अनोखा सफर complete

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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

तभी विशाला कुटिया में दाखिल होती है उसके हाथ में तलवार रहती है। उसे देखते ही मैं उससे पूछ पड़ता हु " सेनापति विशाला क्या चरक सही कह रहे हैं?"
विशाला क्रोधित होते हुये कहती है " हाँ ये सच है कि कपाला के क़बीले पे पहले मैंने हमला किया और फिर अपने क़बीले पे भी झूठा हमला करवाया ताकि कपाला और आपकी लड़ाई हो ।"
मैंने विशाला से पूछा " आखिर क्यों ?"
विशाला " ताकि आप दोनों में से एक उस लड़ाई में मारा जाये और दूसरे को मैं ठिकाने लगा के क़बीले की सरदार बन जाऊं।"
मैंने फिर विशाला से पूछा " तो क्या तुमने ही रानी विशाखा और रानी त्रिशाला का अपहरण किया है ?"
मेरा सवाल सुन कर विशाला जोर जोर से हँसने लगी । तभी रानी विशाखा और रानी त्रिशाला कुटिया में प्रवेश करती हैं। रानी त्रिशाला के हाथ बंधे हुए थे तथा रानी विशाखा के हाथ में भी तालवार थी । ये दृश्य देख कर मेरा सर जोर जोर घूमने लगता है रानी विशाखा ने भी मेरे साथ छल किया।
मैंने रानी विशाखा से पूछा " रानी विशाखा आप भी इस षड्यंत्र में शामिल थीं ?"
विशाखा " षड्यंत्र तो आपने किया पहले छल से राजा वज्राराज का वध किया फिर उस क़बीले के सरदार बन गए जिस क़बीले पे मेरा और मेरी बेटी का अधिकार था । अब आपके मुख से ऐसी बातें शोभा नहीं देती हैं महाराज ।"
अब सारी बातें साफ थीं की विशाला और विशाखा ने मिलकर मेरे साथ छल किया है । मैं अब आगे की प्रतिक्रिया के बारे में सोच रहा था कि पुजारन देवसेना विशाखा को बोलती हैं " रानी विशाला मैं आपको आज्ञा देती हूं कि आप रानी त्रिशाला को छोड़ दें।"
ये बात सुनकर विशाखा और विशाला जोर जोर से हँसने लगती हैं । तभी देवबाला आगे आती है और एक कटार पुजारन देवसेना के गले पे रख देती है। इससे पहले की कोई कुछ कर पाता देवबाला पलक झपकते ही कटार पुजारन देवसेना के गले पे फेर देती है। पुजारन देवसेना के गले से रक्त की फुहार निकलने लगती है और उनका शरीर भूमि पे गिर कर तड़पने लगता है ।
मैं देवबाला की तरफ सवालिया दृष्टि से देखता हूं वो मुझसे कहती है " मुझे भी देवी बनना था महाराज और आपकी दया से मैं भी गर्भवती हो गयी हूँ पर पुजारन देवसेना के रहते मैं देवी नहीं बन सकती थी तो मुझे इन्हें रस्ते से हटाना पड़ा।"
भूमि पर गिरा देवसेना का शरीर अब शांत पड़ चूका था और हर तरफ रक्त फ़ैल गया था। तभी चरक और कपाला एक साथ विशाखा और विशाला पे टूट पड़ते हैं। उनकी आपसी लड़ाई का फायदा उठा के मैं रानी त्रिशाला के पास आता हूं और उनके हाथ खोल देता हूं। मैं रानी त्रिशाला से कहता हूं " रानी आप यहाँ से बाहर निकलें और अपनी जान की रक्षा करें।"
रानी विशाला से जाने का कहकर मैं घूम कर कुटिया में हो रहे युद्ध पे नज़र डालता हु पर तभी मेरी पीठ में पसलियों के बीच कुछ नुकीला घुसता हुआ महसूस होता है। मुझे असहनीय पीड़ा होती है और मेरे मुह के रास्ते खून निकलने लगता है। किसी तरह मैं घूम कर पीछे मुड़ता हूं तो देखता हूं त्रिशाला एक छोटी सी रक्तरंजित कटार लिए खड़ी रहती है। उसकी आँखों में विजय की चमक रहती है । किसी तरह मेरे मुख से निकलता है "क्यों?"
वो कहती है " आश्चर्य न करे महाराज राजा वज्राराज मेरे भी पिता थे और आज मैं उनकी हत्या का बदला लूंगी।"
ये कहकर वो दुबारा वो कटार मेरे पेट में घुसा देती है। मुझे लगता है कि जैसे किसी ने मेरे फेफड़ो में से हवा निकाल दी हो। मेरी आँखे धीरे धीरे बंद होंने लगती हैं। मैं अपनी अधखुली आँखों से अपनी मौत का इंतजार कर रहा होता हूं कि तभी देवबाला अपनी कटार त्रिशाला के गले पे फिरा देती है। त्रिशाला भी पुजारन देवसेना की तरह भूमि पर गिर कर तड़पने लगती है। मेरे भी पैर अब जवाब देने लगते हैं और आँखे बंद होने लगती हैं । बस होश खोने से पहले जो आखिरी शब्द मैं देवबाला के मुँह से सुनता हूं वो रहते हैं " मैंने आपको दिया वचन निभाया आपकी रक्षा की महाराज ।"
मेरी आँख खुलती है तो पूरे शरीर में तीव्र पीड़ा का एहसास होता है । सामने देखता हूं तो चरक और कपाला बैठे होते हैं।
मैं चरक से कुछ पूछने की कोशिश करता हु तो मेरा मुँह लहू से भर जाता है। मेरी स्थिति देख चरक बोल पड़ते हैं " महाराज अभी आराम करिये अभी आपके घाव भरे नहीं हैं।"
मैंने रक्त थूकते हुए पूछा " मैं कहाँ हु ?"
चरक " महाराज आप सरदार कपाला के क़बीले पे हैं।"
मैंने फिर पूछा " क्या हुआ वहाँ पर "
चरक " महाराज पुजारन देवसेना और त्रिशाला मारी गयीं । हमने भी किसी तरह विशाखा और विशाला को परास्त किया पर वो भागने में सफल हो गईं। जब हम वहां से बाहर निकले तो हमने देखा की आप कुटिया के बहार पड़े थे आपके पास देवबाला थी वो आपकी चोटो का उपचार कर रही थीं। उसने हमसे आपको अपने साथ ले जाने को कहा और हम आपको अपने साथ लेके आ गए।"
मैंने पुनः पूछा " और मेरा कबीला "
चरक " महाराज वो कभी आपका था ही नहीं सेनापति विशाला और रानी विशाखा पहले भी क़बीले की आधिकारिक राजा थी और अब भी। "
मैंने कपाला की तरफ देखते हुए कहा " सरदार कपाला मुझे अपने क़बीले में आश्रय देने का धन्यवाद। आप अगर बुरा न माने तो मैं एक बात कहूं।"
कपाला " बिलकुल महाराज "
मैं बोला " सरदार कपाला मुझे लगता है कि विशाला और विशाखा आपके क़बीले पे हमला करने की ताक पे होंगी । आपको अपने क़बीले को किसी सुरक्षित स्थान पे ले जाना चाहिए।"
कपाला " मैं कुछ समझा नहीं महाराज "
मैं " महाराज कपाला आपका कबीला चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है और निचले स्थान पे है इसलिए आक्रमण की स्थिति में आप को नुक्सान होगा जैसा की पिछली बार हुआ था।"
कपाला " महाराज आपकी बात सही है पिछली बार आपके हमले ने मेरी कमर ही ताड दी थी और मैं दुबारा उस तरह के हमले के लिए तैयार नहीं हूं। आप ही बताइए मुझे क्या करना चाहिये।"
मैं " महाराज आप को ऊपर पहाडियो पे चला जाना चाहिए उससे आप ऊंचाई पे पहुच जायेंगे और अपने शत्रु से लड़ने में अधिक सक्षम हो पाएंगे। आप ऊंचाई से अपने शत्रु की गतिविधि पे आसानी से नजर रख सकते है और उसके मुताबिक हमला कर सकते हैं।"
कपाला " आप उचित कह रहे हैं महाराज मैं आज ही क़बीले को ऊपर पहाड़ियों पे ले जाने का प्रबंध करता हूँ।"
चरक " महाराज मुझे लगता है आपको अब आराम करना चाहिए।"
मैं " चरक जी अब मैं आराम विशाला और विशाखा की मृत्यु के बाद ही करूँगा मैं कितने दिन में चलने फिरने में समर्थ हो जाऊंगा ?"
चरक " महाराज आपके घाव बहुत गहरे हैं जरा भी असावधानी आपकी मृत्यु का कारण हो सकती है।"
मैं " मुझे मृत्यु का भय नहीं है चरक जी अब भय सिर्फ विश्वासघात से लगता है और मैं तब तक चैन से नहीं सो पाउँगा जब तक मैं विशाला और विशाखा को मृत्यु शैय्या पे न लिटा दू।"
चरक " ठीक है महाराज जैसी आपकी इच्छा पर अभी आप आराम करिये हम चलते हैं।"

मेरे कहे अनुसार सरदार कपाला ने अपना कबीला पहाड़ियों पे स्थानांतरित कर दिया था।धीरे धीरे मेरे जख्म भरने लगे थे और मैं अब अपने दैनिक काम बिना किसी सहारे के कर पा रहा था। पिछले कुछ दिनों की घटनाओं ने मुझे अंदर से हिला दिया था अब मैं किसी पे विश्वास करने की स्थिति में नहीं था न ही कपाला पर और न ही चरक पर। मैं बस अपना बदला लेना चाहता था पर वो बिना कपाला की सेना के कभी पूरा नहीं हो सकता था। मैं अपनी आगे की योजना और रणनीति पे रोज घंटो मंथन करने लगा।
एक दिन कपाला मेरे पास आया उसने मेरा परिचय अपनी पत्नी और पुत्री से करवाया । दोनों देखने में तो बहुत सुंदर नहीं थी पर बदन से काफी भरी हुई थीं। दोनों के वक्ष और नितंब भी काफी सुडौल थे। दोनों को देख कर कई दिन से चूत का प्यासा लंड झटका खा गया।
कपाला ने परिचय करवाते हुए कहा " महाराज ये मेरी रानी रूपवती और मेरी पुत्री रूपम हैं। "
उन दोनों ने मुझे झुक कर प्रणाम किया । मैंने भी उनका अभिवादन स्वीकार किया।
कुछ देर सभी ने मिलकर बात की और फिर वे सब कुटिया से चले गए।
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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

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कुछ दिन इसी प्रकार बीतते रहे मैं अपने इर्द गिर्द होने वाली किसी भी गतिविधि के प्रति सजग रहते हुए कपाला और चरक पे नज़र रखने लगा। एक दिन मैंने कपाला को छुपते छुपाते कहीं जाते देखा। मुझे उसका इस प्रकार छुपते हुए जाना थोड़ा संदिग्ध लगा इसलिए मैं भी छुप के उसका पीछा करने लगा। कुछ देर बाद कपाला पहाड़ियों से उतर के घने जंगलों में जाने लगा। अब मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि दाल में कुछ काला है। इस रहस्य से पर्दा उठाने का संकल्प लिए मैं भी कपाला के पीछे जंगल में हो लिया। कुछ देर बाद कपाला जंगल में बनी एक कुटिया में चला जाता है। मैं भी छुपते हुए कुटिया के पीछे पहुच जाता हूं। मैंने हलकी सी कुटिया की फूंस में लकड़ी से जगह बनाई जिससे अंदर देखा जा सके।
अंदर मैंने देखा की कपाला के साथ चरक भी मौजूद था। अब मुझे पक्का यकीन हो गया कि ये दोनों छुपकर मेरे खिलाफ कोई योजना बना रहे हैं। मैं भी छेद में कान लगाकर अंदर की बात सुनने लगा।
चरक " क्या हुआ इतनी देर क्यों हो गयी?"
कपाला " अरे कुछ नहीं वो रूपवती को शक हो गया था इसलिए उससे बचते हुए आया हूँ।"
चरक " चलो अब जल्दी मुझे भी बहुत देर हो गयी है।"
कपाला " वाह तुम्हे बहुत जल्दी है"
चरक " हाँ भाई बहुत दिन से भूखा हूँ।"
उसके बाद जी चरक ने किया वो देख कर मैं अपनी आँखों पे यकीन नहीं कर पा रहा था। चरक कपाला के सामने घुटनों पे बैठ गया और कपाला की कमर पे बंधा वस्त्र खोल दिया। चरक ने फिर कपाला के लंड को सहलाना शुरू किया तो उसका लंड भी धीरे धीरे झटके खाते हुए बड़ा होने लगा। कुछ ही देर में कपाला का लंड विकराल काले भुजंग के रूप में आ चुका था।
चरक ने अपने होठों पे जीभ फेरते हुए कहा " वाह कपाला तेरा हथियार देख कर मेरे मुह में पानी आ गया।"
कपाला " तो फिर खा ले न सोच क्या रहा है।"
चरक ने फिर कपाला के लंड को चूसना शुरू किया तो कपाला की आँखे स्वतः बंद होती चली गयी। अंदर का दृश्य देख कर मेरे लंड की भावनाएं भी जीवित होने लगी। मैं अपना लंड हाथ में लेके धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। कुछ ही देर में मेरे लंड भी अपने असली स्वरुप में आने लगा। तभी मुझे लगा की मेरे पीछे कोई है मैं अपना लंड हाथ में लिए ही पलट गया । मेरे पीछे कपाला की पत्नी रूपवती खड़ी थी मेरी तो जैसे जान ही सुख गयी। उसने एक नजर मेरे खड़े लंड पे डाली और फिर मुझे चुप रहने का इशारा किया। धीरे से वो मेरे पास आई और कुटिया की फूंस में बनी छेद से अंदर देखने लगी। उसके झुक के कुटिया में देखने से उसके नितम्ब और चौड़े हो गए और मेरे ह्रदय में काम तरंगे पैदा करने लगे। मैंने भी मौके का फायदा उठाने का सोचा और उसके पीछे सट के मैं भी छेद से अंदर के दृश्य को देखने लगा।
अंदर कपाला चरक का सर पकड़ का उसका मुह चोदने लगा। अब मेरा लंड अकड़ कर रूपवती के नितम्ब पे गड़ने लगा जो शायद उसको उत्तेजित कर गया। क्योंकि वो तुरंत ही पलटकर मेरे सामने घुटनों पे हो गयी और मेरे लंड को अपने मुह में लेके जोर जोर से चूसने लगी। मेरी कामोत्तेजना भी धीरे धीरे बढ़ने लगी। मैंने आँख लगा के अंदर देखा तो चरक अब घोड़ी बन चूका था और कपाला चरक की गांड मार रहा था। मैंने भी रूपवती को घोड़ी बनाया और उसकी गीली चूत में अपना लंड गुस दिया। अब मैं भी कपाला के धक्कों के ताल से ताल मिला कर उसकी बीवी की चूत की चुदाई करने लगा। रूपवती भी मजे से हलकी हलकी सिसकियाँ लेने लगी। थोड़े ही देर में हम चारों अपने चरम पे पहुँच एक साथ झड़ गए।

रूपवती वहीं जमीन पे चित्त पड़ गई। मैं कुटिया के अंदर की बातें सुनने लगा। कपाला और चरक आपस में बात कर रहा थे।
चरक " अब आगे क्या करना है "
कपाला " कुछ नहीं अभी विशाला की सेना ने अभी चलना शुरू नहीं किया है अभी हम यहीं क़बीले में रहके उनका इंतज़ार करेंगे।"
चरक " और अक्षय का क्या करना है ?"
कपाला " अभी वो हमारे काम का है विशाला के खिलाफ युद्ध में हम उसकी युद्ध नीति का उपयोग कर सकते हैं । जब विशाला और विशाखा को हम हरा देंगे तो उसके बाद उसे भी रास्ते से हटा देंगे। "
चरक " ठीक है तो फिर यहाँ से निकलते हैं।"
उन दोनों के वहाँ से चले जाने के बाद मैंने रूपवती को भी उठाया और चलने का इशारा किया। हम दोनों भी दबे पांव वहां से निकलके क़बीले वापस आ गए।

अपनी कुटिया में आके मैं अब आगे की अपनी रणनीति पे विचार करने लगा। कपाला सिर्फ मुझे अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहा था युद्ध के बाद वो मुझे अपने रास्ते से हटा देगा । मुझे कपाला की सेना की भी जरुरत थी अतः अभी मैं उसके खिलाफ कुछ कर भी नहीं सकता था। मुझे अब अपनी जान बचाते हुए अपना बदला पूरा करना था जिसमें मुझे एक ही व्यक्ति मदद कर सकता था वो थी रूपवती। रूपवती की चूत का स्वाद तो मैं चख चूका था अब मुझे उसकी मदद से कपाला की सेना पर काबू करना था । अतः मैंने अपना सारा ध्यान रूपवती पर केंद्रित करने की सोची।

अगले दिन सुबह मेरी नजरें रूपवती को ही तलाश रहीं थी। कुछ देर बाद मुझे वो दिखाई दी मैं उसकी तरफ बढ़ा तो एक बार के लिए वो डर गयी। उसने इधर उधर देखा और इशारे से मुझे एक कुटिया के पीछे आने को कहा। मैं वहां पंहुचा तो वो बोल पड़ी " देखो कल जो हुआ वो गलत था अब आगे ऐसी कोई उम्मीद न लगा के रखना ।"
मुझे अपनी योजना पे पानी फिरता नजऱ आ रहा था फिर भी मैंने एक बार कोशिश करने की सोची मैंने कहा " देखिये मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है मैं तो बस कल के लिए आपको धन्यवाद कहने आया था ।"
वो बोली " ठीक है अब यहाँ से जल्दी जाओ।"
मैंने जाते जाते फिर दांव फेका " अच्छा फिर कभी जरुरत पड़े तो याद करियेगा।"
ये कहकर मैं वापस अपनी कुटिया पे आ गया।

दुपहर के समय कपाला और चरक मुझसे मिलने आते हैं। मैं उनसे पूछता हूं " बताइये सरदार कपाला मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ।"
कपाला " महाराज मेरे गुप्तचरों ने सुचना दी है कि विशाला युद्ध की तैयारी शुरू कर चुकी है और उसका साथ त्रिशाला की माँ रानी रजनी भी दे रहीं है। उम्मीद है कि 15 दिनों में वो हमारे क़बीले पे आक्रमण करें।"
मैं इसी का इंतज़ार कर रहा था कि विशाला कपाला के क़बीले पे आक्रमण करे। मैंने गंभीर मुद्रा में कपाला से कहा " सरदार ये तो चिंता की बात है । आपकी सेना की क्या तैयारी है ?"
कपाला " महाराज हमारी आधी से ज्यादा सेना आपके हमले में ख़त्म हो चुकी है और जो बची हुई सेना है वो विशाला की सेना का आधा भी नहीं है।"
मैंने चिंतित मुद्रा में कपाला से कहा " सरदार अब आप का क्या विचार है क्या करना चाहिए?"
कपाला " महाराज इसीलिए मैं आपके पास आया हु युद्ध कौशल में आपका कोई सानी नहीं है आप ही बताये की हम विशाला की सेना का सामना कैसे करें। "
मैंने अब अपने दिमाग पे जोर डालना शुरू किया फिर कुछ सोच कर कपाला से पूछा " सरदार कपाला विशाला किस रास्ते आएगी?"
कपाला " महाराज चूँकि विशाला अपनी पूरी सेना के साथ यहाँ आ रही है तो कच्चे रास्ते से न आके पक्के रास्ते से आएगी।"
मैंने कपाला से कहा " क्या उस रास्ते पे पेड़ों और झाड़ियों पड़ती हैं जिसमे छुपा जा सके?"
कपाला " हाँ महाराज रास्ते के दोनों तरफ छांव के लिए पेड़ और कहीं कही ऊँची झाड़ियां भी हैं।"
मैंने कपाला से कहा " फिर हम उनसे गुर्रिला युद्ध करेंगे।"
कपाला चौंकते हुए " ये गुर्रिला युद्ध क्या होता है महाराज ?"
मैंने उसे समझाते हुए कहा " देखिये सरदार हम विशाला की सेना से आमने सामने का युद्ध करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि उसकी सेना हमारी सेना से बड़ी है। अतः हम अब छुपकर उसकी टुकड़ी पे ऐसे हमला करेंगे की विशाला की सेना को ज्यादा हानि हो और हमे कम से कम ।"
कपाला " महाराज जरा विस्तार से समझाएं"
मैं " देखिये सरदार जब भी कोई सेना चलती है तो ऐसा नहीं होता की उसके हर हिस्से पे सामान चौकसी हो। जैसे की हो सकता है सारे सैनिक आगे और पीछे से हमले के लिए चौकस हो पर बीच में इतनी चौकसी नहीं हो। हमारे सैनिक पेड़ो पे झाड़ियों के पीछे छुपे हुए होंगें और जब सेना का ये हिस्सा उनके पास आएगा तो उसपे हमला कर देंगे और अधिक से अधिक नुक्सान पहुचायेंगे और बाकी सेना के वहाँ आने से पहले वहां से गायब हो जाएंगे। ऐसा हम तब तक करेंगे जब तक विशाला की सेना हमारे बराबर न जाये ।"
कपाला " बहुत ही उत्तम नीति है महाराज इसके लिए क्या करना होगा ?"
मैं " सरदार आप अपने सैनिको की दो से तीन छोटी छोटी टुकड़ियां बना दीजिये और उनसे कहिये की वे छुपकर विशाला की सेना पे वहां हमला करे जहाँ सबसे ज्यादा नुकसान हो।"
कपाला " बहुत ही उचित महाराज मैं आज ही ऐसा करता हु और खुद भी एक टुकड़ी का स्वयं नेतृत्व करूँगा।"
मैं मन ही मन खुश होते हुये की कपाला अब क़बीले से बाहर रहेगा और मुझे रूपवती को पटाने का और समय मिलेगा " अति उत्तम विचार महाराज इससे आपके सैनिकों का उत्साह बढ़ेगा।"
कपाला " ठीक है महाराज अब हम चलते हैं प्रणाम।"
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Re: अनोखा सफर

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रात को काफी देर तक मैं बिस्तर पे उतल्था पुतल्था रहा पर नींद आँखों से कोसो दूर थी | मैंने उठ कर कुटिया की सारी मशालें बुझा दी जिससे कुटिया में अँधेरा हो गया बस बाहर जल रही मशालो की रोशिनी से कुटिया में हल्का हल्का दिखाई पड रहा था | मैं अब अँधेरे में सोने की कोशिश करने लगा कुछ देर बाद मेरी आँखे नींद से बोझिल होने लगी तभी मुझे लगा कि जैसे किसी ने कुटिया में प्रवेश किया हो | मैं सतर्क हो गया तभी एक साया मेरे पास आया और मेरे बिस्तर पे पैर के पास बैठ गया | मैंने भी कोई हरकत नहीं की और उसकी अगली हरकत का इंतज़ार करने लगा | मुझे लगा की कुछ देर तक उस साए ने ये अंदाजा लगाने की कोशिश की की मैं जाग रहा हूँ या सो रहा हु पर शायद अँधेरे के कारण उसे कुछ पता नहीं चल पाया | फिर वो आगे बढ़ा और मेरी कमर पे बंधा वस्त्र खोलने लगा |अब मुझे यकीन हो गया की ये रूपवती हैं जो शयद अपनी चूत की खुजली शांत करने यहाँ पे आई हैं | मैंने अभी भी उसे ये एहसास नहीं होने दिया की मैं जाग रहा हु और उसे आगे बढ़ने दिया | वो अब मेरे लंड को अपने हाँथ में लेके सहलाने लगी | मेरा लंड भी उसके सहलाने के कारण खड़ा होने लगा | फिर रूपवती ने मेरा लंड अपने मुह में ले लिया और चूसने लगी | उसने एक झटके में पूरा सुपाड़ा मुह में ले लिया और चुप्पे लगाने लगी | उसकी इस हरकत से मेरी सिसकी निकल गयी और वो हडबडा के मुझसे दूर होने लगी | मैंने उसका हाँथ पकड़ लिया और उससे बोला " रूपवती जी डरिये मत आगे बढिए, मैंने तो पहले ही कहा था की ज़रूरत पड़े तो याद करियेगा |"
वो अब भी शायद थोड़ा झिझक रही थी तो मैने उसे अपने ऊपर खींच लिया और उसके अधरों को अपने मुह में लेके चूसने लगा | उसके बड़े बड़े वक्ष मेरे सीने से रगड़ने लगे और मेरे लंड में उफान पैदा करने लगे | मैं उसकी एक चुचक को अपनी उंगलियों से मसलने लगा | रूपवती मेरी इस बात से पूरी तरह मचल गयी और मेरे होंठो पे टूट पड़ी | अब हम दोनों काम खुमारी में एकदम खो गए और एक दुसरे के अंगों को चूमने काटने लगे | कुछ ही देर में मुझे लगा की अब बर्दाश्त नहीं होगा तो मैं अपना लंड उसकी चूत में घुसाने की कोशिश करने लगा पर मेरा लंड बार बार उसकी गीली चूत से फिसल रहा था | रूपवती ने अपने हाथ से पकडके मेरा लंड अपनी चूत पे रखा और उसपे बैठती चली गयी | मेरा लंड उसकी गीली चूत में फिसलता चला गया और कुछ ही देर में मेरा लंड उसकी चूत की गहरायिओं में गोते लगाने लगा| रूपवती अपनी गांड उठा के मेरे लंड पे उठक बैठक करने लगी और मैं भी उसकी बड़ी बड़ी गांड को अपने हाथो में पकड़ के मसलने लगा | कुछ ही देर में पूरी कुटिया में हमारी सिस्कारिया और लंड चूत की फच फच गूंजने लगी |
थोड़ी देर तक ऐसे ही चुदाई होती रही फिर मैंने उसे घोड़ी बना दिया | उसके पीछे आके मैनेअपना लंड उसकी चूत पे लगाया और एक ही झटके में घुसा दिया | रूपवती केमुह से आह निकल गयी और मैं अपनी पूरी ताकत लगा के लंड उसकी चूत में अन्दर बाहर करने लगा | उसकी थिरकती हुयी गांड मेरे ह्रदय और अंडकोषो में भी थिरकन पैदा करने लगी | कुछ ही देर में मेरे वीर्य ने रूपवती की चूत को भर दिया|
हम दोनों निढाल होके बिस्तर पे लेट गए | कुछ देर बाद रूपवती उठके वहां से जाने लगी | मैंने उससे कहा " रूपवती जी यहीं रुक जाइये "
उसने कहा " मैं रूपवती नहीं हूँ |"
अब मैं चौंक के बिस्तर पे उठ बैठा और उसका चेहरा पहचानने की कोशिश करने लगा पर अँधेरे में कुछ दिखाई नहीं पड़ा | मैंने उससे पुछा " तब आप कौन हैं?"
उसने कहा " महराज आप मुझे बस अपना शुभचिंतक समझिये ,सही समय आने पर आपको पता चल जाएगा की मैं कौन हूँ | बस आप सतर्क रहिये और कपाला और चरक पर विश्वास मत करियेगा | अब मैं चलती हूँ |"
ये कहकर वो कुटिया से चली गयी | मैं बिस्तर पे लेटा ये सोचता रहा की आखिर वो कौन थी और पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी |

कुछ दिन तक कपाला और चरक काबिले में नहीं दिखाई दिए शयद वो विशाला की सेना पर गुर्रिल्ला युद्ध की तैयारी में व्यस्त थे | मेरे जख्म भी अब ठीक हो चले थे मैं अब अपने सारे काम खुद ही कर पा रहा था |मेरे पास भी कुछ करने को था नहीं था तो मैं भी आस पास के जंगलो में घुमने निकल जाया करता था | ऐसे ही एक दिन मैं जंगलों में घुमने निकला था चलते चलते मैं काबिले से काफी दूर निकल आया था मैंने एक चट्टान बे बैठ कर कुछ देर सुस्ताने की सोची | मैं चट्टान पे बैठ कर अपनी हालत के बारे में सोचने लगा | मुझे यहाँ आये हुए पता नहीं कितने दिन हो गए थे मैं एक सैनिक से कबीलेवाला बन चुका था | मेरी दुनिया में पता नहीं क्या हो रहा था पर यहाँ पर बहुत कुछ हो रहा था | पहला की विशाला विशाखा और त्रिशाला की माँ रजनी मेरे पीछे पड़ी हुई थी और इधर कपाला और चरक भी अपना काम निकलने का इंतज़ार कर रहे थे उसके बाद वो मुझे ठिकाने लगा देते | मेरे लिए आगे कुआँ पीछे खायी वाली स्थिति थी और मुझे इस में से निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा था | तभी मुझे पीछे सुखी टहनियां टूटने की आवाज़ सुने दी मैं चौंक के पीछे घूमा तो देखा कपाला की बेटी रूपम खड़ी थी | मेरे हाथ में कटार थी और चेहरे पे आक्रामक भाव थे जिसे देखके रूपम सहम सी गयी|
मैंने खुद को संयमित करते हुए पुछा " तुम यहाँ क्या कर रही हो ?"
वो भी थोड़ा सामान्य होते हुए बोली "क्षमा करे महाराज मेरा इरादा आपको चौंकाने का नहीं था बस मैं आपसे कुछ बताना चाह्ती थी तो आपके पीछे पीछे यहाँ चली आई |"
मैंने उससे कड़े स्वर में पुछा " ऐसा क्या था जो तुम मुझे कबीले में नहीं बता सकती थी ?"
रूपम " महाराज बात ही कुछ ऐसी थी जो मैं कबीले में आपसे नहीं कर सकती थी |"
मैंने उससे पुछा " ऐसी कौनसी बात थी ?"
रूपम " महराज मैं आपके लिए किसी का सन्देश लेके आई हूँ "
मैंने अब उससे कौतुहल से पुछा " कौन सा सन्देश और कैसा सन्देश ?"
रूपम " महराज आपका कोई शुभचिंतक आपसे मिलना चाहता है "
मैं अब बिलकुल भी नहीं समझ पा रहा था मैंने फिर भी पुछा " कौन शुभचिन्तक ?"
रूपम " महराज ये आपको आज रात पता चलेगा आज रात यहीं आप अपने शुभचिन्तक का इंतज़ार करियेगा | अब मैं चलती हु प्रणाम |"
ये कह के रूपम वहां से चली गयी | मैं अब ये सोचने लगा की अब मेरा कौन शुभचिन्तक हो गया | बहुत देर तक दिमाग पे जोर देने के बाद जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने इंतज़ार करने का सोचा | थोड़ी ही देर में शाम ढलने वाली थी और रात होने वाली थी मैं वही बैठ कर अपने शुभचिंतक का इंतज़ार करने लगा |

धीरे धीरे रात भी घिर आयी पूरे जंगल में घुप अँधेरा और शांति छाई हुई थी । बस सहारे के लिए चाँद की मद्धम रोशिनी और कभी कभार आती झींगुर की आवाज ही थी। मेरे दिल में इस बात की जिज्ञासा हिलोरे मार रही थी की आखिर ये मेरा शुभचिंतक कौन हो सकता है। इसी उधेड़बुन में समय बीत रहा था |
कुछ देर बाद थोड़ी दूर से एक रोशिनी मेरे तरफ बढ़ती दिखाई दी। मैं भी अपनी कटार निकाल सतर्क हो गया और उसके पास आने का इंतज़ार करने लगा। धीरे धीरे वो रोशिनी मशाल में तब्दील हो गयी जिसकी ओट में कोई महिला मेरे पास आ रही थी। अब मैं और उत्सुक्ता से उसका इंतज़ार करने लगा। जब वो मेरे पास पहूँची तो मैं ये देख के स्तब्ध रह गया की ये देवबाला थी। उसे देख के पुरानी सारी यादें ताज़ा हो गयी की कैसे उसने देवसेना का वध किया था और कैसे मुझे त्रिशाला से बचाया था। मेरे ह्रदय में भावनाओं का एक द्वन्द उठ खड़ा हुआ एक तरफ मैं उसपे गुस्सा था की उसने देवसेना का वध किया दूसरी तरफ मैं कृतज्ञ था कि उसने मेरी जान बचायी थी । वो मेरे चेहरे पे उमड़ते भावनायों को समझ गयी और बोली " महाराज मुझे पता है कि आपके ह्रदय में मेरे लिए बहुत से सवाल होंगे इसीलिए मैं आपसे मिलने चाहती थी ।"
ये कह कर वो एक चट्टान से टेक लगा के बैठ गयी उसके पेट में अब उभार आना शुरू हो गया था । वो बोली " महाराज आप ये जानना चाहते होंगे की मैंने देवसेना को क्यु मारा ?"
मैंने बिना कुछ कहे हाँ में सर हिला दिया ।
देवबाला " महाराज आपकी कृपा से मैं और देवसेना एक साथ ही माँ बन गयी थी पर पुजारन देवसेना को इससे डर लग गया । उन्हें लगा की हो सकता है इससे उनके देवी बनने में मैं बाधा बन जाऊं इसलिए वो चुपके से मुझे रास्ते से हटवाना चाहती थी । ये बात मुझे पता चल गयी तो मेरे पास उनको अपने रास्ते से हटाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था "
मैंने उससे कहा " ये बात कैसे साबित हो सकती है जबकि पुजारन देवसेना अपना पक्ष रखने को जीवित ही नहीं हैं । पर तुमने मुझे क्यों बचाया ?"
देवबाला " महाराज आप माने या न माने पर यही सच है । खैर जब मुझे विशाला और त्रिशाला ने अपनी योजना बतायी की वो आपको ख़त्म करके खुद कबीलों का सरदार बनना चाहती हैं तो मैं भी उनकी इस अयोजन में शामिल हो गयी क्योंकि मैं आपको उनसे बचाना चाहती थी।"
मैंने उससे पूछा " आखिर क्यों तुमने मुझे क्यों बचाया ?"
देवबाला " महाराज आपने मुझे वो सुख दिया है जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी । आपने मुझे मातृत्व सुख प्रदान किया है जिसके लिए मैं आपकी जीवन भर आभारी रहूंगी ।"
मैंने उससे पूछा " अब तुम मुझसे क्या चाहती हो ?"
देवबाला " आपके जीवन की सुरक्षा ।"
मैंने चौंकते हुए पूछा " मतलब ?"
देवबाला " महाराज मेरी जानकारी के अनुसार कपाला ने विशाला की सेना पर हमले करना शुरू कर दिया है जिसमे उसे काफी जान और माल का नुक्सान हुआ है। विशाला ने कल कपाला को संधि वार्ता के लिए बुलाया है । मुझे अंदेशा है कि कल की संधि वार्ता में कपाला और विशाला में संधि हो जायेगी और उसके बाद आपकी जान खतरे में होगी ।"
मैंने देवबाला से पूछा " तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो की संधि वार्ता हो जायेगी ?"
देवबाला " महाराज आप कपाला की स्थिति तो देख ही रहे हैं कि वो विशाला की सेना से सीधे युद्ध की स्थिति ने नहीं है और विशाला की सेना भी कपाला के हमलों से पहले की तुलना में काफी कम हो गयी है। अब विशाला अपना और नुक्सान नहीं नहीं चाहेगी इसलिए वो कपाला को ये प्रस्ताव देगी की कपाला उसे कबीलो का सरदार मान ले जिसके बदले वो कपाला को अपनी संयुक्त सेना का सेनापति बन देगी। मुझे लगता है कि कपाला को ये प्रस्ताव मंजूर होगा। उसके बाद मुझे लगता है कि विशाला फिर आपको जीवित नहीं छोड़ेगी।"
मैंने देवबाला से पूछा " तुमको ये सब बातें कैसे पता हैं ?"
देवबाला ने हँसते हुए कहा " क्योंकि विशाला को ऐसा करने का सुझाव मैंने ही दिया है ।"
मेरे चौंकते हुए पूछा " तुमने आखिर क्यों ?"
देवबाला " महाराज मुझे उनका पूरी योजना जाननी थी ताकि मैं आपको बचा सकू ।"
मैंने पूछा " अब मुझे क्या करना है "
देवबाला " महाराज आप क्या करना चाहते हैं ?"
मैं " मुझे अब सिर्फ बदला लेना है विशाखा विशाला और कपाला से ।"
देवबाला " कपाला से भी ?"
मैं " हाँ क्योंकि उसने मेरी सुरक्षा का वचन दिया था पर अब वो मुझे धोखा दे रहा है ।"
देवबाला " महाराज आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा "
मैं " पर कैसे विशाला और कपाला की संयुक्त सेना को मैं कैसे हरा पाउँगा ।"
देवबाला " महाराज कुछ अन्य कबीलों के सरदार मेरे संपर्क में हैं और वो कपाला और विशाला को हराने में हमारी मदद करेंगे । पर एक शर्त है।"
मैंने पूछा " क्या शर्त ?"
देवबाला " आपको अपना कबीलों के सरदार का पद छोड़ना होगा ।"
मैं " मुझे पद से कोई मतलब नहीं है बस मेरा बदला पूरा होना चाहिए।"
देवबाला " फिर ठीक है महाराज कल मैं आपको संपर्क करुँगी रूपम आपके पास आएगी आप उसके साथ क़बीले से निकल आईएगा। मैं बाकी कबीलों की सेना के साथ आपका इंतज़ार करुँगी। जब कपाला और विशाला की सेना लौटेगी तो हम उनका इंतेज़ार करेंगे।"
मैंने देवबाला से पूछा " रूपम पे तुम्हे विश्वास है वो कपाला की बेटी है "
देवबाला हँसते हुए " महाराज आप ये बात कह रहे हैं आपतो उसे अच्छे से जानते हैं "
मैंने चौंकते हुए पूछा " वो कैसे "
देवबाला " उस रात जिसे आप रूपवती समझ रहे थे वो रूपम ही थी। पर आपको घबराने की कोई जरुरत नहीं है वो भी कपाला से बहुत नफरत करती है इसलिए उसपर हम विश्वास कर सकते हैं।ठीक है अब मैं चलती हूँ आप कल रूपम का इंतज़ार करियेगा। प्रणाम महाराज"
ये कहकर देवबाला वहां से चली गयी और मैं भी क़बीले को लौट आया।
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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

अगला दिन मेरे लिए काटना मुश्किल हो रहा था मुझे बस इंतज़ार था कि कब रूपम चलने का संदेश लेके आये। काफी इंतज़ार के बाद आखिर वो घडी आ ही गयी रूपम ने मुझे निकलने का इशारा किया। हम दोनों क़बीले में सब की दृष्टि से बचते हुए निकल गए।
हम तेजी से कदम बढ़ा रहे थे और जल्दी से जल्दी क़बीले से दूर निकलना चाहते थे । काफी देर तक हम यु ही चुप चाप चलते रहे जब हमें लगा की हम क़बीले से काफी दूर निकल आये हैं तो हमने रुक के सुस्ताने की सोची। सूर्य सर के ऊपर आ चूका था हम एक पेड़ की छांव में आराम करने लगे। मुझसे कुछ ही दूर पर रूपम भी बैठ गयी। मैंने उससे पूछा " अभी और कितनी दूर चलना होगा ?"
रुपम " महाराज अभी 3 कोस और चलना है दिन ढलने तक हम पहुँच जाएंगे ।"
मैंने फिर पूछा " कौन कौन होगा वहां पे ?"
रूपम " महाराज मुझे नहीं पता बस ये जानती हूं कि देवी देवसेना वहां पे होंगी ।"
मैंने आगे बात बढ़ाते हुए उससे पूछा " तुम अपने पिता कपाला के खिलाफ जाके देवसेना की मदद क्यों कर रही हो ?"
रूपम " महाराज मैं अपने पिता से अत्यंत घृणा करती हूँ और उन्हें कभी सफल होता नहीं देख सकती।"
मैं " ऐसा क्यों आखिर वो तुम्हारे पिता हैं ?"
रूपम " महाराज मैं एक लड़के से बहुत प्रेम करती थी पर मेरे पिता को वो पसंद नहीं था क्योंकि वो दूसरे क़बीले का था । एक दिन जब हम सबसे छुप के एक दूसरे से मिल रहे थे तो मेरे पिता वहां पहुँच गए। उन्होंने मेरे सामने ही उसकी हत्या कर दी और मैं कुछ नहीं कर सकी । अब मेरी जिंदगी का एक ही उद्देश्य है कि मेरे पिता का कोई काम सफल न हो।"
अपनी कहानी सुनाते सुनाते उसकी आँखे गीली ही गयी। मैंने भी अब उसके जख्मों को कुरेदना उचित नहीं समझा । मैं अपनी आँखे बंद करके आराम करने लगा।
थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर हम आगे बढे । शाम ढलते ढलते हम अपने गंतव्य स्थान तक पहुच गए। वहां पे देवसेना हमारा पहले से ही इंतज़ार कर रही थी । उसके साथ करीब 200 लोगो की सेना थी। इसी सेना के साथ हमें विशाला और कपाला की संयुक्त सेना से लड़ना था ।
मेरी पहुचते ही देवसेना ने मेरा परिचय उसके साथ आये अन्य क़बीले के सरदारों से करवाया फिर हम अपनी आगे की रणनीति के बारे में विचार करने लगे।
देवसेना " महाराज मेरी जानकारी के अनुसार विशाला और कपाला में संधि हो चुकी है और वो अपनी सेना के साथ इसी तरफ आ रहे हैं।"
मैं " कितने सैनिक होंगे उनके साथ ?"
देवसेना " करीब 400 "
मैं " कितना समय लगेगा उन्हें यहाँ पहुचने में ?"
देवसेना " कल दोपहर तक वो यहाँ पहुच जाएंगे "
मैं अब अपने दिमाग पर जोर डालने लगा और किस प्रकार विशाला और कपाला की सेना से मुकाबला किया जाए।
कुछ देर बाद देवसेना ने मुझसे पूछा " क्या सोच रहे हैं महाराज ।"
मैं " यही की हमारा संख्या बल कम है और विशाला से आमने सामने के युद्ध में हम इस संख्या के साथ नहीं जीत सकते।"
देवसेना " महाराज आपने अपनी युद्ध नीति से पहले भी कई युद्ध कम संख्या बल पे जीते हैं ये भी हम जीत लेंगे।"
मैं " नहीं देवसेना ये इतना आसान नहीं होगा क्योंकि इस बार हम कही छुपके नहीं बल्कि आमने सामने का युद्ध लड़ रहे हैं और विशाला और कपाला मेरी कुछ युद्ध नीतियों से पहले से परिचित हैं इसलिए उन्होंने इसकी तैयारी पहले से की होगी ।"
देवसेना " फिर महाराज हमे क्या करना होगा ?"
मैं " क्या तुम कुछ और क़बीलों को अपने साथ ले सकती हो जिससे हमारी संख्या कुछ बढ़ जाए ।"
देवसेना " महाराज ऐसा ही सकता है पर समय बहुत कम है संभवतः कल दुपहर को विशाला यहाँ पे पहुचे ऐसे समय में मुझे आपको अकेले छोड़ के नहीं जाना चाहिए ।"
मैं " तुम्हे जाना ही होगा क्योंकि उसके बगैर हम विशाला की सेना से नहीं जीत सकते । किसी भी तरह से तुम्हे सैनिकों का प्रबंध करके कल दुपहर तक यहाँ पहुचना होगा ।"
देवसेना " ठीक है महाराज मैं अपनी पूरी कोशिश करुँगी ।"
मैं " ठीक है फिर जाने से पहले कबीलों के सरदारों को मेरे पास भेजो मेरे पास कुछ योजनाएं हैं जिससे मैं विशाला की सेना का ज्यादा से ज्यादा नुक्सान करने की कोशिश करूँगा ।"
देवसेना " ठीक है महाराज "
मैं देवसेना को जाते हुए देखता हु और ये सोचता हूं क्या ये वापस आएगी या मुझे धोखा देगी । जो भी हो मेरे पास ये आखरी रास्ता था और शायद ये मेरी आखरी युद्ध भी होगा।

उम्मीद के मुताबिक विशाला की सेना दुपहर को हमारे साथ उपस्थित थी । उसके साथ विशाखा और कपाला भी थे । यहाँ मेरी तरफ से अभी तक देवसेना का कोई अता पता नहीं था मेरी सेना भी अब तक घट के आधी रह गयी थी क्योंकि मैंने बाकी सैनिको को कुछ और काम सौंप रखा था। अब दृश्य ये था कि एक तरफ विशाला की 400 सैनिको की सेना उसके सामने मेरी 100 सैनिको की सेना ।
विशाला मेरी सेना देख के काफी उत्साहित हो गयी थी वो ये खेल जल्द से जल्द ख़त्म करना चाहती थी इसलिए उसने बिना अपने सैनिको को आराम दिए ही युद्ध के लिए तैयार होने का आदेश दे दिया । ये शायद मेरे लिए शुभ संकेत था क्योंकि उसके सैनिक काफी देर से चलते हुए यहाँ पहुचे थे जिसके कारण निश्चित रूप से वे थक गए होंगे।
युद्ध से पहले मुझे एक बार मौका देने की औपचारिकता के तौर पर उन्होंने संवाद करने हेतु मुझे बुलाया।
दोनो सेनाओं के बीच में हम दोनों संवाद करने पहुचे। इधर से सिर्फ मैं था और उधर से विशाला विशाखा और कपाला ।
मेरे पहुचते ही विशाखा और कपाला ने झुक के मुझे प्रणाम किया परंतु विशाला वैसे ही खड़ी रही।
मैंने कहा " बताइये आप लोग क्या कहना चाहते हैं ?"
सबसे पहले कपाला बोला " महाराज हम चाहते हैं कि आप अपनी सेना के साथ हमारे सामने आत्मसमर्पण कर दे तथा विशाला को सरदारों का सरदार मान ले इस व्यर्थ के खून खराबे से बचा जा सकता है।"
मैं " कपाला आपने मुझे शरण दी थी और मेरी रक्षा का वचन दिया था केकिन अब आप मुझे धोखा दे कर मुझसे युद्ध करने आये हैं अगर अभी भी आप क्षमा मांग के अपनी सेना के साथ मेरी तरफ आ जाएं तो मैं आपको क्षमा कर दूंगा।"
तब तक विशाला को क्रोध आ चुका था " वो बोली मेरे पिता के हत्यारे तेरे पास इतनी सेना भी नहीं है कि तू हमारा सामना कर सके इसलिये तू कोई शर्त रखने के काबिल भी नहीं है।"
मैंने संयम से बोला " मैंने आत्म रक्षा में वज्राराज को मारा इसलिये मैं किसी का हत्यारा नहीं हूं। मैंने तुम्हे और तुम्हारी माँ को शरण दी और मरने से बचाया इसलिए मैं उसका दोषी हु । अब मैं तुम दोनो की मृत्यु से ही उसका पश्चाताप करूँगा ।"
विशाला " फिर अब बात करने को कुछ भी नहीं है अब युद्ध ही होगा तुम्हारे चींटी जैसी सेना को मैं रौंद दूंगी।"
मैं " चींटी और हाथी की कहानी तो तुमने सुनी ही होगी और शायद तुम लोग जानते भी हो मैं कम सेना के साथ भी तुम लोगों को हरा सकता हूँ ।"
मेरी बात सुनके विशाखा और कपाला के चेहरे का रंग ही उड़ गया। विशाखा ने बात सँभालने की कोशिश की " महाराज जो हुआ सो हुआ अब आप सब भूल के हमारे साथ आ जाइये सब पहले जैसा हो जाएगा ।"
मैं " कुछ पहले जैसा नहीं होगा अब सिर्फ युद्ध ही होगा "
ये कह कर मैं वापस अपनी सेना के पास लौट आया।
अब हमारी सेना एक दुसरे के आमने सामने थी और एक दुसरे से युद्ध करने के लिए पूर्ण रूप से तैयार थी | पर मैंने अभी अपनी सेना को आगे बढ़ने का आदेश नहीं दिया मैं चाहता था की विशाला खुद आगे बढे और मेरे बिछाये जाल में फंस जाए | मेरी उम्मीद के हिसाब से ही विशाला युद्ध समाप्त करने की जल्दी में थी इसलिए उसने अपनी सेना को आगे बढ़ने का आदेश दे दिया अब मैं भी आराम से मछली के जाल में फंसने का इंतज़ार करने लगा |

विशाला की सेना पैदल ही आगे बढ़ रही थी | एक जगह पहुचने के बाद मैंने अपने साथ खड़े सैनिक को इशारा किया तो उसने मशाल जलाई और इशारा किया | उसके इशारा करते ही दस तीरंदाज आगे आये और अपनी तीरों को कमान पे चढ़ा लिया | फिर मेरे इशारे पे मशाल पकडे सैनिक ने उनके तीरों के सिरे पे आग लगा दिया | मैंने फिर इशारा किया तो तीरंदाजो ने अपने तीर छोड़ दिया | वो तीर जाके विशाला के बढ़ते सैनिको के पास पड़े घांस फुंस के ढेरो पे पड़ी जो धीरे धीरे जलने लगे | कुछ ही देर में उन जलते हुए ढेरो ने खूब धुयाँ फेंकना शुरू कर दिया | मेरा पहला दांव कामयाब हो गया गीले घांस फुंस के ढेरो से निकलते धुएं ने जल्दी ही विशाला की पूरी सेना को घेर लिया | अब मैंने सैनिक को दूसरा इशारा करने को कहा | सैनिक ने मशाल से दूसरा इशारा किया | इशारा मिलते ही मेरे करीब ५० सैनिक जो वही पास में ही छुपे हुए थे विशाला के सैनिको पे टूट पड़े | कुछ ही देर में चीख पुकारो की आवाजे गूंजने लगी | मेरे आदेशानुसार मेरे सैनिक थोड़े देर बाद वहां से बाहर निकल कर मेरी सेना में आ मिले | उम्मीद के मुताबिक धुंए के कारण कुछ दिखाई ना पड़ने के कारण विशाला के सैनिक अपने ही साथियों पे टूट पड़े | काफी देर तक उनपे यही ग़लतफहमी हावी रही |

अब मैं अपने दुसरे दांव का इंतज़ार करने लगा | कुछ ही देर में मेरा वो दांव भी सफल हो गया जब मुझे ढोल नगाडो की आवाजे सुनाई दी| तब तक धुवां छट चुका था और सामने का दृश्य काफी ही भयावह था | चारो ओरे लाशें ही लाशें थीं | विशाला के सैनिक तितर बितर हो गए थे जिन्हें वो चिल्ला चिल्ला के इकठ्ठा कर रही थी | कपाला भी बाकी सैनिको को इकठ्ठा करने की कोशिश कर रहा था | रानी विशाखा के पैर में शयद चोट लग गयी थी वो एक जगह बैठ हुयी थी | वो सब इसी में व्यस्त थे की मेरा दूसरा वार हुवा | जंगली भैंसों का एक झुण्ड उनकी एक बगल से उनकी तरफ तेजी से दौड़ता हुआ आ गया जिसके पीछे मेरे सैनिक ढोल नगाड़े बजाते हुए आ रहे थे | नतीजा जैसा मैंने सोचा था उससे भी भयावह था विशाला के सैनिक जो अभी तक पहले हमले से संभले भी नहीं थे की दौड़ते हुए जंगली भैसों के पैरो तले कुचले जाने लगे | रानी विशाखा जो चलने में असमर्थ थी रौंद दी गयी उनकी शिथिल लाश देखके मेरे कलेजे को ठंडक पहुची एक गयी अब बस विशाला और कपाला बचे थे |

मैंने देखा की ये विशाला की सेना पे हमला करने का उत्तम समय था क्युकी वो अभी तितर बितर थे मैंने अपनी सेना को इशारा किया तो वो विशाला की सेना पे टूट पड़े | मैं भी उनके साथ हाथ में तलवार लिए विशाला के सैनिको से भिड गया | जो भी सामने आया उसे काटता हुवा मैं आगे बढ़ रहा था | हमारी सेना ने विशाला की बची खुची सेना में कोहराम मचा दिया था |

कपाला ने जब देखा की उसकी सेना पराजित हो रही है तो मुझपे हमला करने की सोची जिससे मेरी मृत्यु के बाद मेरी सेना अपने आप हार मान ले | वो मेरे सामने एक तलवार लेके कूद पड़ा| मेरे एक एक वार का वो समुचित जवाब दे रहा था | मुझे बहुत अच्छी तलवारबाजी तो आती नहीं थी और कपाला गजब का तलवार चला रहा था | अचानक कपाला का एक वार मेरे वार को छकाते हुए मेरे सीने पे घाव करता हुआ निकल गया | घाव से रक्त रिसने लगा | मुझे लगा की इस तरह तो मैं ज्यादा देर टिक नहीं पाउँगा | मैं जल्दी से कपाला की युद्ध कला में कोई कमी ढूँढने लगा |मैं एक कदम पीछे हुआ तो कपाला तलवार को जोर से मेरा सर काटने के लिए घुमाया मैं झुकके उसके वार के नीचे से निकल के उससके पास पंहुचा और अपनी पूरी तलवार उसके सीने में भोंक दी| एक चिंघाड़ के साथ कपाला अपने घुटनों पे आ गया | मैंने जल्दी से अपनी कटार निकाल कर उसका गला रेत दिया | कपाला का बेजान शारीर जमीन पे ढेर हो गया |

कपाला के मरते ही विशाला के सैनिको में अफरा तफरी मच जाती है | विशाला अपने सैनिको को नियंत्रित करने का प्रयास करने लगती है | मुझे लगता है की विशाला को ख़त्म करने का यही सही मौका है इसलिए मैं तलवार लेके विशाला की तरफ बढ़ता हु साथ ही मैं अपने सैनिको को विशाला के सैनिको को ख़त्म करने का आदेश देता हु |

कुछ ही देर में मैं और विशाला आमने सामने होते हैं | मेरे सैनिक विशाला के सैनिको को चुन चुन के ख़त्म करने लगते हैं |अब युद्ध महज एक औपचारिकता ही थी जिसका अंत विशाला की मृत्यु से होना था | मैं और विशाला एक दुसरे की आँखों में घूर रहे होते हैं |
मैंने विशाला से कहता हु " अभी भी वक़्त है विशाला अपनी हार मान लो तुम्हारे सैनिक मरने से बच जायेंगे |"
विशाला की आँखों में खून उतर चुका था वो मेरी तरफ तलवार लेके लपकती है |

पहला वार उसने ही किया जिसे मैंने अपनी तलवार से रोक दिया | अब हम दोनों में भीषण युद्ध शुरू हो चुका था | विशाला किसी घायल सिहनी की तरह मुझ पे वार पे वार किये जा रहे थी जिसका मैं प्रतिकार किये जा रहा था | अभी तक हम दोनों एक दुसरे पर किसी तरह का घातक वार नहीं कर पाए थे | अचानक मैंने देखा का विशाला जब भी मेरी तरफ जोर से तलवार से प्रहार करने की कोशिश करती है तो अधिक जोर लगाने के कारण उसकी दायीं तरफ खुल जाती है | अब मैं इन्तेजार करने लगा की कब विशाला वैसे प्रहार करे |आखिर वो भी हुआ विशाला ने मेरी तरफ जोर से प्रहार करने की एक और कोशिश की मैंने भी घूम कर उसका वार बचाया और उसकी दाई ओरे जाके उसके बाजू पे एक घातक प्रहार किया |मेरी तलवार उसकी बाजू में अन्दर तक घाव कर गयी फलस्वरूप विशाला कराह के जमीं पे आ गिरी | मैंने उसे उठने का मौका दिया पर शायद घाव गहरा था और वो दर्द के कारण उठ नहीं पा रही थी | मैं अब उसकी जीवन लीला समाप्त करने के लिए आगे बढ़ा | उसके पास पहुच कर मैंने जैसे ही उसका सर धड से अलग करने के लिए तलवार उठाई एक जोर की युद्ध नाद ने मेरा ध्यान भटका दिया | मैंने पीछे घूम के देखा तो चरक कपाला के काबिले के साथ मेरे सैनिको पे टूट पड़ा था और वो अब मेरे सैनिको पे भरी पड रहा था |
मेरा पल भर के लिए विशाला से दृष्टि हटाना मेरे लिए घटक हो गया | विशाला ने तब तक एक टूटा हुआ तीर उठा के मेरे पैर में भोक दिया | वो तीर मेरा पैर चीरता हुवा आर पार हो गया | अब मैं भी जमीं पर गिर पड़ा| एक असहनीय पीड़ा मेरे पैरो से उठ कर मेरे मष्तिष्क तक जा रही थी | उधर विशाला भी अपने बांह की चोट से उबार नहीं पायी थी पर अब वो भी धीरे धीरे अपने साँसे नियंत्रित कर रही थी | उधर चरक अपने सैनिको के साथ मेरी तरफ बढ़ रहा था | मेरे और उसके बीच अब मेरे ज्यादा सैनिक नहीं बचे थे |
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Re: अनोखा सफर

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थोड़ी देर बाद विशाला अपना पूरा दम लगाके अपने पैरो पे खड़ी हुयी | उसने अपना घायल हाथ अपने सीने से लगा रखा था | धीरे धीरे वो मेरी तरफ बढ़ी | मैंने भी अपने पैरों पे खड़ा होने की कोशिश की पर मेरा घायल पैर जवाब दे गया और मैं वापस अपने घुटनों पे आ गया | विशाला ने मेरे पास आके अपनी पूरी शक्ति से मेरे ऊपर तलवार से वार किया जिसे मैंने किसी तरह से अपनी तलवार से रोक दिया | विशाला ने फिर अपनी तलवार घुमा के वार किया इस बार मैं उस वार को पूरी तरह से नहीं रोक पाया और विशाला की तलवार ने मेरे सीने पे घाव करते हुए मेरी तलवार को दूर उछाल फेका | मेरे घाव से अचानक बहुत सारा खून निकलने लगा | अब मैं शास्त्रहीन था विशाला ने फिर दूसरा वार करने के सोची तो मैंने उसके पैर पे जोर से लात मार दी जिसके कारन उसका संतुलन बिगड़ गया | अब मैं पीछे की तरफ खिसकने लगा और इधर उधर कोई शस्त्र ढूढने लगा | तभी मेरी नज़र एक टूटे हुए भाले पे पड़ी मैं तेजी से घुटनों के बल रेंगते हुए उसके पास पंहुचा और जैसे ही मैं उसे अपने हाथो में लेके पलटा तो देखा विशाला ने अपनी तलवार को कटार की तरह लेके मेरी तरफ छलांग लगा दी थी |कुछ देर के लिए मुझे लगा की जैसे की समय मंद गति से आगे बढ़ रहा हो |विशाला का शारीर हवा में था मैं अपनि पीठ के बल लेटा हुवा था | धीरे धीरे उसका शारीर मेरे पास पहुचता है और मेरे हाथ में पकडा हुआ टुटा हुवा भला उसके सीने में घुस जाता है पर वेग के कारण उसका शारीर रुकता नहीं और उसकी तलवार मेरे सीने में घुस जाती है |

मुझे ऐसा लगता है की जैसे किसी ने मेरे सीने से सारी हवा निकल दी हो मेरा मुह रक्त से भर जाता है | मैं किसी तरह विशाला का मृत शारीर अपने ऊपर से हटाता हु और साँस लेने की कोशिश करता हु पर मेरी सांस फूलने लगती है | मेरी आँखों में पानी आ जाता है और धीरे धीरे मेरी आँखें बंद होने लगती हैं | बंद होती आँखों से मैं देखता हु की चरक मेरी तरफ तलवार लेके बढ़ रहा है | मैं अपने बचाव के लिए हथियार खोजने की कोशिश करता हु पर मेरा शारीर तब तक सुन्न पड चुका रहता है | धीरे धीरे चलके चरक मेरे पास आ जाता है और मुझपे वार करने के लिए अपनी तलवार उठाता है | मेरी आँखे एक बार के लिए बंद हो जाती है किसी तरह मैं फिर आँखे खोलता हु तो देखता हु की एक तलवार चरक के सीने के आर पार हो गयी रहती है जो की देवसेना के हाथ में रहती है | अब मेरी आँखे भी मेरा साथ छोड़ देती है और बंद हो जाती हैं |

उपसंहार
डॉक्टर साहब जल्दी चलिए पेशेंट १४६ सीरीअस है |

पेशेंट के रूम में

डॉक्टर " क्या हुआ पेशेंट को ?"

नर्स " साहब पल्स नहीं है |"

डॉक्टर " डीफिब्रिलेटर मशीन लाओ शायद इलेक्ट्रिक शॉक देना पड़ेगा |"

नर्स " जी सर "

थोड़ी देर बाद नर्स " सर मशीन तैयार है "

डॉक्टर " ठीक है वन टू थ्री शॉक कुछ हुआ ??"

नर्स " नहीं सर कुछ नहीं "

डॉक्टर " चलो एक बार और ट्राई करते है वन टू थ्री शॉक कुछ हुआ ?"

नर्स " नो सर नो पल्स "

डॉक्टर " इट्स अ गॉन केस इनकी रेजिमेंट को खबर कर दो "

नर्स " जी सर "
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कही टीवी पर समाचार आ रहा है

" अभी अभी प्राप्त जानकारी के अनुसार अंडमान एंड निकोबार रेजिमेंट के मेजर अक्षय तिवारी का आज सुबह तक़रीबन सात बजे निधन हो गया है | मेजर अक्षय पिछले छे माह से कोमा में थे | इसी क्रम में आपको बता दे की मेजर अक्षय एक ऑपरेशन के दौरान समुद्री तूफ़ान में फंस गए थे जिसमे उनकी नाव पलट गयी थी उसके बाद उनके सर पे काफी गहरी चोट आई थी जिसके बाद मेजर अक्षय कोमा में चले गए थे | भगवान् मेजर अक्षय की आत्मा को शान्ति प्रदान करे |"


समाप्त
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