नजर का खोट complete

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Kamini
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नजर का खोट complete

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नजर का खोट

“तुझे ना देखू तो चैन मुझे आता नहीं , इक तेरे सिवा कोई और मुझे भाता नहीं कही मुझे प्यार हुआ तो नहीं कही मुझे प्यार हुआ तो नहीं .......... नाआअन ऩा ऩा ना नना ”

कमरे की खिड़की से बाहर होती बरसात को देखते हुए मैं ये गाना सुन रहा था धीमी आवाज में बजते इस गाने को सुनते हुए बाहर बरसात को देखते हुए पता नहीं मैं क्या सोच रहा था शायद ये उस हवा का असर था जो हौले हौले से मेरे गालो को चूम कर जा रही थी या फिर उस अल्हड जवानी का नूर था जो अब दस्तक दे रही थी

पता नहीं कब मेरे होंठ उस गाने के अल्फाजो को गुनगुनाने लगे थे चेहरे पर एक मुस्कान थी जिसका कारण मैं नहीं जानता था पर कुछ तो था इन फिज़ाओ में कोई तो बात थी इन हवाओ में जो सबकुछ अच्छा अच्छा सा लग रहा था पहले का तो पता नहीं पर अब दिल ये जरुर कहता था की कोई तो हो , मतलब..............

“क्या बात है आज तो साहब का मूड अलग अलग सा लग रहा है ये बरसात की बुँदे ये चेहरे पर हसी और रोमांटिक गाने आज तो बदले बदले लग रहे हो ”

“आप कब आई भाभी , ” मैंने पीछे मुड कर कहा

“क्या फरक पड़ता है देवर जी, अब आपको हमारा होश कहा आजकल भाभी आपको दिखाई कहा देती है वैसे भी ”

“क्या भाभी आपको तो बस मौका चाहिए टांग खीचने का ”

“अच्छा, बच्चू , और जो मेरा गला बैठ गया कितनी देर से चिल्ला रही हु मैं की स्पीकर की आवाज कम कर लो कम कर लो निचे से मुम्मी जी गुस्सा कर रही है ”

“मैं कम ही तो है भाभी ”

“मम्मी जी को पसंद नहीं घर में डेक बजाना पर आप मानते नहीं हो ”

“भाभी इसके सहारे ही तो थोडा टाइम पास हो जाता है ”

“मुझे नहीं पता मैं बस बोलने आई थी अच्छा, मौसम थोडा मस्ताना है तो ऐसे में एक एक कप चाय हो जाये ”

“मैं भी आपको ये ही कहने वाला था भाभी ”

“बनाती हु रसोई में आ जाना जल्दी ही ”

“आता हु ”

मैंने एक गहरी साँस ली और डेक को बंद किया और सीढिया उतरते हुए निचे आने लगा तभी मम्मी से मुलाकात हो गयी

“ओये, कितनी बार तुझे कहा की बरसात में आँगन में पानी इकठ्ठा हो जाता है फिर नाली जाम हो जानी है तो साफ कर दिया कर पर तूने तो कसम खा ली है की मम्मी का कहा नहीं करना ”

“मैं , अभी कर दूंगा मुम्मी जी ”

“ये तो तू कब से बोल रहा है कुछ दिन पहले जब बरसात आई थी तब भी ऐसे ही बोल रहा था नालायक कुछ जिम्मदार बन तू कब तक मुझसे बाते सुनता रहेगा ”

“मैं करता हु ”

मुझे बरसात में भीगना बहुत बुरा लगता था पर क्या करू आँगन में पानी इकठ्ठा हो जाता तो भी दिक्कत तो मैंने कपडे उतारे और कच्छे बनियान में ही लग गया पानी बाहर निकालने को, पर बरसात को भी पता नहीं क्या दुश्मनी थी अपने से वो भी तेज होने लगी

बदन में हल्ल्की हलकी सी कम्पन होने लगी बरसात की ठंडी बुँदे मेरे वजूद को भिगोने लगी बनियान मेरे जिस्म से चिपकने लगी तो एक कोफ़्त सी होने लगी मैं तेजी से झाड़ू को बुहारते हुए पानी को इधर उधर कर रहा था पर मरजानी बारिश भी आज अपनी मूड में थी

तभी मैंने देखा की भाभी एक बाल्टी और डिब्बा लिए मेरी ही और आ रही है

“आप क्यों भीगते हो भाभी मैं कर तो रहा हु ”

“तुझे तो पता है मुझे बारिश में भीगना कितना अच्छा लगता है और इसी बहाने तेरी मदद भी हो जाएगी वर्ना शाम हो जानी पर तूने न ख़तम करना ये काम ”

वो बाल्टी में पानी इकट्ठा कर के फेकने लगी और मैं नाली को साफ़ करने लगा तभी मेरी नजर भाभी पर पड़ी और मेरी नजर रुक सी गयी , देखा तो मैंने उसे कितनी बार था पर इस पल मेरी नजरो ने वो देखा जो मैंने पहले कभी नहीं देखा था या यु कहू की कभी महसूस नहीं किया था

काली साड़ी में वो बारिश में भीगती, उसने जो साड़ी के पल्लू को अपनी कमर में लगाया हुआ था तो उसके पेट पर पड़ती वो बारिश की बुँदे जैसे चूम रही हो उसकी नरम खाल को, उसने जो धीरे से अपने चेहरे पर आ गयी जुल्फों की उन गीली लटो को अहिस्ता से कान के पीछे किया तो मैंने जाना की नजाकत होती क्या है

पता नहीं ये मेरी नजर का खोट था या कोई और दौर था पर कुछ भी था आज पहली बार महसूस हुआ था उसके हाथो में पड़ी वो चूडिया जो खनक पर बरसात के शोर के साथ अपना संगीत बाँट रही थी या फिर उसके होंठो पर वो लाल लिपिस्टक जिसे बुँदे अपने साथ हलके हलके से बहा रही थी

भीगी साड़ी जो उनके बदन से इस तरह चिपकी हुई थी पता नहीं क्यों मुझे जलन सी हुई वो खूबसूरत सा चेहरा, पतली कमर वो सलीका साड़ी बंधने का वो बड़ी बड़ी आँखे एक मस्ताना पण सा था उनमे, तभी मर ध्यान टुटा मैंने नजर नीची कर ली और नाली साफ़ करने लगा पर दिल ये क्या सोचने लगा था ये मैं नहीं जानता था

करीब आधे घंटे तक हम पानी साफ करते रहे बरसात भी अब मंद हो चली थी भाभी मेरी और आ ही रही थी की तभी उनका शायद पैर फिसला और गिरने से बचने के लिए उसने अपना हाथ मेर कंधे पर रखा मैं एक दम से हडबडा गया पर किस तरह से थाम ही लिया

पर मेरा हाथ भाभी के कुलहो पर आ गया , वो अधलेटी सी मेरी बाहों में थी आँखे बंद हो गयी उनके आज पहली बार उनको मैंने यु छुआ था मेरी नजरे भाभी के ब्लाउज से दिखती उनकी चूची की उस घाटी पर जो लगी तो हट ना पाई

“अब छोड़ो भी , ”उन्होंने कहा तो मुझे होश आया

मैंने देखा मेरा हाथ भाभी के कुलहो पर था तो मुझे शर्म सी आई और मैंने अपना हाथ हटा लिया भाभी ने कुछ नहीं बोला बस अंदर चली गयी मैं बाल्टी उठाने को हुआ तो मैंने देखा मेरे कच्छे में तनाव था , ओह कही भाभी ने देखा तो नहीं

अगर देख लिया तो क्या सोचेगी वो कही मेरे बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचेंगे मैं शर्म से पानी पानी हो गया पर पता नहीं क्यों अच्छा भी लगा पता नहीं ये उफनती हुई सांसो में जो एक खलबली सी मची थी या फिर ऊपर आसमान में उमड़ते हुए उन बादलो का जोश था जो अभी अभी ठन्डे हुए थे पर फिर से बरसने को मचल रहे थे

उस एक पल में भाभी का वो रूप किसी हीरोइन से कम ना लगा कुछ देर बाद काम समेट कर मैं अन्दर गया भीगा हुआ तो था ही बस अब नाहा कर कपडे बदलने थे मैं बाथरूम में गया पर दरवाजा बंद था मैंने हलके से खटखटाया

“मैं हु अन्दर ” भाभी की आवाज आई

“भाभी ”

“मुझे थोडा टाइम लगेगा तुम बाहर नलके पे नाहा लो ”

“मैं पर भाभी ”

“पर वर क्या अब चैन से नहाने भी ना दोगे क्या वैसे तो रोज क्या नलके पे नहीं नहाते हो ”

“भाभी वो दरअसल मेरा कच्छा बाथरूम में है ”

“तू भी ना , अच्छा रुक एक मिनट जरा ”

तभी सिटकनी खुलने की आवाज आई और फिर भाभी का हाथ बाहर आया कच्छा पकड़ते हुए जो उनकी गीली उंगलिया मेरी हथेली से छू गयी कसम से पुरे बदन में करंट सा दौड़ गया कंपकंपाहट लगने लगी

“अब छोड़ भी मेरा हाथ या ऐसे ही खड़ा रहेगा ”

“सॉरी भाभी ” मैंने जल्दी से हाथ हटाया और दौड़ पड़ा नलके की और

नलके पे नहाते हुए पानी मुझे भिगो तो रहा था पर मेरे अन्दर एक आग सी लग गयी थी एक खलबली सी मच गयी थी उनकी उंगलियों ने जो छुआ था वैसे तो कई बार उन्होंने मुझे छुआ था पर ऐसा कभी महसूस नहीं किया था मैंने जैसे तैसे मैं नहाया उसके बाद मैं अपना कच्छा सुखाने बाथरूम में गया तब तक भाभी निकल चुकी थी

पर उनके गीले कपडे वही थे , मैंने एक बार इधर उधर देखा और फिर अपने कापते हुए हाथो से उसकी ब्रा को उठाया ओफफ्फ्फ्फ़ ऐसा लगा की भाभी की चूची को ही हाथ में ले लिया हो मैंने धड़कने बढ़ सी गयी पास ही उसकी कच्छी पड़ी थी एक बार उसको भी देखने की आस थी पर बाहर किसी के कदमो की आहात आई तो फिर मैं वहा से निकल गया

बस कपडे पहन कर तैयार ही हुआ था की भाभी की आवाज आई “चाय पी लो ” तो मैं निचे रसोई में आया भाभी ने गिलास मुझे पकडाया और उसकी उंगलिया एक बार फिर से मेरी उंगलियों से टकरा गयी भाभी ने सूट-सलवार पहना हुआ था जो उनके बदन पर खूब जंच रहा था

“क्या हुआ देवर जी ऐसे क्या ताक रहे हो मुझे ”

“नहीं तो भाभी , ऐसा कहा ”

“वैसे आजकल कुछ खोये खोये से लगते हो क्या माजरा है ”

“ऐसा तो कुछ नहीं भाभी ”

“कुछ तो है देवर जी वैसे आजकल मुझसे बाते छुपाने लग गए हो ”

भाभी, कुछ होता तो आपको ना बताता ”

“चलो कोई बात ना, मैं कह रही थी की बारिश भी रुक गयी है तो याद से बनिए की दुकान से घर का राशन ले आना मम्मी जी को मालूम हुआ तो फिर गुस्सा करेगी ”

“मैं ठीक है पर हमेशा मैं ही क्यों कामो में पिलता हु ”

“क्योंकि घर में आप ही तो हो आपके भाई और तो साल में दो तीन बार ही आते और पिताजी तो बस सरपंची के कामो में ही ब्यस्त रेहते तो बाकि टाइम आपको ही सब संभालना होगा ”

मैं- ठीक है भाभी ले आऊंगा और कोई फरमाइश

वो बस मुस्कुरा दी और मैं अपनी साइकिल उठा के घर से निकल गया बरसात से रस्ते में कीचड सा हो रहा था तो मैं थोडा संभल के चल रहा था पर वो कहते हैं ना की बस हो ही जाता है तो पता नहीं कहा से एक चुनरिया उडती हुई आई और मेरे चेहरे पर आ गिरी

उसमे मैं ऐसा उलझा की सीधा कीचड में जा गिरा कपडे ही क्या मैं मेरा चेहरा सब सन गया आसपास के लोग हसने लगे मुझे गुस्सा भी आया पर उठा साइकिल को भी उठाया और देखने लगा की चुन्नी आई कहा से तो देखा की साइड वाले घर की छत पर एक लड़की खड़ी है


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Kamini
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Re: नजर का खोट

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बिना दुपट्टे के गुस्से से उसको कुछ कहने ही वाला था की नजरो ने धोखा दे दिया एक बार नजर जो उस पर रुकी तो बस बगावत ही हो गयी समझो सफ़ेद सूट में खुल्ल्ले बाल उसके गोरा रंग लम्बी सी गरदान और उसकी वो नीली आँखे बस फिर कुछ कह ही ना पाए

जैसे ही उसने मुझे देखा एक बार तो उसकी भी हंसी छुट गयी पर फिर उसने धीरे से कान पकड़ते हुए जो सॉरी कहा कसम से हम तो पिघल ही गयी बस हस दिए कीचड में सने अपने दांत दिखा के , अब कैसा जाना था बनिए के पास तो हुए वापिस घर को

और जैसे ही रखा कदम मम्मी ने बारिश करदी हमारे ऊपर जली- कटी बातो की

“अब कहा लोट आया तू , एक काम ठीक से ना होता पता नहीं क्या होगा इस लड़के का हमेशा उल जलूल हरकते करनी है इसको जा मर जा बाथरूम में और जल्दी से नहा ले राणा जी आते ही होंगे तुझे ऐसे देखंगे तो गुस्सा करेंगे ”

कभी कभी इतना गुस्सा आता था की घर का छोटा बेटा न बनाये भगवन किसी को मेरा भाई फ़ौज में था साल में दो तीन बार आता तो सब उसके आगे पीछे ही फिरते पर उसके जाने के बाद मैं थक सा गया था ये सब काम संभालते हुए पिताजी बहुत कम जा ते थे खेतो पर ज्यादातर वो अपनी सरपंची में भी रहते मैं पढाई करता और दोपहर बाद खेत संभालता ऊपर से घरवालो की बाते भी सुनाता

अब मैं ना जाऊंगा बनिए की दुकान पर चाहे कुछ भी हो ”

“तो फिर खाना तू रोटी आज मैं भी देखती हु , तेरे नखरे कुछ ज्यादा होने लगे है आजकल मैं बता रही हु तू उल्टा जवाब ना दिया कर वर्ना फिर् मेरा हाथ उठ जाना है ”

गुस्से में भरा हुआ मैं अपने कमरे में आया और पलंग पर बैठ गया पर निचे से मम्मी की जली कटी बाते सुनता रहा तो और दिमाग ख़राब होने लगा मैं घर से बाहर निकल पड़ा खेतो की तरफ शाम होने लगी थी चूँकि बरसात हुई थी तो अँधेरा थोडा सा जल्दी होने लगा था मैं खेतो के पास पुम्प्सेट पर बैठा सोच रहा था कुछ

जब मैंने भाभी को थामा था अपनी बाँहों में तो कैसे उसके चूतडो पर मेरा हाथ कस गया था कितने मुलायम लगे थे वो और भाभी की चुचियो की घाटी मेरा मन डोलने लगा अजीब से ख्याल मेर मन में आने लगे भाभी के बारे में और मेरा लंड टाइट होने लगा उसमे तनाव आने लगा मुझे बुरा भी लग रहा था की भाभी के बारे में सोच के मेरा लंड तन रहा है और अच्छा भी लग रहा था

मेरी कनपटिया इतनी ज्यादा गरम होगयी थी की मैं क्या बताऊ , मैंने अपना हाथ पायजामे में डाला और अपने लंड को सहलाया पर वो और ज्यादा खड़ा हो गया , वैसे मौसम भी था अब अपने को चूत कहा मिलनी थी तो सोचा की हिला ही लेता हु आज मैने उसको बाहर निकाला और सहला ही रहा था की.........

मैंने पायजामे को थोडा सा निचे सरकाया और अपने लंड को कस लिया मुठी में उसको दबाने लगा जैसे बिजली की सी तरंगे दौड़ने लगी थी मेरे तन बदन में लिंग आज हद से ज्यादा कठोर हो गया था उसकी वो हलकी नीली सी नसे फूल गयी थी जिन्हें मेरी हथेली साफ़ महसूस कर रही थी मैंने धीरे से अपने सुपाडे को पीछे की तरफ किया और उस पर अपनी उंगलिया फेरी



सुपाडे की संवेदन शील चमड़ी से जैसे ही मेरी सख्त हथेली रगड़ खायी, बदन में कंपकंपी सी मच गयी “आह ” धीमे से एक आह मेरे होंठो से फुट पड़ी पता नहीं ये भाभी के ख्यालो का असर था या बरसात के बाद की चलती ठंडी हवा का जोर था हाथो में उत्तेजित लिंग लिए मैं पंप हाउस के पास खड़ा मैं मुठी मारने का सुख प्राप्त कर रहा था



धीमी धीमी आहे भरते हुए मैं भाभी के बारे में सोचते हुए अपने लंड को मुठिया रहा था आज से पहले मैंने भाभी के बारे में ना कभी ऐसा महसूस किया था और ना ही कभी ऐसे हालात हुए थे जब कच्छा पकड़ाते हुए उनकी वो नरम उंगलिया मेरे हाथ से उलझ गयी थी या जब मेरे कठोर हाथो ने भाभी के नितम्बो को सहलाया था उफ्फ्फ मेरा लंड कितने झटके मार रहा था



रगों में खौलता गरम खून वीर्य बन कर बह जाना चाहता था पल पल मेरी मुठी लंड पर कसती जा रही थी बस दो चार लम्हों की बात और खेल ख़तम हो जाना था दिल में बस भाभी समा गयी थी उस पल में ऐसी कल्पना करते हुए की मैं भाभी ही चोद रहा हु मैं अपनी वासना के चरम पर बस किसी भी पल पहुच ही जाने वाला था मेरा बदन अकड़ने लगा था पर तभी



पर तभी एक स्वर मेरे कानो में गूंजा “ये क्या कर रहे हो तुम ”


और झट से मेरी आँखे खुल गयी और मैंने देखा की हमारी पड़ोसन चंदा चाची मेरे बिलकुल सामने खड़ी है मेरी आँखे जो कुछ पल पहले मस्ती में डूबी हुई थी अब वो हैरत और डर से फटी हुई थी
“चाची......... aaappppppppppp यहाह्ह्हह्ह ” मैं बस इतना ही बोल पाया और अगले ही पल मेरे लंड से वीर्य की पिचकारिया निकल कर सीधा चाची के पेट पर गिरने लगी हालत बिलकुल अजीब थी चाची उस छोटे से पल में अपनी आँखे फाडे मेरी तरफ देख रही थी और मैं चाहते हुए भी कुछ नहीं पा रहा था बल्कि वीर्य छुटने से जो मजा मिल रहा था उसके साथ ही सामने खड़ी चाची को देख कर दिल में दो तरह की भावनाए उमड़ आई थी



हम दोनों बस एक दुसरे को देख रहे मेरा झटके खाता हुआ लंड चाची के पेट और साडी को पर अपनी धार मार रहा था चाची कुछ कदम पीछे को हुई और तभी मेरी अंतिम धार ठीक उसकी नाभि पर पड़ी स्खलित होते ही डर चढ़ गया मैंने तुरंत अपने पायजामे को ऊपर किया चाची की आँखे तब तक गुस्से से दहक उठी थी



“मरजाने ये क्या कर दिया ” चिल्लाते हुए वो मेरा वीर्य साफ़ करते हुए बोली



“माफ़ कर दो चाची वो , वो बस ........ ”


“शर्म नहीं आती तुझे, कैसे गंदे काम कर रहा है नालायक और मुझे भी गन्दी कर दिया तू आज घर चल तेरी मम्मी को बताती हु तेरी करतुते मैं तो कितना भोला समझती थी पर देखो खुले में ही कैसे......... तू आज आ घर ”


“चाची, चाची जैसा आप समझ रही है वैसा कुछ नहीं है ” मैंने नजर झुकाए हुए कहा



“पूरी को चिचिपी कर दिया और कहता है ऐसा कुछ नहीं है ”


“चाची, गलती हो गयी माफ़ी दे दो आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा वो बस ........ ”


“बस क्या ......................... ”


“चंदा कितनी देर लगाएगी अँधेरा हो रहा है देर हो रही जल्दी आ ” मैंने देखा थोड़ी दूर से ही एक औरत चाची को पुकार रही थी तो चाची ने एक बार मुझे देखा और फिर बोली “आ रही हु ”


थोड़ी दूर जाने पर वो पलटी और बोली “तेरी मम्मी को बताउंगी ” और फिर चल दी



मैं घबरा गया बुरी तरह से क्योंकि घर में वैसे ही डांट पड़ती रहती थी और अब ये चंदा चाची ने भी मुठी मारते हुए पकड़ लिया था अब वो घर पे कह देगी तो मुसीबत हो ही जानी थी कुछ देरवही बैठा बैठा मैं सोचता रहा पप्र घर तो जना ही था वहा नहीं जाऊ तो कहा जाऊ



जब कुछ नहीं सुझा तो धीमे कदमो से चलते हुए मैं घर पंहुचा तो देखा की राणाजी आँगन में बैठे हुक्का पी रहे थे मुझे देख कर बोले “आ गया, मैं तेरी ही राह देख रहा था ”


और उसी पल मेरी गांड फट गयी मैं जान गया की चंदा चाची शिकायत कर गयी है और अब सुताई होगी तगड़े वाली

“यो कोई टेम है तेरा घर लौट के आने का कितनी बार कहा है की फालतू में चक्कर ना काटा कर ”
“बापू, सा वो खेतो पर गया था आने में देर हो गई ”
“देर तो चोखी पर के बात है आजकल नवाब साहब की कुछ ज्यादा ही शिकायते मेरे कानो में आ रही है आज थारा मास्टर जी मिले थे बता रहे थे की पढाई में ध्यान कम ही है तुम्हारा ”
“बापू सा वो थोडा अंग्रेजी में हाथ तंग है बाकि सब ठीक है ”
“देख छोरे, मन्ने तेरे बहाने न सुन ने, पढाई करनी है तो ठीक से कर नहीं तो अपना काम संभाल इतने लोगो में उस मास्टर ने बेइज्जती सी कर दी यो बोलके की राणाजी थारा छोरा ठीक न है पढाई में, और तन्ने तो पता है राणा हुकम सिंह जिंदगी में की चीज़ से प्यार करे है तो वो है उसकी शान से तो कान खोल के सुन ले पढाई बस की ना है तो बोल दे ”
“बापू सा मैं कोशिश कर रहा हु सुधार की ”
“कैसे , पढाई थारे से हो ना रही , घर का काम करना नहीं थारी मम्मी बता रही थी की बनिए की दूकान से राशन जैसे छोटे मोटे काम भी ना करते बस गाने सुनते हो ”
“जी, वो कभी कभी बस ऐसे ही ”
“मेरे घर में ऐसे ही ना चलेगी, या तो कायदे से रहो काम करो ”
“ जी वो मैं कचड़ में गिर गया था और इसलिए ना जा पाया ”
“बहाने नहीं छोरे , काम न होता तो कोई बात ना पर बहाने ना बना ”
“जी मैं क्या नहीं करता पढाई से आते ही सीधा खेतो में जाता हु और मजदूरो जितना ही काम करता हु फलो के बाग़ देखता हु और आपके हर हुकम को पूरा करता हु अब राशन के दिन लेट आ जायेगा तो कौन सी आफत आ गयी , आपके पास इतने नौकर है पर घर में एक भी नहीं बस मुझे ही ......... “
“आवाज नीची रख छोरे ” मम्मी ने बोला
“ न, ना रखु आवाज निचे , आखिर क्यों सुनु मैं जब इस घर के लिए मैं इतना काम करता हु इर भी जली कटी बाते सुन ने को मिलती है ये मत करो वो मत करो इस घर में कैदी जैसा महसूस करता हु मैं सच तो ये है रोटी भी गिन के खाऊ सु , ”
तड़क तड़क बात ख़तम होने से पहले ही मम्मी का हाथ मेरे गाल पर था , “कहा, न आवाज नीची रख और के गलत कह रहे है राणाजी, थारे भला ही चाहते है वो इतना कुछ किया है तुम्हारे लिए वो त्र भाई तो फौज में जाके बैठ गया और तू नालायक कभी सोचा कैसे सब हो रहा है ”
“तो मैं भी तो अपनी तारफ से पूरी कोशिश करता हु ” रोते हुए बोला मैं
“छोरे, सुधर जा, इसे मेरी अंतिम बात समझियो जा अब अन्दर जा ”
“जस्सी, आज इसे खाना ना दिए, मरने दे भूखा, तब जाके होश ठिकाने आयेंगे नवाबजादे के ” मम्मी चिल्लाई
अपने दर्द को दिल में छुपाये मैं अपने कमरे में आ गया गाल अभी भी दर्द कर रहा था , काफी देर खिड़की के पास खड़ा मैं सोचता रहा अपने बारे में घर वालो के बारे में राणाजी का नालायक बेटा बस इस से ज्यादा मेरी कोई हसियत नहीं थी और नालायक इसलिए था क्यंकि पिता जैसा नहीं बन न चाहता था
राणा हुकम सिंह, गाँव के सरपंच पर विधायक की हसियत रखते थे बाहुबली जो थे, कट्टर इन्सान पर वचन के पक्के इनके हुकम को टाल दे किसी की हिम्मत नहीं और मैं जैसे कैद में कोई परिंदा, नफरत करता था मैं उनके इस अनुशाशन से जीना चाहता था अपनी शर्तो पे दुनिया देखना चाहता था
काली रात में टिमटिमाते तारो को देखते हुए मैं सोच रहा था की तभी कमरे में किसी की आहाट हुई खट्ट की आवाज हुई और बल्ब जल गया सामने भाभी खड़ी थी हाथो में खाने की थाली लिए
“आपको नहीं आना चाहिए था भाभी, मम्मी को पता चलेगा तो आपको भी डांट पड़ेगी ”
“सब सो रहे है और वैसे भी जब तुम भूखे हो तो मुझे नींद नहीं आएगी ”
“भूख ना है भाभी ”
“ऐसे कैसे भूख नहीं है देख मैंने भी अभी तक खाना नहीं खाया है तू नहीं खायेगा तो मैं भी भूखी ही सो जाउंगी सोच ले ”
अब भाभी के सामने क्या बोलता , बैठ गया उनके पास भाभी ने निवाला तोडा और मुझे खिलाने लगी मेरी आँख से दर्द की एक बूंद गालो को चुमते हुए निचे गर गयी
इस घर में अगर कोई था जो मुझे समझती थी तो वो जस्सी भाभी थी कितनी फ़िक्र करती थी मेरी भाभी के जाने के बाद मैं अपराध बोध से भर गया की भाभी मेरे लिए इतना करती है और मैं उसके बारे सोच के ........................
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Re: नजर का खोट

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सुबह सावन की रिमझिम ने अपनी बाहे फैला कर मेरा इस्तकबाल किया खाकी पेंट और नीली शर्ट पहन कर मैंने बालो में कंघी मारी और साइकिल पे कपडा मार के साफ किया और पैडल मारते हुए निकल गया घर से हवा में जो हलकी हलकी बुँदे थी अच्छी लग रही थी चेहरे से टकराते हुए
मोहल्ले को पार करते हुए ठीक उसी जगह पहुच गए जहा कल गिर गए थे तो जान के साइकिल रोक ली एक नजर छज्जे पर डाली पर वहा कोई नहीं था तो बढ़ गए आगे पर दिल ने पता नहीं क्यों कहा की आस थी किसी के दीदार की थोडा समय तो ठीक गया पर फिर पता नहीं क्यों बेचैनी सी हो गयी दिल में कुछ घरवालो की कडवी बाते याद आ गयी कुछ अपनी तन्हाई


तो फिर निकल गए अपने खेतो पर जो करीब डेढ़- दो किलोमीटर दूर पड़ते थे बारिश पिछली रात जोर की हुई थी तो जगह जगह पानी जमा था, वहा जाकर देखा की चंदा चाची पहले से ही मौजूद थी तो दिल में थोड़ी सी कायली आ गयी पर अब जाये भी तो कहा जाए , पंप को चालू किया और बैठ गए वही पर कुछ देर में चंदा चाची आई



और बिना मेरी तरफ देखे अपने पैर धोने लगी जो कीचड़ में सने हुए थे उन्होंने अपने घाघरे को घुटनों तक ऊँचा कर लिया जबकि उसकी कोई जरुरत नहीं थी ,मैंने देखा उनके पैरो को गोरे छरहरे पैरो में चांदी की पायल पड़ी थी वो भी शायद कुछ ज्यादा समय ले रही थी उसके बाद उन्होंने अपने चेहरे पर पानी उडेलना शुरू किया मुह धो रही थी इसी कोशिश में आँचल सरक गया और ब्लाउज से बाहर को झांकते



उनके उभार मेरी नजर में आ गए, जो की उस गहरे गले वाले ब्लाउज की कैद में छटपटा रहे थे ऊपर से पानी गिरने से ब्लाउज कुछ गेला सा हो गया था तो और नजरे तड़पने सी लगी थी पता नहीं क्यों मेरे लंड मी मुझे हलचल सी महसूस हुई तो मैं उठ के पास बने कमरे में चला गया पर उत्सुकता , दहलीज से फिर जो देखा चाची मेरी तरफ ही आ रही थी



“लगता है बारिश पड़ेगी ”


“सावन है तो बारिश ही आएगी चाची ”

“तुझे बड़ा पता है सावन का ”थोडा हस्ते हुए सी बोली वो

मैं झेंप गया चाची पास पड़ी चारपाई पर बैठ गयी मैं खड़ा ही रहा , कल जिस तरह से उसने मुझे देख लिया था तो अब नजरे मिलाने में कतरा रहा था मैं ,तभी बूंदा- बांदी शुरू हो गयी जो जल्दी ही तेज हो गयी चाची बाहर को भागी और थोड़ी दुरी पर रखी घास की पोटली को लेकर अन्दर आई तब तक वो आधे से ज्यादा भीग गयी थी



चाची ने अपनी चुनरिया चारपाई पर रख दी और बदन को पौंचने लगी उसकी पीठ मेरी तरफ थी और जैसे ही वो थोड़ी सी झुकी उसके गोल मटौल चुतड पीछे को उभर आये उफफ्फ्फ्फ़ हालांकि मैंने उसे भी कभी ऐसे नहीं देखा था पर अब आँख थोड़ी न मूँद सकता था कुछ देर वो ऐसे ही रही फिर उसने अपना मुह मेरी और किया और लगभग अंगड़ाई सी ली



जिस से दो पल के लिए उसकी चुचिया हवा में तन सी गयी पर फिर उसने चुनरिया ओढ़ ली और बद्बदाने लगी “कम्बक्त, बरसात को भी अभी आना था अब घर कैसे पहुचुंगी , थोड़ी देर में अँधेरा सा हो जायेगा और लगता नहीं बरसात जल्दी रुकेगी ”


“अब बरसात पे आपका जोर थोड़ी न है चाची ” चाची ने घुर के देखा मुझे और फिर चारपाई पर बैठ गयी मैं दरवाजे पे खड़े खड़े बरसात देखता रहा करीब घंटा भर हो गया था पर बारिश घनी ही होती जा रही थी और चंदा चाची की बेचैनी बढती जा रही थी थोड़ी ठण्ड सी लगने लगी थी अँधेरा भी हो गया था तो मैंने चिमनी जलाई थोड़ी रौशनी हो गयी



“कब तक खड़ा रहेगा बैठ जा ”


तो मैं चाची के पास बैठ गया पर साय साय हवा अन्दर आ रही थी तो चाची उठी और दरवाजे को बंद कर दिया बस कुण्डी न लगाई पर हमारे बीच कोई बात चित नहीं हो रही थी थोड़ी देर और ऐसे ही बीत गयी



“ऐसे गर्दन निचे करके क्यों बैठा है ”


“बस ऐसे ही चाची ”


“ऐसे ही क्या ”


“वो, दरअसल .......... कल ” मैं चुप हो गया



“ओह, शर्मिंदा हो रहा है हिलाने से पहले नहीं सोचा अब देखो छोरे को ” वो लगभग हस्ते हुए बोली “कोई ना बेटा हर पत्ते को हवा लगती है ”


तभी पता नहीं कही से एक चूहा चाची के पैर पर से भाग गया तो वो जोर से चिल्लाते हुए मेरी तरफ हो गयी मतलब मुझे कस के पकड़ लिया और उनकी चुचिया मेरे सीने से टकरा गयी और गालो से गाल चाची के बदन की खुशबु मुझमे समा गयी पलभर में ही लंड तन गया



पर तभी चाची अलग हो गयी और चूहे को गालिया देने लगी , मैंने चाची पर अब गौर किया 1 बच्चे की माँ उम्र कोई ३३-३४ से ज्यादा नहीं होगी छरहरा बदन पर सुंदर लगती थी करीब दो घंटे तक घनघोर बरसने के बाद मेह रुका तो हम बाहर आये



“मेरी पोटली उठवा जरा वैसे ही देर हो गयी है क्या पता कितनी देर रुका है अभी निकल लेती हु ”
“साइकिल पे बैठ जाओ, मैं भी तो घर ही जा रहा हु जल्दी पहुच जायेंगे ”


“घास भी तो है लाल मेरे ”


“चाची घास पीछे रखो और आप आगे बैठ जाना ”


“आगे डंडे पे, ना मैं डंडे पे नहीं बैठूंगी ”


“आपकी मर्ज़ी है ”


तभी बादलो ने तेजी से गर्जना चालू किया तो चाची बोल पड़ी “ठीक है ”


मैंने घास की पोटली को पीछे लादा और फिर चाची को आगे डंडे पे आने को कहा अपने घाघरे को घुटनों तक करते हुए वो बैठ गयी और हम चल पड़े गाँव की और, पर पैडल मारते हुए मेरे घुटने चाची के चूतडो पर टकरा रहे थे और कुछ मेरा बोझ भी उसकी पीठ पर पड़ रहा था



उसके बदन से रगड़ खाते हुए लंड तन ने लगा था जो शायद वो भी महसूस करने लगी थी अब मैंने हैंडल सँभालने की वजह से अपने हाथो को चंदा चाची के दोनों हाथो से रगड़ना शुरू किया बड़ा मजा आ रहा था ऐसे ही हम जा रहे थे गाँव की और की तभी एक मोड़ आया और ..............

तभी साइकिल का बैलेंस बिगड़ा और हम धडाम से रस्ते में जमा पानी में गिर गए मिटटी की वजह से चोट तो नहीं लगी पर कपड़ो का सत्यानाश अवश्य हो गया था ऊपर से चाची और मैं इस अवस्था में थे की फंस से गए थे
“कमबख्त मैंने पहले ही कहा था की साइकिल ध्यान से चलाना पर कर दिया बेडा गर्क तूने ”चाची कसमसाते हुए बोली
“जानबूझ के थोड़ी न गिराया है रुको उठने दो जरा ”
परन्तु, हालात बड़े अजीब से थे साइकिल गिरी पड़ी थी पीछे घास की पोटली थी और आगे हम दोनों फसे हुए ऊपर से मेरा क पाँव भी दबा हुआ था जिसमे दर्द हो रहा था और ऊपर चाची पड़ी थी मैंने अपनी हाथ ओ थोडा हिलाया उसी कोशीश में मेरा हाथ चाची की चिकनी जांघो पर लग गया जो की घाघरा ऊपर होने की वजह से काफ्फी हद तक दिख रही थी
जैसे ही उनकी मक्खन जैसी टांगो से मेरा हाथ टकराया मेरे बदन के तार हिल गए पर और अपने आप ही मेरे हाथ चाची की जांघो को सहलाने लगे
“क्या कर रहा है तू ” वो थोड़े गुस्से से बोली तो मैंने हाथ हटा लिया और उठने की कोशिश करने लगा जैसे तैसे मैं निकला और फिर चाची को भी निकाला
“नास कर दिया मेरे कपड़ो का ” पर किस्मत से बूंदा बांदी तेज होने लगी तो वो ज्यादा नहीं बोली मैंने साइकिल को साफ्फ़ किया और फिर से उसको बिठा कर गाँव की तरफ चल पड़ा पुरे रस्ते वो बडबडाती रही पर मेरा दिमाग तो उसके जिस्म ने पागल कर दिया था जो बार बार मुझसे टकरा रहा था घर पहुचने तक हम लगभग भीग ही गए थे
मैंने चाची को उतारा उसके बाद मैं सीधा बाथरूम में घुस गया नहाने के लिये दिमाग विसे भी घुमा हुआ था चंदा चाची का वो स्पर्श पागल सा कर रहा था मुझे मेरे लंड में सख्ती बढ़ने लगी थी और तभी मेरी नजर खूंटी पर टंगी भाभी की कच्छी और ब्रा पर पड़ी पता नहीं क्यों मैंने कच्छी को उठा लिया और सूंघने लगा
एक मदमस्त सी खुशबु मेरे जिस्म में उतरने लगी मेरे लंड की नसे फूलने लगी मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे की मैं भाभी की चूत को सूंघ रहा हु मेरी कल्पनाये फिर से मुझ पर हावी होने लगी थी मैंने कच्छी को अपने लंड पर लपेट लिया और हथेली को उपर निचे करने लगा
पर मुठी नहीं मार पाया बाहर से मम्मी की आवाज आई , अब चैन से नहाने भी नहीं देंगे ये
“आयजी, चिलाया मैं ” और जल्दी से तौलिया लपेट कर बाहर आया तो देखा की चंदा चाची मम्मी के साथ बरामदे में खड़ी थी
“तेरी चाची कह रही है बिजली नहीं आ रही इनके जरा देख आ एक बार ”
“जी अभी कपडे पहन कर जाता हु ”
“अभी फिर भीगेगा , ऐसे ही चला जा और तारो को आराम से देखना ”
चाची का घर कोई दूर तो था नहीं बस हमारे से अगला ही था चाची ने मुझे छतरी में लिया और हु उनके घर आ गये
“पता नहीं क्या हो गया , सारे मोहल्ले में तो बिजली आ रही है ”
“बेत्तेरी , है तो लाओ जरा ”
चाची से बेट्री ली और मैं तारो को देखने लगा ये सोचते हुए की हमारी जान की किसी को कोई फिक्र है ही नहीं बिजली का काम भी भरी बरसात में ही करवाएंगे , एक हाथ से छतरी और दुसरे से बेट्री को संभाले मैंने तार को देखा एक दम ओके था तो बिजली क्यों नहीं आ रही
“क्या हुआ ”
“तार तो सही है चाची निचे देखता हु ”
मैंने निचे आके देखा तो फ्यूज उडा हुआ था उसको बंधा तो बिजली आ गयी मैंने देखा की चाची ने कपडे बदल लिए थे और अब उसने एक नीली साडी पहनी हुई थी मेरी नजर उसकी नाभि पर पड़ी चाची ने नाभि से थोडा निचे साड़ी बाँधी हुई थी चाची अपने गीले बाल सुखा रही थी
मेरा लंड तन ने लगा और तभी चाची ने मेरी देखते हुए पूछा चाय पिएगा क्या और मैं कुछ बोलता उस से पहले ही मेरा तौलिया खुल गया और मैं बिलकुल नंगा चाची के सामने खड़ा था और मेरा लुंड हवा में झूल रहा था चाची की आँखे उसी तरह हो गयी जैसा उस दिन उन्होंने मुझे मुठी मारते हुए देखा था
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Kamini
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Re: नजर का खोट

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मैंने तुरंत अपना तौलिया लपेटा और भाग लिया घर की तरफ और सीधा अपने कमरे में आकर ही रुका तब जाके चैन की साँस आई , कपडे पहन कर मैं रसोई में गया और खाना खाया राणाजी का हुक्का भरा और फिर अपने कमरे में आ गया धीमी आवाज में डेक चलाया और सो गया
अगले दिन जब मेरी आंख खुली तो मुझ से उठा ही नहीं गया पूरा बदन दर्द कर रहा था बुखार सा हो गया था पर अपनी कौन परवाह करता था जैसे तैसे उठा और निकल गया रास्ते में ठीक उसी जगह साइकिल रोकी और छज्जे की तरफ देखा और जैसे दिल खुश सा हो गया उसी लड़की के दीदार जो हुये थे
आँखे आँखों से मिली , उसने धीरे से अपने कानो ओ फिर से हाथ लगा कर इशारे से माफ़ी मांगी तो मैं भी हौले से मुस्कुरा दिया और वो तुरंत अन्दर भाग गयी मैंने अपने सर को झटका और बढ़ गया आगे को कुछ गुनगुनाते हुए पुरे दिन फिर मेरा कही भी मन नहीं लगा सिवाय उस छज्जे वाली के
दोपहर बाद मैं घर आया और थाली में खाना डाला ही था की भाभी ने बताया की राणाजी ने खेतो पर बुलवाया है तो मैंने खाना खाया और फिर चल पड़ा सीधा वहा पर जाकर देखा तो काफी लोग जमा थे मम्मी भी थी मैं भी जाकर खड़ा हो गया
तो पता चला की कल रात जंगली जानवरों के झुण्ड ने काफी उत्पात मचाया था चंदा चाची की पूरी सब्जियों को रौंद डाला था और हमारे भी एक खेत का ऐसा ही हाल था फसल की बर्बादी को देख कर राणाजी भी चिंतित थे प् दिक्कत ये थी की पास ही जंगल था उअर ये खेती वाला इलाका खुला था तो बाड वाली बात बन नहीं सकती थी तो सबने तय किया की सब अपने अपने खेत की हिफाज़त करेंगे
राणाजी ने मुझे कहा की अपने खेतो पर वो नौकर छोड़ देंगे पर चूँकि चंदा चाची अकेली है तो मैं उनकी मदद करूँगा बस अब ये ही रह गया था जिंदगी में पर राणाजी ये नहीं जानते थे की ऐसा कहकर वो मुझे वो मौका दे रहे है जिसकी मुझे शायद जरुरत भी थी

चंदा चाची के पति यानि सुधीर चाचा बापू सा के बहुत ही अच्छे मित्र थे और अरब देश में कमाते थे तो दो साल में दो-तीन बार ही आते थे एक लड़की थी जो मुझे कुछ महीने ही बड़ी थी और डोक्टोरनी की पढाई करती थी जोधपुर में , बाकि समय चाची अकेले ही घर-बार संभालती थी चूँकि बापूसा के मित्र की बात थी तो हम सब भी उनका बहुत ही मान रखते थे और परिवार का सदस्य ही समझते थे

अब बापूसा के आदेश को ना माने इतनी मेरी हिम्मत थी नहीं तो बस मन ही मन कोस लिया खुद को हमेशा की तरफ और कर भी क्या सकते थे इसके सिवा, मैं चाहता था थोडा समय भाभी के साथ बिताने का पर पिछले कुछ दिनों से बस कामो में ऐसा उलझा हुआ था की घर में ही अजनबी से हो गए थे खैर, मैंने राणाजी के साथ खेतो का दूर तक चक्कर लगाया



उनकी बाते गौर से सुनी उसके बाद मैं घर आ गया और भाभी को बताई पर वो कुछ नहीं बोली शाम की चाय मैंने गाने सुनते हुए पी करने को कुछ खास था नहीं पर तभी भाभी आ गयी बाते शुरू हो गयी



“कल डाक खाने से चिट्ठी ले आना ”


“क्या करोगे भाभी ”


“तुम्हारे भैया को लिखनी है ”


“याद आ रही है क्या ,”


“धत्त, बदमाश, काफी दिन हो गए उनकी चिट्ठी तो आई नहीं मैंने सोचा की मैं ही पूछ लेती हु ”


“ले आऊंगा भाभी, वैसे भैया नहीं तो क्या हुआ मैं तो हु आपका ख्याल रखने के लिए ”


“वो तो है , पर फिर भी ...... ”भाभी ने जानबूझ करबात को अधुरा छोड़ दिया फिर बोली “सोच रही हु कुछ दिन मायके हो आऊ ”


“फिर मेरा जी कैसे लगेगा भाभी ”


“तो तुम भी चलो इसी बहाने घूम आना ”


“मांजी, से करती हु बात फिर देखो मंजूरी मिलती है या नहीं ”


भाभी ने कुछ देर और बाते की फिर उन्होंने फिर से चिट्ठी का याद दिलाया और निचे चली गयी मैंने अपना सामान रखा जो चाहिए था उसके बाद मैं खाना खाकर चंदा चाची के पास चला गया चाची ने मुझे बैठने को कहा और करीब दस मिनट में ही वो भी तैयार थी



मैंने सामान लादा साइकिल पर और चाची को आगे बैठने को कहा पर चाची बोली, “पैदल ही चलते है ”


“अब इतनी दूर कौन जायेगा पैदल चाची और वैसे भी आज नहीं गिराऊंगा आपको ”


“वो बात नहीं है खैर, थोडा आगे तक पैदल चलते है फिर बैठ जाउंगी ”


हम चल रहे थे की तभी मुझे वो ही छज्जे वाली दो और लडकियों के साथ आते हुए दिखी मुझे देख का उसने सलीके से अपने दुपट्टे को सर पर ले लिया हमारी आँखे एक बार फिर से आपस में टकराई और पता नहीं क्यों हम दोनों के चेहरे पर ही एक मुस्कान सी आ गयी , बस कुछ सेकंड की वो छोटी सी मुलाकात जो बस ऐसे ही राह में हम मिल गए थे



मैंने हलके से सर को झटकते हुए उसे नमस्ते कहा , उसने भी सर हिलाकर जवाब दिया और बड़े ही कायदे से आगे को बढ़ गयी जैसे की कुछ हुआ ही नहीं हो मैंने धीरे से अपने बालो में हाथ मारा और बस बढ़ गए आगे को मुस्कुराते हुए



“क्या हुआ छोरे, ”


“कुछ ना चाची ”


“तो के अब पैदल ही चलेगा ”


“ना, आओ ”


चाची अपने गांड को मेरी टांगो से रगड़ते हुए चढ़ गयी साइकिल के डंडे पर और मैं बार बार अपने पैरो से उनके चूतडो को रगड़ते हुए चल पड़ा खेतो की ओर मोसम मस्त था एक दम चाची थोड़ी सी पीछे सरक गयी जिस से और मजा आने लगा था मजे मजे में पता नहीं कब खेतो पर पहुच गए हम दोनों साइकिल खड़ी की और चाची ने कमरा खोला



“काफी कबाड़ जमा कर रखा है चाची, ”


“तेरा चाचा आएगा तो करवाउंगी सफाई मेरे बस का नहीं है ”


“सोऊंगा कहा ”


“यहाँ और कहा ” उन्होंने उस कोने की और इशारा करते हुए कहा



“ना, निचे नहीं सोऊंगा ”


“अब इतनी दूर कौन पलंग लायेगा तेरे लिए ”


“मैं अपने कुवे से चारपाई लाता हु ”


मैं कुवे पर गया तो वहा प् तीन लोग पहले से ही तो मैं बस थोड़ी बात चित करके ही वापिस आ गया जबतक आया तो चाची ने बिस्तर सा बिछा दिया था और तभी बिजली चली गयी चिमनी जलाई और लेट गए इस से पहले की नींद आती बरसात की टिप टिप ने ध्यान खींच लिया मैंने अपनी चादर ओढ़ ली और सोने की कोशिश करने लगा चाची मेरे से कुछ दूर ही लेटी हुई थी



चिमनी की रौशनी में मैंने देखा चाची की पीठ मेरी तरफ थी और मेरी निगाह उसकी गांड पर गयी मैंने हलके से अपने लंड को खुजाया और आंख मूंद ली पता नहीं कब नींद आई शायद कुछ ही देर सोया होऊंगा की तभी चाची ने मुझे जगाया और बोली “नीलगायो का झुण्ड है ”


“मैंने पास पड़ा लट्ठ उठाया और उन्निन्दा ही भागा बाहर की और दिमाग से ये बात निकल ही गयी थी की बाहर तो मेह पड़ रहा है पर अब क्या फायदा अब तो भीग गया , मैं लट्ठ लिए भागा और नीलगायो को खदेड़ कर ही दम लिया मैंने देखा की हमारे कुवे पर कोई हलचल नहीं थी साले सब सोये पड़े थे ”


जब तक मैं आया हद से जायदा भीग चूका था अन्दर आते ही मैंने कपडे उतारे और जल्दी ही मैं बस गीले कच्छे में खड़ा था .................... एक तो बुखार से परेशां और अब भीगा हुआ क्या करू .....

लगभग कांपते हुए मैं बिस्तर के पास खड़ा था अब समस्या ये थी की कपडे और थे नहीं मेरे पास और कच्छा उतराना भी जरुरी था चंदा चाची उठी और मेरे कपड़ो को निचोड़ कर सुखाया और बोली “चादर लपेट ले जल्दी से”
मैंने चिमनी को फुक मारी और फिर कच्छे को उतार दिया और चादर लपेट ली और बिस्तर पर बैठ गया पर अभी समस्या कहा सुलझी थी बल्कि बढ़ गयी थी क्योंकि चादर तो मैंने लपेट ली पर अब ओढूंगा क्या ठण्ड तो लग ही रही थी पर कुछ देर मैं ऐसे ही लेता रहा
“क्या हुआ नींद नहीं आ रही क्या ”
“ठण्ड लग रही है चाची ”
“एक काम कर मेरी चादर में आ जा ” जैसे ही चाची नी ये शब्द बोले मैं तुरंत चाची की चादर में सरक गया मेरा हाथ जैसे ही चाची के हाथ से टकराया “तुझे तो बुखार है छोरे ”
“हां, कल से है थोडा ”
चाची ने मेरा हाथ अपने पेट पर रख लिया और थोड सा मुझ से सत गयी “सो जा ” जल्दी ही चाची के बदन की गर्मी मुझे मिलने लगी तो आराम मिला करीब आधे घंटे बाद मैंने पाया की मैं चाची के पीछे एक दम चिपका हुआ हु और में चादर खुली हुई थी मतलब मैं पूरा नंगा चाची के बदन से चिपका हुआ था और मेरा लंड जो की ताना हुआ था चाची की चूतडो से लगा हुआ था
मेरा हाथ चाची के सुकोमल पेट पर था मैंने हलके से अपने हाथ को पेट पर घुमाया तो मेरी उंगलिया चाची की नाभि से टकरा गयी मैंने हौले से नाभि को कुरेदा तो मेरे लंड में उत्तेजना और बढ़ने लगी मैं थोडा सा और चिपक गया चाची से चाची की गरम सांसे चादर के वातावरण को और गर्मी दे रही थी मै जैसे बहता जा रहा था किसी ने सिखाया नहीं था पर जैसे मुझे पता था की अब क्या होगा क्या करना है
मुझे खुद पता नहीं चला बेखुदी में कब मेरा हाथ चाची की चूची पहुच गया मैंने हलके से चाची की चूची को दबाया तो मेरे बदन में झटके लगने लगे और उत्तेजना वश मैंने थोडा जोर से दबा दिया तो चाची ने झुरझुरी सी लगी मैंने देखा जाग तो नहीं गयी परन्तु वो सो रही थी तो मैं धीरे धीरे चुचियो को दबाता रहा इधर मेरे लंड का हाल बहुत बुरा हो रहा था
मेरी हिमत कुछ बढ़ सी गयी थी मैंने हौले से चाची के गाल को चूमा उफ्फ्फ कितना नरम गाल था वो और तभी चाची ने करवट ली और अपना मुह मेरी तरफ कर लिया तो मैं भी सीधा होकर लेट गया कुछ मिनट ऐसे ही गुजरे फिर चाची मुझसे चिअक गयी और सो गयी , उत्तेजना भरे माहौल में कब मेरी आँख लग गयी मुझे फिर पता नहीं चला
सुबह जाग हुई तो देखा की मैं अकेलाही हु मैंने चादर लपेटी और बाहर आया तो चाची ने आग जला रखी थी और बोली “ले कपडे पहन ले ज्यादा तो नहीं सूखे पर पहन लेगा ” मैंने अन्दर आके कपडे पहने और आंच के पास बैठ गया बाहर सब कुछ खिला खिला सा लगता था दिन बस निकला ही था
“डॉक्टर, को दिखा आइयो ”
“जी ”
चाची वही रुक गयी मैं सीधा डॉक्टर के घर गया और दवाई ली फिर अपने घर गया फिर अपने घर गया तैयार हुआ और नाहा धोकर निकल गया पढने के लिए रस्ते में छजे पर नजर मारी पर कोई नहीं था तो आगे हो लिए अपन भी दोपहर में कुछ ही देर थी मैं मास्टर जी से पानी पीने की आज्ञा लेकर बाहर आया तो देखा की वो छज्जे वाली लड़की टंकी के पास ही खड़ी थी
मैं लगभग दौड़ते हुए वहा गया एक नजर आसपास डाली और फिर हमने एक दुसरे को देखा “आप यहाँ पढ़ती है ”
“जी ”उसने नजरे झुकाए हुए कहा उफ़ ये नजाकत मियन तो मर ही मिटा
“कब से ”मैंने अपनी मुर्खता दिखाई
“हमेशा से ” वो बोली
“पर मैंने आपको कभी नहीं देखा ”
“आप पढाई करने आते है या हमें देखने ”
इस से पहले मैं कुछ बोलता वो मुड़ी और चल अपनी कक्षा की और मैं देखता रहा की किस कक्षा में जाएगी लड़की विज्ञानं संकाय में थी आज पहली बार खुद को कोसा की काश पढाई पे ध्यान दिया होता तो हम आज कला में ना होते पर दुःख इस बात का था की वो भी हामरे साथ ही थी फिर नजर क्यों ना पड़ी पर कर क्या सकते थे सिवाय अपनी मुर्खता के आलावा
लौट ते समय डाक खाने का चक्कर लगाया और फिर घर आके सो गया सोया ऐसा की फिर भाभी ने ही उठाया “उठो, अभी इतना सो लोगे तो रात को क्या करोगे ”
“मैं उठा भाभी ने मुझे चाय दी और मेरे पास बैठ गयी , मैंने चाय की चुस्की ली और बोला “आज आप बहुत खुबसूरत लग रही है ” भाभी हल्का सा शर्मा गयी
“आजकल कुछ ज्यादा ही तारीफे हो रही है भाभी की ”
“आप हो ही इतनी प्यारी की बस तारीफ करने को ही जी चाहता है ”
“चलो अब उठो मैं कमरे में झाड़ू निकाल देती हु ”
भाभी सफाई करने लगी और मैंने पास पड़े रेडियो को चालू किया “ये आकशवाणी का जोधपुर केंद्र है और आप सुन रहे है श्रोताओ की फरमाइश दोस्तों इस प्रोग्राम में हम अपने उन श्रोताओ की पसंद के गीत बजाते है जो दूर दराज से हमे पत्रों के माध्यम से अपनी फरमयिशे भेजते है तो आज का पहला गाना फिलम विजयपथ का राहो में उनसे मुलाकात हो गयी जिसकी फरमाईश की है आयत ने जो गाँव ............... से है ”
एक पल के लिए मैं और भाभी दोनों ही चौंक गए क्योंकि हमारे गाँव का नाम था और गाना चलने लगा
“अपने गाँव का नाम लिया न ”
“हाँ, भाभी ”
“तू जानता है आयत को ”
“”नहीं भाभी “
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Re: नजर का खोट

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भाभी बाहर चली गयी मैं कुर्सी पर बैठे वो गाना सुनने लगा , अपनी बस यही दुनिया थी ये चौबारा एक पलंग एक अलमारी कुछ किताबे एक टेबल और कुर्सी और साइड में रखा डेक जो आजकल बंद ही पड़ा रहता था मौज मस्ती के नाम पर बस इतना ही था बैठे बैठे मैं सोच रहा था कौन होगी ये आयत वैसे नाम तो अच्छा था

कुछ देर बाद मैं आया निचे कोई दिखा नहीं तो फिर मैं घुमने चला गया अब हुई रात और वापिस आ गए खेत पर , मैंने सोचा तो था की चाची से फिर से कुछ करूँगा पर पता नहीं कैसी नींद आई की सब अरमान सपनो की भेंट चढ़ गए शायद दवाइयों के असर से नींद आ गयी थी

खैर, हर दिन अपने साथ कुछ नया लेकर आता है हमने चक्कर लगा दिया विज्ञानं संकाय का तो देखा उसे दुपट्टे को बड़े सलीके से ओढ़े हुए वो बैठी थी बस दरवाजे से ही देख लिया उसको पर हिम्मत नहीं हुई उसके आगे पर हाय ये दुस्ताख दिल अब ये किसकी मानता है पर करे भी तो क्या करे बात करे तो कैसे करे कल कोशिश तो की थी पर क्या हुआ

तभी उसकी नजर पड़ी हमारी तरफ और हम खिसक लिए वहा से धड़कने बढ़ सी गयी थी पर दिल कह रहा था हार मत मानिये जनाब बार बार मेरी निगाह पानी की टंकी पर ही जा रही थी की अब वो आये अब आये पर इन्तहा हो गयी इंतजार की वो आई ही नहीं उसी कशमकश में छुट्टी हो गयी और मैं दौड़ा उसकी कक्षा की तरफ एक एक कर के सब लो निकल रहे थे और सबस आखिर में निकली और और चौंक गयी मुझेदेख कर वो

“आप ” बस इतना ही कह सकी वो

“मुझे कुछ .................... ”

“ऐसे राहो में रोकना किसी को अच्छी बात नहीं होती ”

“मेरा वो मतलब नहीं था जी ”उसने अपनी मोटी मोटी आँखों से मेरी तारा देखा और बोली “हटिये हमे देर हो रही है ” दो कदम बढ़ गयी वो आगे मैं रह गया खड़ा ये सोचते हुए की इसने तो बात सुनी ही नहीं पर जाते जाते पलती और बोली “मैं जुम्मे को पीर साहब की मजार पे जाती हु ”

एक पल समाझ नहीं आया की क्या कहके गयी पर जब समझे तो दिल झूम सा गया छोरी इशारा कर गयी थी और हम भोंदू के भोंदू पर दिल को एक तरंग सी मिल गयी थी मारा बालो पर हाथ और चल दिए घर की और अपनी खुमारी में पर देखा की चौपाल पर भीड़ जमा है तो हमने भी साइकिल रोकी अपनी और देखने लगे तो पता चला की पंचायत हो रही है

मैं भी सुन ने लगा , मामला कुछ यु था की जुम्मन सिंह ने जमींदार रघुवीर से कुछ कर्जा लिया था जो वो समय से चूका न पाया था और अब रघुवीर ने उसकी जमीन कब्ज़ा ली थी मेरी नजर राणाजी पर पड़ी सफ़ेद धोती कुरते में कंधे पर गमछा, कड़क मूंछे चेहरे पर रौब,

अब जुम्मन बहुत घबराया हुआ था थोड़ी सी जमीं थी उसकी और ऊपर से उसपे रघुबीर ने कब्ज़ा कर लिया था ऊपर से उसके पास कागज भी था जिसपे जुम्मन ने अंगुठा दिया हुआ था तो राणाजी भी क्या कहते उन्होंने रघुबीर से बात की पर पंचायत गंभीर हो चली थी , पंचो ने प्रस्ताव रखा की जुम्मन को कुछ समय और दे पर बात बनी नहीं क्योंकि गाँवो में तो जमींदारी व्यवस्था ही होती है

तो जाहिर सी बात है की रघुबीर का पक्ष मजबूत था राणाजी कुछ बोल नहीं रहे थे और सबको इंतजार था फैसले का मैं भी चुपचाप खड़ा था और फिर आई घडी फैसले की चूँकि कागज़ पर अंगूठा भी था जुम्मन का तो फैसला रघुबीर के हक़ में आया जुम्मन न्याय की दुहाई देने लगा पर पंचायत न जो कह दिया वो कह दिया मुझे पहली बार लगा की राणाजी ने गलत फैसला दिया है

और मेरे मुह से निकल गया “ये फैसला गलत है जुम्मन चाचा इस फैसले को नहीं मानेंगे ” और पंचायत में हर मोजूद हर एक शक्श की नजरे मुझ पर टिक गयी खुद ठाकुर हुकुम सिंह की भी मैंने उनकी आँखों में असीम क्रोध देखा सबकी आँखों में हैरत थी क्योंकि राणाजी का फैसला पत्थर की लकीर होता था और जिसे काटा भी तो किसने उनके अपने बेटे ने

राणाजी ने खुद को संयंत किया और बोले “ फैसला हो चूका है छोरे और वैसे भी पंचायत में बालको का काम नहीं ”

“कैसा फैसला राणाजी, ” ये जिंदगी में पहली बार था जब मैंने बापूसा के आलावा उनको राणाजी कहा था

“ये कैसा फैसला हुआ, सबको मालूम है सदियों से जमींदार गरीबो की जमीने ऐसे ही ह्द्पते आये है, इस अनपढ़ को तो पता भी नहीं होगा की जिस कागज़ पे अंगूठा लगवाया है उसपे लिखा क्या गया होगा और कैसा कर्जा , जो जुम्मन के बाप ने लिया था , बहुत खूब पीढ़ी दर पीढ़ी से यही चला आ रहा है बाप का कर्जा बेटा चुकाएगा पर क्यों ”

“यही नियम है समाज का ”

“तो तोड़ दीजिये ये नियम जुम्मन अपने बाप के कर्जे को चुकाने के लिए कर्जा लेगा फिर इसका बेटा इसके कर्जे को चुकाने के लिए कर्जा लेगा ये पिसते जायेंगे कर्जे में और ये जमींदार फूलते जायेंगे ये कहा का इन्सान हुआ मैं नहीं मानता इस फैसले को ”

मैंने पिता की आँखों में एक आग देखि जिसने मुझे भान करवा दिया था की ठाकुर हुकुम सिंह बहुत क्रोध में है और वो दहाड़ते हुए बोले “छोरे, एक बार बोल दिया ना फैसला हो गया है बात ख़तम ये पंचायत ख़तम हो गयी कानूनन अब जमीन रागुबिर की है ”

“;लानत है ऐसे कानूनों पर जिनका जोर खाली कमजोरो पर चलता है गरीबो का खून चूसते है ये कानून और अगर ये कानून सिर्फ जमींदारो के लिए है तो तोड़ दीजिये इन कानूनों को आखिर कब तक हम ढोते रहेंगे परम्परा के इस ढकोसले को ”

“मैं नहीं मानता उस कानून को जो गरीब से उसकी जमीन छीन लेता है वो किसान जो जमीन को अपनी माँ समझता है कोई कैसे हड़प लेगा वो जमीन उस से ”

“जमीन हमेशा जमींदार की ही होती है ”

“नहीं जमीन उस किसान की होती है जो अपनी मेहनत से अपने पसीने से सींचता है उसको जो अपने बच्चो की तरह पालता है फसल को जमीन उस किसान की होती है ”

“मत भूलो तुम ठाकुर हुकम सिंह से के सामने खड़े हो लड़के ”

“और आपके सामने ठाकुर कुंदन सिंह खड़ा है जो ये अन्याय नहीं होने देगा जमीन तो जुम्मन की ही रहेगी ”

“तडक तदाक ” मेरी बात पूरी होने से से पहले ही बापूसा का थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ चूका था और फिर शुरू हुआ सिलसिला मार का राणाजी की बेंत और मेरा शारीर आखिर ठाकुर साहब कैसे बर्दाश्त करते की उनके सामने कोई बोल जाए

सडाक सडाक राणाजी की बेंत मेरी पीठ पर अपना पराक्रम दिखाती रही जी तो बहुत किया की प्रतिकार कर दू पर ठाकुर कुंदन सिंह कमजोर पड़ गया एक पुत्र के आगे वो पुत्र जिसे कुछ देर पहले ही हिमाकत की थी अपने पिता के फैसले को भरी पंचायत में चुनौती देने की बुर्ष्ट कब की तार-तार हो चुकी थी पीठ से मांस उधड़ने लगा था पर हमने भी दर्द को होंठो से बाहर निकलने नहीं दिया



और ना ही राणाजी का हाथ रुका जब बेंत टूट गयी तो थप्पड़ लाते चल पड़ी पर हमने भी जिद कर ही ली थी की जमीन थो उसी की रहेगी जो उसे जोत ता है , पर पता नहीं कब प्रतिकार हार गया दर्द के आगे जब आँखे खुली तो दर्द ने बाहे फैला कर स्वागत किया



अधखुली आँखे फैला कर देखा तो खुद को चौपाल के उसी बूढ़े बरगद के निचे पाया बरसात हो रही थी और आसपास कुछ था तो बस काला स्याह अँधेरा “आह, आई ”कराहते हुए मैंने खुद को उठाने की जदोजहद की मांसपेशिया जैसे ही फद्फदायी दर्द की एक टीस ने जान ही निकाल दी



पथ पर हल्का सा हाथ फेरा तो अहसास हुआ की कुंदन खून अभी भी गरम है आँखों में आंसू एक बार फिर से आ गए और दर्द का सिलसिला साथ हो लिया जिस्म पर पड़ती बरसात की बूंद ऐसे लग रही थी जैसे गोलिया चल रही हो अपने लड़खड़ाते हुए कदमो से जूझते हुए मैं चल पड़ा उस जगह के लिए जिसे घर कहते थे



पर दर्द इतना था की आँखों क आगे अँधेरा छाने लगा और पैर डगमगाने लगे फिर कुछ याद नहीं रहा क्या हुआ क्या नहीं पर जब होश आया तो मैंने खुद को अपने कमरे में पाया , धीरे से मैंने अपनी आँखों को खोला और देखा की राणाजी मेरे पास पलंग पर ही बैठे है मैंने वापिस अपनी आँखों को डर के मारे बंद कर लिया और तभी मुझे एक हाथ मेरे जख्मो पर महसूस हुआ



राणाजी मेरे ज़ख्मो पर लेप लगा रहे थे “आह जलन के मारे मैं तड़प उटाह आःह्ह ” पर वो लेप लगाते रहे मैंने अपने हाथ पर कुछ गीला सा महसूस किया आँखों की झिर्री से देखा वो आंसू था बापूसा की आँखों में आंसू थे जो शायद मैंने अपने जीवन में पहली बार देखे थे लेप लगाने के कुछ देर तक वो मेरे पास ही बैठे रहे और फिर चले गए

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