अनोखा सफर complete

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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

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मेरी नींद तब खुलती है जब मुझे एहसास होता है कि कोई मेरा लंड चूस रहा है मैं आँख खोलके देखता हूं रानी विशाला मेरा लंड चूस रही थी । मैंने भी उसे रोका नहीं और मजे लेने लगा। आज लग रहा था रानी सुबह की डांट का बदला मेरे लंड से लेने पे उतारू हो वो खूब जोर जोर से चूसे जा रहा थी। कुछ देर के बाद मुझसे रहा नहीं गया मैंने उसका सर अपने लंड से हटाया और उसे बिस्तर पर लिटा के उसके दोनों पैर मोड़ दिए जिससे उसकी गांड और चूत दोनों मुझे एक साथ नज़र आने लगी । मैंने अब अपना लंड उसकी चूत में एक झटके में उतार दिया और जोर जोर से उसकी चूत चोदने लगा । रानी विशाला भी उत्तेजित हो कर मेरा साथ देने लगी । कुछ देर की चूत चुदाई के बाद जब मेरा लंड उसके कामरस से सन गया तो मैंने अपना लंड उसकी गांड में उतार दिया और ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा । रानी विशाखा अब और भी उन्मुक्त हो कर चुदने लगी और चीखने लगी । मैंने भी रफ़्तार बढ़ाई और जोर से उसकी गांड में धक्के लगाने लगा । कुछ ही देर में हम दोनों अपने चरमोत्कर्ष पे पहुँच चीख मारते हुए झड़ गए।
कुछ देर तक अपनी सांसे स्थिर करने के बाद रानी विशाखा बिना कुछ बोले कुटिया से चली गयी। मैंने बाहर देखा तो शाम ढल चुकी थी मैंने सुबह जल्दी निकलने की सोचा था सो मैं वापस बिस्तर पे लेट आराम करने की कोशिश करने लगा।
सुबह भोर में ही मैं और विशाला खाने पीने का सामान लेके पैदल ही देवसेना के मंदिर की ओर निकल पड़े। हम दिन चढ़ने से पहले ही ज्यादा से ज्यादा रास्ता पार करना चाहते थे । तेज कदमो के साथ मैं विशाला के पीछे पीछे चल रहा था वो अभी तक के सफर में चुप थी तो मैंने बात शुरू करने की सोची मैंने उससे कहा " सेनापति विशाला मैंने सुना है कि एक दूसरे से बात करने से रास्ता जल्दी कट जाता है "
वो ठिठककर रुक गयी और मेरी ओर देखते हुए बोली " मैं समझी नही महाराज "
मैंने कहा " रास्ते काटने के लिये कुछ बात करते हैं "
उसने फिर पूछा " क्या बात महाराज "
मैंने कहा कि " कुछ आओ अपने बारे में बताइये कुछ मैं आपको अपने बारे में बताऊंगा "
उसने कहा " महाराज मेरे बारे में बताने के लिये कुछ नहीं है मैं महाराज वज्राराज और रानी विशाखा की एकमात्र संतान हु । मेरे पिता हमेशा से एक बेटा चाहते थे पर अनेको कोशिशों के बावजूद उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई । फिर पिताजी ने थक हार कर मेरी परवरिश ही बेटो की तरह करनी शुरू कर दी । वो मुझे शस्त्र विद्या की शिक्षा देने लगे साथ ही वो मुझे औ इ साथ युद्ध और आखेट पर भी ले जाते थे। मैं भी पिताजी को बेटे की कमी महसूस नहीं होने देना चाहती थी इसलिए मैंने भी खूब मेहनत करनी शुरू कर दी । धीरे धीरे मैं सिर्फ तन से ही स्त्री रह गयी मन से मैं इस कबीले की योद्धा बन गयी । बस यही है मेरी कहानी । "
बातो बातो में सूर्य सर वे चढ़ आया था और गर्मी और उमस से मेरा बुरा हाल हो गया था तो हमने एक नदी के किनारे विश्राम करने की सोची ।
विशाला वही किनारे पे बैठ कर भोजन करने लगी और मैं नहाने के लिए झरने में उतर गया। मैंने अपना चमड़े का वस्त्र उतार किनारे पे फेंक दिया ।और नदी में नहाने लगा। नहाते वक़्त मैंने महसूस किया कि विशाला की निगाहें मेरे शरीर पे टिकी हुई है । कुछ देर नहाने के बाद मैं किनारे पे लौट आया और बिना कपडे के ही विशाला से कुछ दूर लेट कर आराम करने लगा। विशाला कि नजरे अब मेरे लंड पे टिकी हुई थी मैंने भी थोड़ा उसे अंगप्रर्दशन करने की सोची और उसकी तरफ करवट कर ली अब मेरा लंड उसे और अच्छे से दिखने लगा। वो भी बड़े ध्यान से उसे निहारने लगी ।
थोड़ी देर बाद उसने मुझेसे कहा " महाराज अब हमें चलना चाहिए "
मैंने भी कहा " चलो "
फिर हम चल पड़े । कुछ देर बाद विशाला ने मुझसे कहा " अब वचनानुसार आपको अपने बारे में बताना चाहिए "
मैंने कहा "ठीक है मेरा नाम अक्षय है मैं भारतीय सेना में हूं । सेना में सभी सैनिको की तरह मेरा काम भी शत्रुओं को ख़त्म करना का है। एक रात हमे पता चला की कुछ समुद्री डाकू एक द्वीप पर छुपे हुए हैं । मुझे जिम्मेदारी मिली की कुछ सैनिको के साथ उन पर रात के अँधेरे में हमला कर उन्हें ख़त्म कर दू। हम सब इसी काम से जा रहे थे की हमारी नाव तूफान में फंस गयी और पलट गयी । उसके बाद जो आखिरी चीज मुझे याद है वो ये कि मैं डूब रहा हु। इसके बाद मैं इस द्वीप पे कैसे पंहुचा ये मुझे पता नहीं और बाकि तो सब तुम जानती ही हो ।"
ऐसे ही हम बात करते हुए आगे अपबे रास्ते पे बढ़ रहे थे की अचानक बादल घिर आये और बारिश होने लगी । चूँकि अभी काफी लंबा रास्ता तय करना था तो बारिश की परवाह किये बगैर हम आगे बढ़ते रहे । धीरे धीरे शाम भी ढल आई और रोशिनी भी कम ही चली तो हम रात रुकने के लिए ठिकाना खोजना शुरू किया बहुत खोजबीन के बाद हमे एक बड़े पत्थरो की ओट में थोड़ी सी जगह सर छुपाने को मिली हम वही आराम करने के लिये रुक गए। बारिश अब और परवान चढ़ चुकी थी और थमने का नाम नहीं ले रही थी। हमारे भीगे शरीरों ने हमारे शरीर में ठिठुरन पैदा कर दी थी। किसी तरह हम दोनों अपने अपने शरीर को गर्म रखने की कोशिश कर रहे थे पर सब नाकाम था। कुछ देर बाद बारिश आखिर बंद हुयी तो हूँ दोनों सूखी लकड़ियों की तलाश करने लगे भगवान् की दया से कुछ लकड़िया हमे मिल गयी जो रात काटने के लिए काफी थी। फिर विशाला ने आग जलायी और हम दोनों अपना बदन सेंकने लगे । ऐसे ही बैठे बैठे जब मेरा शरीर अकड़ने लगा तो मैं पत्थर पे लेट गया ।
जलती आग की गर्मी भी मेरे शरीर की ठिठुरन को कम नहीं कर पा रही थी । अपनी जगह पे लेटे लेटे मैंने विशाला पे नज़र डाली तो उसका भी वही हाल था । मैंने अपनी दोनों टाँगे सिकोड़ के अपने सीने से लगा ली और सोने की कोशिश करने लगा। थकान अधिक होने के कारण धीरे धीरे नींद ने मुझे अपने आगोश में ले लिया।
मेरी नींद तब खुलती है जब मुझे अपने सीने पे कुछ रगड़ता हुआ महसूस होता है आँखे खोलता हु तो देखता हूं कि विशाला अपनी देह को मेरी देह से रगड़ रही थी जिससे हमारे शरीर में गर्मी उत्पन्न हो रही थी । मुझे ऐसा लग रहा था की मेरा पूरा शरीर ठण्ड से अकड़ गया है और विशाला की अपने शरीर को मेरे शरीर से रगड़ने की गर्मी से मेरा शरीर धीरे धीरे सामान्य हो रहा था। पर विशाला का शरीर मेरे अंदर कुछ और ख्याल उत्पन्न कर रहा था जिसके कारण मेरा लंड धीरे धीरे खड़ा होने लगा और विशाला की चूत पे रगड़ खाने लगा। शायद कुछ देर में उसकी चूत में भी आग लग गयी क्योकि उसका कामरस बहकर मेरे लंड और जांघों पे लगने लगा। अब हम दोनों ही उत्तेजना में सराबोर थे पर आपसी झिझक के कारण कोई पहल नहीं कर रहे थे। विशाला अभी भी अपने शारीर को मेरे शरीर से रगड़े जा रही थी बस अब उसने अपनी टाँगे मेरी कमर के साइड में कर ली थी जिसके कारण मेरा लैंड उसकी चूत की सिधाई में आ गया । उसने अपनी कमर को एक बार फिर मेरे शरीर पर रगड़ने के लिए उठाया और जैसे ही अपनी कमर मेरे पेट से रगड़ती हुई पीछे ले गयी मेरा खड़ा लंड फिसलते हुये उसकी गीली चूत में घुस गया । वो भी एकबार को चौंक के रुक गयी और मैंने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । फिर न जाने उसे क्या सूझा की वो अपनी चूत को मेरे लंड पे दबाती चली गयी जिससे मेरा लंड और अंदर तक घुस गया। उसकी चूत अभी तक की मेरी चखी कबीले की सभी चूतो से कसी थी पर वो कुँवारी भी नहीं थी । विशाला भी खूब रफ़्तार में मेरे सीने पे अपने नींबू जैसे छोटे वक्षो को रगड़ते हुए चुदाई कर रही थी कुछ देर में ही मुझे लगा की अब मैं झड़ने के नजदीक हु तो मुझसे रहा न गया मैंने भी उसके नितम्ब को अपने हाथों में लिया और दबाना शुरू किया तो वो पागल सी हो गयी और खूब जोर जोर से अपनी चूत को मेरे लंड पे ऊपर नीचे करने लगी । जल्द ही हम दोनों झड़ गए और एक दूसरे से चिपके हुए ही सो गए।
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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

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सुबह मेरी नींद खुली तो विशाला जाग चुकी थी और सामान बाँध रही थी । मैं उठा तो वो मुझे चोर नज़रो से देख रही थी मैंने उससे पूछा " आगे के सफर की तरफ बढ़ जाए "
तो उसने जवाब दिया "जी"
हम दोनों निकल पड़े रास्ते में विशाला तेज कदमो से आगे बढ़ रही थी जैसे की वो मुझसे बात नहीं करना चाहती हो फिर भी मैंने उससे कहा " विशाला कल रात को जो कुछ भी हुआ वो ....."
मेरी बात पूरी भी नहीं हो पायी थी की वो बोल पड़ी " क्षमा करे महाराज पर कल जो भी कुछ हुआ वो नहीं होना चाहिए था । कल रात ठण्ड के कारण आपका शरीर अकड़ गया था मैंने आपको गर्मी प्रदान करने के लिये वैसा किया पर अंत में मैं बहक गयी आगे से ऐसा नहीं होगा। "
मैंने भी बात आगे बढ़ाने की नहीं सोची और उसे आगे बढ़ने का इशारा किया । चलते चलते दुपहर हो गयी और फिर खूब उमस बढ़ गयी । हम छांव की तलाश करते हुए एक तालाब के पास पहुच गए। मैं एक पेड़ के नीचे लेट के आराम करने लगा और विशाला भी मुझसे थोड़ी दूर पे बैठ गयी। मैं अपनी आँखे बंद कर आराम कर रहा था कि पानी की छप छप से मेरी तन्द्रा टूटी तो मैंने देखा के विशाल बिना चमड़े के कपडे के तालाब में उतर के स्नान कर रही है । मैंने भी लेटे लेटे उसे निहारना शुरू कर दिया वो भी कनखियों से मुझे देख रही थी । कुछ बात थी उसके भीगे बदन में की मेरे लंड में कामोत्तेजना हिलोरे मारने लगी। मैंने भी अपना चमड़े का वस्त्र उतारा और तालाब में उतर गया । पानी ज्यादा नहीं था कमर तक ही था। मैंने भी अपनी उत्तेजना को विशाला से छुपाने की कोशिश नहीं की और अपने खड़े लंड का उसे खूब दर्शन करवाया।
शायद मेरे खड़े लंड ने उसे रात की बातें याद करवा दी वो पलट के जल्दी से पानी के बाहर जाने लगी की उसका पैर फिसल गया और वो पूरे पानी के अंदर चली गयी । मैं उसे पानी से निकालने के लिये उसका हाथ पकड़के बाहर खीचा। जैसे ही उसका शरीर पानी से ऊपर आया ही था के मेरा भी एक पैर फिसल गया और मेरी कमर उसकी कमर से सट गयी । उसने खुद को सँभालने के लिए मेरी कमर पकड़ ली । मेरा लंड उसकी चूत से सटा हुआ था मैंने उसकी आँखों देखा तो वो वासना से लाल हो गयी थीं। फिर भी मैंने अपने को अलग करने की कोशिश की तो उसने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली। मैंने फिर उसकी आँखों में देखा तो उसने आगे बढ़कर मेरे होठों को अपने होठों में भर लिया और पागलो की तरह मुझे चूमने लगी। मैं भी उसे प्यार से चूमने लगा । कुछ देर की चूमा चाटी के बाद मैंने उसे अपनी गोद में उठा के किनारे पर ले आया। तालाब के किनारे घांस पे उसे लिटा दिया और उसके ऊपर आ के एक बार फिर उसे चूमने लगा। वो काफी उत्तेजित हो गयी थी उसने अपनी टाँगे उठा के मेरी कमर पे रख दी और मेरा लंड को अपनी चूत पे लगा दिया। मैंने भी कमर को झटका दिया और मेरा लंड सरसराकर उसकी चूत में समा गया। मैंने भी खूब जोर जोर से उसकी चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा। कुछ देर तक ऐसे चुदने केबाद वो पलट के मेरे ऊपर आ गयी और मेरे लंड पे जोरो से ऊपर नीचे होने लगी । मेरी उत्तेजना ने मुझे जल्द ही अपने चरम पे पंहुचा दिया मैंने भी उसके नींबू जैसे वक्षो के चुचको को मुह में भर के काट लिया। शायद मेरे ऐसा करने से वो भी अपने चरम पे पहुँच गयी और चीख मारते हुए झड़ गयी।

कुछ देर बाद जब हम दोनों की साँसे नियंत्रित हुई तो विशाला ने मुझसे कहा " अब मुझे पता चला की आपके साथ सम्भोग करने वाली औरते इतना चिल्लाती क्यों थी "
मैंने उसकी बात पे ध्यान न देते हुए उससे पूछा " अभी पुजारन देवसेना का मंदिर कितनी दूर है ?"
तो उसने कहा कि "शाम तक पहुँच जाएंगे "
मैंने उससे कहा " मुझे वहां पहुचाने के बाद तुम वापस काबिले चली जाना "
उसने चौंकते हुए पूछा " क्यों?"
मैंने कहा " कबीले को उसके सेनापति की जरुरत कभी भी पड़ सकती है "
तो उसने कहा " आप की सुरक्षा का क्या होगा और आप वापस कैसे आएंगे ?"
मैंने उससे कहा " मैं अपनी सुरक्षा खुद कर सकता हु और वापस आने का रास्ता मैंने देख लिया है "
उसने फिर कहा " पर ...."
मैंने उसकी बात काटते हुए जवाब दिया " ये मेरा आदेश है ।"
वो चुप हो गयी और अनमने ढंग से चलने की तैयारी करने लगी। शाम को हम देवसेना के मंदिर पे पहुच गए। हमने बाहर पहरेदारों को अपना परिचय दिया तो वो हमें अपनी कुटिया पे विश्राम करने के लिएले गए। कुछ देर बाद पुजारन देवसेना हमारे स्वागत के लिए हमारी कुटिया पे आई । आज भी उन्होंने भस्म का ही श्रृंगार अपने शरीर पे किया था।
मैंने उन्हें प्रणाम किया तो उन्होंने कहा " महाराज आपका मेरे मंदिर पर स्वागत है आपको रास्ते में कोई तकलीफ तो नहीं हुई "
मैंने कहा "नहीं पुजारन जी "
कुछ देर उन्हीने इधर उधर की बाते की फिर उन्होंने कहा कि " महाराज अब आप आराम करे आपकी सेवा के लिए मैं अपनी दासी देवबाला को आपके पास छोड़े जा रही हु ये आपकी सब सुविधाओं का ध्यान रखेंगी। मैं चलती हु।"
मैंने उन्हें फिर प्रणाम किया और वो चली गयी।
कुछ देर बाद हमारे खाने के लिए कन्द मूल फल आये मैंने और विशाला ने भोजन किया और मैं आराम करने के लिए लेट गया। विशाला मेरे पास आई और बोली " महाराज अब मुझे चलने की आज्ञा दीजिये।"
मैंने चौंकते हुए पूछा " अभी इतनी रात गए सुबह चली जाना "
उसने गंभीर होते हुए जवाब दिया " महाराज मेरा कार्य सम्पूर्ण हुआ अब कबीले को उसके सेनापति की जरुरत है मैं वापस जाना चाहती हु "
मैं समझ गया कि अब वो मानने वाली नहीं है तो मैंने उससे कहा " आज्ञा है "
वो कुटिया से बाहर चली गयी और मैं अपने बिस्तर पे वापस लेट अपनी थकान मिटाने लगा।
विशाला के चले जाने के बाद दासी देवमाला कुटिया में आ जाती है और थोड़ी दूर पे खड़ी हो जाती है। उसने भी भस्म का श्रृंगार किया हुआ था पर उसका शरीर काफी भरा हुआ और मादक था । मैं उसे देख रहा था कि उसने भी मुझे देख लिया और पूछा " कुछ चाहिए महाराज ?"
मैंने कहा " शायद "
उसने कहा " क्या चाहिए महाराज ?"
मैंने कहा कि " मुझे जो चाहिये वो शायद तुम नहीं दे सकती ?"
उसने भी शायद मेरी बात का अर्थ समझ कर के मेरे लंड की तरफ देखते हुए कहा " आप मांग के तो देखिये महाराज "
मैं उसके पास जाके उसकी चूत के ऊपर हाथ रख के कहा " मुझे ये चाहिए "
उसके चेहरे पे प्रसन्नता के भाव आ गए जैसे वो भी यही चाहती हो वो मुझसे कहती है " मुझे कुछ वक़्त दीजिये महाराज "
वो कुछ देर के लिए चली जाती है और जब वापस आती है तो उसके शरीर से सारी भस्म धुली जा चुकी थी और उसका सौंदर्य निखर के मेरे सामने आ रहा था । वो बड़े ही मादक अंदाज में चलके मेरे पास आती है और मेरे लंड अपने मुह में लेके चूसने लगती है। मुझे असीम आनन्द की अनुभूति होने लगती है और मैं अपना लंड उसके मुह में अंदर बाहर करने लगता हूँ । कुछ देर बाद वो मुझे लिटा के मेरे ऊपर आ जाती है और मेरे लंड को अपनी चूत में लेके ऊपर नीचे होने लगती है। मैं भी ऊपर होके उसके चुचको को बारी बारी मुह में लेके चूसने लगता हूँ तो वो उत्तेजित हो कर और जोर से अपनी चूत को मेरे लंड पे पटकने लगती है। जल्दी ही हम दोनों अपने चरमोत्कर्ष पे पहुच जाते हैं।
कुछ देर बाद वो मेरी साथ ही बिस्तर पे लेट अपनी सांसे संभालती है फिर मेरे तरफ होके बोटी है " मैं
न जाने कब से ऐसा करना चाहती थी।"
मैंने खींच के उसे अपने सीने से चिपका लिया और वो खिलखिलाकर हँसने लगा। मैंने उससे पूछा " क्या इस मंदिर में काम करने वाली सभी दासियां तुम्हारे जैसी ही खूबसूरत हैं?"
उसने कहा " हाँ क्योंकि हर कबीले की सबसे खूबसूरत लड़की को ही मंदिर भेजा जाता है "
मैंने कहा " अच्छा तभी पुजारन देवसेना भी बहुत सुंदर हैं"
उसने चहकते हुए पूछा " क्या आपको वो बहुत सुंदर लगती हैं "
मैंने कहा " हाँ क्यों??"
उसने कहा " नहीं तब आपको पुजारन देवसेना जी ने जिस उद्देश्य के लिये बुलाया है उसमें सरलता होगी।"
मैंने कहा कि " मैं समझा नहीं उन्होंने तो मुझे किसी पूजा के किये बुलाया है "
उसने कहा " वही कालरात्रि की पूजा "
मैंने उससे पूछा " ये क्या पूजा है "
उसने कहा " क़बीलों की परंपरा के अनुसार पुजारन को हर माह उस काबिले के सरदार के साथ इस पूजा को करना होता है जिसके कबीले में उसे मासिक धर्म आये। इस पूजा के अनुसार पुजारन को उस सरदार के साथ सम्भोग कर संतान उत्पत्ति की कोशिश करनी होती है। पुजारन देवसेना पिछले एक वर्ष से सरदार कपाला के साथ काल रात्रि की पूजा कर रही हैं पर अबतक उन्हें सफलता नहीं मिली।"
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Re: अनोखा सफर

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sunita123 wrote:wow bahto hi mast hot story likhi hai baho maja aaya kahani padhne me very good and hot bas upadte regualr dete rahena
thanks
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Re: अनोखा सफर

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मैंने उत्सुकतावश पुछा " अभी तक पुजारन देवसेना माँ क्यों नहीं बन पायीं ?"
उसने जवाब दिया " महाराज पुजारन बनने की प्रक्रियाओं में से एक प्रक्रिया के तहत हमे एक ऐसे फल का सेवन करना होता है जिससे हमारी माँ बनने की संभावनाये नगण्य हो जाती हैं।"
मैंने फिर पूछा " तो मां बनना इतना जरुरी क्यों है ?"
वो जवाब देती है " महाराज आजतक कोई भी पुजारन माँ नहीं बन पाई है जो कोई पुजारन कालरात्रि की पूजा से माँ बन जायेगी उसकी पूजा देवी की तरह हर काबिले में की जायेगी।"
अब मुझे सब कुछ समझ में आ गया था कि मुझे यहां किस लिये बुलाया गया है । मैंने कुछ सोचते हुए उससे पूछा " अच्छा अगर देवसेना देवी बन जाएँगी तो पुजारन कौन होगा ?"
उसने हँसते हुये जवाब दिया "मैं "
मैंने कहा " देवसेना देवी बन जाएँगी और तुम पुजारन तो मुझे क्या मिलेगा ??"
उसने पूछा " मैं समझी नहीं ?? आपको क्या चाहिए "
मैंने कहा " एक वचन आप दोनों से । अगर देवसेना मेरी संतान की माँ बन जाती हैं तो उन्हें मुझे सारे क़बीलों का सरदार घोषित करना होगा और जब तुम पुजारन बन जाओगी तो तुम्हे भी हमेशा मेरी मदद करनी होगी ।"
उसने कुछ सोचते हुए जवाब दिया " महाराज मैं पुजारन देवसेना से अभी इस विषय में बात करती हूं। "
वो जैसे जाने के लिये उठी मैंने उसे अपने ऊपर खींच लिया और फिर एक बार हम दोनो एक दूसरे में फिरसे समा गए।

अगली सुबह मैं पुजारन देवसेना से मिलने उनके मंदिर में गया। वो मुझे देख के अति प्रसन्न हुईं और बोली " महाराज मैंने आपकी शर्ते सुनी और वो मुझे मंज़ूर हैं "
मैंने पास ही खड़ी देवबाला की तरफ देखा " उसने कहा " मुझे भी मंजूर है"
मैंने कहा कि " तो फ़िर मैं भी तैयार हूं आपकी पूजा के लिये बताइये कब से शुरू करनी है ये पूजा ?"
पुजारन देवसेना ने जवाब दिया " आज रात को ही शुरू करेंगे आप आज रात को यहाँ मंदिर में आ जाइयेगा मैं सारी तयारी कर के रखूंगी ।"
मैंने कहा कि " फिर ठीक है मैं अब चलता हूँ "
फिर मैं अपनी कुटिया में वापस आ गया और भोजन करके विश्राम करने लगा क्योंकि आज रात लंबी होनी वाली थी।
रात को मैं भी स्नान करके मंदिर पंहुचा तो गर्भ गृह में पुजारन देवसेना मेरा इंतज़ार कर रही थी। उन्होंने आज अपने शरीर पे भस्म भी नहीं लगाई थी अर्थात वो एकदम नग्न अवस्था में थी। कमरे में चारो ओर खुशबू फैली हुई थी बीच में जानवरों की खाल का बिस्तर था जिसे पुष्प से सजाया गया था। सामने फल और मदिरा का ढेर लगा हुआ था।
मेरे वहां पहुचते ही सारी दासियां वहाँ से चली जाती हैं और हमे वहाँ अकेला छोड़ देती हैं। पुजारन देवसेना मेरा हाथ पकड़कर मुझे बिस्तर तक ले जाती है और मेरे हाथ में मदिरा का एक प्याला दे देती हैं। मैं एक ही घूँट में उसे पी जाता हूं। पुजारन देवसेना का सौंदर्य पास से देखने पे और सम्मोहित करने वाला था। मैंने मदिरा के दो चार और प्याले अपने हलक से नीचे उतार लेता हूं।
थोड़ी देर बाद पुजारन देवसेना ने मुझसे कहा " महाराज इस पूजा के नियम आप को समझाना चाहती हु इस पूजा में आप को मेरे शरीर को अपने हाथ से स्पर्श नहीं करना होगा बाकी आप जो चाहे कर सकते हैं।"
मैंने कहा " ठीक है "
फिर वो मेरा लंड पकड़कर ऊपर नीचे करने लगती है उसने अपने हाथ पे कुछ लगाया था जिससे मेरे लंड पे चिकनाई लग जाती है और उसका हाथ मेरे लंड पे तेजी से फिसलने लगता है । मुझे लगा की मैं तुरंत ही झड़ जाऊंगा पर किसी तरह खुद को संतामित किया। मेरे लिए अजीब विडंबना की स्थिति थी की वो मुझे उत्तेजित कर रहे थी पर मैं उसे उत्तेजित नहीं कर पा रहा था। तभी मेरी नज़र पास ही पड़े मोर पंख पे पड़ती है जो की शायद किसी पूजन कार्य के लिए वहां रखा हुआ था मैंने वो अपने हाथ में ले लिया और उसके चुचको के ऊपर फिराने लगा। उसे शायद गुदगुदी महसूस हुई और वो मचल उठी। मैंने फिर वो मोर पंख उसकी गर्दन पे हलके से फिराया तो उसकी आँखे बंद हो गयी तो मैंने अपने होठ उसके होठों पे रख दिए। कुछ देर तक हम एक दूसरे को चूमते रहे फिर पुजारन देवसेना अपनी पीठ के बल बिस्तर पे लेट गयी। मैंने भी अब उन्हें उत्तेजित करने का तरीका खोज निकाला था मैं भी वो मोर पंख धीरे धीरे उसके शरीर पे फिराने लगा तो वो मचलने लगी । फिर मैंने वो मोर पंख उसकी चूत के ऊपर फिरना शुरू किया तो उसकी टाँगे खुल गयी और उसकी चूत मुझे नजर आने लगी। मैंने भी वो मोर पंख उसकी चूत के दाने पे फिरना शुरू किया तो वो एकदम से तड़पने लगी और झड़ गयी। मेरा लंड अब एकदम कड़क हो गया था पर उसे न छूने की शर्त भी मेरे आड़े आ रही थी तो मैंने उसे घोड़ी बनने को कहा तो वो मेरे आगे घोड़ी बन गयी। मैं उसके पीछे घुटनो के बल खड़ा हो गया तो उसने मेरा लंड अपनी चूत के द्वार पे लगा लिया । मैंने भी अपनी कमर को झटका दिया तो चिकना होने के कारण मेरा लंड सरक कर उसकी चूत में जड़ तक समा गया। मैं फिर अपना लंड हल्का सा बाहर खींच के ताबड़तोड़ कमर हिलाना शुरू किया । कुछ पकड़ने को न होने के कारण मुझे दिक्कत तो हो रही थी फिर भी मैंने ऐसे ही उसकी चुदाई जारी रखी । कुछ देर बाद देवसेना फिर से उत्तेजित होने लगी तो मैंने उसकी उत्तेजना बढ़ाने के लिए फिर उसे मोर पंख से छेड़ना शुरू कर दिया तो नतीजा ये हुआ की वो अपने चरम पे पहुँच गयी और उसके थोड़ी देर बाद मैं भी।

सुबह मैं उठा तो देखा पुजारन देवसेना अभी भी मेरे बगल में लेटी हुई थी। मैं उसके मादक बदन को देख के एक बार फिर उत्तेजित हो गया। मैंने धीरे से उसकी टाँगे फैलाई और उसकी चूत की फांको को हल्का सा फैलाया तो उसकी चूत का दाना दिख गया। अब मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मैंने उसकी चूत के दाने को मुंह में ले लिया । पुजारन देवसेना की आँखे खुली तो उसने मुझे धकेलने की कोशिश की तो मैंने भी और जोरो से उसकी चूत के दाने को जीभ से छेड़ने लगा । पुजारन देवसेना की सिसकारियां छूटने लगी । मैंने उसके चूत के दाने को छेड़ते हुए मैंने अपनी एक ऊँगली उसकी चूत में घुसा दी और जोर जोर से अंदर बाहर करने लगा। पुजारन देवसेना मजे से दोहरी हो गयी और अपनी कमर को उठा कर अपनी चूत मेरे मुह में घुसाने लगी। मैंने भी देखा की पुजारन देवसेना गर्म हो गयी है तो मैंने अपना लंड उसकी चूत पे रख कर धक्का दिया तो मेरा लंड उसकी चूत में घुस गया । अब मैंने धक्के पे धक्के लगाने शुरू कर दिए । देवसेना भी मेरे धक्कों के साथ अपनी कमर हिला के मेरा साथ देने लगी । कुछ देर तक ऐसे ही मैं उसकी चूत चोदता रहा फिर मैंने उसे पलट कर घोडी बना दिया और पीछे से चुदाई करने लगा। देवसेना की चीखो से पूरा गर्भगृह गूंजने लगा । अब मेरा भी लंड झड़ने के करीब आ गया था मैंने अपने धक्के की गति को बढ़ा दिया और उसके वक्षो को पीछे से मसलने लगा। कुछ देर बाद देवसेना और मैं दोनों झड़ गए।

कुछ देर हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे फिर पुजारन देवसेना ने मुझसे कहा " महाराज मैंने सोचा था कि कल रात मुझे सम्भोग में अपने जीवन का सबसे मजा आया पर आज सुबह आपने मुझे कल रात से दुगना मजा दे दिया।"
मैंने पुजारन देवसेना से कहा " देवसेना जी आपने अभी कुछ देखा ही नहीं है कुछ दिन और मेरे साथ रहिये मैं आपको मजा देने के साथ गर्भवती भी बनाऊंगा "
देवसेना कहा " भगवन करे ऐसा ही हो "

अब रोज का यही क्रम हो गया था कि रात में पुजारन देवसेना की चूत की पूजा होती थी । इसी प्रकार एक माह बीत गए और इस माह पुजारन देवसेना को मासिक नहीं आया। पूरे मंदिर में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी पुजारन देवेसेना ने मुझे बुलाया और कहा " महाराज मैं आपकी आभारी हूं कि आप की वजह से मेरा वर्षों का सपना पूर्ण हो गया । "
मैंने उत्तर दिया " अब आपको अपने वचन को पूर्ण करने का समय भी आ गया है।"
देवसेना " महाराज मैं आज ही सारे कबीलों में ये संदेश भिजवा देती हूं कि मैंने आपको कबीलों का सरदार चुन लिया है "
मैंने कहा " धन्यवाद पुजारन देवसेना अब मैं वापस जाने की अनुमति चाहता हूं "
देवसेना " महाराज कुछ दिन और रुकिए न "
मैंने कहा " नहीं पुजारन जी मुझे यहाँ आये हुए कई दिन ही गए पता नहीं मेरे कबीले का क्या हाल होगा अब मुझे अपने कबीले के सरदार होने का कर्त्तव्य भी निभाना होगा अतः मैं अब जाना चाहता हु "
पुजारन देवसेना ने भारी मन से मुझे जाने की अनुमति दे दी।
मैंने भी अपना सामान बांधा और निकल पड़ा वापस अपने क़ाबिले की तरफ। ऐसे ही आगे बढ़ते बढ़ते सुबह से शाम हो गयी मैं भी तेजी से कदम बढ़ाने लगाकि अचानक मेरा पैर एक सूखी दाल पे पड़ा जो मेरे वजन से टूट गयी और मेरे पैर किसी फंदे में फंस गया जिसके कारण मैं उल्टा होता हुआ ऊपर की और उठता चला गया। मेरे शरीर का पूरा वजन मेरे एक ही पैर पे पड़ रहा था जिसके कारण मेरे पैर में बहुत जोरों का दर्द उठना शुरू हो गया और उल्टा लटके होने के कारण मेरा सर घूमने लगा। थोड़ी ही देर में एक औरत हाथ में तीर धनुष ताने मेरी दृष्टि के सामने प्रकट हुई। उसने पुरे शरीर को चमड़े के वस्त्र से ढँक रखा था उसके लंबे बाल सर के ऊपर बंधे हुए थे ।
उसने तेज आवाज में मुझसे पूछा " कौन हो तुम और यहाँ हमारे कबीले में क्या कर रहे हो ?"
मैं नहीं जानता था कि ये दोस्त है या दुश्मन सो मैंने भी अपनी पहचान छुपाते हुए जवाब दिया " मैं एक मुसाफिर हु और रास्ता भटक गया हूं "
उसने कहा " कहाँ से आ रहे हो ? "
मैंने जवाब दिया " पुजारन देवसेना के मंदिर से आ रहा हु "
उसने फिर कड़े लहजे में पूछा " देवसेना के मंदिर में कोई बिना अनुमति नहीं जा सकता सच बताओ कौन हो तुम "
मैंने फिर वही बात दोहराई ।
उसे ये बात पसंद नहीं आयी और उसने आगे बढ़ते हुए मेरे सर पे किसी भारी चीज से वार किया और मैं बेहोश ही गया।
आँखे खोलते ही तीव्र पीड़ा मुझे महसूस हुई और मेरी एक आँख पूरी तरह से नहीं खुल पायी थी । लग रहा था कि जब उस औरत ने मेरे सर पे वार किया तो कुछ चोट मेरी आँखों पे भी लग गयी थी जिसके कारण मेरी एक पलक सूज गयी थी। मैंने अपनी दूसरी बची हुई आँख से देखा तो मेरे हाथ पैर बंधे हुए थे और मेरे चारो ओर औरतों का झुण्ड खड़ा था। सब के शरीर चमड़े के वस्त्र से ढंके थे और बाल जटाओं की तरह सर के ऊपर बंधे हुए थी।
मेरी आँखे खोलते ही एक औरत ने मुझसे कड़क आवाज में पूछा " कौन हो तुम और हमारे कबीले में क्या कर रहे हो ?"
मैंने फिर वही जवाब दिया " मैं एक मुसाफिर हु और रास्ता भटक के आपके कबीले में आ गया हूं "
उसने फिर कहा " तुम्हे ये नहीं पता की हमारे कबीले में पुरुषों का प्रवेश वर्जित है ?"
मैंने कहा " जी नहीं मुझे नहीं पता "
उसने फिर कहा " तब तो तुम्हे ये भी नहीं पता होगा की हमारे कबीले में अनाधिकृत प्रवेश करने पर मृत्यु दंड की सजा है "
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Rohit Kapoor
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Re: अनोखा सफर

Post by Rohit Kapoor »

मैंने सोचा अजीब परंपराएं हैं इस कबीले की अब शायद मुझे अपनी सच्चाई इन्हें बता देनी चाहिए नहीं तो मेरा मृत्युदंड पक्का है। मैंने कहा " देखिये मैं माफ़ी चाहता हु की मैं गलती से आपके कबीले में प्रवेश कर गया और मैंने आ सब से झूठ बोला अब मैं आपको सच्चाई बताना चाहता हु । "
उस औरत ने कहा " जो भी बोलना पुरूष सोच समझ के बोलना क्योंकि अब तुम झूठ बोलेने के अपराध को मान चुके हो "
मैंने कहा " जी मैं मानता हूं कि मैंने झूठ बोला पर उसका कारण ये है कि मैं जमजम कबीले का सरदार हु और मैं नहीं जानता था कि आपका कबीला उस कबीले का शत्रु है या मित्र । इस लिए मुझे झूठ बोलना पड़ा।"
मेरी बात सुन कर पास खड़ी सभी औरते हँसने लगी । अभी तक जो औरत बात कर रही थी उसने कहा " अच्छा तो तुम जमजम कबीले के सरदार हो पर हमने तो सुना है कि वो इतना ताकतवर है कि उसने एक ही वार में वज्राराज को मौत के घाट उतार दिया और उसका लिंग इतना बड़ा है कि उसके साथ सोने वाली सारी औरते रात भर चीखती रहती हैं। पर तुम्हे देख कर तो ऐसा नहीं लगता।"
मैंने कहा " देखिये सुनी हुई बाते हमेशा सत्य नहीं होती।"
उसने कहा " अभी पता चल जायेगा जरा तुम्हारा लिंग देखे "
ऐसा कहकर उसने मेरी कमर पर लपेटा चमड़े का वस्र उतार दिया अब मेरा लंड अपनी सामान्य अवस्था में था तो उसे देख के सारी औरते फिर जोरो से हँसने लगी।
फिर उस औरत ने सबको चुप होने का इशारा किया और मुझसे बोली " पुरुष तुमने बिना अनुमति हमारे कबीले में प्रवेश किया और हम सब से झूठ पे झूठ बोले जा रहे हो इसकी तुम्हे सजा मिलेगी । सैनिको इसे मृत्यु दंड दिया जाता है।"
उसके इतना कहते ही आसपास की सभी औरतो ने अपने धनुष पे बाण चढ़ा लिए और मेरे ऊपर तान दिया। मुझे अपना अंत समीप नज़र आ रहा था इसलिए मैंने भी मृत्यु को वरण करने हेतु अपना सीना आगे कर दिया।
तभी एक सैनिक औरत दौड़ती हुयी आती है और कहती है " महाराज जमजम कबीले ने हमारे कबीले पे आक्रमण कर दिया है "
अभी तक जो औरत बोले जा रही थी उसने कहा " क्यों?"
सैनिक औरत " रानी वो कह रहे हैं की हमने उनके सरदार का अपहरण कर लिया है।"
सरदार औरत मेरी तरफ विस्मित नजरों से देखने लगती है। मैं उससे कहता हूं " देखिये शायद हम दोनों लोगो से ग़लतफ़हमी हो गयी है इसलिए आप मुझे बंधन मुक्त कर दे मैं अपने कबीले वालो को समझाता हु अन्यथा व्यर्थ में निर्दोष लोग मारे जायेंगे।"
सरदार ने मेरे हाथ खुलवाये और मैं उनके साथ उस तरफ चला जहाँ युद्ध हो रहा था। वहां मैं देखता हूं कि विशाला कुछ सैनिको के साथ इस कबीले के सैनिको से लड़ रही है। मैं आवाज देके उन्हें रुकने का आदेश देता हूं तो वो सब रुक जाते है साथ ही बाकी दूसरे कबीले के सैनिक भी उनके सरदार के इशारे पे रुक जाते हैं।
मैं विशाला के पास पहुचता हु तो वो मुझे देख कर ख़ुशी से मुझसे लिपट जाती है। थोड़ी देर बाद मेरी अवस्था देख फिर गुस्से से कबीले के सरदार से बोलती है " रानी नंदिनी आपने हमारे महाराज का अपहरण कर उनके ऊपर हमला किया उनका अपमान किया है और कबीले के संधि के नियमो की अवहेलना की है साथ ही आपने कबीलों के सरदार का भी अपमान किया है आपको बंदी बनाया जाता है ताकि आप अपने गुनाहों का दंड आप महाराज से पा सके "
मैं विशाला को समझाने की कोशिश करता हु " सेनापति विशाला इसमें रानी नंदिनी की कोई गलती नहीं है मैं ही भटक के इनके कबीले में आ गया था इन्हें नहीं पता था कि मैं कौन हूं इसलिए इन्होंने अज्ञानतावश ऐसा किया ।"
विशाला मुझसे कहती है "जैसा आप कहे महाराज "
तबतक रानी नंदिनी अपने पैरों में गिर जाती है और बोलती " महाराज मुझे माफ़ कर दीजिए "
मैंने कहा " रानी नंदिनी आपसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है अतः मैंने आपको माफ़ कर दिया ।"
नंदिनी " महाराज ये आपका बड़प्पन है कृपा करके हमारे कबीले में पधारे ताकि आपकी चोट का इलाज कराया जा सके "
मैंने कहा " चलिये रानी "

रानी नंदिनी के कबीले में मैंने गौर किया कि सारी स्त्रियां ही थी यहाँ तक छोटी बच्चे भी किशोरियां ही थी। मैंने उत्सुकता वश पुछा " रानी नंदिनी आप के कबीले के सभी पुरुष कहाँ है?"
रानी नंदिनी ने कहा " महाराज हमारे हमारा ये कबीला सिर्फ स्त्रियों है हमारे यहाँ कोई पुरुष नहीं है "
मैंने चौंकते हुए पूछा " ऐसा कैसे हो सकता है कुछ कामों के लिए तो पुरुष की जरुरत पड़ती है जैसे बच्चे पैदा करने में ?"
रानी नंदिनी ने हँसते हुए जवाब दिया " महाराज हमारे कबीले की स्त्रियां किसी पुरुष का वरण कर सकती है और उसके साथ रहकर संतान उत्पन्न करने की कोशिश कर सकती हैं अगर संतान लड़की हुयी तो वो कबीले में बच्ची के साथ वापस आ सकती है पर अगर लड़का हुआ तो कबीले की स्त्री को कबीले में वापस आने के लिए अपने बच्चे को उसके पिता के पास छोड़ना होता है ।"
अब हम रानी के साथ एक कुटिया में आ गए थे रानी ने मुझसे कहा " महाराज आप और सेनापति विशाला यहाँ विश्राम करे मैं आपके भोजन का प्रबंध करती हूं।"
रानी के जाने के बाद मैंने विशाला से पूछा " तुम्हे कैसे पता चला की मैं यहाँ बंदी हु ?"
विशाला ने बताया " पुजारन देवसेना के मंदिर से वापस आने के बाद मैंने एक गुप्तचर आपके वहां से वापस लौटने की जानकारी के लिए वहां भेजा था। जब आप वहां से वापस कबीले के लिए चले तो वो आपका छुप के पीछा कर रहा था। जब आपको रानी नंदिनी के कबीले वालो ने बंदी बना लिया तो उसने आके मुझे सूचना दे दी।"
मैंने विशाला की तारीफ करते हुए कहा " वाह विशाला आज मुझे विश्वास ही गया कि मैंने तुम्हे सेनापति बना के कोई गलती नहीं की। बताओ तुम्हे क्या इनाम चाहिए।"
विशाला ने मेरी तरफ देखते हुए " महाराज मुझे आपसे एक ही इनाम चाहिए " फिर उसने अपनी कमर पे बंधा कपडा उतार दिया और मेरे सामने घोड़ी बन गयी।
मैंने भी अपना कमर पे बांध वस्त्र उतार दिया और अपने लंड को आगे पीछे करके खड़ा करने लगा। कुछ देर बाद जब मेरा लंड खड़ा ही गया तो मैंने उसपर थूक लगा के विशाला की चूत पे लगाके जोरक धक्का मारा तो मेरा लंड थोड़ा सा उसकी चूत में गुस गया। उसकी चूत अभी पूरी तरह से गीली नहीं थी तो मैं आगे से हाथ डालकर उसकी चूत के दाने को मसलने लगा। विशाला मजे से अपनी चूत आगे पीछे करने लगी। थोड़ी देर बाद जब उसकी चूत कुछ चिकनी हुयी तो मैंने फिर जोर का झटका मार के अपना पूरा लंड उसकी चूत में उतार दिया। और उसकी कमर पकड़ के उसकी चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा। विशाला भी मजे से चिल्लाने लगी जिसके कारण मुझे और उत्तेजना होनी लगी। मैंने अपने धक्कों की गति को तेज कर दिया और कुछ देर बाद उसकी चूत में ही झड़ गया।
कुछ देर बाद हम दोनों संयमित हुए तो हमे अंदाजा हुआ की हम किसी दूसरे के क़बीले में हैं अतः हम वापस अपने स्वाभाविक अवस्था में आ गये। कुछ देर बाद रानी नंदिनी ने कुटिया में प्रवेश किया उनके साथ एक अत्यंत रूपवान स्त्री भी थी। रानी ने परिचय कराते हुए कहा " महाराज ये मेरी पुत्री त्रिशाला है ।"
उसने मुझे प्रणाम किया पर मैं तो उसके सौंदर्य में खोया हुआ था। रानी ने फिर मुझसे कहा " महाराज ये मेरी पुत्री त्रिशाला है ये आपसे मिलने चाहती थी।"
। रानी की बात सुनकर मेरी तन्द्रा टूटी। मैंने कहा " रानी नंदिनी आप की तरह ही आपकी पुत्री भी बहुत सुंदर हैं । "
मेरी बात सुनकर दोनों शर्म से लाल हो गयी। मैंने फिर आगे बात बढ़ाते हुए कहा " रानी अब शायद हमें चलना चाहिए हमने बहुत देर आपसे अतिथिभगत करवाई ।"
रानी नंदिनी " महाराज आप थोड़े दिन हमे भी सेवा का मौका दे "
मैंने कहा " रानी मैं बहुत दिन से अपने कबीले से दूर हु अब मुझे वहां जाके वहां की भी व्यवस्था देखनी चाहिये अतः आप हमें जाने की आज्ञा दे। "
रानी नंदिनी " जैसा आप चाहे महाराज पर मैं आपसे कुछ कहना चाहती हु ।"
मैंने कहा " बिलकुल महारानी संकोच न करे "
रानी नंदिनी " महाराज मेरी बेटी त्रिशाला आपका वरण करना चाहती है "
मैंने चौंकते हुए त्रिशाला की तरफ देखा तो वो सर झुकाये हुए शर्म से दोहरी हो रही थी। मैंने रानी नंदिनी से पूछा " पर रानी मेरी आपकी पुत्री से ये पहली भेंट है वो एक ही भेंट में ऐसा फैसला कैसे ले सकती है ?"
मेरी बात पे रानी नंदिनी ने कहा " महाराज पिछले एक माह से हम आपके बारे में बहुत सी बातें सुन रहे हैं चाहे हम आपसे कभी न भी मिलते फिर भी हमे आपके बारे में काफी कुछ मालूम है ।"
रानी की बात ये मैंने हँसते हुए जवाब दिया " हाँ वो तो मैं देख ही चूका हूँ की आपको क्या बाते पता चली हैं । चूँकि हमारे क़बीले का नियम है कि मैं किसी स्त्री को संभोग के लिए मना नहीं कर सकता इसलिए मैं आपके इस प्रस्ताव के लिए भी मना नहीं करूँगा, पर मैं ये चाहता हु की राजकुमारी त्रिशाला मेरे साथ मेरे क़बीले चले वहां मेरे साथ रहे और तब अपना फैसला करे , न की सुनी सुनाई बातो पे।"
रानी नंदिनी ने त्रिशाला की तरफ देखा तो उसने भी सहमति में सर हिलाया तो रानी ने मुझसे कहा "जैसी महाराज की इच्छा "
मैंने कहा "फिर हमें प्रस्थान की अनुमति दीजिये "
रानी नंदिनी ने कहा " देवता आपकी यात्रा सुगम करे महाराज "
क़बीले में पहुचने पर सभी क़बीले वासी, चरक और रानी विशाखा ने मेरा स्वागत किया । मैं भी उनसे बहुत ही गर्मजोशी से मिला । अपनी कुटिया पे आके मैंने चरक ,रानी विशाखा, सेनापति विशाला तथा राजकुमारी त्रिशाला की मंत्रणा के किये बुलाया।
मैंने सब से राजकुमारी त्रिशला का परिचय कराया फिर पूछा " मेरी गैर हाजिरी में क़बीले का क्या हाल था ??"
सबसे पहले चरक महाराज बोले " महाराज सब ठीक ही था "
ये सुनकर विशाला घूर के चरक को देखने लगी।
मैंने सेनापति विशाला से पुछा " आपको कुछ कहना है सेनापति "
विशाला बोली " महाराज आपकी गैर हाजिरी में कपाला ने दी बार हमारे क़बीले पे हमला किया जिसे हमने विफल कर दिया।"
मैंने पूछा " कपाला आखिर चाहता क्या है ?"
अब रानी विशाखा ने कहा " महाराज वो कबीलो का सरदार बनना चाहता था पर पुजारन देवसेना ने आपको कबीलो का सरदार बना दिया है इसलिये बौखलाहट में वो क़बीले पर हमला कर रहा है।"
मैंने कुछ सोचते हुए चरक से पुछा " क़बीले की दिवार का काम कहाँ तक पंहुचा "
चरक " महाराज दिवार पूर्ण हो चुकी है।"
मैंने उन सबसे कहा " अब सभा पूर्ण होती है । "
मैंने रानी विशाखा से कहा " महारानी राजकुमारी त्रिशाला के रहने का प्रबंध किया जाए ।"
फिर मैंने विशाला से कहा " सेनापति विशाला आप मेरे साथ चले आपसे कुछ बात करनी है।"
मैं और विशाला कुटिया से बाहर निकलकर क़बीले से बाहर आ जाते हैं। मैं विशाला से कहता हूं " सेनापति मैं चाहता हु की आप अपना विश्वस्त गुप्तचर चरक महाराज के पीछे लगा दे वो कुछ छुपा रहे हैं हम सब से। "
विशाला ने कहा " जो आज्ञा महाराज "
फिर मैंने कहा " इस क़बीले की दीवार से आगे गड्ढा खुदवा दो और उसमें नुकीले भाले जैसे लकड़िया गढ़वा दो और उन्हें घांस फूंस से ढकवा दो। "
उसने कहा " जी मगराज"
फिर मैंने कहा " तुम्हे एक और काम करना होगा । एक गुलेल जैसे बड़े बड़े यंत्र बनवाने होंगे जिससे हम क़बीले की दीवार के अंदर सही शत्रु पे हमला कर सके।"
विशाला ने मुझसे पूछा " ये गुलेल क्या होती है महाराज ?"
मैं पास में पड़ी हुई लकड़ियों से उसे गुलेल बनाना सिखाने लगा। कुछ देर बाद वो समझ गयी और बोली " महाराज ये बन जायेगा पर आपको ये बनाना कैसे आता है ?"
मैंने कहा " पुराने ज़माने में रोमन योद्धा युद्ध में इस तरह के हथियारों से अपने शत्रुयों पे बड़े बड़े पत्थरों से हमला करते थे। मैंने उनकी युद्ध कला के बारे में पढ़ा है।"
फिर मैंने विशाला से कहा " अपनी सेना को सतर्क और तैयार रहने को बोल दो और प्रहरियों की गश्त बढ़ा दो मुझे लगता है जल्द ही कपाला बड़ा हमला करने वाला है ।"
विशाला ने विस्मित नजरों से देखते हुये पूछा " आपको ऐसा क्यों लगता है महाराज? "
मैंने कहा " मुझे लगता है कि अभी तक जो दो हमले हमारे क़बीले पे हुए वो टोह लेने के लिए हुए थे अब जो हमला होगा वो हमारी कमजोरियों का आंकलन करने के बाद किया जाएगा इसलिए हमें सावधान हो जाना चाहिए।"
विशाला ने कहा " जैसी आपकी आज्ञा महाराज"
फिर हम वापस क़बीले में आ गए।
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