नजर का खोट complete
- zainu98
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Re: नजर का खोट
bhai kahani bahut badya hai lamba updat do aur maza aaye plsss
- Kamini
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Re: नजर का खोट
thanks dearzainu98 wrote:bhai kahani bahut badya hai lamba updat do aur maza aaye plsss
- Kamini
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Re: नजर का खोट
मैं- भाभी पर कोई ऐसी बात है ही नहीं जो मैं तुमसे छुपाऊ मैं नहीं जानता की आपको ऐसा क्यों लगता है शायद इसलिए की पिछले कुछ दिनों से हम साथ में पहले की तरह बाते नहीं कर पाते पर भाभी आपको तो सब पता ही है मैं किस तरह से उलझ गया हु समय रेत की तरह मेरी मुट्ठी से फिसलता जा रहा है और मुझ कोई राह सूझ नहीं रही है अब कौन बेटा अपने ही पिता की बात काटेगा पर ये नालायकी मेरे माथे आन पड़ी नजरे नहीं मिला पाता हु मैं उनसे पर क्या कर अब
भाभी- पुरुषार्थ करो तुम्हारे साथ कितने लोगो का भाग जुडा है कुंदन जो इस सहकारी इस जमींदारी के कोल्हू में पिस रहे है जुम्मन से मदद मांगो माना की राणाजी ने मना किया है पर अगर चोरी छिपे कुछ थोडा बहुत हो जाए तो कोई बुराई नहीं और फिर मैं तो हु ही सामने से नहीं नहीं तो पीछे से मैं तुम्हारी मदद करुँगी हाथ पैरो से नहीं तो पैसो से तुम्हे जितने पैसे चाहिए मैं दूंगी तुम्हे तुम्हे गाँव में कोई ट्रेक्टर ना देगा तो आस पास किसी को देखो पैसे दो वो मदद करेगा तुम्हारी
मैं- भाभी पर राणाजी का सिक्का है आस पास से भी कोई नहीं आएगा
भाभी- प्रयास तो करो तुम मुझे तुम पर जो विश्वास है उसका मान रखोगे ना
मैंने भाभी के पैरो को हाथ लगाया और मैने अपने सर पर वो स्पर्श पाया जो शायद माँ ने कभी नहीं दिया था फिर हमने खाना खाया फिर भाभी ने मेरे कमरे में ही डेरा डाल दिया मुझे नींद नहीं आ रही थी बस भाभी के खुबसूरत चेहरे को ही देखता रहा पता नहीं कब तक
“सो जाओ देवर जी अब ऐसे एकटक निहारोगे तो नजर लग जाएगी मुझे ” भाभी ने करवट बदलते हुए कहा
मैं- आप जाग रही है भाभी
वो- हा, पर तुम्हे कैसी है ये बेचैनी
मैं- सच कहू तो पता नहीं भाभी
वो-वो ही तो मैंने बार बार पूछा तुमसे की जो भी है दिल में बता सकते हो इतना तो हक़ है मुझे
भाभी ने ऐसे बात बोल दी थी दिल को छू गयी थी मैंने भाभी की आँखों में ठीक वैसा ही देखा जैसे मुझे उस लडकी में दीखता था पर मैं उसको क्या बताता कुछ था ही नहीं बताने को क्योंकि बात बस ठीक से शुरू भी तो नहीं हुई थी मैं उठकर भाभी के बिस्तर पर बैठ गया और उसके हाथ को अपने हाथ में ले लिया वो मुस्कुराती रही पता नहीं कब भाभी नींद के आगोश में चली गयी पर मैं बैठा रहा
अगले दिन मैं प्रधानाचार्य जी से मिला और पुरे एक हफ्ते की छुट्टी के लिए आवेदन किया कुछ सवाल जवाब के बाद उन्होंने इस हिदायत के साथ की पढाई पर कोई आसर ना हो छुट्टी दे दी उसके बाद मैं कैसेट वाले से मिला थोड़ी देर बैठा आयत को न देख पाने का मलाल बहुत हुआ पर कल मैं आही नहीं सका था तो अपने दिल की हसरत दिल में लिए मैं वहा से वापिस हुआ घर आया तो देखा की राणाजी घर पर ही थे मैंने पता नहीं क्या सोच कर उनसे बात करने को सोचा
मैं- आपसे कुछ कहना था
वो- हम्म्म
मैं- जी मुझे ना एक कार चाहिए
राणाजी ने मुझे ऊपर से निचे तक देखा और फिर थोड़े व्यंग्य से बोले- अभी तुम लायक नहीं जब हो जाओगे तो सोचेंगे
मैं- पर भाई सा के पास भी है जो बस खड़ी ही रहती है मैं नयी नहीं मांग रहा वो खटारा जीप भी चलेगी
राणाजी-भाई सा की तरह काबिल बन छोरे हसरते तो सबकी होती है पर उनसे कुछ ना होता चल भीतर जा
मैं जुम्मन से मिला पर बात बनी नहीं क्योंकि राणाजी का हुकुम गांव में कोई नहीं टाल सकता था तो वो भी चाह कर मदद नहीं कर पाया पर उसने फिर भी भरोसा दिया की चोरी छिपे उससे जितना बन पड़ेगा वो करेगा मैंने एक नजर घडी पर डाली दस बज रहे थे दिन के मैंने साइकिल ली और सीधा उस उजाड़ जमीन की तरफ हो लिया पूजा के घर पर बड़ा सा ताला टंगा हुआ था पुराने ज़माने का
खैर, मैं पंहुचा वहा तो देखा की मेरे औजार ऐसे ही पड़े थे आसमान को देख का लग रहा था की बरसात पड़ेगी और मैं भी वैसा ही चाहता था
खैर खोदना शुरू किया पर जो काम ट्रेक्टर की गोडी से होता मैं अकेला भला क्या कर पाता पर फिर भी कोशिश तो करनी थी ही तक़रीबन तीन घंटे मैंने बहुत मेहनत की फिर बरसात होने लगी आस पास सर छुपाने की जगह भी नहीं थी पर मुझे काम भी करना था और थकान भी थी तो मैं उस पुराने कुंवे के पास जो पत्थरों का चबूतरा बना था वही पर लेट गया बारिश की बूंदों के बीच
लेटे लेटे ही मैंने देखा की अपनी बकरियों को हांकते हुए पूजा भीगती हुई मेरी तरफ ही आ रही थी मैंने देखा वो बार बार अपने चेहरे पर आ गयी बालो की लटो को हटाती वो ऊपर से लेकर निचे तक भीगी हुई थी जब वो थोडा मेरे पास आई तो मैंने उसे आवाज दी तो उसका ध्यान मेरी तरफ आया और वो तेजी से मेरी और आने लगी
वो- यहाँ क्या कर रहा है बारिश में
मैं- बस भीग रहा हु
उसने अपने पशुओ को बरसात से बचने के लिए पेड़ो की ओट में किया और फिर मेरे पास ही आकार बैठ गयी और जैसे ही उसने अपने बालो को पीछे की और किया कसम स दिल की धड्कने बढ़ सी गयी उसके पुरे चेहरे से पानी टपक रहा था बल्कि यु कहू की उसके गालो को उसक होंठो को चूम चूम कर जा रहा हो बेहद खुबसुरत लग रही थी उसने पकड़ लिया मेरी नजरो को और कंपकपाते हुए बोली- क्या देख रहा है कुंदन
तुम्हे “ बस इतना ही कह सका मैं
पता नही वो मेरा वहम था या फिर कुछ और पर मैंने उसकी आँखों में एक हया सी देखि और फिर उसने नजरे दूसरी तरफ घुमा ली
पूजा- तुम्हे भीगना पसंद है
मैं- बहुत
वो- मुझे भी
मैं- हमारी आदते बहुत मिलती हैं ना
वो—पता नहीं
वो उठी और फिर सामने जो बरगद का पेड़ था उसकी तारफ चल पड़ी अपने चेहरे पर पड़ते पानी को पोंछते हुए मैं बस उसको देखता रहा दरअसल ऐसे भीगते हुए उसको देखना आँखों को बहुत सुकून दे रहा था वो पेड़ के निचे जाकर बैठ गयी मैं चबूतरे पर बैठे हुए उसको देखता रहा और वो मुझे बरसात पता नहीं क्यों बहुत प्यारी सी लगने लगी थी
भाभी- पुरुषार्थ करो तुम्हारे साथ कितने लोगो का भाग जुडा है कुंदन जो इस सहकारी इस जमींदारी के कोल्हू में पिस रहे है जुम्मन से मदद मांगो माना की राणाजी ने मना किया है पर अगर चोरी छिपे कुछ थोडा बहुत हो जाए तो कोई बुराई नहीं और फिर मैं तो हु ही सामने से नहीं नहीं तो पीछे से मैं तुम्हारी मदद करुँगी हाथ पैरो से नहीं तो पैसो से तुम्हे जितने पैसे चाहिए मैं दूंगी तुम्हे तुम्हे गाँव में कोई ट्रेक्टर ना देगा तो आस पास किसी को देखो पैसे दो वो मदद करेगा तुम्हारी
मैं- भाभी पर राणाजी का सिक्का है आस पास से भी कोई नहीं आएगा
भाभी- प्रयास तो करो तुम मुझे तुम पर जो विश्वास है उसका मान रखोगे ना
मैंने भाभी के पैरो को हाथ लगाया और मैने अपने सर पर वो स्पर्श पाया जो शायद माँ ने कभी नहीं दिया था फिर हमने खाना खाया फिर भाभी ने मेरे कमरे में ही डेरा डाल दिया मुझे नींद नहीं आ रही थी बस भाभी के खुबसूरत चेहरे को ही देखता रहा पता नहीं कब तक
“सो जाओ देवर जी अब ऐसे एकटक निहारोगे तो नजर लग जाएगी मुझे ” भाभी ने करवट बदलते हुए कहा
मैं- आप जाग रही है भाभी
वो- हा, पर तुम्हे कैसी है ये बेचैनी
मैं- सच कहू तो पता नहीं भाभी
वो-वो ही तो मैंने बार बार पूछा तुमसे की जो भी है दिल में बता सकते हो इतना तो हक़ है मुझे
भाभी ने ऐसे बात बोल दी थी दिल को छू गयी थी मैंने भाभी की आँखों में ठीक वैसा ही देखा जैसे मुझे उस लडकी में दीखता था पर मैं उसको क्या बताता कुछ था ही नहीं बताने को क्योंकि बात बस ठीक से शुरू भी तो नहीं हुई थी मैं उठकर भाभी के बिस्तर पर बैठ गया और उसके हाथ को अपने हाथ में ले लिया वो मुस्कुराती रही पता नहीं कब भाभी नींद के आगोश में चली गयी पर मैं बैठा रहा
अगले दिन मैं प्रधानाचार्य जी से मिला और पुरे एक हफ्ते की छुट्टी के लिए आवेदन किया कुछ सवाल जवाब के बाद उन्होंने इस हिदायत के साथ की पढाई पर कोई आसर ना हो छुट्टी दे दी उसके बाद मैं कैसेट वाले से मिला थोड़ी देर बैठा आयत को न देख पाने का मलाल बहुत हुआ पर कल मैं आही नहीं सका था तो अपने दिल की हसरत दिल में लिए मैं वहा से वापिस हुआ घर आया तो देखा की राणाजी घर पर ही थे मैंने पता नहीं क्या सोच कर उनसे बात करने को सोचा
मैं- आपसे कुछ कहना था
वो- हम्म्म
मैं- जी मुझे ना एक कार चाहिए
राणाजी ने मुझे ऊपर से निचे तक देखा और फिर थोड़े व्यंग्य से बोले- अभी तुम लायक नहीं जब हो जाओगे तो सोचेंगे
मैं- पर भाई सा के पास भी है जो बस खड़ी ही रहती है मैं नयी नहीं मांग रहा वो खटारा जीप भी चलेगी
राणाजी-भाई सा की तरह काबिल बन छोरे हसरते तो सबकी होती है पर उनसे कुछ ना होता चल भीतर जा
मैं जुम्मन से मिला पर बात बनी नहीं क्योंकि राणाजी का हुकुम गांव में कोई नहीं टाल सकता था तो वो भी चाह कर मदद नहीं कर पाया पर उसने फिर भी भरोसा दिया की चोरी छिपे उससे जितना बन पड़ेगा वो करेगा मैंने एक नजर घडी पर डाली दस बज रहे थे दिन के मैंने साइकिल ली और सीधा उस उजाड़ जमीन की तरफ हो लिया पूजा के घर पर बड़ा सा ताला टंगा हुआ था पुराने ज़माने का
खैर, मैं पंहुचा वहा तो देखा की मेरे औजार ऐसे ही पड़े थे आसमान को देख का लग रहा था की बरसात पड़ेगी और मैं भी वैसा ही चाहता था
खैर खोदना शुरू किया पर जो काम ट्रेक्टर की गोडी से होता मैं अकेला भला क्या कर पाता पर फिर भी कोशिश तो करनी थी ही तक़रीबन तीन घंटे मैंने बहुत मेहनत की फिर बरसात होने लगी आस पास सर छुपाने की जगह भी नहीं थी पर मुझे काम भी करना था और थकान भी थी तो मैं उस पुराने कुंवे के पास जो पत्थरों का चबूतरा बना था वही पर लेट गया बारिश की बूंदों के बीच
लेटे लेटे ही मैंने देखा की अपनी बकरियों को हांकते हुए पूजा भीगती हुई मेरी तरफ ही आ रही थी मैंने देखा वो बार बार अपने चेहरे पर आ गयी बालो की लटो को हटाती वो ऊपर से लेकर निचे तक भीगी हुई थी जब वो थोडा मेरे पास आई तो मैंने उसे आवाज दी तो उसका ध्यान मेरी तरफ आया और वो तेजी से मेरी और आने लगी
वो- यहाँ क्या कर रहा है बारिश में
मैं- बस भीग रहा हु
उसने अपने पशुओ को बरसात से बचने के लिए पेड़ो की ओट में किया और फिर मेरे पास ही आकार बैठ गयी और जैसे ही उसने अपने बालो को पीछे की और किया कसम स दिल की धड्कने बढ़ सी गयी उसके पुरे चेहरे से पानी टपक रहा था बल्कि यु कहू की उसके गालो को उसक होंठो को चूम चूम कर जा रहा हो बेहद खुबसुरत लग रही थी उसने पकड़ लिया मेरी नजरो को और कंपकपाते हुए बोली- क्या देख रहा है कुंदन
तुम्हे “ बस इतना ही कह सका मैं
पता नही वो मेरा वहम था या फिर कुछ और पर मैंने उसकी आँखों में एक हया सी देखि और फिर उसने नजरे दूसरी तरफ घुमा ली
पूजा- तुम्हे भीगना पसंद है
मैं- बहुत
वो- मुझे भी
मैं- हमारी आदते बहुत मिलती हैं ना
वो—पता नहीं
वो उठी और फिर सामने जो बरगद का पेड़ था उसकी तारफ चल पड़ी अपने चेहरे पर पड़ते पानी को पोंछते हुए मैं बस उसको देखता रहा दरअसल ऐसे भीगते हुए उसको देखना आँखों को बहुत सुकून दे रहा था वो पेड़ के निचे जाकर बैठ गयी मैं चबूतरे पर बैठे हुए उसको देखता रहा और वो मुझे बरसात पता नहीं क्यों बहुत प्यारी सी लगने लगी थी
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Re: नजर का खोट
फिर उसने मुझे इशारा किया तो मैं जैसे दौड़ते हुए उसके पास ही गया उसने मुझे बैठने का इशारा किया तो मैं उसके पास बैठ गया तो वो बोली- कुंदन बरसात के शोर की ख़ामोशी कभी महसूस की है तुमने
मैं- मैंने तो धडकनों की ख़ामोशी भी सुनी है पूजा
उसने मेरे हाथ को हाथ को थाम लिया उसके होंठ एक पल कुछ कहने को हुए पर फिर वो चुप कर गयी पर मैंने समझ लिया था दर्द उसके चेहरे पर अपनी दस्तक देकर चला गया था जिसे बड़ी सादगी से उसने छुप्पा लिया था
पूजा- और बताओ
मैं- बस थोड़ी परेशानी है की इस जमीन पर कैसे कुछ होगा , अगर ट्रेक्टर होता तो गोडी मरवा लेता दो तीन बार में जमीन समतल हो जाती तो फिर प्रयास कर सकता था
वो- बस इतनी सी बात फिकर मत कर काम हो जायेगा
मैं- मुश्किल है पूजा
वो- मुश्किल कुछ नहीं होता कुंदन बस हम कदम उठाने से डरते है
मैं- तुम इतनी सुलझी हुई कैसे हो
वो- बस समय और तक़दीर की बात है
मैं- वो तो है , पूजा क्या मैं तुमसे कुछ पूछ सकता हु
वो- हां,
मैं- तुम्हे क्या लगता है मैं यहाँ फसल उगा पाउँगा
वो- मेहनत करोगे तो अवश्य , उसने एक नजर आसमान पर डाली और बोली काश बरसात थोडा पहले रुक जाये तो मुझे जयसिंह गढ़ जाना था कुछ काम से
मैं- मैं चलू तुम्हारे साथ मेरे पास साइकिल भी है तो ले चलूँगा
उसने मुझे देखा और बोली- तू क्या करेगा
मैं- कुछ नहीं कभी गया नहीं हु उधर तो बस ऐसे ही
वो- ठीक है पर मेरी एक शर्त है
मैं- क्या
वो- तुम मुझसे कोई सवाल नहीं करोगे
मैं- किस बारे में
वो- किसी बारे में नहीं
मैं- ठीक है
ऐसे ही बाते करते करते करीब घंटा भर हम बतियाते रहे तब तक बरसात भी मंद होने लगी थी तो उसने अपने पशुओ को हांका और मैं उसके साथ उसके घर आ गया उसने अपने कपडे बदले पर मेरे पास तो थे नहीं दुसरे वाले मैं उन्ही भीगे कपड़ो में रह गया उसको बिठाया और साइकिल चाप दी जयसिंह गढ़ की तरफ जो हमारे गाँव से थोड़ी दूर था दरअसल हमारे गाँव और जयसिंह गढ़ की बरसो से दुश्मनी चली आ रही थी और ऐसा शायद ही दोनों गाँवो के लोग कभी आवाजाही करते थे
साइकिल की घंटी को टन टन बजाते पिछली सीट पर पूजा को बिठा कर मैं चले जा रहा था जयसिंह गढ़ की और पूजा मुझे बताती रही की किधर जाना है करीब आधे घंटे बाद हम गाँव के बाज़ार में पहुचे जहा बहुत सी दुकाने थी वो साइकिल से उतर गयी तो मैं भी पैदल हो लिया उसने अपने चेहरे पर दुपट्टा लपेट लिया और माता के मंदिर की और बढ़ने लगी
मैं भी उसके साथ अन्दर जाना चाहता था पर उसने मुझे सीढियों पर ही रुकने को कहा और अंदर चली गयी मैं इंतजार करते रहा बहुत देर तक वोवापिस नहीं आई तो मुझे कोफ़्त सी होंने लगी मैं टहलने लगा इधर उधर मंदिर के बाहर कुछ लोग चीज़े बेच रहे थे मैं ऐसे ही देख रहा था तो एक काकी ने पूछा- बेटा मेरा आज सारा सामान बिक गया बस एक जोड़ी पायल बची है लोगे क्या
मैं- काकी मेरा क्या काम पायल का
वो- अरे बेटा, आज नहीं तो कल होगा है लेलो अब इस एक जोड़ी के लिए कब तक मैं बैठूंगी
मैं- ठीक है काकी पर दुआ करना की पायल पहनने वाली जल्दी ही मिले
काकी- बेटा जिसे तू ये पायल देगा वो ही तेरी हमसफर बनेगी मेरी दुआ है मातारानी इस दुआ को जरुर पूरा करेगी
मैंने हस्ते हुए वो पायल ले ली और वापिस सीढियों के पास बैठ कर पूजा का इंतजार करने लगा पर पता नहीं वो अन्दर क्या कर रही थी और उसने मुझे मना किया था तो मेरे पास और कुछ रास्ता भी नहीं था सिवाय इंतजार के तभी बादल जोर जोर से गरजने लगे तो मैं समझ गया की अभी इनका मन नहीं भरा है पर बरसात मेरे लिए मुसीबत खड़ी कर सकती थी
जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था मेरी बेचैनी बढ़ रही थी पर पूजा ............. खैर घंटे भर बाद वो आई तो उसके हाथ में एक बड़ा सा झोला था उसने मुझे एक पर्ची दी और एक नोटों की गड्डी और बोली- कुंदन आगे एक दुकान है वहा से ये सामान ले आओ मैं तुम्हे यहाँ से दो गली पार करके एक पुराना डाकघर आएगा उसके पास एक जोहड़ है वहा मिलूंगी
मैंने सर हिलाया और दुकान की और बढ़ गया उस नोटों की गड्डी को देखते हुए सामान ज्यादातर घर का ही था जिसे लेने में करीब आधा घंटा लग गया उसके बाद मैं पैदल ही साइकिल लेकर उस और चला जहा उसने बताया था तो मैं उस ईमारत के पास पंहुचा जहा डाकघर की एक जंग खायी तख्ती लटक रही थी ईमारत जर्जर थी और साफ पता चलता था की किसी ज़माने में होता होगा पर आज नहीं है
मैं- मैंने तो धडकनों की ख़ामोशी भी सुनी है पूजा
उसने मेरे हाथ को हाथ को थाम लिया उसके होंठ एक पल कुछ कहने को हुए पर फिर वो चुप कर गयी पर मैंने समझ लिया था दर्द उसके चेहरे पर अपनी दस्तक देकर चला गया था जिसे बड़ी सादगी से उसने छुप्पा लिया था
पूजा- और बताओ
मैं- बस थोड़ी परेशानी है की इस जमीन पर कैसे कुछ होगा , अगर ट्रेक्टर होता तो गोडी मरवा लेता दो तीन बार में जमीन समतल हो जाती तो फिर प्रयास कर सकता था
वो- बस इतनी सी बात फिकर मत कर काम हो जायेगा
मैं- मुश्किल है पूजा
वो- मुश्किल कुछ नहीं होता कुंदन बस हम कदम उठाने से डरते है
मैं- तुम इतनी सुलझी हुई कैसे हो
वो- बस समय और तक़दीर की बात है
मैं- वो तो है , पूजा क्या मैं तुमसे कुछ पूछ सकता हु
वो- हां,
मैं- तुम्हे क्या लगता है मैं यहाँ फसल उगा पाउँगा
वो- मेहनत करोगे तो अवश्य , उसने एक नजर आसमान पर डाली और बोली काश बरसात थोडा पहले रुक जाये तो मुझे जयसिंह गढ़ जाना था कुछ काम से
मैं- मैं चलू तुम्हारे साथ मेरे पास साइकिल भी है तो ले चलूँगा
उसने मुझे देखा और बोली- तू क्या करेगा
मैं- कुछ नहीं कभी गया नहीं हु उधर तो बस ऐसे ही
वो- ठीक है पर मेरी एक शर्त है
मैं- क्या
वो- तुम मुझसे कोई सवाल नहीं करोगे
मैं- किस बारे में
वो- किसी बारे में नहीं
मैं- ठीक है
ऐसे ही बाते करते करते करीब घंटा भर हम बतियाते रहे तब तक बरसात भी मंद होने लगी थी तो उसने अपने पशुओ को हांका और मैं उसके साथ उसके घर आ गया उसने अपने कपडे बदले पर मेरे पास तो थे नहीं दुसरे वाले मैं उन्ही भीगे कपड़ो में रह गया उसको बिठाया और साइकिल चाप दी जयसिंह गढ़ की तरफ जो हमारे गाँव से थोड़ी दूर था दरअसल हमारे गाँव और जयसिंह गढ़ की बरसो से दुश्मनी चली आ रही थी और ऐसा शायद ही दोनों गाँवो के लोग कभी आवाजाही करते थे
साइकिल की घंटी को टन टन बजाते पिछली सीट पर पूजा को बिठा कर मैं चले जा रहा था जयसिंह गढ़ की और पूजा मुझे बताती रही की किधर जाना है करीब आधे घंटे बाद हम गाँव के बाज़ार में पहुचे जहा बहुत सी दुकाने थी वो साइकिल से उतर गयी तो मैं भी पैदल हो लिया उसने अपने चेहरे पर दुपट्टा लपेट लिया और माता के मंदिर की और बढ़ने लगी
मैं भी उसके साथ अन्दर जाना चाहता था पर उसने मुझे सीढियों पर ही रुकने को कहा और अंदर चली गयी मैं इंतजार करते रहा बहुत देर तक वोवापिस नहीं आई तो मुझे कोफ़्त सी होंने लगी मैं टहलने लगा इधर उधर मंदिर के बाहर कुछ लोग चीज़े बेच रहे थे मैं ऐसे ही देख रहा था तो एक काकी ने पूछा- बेटा मेरा आज सारा सामान बिक गया बस एक जोड़ी पायल बची है लोगे क्या
मैं- काकी मेरा क्या काम पायल का
वो- अरे बेटा, आज नहीं तो कल होगा है लेलो अब इस एक जोड़ी के लिए कब तक मैं बैठूंगी
मैं- ठीक है काकी पर दुआ करना की पायल पहनने वाली जल्दी ही मिले
काकी- बेटा जिसे तू ये पायल देगा वो ही तेरी हमसफर बनेगी मेरी दुआ है मातारानी इस दुआ को जरुर पूरा करेगी
मैंने हस्ते हुए वो पायल ले ली और वापिस सीढियों के पास बैठ कर पूजा का इंतजार करने लगा पर पता नहीं वो अन्दर क्या कर रही थी और उसने मुझे मना किया था तो मेरे पास और कुछ रास्ता भी नहीं था सिवाय इंतजार के तभी बादल जोर जोर से गरजने लगे तो मैं समझ गया की अभी इनका मन नहीं भरा है पर बरसात मेरे लिए मुसीबत खड़ी कर सकती थी
जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था मेरी बेचैनी बढ़ रही थी पर पूजा ............. खैर घंटे भर बाद वो आई तो उसके हाथ में एक बड़ा सा झोला था उसने मुझे एक पर्ची दी और एक नोटों की गड्डी और बोली- कुंदन आगे एक दुकान है वहा से ये सामान ले आओ मैं तुम्हे यहाँ से दो गली पार करके एक पुराना डाकघर आएगा उसके पास एक जोहड़ है वहा मिलूंगी
मैंने सर हिलाया और दुकान की और बढ़ गया उस नोटों की गड्डी को देखते हुए सामान ज्यादातर घर का ही था जिसे लेने में करीब आधा घंटा लग गया उसके बाद मैं पैदल ही साइकिल लेकर उस और चला जहा उसने बताया था तो मैं उस ईमारत के पास पंहुचा जहा डाकघर की एक जंग खायी तख्ती लटक रही थी ईमारत जर्जर थी और साफ पता चलता था की किसी ज़माने में होता होगा पर आज नहीं है
- Kamini
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Re: नजर का खोट
कुछ देर मैं वही खड़ा रहा पर पूजा दिखी नहीं ऊपर से आसमान काला होने लगा था जो साफ़ बता रहा था मेह पड़ेगा तगड़े वाला मैंने आसपास का जायजा लिया ये अलग सी जगह थी इस तरफ घर वगैरह नहीं थे आसपास ये डाकखाना था और एक दो तिबारे से थे बाकि रास्ता सामने की और जा रहा था शायद ये गाँव का छोर था कुछ सोच कर मैं आगे को बढ़ गया
मैंने कलाई में बंधी घडी पर एक नजर देखा शाम के साढ़े चार हो रहे थे पर मोसम की वजह से लग रहा था की सांझ जल्दी ढल गयी है तो वो रास्ता गाँव से बाहर की तरफ जाता था मैं साइकिल लियी थोड़ी दूर गया तो देखा की पूजा सड़क के एक किनारे खड़ी सामने की तरफ देख रही थी मैंने उसकी नजरो का पीछा किया तो समझ गया वो क्या देख रही थी और मुझे समझ नहीं आया की मैं क्या कहू
जहा वो खड़ी थी वहा से करीब ढाई-तीन सो मीटर दूर एक हवेली थी जो रही होगी किसी ज़माने में बहुत शानदार पर आज भी अपने दम पर खड़ी इठला रही थी आसपास के बाकि इलाके में बस खेत खलिहान से ही थे पर कुछ तो बात थी उसको देखने पर ऐसे लगता था की जैसे नजर हटाये ही ना
जैसे किसी चकोर की निगाह बस चंद्रमा पर रहती है वैसे ही पूजा बस उस हवेली को देख रही थी मेरे मन में था कुछ कहने को पर उसने पहले ही कहा था की मैं कुछ न पुछु तो मैं वापिस उलटे कदम आकर डाकघर के पास ही खड़ा हो गया ऊपर मेघो ने तैयारी कर ली थी की बस अब न्रत्य शुरू करेंगे और दो- चार मिनट में हलकी हलकी बुँदे पड़ने लगी
मैंने अपने बालो में हाथ फेरा और उस रस्ते की और देखा कर भी क्या सकता था सिवाय इंतजार के खैर, कुछ देर बाद पूजा तेज तेज कदमो से चलती हुई आई और मुझे चलने का इशारा किया ख़ामोशी से हम दोनों वापिस चलने लगे
मैं- बैठ जा
वो- गाँव से बाहर निकलते ही
हम अभी उस बाज़ार की तरफ आये थे की तभी एक जीप हमारे पास से आई और उसमे से किसी ने कहा- हाय क्या चाल है
दूसरा –सही कहा भाई, माल तो चोखा है और गाड़ी से उतरने लगे
मेरा दिमाग पल भर में ही घूम गया मैंने साइकिल स्टैंड पर लगायी पर पूजा ने मेरा हाथ कस के पकड़ लिया
मैं- हाथ छोड़
पर वो पकडे रही , तभी एक छोरा मेरे बिलकुल पास आया और बोला- इतना क्यों तमक गया अब माल की तारीफ तो करनी ही पड़ती है उसने पान थूकते हुए कहा
मैं-दुबारा अगर एक शब्द भी तेरे मुह से निकला तो ठीक नहीं होगा
दुसरे ने मेरा कालर पकड़ लिया और बोला- जाने है किसके सामने जुबान खोल रहा है ये अंगार ठाकुर है
मैंने उसका हाथ अपने कालर सी हटाते हुए कहाः- बुझा दूंगा अंगार को दो मिनट में अगर अपनी सीमा लांघी तो
बरसात कुछ तेज सी पड़ने लगी थी और साथ मेरा गुस्सा भी पता नहीं वो दोनों हसने लगे फिर वो अंगार बोला- छोरे खून घना गरम हो रहा हो तो ठंडा कर दू मेरे ही गाँव में मुझसे ऊँची आवाज में बात करेगा तू
मैं- और तू किसीको भी ऐसे गंदे शब्द बोलेगा
वो- तू कहे तो उठा लू वैसे भी आज मोसम मस्ताना हो रहा है
उसकी बात मेरे सीने को ही चीर सी गयी जैसे और मैंने अपना हाथ उठाया ही था उसको मारने को पर पूजा की आवाज ने मुझे रोक लिया “नहीं रुक जाओ ” पूजा आगे बढ़ी और अंगार के सामने खड़ी हो गयी बरसात के बावजूद बाज़ार में भीड़ सी इकठ्ठा होने लगी थी
पूजा ने अपने हाथ जोड़े और बोली- इस से गलती हो गयी हुकुम, माफ़ कर दीजिये आप बड़े लोग है
अंगार पान की पीक थूकते हुए- माफ़ तो कर दूंगा जानेमन पर इसको बोल की मेरे जूते पर सर रखे
उसकी ये बात सुनते ही मेरे खून में जो अहंकार दौड़ रहा था वो जोर मारने लगा खून उबलने लगा मैं गुस्से से चिल्लाया-कुंदन तेरे जूते पे सर रखेगा उस से पहले मैं तेरा सर................
पर मेरी बात अधूरी ही रह गयी थी पूजा ने अपना हाथ मेरे मेरे मुह पर रखा और बोली – कुंदन तुझे मेरी कसम चुप रह बस
पता नहीं क्यों उसकी बात मान ली मैंने पर दिल कर रहा था की अभी इसकी गांड तोड़ दू बारिश बहुत तेज पड़ने लगी थी
पूजा- मैं आपसे फिर माफ़ी मांगती हु हुकुम माफ़ कर दीजिये
पर उस अंगारे को पता नहीं क्या गुमान था वो बेशर्मी से फिर बोला- माफ़ कर दूंगा जानेमन पर अगर तू एक बार अपना हसीं चेहरा दिखा दे तो जितनी तू पीछे से मस्त है चेहरा भी उतना ही मस्त है या नहीं
मुझे हद से ज्यादा शर्मिंदगी महसूस हो रही थी जी कर रहा था की अभी मर जाऊ या मार दू पर पूजा ने मेरे पैरो में अपनी कसम की बेडिया डाल दी थी अंगार की वो हसी मेरे कलेजे को चीर रही थी पूजा बस शांत खड़ी थी उसने अपना हाथ पूजा के चेहरे पर लिपटे दुपट्टे की और किआ मैं बीच में आ गया
मैं- अंगार मैं तुझे चुनोती देता हु लाल मंदिर में बलि चढाने की और तू चुनोती पार कर गया तो ये तुझे अपना चेहरा जरुर दिखाएगी
अंगार के हाथ अपने आप रुक गए उसने घुर के मुझे देखा और बोला- कौन है तू
मैं- अगर तुझे चुनोती दी है तो तू समझ जा
अंगार- लाल मंदिर की चुनोती नहीं देनी थी छोरे पर तूने मेरी दिलचस्पी जगा दी क्योंकि बरसो से बलि नहीं दी गयी और जयसिंह गढ़ में आके ठाकुर अंगार चंद को चुनोती देने वाला कोई आम इन्सान ना हो सके वैसे भी मन्ने तुझे गाँव में नहीं देखा कभी पहले कहा का है तू अब तो पता करना पड़ेगा
उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी की तभी वहा पर एक के बाद एक कई गाड़िया आकार रुकी और उस सफ़ेद गाड़ी से जो रोबीला इन्सान उतरा तो आसपास सभी ने हाथ जोड़ लिए अंगार ने भी एक आदमी ने फ़ौरन छतरी तान दी उसके चेहरे पर वैसा ही रौब था जैसा की मैंने राणाजी के चेहरे पर देखा था
“क्या हो रहा है यहाँ ” उसकी आवाज में जैसे एक गर्जना सी थी
मैंने भी अपने हाथ जोड़े और उसको पूरी बात बता दी की कैसे हम जा रहे थे और कैसे अंगार ने पूजा के बारे में क्या कहा तो उस रोबीले इन्सान ने वही पर अंगार को फटकारा और उसे पूजा से माफ़ी मांगने को कहा पर तभी अंगार बोल पड़ा- ठाकुर साब इसने मुझे लाल मंदिर में बलि चढाने की चुनोती दी है
और उस ठाकुर की आँखे आश्चर्य में फैलती चली गयी
बारिश अब बहुत तेज पड़ने लगी थी उस ठाकुर ने मुझे बुरी तरह से घुरा और बोला – लाल मंदिर में बलि की चुनोती
मैं खड़ा रहा
ठाकुर- छोरे मेरा नाम ठाकुर जगन सिंह है ये जो तूने लाल मंदिर की चुनोती दी है के सोच के दी बता जरा
मैं- इसने जो बात बोली बोली ठाकुर साहब आग लगा गयी ये इसे उठा लेगा दबंग है तो किसी को भी उठा लेगा के सच कहू तो चैन ना मिल रहा सोचु हु की धरती फट जाये और मैं समा जाऊ शर्मिंदी इस बात की है की मेरे रहते ये इतना बोल गया कैसे
ठाकुर- क्या लगती है छोरी तेरी
मैं- सबकुछ लगती है पता नहीं कैसे मेरे मुह से निकल गया और ना भी कुछ लगती ना तो भी मेरे सामने कोई किसी औरत लड़की को ऐसे भद्दे शब्द बोलता तो मैं ये ही करता
ठाकुर- तेरी बात सही है छोरे पर जवान खून है जोर मार जाता है कभी कभी , पर तू खुद को देख और अंगार को देख क्या सोच के चुनोती दी तूने जान गयी समझ तेरी
मैं- जान तो कभी ना कभी जानी है ठाकुर साब, आज मेरे हाथ बंधे है पर उस दिन नहीं होंगे छटी का दूध याद न दिला दू तो नाम बदल देना
मैंने ठाकुर की आँखों में गुस्सा देखा शायद उसे मेरी बात चुभ गयी थी
मैंने कलाई में बंधी घडी पर एक नजर देखा शाम के साढ़े चार हो रहे थे पर मोसम की वजह से लग रहा था की सांझ जल्दी ढल गयी है तो वो रास्ता गाँव से बाहर की तरफ जाता था मैं साइकिल लियी थोड़ी दूर गया तो देखा की पूजा सड़क के एक किनारे खड़ी सामने की तरफ देख रही थी मैंने उसकी नजरो का पीछा किया तो समझ गया वो क्या देख रही थी और मुझे समझ नहीं आया की मैं क्या कहू
जहा वो खड़ी थी वहा से करीब ढाई-तीन सो मीटर दूर एक हवेली थी जो रही होगी किसी ज़माने में बहुत शानदार पर आज भी अपने दम पर खड़ी इठला रही थी आसपास के बाकि इलाके में बस खेत खलिहान से ही थे पर कुछ तो बात थी उसको देखने पर ऐसे लगता था की जैसे नजर हटाये ही ना
जैसे किसी चकोर की निगाह बस चंद्रमा पर रहती है वैसे ही पूजा बस उस हवेली को देख रही थी मेरे मन में था कुछ कहने को पर उसने पहले ही कहा था की मैं कुछ न पुछु तो मैं वापिस उलटे कदम आकर डाकघर के पास ही खड़ा हो गया ऊपर मेघो ने तैयारी कर ली थी की बस अब न्रत्य शुरू करेंगे और दो- चार मिनट में हलकी हलकी बुँदे पड़ने लगी
मैंने अपने बालो में हाथ फेरा और उस रस्ते की और देखा कर भी क्या सकता था सिवाय इंतजार के खैर, कुछ देर बाद पूजा तेज तेज कदमो से चलती हुई आई और मुझे चलने का इशारा किया ख़ामोशी से हम दोनों वापिस चलने लगे
मैं- बैठ जा
वो- गाँव से बाहर निकलते ही
हम अभी उस बाज़ार की तरफ आये थे की तभी एक जीप हमारे पास से आई और उसमे से किसी ने कहा- हाय क्या चाल है
दूसरा –सही कहा भाई, माल तो चोखा है और गाड़ी से उतरने लगे
मेरा दिमाग पल भर में ही घूम गया मैंने साइकिल स्टैंड पर लगायी पर पूजा ने मेरा हाथ कस के पकड़ लिया
मैं- हाथ छोड़
पर वो पकडे रही , तभी एक छोरा मेरे बिलकुल पास आया और बोला- इतना क्यों तमक गया अब माल की तारीफ तो करनी ही पड़ती है उसने पान थूकते हुए कहा
मैं-दुबारा अगर एक शब्द भी तेरे मुह से निकला तो ठीक नहीं होगा
दुसरे ने मेरा कालर पकड़ लिया और बोला- जाने है किसके सामने जुबान खोल रहा है ये अंगार ठाकुर है
मैंने उसका हाथ अपने कालर सी हटाते हुए कहाः- बुझा दूंगा अंगार को दो मिनट में अगर अपनी सीमा लांघी तो
बरसात कुछ तेज सी पड़ने लगी थी और साथ मेरा गुस्सा भी पता नहीं वो दोनों हसने लगे फिर वो अंगार बोला- छोरे खून घना गरम हो रहा हो तो ठंडा कर दू मेरे ही गाँव में मुझसे ऊँची आवाज में बात करेगा तू
मैं- और तू किसीको भी ऐसे गंदे शब्द बोलेगा
वो- तू कहे तो उठा लू वैसे भी आज मोसम मस्ताना हो रहा है
उसकी बात मेरे सीने को ही चीर सी गयी जैसे और मैंने अपना हाथ उठाया ही था उसको मारने को पर पूजा की आवाज ने मुझे रोक लिया “नहीं रुक जाओ ” पूजा आगे बढ़ी और अंगार के सामने खड़ी हो गयी बरसात के बावजूद बाज़ार में भीड़ सी इकठ्ठा होने लगी थी
पूजा ने अपने हाथ जोड़े और बोली- इस से गलती हो गयी हुकुम, माफ़ कर दीजिये आप बड़े लोग है
अंगार पान की पीक थूकते हुए- माफ़ तो कर दूंगा जानेमन पर इसको बोल की मेरे जूते पर सर रखे
उसकी ये बात सुनते ही मेरे खून में जो अहंकार दौड़ रहा था वो जोर मारने लगा खून उबलने लगा मैं गुस्से से चिल्लाया-कुंदन तेरे जूते पे सर रखेगा उस से पहले मैं तेरा सर................
पर मेरी बात अधूरी ही रह गयी थी पूजा ने अपना हाथ मेरे मेरे मुह पर रखा और बोली – कुंदन तुझे मेरी कसम चुप रह बस
पता नहीं क्यों उसकी बात मान ली मैंने पर दिल कर रहा था की अभी इसकी गांड तोड़ दू बारिश बहुत तेज पड़ने लगी थी
पूजा- मैं आपसे फिर माफ़ी मांगती हु हुकुम माफ़ कर दीजिये
पर उस अंगारे को पता नहीं क्या गुमान था वो बेशर्मी से फिर बोला- माफ़ कर दूंगा जानेमन पर अगर तू एक बार अपना हसीं चेहरा दिखा दे तो जितनी तू पीछे से मस्त है चेहरा भी उतना ही मस्त है या नहीं
मुझे हद से ज्यादा शर्मिंदगी महसूस हो रही थी जी कर रहा था की अभी मर जाऊ या मार दू पर पूजा ने मेरे पैरो में अपनी कसम की बेडिया डाल दी थी अंगार की वो हसी मेरे कलेजे को चीर रही थी पूजा बस शांत खड़ी थी उसने अपना हाथ पूजा के चेहरे पर लिपटे दुपट्टे की और किआ मैं बीच में आ गया
मैं- अंगार मैं तुझे चुनोती देता हु लाल मंदिर में बलि चढाने की और तू चुनोती पार कर गया तो ये तुझे अपना चेहरा जरुर दिखाएगी
अंगार के हाथ अपने आप रुक गए उसने घुर के मुझे देखा और बोला- कौन है तू
मैं- अगर तुझे चुनोती दी है तो तू समझ जा
अंगार- लाल मंदिर की चुनोती नहीं देनी थी छोरे पर तूने मेरी दिलचस्पी जगा दी क्योंकि बरसो से बलि नहीं दी गयी और जयसिंह गढ़ में आके ठाकुर अंगार चंद को चुनोती देने वाला कोई आम इन्सान ना हो सके वैसे भी मन्ने तुझे गाँव में नहीं देखा कभी पहले कहा का है तू अब तो पता करना पड़ेगा
उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी की तभी वहा पर एक के बाद एक कई गाड़िया आकार रुकी और उस सफ़ेद गाड़ी से जो रोबीला इन्सान उतरा तो आसपास सभी ने हाथ जोड़ लिए अंगार ने भी एक आदमी ने फ़ौरन छतरी तान दी उसके चेहरे पर वैसा ही रौब था जैसा की मैंने राणाजी के चेहरे पर देखा था
“क्या हो रहा है यहाँ ” उसकी आवाज में जैसे एक गर्जना सी थी
मैंने भी अपने हाथ जोड़े और उसको पूरी बात बता दी की कैसे हम जा रहे थे और कैसे अंगार ने पूजा के बारे में क्या कहा तो उस रोबीले इन्सान ने वही पर अंगार को फटकारा और उसे पूजा से माफ़ी मांगने को कहा पर तभी अंगार बोल पड़ा- ठाकुर साब इसने मुझे लाल मंदिर में बलि चढाने की चुनोती दी है
और उस ठाकुर की आँखे आश्चर्य में फैलती चली गयी
बारिश अब बहुत तेज पड़ने लगी थी उस ठाकुर ने मुझे बुरी तरह से घुरा और बोला – लाल मंदिर में बलि की चुनोती
मैं खड़ा रहा
ठाकुर- छोरे मेरा नाम ठाकुर जगन सिंह है ये जो तूने लाल मंदिर की चुनोती दी है के सोच के दी बता जरा
मैं- इसने जो बात बोली बोली ठाकुर साहब आग लगा गयी ये इसे उठा लेगा दबंग है तो किसी को भी उठा लेगा के सच कहू तो चैन ना मिल रहा सोचु हु की धरती फट जाये और मैं समा जाऊ शर्मिंदी इस बात की है की मेरे रहते ये इतना बोल गया कैसे
ठाकुर- क्या लगती है छोरी तेरी
मैं- सबकुछ लगती है पता नहीं कैसे मेरे मुह से निकल गया और ना भी कुछ लगती ना तो भी मेरे सामने कोई किसी औरत लड़की को ऐसे भद्दे शब्द बोलता तो मैं ये ही करता
ठाकुर- तेरी बात सही है छोरे पर जवान खून है जोर मार जाता है कभी कभी , पर तू खुद को देख और अंगार को देख क्या सोच के चुनोती दी तूने जान गयी समझ तेरी
मैं- जान तो कभी ना कभी जानी है ठाकुर साब, आज मेरे हाथ बंधे है पर उस दिन नहीं होंगे छटी का दूध याद न दिला दू तो नाम बदल देना
मैंने ठाकुर की आँखों में गुस्सा देखा शायद उसे मेरी बात चुभ गयी थी