अनोखा सफर complete

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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

मैंने सोचा अजीब परंपराएं हैं इस कबीले की अब शायद मुझे अपनी सच्चाई इन्हें बता देनी चाहिए नहीं तो मेरा मृत्युदंड पक्का है। मैंने कहा " देखिये मैं माफ़ी चाहता हु की मैं गलती से आपके कबीले में प्रवेश कर गया और मैंने आ सब से झूठ बोला अब मैं आपको सच्चाई बताना चाहता हु । "
उस औरत ने कहा " जो भी बोलना पुरूष सोच समझ के बोलना क्योंकि अब तुम झूठ बोलेने के अपराध को मान चुके हो "
मैंने कहा " जी मैं मानता हूं कि मैंने झूठ बोला पर उसका कारण ये है कि मैं जमजम कबीले का सरदार हु और मैं नहीं जानता था कि आपका कबीला उस कबीले का शत्रु है या मित्र । इस लिए मुझे झूठ बोलना पड़ा।"
मेरी बात सुन कर पास खड़ी सभी औरते हँसने लगी । अभी तक जो औरत बात कर रही थी उसने कहा " अच्छा तो तुम जमजम कबीले के सरदार हो पर हमने तो सुना है कि वो इतना ताकतवर है कि उसने एक ही वार में वज्राराज को मौत के घाट उतार दिया और उसका लिंग इतना बड़ा है कि उसके साथ सोने वाली सारी औरते रात भर चीखती रहती हैं। पर तुम्हे देख कर तो ऐसा नहीं लगता।"
मैंने कहा " देखिये सुनी हुई बाते हमेशा सत्य नहीं होती।"
उसने कहा " अभी पता चल जायेगा जरा तुम्हारा लिंग देखे "
ऐसा कहकर उसने मेरी कमर पर लपेटा चमड़े का वस्र उतार दिया अब मेरा लंड अपनी सामान्य अवस्था में था तो उसे देख के सारी औरते फिर जोरो से हँसने लगी।
फिर उस औरत ने सबको चुप होने का इशारा किया और मुझसे बोली " पुरुष तुमने बिना अनुमति हमारे कबीले में प्रवेश किया और हम सब से झूठ पे झूठ बोले जा रहे हो इसकी तुम्हे सजा मिलेगी । सैनिको इसे मृत्यु दंड दिया जाता है।"
उसके इतना कहते ही आसपास की सभी औरतो ने अपने धनुष पे बाण चढ़ा लिए और मेरे ऊपर तान दिया। मुझे अपना अंत समीप नज़र आ रहा था इसलिए मैंने भी मृत्यु को वरण करने हेतु अपना सीना आगे कर दिया।
तभी एक सैनिक औरत दौड़ती हुयी आती है और कहती है " महाराज जमजम कबीले ने हमारे कबीले पे आक्रमण कर दिया है "
अभी तक जो औरत बोले जा रही थी उसने कहा " क्यों?"
सैनिक औरत " रानी वो कह रहे हैं की हमने उनके सरदार का अपहरण कर लिया है।"
सरदार औरत मेरी तरफ विस्मित नजरों से देखने लगती है। मैं उससे कहता हूं " देखिये शायद हम दोनों लोगो से ग़लतफ़हमी हो गयी है इसलिए आप मुझे बंधन मुक्त कर दे मैं अपने कबीले वालो को समझाता हु अन्यथा व्यर्थ में निर्दोष लोग मारे जायेंगे।"
सरदार ने मेरे हाथ खुलवाये और मैं उनके साथ उस तरफ चला जहाँ युद्ध हो रहा था। वहां मैं देखता हूं कि विशाला कुछ सैनिको के साथ इस कबीले के सैनिको से लड़ रही है। मैं आवाज देके उन्हें रुकने का आदेश देता हूं तो वो सब रुक जाते है साथ ही बाकी दूसरे कबीले के सैनिक भी उनके सरदार के इशारे पे रुक जाते हैं।
मैं विशाला के पास पहुचता हु तो वो मुझे देख कर ख़ुशी से मुझसे लिपट जाती है। थोड़ी देर बाद मेरी अवस्था देख फिर गुस्से से कबीले के सरदार से बोलती है " रानी नंदिनी आपने हमारे महाराज का अपहरण कर उनके ऊपर हमला किया उनका अपमान किया है और कबीले के संधि के नियमो की अवहेलना की है साथ ही आपने कबीलों के सरदार का भी अपमान किया है आपको बंदी बनाया जाता है ताकि आप अपने गुनाहों का दंड आप महाराज से पा सके "
मैं विशाला को समझाने की कोशिश करता हु " सेनापति विशाला इसमें रानी नंदिनी की कोई गलती नहीं है मैं ही भटक के इनके कबीले में आ गया था इन्हें नहीं पता था कि मैं कौन हूं इसलिए इन्होंने अज्ञानतावश ऐसा किया ।"
विशाला मुझसे कहती है "जैसा आप कहे महाराज "
तबतक रानी नंदिनी अपने पैरों में गिर जाती है और बोलती " महाराज मुझे माफ़ कर दीजिए "
मैंने कहा " रानी नंदिनी आपसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है अतः मैंने आपको माफ़ कर दिया ।"
नंदिनी " महाराज ये आपका बड़प्पन है कृपा करके हमारे कबीले में पधारे ताकि आपकी चोट का इलाज कराया जा सके "
मैंने कहा " चलिये रानी "

रानी नंदिनी के कबीले में मैंने गौर किया कि सारी स्त्रियां ही थी यहाँ तक छोटी बच्चे भी किशोरियां ही थी। मैंने उत्सुकता वश पुछा " रानी नंदिनी आप के कबीले के सभी पुरुष कहाँ है?"
रानी नंदिनी ने कहा " महाराज हमारे हमारा ये कबीला सिर्फ स्त्रियों है हमारे यहाँ कोई पुरुष नहीं है "
मैंने चौंकते हुए पूछा " ऐसा कैसे हो सकता है कुछ कामों के लिए तो पुरुष की जरुरत पड़ती है जैसे बच्चे पैदा करने में ?"
रानी नंदिनी ने हँसते हुए जवाब दिया " महाराज हमारे कबीले की स्त्रियां किसी पुरुष का वरण कर सकती है और उसके साथ रहकर संतान उत्पन्न करने की कोशिश कर सकती हैं अगर संतान लड़की हुयी तो वो कबीले में बच्ची के साथ वापस आ सकती है पर अगर लड़का हुआ तो कबीले की स्त्री को कबीले में वापस आने के लिए अपने बच्चे को उसके पिता के पास छोड़ना होता है ।"
अब हम रानी के साथ एक कुटिया में आ गए थे रानी ने मुझसे कहा " महाराज आप और सेनापति विशाला यहाँ विश्राम करे मैं आपके भोजन का प्रबंध करती हूं।"
रानी के जाने के बाद मैंने विशाला से पूछा " तुम्हे कैसे पता चला की मैं यहाँ बंदी हु ?"
विशाला ने बताया " पुजारन देवसेना के मंदिर से वापस आने के बाद मैंने एक गुप्तचर आपके वहां से वापस लौटने की जानकारी के लिए वहां भेजा था। जब आप वहां से वापस कबीले के लिए चले तो वो आपका छुप के पीछा कर रहा था। जब आपको रानी नंदिनी के कबीले वालो ने बंदी बना लिया तो उसने आके मुझे सूचना दे दी।"
मैंने विशाला की तारीफ करते हुए कहा " वाह विशाला आज मुझे विश्वास ही गया कि मैंने तुम्हे सेनापति बना के कोई गलती नहीं की। बताओ तुम्हे क्या इनाम चाहिए।"
विशाला ने मेरी तरफ देखते हुए " महाराज मुझे आपसे एक ही इनाम चाहिए " फिर उसने अपनी कमर पे बंधा कपडा उतार दिया और मेरे सामने घोड़ी बन गयी।
मैंने भी अपना कमर पे बांध वस्त्र उतार दिया और अपने लंड को आगे पीछे करके खड़ा करने लगा। कुछ देर बाद जब मेरा लंड खड़ा ही गया तो मैंने उसपर थूक लगा के विशाला की चूत पे लगाके जोरक धक्का मारा तो मेरा लंड थोड़ा सा उसकी चूत में गुस गया। उसकी चूत अभी पूरी तरह से गीली नहीं थी तो मैं आगे से हाथ डालकर उसकी चूत के दाने को मसलने लगा। विशाला मजे से अपनी चूत आगे पीछे करने लगी। थोड़ी देर बाद जब उसकी चूत कुछ चिकनी हुयी तो मैंने फिर जोर का झटका मार के अपना पूरा लंड उसकी चूत में उतार दिया। और उसकी कमर पकड़ के उसकी चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा। विशाला भी मजे से चिल्लाने लगी जिसके कारण मुझे और उत्तेजना होनी लगी। मैंने अपने धक्कों की गति को तेज कर दिया और कुछ देर बाद उसकी चूत में ही झड़ गया।
कुछ देर बाद हम दोनों संयमित हुए तो हमे अंदाजा हुआ की हम किसी दूसरे के क़बीले में हैं अतः हम वापस अपने स्वाभाविक अवस्था में आ गये। कुछ देर बाद रानी नंदिनी ने कुटिया में प्रवेश किया उनके साथ एक अत्यंत रूपवान स्त्री भी थी। रानी ने परिचय कराते हुए कहा " महाराज ये मेरी पुत्री त्रिशाला है ।"
उसने मुझे प्रणाम किया पर मैं तो उसके सौंदर्य में खोया हुआ था। रानी ने फिर मुझसे कहा " महाराज ये मेरी पुत्री त्रिशाला है ये आपसे मिलने चाहती थी।"
। रानी की बात सुनकर मेरी तन्द्रा टूटी। मैंने कहा " रानी नंदिनी आप की तरह ही आपकी पुत्री भी बहुत सुंदर हैं । "
मेरी बात सुनकर दोनों शर्म से लाल हो गयी। मैंने फिर आगे बात बढ़ाते हुए कहा " रानी अब शायद हमें चलना चाहिए हमने बहुत देर आपसे अतिथिभगत करवाई ।"
रानी नंदिनी " महाराज आप थोड़े दिन हमे भी सेवा का मौका दे "
मैंने कहा " रानी मैं बहुत दिन से अपने कबीले से दूर हु अब मुझे वहां जाके वहां की भी व्यवस्था देखनी चाहिये अतः आप हमें जाने की आज्ञा दे। "
रानी नंदिनी " जैसा आप चाहे महाराज पर मैं आपसे कुछ कहना चाहती हु ।"
मैंने कहा " बिलकुल महारानी संकोच न करे "
रानी नंदिनी " महाराज मेरी बेटी त्रिशाला आपका वरण करना चाहती है "
मैंने चौंकते हुए त्रिशाला की तरफ देखा तो वो सर झुकाये हुए शर्म से दोहरी हो रही थी। मैंने रानी नंदिनी से पूछा " पर रानी मेरी आपकी पुत्री से ये पहली भेंट है वो एक ही भेंट में ऐसा फैसला कैसे ले सकती है ?"
मेरी बात पे रानी नंदिनी ने कहा " महाराज पिछले एक माह से हम आपके बारे में बहुत सी बातें सुन रहे हैं चाहे हम आपसे कभी न भी मिलते फिर भी हमे आपके बारे में काफी कुछ मालूम है ।"
रानी की बात ये मैंने हँसते हुए जवाब दिया " हाँ वो तो मैं देख ही चूका हूँ की आपको क्या बाते पता चली हैं । चूँकि हमारे क़बीले का नियम है कि मैं किसी स्त्री को संभोग के लिए मना नहीं कर सकता इसलिए मैं आपके इस प्रस्ताव के लिए भी मना नहीं करूँगा, पर मैं ये चाहता हु की राजकुमारी त्रिशाला मेरे साथ मेरे क़बीले चले वहां मेरे साथ रहे और तब अपना फैसला करे , न की सुनी सुनाई बातो पे।"
रानी नंदिनी ने त्रिशाला की तरफ देखा तो उसने भी सहमति में सर हिलाया तो रानी ने मुझसे कहा "जैसी महाराज की इच्छा "
मैंने कहा "फिर हमें प्रस्थान की अनुमति दीजिये "
रानी नंदिनी ने कहा " देवता आपकी यात्रा सुगम करे महाराज "
क़बीले में पहुचने पर सभी क़बीले वासी, चरक और रानी विशाखा ने मेरा स्वागत किया । मैं भी उनसे बहुत ही गर्मजोशी से मिला । अपनी कुटिया पे आके मैंने चरक ,रानी विशाखा, सेनापति विशाला तथा राजकुमारी त्रिशाला की मंत्रणा के किये बुलाया।
मैंने सब से राजकुमारी त्रिशला का परिचय कराया फिर पूछा " मेरी गैर हाजिरी में क़बीले का क्या हाल था ??"
सबसे पहले चरक महाराज बोले " महाराज सब ठीक ही था "
ये सुनकर विशाला घूर के चरक को देखने लगी।
मैंने सेनापति विशाला से पुछा " आपको कुछ कहना है सेनापति "
विशाला बोली " महाराज आपकी गैर हाजिरी में कपाला ने दी बार हमारे क़बीले पे हमला किया जिसे हमने विफल कर दिया।"
मैंने पूछा " कपाला आखिर चाहता क्या है ?"
अब रानी विशाखा ने कहा " महाराज वो कबीलो का सरदार बनना चाहता था पर पुजारन देवसेना ने आपको कबीलो का सरदार बना दिया है इसलिये बौखलाहट में वो क़बीले पर हमला कर रहा है।"
मैंने कुछ सोचते हुए चरक से पुछा " क़बीले की दिवार का काम कहाँ तक पंहुचा "
चरक " महाराज दिवार पूर्ण हो चुकी है।"
मैंने उन सबसे कहा " अब सभा पूर्ण होती है । "
मैंने रानी विशाखा से कहा " महारानी राजकुमारी त्रिशाला के रहने का प्रबंध किया जाए ।"
फिर मैंने विशाला से कहा " सेनापति विशाला आप मेरे साथ चले आपसे कुछ बात करनी है।"
मैं और विशाला कुटिया से बाहर निकलकर क़बीले से बाहर आ जाते हैं। मैं विशाला से कहता हूं " सेनापति मैं चाहता हु की आप अपना विश्वस्त गुप्तचर चरक महाराज के पीछे लगा दे वो कुछ छुपा रहे हैं हम सब से। "
विशाला ने कहा " जो आज्ञा महाराज "
फिर मैंने कहा " इस क़बीले की दीवार से आगे गड्ढा खुदवा दो और उसमें नुकीले भाले जैसे लकड़िया गढ़वा दो और उन्हें घांस फूंस से ढकवा दो। "
उसने कहा " जी मगराज"
फिर मैंने कहा " तुम्हे एक और काम करना होगा । एक गुलेल जैसे बड़े बड़े यंत्र बनवाने होंगे जिससे हम क़बीले की दीवार के अंदर सही शत्रु पे हमला कर सके।"
विशाला ने मुझसे पूछा " ये गुलेल क्या होती है महाराज ?"
मैं पास में पड़ी हुई लकड़ियों से उसे गुलेल बनाना सिखाने लगा। कुछ देर बाद वो समझ गयी और बोली " महाराज ये बन जायेगा पर आपको ये बनाना कैसे आता है ?"
मैंने कहा " पुराने ज़माने में रोमन योद्धा युद्ध में इस तरह के हथियारों से अपने शत्रुयों पे बड़े बड़े पत्थरों से हमला करते थे। मैंने उनकी युद्ध कला के बारे में पढ़ा है।"
फिर मैंने विशाला से कहा " अपनी सेना को सतर्क और तैयार रहने को बोल दो और प्रहरियों की गश्त बढ़ा दो मुझे लगता है जल्द ही कपाला बड़ा हमला करने वाला है ।"
विशाला ने विस्मित नजरों से देखते हुये पूछा " आपको ऐसा क्यों लगता है महाराज? "
मैंने कहा " मुझे लगता है कि अभी तक जो दो हमले हमारे क़बीले पे हुए वो टोह लेने के लिए हुए थे अब जो हमला होगा वो हमारी कमजोरियों का आंकलन करने के बाद किया जाएगा इसलिए हमें सावधान हो जाना चाहिए।"
विशाला ने कहा " जैसी आपकी आज्ञा महाराज"
फिर हम वापस क़बीले में आ गए।
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shubhs
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Re: अनोखा सफर

Post by shubhs »

बहुत ही बिंदास कहानी
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

Vikaskumar123 wrote:Superb Bro…………………Tumne to school time ki fantasy sach kar di. ☺
shubhs wrote:बहुत ही बिंदास कहानी

thanks dosto
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Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

रात को मेरी कुटिया ने रानी विशाखा ने प्रवेश किया मैंने उनसे पूछा " रानी विशाखा राजकुमारी त्रिशाला के रहने की व्यवस्था हो गयी ?"
मेरा प्रश्न सुन कर रानी विशाखा तुनककर बोली " महाराज आपको आजकल मेरी कोई चिंता नहीं है बस राजकुमारी त्रिशाला की ही चिंता है।"
मैंने बात सँभालते हुए उनसे कहा " अरे महारानी वो हमारी मेहमान है इसलिए मैंने पूछा आप व्यर्थ में ही बुरा मान रही हैं "
रानी विशाखा " नहीं महाराज मुझे वो बिलकुल पसंद नहीं आपको भी उससे सतर्क रहना चाहिए ।"
मैंने सोचा शायद रानी विशाखा को जलन हो रही है इस लिए मैंने बात पलटने के लिए उन्हें अपनी बाहों में भर लिया और उनसे कहा " रानी छोड़िये इन सब बातों को आपसे इतने दिन बाद मिला हु थोड़ा आपसे प्रेम तो करने दीजिये "
फिर मैंने रानी विशाखा के अधरों ( होठों) को चूसना चालू किया और उनके नितंबो को हाथ से सहलाने लगा। रानी विशाखा तो जैसे यही चाह रही थी उन्होंने मेरा वस्त्र खींचकर निकाल दिया और मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ कर सहलाने लगी। मैंने भी रानी विशाखा को बिस्तर पे लिटाया और उनकी कमर पे बंधा वस्त्र खोल दिया। फिर मैं उनकी चूत की फांको को खोल उनके दाने को चूसने लगा और वो आनंद के सिसकारियां मारने लगी। कुछ देर बाद रानी विशाखा ने मुझे बिस्तर पे लिटा दिया और अपनी चूत मेरे मुह पे रगड़ने लगी। मैं भी अपनी जीभ से उनकी चूत के दाने को छेड़ने लगा। तभी मुझे लगा की कोई मेरा लंड चूस रहा है मैं चौंका क्योंकि रानी विशाखा तो मेरे मुंह पे बैठी हुई थी । मैंने देखा तो सेनापति विशाला मेरा लंड चूस रही थी। मैंने भी जो हो रहा था उसे ऐसे ही होते देता रहा।
कुछ देर बाद मैंने दोनों को अपने से दूर हटाया तो दोनों ने एक दूसरे को देख कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मैंने भी आगे बढ़ने का फैसला किया मैंने सेनापति विशाला को लिटा के अपना लंड एक झटके में उनकी चूत में घुसा दिया तो उसकी साँसे ही रुक गयी। रानी विशाखा उसे सामान्य करने के लिए उसके चुचको को चूसने लगी। कुछ देर बाद जब वो सामान्य हुई तो मैंने उसकी चूत में अपने लंड को गोते लगवाने लगा । रानी विशाखा भी अपनी चूत लेके अपनी बेटी विशाला के मुह पे बैठ गयी जो उसकी चूत के दाने को चूसने लगी। अब हम तीनों मस्ती के समंदर में डूबने लगे । ऐसे ही थोड़ी देर तक विशाला की चुदाई करने के बाद मैंने रानी विशाखा की घोड़ी बना दिया और पीछे से अपना लंड उनकी चूत में घुसा के चुदाई करने लगा। रानी विशाखा भी आगे झुक के अपनी बेटी की चूत को मुह में लेके चूसने लगी। ये सब देख के मेरी उत्तेजना चरम पे पहुच गयी और मैंने भी लंबे लंबे धक्के मारने शुरू कर दिए। कुछ ही देर में हम तीनों एक साथ झड़ गए।
जब हमारी साँसे संयमित हुई तो मैंने दोनों से पुछा " आप दोनों को एक साथ सम्भोग करने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई "
मेरी बात सुनके रानी विशाखा चौंकते हुए बोली " कैसी दिक्कत महाराज ये हमारा कोई पहली बार थोड़े ही न था "
अब मैंने चौंकते हुए पूछा " इसका मतलब आप दोनों पहले भी एक साथ ......"
मेरी बात पूरी भी नहीं हो पाई थी की विशाला ने कहा " वज्राराज अक्सर हम दोनों के साथ सम्भोग किया करते थे।"
अब मेरे दिमाग की सारी खिड़कियां हिल गयी की बाप बेटी माँ एकसाथ सम्भोग करती थी । फिर मुझे रानी विशाखा की एक बात याद आयी जो उन्होंने मुझसे कही थी " महाराज हमारा कबीला सम्भोग के मामले काफी स्वछंद है "।
मुझे कुछ ही देर में नींद ने आ घेरा और मैं सो गया।
कुछ दिन तक मैं क़बीले की युद्ध की तैयारियों में व्यस्त रहा। एक दिन अचानक राजकुमारी त्रिशाला मेरे पास आईं और उन्होंने मुझसे कहा" महाराज मैं कहीं भ्रमण पे जाना चाहती हूँ ।"
मैंने कहा " ठीक है मैं अभी चरक से कह कर आपके भ्रमण की व्यवस्था करा देता हूँ।"
त्रिशाला " महाराज मैं आपके साथ अकेले भ्रमण पे जाना चाहती हूँ "
मैंने कुछ सोचते हुए जवाब दिया " राजकुमारी त्रिशाला आप तो जानती ही हैं अभी मैं क़बीले के युद्ध की तैयारियों में व्यस्त हूँ पर अगर आप चाहती हैं तो क़बीले में ही एक छोटा तालाब है जो शाम को अक्सर शांत ही रहता है वहां चले।"
त्रिशाला खुश होते हुए " ठीक है महाराज "


शाम को मैं त्रिशाला को लेके क़बीले के तालाब पे गया । त्रिशाला ने गजब का श्रृंगार किया था और वो बहुत खूबसूरत लग रही थी । मेरा मन भी आज उसे पाने की ललक में व्याकुल हुआ जा रहा था पर मैंने खुद को संयमित किया। कुछ देर तक हम तालाब के किनारे बैठ के नजारों का अनान्द लेने लगे। राजकुमारी त्रिशाला तालाब का पानी लेके मेरे ऊपर फेंकने लगी मैंने भी तालाब का पानी त्रिशाला के ऊपर फेकना शुरू कर दिया। कुछ देर में हम दोनों ही पानी में भीग गए। पानी से भीगी त्रिशाला किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी मैं तो उसके रूप के जादू में सम्मोहित होता चला गया और उसके अधरों को अपने अधरों में लेके चूमने लगा। राजकुमारी त्रिशाला भी मेरा साथ देने लगी। कुछ देर की चूमा चाटी के बाद हम दोनों काफी उत्तेजित हो गए और हम दोनों ने एक दूसरे के वस्त्रों को निकाल फेंका। राजकुमारी त्रिशाला मेरे सामने एकदम नग्न अवस्था में थी मैं उसके शरीर की ऊंचाइयों और गहराइयों में खोता चला गया। हम दोनों ने एक दूसरे के शरीरों से खेलने लगे । वो मेरे ऊपर आ गयी जिससे उसकी चूत मेरे मुह के सामने और मेरा लंड उसके सामने हो गया। फिर हम दोनों ने एक दुसरे के जननांगों को चूसना चालू कर दिया। हमारे चूसने की गति एक दूसरे पे निर्भर थी मतलब जितनी जोर से वो मेरे लंड को चूसती थी उतनी ही जोर से मैं उसकी चूत के दाने को चूसता था। हम दोनों ही अपने रस्खलंन की और बढ़ रहे थे। मैंने त्रिशाला को पलट के अपने नीचे कर लिया और उसकी दोनों टाँगे उठा के अपने कंधों पे रख ली । मैंने अपना लंड उसकी गीली चूत पे लगाया और एक ही धक्के में पूरे लंड को उसकी चूत में उतार दिया। त्रिशाला के मुह से चीख निकल गयी। मैं अब लगातार उसकी चूत में धक्के पे धक्के लगाने लगा वो भी मेरे धक्कों का साथ अपनी कमर हिला के देने लगी। हम दोनों किसी वाद्य यंत्र की तरह एक ही ताल में एक दूसरे का साथ दे रहे थे। कुछ ही देर में हम दोनो एक साथ अपने चरमोत्कर्ष पे पहुँचे और चीख मारते हुए झड़ गए। उस दिन तो मेरे लंड ने तो जैसे पूरी की पूरी अपनी वीर्य की टंकी त्रिशाला की चूत में खली कर दी हो। ऐसा सम्भोग सुख मुझे कभी प्राप्त नहीं हुआ था।
मैं यही सब सोच रहा था कि त्रिशाला बोल पड़ी " महाराज मैं आपसे बहुत प्रेम करने हु और कृपा करके मुझे अपनी संगिनी बना लीजिए।"
मैं उसके रूप में खोया हुआ था ही मैंने भी अपनी सहमति दे दी।
अगले दिन क़बीले में ये घोषणा कर दी गयी। अब मेरा दिन क़बीले के कामों में और रातें त्रिशाला की बाँहों में व्यतीत होने लगा।
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