नजर का खोट complete
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Re: नजर का खोट
इत्ता सस्पंस ...... कहानी का हीरो ही बदल दिया.......
- shubhs
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Re: नजर का खोट
इतना आत्मविश्वास
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
- Kamini
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Re: नजर का खोट
chusu wrote:इत्ता सस्पंस ...... कहानी का हीरो ही बदल दिया.......
shubhs wrote:इतना आत्मविश्वास
Thank you sooooo much
- Kamini
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Re: नजर का खोट
मेरी नजर भाभी की आँखों पर टिकी थी पर ना जाने कब भाभी की तलवार चली और मेरी शर्ट को आधी काट ते हुए उनकी तलवार की नोक मेरे सीने के दायीं तरफ ज़ख्म बनाती चली गयी
और मैं हैरान परेशान ये क्या किया भाभी ने पर जल्दी ही सम्भला और हमारी तलवारो की टंकार उस बियाबान में गूँज गयी इतनी फुर्ती इतनी चपलता इतनी शक्ति भाभी जैसे जस्सी न होकर कोई और ही थी जितना मैं उनके वार को बचाने की कोशिश करता उतना ही वो आक्रामक होने लगी थी
भाभी- क्या हुआ देवर जी हाथो को जंग लग गया क्या
मैं बस मुस्कुरा दिया असल में मैं हैरान था भाभी बस मुझसे किसी खिलौने की तरह खेल रही थी करीब दस पंद्रह मिनट में ही भाभी की तलवार में मेरे बदन पर हलके हलके चीरे लगा दिए थे फिर उन्होंने अपना हाथ रोक लिया
भाभी- लगी तो नहीं
मैं- नहीं ठीक हु
भाभी- ठकुराइन जसप्रीत के हाथ में फिर कभी गलती से भी तलवार न देना
मैं- नहीं दूंगा, पर जब आप इस कदर शक्तिशाली है तो राणाजी के आगे क्यों बेबस है
भाभी- वो मेरी मर्ज़ी है
मैं- पर क्यों मुझे जानना है
भाभी- तो जाओ अपने पिता से जान लो मैंने कब रोका है
मैं- जरूर पूछुंगा पर पहले मुझे एक काम और करना है
भाभी- क्या
मैं- मैं भी नहीं बताऊंगा
भाभी- बस अपना ख्याल रखना सुरक्षित रहना
मैं-हां
उसके बाद हम घर आये मैंने अपने ज़ख्मो पर हलकी फुलकी दवाई लगायी कपडे बदले और भाभी के कमरे में गया तो वो कपडे बदल रही थी मैं दरवाजे से ही मुड़ने लगा
भाभी- आ जाओ वैसे भी अब क्या है छुपाने को
मैं- जा रहा था सोचा आपको बता दू
भाभी- अभी रुको हमे अच्छा लगेगा
मैं- पर मुझे आपकी आदत हो जायेगी
भाभी अपने ब्लाउज़ को सही करते हुए आयी और अपनी छातियों को मेरे सीने से रगड़ते हुए बोली- तो आदत डाल लो देवर जी
मैं- देख लो फिर ना कहना
वो- क्या देखना क्या सुनना
पता नही कब मेरा हाथ भाभी ने नितम्ब पर आ गया मैंने उसे हल्का सा दबाया और धीरे धीरे भाभी की सुराही दार गर्दन को चूमने लगा मेरे लण्ड में सुरसुराहट होने लगी जिसे भाभी अपनी चूत पे महसूस करने लगी थी मैंने भाभी के गाल के निचले हिस्से को चूमा
और भाभी को खुद से अलग कर दिया और बोला- इतने करीब न आया करो कही मैं बेकाबू हो गया तो आफत हो जायेगी
भाभी- वो भी देखेंगे पर एक बात पूछना भूल गयी थी अभी याद आयी
मैं- क्या
भाभी- जाहरवीर जी का धागा उस दिन तुम्हारे हाथ में किसने बाँधा था हमारे अलावा
मैं- जाने दो न क्या फर्क पड़ता है
भाभी- फर्क पड़ता है क्योंकि सिर्फ एक सुहागन ही उस धागे का उपयोग कर सकती है
और जैसे ही भाभी की बात का मतलब मुझे समझ आया मैं हिल गया बुरी तरह से
मैंने भाभी को अपनी बाहों के घेरे से आजाद किया और तुरंत ही दरवाजे की तरफ चल दिया की भाभी पीछे से बोली- क्या हुआ देवर जी बड़ी जल्दी लग गयी
मैं- एक काम याद आ गया भाभी पर जल्दी ही मिलता हु
मैं भाभी के कमरे से निकला और नीचे आ रहा था कि सीढियो पर चाची मिल गयी
चाची- अरे कुंदन, कहा रहता है आजकल मिलता ही नहीं देख तेरे बिना कैसे सूख कर काँटा हो गयी हु कुछ तो देख मेरी तरफ
मैं- चाची अभी बहुत जल्दी में हु कल मिलता हु
पर चाची ने मेरा रस्ता रोक लिया
चाची- कोई और मिल गयी या मन भर गया मुझसे
मैं- ये बात नहीं है चाची पर अभी एक बेहद जरुरी काम है मुझे
चाची- मुझसे भी ज्यादा जरुरी देख तो सही कितनी गीली हुई पड़ी हु तेरे लिए
मैं- समझती क्यों नहीं तुम, अभी जाना बहुत जरुरी है थोड़ा टाइम मिलने दे तेरा काम भी कर दूंगा
चाची- चल ठीक है इंतज़ार करुँगी तेरा पर इस बार कोई बहाना नहीं चलेगा
मैं- पक्का
जैसे ही चाची से पीछा छुड़ाया राणाजी सामने मिल गयी
राणाजी- कुंदन,मुझे और बहू को कुछ काम से दिल्ली जाना है कल सुबह की ट्रेन से मुनीम जी कही बाहर गए है तो तुम सुबह हमे स्टेशन छोड़ आना
मैं- किसलिए जाना है
राणाजी- इंद्र की पत्नी होने के नाते जसप्रीत को सरकार से कुछ सहूलियते और मुआवजा मिलना है तो कागज़ी कार्यवाही होनी है
मैं- तो ठीक है पर भाभी के साथ मैं जाऊंगा
और मैं हैरान परेशान ये क्या किया भाभी ने पर जल्दी ही सम्भला और हमारी तलवारो की टंकार उस बियाबान में गूँज गयी इतनी फुर्ती इतनी चपलता इतनी शक्ति भाभी जैसे जस्सी न होकर कोई और ही थी जितना मैं उनके वार को बचाने की कोशिश करता उतना ही वो आक्रामक होने लगी थी
भाभी- क्या हुआ देवर जी हाथो को जंग लग गया क्या
मैं बस मुस्कुरा दिया असल में मैं हैरान था भाभी बस मुझसे किसी खिलौने की तरह खेल रही थी करीब दस पंद्रह मिनट में ही भाभी की तलवार में मेरे बदन पर हलके हलके चीरे लगा दिए थे फिर उन्होंने अपना हाथ रोक लिया
भाभी- लगी तो नहीं
मैं- नहीं ठीक हु
भाभी- ठकुराइन जसप्रीत के हाथ में फिर कभी गलती से भी तलवार न देना
मैं- नहीं दूंगा, पर जब आप इस कदर शक्तिशाली है तो राणाजी के आगे क्यों बेबस है
भाभी- वो मेरी मर्ज़ी है
मैं- पर क्यों मुझे जानना है
भाभी- तो जाओ अपने पिता से जान लो मैंने कब रोका है
मैं- जरूर पूछुंगा पर पहले मुझे एक काम और करना है
भाभी- क्या
मैं- मैं भी नहीं बताऊंगा
भाभी- बस अपना ख्याल रखना सुरक्षित रहना
मैं-हां
उसके बाद हम घर आये मैंने अपने ज़ख्मो पर हलकी फुलकी दवाई लगायी कपडे बदले और भाभी के कमरे में गया तो वो कपडे बदल रही थी मैं दरवाजे से ही मुड़ने लगा
भाभी- आ जाओ वैसे भी अब क्या है छुपाने को
मैं- जा रहा था सोचा आपको बता दू
भाभी- अभी रुको हमे अच्छा लगेगा
मैं- पर मुझे आपकी आदत हो जायेगी
भाभी अपने ब्लाउज़ को सही करते हुए आयी और अपनी छातियों को मेरे सीने से रगड़ते हुए बोली- तो आदत डाल लो देवर जी
मैं- देख लो फिर ना कहना
वो- क्या देखना क्या सुनना
पता नही कब मेरा हाथ भाभी ने नितम्ब पर आ गया मैंने उसे हल्का सा दबाया और धीरे धीरे भाभी की सुराही दार गर्दन को चूमने लगा मेरे लण्ड में सुरसुराहट होने लगी जिसे भाभी अपनी चूत पे महसूस करने लगी थी मैंने भाभी के गाल के निचले हिस्से को चूमा
और भाभी को खुद से अलग कर दिया और बोला- इतने करीब न आया करो कही मैं बेकाबू हो गया तो आफत हो जायेगी
भाभी- वो भी देखेंगे पर एक बात पूछना भूल गयी थी अभी याद आयी
मैं- क्या
भाभी- जाहरवीर जी का धागा उस दिन तुम्हारे हाथ में किसने बाँधा था हमारे अलावा
मैं- जाने दो न क्या फर्क पड़ता है
भाभी- फर्क पड़ता है क्योंकि सिर्फ एक सुहागन ही उस धागे का उपयोग कर सकती है
और जैसे ही भाभी की बात का मतलब मुझे समझ आया मैं हिल गया बुरी तरह से
मैंने भाभी को अपनी बाहों के घेरे से आजाद किया और तुरंत ही दरवाजे की तरफ चल दिया की भाभी पीछे से बोली- क्या हुआ देवर जी बड़ी जल्दी लग गयी
मैं- एक काम याद आ गया भाभी पर जल्दी ही मिलता हु
मैं भाभी के कमरे से निकला और नीचे आ रहा था कि सीढियो पर चाची मिल गयी
चाची- अरे कुंदन, कहा रहता है आजकल मिलता ही नहीं देख तेरे बिना कैसे सूख कर काँटा हो गयी हु कुछ तो देख मेरी तरफ
मैं- चाची अभी बहुत जल्दी में हु कल मिलता हु
पर चाची ने मेरा रस्ता रोक लिया
चाची- कोई और मिल गयी या मन भर गया मुझसे
मैं- ये बात नहीं है चाची पर अभी एक बेहद जरुरी काम है मुझे
चाची- मुझसे भी ज्यादा जरुरी देख तो सही कितनी गीली हुई पड़ी हु तेरे लिए
मैं- समझती क्यों नहीं तुम, अभी जाना बहुत जरुरी है थोड़ा टाइम मिलने दे तेरा काम भी कर दूंगा
चाची- चल ठीक है इंतज़ार करुँगी तेरा पर इस बार कोई बहाना नहीं चलेगा
मैं- पक्का
जैसे ही चाची से पीछा छुड़ाया राणाजी सामने मिल गयी
राणाजी- कुंदन,मुझे और बहू को कुछ काम से दिल्ली जाना है कल सुबह की ट्रेन से मुनीम जी कही बाहर गए है तो तुम सुबह हमे स्टेशन छोड़ आना
मैं- किसलिए जाना है
राणाजी- इंद्र की पत्नी होने के नाते जसप्रीत को सरकार से कुछ सहूलियते और मुआवजा मिलना है तो कागज़ी कार्यवाही होनी है
मैं- तो ठीक है पर भाभी के साथ मैं जाऊंगा
- Kamini
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Re: नजर का खोट
राणाजी ने गौर से मुझे देखा और बोले- बढ़िया इसी बहाने कुछ तो जिम्मेदारी संभालोगे जाओ अपना सामान बाँध लो
मैं अपने कमरे में आया अलमारी से कुछ सामान निकाल रहा था कि भाभी कमरे में आयी और बोली- गए नहीं अभी तक
मैं- नहीं अब मैं आपके साथ दिल्ली चल रहा हु
भाभी- और राणाजी
मैं- अजी कुछ वक़्त हमे भी दीजिये
भाभी- तुम कहो तो जान दे दू देवर जी वक़्त क्या चीज़ है पर अब यही हो तो खाना ले आउ
मैं- हां
भाभी- वैसे तुम साथ क्यों आ रहे हो तुम्हे लगता है कि कही राणाजी भाभी के साथ
मैं- हां, मुझे जलन होती है इस बात से
भाभी- क्यों होती है
मैं- पता नहीं क्यों
भाभी- प्यार तो नहीं करने लगे हो मुझसे
मैं- दोस्त भी है हम है ना
भाभी- आओ खाना खाते है
उसके बाद हमने खाना खाया कुछ देर फिर भाभी माँ सा के कमरे में चली गई करीब घंटे भर बाद वो मेरे कमरे में आ गयी
मैं- सोयी नहीं अभी तक
वो- तुम भी तो जागे हो
मैं- बस ऐसे ही
वो- याद आ रही थी किसी की
मैं- क्या फर्क पड़ता है सो जाओ सुबह जल्दी निकलना है
भाभी- एक बात पुछु
मैं- जरूर
भाभी- क्या तुम्हे लगता है राणाजी ने किसी से बेइंतेहा इश्क़ किया होगा
मैं- नहीं
भाभी- तुमने इश्क़ किया है
मैं- पता नहीं पर आप भाई से प्यार करती थी ना
भाभी- हां भी और ना भी
मैं- चारो तरफ इतनी ज़िन्दगानिया बिखरी पड़ी है इन सब में मैं क्यों उलझ गया
भाभी- तक़दीर है तुम्हारी
मैं- हो सकता है अब देखो न आपका और मेरा रिश्ता ही बहुत ज्यादा बदल गया है
भाभी- कुछ भी तो नहीं बदला है
मैं- अब मैं आपको छू सकता हु भाभी
भाभी- और हमने भी कहा था न की हमारे घाघरे का नाड़ा इतनी आसानी से नहीं खुलेगा
मै- और अगर मैं चाहू तो
भाभी- हम तो तुम्हारे ही है पहले भी और अब भी
मैं- आप हमेशा दोनों तरफ की बाते करती हो भाभी ये ठीक नहीं है
भाभी- क्या गलत कहा हमने
मैं- पहले आप अलग थी मेरे लिए पर कुछ दिनों से मैं बस एक औरत के रूप में देखता हूं आपको
भाभी- तो क्या मुझे पाने को जी चाहता है
मैं- क्या शारीरिक संबंध बनाना ही किसी को पा लेना होता है
भाभी- ज्यादातर मर्द तो ऐसा ही समझते है
मैं- आप क्या समझती हो
वो- कुछ नहीं
मैं- समझती तो हो और बता नहीं रही
भाभी- इश्क़ कर लो बरखुरदार खुद समझ जाओगे
मैं- चलो ऐसा ही सही वैसे आप कामिनी को जानती हो ना
भाभी- 36 का आंकड़ा है मेरा और उसका एक बार धर दिए थे मैंने दो चार उसके
मैं- पर बात तो बड़े सलीके से कर रही थी
भाभी- यही दुनिया दारी का हिसाब है अब सो भी जाओ मुझे नींद आ रही है
जैसे ही भाभी लेटी मैंने एक कम्बल लिया और उनके पास लेट गया
भाभी- आराम से सोना
मैं- कोशिश करूँगा वैसे आपने जब जोर देकर डोरे वाली बात की थी मैं आपका ताना समझ गया
भाभी- तो क्या गलत कहा मैंने
मैं- नहीं कुछ गलत नहीं
भाभी- तो ब्याह रचा लिया क्या तुमने या तुम्हारी वाली ने
मैं- ऐसा ही समझ लो
मैं अपने कमरे में आया अलमारी से कुछ सामान निकाल रहा था कि भाभी कमरे में आयी और बोली- गए नहीं अभी तक
मैं- नहीं अब मैं आपके साथ दिल्ली चल रहा हु
भाभी- और राणाजी
मैं- अजी कुछ वक़्त हमे भी दीजिये
भाभी- तुम कहो तो जान दे दू देवर जी वक़्त क्या चीज़ है पर अब यही हो तो खाना ले आउ
मैं- हां
भाभी- वैसे तुम साथ क्यों आ रहे हो तुम्हे लगता है कि कही राणाजी भाभी के साथ
मैं- हां, मुझे जलन होती है इस बात से
भाभी- क्यों होती है
मैं- पता नहीं क्यों
भाभी- प्यार तो नहीं करने लगे हो मुझसे
मैं- दोस्त भी है हम है ना
भाभी- आओ खाना खाते है
उसके बाद हमने खाना खाया कुछ देर फिर भाभी माँ सा के कमरे में चली गई करीब घंटे भर बाद वो मेरे कमरे में आ गयी
मैं- सोयी नहीं अभी तक
वो- तुम भी तो जागे हो
मैं- बस ऐसे ही
वो- याद आ रही थी किसी की
मैं- क्या फर्क पड़ता है सो जाओ सुबह जल्दी निकलना है
भाभी- एक बात पुछु
मैं- जरूर
भाभी- क्या तुम्हे लगता है राणाजी ने किसी से बेइंतेहा इश्क़ किया होगा
मैं- नहीं
भाभी- तुमने इश्क़ किया है
मैं- पता नहीं पर आप भाई से प्यार करती थी ना
भाभी- हां भी और ना भी
मैं- चारो तरफ इतनी ज़िन्दगानिया बिखरी पड़ी है इन सब में मैं क्यों उलझ गया
भाभी- तक़दीर है तुम्हारी
मैं- हो सकता है अब देखो न आपका और मेरा रिश्ता ही बहुत ज्यादा बदल गया है
भाभी- कुछ भी तो नहीं बदला है
मैं- अब मैं आपको छू सकता हु भाभी
भाभी- और हमने भी कहा था न की हमारे घाघरे का नाड़ा इतनी आसानी से नहीं खुलेगा
मै- और अगर मैं चाहू तो
भाभी- हम तो तुम्हारे ही है पहले भी और अब भी
मैं- आप हमेशा दोनों तरफ की बाते करती हो भाभी ये ठीक नहीं है
भाभी- क्या गलत कहा हमने
मैं- पहले आप अलग थी मेरे लिए पर कुछ दिनों से मैं बस एक औरत के रूप में देखता हूं आपको
भाभी- तो क्या मुझे पाने को जी चाहता है
मैं- क्या शारीरिक संबंध बनाना ही किसी को पा लेना होता है
भाभी- ज्यादातर मर्द तो ऐसा ही समझते है
मैं- आप क्या समझती हो
वो- कुछ नहीं
मैं- समझती तो हो और बता नहीं रही
भाभी- इश्क़ कर लो बरखुरदार खुद समझ जाओगे
मैं- चलो ऐसा ही सही वैसे आप कामिनी को जानती हो ना
भाभी- 36 का आंकड़ा है मेरा और उसका एक बार धर दिए थे मैंने दो चार उसके
मैं- पर बात तो बड़े सलीके से कर रही थी
भाभी- यही दुनिया दारी का हिसाब है अब सो भी जाओ मुझे नींद आ रही है
जैसे ही भाभी लेटी मैंने एक कम्बल लिया और उनके पास लेट गया
भाभी- आराम से सोना
मैं- कोशिश करूँगा वैसे आपने जब जोर देकर डोरे वाली बात की थी मैं आपका ताना समझ गया
भाभी- तो क्या गलत कहा मैंने
मैं- नहीं कुछ गलत नहीं
भाभी- तो ब्याह रचा लिया क्या तुमने या तुम्हारी वाली ने
मैं- ऐसा ही समझ लो