प्यासी जिंदगी complete

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rangila
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Re: प्यासी जिंदगी

Post by rangila »

मैंने 4-5 बार ही अपने लण्ड को बाजी की चूत में अन्दर-बाहर किया था कि एकदम मेरा बैलेन्स बिगड़ गया और मैंने अपने आपको बाजी पर गिरने से बचाते हुए हाथ सामने किए.. जो सीधे बाजी के कूल्हों पर पड़े और कूल्हे नीचे दब गए और इसी झटके की वजह से मेरा लण्ड भी झटके से आगे बढ़ा और बाजी की चूत के पर्दे पर मामूली सा दबाव डाल कर रुक गया।
बाजी ने मेरे हाथों को झटके से अपने कूल्हों पर पड़ते और अपने परदा-ए-बकरत पर लण्ड के दबाव को महसूस किया.. तो सिर उठा कर तक़लीफ़ से कराहते हुए कहा- उफ्फ़.. आराम से करो नाआआ.. जंगलीईइ.. सारा अन्दर डालोगे क्या?
यह कह कर बाजी ने पीछे देखा तो मेरी पोजीशन देख कर उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं और उन्हें अंदाज़ा हुआ कि जिसस दबाव को उन्होंने अपनी चूत के पर्दे पर महसूस किया.. वो डिल्डो नहीं बल्कि उनके अपने सगे भाई का लण्ड था..
तो वो तड़फ कर चिल्ला के बोलीं- नहीं.. वसीम.. खबीस मैंने तुम्हें मना किया था.. बाहर निकालोओ जल्दीई..
यह कह कर बाजी उठने के लिए ज़ोर लगाने लगीं.. लेकिन मेरे हाथों ने बाजी के कूल्हों को दबा रखा था और मेरा पूरा वज़न बाजी पर था.. जिसकी वजह से वो उठने में कामयाब ना हो सकीं।
मैंने अपना वज़न बाजी के ऊपर से हटाते हुए कहा- कुछ नहीं होता बाजी.. देखो आपको कितना ज्यादा मज़ा आ रहा था!
बाजी ने भर्राई हुई आवाज़ में कहा- नहीं वसीम.. इसे फ़ौरन निकालो और मुझे उठने दो.. नहीं तो मैं तुम्हें ज़िंदगी भर माफ़ नहीं करूँगी.. याद रखना।
यह कहते ही उन्होंने फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया।
यह हक़ीक़त है कि मैं अपनी बहन की आँखों में कभी आँसू नहीं देख सकता हूँ.. सेक्स या हँसी-मज़ाक़ अपनी जगह.. लेकिन बाजी की आँखें नम देख कर मेरा दिल बंद होने लगता है।
बाजी अभी जिस तरह फूट कर रोई थीं.. मैं दंग रह गया। बाजी को इस तरह रोता देख कर मेरी हवस ही गुम हो गई।
मैंने तड़फ कर अपना लण्ड बाजी की चूत से बाहर खींचा.. तो वे फ़ौरन ज़ुबैर के ऊपर से उठ कर साइड पर बैठ गईं।
‘अच्छा बाजी प्लीज़ रोओ मत.. मैं कुछ नहीं कर रहा प्लीज़ बाजी.. चुप हो जाओ..’
मैं यह कह कर आगे बढ़ा और बाजी को अपनी बाँहों में ले लिया।
बाजी ने एक झटका मारा और मुझे धक्का दे कर मेरी बाँहों के हलक़े से निकल गईं और शदीद रोते हुए कहा- वसीम मैंने मना किया था ना तुम्हें.. क्यों मुझे इस तरह ज़लील करते हो.. मैं खुद ये करना चाहती हूँ.. लेकिन मैं इसके लिए अभी तैयार नहीं हूँ।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूँ.. इतनी शिद्दत से बाजी को रोते हुए मैंने पहले कभी नहीं देखा था.. मेरी समझ में कुछ ना आया.. तो मैंने बाजी को बाँहों में लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा- बाजी आई लव यू.. मैं आप से बहुत मुहब्बत करता हूँ.. मैं कभी ये नहीं चाहता कि आपको कोई तक़लीफ़ दूँ या आप की मर्ज़ी के खिलाफ कुछ करूँ.. बस पता नहीं क्या हो गया था मुझे.. प्लीज़ बाजी माफ़ कर दो मुझे।
यह कह कर मैंने बाजी को फिर बाँहों में लेना चाहा.. तो उन्होंने चिल्ला कर गुस्से से कहा- नहींईईई नाआअ वसीम.. दूर रहो मुझसे..
वे रोते-रोते ही खड़ी हो कर अपने कपड़े उठाने लगीं।
ज़ुबैर इन सारे हालात पर बिल्कुल खामोश और गुमसुम सा बैठा था, उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि बाजी को या मुझे कुछ कहे या आगे बढ़े।
बाजी को इस तरह बेक़ाबू देख कर मैंने भी दोबारा उनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं की और उनसे दूर खड़ा खामोशी से उन्हें क़मीज़ सलवार पहनते देखता रहा।
बाजी अभी भी रो रही थीं और उनकी आँखों से आँसू गिरना जारी थे।
रोते-रोते ही बाजी ने अपनी सलवार पहनी और फिर क़मीज़ से अपने आँसू साफ करके क़मीज़ पहन ली। लेकिन ना तो बाजी के आँसू रुक रहे थे और ना ही उनकी हिचकियाँ कम हो रही थीं।
उन्होंने अपना स्कार्फ सिर्फ़ पर बाँधा और ब्रा से अपनी आँखों को रगड़ते हुए हमारी तरफ नज़र डाले बगैर रूम से बाहर चली गईं।
बाजी के जाने के बाद भी मैं कुछ देर वैसे ही गुमसुम सा खड़ा रहा कि एकदम से ज़ुबैर की आवाज़ आई- भाई.. भाई आप थोड़ा..
मैंने ज़ुबैर के पुकारने से घूम कर उसे देखा और उसकी बात काट कर बोला- यार अब तो मेरा दिमाग मत चोदने लग जाना.. मैं वैसे ही बहुत टेन्शन में हूँ।
मैं यह बोल कर ऐसे ही नंगा ही अपने बिस्तर की तरफ चल दिया.. तो ज़ुबैर सहमी हुए से अंदाज़ में बोला- भाई आप मुझ पर क्यों गुस्सा हो रहे हैं.. मेरा क्या क़ुसूर है?
मुझे ज़ुबैर की आवाज़ इस वक़्त ज़हर लग रही थी। उसके दोबारा बोलने पर मैंने गुस्से से उससे देखा.. तो उसकी मासूम और मायूस सूरत देख कर मेरा गुस्सा एकदम से झाग की तरह बैठ गया और मैंने सोचा यार वाकयी ही इस बेचारे का क्या क़ुसूर है.. मैंने उससे कुछ नहीं कहा और बिस्तर पर लेट कर अपनी आँखों पर बाज़ू रख लिया।
सारे वाकिये की वीडियो रेकॉर्डिंग
तकरीबन 5-7 मिनट बाद मुझे कैमरा याद आया.. तो मैंने आँखों से बाज़ू हटा कर ज़ुबैर को देखा.. वो अभी तक वहाँ ज़मीन पर ही बैठा था लेकिन अब उसका चेहरा नॉर्मल नज़र आ रहा था और शायद वो कुछ देर पहले के बाजी के साथ गुज़रे लम्हात में खोया हुआ था।
मैंने उसके चेहरे पर नज़र जमाए हुए ही उसे आवाज़ दी- ज़ुबैर!!
उसने चौंक कर मुझे देखा और बोला- जी भाई?
‘यार वो कैमरा टेबल पर पड़ा है.. उसकी रिकॉर्डिंग ऑफ कर दे।’
यह कहते ही मैंने वापस अपनी आँखों पर बाज़ू रखा ही था कि ज़ुबैर की खुशी में डूबी आवाज़ आई- वॉववव भाई.. आपने सारी मूवी बनाई है?
मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और बाजी के बारे में सोचने लगा.. मुझे अपने आप पर शदीद घुसा आ रहा था कि मैंने अपनी फूल जैसी बहन को इतना रुलाया किया था कि अगर मैं अपने ऊपर कंट्रोल करता और ये सब ना करता..
लेकिन मैं भी क्या कर सकता था.. उस वक़्त मेरा जेहन कुछ सोचने-समझने के क़ाबिल ही नहीं रहा था।
ऐसी भी क्या बेहोशी यार.. मर्द को अपने ऊपर इतना तो कंट्रोल होना ही चाहिए।
मैं ऐसी ही मुतज़ाद सोचों से लड़ रहा था कि आहिस्ता-आहिस्ता बिस्तर के हिलने से मेरे ख़यालात का सिलसिला टूटा और मैंने आँखें खोल कर देखा तो ज़ुबैर बिस्तर की दूसरी तरफ लेट कर कैमरा हाथ में पकड़े हमारी मूवी देखते हुए मुठ मार रहा था।
मैंने चिड़चिड़े लहजे में कहा- यार क्या है ज़ुबैर.. सोने दे मुझे.. जा बाथरूम में जा कर देख.. वहाँ ही मुठ मार..
मेरे इस तरह बोलने से ज़ुबैर डर कर फ़ौरन उठते हुए बोला- अच्छा भाई सॉरी.. आप सो जाओ।
वो बाथरूम की तरफ चल दिया।
ज़ुबैर के जाते ही मैंने दोबारा अपनी आँखें बंद कर लीं.. मेरा जेहन बहुत उलझा हुआ था।
बाजी के रोने की वजह से दिल पर अजीब सा बोझ था और उन्हीं सोचों से लड़ते-झगड़ते जाने कब मुझे नींद आ गई।
बीच रात की बात
अपनी गर्दन पर शदीद तक़लीफ़ के अहसास से मेरे मुँह से एक सिसकी निकली.. बेसाख्ता ही मेरे हाथ अपनी गर्दन की तरफ उठे और बालों के गुच्छे में उलझ गए।
मैंने हड़बड़ा कर आँख खोली तो एक जिस्म को अपने ऊपर झुका पाया..
वो जिस्म मेरे ऊपर बैठा था और उसने अपने दाँत मेरी गर्दन में गड़ा रखे थे कि जैसे मेरा खून पीना चाहता हो।
मैंने उसके सिर के बालों को जकड़ा और ज़रा ताक़त से ऊपर की तरफ खींचा तो मेरी नज़र उसके चेहरे पर पड़ी।
वो चेहरा तो मेरी बहन का ही था.. लेकिन अजीब सी हालत में.. बाजी के बाल बिखरे और उलझे हुए थे। दाँतों को आपस में मज़बूती से भींच रखा था और आँखें लाल सुर्ख हो रही थीं कि जैसे उन में खून उतरा हुआ हो!
उनके बाल मेरे हाथ में जकड़े हुए थे और ताक़त से खींचने की वजह से उनके चेहरे पर दर्द का तब्स्सुर भी पैदा हो गया और गुलाबी रंगत लाली में तब्दील हो कर एक खौफनाक मंजर पेश कर रही थी।
वो चेहरा बाजी का नहीं बल्कि किसी खौफनाक चुड़ैल का चेहरा था।
मेरी नींद मुकम्मल तौर पर गायब हो चुकी थी.. मैं हैरत से बुत बना बाजी के चेहरे को ही देखा जा रहा था और मेरी गिरफ्त उनके बालों पर ढीली पड़ चुकी थी।
बाजी ने अपने सिर पर रखे मेरे हाथ को कलाई से पकड़ा और झटके से अपने बालों से अलग करके सीधी बैठीं.. तो बाजी के सीने के बड़े-बड़े उभारों और खड़े पिंक निप्पल्स पर मेरी नज़र पड़ी.. जो आज कुछ ज्यादा ही तने हुए महसूस हो रहे थे।
उसी वक़्त मुझ पर ये वज़या हुआ कि बाजी बिल्कुल नंगी हैं.. कुछ देर पहले बाजी के नंगे उभार मेरे सीने से ही दबे हुए थे.. लेकिन तक़लीफ़ के अहसास और फिर बाजी की अजीब हालत के नज़ारे में खोकर मैं इस पर तवज्जो नहीं दे सका था।
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rangila
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Re: प्यासी जिंदगी

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बाजी मेरी रानों पर सीधी बैठी.. कुछ देर तक अपनी खूँख्वार आँखों से मुझे देखती रहीं.. फिर उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे पेट पर रख कर ज़ोर दिया और नीचे उतर कर मेरे सिकुड़े हुए लण्ड को पकड़ा और पूरी ताक़त से खींचते हुए भर्राई आवाज़ में बोलीं- उठो वसीम.. जल्दी।
उनकी आवाज़ ऐसी थी जैसे किसी गहरे कुँए से आ रही हो।
बाजी ने मुझे लण्ड से पकड़ कर खींचा था और लण्ड पर पड़ने वाले खिंचाव के तहत मैं बेसाख्ता खिंचता हुआ सा खड़ा हो गया।
मेरे खड़े होने पर भी बाजी ने मेरे लण्ड को अपने हाथ से नहीं छोड़ा और इसी तरह मज़बूती से लण्ड को पकड़े अपने क़दम आगे बढ़ा दिए।
मैं सिहरजदा सी कैफियत में कुछ बोले.. कुछ पूछे.. बिना ही बाजी के पीछे घिसटने लगा।
बाजी के लंबे बालों का ऊपरी हिस्सा खुला था.. लेकिन बालों के निचले हिस्से पर चुटिया सी अभी भी कायम थी। ऊपरी घने बाल बिखरे होने की वजह से उनकी कमर मुकम्मल तौर पर छुप गई थी.. लेकिन जहाँ से बाजी के कूल्हों की गोलाई शुरू होती थी.. वहाँ से बालों की चुटिया भी शुरू हो जाती थी.. जो बाजी के खूबसूरत गोल-गोल कूल्हों की दरमियानी लकीर में किसी बल खाते साँप की तरह आती और लकीर के दरमियानी हिस्से को चूम कर कभी दायें और कभी बायें कूल्हे की ऊँचाइयों को चाटने निकल जाती।

बाजी कमरे का दरवाज़ा खोलने को रुकीं.. तो मैंने देखा कि उनकी सलवार वहाँ ही दरवाज़े के पास पड़ी थी.. जो मेरे पास बिस्तर पर आने से पहले बाजी ने उतार फैंकी होगी।
मैं बाजी की क़मीज़ की तलाश में सलवार के आस-पास नज़र दौड़ा ही रहा था कि मेरा जिस्म झटके से आगे बढ़ा।
बाजी दरवाज़ा खोल चुकी थीं और उन्होंने बाहर निकलते हुए मेरे लण्ड को झटके से खींचा था। मेरा क़दम खुद बखुद ही आगे को उठ गया और इतनी देर में पहली बार मेरी ज़ुबान खुली- यार बाजी कहाँ ले जा रही हो.. कुछ बोलो तो?
बाजी ने रुक कर एक नज़र मुझे देखा और बोली- स्टडी रूम में..
यह कह कर उन्होंने फिर चलना शुरू कर दिया.. मैं भी बाजी के पीछे ही क़दम उठाने लगा..
तो सीढ़ियों के पास मेरे पाँव में कोई कपड़ा उलझा और मैंने गिरते-गिरते संभल कर देखा तो वो बाजी की क़मीज़ थी.. मेरे जेहन ने फ़ौरन कहा मतलब बाजी ने सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते क़मीज़ उतारी होगी और ऊपर पहुँचते ही सिर से निकाल फैंकी होगी।
मेरे लड़खड़ाने पर भी बाजी रुकी नहीं थीं और मैं संभल कर फिर से उनके पीछे चलता हुआ स्टडी रूम में दाखिल हो गया।
स्टडी रूम के दरवाज़े के पास ही मेरे बिल्कुल सामने खड़े हो कर बाजी ने लण्ड को छोड़ा और आहिस्तगी से अपने दोनों हाथ उठा कर मेरे सीने पर रख दिए और अपनी गर्दन को राईट साइड पर झुकाते हुए.. नर्मी से हथेलियाँ मेरे सीने पर फेरने लगीं।
बाजी ने 3-4 बार ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर.. मेरे सीने को सहलाते हुए हाथ फेरे और फिर दोनों हथेलियाँ गर्दन से थोड़े नीचे रखते हुए ताक़त से मुझे धक्का दिया और घूम कर दरवाज़ा लॉक करने लगीं।
बाजी के इस अचानक धक्के से मैं लरखड़ाता हुआ दो क़दम पीछे हट गया.. बाजी की यह कैफियत मेरी समझ में नहीं आ रही थी।
ऐसा लग रहा था जैसे उनके जिस्म में कोई खबीस की रूह घुस गई हो और वो उस खबीस रूह के ज़ेरे-असर ये सब कर रही हों।
बाजी दरवाज़ा लॉक करके घूमीं और लाल सुर्ख आँखों से मुझे देखने लगीं.. यकायक ही बाजी की अंगार आँखों में एक चमक सी पैदा हुई और किसी शेरनी के अंदाज़ में वो मुझ पर झपट पड़ीं।
बाजी मेरे ऊपर टूट पड़ी
मैं बाजी के इस अचानक के हमले के लिए तैयार नहीं था.. इसलिए जब उनका बदन मेरे जिस्म से टकराया तो मैं खुद को संभाल ना पाया और लड़खड़ाता हुआ पीछे की जानिब गिरा और बाजी ने भी मुझ पर चढ़ते हुए मेरे साथ ही नीचे आ गिरीं।
लेकिन फर्श पर नरम कार्पेट होने की वजह से मुझे चोट नहीं लगी थी लेकिन बाजी को तो जैसे कोई परवाह ही नहीं थी कि मैं मरूं या जीऊँ।
बाजी मेरे ऊपर छा सी गईं।
मैं झटके से ज़मीन पर गिरा.. जिसकी वजह से एक लम्हें के लिए मेरा लण्ड.. जो उस वक़्त कुछ ढीला कुछ अकड़ा सा था.. भी ऊपर पेट की जानिब झटके से उठा था और उसी वक़्त बाजी मेरे ऊपर बैठीं.. तो मेरे लण्ड का निचला हिस्सा मुकम्मल तौर पर बाजी की चूत की लकीर में फिट हुआ और मेरी कमर ज़मीन से टच हो गई।
बाजी ने अपनी चूत की लकीर में मेरे लण्ड को दबाए हुए ही अपने घुटने मेरे जिस्म के इर्द-गिर्द नीचे कार्पेट पर टिकाए और अपने सीने के उभारों को मेरे सीने पर दबा कर वहशी अंदाज़ में मेरी गर्दन को चूमने और दाँतों से काटने लगीं।
मुझे बाजी के दाँतों से तक़लीफ़ भी हो रही थी.. लेकिन हैरत अंगैज़ तौर पर इस तक़लीफ़ से मुझे अनजानी सी लज्जत महसूस होने लगी।
मेरा लण्ड बाजी की चूत के नीचे दबे हुए ही सख़्त होना शुरू हो गया।
बाजी ने दाँतों से काटने के साथ-साथ अब मेरे कंधों.. बाजुओं.. सीने.. गरज़ यह कि जहाँ-जहाँ उनका हाथ पहुँच सकता था.. वहाँ से मुझे नोंचना शुरू कर दिया था और अपने तेज नाख़ुनों से मुझ पर खरोंचें डालती जा रही थीं।
मैंने बाजी को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश नहीं की.. ये अज़ीयत.. ये तक़लीफ़.. मेरे अन्दर जैसे बिजली सी भरती जा रही थी और मेरा अंदाज़ भी वहशियाना होता चला गया।
मैंने भी बाजी की कमर पर दोनों हाथ रखे और अपने नाख़ून उनके नर्म-ओ-नाज़ुक बदन में गड़ा कर नीचे की तरफ घसीट दिया।
बाजी ने फ़ौरन मेरी गर्दन से दाँत हटा कर चेहरा ऊपर उठाया.. उनके मुँह से अज़ीयत और लज़्ज़त से मिली-जुली एक कराह निकली ‘आओउ.. उउफफफ्फ़..’
मैंने इस मौके का फ़ायदा उठा कर फ़ौरन अपना हाथ बाजी की गर्दन पर रखा और गर्दन जकड़ते हुए उनको थोड़ा और ऊपर को उठा दिया।
बाजी के ऊपर उठने से उनके सीने के नर्मोनाज़ुक लेकिन खड़े उभार मेरे सामने आ गए।
मैंने एक लम्हा ज़ाया किए बगैर अपना सिर उठाया और उनके लेफ्ट उभार को अपने मुँह में भर कर अपने दाँतों से दबा दिया।
बाजी ने तड़फ कर एक अज़ीयतजदा ‘आअहह..’ भरी.. अपनी कोहनी को मेरे सिर के पास ही ज़मीन पर टिकाया और हाथ से मेरे सिर के बाल जकड़ा और दूसरे हाथ की मुठी में मेरे सीने के बाल पकड़ कर खींचने लगीं।
हम दोनों बहन-भाई की ही हालत अजीब सी हो गई थी.. जो कि मैं सही तरह लफ्जों में बयान नहीं कर सकता। बस हमारे अंदाज़ में एक दीवानगी थी.. वहशीपन था.. हैवानियत थी.. जुनून था.. शैतानियत थी।
मेरी बहन मेरे लण्ड को अपनी चूत के नीचे दबाए मेरे सिर के बाल खींच रही थी.. दूसरे हाथ से मेरे सीने पर अपने नाख़ून गड़ा कर खरोंचती जा रही थी।
बाजी ने मेरे सीने के बाल मुठी में भर कर खींचे.. तो सीने के बाल टूटने पर मैं तक़लीफ़ से बिलबिला उठा और बाजी को छोड़ने की बजाए मज़ीद वहशी अंदाज़ में उनके सीने के उभार को मुँह से निकाल कर दोनों उभारों के दरमियानी हिस्से पर दाँत गड़ा दिए।
मेरा लण्ड अब मुकम्मल तौर पर खड़ा हो चुका था लेकिन वो ऊपर की तरफ सिर उठाए दबा हुआ था.. यानि मेरे लण्ड का ऊपरी हिस्सा मेरे बालों वाले हिस्से से चिपका हुआ था।
मेरे लण्ड की नोक नफ़ से कुछ ही नीचे टच थी और मेरे लण्ड का निचला हिस्सा बाजी की चूत की लकीर में कुछ इस तरह बैठा हुआ था कि बाजी की चूत के लिप्स ने मेरे लण्ड की दोनों साइड्स को भी ढांप दिया था।
बाजी की चूत ने कुछ इस तरह मेरे लण्ड को अपनी आगोश में ले रखा था कि जैसे मुर्गी चूज़े को अपने पैरों में छुपा लेती है।
vnraj
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Re: प्यासी जिंदगी

Post by vnraj »

ऊफफफफ•••••••एक-एक शब्द ऐसा महसूस होता है जैसे कि सबकुछ ठीक सामने हो रहा है
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rangila
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Re: प्यासी जिंदगी

Post by rangila »

vnraj wrote:ऊफफफफ•••••••एक-एक शब्द ऐसा महसूस होता है जैसे कि सबकुछ ठीक सामने हो रहा है
thanks mitr

aise hi sath banaye rakhe
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rangila
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Re: प्यासी जिंदगी

Post by rangila »

बाजी की चूत से बहते गाढ़े और चिकने पानी ने मेरे पूरे लण्ड को तर कर दिया था। बाजी के हिलने से उनकी चूत मेरे लण्ड पर ही फिसल-फिसल जाती थी।
जब आगे फिसलने पर उनकी चूत का दाना मेरे लण्ड की नोक से टच होता.. तो उनके बदन में झुरझुरी सी उठती.. और बाजी लरज़ कर मज़ीद वहशी अंदाज़ में अपने दाँत और नाख़ूनों को मेरे जिस्म में गड़ा देतीं।
हम दोनों बहन-भाई इसी तरह जुनूनी अंदाज़ में एक-दूसरे को नोंचते खसोटते दुनिया-ओ-माफिया से बेखबर अपने जिस्मों को सुकून पहुँचाने की कोशिश कर रहे थे।
मैंने बाजी के सीने के खूबसूरत उभारों पर दाँत गड़ाने के बाद उनकी गर्दन के निचले हिस्से को दाँतों में दबाया तो बाजी ने भी उससे अंदाज़ में फ़ौरन अपना चेहरा मेरी दूसरी साइड पर लाकर मेरे कंधों में दाँत गड़ा दिए।
मैं बाजी की कमर को खरोंचता हुआ अपने हाथ नीचे लाया और अपनी बहन के दोनों कूल्हों को अपने दोनों हाथों से पूरी ताक़त से नोंच कर मुख़्तलिफ़ करने में ऐसे ज़ोर लगाने लगा.. जैसे मैं उनके दोनों कूल्हों को बीच से चीर देना चाहता हूँ।
‘अहह वसीम..’
बाजी ने एक चीखनुमा सिसकी भरी और तड़फ कर ऊपर को उठीं.. बाजी ने अपना ऊपरी जिस्म ऊपर उठा लिया.. लेकिन निचला हिस्सा ना उठा सकीं.. क्योंकि मैंने बहुत मज़बूती से उनके कूल्हों को नोंच कर चीरने के अंदाज में पकड़ रखा था.. जिसकी वजह से उनका निचला दर मेरे जिस्म पर दब कर रह गया था।
मेरे यूँ बाजी के कूल्हों को चीरने से उन्हें जो तक़लीफ़ हो रही थी.. वो उनके चेहरे से दिख रही थी।
बाजी ने अपने कूल्हों को छुड़ाने के लिए तड़फते हुए ऊपर उठने की कोशिश करते हुए.. ज़ोर लगा लगाया और मुस्तक़िल कराहते हुए कहा- आईईईई.. वसीम.. बहुत दर्द हो रहा है प्लीज़..
यह इस पूरे टाइम में पहली बार थी कि बाजी के मुँह से कोई अल्फ़ाज़ निकले हों..
इस बात ने मुझ पर यह भी वज़या कर दिया कि ऐसे कूल्हे चीरे जाने से बाजी को वाकयी ही बहुत शदीद तक़लीफ़ हो रही है।
मैंने अपने हाथों की गिरफ्त मामूली सी लूज की.. तो बाजी का निचला दर ऊपर को उठा और उसके साथ ही उनकी चूत के नीचे दबा मेरा लण्ड भी बाजी की चूत से रगड़ ख़ाता हुआ सीधा हो गया।
मेरे लण्ड की नोक बाजी की चूत के ठीक एंट्रेन्स पर एक पल को रुकी और मैंने अपने हाथों से बाजी के कूल्हों को हल्का सा नीचे की तरफ दबाया और अगले ही लम्हें मेरे लण्ड की नोक बाजी की चूत के अन्दर उतर गई।
जैसे ही मेरे लण्ड की नोक बाजी की चूत के अन्दर घुसी.. तो उससे महसूस करते ही बाजी के मुँह से एक तेज लज़्ज़त भरी ‘आअहह..’ निकली और उन्होंने आँखें बंद करते हुए अपनी गर्दन पीछे को ढलका दी। उसके साथ ही जैसे सुकून सा छा गया.. तूफ़ान जैसे थम सा गया हो.. हर चीज़ कुछ लम्हों के लिए ठहर सी गई।
मैंने आहिस्तगी से अपने हाथ से बाजी के कूल्हों की खूबसूरत गोलाइयों को छोड़ा और हाथ उनके जिस्म से चिपकाए हुए ही धीरे से बाजी की कमर पर ले आया। बाजी ने भी एक बेखुदी के आलम में अपने दोनों हाथ मेरे हाथों पर रख दिए।
अब पोजीशन ये थी कि मैं सीधा चित्त कमर ज़मीन पर टिकाए लेटा हुआ था.. मैंने बाजी की कमर को दोनों तरफ से अपने हाथों से थाम रखा था.. मेरी कमर की दोनों तरफ में बाजी के घुटने ज़मीन पर टिके हुए थे और वो मेरे हाथों पर अपने हाथ रखे.. गर्दन पीछे को ढुलकाए हुए.. लंबी-लंबी साँसें ले रही थीं।
चंद लम्हें ऐसे ही बीत गए.. फिर बाजी ने अपनी गर्दन को साइड से घुमाते हुए सीधा किया और आँखें बंद रखते हुए ही धीमी आवाज़ में बोलीं- वसीम मुझे लिटा दो नीचे..
यह कहते ही बाजी अपनी लेफ्ट और मेरी राईट साइड पर थोड़ी सी झुकीं और अपनी कोहनी ज़मीन पर टिका कर सीधी होने लगीं।
बाजी के साइड को झुकते ही मैं भी उनके साथ ही थोड़ा ऊपर हुआ और बाजी की चूत में अपने लण्ड का मामूली सा दबाव कायम रखते हुए ही उनके साथ ही घूमने लगा।
मैंने लण्ड के दबाव का इतना ख़याल रखा था कि लण्ड मज़ीद अन्दर भी ना जा सके और चूत से निकलने भी ना पाए।
थोड़ा टाइम लगा.. लेकिन आहिस्तगी से ही मैं अपना लण्ड बाजी की चूत के अन्दर रखने में ही कामयाब हो गया और हम दोनों मुकम्मल घूम गए।
मैंने इतना ख्याल रख कि लण्ड ज्यादा अन्दर भी ना जाए और चूत से निकले भी नहीं।
अब बाजी अपनी आँखें बंद किए ज़मीन पर कमर के बल सीधी लेटी थीं, उनके घुटने मुड़े हुए थे.. लेकिन पाँव ज़मीन पर ही रखे हुए थे।
मैं अब बाजी के ऊपर आ चुका था और उनकी टाँगों के बीच में लेटा हुआ सा था। मेरी टाँगें पीछे की जानिब सीधी थीं और मेरा पूरा वज़न मेरे हाथों पर था और हाथ बाजी की बगल के पास ज़मीन पर टिके हुए थे।
लेकिन मैं इस पोजीशन में बहुत अनकंफर्टबल महसूस कर रहा था.. मैं अपने घुटने मोड़ कर आगे लाने की कोशिश करता तो मुझे पता था कि मेरा लण्ड बाजी की चूत से बाहर निकल आएगा और मैं ये नहीं चाहता था, मैंने बाजी को पुकारा- बाजीयईई..
उन्होंने आँखें खोले बगैर ही कहा- हूँम्म..
‘बाजी थोड़ी टाँगें और खोलो और पाँव ज़मीन से उठा लो।’
मैंने ये कहा तो बाजी ने अपने पाँव हवा में उठा लिए और घुटनों को मज़ीद मोड़ते हुए जितनी टाँगें खोल सकती थीं.. खोल दीं।
मैं बारी-बारी से अपने दोनों घुटनों को मोड़ते हुआ आगे लाया और बाजी की रानों के नीचे से गुजार कर आगे कर लिए।
अब मेरे हाथों से वज़न खत्म हो गया था.. मैंने अपने दोनों हाथ उठाए और बाजी के सीने के उभारों पर रख दिए और आहिस्तगी से उन्हें दबाते हुए मसलने लगा।
कुछ देर बाद बाजी ने आँखें खोलीं.. उनकी आँखें लज्जत और शहवात के नशे से बोझिल सी हो रही थीं।
मैंने बाजी की आँखों में देखते-देखते ही अपने लण्ड को थोड़ा आगे की तरफ दबाया.. तो बाजी के मुँह से एक सिसकी निकल गई और उनके चेहरे पर हल्की सी तक़लीफ़ के आसार नज़र आने लगे।
बाजी ने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को कार्पेट में गड़ा दिया और पूरी ताक़त से कार्पेट को जकड़ लिया।
मेरी बाजी की तकलीफ़
मैंने आँखों ही आँखों में सवाल किया कि बाजी क्या तुम तैयार हो?
और बाजी की आँखों ने ‘हाँ’ में जवाब दिया।
मैंने आहिस्तगी से अपने लण्ड का दबाव बाजी की चूत पर बढ़ाना शुरू किया.. तो उनके चेहरे पर तक़लीफ़ का तवस्सुर बढ़ने लगा और चेहरे का गुलाबीपन तक़लीफ़ के अहसास से लाली में तब्दील होने लगा।
मैंने दबाव बढ़ाते ही अपने ऊपरी जिस्म को झुकाया और बाजी की आँखों में देखते हुए ही अपने होंठ बाजी के होंठों के क़रीब ले गया।
मेरे लण्ड की नोक पर अब बाजी की चूत के पर्दे की सख्ती.. वज़या महसूस हो रही थी।
बाजी की साँसें भी बहुत तेज हो चुकी थीं और दिल की धड़कन साफ सुनाई दे रही थी।
बाजी के जिस्म में हल्की सी लरज़ कायम थी।
मैंने अपने हाथ बाजी के सीने के उभारों से उठा लिए और उनके चेहरे को मज़बूती से अपने हाथों में थाम कर बाजी के होंठों को अपने होंठों में सख्ती से जकड़ा और उसी वक़्त अपने लण्ड को ज़रा ताक़त से झटका दिया और मेरा लण्ड बाजी की चूत के पर्दे को फाड़ता हुआ अन्दर दाखिल हो गया।
बाजी के जिस्म ने एक शदीद झटका खाया और बेसाख्ता ही उनके हाथ कार्पेट से उठे और मेरी कमर पर आए और बाजी ने अपने नाख़ून मेरी कमर में गड़ा दिए।
बाजी तक़लीफ़ को बर्दाश्त करने और अपनी चीख को रोकने में तो कामयाब हो गई थीं.. लेकिन तकलीफ़ की शिद्दत का अहसास उनके चेहरे से साफ ज़ाहिर था।
उन्होंने अपनी आँखों को सख्ती से भींच रखा था, इसके बावजूद उनके गाल आंसुओं से तर हो गए थे।
मैंने बाजी के होंठों से अपने होंठ उठा लिए और अपने जिस्म को सख्त रखते हुए बाजी के चेहरे पर ही नजरें जमाई रखीं।
मेरा लण्ड तकरीबन 4 इंच से थोड़ा ज्यादा ही बाजी की चूत में उतर चुका था लेकिन अभी क़रीब 2 इंच बाक़ी था।
मैं थोड़ी देर बाजी के चेहरे का जायज़ा लेता रहा और जब उनका चेहरा और आँखों का भींचना थोड़ा रिलैक्स हुआ.. तो मैंने एक झटका और मार कर अपना लण्ड बाजी की चूत में जड़ तक उतार दिया।
मेरे पहले झटके के लिए तो बाजी जहनी तौर पर तैयार थीं.. उन्होंने पर्दे के फटने की शदीद तक़लीफ़ को ज़रा मुश्किल से लेकिन सहन कर ही लिया था.. लेकिन मेरा ये झटका उनके लिए अचानक था..
इस झटके की तक़लीफ़ से बेसाख्ता उन्होंने अपना सिर ऊपर उठाया और मैंने अपना चेहरा उनसे बचाते हुए फ़ौरन ही साइड पर कर लिया।
बाजी के मुँह से घुटी-घुटी आवाज़ निकली ‘आआअ क्ककखह..’
उनका मुँह मेरे कंधे से टकराया और उन्होंने अपने दाँत मेरे कंधे में गड़ा दिए।
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