Incest -प्रीत का रंग गुलाबी complete

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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“चिंता ना करे महाराज , मैं अपने वचन में मोहन को नहीं मांगूंगी क्योंकि उसको क्या मांगना जो पहले से ही आपका है ”


मोहनी की ये बात सुनकर दिव्या को गुस्सा आया पर महाराज के सामने उसने रोका खुद को


महाराज- पुत्री, अब क्या किया जाये



मोहिनी- मैं और मोहन एक दुसरे के प्रेम करते है



दिव्या- मैं भी मोहन से प्रेम करती हु



मोहिनी- पर मोहन तुमसे प्रेम नहीं करता राजकुमारी दरअसल मोहन तुम्हारा प्रेम नहीं बल्कि तुम्हारी जिद है



उफ्फ्फ ये क्या कह दिया मोहिनी ने भरी सभा में में जैसे तमाचा ही मार दिया हो उसने दिव्या को पर उसकी बात एक दम सही थी स्वयं महाराज भी समझते थे पर वचन दे रखा था दिव्या को पर साथ ही वो ये भी जान गए थे की कही ना कही



उनकी प्रतिस्ठा भी गयी काम से, तो उन्होंने मोहिनी से कहा- पुत्री अगर तुम मोहन का त्याग करती हो तो हम तुम्हे मुह माँगा देंगे



मोहिनी- प्राणों से कहते हो की श्वास का त्याग कर दो



अब क्या किया जाए, कैसे सुलझाये इस मामले को दो प्रेमियों को अलग कर दे तो भी उचित नहीं और दिव्या को दिया वचन , महाराज ने कुछ सोच कर कहा



एक काम हो सकता है अगर मोहन दोनों लडकियों से विवाह कर ले तो



मोहन- परन्तु मुझे मंजूर नहीं मैंने कभी उस नजर से देखा नहीं राजकुमारी को



संयुक्ता- नहीं देखा तो क्या हुआ विवाह के बाद अब ठीक हो जायगा



मोहन- महारानी, अगर महाराज का यही आदेश है तो अवश्य पालन करूँगा पर प्रेम की रुसवाई हो जाएगी और फिर हम में से कौन कुछ रह पायेगा कोई भी नहीं मैं तो धुल बराबर हु राजकुमारी का स्थान बहुत ऊँचा मैं तो एक सामान्य सा जिसकी कोई कहानी नहीं आपके सामने



महारानी जी की कृपा से मैं यहाँ आ पाया ,इस रिश्ते का कोई जोड़ नहीं महाराज कोई नहीं



दिव्या- मोहन तुम एक बार मेरी तरफ देखो तो सही , तुम्हे मेरे साथ किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होगी बस एक बार हां तो कहो



मोहन- आप अब भी नहीं समझी राजकुमारी,

इतनी देर से इस कहानी को सुनते हुए संगीता का दिमाग ख़राब होने लगा था वो बोली- महाराज आप इस मामले को इतना टूल दे रहे है, जब हमारी पुत्री मोहन से विवाह करना चाहती है तो करवाइए और इस मोहिनी को भगाइए यहाँ से या फिर कारावास में डाल दीजिये



मोहिनी- कोशिश करके देख लो महारानी मोहन से मुझे कौन जुदा करता है मैं भी देखती ही



उफ्फ्फ क्या दुस्साहस मोहिनी का महारानी को चुनोती दे रही है संगीता चिल्लाई- सैनिको पकड़ लो इस लड़की को अभी के अभी



सैनिक मोहिनी की तरफ बढे ही थे की मोहिनी ने घुर कर देखा उन्हें और अगले ही पल दोनों के शारीर नीले पड़ गए जैसे कितने ही सर्पो का दंश लगा हो उनको



मोहिनी- ख़बरदार, जो किसी ने भी कुछ उल्टा-सीधा करने की कोशिश की वर्ना मैं अपनी मर्यादा भूल जाउंगी



महराज चंद्रभान खुद चकित बोले- तुम कोई साधारण कन्या नहीं हो अपना परिचय दो पुत्री



मोहिनी- मैं मोहिनी हु, नागराज केवट की पुत्री



मोहिनी एक नागकन्या है दरबार में सबकी आँखे हैरत से फटी रह गयी हर कोई चकित एक नागकन्या और एक मनुष्य का प्रेम और नागकन्या कोई साधारण भी नहीं स्वयं नागराज की पुत्री जिसे वरदान प्राप्त जो आखेट करती है महादेव के गले में



महाराज ने अपने हाथ जोड़े और कहा- ये पूजनीय हमसे अपमान हुआ माफ़ कीजिये



मोहिनी- आप पिता सामान है महाराज आपके राज में हमको संरक्षण मिला
संगीता ने भी हाथ जोड़े
अब बोले पुरोहित जी- परन्तु ये कैसे संभव् है किवंदिती कैसे सच हो सकती है और अगर सच है भी तो एक नागकन्या और मनुष्य के बीच कैसा प्रेम ये तो नियामो के विपरीत है



मोहिनी- प्रेम कहा किसी नियम में बंधा है



महाराज- परन्तु पुत्री ये उचित भी तो नहीं इसके परिणाम को सोचा है तुमने



मोहिनी- महाराज मैंने वचन दिया है मोहन को और सबसे बड़ी बात की प्रेम किया है मैंने और मेरा प्रेम सच्चा है तो हर परीक्षा को उतीर्ण कर ही लेगा तो घबराना क्या और सोचना क्या


महाराज जान गए थे की मामला अबबेहद उलझा हुआ है मोहिनी को साधारण नहीं और अगर उसका सच में ही प्रेम है तो फिर बात गम्बीर है



और तभी जैसे की वहा पर तूफ़ान आ गया ऐसा लगा की जैसे आसमान ही टूट कर गिर गया हो ऐसी भयंकर गर्जना की लगे कान के परदे ही फट जाएगी जैसे आंधी ने धक लिया हो राजदरबार को और जब सबकी आँखे कुछ देखने लायक हुई तो जो द्रश्य उन्हें दिखा आँखों ने विश्वास करने से मना कर दिया



पर मोहन मुस्कुराया वो जानता था की आगे क्या होना है सामने नरसिंह खड़ा था दरबार में जितने भी लोग थे आँखे फाड़े देखे उसी को कुछ कोतुहल से कुछ डर से पर ऐसा शेर पहले देखा भी तो नहीं किसी ने


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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »


मोहन बढ़ा उसकी और किया प्रणाम, स्वीकार हुआ नरसिंह ने एक मशक मोहन को दी और बोला- मोहन ये दूध अपनी प्रिय को पिला दो ताकि श्राप के रहे सहे अवशेष भी मिट जाये



मोहन ने वो उध मोहिनी को पिलाया और कुछ देर बाद मोहिनी और भी निखर आई चांदी की तरफ चमकने लगी सबलोग ख़ामोशी से बस नरसिंह और मोहन को ही देख रहे थे



नरसिंह- मोहन अपना वचन निभाओ



मोहन-अवश्य ही निभाऊंगा



मोहिनी- कैसा वचन मोहन



मोहन- कुछ नहीं नरसिंह को थोड़ी भूख लगी है उसको भोजन करवाना है



अब नरिसंह आगे हुआ और उधेड़ने लगा मोहन का मांस पर वो मुस्कुराता रहा मोहिनी से देखा नहीं गया उसे क्रोध आया व् चिल्लाई- नहीं नरसिंह नहीं



नरसिंह- मोहन ने वाचन दिया है मेरी माँ को



मोहिनी- पर मैं मोहन को इस हाल में नहीं देख सकती



मोहन- मोहिनी शांत हो जाओ



मोहिनी- नहीं , नरसिंह इस बार अगर तुम्हरे दांतों ने मोहन को छुआ तो ठीक नहीं होगा



नरसिंह- क्या करोगी कहकर उसने मोहन की बाजु का मांस नोच लिया



और साथ ही मोहिनी आ गयी अपने नाग रूप में हुई नरसिंह के सामने , नाग्रूप में मोहिनी को देख कर सब जान गए की मोहिनी ने ही दिव्या को काटा था उस दिन खुद दिव्या हैरान



पर मोहन आया बीच में बोला- मोहिनी, क्या तुम्हे अपने प्रेम पर भरोसा नहीं मैंने नरसिंह को वचन दिया है उसकी भूख मिटाने का मेरी बात का मान रखो विश्वास रखो हमारे प्रेम पर



अब मोहिनी कैसे टाले मोहन की बात को वादे अनुसार आधे शरीर का मांस लिया उसने और हुआ वापिस सबका कलेजा वापिस आ गया उस दर्श को देख कर दिव्या तो रोने ही लगी और रो रही थी मोहिनी भी पर जैसे ही उसके आंसू मोहन के शरीर पर गिरे उसका शरीर फिर से भरने लगा



उफ्फ्फ ये कैसा प्रेम था निश्छल प्रेम था दोनों का बहुत देर तक मोहिनी उस से लिपटी रोती रही पर महाराज संकट में फस चुके थे बोले- अभी के अभी सब महादेव मंदिर चलो अब जो भी बात होगी वही होगी

दरअसल महाराज चाहते थे की अब स्वयम नागराज ही मोहिनी को समझाए दो विपरीत योनियों का मिलन कैसे हो सकता था एक मनुष्य और एक नागकन्या का प्रेम अपने आप में एक असाधारण घटना थी सबकी प्रीत एक दुसरे से जुडी थी पर किसी ना किसी को तो खाली हाथ रहना ही था
महाराज ने मंदिर आते ही नागराज का आह्वान किया और वो आये महारज ने प्रणाम किया और अपने आने की वजह बताई



केवट- महाराज, मैं भी जानता हु की ये गलत है और इसके परिणाम मेरी पुत्री को भुगतने पड़ेंगे पर मैं मजबूर हु मोहिनी को महादेव का आशीर्वाद प्राप्त है इस वजह से उसपे मेरा कोई जोर नहीं है मैं खुद एक बेबस पिता हु



अब महाराज चंद्रभान क्या कहे वो खुद एक बेबस पिता और मजबूर राजा थे इस समय एक तरफ मोहिनी एक तरफ दिव्या और बीच में मोहन अब राजधर्म की तगड़ी परीक्षा हो रही थी पर कोई तो समाधान हो इस बात का



महाराज- देखो, मोहन और मोहिनी एक दुसरे से प्रेम करते है जबकि दिव्या का प्रेम एक तरफ़ा है पर चूँकि हम वचन से बंधे है की उसकी एक इच्छा हम हर हालत में पूरा करेंगे , परन्तु एक नागकन्या और मानुष के प्रेम को समाज में क्या प्रकर्ति में भी स्वीकार्य नहीं है परन्तु मोहिनी को ये न लगे की उसके साथ न इंसाफी हुई है तो दिव्या को भी मोहन नहीं मिलेगा



तुम तीनो अलग अलग ही रहोगे



दिव्या- महाराज अगर मुझे मोहन नहीं मिला तो इसी पल मैं आत्मदाह कर लुंगी



उफ़ ये दिव्या ने क्या कह दिया , ये कैसी जिद इस नादाँ लड़की की



मोहिनी- महारज प्रेम किसी सीमा में नहीं बंधा है मोहन के बिना मुझे भी जीना स्वीकार नहीं यदि मेरी नाग योनी मेरे और मोहन के बीच है तो मैं अपनी नाग योनी का त्याग कर दूंगी



केवट- असंभव पुत्री



मोहिनी- जहा प्रेम हो वहा कुछ भी असम्भव् नहीं



संयुक्ता- मेरी बात पे फिर से विचार करो मोहन दो पत्नी भी रख सकता है



मोहन- अवश्य महारानी परन्तु प्रेम केवल एक को , दूसरी बस नाम की ही पत्नी रहेगी तो उस समय उसका जीवन विधवा से भी ज्यादा कष्टकारी होगा



बात में दम था



महाराज- मोहिनी एक पिता होने के नाते हम तुम्हारे आगे हाथ जोड़ते है तुम तो मान जाओ



मोहिनी- अगर मोहना कह दे की मुझसे प्रेम नहीं तो अभी मैं चली जाउंगी वचन है मेरा



मोहन- मोहिनी के बिना मोहन की कल्पना भी नहीं



दिव्या- मोहन से विवाह नहीं तो मैं मृत्यु का वरण करू



महराज ने अपना माथा पीट लिया एक राजा जो अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध आज उलझा बैठा था एक तरफ पुत्री दूसरी तरफ पुत्री सामान मोहिनी क्या करे किसका पक्ष ले कुछ समझ ना आये



आखिर हार कर महाराज बोले- अब तो महादेव ही राह दिखाए , हे महादेव अगर मैंने राजा के पद पर रहते हुए एक व्यक्ति को भी सच्चा न्याय दिया हो तो दर्शन दे आपके भक्त की इज्जत अब आपके हाथ में है महादेव दर्शन दे इस उलझन को आप ही सुलझाये प्रभु



अब देवो के देव ऐसे कैसे दे दे दर्शन , वो तो बस मुस्कुरा रहे थे इस सारे घटना कर्म को देख कर महाराज ने बीड़ा दे दिया महादेव को की करो फैसला तीन दिन बीत गए वही पर जस के तस और फिर पुरे मंदिर में जैसे की धुआ ही भर गया और जब धुआ हटा तो देखा की एक साधू खड़ा है
सबने प्रणाम किया मोहिनी मन ही मन मुस्कुराई और पाँव पड गयी साधू की उसने आशीर्वाद दिया और बोला- महाराज क्या समस्या है



महाराज- आपसे क्या छुपा है इष्ट आप ही मार्ग दिखाए



साधू- मार्ग तो प्रेम अपने आप दिखायेगा कैसे चलना है ये तो अब तो चलने वाले जाने, दिव्या प्रेम के अनेक रूप होते है मैं ये नहीं कहता की तुम्हे मोहन से प्रेम नहीं परन्तु ये भी तो आवश्यक नहीं की जिस से हम प्रेम करे वो भी हमसे करे



दिव्या- पर मैं मोहन के बिना जी नहीं पाऊँगी



साधू- मृत्यु का वरण कर पाओगी



दिव्या- हां



साधू- मोहिनी, एक दिव्य नागिन होकर एक साधारण से मनुष्य से प्रेम क्यों



मोहिनी- आप तो सब जानते है प्रभु, आपसे क्या छुपा है ये नियति भी तो आपने ही लिखी है



साधू- परन्तु राह बहुत कठिन



मोहिनी- फिर भी चलूंगी



साधू- और तुम मोहन ये कैसी प्रेम की बंसी बजा दी तुमने



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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »


मोहन ने हाथ जोड़े और बोला- प्रभु, मैं एक पतित इन्सान हु परन्तु मोहिनी से सच्चा प्रेम किया है अगर वो मेरे साथ नहीं तो फिर जिस जीवन का कोई मोह नहीं मुझे



साधू मुस्कुराया फिर बोला- परन्तु एक नाग कन्या मनुष्य से विवाह करेगी तो प्रकर्ति का संतुलन बिगड़ेगा उसका सोचो



सब खामोश रहे ,


फिर मोहिनी बोली- मैं त्याग करुँगी अपनी नाग योनी का



साधू- कर पाओगी



वो- अवश्य,



कैसा ये प्रेम था मोहन के लिए उसका की नाग योनी का त्याग करने को तैयार थी वो अब साधू ने कहा – जैसा की मोहिनी अपनी नाग योनी को त्याग कर रही है क्या दिव्या के प्रेम में इतनी शक्ति है की वो मोहन के लिए कुछ त्याग कर सके



दिव्य- क्या कहना चाहते है आप



साधू- मोहिनी अगर नाग योनी का त्याग करे तो उसे इंसान बनने के लिए इंतज़ार करना होगा वो अपनी नियति स्वयं चुन रही है परन्तु दिव्या अगर तुम्हारा विवाह मोहन से ना हो तो इस राज्य के राजा को वचन भंग का पाप लगेगा तो तुम्हारा वचन अवश्य पूरा होगा



परन्तु चूँकि तुम्हारा प्रेम अब जिद का रूप ले चूका है इस कारण से उसकी पवित्रता भंग हो गयी है जबकि मोहन और मोहिनी का प्रेम निच्छल है तो इस लिए तुम्हारा विवाह अवश्य होगा मोहन से परन्तु तुम ग्रास्थी का सुख नहीं भोग पाओगी


मोहिनी चूँकि तुमने नाग योनी का त्याग करने का सोचा है तो तुम्हे इंसान रूप के लिए तपस्या करनी होगी एक सहस्त्र साल तक तुम्हारा इंतज़ार रहेगा इस बीच कितने मोसम बदलेंगे, कितने युग हो सकता है दुनिया का नया रूप तुम्हरे सामने हो पर जब तक मोहन खुद किसी भी रूप में आकार तुम्हे नहीं पुकारे गा तुम स्वयं प्रकट नहीं होगी और अगर ये प्रतिज्ञा टूटी तो फिर ना मोहन होगा ना मोहिनी



मोहिनी- मैं तैयार हु देव



मोहन- नहीं मोहिनी नहीं , मुझे कुछ फरक नहीं पड़ता की तुम किस रूप में हो अगर तुम नागिन रूप में हो तो भी मैं तुम्हारा वरण कुरंगा



साधू- मोहन, अगर मोहिनी को पाना है तो उसे ये तपस्या करनी होगी



मोहन- तो ठीक है मुझे भी कुछ ऐसी ही सजा दीजिये मैं भी इंतज़ार करूँगा



साधू- मोहिनी के लिए तुम्हे जीना होगा ये पल पल की जुदाई ही एक दिन आधार बनेगी इस प्रेम कहानी का जिसे सदियों तक सुनाया जायेगा



दिव्या- सबका फैसला ठीक कर दिया पर मुझे ये सजा क्यों साधू- सजा कहा अवसर है तुम्हारे लिए पा सको तो पा लो अपने प्रेम को



साधू- मोहिनी आगे बढ़ो मैं तुम्हारा मार्ग खोल रहा हु



मोहिनी- एक पल दीजिये मुझे



मोहिनी दौड़ कर मंदिर में गयी और एक घड़ा ले आई , मोहन के पास गयी और बोली- पानी पिलो मोहन फिर ना जाने ये अवसर कब आएगा

मोहिनी दौड़ कर मंदिर में गयी और एक घड़ा ले आई , मोहन के पास गयी और बोली- पानी पिलो मोहन फिर ना जाने ये अवसर कब आएगा


मोहिनी की आँखों में कुछ आंसू थे मोहन ने ओक लगायी और उस मीठे पानी को पिने लगा पर उकी ये प्यास अब ऐसे न बुझने वाली थी अब दर्द और इंतज़ार का सागर तो था मोहन के पास पर दो घूंट प्रेम की ना थी



ना जाने कैसी तकदीर लिखवा के लाया था वो , पूरा घड़ा खाली हो गया था फिर भी मोहन के होठ प्यासे थे



साधू- मोहिनी आज से तुमहरा वास उसी कीकर के पेड़ में होगा जो तुम्हारे प्रेम का साक्षी रहा है मैं स्वयम उस पेड़ की सुरक्षा उस समय तक निश्चित करूँगा जब सही समय पर मोहन तुम्हे पुकारेगा और ये परीक्षा ख़तम होगी



और मोहन महाराज के वचन की लाज रखने के लिए तुम्हे दिव्या से फेरे लेने होंगे



मोहन- नहीं कदापि नहीं



साधू- अगर ऐसा ना किया तो सहस्त्र वर्षो तक अग्नि में जलना होगा



मोहन- मंजूर है अपनी मोहिनी के लिए कुछ भी करूँगा



साधू- पर तुम्हारा एक अंश जो दिव्या के साथ है उसका क्या



मोहन- मुझे नहीं पता



साधू- तो फिर कैसे न्याय मिलेगा उसको भी



मोहन- आप जाने



साधू-तो वचन की लाज हेतु कर लो विवाह



मोहन- परन्तु विवाह होते ही वो मेरी अर्धांगिनी हो जाएगी फिर उसका क़र्ज़ कैसे उतारूंगा मैं



साधू- मैं तुम्हे उस भार से मुक्त करता हु जैसा की मैं कह चूका हु दिव्या की मांग में सिंदूर होगा परन्तु ग्रहस्ती का सुख नहीं भोगेगी वो ये उसकी नियति है



दिव्या- परन्तु मुझे ऐसी कठोर सजा क्यों



साधू- क्योंकि तुमने वचन रूपी अस्त्र चला कर दो प्रेमियों को जुदा किया



दिव्या- परन्तु मैंने तो बस अपना प्रेम माँगा



साधू- दिव्या तुम कभी समझी ही नहीं प्रेम का दूसरा नाम ही त्याग होता है अगर तुम त्याग कर पाती तो सम्मानीय होती परन्तु अब तुम –पाप की भागी हो



दिव्या- मैं नहीं मानती, मैंने तो बस प्रेम किया



साधू- प्रेम और जिद में अंतर करो



दिव्या- अगर मोहन मेरा नहीं हुआ तो मोहिनी का भी नहीं होगा ये मेरा पराण है



साधू- नियति



आदेशानुसार मोहिनी बैठ गयी उस तपस्या में , महाराज ने एक महीने बाद मोहन और दिव्या का विवाह निश्चित किया परन्तु जैसे मोहन अब पहले वाला मोहन नहीं रहता था कितने दिन बीत जाते थे वो उसी कीकर के पेड़ के पास बैठा रहता मोहिनी उसे देख कर रोती वो उसे याद करके रोता पर दोनों मजबूर थे



भर लेता अपने आलिंगन में उस पेड़ को पर कैसे समझाए खुद को , कुछ न समझ आये बावरा सा हुआ वो जैसे जैसे विवाह का दिन नजदीक आ रहा था महल में सबको एक चिंता सी थी , दिव्या खुश थी पर ये कैसी ख़ुशी थी


और फिर आया वो दिन , दिव्या सजी थी दुल्हन के रूप में और मोहन ने मन ही मन कुछ फैसला कर लिया था बस कुछ ही देर की बात थी और फिर दिव्या मोहन की हो जानी थी पर मोहन का दिल नहीं मानता इस बात को



और फिर उसने कुछ ऐसा किया जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था मोहन ने आत्महत्या कर ली फांसी लगा ली उसने और जैसे ही दिव्या को ये मालुम हुआ उसे गहरा आघात लगा पर जूनून था या जिद थी ये कैसा प्रेम था उसका



उसने भी खुद को आग लगा ली महल में शोक छा गया , पर नियति ने अपना खेल खेल दिया था जो आन वाले वक़्त में अपना रंग अवश्य ही दिखाता जैसा की हुकम था मोहन ने अपने लिए सहस्त्र वर्षो की सजा चुन ली थी परन्तु दिव्या की रूह कैद हो गयी उसी महल में उसने भी इंतज़ार चुन लिया था



की वो जब भी रहेगी जब मोहन और मोहिनी का मिलन होगा दिव्या तब भी होगी और होगा उसका प्रेम जो उसके लिए जुनुनियत की हद तक था मरकर भी वो उसी महल में भटकती गुनगुनाती कभी रोती समय गुजरता गया न महल रहा न राज्य ना राजा न रजवाड़े कुछ नहीं रहा



पर वो कीकर का पेड़ खड़ा रहा और उसके पास कभी कभी लोगो को आग सी लगी दिख जाती , कभी दोपहर में कभी रात में कोई कहता भूत-प्रेत है कोई कहता जादू है पर वक़्त की रेत में वो प्रेम कहानी कही खो गयी थी मोहिनी उस पेड़ के अन्दर से रोज मोहन को जलते हुए देखती पर वो हमेशा मुस्कुराता रहता फिर बनता फिर जलता



जुदा होकर भी वो जुदा ना हुए थे कभी कभी मोहिनी सोचती की भागकर लिपट जाऊ मोहन से और अपने प्रेम की वर्षा से उस अग्नि को भिगो दू पर वो भी जानती थी की मजबूरियों की बेडिया उसके कदमो में पड़ी है



वक्त गुजरता गया वो कहा किसी के लिए रुकता वो राजमहल जो कभी शान से खड़ा था पर आज वो बस एक खंडर की भांति था , लोग कहते थे की इसमें भुत है कुछ लोग इस आस में की क्या पता राजा महाराजो का खजाना होगा तलाश में भी गए थे पर उनको दिव्या के कहर का सामना करना पड़ा था जिसे बस इंतज़ार था मोहन का अपने मोहन का



ये कैसा इंतज़ार था जो ख़तम होने का नामा ही नहीं ले रहा था , ये कैसे पीड़ा थी जो प्रेम ने उनको दी थी ये कैसा मिलन होना था जो इतनी लम्बी जुदाई मिली थी ये तो बस नियति के रचियता ही जानते थे और जब इस इंतज़ार के ख़तम होने में पच्चीस बरस थे तो एक समय मोहन की सजा खतम हो गयी उसकी आग रुक गयी



परन्तु अगले ही पल उसकी रूह गायब हो गयी कुछ न समझी मोहिनी की ये क्या हुआ पर उसे भरोसा था की महादेव तो हर पल उसके साथ है वो उसका बुरा कभी नहीं करेंगे देखते देखते पच्चीस बरस बीत गए और पूरा हुआ इंतज़ार पर मोहिनी कैसे बहार आये मोहन जब उसे पुकारे तब वो आये पर मोहन कहा रह गया
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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सोच सोच उसका मन घबराये , एक सहस्त्र बरस का इंतजार वो ही जानती थी उसने कैसे किया अब एक एक पल एक हजार साल जैसा लगे उसे पर मोहन क्यों ना आये, ये कौन बताये उसे कौन बताये
जी तो बहुत करता की आवाज दे अपने मोहन को की क्या वो भूल गया अपनी मोहिनी जो अब तक ना आया पर विवश थी आवाज भी ना दे सकती थी वक्त बदल गया था और क्या मोहन भी



“मैं आऊंगा, मैं आऊंगा जल्दी ही आऊंगा मेरी........... मोहि...... ” ये बोलते ही उसकी आँख खुल गयी सांसो की रफ्तार कुछ कम हुई तो उसने देखा की पूरा बदन पसीने से जैसे नहाया हुआ है पास रखे जग से पानी लिया और कुछ घूंट पिया उसने



बार बार उसे ये ही सपना क्यों आता था क्या था उस ख्वाब में जो उसे इतना परेशां कर देता था , उसने घडी पर नजर डाली सुबह के तीन बज रहे थे वो चलते हुए अपनी खिड़की पर आया बाहर काफी तेज बारिश हो रही थी



तभी उसके सामने वाली सड़क पर जैसे बिजली सी गिरी और ऐसा लगा की उसने किसी को देखा हो पर वहा पर कोई नहीं था या सिर्फ उसका वहम था वो कुर्सी पर बैठ गया और अपने सपने के बारे में सोचने लगा की आखिर बार बार एक ही सपना उसको क्यों आता है और वो जो धुंधली सी परछाई सी दिखती है उसको


वो क्या है क्यों दिखती है उसको उसका क्या सम्बन्ध है उन सब से , क्यों उसे वो सपना अपना सा लगता था और जो शब्द आज उसने सुना था मोहन , कौन था ये मोहन और क्या सम्बन्ध था उसका मुझसे


शिवाय सिंह ओबरॉय , उम्र पच्चीस बरस, होटल इंडस्ट्री के चमकते सितारे, २५०००० करोड़ की सम्पति के मालिक, माँ- बाप बचपन में ही एक हादसे में गुजर गए थे,इतनी शोहरत के बावजूद खुद के लिए एक घर नहीं इनके पास बस अपने बिजनेस के लिए आज इस देश में कल इस देश में
अपने ऑफिस में बैठा शिवाय, अपने उसी सपने के बारे में सोच रहा था की तभी उसकी सेक्रेट्री शगुन आई


“सर, अपने नए होटल के लिए हमने कुछ जगह देखि है, ये सब लोकेशन की तस्वीरे है आप देख लीजिये ”


शिवाय ने उन तस्वीरों पर एक नजर डाली और फिर बोला- इनको रद्दी में फेक दो , ये हमारा 1000 वा होटल होगा तो इसे सबसे अलग होना चाहिय


शगुन- पर सर आप कितनी लोकेशन रिजेक्ट कर चुके है , आपकी पसंद क्या है इस होटल के लिय


शिवाय- मुझे खुद नहीं पता सच कहू तो तुम जाओ और इर स देखो



शगुन ने अपना माथा पीट लिया पिछले चार महीनो से शिवाय हर लोकेशन को बस रिजेक्ट ही किये जा रहा था आखिर उसने क्या चाहिए था शगुन ने बहुत तलाश किया और आखिर में उसे कुछ मिला तो उसने शिवाय से बात करने का सोचा



शगुन- सर, मुझे एक ऐसी लोकेशन मिली है की आप सुनकर हैरान रह जाओगे



शिवाय- पिछले बार भी तुमने इसा ही कुछ कहा था



शगुन- पर सर इस बार आप बस देखिये उसने अपना लैपटॉप शिवाय की तरफ किया



और जैसे ही शिवाय ने स्क्रीन की तरफ देखा , उसे झटका सा लगा वो एक एक कर के सारी तस्वीरों को देखने लगा , उस इसा अलग की इ जगह स उसका एक गहरा नाता है अपनी सी लगी उसे
वो- ये येतो एक खंडहर सा है



शगुन- सर मैंने पता किया है एक ज़माने में राजा का महल होता था पर समय के साथ सब ख़तम हो गया सर्कार ने ध्यान दिया नहीं तो हालत ऐसी है पर अपनी टीम इसे एक शानदार हेरिटेज होटल में बदल देगी अगर आप हां कहे तो



शिवाय- पर ये जगह है कहा,



शगुन- सर राजस्थान में चित्तोड़ में है कही अगर आप हां, कहे तो मैं शाम तक पूरी डिटेल्स मंगवा लू
शिवाय- हां, कल के लिए टिकेट बुक करवाओ, मैं खुद इस साईट को देखना चाहूँगा वैसे भी एक अरसा हो गया इंडिया नहीं गया तो इसी बहाने एक छोटा हॉलिडे भी हो जायेगा



शगुन को यकीन नहीं हुआ उसका बॉस इस लोकेशन के लिए मान जायेगा पर वो खुश थी चलो बॉस को एक साईट तो पसंद आई उसने अपनी तैयारिया शुरू कर दी



जगतपुरा गाँव के लोग आज बहुत हैरत में थे , ऐसा लग रहा था की जैसे गाव म कोई मंत्री आ रहा हो एक के बाद एक गाडियों का काफिला आ रहा था शिवाय रस्ते में था पर तभी उसे शगुन का कॉल आया और फिर गाड़ी गाँव की बजाय सर्किट हाउस की तरफ मुद गयी



वहा शगुन पहले से ही मोजूद थी थोड़ी चिंतित थी शिवाय ने पुछा तो बोली- सर हमारे दो आदमी महल का जायजा लेने गए थे ऐसे ही और दोनों की लाशे महल के बाहर मिली है



शिवाय- कॉल पोलिस, हमारे आदमियों की जाना कैसे गयी, पता करो



शगुन- सर , गाँव के लोगो से पता चला है की महल में कोई भुत-प्रेत है मेरी मति मरी गयी थी मुझे इसके बारे में आपको बताना ही नहीं चाहिए था



शिवाय- क्या बकवास कर रही हो तुम भुत कुछ नहीं होता कल हम खुद चलेंगे वहा पर हो सकता है की कुछ लोगो की दिक्कत हो वो ना चाहते हो की महल बीके



शगुन- पर सर अभी तो किसी को नहीं पता की हम महल ख़रीदन आये है
बात में दम था पर शिवाय के अपने तर्क थे,



शिवाय- और हा, वो महल के मालिको को भी कल बुलवा लेना उनसे हबी बात करेंगे



शगुन- हो जायेगा सर, इस गाँव के सरपंच के परिवार के पास है इसकी मिलकियत बरसो से



शिवाय- वैसे मैने देखा गाँव खूबसूरत है मैं गाँव को देखना चाहूँगा , घूमना चाहूँगा



शगुन- मैं अर्रेंग्मेंट करवाती हु



शिवाय- नहीं, मैं अकेला जाना चाहता हु कम से कम कुछ घंटे तो इस vip लाइफ से छुटकारा मिले
शाम को शिवाय निकल पड़ा अपनी कार लेके जैसे जैसे वो गाँव की तरफ बढ़ रहा था उसकी धड़कने तेज हो रही थी उसे लग रहा था की जैसे शायद वो पहले भी यहाँ आ चूका है



और फिर अचानक से ही गाडी को ब्रेक लगे, उसे अपनी आँखों पर यकीन ही ना हुआ

शिवाय के सामने एक विशाल कीकर का पेड़ खड़ा था , उसे जैसे यकीन नहीं हो रहा था ये पेड़ , ये पेड़, इसी को तो वो अपने सपनो में देखता आ रहा था उसका कलेजा जैसे जगह ही छोड़ गया था नहीं ये नहीं हो सकता ऐसा नहीं हो सकता


वो गाड़ी से बाहर आया, और उस पेड़ की तरफ बढ़ने लगा और उसके सामने जाके खड़ा हो गया शाम का समय था हवा चल रही थी फिर भी उसको पसीना आ रहा था गला जैसे सुख रहा था पानी की प्यास सी लग आई उसे पर गाड़ी में पानी नहीं था



पल पल प्यास सी बढे उसकी पर यहाँ पानी कहा आये, पर जैसे उसे पता था उसके पैर अपने आप ही एक और बढ़ने लगे और कुछ मिनट बाद वो उसी पानी के धौरे पे पहुच गया जिसे कभी मोहिनी ने अपने मोहन के लिए बनाया था



आज भी पानी लबालब था उसमे, उसने अपनी अंजुल में पानी लिया और पीने लगा पर ऐसा स्वाद पानी का उसे हैरान कर गया इतना मीठा स्वाद जी भर के उसने पानी पिया फिर वो हुआ वापिस उसकी जुबान पर पानी का स्वाद ही था उस पल



आया वापिस, वो उसी पेड़ के पास एक बार फिर से उसके कदम रुक गए क्यों उसे वो पेड़ अपना सा लग रहा था क्यों लग रहा था की इस जगह पर पहले भी आ चूका है कुछ तो रिश्ता है उसका इधर मोहिनी ने देखा उसे आँखों में आंसू आये लगा की अब इंतजार ख़तम होगा



पर ये क्या वो तो वापिस हो लिया, शिवाय बढ़ गया गाँव की तरफ, और फिर आया महादेव मंदिर जो साक्षी था किसी के प्रेम का , जहा हुआ था जावा किसी प्यार, शिवाय ने गाड़ी रोकी उसके कदम जैसे खुद उसे मंदिर की और ले जा रहे थे



और जैसे ही मंदिर की सीढ़ी पर उसने पैर रखा जैसे की एक बोझ सा आ पड़ा उसके सर पर और फिर उसे कुछ याद ना रहा , मंदिर की घंटिया अपने आप बज उठी, गाँव वाले हुए हैरान वो पड़ा रहा बेहोश वही पर



“मोहन, मोहन मैं इंतजार कर रही हु, मेरे पास आओ मोहन, मुझसे बात करो मोहन इंतजार की घडिया ख़तम हुई, आओ मोहन आओ मोहन अपनी मोहिनी को देखो मोहन ”


“मोहिनीईईईईई ” एक तेज चीख के साथ शिवाय की आँख खुल गयी कमरे में अँधेरा सा परन्तु जल्दी ही रौशनी हो गयी, उसने अपनी भीगी आँखों से देखा शगुन उसके पास ही बैठी थी शिवाय की साँस फूली हुइ थी



शगुन ने उसे पानी दिया और बोली- क्या हुआ कोई डरावना सपना देखा क्या



शिवाय- मैं- यहाँ कैसे



शगुन- आप मंदिर में बेहोश हो गए थे हमे खबर होते ही ले आये डॉक्टर ने बताया शायद स्ट्रेस की वजह से ....


शिवाय- नहीं ऐसा कुछ नहीं



शगुन- तो फिर कैसा है शिवाय मैं तुम्हारी सेक्रेटरी ही नहीं तुम्हारी दोस्त भी हु कुछ प्रॉब्लम है तो शेयर कर सकते हो



शिवाय- पता नहीं , तुम तो जानती ही हो मुझे अजीब अजीब सपने आते है और आज जब मैं गाँव की तरफ घुमने गया तो मैंने उस पेड़ को देखा जिसे मैं अपने सपनो में देखता आया हु और वो ही मंदिर हां वो मंदिर वो ही है



शगुन- ये तुम्हरा वहम है भला ऐसा कैसे हो सकता है



शिवाय- मैं नहीं जानता पर ऐसा ही है शगुन ऐसा ही है



शगुन- पर तुम बेहोश कैसे हुए कुछ याद है



शिवाय- नहीं, कुछ याद नहीं ,



शगुन- वैसे ये मोहिनी कौन है



शिवाय- कौन मोहिनी



शगुन- अभी तुम चीखते हुए उसका ही नाम लेके उठे हो



शिवाय- पर मैं तो किसी मोहिनी को नहीं जानता



पर तभी उसे कुछ याद आया सपने में ये ही तो सुना था उसने मोहन अपनी मोहिनी के पास आओ कौन है ये मोहन और कौन है ये मोहिनी



शिवाय- एक काफी ले आओ सरदर्द हो रहा है



शिवाय बाहर गैलरी में आ गया और सोचने लगा मोहिनी कौन हो सकती है ये मोहिनी और उसके मुह से कैसे निकला मोहिनी



“मोहिनी, आ जाओ , आ जाओ मोहिनी ” जैसे ही ये शब्द शिवाय के मुह से निकले मोहिनी तड़प गयी मोहन ने पुकारा जो था उसको , उसके मोहन ने पुकारा था उसे पर जब तक वो सामने आके न बुलाये वो कैसे आये बाहर सोचे वो


कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

Post by 007 »



सुबह हुई शिवाय बाकि टाइम बस सोचता ही रहा मोहिनी कौन हो सकती है आज उसे महल देखने जाना था पर शगुन ने बताया की गाँव में आज शिवरात्रि का मेला है तो सरपंच जी मेले में व्यस्त रहेंगे उन्होंने माफ़ी के साथ कहा है की आज तो मुलाकात नहीं हो पायेगी तो हम कल महल चलेंगे अब मालिक का साथ होना जरुरी है ना



शिवाय- तो चलो हम भी मेले में चलते है अब आये है तो थोडा घूमना फिरना भी हो जायेगा



शगुन- ये तुम्हे क्या हो गया है , वो शिवाय जिसके लिए एक एक मिनट कीमती है वो मेले में जाने को बोल रहा है



शिवाय- कभी कभी हमे भी हक़ है सुकून के पल जीने का



एक मेला तब लगा था एक मेला आज लगा था , वो तब भी था वो अब भी था जल्दी ही सरपंच को सूचना मिली की शिवाय सिंह ओबरॉय मेले में आ रहे है तो वो भी खुश हो गया स्वागत की तैयारिया की गयी और फिर शिवाय पंहुचा वहा पर



सरपंच- स्वागत है सर आपका वो मेले की वजहसे मैं मिलने नहीं आ पाया



शिवाय- कोई बात नहीं सरपंच जी, चलो इसी बहाने मेले में घूमना भी हो जायेगा



सरपंच शिवाय को बताने लगा मेले के बारे में घूमते घूमते वो मंदिर के प्रांगन तक पहुचे



शिवाय- ये बड़ा सा पत्थर कैसा है रस्ते में सरपंच जी आने जाने वालो को परेशानी होती होगी इसको साइड में क्यों नहीं करवाया



सरपंच- बहुत कोसिष की पर नहीं होता, बड़े बुजुर्ग कहते है की स्वयं महादेव ने इसको यहाँ स्थापित किया था ये शिवलिंग है आप गौर से देखिये इसे इस मान्यता के साथ की कोई आएगा और वो खुद इसे अपने हाथो से स्थापित करेगा



शिवाय- आप भी इन बातो में मानते है ये पुराने ज़माने की बकवास बाते
सरपंच- आप बड़े लोगो को बकवास लगता होगा पर गाँव में यही मान्यता है कितने लोगो ने कोशिश की कितनी मशीने मंगवाई पर सब नाकाम अब आप ही बताइए ऐसा क्यों
शिवाय- मैं नहीं मानता
सरपंच- तो फिर आप भी एक कोशिश कर लीजिये देखते है आपकी धारणा सही है या हमारी मान्यता
शिवाय को उसकी बात चुभ सी गयी पर इतना बड़ा पत्थर कोई इन्सान कैसे उठा सकता है पर उसने सोचा कोशिश करने को और कुछ नहीं तो थोडा फन ही हो जायेगा
और जैसे ही शिवाय ने कोशिश की उसे वो पत्थर फूल सा लगा और देखते ही देखते उसने वो भारी भरकम पत्थर उठा लिया और ले चला ऊपर की और जैसे उसके कदम अपने आप उसे बता रहे थे की कहा जाना है
“”असंभव” वहा उपस्तिथ सब लोगो के मुह से बस एक ही शब्द निकला हर कोई हैरत में ये क्या करिश्मा हुआ तो क्या वो आ गया है जिसके आने के बारे में बस बुजुर्गो से पीढ़ी दर पीढ़ी गाँव वाले सुनते ही आ गये थे
जैसे जिसे भी पता चला लोग मेले में जुट गए मंदिर खचाकच भर गया
शिवाय- क्या सरपंच जी, पत्थर वजन दर्द दीखता है जरुर पर था नहीं देखो कैसे मैंने रख दिया
अब सरपंच क्या कहे बस हाथ ही जोड़ दिए, पर लोगो के लिए तो जैसे चमत्कार ही था शिवाय आगे बाधा ही था की एक छोटी बच्ची उसके पास आई और बोली- बाबूजी बंसी खरीदोगे
शिवाय को उस का बंसी बेचना अच्छा नही लगा
वो- बोला- कितने की है गुडिया
लड़की- दस की एक
शिवाय- एक काम करो आप हमे सारी दे दो
उसने शगुन को इशारा किया और वो बंसी उसके हाथ में ही रह गयी तभी सरपंच को किसी के साथ जाना पड़ा
शगुन- बंसी तो ऐसे पकड रही है जैसे की बजाना भी जानते हो
शिवाय- बजा भी सकता हु
शगुन- कोशिश करो
शिवाय ने बंसी अपने होंठो से लगायी और बजाने लगा ये कैसे कैसे रंग थे शिवाय के जो आज उभर रहे थे शगुन तो जैसे खोने लगी और खोने लगी थी दूर कही मोहिनी कितनी सदिया बीत गयी थी उसे ये मधुर तान सुने हुइ उसके पैर मचलने लगे नाचने को पर वो मजबूर थी आज उसे गुस्सा सा आने लगा था अपनी बेबसी पर
और चौंक गयी थी वो भी उसे यकीन नहीं हुआ कितने बरस बीत गए और आज उसने मोहन की बंसी सुनी थी महकने लगी थी वो झुमने लगी थी वो महल जैसे रोशन सा होता चला गया दिव्या की ख़ुशी में वो जान गयी थी मोहन आ गया है उसका मोहन लौट आया है लौट आया है
नाचे गए झूमे अपने आप से बाते करे और करे भी क्यों ना , शिवाय ने अब बंसी अपने होठो से अलग की
शगुन- मुझे नहीं पता था तुम्हे इतनी अच्छी बंसी बजानी आती है
शिवाय- मुझे खुद नहीं पता था
फिर उन दोनों ने पूजा की और बस चलन को ही थे की एक बुजुर्ग साधू उनके सामने आ गया बोला- तो आ गए मोहन
शिवाय बुरी तरह से चौंक गया
शगुन- बाबा, कोई ग़लतफहमी हुई है ये शिवाय है मशहुर बिसनेस मन शिवाय सिंह ओबरॉय
बाबा- तुम्हारे लिए शिवाय है मेरे लिए मोहन है
शिवाय की उत्सुकता बढ़ गयी अपने सपनो में भी तो वो मोहन को ही सुनता था कोई पुकारता था मोहन को
बाबा- ,मोहन उसने बहुत इंतज़ार कर लिया है अब उसे बुला लाओ उसे मुक्त करो इस लम्बी जुदाई से
शिवाय- बाबा मैं समझ नहीं पा रहा हु कुछ भी
बाबा- तुम आ गए हो सब जान जाओगे, क्या लगता है जिस पत्थर को महादेव ने स्थापित किया उसे कोई और क्यों नहीं उखाड़ पाया सिवाय तुम्हारे, ये बंसी जिसे तुमने कभी देखा भी नहीं कैसे सीखी बजानी क्यों तुम्हे वो स्वप्न आते है तुम्हारा यहाँ आना पहले से तय था मोहन ,वो शिवाय सिंह ओबरॉय जो एक घूंट भी मिनरल वाटर पीता है क्यों उस धौरे में पानी पी रहा है क्यों
कैसे तुम अपने आप वहा तक चले गए तुम्हे कैसे पता था की वहा पर पानी होगा
शिवाय- किस्मत से मैं पहुच गया होऊंगा
बाबा- किस्मत नहीं नियति क्या उस कीकर के पेड़ को नहीं देखा जो तुम्हारे और मोहिनी के प्रेम का साक्षी रहा है जाओ मोहन जाओ बुलाओ उसे, बहुत सहा है उसने अब उसे मुक्त करो
शिवाय- मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा बाबा
बाबा- उसी कीकर के पेड़ के पास जाओ मोहन और तीन बार मोहिनी बोलना और फिर कल इसी मंदिर में आना
शगुन- शिवाय कही नहीं जायगा शिवाय हमे नहीं देखनी लोकेशन सब मेरी गलती है मुझे तुम्हे यहाँ लाना ही नहीं था
बाबा- इसकी नियति इसे यहाँ लायी है पुत्री इतिहास में बिछड़े प्रेमियों के मिलने का समय आ गया है मोहन इस पल मोहिनी के हाथो से तुम जल ग्रहण करोगे तुम्हे सब याद आ जायेगा पर अभी तुम जाओ मुक्त करो उसे
पता नहीं शिवाय पर कैसा असर हुआ बाबा की बात का मंत्रमुग्ध सा वो बढ़ा और जा पंहुचा उसी कीकर के पेड़ के पास और बोला- मोहिनी, मोहिनी मोहिनी आ जाओ मोहिनी आ जाओ
और वो पेड़ जल उठा धू धू करके चारो तरफ जैसे आग सी लग गयी पर शिवाय भी समझ गया था कुछ तो गड़बड़ है क्या ये पुनर्जन्म का पंगा है हां, ऐसा हो सकता है उसे अजीब सा डर लग रहा था पूरी रात उसे नींद नहीं आई रात आँखों आँखों में कटी उसकी
अगले दिन वो अकेले ही मंदिर में गया और जैसे ही वो अन्दर गया उसने वहा पर एक लड़की को पूजा करते हुए देखा और शिवाय का दिल जैसे ठहर सा गया ऐसा खूबसूरत चेहरा उसने पहले कभी नहीं देखा था , उसने अपने दिल की धडकनों को आज पहली बार महसूस किया
कुछ तो बात थी उस लड़की में उसका चांदी जैसा रंग उसके बाल जैसे लहरा रहे थे मोहिनी ने देखा उसे और मुस्कुराई उसके पास आई और बोली- परसाद लो
शिवाय ने अपने हाथ आगे किये उसकी उंगलिया मोहिनी की उंगलियों से टकराई शिवाय पर जैसे नशा सा हो गया था
शिवाय- कौन हो तुम
मोहिनी- तुम्हे नहीं पता क्या
वो- नहीं जानता
वो- जान जाओगे मुस्कुराई वो
मोहिनी- मोहन, तरस गयी हु तुम्हारी बंसी को सुनने की आज मेरा नाचने को जी करता है बजाओ ना मेरे लिए
मोहिनी ने उसके हाथ में बंसी थमा दी और कैसे मन कर देता उसको वो ना पहले कभी किया था उसने न अब कर सकता था
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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