अनोखा सफर complete

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shubhs
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Re: अनोखा सफर

Post by shubhs »

जरूर होगी
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

sunita123 wrote:bahot khub likah hai Trishala ki gand k opening ho jaye jaldi se ekdma hot
thanks dear
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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

विनीत के मुंह से इतनी सी बात सुनते ही राहुल एकदम से सकपका गया। मन में प्रबल हो रही शंका का समाधान हो चुका था सब कुछ साफ था जिस महिला को लेकर राहुल के मन में ढेर सारी संकाए पनप रही थी सभी शंकाए दूर हो चुकी थी। लेकिन इस बात पर यकीन कर पाना राहुल के बस में नहीं था वह बार-बार यही सोचता कि कहीं वो सपना तो नहीं देख रहा है।
कभी कभी आंखो से देखा हुआ झूठ भी हो सकता हैं।
लेकिन वह यहां पर जो अपनी आंखों से देख रहा था और अपने कानों से सुन रहा था इसे झुठलाया नहीं जा सकता था। किसी और के मुंह से यह बात सुनता तो राहुल कभी भी इस बात पर विश्वास नहीं कर पाता लेकिन यहां तो सब कुछ अपनी आंखो से देख रहा था अोर अपने कानों से सुन रहा था।
राहुल के पास इससे ज्यादा सोचने का समय नहीं था क्योंकि तब तक उसकी भाभी ने आओ मेरी जान मेरी प्यास अपने मोटे लंड से बुझाओ इतना कहने के साथ ही विनीत को अपनी बाहों में कस ली। विनीत भी अपनी भाभी के बदन के ऊपर उसकी बाहों में लेट गया
उसकी भाभी ने तुरंत अपनी टांगो को खोल दी और अपना एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर विनीत के लंड को पकड़कर अपनी गुलाबी बुर के मुहाने पर रखकर अपने दोनों हाथ को विनीत के नितंबो पर रख दी और उसके नितंबों को नीचे की तरफ दबाने लगी.
विनीत को भी जैसे उसकी मंजिल मिल गई थी वह भी अपनी कमर कोे नीचे की तरफ धकेला ओर उसका लंड गप्प करके उसकी भाभी की बुर मे घुस गया।
राहुल ये देखकर एक दम पसीना पसीना हो गया राहुल आज पहली बार ऐशा गरम कर देने वाला दृश्य देख रहा था। आज से पहले उसने कभी भी इस तरह का चुदाई करने वाला दृश्य नहीं देखा था। राहुल की शांसे तेज चल रही थी। विनीत की कमर को उसकी भाभी की बुर के ऊपर .ऊपर नीचे होता हुआ देखकर राहुल का भी हाथ लंड पर तेज चल रहा था।
आदरणीय रिश्तो के बीच ईस तरह का जिस्मानी ताल्लुकात को देख कर राहुल की उत्तेजना और ज्यादा बढ़ चुकी थी। राहुल को विश्वास नहीं हो रहा था कि इस तरह के पवित्र संबंध मां समान भाभी और पुत्र समान देवर के बीच मे भी होता है।
विनीत की भाभी की सिसकारियां पूरे कमरे में गूंज रही थी और वह नीचे से अपनी गांड को उछाल उछाल के विनीत के लंड को अपनी बुर मे ले रही थी।
तकरीबन 20 मिनट तक दोनों के बीच चुदाई का खेल चलता रहा। कमरे के अंदर विनीत की कमर चल रही थी और कमरे के बाहर राहुल कहां चल रहा था दोनों की साँसे तेज चल रही थी। दोनों की जबरदस्त चुदाई की वजह से पलंग के चरमराने की आवाज कमरे के बाहर खड़े राहुल को साफ साफ सुनाई दे रही थी। राहुल बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गया था और इसी ऊत्ेजना के चलते उसके हाथों से खिड़की का पर्दा थोड़ा और खुल गया और तुरंत विनीत की भाभी की नजर खिड़की के बाहर खड़े राहुल पर पड़ गई। राहुल और वीनीत की भाभी की नजरे आपस में टकरा गई। राहुल एकदम से घबरा गया और उसका हाथ रुक गया।
लेकिन इस बात से वीनीत की भाभी को बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ा की खिड़की पर खड़ा कोई उन दोनों की कामलीला को देख रहा है। बल्कि ऐसा लग रहा था कि वीनीत की भाभी की उत्तेजना और ज्यादा बढ़ गई है। वह ओर ज्यादा कामोत्तेजित हो कर अपनी हथेली को विनीत की पीठ पर फीराते हुए धीरे-धीरे उसके नितंब पर ले जाकर उसको अपनी बुर पर दबाते हुए सिसकारी भरते हुए बोली।

आहहहहहगहहहहहहह. मेरे राजा चोद मुझे आहहहहहह फाड़ दे मेरी बुर को आहहहहहहह. और जोर से

वीनीत की भाभी सिसकारी भरते हुए राहुल को देखे लेकर जा रही थी और गंदी गंदी बातें बोले जा रही थी। यह देख कर राहुल का भी हौसला बढ़ गया वह फिर से अपना हाथ चलाने लगा। पुरी पलंग चरमरा रहे थे दोनों पसीने पसीने हो गए थे दोनों की सिसकारियां तेज हो गई थी। और दो-तीन मिनट बाद ही दोनों भल भला के एक साथ झड़ गए। कुछ सेकंड बाद राहुल का भी वही हाल हुआ। दोनों कमरे में और बाहर राहुल अपनी चरमसीमा को प्राप्त कर चुके थे। राहुल का वहां खड़े रहना अब ठीक नहीं था इसलिए वह तुरंत वहां से हट गया और कमरे से बाहर आ गया।

राहुल विनीत के घर से निकल कर बाहर आ गया।
वह वहां से बड़ी तेज कदर्मों से चलकर कल अपने घर पहुंच गया मुझे पता ही नहीं चला।


सोने का समय हो गया था राहुल अपने कमरे में था आज दिन भर उसकी आंखों के सामने बस विनीत और उसकी भाभी ही नजर आ रही थी। उसे अभी भी यकीन नहीं आ रहा था की आज जो उसने वीनीत के घर पर देखा वह सच है। उसकी आंखों ने जो देखा था उस पर भरोसा कर पाना राहुल के लिए बड़ा मुश्किल हुआ जा रहा था।
अभी कुछ दिन पहले ही तो विनीत ने बताया था कि केसे उसकी भाभी ने उसे पाल पोस कर बडा किया। और यह भी तो कह रहा था कि उसकी भाभी को वह अपनी मां के समान मानता था और उसकी भाभी भी उसे अपने बेटे की तरह मानती थी। तो फिर आज उसके कमरे में मैंने देखा वह क्या था।
ऐसे ही ना जाने कितने सवाल राहुल के मन मे चल रहे थे। यह सारे सवालों उसे परेशान किए हुए थे। लेकिन फिर उसके मन ने कहा नहीं जो उसकी आंखों ने देखा जो उसके कानों ने सुना वो बिलकुल सच था। वह विनीत जी था और वह महिला उसकी भाभी ही थी दोनों के बीच में ना जाने कब से नजायज संबंध कायम हो चुका था। तभी तो विनीत खुद कह रहा था कि आपके बुलाने से वह कभी भी हाजिर हो जाता है भले क्यों ना हो क्लास में हो या चाहे जहाँ हो। और वैसे भी ना जाने कितनी बार वह भी नींद के सामने घर पर काम का बहाना करके चालू क्लास से घर चला गया है।
यह सब सोच सोच कर विनीत का लंड फिर से टाइट होना शुरू हो गया था। यह सब सोचते हुए भी उसकी आंखों के सामने बार-बार उसकी भाभी की नंगी गांड दिखाई दे रही थी। बार-बार विनीत के द्वारा उसकी गांड को मसलना उसको दबाना गांड की फांकों के बीच उंगलियों को घिसना यह सब दृश्य सोच सोच कर राहुल की हालत खराब हुए जा रही थी। उसके पजामे में तंबू बन चुका था। और उसका हाथ वीनीत की भाभी के बारे में सोच कर खड़े हुए लंड पर चला गया। वह पजामे के ऊपर से ही लंड को मसलने लगा। उसे लंड मसलने मे मीठा मीठा आनंद मिलने लगा। वीनीत की भाभी के नंगे बदन के बारे में सोच सोच कर वह पजामे के ऊपर से लंड को मसलते जा रहा था। पिछले कुछ दिनों से उसकी जिंदगी में ऐसे ही कामुक हादशे हो रहे थे जो उसकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दे रहे थे।
उसने अब तक 3 औरतों के नंगे बदन को देखने का सौभाग्य प्राप्त कर चुका था। सबसे पहले उसने अपनी मां को ही नंगी देखा था। अपनी मां के कमरे में दाखिल होते ही उसे उसकी मां गाऊन बदलते नजर आई थी। गाऊन सिर्फ कमर तक ही पहुंच पाई थी की राहुल कमरे में प्रवेश कर गया था और उसने जिंदगी में पहली बार अपनी मां की बडी़े-बड़ी गौरी और सुडोल गांड को अपनी आंखों से देखा था। उस दिन तो वह अपनी मां की नंगी गांड को देखकर पागल ही हो गया था।. कुछ सेकंड तक ही उसे उसकी मां की नंगी गांड का दर्शन करने को मिला था। लेकिन यह कुछ सेकंड का पल ही उसकी जिंदगी को बदल कर रख दिया था। उसकी मां की मतवाली और आकर्षक गांड का कामुक दृश्य उसकी आंखों में बस गया था जिसे वह बार-बार सोच सोच कर रात को अनजाने में ही मुठ मारना भी सीख गया था।
राहुल के दिमाग का संतुलन बिगड़ने में नीलू का भी बहुत बड़ा हाथ था । ना नीलू से राहुल की मुलाकात होती और ना राहुल इस कामुकता भरी राहों में आगे बढ़ता। अलका की गांड का प्रदर्शन तो अनजाने में ही राहुल के सामने हुआ था लेकिन नीलु ने तो जानबूझकर अपनीे मस्त गांड का प्रदर्शन राहुल के सामने की थी।
और पहली बार ही वह किसी औरत को पेशाब करते हुए देखा था। यह सुख उसे नीलू के द्वारा ही प्राप्त हुआ था। नीलू की मम्मी को तो वह पूरी तरह से नंगी नहीं देख पाया था। फिर भी उसने नीलू की मम्मी की हल्की सी चुचियों की झलक और उसकी चिकनी जाँघों का गोरापन देख ही लिया था। जिसे देख कर उस समय भी राहुल का लंड टनटना गया था। और वीनीत की भाभी उसने तो सब कुछ करके दिखा दिया था। अगर अाज नोटबुक लेने वीनीत के घर ना गया होता तो राहुल एकदम कामुक और चुदाई से भरपुर दृश्य का मजा ना ले पाता। राहुल की उम्र के लगभग सभी लड़के चुदाई का मजा ले चुके होते हैं या मोबाइल में क्लिप ओ के द्वारा देख चुके होते हैं। लेकिन इन सब में राहुल सबसे अलग था ना उसने आज से पहले कभी मोबाइल में ही चुदाई का दृश्य देखा था और ना ही असल में।
राहुल के लिए पहली बार था इसलिए तो वह उत्तेजना से भर चुका था। उसने अब तक तीन महिलाओं की मस्त मस्त गांड देख चुका था। और तीनों की गांड अपने आप में जबरदस्त थी। उन तीनों की गांड की तुलना किसी और की गांड से करने का मतलब था की उन तीनों की गदराई गांड की तौहीन करना। उन तीनों के बदन का आकर्षण इतना तेज था खास करके उनकी बड़ी बड़ी और गोल चूचियां और गदराई हुई गांड जो भी देखे बस अपलक देखता ही रह जाए।। इन तीनों महिलाओं ने राहुल की जिंदगी में तूफान सा ला दिया था
और आज विनीत की भाभी ने जो चुदाई का पूरा अध्याय राहुल के सामने खोल कर रख दि थी। वह राहुल के लिए चुदाई का सबक सीखने का पहला अध्याय था जो की शुरू हो चुका था।
राहुल की आंखों के सामने बार-बार विनीत की नंगी भाभी का बिस्तर पर लेटना अपनी जाँघो को फैलाना
और अपने ही हथेली से अपनी बूर को रगड़ना यह सब गर्म नजारे उसकी आँखो के सामने बार बार नाच जा रहे थे। राहुल की सांसे तेज चल रही थी। विनीत की भाभी के बारे में सोच कर उसका पजामा कब उसकी जांघों तक चला गया उसे पता ही नहीं चला। राहुल की हथेलि उसके टनटनाए हुए लंड के ईर्द गिर्द कसती चली जा रही थी। राहुल अपने लंड को मुठिया रहा था पिछले कुछ दिनों से रात को सोते समय वह ईसी क्रिया को बार बार दोहरा रहा था। और इस मुट्ठ मार क्रिया को करने में उसे बेहद आनंद प्राप्त होता था। ईस समय भी उसके हाथ बड़ी तेजी से उसके लंड पर चल रहा था।
उसके मन मस्तिष्क ओर उसका बदन ऐसी पवित्र रीश्तो के बीच सेक्स संबंध के बारे में सोच कर और भी ज्यादा उत्तेजना से भर जाता । भाभी और देवर के बीच इस तरह का गलत संबंध भी हो सकता है उसे आज ही पता चला था।
राहुल बार-बार अपनी आंखों को बंद करके उस दृश्य के बारे में सोचता जब उसकी भाभी अपनी टांगें फैलाकर बिस्तर पर लेटी हुई थी और विनीत उसकी टांगों के बीच लेटकर अपना लंड उसकीबुरे में डाल कर बड़ी तेजी से अपनी कमर को ऊपर नीचे करते हुए चला रहा था। और रह रह कर उसकी भाभी भी नीचे से अपनी भारी भरकम गांड को ऊपर की तरफ से उछालकर अपने देवर का साथ दे रही थी। जैसे-जैसे राहुल ऊपर नीचे हो रही विनीत की कमर के बारे में सोचता वैसे वैसे उसका हाथ लंड पर बड़ी तेजी से चल रहा था।
राहुल उसकी भाभी की चुदाई के बारे में सोच सोच कर मुट्ठ मारता हुआ चरम सुख की तरफ आगे बढ़ रहा था।
भाभी की गरम सिसकारियां राहुल को भी गरम कर रही थी। राहुल बार-बार यही सोच रहा था की क्या वाकई में
चुदाई में इतना मजा आता है कैसे दोनों एक दूसरे में गुत्थम गुत्था हो गए थे। कैसे उनकी चुदाई की वजह से पुरा पलंग चरमरा रहा था। क्या गजब की चुदास से भरी आवाज आ रही थी जब वीनीत का लंड उसकी भाभी की पनीयाई बुर मे अंदर बाहर हो रहा था। पुच्च पुच्च की आवाज से पुरा कमरा गुँज रहा था।
कमरे के अंदर का पूरा दृश्य याद कर-करके राहुल बड़ी तेजी से मुट्ठ मारा था । वह चरम सुख के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था तभी उसके मुख से आवाज आई।
ओह भाभी ............. और एक तेज पिच्कारी उसके लंड से निकली और हवा मे उछलकर वापस उसके हथेली को भिगो दी। राहुल एक बार फिर सफलतापूर्वक मुट्ठ मारता हुआ अपने चरम सुख को प्राप्त कर लिया था।

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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

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काफी दिन बीत चुके थे हमे युद्ध की तैयारियां करते हुए अभी तक कपाला की तरफ से कोई और आक्रमण नहीं हुआ था। मेरे अलावा सभी को लगता था कि कपाला अब आक्रमण नहीं करेगा। पर न जाने क्यों मेरी छठी इंद्री मुझे हमेशा कहती थी की आक्रमण होगा और जरूर होगा बस शत्रु हमारे ढीला पड़ने की फ़िराक़ में है। खैर विशाला के अनुसार क़ाबिले के बहार छुपे हुए गड्ढो का निर्माण हो गया था जिसे क़बीले के भीतर गुप्त स्थान तक सुरंग से जोड़ दिया गया था जिसका पता सिर्फ मुझे और विशाला को ही था। साथ ही क़बीले के चारों ओर दिवार से लगे गड्ढे खोद के उनमें नुकीले भाले जैसी लकड़ियों से भर दिया गया था और उन्हें घांस फूंस से भी ढक दिया गया था। गुलेल का भी निर्माण पूर्ण हो गया था । मैंने कुछ काबिल सिपाहियों को गुलेल के इस्तेमाल का तरीका भी सीख दिया था। अब बस हमें इंतज़ार था कपाला के हमले का।

आखिरकार वो दिन भी आ गया। एक सुबह मेरी आँख क़बीले में जाफी शोर शराबे से खुली मैंने उठके देखा तो त्रिशाला कुटिया में कहीं नहीं दिखायी दी । मैं चमड़े का वस्त्र कमर पे लपेट बाहर निकला तो देखा की विशाला मेरी तरफ दौड़ती हुयी आ रही थी मेरे पास पहुँच के उसने बताया " महाराज अभी अभी गुप्तचर ने सुचना दी है कि कपाला हमारे क़बीले पे आक्रमण के लिए आ रहा है।
मैंने पूछा " अभी उसकी सेना कहाँ पहुची है और कितने सैनिक होंगे उसकी सेना में? "
विशाला " महाराज उसकी सेना हमारे क़ाबिले से 200 गज की दुरी पे है और उसमें हमसे लगभग दुगने 500 सैनिक होंगे "
मैंने विशाला से कहा कि " उन्हें गुलेल की सीमा में आने दो ।फिर 150 सैनिको की तीन टुकड़ियां बनायो और गुप्त रास्ते से निकलके उनके पीछे पहुँचो फिर उनपर अगल बगल और पीछे से एकसाथ हमला करो जिससे उनकी सेना एक छोटे से केंद्र में सीमित हो जाए और हमे उनपे गुलेल से निशाना लगाने में आसानी हो। जब वो हमारी गुलेल की सीमा में आ जायेंगे तो तुम लोग पीछे हट जाना।बाकी सैनिको में से कुछ को क़बीले के दरवाजों पे लगा दो जिससे कोई अंदर बाहर न जा सके। 50 सैनिको मेरे साथ छोड़ दो जिनके साथ मैं हमला करूँगा। "
विशाला ने मेरी बात समझने के बाद कहा" ठीक है महाराज मुझे आज्ञा दीजिये ।"
मैंने विशाला से कहा " विजयी भवः "
हमारी योजनानुसार विशाला ने अपने सैनिकों की तीनों टुकड़ियों के साथ कपाला की सेना पर हमला कर दिया । तलवार और भालों से लैस विशाला के सैनिको ने शत्रु ऐना में हड़कंप मचा दिया । किनारे और पीछे से हुए हमले के कारण बचने के लिए वो केंद्र में इकठ्ठा होने लगे चूँकि उनके सामने कोई और रास्ते नहीं था इसलिए वो इसी तरह क़बीले की तरफ बढ़ने लगे।
जब वो मेरी गुलेलो की सीमा में पहुचे तो मैंने विशाला को मशाल से पीछे हटने का इशारा किया। जब हमारे सैनिक पीछे हुये तो मैंने गुलेलों पे बंधे बड़े बड़े पत्थरो को कपाला की सेना पर फेंकने का आदेश दिया। बड़े बड़े पत्थर जब उड़कर पूरे वेग के साथ शत्रु सेना पे गिरे तो एक साथ सैंकड़ो सैनिक कुचलते चले गए। धीरे धीरे शत्रु सेना में सैनिक घटने लगे और उनमे भगदड़ मच गयी ।
जो सैनिक पीछे की तरफ भागे उनका काम विशाला और उसकी टुकड़ी ने ख़त्म कर दिया । कपाला ने बाकी बचे सैनिको के साथ आगे बढ़के क़बीले की दीवार पे चढ़ने को कहा। दीवार पे मैंने पहले ही कुछ तीरंदाजों को लगा रखा था । मैंने तीरंदाजों को इशारा किया तो उन्होंने आगे बढ़ते सैनिको पर बाणों की बारिश कर दी। कई सैनिक मारे गए। कपाला की एक आँख भी बाणों की भेंट चढ़ गयी। फिर भी वो बचे खुचे सैनिकों को लेके आगे बढ़ा। कुछ सैनिक जैसे ही जैसे ही दीवार के समीप आये वो घांस से ढके हुए गड्ढों में गिरे जहाँ वो नुकीली लकड़ियों से बींध गए। मैंने देखा की अब शत्रु सेना कुछ 50 60 सैनिको की बची है और वो भी डरे सहमे हुए हैं। तो मैं भी अपने सैनिकों के साथ उनपे टूट पड़ा।
कुछ ही देर में बाकी बचे सैनिक भी या तो काल की गोद में समा गए या भाग गए। कपाला भी चकमा देकर निकल भगा।
हम युद्ध जीत गए थे क़बीले में ख़ुशी का माहौल था। मैं और विशाला भी ख़ुशी में एक दूसरे के गले मिले और विजय की एक दूसरे को बधाई दी।
तभी चरक महाराज हमारे पास आये और बोले " महाराज रानी विशाखा और रानी त्रिशाला कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं।"
मैंने कहा " क्या कह रहे हैं चरक महाराज ?"
चरक ने कहा " हाँ महाराज जब युद्ध शुरू हुआ तो मैं दोनों रानियों को सुरक्षित स्थान पे ले जाने के लिए खोजने लगा पर वो कहीं मिली नहीं।"
फिर हम सब ने मिलके क़बीले में रानियों की खोज की पर वो कहीं नहीं मिली। मैंने सैनिको को आसपास के क़बीलों में भी भेजा पर उनका कोई अता पता ही नहीं था।
दो दिन तक की खोजबीन के बाद भी दोनों रानियों का कोई पता नहीं चल पाया था। किसी अनहोनी की आशंका से मेरा गला बैठा जा रहा था। मैं अपनी कुटिया में बैठा यही सब सोच विचार कर रहा था कि तभी विशाला ने आके बताया कि गुप्तचर कुछ खबर लेके आया है। मैंने विशाला से उसे अंदर लाने को कहा।
अन्दर आने पे मैंने उससे पूछा " बताओ कोई खबरमिली रानी विशाखा और रानी त्रिशाला की ?"
उसने कहा " जी महाराज मुझे खबर मिली है कि रानी विशाखा और रानी त्रिशाला कपाला के कब्जे में हैं ।"
मुझे पहले विश्वास नहीं हुआ मैने कहा " ये कैसे हो सकता है युद्ध के दौरान तो क़बीले के बाहर जाने के सारे रास्ते बंद थे । न कोई अंदर आ सकता था न किसी को बाहर ले जा सकता था। फिर ये कैसे हो सकता है ?"
विशाला ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया " महाराज हो सकता है उन दोनों का अपहरण युद्ध के पहले ही हो गया हो।"
मैंने उसकी बात पे गहराई से सोचते हुए बोला " ये हो सकता है पर इसके लिए भी किसी अंदर के आदमी का इसमें कोई न कोई हाथ जरूर है।"
विशाला " महाराज ऐसा कौन कर सकता है?"
मैंने विशाला से कहा " मुझे ये नहीं पता और अभी हमारी पहली प्राथमिकता दोनों रानियों को कपाला की कैद से छुड़ाने की होनी चाहिए । "
विशाला " महाराज दोनों रानियों को छुड़ाना आसान नहीं होगा क्योंकि कपाला का कबीला चारो तरफ से पहाड़ों से घिरा है और उसपर हमला करने के लिए हमारे पास पर्याप्त सैनिक भी नहीं है।"
मैंने विशाला से पूछा " फिर सेनापति हमे क्या करना चाहिए ?"
विशाला " महाराज हमे कूटनीतिक तौर पे कोई समाधान निकालने की सोचनी चाहिए।"
मैंने विशाला से कहा " सेनापति विशाला कोई भी कूटनीति तभी सफल होती है जब बराबरी पे बात हो अभी उसके पास हमारी रानियां हैं वो हमारी कोई बात क्यों मानेगा।"
विशाला " तो फिर महाराज हमे क्या करना चाहिए ?"
मैंने कहा " सेनापति हमे बराबरी पे आना होगा ।"
विशाला " महाराज आप करना क्या चाहते हैं ?"
मैंने विशाला से कहा " विशाला आप अपने सबसे विश्वस्त सैनिको की एक टुकड़ी तैयार करिये । कल सुबह हम कपाला के क़बीले की तरफ कूच करेंगे। बस क़बीले में किसी को पता न चले हम कहाँ जा रहे हैं। सबको ये बताना की हम आसपास के कबीलों में दोनो रानियों की खोज करने जा रहे हैं।"
विशाला " जो आज्ञा महाराज "
विशाला और गुप्तचर कुटिया से बाहर चले जाते हैं। मैं भी अपनी आगे की रणनीति पे विचार करने लगता हूँ।
हमें आज कपाला के क़बीले की निगरानी करते हुए दो दिन हो गए थे। सेनापति विशाला और करीब 15 सैनिक मेरे साथ मौजूद थे। पिछले दो दिन में हमने कपाला के क़बीले के अंदर की सारी गतिविधियों हमने छुप के देखा पर दोनों रानियों का कोई पता नहीं चला। पता नहीं कपाला ने दोनों को कहाँ छुपा रखा था।
मैंने विशाला को इशारे से अपने पास बुलाया और उसे अपनी आगे की रणनीति के बारे में समझाने लगा " सेनापति विशाला हमें दो दिन ही गये हैं यहाँ पे निगरानी करते हुए पर कपाला ने दोनों रानियों को कहाँ छुपाया है ये पता नहीं चल पाया है। अब हमें अपनी दूसरी रणनीति अपनानी होगी अब हमें कपाला को उसके बिल से बाहर निकलना होगा । "
विशाला " महाराज आप क्या करना चाहते हैं ?"
मैंने कहा " चूँकि कपाला का कबीला चारो तरफ से ऊँची पहाड़ियों से घिरा हुआ है हमें इसका फायदा उठाना चाहिए। 5 आदमियों को भेज के बड़ी बड़ी चट्टानें इकठ्ठा करो और उनको ढलान पे लाके लुढ़का दो। जब क़बीले में अफरा तफरी होनी लगे तो उनके अनाज के गोदाम में 5 आदमियों को भेज के आग लगा दो। और बाकी 5 को भेज के इनका पीने के पानी को दूषित करवा दो। ये सब करने के बाद हम वापस अपने क़बीले लौट जाएंगे। "
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Re: अनोखा सफर

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मेरी रणनीति के मुताबिक हमने बड़ी बड़ी चट्टानें ऊँची पहाड़ियों की चोटी से लुढ़का दी। लुढकने से उनका वेग इतना बढ़ गया की जब वो क़बीले पहुची तो न जाने कितनी झोपड़ियों और क़बीले वासियों को कुचलते हुए निकल गयी। उन चट्टानों ने क़बीले में इतना आतंक मचाया की पूरे क़बीले में अफरा तफरी मच गयी। इसी का फायदा उठा कर सैनिकों ने उनके अनाज के भण्डार में आग लगा दी। पूरे क़बीले वासी जब अनाज बचाने के लिए भागे तो सैनिको ने चुपके से पानी को दूषित कर दिया। फिर मेरे आदेशानुसार ये सब करने के बाद वो वापस लौट आये।
लौटते वक़्त मैंने विशाला से कहा " कपाला को ये पता चलना चाहिए ये हमने किया है।"
विशाला " हो जाएगा महाराज "
फिर हम क़बीले की तरफ वापस चल पड़े।

मैं अपनी कुटिया में बैठा ये सोच रहा था कि रानी विशाखा और रानी त्रिशाला को कपाला ने कहाँ छुपा रखा होगा तभी सेनापति विशाला कुटिया में प्रवेश किया।
विशाला " महाराज पुजारन देवसेना की दासी देवबाला और कपाला का एक दूत आपसे मिलने चाहते हैं।"
मैंने उससे कहा " उन्हें अंदर लाओ "
दासी देवबाला और उसके साथ एक दूत प्रवेश करता है । मेरे सामने आकर दोनों मुझे प्रणाम करते हैं ।
देवबाला " महाराज मैं पुजारन देवसेना का एक विशेष सन्देश लेके उपस्थित हूँ "
मैंने कहा " बोलो देवबाला "
देवबाला " महाराज पुजारन देवसेना के संदेश से पहले मेरी विनती है कि आप पहले कपाला के दूत की बात सुन ले।"
कपाला का दूत " महाराज सरदार कपाला ने आपको संघर्ष विराम करने और संधि वार्ता करने के लिए अपने क़बीले बुलाया है। "
मैंने देवबाला से कहा " पुजारन जी क्या सन्देश है ?"
देवबाला " महाराज पुजारन देवसेना चाहती हैं कि आप और कपाला के बीच संधि हो जाए। "
मैं कुछ देर सोचने के बाद कपाला के दूत से कहता हूं " संधि वार्ता पे आने के लिए मेरी दो शर्ते हैं पहली कपाला को मेरी दोनों रानियों को लेके आना होगा । दूसरी संधि वार्ता कपाला के क़बीले पे नहीं होगी। अगर कपाला को मेरी ये दोनों शर्तें स्वीकार्य हैं तभी वार्ता होगी अगर नहीं तो कपाला से कह देना की उसको मैं चैनसे बैठने नहीं दूंगा।"
मेरी बातें सुनके देवबाला बोली " महाराज क्षमा करें पर मैं कुछ कहना चाहती हूँ"
मैंने कहा " बोलो देवबाला क्या कहना चाहती हो ?"
देवबाला " महाराज अगर आप सही समझे तो ये संधि वार्ता देवसेना जी के मंदिर में ही सकती है।"
मुझे भी ये विचार सही लगा किसी अपरिचित जगह पे संधि वार्ता करने से अच्छा देवसेना के मंदिर पर की जाए।
मैंने कपाला के दूत से कहा " कह देना अपने सरदार से अगली पूर्णिमा को वो मेरी रानियों को लेके देवसेना के मंदिर पे पहुँचे अन्यथा अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहे।"
फिर देवबाला और कपाला का दूत कुटिया सर बाहर चले गए।
उनके जाने के बाद विशाला कुटिया में आती है। मैं उससे सारी बाते बता देता हूं। वो मुझसे पूछती है " अब आपका क्या विचार है महाराज ?"
मैंने उसे अपनी पूरी योजना समझाना शुरू की " मैं और चरक देवसेना के मंदिर शान्ति वार्ता के लिए जाएंगे।"
विशाला " महाराज वहां अकेला जाना सही न होगा, वो भी चरक के साथ वो हमसे कुछ छुपा रहे हैं ?"
मैंने कुछ सोचते हुए कहा " तुम ठीक कह रही हो इसलिए तुम भी हमारे साथ चलोगी पर छुप कर किसी को पता न चले इस तरह।"
विशाला " ठीक है महाराज "
मैंने विशाला से कहा " चरक को मेरे पास भेजना जरा "
विशाला " जो आज्ञा महाराज "
विशाला के जाने के कुछ देर बाद चरक मेरे पास आता है ।
चरक "महाराज प्रणाम "
मैं चरक से बोला " चरक जी कपाला ने हमें शान्ति वार्ता पे बुलाया है ।"
चरक " तो आपने क्या सोच है महाराज ?"
मैं " मैं और आप अगली पूर्णिमा को कपाला से शांति वार्ता के लिये देवसेना के मंदिर जाएंगे।"
चरक " महाराज मैं और आप ही और सेनापति विशाला??"
मैं " वो क़बीले में रहकर यहाँ की सुरक्षा का जिम्मा उठाएंगी।"
चरक खुश होते हुए " उत्तम विचार है महाराज "
मैं " तो फिर हमारे वहां जाने की व्यवस्था की जाये।"
चरक " जो आज्ञा महाराज "

आखिर वो दिन आ ही गया जब संधि वार्ता होनी थी। मैं और चरक पहले ही वहां पहुच गए थे। साथ ही विशाला भी आ गयी थी पर वो छुप के मेरी हिफाजत कर रही थी।
खैर हम सब एक कुटिया में इकठ्ठा हुए । वहां पे देवसेना और देवबाला पहले से ही मौजूद थी। कुछ देर बाद भी कपाला ने भी कुटिया में प्रवेश किया। उसकी एक आँख पे काली पट्टी बंधी हुई थी जो उसे देखने में और क्रूर बना रही थी।
चरक ने हमारा परिचय कराते हुए कहा " महाराज ये सरदार कपाला है और सरदार ये कबीलों के सरदार महाराज अक्षय हैं।"
मेरी उम्मीद के विपरीत कपाला ने मुझे झुक के प्रणाम किया और बोला " महाराज की जय हो आपके बारे में बहुत सुना था आज आप से मिलके बहुत ख़ुशी हुई।"
मैंने भी उसका जवाब दिया " सरदार कपाला मैंने भी आपके बारे में बहुत सुना है।"
पुजारन देवसेना ने कहा " आप लोगो का परिचय हो गया हो तो संधिवार्ता शुरू की जाय ?"
मैंने कहा " पुजारन देवसेना मेरी संधि वार्ता की शर्त अभी पूरी नहीं हुई है ।"
सभी कपाला की तरफ देखने लगे तो कपाला ने गंभीर मुद्रा में कहा " पुजारन देवसेना और महाराज अक्षय मैं आपको बताना चाहता हु की रानी विशाखा और रानी त्रिशाला का अपहरण मैंने नहीं किया है आप लोगो को ग़लतफ़हमी हुई है।"
मुझे अब क्रोध आ गया मैंने आवेश में आके कहा " सरदार कपाला बहुत हो गया अब आप सीधे सीधे मेरी रानियों को मुझे लौटा दे नहीं तो परिणाम बहुत भयानक होगा ।"
कपाला ने शांत रहकर धीमे से कहा " महाराज आप ने दो बार मेरे क़बीले पे अकारण ही आक्रमण किया और मासूम क़बीले वालों की हत्या की और आप मुझ पर अपनी रानियों के अपहरण का झूठा आरोप लगा रहे हैं।"
मेरा क्रोध अब सातवे आसमान पे था मैं चिल्लाते हुए कहा " कपाला झूठ तो तुम बोल रहे हो पहले तुमने मेरे क़बीले पे हमला किया था जब मैं कालरात्रि की पूजा के लिए यहाँ पुजारन देवसेना के मंदिर आया हुआ था। फिर तुमने मेरे क़बीले पे हमला किया जब तुम्हारी आँख में तीर लगा था फिर तुमने उसी युद्ध में मेरी रानियों का अपहरण कर लिया ।"
कपाला अभी भी शांत ही था वो बोला " महाराज मैंने पहले आपके क़बीले पे आक्रमण नहीं किया बल्कि पहले आपने सेनापति विशाला को भेज कर मेरे क़बीले पे आक्रमण करवाया।"
अब मेरा सर घूमने लगा मैंने चरक की तरफ देखा तो वो मुझसे बोला " महाराज मुझे पहले ही शक था कि सेनापति विशाला कुछ षड्यंत्र रच रही हैं । जब आप पुजारन देवसेना के यहाँ से कालरात्रि की पूजा कर के लौटे थे तो विशाला ने आपसे बताया कि आप की गैरमौजूदगी में कपाला के सैनिकों ने आक्रमण किया था जबकि मारे गए सैनिक कपाला के क़बीले के नहीं थे। मैं उस समय पूरी तरह से विश्वस्त नहीं था इसलिए मैंने आपको ये बात बताना उचित नहीं समझा पर विशाला ने आपको ये कहकर ये बात बताई की कपाला ने हमला किया था।"
मैं अब कुछ समझ नहीं पा रहा था मैंने पूछा " विशाला ने आखिर ऐसा क्यों किया ?"
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