रहा था संगीता अपने आँखे बंद किये उस लम्हे का इंतज़ार कर रही थी जब पृथ्वी के होंठ उसकी चूत को छुएंगे
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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और संगीता को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा , कुछ ही देर बाद उसने पृथ्वी की सांसो की गर्मी अपनी चूत पर महसूस की संगीता के बदन में खुमारी दौड़ गयी छोटी माँ की चिकनी जांघो को सहलाते हुए पृथ्वी ने अपने चेहरे को आगे की तरफ किया और संगीता की मुलायम चूत की फानको को अपने होंठो से लगा लिया

संगीता के बदन में तरंग दौड़ गयी और अगले ही पल उसकी छोटी की चूत को पृथ्वी ने अपने मुह में किसी रस गुल्ले की तरह भर लिया था

“उफ्फ्फ ” एक आह उसके मुह से निकली

जैसे ही चूत का खारा पानी का स्वाद पिथ्वी को लगा उसे बड़ा मजा आया और उसकी जीभ ने छोटी माँ की चूत के दाने को छू लिया संगीता बिस्तर पर जल बिन मछली की भांति मचल रही थी कभी चादर को उंगलियों से मरोड़े तो कभी अपने उभारो को दबाये जैसे जैसे संगीता की सिस्कारिया बढ़ रही थी पृथ्वी और तेजी से अपनी जीभ चला रहा था

अब संगीता टूटने लगी थी उसके चुतड अपने आप ऊपर को होने लगे थे वो अपने हाथो से पृथ्वी के सर को अपनी चूत पर दबा रही थी मस्ती में चूर संगीता अपने पुत्र सामान पृथ्वी से रास रचा रही थी पर वो ऐसे ही झाड़ना नहीं चाहती थी तो उसने राजकुमार को अपनी चूत से हटा दिया

पृथ्वी छोटी माँ का इशारा समझ गया था उसने मुस्कुराते हुए अपने लंड को संगीता की चूत पर रखा और उसे वहा पर रगड़ने लगा

“ओह पुत्र, कितना तडपाओ गे मुझे अब विलम्ब ना करो बस जल्दी से मुझे अपना बना लो ना ”

पृथ्वी को और क्या चाहिए था उसने अपने लंड का दाब संगीता की चूत पर बढाया और उसका सुपाडा अन्दर को धंसने लगा संगीता ने एक आह भरी और अपनी टांगो को चौड़ा करते हुए पृथ्वी के लंड को रास्ता दिया कुछ ही देर में पूरा लंड अन्दर था और पृथ्वी पूरी तरह से उसके ऊपर छा चूका था

दोनों के होंठ एक दुसरे के साथ गूंथे हुए थे एक दुसरे के थूक का रस पान कर रहे थे वो संगीता बार बार अपने चुतड ऊपर कर कर के मजा ले रही थी इधर पृथ्वी ताबड़तोड़ धक्के मारते हुए छोटी माँ को वो ख़ुशी दे रहा था जिसे उसके पिता नहीं दे पाए थे संगीता की चिकनी चूत में पृथ्वी का घोडा बेलगाम दौड़ रहा था

फच फच की आवाज से पूरा कमरा भर गया था पर संगीता की प्यासी चूत हर धक्के के साथ हु और नशीली होते जा रही थी संगीता के बाल बिखर गए थे बदन पसीने में नहाया हुआ था पर चूत की आग इस कदर भड़की हुई थी की वो बस घनघोर चुदाई की बारिश से भी त्रप्त हो सकती थी

और पृथ्वी भी चुदाई के प्रत्येक पल को भरपूर तरीके से जी रहा था किसी पागल सांड की तरह वो संगीता पे चढ़ा हुआ था उसका
लंड बहुत तेजी से अन्दर बहार हो रहा था संगीता की चूत का रस ऐसे बह रहा था जैसे की किसी नदी में बाढ़ आ गयी हो पल पल वो चुदाई की मस्ती को पाने की दिशा में बढ़ रही थी

और उसकी नाव को पार लगाने के लिए पृथ्वी उसका खाव्व्या बना हुआ था , एक मस्त चुदाई के बाद संगीता बुरी तरह इ झड रही थी उसकी चूत ने लंड को अपने आगोश में कस लिया और चूत की इस गर्मी को पृथ्वी बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसके लंड ने भी अपना पानी छोड़ दिया

उस पूरी रत दोनों ने खूब चुदाई की सुबह जब अन्गीता की आँख खुली तो पृथ्वी वहा पर नहीं था पर संगीता की बिस्तर से उठने की जरा भी हिम्मत नहीं थी पूरा बदन ताप रहा तह जैसे की बुखार चढ़ा हो उसने अपनी चूत पर हाथ लगा के देखा उसमे तीस उठ रही थी पर उसके होंठो पर एक मुस्कान थी

दूसरी तरफ

केवट- मोहिनी हमे तुमसे कुछ बात करनी है

मोहिनी- जी पिताश्री

केवट- हमने सोचा है की तुम्हारा विवाह कर दिया जाए

अब मोहिनी थोड़ी परेशां हुई क्या करे पिता को क्या कहे, पिता की चिंता भी जायज थी पर वो तो किसी और की हो चुकी थी अपना दिल दे चुकी थी मोहन को पर लाज भी थी तो पिता से अब क्या कहती

केवट- हमने सोचा है शिवरात्रि के पवन अवसर पर तुम्हारा स्वयम्वर रखा जाए

मोहिनी- पिताश्री, अभी मैं विवाह के लिए तैयर नहीं हु

केवट- पर कब तक पुत्री

वो- जब तक मेरा मन राज़ी ना होगा

केवट- पर पिता की इच्छा का क्या मान

वो- और मेरी कोई इच्छा नहीं पिताश्री

केवट---- अवश्य है पुत्री, पर बताओ तो सही

वो- मुझे किसी से प्रेम है

केवट- हमे ख़ुशी है की हमारी पुत्री ने खुद अपने लिए वर चुन लिया है तुम हमे उसका नाम बताओ ताकि हम तुम्हारे विवाह के लिए उसके घर वालो से बात कर सके

मोहिनी- पिताश्री

केवट- कहो पुत्री

मोहिनी- पिताश्री, मुझे एक मनुष्य से प्रेम है

एक पल को केवट को लगा की उसके कानो ने कुछ गलत सुन लिया है उसने फिर पुछा और मोहिनी का यही जवाब था की उसे एक मनुष्य से प्रेम है अब केवट को आया क्रोध

मोहिनी , होश में तो हो तुम क्या बोल रही हो, अपनी सीमा में रह कर बात करो

मोहिनी- प्रेम की कोई सीमा नहीं पिताश्री


केवट- और इस पाप का दंड भी ज्ञात होगा तुम्हे

वो- प्रेम ही ज्ञात है मुझे तो बस

केवट- बस बहुत हुआ, हमारा आदेश है आज के बाद तुम बस यही रहोगी यहाँ से एक पल भी बाहर नहीं जाउंगी

मोहिनी- जाउंगी

केवट- कहा न हमने आशा है तुम हमे मजबूर नहीं करोगी

मोहिनी- और कौन रोकेगा मुझे

केवट ने मोहिनी की आँखों में एक आग सी जलती देखि, बात तो सही थी किसका इतना सामर्थ्य था जो मोहिनी को रोक सके पर मनुष्य से प्रेम ये भी तो उचित नहीं था बल्कि ऐसा हो ही नहीं सकता था ये कैसा खेल खेलने चली थी नियति क्या लिख दिया था उसने मोहिनी की तक़दीर में

ये तो आने वाला समय ही जानता था पर केवट के माथे पर चिंता की लकीरे उभर आई थी मन ही मन उसे अभास हो गया था की कुछ तो अनिष्ट होने वाला है पर क्या ये देखने वाली बात थी मोहिनी ने अपनी तरफ से शुरुआत कर दी थी पर उसे भी कहा आभास था की प्रेम की डगर कितनी मुश्किल है

पर उसे अपने प्रेम पर पूरा भरोसा था इधर दिव्या पल पल जल रही थी उसे बस इंतज़ार था महाराज के वापिस लौटने का भूत सवार था उस पर किसी भी तरह से मोहन को अपना बना लेने का उसे पा लेने का और उसके पास उसका ब्रहमास्त्र भी था प्रेम की परीक्षा की घडी आने वाली थी
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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सब आग में जल रहे थे मोहन और मोहिनी प्रीत की आग में, चकोर और संयुक्ता हवस की आग में और दिव्या अपनी उलझनों में अब करे भी तो क्या करे सब के तार आपस में जो उलझे थे पर सुलझे कैसे इसका जवाब किसी के पास नहीं था



इधर केवट अपनी पुत्री को लेकर परेशां था जब की महाराज चंद्रभान ने दिव्या की शादी अपने मित्रः के ज्येष्ठ पुत्र के साथ तय की और सोचा की महल पहुचते ही सबसे पहले ये खुशखबरी दिव्या को देंगे जबकि उनको कहा भान था की जब वो महल पहुचेंगे तो एक नयी मुसीबत उनका इंतज़ार कर रही है



केवट किसी भी तरह मोहिनी रोकना चाहता था तो उसने एक बार फिर से उस से बात करने का सोचा



केवट- मोहिनी, क्या सोचा है



मोहिनी- सोचना क्या है पिताश्री



केवट- शायद तुमने ठीक से विचार नहीं किया कल को जब उस मनुष्य को तुम्हारी असलियत पता चलेगी तब क्या होगा क्या वो तुम्हे स्वीकार करेगा तब तुम ना इधर की रहोगी ना उधर की रहोगी फिर शेष जीवन कैसे काटोगी



केवट की बात में दम था मोहिनी ने ये तो सोचा ही नहीं था क्या पता अगर उसका सच जानकार मोहन अगर उसे ठुकरा दे और दिव्या से विवाह कर ले तो अब घबराया उसका मन , क्या वो मोहन को बता दे नहीं नहीं पर आज नहीं तो कल उसे बताना तो होगा ही



मोहिनी- पिताश्री, अगर मेरा प्यार सच्चा होगा तो वो मुझे अवश्य अपनाएगा



केवट- खोखले शब्द है तुम्हारे अगर तुम आजमाइश करना चाहती हो तो अवश्य करो



अब मोहिनी फसी पर उसे पूरा भरोसा था और उसने निर्णय किया की इस बार जब वो मोहन से मिलेगी तो उसे अवश्य ही सच बताएगी आगे उसकी किस्मत इधर महाराज चंद्रभान ने दिव्या का रिश्ता अपने मित्र के ज्येष्ठ पुत्र से तय कर दिया और सोचा की महल पहुचते ही दिव्या को ये खुशखबरी देंगे



पर वो क्या जानते थे की वहा पर एक नयी मुसीबत उनका इंतज़ार कर रही है दूसरी तरफ जैसे ही पृथ्वी को मौका लगता वो संगीता को पेल देता इन सब से दूर मोहन बेचैन था मोहिनी से मिलने के लिए पर वो पता नहीं कहा उलझी थी जो आ ही नहीं पा रही थी इधर मोहिनी को अनजाना डर सता रहा था



की क्या होगा जब मोहन उसकी असलियत जान जायेगा पर कही ना कही उसे अपने प्रेम पर भी विश्वास था पर क्या उसका और मोहन का विवाह हो सकता था या हो पायेगा ये भी यक्ष प्रश्न ही था उसके सामने , और फिर वो दिन भी आ ही गया जब महाराज और रानी वापिस आ ये महाराज



ये सोचकर खुश थे की दिव्या को उसके रिश्ते की खबर बतायेंगे और संयुक्ता ये सोच कर खुश की बस अब वो मोहान से जी भर के चुदवायेगी इधर दिव्या भरी बैठी थी कितने दिनों से बस इंतजार था की कब पिता आये और वो अपनी बात कहे और अब वो लम्हा कितना दूर था भला महाराज सबसे पहले अपने मंत्रियो से मिले राजी-ख़ुशी पूछी
और फिर बुला लिया दिव्या को , आई वो



राजा- पुत्री हमे तुम्हे एक खुशखबरी देनी है



दिव्या- मुझे भी आपसे कुछ कहना था



राजा- कहो



दिव्या- पिताजी, मुझे गलत ना समझिएगा पर मुझे मोहन से प्रेम है और मैं उस से विवाह करना चाहती हु



जैसे ही महाराज ने ये सुना उसको गुस्सा आ गया एक महलो की राजकुमारी और कहा वो एक बंजारा ये कैसा मेल और फिर वो तो तय कर आये थे दिव्या का रिश्ता तो बात अब इज्जत की हो गयी थी



रजा- ये क्या कह रही हो तुम कहा तुम और कहा वो एक मामूली बंजारा



दिव्या- प्रेम उंच—नीच नहीं देखता पिताजी



राजा- पर हमे तो देखना पड़ता है , हमे तुम्हरा विवाह अपने मित्रः के पुत्रः से तय किया है और जल्दी ही तुम उस घराने की बहु बनोगी अपने दिमाग से ये फितूर उतार कर फेंक दो



दिव्या- प्रेम कोइ फितूर नहीं



महाराज समझ गए मामला घम्भीर है तो पुछा- क्या मोहन भी तुम्हे प्रेम करता है



दिव्या- जी



अब महाराज को गुस्सा तो पहले से ही था पर फिर भी सम्झ्धारी से काम लिया बोले- मोहन को बुलाया जाये
और कुछ भी देर बाद मोहन उनके सामने था



महाराज- तो क्या तुम दोनों आपस में प्रेम करते हो



मोहन- नहीं राजाजी



महाराज- परन्तु, दिव्या तो कह रही है की



मोहन- महाराज मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा राजकुमारी का मैं सम्मन करता हु मुझे तो मेरे इष्ट की सौगंध है अगर मैंने ऐसा कुछ सोचा हो तो



मोहन ने अपना पक्ष रख दिया था अब महाराज ये तो समझ ही गए थे की दिव्या की जिद है ये पर क्यों वो उसका कारण अवश्य ही जानना चाहते थे एक कहे प्रेम है दुसरे को स्वीकार नहीं चंद्रभान एक पिता के साथ एक राजा भी थे तो न्याय ऐसा होना था की लोग कहे वाह एक तरफ पुत्री का हट दूसरी तरफ मोहन की अस्वेक्रोती



महाराज- दिव्या, जब मोहन ने स्पष्ट किया है की उसको तुमसे ऐसा कुछ नहीं तो बात को टूल मत दो और हमारा कहा मानो तुम्हारी इस जिद से कुछ हासिल नहीं होगा और वैसे भी अगर मोहन तुमसे प्रेम करता तब भी ये मुमकिन नहीं होता



दिव्या- मुमकिन होगा



महाराज- असम्भाव



दिव्या- मैं इस राज्य के महाराज से अपने वचन सवरूप मोहन को अपने पति के रूप में मांगती हु




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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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दिव्या ने अपना ब्रहमास्त्र चला दिया था अब महाराज तो बंधे थे वचन से अब क्या करे मुकरे तो वचन की मर्यादा भंग हो और एक बंजारे से कैसे ब्याह दे अपनी पुत्री को अब महाराज फसे एक पिता तो मुकर भी जाए पर एक राजा कैसे तो आखिर उन्होंने हां कह दी की वो दिव्या का विवाह मोहन से करवाएंगे



मोहन पर जैसे बिजली सी गिर पड़ी उसने तभी महारजा के पैर पकड़ लिए और बोला- महाराज मैं किसी और को चाहता हु हमे अलग मत कीजिये आपके राज्य में तो सबको संरक्षण मिलता है तो फिर हमे क्यों जुदाई



अब महाराज क्या कहे परकुछ तो कहना ही था – मोहन, तुम जिस से प्रेम करते हो उसे बुलाओ हम बात करते है उस से दिव्या को हमने वचन दिया है तो उसका मान रखना ही पड़ेगा तुम तो हमारी मनोस्थि समझो मोहन



अब मोहन क्या करे आँखों में आंसू लिए हुआ वापिस



रस्ते में मिली उसको संयुक्ता मोहन को रोते देख उसने पुछा तो मोहन से सारी बात बताई की क्या हुआ है ये सुनकर संयुक्ता तो अन्दर ही अन्दर खुश हो गयी की अगर मोहन का और दिव्या का विवाह हो जाये तो उसका तो पूरा फायदा है



संयुक्ता- तो इसमें गलत क्या है बल्कि तुम तो किस्मत वाले हो जो दिव्या जैसी लड़की तुम्हारी पत्नी बन रही है



मोहन- पर मैं किसी और को चाहता हु



संयुक्त- चाहत कुछ नहीं होती मोहन , दिव्या से विवाह करते ही तुम क्या बन जाओगे तुमने सोचा नहीं शायद



मोहन- मैं जैसा हु ठीक हु महारानी , गरीब हु तो क्या हुआ दिल सच्चा है मेरा

सब की जिंदगी में ऐसा नाटकीय मोड़ आ गया था की किसी की समझ में नहीं आ रहा था की कैसे हल किया जाये इस समस्या को खुद महाराज भी परेशान थे वो जानते थे की मोहन का दिव्या से विवाह करवाना गलत है पर उन्होंने दिव्या को वचन दे रखा था इधर संयुक्ता ये सोच कर परेशां थी की उसने भी मोहन को एक वचन दिया हुआ है



अगर मोहन उस वचन के बदले दिव्या से आजादी मांग ले तो वो क्या करेगी उसकी हिम्मत नहीं की महाराज के आगे बोल पाए भरी सभा में पर अगर मोहन ने वचन पूरा करने को कहा तो क्या होगा , इधर मोहिनी बेताब थी मोहन से मिलने को पर केवट ने रोक रखा था उसको पर कब तक रोकता वो



परन्तु महराज भी मोहिनी से मिलना चाहते थे तो उन्होंने मोहन को आदेश दिया की मोहिनी को लेके आये अब मोहा आया उसी कीकर के पेड़ के निचे और पुकारा- मोहिनी, मोहिनी



जैसे ही मोहन की आवाज उसके कानो में पड़ी वो हुई बावरी एक तरफ पिता का पहरा दूजी तरफ प्रेमी की पुकार करे तो क्या करे चली जाए तो पिता की अवमामना हो और ना जाये तो प्रीत की रुसवाई हो उधर मोहन ने फिर उसको पुकारा और उसके सीने में जैसे कोई चोट सी लगी झुलसे अपनी ही आगन में



पता नहीं कितनी बार मोहन ने पुकारा पर वो ना आई, पर मिलना बेहद जरुरी दिलबर से मुसीबत जो आन पड़ी थी मोहन पे इस वक़्त मोहिनी का ही तो सहारा था उसे पर कहा रह गयी मोहिनी हमेशा तो आ जाती थी पर फिर आज क्यों देर हुई भला, शायद कोई काम हो गया होगा हां, ऐसा ही हुआ होगा



पर बिना मिले वो जाये तो कैसे जाये, हताश होकर बैठा मोहन दोपहर से सांझ ढलने को आई पर एक आस उसके आने की थक हार कर उसने अपनी बंसी लगे होंठो पर , और अपने दर्द को जैसे भुलाने की कोशिश करने लगा इधर मोहिनी के कानो में जो बंसी की आवाज हुई वो तडपी पैर जैसे बगावत पर उतर आये



इधर जैसे जैसे उसकी बंसी बजे वैसे बैसे मोहिनी पर मद चढ़े और आखिर में जब चढ़ा प्रीत का रंग तो भूली लोक लाज वो अब क्या होश उसे अब क्या ख्याल उसे चल पड़ी सजनी अपने सजन से मिलने को हल्का हल्का सा अँधेरा हो रहा था तारे कोई कोई निकल आये थे मोहन अब अब चलने को ही था की किसी ने उसको पुकारा



“मोहन ” और जैसे ही मोहन ने उसे देखा दौड़ पड़ा उसकी तरफ और भर लिया उसको अपनी बाहों में आँखों से आंसू बह चले दोनों के ही कुछ देर बाद जब दर्द कुछ कम हुआ तो मोहन ने मोहिनी को सारी बात बताई, और मोहिनी को अब आया गुस्सा



मोहिनी- तुम चिंता मत करो मोहन सब ठीक होगा



मोहन- महाराज तुमसे मिलना चाहते है



मोहिनी- मैं अवश्य ही मिलूंगी पर उस से पहले मुझे तुमसे एक बहुत ही जरुरी बात करनी है
मोहन- कहो मोहिनी



मोहिनी- मोहन मैं नहीं जानती की ये बात सुनके तुम कैसा व्यवहार करोगे पर तुम्हे ये बात बताना बहुत जरुरी है
मोहन- मैं सुन रहा हु


मोहिनी- मोहन, तुम्हारी मोहिनी कोई इंसान नहीं बल्कि एक बल्कि एक नागकन्या है ,


अब मोहन घबराया पर जब उसने मोहिनी को देखा तो वो संयंत हो गया और बोला- मोहिनी, मैंने बस तुमसे प्रेम किया है एक सपना देखा है तुम्हारे साथ घर बसाने का तुम नागिन हो या देवी मुझे कोई फरक नहीं पड़ता जब तुमसे प्रेम किया तो भी तुम्हे चाहा था आगे भी चाहता रहूँगा



मोहिनी मुस्कुरा पड़ी , बोली- मोहन, मैं नाग्श्री केवट की पुत्री हु जो स्वय महादेव के गले की शोभा बढ़ाते है
अब मोहन क्या कहता उसने मोहिनी का हाथ पकड़ा और बोला- वादा करो की हर समय मेरा साथ दोगी जब प्रीत जोड़ी है तो निभाओगी



मोहिनी की आँख में आंसू आ गए एक इंसान जो उसकी सच्चाई जानके भी उस से इतना निछ्शल प्रेम करता है उस स्वयम से ग्लानी सी होने लगी थी पर वो तो फैसला कर ही चुकी थी की वो प्रेम की परीक्षा देगी और उसका प्रेम सच्चा है तो कोई ना कोई रास्ता अवश्य निकलेगा



मोहिनी-मोहन मैं कल महल में आउंगी , जरुर आउंगी तुम मेरा इंतज़ार करना



मोहन से विदा लेके वो पलती ही थी की उसने सामने केवट को खड़े पाया तो उसकी नजरे झुक गयी



केवट- विरला ही है ये मनुष्य जो जानते हुए भी की तुम एक नाग कन्या हो फिर भी इतना प्रेम करता है , मैं तुम्हारे प्रेम का विरोध नहीं करता पुत्री पर इसके जो परिणाम है वो तो तुम भी जानती हो फिर क्यों
मोहिनी- मोहन के लिए



अब केवट क्या कहता बस अपने मन को समझा लिया पुत्री ने अपनी भाग को खुद चुन लिया था बस देखना है की परीक्षा में कितना टिक पाता है दोनों का प्रेम



रात सबकी ही आँखों आँखों में कटी, महल में अजीब सी ख़ामोशी थी सबको इतंजार था तो बस मोहिनी के आने का और वो आई वैसे ही अपनी बेफिक्री में चलते हुए जैसे ही महाराज ने उसको देखा लगा की जैसे आसमान ही फट जायेगा आज तो , उनके राजधर्म की अग्नि परीक्षा तो आज होनी थी क्योंकि मोहिनी को देखते ही वो जान गए थे की अब मामला संगीन होगा



क्योंकि दिव्या की तरह एक वचन उन्होंने मोहिनी को भी दिया हुआ था अब महाराज चंद्रभान के इस तरफ कुआ था तो दूसरी तरफ खाई अब राजा फास गया बीच में मोहन को तो वाचा की दुहाई दे दी थी पर मोहनी से क्या बहाना बनायेगा और क्या जवाब देगा वो जब वो अपने वचन में मोहन को मांगेगी



एक तरफ दिव्या खड़ी दूसरी तरफ मोहिनी बीच में मोहन सबकी डोर उलझी थी आपस में पर अब क्या हो क्या नहीं ये देखने वाली बात थी



महाराज- पुत्री जैसा की मोहन ने तुम्हे बता दिया ही होगा की किस विषय में हमने तुम्हे यहाँ बुलवाया है
मोहिनी- जी महराज




महाराज- तो तुम क्या क्या कहोगी
मोहिनी- महाराज मियन और मोहन एक दुसरे से प्रेम करते है प्रीत की डोर बाँधी हैहम दोनों एक दुसरे के हो चुके है
महाराज- पुत्री हम जानते है परन्तु दिव्या भी मोहन से प्रेम करती है और जैसा की तुम भी जानती हो की हम दोनों और से फसे हुए है जो दिव्या ने हमे बाध्य किया है अपने वाचन ने मोहन को माँगा है हम जानते है की ये गलत है पर अगर एक राजा वचन से गया तो फिर कैसा राजा दूसरी तरफ तुम भी अपने वचन में मोहन को ही मांगोगी हमे भान है परन्तु पुत्री हम तुम्हारे पिता जैसे है और अब तुम ही इस पिता को कोई राह दिखाओ



मोहिनी- चिंता न करे, मैं आपसे वचन में मोहन को नहीं मांगूगी
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

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(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
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