होता है जो वो हो जाने दो complete

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Rohit Kapoor
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Re: होता है जो वो हो जाने दो

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mini wrote:rahul ab shuru ho gya h.....rukega nahi...hero h....jabardast
you are right
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Rohit Kapoor
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Re: होता है जो वो हो जाने दो

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अलका को अब शर्म महसूस होने लगी थी , क्योंकि रास्ते का पानी घुटनों तक होने की वजह से उसे ना चाहते हुए भी अपनी साड़ी को घुटनों तक उठाना पड़ा जिससे उसकी गोरी गोरी मांसल पिंडलियां दिखने लगी थी। बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी रह रह कर बादलों की गड़गड़ाहट से उसका मन काँप उठ़ता था और कोई समय होता तो ऐसी बारिश में वो कभी नहीं निकलती लेकिन क्या करें मजबूरी थी घर पहुंचना था इसलिए उसे बारिश में निकलना ही पड़ा। पानी में अपने पैरों को घसीटते हुए वह आगे बढ़ ही रही थी कि तभी उसे पीछे से आवाज आई।
आंटी जी... वो आंटी जीे ...थोड़ा रुकिए....
( उसे यह आवाज कुछ जानी पहचानी लगी इसलिए उसके कदम ठीठक गए , पीछे मुड़कर देखी तो विनीत था जो की छतरी लेकर उसकी तरफ ही बढ़े चले आ रहा था। उसे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान तेैर गई
विनीत को देख कर उसे क्यों इतनी खुशी हुई यह खुद वह नहीं जानती थी। इस खुशी के पीछे कोई लगाव कोई अपनापन या आकर्षण था ईसको बता पाना अलका के लिए भी बड़ा मुश्किल था।
वीनीत छत्री ओढ़ै अलका के पास पहुंच गया और बोला
आंटी जी आप ऐसी बारिश में कहां से आ रहीे हैं?

अरे बेटा मैं तो ऑफिस से आ रही हूं अब क्या करूं मुझे बारिश में बहुत ज्यादा डर लगता है लेकिन मजबूरी है इसलिए मुझे एसी बारिश में भी जाना पड़ रहा है। ( अलका विनीत के सवाल का जवाब देते हुए बोली. अलका को अब तक बहुत जल्दी पड़ी थी घर पहुंचने को लेकिन अलका भी शायद अंदर ही अंदर विनीत के प्रति आकर्षित होती जा रही थी। इसलिए तो ऐसी तूफानी बारिश में भी खड़ी हो गई थी। अलका के चेहरे पर और ज्यादा प्रसन्नता के भाव दीखाई देने लगे जब वीनीत ने छत्री को अपने ऊपर से हटाकर अलका के ऊपर कर दीया। अलका पुरी तरह से भीग चुकी थी लेकीन उस लड़के का अंदाज देखकर उससे कुछ. बोला नही गया। विनीत भीगा हुआ नहीं था लेकिन अपने ऊपर से छतरी हटाकर अलका के ऊपर रखने से वह भी बारिश में भीगने लगा । अलका उसे छतरी में आने के लिए कहने से शर्मा रही थी. दोनों घुटने तक पानी में दो ही कदम चले थे कि जोर से बादल गरजा और बादल के गरजने की आवाज सुनते ही अलका घबरा गई और उसने तुरंत विनीत को छतरी में आने के लिए कहीं।

विनीत तो जैसे अलका के कहने का इंतजार ही कर रहा था कि वह तुरंत क्षतरी में आ गया ओर जान बुझ के बिल्कुल अलका के बदन से सट गया लेकिन इस बात से अलका बिल्कुल अनजान थीे कि विनीत जानबूझकर उसके बदन से अपने बदन का स्पर्श करा रहा है। दोनों घुटनोे तक पानी में धीरे धीरे पैरों को लगभग घसीटते हुए आगे बढ़ रहे थे। अलका ने किस तरह से अपनी साड़ी को घुटनों तक उठाकर पकड़कर चल रही थी उसे देखकर किसी भी मर्द की इच्छा उसको चोदने के लिए मचल उठे उसकी इठलाती बलखाती कमर और बड़ी-बड़ी मटकती हुई गांड अच्छे अच्छो का पानी निकाल दे। विनीत तो रह रह कर अपनी नजरें नीचे करके उसकी गोरी नंगी पिंडलियो को देख कर अपनी आंखों को सेक ले रहा था, विनीत के साथ चलते हुए अलका का डर कुछ हद तक कम हो चुका था। अभी दोनों मार्केट में ही थे बारिश का जोर कुछ कम होता नजर आ रहा था लेकिन पानी अभी भी घुटनों तक ही था अभी भी दोनों को बहुत चलना था वैसे तो आम दिनों में अपने घर पहुंचने में अलका को सिर्फ 15 या 20 मिनट लगते थे लेकिन पानी भरे होने की वजह से आज शायद कुछ ज्यादा ही समय लग जाए। विनीत अलका के साथ बातों का दौर बढ़ा रहा था। और भी लोग थे जो सड़कों पर घुटनों तक पानी में आ जा रहे थे जब भी कोई बड़ी मोटर वहां से गुजरती तो पानी की लहरें दोनों को हक मचा देती ओर पानी का बड़ा सा गुब्बारा की तरह लहरों के साथ दोनों के बदन से टकराता तो दोनों गिरते गिरते बचते । अलका अगर अकेले ही होती तो लहरों की टक्कर से जरुर गिर जाती लेकिन विनीत बार-बार अलका को सहारा देकर संभाल ले रहा था। और अलका को संभालने मे वीनीत का हांथ अलका के बदन पर जहां तहां पड़ जा रहा था। एक हाथ में छतरी पकड़े अलका अपने आप को संभाल भी नहीं पा रही थी। विनीत उस को संभालने में कभी अपने हाथ को अलका की मांसल कमर तो कभी उसकी बांह पकड़ ले रहा था एक बार तो मौका देख कर वीनीत ने अलका को सभालने संभालने में अपनी हथेली को अलका कि बांह से निकालकर अलका की चूची पर ही रख दिया और मौका देख कर उसे हल्के से दबा भी दिया।
अलका को विनीत की ये हरकत महसूस जरूर हुई लेकिन उसने यह सोच कर टाल दिया कि शायद अनजाने में ही वीनीत के हांथो ऐसी गलती हो गई होगी।
लेकिन एकबारगी विनीत की इस हरकत से अलका के पूरे बदन में झनझनाहट सी फैल गई, चूचियों पर विनीत के हाथों का स्पर्श की झनझनाहट उसकी रीढ की हड्डी से होते हुए उसकी जांघों के बीच की पतली दरार तक पहुंच गई। अलका वीनीत को कुछ बोल नहीं पाई।
दोनों बातें करते हुए पानी में चले जा रहे थे लेकिन अलका कुछ कम ही बोल रही थी क्योंकि उसे शर्म सी महसूस होने लगी थी , लता अपने मन के द्वंद युद्ध में ही उलझी पड़ी थी वह अपने आपको समझा नहीं पा रही थी कि विनीत का यह स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था या खराब लग रहा था। जितना सटकर विनीत चल रहा था इतने करीब उसने किसी मर्द को नहीं आने दी थी। सिर्फ राहुल ही था जो चलते समय या कैसे भी उसके इतने करीब रहता था राहुल उसका बेटा था और विनीत भी राहुल के ही हम उम्र का था जो कि उसके बेटे के ही समान था। विनीत के इतने करीब रहने पर अलका के बदन में अजीब सी फीलिंग हो रही थी जब की राहुल की वजह से उसे आज तक ऐसी फीलिंग नहीं हुई थी,
ईसी फीलिंग को समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्यों हो रहा है।
विनीत का तो हाल बुरा हो चुका था बारिश की ठंडी बूंदों में भी उसके पसीने छूट रहे थे इतना गर्म इतना मुलायम और गुदाज चूची का स्पर्श उसे अंदर तक हीला गया था। ब्लाउज गीली होने की वजह से उसकी काले रंग की ब्रा साफ साफ नजर आ रही थी और ब्रा से झांकती उसकी बड़ी बड़ी चूचियां उसके लंड में खून के दौरे को बढ़ा रही थी। भीगे मौसम में भी विनीत पूरी तरह से गरमा चुका था, शाम ढल चुकी थी अंधेरा छाने लगा था वैसे भी बारिश के मौसम की वजह से काले बादलों ने पहले से ही अंधेरा किए हुए था। दोनों धीरे धीरे चलते हुए मार्केट से बाहर आ चुके थे. अब सड़क पर केवल इक्का-दुक्का इंसान ही नजर आ रहे थे जो कि वह लोग भी घर पहुंचने की जल्दी मे अपने आसपास ध्यान दिए बिना ही चले जा रहे थे।
अलका की खूबसूरती और उसके भीगे बदन की खुशबू से विनीत का मन मचल रहा था। अपने आप पर कंट्रोल कर पाना उसके लिए मुश्किल हुए जा रहा था। एक तो रोमांटिक मौसम और ऊपर से एक खूबसूरत औरत का साथ जोकि पानी में भीगकर और भी ज्यादा खूबसूरत और सेक्सी हो चुकी थी, और तो और दोनों एक ही छतरी के नीचे आपस में कटे हुए भीगते बारिश में घुटनों तक पानी मे चले जा रहे थे जिससे विनीत का अपने ऊपर कंट्रोल कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगने लगा था।
बारिश ने अपना जोर कम कर दी थी लेकिन बंद नही की थी। वीनीत अलका को अपनी बाहों में भरकर चूमना चाहता था उसके मधभरे रसीले होठों को अपने होठों के बीच रख कर उनके रस को नीचोड़ना चाहता था' अलका की बड़ी बड़ी गांड जो की साड़ी भीेगने की वजह से और भी ज्यादा उभरी हुई और उसके कटाव साफ साफ दिखाई दे रहे थे जिसे देखकर विनीत पगला सा गया था विनीत उसे मसलना चाहता था। उसे इंतजार था तो बस सही मौके का, अंधेरा छाने लगा था रह-रहकर बादलों की गड़गड़ाहट से अलका का मन बैठ जा रहा था। बिजली की चमक और बादलों की गड़गड़ाहट से अलका को बहुत डर लग रहा था इसलिए डर वश वह विनीत के और भी ज्यादा नजदीक सट कर चलने लगी। यहां से कुछ ही दूरी पर चौराहा था जहां तक अलका के साथ ही चलना था। विनीत की बेचैनी बढ़ती जा रही थी उससे रहा नहीं जा रहा था क्या करें कि वह अलका को अपनी बाहों में भर कर चूमने लगे।
अलका थी की विनीत की हरकत की वजह से अभी तक रह रहकर उसके बदन में सीहरन सी दोड़ जा रही थी। ना जाने क्यों उसे ऐसा लगने लगता कि अभी भी उसकी चूची पर विनीत की हथेली कसी हुई है। उसे यू पानी में वीनीत के साथ चलना अच्छा लग रहा था,
पूरी तरह से अंधेरा छातियों का था आज सड़कों पर की लाइट भी बंद थी इसलिए कुछ ज्यादा ही घना अंधेरा लग रहा था। अलका इस अंधेरेपन से पूरी तरह से वाकिफ थी क्योंकि वह जानती थी कि जब भी बारिश का सीजन आता है तो बारीश की वजह सें सड़कों की लाइटें चली जाती हैं।
पानी घुटनों से नीचे आ चुका था क्योंकि ईधर का रास्ता थोड़ा ऊंचाई पर था और चारों तरफ बड़े-बड़े घने पेड़ों से ढके होने के कारण यहां कुछ ज्यादा ही अंधेरा लग रहा था और अब तो सड़क पर एक इंसान भी नजर नहीं आ रहा था यही मौका वीनीत को ठीक लग रहा था।
अलका इस रास्ते से गुजरते वक्त मन ही मन घबरा रही थी, उसकी घबराहट का एक कारण अंधेरा तो था ही और उपर से सबसे बड़ा कारण था बादलों का तेज गड़गड़ाहट और बिजली का चमकना ये सबसे अलका कुछ ज्यादा ही घबरा रही थी इसलिए यहां पर चलते समय वह विनीत से कुछ ज्यादा ही सट चुकी थी।
अकेलापन और अंधेरे का साथ पाकर विनीत मैं थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए धीरे से अलका की कमर पर अपनी हथेली रख दिया, अपनी कमर पर विनीत की हथेली का स्पर्श पाते हैं अलका एकदम से सिहर ऊठी ' वीनीत धीरे-धीरे अलका की कमर को सहलाते हुए उसे अपनी तरफ खींचे हुए चल रहा था। विनीत को अपनी कमर को ईस तरह से सहलाते हुए देख कर अलका का पूरा बदन कांप पर सा गया। सड़क एकदम सुनसान थी पानी उतर चुका था बारिश की बूंदे भी लगभग बंद हो चुकी थी, दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए अलका को वीनीत की हरकत से और ज्यादा डर लगने लगा। अलका के हाथ में अभी भी छतरी थी।
वीनीत ने धीरे-धीरे अपनी हथेली को कमर से होते हुए ऊपर की तरफ सरकाना शुरू कर दिया और कुछ ही सेकंड में उसकी हथेली पूरी तरह से अलका की एक चूची पर जम चुकी थी, और विनीत ने तो उसे मसलना भी शुरू कर दिया था। अलका की चूची इतनी बड़ी थी कि विनीत के हाथ में ठीक से समा भी नहीं पा रहे थे।
विनीत तो एकदम मदहोश हो चुका था और अलका एकदम से घबरा चुकी थी लेकिन ना जाने क्यों उसे अच्छा भी लग रहा था। आज बरसों के बाद कीसी के हथेलियों का स्पर्श उसकी चूची पर हुआ था, उसे अच्छा भी लग रहा था लेकिन उसका मन नहीं मान रहा था की अपने बेटे की उम्र के लड़के के साथ इस तरह....छी...छी..।छी.. उसकी अंतरात्मा गवाही नहीं दे रही थी उसे यह सब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था अलका उसे यह सब करते हुए रोकना चाह रही थी,
लेकिन भी नहीं था कि वहां चूची को दबाए ही जा रहा था, तभी अलका ने हिम्मत करके उसे रोकते हुए बोली

विनीत.....( अलका के मुंह से इतना निकला ही था कि तभी अचानक इतनी तेज बिजली कड़की की वह एकदम से कांप उठी और डर के मारे खुद ही विनीत के बदन से चिपक गई. वीनीत भी मौके की नजाकत को समझते हुए तुरंत उसे अपनी बाहों में कस लिया। बाहों लोक आते ही विनीत अपने दोनों हाथों को उसकी पीठ पर सहलाते हुए नीचे कमर की तरफ ले जाने लगा, अलका पुरी तरह से गनगना चुकी थी। विनीत ऐसी हरकत करेगा अलका को यह उम्मीद न थी। अलका उससे छूटने की कोशिश करती ईससे पहले ही विनीत में अपने दोनों हथेलियों को उस की गदराई गांड पर रखकर दोनों हाथ से दबाने लगा। विनीत को तो जैसे कोई खजाना मिल गया होै इस तरह से टूट पड़ा था। गर्दन को चूमते चूमते उसने एक हाथ से अलका के सिर को थाम कर अपनी प्यासे होठो को अलका के दहकते होठो पर रख दिया ओर गुलाबी होठो को चुसने लगा।
अलका ऊसके बांहो की कैद से छुटने के लिए तड़फड़ा रही थी लेकीन वीनीत के हांथो को अपनी गदराई गांड पर महसूस कर के अलका का भी मन बहकने लगा था लेकिन वह पूरी तरह से बदहवास नहीं हुई थी वह उससे अभी भी चोदने की कोशिश कर ही रही थी कि, विनीत ने अलका को उस की गदराई गांड से पकड़कर फिर से अपने बदन से सटा लिया ओर इस बार विनीत के पेंट में बना तंबू सीधे जाकर साड़ी के ऊपर से ही उसकी बुर पर दस्तक देने लगा, वीनीत के हर स्पर्श से अलका अपने आप को संभाले हुए थी लेकिन इस बार वीनीत के लंड की ठोकर अपनी बुर पर महसुस करके अलका पुरी तरह से बहक गई ओर वह अपने आपको संभाल नहीं पाई और खुद ही जैसे पेड़ में तने लिपट़ते हैं ।
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उसी तरह से वह भी वीनीत के बदन से लिपट गई' और खुद ही उसके होठों को चूसने लगी। अलका को साथ देता देखकर विनीत की हिम्मत बढ़ने लगी। अंधेरे का लाभ उठा कर विनीत यहीं पर सब कुछ कर लेना चाहता था इसलिए वह अलका की चूचियों को भी मसलने लगा' लंड की चुभन ओर चुचीयो के मसलन से अलका मस्त होने लगी।उसकी कामोत्तोजना बढ़ती जा रही थी। ठंडे ओर खुशनुमा मोसम मे भी अलका गरमाने लगी थी। वीनीत तो इतना पागल हो चुका था कि उसके हाथ अल्का के बदन के कोने-कोने तक पहुंच रहे थे।
अलका के गुलाबी होठों को चूस चूस कर के बदन में मदहोशी छाने लगी थी ऐसा लगने लगा था कि जैसे शराब की कई बोतल का नशा उसकी आंखों में उतर आया हो। अलका उत्तेजना की वजह से शुध बुध को बैठी थी। उसके दिमाग में इस समय कुछ भी नहीं चल रहा था अच्छे-बुरे कि समझ खो चुकी थी। इस वक्त उसका दिमाग एकदम शुन्यमनस्क हो चुका था। कामोत्तेजना में सराबोर होकर कब उसके दोनों हाथ विनीत की पीठ पर जाकर उसे सहलाने लगे उसे खुद को पता नहीं चला।
विनीत तो कभी उसकी पीठ सहलाता तो कभी उस की गदराई बड़ी-बड़ी गांड को दोनों हाथों से मसलता तो कभी दोनो चुचियों को हथेली में भर भर कर दबाता , अलका विनीत की इन सभी हरकतों से आनंदित हुए जा रही थी। अलका उस वक्त एकदम जल बिन मछली की तरह तड़प उठी जब विनीत ने अपनी हथेली को साड़ी के ऊपर से ही उसकी जांघों के बीच बुर पर रगड़ने लगा
अलका के पुरे बदन में चुदास की लहर भर गई. वह एकदम से तड़प ऊठी। वह उत्तेजना के मारे कसमसाने लगी विनीत की हथेली बुर वाली जगह को लगातार रगड़ रही थी। दोनों के हॉट आपस में भिड़े हुए थे दोनों पूरी तरह से गरमा चुके थे।
विनीत समझ चुका था कि अलका पुरी तरह से उसके हाथ में आ चुकी है। इसलिए वह एक हाथ से उसकी साड़ी को पकड़कर उपर कि तरफ सरकाने लगा धीरे धीरे करके उसने साड़ी को जाँघो के ऊपर तक ऊठा दिया, अलका इससे ज्यादा उत्तेजित हो चुकी थी कि उसने एक बार भी विनीत को रोकने की कोशिश नहीं की बल्कि वह शायद अंदर से यही चाह भी रही थी' या उसके बदन की गर्मी ने उसे वीनीत को रोकने की इजाजत नहीं दिया। विनीत का लंड एकदम टाइट चुका था, और उसने तुरंत एक हाथं से अपनी जीप खोलकर अपने टनटनाए हुए लंड को पेंट से बाहर निकाल लिया था। वीनीत पूरी तरह से तैयार था वह इसी जगह पर अलका को चोदना चाहता था इसलिए वह अलका को पकड़कर दूसरी तरफ घुमाना चाह ही रहा था कि दूर से आ रही मोटरकार कीे लाईट की वजह से रुक गया और तुरंत अपने लंड को वापिस पेंट में ठूस लिया। अलका को भी जैसे होश आया हो उसने तुरंत अपने कपड़े को दूरुस्त की ओर मोटर कार उसके पास से होकर गुजरे इससे पहले ही वह बिना कुछ बोले लगभग दौड़ते हुए चौराहे के दूसरे तरफ से अपने घर की तरफ चल दी ' अलका एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखी वह जल्द से जल्द अपने घर की तरफ चली जा रही थी और वीनीत वही खड़े ठगी आंखों से अलका को जाते हुए देखता रहा।

अलका हांफते हांफते अपने घर पर पहुंची ' रात के 8:30 बज चुके थे। राहुल अपनी मां को देखते ही सवाल पर सवाल पूछने लगा।

क्या हुआ मम्मी इतनी देर कैसे लग गई , कहां रह गई थी मम्मी, ( अब राहुल के सवाल का क्या जवाब देती इसलिए वह गोल-गोल घुमाते हुए बोली।)

अरे बेटा देख तो रहे हो एक तो वैसे ही ऑफिस में इतनी देर हो गई थी और ऊपर से जब ऑफिस से छुट्टी तो बाहर यह बारिश घुटनों तक पानी में पैदल चल कर आ रही हुं ओर तू है कि सवाल पर सवाल पूछे जा रहा है।
( अलका का जवाब सुनकर राहुल बोला।)


सॉरी मम्मी इतनी देर हो गई थी इसलिए मुझे चिंता हो रही थी।

अच्छा सोनू कहां है उसे कुछ खिलाए कि नहीं?

अपने कमरे में हे मम्मी पढ़ रहा है।

ठीक है बेटा थोड़ा इंतजार करो मैं झटपट खाना बना देती हूं मुझे मालूम है कि तुम लोगों को भूख लगी होगी।

( अलका बाथरूम में जाकर अपने कपड़े बदल ली और पतला गाऊन अपने बदन पर डाल कर खाना बनाने में जुट गई। खाना बनाते समय रह नहीं कर उसे सड़क वाला दृश्य याद आ रहा था उस दृश्य को याद करके अलका रोमांचित हो जा रही थी। आज उसके साथ जो हुआ था उसने कभी सपने में भी नहीं सोची थी। वह इतना कैसे बहक गई उसे खुद समझ में नहीं आ रहा था। आज खाना बनाने में उसका मन बिल्कुल नहीं लग रहा था लेकीन जैसे तैसे करके उसने खाना तैयार कर ली। अलका अपसाथ में बैठकर खाना खाने लगी तभी राहुल की नजर दीवाल के सहारे रखी छतरी पर पड़ी, और छतरी को देखते ही राहुल बोला।

यह छतरी किस की है मम्मी?

( राहुल की बात सुनते ही अलका का दिल धक से रह गया। उसे तुरंत याद आया कि उसने तो छतरि देना भूल ही गई। और छतरी को देखते ही अलका के आंखों के सामने विनीत का चेहरा तेरने लगा उसे वह सब याद आने लगा जो उसके साथ सड़क पर हुआ था। राहुल का उसको अपनी बाहों में कसना उसका होठो को चूसना, अपनी दोनों हथेलियों से उसकी बड़ी बड़ी गांड को कस कस के मसलना, अलका के पूरे बदन में सीहरन सी दौड़ गई जब उसे याद आया कि कैसे वीनीत ने साड़ी के ऊपर से ही उसकी बुप को मसलना शुरू कर दिया था और तो और हद तब हो गई थी जब उसने उसकी साड़ी को ऊपर की तरफ उठाना शुरु कर दिया था। यही सब अलका याद कर रही थी कि तभी अचानक राहुल बोला।


क्या हुआ मम्मी कहां खो गई तबीयत तो ठीक है ना!


राहुल की बात सुनते ही अलका हड़बड़ाते हुए बोली।

ककककक...कुछ नही बेटा ये छतरी तो मेरी एक सह कर्मचारी की है जिसने मुझे बारिश से बचने के लिए छतरी दी थी कल उसे लौटा दूंगी।
( अलका राहुल से झूठ बोल गई थी। थोड़ी देर में खाना खत्म करके दोनों बच्चे अपने अपने कमरे में चले गए और रसोई की साफ-सफाई कर के अलका भी अपने कमरे में आ गई।
अलका अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी, रह-रहकर अभी भी उस का मन मचल जा रहा था। आज जो कुछ भी हुआ उसके बारे में सोचते ही उसकी जांघों के बीच सुरसुराहट होने लग रही थी। वह मन ही मन बार बार अपने आप को ही कोस रही थी कि उसने क्यों उस बित्ते भर के छोकरे को रोक नहीं पाई। वह मन ही मन अपने आप से ही सवाल पूछ रही थी कि पति के जाने के बाद जिसने आज तक किसी भी मर्द को अपने आस-पास भटकने भी नहीं दी, तो उस लड़के को इतनी आगे बढ़ने की इजाजत कैसे दे दी क्यों उसे रोक नहीं पाई कैसे उसका बदन उसके सामने ढीला पड़ने लगा। विनीत के साथ का रास्ते पर का सारा ब्यौरा उसकी आंखों के सामने तैर रहा था' बार-बार उसे उसकी बुर पर साड़ी के ऊपर से ही विनीत के द्वारा हाथ लगाना याद आ रहा था उस दृश्य को याद कर करके रोमांचित भी हो जा रही थी लेकिन फीर अपने आप पर गुस्सा भी आ रहा था।
वह अपने आप मन में ही बड़बड़ातेे हुए बोली उस बित्ते भर के छोकरे की इतनी हिम्मत कि उसने मेरी ......छी....( अलका अपनी बुर के बारे में मन ही मन बड़बड़ा रहे थी लेकिन अलका कभी भी अपने मुंह से अपनी अंगो का नाम नहीं ली थी अपने पति के सामने भी नहीं )...उसने मुझे क्या दूसरी औरतों की तरह समझा था जो मेरे साथ ऐसा करने लगा , अब कभी भी वह मुझे मिला तो उसे जरूर डांटुंगी और अब से यह भी कहूंगी कि मेरे करीब बिल्कुल ना आए। ( अलका दूसरी तरफ करवट लेकर आंखों को बंद करके सोने की कोशिश करने लगी लेकिन जैसे ही आंखों को बंद की तुरंत उसकी आंखों के सामने फिर से वही दृश्य तेरने लगा। उसका चूचियों को दबाना है उस को मसलना कमर को सहलाते हुए बड़ी-बड़ी गांड को दबाना, उसके होठों को ऐसे चूसना जैसे कि वह उसकी प्रेमिका हो और उसकी बुर को साड़ी के ऊपर से ही मसलना, साड़ी को ऊपर की तरफ उठाना और उसको होश में लाती हुई मोटर कार की तेज रोशनी, उसने तुरंत अपनी आंखें खोल दी और मन ही मन सोचने लगी कि अगर आज वह ऐन मौके पर मोटर गाड़ी नहीं आती तो ना जाने क्या हो जाता बरसों से बेदाग दामन में बदनामी का धब्बा लग जाता। अभी अलका को ऐसा लगने लगा कि उसकी जाँघों के बीच कुछ रीस रहा है , वह समझ नहीं पाई की यह क्या है और उत्सुकता वश बैठ गई। उसने बैठे-बैठे ही अपने गांउन को झट से अपनी कमर तक खींच ली, तुरंत कमर के नीचे का भाग पूरा नंगा हो गया
और तो और उसने आज पेंटी भी नहीं पहनी थी इसलिए गांव के अंदर पूरी तरह से नंगी ही थी, अलका ने जब अपनी उंगलियों से बुर को टटोलते हुए चेक करने लगीे तो उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना ना था। वह समझ गई कि उसकी बुर से काम रस रीस रहा था।
वह समझ नहीं पाई कि ऐसा क्यों हो रहा है आखिर यह काम रस क्यों उसकी बुर से निकल रहा है। कहीं विनीत के साथ उसका जोवा क्या हुआ था कहीं उसके बदन को आनंदित तो नहीं कर रहा है . । अलका बार-बार कैटरीना को भूलना चाहती थी इस घटना से निकलना चाहती थी लेकिन फिर भी ना जाने क्यों उसे वही सब वाकया याद आ रहा था और वह यह भी साफ तौर पर जानती थी कि उस वाक्ये से उसे भी आनंद आ जरूर रहा था। तभी तो बारबार उसे आज की घटना याद आ जा रहाी थी। और वह भी उस घटना को याद कर करके रोमांचित हुए जा रही थी।
अलका की ऊंगलिया खुद ब खुद बुर पर घुमने लगी थी।
अलका आज बड़े गौर से अपनी बुर को निहार रही थी, कई सालों के बाद आज पहली बार इतनी ध्यान से अपनी जांघों के बीच की पतली दरार को देख रही थी।
नाजुक नाजुक उंगलीयो पर बालों के झुरमुटों का नरम स्पर्श होते ही उसको यह एहसास हुआ कि महीनों से उसने इन बालों को साफ नहीं की थी और बाल काफी बड़े हो गए थे जिसकी वजह से बुर की पतली दरार भी बड़ी मुश्किल से नजर आ रही थी, अलका की ऊंगलिया बुर के कामरस मे भीगने लगी थी। अपनी बुर पर ऊंगलिया फीराते हुए अलका मदहोशी के आलम में उतरती चली जा रही थी। अलका ने उत्सुकता वश जैसे ही अपनी उंगली से बुर की गुलाबी पत्तियों को कुरेदी उसे फिर से वीनीत याद आ गया, जब उसने उसे कसके अपनी बाहों में भींचा था तो कैसे उसका टनटनाया हुआ लंड पेंट के अंदर होते हुए भी उसकी ठोकर उसकी साड़ी के ऊपर से ही सीधे इसकी बुर पर लग रही थी।
उसके लंड की ठोकर को अपनी बुर पर महसुस करके अलका एक बार फिर से पूरी तरह से गनगंना गई।
अलका के चेहरे पर एक बार फिर से शर्म-ओ-हया की लाल़ी छाने लगी उसके गाल सुर्ख गुलाबी हो गए। उसके चेहरे पर एक बार फीर से क्रोध ओर आनंद का मिला जुला असर देखने को मिल रहा था।
अलका एक साथ दो राहों पर चल रही थी एक तो उसका बदन जो बरसों से प्यासा था उसके बस में नहीं था एक तरफ वीनीत की हरकतों से उसके बदन में मस्ती की लहर दौड़ जा रही थी और दूसरी तरफ उसका मन इन सब बातों से अपने आप को खुद ही कोश भी रहा था।
अलका विनीत के बारे में सोचते हुए अंगुलियों से अपनी बुर को कुरेदे जा रही थी, उसे अब मजा आने लगा था।
ईसमे दोष उसका नही बल्की बर्षो से ऊसके अंदर दबी हुई उसके बदन की भुख थी जैसे विनीत ने अपनी हरकतों से भड़का दिया था। अलका ने उसके पति के जाने के बाद अपने हालात से समझौता कर ली थी, उसने अपना सारा ध्यान अपने बच्चों के पालन-पोषण में ही लगा दी थी। बल्कि जिस समय उसका पति उसे छोड़ कर गया था एसी उम्र में बदन की प्यास और ज्यादा भड़क जाती है ऐसे में औरत बिना लंड लिए संतुष्ट नहीं हो पाती। अलका जीस उम्र के दौर से गुजर रही थी एसी उमर में अक्सर औरत बिना लंड के एक पल भी गुजारा नहीं कर पाती, और अलका ने तो इस उम्र में ही इन सब बातों को बहुत पीछे छोड़ चुकी थी, अपने बदन की जरूरत को उसने अपने अंदर ही दफन कर ली थी। अलका को सेक्स की जरूरत कभी महसूस ही नहीं हुई थी. उसने अपने अंदर सेक्स की प्यास को भड़कने ही नहीं दी थी । लेकिन आज उस छोकरे ने अपनी हरकत से बरसों से दबी हुई उसके बदन की आग को भड़का दिया था।
अलका प्यासी थी लेकिन उसके संस्कारों ने उसे बांध रखे थे। अगर हल्की सी चिंगारी को भी थोड़ी सी हवा दी जाए तो वह भड़क उठती है, उसी तरह से अलका के भी बदन में दबी हुई बरसों की चिंगारी धीरे धीरे भड़क रही थी।
अलका हल्के हल्के अपनी उंगलियों से बुर की पत्ती को मसलना शुरू कर दी थी, झांटों के झुरमुटों के बीच जब
अलका अपनी उंगलियों को कसकर रगड़ती तो बड़े बड़े बाल अंगुलियों की रगड़ के साथ खींचा जाते जिससे उसे दर्द होने लगता लेकिन उस दर्द को अलका अपने होंठ को दातो तले दबा कर सह जाती। कुछ ही पल में उन्माद से भरा हुआ अलका का बदन हिचकोले खाने लगा, सांसे भारी होने लगी थी. उसका गला सूख रहा था। अब उसे ज्यादा कुछ नहीं बस वही दृश्य बार-बार याद आ रहा था जब विनीत ने उसे करके अपनी बाहों में भींचा था, और तुरंत उसका कड़क लंड साड़ी के ऊपर से ही बुर पर ठोकर मार रहा था। आज बरसों के बाद उसने लंड की कठोरता को अपनी बुर के इर्द-गिर्द महसूस की थी। इसलिए तो उसका बदन और भी ज्यादा चुदवासा होकर चुदास की तपन मे तप रहा था।
इस वक्त ना चाहते हुए भी उसे विनीत ही बार बार याद आ रहा था । मदहोशी के आलम में अलका की आंखें मुंदी हुई थी, और वह विनीत को याद करके अपनी बुर को बड़ी तेजी से रगड़ रही थी, लेकिन बार-बार उसकी झांट के बाल उंगलियों के साथ खींचा जा रही थी।
mini

Re: होता है जो वो हो जाने दो

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sunday dhamaka plsssssssssssss
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Rohit Kapoor
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Re: होता है जो वो हो जाने दो

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mini wrote:sunday dhamaka plsssssssssssss
ok mini
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