गाँव की डॉक्टर साहिबा

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Jemsbond
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Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

Post by Jemsbond »

rangila wrote:बहुत खूब मजेदार है मित्र
thnx dear
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Jemsbond
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Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

Post by Jemsbond »

अपने थूक और जुबान से काव्या की योनी में रफीक ने अपना डेरा जमाया था. २० साल का ये नवयुवक किसी अनुभवी नर जैसे खुदको इस्तेमाल कर रहा था. जीवन में प्रथम किसी महिला की योनी को स्पर्ष करने से उसका स्वाद लेने तक का अनुभव उसको मिल गया था. वो भी किस्मत में जब ऐसी राजसी महिला हो तो क्या कहना. जिसके कोने कोने में सुन्दरता और मादकता का पंचम रस का समावेश हो. जहा भी मुख डालो वह से कुछ न कुछ ज़रूर आनंद मिले ऐसे मादक और सुन्दर शरीर की देवी उसके सामने थी. जिसने उसके काम जीवन का आरम्भ में ही उसको प्रसन्न होके कोई वरदान दिया हो.
अपने जवान काम वासना और प्रेम भाव में डूबा ये नवयुवक इस सुंदरी के सबसे अनमोल शरीर का बड़े ही विलोभनीय अंदाज़ से भोग कर रहा था. उसके मूह में योनी का स्वाद अब पूरा उतर गया था. और साथ ही उसका जवान लंड उस स्वाद से, उस अनुभव से उछल उछल के उच्चतम शिखर पे जा पहुंच गया.


लालसा न हो वो वासना कैसे? बस यही तो हो रहा था वहा. रफीक की लालसा काव्या की और बढ़ रही थी. छूने से ले कर महसूस कर ने तक, अब वो स्वाद भोगने तक पहुच गयी तो थी. पर अभी भी कही कुछ सूनापन उसके दिमाग को टटोल रहा था. वो था उसके नवजीवन भाव से भरा पड़ा कमसिन लंड और उसकी भूक. इसी लालसा भरे विचारो ने फिरसे उसके उलझे मनों को प्रश्नों के आहट से जगा डाला.

पहला मन: क्या सोच रहा हैं रफीक..अब पिच्छे मत हट जा..
दूसरा मन: नहीं रफीक नहीं...ये क्या कर रहा हैं....मत कर, रुक जा,..
पहला मन: रुक जा?? फिर ऐसा मौका नही मिलेगा..जा मजे कर..किसको क्या समझेगा?
दूसरा मन: नहीं रफीक...अगर कुछ हुआ..तो तू...तेरी मा..का कैसा होगा?..गाओ में से निकल देंगे तुमको...रुको
पहला मन: अबे कौनसी तेरी सगी मा है..और क्या करने वाले लोग...जा मजे कर..
दूसरा मन: नहीं.. ये मजा कही सजा न बन जाए..रुको..रफीक..जो हुवा वो हुवा अब नहीं आगे...
पहला मन: जा रफीक... बस एक बार..एक बार बेचारे लंड को दीदार करा....जा...
दोनों मन के बातो में फसा हुवा नवयुवक का सर घूम रहा था. करे तो क्या करे? फिर से वो उसी असमंजस में फस गया. पर कहते हैं न बहुमत की सरकार होती हैं वैसे ही उसका बहुमत पहले मत की और था. क्योंकि उसकी वासना और झूम के तना हुआ लंड उसके पक्ष में खड़े थे. जो उसके दिमाग की मा चुदा रहे थे.

दूसरी तरफ सत्तू सलमा का कब से मूह चोदे जा रहा था. मुसल लंड पूरा उसके थूक से भीग गया था. सलमा भी खुद से उसका लंड चुसे जा रहा थी. सुलेमान का सांड जैसा शरीर का बोझ उठाके उसके मूह से लेक्र पुरे शारीर पे पसीना बिखर गया था. चेहरे पे बाल बिखर रहे थे. सच में आज किसी पक्की रंडी की माफिक वो लग रही थी. उसके नाजुक देहाती होठ सत्तू के लंड को रगड़ खा रहे थे और जुबान उसके टोपे को छेड़ रही थी. उसके लंड के झाटे तक थूक से लद बद हो गए थे. सबके कारण उसके लंड की नसे तन रही थी और, वो और लंड फुल कर चरम उसकी सीमा पर बढ़ रहा था. सत्तू हर उसके दबाव का आनंद अपनी आँखे बंद किये हुए होठो पे संतुष्टता के भाव लिए उठा रहा था.
पर वासना के पुजारी ये कलुटे शांत रहे तो कैसे? जब मादरजाद ने अपनी आँखे खोली तो उसको और एक पाशविक बात सूझी. उसने सलमा का दूध कस के मसलते हुए कहा...

“आह....रंडी....आह....तनिक निचे की गोटीया भी ली लो तोहार मूह में....चोद दो आज.....”

उसने बिना समय गवाए सलमा के बालो को खींचकर अपना लंड उसके मूह से निकाल के निचे की गोटियों को सलमा के खुले मूह में ठूस दिया. और बहुत जोर से शैतानी हसी हस दि.

“आह....छिनाल...इसको भी चूस...”

सलमा ने उनको चूसते-चूसते उसकी और इस बार भी गुस्से से देखा पर वैसे ही उसने अपना ध्यान अपने मुखमैथुन पे केन्द्रित किया ठीक जैसे रफीक ने किया था. नारी हो या नर ध्यान वही था जहा वासना का पगडा भरी था. यहाँ पर भी बहुमत का पक्ष काम वासना ने जीत लिया.


दोनों मनो की बात सुन के, रफीक ने सोचा क्यों न बस एक बार काव्या की योनी को बाहर से लंड से छू दिया जाए. बस इतना एक बार करने थोड़ी कुछ होगा? बस एक बार अम्मी की कसम. एक बार करवादे खुदा. फिर से मिन्नते मांगते मांगते कब उसकी जुबान काव्या के चूत के और अन्दर की और फिसल गयी उसको समझा ही नहीं. और ऐसा ही कुछ आगे हो गया जैसे उसकी मन्नत कबुल की गयी हो.

“उम्म्म......रमण......आऊच......याह”

एक जोर की सिसक काव्या ने छोड़ दी. नींद में उसके ये भाव देख के लग रहा था नवयुवक के खेलो ने अपना गहरा जादू उसके ऊपर चलाया दिया हो. उसकी मन्नत काबुल हो गयी हो. वासना के सपनो में खोयी काव्या नींद में सब लुफ्त उठा रही थी सिर्फ उसका साथी रमण था. शायद उसके लिए भी ये अनुभव नया था. उसका बिजी रहनेवाल पति रमण जो कभी कबार उसके साथ सेक्स करता था शायद ही उसने उसकी राजसी योनी को इस कदर चखा हो जैसे ये नवयुवक चुसे रहा था. इसीका असर ये हुवा के काव्या का बाया हाथ अपने आप ही उसके योनी की और सरक गया. और उसकी उँगलियाँ योनी के ऊपर आ गयी ठीक रफीक के मूह निचे.

रफीक उसकी हर एक हरकत गौर से देख रहा था. क्या नजारा बन गया था. काव्या की ऊँगली खुद होक उसके योनी में प्रवेश कर रही थी. तभी जैसे कोई शिकारी शिकार पास आते हु उसपे टूट पड़े वैसे रफीक ने उसकी ऊँगली को अपने मूह में भींच लिया. और उसको भी चूत के साथ चाटना शुरू किया.
नाजुक उंगलिया, नरम गरम चूत दोनों को मजे से और धीरे धीरे चाटते उसकी थूक और चूत का रस दोनों एक दुसरे में मिल रहा थे. इन सबे से उसको संभाले नहीं जा रहा था और तभी उसने अपना दूसरा हाथ अपने लंड पे ले लिया और उसकी चमड़ी को आगे पीछे करना चालू कर दिया.

“उम.......याह,.....ऊऊऊऊम्म्म्म..बेबी...”

काव्या की आहे उसकी हर हरकत से तेज़ हो रही थी. काव्या की बाये हाथ की ऊँगली अब उसके मूह में चली गयी. ठीक उस पोर्न फिल्म कि तरह प्रतित हो रहा था. जिसमे मोडल का एक हाथ चूत पे और एक हात मूह में हो. रफीक ये सब देख बेकाबू हो रहा था. और उससे भी बुरी हालत उसके लंड की थी. जिसको को मल रहा था.

वही सलमा की हालत भी कहा सस्ता थी. सत्तू मादरजाद झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. लग रहा था देसी दारू का नशा उसके लंड में उतर गया हो. सलमा ने उसका लंड को हाथ में समेटा और उसकी टोपी पे थूक दिया. बड़े कामुकता से उसको मूह में फिर से डाल दिया. और अपने होठो से ऊपर से निचे पूरी तरह से सरकाना चालू कर दिया. उसके लंड की गोटियों को वो बड़े मन लग्गाए चूस रही थी. जैसे उसने प्रतिज्ञा ली हो इस बार वो उसका पानी निकल के दम लेगी. इस चाल से सत्तू ने भी एक आह छोड़ी.


“आः.....छिनाल....चूस...”

दोनों तरफ चुसना और चुसाना अपने चरम सीमा पर पहुँच गया था.. दोनों तरफ सिसक, आन्हे तेज़ हो रही थी. और जल्दी ही किसी भी समय कामुकता का रस दोनों के मूख में बारिश की तरह बरसने वाला हो. किसी अलग अंदाज से देखे तो लग रहा था ये काम वासना की यह सर्जिकल स्ट्राइक कभी भी अपने मुकाम पे विजय प्राप्त कर सकती हैं.
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Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

Post by Jemsbond »

“उम.....याह...रमण....बेबी...उम्म्म....म्मम्म”
गहरी नींद में काव्या जोर जोर से सिसक रही थी. कबसे रफीक अपने मूह से उसकी राजसी सी चूत की मा चोदे जा रहा था. पुरे जोश से अब वो उसकी चूत चाट रहा था. काव्या के कमर पे दोनों तरफ हाथ डालके उसकी चूत बेताबी से चाटते हुए अपनी पूरी जीभ उसके चूत के अन्दर घुसाके रफीक उसका स्वाद सही मायने में किसी अनुभवी चुद्द्कड़ के जैसे चख रहा था. तभी उसको काव्या के चूत से कुछ सिरहन आती महसूस हुयी. शायद बहुत देर से जो खेल चल रहा उस खेल की सीमा उसने पार की. रफीक के देर तक ऐसे चूत चाटने से नींद में खोइ काव्या के जिस्म में एक सरसराहट दौड़ गयी. वो इतनी जोर की थी के नींद में भी उस सिरहन ने काव्या की जवानी को पिघला कर रख दिया. शायद वो मौका आ ही गया जहा जीवन में पहली बार उस नवयुवकको वो काम रस चखने मिलना था जिसका उसने कभी अनुभव नहीं लिया होगा.

एक बड़ी आह के साथ शहर की डोक्टोरिन साहिबा ने अपने होठ काटते हुए एक कसमसाते हुए आह भरी,

“ओह...माय बेबी.....आह......”, अपना पानी छोड़ दिया.

अपने इस तीखी सिसक के साथ ही मीठी काव्या झड गयी. नींद में ही उसकी योनी ने अपना पानी छोड़ दिया. जो सीधे उसकी चूत से निकल कर रफीक के मूह में उतर गया. बहुत अजीब स्वाद था उसके लिए वो. जैसे बहुत मेहनत करके कोई रस निचोड़ा जाए. वो काम रस चख के वो नवयुवक इतना तो समझ गया के ये पेशाब तो नहीं हैं पर क्या हैं? क्या वही जो वो पोर्न फिल्मो में वो देखता हैं? स्त्री का काम रस? हाँ. ये वही हैं. इस बातो को उसके दिमाग ने पल भर में समझ लिया. और उस रस को चखना उसने बिना वक़्त गवाते ताबड़तोड़ शुरू कर दिया.


उस रस का बहाव उसके योनी से होते हुए उसके नाजुक गद्देदार जन्घो पे और नीचे बिस्तर पर टपक रहा था. रफीक पुरे मन से उसको चाट रहा था. किसी कुत्ते के माफिक उसको सूंघ रहा था. उसकी जीभ बड़ी फुर्तीली थी वो अपने बेहतर काम पे खुश थी. रफीक जो धीरे धीरे सब समझ रह था उसके लिए ये सब नया था. टार्ज़न फिलम की तरह वो हर बात को पहले देखता, टटोलता, महसूस करता. चूत को गीली कर तो उसने पहली ही कर दिया था, अब वो उसको चाट-चाट के साफ़ कर रहा था.

उस वक़्त वो खुदको विजेता जैसा महसूस कर रहा था. और क्यों ना माने? वो सच में विजयपथ पे विजेता बन गया था. जीवन में पहली ही वासना खेल में उसने एक सुंदरी का कामरस निकाल ले उसको चखा जो था. भले ही उसके जीभ ने ये कारनामा किया हो पर उफान में तो उसका लंड ही था जो अब उसके नियंत्रण से बाहर निकल गया था.

रस तो किशोरीलाल के भव्य बंगले में एक आलिशान बिस्तर पे बहा था वैसे ही सुलेमान के झोपडी में भी एक खाट पे बहने वाला था. सत्तू मादरजाद अपने कगार पे खड़ा था. उसका मुसल लंड कब से सलमा का मूह रोंद रहा था. सलमा के गले तक उसके लंड ने अपनी मौजूदगी करवाई थी. सोयी हुयी सलमा के मूह में खुदका मुसल लंड घुसा-घुसा के वो उसका कोना कोना चोद रहा था. पुरे लंड पे उसकी थूक चढ़ गयी थी, लंड की नसे पहले से ज्यादा तन गयी थी और सलमा का गला सुख के मरे पडा हुआ था.



“आह...रंडी...चुस....” गल्प.. गल्प .. खस खस,... हचाक गचाक से लंड मुह को चोदे जा रहा था. और इसी चुदम चुदाई में सत्तू ने भी अपना वीर्य निकाल दिया.

“आह,....सलमा.अ........रंडी......आया....”

सलमा ने पूरी ताकद उसका लंड अपने मूह से निकाला उसको जोर से खासी आई. पर वह तो....ढेर सारा वीर्य थूक से लदबद पलक झपकते ही उसके देहाती खुबसूरत सावले पसीने से ढके मूह पे सररर बोलके बह गया . उसके मूह पे , नाक पे उस वीर्य की बारिश को जगह मिली. सलमा के बालो पर भी कुछ बुंदे छा गयी. सत्तू बड़े सुकून की आह भर भर के धार छोड़े जा रह था और सलमा का मूह को किसी कारागीर की तरह अपने वीर्य से रंग रहा था. सलमा के चेहरे पे अपना लंड मलते हुए सत्तू संतुष्टता से बोल पड़ा,


“रंडी...आज तूने कमाल कर दिया..खुश कर दिया...छिनाल..चल साफ़ कर लंड को फिर सुलेमान को थोडा सरकता हु तेरे जिस्म पे से...”

सलमा की तरफ वो ही चारा था. उसने बची अपनी ताकद से सत्तू का लंड अपने मूह में भर दिया और उसको जबान से साफ़ करने लगी. उसको बाहर निकाल के आस पास से चाट कर साफ़ करने लगी. सत्तू उसको देखके मन से हस पड़ा. और थोडा सा सुलेमान को धक्का देकर वही ज़मीन पे निढाल होकर गिर पड़ा.
वीर्य से भरा पूरा चहरा और पसीने से लदबद शरीर को सँभालते देहाती कमसीन सलमा भी वही थक के ढेर हो गयी. बस वो होश में थी पर थकान से कमजोर हो गयी थी. उसने जब नज़र दौड़ाई तो उसको दोनों कलुटे तो जैसे घोड़े बेचके ऐसे पड़े हुए दिखे मानो अब महीनो बाद वो जागने वाले हो. खैर झोपडी में सन्नाता छा गया और बारिश की बुँदे टपकती छत से सलमा के बदन पे गिरने लगी.

दोनों तरफ वासना संतुष्ट हो चुकी थी. सब एक दुसरे को भोग के सुन्न गिर पड़े थे. पर शायद कोई था जो अभी भी तड़प रहा था. वो था रफीक का कमसिन लंड.
जैसे कोई बच्चा किसी चोकोलेट के लिए बचपना करता हैं. वैसे ही कुछ बचपना रफीक का लंड उसके दिमाक से कर रहा था. वो तो उसकी जबान से भी खुद्को बेनसीब समझा रहा था. उसके बचपने से फिर से रफीक असमंजस में गिर गया और वही बैचनी ने उसके विचारों को फिर से जागृत कर दिया.

पहला मन: क्या सोच रहा हैं रफीक..अब पिच्छे मत हट जा..जा आगे
दूसरा मन: नहीं रफीक नहीं...ये क्या कर रहा हैं....मत कर, रुक जा,..
पहला मन: रुक जा?? फिर ऐसा मौका नही मिलेगा..जा मजे कर..किसको क्या समझेगा?
दूसरा मन: नहीं रफीक...अगर कुछ हुआ..तो तू...तेरी मा..का कैसा होगा?..तू बस मत कर
पहला मन: अबे कौनसी तेरी सगी मा है..और तू सोच मत..जा अब तक कुछ हुआ क्या ?
दूसरा मन: नहीं.. ये मजा कही सजा न बन जाए..रुको..रफीक..जो हुवा वो हुवा अब नहीं आगे...
पहला मन: जा रफीक... बस एक बार..एक बार बेचारे लंड को दीदार करा....जा...

दोनों मन के बातो में फसा हुवा नवयुवक का सर घूम रहा था. करे तो क्या करे? फिर से वो उसी असमंजस में फस गया. लेकिन कहते हैं न बूढ़े की तजुर्बा और बच्चे का बचपना इसको कोई जवाब नहीं होता. वही हुआ खुदके लंड के बचपने से तंग नवयुवक रफीक ने फिर से आँखे बंद कर के ऊपर वाले से मिन्नत की,

“य..एक बार...बस एक बार...फिर कभी नहीं...अम्मी की कसम”

अपनी सौतेली मा की कसम ले के उसने आँखे खोली. सामने थी सुंदरी महिला नींद में ढेर और उसकी खुली पड़ी चूत. एक बार खड़ा होकर उसने उसको गौर से देखा और अपने लंड को हाथ में मलते हुए उसके बाजू में बहुत धीरे से जा के सो गया. अब बस उसके सामने था काव्या का कामुक महकता जिस्म और खुली पड़ी बेत्ताब चूत.
पर बहुत देर से तना अनुभव से कम नवयुवक का लंड इस क्रिया के लिए सच में तैयार था? ये सवाल का जवाब तो आने वाला वक़्त ही बता सकेगा. खैर बहुत बड़ी हिम्मत दिखाई थी इस नवयुवक ने जो उसके डर को हौले हौले मिटा रही थी.
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Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

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नवयुवक अपने चरम पहल पे विराजमान था. उसने आज अपने जीवन की एक बहुत बड़ी बात को आज अंजाम दिया था. २० साल के इस जवान बच्चे ने आज खुद को एक मर्द होने का एहसास समझाया था. और क्या किस्मत पायी इस जवान कद के युवक ने, अपने पहले ही जवानी के खेल में काम रस पिया तो भी ऐसे राजसी सुंदरी स्त्री का. वो स्वाद वो अब कभी नहीं भूलने वाला. बड़े आराम से और तमंनाओंसे अपने मिन्नतो से भरी हुयी मेहनत का वो फल जो था.

काव्या के चेहरे को रफीक ने गौर से देखा. उसने काव्या के चहरे को अपने एक हाथ से पकड़ कर फिराया. उसके मादक होठो को छूकर उसका लंड जोर से तन गया.


सच में बड़े ही गहरी नींद में थी ये कामुक परी. उसका एक हाथ ऊपर मूह से लुढ़क के गले के पास था तो दूसरा जांघो पे टिका था. दोनों पैर खुल गए थे जिसके कारण चूत खुली पड़ो हुयी थी. उसके होठ भी खुल गए थे जैसे वो नन्द में कुछ बुदबुदाती हो. अपने खुबसूरत जिस्म से पूरा समा मादक बनानेवाली इस सुंदरी की ये हालत देख के तो बूढ़े लंड में भी तनाव आ जाये. और यहाँ तो अभी-अभी जवान हुआ लंड था. गहरी नींद में डूबी काव्या जो कुछ देर पहले ही झड गयी थी जिसके कारण उसके चेहरे पे एक अलग ही सुकून छाया दिख रहा था. पर फिर भी उसके गुलाबी पंखुरी जैसे होठ, सेब जैसे गाल और माथे पे बिखरे हुए रेशमी बाल उस मासूम चेहरे को एक काम देवी जैसा दर्शा रहे थे. खैर अपने होठो पे जबान फिराते वो खुद काव्या के मद मस्त जिस्म के बाजू में लेट गया.
रफीक ने काव्या का आराम से देखा. उसकी चुचिया जो ब्रा में कैद थी उसको देखके लग रहा था वही ब्रा फाड़ के मसल कर उनको पी लिया जाये. शायद कोई और होता तो वो कर भी लेता. पर यही तो फर्क होता हैं वासना और प्रेम में. रफीक कमजोर दिल का इंसान जो था. भले ही उसका लंड उस वक़्त अकड़ खाए था पर दिल काव्या पे मेहरबान था. उसने उसके मादक स्वरुप को भी प्रेम भरी नजरो से देखा. उसे ऐसा लग रहा था वही काव्या के बालो को सवारा जाए, उसके होठो पे लिपस्टिक लगाई जाए, गालो पे लाली पाउडर लगाया जाए. उसके बदन की मालिश की जाये, किसी गुडिया की तरह नए कपडे पहनाये जाए और उसको लिपट के कम्बल के निचे गरम चिपक के सोया जाए. ऐसे प्रेमभाव में खोये नवयुवक को एक अप्रतिम प्रेम का अनूप आनंद प्राप्त हो रहा था. वैसे ही काव्या के बाजु में लेट कर वो उसकी चूत को सहला रहा था.

सच में दोस्तों, प्रेम और वासना में बड़ा फर्क होता हैं. वासना जहा सिर्फ भोग का दूसरा नाम हैं वही प्रेम एक नाजुक सा छुपा हुआ कोई कोमल भाव. वासना का रिश्ता शरीर के अस्तित्व से होता हैं, मनुष्य जो चीज में वासना से लीन हो, उसको वो बंद आखो से भी ध्वस्त कर बैठता हैं, न किसी चीज की शर्म हया, या कोई गंदगी की घिन, उसको रोकती हैं. बस उसको चाहिए होती हैं वो डोर जिससे वो अपने अरमान बाँध सके. जब तक शरीर में उर्जा रहती हैं वो उस डोर को खींचते रहता हैं और जैसे ही उर्जा निकल जाती हैं किसी कटी पतंग की तरह वो भी टूट के ढेर हो जाता हैं. लेकिन प्रेम इसके बिलकुल उल्टा होता हैं. उसमे एक अलग ही ओढ़ रहती हैं. जो हर पल एक दुसरे को करीब खिचती हैं और किसी डोर की तरह टूटती भी नहीं. उसमे सपने होते हैं. जहा इंसान खुली आँखों से सपने देखने लगता हैं. उसी प्रेम की बहाव में नवयुवक रफीक बह रहा था. उसने काव्या का हाथ अपने लंड पे धीरे धीरे मलना शुरू किया.


उस स्पर्श में बहा हां कर उसको भी काव्या के साथ मीठे-मीठे सपने दिख रहे थे. लेकिन साथ ही वासना का पगडा भी उसको छेड़ रहा था. प्रेम और वासना दोनों भाव में बह कर कमजोर दिल के नवयुवक रफीक का लंड अब सहनशक्ति के परे हो रहा था. उसने खुली आँखों से काव्या की चूत के और गौर से देखा. और अपने लंड के बचपने को पूरा करने की जोखिम उठा दी. एक बार काव्या के चेहरे को टटोलकर अपने निचे के हिस्से को ज़रा आगे खिसका के उसने काव्या के जांघो से अपनी जांघे बहुत ही धीरे से चिपका दी.


आह....क्या स्पर्श था. उसने अपनी आँखे ही मूँद ली थोड़ी देर के लिए. जीवन पे पहली बार किसी स्त्री के योनी से हुआ मुलायम स्पर्श उसके मन को भा लिया. एक बार फिर से वासना के पक्ष में पैर रख के उस ने अपना तना हुआ लंड हाथो में पकड़ा और एक बहुत धीमी सिसक के साथ ही निचे काव्या के चूत के इलाके के पास उसको टिका दिया.

उसके कोमल गद्देदार चूत के ऊपर से अपना लंड को गोल गोल उपर निचे घुमाना शुरू किया. उसको मानो जन्नत जैसा अनुभव प्राप्त हो रहा था. फिरसे वो प्रेम और वासना के भाव में उलझ गया. वो मुलायम स्पर्श उसके नाजुक दिल के प्रेम भरे भाव को छू गया. और बहुत देर से तना हुआ लंड भी उस आभास को झेल नहीं पाया.उसके कोमल स्पर्ष ने लंड की नसों को तान दिया. लंड के टोपी को सिरहन महसूस होने लगी. ऐसा अनुभव हो रहा था के जवान लंड पिघलने वाला हैं. काव्या की योनी किसी आग की तरह प्रतीत हो रही थी जिसके जलन से यहाँ शमा पिघलने वाला था.
और वही हुआ. शायद उपरवाले ने उसकी मिन्नत सुनी नहीं. इस बार का प्रयास फेल हो गया. अनुभव से कमी होना और प्रेम के भावो में गिरा हुआ नवयुवक ने जैसेही काव्या के चूत के अन्दर लंड घुसाने की कोशिश करता हैं उसके कमसिन लंड ने वही अपना दम तोड़ दिया. एक झटके में ही वो उसने वही अपना वीर्य छोड़ दिया.


जीवन में पहली बार अपनी पिचकारी उसने किसी चूत के ऊपर छोड़ दी. रफीक तो मानो किसी दूसरी दुनिया में था. उसने आँखे बंद करके अपना पानी छुटने दिया. जो काव्या के पेट पे, चूत से प्यान्ति और निचे जांघो से लुडक कर चद्दर पे गिर गया. आखरी बूंद तक उसने लंड को हाथ से निचोड़ा. उसका पानी भले जल्दी निकल गया था पर आनंद का पूर्ण रूप से उसने अनुभव प्राप्त किया था.

खेल ख़तम हो गया था. रफीक अभी भी आँखे बंद किये लंड को हाथ में लिए वही था. शायद प्रेम भाव से बाहर आना उसको मुश्किल हो रहा था.

तभी अचानक “ डिंग डाँग.....”

बाहर से दरवाजे की बेल बजी. रफीक के होश ही उड़ गए. उसकी धड़कने तेज़ी से दौड़ाने लगी. उसने दिवार पे लटकाई घडी की और देखा शाम के ५ बजे थे. वक़्त कैसा गुज़रा उसको समझा ही नहीं. बाहर बदल भी धीमी बारिश कर रहे थे. अँधेरा छाने लगा था. इस समय किशोरीलाल के बंगले में भले कौन आ सकता हैं?

“मा की चूत...कौन हैं इस समय?”

गुस्से में उसने खुद से बडबडाया. और झट से बेड से उठ खड़ा हुआ . अपना कच्छा उसने ठीक किया. अभी भी उसका लंड थोडा तना हुआ था. उसने कैसे तो उसको एडजस्ट किया. कोई जागने से पहले उसने वह से निकलना ही मुनासिफ समझा. अचानक वो रूम के दरवाजे की तरफ रुका और काव्या पे एक आखरी नज़र डालके के उसने अपने होठो से एक फ़्लाइंग किस काव्या की और फेकी. और रूम से बाहर की और निकल पड़ा. यहाँ वह देख उसने मुख्य दरवाजे की और कदम बढाए. उसके मन में गुस्सा था के इस वक़्त कौन हो सकता हैं. शायद इतना ज्यादा के वो उसकी मा चोद दे.
क्रमश:
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“कौन आ गया इस समय..मा चोद दूंगा.”

बड़े ही गुस्से से खुदसे बडबडाते हुए रफीक दरवाजे की और दौड़ा. दरवाजे की बेल अभीभी बज रही थी. शायद बाहर की और भी कोई बहुत हलचल में था.

“आया ... आया ..रुको”

जोर से और गुस्से से रफीक अन्दर से बुलावा देता हैं. एकदम ख़ट से वो दरवाजे की कुण्डी खोलता हैं और गुस्से से सामने गाली निकालते हुए देखता हैं. तो अचानक से अपने मूह को कस कर लगाम भी लगा देता हैं. क्योकि सामने उसकी सौतेली मा नजमा जो खड़ी थी.

“तू...?”

अपने गुस्से का अचानक से रूपांतर चौक के उसने नजमा से बोला.

“हाँ मैं..तू इतना क्यों चौंक गया रे?” नजमा ने उसको उलटा सवाल किया. होश में आते रफीक ने फिर बात पलटाना शुरू कर दिया.

वो बोला ,“नहीं नही...अम्मी मतलब..इस समय तुम यहाँ कैसे?”

“अरे बावला हो गया क्या? शाम के ५ बजने को हैं..मालकिन के खाना बनाने का समय हुआ हैं. मैं तो हमेशा ही आती हूँ तूझे नहीं पता क्या?”

इसपे रफीक को एहसास हुआ के अभी भी उसका सर भीतर के महोल में ही अटका हैं. बस इस गलती पे अपनि बगले झाकने लगा.

“चल हट, मुझे अन्दर आने दे, काम हैं बहुत. अपने आवारा दोस्तों के साथ रहकर तू भी आवारा बन गया हैं रफीक”

रफीक को हटाकर सलमा अन्दर की और आ गयी. उसने अपना थैला सोफे पे रख दिया जो वो रोज करती थी और अपने काम पे लग जाती थी. पर आज उसने कुछ अलग किया. वही रफीक दरवाजे के बाहर देखता हैं सच में बारिश शुरू थी. और रात होने जैसे लग रह थी. रफीक खुदको मन ही मन समझाता हैं, “बाल-बाल बच गया आज, वरना अम्मी को तो गाली देने ही वाला था..या अलाह शुक्रिया”. ऐसा कहके दरवाजा फिर से लगा कर पिच्छे की और मुड जाता हैं. जैसे ही वो पिच्छे मुड़ता हैं वो और फिर से एक बार चौक जाता हैं.

सामने का नजारा देख वो हक्काबक्का हो जाता हैं. नजमा ने अपने सारी का पल्लू पूरा का पूरा निचे गिरा दिया था. शायद बारिश के कारण उसने वैसा किया. वो बरिश के कारन पूरी भीग जो गयी थी. उसकी साडी भीगने से उसके गठीले मादक बदन से चिपके हुयी थी. उसका ब्लाउज पूरा का पूरा उसकी चुचियों को दर्शा रहा था. उसकी गांड उभरी हुयी थी तो भीगने के कारन और मादक हो गयी थी. रफीक उसका ये अवतार देख सन्न रह गया. ४२ साल की नजमा बिलकुल ३५ साल से ज्यादा नहीं लग रही थी. भीगा बदन कहर ढा रहा था. वो ज्यादा सावली भी नहीं थी इसलिए उसका बदन दमक रहा था. ब्लाउज में दूध का क्लेवेज साफ साफ़ दिख रहा था.

यु तो ये सब बाते रफीक के लिए नयी नहीं थी. नजमा उसको बच्चे की तरह मानती थी. उसके साथ वो कही बार नदी पे नहाई भी थी. और रफीक तो बिना किसी हिचक से उम्र के साथ उसके साथ और घुल मिल जाया करता था. पर आज का समा कुछ और था. आज रफीक को मर्द होने का पूरा एहसास जो मिल गया था. उसकी मर्दानगी को ये सभी बाते ललकार रही थी. उसकी आँखे नजमा के भीगे जिस्म पे टिकी रही और उसके टाईट लंड में फिर से अकड आने लगी.
नजमा वही बेशर्मी से अपने सर के बाल साफ़ कर रही थी. उसको इन बातो का कोई परिणाम था नहीं. वो हमेशा की तरह अपने काम में व्यस्त थी. पर रफीक का ध्यान आज कहा अपने काममे था.

वो वैसे ही नजमा की करीब जाके पिछे से एक झटके में ही उससे बदन से चिपक जाता हैं.
यु तो उसके लिए नजमाँ को चिपकना नया नहीं था. रात में वो आज भी कई कबार नजमा के चुचियों से खेलता, कही बार तो उनका दूध पिता. पर उसने कभी घर के बाहर ऐसी जरुरत नहीं की थी.

“अमीई......रफीक....”

अचानक से हुए इस हमले से नजमा भी चौक गयी. रफीक उससे जम कर के पीछे से चिपक के खड़ा हुआ जो था.

नजमा ने होश सँभालते कहा,
“र..रफीक...बेटे,,क्या हुआ? छोडो ऐसे नहीं करते..”

रफीक अपना भार पीछे से और बढाते हुए नजमा के गले पे अपनी गरम सासे छोड़ते हुए भले ही मादक आवाज में बोल पड़ा,

“ उम...नही...अम्मी..आज मुझे चाहिए...”

नजमा यहाँ वहा देखते हुए उसको अपने आप से छुड़ाने की कोशीश कर रही थी. “बेटा... कक..क्या होना? छोडो अभी,,,”

रफीक ने अपने हाथ सामने से सीधे नजमा के चुचियों पे रख दिए. और उनको जम कर दबाते हुए बोला, “ये चाहिए...मुझे आज..”


जब रफीक के नजमा का दूध दबाया. नजमा तो होश के बाहर हो गयी. उसकी पकड़ बहुत मजबूत लग रही थी आज. उसकी आह निकलते निकलते उसने रोक दी कही कोई आ ना जाए.
और अपने होठो को चबाते हुए वो बोल बड़ी हुए धीरे कस्म्कसाते हुए बोल पड़ी,

“बे,,,,बेटा .. तू...तू घर पे पि लेना .यहाँ नहीं रहता ऐसे, समझो...”


लेकिन आज रफीक कहा सुनने वाला था. उसने अपना जोर और बढ़ाया और इसीके साथ पहली बार नजमा को रफीक की और से अपने बड़ी गद्देदार गांड पे कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ. उसको ये समझने बिल्कुल वक़्त नहीं लगा के ये रफीक का लंड था. उसको इसके कारन एक झटका लगा और अब उसको रफीक से थोडा डर भी लगने लगा.

“नहीं..मुझे अभी चाहिए...पिलाओ...”

नजमा को बुरी तरह अपने से चिपकाते हुए उसकी चुचियों को लगातार मसलना उसने जारी रखा. रहीम चाचा से मसलने से नजमा की चुचिया आज भी ढीली ढाली नहीं थी. बहुत सुडोल थी वो. ३६ साइज़ की चुचिया रफीक पुरे जोश के साथ मसल रहा था. पर बात चुचियों की नहीं थी बात थी उसकी पकड़ की जिसमे मर्दाना एहसास ज्यादा था, ना के बच्चे का. साथ ही बात उसके लंड की थी जो उसके गांड की साडी के ऊपर से मा चोद रहा था.

“नहीं....रफीक....ज़बरदस्ती नहीं करते,...छोडो...अच्छे बचे की तरह..”

नज्मा अभी भी उसको बच्चे की तरह दाट रही थी. शायद उसको अभीभि सब साधारण ही लग रहा था. पर तभी वो हुआ जो सलमा के लिए किसी बड़ी सुनामी की तरह था.

रफीक ने अपना पूरा बोझ उसके पीछ डाल दिया था. और होशो आवाज से बाहर होकर उस नवयुवक से अपनी मा को इस कदर दबाया के खड़े खड़े ही वो सामने सोफे पर झुक गयी. उसके हाथ सोफे पे थे. और पीछे गांड उभर के रफीक से लपकी थी. कुत्ता कुतिया पे जैसा चढ़ता हैं वैसे स्थिथि में दोनों की हालत थी. ताज्जुब ये था के बारिश भी गिर रही थी. जिससे सच में वो दृश्य बहुत ही कामुक हो गया था. नजमा के सासे ही अटक गयी. उसने पूरी कोशीश की रफीक को समझाने की. अटक अटक सांस लेते हुए उसने कहा,


“रफीक,,,छोडो...मार पड़ेगी अब तुमको...सुनते हो के नहीं?”

पर यहाँ तो बच्चा पूरा जवान हो गया था वो क़हा अब डरने वाला था. उसका ध्यान तो बस नजमा का बदन सेकने में डूबा था. अपनी आखे बंद रखते हुए ही उसने अपना शरीर का दबाव और बढ़ाया. जिस कारण उसका लंड सलमा के गांड के बीचो बीच आके अपना बल दिखाने में सफल हो गया.


अब वो भी खुद झूक गया और उसका मूह सलमा की पीठ पर चिपक गया. और उसके चेहरे को हाथो से मलते हुए लाड में आकर चुम्मी लेते हुए बोला,


“आह...नहीं...अमी..मुझे अभी चाहिए...जाओ”

रफीक तो मानने में नहीं दिख रहा था. तभी नजमा को निचे की कमरे की लाइट जली हुयी दिख पड़ी. शायद काव्या की नानी जाग गयी थी. नजमा को विंडो से दिख रहा था. वो कभी भी आ सकती थी. नजमा करे तो क्या करे? अगर इस हालात में कोई गलती से देख ले तो उसको तो मूह दिखाने जगह नहीं रहेगी. उसको कैसे भी करते रफीक को हटाना था. नज्मा की आँखे ये सोच के डर के मार खुली की खुली रह जाती हैं उसे कैसी भी करके रफीक को अब हटाना ज़रूरी बन गया था.


उसकी इन हरकतों को अभी भी वो बचपना समझ रही थी. उसके बचपने से वो एक सौदा करने का ठान लिया. जैसे बचचो के साथ चॉकलेट पे किया जाता हैं. पर शायद उसको ये सौदा रफीक के जवान लंड की करतूतों से मेहंगा न गिर जाये.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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