नजर का खोट complete

Post Reply
User avatar
Kamini
Novice User
Posts: 2112
Joined: 12 Jan 2017 13:15

Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

साँसे कुछ बागी सी थी कुछ मौसम मनचला था और हम तो थे ही आवारा मदमस्त मलंग मैं घर के बाहर बने उस चबुतरे पर बैठ गया और बस उसके बारे में ही सोचने लगा उसका भोला सा चेहरा मेरी आँखों के सामने आ रहा था दिल कह रहा था की काश वो मेरी आँखों के सामने आ जाये तो कुछ चैन मिल जाये



मैं सोच रहा था की अबकी बार जब भी उस से मिलूँगा तो पक्का बात करनी है चाहे कुछ भी जुगाड़ करना पड़े हलकी सी हवा च रही थी तो मैंने चादर को कस कर ओढ़ लिया और बैठा रहा जो भी थी वो मुझे बहुत अच्छी लगती थी सादगी उसकी मुझे मार ही गयी थी कानो में छोटे से झुमके हलके गुलाबी होंठ और ठोड़ी पर काला तिल अगर मैं कोई कवी होता तो उसके ऊपर पूरा काव्य लिख डालता पर यहाँ तो मैंने इतना कुछ सोच लिया था और असल में ठीक से बात भी नहीं हो पाई थी पर उसने जिस अंदाज में कहा था की वो जुम्मे को पीर साहब की अंजर पर जाती है तो कही ना कही लग रहा था की उसके मन में भी कुछ तो है



“ला ला लालाल्ल्ल लाला ला ला लाला ” बस ऐसे हु गुनगुनाते हुए मैंने दिल को थोड़ी तस्सल्ली दी और रुख किया चंदा चाची के घर की तरफ



“तू, यहाँ ”


“खेत पर नहीं चलना क्या चाची ”


“जाउंगी अभी थोड़ी देर में पर ”


“चलने को आया हु ”



“पर तेरी हालत ”


“अब मैं ठीक हु चाची ”


“थोड़ी देर रुक बस ”


करीब पंद्रह मिनट बाद हम दोनों हाथो में लाठी और लालटेन लेकर पैदल ही चल दिए जल्दी ही गाँव पीछे रह गया और कचचा रास्ता शुरू हो गया चाची मुझसे थोडा सा आगे चल रही थी मेरी निगाह चाची की बलखाती कमर और मतवाली गांड पर थी जी कर रहा था छु लू उसके चूतडो को पर अभी शायद और कुछ देर लगनी थी



रास्ता करीब आधा रह गया था तभी चाची बोली “तू चल आगे मैं आती हु ”


क्या हुआ चाची ”


“कहा ना तू चल ”


मैं कुछ कदम आगे बढ़ गया वो दो पल खड़ी रही फिर चाची ने अपने घाघरे को ऊपर कमर तक उठाया लालटेन की रौशनी में मैंने उसकी चिकनी जांघो को चमकते हुए देखा उसने अपनी उंगलिया कच्छी में फंसाई और धीरे से उसको घुटनों तक किया खेतो के बीच कच्चे रस्ते पर ऐसा हाहाकारी नजारा उफ्फ्फ्फ़


इर अहिस्ता से वो निचे बैठ गयी, surrrrrrrrrrrrrr सुर्र्र्रर्र्र्र पेशाब की तेज आवाज जैसे मेरे कानो को बेध गयी थी उसके गोरे चूतडो को मैं नजरे टेढ़ी किये देखता रहा वो मूतती रही मैं हद से ज्यादा उत्तेजित हो गया था उस पल मेरा लंड उस पल कुछ चाहता था तो बूस इतना की चाची की चूत में घुसना
पर उसने भी आज ठेका ही ले लिया था मुझे तडपाने का और वो कामयाब भी हो गयी थी अपने काम में



“मैंने कहा था ना की आगे चल पर तू कभी बात नहीं मानता है ना ”


“चाची, आगे कैसे चलू आपके बिना अब तो आपका साथ ही करना पड़ेगा ”


“कैसा लगा ”


“क्या ”


“वो ही जो तू देख रहा था ”


“मैं कुछ नहीं देख रहा था ”


“अब मुझसे झूठ मत बोल तू चल बता ”


“अच्छा लगा, आप बहुत सुन्दर हो चाची ”


“झूठी तारीफे कर रहा है चाची की ”


“मैं तो जो महसूस किया वो बोल दिया चाची अब चाहे आप मानो या न मानो सची में आपसे सुन्दर कोई नहीं है ”


“अब ऐसा क्या देख लिया तूने मुझमे ये तो तू ही जाने पर आजकल तेरा ये बहुत खड़ा रहता है मैं देख रही हु ” चाची ने मेरे लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा



“क्या करू चाची मैं खुद परेशान हु इस से पर पता नहीं कैसे दूर होगी ये परेशानी ”


“हम्म परेशानी तो दूर करनी पड़ेगी

पर पहले जरा एक चक्कर लगा के देख की कोई जानवर आस पास तो नहीं ”

बातो बातो में हम कब खेतो पर आ गए थे पता नहीं नहीं चला था , चाची ने एक गहरी मुस्कान दी मुझे और मैं अपनी लाठी लिए खेतो की दूसरी और चल पड़ा ये सोचते हुए की आज कुछ भी करके चाची को चोद ही दूंगा मैंने एक नजर अपने कुवे पर डाली पर सब शांत था या तो राणाजी के आदमी अभी आये नहीं थे या सो गए थे



परली पार मुझे जंगली जानवरों का झुन्ड दिखा तो मैं उस और हो लिया उनको हांकते हुए उनका पीछा करते हुए मैं थोड़ी आगे तक आ गया जो हमारा इलाका नहीं था नदी के उस पार के खेत खलिहान किसी और के थे और फिर आगे शुरू हो जाता था रेत वाला इलाका बीच में कोई एक आधा पेड़ दिख जाये तो अलग नहीं तो बस रेत के टिब्बे कितनी अजीब बात थी ना की पास नदी होने के बावजूद ये इलाका नहीं पनप पाया था



खैर इन सब में करीब आधा घंटा ख़राब हो गया मैं आया तो देखा की बिजली गुल थी कमरे में रौशनी थी लालटेन की चाची बोली “कहा रह गया था मुझे चिंता हो रही थी ”


“परली पार तक हांक आया हु, अब पूरी रात इधर ना फटकेंगे ”


“अच्छा किया ”


मैंने दरवाजे को अन्दर से कुण्डी मारी और चाची के पास लेट गया कुछ देर हम लेटे रहे फिर मैंने धीरे से अपना हाथ चाची के पेट पर रख दिया और सहलाने लगा उसकी नाभि में ऊँगली करने लगा चाची कसमसाने लगी मैं उसके और करीब हो गया



“क्या कर रहा है नींद नहीं आ रही क्या ”


“नींद कैसे आएगी चाची भूख जो लगी है ”


“खाना खाके नहीं आया क्या अभी यहाँ कुछ नहीं है खाने पिने का ”


“खाने का नहीं पर पिने का तो है चाची ”


“क्या मतलब ”


“मतलब ये की मुझे दूध पीना है वो ही दूध जो दिन में मैं नहीं पी पाया था ” कह कर मैंने अपना हाथ चाची की चूची पर रख दिया और हल्का सा मसल दिया

“तू मेरी जिंदगी है तू ही मेरी पहली खवाहिश तू ही आखिरी है तू....... मेरी जिंदगी है हम्म्म्म हुम्मुम्म्म्मु ” बेहद धीमी आवाज में उस कमरे में संगीत बज रहा था आवाज बस इतनी की महसूस भर ही कर पाए सामने वाली खिड़की जो खुली हुई थी उसमे से बहती हुई ठंडी हवा उसके खुले बालो से छेड़खानी कर रही थी



वो कमरे के बीचो बीच रखी टेबल-कुर्सी पर बैठी थी हाथो में पेन था और पास एक कॉपी थी अपने चेहरे पर बार बार आ रही बालो की उस लट को उसने फिर से एक बार पीछे किया और सोचने लगी उन सब हालात के बारे में जो पिछले कुछ दिनों में उसके साथ हुए थे अचानक वो उठी और खिड़की के पास जाके खड़ी हो गयी पता नहीं उसके होंठो पर एक मुस्कान सी थी अपनी ही बेखुदी में खोयी थी वो



पर कौन था वो जिसके खयालो में वो थी कौन सी बात थी की उसके होंठो से वो मुस्कराहट हट ही नहीं रही थी जबकि कुछ देर पहले ही वो गुस्सा थी उसे वो छोटी छोटी बाते याद आ रही थी जो उन दोनों के बीच हुई थी कैसे जब पानी की टंकी पर उसने धीरे से उसकी उंगलियों को छू भर दिया था कैसे कांप गयी थी वो ऊपर से निचे तक जैसे किसी ने ठंडी बर्फ उड़ेल दी हो उस पर



शाम को कितनी बार ही वो जाके छज्जे पर जाकर गली में देखती थी बार बार वो उस दुपट्टे को देखती थी उसे अपने सीने से लगाती थी उसे पता नहीं क्या हो रहा था सच तो तह की वो अब अपनी रही ही कहा थी उसकी धडकनों की तेजी कुछ जोर से बढ़ गयी थी बार बार एक ही चेहरा उसकी आँखों के सामने आता था और बस वो तड़प सी जाती थी



जब रहा नहीं गया तो बिस्तर पर लेट गयी पर उफ्फ्फ ये करवटे बदले भी तो कितनी बदले आँखों से नींद ने जैसे बगावत सी कर दी थी उसने थोडा पानी पिया कुछ बुँदे बस उसके होंठो पर ही रह गयी जैसे चूम लेना चाहती हो जब रहा नहीं गया तो अपने हर उस ख्याल को उस कॉपी में लिखने लगी न जाने कितनी रात तक वो जागती रही बल्कि उसके लिए तो अब जैसे ये नियम सा बन गया था
“मुझे दूध पीना है चाची ” मैंने उसके उभारो को दबाते हुए कहा



“उम्म्म, ये दूध बड़ा महंगा है कुंदन , कीमत चूका पायेगा ”


“कितनी भी कीमत हो चाची पर आज ये दूध मुझे पीना ही है ” मैंने धीरे से चाची को अपनी बाहों में ले लिया उसके जिस्म से आती खुशबु मुझे पागल करने लगी मेरे रोम रोम में उत्तेजना भरने लगी मैं हहलके हलके कांप रहा था चाची भी मुझसे चिपकने लगी



उसके गरम सांसे मेरे सीने पर लग रही थी हलकी सी ठण्ड में जबरदस्त गर्मी का अहसास मेरे चारो ओर था मैं धीरे धीरे चाची की चुचियो को दबा रहा था मेरा हाथ उसकी चुचियो की घाटी तक जा रहा था मेरा घुटना चाची की टांगो के बीच दवाब डाले हुए थे चाची ने उत्त्जेना वश मेरा मुह अपनी छातियो पर रख दिया और उसे दबाने लगी



मेरे होंठो ने उसकी खाल को छुआ तो पुरे बदन में करंट दौड़ सा गया “पुच ” मैं अहिस्ता से उसके सीने के ऊपर वाले हिस्से कर छुआ मैं पिघलने लगा मैंने चाची के ब्लाउज के बटन खोलने शुरू किय और जल्दी ही उसकी ब्रा के अन्दर कैद चुचिया मेरी आँखों के सामने थी मैंने ब्रा के ऊपर से से ही चुचियो को मसल दिया



“”आह चाची ने धीरे से एक आह भरी और मुझे अपनी बाँहों में भर लिया हम दोनों एक दुसरे से चिपक गए थे मैंने धीरे से अपने होंठ खोले और चाची के गाल को अपने मुह में भर लिया हलके से काटा उसे दांतों से तो वो मुझ से और लिपट गयी



पर तभी बाहर से अचानक सियारों के रोने की बहुत तेज आवाज आने लगी, तो झटके से मैं और चाची एक दुसरे से अलग हो गए



“सियारों का रोना है ” चाची ने कहा



“सियार पर अपनी तरफ सियार है ही कहा, ”


“जंगल है पास तो आ सकते है वैसे मैंने भी काफी टाइम से अपनी तरफ सियार देखे नहीं ”


“मैं देखता हु जरा ” मैंने लालटेन ली और बाहर आया मेरे पीछे चाची आई



“ये तो पूरा झुण्ड है , अभी भगाता हु उनको ”


“नहीं, पूरा झुण्ड है कही पलट गए तो तुम्हे घायल ना कर दे ”


“अभी देखता हु उनको ”


हाथ में लालटेन और दुसरे में लाठी लिए मैं सियारों की तरफ बढ़ने लगा चाँद की रौशनी में चमकती उनकी आँखे मुझे डरा रही थी मैंने मजबूती से पकड़ा अपनी लाठी को पर जैसे जैसे मैं झुण्ड के करीब जा रहा था वो पीछे होने लगे और भागे जंगल की और मैं उनके पीछे दौड़ा



जैसे मेरे पैर अपने आप मुझे खीच रहे हो उस तरफ जबकि कायदे से मुझे एक दुरी के बाद रुक जाना चाहिए था जब मैं रुका तो मैंने देखा की खारी बावड़ी के पास खड़ा हु जंगल के किनारे पर ये बावड़ी बनी हुई थी किसी ज़माने में आबाद रही होगी पर कई सालो से ऐसे ही पड़ी थी वीरान सी होती होगी कभी रौनक पर मैंने नहीं देखि थी



दिन के उजाले में मैं कई बार आया था इस तरफ पर रात को कभी नहीं और पता नहीं क्यों थोडा डर सा लगने लगा ऊपर से रात का टाइम वो सियारों का झुण्ड ना जाने कहा गुम हो गया था पता नहीं क्या हवा थोड़ी तेज सी हो गयी थी पर पास वो बेरी का पेड़ थोडा सा हिलने सा लगा था



मुझे सच में बहुत डर सा लगने लगा था हमारे खेत वहा से काफी दूर थे मैंने एक गहरी साँस ली और वापिस मुड़ा वहा से मैं लगभग दौड़ सा ही पड़ा था और तभी मेरी लालटेन बुझ गयी मेरे चारो तरफ घुप्प अँधेरा सा हो गया मेरी धड़कन इतनी बढ़ गयी की साँस अपने आप फुल गयी



क्या ये किसी चीज़ का असर था या बस रात के अँधेरे और सुनसान इलाके का खौफ मैंने मेरी कनपटी पर बहती पसीने को महसूस किया मेरा गला ऐसे खुश्क हो गया जैसे की मैं बरसो से प्यासा हु मेरी प्यास बहुत बढ़ गयी मैंने हिम्मत बटोरी और मैं दौड़ने लगा अपने इलाके की ओर
User avatar
Kamini
Novice User
Posts: 2112
Joined: 12 Jan 2017 13:15

Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

झट से उसकी आँख खुल गयी उसने खुद पर गौर किया उसकी सांसे फूली हुई थी जैसे मिलो दौड़ लगायी हो उसने पूरा बदन पसीना पसीना हुआ पड़ा था जबकि कमरे में पंखा पूरी रफ़्तार से चल रहा था तो फिर ये पसीना कैसे उसकी आँखों के सामने अभी तक वो मंजर घूम रहा था जो शायद उसने सपने में ही देखा था

पता नहीं ये क्या बचैनी थी ये कैसा अहसास था जो उसकी नींद को उड़ा ले गया था उसने फिर से सोने की कोशिश की पर नींद आ नहीं रही थी किसी अनजाने डर का अंदेशा सा हो रहा था

अपने डर से झुझते हुए मैं धीर धीरे आ रहा था आस पास अगर भी कुछ तेज होती तो मैं कांप जाता था कुछ और आगे आया तो मैंने देखा की कच्ची सड़क जो जंगल की तरफ जाती थी उस तरफ ऊंट गाडियों का काफिला जा रहा था तो मैं चौंक सा गया क्योंकि जंगल काफी दूर तक फैला हुआ था और उसकी दूसरी तरफ सरहद थी जिसके बारे में मैंने बस सुना ही था

मैं उन गाडियो की तरफ देखते हुए बेध्यानी में चले जा रहा था तभी मुझे ठोकर लगी और मैं गिर गया और साथ ही लालटेन का शीशा भी टूट गया बेडागर्क, मैंने खुद को कोसा पता नहीं कब मैं अपना रास्ता छोड़ कर उ रास्त पर हो लिया जहा वो ऊंट गाडिया जा रही थी

मैं बस चले जा रहा था पर आगे जाने पर मैंने देखा की ऊंट गाड़िया पता नहीं किस तरफ निकल गयी थी और कोई आवाज भी नहीं आ रही थी मैंने खुद को ऐसी जगह पर पाया जहा मैं पहले कभी नहीं आया था आस पास घने पेड़ तो नहीं थे पर फिर था तो जंगल ही डर फिर से मुझ पर हावी होने लगा मैंने वापिस जाना ही मुनासिब समझा पर मुताई सी लग आई थी तो मुतने लगा और तभी मेरी नजर एक हलकी सी रौशनी पर पड़ी , इस जंगल में रौशनी जैसे कोई दिया टिमटिमा रहा हो मैंने टाइम का अनुमान लगाया करीब साढ़े दस –ग्यारह तो होगा या ऊपर भी हो सकता है पर इतनी रात में कौन हो सकता है देखू के नहीं .......... नहीं जाने दे क्या पता क्या बवाल हो

फिर ध्यान में आया की किस्से- कहानियो में सुना था की जंगल में भुत-प्रेत भी होते है तो अब जी घबराने लगा कुछ छलावो के बारे में भी सुना था की वो तरह तरह की माया दिखा कर ओगो को अपनी तरफ खींचते है तो दिल घबराने लगा तभी कुछ आवाज सी आई तो मैं और घबरा गया पर उत्सुकता होने लगी तो कुछ सोचा और जी को मजबूत करके मैं उस तरफ चला

“आह आई ”मेरे होंठो से आह निकली मैंने देखा पाँव में चप्पल को पार करते हुए काँटा पैर में धंस गया था खून निकलने लगा मिटटी लगा कर थोडा रोका उसको और उस दिशा में बढ़ने लगा तो देखा की एक पीपल का बड़ा सा पेड़ है और उसके चारो तरफ एक बड़ा सा चबूतरा बना हुआ था पेड़ पर खूब सारे धागे बंधे थे और एक दिया उसी चबूतरे पर जल रहा था

उसके पास ही झोला सा कुछ रखा था पर कोई दिखा नहीं अब इतनी रात में कौन दिया जला गया यहाँ पर वो भी इतनी दूर इस बियाबान में हवा थोड़ी सी तेज तेज चल पड़ी थी तो मैंने अपनी चादर को कस लिया फिर मुझे कुछ सुनाई दिया जैसे की कोई झांझर की आवाज हो मेरी तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी मैं जान गया की भुत-प्रेत का ही मामला है ये तो

गला सुख गया प्यास के मारी थर्र थर्र कांपने लगा मैं पैरो में जैसे जान बाकी ना रही तभी मेरी नजर चबूतरे के निचे गयी एक हांडी सी रखी थी मैंने इधर उधर देखा और चबूतरे के पास गया हांड़ी में पानी था मैं प्यासा मर रहा था मैंने उसे अपने मुह से लगाया और गतागत पीने लगा और तभी कुछ ऐसा हुआ की मेरे हाथो से हांड़ी नीचे गिर गयी और मेरी तो जैसे साँस ही रुक गयी धडकनों ने जैसे दिल का साथ छोड़ दिया

“भुत भुत ” मैं बहुत जोर से चीखा और निचे गिर गया और गिरता भी क्यों ना एक दम से पीपल के पीछे से वो मेरे सामने जो आ गयी थी बाल इतने घने उसके पुरे चेहरे को ढके हुए ऊपर स काले स्याह कपडे

“मुझे मत खाना मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हु ” मैं मरी सी आवाज में बोला डर से कांपते हुए

“नहीं आज तो तुझे खाऊ ही गी बहुत दिन हुए इन्सान का मांस नहीं खाया मैंने और तू तो खुद मेरे पास आया है तेरे गरम खून को पीकर मैं अपनी प्यास बुझाउंगी हां हा हाह ”

उसकी ये बात सुनते ही मैं तो जैसे बेहोश ही होने को हो गया मेरा गला फिर से सुख गया जबकि अभी मैंने पानी पिया था ऐसे लगा की जैसे हाथ पांवो की जान ही निकल गयी हो वो धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ने लगी मैं पीछे को सरकने लगा

“हा हा हा आज तो शिकार करुँगी तेरा तेरे गर्म खून से मेरी प्यास बुझेगी लड़के आ पास आ मेरे आ ” वो पल पल मेरे पास आते जा रही थी और मैं फीका होता जा रहा था क्या यही अंत था मेरा क्या ये भूतनी आज मुझे मार ही देगी मेरे दिमाग में तरह तरह के बिचार आने लगे थे

और फिर मैंने सोचा भाग यहाँ से कोशिश कर जान बचाने की मरना है तो मर पर कोशिश जरुर कर भागने की मैंने अपनी पूरी शक्ति बटोरी और भागा एक तरफ पर किस्मत खराब कुछ कदम बाद ही मेरा पैर किसी जड़ में फस गया और मैं पास की पथरीली जमीन पर पीठ के बल जा गिरा और मेरे जख्म इस दवाब को झल नहीं पाए

“aaahhhhhhhh ” मेरी एक दर्दनाक चीख उस ख़ामोशी में गूंजती चली गयी मेरी आँखों से आंसू बहने लगे मैं कराहने लगा दर्द से और तभी मैंने किसी को अपने पास आते महसूस किया मैंने डर से अपनी आँखों को बंद कर लिया मुझे अपने बदन पर दो हाथ महसूस हुए

“भूतनी जी मुझे जाने दो , मुझे मत खाओ ”बस इतना ही बोल पाया मैं
User avatar
Kamini
Novice User
Posts: 2112
Joined: 12 Jan 2017 13:15

Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

“नहीं मुझे मत खाओ नहीं मुझे जाने दो “ मैं डरते डरते बोल रहा था उसके हाथ मुझे अपने बदन पर महसूस हो रही थे की उसने मुझे इस तरह सी खींचा की जैसे मुझे उठा रही हो कुछ ही पलो में हम दोनों एक दुसरे के सामने खड़े थे उसके खुले बाल उसके चेहरे को ढके हुए थे
मैं कुछ बोलने ही वाला था की वो बोल पड़ी “थम जा क्यों बेफालतू में मरे जा रहा है कोई ना तेरे प्राण हर रहा गौर से देख कोई भूतनी ना हु मैं ”
क्या कहा उसने , अब जाके मैं थोडा शांत हुआ
“कौन हो फिर तुम और इतनी रात को यहाँ क्या कर रही थी ”
“”बताती हु , आ साथ मेरे कहकर वो आगे को चल पड़ी
पर मैं वही रुका रहा
“इब्ब आ भी जा डर मत भूतनी होती तो इब तक निगल गयी होती तुझे आजा ”
मैं उसके पीछे चल पड़ा और हम दोनों वापिस उसी पीपल के पेड़ के पास आ गए वो चबूतरे पर बैठ गयी और अपनी कलाई से रबड़ निकाल कर बालो को बाँधा उसमे तो मेरी नजर दिए की रौशनी में उसके चेहरे पर पड़ा दिखने में तो चोखी लगी
“बैठ, जा खड़ा क्यों है अब इतना भी ना डर ”
मैं उस से कुछ दूर बैठ गया
“कौन हो तुम, ” मैंने पूछा
“पहले तू बता कौन है तू ” उसने उल्टा सवाल किया
“मैं कुंदन हु वो नदी के साथ वाले इलाके में मेरी जमीन है खीतो में सियारों का टोला घूम रहा था तो भगाते हुए इस तरफ निकल आया और फिर ये दिया देखा ”
“हुमम्म दिलेर लगे है जो इतनी रात को अकेले में जंगल में आ गया ”
“मेरी छोड़ अपनी बता तू के कर रही थी ”
“के करेगा जान के ”
“बस ऐसे ही पूछा ”
“यो देख, ” उसने अपने झोले से एक किताब निकाली और मुझे दिखाई
“के है ” मैंने पूछा
“अनपढ़ है के दिख ना रहा जादू की किताब है ”
“जादू ” मैंने हैरत से पूछा
“हां, जादू , बस करके देख रही थी ”
“इतनी रात को वो भी अकेली ”
“और के सारे गाँव ने साथ ले आती ”
“डर ना लगा इतनी रात को अकेली आ गी ”
“किताब में लिख रखी है अकेले करना सारा काम ”
“कर लिया मेरा मतलब हुआ जादू ”
“ना रे, तू जो आ गया बीच में वैसे बुरा ना मानियो मजा बहुत आया तुझे डरा के और तू क्या बोल रहा था भूतनी जी , भूतो को कोई आदर-सत्कार देता है क्या ” वो हस पड़ी
“हां, एक पल तो मैंने भी सोचा की भूतनी इतनी खुबसूरत कैसे हो सकती है ”
“अकेली छोरी देख के डोरे डाल रहा है ”
“ना जी, बस जो देखा बोल दिया ”
तभी मैंने एक अंगडाई सी ली और उसी के साथ मेरी पीठ में दर्द हो गया “आई आई ” मैं कराहा
“क्या हुआ ”
“पीठ में लगी हुई है गिरने से शायद जख्म ताज़ा हो गया ”
“देखू ”
मैंने हां कहा तो वो मेरे पीछे आई “खून आ रहा है इसमें तो एक काम कर कमीज ऊपर कर मैं कुछ करती हु ”
उसने अपने झोले से टोर्च ली और जंगल की तरफ हो ली पर जल्दी ही आ गयी उसके हाथ में कुछ हरे पत्ते से थे “ये लगा देती हु खून बंद हो जायेगा ” उसने पत्तो को पत्थर से पीस कर एक लेप सा बनाया और मेरी पीठ पर लगाया थोड़ी जलन सी हुई पर खून बंद हो गया
“तू कहा रहती है मैंने पूछा ”
“कोस भर दूर घर है मेरा ”
“पर तू अकेली रात में भटक रही घरवाले कुछ ना कहते ”
“अकेली हु माँ- बाप गुजर गए वैसे तो कुछ लोग है परिवार के पर जबसे होश संभाला है जीना सिख लिया है ”
हमको जो मिटा वो दिन दुखी ही मिलता था अब क्या कहते उसको
“चल तुझे छोड़ दू तेरे घर ”
“रहने दे चली जाउंगी ”
“बोला ना छोड़ देता हु भरोसा कर सकती है मुझ पर ”
कुछ देर उसने सोचा फिर बोली “ठीक है ”
रस्ते भर हम दोनों चुपचाप चलते रहे करीब आधे घंटे बाद हम एक ऐसी जगह पहुचे जहा मैं तो कभी नहीं आया था आस पास घने पेड़ थे पानी बहने की आवाज आ रही थी मतलब नदी थी पास में ही और फिर मैंने उसका घर देखा उसने उस बड़े से दरवाजे को खोला और अपने कदम अन्दर रखे
“अच्छा तो मैं चलता हु ”

उसने अपना सर हिलाया और मैं वापिस मुड़ा पर मैंने जोश में बोल तो दिया था की चलता हु पर मेरे खेत यहाँ से काफी दूर थे और अब तो एक से ऊपर का टाइम हो रहा रात का मैं अकेला कैसे जाऊंगा मुझे फिर से डर लगने लगा पर जाना तो था ही बस कुछ कदम ही गया था की पीछे से आवाज आई “कुंदन ”
मैंने मुडके देखा वो आ रही थी पास बोली “रात को अकेले जाना ठीक नहीं एक काम कर मेरे घर आजा सुबह चले जाना ”
“नहीं मैं चला जाऊंगा ”
“अरे चल ना , इतना भी क्या सोचना रात है रास्ता भटक गया तो कहा जायेगा मुझ पर भरोसा कर सकता है तू ” उसने मेरी आँखों में आँखे डालते हुए कहा
मैं उसके साथ अन्दर आ गया तो देखा की थोड़े पुराने ज़माने का घर था तीन कमरे थे पास ही में एक छप्पर था पर चार दिवारी ऊँची ऊँची थी
“थोड़ी मरम्मत मांग रहा है न ”
“अच्छा है ” मैंने कहा
“यही सोच रहा है आ की इस टूटे फूटे घर में .......”
“ना सही है तू तो ऐसे ही बोल रही है ”
“गाँव में हवेली है हमारी पर रिश्तेदारों ने कब्ज़ा ली ले देके एक जमीन का टुकड़ा और कुछ पशु बचे है ”
पता नहीं क्यों मुझे लगा ये भी अपने जैसी ही है
“नाम क्या है तेरा, ”
“पूजा ”
“अच्छा नाम है जरा अपने घरवालो के बारे में बता कुछ ”
“क्या बताऊ, मैं तेरे सामने हु माँ-बाप रहे नहीं रिश्तेदारों ने ठुकरा दिया इतनी सी बात है ”
“बाबूजी का क्या नाम था ”
“अर्जुन सिंह कभी इलाके में नाम था उनका और आज देखो ” बोलते बोलते वो थोड़ी भावुक सी हो गयी
“उनक नाम आज भी है तुम जो हो ”
वो बस हलकी सी मुस्कुरा पड़ी
बाते अच्छी करता है तू
“तुम भी ”
“तुम्हारी शर्ट पे खून लगा है धो दू मैं ”
“नहीं मैं घर जाके धो लूँगा ”
“आराम कर लो फिर रात बहुत हुई ”
“हम्म्म ” मैंने चादर ओढ़ ली और सोने की कोशिश करने लगा कुछ देर बाद मैंने चादर से मुह बाहर निकाल के देखा वो पास ही चारपाई पर वो सो रही थी तो मैंने भी आँखे बंद कर ली सुबह जब मैं जागा तो वो वहा पर नहीं थी कुछ देर इंतजार किया और फिर मैं अपने रास्ते पर हो लिया घूमते घुमाते मैं खेतो पर आया तो देखा की चंदा चाची वहा नहीं थी ताला लगा था तो मैं भी गाँव की तरफ हो लिया
घर आके मैं छत पर कुर्सी डाले बैठा था की भाभी भी आ गयी
“आज पढने नहीं गए तुम ”
“भाभी, वैसे ही नहीं गया ”
“”मैं देख रही हु पिछले कुछ दिनों से अजीब से हो गए हो तुम ऐसा क्यों “
“ऐसा कुछ नहीं भाभी ”
“चलो कोई नहीं कुछ काम निपटाके आती हु फिर बात करते है ”
मैं भी भाभी के पीछे निचे आया तो मुनीम जी ने कहा की आज दोपहर को तुम्हे मेरे साथ चलना है जमीन देखने तो तैयार रहना मैंने एक नजर मुनीम के चेहरे पर डाली और फिर घर से बाहर निकल गया और पहुच गया चंदा चाची के घर पर दरवाजा खुल्ला था मैंने अन्दर जाते ही उसे बंद किया और चाची को देखने लगा
वो अपने कमरे में थी “कुंदन, कहा गायब हो गया था कल रात कितनी चिंता हो गयी थी मुझे ”
“चाची वो कल रास्ता भटक के जंगल में चला गया था तो फिर थोड़ी परेशानी हो गयी खैर बताओ क्या कर रहे हो ”
“कुछ नहीं नहाने जा रही थी फिर सोचा की पहले हाथ पैरो को थोडा तेल लगा लू कितने दिन हो गए त्वचा रुखी रुखी सी हो गयी है अब तू आ गया बाद में लगा लुंगी ”
“बाद में क्यों अभी .... कहो तो मैं लगा दू ”
“नहीं रे मैं लगा लुंगी ”
“उस दिन भी तो मैंने आपको दवाई लगाई थी आपको अच्छा नहीं लगा था क्या ”
“दवाई कम लगायी थी तूने बल्लकी मुझे ज्यादा रगडा था तूने ”
“पर आपको अच्छा भी तो लगा था चाची ” चाची ने मेरी तरफ दखा और फिर तेल की शीशी मुझे देते हुए बोली “ले तू कर अपने मन की “
मैंने तेल लिया और चाची के हाथो पर मलने लगा चाची के नर्म हाथो को मेरे कठोर हाथ रगड़ने लगे चाची के बदन को छूते ही मेरे लंड में तनाव आने लगा कुछ देर बाद मैं बोला “चाची एक बात कहू ”
“बोल ”
“आप इतनी सुंदर हो फिर भी चाचा आपको छोड़ कर बाहर गए कमाने को ”
“कमाना भी जरुरी है ना और वैसे भी इतने दिन निकल गए थोडा टाइम और निकल जायेगा अगली दीवाली तक वो वापिस आही जायेंगे वैसे आजकल तू मेरी कुछ ज्यादा ही तारीफ करने लगा है ”
“अब आप सुन्दर हो तो आपकी तारीफ होगी ही ”
User avatar
Kamini
Novice User
Posts: 2112
Joined: 12 Jan 2017 13:15

Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

मैंने अब अपनी चिकने तेल से सने हाथ चाची के हलके फुले हुवे मुलायम पेट पर रगड़ने शुरू कर दिए “आह कुंदन क्या कर रहा है ”
“मालिश चाची आज आपके पुरे बदन की मालिश करूँगा चाची आप एक दम तारो ताजा हो जाएँगी ”
चाची ने अपने सर के निचे सिराहना लगाया और लेट सी गे मैं चाची की बार बार ऊपर निचे होती चुचियो को देखते हुए चाची के पेट को सहलाता रहा तभी चाची ने अपना पैर मेरी गोद में रख दिया और बोली “बहुत आराम मिल रहा है कुंदन जी तो चाहता है की तुझसे अपनी पीठ की मालिश भी करवा लू रे ”
“तो किसने मना किया है चाची करवा लो ”
“एक काम कर चटाई उठा ले और ऊपर चल ” कुछ देर बाद मैं और चाची दोनों ऊपर आ गए चाची ने सीढियों पर जो गुम्बद बनाया हुआ था वहा चटाई बिछाई और बोली यहाँ सही है थोड़ी धुप भी आएगी और मालिश भी हो जाएगी “
“चाची, पीठ की मालिश के लिए ब्लाउज उतारना होगा आपको ”
“साफ़ क्यों नहीं कहता तुझे मेरी चूची देखनी है ” चाची हस्ते हुए बोली
“चूची क्या मुझे आपका सब कुछ देखना है मेरी प्यारी चाची ”
अब चाची जब खुद इतनी लाइन दे रही थी तो कौन रुक सकता था विसे भी मुझे पता था की वो चुदना चाहती है मैंने चाची को पीछे से पकड़ लिया और अपने हाथ चाची की चूची पर लगा ही रहा था की उन्होंने मना किया और खुद ब्लाउज के बटन खोलने लगी
“ले कुंदन जितनी मालिश करनी है कर ले नस नस का दर्द मिटा दे आज ”
मैंने अपने हाथ चाची की चुचियो पर रखे और उनको दबाने लगा वो और फूलने लगी “आह कंदन पकड़ मजबूत है तेरी ” चाची ने अपनी गांड को हलके से पीछे किया तो मेरा तना हुआ लंड चाची की गांड की दरार पर रगड़ खाने लगा चाची ने आँखे मूंद ली और मैं उनकी चुचियो को मालिश करने के बहाने दबाने लगा
जल्दी ही चाची की छातियो में कसाव आने लगा उसके चुचक तन गए मै उंगलियों से कुरेदने लगा उनको चुंटी काटने लगा चाची अपनी गांड को मरे लंड पर रगड़ते हुए आहे भरने लगी
“आह कुंदन ये मेरे पीछे क्या चुभ रहा है ”
“पता नहीं चाची मेरे हाथ तो आगे है आप ही देख लो ना ”चाची अपना हाथ पीछे ले गयी और मेरे लंड को पायजामे के ऊपर से पकड़ लिया और मसलने लगी ”
“उफ्फ्फ्फ़ चाची ”मैंने उसकी चूची को कस के दबाया
“आज दूध नहीं पिएगा मेरे बेटे ” चाची ने हाँफते हुए कहा
“पियूगा ” मैं बोला
और तभी चाची मेरी बहो ने निकल गयी और मैंने पहली बार चाची के उपरी हिस्से को निर्वस्त्र देखा हाहाकार मचाती उसकी चुचिया हवा में तन के खड़ी थी चाची ने अपने बोबे को हाथ में लिए और इशारा किया मैंने बिना कुछ कहे चाची की चुचक को अपने मुह में भर लिया और चाची का बदन कांप गया “आह रे ” उसके बदन का स्वाद मेरी जीभ को लगते ही मेरा लंड बेकाबू हो गया मैंने अपनी जीभ चुचक पर फेरी और चाची ने मेरे पायजामे के नाडे को खोल दिया और मेरे कच्छे में हाथ डाल के मेरे लंड को पकड़ लिया

चाची ने मेरे सुपाडे की खाल को पीछे किया और अपनी उंगलियों को सुपाडे पर रने आगी मेरा पूरा बदन हिल गया उसकी इस हरकत पर मैंने उसकी चूची पर काट लिया तो वो सिसक पड़ी और उसकी पकड़ मेरे लंड पर और मजबूत हो गयी कुछ देर तक वो मेरे लंड से खेलती रही फिर वो चटाई पर लेट गयी और अपने पैरो को फैला लिया काले काले बालो से ढकी हुई उसकी लाल चूत मेरी आँखों के सामने थी जिसे उसने छुपाने की बिलकुल कोशिश नहीं की



“पैर दबा मेरे जरा ” मैंने थोडा सा तेल और लिया शीशी से और चाची की जांघो को मसलने लगा मालिश तो बस बहाना थी असल में जोर आजमाईश हो रही थी मेरे हाथ फिसलते हुए चाची की जांघो के जोड़ की तरफ बढ़ रहे थे और फिर जल्दी ही मेरी उंगलिया चाची की चूत के निचे वाले हिस्से से जा टकराई पर तभी चाची ने मुझे तद्पाते हुए करवट बदल ली और उसकी पीठ मेरी तरफ हो गयी
चाची की गोरी पीठ और कहर ढाते हुए नितम्ब देख कर मेरा तो हाल बुरा हो गया मैंने अपने कांपते हाथो से चाची के चूतडो को छुआ तो बदन में हलचल मच गयी इतने कोमल चुतड “कुंदन जरा मेरे कंधो पर तो दबा थोडा ”


“जी चाची ” थूक गटकते हुए बोला मैं



मैं उसके ऊपर थोडा सा झुक गया ताकि कंधो पर पहुच सकू और मेरा लंड अपने आप उसकी चूतडो की दरार में धंस गया “आह कितना गरम है ” चाची के मुह से निकला



“आह और थोडा आराम से दबा आःह्ह ”


मैं कंधो की मालिश करने लगा इधर मेरा लंड निचे हलचल मचाये हुआ था उसकी रगड़ से चाची का हाल बुरा था मैं अब लगभग चाची के ऊपर ही लेट गया था उसकी गांड की हिलने से मुझे बहुत मजा आ रहा था उफफ्फ्फ्फ़ ऐसा मजा मैंने कभी महसूस नहीं किया था चाची मेरे निचे दबी हुई उत्तेजक आवाजे निकाल रही थी मुह से पर मजा मजा ही रह गया



इस से पहले की गाड़ी और आगे बढती बाहर से मुनीम जी की आवाज मेरे कानो में आई जो जोर जोर से पुकार रहे थे मैं हटा वहा से और जल्दी से अपने कपड़े पहने चाची ने मेरी और देखा पर मैं क्या कर सकता था “आता हु चाची ” मैंने अपने तेल वाले हाथ साफ़ किये उअर निचे आया



“क्या काका क्यों पुकार रहे हो ”


“छोटे सरकार वो जमीन देखने चलना है न ”


“ठीक है चलो ” मैं मुनीम जी के साथ जीप में बैठ गया और चल दिए फर्राटे मारती हुई जीप हमारे खेतो की तरफ से होते हुए नद्दी को पार कर गयी और फिर खारी बावड़ी भी पीछे रह गयी दरअसल हम उस तारफ जा रहे थे जिधर पूजा कर घर था पर जीप वहा से भी आगे निकल गयी और फिर ऐसी जगह जाके रुकी जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी



“उतरो सरकार ”


मैं गाड़ी से उतरा मुनीम जी के पीछे “यहाँ कहा है जमीन ”


“ये जमीन ही हो है छोटे सरकार ”


मैंने अपने आस पास देखा बेहद अजीब सी जगह थी कई जगह पथरीली सी और कई जगह केवल भूड जगह जगह आकडे के पौधे उगे थे और कुछ विलायती कीकर “यहाँ कैसे होगी खेती काका और होगी भी तो सिंचाई के लिए पानी कहा सी आएगा ”


“राणाजी का हुकम है की आपको इसी जमीन में फसल उगानी है क्या करना कैसे करना वो आपकी जिम्मेदारी है आप अपनी मर्ज़ी से कही भी एक बीघा जमीन नाप लो ”


“पर कैसे यहाँ तो ट्रेक्टर भी नहीं चल्लेगा मैं कैसे करूँगा ”


“ट्रेक्टर तो छोड़ो आपको राणाजी किट तरफ से जोतने को ऊंट या बैल भी भी नहीं मिलेंगे आपको अपने दम पर फसल उगानी है यहाँ ”


“यो तो ना इंसाफी है ”


“मैं तो नौकर हु सरकार जो राणाजी का हुकम मैंने बता दिया ”


“कोई ना काका ये भी देख लेंगे ”


कुछ देर मैंने आस पास का इलाका देखा फिर पूछा “ये जमीन वैसे है किसकी ”


“थारे दादा खेती करते थे कभी यहाँ अब वीरान पड़ी है आओ अब चलते है ”


“आप चलो काका मैं थोड़ी देर रुकुंगा यही”


“पर आप कैसे आयेंगे ”


“आप टेंशन न लो मैं आ जाऊंगा ”


जीप के जाने के बाद मैंने अपना माथा पीट लिया इस अजीबो गरीब जमीन पे क्या उगेगा और कैसे इस से अच्छा तो कोई बंजर टुकड़ा दे देते पर अब क्या करे खैर धुप भी थोड़ी ज्यादा सी थी तो मैं घुमने लगा एक तरफ कुछ गहरे पेड़ थे तो मैं उस तरफ गया तो करीब तीन सौ मीटर दूर मैं मैं गया तो देखा की एक पुराना सा कमरा सा था कुछ कमरा नहीं तो दो तरफ की दिवार थी पुराने पत्थरों और चुने में चिनी हुई



मैंने आस पास देखा तो मुझे एक पुराना कुवा मिल गया मैंने झुक के देखा पानी से लबालब था मेरे होंठो पर मुस्कान आ गयी पर पानी बहुत गन्दा लग रहा था कुवे की दीवारों में जगह जगह कबूतरों के घोंसले बने हुए थे पर कुवा मिल गया ये भी बड़ी बात थी पर यहाँ खेती की जमीन बनाना ही टेढ़ी खीर थी फसल कैसे उगेगी



सोचते सोचते मैं बैठ गया कीकर की छाया में और तभी “धप्प्प ”...................
User avatar
Kamini
Novice User
Posts: 2112
Joined: 12 Jan 2017 13:15

Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

किसी ने मेरी पीठ पर धौल सी जमाई और मैं आगे को गिर पड़ा पीठ में वैसे ही चोट लगी हुई थी तो गुस्सा सा आ गया कुछ कठोर शब्द बोलते हुए मैंने पीछे देखा और पल में ही मेरा गुस्सा गायब सा हो गया मैंने देखा पीछे पूजा मुस्कुरा रही थी



“तुम यहाँ , यहाँ क्या कर रही वो ”


“ढोर चराने निकली थी तो तुमको देखा तुम् बताओ यहाँ कैसे ”


“कुछ नहीं बस ऐसे ही ”


“ऐसे ही कोई कही नहीं जाता और खास कर इन बियाबान में ”


“अब क्या बताऊ पूजा एक आफत सी मोल ले ली है तो उसी सिलसिले में आना पड़ा ” और फिर मैंने पूजा को पूरी बात बता दी



“इस जमीन पर खेती करना तो बहुत ही मुश्किल है कुंदन इसको समतल करने में ही बहुत समय जायेगा तो फसल कब होगी ”


“अब जो भी हो कोशिश तो करूँगा ही वैसे तू कहा चली गयी थी सुबह ”


“काम करने पड़ते है अब तेरी तरह तो हु नहीं ”


“मेरी तरह से क्या मतलब तेरा ”
“कुछ नहीं ”
“तू सारा दिन ऐसे ही घुमती रहती है वो भी अकेले मेरा मतलब ”


“अब कोई है नहीं तो अकेले ही रहूंगी ना और तेरे मतलब की बात ये है की इस इलाके में सब लोग पह्चानते है तो कोई परेशानी नहीं होती और मैं चोधरियो की बेटी हु इतना सामर्थ्य तो है मुझमे ”


“पूजा, पता नहीं क्यों तेरी बातो से ऐसा लगता है की बरसो की पहचान है तुझसे ”


“ऐसा क्यों कुंदन ”


“पता नहीं पर बस लगता है ”


“चल बाते ना बना ढोर दूर चले गए होंगे मैं चलती हु ”


“रुक मैं भी आता हु वैसे भी मुझे अब घर ही जाना है ”


पूजा से बात करते करते हम वहा से चलते चलते उसके घर की तरफ आ गए उसने अपने जानवरों को बाँधा और फिर मैं उसके साथ उस तरफ आ गया जहा पर एक बहुत बड़ा बड का पेड़ था



“कुंदन, ये पेड़ मेरे दादा का लगाया हुआ है ”


“क्या बात कर रहा रही है ”


“सच में ”


“आजा तुझे चाय पिलाती हु ”
मैं और वो घर में उस तरफ आ गए जहा चूल्हा था उसने आग जलाई मैं पास ही बैठ गया थोड़ी देर में ही उसने चाय बना ली एक गिलास में मुझको दी और एक में खुद डाल ली



मैं – पूजा भूख सी लग आई है तो अगर एक रोटी मिल जाती तो



वो- हा, रुक अभी लाती हु



वो एक छाबड़ी सी ली और उसमे से कपडे में लपेटी हुई रोटिया निकाली और एक रोटी मेरे हाथ में रख दी वो रोटी मेरे घर जैसी घी में चुपड़ी हुई नहीं थी पर उसमे जो महक थी वो अलग थी मैंने बस एक निवाला खाया और मैं जान गया की स्वाद किसे कहते है



चाय की चुस्की लेते हुए मेरे होंठो पर एक मुस्कान सी आ गयी थी थोड़ी और बातो के बाद मैंने पूजा से विदा ली और गाँव की तरफ चल पड़ा पर मेरे कंधे झुके हुए थे राणाजी ने अपने बेटे को हराने की तयारी कर ली थी मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी की मैं कैसे उगा पाउँगा फसल इस जमीन पर सोचते विचारते मैं कब घर आ गया पता नहीं चला



मैं चौबारे में जाकर बिस्तर पर लेट गया सांझ ढलने को ही थी मैं सोच विचार में मगन था की भाभी आ गयी हरी सलवार और सफ़ेद सूट में क्या गजब लग रही थी ऊपर से फिटिंग जोरदार होंठो पर लाल सुर्ख लिपस्टिक मांग में सिंदूर हाथो में कई सारी चुडिया जैसे आसमान से कोई सुन्दरी ही उतर आई हो



“आज तो क्या गजब लग रही हो भाभी इतनी भी बिजलिया ना गिराया करो ”


“अच्छा जी मुझे तो कही नहीं दिख रहे झुलसे हुए पता है मैं कब से राह देख रही हु तुम्हारी ”


मैं- क्यों भाभी



भाभी- अरे आज, वो पीर साहब की मजार पर दिया जलाने चलना है तू भूल गया क्या



मैं-ओह आज जुम्में की शाम है क्या



भाभी- तुझे इतना भी याद नहीं क्या



जुम्मे की शाम तभी मुझे कुछ याद आया उसने कहा था की वो जुम्मे की शाम पीर साहब की मजार पर जाती है तो मैं एक दम से उछल सा पड़ा “भाभी एक मिनट रुको मैं अभी आता हु ”


मैंने जल्दी से अपने नए वाले कपडे पहने और बालो में कंघी मार कर भाभी के सामने तैयार था
भाभी- हम मजार पे ही जा रहे है न सजे तो ऐसे हो की तुम्हारे लिए बिन्द्नी देखने जा रहे है



मैं- क्या भाभी आप भी आओ देर हो रही है



चूँकि भाभी साथ थी तो मैंने जीप स्टार्ट की और फिर चल दिए पीर साहब की तरफ जो की गाँव की बनी में थी हम जल्दी ही वहा पहुच गए भाभी दिया जलाने को अन्दर चली गयी मैं रुक गया दरअसल मेरी आँखे बस तलाशने लगी उसको जिससे मिलने की बहुत आस थी और जो दूर से देखा जो उसे दिल झूम सा गया सफ़ेद सूट सलवार में सर पर हमेशा की तरह ओढा हुआ वो सलीकेदार दुपट्टा



होंठ उसके हलके हलके कांप रहे थे जैसे की खुद से बाते कर रही हो मैंने सर पर कपडा बाँधा और उसकी तरफ चल पड़ा फेरी लगा रही थी वो और जल्दी ही आमना सामना हुआ उस से जिसकी एक झलक के लिए हम कुर्बान तक हो जाने को मंजूर थे नजरो को झुका कर सबसे नजरे बचा कर उसने इस्तकबाल किया हमारा तो हमने भी हलके से मुस्कुरा कर जवाब दिया



सुना तो बहुत था की बातो के लिए जुबान का होना जरुरी नहीं पर समझ आज आया था की क्यों फेरी लगाते हुए बार बार आमने सामने आये हम फिर वो बढ़ गयी धागा बाँधने को तो मैं उसके पास खड़ा हो गया पर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई वो बहुत धीमे से बोली “”परिंदों के दाना खाने पे “ और उस तरफबढ़ गयी



मैं दो पल रुका और फिर चला तो देखा की वो अकेली ही थी उस तरफ बिखरे दानो को समेट रही थी तो मैं भी समेटने लगा



वो- आज आये क्यों नहीं



मैं- जी वो कुछ कम हो गया था



वो- हम राह देख रहे थे आपकी



मैं- वो क्यों भला



वो- बस उसी तरह जैसे आप आते जाते हमारे छज्जे को तकते है



मैं- वो तो बस ऐसे ही



वो- तो हम भी बस ऐसे ही



और हम दोनों मुस्कुरा पड़े , कसम से उसको ऐसे हँसते देखा तो ऐसे लगा की जैसे दुनिया कही है तो यही है



वो- आप ऐसे बार बार हमारी कक्षा में चक्कर ना लगाया करे हमारी सहेलिया मजाक उड़ा रही थी



मैं- पता नहीं मेरा मन बार बार क्यों ले जाता है उस और



वो- मन तो बावरा है उसकी ना सुना करे



मैं- तो आप ही बता दे किसकी सुनु



वो मेरे पास आई और बोली- किसी की भी नहीं



मैं- एक बात कहू



वो- हां,



मैं- क्या आपको भी कुछ ऐसा ही महसूस होता है



वो- कैसा जनाब



मैं- जो मुझे महसूस होता है



वो- मैं जैसे जानू, आपको क्या महसूस होता है



मैं- वो मुझे वो मुझे पर . बात अधूरी ही रह गयी



“तो यहाँ हो तुम ....................... ”
Post Reply