नजर का खोट complete

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shubhs
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Re: नजर का खोट

Post by shubhs »

बिल्कुल अपडेट आना चाहिए
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

zainu98 wrote:pls update do na kamini bahut din ho gay hai ab to aak mega update banta hai
shubhs wrote:बिल्कुल अपडेट आना चाहिए

aj update aa raha hai
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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

पहली बार उसकी मुस्कराहट में बेईमानी सी लगी मुझे उसने जिस अदा से देखा था मुझे मेरे दिल ने कुछ कहा मुझसे पर पूजा की आँखों में एक दृढ़ संकल्प दिखा मुझे ,उसने हौले से मेरे सर को थपथपाया और जैसे एक सर्द हवा का झोंका मुझे छू गया

बीते कुछ महीनों में ज़िन्दगी मुझे कहा से कहा ले आयी थी मेरा हर ख्वाब हर तदबीर धुंआ धुंआ हो गयी थी अपने परिवार का काला सच सुनकर मैं इस हद तक टूट गया था की अगर पूजा न होती तो मैं मर ही जाता पर आखिर राणाजी और मेनका को ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी थी की वो वक़्त के किस पन्ने को पलट देना चाहते थे

जैसे जैसे समय बीत रहा था एक अनजान भय मेरी रूह को जकड रहा था , अपने आप से भागते हुए दो पल मेरी आँखे बंद हुई और मैंने तभी कुछ ऐसा देखा की एक बार फिर मैं कांप गया मैंने बस उन दो पलो में ऐसा विहंगम द्रश्य देखा

मैंने देखा की राणाजी का कटा हुआ सर मेरे कदमो में पड़ा है और मेरे हाथ में तलवार और दूसरे में एक लाल ओढ़नी है रक्त रंजित जिसका रक्त मुझे भिगो रहा था माथे पर आ गए पसीने को पोंछ कर कुछ घूंट पानी पिया

पर दिल अभी भी किसी अनजानी आशंका की तरफ इशारा कर रहा था कलाई में बंधी घडी की तरफ मैंने देखा अभी कुछ समय सेष था पर लाल मंदिर का ये हिस्सा पूरी तरह खामोश था तभी पायल की झंकार ने मेरा ध्यान खींचा सीढ़िया चढ़ते हुए पूजा आ रही थी
और मैंने गौर किया पूजा ने ठीक उसी तरह की ओढ़नी ओढ़ी हुई थी जैसे मैंने उस सपने में देखि थी दिल और तेजी से धड़कने लगा

पूजा- तैयार हो

मैं- हां

मैं और पूजा गर्भग्रह में गए और जैसे ही पूजा ने अपना पैर उस चौखट के अंदर रखा उसकी पायल एक झटके से टूट गयी, मंदिर की तमाम घंटिया एक साथ बज उठी और पूजा लगभग चीख ही पड़ी"माँ आअघ्घ"

मैंने तुरंत उसे पकड़ा

मैं- क्या हुआ पूजा

वो- ठीक हु शायद कुछ चुभ गया

जैसे ही हम माता की मूर्ति के पास बैठे हवा का जोर कुछ ज्यादा हो गया था पूजा का पूरा चेहरा पसीने में भीग गया था होंठ कुछ बुदबुदा रहे थे और तभी एक बड़ा सा दिया अपने आप जल गया और हमारा काम शुरू हो गया

पल पल जैसे भारी हो गया था मैंने देखा की पूजा की हालत कुछ बिगड़ रही है पर उसने इशारे से मुझे शांति से बैठने को कहा और अपने मन्त्र पढ़ने लगी दूर कही कैसे हज़ारो सियार रोने लगे हो ठीक ऐसा ही अनुभव मुझे उस दिन हुआ था जब मैं उस रात खारी बावड़ी में गया था

पुजा ने एक कटारी उठाई और अगले ही पल मेरा सीना चिर गया दर्द में डूबने लगा मैं उसकी उंगलियां मेरे सीने में धंसने लगी और फिर उसने वो रक्त अपनी मांग में भरा और त्तभी पूजा की चीख में मन्दिर की चूले हिला दी

"अअअअअअ आआआह" इतनी बुरी तरह से वो चीख रही थी की जैसे उसे काटा जा रहा हो मैंने उसे अपने आगोश में लिया और मुझे ऐसे लगा की कोई आग मुझसे सटी हुई हो

मेरे सीने से टपकते रक्त से मैंने मूर्ति का अभिषेक शुरू किया पर वो मूर्ति जितना रक्त उस पर पड़ता वो उतना ही पीती जाती पूजा बार बार कुछ चिल्लाती और एक लम्हा ऐसा आया जब मंदिर की हर रौशनी बुझ गयी सिवाय उस एक दीपक के जिसकी लौ रोशन होना हमारी उम्मीद थी

पूजा- कुंदन घबराना नहीं मैं साथ हु तेरे साथ हु
मैं कुछ कहता उससे पहले ही हमारे चारों तरफ आग लग गयी बदन का मांस जैसे पिघलने लगा मैंने मूर्ति पर और रक्त अर्पण करना शुरू किया पर आग और बढ़ती जा रही थी और ज्यादा इतनी ज्यादा की मेरे पैरों की खाल झुलस कर अपने ही मांस से चिपकने लगी

पूजा- सिंदूर से रंग दे मुझे कुंदन

मैंने पास रखी थाली से सिंदूर लिया और पूजा के9 रंग ने लगा आग शांत होने लगी पूजा का नूर वापिस आने लगा मूर्ति कुछ कुछ अब गीली होने लगी थी पूजा का मंत्रोउचारण अब तेज होने लगा था और मेरा रक्त जैसे जमने लगा था पूजा ने ऊपर आसमान की तरफ देखा और फिर अपने कपडे उतारने शुरू किये उसका ऐसा वीभत्स रूप देख कर एक पल तो मैं डर ही गया बुरी तरह से पूजा मेरी पास आई और उसने अपने होंठ मेरे खुले सीने से लगा दिए और मेरा रक्त पीने लगी

जैसे जैसे वो खून पी रही थी मूर्ति भीगने लगी थी पर मेरी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा था कमजोरी चढ़ने लगी थी पैरो की शक्ति कम पड़ने लगी थी पर उसने भी जैसे आज मेरी अंतिम बूँद तक को निचोड़ने का सोच लिया था और तभी कुछ ऐसा हुआ की जो मैंने न कभी देखा न कभी सुना पूजा के आधे बदन में आग लग गयी उसका बायां हिस्सा धु धु करके जलने लगा और उसको दर्द में छटपटाते हुए देख कर मुझसे रहा नहीं गया मैं उसकी आग बुझाना चाहता था पर उसने मुझे कास के पकड़ लिया उसके साथ मैं भी जलने लगा प्रांगण में जलते मांस की दुर्गन्ध भर गयी चारो तरफ धुंआ ही धुंआ और हमारी चीखे साँस न जाने किस पल साथ जोड़ जाए

धुंआ इतना घना था की कुछ न दिख रहा था और जलते बदन से गिरते मांस के लोथड़े इतना जरूर बता रहे थे की ये कोई ख्वाब नहीं था तो क्या ये ही नियति थी पूजा और कुंदन की क्या यही अंत हो जाना था पर शायद नहीं

एक तेज धमाके के साथ मूर्ति फट गयी और उसकी जगह एक चमचमाती हुई मूर्ति ने ले ली धमाका इतना तेज था की पूजा मुझसे छिटक गयी और मैं दूर जा गिरा , जब होश आया तो सब कुछ ऐसे था जैसे कुछ हुआ ही न हो सुबह हो चुकी थी पर पूजा साथ नहीं थी
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zainu98
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Re: नजर का खोट

Post by zainu98 »

good work but onley one page u apdet here hum to samjhe thy ki mega updet aay ga but buhut he chota
its not good sab naraj hogy hai
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shubhs
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Re: नजर का खोट

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