Incest -प्रीत का रंग गुलाबी complete

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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थोडा समय बीता और करीब दस मिनट बाद एक भयानक सुरसुराहट हुई धुप जैसे थम से गयी असमान में काले बादल छा गए हलकी हलकी बरसात होने

लगी मोहन ने और जान लगाई और फिर एक ऐसा सांप आया जैसा किसी ने नहीं देखा जैसे की चांदी की चमकार उसकी हरी आँखे करीब सात आठ फीट लम्बा

सांप ने कुंडली मारी और मोहन के सामने बैठ गया उसकी आँखे मोहन की आँखों से मिली एक पल को मोहन को लगा ऐसी हरी आँखे उसने कही न कही तो देखि है सभी उपस्तिथ लोग उस सांप को देख कर हैरान ऐसा जलवा उन्होंने कभी नहीं देखा अपनी जवानी में

“क्या चाहते हो ”सांप ने मोहन को कहा

अब मोहन हैरान सांप इंसानी भाषा कैसे बोले

उसने अपने हाथ जोड़े और बोला- हे देवता राजकुमारी के प्राण वापिस कर दीजिये आपकी कृपा होगी

“उसने चोरी की दंड तो मिलेगा महादेव के आशीर्वाद को च्रुराया उसने ””

चोरी और एक राजकुमारी मोहन को हुई हैरत जिसके पास किसी चीज्क्स की कोई कमी नहीं उसको भला चोरी की क्या जरुरत आन पड़ी मोहन ने सबको ये बात बताई

इधर देव नाथ खुद हैरान उसका बेटा सर्प से बात कर रहा था दरअसल मोहन तो उस से अपनी भाषा में बात कर रहा था पर सबको बस उसकी और सांप की हिस्स हिस्स ही सुनाई दे रही थी

एक राजकुमारी और चोरी अविश्वश्निया बात रानी ने खुद तलाशी ली तो उसे नाग मणि मिली नाग मणि जो बरसो से इस मंदिर में रखी थी

बिना किसी हिफाज़त के सबको अब आया क्रोध खुद राजा को भी उनकी बेटी ने ऐसी नीच हरकत की उन्होंने सर्प के आगे जोड़े हाथ बेटी का मोह भी था प्राण दान माँगा

पर सर्प अड़ गया तो मोहन से की गुजारिश अब मोहन क्या करे उसने अपना सर रखा सर्प के आगे और करने लगा इंतजार आदेश का

सर्प- इस पाप का कोई प्रायश्चित नहीं परन्तु राजा चंद्रभान न सैदव ही उनकी प्रजाति को संरक्षण दिया है तो वो जहर खेच लेंगे परन्तु चूँकि ये श्राप का जहर है तो राजकुमारी इ बदले किसी ना किसी को जहर को झेलना होगा

अब ये काम करे कौन इधर दिव्या पल पल मरे माहराज ने मुनादी करवाई की जो दिव्य का जहर झेले उसे वो आधा राज्य तक देंगे पर कोई आगे ना आया तो मोहन बोला मैं लूँगा इस जहर को

ये क्या कहा मोहन ने देवनाथ की आँखे फटी उसका बेटा इतना बड़ा बलिदान वो भी उसके लिए जिसका उससे कोई वास्ता नहीं सर्प सरकते हुए मोहन के पास आया दोनों की आँखे मिली

“किसी पराये के लिए इतना बलिदान ”

“इंसानियत के ”

सर्प ने अपना फन ऊँचा किया और मोहन इ सर पर रखा मोहन को पल भर में लगा की उसने इस स्पर्श को फेले भी महसूस किया है सर्प की आँखों से दो आंसू टपक पड़े

“तैयार हो ”

“जी ”

दिव्या को वहा लाया गया सर्प ने दिव्या का जहर चुसना शुरू किया नीला रंग उतरने लगा और इधर मोहन के बदन में जैसे किसी ने आग लगा दी हो वो अपनी खाल नोचने लगा

पल पल उसके बदन का ताप बढे शरीर नीला होने लगा मोहन रोये चिलाया प्रजा भी रोये उसका हाल देख कर धीरे धीरे दिव्या का पूरा जहर उतर गया


जैसे ही उसकी आँखे खुली मोहन गिर पड़ा सर्प ने अपना फन जोर से फुफकारा आसमान में अँधेरा छा गया बरसात और तेज हो गयी सब जैसे जड हो गए थे मोहन बेजान सा पड़ा था वो सर्प बहुत देर तक मोहन के पास ही बैठा रहा बहुत देर तक उस बरसात में भी लोगो ने उसके आंसू देख लिए कैसा विलक्षण द्रश्य रहा होगा एक सर्प इंसान के लिए आंसू बहाए

ऐसा विरला द्रश्य जिसने देखा सबकी आँखे पसीज गयी फिर वो सर्प धीरे धीरे पीछे हुआ और फ्न्गता हुआ चला गया जहा से वो आया था व्ही से चला गया

दूर बहुत दूर देवनाथ दौड़ कर आया अपने पुत्र के पास मोहन अचेत पड़ा था राजा रानी, प्रजा जो भी था वहा सब हुए परेशान थोड़ी देर हुई और फिर मंदिर की घंटिया बज उठी

अपने आप ऐसा शोर जैसे की सबके कान के परदे फट गए पल भर के लिए मंदिर के आँगन में जैसे बिजली सी गिरपड़ी थी

सबकी आँखे चुन्द्धिया गयी और जब वो रौशनी थमी तो वहा पर एक पानी का मटका रखा था राजकुमारी दिव्या ने वो मटका उठाया और थोडा पानी मोहन के होंठो स लगाया और जैसे पानी की धार मोहन के गले से निचे उतरी साथ ही


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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »

उसका वो नीला रंग भी उतरने लगा सबमे जैसे एक ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी दिव्या ने मुस्कुराते हुए मोहन को अपनी गोद में लिटाया और उसको पानी पिलाने लगी कुछ ही देर में मोहन की आँखे खुल गयी

उसने थोडा और पानी माँगा पर ये क्या वैसा ही पानी उतना ही ठंडा शर्बत सा मीठा पानी मोहने ने उस मटके को अपने मुह से लगाया उअर गतागत सारा पानी पी गया

देवनाथ ने उसे अपने सीने से लगा दिया पिता जी आँखों से करुना की धार छूट पड़ी महादेव ने जीवनदान दे दिया था उस इन्सान को जिसने दुसरे के लिए निस्वार्थ अपने प्राण देने का निश्चय किया था

माहराज चंद्रभान ने उसी पल मोहन को अपना आधा राज्य देने की घोषणा कर दी पर उसको इस मोह माया से क्या लेना था उसने मना कर दिया पर संयुक्ता ने मोहन को महल में नोकरी देने का कहा उसने अपने पिता की तरफ देखा
उन्होंने हां कहा तो वो मान गया

चलो सब राजी ख़ुशी निपट गया था राजकुमार पृथ्वी के राज्याभिषेक का समय हो चला था तो रजा ने सबको महल आमंत्रित किया जश्न था और भोज भी पर मोहन के मन में वो बात खटक रही थी की आखिर मटके में वैस ही पानी कहा से आया जैसा की मोहिनी की मश्क में होता था फिर उसने सोचा की जब वो मोहिनी से मिलेगा तो पूछ लेगा


महाराज चंद्रभान मोहन के बहुत आभारी थे जश्न में उन्होंने उसे अपने पास स्थान दिया जो की एक बंजारे के लिए बहुत बड़ी थी मोहन इधर महल की चका चौंध से बहुत खुश था ऐसा नजारा उसने पहले कभी नहीं देखा था महाराज ने नाजाने कितना ही धन राजकुमारी और मोहन पर वार के दान किया

रात बहुत बीत गयी थी जब जश्न ख़तम हुआ मेहमान कुछ चले गए कुछ मेहमानखाने में रुक गए महाराज भी सोने चले गए थे मौका देख कर संयुक्ता ने मोहन को अपने कमरे में बुला लिया कुछ खास बांदियो को ही पता था और सख्त हिदायत थी की अंदर किसी को ना आने दिया जाये चाहे कोई भी हो

किवाड़ बंद होते ही संयुक्ता ने मोहन को अपनी बाहों में ले लिया और चूमने लगी बेतहाशा फिर बोली- मोहन तुम तो हमारी जिन्दगी में किसी फ़रिश्ते की तरह आये हो पहले तुम ने हम पर एहसान किया हमारी अनबुझी प्यास को बुझा कर और अब तुमने हमारी बेटी को बचाया हम अपना सब कुछ भी तुम पर वार दे तो भी कम है

पर हम जानते है की तुम्हे लालच नहीं जो इन्सान आधे राज्य को ठुकरा दे वो कोई विरला ही होगा

मोहन- मालकिन मैंने अपना फर्ज़ निभाया था एक राजकुमारी के लिए मेरे जैसे मामूली प्रजा की जान क्या अहमियत रखती है भला मैं खुश हु इस राज्य को राजकुमारी वापिस मिल गयी

“ओह मोहन सच में तुमने हमे मोह लिया ”

संयुक्ता ने फिर कुछ नहीं कहा बस अपने रसीले होंठो को मोहन के होंठो पर रख दिया जिस आग को उसने बहुत दिनों से दबा रखा था वो अब भड़क गयी थी बिस्तर पर आने से पहले ही दोनों नंगे हो चुके थे

मोहन के लैंड को अपनी जांघो में दबाये वो अपनी छातियो को कस कस के दबवा रही थी उसकी चूत का पानी मोहन के लंड को भिगो रहा था दो दो किलो की चूचियो को मोहन कस कस के दबा रहा था पल पल रानी कामुकता में और बहती जा रही थी मोहन उसके गोरे गालो को किसी सेब की तरह खा रहा था

संयुक्ता तो जैसे बावली होगई थी मोहन की बाँहों में आते ही पर इतना समय भी नहीं था की वो खुल के सम्भोग का मजा उठा सके थोड़ी देर में ही भोर हो जानी थी तो उसने मोहन से जल्दी करने को कहा मोहन ने उसे बिस्तर पर पटका और उसके ऊपर चढ़ गया रानी ने अपनी तांगे उठा कर मोहन के कंधो पर रख दी

उसने लंड को चूत पे लगाया और एक करारा प्रहार किया और संयुक्ता अपनी आह को मुह में नहीं रख पायी एक बार फिर से मोहन का लंड उसकी चूत को फैलाते हुए आगे सरकने लगा और जल्दी ही बच्चेदानी के मुहाने पर दस्तक देने लगा रानी अपनी छातियो को मसलते हुए चुदाई का मजा लेने लगी

हर धक्के पर वो उछल रही थी मांसल टांगो को मजबूती से थामे मोहन रानी को दबा के चोद रहा था अगर महल ना होता तो संयुक्ता अपनी आहो से कमरे को सर पे उठा लेती थोड़ी देर बाद उसने मोहन को पटका और उसकी गोद में बैठ कर चुदने लगी अब लंड बहुत अंदर तक चोट मार रहा था संयुक्ता की चूत ने लंड को बुरी तरह कस रखा था

“शाबाश मोहन तुमने तो हमारा दिल खुश कर दिया है अपनी बना लिया है तुमने हमे शबह्श बस थोड़ी रफ़्तार और्र्र आः

हाआआअह्ह्ह्ह ओह मोहन बस मैं गयी गयी गयीईईईईईईईईईईई ”

संयुक्ता मस्ती में चीखते हुए झड़ने लगी उसका बदन किसी लाश की तरह अकड़ गया मोहन ने उसे अपनी बाहों में जोर से कस लिया रानी की हड्डिया तक कांप गयी और कुछ देर बाद मोहन ने भी अपना पानी चूत में ही छोड़ दिया
पर संयुक्ता कहा कम थी भोर होने तक दो बार वो मोहन से चुद चुकी थी

फिर मौका देख कर उसने मोहन को अपने कमरे से बाहर कर दिया मोहन इस बात से बड़ा खुश था की महारनी की चूत मिल रही है जबकि महारानी इसलिए खुश थी की मोहन महल में ही रहेगा तो जब चाहे चुदवा लेगी उसने महाराज को अपनी बातो में लेकर मोहन को अपना निजी अंगरक्षक बना लिया
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »

rangila wrote:bahut khub mitr

lage raho mast kahani hai
thanks dost
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »

इस बीच मोहन ने आगया ले ली थी महाराज से की वो कभी कभी अपने डेरे में जा सके इस से वो घरवालो से भी मिल सके उअर मोहिनी से भी पर सब बातो से अनजान राजकुमारी दिव्या की रातो की नींद उडी पड़ी थी

जबसे मोहन ने उसके प्राण बचाए थे उसे हर जगह मोहन ही दिखे उसके मन में बस मोहन खाना नहीं खाती सजना संवारना भूल गयी बस दिल में एक ही नाम मोहन

मन ही मन वो प्रेम करने लगी,देखो किस्मत का खेल निराला महलो की राजकुमारी एक बंजारे से इश्क करने लगी अब मोहबात है ही ऐसी कहा उंच नीच देखती है महल में ही दो चार बार दिव्या और मोहन का आमना सामना भी हुआ था पर वो बस शर्म के मारे उस से बात ही नहीं कर पायी थी

करीब दस दिन गुजर गए इन दस दिनों में संयुक्ता ने हर उस मौके का फायदा उठाया था जिसमे वो चुद सकती थी और फिर मोहन ने कुछ दिन डेरे में जाने की आज्ञा मानी तो उसने हां कह दिया मोहन निकल पड़ा डेरे के लिए बीच में वो महादेव मंदिर रुका दर्शन किये थोडा पानी पिया पर वो वैसे ही सादा पानी था

वो फिर चला पर डेरे की जगह वो उसी कीकर के पेड़ के निचे पंहुचा और आवाज दी मोहिनी मोहिनी पर कोई नहीं आया कोई नहीं आया कई देर इंतजार किया पर कोई जवाब नहीं हार कर वो वापिस हुआ तभी कुछ आवाज हुई पर कोई नहीं था वो निराश हुआ और डेरे आ गया सब लोग उसे देख कर बहुत खुश थे

खासकर चकोर, सब से बात करके उसके पिता ने उसे एकांत में बुलाया और बोला- छोरे एक बात पूछनी थारे से साची साची बताना
“उस दिन वो साप थारे बुलाने से कैसे आया , मैं देवनाथ राज सपेरा मेरा बुलावा ना स्वीकार किया और तेरे बुलाने से आ गया के बात है यो ”

“ना पता बापू, वो रानी का गुसा था तो मैंने सोचा मैं एक कोशिश कर लू बस इतनी ही बात थी ”

“फेर तू साप से बात के करे था ”

“आपने भी तो सुनी होगी बापू ”

“वो ही तो जानना चाहू के म्हारे छोरे ने सर्पभाषा कित आई मैं ना सीख पाया आज तक और तू

“के कह्य बापू सर्पभाषा ना बापू ना मैं तो अपनी बोली में बात करी ० ”

अब घुमा दिमाग देवनाथ का साप ने मनुष्य की बोली में बात कर पर फिर वो बोला- पर सबने देखा तू हिस्स हिस्स करके बात करे था

अब मोहन को भी झटका लगा बोला- ना बापू मैं तो अपनी बोली में ही बात करू था

अब देवनाथ ने भी झटका खाया छोरा बोले अपनी बोली पर सबने देखा वो संप की तरह करे था तो ये क्या बात हुई कुछ बात उसके मन में आई पर फिर वो चुप हो गया मोहन उठ कर बाहर आ गया पर उसको भी कहा चैन था उसे आस थी मोहिनी से मिलने की पर उसे जल्दी ही चकोर ने पकड लिया

“तुम्हारे बिना मेरा जी नहीं लगता ”

“”मेरा भी याद आती है तुम्हारी

“मुझे भी ”“

चकोर बहुत देर तक महल के बारे में ही पूछती रही पर मोहन का मन उलझा था मोहिनी में ही अब करे तो क्या करे जाए तक कहा जाये उसने बताया तो था की वो पहाड़ो की तरफ रहती है वो दूर था जाये तो कैसे जाए रात इसी उधेड़बुन में ही बीती सुबह हुई जैसे तैसे करके दोपहर हुई और वो आ पंहुचा उसी कीकर के पेड के निचे


“मोहिनी मोहिनी पुकारा उसने ”

पर कोई जवाब नही उसने तो कहा था की वो आएगी पर कब मोहन रोने को आया बार बार पुकारे पर कोई नहीं आये हार कर उसने अपनी बंसी निकाली और अपने दर्द को धुन बनाके रोने लगा आँखों से आंसू बहते रहे वो बंसी बजाता रहा और फिर उसे एक आवाज सुनि किसी ने उसे पुकारा था

उसने नजर घुमा के देखा तो मोहिनी आ रही थी धीमे धीमे चलते हुए
मोहन भागकर उस से लिप्त गया रोने लगा पुछा कहा चली गयी थी वो आखिर क्या रिश्ता था उन दोनों का जो इतनी तदप थी एक दुसरे को देखने की इतनी चाह थी दोनों कीकर के निचे बैठ गए मोहिनी कुछ बीमार सी लग रही थी उसकी त्वचा आज चांदी की तरह नहीं दमक रही थी कुछ बुझी बुझी सी थी

मोहन ने पुछा तो मोहिनी ने कहा बुखार सा है ठीक हो जायेगा

मोहन ने उसकी आँखों में देखा और फिर उसे कुछ आयद आया उसने उस दिन वाली घटना बताई मोहिनी को तो उसने अस्चर्या किया ऐसा सर्प तभी मोहन ने पुछा तुम भी तो मेले में थी फिर तुमने नहीं क्या

मोहिनी- नहीं मोहन मैं इस घटना से पहे ही चली गयी थी

“ओह ”

मोहन कई देर तक उस से बात करते रहा वो उसकी सुनती रही सांझ होने को आई फिर मोहन ने अगले दिन का करार किया और वापिस डेरे आ गया अब रात कैसे कटे कभी इधर करवट ले कभी इधर करवट ले मोहन बस दिल में ललक मोहिनी से मिलने की आँखे बंद करे तो मोहिनी दिखे और खोले तो भी

अगले दिन सुबह से शाम तक उसने व्ही इंतजार किया पर वो ना आई मोहन क्या करे फिर सोचा तबियत ख़राब हो गयी होगी एक रात और कटी फिर आई दोपहर अब आई मोहिनी थोड़ी और मुरझा गयी थी ऐसे लग रहा था की जैसे प्राण सेष ही नहीं अपना सर मोहन की गोद में रख के वो लौट गयी

मोहन बार बार उसे पूछे की उसे क्या हुआ है पर वो कुछ ना बताये हार कर मोहन ने उसे अपनी कसम दी मोहिनी मुस्कुराई और फिर उसने मोहन की कसम का मान रखते हुए बता दिया की उसे एक गंभीर रोग हुआ है जिसका बस एक इलाज है की जिस शेरनी ने तीन सर वाले शेर को जन्म दिया है उसका दूध मिल जाये तो

मोहन को कुछ पल्ले नहीं पड़ा उसने फिर से पुछा तीन सर वाला सर मोहन ने आजतक शेर ही नहीं देखा था यहाँ तीन सर वाले शेर की बात थी और शर्त ये की उसकी माँ अपनी मर्ज़ी से दूध दे तो ही मोहिनी का रोग ठीक हो पाए

मोहन ने उसकी पूरी बात सुनी और ये वादा किया की वो कुछ भी करके मोहिनी के लिए वो दूध लाएगा चाहे उसे सात समुन्द्र पार जाना पड़े पर उसे ये काम शीघ्र ही करना था मोहिनी की हालत पल पल गंभीर होती जा रही थी वो डेरे में आया और अपने पिता से तीन सर वाले शेर के बारे में पुछा तो उन्होंने मना कर दिया की ऐसा कुछ नहीं होता है

अब किस् से पूछे वो कौन मदद करे कोई तो पागल ही समझ ले उसको पर उसके पिता ने बताया की राजपुरोहित बहुत ही ज्ञानी है वो अवश्य ही जानते होंगे अगर ऐसा कुछ हुआ तो मोहन ने रात में ही डेरा छोड़ा और महल आया सीधा राजपुरोहित के पास गया और अपनी समस्या बताई उन्होंने बहुत ही गंभीर दृष्टि से मोहन की तरफ देखा फिर बोले- तुम जानते हो क्या कह रहे हो

मोहन- जी अच्छी तरह से

पुरोहित- तो फिर तुम्हे ये भी पता होगा की किसको इसकी जरुरत है
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