नजर का खोट complete

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shubhs
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Re: नजर का खोट

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ईश्वर जाने
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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Kamini
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Re: नजर का खोट

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shubhs wrote:ईश्वर जाने
ya ap jane
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Kamini
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Re: नजर का खोट

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पूजा- क्या तुम जल्दी नहीं कर रहे हो मेरा मतलब मेनका उनके लिए बेहद निजी विषय है

मैं- पर इन सब में मैं उलझ गया हूं पूजा और मैं इन सब से दूर जीना चाहता हु बस तुम्हारे साथ ,बीते कुछ महीनों में मैं मानसिक रूप से बहुत टूट चुका हूं हर रिश्ते के मुखोटे को उतरते हुए देखा है पर अब नहीं

पूजा ने मेरा हाथ थाम लिया और बोली- मुझे भी कुछ बात करनी है तुमसे

मैं- क्या

वो- दो पल गले लगालो मुझे

मैंने गाडी रोकी और उसकी तरफ देखते हुए बोला- क्या बात है

पूजा बस चुपचाप मेरे गले लग गयी और जैसे दुनिया ठहर सी गयी मैं बस उसकी पीठ थपथपाता रहा

पूजा- समय नजदीक है कुंदन

मैं- किस चीज़ का

वो- जब तेरे मेरे फेरे होंगे, जब मैं दुल्हन के जोडे में तेरे सामने आउंगी मेरा ये ख्वाब पूरा करेगा ना

मैं- कोई शक है तुझे

वो- एक तुझ पर ही तो भरोसा है मुझे

मैं- फेरे लेने है ना तुझे, बता कब लेगी जब जिस पल तू कहेगी तभी मैं तैयार हूं

पूजा- तीन दिन बाद करवा चौथ का व्रत है उस रात को

मैं- कहाँ न जब तू चाहे और कुछ

वो- कुछ नही मैं- तो मुद्दे की बात करते है

वो- दो दोस्त जो एक दूसरे की जान के प्यासे बन जाते है आखिर क्या वजह होगी

मैं- पता नहीं पर बात जो भी रही होगी कुछ ऐसा हुआ होगा जो दोनों मजबूर हो गए हो

पूजा- सवाल पे सवाल है जिस भी तरफ देखो

मैं- तुम्हारी माँ की मौत कैसे हुई बता सकती हो

पूजा - मैं तब छोटी थी लोग कहते है कि हादसा था कोई कहता है कि आत्महत्या थी पर मैं नहीं मानती

मैं- देखो जिसे हम अपनी दास्ताँ समझ रहे है वो दरअसल हमारी नहीं बल्कि चार लोगो की कहानी है जिसमे हमे हमारी तक़दीर ने जोड़ा है

पूजा- समझ रही हु इस कहानी के चार पात्र है हमारे पिता माँ और मेनका

मैं- जो भी था इनके ही बीच हुआ

पूजा- ये सब कैसे पता करे

मैं- अतीत को खंगालने की कोशिश कर रहे है

पूजा- चार में से तीन लोग रहे नहीं बचे सिर्फ तुम्हारे पिता और उनसे कुछ भी उगलवाना टेढ़ी खीर है

मैं- एक उपाय है अगर काम कर गया तो

पूजा- क्या

मैं- है कुछ

वो- तूने कुछ सोचा है तो ठीक ही सोचा होगा

मैं- राणाजी बहुत घाघ है अब इतनी आसानी से कुछ नहीं बताएँगे पर एक बात बता, तू तेरे चाचा से बात कब करेगी

वो- किस बारे में

मैं- तेरे हिस्से के बारे में



वो- मेरा हिस्सा बस तू है , तुझे पा लिया अब किसी और की चाहत नहीं पर मैंने तुझे वचन दिया है कि तुझे मेरे साथ अर्जुनगढ़ जरूर ले जाउंगी, तेरे मेरे विवाहित जीवन की पहली रात उसी हवेली में गुजरेगी जब मैं खुद को तुझे सौंप दूंगी

मैं- सब पहले ही सोच रखा है तूने

वो- अब तेरी इतनी हसरत भी पूरी ना कर सकी तो क्या फायदा मेरे होने का

मैं- इसी बात पे थोड़ा प्यार करे

पूजा- यही गाडी में

मैं- चलती गाड़ी में मजा आएगा

पूजा- देख ले कही दे मत मारियो गाड़ी को दाए बाये

मैं- डर लगता है मरने से

पूजा- नहीं पगले,

पूजा ने हाथ आगे बढ़ा कर मेरी चेन खोली और मेरे लण्ड को बाहर निकाल लिया उसकी नर्म उंगलियो को महसूस करते ही बदन में एक रूमानी अहसास होने लगा

कुछ देर वो बस उसे सहलाती रही और फिर उसने अपने चेहरे को मेरी टांगो पर झुका लिया उसके नर्म रसीले होंठो का स्पर्श मेरे सुपाड़े पर आते ही मेरे तन बदन में जैसे आग लग गयी और पूजा ने भी जुल्म करते हुए अपने दांत मेरे सुपाड़े की खाल में धँसा दिए

मैं- मत करना

वो- क्यों क्या हुआ, अभी तो कुछ और बोल रहे थे

मैं- बर्दाश्त नहीं होती तेरे लबो की गर्मी

पूजा- आदत डाल लो सरकार

थूक में लिपटी उसकी जीभ का जादू मेरे बदन को कामुकता की ऊंचाइयों की तरफ ले जा रहा था मेरी आँखों में उन्माद छाने लगा था स्टेयरिंग पर पकड़ कमजोर होने लगी थी

वैसे हम लाल मंदिर से कुछ ही दूर थे , इधर पूजा के होंठो का दवाब मेरे लण्ड पर बढ़ते ही जा रहा था मस्ती में हिचकोले खाते हुए मैंने गाडी की रफ्तार थोड़ी सी और बढ़ा दी की तभी मेरी नजर जगन ठाकुर और मंदिर के पुजारी पर पड़ी वो लोग हमसे थोड़ी दूरी पर ही थे मैंने ब्रेक लगा दिये

पूजा- क्या हुआ

मैं उसे हटाते हुए- इसे छोड़ और सामने देख तेरा चाचा मंदिर के पुजारी के साथ है

पूजा- ये यहाँ क्या कर रहा है

मैं- देखते है

पर कुछ ही देर में जगन चला गया और पुजारी पैदल ही मंदिर की ओर जाने लगा मैंने गाड़ी भगाई और उसके पास रोकी

मैं- रामराम पंडित जी

पंडित- अरे छोटे ठाकुर आप इस तरफ

मैं- मनाही है क्या

पंडित- नहीं जी ऐसी बात नहीं

पूजा- पंडित जी, घुमा फिरा के नहीं पूछूँगी और जवाब भी सीधा लुंगी
पंडित ने हाँ में सर हिलाया

पूजा- जगन ठाकुर किसलिए मिलने आया था आपसे

पंडित- वो चाहता है कि मैं उसकी बेटी की ऐसी कुंडली बनाऊ जिसमे से उसके और छोटे ठाकुर के सारे गुण मिल जाये और विवाह का भी अति शीघ्र मुहूर्त निकालू

पूजा- तो तुमने क्या जवाब दिया

पंडित- जी अब ठाकुर साहब का दवाब है तो ना तो नहीं कह सकता ना

पूजा- और अगर मैं अभी इसी समय तेरी जिंदगी का मुहूर्त बदल दू तो

मैं- गुस्सा नहीं , मैं बात करता हु, हाँ तो पंडित जी बात ये है कि आपको इस झमेले से दूर रहना है चाहे जगन का दवाब हो या राणाजी का आपको बस हमारा कहा करना है

पंडित- आप लोग आपस में ही सुलटा लो ना मैं तो हर तरफ से मरूँगा

पूजा- उनका तो पता नहीं पर अगर मुझे पता चला की विवाह मुहूर्त निकला है तो तेरी अर्थी का जुगाड़ मैं करुँगी समझ ले

पूजा ने जिस तरह से पंडित को धमकी दी थी मेरे मन ने उसी पल चेतावनी दे दी की कुछ अनिष्ट होने वाला है दूर कही रोते मोर भी शायद यही संकेत दे रहे थे

जिंदगी में पहली बार मैंने पूजा की आँखों में कुछ अलग सा देखा था जिस तरीके से उसने पंडित को धमकाया था मुझे लगा ही नहीं था की वो मेरी पूजा है , मेरी पूजा बेहद शांत और समझदार थी और उसका यु बौखलाना सा मुझे समझ नही आया जबकि उसे पहले से ही पता था की ये सब बात चल रही है , खैर मैं बस खिड़की की तरफ देख रहा था गाड़ी वो चला रही थी.

ये जो कभी कभी ख़ामोशी सी होती थी हमारे बीच ये मुझे गुस्सा दिलाती थी ना वो कुछ कह रही थी ना मैं कुछ कह रहा था पता नहीं कब रास्ता कट गया और हम उसके घर पहुच गए मैं गाड़ी उसे ही रखने को कहा और मैं अपनी झोपडी की तरफ चल दिया वहा जाके देखा तो चाची बैठी थी .

मैं- चाची कब आई

चाची- मैं तो दोपहर से ही तेरी बाट जोह रही हु पर तू ही आजकल महंगा हो गया है

मैं- कुछ काम से बाहर था और बताओ

चाची- बस तेरी याद आ रही थी तो मिलने आ गयी

मैं- अच्छा किया मैं भी सोच रहा था की चाची से मिलु

चाची- कुंदन तू कुछ ऐसा तो नहीं कर रहा ना जिससे राणाजी नाराज हो

मैं- ये पूछने आई हो

चाची- नहीं, पर ना जाने क्यों मुझे कुछ ठीक नहीं लगता है

मैं- मैं तो बस जीने की कोशिश कर रहा हु

चाची- तेरे चाचा की खबर आई है जल्दी ही लौटेंगे वो

मैं- बढ़िया, तब तो मौज हो जाएगी

वो- मौज तो अब भी है बस तू ही देखता नहीं मेरी तरफ

मैं- आज रुको फिर मेरे पास सारी शिकायते दूर कर दूंगा

चाची- तू कहेगा तो रुक जाती हु पर एक बात और करनी है

मैं- बताओ

चाची- तू जगन सिंह की लड़की से शादी करेगा क्या

मैं- नहीं

चाची- पर राणाजी ने जुबान दी है

मैं- मैंने तो नहीं दी ना

वो- बाप की पगड़ी उच्लेगी कुंदन

मैं- चाची, इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता मैं

चाची- कोई बात नहीं

चाची ने मेरा हाथ अपनी चुचियो पर रख दिया और मेरे पास सरक गयी मैंने भी कई दिन से चूत नहीं मारी थी तो सोचा की थोडा मजा कर लेता हु,जैसे ही मैंने चाची की चुचियो को मसलना शुरू किया चाची लिपट गयी मुझसे जैसे पता नहीं कबकी प्यासी हो हमारे होंठ एक होने लगे उसके बदन की जानी पहचानी खुशबु मुझे उत्तेजित करने लगी

धीरे धीरे चाची के बदन के कपडे कम होते जा रहे थे और जल्दी ही वो पूरी नंगी मेरी आँखों के सामने थी चाची ने बड़ी अदा से अपने पैरो क फैलाया और अपनी बिना बालो की चूत को हाथ से रगड़ते हुए मुझे दिखाने लगी मैं भी अपने कपडे उतारने लगा


चाची- कुंदन बड़ी आग लगी है रे आज तोड़ दे मुझे दब के रगड डाल मुझे

मैं- चाची तू हर समय प्यासी ही रहती है

चाची- क्या करू मैं बिना चुदे रहा ही नहीं जाता

मैं- अपने जेठ को बोला कर

चाची- मुझे तो तेरे हथियार की प्यास है

चाची पलंग पर चढ़ कर घोड़ी बन गयी और अपनी गांड हिलाने लगी , उसकी मदमस्त गांड को देखते ही मेरे गले का पानी सूखने लगा , चाची की गांड पर तो मैं हमेशा से ही फ़िदा रहा था मैंने चाची की चूत पर पप्पी ली और फिर अपने लंड पर थोडा सा थूक लगाते हुए सुपाडे को सटा दिया

चाची- ओह कुंदन! जल्दी से डाल दे अन्दर

मैं- इतनी भी क्या जल्दी है मेरी रानी आज अब पूरी रात तुझे चुदना ही है

मैंने चाची के चूतडो पर हाथ रखे और लंड अन्दर सरकाने लगा चाची ने भी अपनी गांड को पीछे किया और उसके गोरे चूतडो पर मेरी पकड़ मजबूत होने लगी, जल्दी ही झोपडी में थप्प थप्प की आवाज गूंजने लगी और साथ ही चाची की गर्म सिस्कारिया

मैं- चाची, तेरे जैसी चूत कीसी की नहीं है इसकी गर्मी की बात ही अलग है

चाची- फिर भी तू मेरी तरफ देखता नहीं है

मैं- आज तेरी सारी शिकायत दूर कर देता हु आज पूरी रात तुझे लंड पे बिठाऊंगा मेरी रानी

चाची- बिठा ले , बहुत खुजली मची है इसको आज सारी खुजली मिटा दे इसकी , अआहा थोडा धीरे ..

मैंने अपने हाथ चाची की चुचियो पर रखे और उसके अगले हिस्से को थोडा सा ऊपर उठा लिया जिससे उसके चुतड निचे हो गए और अब अपने बोबो को मसल्वाते हुए चुदाई का पूरा लुत्फ़ उठा रही थी वो चूत की चिकनाई से लथपथ मेरा लंड गरम चूत में दबा के घर्षण कर रहा था चाची भी बार बार अपनी गांड को पीछे पटक रही थी मस्ती में चूर दो बदन चुदाई के सुख को भोग रहे थे

अब मैंने चाची को लिटा दिया और उसके ऊपर आ गया चाची ने अपनी टांगे उठा कर मेरे कंधो पर रख दी और खुद अपनी छातियो को मसलते हुए चुदने लगी , धीरे धीरे हम पर खुमारी छाती जा रही थी चाची की रसीली चूत और भरपूर यौवन मेरे लंड का मजा ले रहा था चाची की आँखे मस्ती के मारे बंद हो चुकी थी मेरे धक्के लगातार उसको झडने के करीब ले जा रहे थे

तभी चाची ने अपने पैर मेरे कंधो से हटा लिए और मुझे पूरी तरह से अपने ऊपर खीच लिया, एक बार फिर से हम लोगो के होंठ आपस में कैद हो गए थे चाची का बदन बार बार अकड़ कर संकेत दे रहा था और कुछ ही पलो बाद चाची झड़ने लगी मेरा लंड उसके रस कीगर्म बौछर में नाहा गया और साथ ही मेरा पानी भी गिर गया अपनी सांसो को संभालते हुए मैं उसके ऊपर ही गिर गया .

कुछ देर हम बस पड़े रहे, फिर वो मेरे बगल में आ गयी

मैं- एक बात कहू

वो-हाँ

मैं- कविता जीजी का पता चाहिए लन्दन का मुझे

चाची- क्यों

मैं- कितने बरस हुए वो एक बार भी मिलने ना आई , नकाभी कोई चिट्ठी न कोई तार वो हमे भूल गयी पर मुझे जीजी की याद आती है सोचता हु एक चिट्ठी लिख दू और फिर मिलने भी चला जाऊ

चाची- याद तो मुझे भी उसकी आती है पर वो तो जैसे हम सबको भूल ही गयी है गयी तो पढने थी पर फिर लौट के आई ही नहीं कहती थी इस घर में दम घुटता है उसका

मैं- पता तो होगा उसका

चाची- मेरे पास तो नहीं पर राणाजी के पास जरुर होगा

मैं- कल पता करता हु तब तक जरा इसे संभालो

मैंने चाची के हाथ में अपना लंड दे दिया और खुद उसकी चुचियो को पीने लगा आज की रात मैं बस चाची के साथ ही मजे करना चाहता था पर शायद अपना नसीब इसकी इजाजत नहीं देता था लंड में दुबारा तनाव आना शुरु हुआ ही था की एक तेज चीख ने जैसे कानो के परदे ही फाड दिए
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shubhs
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Re: नजर का खोट

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अब क्या हुआ
सबका साथ सबका विकास।
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Kamini
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Re: नजर का खोट

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चीख बेशक किसी इंसान की थी पर जिस तरह से वो चीख रहा था लगा की जैसे किसी पशु को काटा जा रहा हो एक पल में ही बदन पसीने पसीने हो गया , मैंने चाची को परे धकेला और अपने कपडे पहनते हुए बाहर आया पर अब चारो तरफ अँधेरे में घोर सन्नाटा पसरा हुआ था , ख़ामोशी ऐसी की मैं अपनी सांसो की आवाज दूर से भी सुन सकता था .

“क्या हुआ कुंदन,” चाची ने हाँफते हुए कहा

मैं- पता नहीं पर कोई तो चीखा था

चाची- मैं टोर्च लाती हु

जैसे ही चाची टोर्च लेके आई हम आस पास देखने लगे और फिर कुछ ऐसा मंजर देखा मैंने की रीढ़ की हड्डी तक सिहर गयी मेरे खेत के डोले पर ठाकुर जगन सिंह का कटा हुआ सर पड़ा था आँखे जैसे बाहर को ही आ निकली थी पूरी तरह गर्म खून में सना हुआ चाची की तो घिग्घी ही बांध गयी ऐसा हाल देख कर पर अब इतनी रात को वो कही और जा भी तो नहीं सकती थी .

जगन सिंह का कटा हुआ सर मेरी जमीन पर मिलना टेंशन वाली बात थी मुझे अपनी फ़िक्र नहीं थी पर इससे दोनों गाँवों के हालत बिगड़ जाने थे , अब ऐसे कटे हुए सर को देख कर एक बार तो मैं भी सिहर गया था, मैं ही क्या अच्छे से अच्छे जिगर वाले भी घबरा जाए तभी मुझे कुछ सुझा चीख यही से आई थी तो इसको यही मारा गया है.

मैंने बाकि की धड की तलाश शुरू की तो कुछ ही दुरी पर मुझे खूब टुकड़े मिले बड़ी बेरहमी दिखाई थी कातिल ने जैसे कोई पुराणी खुन्नस निकाली हो, खून ताज़ा हुआ था एक बात तो साफ़ थी की कातिल ज्यादा दूर नहीं गया होगा पर इस खुली जगह और अँधेरे में वो किसी भी दिशा में जा सकता था , कभी मैं जगन सिंह के शारीर के टुकडो को देखता तो कभी उसके सर को जिसकी आँखे जैसे मुझे ही घुर रही हो.

चाची- कुंदन तुम्हारे तो लग गए, अब एक ही रास्ता है की सुबह होने से पहले इस लाश को ठिकाने लगा दो , अगर लोगो को मालूम हुआ की जगन सिंह का खून यहाँ हुआ है तो ये ठीक नहीं होगा.

मैं- बात तो सही है चाची पर बात ज्यादा दिन छुपेगी नहीं.

चाची- बाद की बाद में देखना, कल को लाश तुम्हारी जमीन पर मिलेगी तो सबसे पहले सवालो के घेरे में तुम आओगे

मैं- उसकी फ़िक्र नहीं है चाची, पर दोनों गाँवो में तनाव हो जायेगा वैसे ही मैंने थोड़ी ना मारा है इसको .

चाची- मैं जानती हु पर दुनिया

मैं- दुनिया की किसे पड़ी है

चाची- मेरी बात मान कुंदन, इतनी बड़ी जगह है कही भी गाड दे इसको

मैं- एक मिनट, देखो इसके कातिल की तलाश तो करनी ही होगी उससे पहले सवाल ये है की आखिर इस वक़्त ये अर्जुन्गढ़ से इतनी दूर अकेला कर क्या रहा था और वो भी पैदल .

चाची- जासूस बाद में बन लेना मेरी बात मान पहले तू मामले की गंभीरता को समझ नहीं रहा है, अर्जुन गढ़ के ठाकुर की लाश देव गढ़ के ठाकुर की जमीन पर मिलना मामूली बात नहीं है , तलवारे खींच जाएँगी और खून की नदिया बह जाएँगी , लाश मिलने और गायब होने में फरक होता है कुंदन.

चाची की बात सोलह आने सच थी पर ये साला कौन था जो इस मुसीबत को मुझे चिपका गया था इतना तो पक्का था की जगन सिंह की मौत सुनियोजित तरीके से की गयी थी और कातिल कोई करीबी था , जिसके साथ वो अकेला ही चला आया था चाची की बात मान लेने में ही मुझे फायदा लगा और कुवे के पीछे जो जगह पूजा ने साफ़ की थी वहा पर मैंने लाश के टुकडो को गाड दिया.


पर काम अभी खतम नहीं हुआ था बल्कि बढ़ गया था आखिर कौन होगा और जो भी था उसे ये जरुर पता होगा की मैं झोपडी में हु और जिस तरीके से उसने बदन के टुकड़े किये थे ये बात मुझे खटक गयी थी घुप्प अँधेरे में मैं कुवे की मुंडेर पर बैठा गहरी सोच में डूबा था, ये क्या स्यापा आ गया था जिन्दगी ने जैसे सोच ही ली थी की कुंदन की ही मारनी है हर पल.

बेशक लाश को छुपा दिया था पर बात नहीं छुप्नी थी एक एक सेकंड भारी हो रहा था आखिर इतनी बेरहमी और इतनी जल्दी कौन मान सकता था इसको और सबसे जरुरी बात इतनी बड़ी दुनिया थी फिर मेरी चौखट पर ही क्यों क्या कोई मुझे फ़साना चाहता था या फिर बस इतिफाक ही था पर जो भी था मेरे लिए परेशानी बढ़ गयी थी, सुबह हलके अँधेरे में ही मैं चाची को हमारे कुवे तक छोड़ने गया .

जब तक मैं वापिस आया तो भोर हो गयी थी दिन हल्का हल्का निकल आया था मैं खेत में आया और अब पूरी जगह का अवलोकन करने लगा , जगन का खून कई जगह पर बिखरा था अब उसको साफ़ करना जरुरी था पर तरीका कैसे क्या हो समझ नहीं आ रहा था मैं घूमते घूमते उस जगह पर आ गया जहा से चार रस्ते अलग अलग दिशाओ में जाते थे एक देवगढ़ और अर्जुन्गढ़ की तरफ और एक पूजा के घर की तरफ और मेरी जमीन की तरफ और उस चौराहे के बीच में खड़ा था मैं .

तभी जैसे किसी चीज़ की चमक पड़ी मुझ पर तो मैंने देखा देखा और कसम से मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हु आखिर ये यहाँ कैसे हो सकती थी इसको मैं हज़ारो में भी पहचान सकता था ये ठाकुर अर्जुन सिंह की तलवार थी मैं दौड़ते हुए उस तक पंहुचा , तलवार को फेंका नहीं गया था बल्कि इस तरह जमीन में धंसाया गया था की नोक धरती में और बाकि हिस्स शान से ऊपर खड़ा था कायदे से तलवार को लाल मंदिर के मैदान में होना चाहिए था क्योंकि बरसो से इसकी जगह वही पर थी हैरत से मुह खोले मैं मामले को समझने की कोशिश कर ही रहा था की तभी मुझे मिटटी में कुछ गिरा हुआ दिखा

और जैसे ही मैंने वो चीज़ उठाई एक पल को मुझे कुछ भी समझ नहीं आया आँखों की बात दिल ने मानने से इनकार कर दिया मेरे एक हाथ में तलवार थी और दुसरे में.........................................................
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