नजर का खोट complete

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Kamini
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Re: नजर का खोट

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मेरे दिमाग में जैसे धमाका हुआ मेरे अंतर्मन में जैसे हलचल मच गयी मैं जल्दी से वापिस हुआ और उस बैग को अपने कांपते हुए हाथो से खोला और जैसा की मैं मन ही मन दुआ कर रहा था कि ये वो चीज़ न हो,

पर हमेशा की तरह ये दुआ भी कहा कबूल होनी थी मेरी आँखे साफ़ साफ़ उस चीज़ को देख रही थी जिसे शायद यहाँ नहीं होना चाहिए था बल्कि यहाँ क्या उस देश में ही नहीं होना चाहिए था ,

मेरे हाथों में कविता जीजी का पासपोर्ट था , या मैं यु कहु की ये पासपोर्ट नहीं था बल्कि ये हमारे परिवार के ताबूत में शायद अंतिम कील था मैंने उस पुराने हो चुके पासपोर्ट को उलट पलट कर देखा ,

उसकी हालत कुछ खस्ता सी थी पर ये साफ़ पता चलता था की जीजी ने कभी भी इसके जरिये कोई यात्रा नहीं की थी , पर अब यक्ष प्रश्न मेरे सामने था की अगर जीजी कभी देश से बाहर गयी ही नहीं तो फिर वो कहा है ,

मैं पासपोर्ट को बड़े गौर से देखते हुए गहन सोच में डूब गया था कि भाभी की आवाज सुनी

भाभी- अब कहा रह गये देवरजी , आ जाओ

मैं- हां, आता हूं भाभी

मैंने पासपोर्ट अपनी जेब में डाला और बाहर निकल आया पर दिमाग अब हद से ज्यादा खराब हो गया था जीजी मैं बहुत छोटा था तब से ही विदेश चली गयी ये ही सुनता आया था मैं दिल तड़प गया था अपनी बहन को देखने को अपनी बहन को गले लगाने को,
अपने आप से जूझते हुए मैं बाहर आके बैठ गया कुछ देर में भाभी चाय ले आयी और मेरे पास ही बैठ गयी

भाभी- क्या सोच रहे हो

मैं- भाभी मैं जीजी के पास जाना चाहता हु

भाभी- उसमे क्या है राणाजी से ले लो उनका पता और मिल आओ

मैं- हाँ,

मैंने भाभी की आँखों में एक गहरायी देखि जब उन्होने ये बात कही , कही न कही मैं समझ गया कि भाभी को भी पता होगा की जीजी कभी देश से बाहर गयी ही नहीं तो बात एक बार फिर से घूम फिर कर वही आ गयी की जीजी है तो कहा है

इधर चाय की चुस्कियां लेते हुए भाभी की नजरें बराबर मुझ पर जमी हुई थी जैसे की स्कैनिंग कर रही हो मेरी, पर मैंने एक बात पे बहुत गौर किया दरसअल मैं अब तक इस सारे घटनाक्रम को खुद के जीवन का हिस्सा मान रहा था पर सच्चाई ये थी की मेरे घर के हर एक इंसान अपने आप में कहानी था और हम रिश्तो की ड़ोर से आपस में जुड़े थे,

तो क्या जीजी की भी कोई कहानी रही होगी ,हां शायद,

मैं- भाभी आप कह रही थी की पीहर जाओगी

भाभी- सोच तो रही हु बस थोड़ी सी फुर्सत आ जाये तो

मैं- फुर्सत ही है, कहो तो कल चले मैं भी घूम आऊंगा

भाभी- विचार करती हु

मैं- राणाजी वैसे किस मित्र से मिलने गए है

भाभी- वो तो मुझे नहीं पता

मैं- झूठ तो नहीं बोल रही

भाभी- सच सुनना चाहते हो तो सीधे प्रश्न करो, बातो को घुमाना क्या

मैं- ये भी सही है, तो बताओ की भाई की घडी अर्जुनगढ़ के रास्ते पर क्या कर रही थी

भाभी- मैं जवाब दे चुकी हूं पहले और बातो को दोहराने की आदत नहीं मेरी

मैं- क्या ये अजीब नहीं लगता की एक मरे हुए इंसान की घड़ी ,वो घड़ी जो उसे सबसे प्यारी थी कही ओर मिलती है, और घर में उसका सामान भी नहीं मिलता और कहा गया किसी को पता नहीं चलता ,

इस घर में हर कोई चोर है और सबने साहूकारी का नकाब ओढ़ रखा है और मेरी समझ में ये नहीं आ रहा की आखिर क्यों, अब ऐसा भी क्या है कि हर कोई बस अपने आप में जीता है,

भाभी- मानती हूं हमाम में हम सब नँगे है, पर कुंदन तुम चाहो तो आराम से सुकून की ज़िंदगी जी सकते हो

मैं- सच में भाभी

भाभी- बिलकुल, क्या पहले तुम मौज से नहीं रहते थे

मैं- तब मुझे कुछ भी नहीं पता था भाभी

भाभी- तुम्हे अब भी कुछ नहीं पता

मैं- तो बताती क्यों नहीं

भाभी- क्या बताऊँ तुम्हे

मैं- वही राज जो सब छुपा रहे है

भाभी- आँखे खोल कर देखो कोई राज़ है ही नहीं

मैं- तो इतनी बेताबी किसलिए

भाभी- मोह माया

मैं- किसकी

भाभी- प्रेम ,

मैं- किसका प्रेम

भाभी- मेरा, तुम्हारा, हम सबका

मैं- पहेलिया क्यों बुझाती हो

भाभी- महाभारत पढ़ी है कभी, एक चक्रव्यूह था उसमें एक हम सबकी ज़िन्दगी में है एक अभिमन्यु था वो जो अंतिम द्वार पार न कर सका, एक अभिमन्यु तुम हो

मैं- समझा नहीं

भाभी- यही तो कमी है तुम्हारी कुछ समय के लिए दिल को भूल जाओ और दिमाग को लगाओ विचार करो कही तुम बस किसी की कठपुतली तो नहीं बन गए हो

मैं- किस्मे इतना सामर्थ्य जो कुंदन को इशारे पे नचा सके

भाभी- अक्सर सामर्थ्यवान मर्दो को मैंने ढेर होते देखा है

मैं- आप सब जानती है ना

भाभी- इसका जवाब देने की जरुरत नहीं मुझे क्योंकि इससे सच में ही कोई फर्क पड़ता नहीं है पर इतना अवश्य कहूँगी की एक बार फिर से इतिहास जरूर दोहराया जायेगा एक बार फिर से प्रेम की कसौटी होगी और प्रीत की आजमाइश होगी बाकि रक्त तब भी था नादिया इस बार भी बहेंगी

मैं- साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहती हो

भाभी- क्या कहूं साफ़ साफ़ वो जो तुम सुनना चाहते हो या फिर वो जो मैंने महसूस किया है

मैं- क्या महसूस किया है आपने

भाभी- दर्द, द्वेष, घृणा, तड़प और प्रेम , वो प्रेम जिसकी छाया को लोग तरसते रहते है

मैं- हारने लगा हु भाभी थाम क्यों नहीं लेती हो आखिर क्यों पनाह नहीं देती हो

भाभी- क्योंकि मोहब्बत भी अपनी और नफरते भी अपनी, अब क्या फर्क पड़ता है जब कातिल भी हम और क़त्ल होने वाले भी हम

मैं- एक सवाल और पूछुंगा और आप इंकार नहीं करेंगी है ना,

भाभी बिना पलके झपकाये मुझे घूरती रही

मैं- ठाकुर जगन सिंह और लाल मंदिर के पुजारी को किसने मारा
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Kautilay
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Re: नजर का खोट

Post by Kautilay »

Amazing......Mysterious story......
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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

Kautilay wrote:Amazing......Mysterious story......
thank you sooooo much
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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

भाभी- ये क्या कह रहे हो तुम

मैं- वही, जो आपके कानो ने सुना

भाभी- पर ऐसा कैसे हो सकता है

मैं- क्यों नहीं हो सकता है

भाभी- तुम नहीं समझ रहे हो जगन सिंह की मौत का शक सीधा अपने परिवार पर आएगा और दोनों गाँवो को झुलसते देर न लगेगी

मैं- गांव वालों को बड़ी चिंता है पर अपने घरवालों की नहीं,

भाभी- कहना क्या चाहते हो

मैं- यही की आप ढोंग करती हो की इस घर के लिए ये करती हो वो करती हो असल में आपको जरा भी फ़िक्र नहीं है इस घर की और ना इस घर में रहने वालों की

भाभी- यदि ऐसा है तो क्यों हो मेरे पास जाओ निकल जाओ

मैं- निकल तो चूका हूँ इस घर से पर कुछ सवाल बल्कि खोज है मेरी

भाभी- तो हर बार घूम फिर कर मुझ पर ही क्यों आ जाते हो तुम

मैं- क्योंकि भरोसा है आप पर

भाभी- झूठ, झूठ कहते हो तुम, क्योंकि तुम डरते हो असल में , चाहे तुम कितनी भी बाते बना लो पर कुंदन ठाकुर असल में तुम्हारी हैसियत एक कायर से ज्यादा कुछ नहीं है जो मुझ पर भी ठीक से जोर नहीं चला पाता , अगर दम है तो पकड़ लो गिरेबां राणाजी का और पूछ लो

भाभी की आँखों में मैंने एक बार फिर से वो ही अजीब सी चमक देखि मैंने,

मैं- पूछुंगा उनसे भी पूछुंगा बस एक बार सहर से आ जाये वो

भाभी- नहीं तब भी तुम दुबक जाओगे क्योंकि आज तक तुम जिए ही हो दुसरो के साए तले अपने आप से क्या उखाड़ लिया तुमने कुछ नहीं, कुछ भी नहीं , दबंग बाहुबली राणाजी के बेटे और राक्षष इंद्रर के भाई के अलावा औकात ही क्या है तुम्हारी इस घर में, एक नौकर की भी ऊँची हैसियत है तुमसे

भाभी के शब्द रूपी बाण मेरे अंतर्मन को बुरी तरह से घायल कर गए पर इसी यथार्थ से तो भाग रहा था मैं,

भाभी- मुझे समझ नहीं आता की आखिर हर बार मेरे सामने आकर खड़े क्यों हो जाते हो किसी भिखारी की तरह , अरे दम है तो अपने बाप से सवाल करो, ले दे कर मुझ पर जोर चलाने में मर्दानगी समझते है

मैं- ज्यादा हो रहा है भाभी

भाभी- अजी छोड़िये, क्या कम क्या ज्यादा तुम्हे क्या लगता है की मुझे हर राज़ का पता होगा कुछ सुनी सुनाई बाते है तुम्हे क्या बता दी ऊँगली पकड़ कर पहुँचा पकड़ लिया और ऊपर से अकड़, इन्दर की घडी , अरे नहीं है उसका सामान स्टोर में कभी रखा ही नहीं गया तो क्या घंटा मिलेगा तुम्हे,

तीस मार खान बने फिरते है , इनके खेत में कोई क़त्ल कर जाता है और फिर लाश भी गायब हो जाती है इनकी नाक के ठीक नीचे से पर ये कुछ नहीं कर पाते पर मर्दानगी देखिये मुझ पर जोर पूरा है

मैं- आपको कैसे पता ये सब

भाभी- क्योंकि हम ठकुराइन जसप्रीत है ,

मैं- कही आपने ही तो

भाभी- इन छोटे मोटे कामो के लिए हमे अपने हाथ गंदे करने की जरूरत नहीं है

मैं- मैं सिर्फ इतना पूछना चाहता हु की

भाभी- वकील लगे हो क्या जो बस पूछते ही जाओगे असल में तुमसे कुछ नहीं हो पायेगा अब भी तुम मुद्दे से भटक रहे हो , जबकि असल में तुम्हे अपनी बहन के बारे में पूछना चाहिए था पर वो तुम करोगे नही

मैं- तो आपको पता चल गया

भाभी- मुर्ख वो पासपोर्ट वाला बैग मैंने ही वहाँ रखा था ये मेरी ही चाहत थी की तुम्हे वो पासपोर्ट मिले वार्ना तुम सात जनम में भी कविता के बारे में सुराग नहीं लगा सकते थे

मैं- जब पता ही था तो क्यों छुपाया आपने

भाभी- क्योंकि तुम्हे टूटता हुआ नहीं देख सकती, तुम चाहे जो समझो पर जबसे तुम्हे देखा मैंने परवाह की है तुम्हारी, क्योंकि भोले हो तुम समझते नहीं ही दुनियादारी को पर जिद तुम्हारी

मैं- कहा है मेरी जीजी

भाभी- पता नहीं

मैं- भाभी इस बार ये नहीं चलेगा

भाभी- कहा ना नहीं पता,

मैं- भाभी, मैं जानता हूं अब इतना भी मत खेलो की सब्र टूट जाये जीजी के बारे में बता दो कही ऐसा न हो की मेरा हाथ उठ जाये
भाभी- क्या कहा तुमने, हाथ उठ जाये, थू है तुमपे और तुम्हारी मर्दानगी पे एक औरत पे हाथ उठाके खुद को मर्द साबित करोगे, जाओ जाकर चेक करवालो रगों में ठाकुरो का खून ही दौड़ रहा है या नहीं

मैं चिल्लाते हुए - भाभी

भाभी- क्या हुआ, उफ्फ्फ ये अहंकार तुम्हारा गौर से मेरी आँखों में देखो क्या तुम्हे इनमे डर दिखाई देता है , नहीं न

मैं- इस वक़्त मेरे लिए कुछ भी महत्वपूर्ण है तो मेरी बहन बस

भाभी- एकाएक बहन के प्रति प्यार उमड़ आया कारण क्या है

मैं- यही की कही उसके साथ कुछ गलत न हुआ हो

भाभी- तो उसमें तुम क्या कर सकते हो समय की धार का पहिया मोड़ सकते हो क्या तुम

मैं- आखिर बता क्यों नहीं देती जीजी के बारे में

भाभी- जितनी मदद कर सकती थी कर चुकी हूं अब माफ़ करो

मैं समझ गया था की एक बार फिर से खाली हाथ ही जाना पड़ेगा पर जाते जाते भी मैंने एक सवाल और पुछने की सोची

मैं- भाभी आप मेनका की बेटी है ना

भाभी मेरे पास आई और अपनी सर्द आवाज में लरजते हर बोली- नहीं, मैं,,,,,,,,,,,,,,,,,,, मैं।

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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

मैं- क्या भाभी

भाभी- मेरा मेनका से कोई सम्बन्ध नहीं है

मैं- झूठ नहीं भाभी

भाभी- मैं सच कह रही हु

मैं- तो सारे समीकरण बदल जाते है ना भाभी

भाभी- नहीं, मैंने कहा न मेरा मेनका से कोई रिश्ता नहीं है

मैं- बहुत हुआ भाभी, मुझे लगता है कि बेहतर होगा अगर हम अब आमने सामने की बात करे , अब कुछ छुपाने को रहा नहीं आपके पास , अब मैं आपसे शुरू करके राणाजी पे खत्म करूँगा

भाभी- जल्दबाज़ी तुम्हारी

मैं- अब इन उलझी बातो से मुझे नहीं टरका सकोगी, कोई नहीं है यहाँ सिवाय आपके और मेरे , आपने बहुत कुछ कहा मेरे बारे में, मेरे चरित्र के बारे में , पर आज बल्कि इसी वक़्त मैं फिर से इतिहास को ज़िंदा करने की कोशिश करूँगा अब मैं कोई रिश्ता, कोई नाता नहीं देखूंगा अगर अब कुछ है तो सिर्फ मेरी बहन की तलाश और अर्जुनगढ़ की हवेली को फिर से आबाद करना और जैसा मैंने कहा शुरुआत आपसे करूँगा

भाभी- न जाने क्यों मुझे लग रहा है की आज समय रुकने वाला है तो चलो शुरू करते है पर इजाजत हो तो थोड़ा पानी पी लू

मैंने पास रखे जग से गिलास भरा और भाभी को पकड़ाया, एक ही घूंट में पूरा गिलास गटक गयी

भाभी- तो तुमने तलाश की मेरे अतीत की मेरे पीहर तक गए तुम यहाँ तक कामिनी की भी मदद ली तुमने

मैं- तो क्या करता मैं जरुरी लगा वो किया मैंने

भाभी- मैं भी करती पर क्या मिला तुम्हे

मैं- एक बंद हवेली के दरवाजे और सूनापन

भाभी- आसपास नहीं पूछा किसी से

मैं- पता किया मैंने ठाकुर त्रिलोक जी के बारे में

भाभी- तो जान गए होंगे की वो अब इस दुनिया में नहीं रहे

मैं चुप रहा

भाभी- वो हवेली मिरर ब्याह के साल भर बाद से ही बंद पड़ी है ठाकुर साहब

जब भाभी ने ठाकुर साहब कहा तो बुरा बहुत लगा पर स्तिथि ही कुछ ऐसी थी विश्वास को त्याग कर शायद हम आज अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहे थे

भाभी- तो तुम्हे वहां से कुछ जानकारी नहीं मिली मेरे अतीत की, है ना

मैं- मुझे एक बात पता चली थी

भाभी- ओह! अब समझी शायद इसीलिए तुमने समझा की मैं मेनका की बेटी हु, कसम से मैं मैं तुम्हे बहुत ही समझदार समझती थी पर मैं गलत थी, माना की त्रिलोक जी ने मुझे गोद लिया था पर मेनका की बेटी नहीं हूं मैं

मैं- तो कौन है आप और इस चक्रव्यू में आपका किरदार क्या है

भाभी- वही जो तुम्हारा है ,वही जो हर एक उस इंसान का है जो इन सब से जुड़ा है

मैं- पहेलिया नहीं भाभी, आज जो भी बात होगी सीधे होगी

भाभी- चलो समझाती हु, आखिर राणाजी की ऐसी क्या वजह रही होगी की जिस शुद्ध खून की वो इतनी दुहाई देते है, जिस रुतबे से वो जीते है आखिर क्या वजह रही होगी की उन्होंने मुझे अपने घर की बहू के लिए चुना

मैं- शायद आपकी सुंदरता आपको पाने की चाह

भाभी- मूर्ख, तुम कभी जिस्म से आगे बढ़ ही नहीं सके

मैं- आप ही बताओ

भाभी- ताकि राणाजी पल पल खुद को मरते हुए महसूस कर सके , ताकि हर लम्हा वो खुद को कोसे वो गिड़गिड़ाए मेरे सामने भीख मांगे अपनी मौत की पर जानते हो उनकी सजा उनकी मौत नहीं बल्कि उनकी ये ज़िन्दगानी होगी, जो वो आज जी रहे है और आगे जियेंगे

भाभी को आवाज एकाएक तेज हो गयी थी जैसे की उनके मन में पिघल रहा लावा आज फूट गया था , उनकी आँखों में सुलगती नफरत की आँख से मैंने अपने आप को झुलसता महसूस किया

मैं- आपकी नफरत को हमेशा जायज ठहराया मैने भाभी कितनी बार आपको कहा की मेरे साथ चलो पर आपने नहीं माना , जब जब मेरा हाथ थामना चाहिए था आपको आपने मेरी जगह राणाजी को चुना क्यों मैं पूछता हूं क्यों

भाभी- क्योंकि अगर मैं कही महफूज़ हु तो बस इस घर में

मैं- और इस हिफाज़त की कीमत आपका जिस्म चुकाता है , है ना।

भाभी- क्या हमने तुम्हे कहा नहीं था कि हमारे नाड़े की गांठ इतनी भी ढीली नहीं है

मैं- इस बात को ना ही कहो भाभी, जब चाहे वो आपको बिस्तर पर घिसट लेते है और आप चू तक नहीं करती मेरे आगे बाते बड़ी बड़ी

भाभी- सीता नहीं हूं मैं, न कभी तुमसे छुपाया क्या हुआ जो मेरा जिस्म हार जाता है राणाजी के आगे पर मैं हर बार जीत जाती हूं,

मैं- मैं समझ नहीं पा रहा

भाभी- क्योंकि तुम कही हो ही नहीं तुम अपने हठ से इनसब में पड़े हो, क्योंकि तुम एक बात पकड़ के बैठे हो की अर्जुन सिंह की वसीयत तुम्हारे लिए लिखी गयी है जबकि तुम्हे आदत है भृम में जीने की

मैं- मोह माया का लालच नहीं किया कभी मैंने

भाभी- जानती हूं तुम्हे ,कद्र करती हूं तुम्हारी सादगी की इसी लिए चाहती हूं कि आवेश में आके ऐसा कुछ नहीं करना जिसके कारण सारी जिंदगी अपने दिल पर बोझ लेकर जीना हो

मैं- वो जिंदगी ही क्या जिसमे आप मेरे साथ ना हो

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