भाभी- राणा हुकुम सिंघ आज आपके चेहरे पर जो ये नकाब है इसको उतार दूँगी मैं और ऐसे तार तार करुँगी की आप तो क्या कोई और भी किसी मजलूम पर अपनी मर्दानगी साबित नहीं करेगा आज के बाद कोई ठाकुर किसी औरत के मांस को नहीं नोचेगा
ठाकुर हुकुम सिंह जिसकी वीरता के चर्चे दूर दूर तक है, जिसकी जुबान की मिसाले दी जाती है जो समाज का ठेकेदार बना हुआ है जो न्यायकर्ता है वो ख़ुद किस कीचड में डूबा हुआ है आज सारी दुनिया जानेगी आज सारी दुनिया जानेगी
राणाजी- चुप कर कुतिया औकात से ज्यादा भौंक रही है
भाभी- किस औकात की बाय करते हो कपडे उतरने के बाद हम सब नंगे ही तो हो जाते है ,है ना, तो मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया की आखिर मेनका के दीवाने ने अपनी बेटी को ढूंढने की कोशिश क्यों ना की
राणाजी- हम आज तक उसको तलाश कर रहे है जस्सी, पर तुम्हे इतनी दिलचस्पी क्यों है
भाभी- क्या फर्क पड़ता है राणाजी , आपको तो बस जिस्म चाहिए अपने नीचे चाहे फिर मेरा हो या कविता का है ना, राणाजी
ये क्या कहा भाभी ने कविता के साथ राणाजी नहीं ऐसा नहीं हो सकता नहीं हो सकता मेरी बहन के साथ राणाजी पर वो उनकी बेटी भी तो थी उनका अपना खून, नहीं भाभी नहीं , पर भाभी ने ऐसा कहा तो क्यों कहा
"तड़ाक" अगले ही पल भाभी के गाल पर राणाजी का पंजा छप गया था मैंने भाभी को पीछे किया और खुद उनके और राणाजी के बीच आ गया जीजी के साथ क्या हुआ क्या नहीं अब शायद जानने का वक़्त आ गया था
मैं- क्या हुआ था जीजी के साथ क्या किया आपने मैं पूछता हूं पूछता हूं मैं
मेरी आँखों के अचानक ही खून उतर आया था भाभी के शब्द मेरे कानों में पिघले शीशे की तरह घूम रहे थे मुझे आभास भी न हुआ की कब मैंने राणाजी का गिरेबां पकड़ लिया, और शायद उन्होंने भी ये एहसास था
ठाकुर हुकुम सिंह जिनका अहंकार, जिनका गुरुर उनके कद से भी ऊँचा था जब उन्होंने महसूस किया कि किसी के हाथ उनके गिरेबां तक है उसी पल जैसे टूट गए वो , चुपचाप चलकर वो सीढ़ियों पर बैठ गए अपनी आँखों में छलक आये आंसुओ को पोंछा और बोले-
जस्सी वो मेरी गलती नहीं थी वो बस एक हादसा था
भाभी- तो क्या हादसा कुंदन के साथ नहीं हो सकता किस आधार पर इसे कामिनी का कातिल समझ लिया और कैसी नफरत अपने खून से जो उसे पानी की तरह बहाते आ रहे हो
राणाजी-क्या लगता है तुम्हे जस्सी और क्या लगता है कुंदन की तुम लोग कोई सूरमा हो कोई बहुत बड़े जासूस हो और खासकर तुम जस्सी क्या लगता है की जिन सुरागों की वजह से तुम सब कुछ जान पायी वहाँ तक तुम अपने आप पहुच गयी नहीं जस्सी नहीं
ऐसा इसलिए हुआ की हम चाहते थे ,हम ठाकुर हुकुम सिंह खुद ऐसा चाहते थे जानती हो क्यों क्योंकि हम उकता गए थे इस वीराने से तंग आ चुके थे हम इस अकेलेपन से कहने को तो क्या नहीं हमारे पास सब कुछ है ऐसी कोई चाहत नहीं जिसे हम पूरी न कर सके पर फिर भी ये जो अकेलापन है ना ये जो अधूरापन है इसे तुम लोग नहीं समझोगे कभी नहीं समझोगे
मैं-मुझे इस वक़्त कोई बकवास नहीं सुननी मुझे अगर कोई चाहत है तो अपने बहन को देखने की उसे अपने सीने से लगाने की एक पिता और पुत्र का रिश्ता आज खत्म हो गया है और एक भाई आज अपनी बहन का पता लेकर रहेगा
राणाजी- जानते हो कुंदन जब भी हम तुम्हे देखते है दिल के किसी कोने में एक अहसास होता है कभी कभी हम तुम्हारे अंदर उस हुकुम सिंह को भी देखते है जो हम नहीं बन सके,साथ ही मुझे ये भी लगता है की जब आज इस भयानक रात में तुम पर हम पर जूनून सवार है तो तुम्हे आज एक कहानी सुननी चाहिए
हाँ तो जस्सी, क्या कहा था तुमने की हमे समझना चाहिए था की आखिर क्यों तुम मेनका से इतनी नफरत करती हो तो मैं तुम्हे बताता हूं की तुम्हारे पास हमसे नफरत करने का वाजिब कारण है पर मेनका से नहीं
जस्सी, तुम सोचती हो की तुम्हे उस घर की चार दिवारी में ही सब मालूम हो गया कभी सोचा नहीं की बिना किसी विशेष परिश्रम के एक के बाद एक राज़ तुम जानती गयी जबकि हमे एक उम्र लग गयी संभलने में
नहीं जस्सी ये सब तुम्हारी मेहनत का नतीजा नहीं बल्कि सिर्फ इसलिए हुआ की क्योंकि हम चाहते थे हम
भाभी हैरान होकर उनकी तरफ देखती रही
राणाजी- और तुम कुंदन , तुम्हे क्या लगता है की तुम मसीहां हो लोगो के लिए तुम तारणहार हो
मैं- नहीं मैं बस अपने माथे से आपके नाम को मिटाने की कोशिश कर रहा हु
राणाजी- तो कहा तक कामयाब हुए तुम
राणाजी की बात का कोई जवाब नहीं था मेरे पास
राणाजी- जस्सी, तो पद्मिनी ने तुम्हारे पालन पोषण की व्यवस्था की अपनी बेटी बनाकर पाला तुम्हे यहाँ तक की उस खजाने का प्रथम प्रहरी भी बनाया और तमाम चीज़े जिन पर तुम आज इतराती फिर रही हो वो सब हमारी ही इच्छा थी
राणाजी आज हमें हैरान ही हैरान किये जा रहे थे भाभी कुछ बोलना चाहती थी पर राणाजी ने हाथ उठाकर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और मुझसे बोले- और तुम कुंदन तुम हमेशा सोचते रहे की तुम्हे आखिर इंद्र जैसी सुविधाएं क्यों नहीं मिली
मैं- नहीं मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा
राणाजी- तब तो हमे माफ़ करो हमारी गलतफहमी के लिए , तो जस्सी हम तुम्हारे गुनहगार आज से नहीं बल्कि उसी समय से है जब तुम्हारा जन्म हुआ था
भाभी- तो फिर क्यों, क्यों किया ऐसा मेरे साथ क्यों रौंद दिया उस फूल को जिसे खुद अपने बगीचे में लगाया था क्यों
राणाजी- हर इंसान में कुछ कमियां होती है हमारी भी एक कमी है और हम चाह कर भी अपने कुछ कर्मो का प्रायश्चित नहीं कर सकते तुमने कहा कि तुम हमे ऐसी सजा दोगी , जस्सी हम तो पल पल ही तिल तिल करके मर रहे है तुम क्या हमें सजा दोगी हमने तो खुद अपनी नियति चुनी है
नजर का खोट complete
- shubhs
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- Joined: 19 Feb 2016 06:23
Re: नजर का खोट
ये सब क्या है
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
- Kamini
- Novice User
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- Joined: 12 Jan 2017 13:15
Re: नजर का खोट
chusu wrote::shock:
Jhatkashubhs wrote:ये सब क्या है
- Kamini
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- Joined: 12 Jan 2017 13:15
Re: नजर का खोट
भाभी- कितना झूठ बोलेंगे , कितने गर्त में और गिरेंगे आज जब बाज़ी हाथ से निकलते देखी तो ये मज़बूरी का चोला ओढ़ लिया, राणा हुकुम सिंघ जो बस कुछ देर पहले अपने गुरुर में अपना ही खून बहाने को आतुर था अब देखो , इतनी जल्दी तो कोई रंडी भी ग्राहक नहीं बदलती जितनी जल्दी आप एक मगरूर से मजलूम हो गए,
आपको क्या लगा इन चिकनी चुपड़ी बातो में आ जायेंगे हम नहीं सरकार नहीं, जरा अपनी आँखे खोलिये और देखिये कुंदन को आप बता सकते है कि क्या कसूर है इसका नहीं आप नहीं बता सकते मैं बताती हु,
आपने कभी अपनी ज़िंदगी में परिवार, रिश्तो नातो को कभी तवज्जो नहीं दी आपने केवल लोगो को खिलोने से ज्यादा इज्जत नहीं दी दिल किया तो खेला दिल किया तो नया खिलौना ले लिया ,
माना बहुत प्रेम किया मेनका से, पर फिर क्यों नहीं उसको लाये समाज के आगे बीवी बनाकर सारी उम्र वो परदे के पीछे रही रखैल बन कर अब ऐसे मत देखिये आज जस्सी रती भर भी नहीं डरेगी आपसे,
ये कैसा प्यार था मेनका से जो एक बंजारन को हवेली की रानी न बना सके, अजी छोड़िये बात तो तब शुरू हुई थी जब भरी पंचायत में आपके घमण्ड को आपके बेटे ने नहीं माना, कितनी मुश्किलें पैदा की आपने इसके लिए जीना हराम कर दिया,
पर दाद देनी पड़ेगी इसकी, अपनी मेहनत से उस जमीन पर फसल लगा दी जहा आप एक दाना नहीं बो पाये थे असल में आपकी आँखों में जलन देखती थी मैं कुंदन के लिए, और होती भी क्यों न बरसो बाद राणाजी को कोई टक्कर दे रहा था और जब अपना ही खून बगावत पर हो तो मजा कुछ और ही होता है ना,
खैर कुंदन की बात बाद में पहले आपकी और मेरी बात हो जाये, आपकी सारी बाते सच है हो सकता है की आपको ये पता हो की पद्मिनी ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है और जब आपको पता चला की जिस खजाने के लिए आपने इतने पापड़ बेले थे उस तक पहुचने का रास्ता मैं हु तो जुगत लगा कर मुझे अपने घर ले आये,
पर किया क्या मेरे साथ, जब इतने दिन मेरी तरफ आँख उठा कर न देखा तो फिर क्यों सोच बदल गयी, ये सब तभी क्यों शुरू हुआ जब कुंदन ने आपके खिलाफ सर उठाना शुरू किया तभी क्यों
मैं आँखे फाड़े बस उनकी बाते सुन रहा था
भाभी- कुंदन, तुम हमेशा पूछते थे ना की मैं राणाजी और तुम्हारे बीच हमेशा इनका चुनाव क्यों करती थी बार बार तुम जिस मज़बूरी को पूछते थे आज मैं बताती हु की वो मज़बूरी क्या थी, वो मज़बूरी तुम थे बोलते बोलते भाभी को आवाज रुंध गयी
भाभी- हां कुंदन इस इंसान को मालूम था कि मैं किस हद तक तुमसे जुडी हु इस घर में माँ सा के बाद बस तुम ही तो थे जो मेरे अपने थे अपनी खुंदक मिटाने के लिए इन्होंने मेरा इस्तेमाल किया और इस डर से की कही ये तुम्हे ना मरवा दे मै सोती रही इनके साथ
भाभी की आँखों से गिरते आंसू मेरे कलेजे को चीर रहे थे मुझे आज सच में इतना गुस्सा था कि राणाजी के दो टुकड़े कर दू, पर भाभी ने मुझे रोका
भाभी- कुंदन इस इंसान की सबसे बड़ी सजा ये ही होगी की ये जिए ,
मैं- आपको एक बार तो मुझे बताना चाहिए था मैं पागलो के तरह हर बार पूछता रहा पर आप चुप रही मेरे लिए ये बलिदान करने की जरूरत नहीं थी नहीं थी
भाभी- जरूरत थी, कुंदन क्योंकि जो इंसान जब अपनी बेटी ले साथ इतनी खौफनाक हरकत कर सकता था उसके लिए मेनका की बेटी ला जिस्म क्या था कुछ भी नहीं, जिस इंसान को पता ही नहीं की रिश्ते होते क्या है उसके लिए हर औरत बस एक जिस्म है साधन है अपनी आग बुझाने का और फिर जिस्म तो जिस्म होता है चाहे जायज बेटी का हो या फिर नाजायज बेटी का
मैं- राणाजी घिन्न आती है मुझे जो आपकी वजह से मैं इस दुनिया में आया, काश मैं दिखा पाता किस हद तक दर्द उबल रहा है मेरे दिल में, दिल तो करता है अभी जान से मार दू पर जस्सी भाभी, कहते कहते मेरे शब्द लड़खड़ा गए की अब जस्सी को क्या काहू
भाभी या बहन साला रिश्ते नातो का कोई मोल ही ना बचा था
मैं- जस्सी, ये आपका गुनहगार है आप इसे सजा देंगी
राणाजी किसी बूत की तरह सीढियो पर बैठे थे शांत किसी सागर की तरह जैसे कुछ विचार कर रहे हो भाभी ने एक नजर उनकी ओर देखा और फिर मेरी बाहं पकड़ते हुए मुझे अपने साथ दरवाजे की तरफ ले चली जल्दी ही वहाँ बस मेनका की लाश और राणाजी ही रह गए
मेरी चोटो का दर्द न जाने कहा गुम हो गया था पर दिल आज बुरी तरह से जल रहा था जस्सी गाड़ी चला रही थी जल्दी ही अर्जुनगढ़ को पार करते हुए हम कच्चे रस्ते पर उतर गए मेरे मन में हज़ार विचार थे हज़ार नयी मुश्किलें आ जो खड़ी थी
मैं- तो आप सब जानती थी, इसीलिए आप मुझे हमेशा रोक देती थी
जस्सी- इस बारे में हम कल बात करेंगे
मैं- ठीक है अभी मुझे खेत पर छोड़ दो
जस्सी- पागल हुए हो क्या, इस हालत में नहीं छोड़ सकती तुम्हे, तुम मेरे साथ चल रहे हो
मैं- नहीं, अभी नहीं आप मुझे बस वहाँ छोड़ दो
जस्सी- इतने जिद्दी क्यों हो तुम
मैं- इसके बारे में हम कल बात करेंगे
कुछ देर बाद बड़े अनमने ढंग से जस्सी ने मुझे खेत में बने कमरे में छोड़ा और न चाहते हुए भी वहां से चली गयी , मैंने जब ये तस्सली कर ली की जस्सी चली गयी है तो मैं लड़खड़ाते हुए उस तरफ चल दिया जहा पूजा मेरा इंतज़ार कर रही थी
मैं बहुत थक गया था अपने दर्द की परवाह नहीं थी मुझे पर सीने में धड़कता मेरा मासूम दिल कुछ कह रहा था जिसे सुनने की हिम्मत अब नहीं थी मेरी आँखों में जो हसरत थी अपनी जीजी को देखने की वो दम तोड़ चुकी थी , मुझे उनके जिन्दा होने की उम्मीद नहीं थी,
पर जस्सी का ख्याल मुझे चैन नहीं लेने दे रहा था वो भाभी नहीं बहन थी मेरी, इस अकाट्य सत्य ने मेरे हर विचार को बदल दिया था और मुझे अपनी नजरो में इतना गिरा दिया था की अब उठ पाना नामुमकिन था
आँखों में कुछ आंसू लिए मैं उस तरफ चले जा रहा था जहाँ पूजा मुझे मिलनी थी ,मैं उसी पेड़ के पास पहुंचा जहाँ मेरी पहली मुलाकात पूजा से हुई थी उसी पेड़ के चबूतरे पर बैठी मेरा इंतज़ार कर रही थी वो
पूजा- कुंदन, बहुत देर लगाई आने में
मैं- आ गया मेरी जान आ गया अब तू देर ना कर सबसे पहले अपना व्रत खोल
पूजा- हां, कुंदन
उसने एक थाली मेरी तरफ की मैंने गिलास से उसे पानी पिलाया कुछ घूंट पीने के बाद वो बोली- बस कुंदन
मैंने गिलास रख दिया और उसका हाथ अपने हाथ में लिया
मैं- पूजा एक बात बतानी थी तुझे
वो- हां कुंदन बता
मैं उसे पूरी बात बताना चाहता था पर मेरे शब्द लड़खड़ा रहे थे पूजा समझ गयी और बोली- क्या हुआ सब ठीक तो है
मैं-कुछ देर तेरी गोद में सर रख कर लेट जाऊ
पूजा- हां
मैं उसकी गोद में लेट गया वो मेरे सर पर हाथ फेरने लगी तभी उसका हाथ मेरे ज़ख्म पर लगा
पूजा- ये गीला सा क्या है
मैं- चोट लगी है खून है
पूजा- किसकी मजाल मेरे कुंदन पर हाथ उठा सके
मैं- शांत हो जा , मैं बहुत थका हुआ हूं मेरी जान थोड़ी देर तेरे आँचल तले सुकून लेने दे
फिर वो कुछ न बोली बस मेरे सर को सहलाती रही जब बहुत देर हुई तो बोली- चल घर चल
उसने गाड़ी स्टार्ट की और हम उसके घर आ गए जब उसने बल्ब की रौशनी में मेरा हाल देखा तो एक बार फिर उसकी आँखों में गुस्सा तैरने लगा कई देर तक वो चिल्लाती रही झल्लाती रही और मैंने फिर उसे पूरी बात बताई
बहुत ध्यान से उसने पूरी बात सुनी और बोली- तेरे पिता और भाभी दोनों ही बहुत बड़ा खेल खेल रहे है दोनों का व्यवहार एक सा है वैसे तो हमेशा आक्रामक रहते है पर मौका मिलते ही भावनात्मक फायदा लेने से नहीं चूकते,
आपको क्या लगा इन चिकनी चुपड़ी बातो में आ जायेंगे हम नहीं सरकार नहीं, जरा अपनी आँखे खोलिये और देखिये कुंदन को आप बता सकते है कि क्या कसूर है इसका नहीं आप नहीं बता सकते मैं बताती हु,
आपने कभी अपनी ज़िंदगी में परिवार, रिश्तो नातो को कभी तवज्जो नहीं दी आपने केवल लोगो को खिलोने से ज्यादा इज्जत नहीं दी दिल किया तो खेला दिल किया तो नया खिलौना ले लिया ,
माना बहुत प्रेम किया मेनका से, पर फिर क्यों नहीं उसको लाये समाज के आगे बीवी बनाकर सारी उम्र वो परदे के पीछे रही रखैल बन कर अब ऐसे मत देखिये आज जस्सी रती भर भी नहीं डरेगी आपसे,
ये कैसा प्यार था मेनका से जो एक बंजारन को हवेली की रानी न बना सके, अजी छोड़िये बात तो तब शुरू हुई थी जब भरी पंचायत में आपके घमण्ड को आपके बेटे ने नहीं माना, कितनी मुश्किलें पैदा की आपने इसके लिए जीना हराम कर दिया,
पर दाद देनी पड़ेगी इसकी, अपनी मेहनत से उस जमीन पर फसल लगा दी जहा आप एक दाना नहीं बो पाये थे असल में आपकी आँखों में जलन देखती थी मैं कुंदन के लिए, और होती भी क्यों न बरसो बाद राणाजी को कोई टक्कर दे रहा था और जब अपना ही खून बगावत पर हो तो मजा कुछ और ही होता है ना,
खैर कुंदन की बात बाद में पहले आपकी और मेरी बात हो जाये, आपकी सारी बाते सच है हो सकता है की आपको ये पता हो की पद्मिनी ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है और जब आपको पता चला की जिस खजाने के लिए आपने इतने पापड़ बेले थे उस तक पहुचने का रास्ता मैं हु तो जुगत लगा कर मुझे अपने घर ले आये,
पर किया क्या मेरे साथ, जब इतने दिन मेरी तरफ आँख उठा कर न देखा तो फिर क्यों सोच बदल गयी, ये सब तभी क्यों शुरू हुआ जब कुंदन ने आपके खिलाफ सर उठाना शुरू किया तभी क्यों
मैं आँखे फाड़े बस उनकी बाते सुन रहा था
भाभी- कुंदन, तुम हमेशा पूछते थे ना की मैं राणाजी और तुम्हारे बीच हमेशा इनका चुनाव क्यों करती थी बार बार तुम जिस मज़बूरी को पूछते थे आज मैं बताती हु की वो मज़बूरी क्या थी, वो मज़बूरी तुम थे बोलते बोलते भाभी को आवाज रुंध गयी
भाभी- हां कुंदन इस इंसान को मालूम था कि मैं किस हद तक तुमसे जुडी हु इस घर में माँ सा के बाद बस तुम ही तो थे जो मेरे अपने थे अपनी खुंदक मिटाने के लिए इन्होंने मेरा इस्तेमाल किया और इस डर से की कही ये तुम्हे ना मरवा दे मै सोती रही इनके साथ
भाभी की आँखों से गिरते आंसू मेरे कलेजे को चीर रहे थे मुझे आज सच में इतना गुस्सा था कि राणाजी के दो टुकड़े कर दू, पर भाभी ने मुझे रोका
भाभी- कुंदन इस इंसान की सबसे बड़ी सजा ये ही होगी की ये जिए ,
मैं- आपको एक बार तो मुझे बताना चाहिए था मैं पागलो के तरह हर बार पूछता रहा पर आप चुप रही मेरे लिए ये बलिदान करने की जरूरत नहीं थी नहीं थी
भाभी- जरूरत थी, कुंदन क्योंकि जो इंसान जब अपनी बेटी ले साथ इतनी खौफनाक हरकत कर सकता था उसके लिए मेनका की बेटी ला जिस्म क्या था कुछ भी नहीं, जिस इंसान को पता ही नहीं की रिश्ते होते क्या है उसके लिए हर औरत बस एक जिस्म है साधन है अपनी आग बुझाने का और फिर जिस्म तो जिस्म होता है चाहे जायज बेटी का हो या फिर नाजायज बेटी का
मैं- राणाजी घिन्न आती है मुझे जो आपकी वजह से मैं इस दुनिया में आया, काश मैं दिखा पाता किस हद तक दर्द उबल रहा है मेरे दिल में, दिल तो करता है अभी जान से मार दू पर जस्सी भाभी, कहते कहते मेरे शब्द लड़खड़ा गए की अब जस्सी को क्या काहू
भाभी या बहन साला रिश्ते नातो का कोई मोल ही ना बचा था
मैं- जस्सी, ये आपका गुनहगार है आप इसे सजा देंगी
राणाजी किसी बूत की तरह सीढियो पर बैठे थे शांत किसी सागर की तरह जैसे कुछ विचार कर रहे हो भाभी ने एक नजर उनकी ओर देखा और फिर मेरी बाहं पकड़ते हुए मुझे अपने साथ दरवाजे की तरफ ले चली जल्दी ही वहाँ बस मेनका की लाश और राणाजी ही रह गए
मेरी चोटो का दर्द न जाने कहा गुम हो गया था पर दिल आज बुरी तरह से जल रहा था जस्सी गाड़ी चला रही थी जल्दी ही अर्जुनगढ़ को पार करते हुए हम कच्चे रस्ते पर उतर गए मेरे मन में हज़ार विचार थे हज़ार नयी मुश्किलें आ जो खड़ी थी
मैं- तो आप सब जानती थी, इसीलिए आप मुझे हमेशा रोक देती थी
जस्सी- इस बारे में हम कल बात करेंगे
मैं- ठीक है अभी मुझे खेत पर छोड़ दो
जस्सी- पागल हुए हो क्या, इस हालत में नहीं छोड़ सकती तुम्हे, तुम मेरे साथ चल रहे हो
मैं- नहीं, अभी नहीं आप मुझे बस वहाँ छोड़ दो
जस्सी- इतने जिद्दी क्यों हो तुम
मैं- इसके बारे में हम कल बात करेंगे
कुछ देर बाद बड़े अनमने ढंग से जस्सी ने मुझे खेत में बने कमरे में छोड़ा और न चाहते हुए भी वहां से चली गयी , मैंने जब ये तस्सली कर ली की जस्सी चली गयी है तो मैं लड़खड़ाते हुए उस तरफ चल दिया जहा पूजा मेरा इंतज़ार कर रही थी
मैं बहुत थक गया था अपने दर्द की परवाह नहीं थी मुझे पर सीने में धड़कता मेरा मासूम दिल कुछ कह रहा था जिसे सुनने की हिम्मत अब नहीं थी मेरी आँखों में जो हसरत थी अपनी जीजी को देखने की वो दम तोड़ चुकी थी , मुझे उनके जिन्दा होने की उम्मीद नहीं थी,
पर जस्सी का ख्याल मुझे चैन नहीं लेने दे रहा था वो भाभी नहीं बहन थी मेरी, इस अकाट्य सत्य ने मेरे हर विचार को बदल दिया था और मुझे अपनी नजरो में इतना गिरा दिया था की अब उठ पाना नामुमकिन था
आँखों में कुछ आंसू लिए मैं उस तरफ चले जा रहा था जहाँ पूजा मुझे मिलनी थी ,मैं उसी पेड़ के पास पहुंचा जहाँ मेरी पहली मुलाकात पूजा से हुई थी उसी पेड़ के चबूतरे पर बैठी मेरा इंतज़ार कर रही थी वो
पूजा- कुंदन, बहुत देर लगाई आने में
मैं- आ गया मेरी जान आ गया अब तू देर ना कर सबसे पहले अपना व्रत खोल
पूजा- हां, कुंदन
उसने एक थाली मेरी तरफ की मैंने गिलास से उसे पानी पिलाया कुछ घूंट पीने के बाद वो बोली- बस कुंदन
मैंने गिलास रख दिया और उसका हाथ अपने हाथ में लिया
मैं- पूजा एक बात बतानी थी तुझे
वो- हां कुंदन बता
मैं उसे पूरी बात बताना चाहता था पर मेरे शब्द लड़खड़ा रहे थे पूजा समझ गयी और बोली- क्या हुआ सब ठीक तो है
मैं-कुछ देर तेरी गोद में सर रख कर लेट जाऊ
पूजा- हां
मैं उसकी गोद में लेट गया वो मेरे सर पर हाथ फेरने लगी तभी उसका हाथ मेरे ज़ख्म पर लगा
पूजा- ये गीला सा क्या है
मैं- चोट लगी है खून है
पूजा- किसकी मजाल मेरे कुंदन पर हाथ उठा सके
मैं- शांत हो जा , मैं बहुत थका हुआ हूं मेरी जान थोड़ी देर तेरे आँचल तले सुकून लेने दे
फिर वो कुछ न बोली बस मेरे सर को सहलाती रही जब बहुत देर हुई तो बोली- चल घर चल
उसने गाड़ी स्टार्ट की और हम उसके घर आ गए जब उसने बल्ब की रौशनी में मेरा हाल देखा तो एक बार फिर उसकी आँखों में गुस्सा तैरने लगा कई देर तक वो चिल्लाती रही झल्लाती रही और मैंने फिर उसे पूरी बात बताई
बहुत ध्यान से उसने पूरी बात सुनी और बोली- तेरे पिता और भाभी दोनों ही बहुत बड़ा खेल खेल रहे है दोनों का व्यवहार एक सा है वैसे तो हमेशा आक्रामक रहते है पर मौका मिलते ही भावनात्मक फायदा लेने से नहीं चूकते,