अनोखा सफर complete

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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

काफी दिन बीत चुके थे हमे युद्ध की तैयारियां करते हुए अभी तक कपाला की तरफ से कोई और आक्रमण नहीं हुआ था। मेरे अलावा सभी को लगता था कि कपाला अब आक्रमण नहीं करेगा। पर न जाने क्यों मेरी छठी इंद्री मुझे हमेशा कहती थी की आक्रमण होगा और जरूर होगा बस शत्रु हमारे ढीला पड़ने की फ़िराक़ में है। खैर विशाला के अनुसार क़ाबिले के बहार छुपे हुए गड्ढो का निर्माण हो गया था जिसे क़बीले के भीतर गुप्त स्थान तक सुरंग से जोड़ दिया गया था जिसका पता सिर्फ मुझे और विशाला को ही था। साथ ही क़बीले के चारों ओर दिवार से लगे गड्ढे खोद के उनमें नुकीले भाले जैसी लकड़ियों से भर दिया गया था और उन्हें घांस फूंस से भी ढक दिया गया था। गुलेल का भी निर्माण पूर्ण हो गया था । मैंने कुछ काबिल सिपाहियों को गुलेल के इस्तेमाल का तरीका भी सीख दिया था। अब बस हमें इंतज़ार था कपाला के हमले का।

आखिरकार वो दिन भी आ गया। एक सुबह मेरी आँख क़बीले में जाफी शोर शराबे से खुली मैंने उठके देखा तो त्रिशाला कुटिया में कहीं नहीं दिखायी दी । मैं चमड़े का वस्त्र कमर पे लपेट बाहर निकला तो देखा की विशाला मेरी तरफ दौड़ती हुयी आ रही थी मेरे पास पहुँच के उसने बताया " महाराज अभी अभी गुप्तचर ने सुचना दी है कि कपाला हमारे क़बीले पे आक्रमण के लिए आ रहा है।
मैंने पूछा " अभी उसकी सेना कहाँ पहुची है और कितने सैनिक होंगे उसकी सेना में? "
विशाला " महाराज उसकी सेना हमारे क़ाबिले से 200 गज की दुरी पे है और उसमें हमसे लगभग दुगने 500 सैनिक होंगे "
मैंने विशाला से कहा कि " उन्हें गुलेल की सीमा में आने दो ।फिर 150 सैनिको की तीन टुकड़ियां बनायो और गुप्त रास्ते से निकलके उनके पीछे पहुँचो फिर उनपर अगल बगल और पीछे से एकसाथ हमला करो जिससे उनकी सेना एक छोटे से केंद्र में सीमित हो जाए और हमे उनपे गुलेल से निशाना लगाने में आसानी हो। जब वो हमारी गुलेल की सीमा में आ जायेंगे तो तुम लोग पीछे हट जाना।बाकी सैनिको में से कुछ को क़बीले के दरवाजों पे लगा दो जिससे कोई अंदर बाहर न जा सके। 50 सैनिको मेरे साथ छोड़ दो जिनके साथ मैं हमला करूँगा। "
विशाला ने मेरी बात समझने के बाद कहा" ठीक है महाराज मुझे आज्ञा दीजिये ।"
मैंने विशाला से कहा " विजयी भवः "
हमारी योजनानुसार विशाला ने अपने सैनिकों की तीनों टुकड़ियों के साथ कपाला की सेना पर हमला कर दिया । तलवार और भालों से लैस विशाला के सैनिको ने शत्रु ऐना में हड़कंप मचा दिया । किनारे और पीछे से हुए हमले के कारण बचने के लिए वो केंद्र में इकठ्ठा होने लगे चूँकि उनके सामने कोई और रास्ते नहीं था इसलिए वो इसी तरह क़बीले की तरफ बढ़ने लगे।
जब वो मेरी गुलेलो की सीमा में पहुचे तो मैंने विशाला को मशाल से पीछे हटने का इशारा किया। जब हमारे सैनिक पीछे हुये तो मैंने गुलेलों पे बंधे बड़े बड़े पत्थरो को कपाला की सेना पर फेंकने का आदेश दिया। बड़े बड़े पत्थर जब उड़कर पूरे वेग के साथ शत्रु सेना पे गिरे तो एक साथ सैंकड़ो सैनिक कुचलते चले गए। धीरे धीरे शत्रु सेना में सैनिक घटने लगे और उनमे भगदड़ मच गयी ।
जो सैनिक पीछे की तरफ भागे उनका काम विशाला और उसकी टुकड़ी ने ख़त्म कर दिया । कपाला ने बाकी बचे सैनिको के साथ आगे बढ़के क़बीले की दीवार पे चढ़ने को कहा। दीवार पे मैंने पहले ही कुछ तीरंदाजों को लगा रखा था । मैंने तीरंदाजों को इशारा किया तो उन्होंने आगे बढ़ते सैनिको पर बाणों की बारिश कर दी। कई सैनिक मारे गए। कपाला की एक आँख भी बाणों की भेंट चढ़ गयी। फिर भी वो बचे खुचे सैनिकों को लेके आगे बढ़ा। कुछ सैनिक जैसे ही जैसे ही दीवार के समीप आये वो घांस से ढके हुए गड्ढों में गिरे जहाँ वो नुकीली लकड़ियों से बींध गए। मैंने देखा की अब शत्रु सेना कुछ 50 60 सैनिको की बची है और वो भी डरे सहमे हुए हैं। तो मैं भी अपने सैनिकों के साथ उनपे टूट पड़ा।
कुछ ही देर में बाकी बचे सैनिक भी या तो काल की गोद में समा गए या भाग गए। कपाला भी चकमा देकर निकल भगा।
हम युद्ध जीत गए थे क़बीले में ख़ुशी का माहौल था। मैं और विशाला भी ख़ुशी में एक दूसरे के गले मिले और विजय की एक दूसरे को बधाई दी।
तभी चरक महाराज हमारे पास आये और बोले " महाराज रानी विशाखा और रानी त्रिशाला कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं।"
मैंने कहा " क्या कह रहे हैं चरक महाराज ?"
चरक ने कहा " हाँ महाराज जब युद्ध शुरू हुआ तो मैं दोनों रानियों को सुरक्षित स्थान पे ले जाने के लिए खोजने लगा पर वो कहीं मिली नहीं।"
फिर हम सब ने मिलके क़बीले में रानियों की खोज की पर वो कहीं नहीं मिली। मैंने सैनिको को आसपास के क़बीलों में भी भेजा पर उनका कोई अता पता ही नहीं था।
दो दिन तक की खोजबीन के बाद भी दोनों रानियों का कोई पता नहीं चल पाया था। किसी अनहोनी की आशंका से मेरा गला बैठा जा रहा था। मैं अपनी कुटिया में बैठा यही सब सोच विचार कर रहा था कि तभी विशाला ने आके बताया कि गुप्तचर कुछ खबर लेके आया है। मैंने विशाला से उसे अंदर लाने को कहा।
अन्दर आने पे मैंने उससे पूछा " बताओ कोई खबरमिली रानी विशाखा और रानी त्रिशाला की ?"
उसने कहा " जी महाराज मुझे खबर मिली है कि रानी विशाखा और रानी त्रिशाला कपाला के कब्जे में हैं ।"
मुझे पहले विश्वास नहीं हुआ मैने कहा " ये कैसे हो सकता है युद्ध के दौरान तो क़बीले के बाहर जाने के सारे रास्ते बंद थे । न कोई अंदर आ सकता था न किसी को बाहर ले जा सकता था। फिर ये कैसे हो सकता है ?"
विशाला ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया " महाराज हो सकता है उन दोनों का अपहरण युद्ध के पहले ही हो गया हो।"
मैंने उसकी बात पे गहराई से सोचते हुए बोला " ये हो सकता है पर इसके लिए भी किसी अंदर के आदमी का इसमें कोई न कोई हाथ जरूर है।"
विशाला " महाराज ऐसा कौन कर सकता है?"
मैंने विशाला से कहा " मुझे ये नहीं पता और अभी हमारी पहली प्राथमिकता दोनों रानियों को कपाला की कैद से छुड़ाने की होनी चाहिए । "
विशाला " महाराज दोनों रानियों को छुड़ाना आसान नहीं होगा क्योंकि कपाला का कबीला चारो तरफ से पहाड़ों से घिरा है और उसपर हमला करने के लिए हमारे पास पर्याप्त सैनिक भी नहीं है।"
मैंने विशाला से पूछा " फिर सेनापति हमे क्या करना चाहिए ?"
विशाला " महाराज हमे कूटनीतिक तौर पे कोई समाधान निकालने की सोचनी चाहिए।"
मैंने विशाला से कहा " सेनापति विशाला कोई भी कूटनीति तभी सफल होती है जब बराबरी पे बात हो अभी उसके पास हमारी रानियां हैं वो हमारी कोई बात क्यों मानेगा।"
विशाला " तो फिर महाराज हमे क्या करना चाहिए ?"
मैंने कहा " सेनापति हमे बराबरी पे आना होगा ।"
विशाला " महाराज आप करना क्या चाहते हैं ?"
मैंने विशाला से कहा " विशाला आप अपने सबसे विश्वस्त सैनिको की एक टुकड़ी तैयार करिये । कल सुबह हम कपाला के क़बीले की तरफ कूच करेंगे। बस क़बीले में किसी को पता न चले हम कहाँ जा रहे हैं। सबको ये बताना की हम आसपास के कबीलों में दोनो रानियों की खोज करने जा रहे हैं।"
विशाला " जो आज्ञा महाराज "
विशाला और गुप्तचर कुटिया से बाहर चले जाते हैं। मैं भी अपनी आगे की रणनीति पे विचार करने लगता हूँ।
हमें आज कपाला के क़बीले की निगरानी करते हुए दो दिन हो गए थे। सेनापति विशाला और करीब 15 सैनिक मेरे साथ मौजूद थे। पिछले दो दिन में हमने कपाला के क़बीले के अंदर की सारी गतिविधियों हमने छुप के देखा पर दोनों रानियों का कोई पता नहीं चला। पता नहीं कपाला ने दोनों को कहाँ छुपा रखा था।
मैंने विशाला को इशारे से अपने पास बुलाया और उसे अपनी आगे की रणनीति के बारे में समझाने लगा " सेनापति विशाला हमें दो दिन ही गये हैं यहाँ पे निगरानी करते हुए पर कपाला ने दोनों रानियों को कहाँ छुपाया है ये पता नहीं चल पाया है। अब हमें अपनी दूसरी रणनीति अपनानी होगी अब हमें कपाला को उसके बिल से बाहर निकलना होगा । "
विशाला " महाराज आप क्या करना चाहते हैं ?"
मैंने कहा " चूँकि कपाला का कबीला चारो तरफ से ऊँची पहाड़ियों से घिरा हुआ है हमें इसका फायदा उठाना चाहिए। 5 आदमियों को भेज के बड़ी बड़ी चट्टानें इकठ्ठा करो और उनको ढलान पे लाके लुढ़का दो। जब क़बीले में अफरा तफरी होनी लगे तो उनके अनाज के गोदाम में 5 आदमियों को भेज के आग लगा दो। और बाकी 5 को भेज के इनका पीने के पानी को दूषित करवा दो। ये सब करने के बाद हम वापस अपने क़बीले लौट जाएंगे। "
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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

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मेरी रणनीति के मुताबिक हमने बड़ी बड़ी चट्टानें ऊँची पहाड़ियों की चोटी से लुढ़का दी। लुढकने से उनका वेग इतना बढ़ गया की जब वो क़बीले पहुची तो न जाने कितनी झोपड़ियों और क़बीले वासियों को कुचलते हुए निकल गयी। उन चट्टानों ने क़बीले में इतना आतंक मचाया की पूरे क़बीले में अफरा तफरी मच गयी। इसी का फायदा उठा कर सैनिकों ने उनके अनाज के भण्डार में आग लगा दी। पूरे क़बीले वासी जब अनाज बचाने के लिए भागे तो सैनिको ने चुपके से पानी को दूषित कर दिया। फिर मेरे आदेशानुसार ये सब करने के बाद वो वापस लौट आये।
लौटते वक़्त मैंने विशाला से कहा " कपाला को ये पता चलना चाहिए ये हमने किया है।"
विशाला " हो जाएगा महाराज "
फिर हम क़बीले की तरफ वापस चल पड़े।

मैं अपनी कुटिया में बैठा ये सोच रहा था कि रानी विशाखा और रानी त्रिशाला को कपाला ने कहाँ छुपा रखा होगा तभी सेनापति विशाला कुटिया में प्रवेश किया।
विशाला " महाराज पुजारन देवसेना की दासी देवबाला और कपाला का एक दूत आपसे मिलने चाहते हैं।"
मैंने उससे कहा " उन्हें अंदर लाओ "
दासी देवबाला और उसके साथ एक दूत प्रवेश करता है । मेरे सामने आकर दोनों मुझे प्रणाम करते हैं ।
देवबाला " महाराज मैं पुजारन देवसेना का एक विशेष सन्देश लेके उपस्थित हूँ "
मैंने कहा " बोलो देवबाला "
देवबाला " महाराज पुजारन देवसेना के संदेश से पहले मेरी विनती है कि आप पहले कपाला के दूत की बात सुन ले।"
कपाला का दूत " महाराज सरदार कपाला ने आपको संघर्ष विराम करने और संधि वार्ता करने के लिए अपने क़बीले बुलाया है। "
मैंने देवबाला से कहा " पुजारन जी क्या सन्देश है ?"
देवबाला " महाराज पुजारन देवसेना चाहती हैं कि आप और कपाला के बीच संधि हो जाए। "
मैं कुछ देर सोचने के बाद कपाला के दूत से कहता हूं " संधि वार्ता पे आने के लिए मेरी दो शर्ते हैं पहली कपाला को मेरी दोनों रानियों को लेके आना होगा । दूसरी संधि वार्ता कपाला के क़बीले पे नहीं होगी। अगर कपाला को मेरी ये दोनों शर्तें स्वीकार्य हैं तभी वार्ता होगी अगर नहीं तो कपाला से कह देना की उसको मैं चैनसे बैठने नहीं दूंगा।"
मेरी बातें सुनके देवबाला बोली " महाराज क्षमा करें पर मैं कुछ कहना चाहती हूँ"
मैंने कहा " बोलो देवबाला क्या कहना चाहती हो ?"
देवबाला " महाराज अगर आप सही समझे तो ये संधि वार्ता देवसेना जी के मंदिर में ही सकती है।"
मुझे भी ये विचार सही लगा किसी अपरिचित जगह पे संधि वार्ता करने से अच्छा देवसेना के मंदिर पर की जाए।
मैंने कपाला के दूत से कहा " कह देना अपने सरदार से अगली पूर्णिमा को वो मेरी रानियों को लेके देवसेना के मंदिर पे पहुँचे अन्यथा अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहे।"
फिर देवबाला और कपाला का दूत कुटिया सर बाहर चले गए।
उनके जाने के बाद विशाला कुटिया में आती है। मैं उससे सारी बाते बता देता हूं। वो मुझसे पूछती है " अब आपका क्या विचार है महाराज ?"
मैंने उसे अपनी पूरी योजना समझाना शुरू की " मैं और चरक देवसेना के मंदिर शान्ति वार्ता के लिए जाएंगे।"
विशाला " महाराज वहां अकेला जाना सही न होगा, वो भी चरक के साथ वो हमसे कुछ छुपा रहे हैं ?"
मैंने कुछ सोचते हुए कहा " तुम ठीक कह रही हो इसलिए तुम भी हमारे साथ चलोगी पर छुप कर किसी को पता न चले इस तरह।"
विशाला " ठीक है महाराज "
मैंने विशाला से कहा " चरक को मेरे पास भेजना जरा "
विशाला " जो आज्ञा महाराज "
विशाला के जाने के कुछ देर बाद चरक मेरे पास आता है ।
चरक "महाराज प्रणाम "
मैं चरक से बोला " चरक जी कपाला ने हमें शान्ति वार्ता पे बुलाया है ।"
चरक " तो आपने क्या सोच है महाराज ?"
मैं " मैं और आप अगली पूर्णिमा को कपाला से शांति वार्ता के लिये देवसेना के मंदिर जाएंगे।"
चरक " महाराज मैं और आप ही और सेनापति विशाला??"
मैं " वो क़बीले में रहकर यहाँ की सुरक्षा का जिम्मा उठाएंगी।"
चरक खुश होते हुए " उत्तम विचार है महाराज "
मैं " तो फिर हमारे वहां जाने की व्यवस्था की जाये।"
चरक " जो आज्ञा महाराज "

आखिर वो दिन आ ही गया जब संधि वार्ता होनी थी। मैं और चरक पहले ही वहां पहुच गए थे। साथ ही विशाला भी आ गयी थी पर वो छुप के मेरी हिफाजत कर रही थी।
खैर हम सब एक कुटिया में इकठ्ठा हुए । वहां पे देवसेना और देवबाला पहले से ही मौजूद थी। कुछ देर बाद भी कपाला ने भी कुटिया में प्रवेश किया। उसकी एक आँख पे काली पट्टी बंधी हुई थी जो उसे देखने में और क्रूर बना रही थी।
चरक ने हमारा परिचय कराते हुए कहा " महाराज ये सरदार कपाला है और सरदार ये कबीलों के सरदार महाराज अक्षय हैं।"
मेरी उम्मीद के विपरीत कपाला ने मुझे झुक के प्रणाम किया और बोला " महाराज की जय हो आपके बारे में बहुत सुना था आज आप से मिलके बहुत ख़ुशी हुई।"
मैंने भी उसका जवाब दिया " सरदार कपाला मैंने भी आपके बारे में बहुत सुना है।"
पुजारन देवसेना ने कहा " आप लोगो का परिचय हो गया हो तो संधिवार्ता शुरू की जाय ?"
मैंने कहा " पुजारन देवसेना मेरी संधि वार्ता की शर्त अभी पूरी नहीं हुई है ।"
सभी कपाला की तरफ देखने लगे तो कपाला ने गंभीर मुद्रा में कहा " पुजारन देवसेना और महाराज अक्षय मैं आपको बताना चाहता हु की रानी विशाखा और रानी त्रिशाला का अपहरण मैंने नहीं किया है आप लोगो को ग़लतफ़हमी हुई है।"
मुझे अब क्रोध आ गया मैंने आवेश में आके कहा " सरदार कपाला बहुत हो गया अब आप सीधे सीधे मेरी रानियों को मुझे लौटा दे नहीं तो परिणाम बहुत भयानक होगा ।"
कपाला ने शांत रहकर धीमे से कहा " महाराज आप ने दो बार मेरे क़बीले पे अकारण ही आक्रमण किया और मासूम क़बीले वालों की हत्या की और आप मुझ पर अपनी रानियों के अपहरण का झूठा आरोप लगा रहे हैं।"
मेरा क्रोध अब सातवे आसमान पे था मैं चिल्लाते हुए कहा " कपाला झूठ तो तुम बोल रहे हो पहले तुमने मेरे क़बीले पे हमला किया था जब मैं कालरात्रि की पूजा के लिए यहाँ पुजारन देवसेना के मंदिर आया हुआ था। फिर तुमने मेरे क़बीले पे हमला किया जब तुम्हारी आँख में तीर लगा था फिर तुमने उसी युद्ध में मेरी रानियों का अपहरण कर लिया ।"
कपाला अभी भी शांत ही था वो बोला " महाराज मैंने पहले आपके क़बीले पे आक्रमण नहीं किया बल्कि पहले आपने सेनापति विशाला को भेज कर मेरे क़बीले पे आक्रमण करवाया।"
अब मेरा सर घूमने लगा मैंने चरक की तरफ देखा तो वो मुझसे बोला " महाराज मुझे पहले ही शक था कि सेनापति विशाला कुछ षड्यंत्र रच रही हैं । जब आप पुजारन देवसेना के यहाँ से कालरात्रि की पूजा कर के लौटे थे तो विशाला ने आपसे बताया कि आप की गैरमौजूदगी में कपाला के सैनिकों ने आक्रमण किया था जबकि मारे गए सैनिक कपाला के क़बीले के नहीं थे। मैं उस समय पूरी तरह से विश्वस्त नहीं था इसलिए मैंने आपको ये बात बताना उचित नहीं समझा पर विशाला ने आपको ये कहकर ये बात बताई की कपाला ने हमला किया था।"
मैं अब कुछ समझ नहीं पा रहा था मैंने पूछा " विशाला ने आखिर ऐसा क्यों किया ?"
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Re: अनोखा सफर

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तभी विशाला कुटिया में दाखिल होती है उसके हाथ में तलवार रहती है। उसे देखते ही मैं उससे पूछ पड़ता हु " सेनापति विशाला क्या चरक सही कह रहे हैं?"
विशाला क्रोधित होते हुये कहती है " हाँ ये सच है कि कपाला के क़बीले पे पहले मैंने हमला किया और फिर अपने क़बीले पे भी झूठा हमला करवाया ताकि कपाला और आपकी लड़ाई हो ।"
मैंने विशाला से पूछा " आखिर क्यों ?"
विशाला " ताकि आप दोनों में से एक उस लड़ाई में मारा जाये और दूसरे को मैं ठिकाने लगा के क़बीले की सरदार बन जाऊं।"
मैंने फिर विशाला से पूछा " तो क्या तुमने ही रानी विशाखा और रानी त्रिशाला का अपहरण किया है ?"
मेरा सवाल सुन कर विशाला जोर जोर से हँसने लगी । तभी रानी विशाखा और रानी त्रिशाला कुटिया में प्रवेश करती हैं। रानी त्रिशाला के हाथ बंधे हुए थे तथा रानी विशाखा के हाथ में भी तालवार थी । ये दृश्य देख कर मेरा सर जोर जोर घूमने लगता है रानी विशाखा ने भी मेरे साथ छल किया।
मैंने रानी विशाखा से पूछा " रानी विशाखा आप भी इस षड्यंत्र में शामिल थीं ?"
विशाखा " षड्यंत्र तो आपने किया पहले छल से राजा वज्राराज का वध किया फिर उस क़बीले के सरदार बन गए जिस क़बीले पे मेरा और मेरी बेटी का अधिकार था । अब आपके मुख से ऐसी बातें शोभा नहीं देती हैं महाराज ।"
अब सारी बातें साफ थीं की विशाला और विशाखा ने मिलकर मेरे साथ छल किया है । मैं अब आगे की प्रतिक्रिया के बारे में सोच रहा था कि पुजारन देवसेना विशाखा को बोलती हैं " रानी विशाला मैं आपको आज्ञा देती हूं कि आप रानी त्रिशाला को छोड़ दें।"
ये बात सुनकर विशाखा और विशाला जोर जोर से हँसने लगती हैं । तभी देवबाला आगे आती है और एक कटार पुजारन देवसेना के गले पे रख देती है। इससे पहले की कोई कुछ कर पाता देवबाला पलक झपकते ही कटार पुजारन देवसेना के गले पे फेर देती है। पुजारन देवसेना के गले से रक्त की फुहार निकलने लगती है और उनका शरीर भूमि पे गिर कर तड़पने लगता है ।
मैं देवबाला की तरफ सवालिया दृष्टि से देखता हूं वो मुझसे कहती है " मुझे भी देवी बनना था महाराज और आपकी दया से मैं भी गर्भवती हो गयी हूँ पर पुजारन देवसेना के रहते मैं देवी नहीं बन सकती थी तो मुझे इन्हें रस्ते से हटाना पड़ा।"
भूमि पर गिरा देवसेना का शरीर अब शांत पड़ चूका था और हर तरफ रक्त फ़ैल गया था। तभी चरक और कपाला एक साथ विशाखा और विशाला पे टूट पड़ते हैं। उनकी आपसी लड़ाई का फायदा उठा के मैं रानी त्रिशाला के पास आता हूं और उनके हाथ खोल देता हूं। मैं रानी त्रिशाला से कहता हूं " रानी आप यहाँ से बाहर निकलें और अपनी जान की रक्षा करें।"
रानी विशाला से जाने का कहकर मैं घूम कर कुटिया में हो रहे युद्ध पे नज़र डालता हु पर तभी मेरी पीठ में पसलियों के बीच कुछ नुकीला घुसता हुआ महसूस होता है। मुझे असहनीय पीड़ा होती है और मेरे मुह के रास्ते खून निकलने लगता है। किसी तरह मैं घूम कर पीछे मुड़ता हूं तो देखता हूं त्रिशाला एक छोटी सी रक्तरंजित कटार लिए खड़ी रहती है। उसकी आँखों में विजय की चमक रहती है । किसी तरह मेरे मुख से निकलता है "क्यों?"
वो कहती है " आश्चर्य न करे महाराज राजा वज्राराज मेरे भी पिता थे और आज मैं उनकी हत्या का बदला लूंगी।"
ये कहकर वो दुबारा वो कटार मेरे पेट में घुसा देती है। मुझे लगता है कि जैसे किसी ने मेरे फेफड़ो में से हवा निकाल दी हो। मेरी आँखे धीरे धीरे बंद होंने लगती हैं। मैं अपनी अधखुली आँखों से अपनी मौत का इंतजार कर रहा होता हूं कि तभी देवबाला अपनी कटार त्रिशाला के गले पे फिरा देती है। त्रिशाला भी पुजारन देवसेना की तरह भूमि पर गिर कर तड़पने लगती है। मेरे भी पैर अब जवाब देने लगते हैं और आँखे बंद होने लगती हैं । बस होश खोने से पहले जो आखिरी शब्द मैं देवबाला के मुँह से सुनता हूं वो रहते हैं " मैंने आपको दिया वचन निभाया आपकी रक्षा की महाराज ।"
मेरी आँख खुलती है तो पूरे शरीर में तीव्र पीड़ा का एहसास होता है । सामने देखता हूं तो चरक और कपाला बैठे होते हैं।
मैं चरक से कुछ पूछने की कोशिश करता हु तो मेरा मुँह लहू से भर जाता है। मेरी स्थिति देख चरक बोल पड़ते हैं " महाराज अभी आराम करिये अभी आपके घाव भरे नहीं हैं।"
मैंने रक्त थूकते हुए पूछा " मैं कहाँ हु ?"
चरक " महाराज आप सरदार कपाला के क़बीले पे हैं।"
मैंने फिर पूछा " क्या हुआ वहाँ पर "
चरक " महाराज पुजारन देवसेना और त्रिशाला मारी गयीं । हमने भी किसी तरह विशाखा और विशाला को परास्त किया पर वो भागने में सफल हो गईं। जब हम वहां से बाहर निकले तो हमने देखा की आप कुटिया के बहार पड़े थे आपके पास देवबाला थी वो आपकी चोटो का उपचार कर रही थीं। उसने हमसे आपको अपने साथ ले जाने को कहा और हम आपको अपने साथ लेके आ गए।"
मैंने पुनः पूछा " और मेरा कबीला "
चरक " महाराज वो कभी आपका था ही नहीं सेनापति विशाला और रानी विशाखा पहले भी क़बीले की आधिकारिक राजा थी और अब भी। "
मैंने कपाला की तरफ देखते हुए कहा " सरदार कपाला मुझे अपने क़बीले में आश्रय देने का धन्यवाद। आप अगर बुरा न माने तो मैं एक बात कहूं।"
कपाला " बिलकुल महाराज "
मैं बोला " सरदार कपाला मुझे लगता है कि विशाला और विशाखा आपके क़बीले पे हमला करने की ताक पे होंगी । आपको अपने क़बीले को किसी सुरक्षित स्थान पे ले जाना चाहिए।"
कपाला " मैं कुछ समझा नहीं महाराज "
मैं " महाराज कपाला आपका कबीला चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है और निचले स्थान पे है इसलिए आक्रमण की स्थिति में आप को नुक्सान होगा जैसा की पिछली बार हुआ था।"
कपाला " महाराज आपकी बात सही है पिछली बार आपके हमले ने मेरी कमर ही ताड दी थी और मैं दुबारा उस तरह के हमले के लिए तैयार नहीं हूं। आप ही बताइए मुझे क्या करना चाहिये।"
मैं " महाराज आप को ऊपर पहाडियो पे चला जाना चाहिए उससे आप ऊंचाई पे पहुच जायेंगे और अपने शत्रु से लड़ने में अधिक सक्षम हो पाएंगे। आप ऊंचाई से अपने शत्रु की गतिविधि पे आसानी से नजर रख सकते है और उसके मुताबिक हमला कर सकते हैं।"
कपाला " आप उचित कह रहे हैं महाराज मैं आज ही क़बीले को ऊपर पहाड़ियों पे ले जाने का प्रबंध करता हूँ।"
चरक " महाराज मुझे लगता है आपको अब आराम करना चाहिए।"
मैं " चरक जी अब मैं आराम विशाला और विशाखा की मृत्यु के बाद ही करूँगा मैं कितने दिन में चलने फिरने में समर्थ हो जाऊंगा ?"
चरक " महाराज आपके घाव बहुत गहरे हैं जरा भी असावधानी आपकी मृत्यु का कारण हो सकती है।"
मैं " मुझे मृत्यु का भय नहीं है चरक जी अब भय सिर्फ विश्वासघात से लगता है और मैं तब तक चैन से नहीं सो पाउँगा जब तक मैं विशाला और विशाखा को मृत्यु शैय्या पे न लिटा दू।"
चरक " ठीक है महाराज जैसी आपकी इच्छा पर अभी आप आराम करिये हम चलते हैं।"

मेरे कहे अनुसार सरदार कपाला ने अपना कबीला पहाड़ियों पे स्थानांतरित कर दिया था।धीरे धीरे मेरे जख्म भरने लगे थे और मैं अब अपने दैनिक काम बिना किसी सहारे के कर पा रहा था। पिछले कुछ दिनों की घटनाओं ने मुझे अंदर से हिला दिया था अब मैं किसी पे विश्वास करने की स्थिति में नहीं था न ही कपाला पर और न ही चरक पर। मैं बस अपना बदला लेना चाहता था पर वो बिना कपाला की सेना के कभी पूरा नहीं हो सकता था। मैं अपनी आगे की योजना और रणनीति पे रोज घंटो मंथन करने लगा।
एक दिन कपाला मेरे पास आया उसने मेरा परिचय अपनी पत्नी और पुत्री से करवाया । दोनों देखने में तो बहुत सुंदर नहीं थी पर बदन से काफी भरी हुई थीं। दोनों के वक्ष और नितंब भी काफी सुडौल थे। दोनों को देख कर कई दिन से चूत का प्यासा लंड झटका खा गया।
कपाला ने परिचय करवाते हुए कहा " महाराज ये मेरी रानी रूपवती और मेरी पुत्री रूपम हैं। "
उन दोनों ने मुझे झुक कर प्रणाम किया । मैंने भी उनका अभिवादन स्वीकार किया।
कुछ देर सभी ने मिलकर बात की और फिर वे सब कुटिया से चले गए।
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Re: अनोखा सफर

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कुछ दिन इसी प्रकार बीतते रहे मैं अपने इर्द गिर्द होने वाली किसी भी गतिविधि के प्रति सजग रहते हुए कपाला और चरक पे नज़र रखने लगा। एक दिन मैंने कपाला को छुपते छुपाते कहीं जाते देखा। मुझे उसका इस प्रकार छुपते हुए जाना थोड़ा संदिग्ध लगा इसलिए मैं भी छुप के उसका पीछा करने लगा। कुछ देर बाद कपाला पहाड़ियों से उतर के घने जंगलों में जाने लगा। अब मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि दाल में कुछ काला है। इस रहस्य से पर्दा उठाने का संकल्प लिए मैं भी कपाला के पीछे जंगल में हो लिया। कुछ देर बाद कपाला जंगल में बनी एक कुटिया में चला जाता है। मैं भी छुपते हुए कुटिया के पीछे पहुच जाता हूं। मैंने हलकी सी कुटिया की फूंस में लकड़ी से जगह बनाई जिससे अंदर देखा जा सके।
अंदर मैंने देखा की कपाला के साथ चरक भी मौजूद था। अब मुझे पक्का यकीन हो गया कि ये दोनों छुपकर मेरे खिलाफ कोई योजना बना रहे हैं। मैं भी छेद में कान लगाकर अंदर की बात सुनने लगा।
चरक " क्या हुआ इतनी देर क्यों हो गयी?"
कपाला " अरे कुछ नहीं वो रूपवती को शक हो गया था इसलिए उससे बचते हुए आया हूँ।"
चरक " चलो अब जल्दी मुझे भी बहुत देर हो गयी है।"
कपाला " वाह तुम्हे बहुत जल्दी है"
चरक " हाँ भाई बहुत दिन से भूखा हूँ।"
उसके बाद जी चरक ने किया वो देख कर मैं अपनी आँखों पे यकीन नहीं कर पा रहा था। चरक कपाला के सामने घुटनों पे बैठ गया और कपाला की कमर पे बंधा वस्त्र खोल दिया। चरक ने फिर कपाला के लंड को सहलाना शुरू किया तो उसका लंड भी धीरे धीरे झटके खाते हुए बड़ा होने लगा। कुछ ही देर में कपाला का लंड विकराल काले भुजंग के रूप में आ चुका था।
चरक ने अपने होठों पे जीभ फेरते हुए कहा " वाह कपाला तेरा हथियार देख कर मेरे मुह में पानी आ गया।"
कपाला " तो फिर खा ले न सोच क्या रहा है।"
चरक ने फिर कपाला के लंड को चूसना शुरू किया तो कपाला की आँखे स्वतः बंद होती चली गयी। अंदर का दृश्य देख कर मेरे लंड की भावनाएं भी जीवित होने लगी। मैं अपना लंड हाथ में लेके धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। कुछ ही देर में मेरे लंड भी अपने असली स्वरुप में आने लगा। तभी मुझे लगा की मेरे पीछे कोई है मैं अपना लंड हाथ में लिए ही पलट गया । मेरे पीछे कपाला की पत्नी रूपवती खड़ी थी मेरी तो जैसे जान ही सुख गयी। उसने एक नजर मेरे खड़े लंड पे डाली और फिर मुझे चुप रहने का इशारा किया। धीरे से वो मेरे पास आई और कुटिया की फूंस में बनी छेद से अंदर देखने लगी। उसके झुक के कुटिया में देखने से उसके नितम्ब और चौड़े हो गए और मेरे ह्रदय में काम तरंगे पैदा करने लगे। मैंने भी मौके का फायदा उठाने का सोचा और उसके पीछे सट के मैं भी छेद से अंदर के दृश्य को देखने लगा।
अंदर कपाला चरक का सर पकड़ का उसका मुह चोदने लगा। अब मेरा लंड अकड़ कर रूपवती के नितम्ब पे गड़ने लगा जो शायद उसको उत्तेजित कर गया। क्योंकि वो तुरंत ही पलटकर मेरे सामने घुटनों पे हो गयी और मेरे लंड को अपने मुह में लेके जोर जोर से चूसने लगी। मेरी कामोत्तेजना भी धीरे धीरे बढ़ने लगी। मैंने आँख लगा के अंदर देखा तो चरक अब घोड़ी बन चूका था और कपाला चरक की गांड मार रहा था। मैंने भी रूपवती को घोड़ी बनाया और उसकी गीली चूत में अपना लंड गुस दिया। अब मैं भी कपाला के धक्कों के ताल से ताल मिला कर उसकी बीवी की चूत की चुदाई करने लगा। रूपवती भी मजे से हलकी हलकी सिसकियाँ लेने लगी। थोड़े ही देर में हम चारों अपने चरम पे पहुँच एक साथ झड़ गए।

रूपवती वहीं जमीन पे चित्त पड़ गई। मैं कुटिया के अंदर की बातें सुनने लगा। कपाला और चरक आपस में बात कर रहा थे।
चरक " अब आगे क्या करना है "
कपाला " कुछ नहीं अभी विशाला की सेना ने अभी चलना शुरू नहीं किया है अभी हम यहीं क़बीले में रहके उनका इंतज़ार करेंगे।"
चरक " और अक्षय का क्या करना है ?"
कपाला " अभी वो हमारे काम का है विशाला के खिलाफ युद्ध में हम उसकी युद्ध नीति का उपयोग कर सकते हैं । जब विशाला और विशाखा को हम हरा देंगे तो उसके बाद उसे भी रास्ते से हटा देंगे। "
चरक " ठीक है तो फिर यहाँ से निकलते हैं।"
उन दोनों के वहाँ से चले जाने के बाद मैंने रूपवती को भी उठाया और चलने का इशारा किया। हम दोनों भी दबे पांव वहां से निकलके क़बीले वापस आ गए।

अपनी कुटिया में आके मैं अब आगे की अपनी रणनीति पे विचार करने लगा। कपाला सिर्फ मुझे अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहा था युद्ध के बाद वो मुझे अपने रास्ते से हटा देगा । मुझे कपाला की सेना की भी जरुरत थी अतः अभी मैं उसके खिलाफ कुछ कर भी नहीं सकता था। मुझे अब अपनी जान बचाते हुए अपना बदला पूरा करना था जिसमें मुझे एक ही व्यक्ति मदद कर सकता था वो थी रूपवती। रूपवती की चूत का स्वाद तो मैं चख चूका था अब मुझे उसकी मदद से कपाला की सेना पर काबू करना था । अतः मैंने अपना सारा ध्यान रूपवती पर केंद्रित करने की सोची।

अगले दिन सुबह मेरी नजरें रूपवती को ही तलाश रहीं थी। कुछ देर बाद मुझे वो दिखाई दी मैं उसकी तरफ बढ़ा तो एक बार के लिए वो डर गयी। उसने इधर उधर देखा और इशारे से मुझे एक कुटिया के पीछे आने को कहा। मैं वहां पंहुचा तो वो बोल पड़ी " देखो कल जो हुआ वो गलत था अब आगे ऐसी कोई उम्मीद न लगा के रखना ।"
मुझे अपनी योजना पे पानी फिरता नजऱ आ रहा था फिर भी मैंने एक बार कोशिश करने की सोची मैंने कहा " देखिये मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है मैं तो बस कल के लिए आपको धन्यवाद कहने आया था ।"
वो बोली " ठीक है अब यहाँ से जल्दी जाओ।"
मैंने जाते जाते फिर दांव फेका " अच्छा फिर कभी जरुरत पड़े तो याद करियेगा।"
ये कहकर मैं वापस अपनी कुटिया पे आ गया।

दुपहर के समय कपाला और चरक मुझसे मिलने आते हैं। मैं उनसे पूछता हूं " बताइये सरदार कपाला मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ।"
कपाला " महाराज मेरे गुप्तचरों ने सुचना दी है कि विशाला युद्ध की तैयारी शुरू कर चुकी है और उसका साथ त्रिशाला की माँ रानी रजनी भी दे रहीं है। उम्मीद है कि 15 दिनों में वो हमारे क़बीले पे आक्रमण करें।"
मैं इसी का इंतज़ार कर रहा था कि विशाला कपाला के क़बीले पे आक्रमण करे। मैंने गंभीर मुद्रा में कपाला से कहा " सरदार ये तो चिंता की बात है । आपकी सेना की क्या तैयारी है ?"
कपाला " महाराज हमारी आधी से ज्यादा सेना आपके हमले में ख़त्म हो चुकी है और जो बची हुई सेना है वो विशाला की सेना का आधा भी नहीं है।"
मैंने चिंतित मुद्रा में कपाला से कहा " सरदार अब आप का क्या विचार है क्या करना चाहिए?"
कपाला " महाराज इसीलिए मैं आपके पास आया हु युद्ध कौशल में आपका कोई सानी नहीं है आप ही बताये की हम विशाला की सेना का सामना कैसे करें। "
मैंने अब अपने दिमाग पे जोर डालना शुरू किया फिर कुछ सोच कर कपाला से पूछा " सरदार कपाला विशाला किस रास्ते आएगी?"
कपाला " महाराज चूँकि विशाला अपनी पूरी सेना के साथ यहाँ आ रही है तो कच्चे रास्ते से न आके पक्के रास्ते से आएगी।"
मैंने कपाला से कहा " क्या उस रास्ते पे पेड़ों और झाड़ियों पड़ती हैं जिसमे छुपा जा सके?"
कपाला " हाँ महाराज रास्ते के दोनों तरफ छांव के लिए पेड़ और कहीं कही ऊँची झाड़ियां भी हैं।"
मैंने कपाला से कहा " फिर हम उनसे गुर्रिला युद्ध करेंगे।"
कपाला चौंकते हुए " ये गुर्रिला युद्ध क्या होता है महाराज ?"
मैंने उसे समझाते हुए कहा " देखिये सरदार हम विशाला की सेना से आमने सामने का युद्ध करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि उसकी सेना हमारी सेना से बड़ी है। अतः हम अब छुपकर उसकी टुकड़ी पे ऐसे हमला करेंगे की विशाला की सेना को ज्यादा हानि हो और हमे कम से कम ।"
कपाला " महाराज जरा विस्तार से समझाएं"
मैं " देखिये सरदार जब भी कोई सेना चलती है तो ऐसा नहीं होता की उसके हर हिस्से पे सामान चौकसी हो। जैसे की हो सकता है सारे सैनिक आगे और पीछे से हमले के लिए चौकस हो पर बीच में इतनी चौकसी नहीं हो। हमारे सैनिक पेड़ो पे झाड़ियों के पीछे छुपे हुए होंगें और जब सेना का ये हिस्सा उनके पास आएगा तो उसपे हमला कर देंगे और अधिक से अधिक नुक्सान पहुचायेंगे और बाकी सेना के वहाँ आने से पहले वहां से गायब हो जाएंगे। ऐसा हम तब तक करेंगे जब तक विशाला की सेना हमारे बराबर न जाये ।"
कपाला " बहुत ही उत्तम नीति है महाराज इसके लिए क्या करना होगा ?"
मैं " सरदार आप अपने सैनिको की दो से तीन छोटी छोटी टुकड़ियां बना दीजिये और उनसे कहिये की वे छुपकर विशाला की सेना पे वहां हमला करे जहाँ सबसे ज्यादा नुकसान हो।"
कपाला " बहुत ही उचित महाराज मैं आज ही ऐसा करता हु और खुद भी एक टुकड़ी का स्वयं नेतृत्व करूँगा।"
मैं मन ही मन खुश होते हुये की कपाला अब क़बीले से बाहर रहेगा और मुझे रूपवती को पटाने का और समय मिलेगा " अति उत्तम विचार महाराज इससे आपके सैनिकों का उत्साह बढ़ेगा।"
कपाला " ठीक है महाराज अब हम चलते हैं प्रणाम।"
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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

रात को काफी देर तक मैं बिस्तर पे उतल्था पुतल्था रहा पर नींद आँखों से कोसो दूर थी | मैंने उठ कर कुटिया की सारी मशालें बुझा दी जिससे कुटिया में अँधेरा हो गया बस बाहर जल रही मशालो की रोशिनी से कुटिया में हल्का हल्का दिखाई पड रहा था | मैं अब अँधेरे में सोने की कोशिश करने लगा कुछ देर बाद मेरी आँखे नींद से बोझिल होने लगी तभी मुझे लगा कि जैसे किसी ने कुटिया में प्रवेश किया हो | मैं सतर्क हो गया तभी एक साया मेरे पास आया और मेरे बिस्तर पे पैर के पास बैठ गया | मैंने भी कोई हरकत नहीं की और उसकी अगली हरकत का इंतज़ार करने लगा | मुझे लगा की कुछ देर तक उस साए ने ये अंदाजा लगाने की कोशिश की की मैं जाग रहा हूँ या सो रहा हु पर शायद अँधेरे के कारण उसे कुछ पता नहीं चल पाया | फिर वो आगे बढ़ा और मेरी कमर पे बंधा वस्त्र खोलने लगा |अब मुझे यकीन हो गया की ये रूपवती हैं जो शयद अपनी चूत की खुजली शांत करने यहाँ पे आई हैं | मैंने अभी भी उसे ये एहसास नहीं होने दिया की मैं जाग रहा हु और उसे आगे बढ़ने दिया | वो अब मेरे लंड को अपने हाँथ में लेके सहलाने लगी | मेरा लंड भी उसके सहलाने के कारण खड़ा होने लगा | फिर रूपवती ने मेरा लंड अपने मुह में ले लिया और चूसने लगी | उसने एक झटके में पूरा सुपाड़ा मुह में ले लिया और चुप्पे लगाने लगी | उसकी इस हरकत से मेरी सिसकी निकल गयी और वो हडबडा के मुझसे दूर होने लगी | मैंने उसका हाँथ पकड़ लिया और उससे बोला " रूपवती जी डरिये मत आगे बढिए, मैंने तो पहले ही कहा था की ज़रूरत पड़े तो याद करियेगा |"
वो अब भी शायद थोड़ा झिझक रही थी तो मैने उसे अपने ऊपर खींच लिया और उसके अधरों को अपने मुह में लेके चूसने लगा | उसके बड़े बड़े वक्ष मेरे सीने से रगड़ने लगे और मेरे लंड में उफान पैदा करने लगे | मैं उसकी एक चुचक को अपनी उंगलियों से मसलने लगा | रूपवती मेरी इस बात से पूरी तरह मचल गयी और मेरे होंठो पे टूट पड़ी | अब हम दोनों काम खुमारी में एकदम खो गए और एक दुसरे के अंगों को चूमने काटने लगे | कुछ ही देर में मुझे लगा की अब बर्दाश्त नहीं होगा तो मैं अपना लंड उसकी चूत में घुसाने की कोशिश करने लगा पर मेरा लंड बार बार उसकी गीली चूत से फिसल रहा था | रूपवती ने अपने हाथ से पकडके मेरा लंड अपनी चूत पे रखा और उसपे बैठती चली गयी | मेरा लंड उसकी गीली चूत में फिसलता चला गया और कुछ ही देर में मेरा लंड उसकी चूत की गहरायिओं में गोते लगाने लगा| रूपवती अपनी गांड उठा के मेरे लंड पे उठक बैठक करने लगी और मैं भी उसकी बड़ी बड़ी गांड को अपने हाथो में पकड़ के मसलने लगा | कुछ ही देर में पूरी कुटिया में हमारी सिस्कारिया और लंड चूत की फच फच गूंजने लगी |
थोड़ी देर तक ऐसे ही चुदाई होती रही फिर मैंने उसे घोड़ी बना दिया | उसके पीछे आके मैनेअपना लंड उसकी चूत पे लगाया और एक ही झटके में घुसा दिया | रूपवती केमुह से आह निकल गयी और मैं अपनी पूरी ताकत लगा के लंड उसकी चूत में अन्दर बाहर करने लगा | उसकी थिरकती हुयी गांड मेरे ह्रदय और अंडकोषो में भी थिरकन पैदा करने लगी | कुछ ही देर में मेरे वीर्य ने रूपवती की चूत को भर दिया|
हम दोनों निढाल होके बिस्तर पे लेट गए | कुछ देर बाद रूपवती उठके वहां से जाने लगी | मैंने उससे कहा " रूपवती जी यहीं रुक जाइये "
उसने कहा " मैं रूपवती नहीं हूँ |"
अब मैं चौंक के बिस्तर पे उठ बैठा और उसका चेहरा पहचानने की कोशिश करने लगा पर अँधेरे में कुछ दिखाई नहीं पड़ा | मैंने उससे पुछा " तब आप कौन हैं?"
उसने कहा " महराज आप मुझे बस अपना शुभचिंतक समझिये ,सही समय आने पर आपको पता चल जाएगा की मैं कौन हूँ | बस आप सतर्क रहिये और कपाला और चरक पर विश्वास मत करियेगा | अब मैं चलती हूँ |"
ये कहकर वो कुटिया से चली गयी | मैं बिस्तर पे लेटा ये सोचता रहा की आखिर वो कौन थी और पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी |

कुछ दिन तक कपाला और चरक काबिले में नहीं दिखाई दिए शयद वो विशाला की सेना पर गुर्रिल्ला युद्ध की तैयारी में व्यस्त थे | मेरे जख्म भी अब ठीक हो चले थे मैं अब अपने सारे काम खुद ही कर पा रहा था |मेरे पास भी कुछ करने को था नहीं था तो मैं भी आस पास के जंगलो में घुमने निकल जाया करता था | ऐसे ही एक दिन मैं जंगलों में घुमने निकला था चलते चलते मैं काबिले से काफी दूर निकल आया था मैंने एक चट्टान बे बैठ कर कुछ देर सुस्ताने की सोची | मैं चट्टान पे बैठ कर अपनी हालत के बारे में सोचने लगा | मुझे यहाँ आये हुए पता नहीं कितने दिन हो गए थे मैं एक सैनिक से कबीलेवाला बन चुका था | मेरी दुनिया में पता नहीं क्या हो रहा था पर यहाँ पर बहुत कुछ हो रहा था | पहला की विशाला विशाखा और त्रिशाला की माँ रजनी मेरे पीछे पड़ी हुई थी और इधर कपाला और चरक भी अपना काम निकलने का इंतज़ार कर रहे थे उसके बाद वो मुझे ठिकाने लगा देते | मेरे लिए आगे कुआँ पीछे खायी वाली स्थिति थी और मुझे इस में से निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा था | तभी मुझे पीछे सुखी टहनियां टूटने की आवाज़ सुने दी मैं चौंक के पीछे घूमा तो देखा कपाला की बेटी रूपम खड़ी थी | मेरे हाथ में कटार थी और चेहरे पे आक्रामक भाव थे जिसे देखके रूपम सहम सी गयी|
मैंने खुद को संयमित करते हुए पुछा " तुम यहाँ क्या कर रही हो ?"
वो भी थोड़ा सामान्य होते हुए बोली "क्षमा करे महाराज मेरा इरादा आपको चौंकाने का नहीं था बस मैं आपसे कुछ बताना चाह्ती थी तो आपके पीछे पीछे यहाँ चली आई |"
मैंने उससे कड़े स्वर में पुछा " ऐसा क्या था जो तुम मुझे कबीले में नहीं बता सकती थी ?"
रूपम " महाराज बात ही कुछ ऐसी थी जो मैं कबीले में आपसे नहीं कर सकती थी |"
मैंने उससे पुछा " ऐसी कौनसी बात थी ?"
रूपम " महराज मैं आपके लिए किसी का सन्देश लेके आई हूँ "
मैंने अब उससे कौतुहल से पुछा " कौन सा सन्देश और कैसा सन्देश ?"
रूपम " महराज आपका कोई शुभचिंतक आपसे मिलना चाहता है "
मैं अब बिलकुल भी नहीं समझ पा रहा था मैंने फिर भी पुछा " कौन शुभचिन्तक ?"
रूपम " महराज ये आपको आज रात पता चलेगा आज रात यहीं आप अपने शुभचिन्तक का इंतज़ार करियेगा | अब मैं चलती हु प्रणाम |"
ये कह के रूपम वहां से चली गयी | मैं अब ये सोचने लगा की अब मेरा कौन शुभचिन्तक हो गया | बहुत देर तक दिमाग पे जोर देने के बाद जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने इंतज़ार करने का सोचा | थोड़ी ही देर में शाम ढलने वाली थी और रात होने वाली थी मैं वही बैठ कर अपने शुभचिंतक का इंतज़ार करने लगा |

धीरे धीरे रात भी घिर आयी पूरे जंगल में घुप अँधेरा और शांति छाई हुई थी । बस सहारे के लिए चाँद की मद्धम रोशिनी और कभी कभार आती झींगुर की आवाज ही थी। मेरे दिल में इस बात की जिज्ञासा हिलोरे मार रही थी की आखिर ये मेरा शुभचिंतक कौन हो सकता है। इसी उधेड़बुन में समय बीत रहा था |
कुछ देर बाद थोड़ी दूर से एक रोशिनी मेरे तरफ बढ़ती दिखाई दी। मैं भी अपनी कटार निकाल सतर्क हो गया और उसके पास आने का इंतज़ार करने लगा। धीरे धीरे वो रोशिनी मशाल में तब्दील हो गयी जिसकी ओट में कोई महिला मेरे पास आ रही थी। अब मैं और उत्सुक्ता से उसका इंतज़ार करने लगा। जब वो मेरे पास पहूँची तो मैं ये देख के स्तब्ध रह गया की ये देवबाला थी। उसे देख के पुरानी सारी यादें ताज़ा हो गयी की कैसे उसने देवसेना का वध किया था और कैसे मुझे त्रिशाला से बचाया था। मेरे ह्रदय में भावनाओं का एक द्वन्द उठ खड़ा हुआ एक तरफ मैं उसपे गुस्सा था की उसने देवसेना का वध किया दूसरी तरफ मैं कृतज्ञ था कि उसने मेरी जान बचायी थी । वो मेरे चेहरे पे उमड़ते भावनायों को समझ गयी और बोली " महाराज मुझे पता है कि आपके ह्रदय में मेरे लिए बहुत से सवाल होंगे इसीलिए मैं आपसे मिलने चाहती थी ।"
ये कह कर वो एक चट्टान से टेक लगा के बैठ गयी उसके पेट में अब उभार आना शुरू हो गया था । वो बोली " महाराज आप ये जानना चाहते होंगे की मैंने देवसेना को क्यु मारा ?"
मैंने बिना कुछ कहे हाँ में सर हिला दिया ।
देवबाला " महाराज आपकी कृपा से मैं और देवसेना एक साथ ही माँ बन गयी थी पर पुजारन देवसेना को इससे डर लग गया । उन्हें लगा की हो सकता है इससे उनके देवी बनने में मैं बाधा बन जाऊं इसलिए वो चुपके से मुझे रास्ते से हटवाना चाहती थी । ये बात मुझे पता चल गयी तो मेरे पास उनको अपने रास्ते से हटाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था "
मैंने उससे कहा " ये बात कैसे साबित हो सकती है जबकि पुजारन देवसेना अपना पक्ष रखने को जीवित ही नहीं हैं । पर तुमने मुझे क्यों बचाया ?"
देवबाला " महाराज आप माने या न माने पर यही सच है । खैर जब मुझे विशाला और त्रिशाला ने अपनी योजना बतायी की वो आपको ख़त्म करके खुद कबीलों का सरदार बनना चाहती हैं तो मैं भी उनकी इस अयोजन में शामिल हो गयी क्योंकि मैं आपको उनसे बचाना चाहती थी।"
मैंने उससे पूछा " आखिर क्यों तुमने मुझे क्यों बचाया ?"
देवबाला " महाराज आपने मुझे वो सुख दिया है जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी । आपने मुझे मातृत्व सुख प्रदान किया है जिसके लिए मैं आपकी जीवन भर आभारी रहूंगी ।"
मैंने उससे पूछा " अब तुम मुझसे क्या चाहती हो ?"
देवबाला " आपके जीवन की सुरक्षा ।"
मैंने चौंकते हुए पूछा " मतलब ?"
देवबाला " महाराज मेरी जानकारी के अनुसार कपाला ने विशाला की सेना पर हमले करना शुरू कर दिया है जिसमे उसे काफी जान और माल का नुक्सान हुआ है। विशाला ने कल कपाला को संधि वार्ता के लिए बुलाया है । मुझे अंदेशा है कि कल की संधि वार्ता में कपाला और विशाला में संधि हो जायेगी और उसके बाद आपकी जान खतरे में होगी ।"
मैंने देवबाला से पूछा " तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो की संधि वार्ता हो जायेगी ?"
देवबाला " महाराज आप कपाला की स्थिति तो देख ही रहे हैं कि वो विशाला की सेना से सीधे युद्ध की स्थिति ने नहीं है और विशाला की सेना भी कपाला के हमलों से पहले की तुलना में काफी कम हो गयी है। अब विशाला अपना और नुक्सान नहीं नहीं चाहेगी इसलिए वो कपाला को ये प्रस्ताव देगी की कपाला उसे कबीलो का सरदार मान ले जिसके बदले वो कपाला को अपनी संयुक्त सेना का सेनापति बन देगी। मुझे लगता है कि कपाला को ये प्रस्ताव मंजूर होगा। उसके बाद मुझे लगता है कि विशाला फिर आपको जीवित नहीं छोड़ेगी।"
मैंने देवबाला से पूछा " तुमको ये सब बातें कैसे पता हैं ?"
देवबाला ने हँसते हुए कहा " क्योंकि विशाला को ऐसा करने का सुझाव मैंने ही दिया है ।"
मेरे चौंकते हुए पूछा " तुमने आखिर क्यों ?"
देवबाला " महाराज मुझे उनका पूरी योजना जाननी थी ताकि मैं आपको बचा सकू ।"
मैंने पूछा " अब मुझे क्या करना है "
देवबाला " महाराज आप क्या करना चाहते हैं ?"
मैं " मुझे अब सिर्फ बदला लेना है विशाखा विशाला और कपाला से ।"
देवबाला " कपाला से भी ?"
मैं " हाँ क्योंकि उसने मेरी सुरक्षा का वचन दिया था पर अब वो मुझे धोखा दे रहा है ।"
देवबाला " महाराज आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा "
मैं " पर कैसे विशाला और कपाला की संयुक्त सेना को मैं कैसे हरा पाउँगा ।"
देवबाला " महाराज कुछ अन्य कबीलों के सरदार मेरे संपर्क में हैं और वो कपाला और विशाला को हराने में हमारी मदद करेंगे । पर एक शर्त है।"
मैंने पूछा " क्या शर्त ?"
देवबाला " आपको अपना कबीलों के सरदार का पद छोड़ना होगा ।"
मैं " मुझे पद से कोई मतलब नहीं है बस मेरा बदला पूरा होना चाहिए।"
देवबाला " फिर ठीक है महाराज कल मैं आपको संपर्क करुँगी रूपम आपके पास आएगी आप उसके साथ क़बीले से निकल आईएगा। मैं बाकी कबीलों की सेना के साथ आपका इंतज़ार करुँगी। जब कपाला और विशाला की सेना लौटेगी तो हम उनका इंतेज़ार करेंगे।"
मैंने देवबाला से पूछा " रूपम पे तुम्हे विश्वास है वो कपाला की बेटी है "
देवबाला हँसते हुए " महाराज आप ये बात कह रहे हैं आपतो उसे अच्छे से जानते हैं "
मैंने चौंकते हुए पूछा " वो कैसे "
देवबाला " उस रात जिसे आप रूपवती समझ रहे थे वो रूपम ही थी। पर आपको घबराने की कोई जरुरत नहीं है वो भी कपाला से बहुत नफरत करती है इसलिए उसपर हम विश्वास कर सकते हैं।ठीक है अब मैं चलती हूँ आप कल रूपम का इंतज़ार करियेगा। प्रणाम महाराज"
ये कहकर देवबाला वहां से चली गयी और मैं भी क़बीले को लौट आया।
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