ब्रा वाली दुकान complete

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shubhs
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Re: ब्रा वाली दुकान

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बिंदास लगे रहो
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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kunal
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Re: ब्रा वाली दुकान

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सलमा आंटी ने 10 मिनट तक लगातार मेरा लंड अपने चूतड़ों में फंसा कर अपनी चूत पर रगड़ा जिससे मुझे बहुत आराम मिल रहा था। फिर अचानक ही सलमा आंटी की गति में थोड़ी तेजी आ गई, सलमा आंटी अब पहले से ज्यादा आगे पीछे रही थीं और मुझे डर लगने लगा कि सलमा आंटी की इस हरकत से किसी ना किसी का ध्यान हमारी ओर हो जाएगा और फिर बहुत छतरोल होगी, मगर इससे पहले कि कोई हमारी इस हरकत को नोट करता मुझे अपने लंड टोपी पर गर्म पानी का एहसास हुआ और सलमा आंटी मेरे लंड को अपनी चूत के छेद पर लगा कर एकदम स्तब्ध हो गईं और अपने चूतड़ों को मेरे लंड पर मज़बूती से जमाए रखा। सलमा आंटी की चूत ने 10 मिनट की लगातार रगड़ से पानी छोड़ दिया था। सलमा आंटी के शरीर को कुछ देर झटके लगते रहे और फिर उनका शरीर शांत होने लगा। जब उनकी चूत ने सारा पानी छोड़ दिया तो उन्होंने अपने चूतड़ों की पकड़ ढीली की और मेरा लंड अपनी गाण्ड से निकाल दिया और मेरे से कुछ दूरी पर खड़ी हो गईं, मुझे उनकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया क्योंकि अब मेरे लंड आराम नहीं मिला था, लेकिन ऐसी हालत में सलमा आंटी से कुछ नहीं कह सकता था। बस दिल ही दिल में कुढता रहा और परिणाम के रूप में कुछ ही देर में मेरा लंड बैठ गया। दोस्तो ये कहानी आप राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम पर पढ़ रहे हैं

5 मिनट बाद ही मुल्तान चौक पर बस रुकी तो सलमा आंटी ने साथ वाली सीट से शमीना उठाया जो सो चुकी थी, वह जागी तो सलमा आंटी के आगे आकर खड़ी हो गई, जबकि छोटी सायरा अब तक सोई हुई थी, सलमा आंटी ने मुझे कहा कि तुम सायरा उठाओ उसकी नींद बहुत गहरी है, शायरा वह 10 साल की थी और थोड़ी वजनदार भी थी मगर बहरहाल वह एक बच्ची थी तो मैने मुश्किल से उसे गोद में उठाया और बस से नीचे उतर गया। वहाँ से हम ने एक रिक्शा लिया और उसमें बैठकर आंटी के घर की ओर चलने लगे। रिक्शे में सायरा मेरी गोद में ही थी जबकि सलमा आंटी मेरे साथ बैठी थीं, मैंने सलमा आंटी के पास होकर उनके कान में कहा आंटी आप ने तो मज़ा ले लिया मगर मेरा मज़ा अधूरा रह गया। आंटी ने मेरी तरफ देखा और हल्की आवाज में बोली चुप रहो, और खबरदार जो इस बारे में किसी को बताया या इस बारे में फिर से बात की। सलमा आंटी का लहजा बहुत कर्कश था, मैं कुछ नहीं कह सका और अपना सा मुंह लेकर बैठ गया। कुछ ही देर बाद हम सलमा आंटी के घर पहुंच चुके थे जहां मैंने सायरा को उनके कमरे में जाकर लिटा दिया और सलमा आंटी शमीना को लिए अंदर आ गई। मुनब्बर अंकल ने मुझे धन्यवाद दिया और सलमा आंटी ने भी बहुत सुंदर मुस्कान के साथ मुझे धन्यवाद करते हुए कहा बेटा तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद, तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए खाना बना लूँ, फिर खाना खाकर अपने घर जाना। मैंने कहा नहीं आंटी आप भी थकी हुई हैं, घर चलता हूँ अम्मी ने खाना बनाया हुआ है घर जाकर ही खाना खा लूँगा और यह कह कर मैं वहाँ से वापस अपने घर चला आया, और खाना खाने से पहले एक बार फिर शौचालय जाकर सलमा आंटी की गाण्ड और चूत को याद करके मुठ मार कर अपने लंड आराम पहुंचाया। उसके बाद अम्मी के हाथ का बना हुआ खाना खाया और सलमा आंटी को चोदने की योजना बनाता हुआ रात के पिछले पहर सो गया दोस्तो ये कहानी आप राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम पर पढ़ रहे हैं

रात को सोते हुए तो मैंने सपने में खूब सलमा आंटी की चौदाई और सलमा आंटी ने भी मेरा लंड मुंह में डाल कर मुझे खूब मजे दिए, मगर उनके मज़ों नतीजा यह निकला कि आधी रात को ही आंख खुल गई, और आंख खुली क्योंकि सलमा आंटी के लंड चूसने के दौरान लंड को वीर्य छोड़ना था, जैसे ही सपना मे मेरे लंड ने सलमा आंटी के मुंह में शुक्राणु की धाराए बहाई तभी वास्तव में भी मेरे लंड ने वीर्य छोड़ दिया और मेरी सारी सलवार को खराब कर दिया। मजबूरन आधी रात को उठकर नहाना पड़ा और कपड़े बदलने पड़े, इसके बाद काफी देर सलमा आंटी की गाण्ड के बारे में ही सोचता रहा और नींद आंखों से कोसों दूर रही। फिर नींद आई तो ऐसी शुक्रवार का समय गुजर चुका था और दोपहर 3 के पास में बिस्तर से उठा। आम दिनों में ऐसी हरकत पर अम्मी जान से खूब डांट पड़ती थी मगर आज बचत हो गई थी क्योंकि वे जानती थीं कल का दिन यात्रा में गुज़रा है तो थकान हो गई होगी।

अगले दिन फिर सामान्य जीवन शुरू हो गया, इस दौरान सलमा आंटी फोन के इंतजार करता रहा कि कभी तो वह अपने लिए फिर ब्रा मँगवाएँगी और तब फिर उनकी नरम नरम गाण्ड में अपना लंड फंसाकर खूब मजे करूंगा मगर यह इंतजार लंबा होता चला गया और काफी महीने बीत गए मगर सलमा आंटी का कोई फोन नहीं आया। अब तो मुझे लगने लगा था कि शायद मुल्तान से कबीर वाला तक का सफर भी मैंने सपने में ही किया था और सलमा आंटी ने मेरा लंड अपने चूतड़ों में फंसाकर भी मेरे सपने में मजे किए थे वास्तव में शायद ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था । मगर एक दिन फिर किस्मत की देवी मेहरबान हुई, मेरे फोन की घंटी बजी और नंबर सलमा आंटी का था, दिल के तार बजने के साथ लंड ने भी अंगड़ाइयाँ लेनी शुरू कर दीं और फिर उम्मीद के मुताबिक सलमा आंटी ने ब्रा घर लाने को कहा। मैंने एक बार फिर शुक्रवार का दिन ही चुना क्योंकि इस दिन छुट्टी होती थी दुकान से तो मैं आराम से सलमा आंटी के घर जा सकता था। उस दिन भी मैं फिर से 5, 6 सेक्सी ब्रा शापर में डालकर सुबह 10 बजे सलमा आंटी के घर जा पहुंचा। दिल में कितने ही अरमान थे कि आज तो सलमा आंटी की गाण्ड मेरे लंड से नहीं बच सकेगी, लेकिन तब मेरी सभी उम्मीदों पर पानी फिर गया जब मैं घर में दाखिल होकर देखा कि आज न केवल शमीना घर पर थी बल्कि जाग भी रही थी और सायरा भी वहीं थी। इन दोनों के होते हुए मेरा कुछ भी होने वाला नहीं था। वही हुआ, सलमा आंटी ने पानी पिलाया, और फिर शापर उठाकर मुझे वहीं इंतजार करने को कहा और सायरा और शमीना को मेरे पास बिठा कर अन्दर कमरे में चले गई, जबकि बाहर सोफे पर बैठा कुढता रहा। ( राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम )

इस दौरान मैंने शमीना के शरीर का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया लेकिन फिर सोचा कि नहीं अभी वह बहुत छोटी है। अभी तो उसके स्तन के उभार भी सही तरह से नहीं बने थे, लेकिन छोटे छोटे नुकीले निशान स्पष्ट हो रहे थे जिसमें उभार बढ़ना शुरू हो रहा था कि शमीना ने अभी-अभी जवानी की दहलीज पर कदम रखा है, और अब वह पूरी तरह से चुदाई के लिए सक्षम नहीं हुई। फिर शमीना से नजरें हटाकर में सायरा और शमीना दोनों को दिल ही दिल में कोसने लगा। कोई 15 मिनट बाद सलमा आंटी बाहर आई तो उन्होंने शापर मुझे वापस पकड़ा दिया जिसमें कुछ ब्रा मौजूद थे। साथ ही सलमा आंटी ने मुझे बताया कि उन्होंने 2 पीस रखे हैं और शमीना से पानी लाने को कहा, शमीना किचन में गई तो सलमा आंटी ने मुझे उनके ब्रा के बारे में बताया जो उन्होंने रखे थे, एक शुद्ध था और एक फोम वाला। फिर सलमा आंटी ने उनकी कीमत पूछी तो मैं बता दी, सलमा आंटी ने पैसे दे दिए तभी किचन से शमीना मीठा सिरप ले आई। मैंने बुझे हुए दिल के साथ 2 गिलास पानी पिया कि चलो अगर सलमा आंटी की गाण्ड नहीं मिली तो ठंडे पानी से अपनी मेहनत का प्रतिफल तो प्राप्त करें। पानी पीकर कुछ देर ज़बरदस्ती में बैठा रहा, लेकिन जब देखा कि अब सलमा आंटी मुझे ज्यादा लिफ्ट नहीं करवा रही तो मैंने वापस आने में ही अपनी भलाई समझी और और अपना शापर उठाकर वापस घर आ गया और सलमा आंटी की दोनों बेटियों को कोसने लगा। ( राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम )

मगर कुछ हद तक मुझे सलमा आंटी पर भी आश्चर्य था कि उस दिन बस में तो खुद अपने हाथ से मेरा लंड पकड़कर उन्होंने अपने चूतड़ों में फंसाया था, फिर आखिर ऐसी क्या बात हुई कि उन्होंने कोई संकेत तक नहीं किया मुझे आज जिस तरह उन्होने व्यवहार किया उससे मेरा हौसला ही जाता रहा कि यह गाण्ड मुझे मिलनी वाली है। मगर किस्मत में ये गाण्ड अभी नहीं लिखी थी सो नहीं मिली। और जिंदगी एक बार फिर सामान्य हो गई। इस घटना के कारण सलमा आंटी की गाण्ड का भूत काफी हद तक मेरे मन से उतर चुका था मगर मेरे लंड को किसी की गाण्ड की खोज आज भी थी। दोस्तो मोहल्ले की एक लड़की से मेरी सेटिंग थी और मुझे जब ज़रूरत होती में किसी न किसी तरह से अकेले में मिलकर अपने लंड की प्यास बुझा लेता था, मगर न जाने क्यों जब से मैंने ब्रा बेचने शुरू किए थे, मेरा दिल करता था कि जो मुझसे ब्रा खरीद रही है उसी को चोद दूँ, उसके मम्मे दबाऊ, उनको मुंह में लेकर चुसूँ, उनके मुंह में अपना लंड डाल दूं। इसीलिए मेरी प्यास किसी तरह कम नहीं हो रही थी।
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kunal
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Re: ब्रा वाली दुकान

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अब मुझे दुकान पर काम करते करीब 2 साल से अधिक का समय हो चुका था। और मेरा वेतन भी अब दस हजार तक पहुंच चुका था और बहुत अच्छा गुजारा हो रहा था। साथ ही मैंने अपनी नौकरी के 5 महीने बाद ही एक कमेटी भी डाल ली थी और इस कमेटी के अलावा भी पैसे जोड़ रहा था। अब मेरा अपनी दुकान बनाने का इरादा था। मेरे पास अब 2 लाख से अधिक की राशि मौजूद थी, कुछ अब्बा की पेंशन कुछ मेरी कमेटी और कुछ मेरी अपनी बचत जो हर महीने करता था वह मिल मिलाकर उतनी थी कि मैं एक छोटी दुकान को सामान से भर सकता था, मगर मुद्दा था दुकान लेने का। दुकान की पगड़ी ही इतनी थी कि आम आदमी तो दुकान बनाने की सोच भी नहीं सकता था इसलिए मैं किसी छोटी बाजार के बारे में सोच रहा था, जैसे शाह सदस्य मौलवी गुलशन बाजार या फिर गलगशत द्वारा गरदीज़ी बाजार। यह दोनों बाजार थीं तो छोटी मगर यहां जरा मॉर्डन लड़कियाँ खरीदारी के लिए आती थी। फिर एक दिन मेरी किस्मत जागी और फिर से वही लैला आंटी जिन्हें पहली बार मैने ब्रा बेचा था वह मेरी दुकान पर आईं तो बातों ही बातों में मेरी उनसे बात हुई कि मैं अपनी दुकान बनाने के बारे में सोच रहा हूँ, बस दुकान लेने की समस्या है।

जिस समय यह बात हुई तब हाजी साहब दुकान पर मौजूद नहीं थे। मेरी बात सुनकर लैला मेडम ने पूछा कि कहां पर करेंगे दुकान? और कितने पैसे चाहिए होते हैं दुकान के लिए ?? तो मैंने मेडम को दोनों बाजारों के बारे में बता दिया और बताया कि माल लाने के लिए जो मेरे पास पैसे है इतनी ही राशि दुकान को भी चाहिए। तब मेडम मुझे कहा तुम मेरी बात मानो तो मैं तुम्हारी मुश्किल आसान कर सकती हूँ ... मेरे कान तुरंत खड़े हो गए और मैंने कहा जी मेडम बताओ ऐसी कौन सी बात है जो मानने पर आप मेरी मदद करेंगे ??? लैला मेडम ने कहा अगर तुम गुलशन बाजार या गरदीज़ी बाजार की बजाय शरीफ प्लाजा में दुकान बना लो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ ... शरीफ प्लाजा कचहरी के पास है जहां एक फ्लाईओवर भी गुजरता है। शरीफ प्लाजा नाम सुनकर हंसा और कहा मेडम मेरी इतनी सामर्थ्य कहां कि वहाँ दुकान बना सकूँ वहां तो बहुत बड़ी बड़ी और महंगी दुकानें हैं। लैला मेडम कहा वही तो मैं तुम्हें कह रही हूँ तुम वहाँ दुकान खोलना तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ। अगर आप पूरी बात सुन लोगे तो शायद हम दोनों का काम आसान हो सके। ( राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम )

मैंने कहा जी मेडम बताएं। उन्होंने कहा शरीफ प्लाजा में एक दुकान है जो मेरी अपनी है, वह हम ने किसी को किराए पर दी हुई थी, मगर फिर मेरे पति ने वहां अपना कारोबार बनाने का सोचा तो जिन्हें दुकान दी थी उन्होने दुकान खाली करने से इनकार कर दिया । काफी प्रयास के बावजूद भी जब वे दुकान खाली न हुई तो हम ने उन्हें न्यायिक नोटिस भिजवा दिया जिस पर उन्होंने मेरे पति को धमकी देना शुरू कर दिया मैंने अपने शोहर से कहा छोड़ो उस दुकान को अपना नोटिस वापस ले लो हम कोई और काम करेंगे उन गुण्डों से टक्कर लेने का कोई फायदा नहीं। मगर मेरे पति नही माने और उन्होंने कहा, हम किसी को इस तरह अपनी संपत्ति पर कब्जा करने नहीं देंगे। केस चला और अदालत ने हमारी पक्ष में फैसला दिया और पुलिस को कहा कि दुकान खाली करवाई जाए। पुलिस ने 2 दिन में ही दुकान तो खाली करवा दी मगर उन लोगों ने अपना गुस्सा निकालने के लिए कुछ गुण्डों को भेजा जिन्होंने मेरे पति को डराया और इतना प्रताड़ित किया कि वह पिछले 6 महीने से बिस्तर पर हैं और अभी कुछ और साल तक वह उठ कर बैठ नहीं सकेंगे उनकी कमर की हड्डी को काफी नुकसान पहुंचा है। वैसे तो हमें पैसे की कमी नहीं, ज़मीन से काफी पैसा आ जाता है मगर वह दुकान खाली नहीं रखना चाह रही, क्या पता उधर फिर कोई कब्जा कर ले खाली दुकान देखकर।

वो दुकान तुम्हें किराए पर दे सकती हूँ, तुम वहाँ अपना काम करो, तुम मुझे शरीफ इंसान लगते हैं, हमारा अनुबंध होगा कि 5 साल से पहले हम तुम्हें दुकान खाली करने के लिए नहीं कहेंगे। उसके बाद अगर दुकान खाली करवानी हुई तो हम तुम्हें 3 महीने पहले बता देंगे ताकि आप अपनी व्यवस्था कर सको। लैला मेडम शांत हुईं तो मेरे जवाब का इंतजार करने लगीं। मैंने कुछ सोचते हुए कहा वह तो ठीक है मेडम मगर जितना किराया हैं शरीफ प्लाजा का में वह कैसे दूंगा ??? और फिर दुकान की पगड़ी भी होती है जो शरीफ प्लाजा में 5 लाख से कम नहीं। मेडम ने कहा उसकी तुम चिंता मत करो, हमे अभी में पैसे नहीं चाहिए, बस दुकान पर कोई काम होना चाहिए ताकि खाली दुकान देखकर उस पर कोई कब्जा न करे। पगड़ी तुम मत देना और दुकान किराया 15 हजार होगा मगर वह भी पहले 6 महीने आप कोई किराया मत देना। जब तुम्हारा काम चल पड़ेगा तो 6 महीने बाद आप 15 हज़ारा मासिक के हिसाब से किराया देते रहना। और दुकान का जो भी काम करवाना हो वह हम तुम्हें करवा देंगे। काफी देर सोचता रहा और फिर मेडम से पूछा मगर मेडम आप मुझ पर ही क्यों इतना ऐतबार कर रही हैं? हो सकता है मैं भी आपकी दुकान पर कब्जा कर लूँ। इस पर लैला मेडम मुस्कुराई और बोली तुम मेहनत करने वाले लड़के हो, नौकरी करते हो यहाँ, 8 से 10 हजार तुम्हारी वेतन होगी तुम हम लोगों से पंगा नहीं ले सकते। जिन्हें पहले दुकान दी थी वह बड़ी पार्टी थी और उनका राजनीतिक लोगों से संबंध था जिसकी वजह से हमें मुश्किल हुई। तुम जैसे शरीफ़ आदमी से हमें कोई खतरा नहीं।

मैंने कहा ठीक है मेडम में आपको सोचकर बताउन्गा, तो मुझे दुकान बता दें कि मैं जाकर देख सकूं, उसके बाद घर वालों से परामर्श करके आपको बता दूँगा कि मेरा क्या कार्यक्रम है। मेडम ने मुझे अपना मोबाइल नंबर दिया और घर का पता बता दिया कि यहां आकर तुम दुकान की चाबी ले जाना ताकि दुकान देख सको और फिर सलाह करके मुझे बता देना। मैंने कहा ठीक है और उनका नंबर और पता मोबाइल में सेव किया और 8 बजे हाजी साहब से छुट्टी लेकर जल्दी जल्दी घर पहुंचा और अम्मी से इस बारे में बात की, अम्मी ने लैला मेडम को ढेरों आशीर्वाद दिए और कहा बेटा तुम्हें वह दुकान ले लेनी चाहिए इसमें तुम्हारा भी लाभ है ( राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम ) और तुम्हारी लैला आंटी की भी सहायता हो जाएगी। लेकिन अपने मुनब्बर अंकल से भी परामर्श कर लेना। फिर मैंने अम्मी से अपनी परेशानी व्यक्त करते हुए उन्हें बताया कि अम्मी वहां पर काम करने के लिए मेरे पास पैसे अभी भी कम हैं वहाँ कम से कम इतने ही पैसे और चाहिए होंगे क्योंकि सब कुछ अच्छी गुणवत्ता का सामान रखना होगा यह सुनकर अम्मी ने कुछ देर सोचा और फिर उठ कर अपने कमरे में गई और एक छोटी सी पोटली मेरे सामने रख दी और कहा बेटा यह मेरा छोटा सा गहना है जो मैंने मिनी के लिए रखा था कि जब उसकी शादी होगी तो दहेज बनाने के काम आएगा। मगर अब तुम अपना काम शुरू करने जा रहे हो तो इसका उपयोग करो।

मैंने मना कर दिया कि नहीं अम्मी यह आप मिनी के लिए ही रखें मेरी कोई न कोई व्यवस्था हो जाएगी में बैंक से लोन ले लूँगा। अम्मी ने सख्ती से मना कर दिया कि नहीं बेटा ब्याज पर काम करना अच्छा नहीं, बैंक तो ब्याज लेगा और जो काम ब्याज से शुरू किया जाय उसमें बरकत नहीं होती। ये गहना हमारा अपना है, इसमे तुम्हारा भी हिस्सा है और तुम्हारे भाई बहनों का भी है। उसे अपने भाई और बहनों की अमानत समझकर इस्तेमाल करो, जब तुम्हारा काम चल पड़े तो पैसे जोड़ते रहना, मिनी के बड़े होने तक तुम्हारे पास इतने पैसे जमा हो जाएंगे कि तुम फिर से इतना जेवर बनवा कर सको। मैंने कुछ देर सोचा और फिर अम्मी से वह गहने ले लिया। अगले दिन मैंने हाजी साहब को जाकर अपने इरादे के बारे में बताया तो वे थोड़े परेशान हो गए क्योंकि उनकी दुकान इस समय मेरे सिर पर चल रही थी। उनका मुझ पर एहसान था इसलिए मैंने उन्हें पहले बता देना उचित समझा कि वे तब तक किसी और लड़के की व्यवस्था कर सकें, हाजी साहब ने मुझे मना तो नहीं किया मगर मुझे यह जरूर कहा कि बेटा कम से कम आप 2 महीने तक मेरे पास ही काम करो और अपनी जगह कोई अपने विश्वास वाला लड़का भी लेकर आओ जिसको तुम्हे खुद ही प्रशिक्षण भी देना होगा। उसके बाद तुम अपना काम भगवान का नाम लेकर शुरू करना ऊपर वाला आशीर्वाद देगा

मैंने हाजी साहब को आश्वासन दिया कि यहां से रवाना होने से पहले अपनी जगह उन्हें कोई अच्छा लड़का दे दूँगा जो उनकी दुकान संभाल सके और फिर उस दिन की छुट्टी लेकर मेडम के दिए हुए पते पर चाबी लेने पहुंच गया। उनके घर के सामने जाकर मैंने मेडम के नंबर पर कॉल की तो उन्होंने चौकीदार को गेट खोलकर मुझे अंदर बुलवा लिया। यह एक आलीशान घर था, देखने से ही रहने वालों के ठाट-बाट का अनुमान हो रहा था। बड़े हॉल में चौकीदार ने मुझे बिठा दिया जहां 2 मिनट बाद ही लैला मेडम आईं और मुझे अंदर अपने बेड रूम में ले गई। बेडरूम में टीवी चल रहा था, अंदर गया तो सामने बेड पर एक व्यक्ति लेटा हुआ था, जबकि उसके साथ मेडम का छोटा बेटा खेल रहा था, मैं समझ गया कि यह मेडम पति होगा। मैंने उन्हें सलाम किया तो मेडम ने अपने पति को बताया कि सलमान है जिसके बारे में आपको बताया था। ये दुकान की चाबी लेने आया है। मेडम के पति ने कुछ देर मुझसे बातचीत की और मेरे से कुछ मेरे बारे में प्रश्न किए जैसे मैं कौन हूँ, कहाँ आवास है, पिताजी क्या करते हैं, घर में पिताजी के जाने के बाद किसने जिम्मेदारी ली आदि आदि। उनकी बातों से मैं समझ गया था कि वह जोखिम नहीं लेना चाह रहे और मेरे बारे मे पूरी तसल्ली करना चाह रहे हैं।

कुछ देर की पूछताछ के बाद उन्होंने कहा लैला इसे चाबी दे दो, बल्कि ऐसा करो खुद साथ जाओ और उसे दुकान दिखाना है, और वहाँ जो कुछ काम करवाना है वह खुद समझ लेना हम जल्द ही वहां मिस्त्री लगवा कर काम करवा देंगे। लैला मेडम ने कहा ठीक है साथ चली जाती हूँ। फिर मेडम बाहर आईं और उन्होंने मेरे से पूछा किस पर बैठ कर आए हो तो मैं उन्हें बताया कि रिक्शा पर आया, तो मेडम ने पूछा गाड़ी चला लेते हो ??? मैं इनकार में सिर हिलाया तो मेडम ने खुद एक गाड़ी चाबी उठाई और मुझे लेकर बाहर आ गई जहां एक होंडा सिविक और एक छोटी सुजुकी कलटस खड़ी थी। मेडम ने कलटस का दरवाजा खोला और ड्राइविंग सीट पर बैठ गईं, मैंने पिछला दरवाजा खोला और बैठने लगा तो मेडम ने मुड़ कर मेरी तरफ देखा और बोलीं आगे आकर बैठ जाओ।

मैंने दरवाजा बंद किया और अगली सीट पर बैठ गया। कुछ ही देर बाद मेडम ने शरीफ प्लाजा में पहुँच कर गाड़ी रोक दी। शरीफ प्लाजा में प्रवेश करते ही सीधे हाथ पर यह आखिरी दुकान थी जो महत्वपूर्ण थी। बाहर एक कैंची गेट था और एक शटर लगा हुआ था। अंदर काफी काठ कबाड़ पड़ा था जो दुकान छोड़ने वालों का था। दुकान शुरू से करीब 12 फुट चौड़ी थी जो आगे तक इसी चौड़ाई थी मगर करीब 20 फीट आगे जाकर एक दम से 20 फुट चौड़ी हो गई थी। यानी फ्रंट पर एक ही दुकान थी जबकि दुकान के भीतरी भाग में दुकान चौड़ाई के आधार पर करीब 2 दुकानों के बराबर थी और भाग करीब 8 फुट लंबा था।

दुकान मुझे खासी पसंद आई और मैंने अनुमान लगा लिया था कि इस दुकान को भरने के लिए कम से कम भी 7 से 8 लाख रुपये चाहिए होंगे। मैंने मेडम को यह बात कही तो उन्होंने कहा, तुम चिंता मत करो हम दुकान ऐसी करवा देंगे कि आप कम समान मे भी दुकान भर सकते हो, और जैसे ही आप के पास ज्यादा पैसे आएंगे तुम इसी सेटिंग से अनावश्यक अलमारी हटा कर उपकरणों के लिए जगह ले जा सकते हो। बस तुम यह बताओ तुम यहाँ दुकान बनाना पसंद करोगे या नहीं? मैंने कहा जरूर मेडम, भला इतनी अच्छी दुकान कौन छोड़ सकता है, तो आपका बड़ा आभारी रहूँगा आपने मुझे यह जगह डी काम शुरू करने के लिये। लैला मेडम मुस्कुराई और बोली बस तुम यहाँ काम शुरू कर दो तो हम भी तुम्हारे आभारी होंगे। मैंने आंटी को कहा बस में अंतिम बार अपने एक चाचा से परामर्श कर लूँ, मगर वह भी औपचारिक ही होगा मुझे यकीन है वह मना नहीं करेंगे आप मेरी ओर से 90 प्रतिशत हां ही समझें। फिर कुछ मैंने मेडम को समझाया कि मुझे कैसी सेटिंग चाहिए और कुछ मेडम ने मुझे सलाह दी, उनके सुझावों से लग रहा था जैसे वह काफी समझदार महिला हैं। उनका कोई सलाह नहीं था जो मुझे अनावश्यक लगा हो, मेडम ने अपनी कार से एक बड़ा कागज और पेंसिल भी निकाल ली थी जिससे वह हमारी होने वाली बातचीत के बारे में लिख रही थीं कि दुकान को कैसे सेट करना है।

हम करीब आधा घंटा दुकान में रुके और आवश्यक बातचीत करने के बाद फिर से कार में बैठ कर केंट की ओर चल दिए। मैंने मेडम से पूछा कि मेडम यह हम कहाँ जा रहे हैं ?? तो उन्होंने कहा केंट में कुछ अच्छी दुकानें हैं जो अंडर गारमेंट्स ही बेचती हैं, आप इन दुकानों की आंतरिक सेटिंग देख लो ताकि तुम्हें पता रहे कि कितना माल लाना है और कैसा माल लाना है। कुछ ही देर में केंट की एक छोटी मगर अच्छी दुकान पर मौजूद थे, लैला मेडम मुझे अंदर लेकर गईं और कहा तुम ध्यानपूर्वक देख लेना दुकान। दुकान में गए तो लैला मेडम ने दुकानदार से बातचीत शुरू कर दिया और आभूषण देखनी शुरू कर दी, जबकि मैंने दुकान पर गहरी नजर डाली और उनकी सेटिंग देखी तो यह वास्तव में एक अच्छी दुकान थी जिन्होंने कम समान होने के बावजूद इस तरह रखा हुआ था कि दुकान भरी हुई लग रही थी। एक साइड पर प्लास्टिक स्त्री ढांचे यानी स्टेचू भी पड़े थे जिन पर महिलाओं की नाइटी पहना कर प्रदर्शन किया गया था ( राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम ), 3 से 4 पुतलो ने दुकान का बड़ा हिस्सा भर दिया था और आगे एक कोठरी में महिला के सीने की संरचनाओं के स्टेचू मौजूद थे जिन पर ब्रा ऐसे लटकाए गए थे जैसे कोई औरत पहन कर खड़ी हो। यह भी एक अच्छी बात थी कि महिलाओं को पता हो जाता था कि यह ब्रा उनके बदन पर कैसा लगेगा।

कुछ देर बाद हम इस दुकान से निकल आए और ऐसी ही 2, 3 और दुकानों पर गए, हर जगह लगभग ऐसी ही बातें पड़ी थीं और एक जैसी ही सेटिंग थी बस छोटी मोटी बातों का अंतर था। यहाँ से हम करीब शाम 5 बजे फ्री हुए मेडम ने कहा चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊँ, मैंने शर्मिंदा होते हुए कहा नही मेडम आप घर जाएं आपके पति अकेले हैं खुद चला जाऊंगा। मेडम ने कहा उनकी चिंता तुम मत करो घर नर्स मौजूद है जो उनकी देखभाल करती है, और तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ने का उद्देश्य तुम्हारा घर देखना और तुम्हारी माँ से मिलना है। इस पर मैंने कहा ठीक है मेडम और साथ ही अपने मोबाइल से अपनी पड़ोसी जो अक्सर ही मेरे लंड के नीचे होती थी उसको मैसेज कर दिया कि अभी मेरे घर जाकर अम्मी को मेडम के आने की सूचना दे ताकि वे मेडम के लिए व्यवस्था कर सकें। 20 मिनट के बाद हम घर पहुंचे और जैसी उम्मीद थी अम्मी ने थोड़े से समय में ही चाय भी रख दी थी और साथ ही मौजूद बेकरी से अच्छी गुणवत्ता वाले बिस्कुट, फ्रूट केक और सैंडविच आदि मंगवा लिया था। मैं अम्मी से मेडम परिचय करवाया तो अम्मी ने मेडम के सिर पर प्यार दिया और उनको बहुत बहुत आशीर्वाद दिया। मेडम करीब आधा घंटा मेरे घर बैठी रहीं, वह मेरी छोटी बहनों से भी मिलीं और उन्हें अपने पर्स से 500 के नोट निकाल कर दिए, मैंने मेडम को बहुत मना किया लेकिन उन्होंने जबरन मेरी तीनों छोटी बहनों को 500, 500 का एक नोट थमा दिया। इस दौरान मेरी अम्मी ने मेडम से आभूषण की भी बात की तो मेडम ने कहा आप मुझे जेवर दिखा दें और बेचने की बजाय मेरे पास रखवा दें, मैं उसकी कीमत के अनुसार सलमान पैसे दे दूंगी। क्योंकि अगर यह बाजार मे बेच देगा तो सोने की काट में काफी पैसे कम हो जाएंगे। ऊपर सोना मेरे पास गिरवी रख कर उसके बदले पैसे ले ले, और जब आपके पास पैसे आ फिर से तो मुझे पैसे देकर मेरे से अपनी अमानत वापस ले सकते हैं।

अम्मी और मैंने एक मत होकर मेडम के इस ऑफर को स्वीकार कर लिया। मुझे काफी आश्चर्य हो रहा था कि मेडम मुझ पर इतनी मेहरबान क्यों हो रही हैं, मन में कुछ विचार भी आया कि कहीं मेडम बाद में मुझे कोई अवैध काम करवाने की कोशिश नहीं करेंगी , मगर जल्द ही मैंने इस विचार को अपने मन से झटक दिया और सकारात्मक सोचने लगा कि इस दुनिया में आज भी ऐसे लोग हैं जो गरीबों की हर संभव मदद करने को तैयार हैं। और आज भी इस बात पर कायम हूं कि मेडम ने बिना किसी लालच के मेरी मदद की, और आज मैं जो कुछ हूं अपनी लैला मेडम की मेहरबानियों की वजह से ही हूं।( राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम ) अगले ही दिन मुनब्बर अंकल को मैंने न केवल दुकान दिखा दी थी बल्कि उनसे सलाह भी ले लिया था और उन्होंने कहा था कि बेफिक्र होकर शुरू करो काम। यह समस्या भी हल हो गया था अब। संक्षेप में मैं कुछ दिनों में ही अपने एक दोस्त जो मेरे मोहल्ले का ही था हाजी साहब के पास काम करने के लिए बुला लिया, उसे भी नौकरी की जरूरत थी, मैं दिन-रात एक करके हाजी साहब की दुकान पर अंतिम दो महीने बिताए और इस दौरान अपने दोस्त को सारा काम अच्छी तरह सिखा दिया और हाजी साहब भी इससे खुश थे क्योंकि वह पहले भी एक कपड़ों वाली दुकान पर काम कर चुका था इसलिए यहां भी वह बहुत जल्दी सीख गया था। इस दो महीने के दौरान पूरे दिन में हाजी साहब की दुकान पर काम करता और शाम को छुट्टी के बाद शरीफ प्लाजा जाकर वहां होने वाले काम की निगरानी करता, लैला मेडम ने अपने दो आदमी भी वहां पर रखे हुए थे जिनकी निगरानी में दुकान काम हो रहा था।
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Re: ब्रा वाली दुकान

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लगे रहो
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