गाँव की डॉक्टर साहिबा

Post Reply
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

गाँव की डॉक्टर साहिबा

Post by Jemsbond »

गाँव की डॉक्टर साहिबा

फ्रेंड्स एक और कहानी जो मुझे अच्छी लगी आपके लिए पोस्ट कर रहा हूँ इस कहानी का मूल लेखक कोई और है आइ होप ये कहानी आपको ज़रूर पसंद आएगी
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

Post by Jemsbond »

दोपहर की कड़ी धूप मे मिसेस. काव्या शर्मा एक देहाती गाओं के कच्चे रास्ते पे अपनी एक सामान की ब्याग लेकर खड़ी थी. मई का महीना था तो छुटियो के दिन थे. हर दम देल्ही रहने वाली एक हाइ प्रोफाइल महिला डॉ. काव्या अपनी यह छुटिया बिताने के लिए अपने नानी के गाओं मे जाने का प्रोग्राम बना चुकी थी.
डॉ काव्या के बारे मे बताए तो यू समझ लीजिए के जिसका जनम ही सिर्फ़ लोगो के अंदर वासना उभारकर उनको तड़पाना था. काव्या एक 28 साल की शादी शुदा औरत थी. वो एक अच्छे घर की पधिलिखी लड़की थी. उसने अपना एजुकेशन डोक्टोरी पेशे में किया था. वैसे तो समाज मे उसका नाम बहुत शरीफ लहजे मे था, पर अंदर मे थी उसके संभोग की देवी. उसकी शादी एके बिज़्नेसमन से हुई थी. मिस्टर रमण शर्मा जो 3५ साल के बड़े आदमी थे. शादी अरेंज थी और रमण जो हमेशा अपने काम मे बीज़ी होने के कारण अपने खूबसूरत बीवी को ज़्यादा वक़्त नही दे पाते थे. इसीलिए शायद शादी के 5 साल बाद भी उनको कोई संतान नही थी. दूसरी तरफ काव्या जो बहुत मादक राजसी महिला थी. उसका चेहरा बहुत खूबसूरत था लेकिन उसको देखके मादकता के भाव ज़्यादा जाग जाते थे. 34-25-36 का बदन मानो जैसे सिर्फ़ मर्दो का मज़ाक उडाने के लिए ही बना हो. उसका बदन इतना कसा हुवा था के हर एक औरत को अंदर से जलन और हर मर्द का पानी देखते ही निकल जाए. गोरा दूध जैसा बदन और उसमे से आती मादक खुश्बू जिसको छुने की चाहत हर मर्द मे थी.

ऐसी शहर की वासना परी आज एक देहाती गाओं के कचे सड़के पे अकेली खड़ी थी. उसका प्लान कही दिनों के बाद अपने गाव जाने का था. पर उसको ये पता न था के यहा एक ही समय बस आती हैं और वो अब निकल गयी थी. उसका मोबाइल जिसपे सिग्नल आना बंद हो गया था उसको गुस्से से अपनी हाथ मे लिए वो कड़ी धूप मे खड़ी थी. धूप इतनी ज़्यादा थी के पसीने से उसकी हालत खराब हो रही थी. देहाती जगह और उपर से गर्मी के दिन थे इसलिए हर समय ए.सी. मे रहने वाली शहरी डॉक्टर को शायद ये धूप हद से ज़्यादा लग रही थी.



काव्या के बालो से और गले से पसीना टार हो के बह रहा था. हल्का सा मेकअप और मलाई जैसे लाल होठो पे भी पसीने की हलकी बूंदे जमा होने लगी थी. उनको बार बार वो अपने दसताने से साफ कर रही थी. वैसे उस समय भी काव्या को देख ऐसा लग रहा था के उसको वही चिपक के दबाया जाए. उसने एक स्लीव्लेस ब्लाउस पहना था जिसका गला आगे से और पीछे से बहुत गहरा था. उसको इस्ससे ज़रा रहत तो मिल रही थी. अंदर महंगी ब्रसियर पहनी थी जो उसको उसके जन्मदिन पे रमण ने गिफट में परदेस से लाके दी थी वो उसके पसीने से साफ दिख रही थी. शिफोन सारी उसके बदन से इस कदर चिपकी थी की जैसे वो अब उसको कभी नही छोड़ने वाली. साडी कमर के निचे पहनी हुयी यही. जिससे उसकी नाभि चमक उठ रही थी. हाइ-हील्स से उसका पिछवाड़ा और उभरा था जो जाने कितने मर्दो का अंतरंग का सपना था. शहर में कभी कबार वो बस से सफ़र करती तो भीड़ में जाने कितने लोग उसके पिछवाड़े को मसलते थे. जाने कीतने बार उसकी गदेदार मुलायम उभरी गांड पे कित्नोने अपने लंड रगड़े थे ये तो उसको भी नहीं पता था. उसकी गांड थी ही इतनी टाइट और उभरी के बुढा लंड भी फुल जाये.उस समय भी डॉक्टर होने की वजह से हद से जादा साफ रहनेवाली काव्या को पसीना आ तो रहा था पर उसमे भी उसके बदन की कामुक खुश्बू और उसका फेवरेट पर्फ्यूम अपना गजब ढा रहा था उसके वजह से पूरा समा जैसे रंगीन हो गया हो.

तभी अचानक उसने अपने ब्रांडेड सनग्लासेस अपने कातिल निगाहों से उपर किए तो देखा उसकी और एक देहाती ऑटो रिक्षा चले आ रहा था. शायद उसको एक आशा की किरण दिख गयी पर उसको नही पता था ये आशा उसकी ज़िंदगी बदलने वाली राह की हैं. सामने से एक ऑटो उसके पास आ रहा था. ऑटो की स्पीड धीरे धीरे कम हो रही थी और काव्या को ऑटो मे कुछ लोग बैठेवाले दिख रहे थे....
चंपकलाल जिसका ऑटो था उसमे सुलेमान और सत्तू दोनो गाओं के दो कमीने और निकम्मे इंसान बैठे थे. और उनके साथ थी एक १९ साल की देहाती जवान लड़की सलमा. ये दोनो भी एक दूसरे के जिगरी दोस्त थे पर इनकी दोस्ती भी थोड़ी अजीब थी. सुलेमान एक ३३ साल का निकम्माँ आवारा किस्म का आदमी था. जिसकी पहली बीवी उसके तीन बच्चे लेकर के उसको छोड़ गयी थी. उसके बाद उसकी दूसरी बीवी उसके रोज के जुवा खेलने की आदत से उससे झगड़े कर के अपने माइके चली गयी थी. जाते समय वो भी पेट से थी. जुवे में हमेशा अपना दिमाग लगाने वाला सुलेमान चुदाई के मामले में कहा कम था. बीवियों के जाने के बाद अब वो शहर की सस्ती रंडियो को चोदके कभी कबार अपनी राते बिताता था. और जो राते बच जाती उनमे वो चोरी या मजदूरी की कामे करके अपनी ज़िन्दगी को चला रहा था . वही दूसरी तरफ सत्तू एक २७ साल का ऑटो चालक था. उसको सुलेमान ने अपने साथ रहकर के जुवे की गन्दी आदत लगवा दी थी. जिससे वो एकदूसरे के मुरीद बन गए थे. शायद किसीने सच कहा हैं जिसके साथ रहोगे ठीक वैसा ही बनोगे. सत्तू इसका सरल उदहारण था.
सत्तू उसके मालिक सेठ चम्पकलाल का ऑटो चलाता था. सत्तू को उसके बदले में चम्पकलाल थोड़ी मजूरी भी देता था. पर सत्तू था एक मामले में बड़ा ही किस्मतवाला. उसको चम्पकलाल का ऑटो तो मिला ही साथ में ही उसकी बीवी मंगलादेवी को टटोलने का मौका भी. मंगला देवी बड़ी ठाकुरों की तरह रॉब चलाती थी. चम्पक लाल की एक न चलती उसके सामने. ४१ की उम्र में भी उसकी जवानी थी के उसको संभाले ही नहीं जाती. सत्तू हर इतवार जब चम्पक लाल के घर जाता तब तब वो उसके घर के सारे काम भी करता था और साथ ही मंगलादेवी की सेवा. कभी कबार चम्पकलाल काम के मामले में शहर जाता तो इतवार में मंगलादेवी सत्तू से न जाने क्या क्या नहीं करवा लेती थी. उसी बहाने सत्तू उसको पूरी तरह से निहारके उसकी भरपूर भरे हुए देहाती भरपूर बदन का जमकर मजा लेता था. कभी मालिश करके तो कभी उसका बदन दबवाके.
सुलेमान और सत्तू की दोस्ती गहरी तब हुयी जब एक दिन वो दोनों सुलेमान के चाचा सलीम की बेटी सलमा को ज़बरदस्ती चोदते टाइम एके दूसरे से मिले थे. वही जो ऑटो में उनके साथ बैठी थी. किस्सा यु था के सुलेमान रंडियों को चोदते उकसा हो गया था तो उसने अपनी गन्दी नज़र अपनी ही भतीजी पे रखी. एक दिन गाँव के कच्ची गली में जब वो सलमा को जबरदस्ती चोद रहा था तभी सत्तू ने वो देख लिया. दोनो ने अपनी मिली भगत च्छुपाने के लिए ये बात आपस मे ही बाट ली. बेचारी सलमा जिसको लगा था शायद सत्तू के आने से उसको मदद मिले पर हुआ उल्टा. उस कमसिन को फिर बारी बारी दोनो ने पेल दिया. उसके बाद मानो दोनों एक दुसरे के जिगरी बन गए हो ऐसे हर बात साथ साथ करते थे. सुलेमान को एक और साथी मिल गया था जो उसको उसके आवारा कामो में साथ दे सके.
अभी अभी एक घंटे पहले ही उन्होने सलमा को बारी बारी गन्ने के खेत मे चोदा था और उन कलूटो की किस्मत देखो आज उनको ऐसी राजसी युवती दिख गयी कि उनके चुदाई के अरमान फिर से सिर चढ़कर बोल उठे.

सत्तू जो सामने की सिट पे ऑटो चलाते बैठा था उसने सुलेमान से कहा “आबे मादरजाद सुलेमान, देख तो सामने...क्या माल खड़ा हैं देख,,”

सुलेमान जो पिछे सलमा के साथ बैठा था उसने नज़र दौड़ाई और वो बी सुन्न हो के रह गया.

सुलेमान: “अरी ह...तेरे मा की कमीने ..साली कौन छिनाल है रे यह..?”

सत्तू : “वही तो, चल पूछते हैं शहर की दिख रही हैं”

पीछे बैठी सलमा भी गौर से देख रही थी पर चुप चाप से. उसके मन में दोनों के प्रति बहुत क्रोध था. पर फिर भी इसबार वो खुद भी काव्या को देख के चौंक गयी. और पहली बार उसको ऐसा एहसास हुआ के दोनों कलुटो ने मानो उसका पल भर के लिए बहिष्कार कर दिया हो. सच में स्त्री की भी अलग विडंबना होती हैं जो दुसरे स्त्री के सुन्दरता को देख कभी खुश हो जाती हैं तो कभी जलन के भाव में गिर जाती हैं. ऐसा ही कुछ सलमा के साथ हो रहा था.
ऑटो ठीक काव्या के सामने रुक गया. दोनो के दोनो कलूटे काव्या को देखकर होश मे ही नही रहे. उन्होने उसको जब देखा तब उनको वो किसी परी से कम नही लगी. उसकी साडी का पल्लू ब्लाउज के ऊपर थोडा सरक गया था. गर्मी के कारण शायद ऐसा हो गया. काव्या के इस मादक रूप को देखके दोनों भौचक्के हो गए थे. सलमा जिसकी जवानी का रस वो कुछ ही वक़्त पहले पिकर उठ चुके थे वो काव्या को ऐसे देख रहे थे जैसे सदियों से वो उसी रस के प्यासे हो.

वो इस कदर काव्या पर अपनी नज़ारे गाढ़ रहे थे मानो आँखो से उसके साथ सुहागरात मना रहे हो. तभी अपने सनग्लासेस वापस अपनी निगाहों पे रखके सुनसान बने माहोल मे काव्या ने चुप्पी तोड़ी....
“..हेलोव.........”अचानक से हुए बात ने दोनो कलूटो को होश आ गया
“जी,,जी.. बीबी जी...”? हिछक हिछक के अपनी थूक गटक के सत्तू ने पुछा.
काव्या: “सुनो..ये बरवाडी कहा हो कर गुज़रता हैं?”
बरवाडी सुनते ही दोनो कलूटो को जैसे लगा आज सच मे खुदा भी हैवानो पे मेहरबान हैं. क्योंकि वो सब उसी गाओं के रहने वाले थे.
“जी बीबीजी बरवाडी..यहा से 15-१७ किमी दूर हैं...हम वही जा रहे हैं..”
सत्तू की नज़रे काव्या के गोरे गोर मखमल जैसे बाजुओं से लेकर उसके स्तनों के उभार पे जैसे झंडा रोन के खड़ी थी.
काव्या ने इन सब बातो से नज़र हटाके अपने बातो पे ध्यान केन्द्रित किया “ओके ओके...मुझे वही जाना हैं..कितना ऑटो भाडा लगेगा बोलो?”
इसपे पीछे बैठा सुलेमान झट से बोला ”अरे बीबीजी..पैसा ज़्यादा नही लेते हम,..तोहा मर्ज़ी हो जितना देना हैं दे दो”.
ऐसा कहते हुए उसने काव्या की गहरी गोरी नाभि की तरफ देख के अपने गंदे काले होंठो पे अपनी खुद्तरी जबान फेर दी.

काव्या इन सभी हरकतों से अब ज़रा अनकंफर्टबल फील कर रही थी दोनो की नज़रे उसको जाने नोच रही थी. उसको ऑटो में बैठी सलमा को देख थोडा अच्छा महसूस हुआ. चलो दो मर्दों के साथ कोई औरत भी थी उसके साथ. इस खयाल को देख के उसको थोड़ी संतुष्टि हुई. गर्मी और उपर से हो रही देरी को देख उसने सब भुलाकर कहा...”चलो ठीक हैं..२०० रुपय दूँगी, डन . इतना चलेगा?”
सत्तू जो 2 रुपय के लिए हिसाब का पक्का था उसने झटसे गर्दन हिलाई. और काव्या को बैठने के लिए इशारा किया. मौके का फायदा उठाते हुए सुलेमान ने सलमा को एक जगह सरका दिया और ऑटो के बाहर जैसे कूद ही गया.
“चलिए बीबी जी..ऑटो अपना ही हैं समझिये..आपको कोई शिकायत का मौका नहीं देंगे. आपका सामान भरी हैं उठाके रख देते हैं. ”
सुलेमान ने बड़ी कामुक अंदाज़ में 'सामान' शब्द का इस्तेमाल किया. उसकी नज़रे काव्या के सुडोल गोरे दूध जैसे बदन पर ऐसी चल रही थी जैसे वो कोई कारागिरी करनेवाला हो और काव्या उसकी मूरत. निचे झुक के उसने काव्या का सामान उठा के ऑटो के अंदर रख दिया. झुकने पर कोई भी चांस ना गवाए उसने काव्या की गोरे पेट के तरफ मूह लेकर एक लम्बी सांस भर ली. और उसका सामान जो के बस एक ब्याग में था उसको ऑटो के अन्दर रख दिया. खुद बीच मे बैठ कर उसने काव्या को बैठने को कहा.
“आइये बीबी जी आपका सामान रख दिया..आप भी आ जाओ अब....”
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

Post by Jemsbond »

काव्या को उसका मदत करने का तरीका देख अच्छा लगा. काव्या के बारे में बताये तो वो भले ही योवन सुंदरी राजसी महिला थी पर वो दिमाग से ज्यादा शातिर नहीं थी. उसको इंसान पहचानने में उतनी महारत नहीं थी. इसलिए जब कोई भीड़ में उसकी गद्देदार पृष्ठभाग को मसलता तो उसको लगता शायद उसीकी गलती होगी या भीड़ की वजह. इसका कारन था क्योंकि वो जिस परिवार से थी वहां सब शरीफ लहजे के ही लोग थे. कभी तो वो अपने मरीजो का इलाज भी बिना कोई फीस लेते कर देती. अपने पेशे से ज्यादा प्यार करने वाली काव्या हर इंसान की आदतों को एक बीमारी का रूप दे कर उसको निहारती थी ना के शक के नज़रो से.
ऐसी मन से नादान और तन से सुन्दर महिला इन शातिर लोगो के साथ ऑटो में बैठ गयी थी. ना जाने उसके जीवन में अब कौनसा बदलाव आनेवाला था. शायद शहर की डोक्टोरिन साहिबा को ये बदलाव नये रोमांचिक अनुभवों का उपहार देने वाले थे जो उसको हमेशा याद में रहेंगे.
सत्तू ने ऑटो स्टार्ट कर दिया....और ऑटो चालू हो गया. उसने सामने के मिरर मे देखा..और मुस्कुराया सुलेमान की इस हरकत पे.
“तो चले बीबीजी बरवाड़ी? देखिये गा बहुत मजा आएगा आपको कोई शिकायत का मौका नहीं देंगे.”
और ऑटो गाँव के तरफ रवाना हो गया. गाँव की कच्ची सड़को पे हिलता डुलता ऑटो, अनजान लोग और पुराणी गाँव की यादे सब मिल जुल के काव्या को बचपन के वो पल याद दिला रहे थे जहा वो खेली थी पर साथ ही अब जवानी का ये मोड़ उसको बहुत नयी यादे अब दिलाने वाला था और नए नए खेल का खिलाडी बनाने वाला था .
ऑटो मे काव्या और सलमा के बीच सुलेमान बैठा था. एक ३३ साल का अधेड़ काला आदमी जिसने लूँगी पहनि थी और एक जालीदार बनियान. मूह मे तंबाकू की गंध और बदन मे पसीने की बदबू. उसको मानो ऐसा लग रहा था के किसी परी के साथ सैर पे निकला हो. उसने ऐसी हुस्न की देवी को पहली बार जीवन में इतने करीब से देखा था. जब वो शहर जाता तब वो अक्सर एक कोठे पे जाता, वहा पर कुछ महंगी रंडिया भी होती थी. जो अमीर कस्टमर के साथ जाती थी. उनको देख आहे भर अपनी कडकी जेब का गुस्सा वो सस्ती रंडियों पे निकालता. सत्तु का हाल भी कहा अलग था. आज उसके ऑटो की सही मायने में इज्जत बढ गयी थी. जाने क्यों उसको आज खुदपर और चम्पकलाल पर बहुत फक्र महसूस हो रहा था. सच में वो समा ही कुछ अलग बन गया. औटो में काव्या की खुश्बू और सुलेमान की बदबू दोनो भी अपना अपना गजब ढा रहे थे.

तभी सुलेमान के शैतानी दिमाग़ मे कुछ आया उसने जान बुज़के अपना मूह सलमा की तरफ़ फेर दिया. सलमा जो के एक सलवार कमीज़ मे बैठी थी. सावले रंग की एक कसी हुई 1९ साल की देहाती जवान लड़की जिसको ये दो कलूटे अपने हवस के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे वो अभी अभी हुयी चुदाई से चुप हो बैठी थी. उसके भोली शकल को देख सुलेमान को आज बड़ा अच्छा लगा. उसके गले पर का निशान ने सुलेमान को अभी हुयी चुदाई की याद दिलादी. उसके दातो के लव बाइट्स उसको निशानि के उपहार में सलमा को मिले थे. सच में हवस से भरी चुम्बन को अंग्रेजी ने आज एक बड़ा स्थान दे दिया हैं ‘लव बाइट्स’.
सुलेमान ने ख़ुशी के मारे उसको कस के अपने पास खीचा और ज़ोर से उसके दाए गाल पे एक जोर की पप्पी ले ली और साथ ही उसके पेट पे चिकोटी काट ली.

“आआ..आम्मी ....ओऊ”….अचानक से हुए हमले से सलमा चीलाई....सो काव्या का ध्यान उसके पास चला गया और सामने से सत्तू ने भी पीछे कान दिए.

“अरे..मेरी मौधी..मेरी बेगम...मेरी लाडो..अब तक नाराज़ हो क्या...अपने मिया से ज़्यादा नाराज़ नही रहते..तू तो मेरी बीवी हैं ना...” सुलेमान ने जान बुज़के काव्या के सामने सलमा को अपनी बीवी कहा था. बल्कि सलमा उसके सगे बुड्ढे चाचा की औलाद थी. सलमा खुद हक्की बक्की रह गयी, जाने सुलेमान के दिमाग चल रहा था उसको ही पता.

उसने देखा काव्या चौक गयी हैं बस सुलेमान ने उसकी तरफ़ बिना कोई वक़्त जाया करे तुरंत मूह किया..और कहा..
“देखी ये न बीबीजी...ये हमारी बेगम हमसे नाराज़ हो गइ हैं..कुछ बोलिए ना आप पढ़ी लिखी लग रही हो”
काव्या थोड़ी हैरत से बोली...”व्हाट..आई मीन , म..मैं क्या बोलू? ये आपके आपस का मामला हैं..और ना ही मैं आपको जानती भी हूँ”

इसपे सुलेमान बोला ”अरे बीबीजी..खाक आपस का मामला हैं..अब हम बरवाडी के ही हैं ना और आप भी तो वह ही जा रही हो..तो हुए ना हम एक ही मामले मे..”

काव्या बोली ,”नो नो,.आई मीन.. हाँ मैं पढ़ीलिखी हूँ. अक्चुअली मैं एक डॉक्टर हूँ और गाओं में कुछ दिन रहने के लिए आई हु और कुछ दिनों के बाद वापस जाऊंगी..”

सत्तू झट से सामने से बोला..”.ऊऊओ...तो आप डॉक्टोरिया हैं बीबीजी...”

सुलेमान : अरे बीबीजी ..हमारे गाओं मे एक डॉक्टोरिया आने वाली थी ..कब से इंतज़ार था हमको..चलो फिर वो आप ही हैं. अब समझा”

काव्या इन बातो से अनजान थी. उसने इस गलत फैमि को दूर करने के लिए कहा “ अरे नहीं..वो मैं नहीं हूँ..वो कोई और होगा. मैं यहाँ अपने नाना के यहाँ रहने आई हूँ..किशोरीलाल अग्रवाल”

सत्तू जो सब गाँव की खबर रखता था उसने झट से पुछा “अच्छा मतलब आप ठाकुर किशोरीलाल की पोती हैं?...बड़े ही नेक आदमी थे चल बसे

इसपे काव्या बोली “हाँ..वो तो हैं ..बस नानी से मिलने आई हूँ.बहुत दिनों के बाद पुराना मकान देखने को भी मिलेंगा”

“अच्छा मतलब वो बड़ा बंगला वही जाना हैं न आपको बीबीजी...हम छोड़ देंगे आपको वहा तक. हमारा घर भी उसके थोडा आगे ही हैं नदी किनारे” ” मंगला देवी के घर का काम करते समय उसके लिए कुछ काम वो किशोरीलाल के घर भी रहते थे. जैसे कोई सामान राशन या व्यापार का लेन देन. सो मंगलादेवी उसको ही वहा भेजती थी इसी कारन उसको काव्या को जानने में कोइ देरी नहीं हुयी.

सुलेमान जो अब तक सत्तू की बाते सुन रहा था उसने बात काटते कहा “ अरे सत्तू तू भी क्या बिबिजो को परेशां कर रहा हैं..हमरे गाँव की मेहमान हैं और अपने ही गाँव की हैं...तू कुछ मत बोल..बीबीजी पर सुना हैं वहा इतने बड़े बंगले में सिर्फ दो तिन ही जन रह्ते हैं..अगर आप को कोई मदत लगे तो हमको ज़रूर याद कर लीजिये गा बीबी जी..”

सुलेमान की इस मदत करने की बार बार होते बात की काव्या पे दिमाग पे एक जवाब बना रहा था, उसको ये बात अच्छी लगी के गाँव के लोग बहुत खुले मन के हैं. पर उसको सुलेमान की इसके पिच्छे का मकसद नहीं पता था.
अपनी और एक गन्दी मुस्कुराहट दे कर सुलेमान सलमा की तरफ़ और एक बार मूह करके देखता हैं और उसको फिर से एक जम के चुम्मा जड़ देता हैं. लेकिन इस बार हमला कसे हुए देहाती होठों पे था.
“आईइ वाअ..देख सलमा, मेरी बेगम देख...हमारे गाओं मे अब डॉक्टोरीं साहिबा आ गइ हैं. अब हम सब का इलाज हो जाएगा..

सुलेमान इश्स कदर सलमा को चुम्मे दे रहा था वो देखकर काव्या शर्म पानी हो कर से नज़रे झुका के हा मे हा भर रही थी. वो करती भी क्या मिया बीवी समझ के वो उनको शर्माते इगनोर कर रही थी. और खुद शर्म से पानी पानी होती थी.

ये सब शीशे आगे से देख रहे सत्तू को सुलेमान पे इतनी जलन हो रही थी के उसको लगा ऑटो से उतर जाये और खुद उसकी जगह लेले.
सुलेमान ने कहा...”अरी डॉक्टर साहिबा..आपका स्वागत हैं फिर से हमारे गाओं मे..हम कब से किसी डॉक्टर साहिबा का इंतेज़ार कर रहे थे..आज आपके दर्शन हो गये..ऐसा लगा रा के मानो पुण्य का काम किया हो...” उसकी नज़रे काव्या के गले से दिखती हुई स्लीव्लेस ब्लाउस के दूध के चीरो की तरफ मानो डेरा डाल के बैठी थी.
ऑटो जैसे ही ख़राब सड़क पे आ जाता वो ज़रा हिलता उसके साथ काव्या के दूध उछल जाते और सुलेमान के लंड मे कोहराम मच जाता जिसका बराबर का हिसाब वो पड़ोस के सलमा पे निकालता था. सुलेमान का बाया हाथ सलमा के कंधो पे था और मूह काव्या के तरफ़. उसकी नज़रे भूके भेड़िए की तरह काव्या के उभरे और तने हुए गोर सीने पे जमी हुई थी. उसकी हिरनी जैसी गर्दन और नीचे उछलते भरे हुए ३४ के स्तन मानो किसी प्यासे की प्यास बुझाने की दो टंकिया हो. ये सब देखते उसके मूह मे पानी आ गया था काव्या थी ही इतनी सुंदर और उसके दूध तो बहुत सुडोल थे. उसको ऐसा लगा के वही काव्या का ब्लाउस खोलके उसके दूध को मसल मसल कर पी जाये.


अपनी आँखों से वो काव्य के दूध को नंगा कर रहा था और इसी कामुक इरादे मे अपनी सारी वासना की भड़ास वो बाजू सलमा पे निकाल रहा था.बीच बीच मे वो सलमा को छेड़ता था. काव्या के दूध को आँखो से नंगा करके उसको दबोचने की चाहत मे डूबे हुए सुलेमान ने अचानक से एक दम कसके सलमा का बया दूध मसल दिया.


"अया.........आअह्ह...." अचानक के हुए इस दबाव से सलमा चहक उठी.

उसकी चहक की अवाज में दर्द तो था पर वो मादक स्वरुप का था. काव्या को ऐसी आवाजे सुनके समझने में देरी ना लगी के सुलेमान और सलमा जरा ज्यादा ही ओपन दम्पती हैं. जिस तरह से सुलेमान सलमा को छेड़ रहा था काव्या शर्म के साथ अब थोडा रोमांचित भी हो रही थी.

तभी फिरसे सुलेमान अपनी नज़रे काव्या के दूध पे रखके कसमसाते हुए बोलता हैं,
"आह..स्स्स्स..,डॉक्टोरीं साहिबा,,,वैसे आप आई अब तो सब ठीक हो ही जाएगा..तनिक आपसे एक बात कहु..?"

काव्या थोड़े धीरे से बोली,,"हा बोलिए ना.क्या हैं?"

उसने इतने कोमल आवाज से सुलेमान से ये बोला था के उसके होश ही उड गए. उसको अभीतक किसीने इतनी इज्जत से बात नहीं की थी. यहाँ तक उसकी बीविया भी उसको गुस्से में गाली गलोच से ही बात करती थी. काव्या उसके खुलेपन से और सलमा के प्रति दिखाए गए प्रेम से उसको थोडा धीरे और शरमाते हुए नज़रे बचाते बात कर रही थी. और वो इसका पूरा इस्तेमाल अपनी नज़रे उसके बदन के कोने कोने पे चलाके ले रहा था.

सूलेमान काव्या के गोरी चिकनी बघलो से गर्मी के वजह से आती हुई पसीने की गंध को सूंघते हुए बोला..”...वैसे आप डॉक्टोरीन लग ही नही रहे हो..”

उसके लिए वो गंध किसी खुशबू से कम नहीं थी. उसमे काव्या की खूबसूरती और परफ्यूम की भीनी गंध भी आ रही थी. हद से ज्यादा साफ़ रहने वाली काव्या अपने अंग अंग का ख्याल रखती थी. रमण के साथ जब भी वो क्लब में जाती या किसी पार्टी में जाती तो सब उसके खूबसूरती के चर्चे करते थे. कुछ ठरकी मरीज़ तो बस उसको देखने के लिए ही उसके क्लिनिक के चक्कर काटते रहते. नियमित योग, वॉक, और हेल्दी फ़ूड खाके उसकी बॉडी फिट थी. उसके बदन पे बाल आते ही नहीं थे फिर भी वो महीने में कभी वैक्स और कही और नुस्के इस्तेमाल करती थी. जिसके कारन उसकी त्वचा बहुत मूलायम और तेजदर हो गयी थी.

काव्या ने पहली बार सुलेमान की आखो में देखा और चौक हो के बोली...”ओह?? ऐसा क्यों?”
पढ़िलिखी काव्या को लगा शायद वो उसको अनपढ़ तो नहीं समज रहा लेकिन उसको ये नही पता था के ये बोलने के पिछे उसका शातिर दिमाग़ हैं. सुलेमान भी झट से बोला..”मतलब आप तो किसी हेरोइन की माफिक लगती हो” और ज़ूत मूठ के शर्माके अपने गंदे दात दिखाते रहा.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

Post by Jemsbond »


काव्या इस बात पे ज़रा शर्मा गयी और थोड़ा सा हस दी. स्वाभाविक हैं स्त्री को अपने सौदर्य की स्तुति पसंद होती हैं और वो इसका जवाब शरमाके देती हैं. काव्य भी शरमाके सुलेमान से बात टालते हुए बोली ..."हे हे...आप भी ना सब बस, कुछ भी" . हालाकि उसको ये बात पसंद आई थी.

उसकी हसी को देख के सत्तू ने कहा..."हा सुलेमान भाई..वो अपनी अमीशा पटेल की माफिक..."
अमीशा पटेल का नाम सुनते ही काव्या शर्म से और लाल हो गयी. उस ऑटो मे अमीशा का फोटो लगा था वो भी सिर्फ़ बिकिनी वाला. सुलेमान ने अपना हाथ उस फोटो पे फेरते कहा “ हम्म..बात तो ठीक कही सत्तू तूने..बीबीजी है बिलकुल इस हेरोइनी माफिक..कितनी खुबसूरत हैं”

“बिबिजी हम गलत नाही कहत..आप सच में उस जैसी हो..बल्कि मैं तो कहू उससे भी आगे”
काव्या शर्म से लाल हो रही थी. और वो एक मुस्कराहट से बोली..”अब बस हां..इतनी तारीफ..कहा वो अदाकारा और कहा मैं जिसको एक्टिंग भी नहीं आती.. आप दोनों भी न”
काव्या की चेहरे पे हसी देख सुलेमान को अब ये विश्वास होने लगा क मछली जाल में फस तो गयी हैं. बस उसको डिब्बे में उतारना हैं. और वैसे भी सुलेमान अपनी बातो में कही औरतो को फसाता था. औरतो की जूठ मूठ तारीफ़ भी कोई उससे सीखे. और अब तो सामने तारीफ़ की जैसी योवन सुंदरी हो तब ये कहा चुप रहनेवाला था.

“अरे...क्या बात करे हो बीबीजी...मैं आपकी खूबसूरती की तारीफ हमरी बेगम के सामने कर रहा हु..फिर भी नहीं हिचकिच कर रहा ..और आप हैं के हमको जूठा मान रहे..”
इसपे काव्या बोली, “अरे ..वैसा नहीं...इ आई मीन चलो आप ही बताओ मैं ऐसी कैसे हो सकती हु?”
ऐसा सुनेहरा मौका सुलेमान कैसा जाने देता? उसने झट से दबे स्वर में काव्या के आँखों में आँखे डालके बोल दिया,

“अरे बीबीजी गलत मत समझिएगा...आपको बताऊ, हमरी बेगम को भी ये पसंद हैं. पर पसंद होने से तनिक कोई होता हैं..इसको ऐसे कपडे पहना दिए तो बावली को कैसे लगेंगे...मगर.....आप को अगर ऐसे कपडे पहना दिए न तो ये सत्तू इसकी फोटो निकाल के आपकी फोटो लगा न दू तो बोलना. आप इससे कही अच्छी लगोगी.”

अमीषा पटेल की पोस्टर पे हाथ फिरते सुलेमान जो बात की उससे काव्या को ४४० वाल्ट ज़टका लगा. पर अपनी इतनी तारीफ़ सुनके वो गर्व महसूस कर बैठी और अपने मुस्कराहट से बयां करती रही. काव्या की हर कातिल हसी पे सुलेमान अपनी ज़िज़क बाजू के सलमा पे निकालता था और वो भी शायद अब उसके हमले के मज़े ले रही थी.
सत्तू ने अचानक एक सुनसान मोड़ पे ऑटो रोक दिया. वहा एक मोड़ था और कच्ची सड़क और बहुत सारी झाडीया. वो शायद किसी के खेतो का रास्ता था.
आधे घंटे से चल रहा ऑटो अचानक से एक मोड़ पे रुक गया. सड़क सुनसान थी और कच्ची. काव्या को लगा कही गाँव तो नहीं आ गया. उसने अपने मोबाइल में देखा तो अभी तक उसपर कोई सिग्नल नहीं बता रहा था. वो कुछ बोले उसके पहले ही सुलेमान बोल पड़ा,

”अरे सत्तू आधे रास्ते में ही कहा ऑटो खड़ा कर दिया रे. बहुत कामचोर हो गया हैं रे तू ”

“अबे सुलेमान. तू बीबीजी से बाते कर बैठत तबसे, तुझे क्या मालूम? काम क्या होता हैं? बात कर रहा”
सत्तु तभी ऑटो से उतरा. उसने एक जोर की अंगडाई ली. उसको देख ऐसा लग रहा था के कितने दिनों से वो लगातार ऑटो ही चला रहा हैं. कामचोर सत्तू को काम करना जी पे आता था. वो तो बस जुवे के खर्चे के लिए और मंगलादेवी की चापलूसी के लिए ऐसे काम करता था. अपने गंदे दस्ताने से खुदका मूह साफ़ करके काव्या के तरफ़ होके वो बोला..

"अरे बीबीजी..आप इस सुलेमान भाई के बातो में मत आओ..बड़े मेहनती हैं हम, काम के बिच में किसीको नहीं आने देते पर का हैं के हमरि भी एक मजबूरी हैं..बस 5 मीनट ज़रा रुकियेगा, बहुत ज़ोर से हमको लगी हैं..तनिक जरा धार मार लेते हैं.."

काव्या के सीने की तरफ़ दिखते हुए भरे भरे गोर क्लेवेज पे नजर गडाते हुए उसने अपना एक हाथ अपने पजामे के उपर रखा और वही अपने लंड को बड़ी बेशर्मी से ऊपर से मसलते हुए गंदी तरीके से हसते हुए बोल पड़ा,

"बस थोड़ा टाइम लगेगा बीबीजी ..बहुत देर से रोक के रखी थी..मादरचोद मान नही रहा."
काव्या उसकी गंदी गाली और धार की बात सुनके शर्म से पानी हो गयी. वहा सुलेमान कहाँ चुप रहने वाला था उसने झट से मौके का फायदा उठाते हुए कहा,

"अरी ओ मादरजाद..जल्दी करो ओये..वरना शाम लगवा दोगे गये टाइम की तरह.." और हमेशा की तरह अपनी गन्दी मुस्कान दिखादी.

भरी दोपहर में उस कच्ची सड़क पे सत्तू मुश्किल से बस ४ कदम चला होगा ऑटो से और फिर उसने अपनी पजामे की ज़िप खोल के अपने काले बदबूदार ७ इंच के लंड को आज़ाद कर दिया. कमीना जान बुझके ऐसा खड़ा था जहा से ऑटो मे से उसका लंड एकदम साफ नज़र आए.
काव्या की नज़र जैसे ही सत्तू के आज़ाद काले लंड पे गिरी वो तो सन्न रह गयी. जब उसने सत्तू का लंड देखा. उसने शर्म और रोमांच के मारे नज़रे नीचे कर दी. इतना मूसल लंड उसने जीवन में पहली बार देखा था. सत्तू का मादरजाद खड़ा लंड देख काव्या ने अपनी आँखे थोड़े देर के लिए मूँद ली.


“स्रर्र्र्र्र्र्र्रररर्र्र्रर्र्र्रर्र्र......” आवाज़ ने माहोल की शांति भंग कर दी.

शायद बदबूदार पेशाब की धार मादरज़ाद सत्तू छ्चोड़े जा रहा था. भरी धुप में भी सुनसान गली में उसकी आवाज़ मानो सब के कानो में गूंज रही थी.

“अरीय हो मेरी..लैला तेरा चूमा लय लू,,,एक चूमा लयलू...”

सत्तू पेशाब करते समय गाना गाने की आदत रखता था. वहा भी वो जोर जोर से देहाती गाने गा रहा था. गानो में वो इतना मश्गुल हो जाता था के आँखे बंद करके अपने बेसुरे आवाज में और उचे टेम्पो में गाना गाने की कोशिश करता था. ठीक वैसा ही गाना उसने शुरू किया. और गाने की धुन के साथ अपना लंड भी हवा में चलाना शुरू कर दीया. जिससे उसके धार कभी दाए तो कभी बाए उड़ जाती. मानो कोई पौधों को पानी डाल रहा हो वो भी नाचते गाते.


सच मे काम वासना की आग भी अजीब होती हैं. काव्या भी कहा उसको रोक पा रही थी. उसकी नज़रे ना चाहते हुए भी सत्तू के लंड पे फिर से चली गयी. शायद इसकी वजह उसका पढाकू दिमाग़ और उसका लाचार पति था. उसका पति महीनो मे कभी कबार उसके साथ सेक्स करता था वो भी उसके ५ इंच के लिंग से. उसको आज भी पता था कैसे उसके शादी के पहले दिन सुहागरात में रमण के साथ उसने रात बितायी थी. उसकी उम्मीदों पे रमण उतना खरा तो नहीं उतरा पर काव्या ने उस रात जीवन में पहली बार पुरुष का खड़ा लिंग पास से देखा था. तबसे उसने रमण को ही अपने काम जीवन की कड़ी मान ली थी. उसके लिए वही सबसे आकर्षक चीज थी. लेकिन रमण का लंड सत्तू के सामने मानो ऐसा था जैसे कद्दू के मुकाबले ककड़ी रख दी जाये. यहा देहाती मुसल लंड जैसे कोई साप सा दिख रहा था, जो किसी बिल में जाने के खुरत में बैठा हो. भले ही काव्या के विचार उसको शर्म में बांध दे रहे थे लेकिन काव्या की जवानी जो के उफान पे थी वो जालिम जवानी भला इस कामुक दृश्य को देखने की लालसा कैसे जाने देती?

उसकी नज़रे बाजू में बैठे सुलेमान ने ताड़ ली. उसको पक्का लगने लगा काव्या की निगाहे क्या बया कर रही हैं. तभी सुलेमान ज़ोर से बोला..

"अरी ओ सत्तू, आराम से करो... कही बाढ़ ना आ जाए गर्मी मे भी इस जंगल मे".

क्या जाने इस बात से काव्या अचानक हस पड़ी. उस्की मीठी मुस्कान देख के सुलेमान ने झट से बोल दिया...

"आई हाई...देखो मिया..बीबीजी को भी बाढ़ पसंद नही हैं..कैसे खिलके हस पड़ी देखो..".

सुलेमान ने तभी धीरे से काव्या के करीब आके उसके दूध पे नज़र गिडाते हुए हलके से कान मे कहा...
"मैं भी ज़रा धार मार ले आता हूँ बीबीजी..हौला मान ही नहीं रहा. कब से खुला होने का मन कर रहा हैं."

वो इस कदर पुछ रहा था जैसे काव्या से कोई इजाजत माँग रहा हो. और सलमा की तरफ़ देख के बोला..
"मेरी बेगम ज़रा काम करके आता हूँ, तुम भी धार मार लो...वरना रात को फिर से झगडा करोगी.."

और उसने कसके सलमा का बाया दूध दबा डाला. इस बार काव्या ने ये सब देख लिया था. अभी तक काव्या के सामने ज़बरदस्ती वो दोहरे शब्दो का इस्तेमाल करे जा रहा था और हर शब्दो से काव्या सहर उठ रही थी. अब तो उसने सलमा को काव्या की नज़रो के सामने ही दबा डाला. ये देख काव्या तो शर्म से पानी पानी हो गयी और उसने नज़रे बाजू कर दी. और वो करती ही क्या हमेशा की तरह मिया बीवी का रिश्ता बोलके वो अपने आप को समझा रही थी. बाजु में भी तो कुछ अलग नहीं था सत्तू तो अपन ही धुन में हवा में अपना लंड फिराने में मगन था, ये दोनों दृश्य देख काव्या को हसी भी आ रही थी और और शर्म भी पर धीरे धीरे अब उसके मन मे भी कही न कही काम वासना की चिंगारी जल रही थी.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

Post by Jemsbond »


एक तरफ सत्तू का मुसल हथियार और दूसरी तरफ उसके बाजू में ही सुलेमान की कामुक हरकते देख वो जैसे अन्दर से मोम की तरह पिघल रही थी. सुलेमान ये जान बुज़के कर रहा था. एक और बार काव्या के तरफ अपनी गंदे मूह से मुस्कान दिखाके उसने गहरी सांस भरी. इलायची जैसे खुशबु काव्य के मूह से आरही थी. सुलेमान को वो नशा किसी भांग से कम नहीं था. उसको काव्या के जिस्म की हर एक कोने की खुशबू बहुत पसंद आ रही थी. और वो हर मौके का हिसाब बराबरी का उठा रहा था.

सुलेमान भी अब ऑटो से उतरने लगा. तभी जान बुज़कर उसने काव्या के साइड से उतरने का प्रयास किया और उतरते टाइम उसने वो किया जो काव्या ने शायद कभी सोचा न था.
उसने उतरते समय अपना दाया हाथ काव्या के लेफ्ट थाइस पे रखा और ऑटो से उतर गया. उसके मजबूत हाथो ने कुछ सेकेंड के लिए काव्या की मुलायम थाइस को जैसे कुचल ही दिया था. इस अचानक हुए हमले से काव्या डर के मारे चौक सी गयी. उसको जैसे लगा के किसीने उसको दबा दिया हो. उसके मन मे एक जैसे भूचाल आ गया पर साथ ही बहुत महीनो के बाद, वो भी किसी अंजान पर पुरुष के ऐसे सख़्त हाथो का स्पर्श उसके भी मन को भा लिया. सुलेमान की मजबूत पकड़ शायद एकदम सही जगह बैठी थी और कौन जाने उसने इसी वजह से उसका कोई विरोध नही किया. सुलेमान का स्पर्ष इतना कठोर था के काव्या को छोटी सी सनसनी अपनी योनी में आती हुयी महसूस हुयी.


सुलेमान भी सत्तू के पास जाके खड़ा हुवा और ठीक उसके बाजू में ही बेशर्मी से अपना ७.५ इंच का काला मुसल लंड निकाल के चालू हो गया. उसका लंड तो सत्तू जैसा ही बड़ा था पर उसपे कही सारे बाल थे. सुलेमान बड़ी मुश्किल से अपने चेहरे की दाढ़ी साफ़ करता था ये तो बात बहुत दूर की थी.

वो इतना बेशरम था के उसने पलट के भी देखा और वैसे ही अपना खुला लंड हाथ मे पकड़े हुए काव्या की तरफ शैतानी मुस्कान दे के सलमा से बोला...
"अरी ओ सलमा रानी..जाओ जल्दी वरना आऊ क्या गोदी मे उठाने?"

अपने सख़्त हाथों मे खुदका साप जैसा लंड लिए वो ऐसे बोल रा था जैसे उसने नुमाइश रखी हैं उसकी. खुद के लंड से पेशाब के फवारे वो उड़ा रहा था. जो यहाँ तो कभी वह गिर रहे थे. दोनों कलुटो ने जैसे पेशाब के झरने बहाने चालू किया था जैसे कोई कॉम्पटीशन लगी हो.

यहा ये सब देखकरके काव्या का हाल हद से ज्यादा बेहाल हो रहा था उन दोनो के लंड देख के अब काव्या तो जैसे शर्म से मरी जा रही थी. रमण के प्रति उसका आदर अब कम हो रह था. जिसके लिंग को वो अपनी संतुष्टि समझती थी वो असल में नकली नोटों की माफिक उसके सामने फीका गिर रहा था. उसके दिल में भले ही रमण के लिए बहुत ज्यादा प्रेम था लेकिन उसकी शारीरिक भूक उसको कही और लेके जा रही थी. इतने बड़े दो मुसल लंड देखके उसकी हालत पतली हो रही थी. जिस लिंग को वो अपनी जिंदगी समझ बैठी थी वो तो इनके सामने जैसे किसी पंक्चर हुए टायर के जैसा था. उसका मन उसे टटोल रहा था. पर उसका आत्मसम्मान उसे ये देखने से रोक रहा था. लालसा और नियमोके बिच फासी काव्या ने तभी अपने आखो पे हाथ रख दिए और मूह निचे छुपा दिया.

शायद अब सूरज भी सर चढ़ के बोल रहा था और काव्या के चूत मे भी हौले से कही सिरहन दौड़ रही थी. अब तो शर्म और आत्मसम्मान से उसकी हालत इतनी ख़राब हो गइ थी के उन दोनो को छोड़ वो बाजू बैठी सलमा से भी अपनी नज़रे नही मिला पा रही थी. लेकिन उसे ये कहा पता था? जो वो सलमा से छुपा रही हैं, वो काम वासना की अंगारे सलमा अब भाप गयी थी.

दूसरी और सलमा करती भी क्या उन कलुटो को वो अभी अभी झेल चुकी थी इसिलिये वो शर्मा तो नही रही थी पर थोड़ा झुठ मूठ का गुस्सा दिखा के अपने नाराज़गी के भाव बता रही थी. उन कलूटो के मुसंडे लंडो ने उसकी कमसिन सावली चूत का चोद चोद के भोसड़ा बना दिया था. उसकी अन् छुई कमसिन चूत को पहली बार सुलेमान ने जब चोदा था तब उसको पता था दर्द के मारे वो दो दिन ठीक से खड़ी तक नहीं हुयी थी. बाद में तो जाने कैसे कैसे दोनों निकम्मोने अपने अरमान उससे पुरे किये थे. अब वो भी इन सबसे जानी पहचानी हो गयी थी. इसीलिए गन्ने के खेतो में हुई चुदाई में उसने भी अब की बार खुद होके मजा लिया था. आखिर गन्ने के खेतो में उसीका तो रस निचोड़ के पिया था दोनों ने और उसने भी पिलाया था. शायद इसी कारण से उसको भी बड़ी देर से पेशाब लगी थी.

और उसने थोडासा साहस करके काव्या की बाहों पे हाथ रख के कुछ कहना चाहा. वो पहली बार काव्या की तरफ मूह कर के बोली .."ब,बीबीजी.."

काव्या ने अपना चहरे पर से अपने हाथ हटाके हटाके सलमा की और देखा और हिचकिचाते हुए बोली.."हा ब्ब,,बोलो..स,,सलमा"

पढ़िलिखी शहर की मॉडर्न हाई प्रोफाइल काव्या की बोली भी जैसे अटके अटके रह गयी थी दोनो कलूटो के मुसल लंड देखके. हालाकी काव्या पेशे से डॉक्टर थी पर इस कदर उसने कभी सीधी देहाती जिंदगी देखि नहीं थी. शादी के ४ महीने बाद से ही रमण के बिजनेस में बीजी हो जाने से उसके सेक्स लाइफ मे मानो सूखा गिर गया था. सो अब इन दो गैर लंडो को देख उसके काम जीवन मे नयी वर्षा की तरह प्रतीत हो रहा था.

सलमा बहुत धीरे स्वरों में आगे बोली, "बीबीजी मैं भी ज़रा कर लेती हु. और बुरा न मानियेगा पर लगा तो आप भी कर लो ..गाओं मे जाने तक वक़्त लगेगा थोडा. अगर आपको लगे तो..."

उसकी सहमी बाते सुन के काव्या जरा अपने होश में आ रही थी. काव्या ने जरा धीरता से कहा, “अरे इसमें बुरा मानने की क्या बात? ये तो नेचुरल हैं. तुम्हे आई है न वैसे मुझे भी आती हैं.”

काव्या ने भी सोचा उसको भी पेशाब लगी हैं. पूरी धूप मे वो अपनी इकलोती बिसलेरी की बॉटल ख़त्म कर चुकी थी. पर वो ज़रा अकड़ रही थी क्योंकि अपने शानदार बाथरूम और बड़े बड़े होटेल के कामोड पे मूतने वाली काव्या को खुले आसमान के नीचे पेशाब करने का कोई अनुभव नही था. पर सलमा को देख उसने भी आख़िर हा मे हा भर ही दी. और दोनो एक साथ ही ऑटो मे से उतर गये.

वहा दोनो कलूटे अपनी धारो मे व्यस्त थे तभी उन्होने देखा सलमा और उसके पिछे काव्या जो अपने हाइ हील्स से अटक अटक के कच्ची सड़को से झाड़ियो के अन्दर चली जा रही हैं उनको देख सुलेमान जोर से बोला

"अरी ओ सलमा रानी..बीबीजी को संभाल के लेके जाओ..और ज़्यादा अंदर मत जाना साप वाप होते हैं यहा. अगर कही घुस गया तो हमको रात मे हमें ही निकालना पड़ेगा..हा...."

दोनों निकम्मे इस बात पे जोर जोर से हस पड़े. जैसे कोई हैवान अपनी हैवानियत पे हसे.

सलमा ने उसकी तरफ़ मूह टेडा करते हुए गुस्से वाले इशारे में जवाब दिया और बिना कुछ बोले आगे चल दी. उसको अपनी हाई हील्स से बहुत प्यार था. हर ड्रेस पे म्याचिंग हील्स पहननेवाली काव्या को पहली बार देहाती कच्ची सडक पर चलते समय वही हील्स सरदर्द जैसा प्रतीत हो रही थी. वो जरा रुकी और अपने हील्स को थोडा एडजस्ट करने लगी सीधी होने के बाद ज़दियो से ठंडी हवा का एक झोंका उसकी तरफ आया. उस गर्मी में उसको इतना सुकून मिला के उसका स्वागत उसने अपनी गोरी मुलायम बाहे फैलाके किया. पल भर के लिए ऐसा लगा के सुनसान जंगले में कोई मोरनी जैसे सुंदरी ने अपने पंख बाहर निकाले हो और कोई नृत्य करने के लिए. एक अंगडाई देने के बाद, काव्या सलमा के पिच्छे धीरे धीरे से जाने लगी.

उन दोनों के थोड़ी दूर जाने के बाद झट से सुलेमान ने सत्तू से धीरे से कहा “अबे बहनचोद, अब क्या दिन यहाँ पे ही डाल देगा,चल तुझे जन्नत की फिल्म दिखाता हु".
तब तक सत्तू जो अपना पेशाब कर चूका था सो वो दोनो भी मौके का फायदा उठाके उन् दोनो के पीछे चुप चाप चल धीरे कदम चल दिए.

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Post Reply