aage padhiyeshubhs wrote:ये सब क्या कहानी है
नजर का खोट complete
- Kamini
- Novice User
- Posts: 2112
- Joined: 12 Jan 2017 13:15
Re: नजर का खोट
- Kamini
- Novice User
- Posts: 2112
- Joined: 12 Jan 2017 13:15
Re: नजर का खोट
मैंने भाभी के आगे झूठ तो बोल दिया था पर दिल बहुत तेजी से धड़कने लगा था मेरा इस सवाल ने टेंशन दे दी थी पर जवाब अब दिल्ली से आने के बाद ही मिलना था तब तक एक उधेड़बुन सी लगी रहनी थी
भाभी- क्या सोचने लगे
मैं- कुछ नहीं
भाभी- तो जब ब्याह रचा ही लिया है तो मिलवाओ हमारी देवरानी से
मैं- दिल्ली से आते ही पक्का वादा करता हु
भाभी- ह्म्म्म
मैं- पर वो आप जितनी खूबसूरत नहीं है
भाभी- सीरत देखिये देवर जी सूरत का क्या
मैं- सीरत देख कर ही तो उसे चुना है पर भाभी एक पेंच है
भाभी-क्या
मैं- मेरा मन दो हिस्सों में बंटा हुआ है
भाभी- समझी नहीं
मैं- मैं भी नहीं समझा आजतक
मैं भाभी से चिपक गया और सोने की कोशिश करने लगा पर बार बार आँखों के सामने पूजा का मुस्कुराता हुआ चेहरा आ जाता और साथ ही भाभी के वो शब्द की जाहरवीर जी का धागा केवल सुहागन ही उठा सकती है
न जाने कौन से घडी में मैं इन सब बातों में उलझ गया था अच्छा खासा जी रहा था मैंने एक नजर भाभी पर डाली जो बेसुध सो रही थी दिल किया कि चोद दू इसको पर भाभी की नजरों में गिरना नहीं चाहता था
बहुत सोचने के बाद मैंने फैसला किया की भाभी के अतीत को भी खंगाला जाये पर उससे पहले मेरा पूजा से मिलना बहुत जरुरी था अब उसके और मेरे बीच दो तीन दिन का फासला जो था
रात कुछ बातो कुछ यादो कुछ अधूरी हसरतो और कुछ सवालों के साथ कटी जैसे तैसे इस उम्मीद में की आने वाला कल अपना होगा जहा सब कुछ ठीक होगा थोडा सुख होगा और जिंदगी अपनी बाह फैलाये थाम लेगी मुझे खैर, सुबह हम लोग निकल पड़े दिल्ली के लिए भाभी के साथ मैं आज इस हलकी सी सर्द सुबह में कुछ रवानी सा महसूस कर रहा था मेरी धड़कने बढ़ी हुई सी थी .
ये सुबह बहुत अलग सी थी ये हवा के झोंके ये बदलता मौसम ये रवानी और ये सुलगती जवानी हर चीज़ अपने आप में एक कहानी छुपाये हुई थी और मेरा दिल खुद को टुकडो में बंटा हुआ था इस समय एक तरफ भाभी थी मेरी सबसे प्यारी दोस्त और दूसरी तरफ खड़ी थी पूजा जो मेरी जिंदगी की वो बंद किताब थी जिसे अब खोलने का वक़्त आ गया था .
हलकी सी अंगड़ाई लेते हुए मैंने उनके तने हुये बोबो को निहारा तो भाभी बस हंस पड़ी, पकड़ जो लिया था मेरी नजरो को उन्होंने आखिर मेरे इस मुहाजिर मन को हो क्या रहा था आखिर ये क्यों भाभी की तरफ खींचा चला जा रहा था जबकि मेरी मंजिल कही और मेरा इंतजार कर रही थी अपने सर को खिड़की पर टिकाये मैं अपन विचारो में बहुत खो गया था .
न जाने कब भाभी ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया पर जब त्न्र्दा टूटी तो उनको बस अपने आप को ही देखते पाया
मैं- क्या हुआ भाभी
वो- कुछ नहीं
मैं- ऐसे क्या देखते हो
वो- आँखों की गुस्ताखिया है देवर जी
मैं- आप कब से गुस्ताख होने लगी
वो- हम नहीं बस आँखे
मैं-राणाजी ने ये ठीक किया जो पर्सनल केबिन की व्यवस्था करवादी
वो- शायद वो चाहते होंगे की आप हमारे और करीब आ सके इसी बहाने से
मैं- शायद वो अपने लिए सहूलियत चाहते होंगे आखिर पहले आपके साथ आने का उनका ही विचार जो था
भाभी- जो आप ठीक समझे
मैं- काश मैं इन सब में नहीं उलझता तो ठीक रहता सब कितना अच्छा था
वो- नियति फिर भी तुम्हे ले आती
मैं- सही कहा नियति से कौन भाग पाया है पर आखिर मेरी तकदीर में लिखा क्या है
भाभी- ये तो विधाता ही जाने
मैं- क्या आप मेरे साथ है
वो- अंतिम साँस तक
मैं- आप बहुत प्यारी है भाभी
वो- पता है
मैं- कभी कभी जब आप मेरे पास होती है तो खुद को रोक पाना बहुत मुश्किल होता है
वो- किस लिए रोकते हो खुद को फिर
मैं- डर लगता है किसी की नजरो में गिरने का डर है शर्मिंदा होने का
वो- अगर मन में मैल ना हो तो फिर कैसा डर
मैं- डर है भाभी, क्योंकि हक़ नहीं है
भाभी- हक बहुत ही विचित्र शब्द है जिसका होता है उसे मिलता नहीं और जिसका नहीं होता उसकी मिलकियत बन जाता है
मैं- पर फिर भी मेरा डर ही ठीक है
भाभी- कब तक डर के जियोगे
भाभी- क्या सोचने लगे
मैं- कुछ नहीं
भाभी- तो जब ब्याह रचा ही लिया है तो मिलवाओ हमारी देवरानी से
मैं- दिल्ली से आते ही पक्का वादा करता हु
भाभी- ह्म्म्म
मैं- पर वो आप जितनी खूबसूरत नहीं है
भाभी- सीरत देखिये देवर जी सूरत का क्या
मैं- सीरत देख कर ही तो उसे चुना है पर भाभी एक पेंच है
भाभी-क्या
मैं- मेरा मन दो हिस्सों में बंटा हुआ है
भाभी- समझी नहीं
मैं- मैं भी नहीं समझा आजतक
मैं भाभी से चिपक गया और सोने की कोशिश करने लगा पर बार बार आँखों के सामने पूजा का मुस्कुराता हुआ चेहरा आ जाता और साथ ही भाभी के वो शब्द की जाहरवीर जी का धागा केवल सुहागन ही उठा सकती है
न जाने कौन से घडी में मैं इन सब बातों में उलझ गया था अच्छा खासा जी रहा था मैंने एक नजर भाभी पर डाली जो बेसुध सो रही थी दिल किया कि चोद दू इसको पर भाभी की नजरों में गिरना नहीं चाहता था
बहुत सोचने के बाद मैंने फैसला किया की भाभी के अतीत को भी खंगाला जाये पर उससे पहले मेरा पूजा से मिलना बहुत जरुरी था अब उसके और मेरे बीच दो तीन दिन का फासला जो था
रात कुछ बातो कुछ यादो कुछ अधूरी हसरतो और कुछ सवालों के साथ कटी जैसे तैसे इस उम्मीद में की आने वाला कल अपना होगा जहा सब कुछ ठीक होगा थोडा सुख होगा और जिंदगी अपनी बाह फैलाये थाम लेगी मुझे खैर, सुबह हम लोग निकल पड़े दिल्ली के लिए भाभी के साथ मैं आज इस हलकी सी सर्द सुबह में कुछ रवानी सा महसूस कर रहा था मेरी धड़कने बढ़ी हुई सी थी .
ये सुबह बहुत अलग सी थी ये हवा के झोंके ये बदलता मौसम ये रवानी और ये सुलगती जवानी हर चीज़ अपने आप में एक कहानी छुपाये हुई थी और मेरा दिल खुद को टुकडो में बंटा हुआ था इस समय एक तरफ भाभी थी मेरी सबसे प्यारी दोस्त और दूसरी तरफ खड़ी थी पूजा जो मेरी जिंदगी की वो बंद किताब थी जिसे अब खोलने का वक़्त आ गया था .
हलकी सी अंगड़ाई लेते हुए मैंने उनके तने हुये बोबो को निहारा तो भाभी बस हंस पड़ी, पकड़ जो लिया था मेरी नजरो को उन्होंने आखिर मेरे इस मुहाजिर मन को हो क्या रहा था आखिर ये क्यों भाभी की तरफ खींचा चला जा रहा था जबकि मेरी मंजिल कही और मेरा इंतजार कर रही थी अपने सर को खिड़की पर टिकाये मैं अपन विचारो में बहुत खो गया था .
न जाने कब भाभी ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया पर जब त्न्र्दा टूटी तो उनको बस अपने आप को ही देखते पाया
मैं- क्या हुआ भाभी
वो- कुछ नहीं
मैं- ऐसे क्या देखते हो
वो- आँखों की गुस्ताखिया है देवर जी
मैं- आप कब से गुस्ताख होने लगी
वो- हम नहीं बस आँखे
मैं-राणाजी ने ये ठीक किया जो पर्सनल केबिन की व्यवस्था करवादी
वो- शायद वो चाहते होंगे की आप हमारे और करीब आ सके इसी बहाने से
मैं- शायद वो अपने लिए सहूलियत चाहते होंगे आखिर पहले आपके साथ आने का उनका ही विचार जो था
भाभी- जो आप ठीक समझे
मैं- काश मैं इन सब में नहीं उलझता तो ठीक रहता सब कितना अच्छा था
वो- नियति फिर भी तुम्हे ले आती
मैं- सही कहा नियति से कौन भाग पाया है पर आखिर मेरी तकदीर में लिखा क्या है
भाभी- ये तो विधाता ही जाने
मैं- क्या आप मेरे साथ है
वो- अंतिम साँस तक
मैं- आप बहुत प्यारी है भाभी
वो- पता है
मैं- कभी कभी जब आप मेरे पास होती है तो खुद को रोक पाना बहुत मुश्किल होता है
वो- किस लिए रोकते हो खुद को फिर
मैं- डर लगता है किसी की नजरो में गिरने का डर है शर्मिंदा होने का
वो- अगर मन में मैल ना हो तो फिर कैसा डर
मैं- डर है भाभी, क्योंकि हक़ नहीं है
भाभी- हक बहुत ही विचित्र शब्द है जिसका होता है उसे मिलता नहीं और जिसका नहीं होता उसकी मिलकियत बन जाता है
मैं- पर फिर भी मेरा डर ही ठीक है
भाभी- कब तक डर के जियोगे
- Kamini
- Novice User
- Posts: 2112
- Joined: 12 Jan 2017 13:15
Re: नजर का खोट
मैं- तो आप ही बताओ क्या करू दिल कहता है आपको अपनी बाहों में भर लू जब जब आपके गले लगता हु एक ठंडक सी मिलती है दिल करता है की आपके इन रसीले होंठो का रस पी लू जी भर के पर फिर दिल दोराहे पर ले आता है आप ही बताओ ये क्या है क्या और ठाकुरों की तरह मुझे भी बस जिस्म की प्यास ही है या दिल का निकम्मा पण है ये
भाभी- ये जिस्म है भी तो क्या कुंदन कुछ भी तो नहीं कुछ साल बाद जवानी ढलने लगेगी ये प्यास है भी तो क्या बस एक छलावा जैसे किसी भटकते मुसाफिर को रेगिस्तान में नखलिस्तान का बार बार होता भ्रम , ये प्यास एक भरम है एक लालच है तुम्हे लगेगा ये मिट गयी बुझ गयी पर कुछ देर बाद फिर से ............ दरअसल ये सब एक हिरन और कस्तूरी के रिश्ते सा है कस्तूरी की महक को जिन्दगी भर तलाश करता है वो पर नादाँ कभी समझ नहीं पाता की ये महक उसके अन्दर से ही आ रही है
मैं- सही कहा भाभी पर अगर ये जिस्म की प्यास नहीं तो फिर क्या है आखिर क्यों ऐसा लगता है की आप की छाया की तरह मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व पर छाती जा रही है
भाभी- मित्रता और प्रेम के बीच खडे हो तुम कुंदन चुनाव तुम्हे करना है या फिर दोनों को साथ ले कर भी तुम चल सकते हो अगर तुम इस काबिल हो तो , रही बात मेरी तो मैं तुम्हारा अकर्ष्ण हो सकती हु मैं तुम्हारे सफ़र की वो सराय हो सकती हु जहा तुम्हे कुछ समय पनाह मिल जाये पर मैं तुम्हारी मंजिल कभी नहीं हो सकुंगी अब निर्णय तुम्हे करना है
मैं-मैं मंजधार में हु भाभी
वो- अक्सर दो नावो की सवारी वाले नाविक डूबा ही करते है कुंदन और मैं तो तीसरा जहाज हु कुंदन
भाभी की बात सुनकर मैं हैरत में रह गया कितना जानती थी वो मुझे
मैं- आप कमाल है भाभी पर फिर भी .........
वो- फिर भी क्या जहाज की सवारी करोगे, नहीं, तुम नहीं थाम सकोगे पतवार क्योंकि इस जहाज के तले में छेद है इसे तो डूबना ही है भला तुम कैसे पार लगाओगे
मैं- आपका इशारा समझ रहा हु मैं पर इतना तो हक़ है मेरा
भाभी- हक़ तुम्हारा नहीं मेरा है और किस हक़ की बात करते हो तुम , इस जिस्म पर तुम्हारा कोई हक़ नहीं
मैं- जिस्म की तो मैंने बात ही नहीं की मैंने तो उस दिल की बात की जो जख्मी पड़ा है उसके ज़ख्मो पर मरहम लगाने का हक़ तो है मेरा और ये हक़ आप छीन नहीं सकती मुझसे
भाभी- पर इस दिल का रस्ता इस जिस्म से होकर गुजरेगा देवर जी
मैं- वासना और प्रेम में अंतर है ऐसा आपन ही कहा था
भाभी- ठाकुर हो, तलाश ही लिया तरीका तुमने आखिर
मैं- मुझे इस जिस्म की चाहत नहीं भाभी
भाभी- पर मेरा तन, मेरा मन कोई भी नहीं तुम्हारा
मैं- अगर ऐसा है तो छोड़ क्यों नहीं देती मेरा हाथ इस मंजधार में, मैं कर लूँगा इस भंवर को पार
भाभी- छोड़ भी तो नहीं सकती और थाम भी तो नहीं सकती कैसा नसीब है मेरा काश मैं तुम्हे समझा सकती पर तुम समझ नहीं पाओगे और मैं बता नहीं सकती बस इतना तय है की अंतिम साँस तक मैं तुम्हारा साया हु तुम जिस राह के पथिक हो मैं छाया हु उस सफ़र की
मैं- तो फिर क्यों नहीं देती पनाह मुझे अपनी बाहों में
भाभी- क्योंकि टूट कर बिखर जाओगे तुम और मैं ऐसा देख नहीं पाऊँगी
मैं- कोई गम नहीं अगर मैं टूट भी जाऊ आप संभाल लोगी
भाभी ने कस के मुझे अपने सीने से लगा लिया उनकी आँखों से गिरते आंसू मेरे गालो पर अपना नाम दर्ज करवा गए
भाभी ने बहुत कुछ कह दिया था और मैं अब भी हैरान था परेशां था ज़िन्दगी ये किस मोड़ पर ले आयी थी बस रोने को जी चाहता था पर मर्द का यही तो दोष है रो भी नहीं सकता औरत हो तो रोकर अपना गुबार निकाल ले पर आदमी क्या करे
बाकि का सफर दो अजनबियों की तरह बीता न मैंने कुछ कहा और न भाभी ने चुप्पी तोड़ी दिल्ली पहुचते ही हम सीधा होटल के कमरे में गए जहाँ हमारे रुकने की व्यवस्था थी उसके बाद अगले दिन लगभग पूरा ही फौज की कार्यवाही में गुजरा
उसके बाद मैं और भाभी घूमने गए मैं गाँव का लौंडा पहली बार इतने बड़े सहर में आया था तो बस इसकी चकाचौन्ध ही देखता रह गया यहाँ का खुला उन्मुक्त वातावरण और मेरे साथ भाभी जैसी खूबसूरत महिला
भाभी- ये जिस्म है भी तो क्या कुंदन कुछ भी तो नहीं कुछ साल बाद जवानी ढलने लगेगी ये प्यास है भी तो क्या बस एक छलावा जैसे किसी भटकते मुसाफिर को रेगिस्तान में नखलिस्तान का बार बार होता भ्रम , ये प्यास एक भरम है एक लालच है तुम्हे लगेगा ये मिट गयी बुझ गयी पर कुछ देर बाद फिर से ............ दरअसल ये सब एक हिरन और कस्तूरी के रिश्ते सा है कस्तूरी की महक को जिन्दगी भर तलाश करता है वो पर नादाँ कभी समझ नहीं पाता की ये महक उसके अन्दर से ही आ रही है
मैं- सही कहा भाभी पर अगर ये जिस्म की प्यास नहीं तो फिर क्या है आखिर क्यों ऐसा लगता है की आप की छाया की तरह मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व पर छाती जा रही है
भाभी- मित्रता और प्रेम के बीच खडे हो तुम कुंदन चुनाव तुम्हे करना है या फिर दोनों को साथ ले कर भी तुम चल सकते हो अगर तुम इस काबिल हो तो , रही बात मेरी तो मैं तुम्हारा अकर्ष्ण हो सकती हु मैं तुम्हारे सफ़र की वो सराय हो सकती हु जहा तुम्हे कुछ समय पनाह मिल जाये पर मैं तुम्हारी मंजिल कभी नहीं हो सकुंगी अब निर्णय तुम्हे करना है
मैं-मैं मंजधार में हु भाभी
वो- अक्सर दो नावो की सवारी वाले नाविक डूबा ही करते है कुंदन और मैं तो तीसरा जहाज हु कुंदन
भाभी की बात सुनकर मैं हैरत में रह गया कितना जानती थी वो मुझे
मैं- आप कमाल है भाभी पर फिर भी .........
वो- फिर भी क्या जहाज की सवारी करोगे, नहीं, तुम नहीं थाम सकोगे पतवार क्योंकि इस जहाज के तले में छेद है इसे तो डूबना ही है भला तुम कैसे पार लगाओगे
मैं- आपका इशारा समझ रहा हु मैं पर इतना तो हक़ है मेरा
भाभी- हक़ तुम्हारा नहीं मेरा है और किस हक़ की बात करते हो तुम , इस जिस्म पर तुम्हारा कोई हक़ नहीं
मैं- जिस्म की तो मैंने बात ही नहीं की मैंने तो उस दिल की बात की जो जख्मी पड़ा है उसके ज़ख्मो पर मरहम लगाने का हक़ तो है मेरा और ये हक़ आप छीन नहीं सकती मुझसे
भाभी- पर इस दिल का रस्ता इस जिस्म से होकर गुजरेगा देवर जी
मैं- वासना और प्रेम में अंतर है ऐसा आपन ही कहा था
भाभी- ठाकुर हो, तलाश ही लिया तरीका तुमने आखिर
मैं- मुझे इस जिस्म की चाहत नहीं भाभी
भाभी- पर मेरा तन, मेरा मन कोई भी नहीं तुम्हारा
मैं- अगर ऐसा है तो छोड़ क्यों नहीं देती मेरा हाथ इस मंजधार में, मैं कर लूँगा इस भंवर को पार
भाभी- छोड़ भी तो नहीं सकती और थाम भी तो नहीं सकती कैसा नसीब है मेरा काश मैं तुम्हे समझा सकती पर तुम समझ नहीं पाओगे और मैं बता नहीं सकती बस इतना तय है की अंतिम साँस तक मैं तुम्हारा साया हु तुम जिस राह के पथिक हो मैं छाया हु उस सफ़र की
मैं- तो फिर क्यों नहीं देती पनाह मुझे अपनी बाहों में
भाभी- क्योंकि टूट कर बिखर जाओगे तुम और मैं ऐसा देख नहीं पाऊँगी
मैं- कोई गम नहीं अगर मैं टूट भी जाऊ आप संभाल लोगी
भाभी ने कस के मुझे अपने सीने से लगा लिया उनकी आँखों से गिरते आंसू मेरे गालो पर अपना नाम दर्ज करवा गए
भाभी ने बहुत कुछ कह दिया था और मैं अब भी हैरान था परेशां था ज़िन्दगी ये किस मोड़ पर ले आयी थी बस रोने को जी चाहता था पर मर्द का यही तो दोष है रो भी नहीं सकता औरत हो तो रोकर अपना गुबार निकाल ले पर आदमी क्या करे
बाकि का सफर दो अजनबियों की तरह बीता न मैंने कुछ कहा और न भाभी ने चुप्पी तोड़ी दिल्ली पहुचते ही हम सीधा होटल के कमरे में गए जहाँ हमारे रुकने की व्यवस्था थी उसके बाद अगले दिन लगभग पूरा ही फौज की कार्यवाही में गुजरा
उसके बाद मैं और भाभी घूमने गए मैं गाँव का लौंडा पहली बार इतने बड़े सहर में आया था तो बस इसकी चकाचौन्ध ही देखता रह गया यहाँ का खुला उन्मुक्त वातावरण और मेरे साथ भाभी जैसी खूबसूरत महिला
- Kamini
- Novice User
- Posts: 2112
- Joined: 12 Jan 2017 13:15
Re: नजर का खोट
मेरे दिल का चोर गुस्ताखी करने को मचलने लगा डीटीसी की बस में भीड़ के दवाब के साथ भाभी के जिस्म की वो रगड़ाई,बस में उनके पसीने की वो मादक गन्ध मुझ पर अपना जादू चला रही थी ऊपर से होचकोले खाती बस मेरा तना हुआ हथियार भाभी के नितंबो पर लगातार दवाब डाल रहा था ।
बस जब जब मोड़ लेती मैं अपना हाथ कमर पर रख देता और भाभी के कांपते जिस्म को एहसास करवाता की मैं सुलग रहा हु,जब भी भाभी थोड़ी सी कसमसाती मेरे लण्ड को असीम सुख मिलता हलकी सर्दी के मौसम में भी भाभी के चेहरे पर पसीना छलक आया था
जब मैंने उनके गले के पिछले हिस्से पर रिसती पसीने की बूंदों को भरी भीड़ में चाट लिया तो भाभी सिहर ही गयी पर किस्मत, हमारा स्टॉप भी अभी आना था तो हम उतर गए न वो कुछ बोली न मैं
पर जैसे ही कमरे में आये भाभी ने मुझे खींच कर दिवार के सहारे लगा दिया और अपने सुर्ख होंटो को मेरे होंटो से जोड़ दिया भाभी के दांत बेदर्दी से मेरे होंठो को काटने लगे यहाँ तक की खून निकल आया
मैं- आह, काट लिया ना
भाभी- क्यों क्या हुआ बस में तो बड़ी आशिकी हो रही तो
मैं- हालात पे काबू नहीं रख पाया मैं
भाभी- तो अब मैं काबू नहीं रख पा रही हु
भाभी ने एक बार फिर से किस करना शुरू किया और साथ ही मेरे लण्ड से खेलने लगी कब उनकी उंगलियो ने उसे बाहर निकाल लिया पता ही नहीं, भाभी की मुठ्ठी मेरे लण्ड पर कसी हुई थी और जीभ मेरी जीभ से रगड़ खा रही थी
उत्तेजना से मेरा पूरा जिस्म कांप रहा था उनकी तनी हुई छातियों के निप्पल मेरे सीने में जैसे सुराख़ कर देना चाहते थे ,भाभी बड़ी तल्लीनता से मुझे चूमे जा रही थी पर कुछ देर बाद भाभी भाभी ने किस तोड़ दी और मुझ से अलग हो गयी
भाभी हाँफते हुए- आगे से ऐसी कोई हरकत मत करना
मैंने बस गर्दन हिला दी
भाभी- नहाने जा रही हु
भाभी ने बैग से अपने कपडे निकाले और बाथरूम में घुस गयी पर उन्होंने दरवाजे की सिटकनी नहीं लगायी कुछ मिनट बाद शावर की आवाज आने लगी ,अभी अभी जो भाभी ने किया वो मेरे दिमाग को भन्ना गया था मेरा लण्ड दोनों टांगो के बीच झूल रहा था
कुछ सोच कर मैंने अपने कपडे उतारे और नँगा ही बाथरूम की और चल दिया मैंने दरवाजे को हल्का सा धकियाया और जो नजारा देखा उसके बाद लगा की जन्नत कही है तो यही है भाभी शावर के नीचे पूर्ण नग्न अवस्था में मेरी तरफ पीठ किये खड़ी थी
इतना कातिलाना नजारा देख कर मेरे लण्ड की ऐंठन और बढ़ गयी धड़कने दिल को चीर ही देना चाहती थी गले से थूक सूख गया मैं भाभी के पास गया और पीछे से उनको पकड़ लिया भाभी ने नजर घुमा कर मेरी ओर देखा और फिर खुद को ढीला छोड़ दिया मेरी बाहों में
मेरे हाथ भाभी के उन्नत उभारो पर पहुच गए थे और लण्ड उनकी गांड की दरार पर अपनी दस्तक दे रहा था ,ऊपर से गिरती पानी की बूंदों ने उत्तेजना को शिखर पर पंहुचा दिया था
"आई" भाभी की आह फुट पड़ी जब मैंने उनके निप्पल्स को अपनी उंगलियों में फंसा लिया गहरे काले रंग के निप्पल्स जैसे अंगूर के दाने हो ,भाभी की गर्दन को चूमते हुए मैं धीरे धीरे अपने हाथों का दवाब भाभी की गदराई छातियों पर डालने लगा था
तभी भाभी ने अपने पैर खोलते हुए अपनी गांड का पूरा भार मेरे लण्ड पर डाल दिया जिससे वो फिसलता हुआ भाभी की बिना बालो वाली चूत जे मुहाने पर आ टिका उफ्फ्फ मैं भाभी की इस हरकत से पागल ही हो गया था उत्तेजना वश मैंने भाभी की गर्दन पर काट लिया तो भाभी सिसक उठी
मैंने अब भाभी को पलट दिया और उनकी चूची को अपने मुंह में भर लिया भाभी का बदन हलके हल्के कांप रहां था जैसे ही मेरी उंगलिया भाभी की योनि पर पहुची भाभी ने अपनी जांघो को भीच लिया तभी मैंने चिकोटी काट ली जिससे उनके पैर खुल गए और तभी मेरी ऊँगली योनि में सरक गयी
भाभी की चूत अंदर से तप रही थी उनके उभारो को चूसते हुए मैं चूत में ऊँगली अंदर बाहर कर रहा था धीरे धीरे भाभी पस्त होने लगी थी और फिर मैं नीचे भाभी के पैरों के बीच बैठ गया और उनके पैरों को चौड़ा करते हुए गुलाबी चूत को अपने मुंह में भर लिया
जैसे ही मेरी खुरदरी जीभ का अहसास चूत की फांको को हुआ उन्होंने अपना रस छोड़ना चालू कर दिया भाभी की चूत में मेरी जीभ जैसे करंट लगा रही थी उनको पुरे बाथरूम को सुलगा दिया था भाभीकी आहो ने
टप टप शावर से गिरती पानी की बूंदों के बीच भाभी का तपता बदन मेरे इशारो का मोहताज था भाभी की चूत का नमकीन रस मेरी जीभ से लिपटा हुआ था भाभी के कूल्हे मटकने लगे थे पैर कांप रहे थे और तभी भाभी को पता नहीं क्या सुझा उन्होंने मुझे धक्का देकर अपने से अलग कर दिया और बाथरूम से बाहर निकाल दिया दरवाजा बंद कर लिया और मैं खड़ा रह गया बाहर ,मैं समझ गया था की शायद वो आगे नहीं बढ़ना चाहती पर फिर क्यों यहाँ तक भी नहीं रोका था
हार कर मैंने अपने कपडे पहने और बिस्तर पर लेट गया और पूजा फिर से मेरे ख्यालो पर कब्ज़ा करने लगी मैंने सोच लिया था की यहाँ से जाते ही कुछ तीखे सवाल उससे करूँगा जिनको चाह कर भी वो टाल नहीं पायेगी.
साथ ही भाभी से भी कुछ और बाते पता कर लूंगा साथ ही मैंने सोचा की क्या ये सही समय है राणाजी से खुल के बात करने का ,तमाम सवाल एक बार फिर से मेरे दिमाग में हलचल मचाने लगे थे
और जवाब एक भी नहीं था बल्कि हर जवाब देने वाला खुद सामने सवाल बनकर खड़ा था मामला बहुत जटिल था ऊपर से खारी बावड़ी में मैंने पद्मिनी को देखा था पर भाभी ने उसकी मौजूदगी को सिरे से निकाल दिया
बस जब जब मोड़ लेती मैं अपना हाथ कमर पर रख देता और भाभी के कांपते जिस्म को एहसास करवाता की मैं सुलग रहा हु,जब भी भाभी थोड़ी सी कसमसाती मेरे लण्ड को असीम सुख मिलता हलकी सर्दी के मौसम में भी भाभी के चेहरे पर पसीना छलक आया था
जब मैंने उनके गले के पिछले हिस्से पर रिसती पसीने की बूंदों को भरी भीड़ में चाट लिया तो भाभी सिहर ही गयी पर किस्मत, हमारा स्टॉप भी अभी आना था तो हम उतर गए न वो कुछ बोली न मैं
पर जैसे ही कमरे में आये भाभी ने मुझे खींच कर दिवार के सहारे लगा दिया और अपने सुर्ख होंटो को मेरे होंटो से जोड़ दिया भाभी के दांत बेदर्दी से मेरे होंठो को काटने लगे यहाँ तक की खून निकल आया
मैं- आह, काट लिया ना
भाभी- क्यों क्या हुआ बस में तो बड़ी आशिकी हो रही तो
मैं- हालात पे काबू नहीं रख पाया मैं
भाभी- तो अब मैं काबू नहीं रख पा रही हु
भाभी ने एक बार फिर से किस करना शुरू किया और साथ ही मेरे लण्ड से खेलने लगी कब उनकी उंगलियो ने उसे बाहर निकाल लिया पता ही नहीं, भाभी की मुठ्ठी मेरे लण्ड पर कसी हुई थी और जीभ मेरी जीभ से रगड़ खा रही थी
उत्तेजना से मेरा पूरा जिस्म कांप रहा था उनकी तनी हुई छातियों के निप्पल मेरे सीने में जैसे सुराख़ कर देना चाहते थे ,भाभी बड़ी तल्लीनता से मुझे चूमे जा रही थी पर कुछ देर बाद भाभी भाभी ने किस तोड़ दी और मुझ से अलग हो गयी
भाभी हाँफते हुए- आगे से ऐसी कोई हरकत मत करना
मैंने बस गर्दन हिला दी
भाभी- नहाने जा रही हु
भाभी ने बैग से अपने कपडे निकाले और बाथरूम में घुस गयी पर उन्होंने दरवाजे की सिटकनी नहीं लगायी कुछ मिनट बाद शावर की आवाज आने लगी ,अभी अभी जो भाभी ने किया वो मेरे दिमाग को भन्ना गया था मेरा लण्ड दोनों टांगो के बीच झूल रहा था
कुछ सोच कर मैंने अपने कपडे उतारे और नँगा ही बाथरूम की और चल दिया मैंने दरवाजे को हल्का सा धकियाया और जो नजारा देखा उसके बाद लगा की जन्नत कही है तो यही है भाभी शावर के नीचे पूर्ण नग्न अवस्था में मेरी तरफ पीठ किये खड़ी थी
इतना कातिलाना नजारा देख कर मेरे लण्ड की ऐंठन और बढ़ गयी धड़कने दिल को चीर ही देना चाहती थी गले से थूक सूख गया मैं भाभी के पास गया और पीछे से उनको पकड़ लिया भाभी ने नजर घुमा कर मेरी ओर देखा और फिर खुद को ढीला छोड़ दिया मेरी बाहों में
मेरे हाथ भाभी के उन्नत उभारो पर पहुच गए थे और लण्ड उनकी गांड की दरार पर अपनी दस्तक दे रहा था ,ऊपर से गिरती पानी की बूंदों ने उत्तेजना को शिखर पर पंहुचा दिया था
"आई" भाभी की आह फुट पड़ी जब मैंने उनके निप्पल्स को अपनी उंगलियों में फंसा लिया गहरे काले रंग के निप्पल्स जैसे अंगूर के दाने हो ,भाभी की गर्दन को चूमते हुए मैं धीरे धीरे अपने हाथों का दवाब भाभी की गदराई छातियों पर डालने लगा था
तभी भाभी ने अपने पैर खोलते हुए अपनी गांड का पूरा भार मेरे लण्ड पर डाल दिया जिससे वो फिसलता हुआ भाभी की बिना बालो वाली चूत जे मुहाने पर आ टिका उफ्फ्फ मैं भाभी की इस हरकत से पागल ही हो गया था उत्तेजना वश मैंने भाभी की गर्दन पर काट लिया तो भाभी सिसक उठी
मैंने अब भाभी को पलट दिया और उनकी चूची को अपने मुंह में भर लिया भाभी का बदन हलके हल्के कांप रहां था जैसे ही मेरी उंगलिया भाभी की योनि पर पहुची भाभी ने अपनी जांघो को भीच लिया तभी मैंने चिकोटी काट ली जिससे उनके पैर खुल गए और तभी मेरी ऊँगली योनि में सरक गयी
भाभी की चूत अंदर से तप रही थी उनके उभारो को चूसते हुए मैं चूत में ऊँगली अंदर बाहर कर रहा था धीरे धीरे भाभी पस्त होने लगी थी और फिर मैं नीचे भाभी के पैरों के बीच बैठ गया और उनके पैरों को चौड़ा करते हुए गुलाबी चूत को अपने मुंह में भर लिया
जैसे ही मेरी खुरदरी जीभ का अहसास चूत की फांको को हुआ उन्होंने अपना रस छोड़ना चालू कर दिया भाभी की चूत में मेरी जीभ जैसे करंट लगा रही थी उनको पुरे बाथरूम को सुलगा दिया था भाभीकी आहो ने
टप टप शावर से गिरती पानी की बूंदों के बीच भाभी का तपता बदन मेरे इशारो का मोहताज था भाभी की चूत का नमकीन रस मेरी जीभ से लिपटा हुआ था भाभी के कूल्हे मटकने लगे थे पैर कांप रहे थे और तभी भाभी को पता नहीं क्या सुझा उन्होंने मुझे धक्का देकर अपने से अलग कर दिया और बाथरूम से बाहर निकाल दिया दरवाजा बंद कर लिया और मैं खड़ा रह गया बाहर ,मैं समझ गया था की शायद वो आगे नहीं बढ़ना चाहती पर फिर क्यों यहाँ तक भी नहीं रोका था
हार कर मैंने अपने कपडे पहने और बिस्तर पर लेट गया और पूजा फिर से मेरे ख्यालो पर कब्ज़ा करने लगी मैंने सोच लिया था की यहाँ से जाते ही कुछ तीखे सवाल उससे करूँगा जिनको चाह कर भी वो टाल नहीं पायेगी.
साथ ही भाभी से भी कुछ और बाते पता कर लूंगा साथ ही मैंने सोचा की क्या ये सही समय है राणाजी से खुल के बात करने का ,तमाम सवाल एक बार फिर से मेरे दिमाग में हलचल मचाने लगे थे
और जवाब एक भी नहीं था बल्कि हर जवाब देने वाला खुद सामने सवाल बनकर खड़ा था मामला बहुत जटिल था ऊपर से खारी बावड़ी में मैंने पद्मिनी को देखा था पर भाभी ने उसकी मौजूदगी को सिरे से निकाल दिया
- Kamini
- Novice User
- Posts: 2112
- Joined: 12 Jan 2017 13:15
Re: नजर का खोट
तभी भाभी बाथरूम से निकली कुछ समय लिया उन्होंने तैयार होने में उसके बाद हमने खाना खाया बाथरूम वाली बात का जिक्र तक नहीं किया उन्होंने करिब घण्टे भर बाद हम साथ बैठे थे।
मैं-आप खजाने की प्रथम प्रहरी कैसे है
भाभी- बस इतना समझ लो की मैं हु क्यों कैसे किसलिए इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता है
मैं- पर जब वारिस आएगा तो खजाना वैसे ही ले लेगा ना
भाभी- ऐसे ही नहीं उसे साबित करना होगा की वो ही असली हकदार है
मैं- कैसे
भाभी- खजाना पहचान लेगा उसे
मैं- तो फिर प्रहरी क्यों
भाभी- कहा न ताकि भूल से भी खजाना गलत हाथो में ना जा सके ये एक बहुत ही जटिल व्यवस्था है जिसे तुम नहीं समझ पाओगे
मैं- तो क्या राणाजी और भैया को इस बात का पता है
भाभी- मैं प्रहरी इसीलिए हु की वो इस खजाने को छू भी न सके ,पर ये बात उनकी समझ में नहीं आयी ये सब एक भूलभुलैया है कुंदन
मैं- आप खुल कर क्यों नहीं बताती है की असल में ये सब है क्या
भाभी- बात सिर्फ इतनी है की अगर तुम खुद को वारिस समझते हो तो प्रयास कर लो
मैं- पर मुझे कुछ नहीं चाहिए
भाभी- तो दूर रहो इनसब से
मैं- पर वारिस
भाभी- ले आओ उसको और बात खत्म
मैं- नहीं बल्कि सब शुरू तब होगा जब वारिस खजाना निकाल लेगा और तब राणाजी अपना जोर लगाएंगे
भाभी- अब की तुमने सही बात
मैं- पर मैं ऐसा होने नहीं दूंगा
भाभी- राणाजी को रोक सकोगे
मैं- हां
भाभी- तो ले आना वारिस को
मैं- उसे भी नहीं चाहिए खजाना भाभी उसकी चाहत कुछ और है
भाभी- इस जहाँ में बस दो चाहत होती है औरत का जिस्म और बेपनाह दौलत
मैं- मैंने कहा न उसकी चाहत कुछ और है
भाभी- काश मैं भी ऐसा कह पाती
मैं- भाभी एक सौदा करोगी
वो- कैसा सौदा
मैं- मैं आपको कुछ बाते बताउंगा आप मुझे और मैं वादा करता हु की आपको खजाने का आधा हिस्सा दूंगा
भाभी- हँसी आती है तुम पर देवर जी ,तुम अभी भी नहीं समझे भला मुझे धन का क्या लोभ है क्या करुँगी इन सब का , पर फिर भी तुम्हारी जानकारी के लिए बता दू जिस खजाने की बात कर रहे हो उसका आधा हिस्सा मेरा ही हैं
मैं-आप खजाने की प्रथम प्रहरी कैसे है
भाभी- बस इतना समझ लो की मैं हु क्यों कैसे किसलिए इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता है
मैं- पर जब वारिस आएगा तो खजाना वैसे ही ले लेगा ना
भाभी- ऐसे ही नहीं उसे साबित करना होगा की वो ही असली हकदार है
मैं- कैसे
भाभी- खजाना पहचान लेगा उसे
मैं- तो फिर प्रहरी क्यों
भाभी- कहा न ताकि भूल से भी खजाना गलत हाथो में ना जा सके ये एक बहुत ही जटिल व्यवस्था है जिसे तुम नहीं समझ पाओगे
मैं- तो क्या राणाजी और भैया को इस बात का पता है
भाभी- मैं प्रहरी इसीलिए हु की वो इस खजाने को छू भी न सके ,पर ये बात उनकी समझ में नहीं आयी ये सब एक भूलभुलैया है कुंदन
मैं- आप खुल कर क्यों नहीं बताती है की असल में ये सब है क्या
भाभी- बात सिर्फ इतनी है की अगर तुम खुद को वारिस समझते हो तो प्रयास कर लो
मैं- पर मुझे कुछ नहीं चाहिए
भाभी- तो दूर रहो इनसब से
मैं- पर वारिस
भाभी- ले आओ उसको और बात खत्म
मैं- नहीं बल्कि सब शुरू तब होगा जब वारिस खजाना निकाल लेगा और तब राणाजी अपना जोर लगाएंगे
भाभी- अब की तुमने सही बात
मैं- पर मैं ऐसा होने नहीं दूंगा
भाभी- राणाजी को रोक सकोगे
मैं- हां
भाभी- तो ले आना वारिस को
मैं- उसे भी नहीं चाहिए खजाना भाभी उसकी चाहत कुछ और है
भाभी- इस जहाँ में बस दो चाहत होती है औरत का जिस्म और बेपनाह दौलत
मैं- मैंने कहा न उसकी चाहत कुछ और है
भाभी- काश मैं भी ऐसा कह पाती
मैं- भाभी एक सौदा करोगी
वो- कैसा सौदा
मैं- मैं आपको कुछ बाते बताउंगा आप मुझे और मैं वादा करता हु की आपको खजाने का आधा हिस्सा दूंगा
भाभी- हँसी आती है तुम पर देवर जी ,तुम अभी भी नहीं समझे भला मुझे धन का क्या लोभ है क्या करुँगी इन सब का , पर फिर भी तुम्हारी जानकारी के लिए बता दू जिस खजाने की बात कर रहे हो उसका आधा हिस्सा मेरा ही हैं