नजर का खोट complete

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chusu
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Re: नजर का खोट

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shubhs
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Re: नजर का खोट

Post by shubhs »

ये सब क्या है
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

chusu wrote::shock:
shubhs wrote:ये सब क्या है
Jhatka
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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

भाभी- कितना झूठ बोलेंगे , कितने गर्त में और गिरेंगे आज जब बाज़ी हाथ से निकलते देखी तो ये मज़बूरी का चोला ओढ़ लिया, राणा हुकुम सिंघ जो बस कुछ देर पहले अपने गुरुर में अपना ही खून बहाने को आतुर था अब देखो , इतनी जल्दी तो कोई रंडी भी ग्राहक नहीं बदलती जितनी जल्दी आप एक मगरूर से मजलूम हो गए,

आपको क्या लगा इन चिकनी चुपड़ी बातो में आ जायेंगे हम नहीं सरकार नहीं, जरा अपनी आँखे खोलिये और देखिये कुंदन को आप बता सकते है कि क्या कसूर है इसका नहीं आप नहीं बता सकते मैं बताती हु,

आपने कभी अपनी ज़िंदगी में परिवार, रिश्तो नातो को कभी तवज्जो नहीं दी आपने केवल लोगो को खिलोने से ज्यादा इज्जत नहीं दी दिल किया तो खेला दिल किया तो नया खिलौना ले लिया ,

माना बहुत प्रेम किया मेनका से, पर फिर क्यों नहीं उसको लाये समाज के आगे बीवी बनाकर सारी उम्र वो परदे के पीछे रही रखैल बन कर अब ऐसे मत देखिये आज जस्सी रती भर भी नहीं डरेगी आपसे,

ये कैसा प्यार था मेनका से जो एक बंजारन को हवेली की रानी न बना सके, अजी छोड़िये बात तो तब शुरू हुई थी जब भरी पंचायत में आपके घमण्ड को आपके बेटे ने नहीं माना, कितनी मुश्किलें पैदा की आपने इसके लिए जीना हराम कर दिया,

पर दाद देनी पड़ेगी इसकी, अपनी मेहनत से उस जमीन पर फसल लगा दी जहा आप एक दाना नहीं बो पाये थे असल में आपकी आँखों में जलन देखती थी मैं कुंदन के लिए, और होती भी क्यों न बरसो बाद राणाजी को कोई टक्कर दे रहा था और जब अपना ही खून बगावत पर हो तो मजा कुछ और ही होता है ना,

खैर कुंदन की बात बाद में पहले आपकी और मेरी बात हो जाये, आपकी सारी बाते सच है हो सकता है की आपको ये पता हो की पद्मिनी ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है और जब आपको पता चला की जिस खजाने के लिए आपने इतने पापड़ बेले थे उस तक पहुचने का रास्ता मैं हु तो जुगत लगा कर मुझे अपने घर ले आये,

पर किया क्या मेरे साथ, जब इतने दिन मेरी तरफ आँख उठा कर न देखा तो फिर क्यों सोच बदल गयी, ये सब तभी क्यों शुरू हुआ जब कुंदन ने आपके खिलाफ सर उठाना शुरू किया तभी क्यों

मैं आँखे फाड़े बस उनकी बाते सुन रहा था

भाभी- कुंदन, तुम हमेशा पूछते थे ना की मैं राणाजी और तुम्हारे बीच हमेशा इनका चुनाव क्यों करती थी बार बार तुम जिस मज़बूरी को पूछते थे आज मैं बताती हु की वो मज़बूरी क्या थी, वो मज़बूरी तुम थे बोलते बोलते भाभी को आवाज रुंध गयी

भाभी- हां कुंदन इस इंसान को मालूम था कि मैं किस हद तक तुमसे जुडी हु इस घर में माँ सा के बाद बस तुम ही तो थे जो मेरे अपने थे अपनी खुंदक मिटाने के लिए इन्होंने मेरा इस्तेमाल किया और इस डर से की कही ये तुम्हे ना मरवा दे मै सोती रही इनके साथ

भाभी की आँखों से गिरते आंसू मेरे कलेजे को चीर रहे थे मुझे आज सच में इतना गुस्सा था कि राणाजी के दो टुकड़े कर दू, पर भाभी ने मुझे रोका

भाभी- कुंदन इस इंसान की सबसे बड़ी सजा ये ही होगी की ये जिए ,


मैं- आपको एक बार तो मुझे बताना चाहिए था मैं पागलो के तरह हर बार पूछता रहा पर आप चुप रही मेरे लिए ये बलिदान करने की जरूरत नहीं थी नहीं थी

भाभी- जरूरत थी, कुंदन क्योंकि जो इंसान जब अपनी बेटी ले साथ इतनी खौफनाक हरकत कर सकता था उसके लिए मेनका की बेटी ला जिस्म क्या था कुछ भी नहीं, जिस इंसान को पता ही नहीं की रिश्ते होते क्या है उसके लिए हर औरत बस एक जिस्म है साधन है अपनी आग बुझाने का और फिर जिस्म तो जिस्म होता है चाहे जायज बेटी का हो या फिर नाजायज बेटी का

मैं- राणाजी घिन्न आती है मुझे जो आपकी वजह से मैं इस दुनिया में आया, काश मैं दिखा पाता किस हद तक दर्द उबल रहा है मेरे दिल में, दिल तो करता है अभी जान से मार दू पर जस्सी भाभी, कहते कहते मेरे शब्द लड़खड़ा गए की अब जस्सी को क्या काहू
भाभी या बहन साला रिश्ते नातो का कोई मोल ही ना बचा था

मैं- जस्सी, ये आपका गुनहगार है आप इसे सजा देंगी

राणाजी किसी बूत की तरह सीढियो पर बैठे थे शांत किसी सागर की तरह जैसे कुछ विचार कर रहे हो भाभी ने एक नजर उनकी ओर देखा और फिर मेरी बाहं पकड़ते हुए मुझे अपने साथ दरवाजे की तरफ ले चली जल्दी ही वहाँ बस मेनका की लाश और राणाजी ही रह गए

मेरी चोटो का दर्द न जाने कहा गुम हो गया था पर दिल आज बुरी तरह से जल रहा था जस्सी गाड़ी चला रही थी जल्दी ही अर्जुनगढ़ को पार करते हुए हम कच्चे रस्ते पर उतर गए मेरे मन में हज़ार विचार थे हज़ार नयी मुश्किलें आ जो खड़ी थी

मैं- तो आप सब जानती थी, इसीलिए आप मुझे हमेशा रोक देती थी

जस्सी- इस बारे में हम कल बात करेंगे

मैं- ठीक है अभी मुझे खेत पर छोड़ दो

जस्सी- पागल हुए हो क्या, इस हालत में नहीं छोड़ सकती तुम्हे, तुम मेरे साथ चल रहे हो

मैं- नहीं, अभी नहीं आप मुझे बस वहाँ छोड़ दो

जस्सी- इतने जिद्दी क्यों हो तुम

मैं- इसके बारे में हम कल बात करेंगे

कुछ देर बाद बड़े अनमने ढंग से जस्सी ने मुझे खेत में बने कमरे में छोड़ा और न चाहते हुए भी वहां से चली गयी , मैंने जब ये तस्सली कर ली की जस्सी चली गयी है तो मैं लड़खड़ाते हुए उस तरफ चल दिया जहा पूजा मेरा इंतज़ार कर रही थी

मैं बहुत थक गया था अपने दर्द की परवाह नहीं थी मुझे पर सीने में धड़कता मेरा मासूम दिल कुछ कह रहा था जिसे सुनने की हिम्मत अब नहीं थी मेरी आँखों में जो हसरत थी अपनी जीजी को देखने की वो दम तोड़ चुकी थी , मुझे उनके जिन्दा होने की उम्मीद नहीं थी,

पर जस्सी का ख्याल मुझे चैन नहीं लेने दे रहा था वो भाभी नहीं बहन थी मेरी, इस अकाट्य सत्य ने मेरे हर विचार को बदल दिया था और मुझे अपनी नजरो में इतना गिरा दिया था की अब उठ पाना नामुमकिन था

आँखों में कुछ आंसू लिए मैं उस तरफ चले जा रहा था जहाँ पूजा मुझे मिलनी थी ,मैं उसी पेड़ के पास पहुंचा जहाँ मेरी पहली मुलाकात पूजा से हुई थी उसी पेड़ के चबूतरे पर बैठी मेरा इंतज़ार कर रही थी वो

पूजा- कुंदन, बहुत देर लगाई आने में

मैं- आ गया मेरी जान आ गया अब तू देर ना कर सबसे पहले अपना व्रत खोल

पूजा- हां, कुंदन

उसने एक थाली मेरी तरफ की मैंने गिलास से उसे पानी पिलाया कुछ घूंट पीने के बाद वो बोली- बस कुंदन
मैंने गिलास रख दिया और उसका हाथ अपने हाथ में लिया

मैं- पूजा एक बात बतानी थी तुझे

वो- हां कुंदन बता

मैं उसे पूरी बात बताना चाहता था पर मेरे शब्द लड़खड़ा रहे थे पूजा समझ गयी और बोली- क्या हुआ सब ठीक तो है

मैं-कुछ देर तेरी गोद में सर रख कर लेट जाऊ

पूजा- हां

मैं उसकी गोद में लेट गया वो मेरे सर पर हाथ फेरने लगी तभी उसका हाथ मेरे ज़ख्म पर लगा

पूजा- ये गीला सा क्या है

मैं- चोट लगी है खून है

पूजा- किसकी मजाल मेरे कुंदन पर हाथ उठा सके

मैं- शांत हो जा , मैं बहुत थका हुआ हूं मेरी जान थोड़ी देर तेरे आँचल तले सुकून लेने दे

फिर वो कुछ न बोली बस मेरे सर को सहलाती रही जब बहुत देर हुई तो बोली- चल घर चल

उसने गाड़ी स्टार्ट की और हम उसके घर आ गए जब उसने बल्ब की रौशनी में मेरा हाल देखा तो एक बार फिर उसकी आँखों में गुस्सा तैरने लगा कई देर तक वो चिल्लाती रही झल्लाती रही और मैंने फिर उसे पूरी बात बताई

बहुत ध्यान से उसने पूरी बात सुनी और बोली- तेरे पिता और भाभी दोनों ही बहुत बड़ा खेल खेल रहे है दोनों का व्यवहार एक सा है वैसे तो हमेशा आक्रामक रहते है पर मौका मिलते ही भावनात्मक फायदा लेने से नहीं चूकते,

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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

मैं मेनका के बारे में ज्यादा नहीं जानती और जस्सी के बारे में भी उतना ही जानती हूं जितना तू , पर माँ ने मेनका को सदा बहन माना था तो ये मुमकिन है की जस्सी के लिए उन्होंने वो सब किया हो, जो की सच भी है जैसा की तुमने खुद देखा अगर माँ उसको खजाने की प्रथम प्रहरी बना सकती है तो पूरी तरह जस्सी की बात सच है सिवाय कुछ बिंदुओं के

मैं- राणाजी का भी ऐसा ही है

पूजा- पर तुम एक बात भूल रहे वो तुम्हारी माँ को, तुम्हारी माँ को भी कुछ ना कुछ जरूर ऐसा मालूम होगा जो तुम्हारे काम आ सके ,बाकी न जस्सी पे भरोसा करो न राणाजी पे

मैं- बात सही है पर देखो हम फिर से विचार करते है कोई सुराग ऐसा जरूर मिलेगा जो राह आसान करेगा

पूजा- मेनका के बारे में तुमने बताया था कि उसके बच्चे विदेश में है उनका अता पता कुछ मिले तो

मैं- तो चलो अनपरा

वो- अभी

मैं- अभी नहीं कल सुबह मैं जस्सी से मिलूंगा उसके बाद

पूजा- हो ना हो इस खेल में जस्सी और राणाजी की पूरी मिलीभगत है

मैं- कैसे

पूजा- जस्सी की वो बात याद करो जब उसने कहा था की कैसे शादी के बाद उसे रौंद दिया था और अब उसने कहा कि तुम्हे ढाल बना के राणाजी ने उसे मजबूर किया ये विरोधाभास क्यों, क्योंकि कुछ तो झोल है , माना जस्सी तुम पर जान छिड़कती है पर तुम्हारे गिड़गिड़ाने पर भी उसने राणाजी का हाथ नहीं छोड़ा इसके पीछे क्या कारण रहा होगा कोई तो बहुत ही मजबूत बात है

मैं- यही बात मुझे खटक रही है, दिल में तीर की तरह चुभ रही है

पूजा- कल अनपरा से कुछ मिल जाये उसके बाद तुम अपनी माँ से मदद लो कुछ तो बात बनेगी ही


बातो बातो में रात कब गुजर गयी पर सुबह सुबह ही मैंने पूजा को एक काम करने को कहा और जस्सी से मिलने घर चल दिया घर पर कोई हलचल नहीं थी पर जस्सी की गाड़ी बाहर ही थी

मैं अंदर गया जस्सी ने मुझे देखा और कुछ देर में मेरे लिए चाय ले आयी

मैं- मुझे आपसे कुछ बात करनी थी

वो- मुझे भी, तो जैसे तुम्हे मेरे बारे में सब मालूम हो गया है , नहीं तुम्हे शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं असल में अब हमारे बीच कुछ भी रिश्ता हो फर्क नहीं पड़ता

मैं- देखो मैं कुछ सवाल ही करूँगा और इस बार सब सच बोलना

जस्सी-हु

मैं- आपका और भाई का बिस्तर पर कैसा रिश्ता था

जस्सी- क्या मतलब

मैं- क्या वो आपको संतुष्ट कर पाते थे

जस्सी- कुंदन ये मेरा निजी विषय है

मैं- नहीं, हम तुम नंगे है तो थोड़ा और नँगा होने में क्या जाता है

जस्सी- मुद्दे पे आओ

मैं- ठीक है, इतना बता दो एक बार आपने बोला की आपको शादी के बाद ही राणाजी ने चोद दिया था तो फिर कल ये क्यों कहा की मुझे ढाल बना कर उन्होंने आपको चोदा

जस्सी- कुंदन, अब वो समय नहीं रहा की मैं खुद को तुम्हारी नजरो में पाक साफ रखू, देखो ये बात सोलह आने सच है कि मेरी शादी के कुछ महीनो बाद ही राणाजी ने मुझे चोद दिया था, इन्दर ड्यूटी पे था और तुम आज जितने समझदार नहीं थे और मैं तब राणाजी का विरोध करने की स्तिथि में नहीं थी,

पर जैसे जैसे तुम मेरे करीब आये मुझमे कुछ हौसला आया मैं मना करने लगी पर फिर उन्होंने एक दिन स्पस्ट तुम्हे मेरे बीच रख दिया , पर मैं उससे पहले ये जान चुकी थी की मैं उनकी बेटी हु

मैं- झूठ लग रही है आपकी बात

जस्सी-तो मैं ऐसा कह दू की मुझे मजा आता था तुम्हारे बाप से चुदने में तो यकीन होगा

मैं- यहाँ रिश्तो की बात नहीं बस औरत मर्द के सम्बन्धो की है तो मजा तो आता होगा न

जस्सी- तो तुम भी चोद के देख लो मजा तो तब भी आ जायेगा है, ना तुम्हे भी तो भाभी के जिस्म की चाहत थी

मैं-तो बता क्यों नहीं देती की क्यों

भाभी- पहले मेरी मज़बूरी थी क्योंकि मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी और न बाद में कुछ कर पायी

मैं- ये पता होने के बाद भी

जस्सी- कुंदन अब सच में फर्क नहीं पड़ता

मैं- हां क्योंकि आप जानती थी की इंद्र आपको माँ बनने का सुख नहीं दे सकता फौज में लगी एक चोट से वो पिता नहीं बन सकता था

जस्सी- तो तुम्हे मालूम हो गया

मैं- हां, और शायद माँ बनने के लिए आपने भी राणाजी को अपनी नियति मान लिया

जस्सी- क्या तुम्हे याद नहीं हमने हमेशा एक तरह से तुम्हे अपनी औलाद ही समझा है

मैं- मानता हूं पर सब रिश्ते थोड़े उलझे हुए है ना

जस्सी- हां पर हर रिश्ता नहीं क्योंकि मैं समझ चुकी हूं की किसी रिश्ते का कोई मोल नहीं होता दुनिया में कुछ है तो बस जिस्मो का रिश्ता

मैं- तो आप दोनों के बीच इन्दर दिवार था जिसे हटा दिया

जस्सी- सचमुच, क्या ऐसा करने की जरूरत थी वो भी तब जब साल में नो महीने इंद्र घर से बाहर होता था हद करते हो कुंदन

"जस्सी ठीक कह रही है, इंद्र की मौत के पीछे वो और राणाजी नहीं बल्कि हम है, हमने मारा है उसे"


अचानक ही हम दोनों की आँखे दरवाजे की तरफ हो गयी जहाँ से माँ चलते हुए अंदर आ रही थी

माँ- ऐसे क्या देख रहे हो इन्द्र को हमने मारा है और ऐसा करने की हमारे पास एक बेहद ठोस वजह है

पिछले कुछ समय से मुझे तो आदत हो गयी थी झटके खाने की तो ये सुनकर कुछ खास फर्क नहीं पड़ा पर जानने की इच्छा जरूर हुई की क्यों

जस्सी- नहीं, माँ नहीं, आपको कुछ कहने की जरूरत नहीं है मैं हु ना मैं देखती हूं

माँ- शांत जस्सी शांत , अब तुम्हे कुछ भी कहने की जरुरत नहीं है तुमने बहुत कुछ सहा है इस घर के लिए पर अब बस बहुत हुआ ,पर हम तुम्हे अब और इन नालायको की नजरों में गिरने की जरूरत नहीं है तुम्हारे त्याग को ये वहशी कभी नहीं समझ पाएंगे

मैं- क्या कह रही है आप

माँ- तुम बस इतना जान लो की इंद्र को मैंने मारा जिसे अपनी कोख से जन्म दिया उसे अपने ही हाथो से मारा वो बम मैंने ही लगाया था

मैं- पर क्यों माँ क्यों

माँ- कुंदन क्योंकि उस दिन वो कुछ ऐसा करने वाला था जिससे दुनिया बदल जाती और तुम दोनों भाइयो की तलवारे एक दूसरे के रक्त की प्यासी हो जाती, इंद्र की बुरी नजर उस लड़की पर थी जिसे तुम प्रेम करते हो ऐसे देखने की जरुरत नहीं हमे, हम उसी लड़की की बात कर रहे है जो तुम्हारे साथ ही पढ़ती है माँ है तुम्हारी इतना तो हमे भी मालूम है की औलाद क्या करती फिरती है

तो इंद्र अगर उसके सम्मान को ठेस पहुँचाता तो फिर अनर्थ होता और शायद उसके पाप का घड़ा भी भर गया था तो हमे ये करना पड़ा और ये कदम हमे बरसो पहले ही उठा लेना चाहिए था

मैंने एक बार माँ सा की ओर देखा और फिर जस्सी की तरफ

माँ- जानते हो जिस जस्सी पर तुम आरोप पे आरोप लगाए जा रहे हो उसे कोई जरूरत नहीं थी तुम्हारे बाप के साथ सोने की उसकी रखैल बनने की पर उसने ये किया ताकि तुम्हारी बहन कविता की सांस चलती रहे

जस्सी- माँ आप कुछ मत बोलिये

माँ सा- आज मैं चुप नहीं रहूंगी जस्सी, बोलने दे मुझे बल्कि ये हिम्मत मुझे तभी दिखानी चाहिए थी जब उस नीच ने जो बदकिस्मती से मेरा पति भी है ये खौफनाक खेल की शुरुआत की थी पर मैं चुप रह गयी अपमान का घूंट पि गयी और ज़िंदा रह गयी बेशर्मो की तरह

कुंदन तेरी बहन कही विदेश नहीं गयी बल्कि वो राणाजी के कब्ज़े में है अपने उस अपराध की सजा भुगत रही है जो खुद राणाजी कर चुके है

मैं- क्या

माँ सा- प्रेम

मेरा तो माथा ही घूम गया पर दिल में सुकून भी हुआ की जीजी जीवित तो है कमसेकम

माँ- ये तब की बात है जब जस्सी नयी नयी ब्याह के आयी थी , कविता का किसी लड़के से प्रेम की बात राणाजी को मालूम हुई तो उन्होंने उस लड़के के पूरे परिवार को मार दिया पर कविता के पेट में उसके प्यार की निशानी थी तहखाने में राणाजी कविता को मार ही देना चाहते पर न जाने कैसे जस्सी वहां पहुच गयी और शराब के नशे में चूर राणाजी से विनती की कविता को बक्श देने की और बदले में उस मक्कार ने शर्त रखी

तबसे लेकर आज तक जस्सी घुट घुट के मर रही है ताकि कविता की सांस चले वो ज़िंदा रहे मुझसे तो लाख गुना जस्सी भली है जिसने सौतेले रिश्तो के लिए खुद को दांव पे लगा दिया और एक मैं हु जो अपनी सगी बेटी के लिए कुछ न कर सकी क्योंकि इस चारदीवारी में औरतों और जूतियों में कोई ज्यादा फर्क नहीं है

पर आज मैं ये ऐलान करती हूं की इसी वक़्त से हुकुम सिंह के लिए इस हवेली के दरवाजे हमेशा हमेशा के लिए बंद हो गए
माँ सा ने आखिर बता ही दिया था की क्यों जस्सी हर बार राणाजी को चुनती थी मैंने बस उसके पैर पकड़ लिए और अपना सर झुका कर उसके पैरों को चूम लिया शायद यही मेरा प्रयाश्चित था

मैं- पर जीजी कहा है मैं कुछ भी करके उन्हें छुड़ा लूंगा

जस्सी- इसका पता बस राणाजी को है

मैं- जीजी का पता मैं उगलवा के रहूँगा उनसे चाहे कुछ भी करना पड़ेगा

जस्सी- तुम नहीं ये काम मैं करुँगी क्योंकि ये काम आसान नहीं है राणाजी हद से ज्यादा नफरत करते है कविता से और उन्होंने ऐसा इंतज़ाम किया होगा की वो न जी सके न मर सके

मैं- हर इंतज़ाम की ऐसी तैसी कर दूंगा मैं बाप बेटे का रिश्ता भूल गया हूं मैं अगर मेरी बहन के लिए बाप का सर भी काटना पड़े तो कुंदन के हाथ कांपेंगे नहीं, जितना दर्द मेरी बहन ने सहा है जितनी चीखे उसके हल्क से निकली है ब्याज समेत हुकुम सिंह से वसुलूंगा मैं ,जा रहा हु और वादा करता हु जीजी के साथ ही आऊंगा

आज जितनी जस्सी के लिए मेरी नजरो में जितनी इज्जत बढ़ गयी थी उतना ही क्रोध अपने पिता के लिए था सांझ तक तक़रीबन मैं हर जगह जहाँ राणाजी के होने की उम्मीद थी वहां गया पर वो न मिला

एक तो मैं गुस्से में भन्नाया हुआ था और ऊपर से राणाजी का कही अता पता नहीं था पल पल बेचैनी बढ़ती जा रही थी हार कर मैं पूजा के घर गया तो ताला लगा था पर कुछ ही देर में वो आ गयी मैंने उसे पूरी बात बताई

पूजा- बिना वक़्त गवाये हमे अनपरा चलना चाहिए

मैं- पहले राणाजी को तलाश किया जाये

पूजा- चलो तो सही क्या पता वहां वो मिल जाये

जल्दी ही गाड़ी अनपरा गाँव की तरफ बढ़ रही थी

पूजा- मैंने पता कर लिया चन्दा का इन सब से कुछ लेना देना नहीं है वो अपने खेतों और घर में ही व्यस्त है एक दो बार राणाजी से मिली है पर बाकि साफ़ है

मैं- तो जब मेनका नहीं रही राणाजी किस पर सबसे ज्यादा भरोसा कर सकते है

पूजा-शायद खुद पर
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